Hindi Romantic Story: गुजरात के बादशाह महमूद शाह ने कंवल को अपनी बनाने के लिए क्या नहीं किया. इस के बावजूद उन के आधीन छोटे से जागीरदार केहर सिंह को प्यार करने वाली कंवल उन की क्यों नहीं बन सकी?
गुजरात के बादशाह महमूद शाह का दिल मारवाड़ से आई वेश्या जवाहर बाई की बेटी कंवल की खूबसूरती पर आ गया था. गोरे रंग की कंवल की काया कंचन सी थी तो नयन हिरणी से, उस के गुलाबी अधर और सुतवां नाक उस की सुंदरता में चार चांद लगा रही थी. कंवल पतली कमर लचका कर चलती तो देखने वालों के कलेजे धक से रह जाते. उस की मोहक मुसकान पर दुश्मन भी रीझ जाते. ऐसी सुंदर कंवल पर बादशाह की नजर पड़ी तो वह उसे पाने को आतुर हो उठे. उन्होंने कंवल को संदेश भिजवाया कि वह उस के पास आ जाए, वह उसे 2 लाख रुपए सालाना की जागीर देंगे. इतना ही नहीं, वह हीरेजवाहरात से उस का घर भर देंगे. लेकिन कंवल इस पर भी नहीं मानी. एक महफिल में बादशाह ने उसे हीरों का जो हार दिया तो खुश होने के बजाय कंवल गुस्से में उसे तोड़ कर चली गई थी.

कंवल की मां जवाहर बाई वेश्या थी. बादशाह का गुस्सा क्या कर सकता है, वह अच्छे से जानती थी. इसलिए उस ने बेटी की नागवार गुजरने वाली हरकत के लिए बादशाह से माफी मांगी. मां ने कंवल को बहुत समझाया कि वह बादशाह की बात मान ले और उस के पास चली जाए. उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, बादशाह के पास जा कर तू सारे गुजरात पर राज करेगी.’’
मगर कंवल ने बादशाह के पास जाने से साफ मना कर दिया. उस ने कहा, ‘‘मां, मैं केहर सिंह से प्रेम करती हूं, इसलिए दुनिय का कोई भी बादशाह, राजा या राजकुमार मेरे काम का नहीं. मैं मरते दम तक उन्हीं की रहूंगी.’’
कुंवर केहर सिंह चौहान महमूद शाह के आधीन एक छोटी सी जागीर बारिया के जागीरदार थे. उन्हीं केहर सिंह को कंवल प्यार करती थी. बेटी को जवाहर बाई ने समझया कि वह एक वेश्या की बेटी है, इसलिए कभी किसी एक की पत्नी बन कर नहीं रह सकती. लेकिन कंवल ने मां से साफ कहा, ‘‘केहर सिंह जैसे शेर के गले में बांहें डालने वाली उस गीदड़ महमूद के गले से कैसे लग सकती है.’’
इस बात की जानकारी बादशाह को हुई तो उस का खून खौल उठा. उस ने कंवल को कैद करा लिया और ऐलान करा दिया कि जो भी केहर को कैद कर के लाएगा, केहर की जागीर जब्त कर के उसे दी जाएगी. लेकिन केहर सिंह जैसा राजपूत योद्धा किसी के जाल में जल्दी फंसने वाला कहां था. उसे कोई टक्कर देने वाला नहीं था. वह इतना बहादर था कि उस से टक्कर लेने की किसी की हिम्मत नहीं थी. लेकिन यहां भी बात इज्जत की थी. इसलिए दरबार में उपस्थित बादशाह के सामंतों में से जलाल उठ खड़ा हुआ. वह एक छोटी सी जागीर का जागीरदार था. अपनी जागीर बढ़ाने के लिए वह केहर की जागीर के लालच में आ गया.
उस ने बीड़ा उठा लिया कि वह केहर को कैद कर के ले आएगा. होली खेलने के बहाने उस ने केहर सिंह को अपने महल में बुलाया और साजिश रच कर केहर को कैद कर लिया गया कि कंवल अपने प्रेमी की दयनीय हालत देख कर दुखी होती रहे और बादशाह के आगे समर्पित हो जाए. इस के लिए कैदखाने में कैद केहर सिंह को खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी उसे ही सौंपी गई थी. कंवल रोज प्रेमी को खाना पहुंचाने जाती. एक दिन कंवल खाना के साथ छिपा कर एक कटारी और एक छोटी आरी ले गई, जिसे उस ने केहर को दे दिया. इस के बाद केहर की दासी टुन्ना ने वहां सुरक्षा में तैनात फालूदा खां को जहर मिली भांग पिला कर बेहोश कर दिया. वह होश में आए, उस के पहले ही केहर सिंह सलाखों को काट कर फरार हो गया. बाहर उस के साथी उस का इंतजार कर रहे थे.
उस की जागीर जब्त हो चुकी थी, इसलिए वह अपने साथियों के साथ मेवाड़ के एक सीमावर्ती गांव के मुखिया गंगा भील के यहां जा पहुंचा. केहर सिंह ने गंगा भील से अपनी परेशानी बताई तो उस ने अपने आधीन गांवों के भीलों का पूरा समर्थन केहर को देने का वादा कर लिया. केहर के भाग जाने की खबर बादशाह को मिली तो वह तिलमिला उठा. उस ने केहर को खत्म करने के लिए अपने तमाम योद्धा भेजे, लेकिन वे सभी मारे गए. उसी बीच बादशाह को सूचना मिली कि केहर सिंह ने जलाल के टुकड़ेटुकडे़ कर दिए हैं. कंवल अपने प्रियतम केहर सिंह की बहादुरी के किस्से सुनसुन कर खुश हो रही थी. उसे खुश देख कर बादशाह का खून खौल रहा था. लेकिन वह उस पर आसक्त होने की वजह से बेबस था.
केहर सिंह को पकड़ने या मारने की हिम्मत बादशाह के किसी भी सामंत या योद्धा में नहीं थी, इसलिए बादशाह केहर को मात देने की कोई दूसरी योजना बनाने लगा. छगन नाई की बहन कंवल की सेवा में थी. एक दिन कंवल ने केहर के लिए एक पत्र लिखा, ‘मारवाड़ के सेठ मुंदड़ा की बारात अजमेर से अहमदाबाद आ रही है, आप रास्ते में उसे लूटने के बजाय उसी के साथ भेष बदल कर अहमदाबाद आ जाएं. अहमदाबाद पहुंचने पर आप को दूसरा संदेश भेजूंगी.’ केहर सिंह ने योजना बना ली कि उसे क्या करना है. अजमेर से अहमदाबाद जाते समय केहर अपने 4 साथियों के साथ मुंदड़ा सेठ की बारात में जा मिला. उस ने और उस के साथियों ने जोगी का रूप धारण कर लिया था. सभी ने अपने हथियार कपड़ों के अंदर छिपा रखे थे.
कंवल ने न चाहते हुए भी बादशाह के प्रति अपना रवैया बदल लिया था, लेकिन वह महमूद शाह को अपना शरीर छूने नहीं दे रही थी. उस ने अपनी खासमखास दासी और सखी को बारात देखने के बहाने भेज कर केहर को सारी योजना की जानकारी भिजवा दी थी. बारात के पहुंचने से पहले कंवल ने बादशाह से कहा, ‘‘केहर सिंह का तो कुछ अतापता नहीं है. लगता है, वह आप से बच नहीं पाया. उस का इंतजार करतेकरते अब मैं थक चुकी हूं. इसलिए अब मैं आप की हो कर रहना चाहती हूं. लेकिन अगर आप मुझे दिल से चाहते हैं तो आप को मुझ से विवाह करना पड़ेगा. लेकिन विवाह के लिए भी मेरी कुछ शर्तें हैं.’’
कंवल की खूबसूरती पर पागल महमूद शाह ने उस की सभी शर्तें मान लीं, क्योंकि उसे तो इस पल का न जाने कब से इंतजार था कि कंवल कब उस की अंकशायिनी बने. शादी वाले दिन सांझ ढले कंवल की दासी टुन्ना पालकी ले कर जवाहर पातुर को लेने उस के डेरे पर पहुंची, जहां केहर सिंह हथियारों से लैस पहले से ही मौजूद था. टुन्ना ने पालकी के कहारों को किसी बहाने इधरउधर कर दिया और उस में चुपके से केहर सिंह को बैठा दिया. पालकी बुलंद गुंबद पहुंची. केहर सिंह कंवल के कमरे में छिप कर बैठ गया. थोड़ी देर बाद बादशाह हाथी पर सवाल हो कर बुलंद गुबंद पहुंचा. उस के वहां पहुंचते ही ढोलनगाड़े बजने लगे. आतिशबाजी होने लगी.
बादशाह के महल में आते ही केहर सिंह ने बाहर आ कर ललकारा, ‘‘आज देखता हूं कि शेर कौन है और गीदड़ कौन? तू ने मेरे साथ बहुत छलकपट किया है, आज तुझे मार कर मैं अपना वचन पूरा करूंगा.’’ दोनों योद्धा आपस में भिड़ गए. उन के बीच भयंकर युद्ध हुआ. हथियार टूट गए तो मल्लयुद्ध होने लगा. उन के पैरों की धमक से बुलंद गुंबद थरथरा रहा था, लेकिन बाहर हो रही आतिशबाजी और ढोलनगाड़ों की गूंज से अंदर क्या हो रहा है, किसी को पता नहीं चला. केहर सिंह मल्लयुद्ध में भी प्रवीण था, थोड़ी ही देर में उस ने बादशाह को अपने मजबूत घुटनों से कुचल दिया. बादशाह के मुंह से खून का फव्वारा फूट पड़ा और उन की मौत हो गई.
दासी टुन्ना ने केहर सिंह और कंवल को पालकी में बैठा कर कहारों और सैनिकों को हुकुम दिया कि वे जवाहर बाई को उस के डेरे पर पहुंचा दें, क्योंकि बादशाह आज की रात यहीं कंवल के साथ गुजरेंगे. सैनिक पालकी ले कर जवाहर बाई के डेरे पर पहुंचे. वहां केहर सिंह के साथी घोड़े तैयार किए खड़े थे. केहर सिंह ने कंवल और टुन्ना दासी को घोड़ों पर बिठाया और भाग खड़े हुए. पालकी ले कर आए कहार और शाही सैनिक एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. Hindi Romantic Story






