Emotional Hindi Story: बरसों बाद जमील अपने पुराने घर के दरवाजे पर खड़ा था. इस के बावजूद वह अपने घर की सांकल खटका कर अपनी मां से क्यों नहीं मिल सका. हर किसी की नजरें उस के थिरकते पैरों पर टिकी थीं. लाल बौर्डर का गुलाबी अनारकली कुर्ता, काला पैजामा और काला सितारे जड़ा दुपट्टा लहरालहरा कर वह लशकारे मार रहा था. उस के दोनों साथियों की आवाजें जोश में बुलंद हो रही थीं. तालियों की थाप ने एक समां सा बांध रखा था. उन के फिल्मी गाने की लय मदहोश करने वाली थी, इसलिए सुनने वालों के भी कदम थिरक रहे थे.
औरतें और मर्द दूल्हे के सिर पर बेल उतार कर रुपए उन दोनों की झोलियों में डाल रहे थे. कदमों की थिरकन ऐसी थी, जैसे पांवों में बिजली भरी हो. अब तक गोरे खूबसूरत चेहरे पर पसीने के कतरे चमकने लगे थे. अचानक सुर रुक गए, कदम थम गए और वह थकी सी दरवाजे से टिक कर बैठ गई. उसे भीड़भाड़, रुपएपैसे और इस तमाशे से घबराहट सी होने लगी. किसी मेहरबान हाथ ने उस का थका चेहरा देख कर शरबत का गिलास पकड़ा दिया. शरबत पी कर उसे ताजगी सी महसूस हुई. वह चुपचाप दरवाजे से बाहर निकल गई. खानापीना बाकी था. उन्हें भी खा कर जाने के लिए कहा गया था.
शादी ठेकेदार के बेटे की थी. उन्हें खास खबर भिजवा कर पेटलाद से बड़ौदा बुलवाया गया था. अच्छीखासी कमाई की उम्मीद थी. लेकिन बड़ौदा की जमीन पर कदम रखते ही जैसे उस का दिल बेकाबू होने लगा था. एक अजीब सी उदासी उस की रगरग में उतरने लगी थी. गलियां जानीपहचानी थीं, वह घना बरगद का पेड़, उस के पास पुराने मकान की ड्योढ़ी, लकड़ी के दरवाजे, लंबी, जंग लगी सांकल, वह दरवाजे से टेक लगा कर बैठ गई. अंदर ही अंदर घुटती बेआवाज सिसकियां आंसुओं के रूप में उमड़ पड़ीं. जुदाई का अनकहा दुख प्यासी ड्योढ़ी को भिगोने लगा. लाख दिल चाहा कि सांकल बजा दे, पर हिम्मत नहीं हुई. इस दरवाजे से निकलने का मंजर एक बार फिर आंखों के आगे ताजा हो गया.
इस दुनिया में मर्द औरत के अलावा एक तीसरी जिंस भी है. उन्हें क्यों बनाया गया, इस का राज तो बनाने वाला ही जाने. उन का अस्तित्व दुनिया वालों में कभी मजाक तो कभी घृणा तो कभी तरस की वजह बनता है. लोग इन्हें किन्नर, जनखा, हिजड़ा वगैरहवगैरह कह कर बुलाते हैं. इन किस्मत के मारों की अपनी कोई खुशियां नहीं होतीं. न उन की शादी होती है न बालबच्चे. हां, ये बेचारे दूसरों की शादियों या जन्म पर नाचगा कर दुआएं दे कर जरूर खुशियां हासिल करते हैं, उन्हीं खुशी में अपने अरमान पूरे करते हैं, दुआएं दे कर नजराना वसूल करते हैं. ज्यादातर लोग खुशी से इनाम देते हैं. कभीकभी झिड़कियां और गालियां भी मिलती हैं, पर इन की रोजीरोटी ही नाच, गाना और दुआएं देना है.
आज से 18-19 साल पहले इसी ड्योढ़ी के अंदर एक हंसतीमुसकराती मां एक गोरेचिट्टे, खूबसूरत बच्चे को रेशमी कपड़े पहनाए गोद में लिए बैठी थी और किन्नर नाचगा कर दुआएं दे कर नजराना वसूल रहे थे. सारे घर में खुशी का माहौल था. मेहमान खानेपीने में व्यस्त थे. खाने की खुशबू, लोगों से उसे जो बधाइयां मिल रही थीं, उस से बच्चे की मां मैमूना के चेहरे पर बेटे की मां होने का गर्व और ममता का नूर था. पहले बच्चे के जन्म पर जी भर कर खुशियां मनाई गईं. उस का जन्म शानदार याद बन गया. दूसरा बेटा सजल जमील के एक साल बाद पैदा हुआ. मैमूना को अहसास हो गया कि जमील में कुछ गड़बड़ है. वह आम बच्चों की तरह नहीं है. शरम और हिचक से वह जमील को सब से छिपा कर तैयार करती, किसी पर कुछ जाहिर न होने देती.
उस के बारे में सोचसोच कर दुखी होती, लेकिन जमाल का चेहरा देख कर दिल खुश हो जाता. गोरा रंग बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, खड़ी नाक, गुलाब की पंखुडि़यों की तरह नाजुक गुलाबी होंठ, ऐसी मोहनी सूरत कि निगाह हटाने को जी न चाहे. इतना खूबसूरत बच्चा तीसरी जिंस से ताल्लुक रखता है, यह सोच कर उस का दिल खून के आंसू रोता. इस के बाद बच्चे की मोहनी अदाएं, मीठी आवाज सुन कर खुद को बहला लेती. जमील 5 साल का हुआ तो मैमूना ने बड़े अरमानों से उस का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया. पर उस के दिल में यही डर बना रहता कि कोई उसे कुछ कह न दे. कुछ वक्त तो ठीकठाक गुजरा, लेकिन उस के बाद जब भी जमील स्कूल से आता, उस की आंखें गीली रहतीं. अनमने ढंग से थोड़ाबहुत खाना खाता तो कभी मां के आंचल में मुंह छिपा कर सिसकने लगता. उस के लिए मां की गोद पेड़ की घनी छांव की तरह थी.
जब बच्चे गलियों में खेलते, मस्ती करते, खामोश उदास जमील मां के पास बैठा काम में उस की मदद करता या चुपचाप कमरे में पड़ा रहता. उसे अहसास हो गया था कि वह दूसरे बच्चों से अलग है. उन के मजाक और तानों ने शायद उस चेता दिया था. ऐसे लोग जिन्हें समाज न मर्दों में गिनता है न औरतों में, उन के लिए पता नहीं क्यों जिंदगी का दायरा इतना तंग हो जाता है, जबकि न वे किसी का कुछ बिगाड़ते हैं न किसी को कुछ तकलीफ पहुंचाते हैं, फिर भी न जाने क्यों उन के लिए लोगों की नजरों में नफरत होती है. 3-4 सालों में ही स्कूल जमील के लिए एक दहशतगाह बन गया. जहां उस के मासूम जेहन पर अश्लील वाक्यों और तानों के हथौड़े पड़ते रहते थे.
कभी उस की चाल का तो कभी उस की आवाज का मजाक बनाया जाता. कभी उस की कमर पकड़ कर गोलगोल घुमा दिया जाता. आखिर उस की हिम्मत जवाब दे गई और उस ने मां से साफसाफ कह दिया कि अब वह स्कूल नहीं जाएगा. मैमूना उस का दुख समझती थी. सोचा कुछ दिनों में समझाबुझा कर राजी कर लेगी. मगर उस पर कयामत तब टूटी, जब छोटे बेटे सजल ने उस से कहा, ‘‘मैं भाई के साथ स्कूल नहीं जाऊंगा. अगर भाई उस स्कूल में पढ़ेगा तो मैं पढ़ाई छोड़ दूंगा. सब लड़के उस के साथ मेरा भी मजाक उड़ाते हैं, आप भाई को घर पर ही रखो.’’
यह सुन कर मैमूना सन्न रह गई. उस दिन देर रात तक मैमूना और उस का शौहर आसिम इस मसले का हल ढूंढ़ते रहे, पर मायूसी के सिवा कुछ हाथ न आया. आसिम भी जमील को बहुत प्यार करता था. उसे जमाने की गरम हवा से बचा कर रखना चाहत था. पर समस्या ऐसी थी कि वह कुछ करने में नाकाम था सिवाय आंसू भरी आंखों से देखने के. अब तो हमदर्दी भी बेअसर लगती थी. जमील ने स्कूल जाना बंद कर दिया था. अब वह सिर्फ मसजिद जाता था. मौलाना उसे बहुत पसंद करते थे. वह उसे कुरानशरीफ के साथसाथ दूसरी किताबें भी पढ़ाते थे, पर वहां भी कभी कोई मिल जाता, जो उस के दिल को चोट पहुंचा देता.
कभीकभी जमील जिंदगी से बेजार हो कर कहता, ‘‘अम्मी, आप ने मुझे क्यों पैदा किया? काश! पैदा होते ही मुझे मार दिया होता तो आज मुझे ये कष्ट नहीं सहने पड़ते. आखिर मेरे साथ ऐसा क्या हुआ है, जो लोग मुझे छेड़ते हैं, परेशान करते हैं? सजल को तो कोई कुछ नहीं कहता, वह तो अच्छा है.’’
मैमूना के पास बेटे के इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता. उस दिन शाम को वह मसजिद से पढ़ कर लौट रहा था तो कुछ आवारा लड़कों ने उसे घेर लिया और छेड़ने लगे, ‘‘ओए जमीले जरा मटक कर दिखा. क्या लचक है तेरी कमर में क्या नजाकत है, क्या हुस्न है.’’
वह उन से जान छुड़ा कर ड्योढ़ी में दाखिल हुआ. हांफता हुआ वह दहलीज पर बैठ गया. उस का चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. मां ने दौड़ कर उसे सीने से लगाया, आंचल से आंसू पोंछे. फिर दरवाजा खोल कर उन लड़कों पर चिल्लाने लगी, जो अपनी मस्ती में बरगद के नीचे खडे़ कहेकहे लगा रहे थे. वह कह रही थी, ‘‘नामुरादों, क्यों मेरे बच्चे के पीछे पड़े हो, उस मासूम ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? खुदा का शुक्र अदा करो कि उस ने तुम्हें ठीकठाक पैदा किया, उस के अधूरे बंदों का क्यों मजाक उड़ाते हो?’’
जमील मां की बांहों में बेहोश हो गया. उसे तेज बुखार चढ़ गया. कई दिनों तक वह बुखार में तपता रहा. दूसरी ओर जमील की ज्यादा देखभाल और लाडप्यार से सजल का दिमाग अलग खराब रहता. धीरेधीरे उस की चिढ़ नफरत में बदल गई थी. मैमूना जैसे तलवार की धार पर खड़ी थी. वह उसे कैसे समझाए, कैसे अपनी मजबूरी बताए? काश! वह अपने मासूम बेगुनाह बच्चे को अपने सीने में छिपा सकती. बुखार के बाद से जमील काफी खामोश रहने लगा. वह घर में पड़ा रहता. मौलाना अकसर उस से मिलने आते, उसे दुनिया के दूसरे दुखी लोगों के बारे में बताते. अच्छीअच्छी जानकारी दे कर उसे ढांढ़स बंधाते. धीरेधीरे वह मसजिद जाने लगा और मौलाना से पढ़ने भी लगा. मांबाप ने राहत की सांस ली.
वक्त अपनी रफ्तार से गुजरता रहा. उस दिन सजल को किसी ने जमील के नाम से छेड़ दिया. फिर तो उस ने सारा घर सिर पर उठा लिया. जमील को बहुत बुराभला कहा. मैमूना ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया. जमील उदास आंखों से आसमान देखता रहा, दिल ही दिल खुदा से शिकवा करता रहा. अजान की आवाज सुन कर वह मसजिद चला गया. दरवाजे पर शोर सुन कर मैमूना दौड़ी आई. दरवाजा खोला तो देखा 2-3 किन्नर खड़े थे. उन्होंने जमील को गोद में उठा रखा था. उसे कई जगह चोटें लगी थीं, नाक और मुंह से खून बह रहा था. उन्होंने बताया कि जमील नमाज पढ़ कर लौट रहा था तो कुछ बदमाश बच्चों ने उसे तंग करना शुरू कर दिया. बच्चों ने उसे नाचने के लिए कहा. जमील से बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने उन्हें पत्थर उठा कर मार दिया.
बस फिर तो कयामत आ गई. सब ने मिल कर जमील को पीटना शुरू कर दिया. उन्होंने देखा तो दौड़ कर उसे उन लड़कों से छुड़ाया और उठा कर यहां ले आए. मैमूना ने उन की मदद से उसे चारपाई पर लिटाया. उस के जख्मों को साफ कर के दवा लगाई. हल्दी डाल कर दूध पिलाया. आसिम भी खबर पा कर दुकान से भागा आया. बेटे को जख्मी और बेहाल देख कर परेशान हो गया. जमील बेबसी से मांबाप और उन किन्नरों को देख रहा था. सब खामोश और उदास थे. उन में से एक बड़ी उम्र का किन्नर अदब से बोला, ‘‘यह बच्चा हमारी तरह है, इसे आप के समाज के लोग जीने नहीं देंगे. यह हमारी अमानत है, इसे आप हमें दे दीजिए. इसे हम बड़े प्यार से रखेंगे. हमारे बीच बच्चे को कुछ अलग होने का अहसास भी नहीं होगा. यह हमारे साथ रचबस जाएगा, वरना यहां यह पिटता रहेगा और घुटघुट कर जीता रहेगा.’’
वह मैमूना और आसिम के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. मैमूना बिलख उठी, ‘‘मैं अपने दिल के टुकड़े को कैसे तुम्हें दे दूं, मैं इस के बिना कैसे रहूंगी?’’
सजल चीख पड़ा, ‘‘अम्मी इसे जाने दो, यहां यह न खुद सुख से रहेगा और न हमें रहने देगा. हमेशा हमारी जिंदगी में परेशानी और जिल्लत बना रहेगा.’’
वही किन्नर फिर बोला, ‘‘साहब, आप क्यों इस मासूम बच्चे की जिंदगी नरक बना रहे हैं. यहां इसे सिवाय दुख के और कुछ नहीं मिलेगा. यह हमेशा हीनभावना में घुटता रहेगा.’’
आसिम ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मैमूना, जमील को इन के साथ जाने दो. शायद वहां यह इन सब के साथ खुश रह सके. यहां तो हम इसे नफरत और तिरस्कार के अलावा और कुछ नहीं दे सकते. यही इस का नसीब है. हम कुदरत से नहीं लड़ सकते.’’
जमील को मैमूना ने सीने से लगा लिया. रो कर कहने लगी, ‘‘नहीं…नहीं, मैं अपने लाल को किसी को नहीं दे सकती.’’
आसिम ने उठ कर उस से जमील को अलग करते हुए कहा, ‘‘मैमूना, तुम्हारी ममता जमील को बरबाद कर देगी, इसे जाने दो.’’
जमील को खूब प्यार करने के बाद आसिम ने उसे किन्नरों को सौंप दिया. उन्होंने बड़े प्यार से किसी कीमती चीज की तरह उसे समेट लिया. जमील फटीफटी आंखों से अपनी किस्मत का फैसला होते देख रहा था, पर जुबां चुप थी, आंसू बह रहे थे. तीनों किन्नर उसे संभाल कर रिक्शे पर बैठ कर चले गए. ड्योढ़ी पर बैठी मां सिसकती रही. जहां वे लोग जमील को ले कर गए थे, वह कस्बा पेटलाद का पुराना सा मोहल्ला था. लकड़ी के फाटक वाला एक बड़ा सा पुराना घर था. एक अधेड़ उम्र किन्नर ने दरवाजा खोला. उस ने सफेद सादी सी साड़ी पहन रखी थी. जब उसे जमील के बारे में बताया गया तो वह प्यार से आगे बढ़ी और जमील का माथा चूम कर गले से लगाते हुए बोली, ‘‘मेरी सोहनी, मेरे चांद परेशान न हो, मुझे अपनी मां समझ. यह दुनिया बड़ी जालिम है. यह हमारा मजाक तो बना सकती है, पर हमें चैन से जीने नहीं दे सकती.’’
जमील के दिमाग में एक कौंध सा लपका, ‘‘क्या अब मुझे इन्हीं लोगों की तरह रहना होगा?’’ उस का मासूम दिल लरज उठा. फिर एक ढांढ़स सी बंधी कि जब लड़के की तरह जीना मुमकिन नहीं तो यही सही. भीगी आंखों से उस ने इस सच को स्वीकार कर लिया. जिंदगी का यही रूप सही.
‘‘न…न मेरी सोहनी रोते नहीं, यह कुदरत की तरफ से एक इम्तहान है, इस में तुझे कामयाब होना है, मुकाबला करना है. खुदा ने तुझे कुछ गुण भी दिए हैं. यह खूबसूरती यह मासूमियत, जिस्म में लचक.’’ एक बुजुर्ग किन्नर ने उसे तसल्ली दी.
अब जमील की जिंदगी एक नए ढर्रे पर चल पड़ी. धूमधाम से उस का नया नाम रखा गया, ‘सोहनी.’ ढेर से रेशमी रंगबिरंगे कपड़े दिलाए गए. मेकअप का सामान, आर्टीफिशियल गहने भी. इन चीजों से उस का हुस्न लड़कियों को मात देता था. एक डांस मास्टर रखा गया, जिस ने उसे अलगअलग अंदाज के डांस सिखाए. एक तो जमील खूबसूरत था, दूसरे नाजुक जिस्म और होशियार भी, इसलिए जल्दी ही नाचगाने में निपुण हो गया. इस के बाद वह किन्नरों के साथ जाने की तैयारी करने लगा. उस के लिए बढि़या कपड़े बनवाए गए, गहने लाए गए. किसी बड़े आदमी के यहां बरसों बाद बच्चा हुआ था, वे जमील को वहां ले कर गए.
उस के हसीन नाजुक जिस्म, उस के नाचगाने और अदाओं ने धूम मचा दी. खूब महफिल जमी. उस के डांस की फरमाइश किसी हाल न रुक रही थी. आखिर वह थक कर बैठ गई. उस दिन उन की आमदनी हजारों में हुई, कपड़े भी मिले. दूसरे किन्नर भी नाच रहे थे, पर जो बात जमील में थी, वह किसी और में न थी. वह उन लोगों के लिए बहुत लकी साबित हुआ. उन के यहां धन की बरसात होने लगी. उस घर में कुल 6 किन्नर रहते थे. बुर्जुग का नाम चंपा था, जो उन सब की गुरु थी. किन्नरों की बिरादरी का भी एक निजाम होता है. बड़ी उम्र का किन्नर दल का मुखिया होता है, उसे सब गुरु कहते हैं, साथ रहने वाले उस के चेले कहलाते हैं.
जब गुरु बनाया जाता है तो पगड़ी बांधने की रस्म होती है. दावत रखी जाती है, जिस में उन्हीं के बिरदारी के लोगों को बुलाया जाता है. मेहमान तोहफे और पैसे भेंट में देते हैं. शानदार जश्न होता है, जिस में नाचगाने की महफिल भी जमती है. गुरु का काम घर चलाना, खर्च देखना, चेलों को ट्रेंड करना होता है. बीमार पड़े तो दवा इलाज की भी जिम्मेदारी उसी की होती है. प्रोग्राम की तैयारी करवाना, कपड़ों का इंतजाम करना, सब वही करता है. खर्च के बाद हर एक की कमाई का हिसाब रखना, उन के पैसे जमा करना यानी कि पूरा मैनेजमेंट वही देखता है. सब से अच्छी बात यह है कि उन के यहां न कोई हिंदू होता है, न कोई मुसलमान. वहां सब एक हैं. सभी अधूरेपन के धागे से बंधे एक दूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं.
कुछ अरसा जमील अपसेट रहा, फिर उस ने अपनी असलियत के साथ जीने का हुनर सीख लिया. उस के रूप और अच्छे नाचगाने की वजह से काफी कमाई होती थी, जो उस के नाम से बैंक में जमा हो रही थी. आज भी वह हाथ बढ़ा कर पैसे नहीं लेता था, उस के साथी ही पैसे जमा करते थे. आज सवेरे जब वह टैक्सी में बैठा तो उसे पता नहीं था कि वे लोग बड़ौदा जा रहे हैं. यहां पहुंच कर उस के जख्म हरे हो गए थे. उसी के मोहल्ले में ठेकेदार के यहां शादी थी. नाचगाने के बाद वह बेहाल, बेखुद सा अपने घर की ड्योढ़ी पर बैठा सिसक रहा था. उस के कांपते हाथों में इतनी ताकत नहीं थी कि वह हाथ उठा कर सांकल खटका देता.
वह फिर से दुखियारी मां को नया गम नहीं देना चाहता था. पीछे टैक्सी से गुलाबी और लाली उतर कर आगे आईं और उसे बांहों में समेट कर गाड़ी में बैठाया. जमील हसरत से अपने घर के दरवाजे को देखता रहा, जो किस्मत ने उस के लिए कब का बंद कर दिया था. Emotional Hindi Story






