लेखक – सलोनी खान, Romantic Story: नीचे खड़े हो कर फरजान रोजाना बारबार मेरे बेडरूम की खिड़की की ओर देखा करता था. धीरेधीरे मैं उसे प्यार करने लगी. लेकिन मेरी मनोदशा भांप कर जब पापा ने उस से बात की तो पता चला कि वह मुझे नहीं देखता था बल्कि मेरे घर में लगे वाईफाई से अपने फोन की कनेक्टिविटी मिलाया करता था. फिर भी जो हुआ, अच्छा ही हुआ.  शा म का समय था. मैं ने देखा कि एक लड़का मेरे घर के सामने खड़ा था. मैं खिड़की के पास गई, बाहर झांक  कर देखा. वह ऊपर खिड़की की ओर ही देख रहा था. मैं वहां से हट गई. अगले दिन से उस लड़के की यह

रोजाना की आदत सी बन गई. वह वहां आता और घंटों खड़ा रहता. कभीकभी वह मुंह उठा कर मेरे बैडरूम की खिड़की की ओर देख लेता तो कभी अपने मोबाइल पर लगा रहता. मुझे लगता कि शायद वह मुझे फोन करने की कोशिश कर रहा है. मैं नहीं जानती थी कि उस के पास मेरा फोन नंबर है भी या नहीं वह बहुत ही सुंदर सजीला जवान था. मुझे लगता था कि उस का संबंध किसी बहुत अच्छे परिवार से रहा होगा. 10 दिन तक ऐसा ही चलता रहा.

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कुछ भी नहीं. मैं जानना चाहती थी कि आखिर यह मामला क्या है. सच कहूं तो उसे ले कर मेरे दिल में कुछ भावनाएं उभर रही थीं. मैं मन ही मन सोचती थी कि कहीं मुझे उस से प्यार तो नहीं हो गया है?

‘हां…हां…, मुझे उस से प्यार हो गया है.’ मेरे दिल से आवाज उठती.

‘लेकिन क्या वह भी मुझ से प्यार करता है? शायद नहीं…’ मेरे अंदर कई तरह के अंदेशे जन्म लेते.

यही सब सोचतेसोचते मेरे मन में कई तरह की आशंकाएं पैदा हो जातीं.

अपनी सोच, अपने अस्तित्व को समेट कर मैं ने साहस बटोरा और फैसला किया कि इस बारे में मुझे अपनी मां से बात करनी चाहिए. और मैं ने ऐसा ही किया भी.

‘‘अम्मी…अम्मी… आप कहां हैं? जरा जल्दी से यहां आइए. मैं आप को एक बहुत मजेदार दृश्य दिखाना चाहती हूं. सच में बहुत मजेदार.’’ एक दिन उसे बाहर खड़ा देख कर मैं ने बेसब्री से अपनी मां को पुकारा.

‘‘अच्छा, मैं आ रही हूं.’’ कहते हुए कुछ मिनट में ही मां मेरे पास आ गईं. आते ही मां ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या दिखाना चाह रही थी तुम मुझे?’’

मैं अपनी अम्मी को खिड़की के पास ले गई और उन्हें बाहर नीचे खड़े लड़के को दिखाया. मैं ने अपनी अम्मी को सारा किस्सा सुनाया कि वह लड़का कैसे घंटों यहां खड़ा रहता है और ऊपर खिड़की की ओर देखता रहता है.

मां ने मेरी आंखों में झांका. फिर मुसकराकर कहा, ‘‘तो, इस में खास बात क्या है?’’ मम्मी की मुसकराहट में एक रहस्य सा छिपा था.

‘‘अम्मी, मैं यही आप को दिखाना चाहती थी. अब सोचें और बताएं कि हमें क्या करना चाहिए?’’ मैं ने अपने दिल की बात उन के सामने रखी.

अम्मी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘इस में करना क्या है?’’ बड़ी लापरवाही से अपनी बात कह कर वह चली गईं. अगली सुबह सूरज में कुछ तेजी थी, खिड़की से धूप आ रही थी. पेड़ों पर चिडि़या चहचहा रही थीं. मैं बिस्तर पर बैठी थी और मेरे हाथ में कौफी का मग था. मेरे बाल खुले हुए थे. अचानक अम्मी ने मुझे आवाज दी. वह मुझे बुला रही थीं. नीचे जाने से पहले मैं ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा कि वह लड़का वहां खड़ा है या नहीं? वह वहीं खड़ा था. मुझे शर्म सी आ गई और मैं नीचे भाग गई. मुझे लगता था कि मैं उस के प्यार में गिरफ्तार हो चुकी हूं.

मेरी अम्मी और पापा नीचे ड्राइंगरूम में खड़े थे और उन के चेहरों पर मुसकराहट फैली थी, रहस्यमय मुसकराहट.

‘‘हां अम्मी, बोलो क्या हुआ? मुझे क्यों बुलाया?’’  मैं ने पूछा.

‘‘हां बेटी,’’ अम्मी बोलीं, ‘‘मैं ने तुम्हें एक जरूरी काम से बुलाया है.’’

‘‘तो बताइए?’’

‘‘दरअसल, मैं ने तुम्हारे पापा से उस लड़के का जिक्र किया था, इसलिए आज सुबह वह बाहर जा कर उस से मिले. उस के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की. कुछ बातें कहीं भी.’’

‘‘क्या?’’ मैं बहुत जोर से बोल पड़ी.

‘‘हां, यह सही है मेरी बच्ची. उस का नाम फरजान है और वह एक बहुत ही अच्छे परिवार से संबंध रखता है. उस के पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं और इस वक्त वह नौकरी की तलाश में है. फरजान तुम्हारे लिए बहुत ही सही लड़का है.’’ पापा ने गंभीरता से कहा.

शादी के मुद्दे पर मेरे दिल में तुरंत यह बात आई कि मैं उस लड़के से प्यार करने लगी हूं. मैं मन ही मन सोचने लगी कि या खुदा अब मुझे क्या करना चाहिए.

‘‘मैं बाहर जा कर उसे अंदर बुला लाता हूं. उस के साथ बैठ कर कौफी पिएंगे. तब ही बातोंबातों में हम उस से अपनी बेटी की शादी के बारे मे ंबात कर लेंगे.’’ कह कर पापा बाहर चले गए. मैं शांत खड़ी देखती रही. थोड़ी देर बाद पापा उसे अंदर ले आए. उस ने हम सब को बड़े अदब के साथ सलाम किया. पापा ने उसे ड्राइंगरूम में बैठा कर अम्मी से कौफी लाने को कहा. वे दोनों मुसकराते हुए बातें कर रहे थे. घर में सेल फोन पर वाईफाई लगा हुआ था. कुछ देर बाद उस के चेहरे पर एक अजीब सा सुकून महसूस होने लगा. वहां बैठेबैठे भी वह मोबाइल पर लगा रहा. साथ ही कौफी पीतेपीते बातें भी करता रहा. लेकिन जल्दी ही उस के चेहरे पर जाने की बेचैनी नजर आने लगी. वह ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा था, जैसे कि वह बहुत व्यस्त हो और उसे टे्रन पकड़ने की जल्दी हो.

उस ने जल्दीजल्दी कौफी के घूंट लेने शुरू किए.

‘‘कौफी के लिए धन्यवाद अंकल.’’ फरजान ने कहा.

‘‘धन्यवाद किस लिए?’’ पापा ने पूछा.

‘‘आप ने मुझे घर के अंदर बुलाया, क्योंकि…’’ फरजान बोला.

‘‘यह भी कोई बात है.’’ हम सब हंसने लगे.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि हम तुम्हारी अम्मी से इस बारे में बात कर सकते हैं?’’ पापा ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए पूछा.

‘‘किस बारे में?’’ उस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम रोज हमारे घर के सामने आ कर खड़े होते हो और लैला को देखते हो इसलिए…’’ पापा के चेहरे पर कुछ चिंता सी झलकने लगी थी.

फरजान के हाथ में कौफी का मग कांपा और उस की कौफी छलक पड़ी. वह घबरा कर जल्दी से उठ खड़ा हुआ.

‘‘नहीं, नहीं प्लीज, मेरी अम्मी से कुछ मत कहना अंकल,’’ उस ने डरते हुए कहा.

‘‘लेकिन क्यों बेटा?’’

‘‘वह मुझ पर नाराज होंगी.’’

‘‘वह क्यों नाराज होंगी? उन्हें तो यह सुन कर बहुत खुशी होगी कि उन के बेटे ने शादी के लिए लड़की पसंद कर ली है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, क्या तुम्हें मेरी बेटी पसंद नहीं है? मैं लैला की बात कर रहा हूं. यह मेरी बेटी लैला.’’ पापा ने मेरी ओर इशारा कर के कहा.

‘‘क्या मजाक कर रहे हैं अंकल. मैं लैला नाम की किसी लड़की को नहीं जानता. आप की बेटी को भी नहीं, न यह कि इन का नाम लैला है.’’

‘‘क्या?’’ पापा भी आश्चर्य से उछल पडे़.

‘‘हां, यही सच है. मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता है.’’ फरजान ने जोर दे कर कहा.

‘‘तो फिर मेरे घर के पास आ कर क्या करते थे और ऊपर लैला की खिड़की में क्या देखते रहते थे?’’

फरजान कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘ओह! अब समझ में आया. मैं आप को सच बताता हूं. दरअसल, बात यह है कि मैं वहां खड़े हो कर वाईफाई कनेक्शन का इस्तेमाल करता था और जब भी मेरा फोन हिलता था, कनेक्टीविटी टूट जाती थी. तब स्थिति ठीक करने के लिए मैं ऊपर की ओर देखता था. कभीकभी कनेक्टीविटी आती थी और कभीकभी गायब हो जाती थी. इसी चक्कर में मैं ऊपर देखा करता था. लेकिन लैला की खिड़की की ओर नहीं, यहां खड़े हो कर मैं बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना सीवी भेजता था.’’ फरजान ने विस्तार से अपनी बात बताई.

‘‘तो फिर मेरे बुलाने पर तुम अंदर क्यों आ गए और यहां आ कर तुम ने धन्यवाद भी किया?’’ मेरे पापा ने एक और सवाल दाग दिया.

‘‘दरअसल, आज मुझे सही तरह से कनेक्टीविटी नहीं मिल रही थी. मैं परेशान था और उसी समय आप ने मुझे घर के अंदर आने को कहा तो मुझे बहुत खुशी हुई. क्योंकि यहां अंदर मुझे बेहतर कनेक्टीविटी मिल सकती थी.’’

‘‘और तुम यहां पर बैठ कर अपना सीवी भेजने में व्यस्त थे, क्यों क्या मैं सही कह रहा हूं?’’

‘‘हां.’’

‘‘ओह! मेरे खुदाया.’’ हम में से हर एक के मुंह से बस यही निकला.

इतनी देर में इतने उतारचढ़ाव आ गए थे. हम पता नहीं कहां से कहां तक की सोचने लगे थे.

‘‘तो… अंकल, अब मैं जाऊं? मेरी मम्मी मेरा इंतजार कर रही होंगी.’’

‘‘हां, हां बेटा, क्यों नहीं.’’

मैं अभी भी आश्चर्यचकित थी. मुझे बहुत गहरी चोट पहुंची थी, मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. मैं ने उसे प्यार करना शुरू कर दिया था. मैं सोचती थी कि शायद वह भी मुझ से प्यार करता है. लेकिन वह मेरे लिए नहीं, बल्कि केवल वाईफाई कनेक्टीविटी उपयोग करने के लिए मेरी खिड़की के पास आता था. उस की इस हरकत ने मेरे दिल के टुकड़े कर दिए थे. लगभग 6 महीने बाद एक महिला हमारे घर आई और हमें आश्चर्य में डालते हुए उस ने अपना परिचय फरजान की मां के रूप में दिया. फरजान को एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी और वह उस दिन की बात नहीं भूल पाया था.

उस ने अपने दिल के किसी कोने में मुझे भी जगह दे दी थी. हां, यह सच है कि उसे भी मुझ से प्यार हो गया था. और अब हम दोनों की शादी हो चुकी है और हम एक सुखद और सुंदर जीवन गुजार रहे हैं. मैं जब भी जिंदगी के उस नाटकीय मोड़ को याद करती हूं तो सोचती हूं कि कोई जरूरी नहीं कि दिल के अरमान दिल में ही घुट कर रह जाएं. Romantic Story

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