Rajasthan Desert Culture: राजस्थान के अशोक टाक का अपना व्यक्तित्व तो है ही, उन की राजस्थानी कला का भी कोई जवाब नहीं. उन्होंने ऊंट शृंगार में महारत हासिल की है और इस के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उन की सराहना की है. मरुधरा मारवाड़ अंचल में हमेशा से पानी का अभाव रहा है. पानी के अभाव की वजह से ही यहां रेगिस्तान का जहाज कहलाने वाले ऊंट का बहुत महत्त्व है. क्योंकि यह ऐसा प्राणी है, जो कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है. ज्ञातव्य हो मोटरगाडि़यों के आविष्कार से पहले यहां घोड़े और ऊंट ही सवारियों में प्रयुक्त होते थे. राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में तो शुरू से ही सारी व्यापारिक गतिविधियां ऊंटों द्वारा चलती रही हैं.

कभी राजामहाराजाओं के दरबार में ऊंट की सवारी आनबानशान का प्रतीक हुआ करती थी. राजाओं के ऊंटों का तो खास तरह से शृंगार किया जाता था. मांगलिक उत्सवों में आज भी ऊंटों का शृंगार किया जाता है. विभिन्न रियासतों के बीच ऊंट दौड़ के आयोजन का भी खूब प्रचलन था. फिलहाल राजस्थान अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत की वजह से विश्व भर में पर्यटन का केंद्र बना हुआ है. विदेशी पर्यटक यहां के तीजत्यौहार और मेलों में राजस्थानी संस्कृति को नजदीक से देखतेसमझते हैं. यहां की विभिन्न विशेषताओं, खानपान, रहनसहन, धार्मिक परंपरा, वेशभूषा, घोड़ेऊंट की सवारी के साथसाथ ऊंट का शृंगार उन्हें विशेष रूप से लुभाता है. राजस्थान की सर्वाधिक विशेषता है, यहां की परंपराएं और तीजत्यौहार.

इन तीजत्यौहारों और परंपराओं को भिन्नभिन्न तरीकों से उल्लासपूर्वक पारंपरिक वेशभूषा से सजधज कर मनाया जाता है. यहां की संस्कृति की समानता विश्व भर में कहीं नजर नहीं आती. यहां राजामहाराजा, सेठसाहूकार, ठाकुरठिकानेदार, चौधरीपटेल और गरीबमजदूर सभी की पहचान उन की पारंपरिक पोशाक और गहनों से होती आई है. इतना ही नहीं, व्यक्ति के साथसाथ उस के रथ, हाथी, घोड़े और ऊंटों को भी विशेष अवसरों पर उस के अनुरूप ही सजाया जाता था. खास अवसरों की झांकियां देखते ही बनती थीं. विज्ञान का युग आया तो सवारियों का स्थान स्वचालित वाहनों ने ले लिया. वेशभूषा भी पश्चिम के प्रभाव में आ गई. ऐसे में राजस्थान की संस्कृति को सहेजने का बीड़ा उठाया पुष्कर (राजस्थान) के अशोक टाक ने. अशोक टाक ऊंट शृंगार व पर्यटन के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ हैं.

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