Delhi News: लाल किले के पास हुए ब्लास्ट के बाद जांच एजेंसियों को जो जानकारी मिली, उस से खुफिया एजेंसियों की नींद उड़ चुकी है. अल फलाह यूनिवर्सिटी में डौक्टरों ने जिस तरह आतंक का मौड्यूल तैयार किया, वह देश में बड़ी तबाही करने का प्लान था. आखिर उच्चशिक्षित लोग आतंक के दलदल में क्यों उतरे?
वैसे दिल्ली का दिल तो कनाट प्लेस को कहते हैं, लेकिन पुरानी दिल्ली में लालकिला के सामने चांदनी चौक के प्रवेश द्वार पर जिंदगी की जो चहलपहल और राहगीरों का जो जमावड़ा रहता है, असल में वही दिल्ली का असली दिल लगता है. 10 नवंबर, 2025 की शाम 6 बज कर 50 मिनट हो चुके थे. सोमवार को हालांकि लाल किला का पटरी बाजार बंद रहता है, लेकिन सप्ताह का पहला दिन होने के कारण और सूर्यास्त के कारण आसपास के बाजारों की भीड़ की चहलपहल से यह इलाका भी अपने शबाब पर पूरी तरह गुलजार था.
लाल किले के गेट नंबर एक से आवागमन कर रहे लोगों को अपने अगलबगल होने वाली किसी भी हलचल से मानो कोई मतलब ही नहीं हो. लोग इधर से उधर ऐसे दौड़ रहे थे, जैसे यहां कोई कयामत आने वाली हो. किसी को गुमान भी नहीं था कि अगले कुछ सेकेंड में वाकई में कयामत ही आने वाली थी. मेट्रो के गेट नंबर एक से करीब 70 मीटर दूर रेड लाइट पर ठीक 6 बज कर 53 मिनट पर सफेद रंग की एक आई 20 कार में अचानक जोरदार धमाका हो गया.
धमाका कितना जोरदार था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि लाल किला मेट्रो में जमीन के 40 फीट नीचे तक धमाके का असर देखने को मिला था. मेट्रो में जमीन के 40 फीट नीचे तक हर चीज कंपन से हिलती नजर आई. धमाके के बाद का कंपन इतना ज्यादा था कि धमाका होते ही पूरा लाल किला मेट्रो स्टेशन कांप गया.
धमाका इतना शक्तिशाली था कि इस की आवाज दूरदूर तक सुनाई दी, लाल किला व चांदनी चौक के आसपास की इमारतों के दरवाजे, खिड़कियां क्षतिग्रस्त हो गए और दूर तक धुआं ही धुआं फैल गया. हालांकि शुरुआत में धमाके की आवाज सुनने वाले लोगों को लगा कि शायद किसी गाड़ी का टायर फटा है. लेकिन जब लोग उस जगह पहुंचे, जहां धमाका हुआ था तो लोगों ने देखा कि धमाके के कारण आसपास खड़ी कई गाडिय़ों में आग लग गई और उन के परखच्चे उड़ गए थे. खून से लथपथ लोग जमीन पर तड़प रहे थे और ब्लास्ट के कारण चारों तरफ मलबा फैल गया था.
धमाका जिस वक्त हुआ, वो काफी व्यस्त समय रहता है. औफिस से घर आने वालों की भीड़ रहती है. सब से बड़ी बात कि पास में एशिया का सब से बड़ा बाजार ‘चांदनी चौक’ का बड़ा मार्केट है. जहां धमाका हुआ, वो इलाका काफी भीड़भाड़ वाला है. धमाके के बाद इलाके में भगदड़ जैसा माहौल पैदा हो गया. धमाका जिस तरह का था और जैसा नुकसान हुआ था, उसे देख कर साफ लग रहा था कि ये कोई हादसा नहीं है बल्कि बम ब्लास्ट या विस्फोटक का धमाका था. चंद कदम की दूरी पर ही लाल किला पुलिस चौकी है और वहां आसपास पुलिस की तैनाती और बैरिकेड भी लगे रहते हैं. इसलिए अगले कुछ मिनट में अग्निशमन विभाग के अलावा आसपास के थानों की पुलिस को सूचना दे दी गई.
इस के बाद पूरे इलाके में पुलिस व एंबुलेंस की गाडिय़ों के सायरन की आवाजें गूंजने लगीं. घायल लोगों को लोक नायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल पहुंचाया जाने लगा. जिन गाडिय़ों में धमाके से आग लग गई थी, उन्हें बुझाया जाने लगा. धमाके के तुरंत बाद दिल्ली और एनसीआर (नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद) में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया. लाल किला मेट्रो स्टेशन बंद कर दिया गया. लाल किला रोड को भी बंद कर दिया गया.
आसपास के बाजारों को खाली करा दिया गया. सभी सार्वजनिक स्थलों और पार्किंग एरिया में सुरक्षा जांच बढ़ा दी गई. दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल व क्राइम ब्रांच की टीमों के अलावा एनएसजी, फोरैंसिक टीम और बम निरोधक दस्ते भी घटनास्थल पर पहुंच गए. देर रात तक घटनास्थल की जांच होती रही. चूंकि मामला देश की राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास का था, इसलिए पुलिस कमिश्नर सतीश गोलचा के साथ गृहमंत्री अमित शाह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.
इस धमाके में कुछ ही घंटों के बाद साफ हो गया कि 9 लोगों की मौत हो गई है और 20 से अधिक लोग घायल हुए हैं. पुलिस व फोरैंसिक टीमों ने पार्किंग क्षेत्र से धमाके वाली कार के मलबे, धातु के टुकड़े और विस्फोटक अवशेष जुटाने शुरू कर दिए. रात में ही गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर व अन्य अधिकारियों को इस वारदात की तह में जाने और पूरी साजिश का परदाफाश कर आरोपियों को कड़ा दंड दिलाने के आदेश दिए. पुलिस की दरजन भर टीमें घटनास्थल के आसपास के सीासीटीवी फुटेज तलाशने में जुट गईं.
अगले दिन सुबह होतेहोते ब्लास्ट में मरने वालों की संख्या 12 हो चुकी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी अगले दिन मरने वालों के परिजनों तथा घायलों का हालचाल जानने के लिए पहले एलएनजेपी अस्पताल पहुंचे, उस के बाद ब्लास्ट साइट पर पहुंचे. दूसरी तरफ स्पैशल सेल, क्राइम ब्रांच, लोकल पुलिस के आला अधिकारी अपनी टीमों के साथ रात भर मशक्कत कर साक्ष्य एकत्रित करते रहे, जिस के बाद अगले दिन तसवीर पूरी तरह साफ हो गई. दिल्ली पुलिस ने आधिकारिक तौर पर ये ऐलान कर दिया कि लाल किला के सामने आई 20 कार में हुआ ब्लास्ट एक आतंकवादी घटना थी. जिसे एक फिदायीन ने अंजाम दिया था.
हालांकि गृह मंत्रालय ने शाम होतेहोते ब्लास्ट की जांच का काम राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के सुपुर्द कर दिया. साथ ही दिल्ली, हरियाणा, जम्मूकश्मीर व यूपी पुलिस को एनआईए को जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए. पुलिस की सभी टीमों ने जुटाए गए साक्ष्य एनआईए को सौंप दिए.
आई 20 कार से शुरू हुई जांच
इस के बाद एनआईए की जांच आगे बढ़ती रही और खुलासे होते रहे कि इस्लामिक स्टेट के जेहाद को आगे बढ़ाने के लिए देश में किस तरह एक वाइट कौलर मौड्यूल तैयार हुआ था. डौक्टरी पेशे से जुड़े इस टेरर मौड्यूल ने पूरे देश को बम धमाकों से दहलाने की साजिश रची थी. इन खुलासों के बाद एकएक कर गिरफ्तारियां होने लगीं और लोग सोचने पर विवश हो गए कि क्या किसी कौम में इतने ज्यादा पढ़ेलिखे लोग भी आतंक का चेहरा बन सकते हैं?
लाल किले के पास हुए चौंकाने वाले धमाके की जांच जब आगे बढ़ी तो शुरुआत उस सफेद आई 20 कार के टूटेफूटे बचे हुए हिस्से से हुई, जिस में विस्फोटक रखे थे. जांच करने वाली टीमों ने उस धमाके की साजिश का पता लगाने के लिए कार की नंबर प्लेट, इंजन व चेसिस नंबर को ट्रैक किया, जिस ने देश को हिला कर रख दिया था और भारत के सुरक्षा तंत्र में खतरे की घंटी बजा दी. सीसीटीवी की फुटेज और घटनास्थल से बरामद चीजों की फोरैंसिक जांच में पता चला कि धमाके वाली कार का रजिस्ट्रैशन नंबर एचआर 26सीई 7674 है, जो 2013 में बनी थी. इसे 2014 में सलमान के नाम पर रजिस्टर किया गया था और रजिस्ट्रैशन सर्टिफिकेट में लिखा था कि वह कार का दूसरा मालिक है. सर्टिफिकेट में सलमान का गुरुग्राम का एड्रैस था.
सलमान को पकड़ा गया तो उस ने बताया कि उस ने कार ओखला के रहने वाले देवेंद्र को बेच दी थी. देवेंद्र ने पूछताछ में बताया कि उस ने इसे अंबाला में एक आदमी को बेच दिया, जिस ने बाद में यह कार जम्मूकश्मीर के पुलवामा में रहने वाले आमिर को बेची थी. आमिर से कार डा. उमर मोहम्मद के पास गई, जो फरीदाबाद में अल फलाह यूनिवर्सिटी का डौक्टर था. कार के इतने सारे मालिक बदलने और एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने के बावजूद, यह सलमान के नाम पर ही रजिस्टर्ड रही. जानकारों का कहना है कि सेकेंडहैंड कार इंडस्ट्री में यह कोई नई बात नहीं है और अकसर डाक्यूमेंटेशन के खर्च से बचने के लिए गाडिय़ां बिना रीरजिस्ट्रेशन के खरीदी और बेची जाती हैं.
पोस्टर में छिपा था आतंकी राज

बहरहाल, जांच एजेंसी कार को खरीदने वाले आखिरी सिरे तक पहुंच गई थी. लेकिन जैसे ही डा. उमर का नाम सामने आया तो जांच एजेंसियों के सामने खतरे की घंटी बज गई, क्योंकि डा. उमर वही शख्स था, जिसे ब्लास्ट से एक दिन पहले जम्मू कश्मीर व फरीदाबाद की पुलिस तलाश रही थी. डा. उमर को 2 राज्यों की पुलिस किस लिए तलाश कर रही थी, इस की भी एक खास वजह थी. दरअसल, इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत 17 अक्तूबर, 2025 से शुरू हुई. 17 अक्तूबर को जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले के नौगाम की सड़कों पर उर्दू भाषा में धमकी भरे पोस्टर लगाए गए थे. कुछ जगह परचे भी बांटे गए. इन पर जैश ए मोहम्मद के सदस्य कमांडर हंजला भाई के हस्ताक्षर थे.
पहली नजर में ये पोस्टर सामान्य लग रहे थे, लेकिन श्रीनगर के एसएसपी डा. जी.वी. संदीप चक्रवर्ती ने तुरंत ही पोस्टर में छिपे खतरे को भांप लिया. जैश के धमकी भरे पोस्टर्स को ले कर शुरू हुई जांच और सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद 3 ऐसे व्यक्तियों का पता चला, जिन्होंने पहले भी कश्मीर की सड़कों पर पत्थर बरसाए थे. श्रीनगर पुलिस ने जम्मू कश्मीर में सब से पहले पोस्टर लगाने वाले 2 लड़कों और एक प्रिंटिंग प्रैस वाले को पकड़ा था, जिस ने वे पोस्टर छापे थे. उन से पूछताछ हुई तो पता चला कि उन्हें इस काम के लिए पैसे मिले थे, लेकिन उन्होंने उन लोगों के नाम पुलिस को बता दिए, जिन के कहने पर उन्होंने यह काम किया था. बस फिर क्या था, पुलिस को आगे बढऩे का रास्ता मिल गया.
धमकी भरे पोस्टर कांड में गिरफ्तार हुए लोगों से पूछताछ के बाद श्रीनगर पुलिस ने मौलवी इरफान अहमद को गिरफ्तार किया. यह वही शख्स था, जिस के कहने पर डा. आदिल अहमद और अन्य संदिग्धों ने जैश ए मोहम्मद के पोस्टर नौगांव के आसपास चस्पा किए थे. मौलवी इरफान पैरा मैडिकल स्टाफ के साथ जम्मू कश्मीर के शोपियां में एक मसजिद में मौलवी था और इस का काम था पढ़ेलिखे नौजवानों को रेडिकलाइज करना और जैश ए मोहम्मद से जोडऩा. जम्मू कश्मीर पुलिस को इन गिरफ्तारियों के बाद अब आतंक के एक बड़े खतरे की बू आने लगी थी, इसलिए पुलिस ने ज्यादा गहनता से इस जांच को आगे बढ़ाने का काम शुरू कर दिया.
मौलवी इरफान से पूछताछ में पता चला कि उस के सीधे संबंध जैश के कई कमांडरों से थे. मौलवी इरफान ने बताया कि उस ने जम्मू कश्मीर के कुछ डौक्टर्स का एक मौड्यूल तैयार किया था, जो जल्द ही देश में कई धमाकों और फिदायीन हमलों को अंजाम देने वाले थे. मौलवी इरफान से कड़ी पूछताछ के बाद जो नाम सामने आए, उन में सब से पहले कश्मीर के अनंतनाग में तैनात सीनियर डौक्टर आदिल अहमद को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से पकड़ा गया. ये वो पहला डौक्टर था, जिसे जैश ए मोहम्मद के इस आतंकी मौड्यूल में पकड़ा गया था. पुलिस उसे कश्मीर लाई और पूछताछ की तो उस के बाद अनंतनाग में उस के बैंक लौकर से एक एके 47 मिली.
जिस के बाद पुलिस को यह समझने में देर नहीं लगी कि मौलवी इरफान ने डौक्टरों के टेरर मौड्यूल के बारे में जो कुछ बताया था, वह गलत नहीं था, लेकिन मौलवी इरफान व डा. आदिल अहमद ने पूछताछ में जो कुछ बताया, उस से आगे की राह आसान नहीं थी. क्योंकि आगे की जांच हरियाणा के फरीदाबाद में माइनारिटी की यूनिवर्सिटी अल फलाह तक जाने वाली थी.
इस के लिए श्रीनगर पुलिस ने एसओजी को साथ ले कर फरीदाबाद पुलिस से संपर्क साधा तथा आगे की काररवाई में सहयोग लिया. मौलवी इरफान व डा. आदिल अहमद से हुई पूछताछ के आधार पर डा. मुजम्मिल शकील को कश्मीर और हरियाणा की संयुक्त पुलिस टीम ने पकड़ा. फरीदाबाद के धौज में उस के ठिकाने से 360 किलोग्राम बारूद, राइफल जैसी चीजें बरामद हुईं. फतेहाबाद के तंग गांव में दूसरे ठिकाने से 2,560 किलोग्राम से अधिक बारूद का जखीरा मिला था.
पुलवामा का रहने वाला मुजम्मिल अल फलाह यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था. यह इस मौड्यूल का सब से अहम किरदार है, जिस ने मौलवी इरफान के कहने पर अन्य डौक्टरों को भी इस मौड्यूल से जोड़ा. डा. मुजम्मिल का काम रेडिकलाइजेशन का था, जिस के टारगेट पर अल फलाह यूनिवर्सिटी के कई स्टूडेंट थे. साथ ही डा. मुजम्मिल शकील की जिम्मेदारी थी, ब्लास्ट के लिए विस्फोटक का ट्रांसपोर्टेशन करना.
ऐसे बना डौक्टरों का आतंकी समूह
मुजम्मिल ने अल फलाह यूनिवर्सिटी में अपने जैसे विचारधारा के लोगों से संपर्क किया था. मुजम्मिल ने ही डा. आदिल, डा. उमर नबी मोहम्मद और डा. शाहीन अंसारी को इस मौड्यूल में शामिल किया था. बाद में शाहीन ने अपने भाई डा. परवेज अंसारी को इस पूरी साजिश का हिस्सा बनाया.
डा. मुजम्मिल से हुई पूछताछ और विस्फोटकों का जखीरा बरामद होने के बाद कश्मीर व फरीदाबाद की संयुक्त पुलिस टीम ने अल फलाह यूनिवर्सिटी की लेडी डा. शाहीन को भी गिरफ्तार कर लिया, जो अल फलाह यूनिवर्सिटी में बने आतंकी डौक्टरों के नेटवर्क में शामिल थी. उस से पूछताछ में पता चला कि वह जैश ए मोहम्मद की भारत में महिला विंग की कमांडर थी और महिलाओं की भरती का काम भी उसे सौंपा गया था. इस महिला विंग का नाम जमात उल मोमिनात है.
जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर की बहन सादिया अजहर ने उसे ये टास्क दिया था. वो वुल्फ गैंग के नाम से एक वाट्सऐप ग्रुप भी चला रही थी, जो देर रात एक्टिव होता था. इस टेरर मौड्यूल ग्रुप में हर शख्स का कोड नाम था. शाहीन का नाम ‘अल्फा’ था. लखनऊ की रहने वाली डा. शाहीन सईद अल फलाह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थी, लेकिन उस का एक दूसरा काम था मौड्यूल के लिए फंड इकट्ठा करना और गरीब महिलाओं व लड़कियों को जैश के संगठन जमात उल मोमिनात से जोडऩा. जांच में सामने आया कि शाहीन ने मौड्यूल को करीब 20 लाख रुपए की फंडिंग की थी और लगातार फंड रेज करने में जुटी हुई थी. डा. शाहीन लखनऊ की रहने वाली है और गिरफ्तार किए गए आतंकी डा. मुजम्मिल की गर्लफ्रेंड भी है.
इस मौड्यूल में एक शख्स और था डा. उमर नबी मोहम्मद, लेकिन वह पुलिस के हत्थे चढऩे से पहले ही भागने में कामयाब हो गया. पूछताछ में पता चला कि डा. उमर और डा. आदिल पहले से ही एकदूसरे को जानते थे. डा. आदिल उमर का जूनियर था. मौलवी इरफान से मुजम्मिल की पहली मुलाकात जम्मू कश्मीर में एक बुजुर्ग महिला के इलाज करने के दौरान एक घर पर हुई थी. मौलवी इरफान आतंकी संगठन अंसार गजवत उल हिंद के आतंकी हाफिज तांत्रे के साथ पहले से ही जुड़ा हुआ था. हाफिज तांत्रे 2021 में एक एनकाउंटर में मारा गया था. उस के बाद डा. मुजम्मिल ने भी 2021 में अंसार गजवात उल हिंद की सदस्यता ले ली थी. वहीं पर बातोंबातों में डा. मुजम्मिल और मुफ्ती इरफान की दोस्ती हो गई थी. अंसार गजवात उल हिंद 2022 में डीएक्टिव हो गया था.
अब तक पुलिस का पूरा औपरेशन सही चल रहा था, लेकिन डा. उमर के फरार होने से फरीदाबाद व कश्मीर पुलिस की मुश्किल बढ़ गई थी. उसे हरसंभव जगह तलाश किया जा रहा था. यूनिवर्सिटी के हौस्टल में उस के कमरे की तलाशी ले कर पुलिस ने उसे सील कर दिया और वहां पहरा बिठा दिया. फरीदाबाद से निकलने वाले हर रास्ते पर नाकाबंदी कर के व सीसीटीवी के जरिए उस की तलाश की जा रही थी. इतना ही नहीं, उस के ज्ञात नंबर को भी पुलिस टीमों ने सर्विलांस पर लगाया था, लेकिन वह कहीं नहीं मिला. इधर 9 नवंबर को फरीदाबाद में पुलिस की आतंक के मौड्यूल को पकडऩे के लिए धरपकड़ चल रही थी, उधर 10 नवंबर को शाम करीब 7 बजे दिल्ली के लाल किला में मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक से कुछ कदम की दूरी पर जबरदस्त ब्लास्ट हो गया.
एनआईए तथा दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने अगले 24 घंटों में जो जांच की थी, उस से साफ हो गया कि ब्लास्ट की ये घटना सीधे तौर पर आतंकी घटना और सुसाइड अटैक था और इस का सीधा संबध फरीदाबाद में पकड़े गए डौक्टरों के टेरर मौड्यूल से था.
खतरनाक रसायन से किया विस्फोट
सीसीटीवी फुटेज से यह भी साफ हो गया कि जब धमाका हुआ तो उमर ही आई 20 कार को चला रहा था. बस अब कडिय़ों को जोडऩा बाकी था. दिल्ली पुलिस की प्रारंभिक जांच से पता चल गया कि लाल किले के पास हुए विस्फोट में अमोनियम नाइट्रेट, पोटैशियम नाइट्रेट और सल्फर शामिल हैं. विस्फोट में ईंधन तेल और डेटोनेटर का इस्तेमाल किया गया था. दिल्ली विस्फोट और फरीदाबाद आतंकी मौड्यूल के बीच एक कौमन बात यह थी कि वहां जो 360 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट जब्त किया गया था. जिस कार में विस्फोट हुआ, वहां से भी अमोनियम नाइट्रेट बरामद हुआ.
वहां के सीसीटीवी फुटेज में एक ‘मास्क लगाया व्यक्ति’ कार चलाते हुए दिखाई दिया. 10 नवंबर, 2025 की शाम को लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास एक ट्रैफिक सिग्नल पर एक धीमी गति से चलती आई 20 कार में जो दाढ़ी वाला चश्मा लगाए शख्स दिखा, वह डा. उमर ही था. पता यह भी चला कि विस्फोट से पहले ये गाड़ी करीब 3 घंटे तक पास की एक पार्किंग में खड़ी थी. कार की गूगल मैपिंग से पता चला कि यह कार विभिन्न पार्किंग स्थलों पर दिन भर घूमी थी.
पुलिस ने दिल्ली को दहलाने वाली आई 20 कार का 11 घंटे का जो रूट मैप ढूंढा, उस के मुताबिक पता चला कि कार सुबह फरीदाबाद से लाल किले के लिए निकली थी और इस दौरान कई जगहों से गुजरी थी. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि कार सोमवार सुबह करीब साढ़े 7 बजे फरीदाबाद में एशियन अस्पताल के बाहर पहली बार देखी गई थी. इस के बाद सुबह 8:13 बजे कार बदरपुर टोल प्लाजा पार कर के दिल्ली में दाखिल हुई. इसी बीच, उसे सुबह 8:20 बजे ओखला औद्योगिक क्षेत्र के पास एक पेट्रोल पंप के पास देखा गया.
फिर कार दोपहर 3:19 बजे लाल किले के पास पार्किंग एरिया में घुसी, जहां वह करीब 3 घंटे तक खड़ी रही. इस दौरान पार्किंग में आतंकी डा. उमर नबी मोहम्मद कार में बैठा रहा और शाम होने का इंतजार किया. माना जा रहा है कि उस ने शाम को भीड़ होने का इंतजार किया और फिर धमाका करने के लिए कार को ले कर निकला. धीरेधीरे चलती इस कार में लालबत्ती के करीब धमाका हो गया. इस में बैठे डा. उमर के भी परखच्चे उड़ गए.
बाद में जांच एजेंसियों ने फोरैंसिक टीम की मदद से उस के शव के हिस्सों को जोड़ा और कश्मीर से उस की मां को ला कर उस के खून के नमूने लिए तथा उस का डीएनए कराया. डीएनए रिपोर्ट से साफ हो गया कि धमाके वाली आई 20 कार को चलाने वाला डा. उमर ही था, जिस ने अपने साथियों के फरीदाबाद में पकड़े जाने पर हड़बड़ी में प्लान बनाया और लाल किले के पास बम ब्लास्ट कर दिया तथा खुद को भी उड़ा लिया.
ड्रोन से ब्लास्ट करने की थी तैयारी
एनआईए व पुलिस की जांच में यह तो साफ हो गया कि दिल्ली में हुआ ब्लास्ट व फरीदाबाद में पकड़ा गया वाइट कौलर डौक्टरों के टेरर मौड्यूल का आपस में संबंध था, लेकिन आगे की जांच में यह साबित किया जाना था कि डौक्टरों के इस मौड्यूल के मंसूबे देश भर में टेरर अटैक करने के थे. इसी कड़ी में हुई आगे की जांच में पुलिस ने नूंह से मौलवी इश्तियाक को पकड़ा. उस ने ही डा. उमर को छिपने का ठिकाना दिया था. उमर ने इश्तियाक को नूंह के एक मदरसे का जिम्मा सौंपा था. कश्मीर पुलिस ने दिल्ली ब्लास्ट केस में जसीर बिलाल वानी को भी गिरफ्तार किया है.
अनंतनाग के काजीगुंड इलाके का दानिश हमास जैसे हमले के लिए ड्रोन राकेट तैयार करने में जुटा था. जैश ए मोहम्मद और अंसार गजवात उल हिंद के आंतकी मौड्यूल से जुड़ा दानिश सुसाइड बांबर उमर उन नबी का करीबी था. वह ड्राईफूट बेचने की आड़ में ये हथियार बना रहा था. वह बम बांधने में ट्रेंड था. जसीर बिलाल वानी इस मौड्यूल की सब से अहम कड़ी और किरदार है. इसे डा. उमर ने आतंकियों के इस मौड्यूल से जोड़ा था. जसीर बिलाल वानी को इस मौड्यूल ने ड्रोन में विस्फोटक बांध कर कर रिमोट से ब्लास्ट करने की अगली जिम्मेदारी दी थी. वह लगातार डा. उमर और मुजम्मिल के संपर्क में रहता था.
पूछताछ में पता चला कि डा. उमर व डा. मुजम्मिल शकील गनई और उत्तर प्रदेश की लखनऊ निवासी डा. शाहीन सईद के साथ मेवात के नूंह से यूरिया ले कर आता था. उमर यूरिया से विस्फोटक बनाने के लिए टेस्टिंग अल फलाह यूनिवर्सिटी के अपने कमरा नंबर 4 में ही करता था. पुलिस को डा. उमर का एक सूटकेस उस के हौस्टल के कमरे से मिला, जो उस का सब से बड़ा राजदार था. इस सूटकेस को जब सुरक्षा एजेंसियों ने खोला तो उस में बहुत सारे सबूत बरामद हुए. उमर इस सूटकेस में बम बनाने का सामान हमेशा रखता था. जांच एजेंसियों ने पाया कि डा. उमर, डा. आदिल और मुफ्ती इरफान के साथ मिल कर एक बड़ी साजिश का तानाबाना बुन रहे थे. इस ग्रुप का हेड डा. उमर था. इस ग्रुप में सब से तेज और बहुत ज्यादा एक्टिव डा. उमर ही था.
करीब 20 लोग इस मौड्यूल में शामिल थे, जिन्होंने टेलीग्राम पर चीनी भाषा में एक प्राइवेट ग्रुप बनाया हुआ था, जिस का एडमिन उमर था. उस में सिर्फ चीनी भाषा में बात होती थी. उमर ने 6 महीने में चाइनीज भाषा सीख ली थी और सभी आरोपी एक चाइनीज कोर ग्रुप में ही बात करते थे. यहीं से असली ब्रेनवाश शुरू हुआ. झूठे और भड़काने वाले वीडियो, मैसेज और एआई से बने कंटेंट ग्रुप में शेयर किए जाते थे. जांच में यह भी सामने आ रहा है कि अलगअलग जगहों पर हमले के लिए लगभग 26 लाख रुपए जुटाए गए थे. इस में डा. आदिल ने 8 लाख रुपए, शाहीन सईद और मुजम्मिल ने 5-5 लाख रुपए दिए. डा. मुजम्मिल, डा. उमर, मुफ्ती इरफान और डा. आदिल की पहली मुलाकात फरवरी 2022 में श्रीनगर में एक शादी समारोह में हुई थी. इसी के बाद से इन सब की आतंकी बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ.
हथियार और विस्फोटक किए स्टोर

डा. मुजम्मिल उमर से हुई बातचीत के बाद उस की सोच और उस की नालेज का फैन बन गया था. वह बाबरी मसजिद की घटना से ले कर भारत और दुनिया के दूसरे देशों में मुसलमानों पर हुए अत्याचार के किस्सेकहानियां सारे साथियों को सुनाता था. वह कहता था कि जम्मू कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों की मदद जम्मू कश्मीर के लोगों को नहीं करनी चाहिए. जांच में पता चला कि 2022 में तुफैल नाम के एक शख्स से इन लोगों ने एके- 47 राइफल मंगवाई थी. 2023 से ही डा. उमर, डा. मुजम्मिल और डा. आदिल ने लाल रंग की ईकोस्पोर्ट कार से नूंह और मेवात इलाके से फर्टिलाइजर खरीदना शुरू कर दिया था. धीरेधीरे अल फलाह में अपनेअपने कमरों में और दूसरे ठिकानों पर ये स्टोर कर के रख रहे थे.
चूंकि ये सभी डौक्टर हैं, अल फलाह में डौक्टरों की गाडिय़ों की चैकिंग नहीं होती थी. इसलिए किसी का उन पर शक नहीं गया. डा. उमर अपने कमरे में टेस्टिंग भी करता था. उसी दौरान टीएटीपी (ट्रायएसीटोन ट्राइपेरोक्साइड) भी तैयार कर रहे थे और एसीटोन भी पास था. पुलिस ने फरीदाबाद से जो विस्फोटक बरामद किया था, उस का कुछ हिस्सा सुसाइड अटैकर डा. उमर जम्मू कश्मीर ले जाना चाहता था. उस की योजना वहां सुरक्षा बलों के खिलाफ हमला करने की थी, लेकिन जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा पोस्टर कांड के बाद कुछ लोगों को पकडऩे के बाद उन की योजना विफल हो गई थी.
पोस्टर कांड के बाद जब मुफ्ती इरफान को जम्मू कश्मीर पुलिस ने पकड़ा, तभी एक तरह से इस मौड्यूल का परदाफाश हो गया था. क्योंकि उस के मोबाइल फोन में इन सभी का ग्रुप बना हुआ था, जिस के बाद फरीदाबाद से डा. मुजम्मिल, डा. शाहीन सईद की गिरफ्तारी हुई.
ब्लास्ट में 20 किरदार आए सामने
10 नवंबर को हुए कार विस्फोट मामले में फरीदाबाद के धौज निवासी शोएब को भी एनआईए ने गिरफ्तार किया है. वह इस केस में एनआईए द्वारा गिरफ्तार सातवां आरोपी है. एनआईए की जांच में पता चला है कि उस ने आतंकी उमर उन नबी को विस्फोट से ठीक पहले पनाह दी थी और उसे लौजिस्टिक सहायता भी मुहैया कराई थी. शोएब ने आतंकी उमर की सामान इधर से उधर पहुंचाने में मदद की थी. उस ने ही नूंह में उमर को अपनी साली अफसाना के घर में कमरा किराए पर दिलाया था और पूरी गारंटी ली थी. 10 नवंबर को दिल्ली में धमाके से पहले दिन भर उमर नूंह के इसी घर में रहा था. धमाके वाले दिन वह नूंह से ही दिल्ली के लिए गया था.
दिल्ली बम ब्लास्ट में अब तक हुई जांच में 20 बड़े किरदार सामने आए हैं, जिन्होंने इस पूरी साजिश को बुनने से ले कर उसे अंजाम देने में अहम भूमिका निभाई है. आत्मघाती हमलावर डा. उमर उन नबी, युवाओं को ब्रेनवाश करने वाली लेडी सर्जन डा. शाहीन, कार देने वाले आमिर राशिद अली जैसे किरदार शामिल हैं. जैश के इस नए मौड्यूल में 20 से ज्यादा गिरफ्तारी और संदिग्ध हिरासत में हैं. डा. उमर उन नबी, डा. मुजम्मिल और डा. आदिल अहमद भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं. आतंकी डौक्टरों के मददगार 2 मौलवी इश्तियाक और इरफान अहमद भी अब दबोच लिए गए हैं.
कश्मीर का रहने वाला आमिर का सीधा संपर्क डा. उमर से था. आमिर की जिम्मेदारी थी मौड्यूल के लिए लौजिस्टिक मुहैया करवाना. मौड्यूल के लिए आई 20 कार का इंतजाम इसी ने किया था. कार खरीदने के लिए इसे पैसे डा. उमर ने दिए थे, जोकि टेरर फंडिंग का हिस्सा था. दिल्ली धमाके में आतंकी डौक्टरों के मौड्यूल में शामिल संदिग्ध डा. सज्जाद भी शिकंजे में है. गिरफ्तारी के 2 दिन पहले ही सज्जाद का निकाह हुआ था. वह डा. उमर उन नबी और डा. मुजम्मिल शकील के कांटैक्ट में था. अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ा डा. निसार अभी तक हत्थे नहीं चढ़ा है. यूनिवर्सिटी के 10 एमबीबीएस छात्रों के मोबाइल जब्त कर उन का डेटा खंगाला जा रहा है. निसार भी उमर का बेहद करीबी है. निसार अल फलाह की मैडिसिन डिपार्टमेंट में रेजीडेंट डौक्टर था.
दिल्ली धमाके के आत्मघाती हमलावर डा. उमर मोहम्मद ने तुर्की में जैश के आकाओं से मुलाकात भी की थी. अल फलाह के पहले वह श्रीनगर और अनंतनाग में सीनियर डौक्टर रहा और फिर वह फरीदाबाद में बस गया. इस मौड्यूल में यही डौक्टर था, जिसे कैमिकल की सब से ज्यादा जानकारी थी और अमोनियम नाइट्रेट से बम बनाने की ट्रेनिंग इसी ने ली थी. वह हाइली रेडिक्लाइज्ड था. जांच में एनआईए की गिरफ्त में आए आतंकी मुजम्मिल के एक और ठिकाने का खुलासा हुआ है. डा. मुजम्मिल ने फरीदाबाद के खोरी जमालपुर गांव में भी एक घर किराए पर लिया हुआ था. मुजम्मिल ने खोरी जमालपुर गांव के पूर्व सरपंच से उस का घर कश्मीरी फलों का व्यापार करने के लिए लिया था. खोरी जमालपुर गांव के पूर्व सरपंच ने मुजम्मिल की पहचान भी कर दी है.
डा. मुजम्मिल खोरी जमालपुर गांव के इस किराए के घर में डा. शाहीन के साथ कई बार आया था. यह तथ्य दोनों आरोपियों के बीच गहरे संबंध और उन की मिलीभगत की ओर संकेत करता है. एनआईए ने अल फलाह यूनिवर्सिटी से एक ब्रेजा कार भी बरामद की है, जिसे अकसर लेडी सर्जन शाहीन सईद चलाती थी. डा. शाहीन सईद और मुजम्मिल अहमद ने यह नई ब्रेजा कार दिल्ली धमाके से कुछ हफ्तों पहले यानी 25 सितंबर को खरीदी थी. इस के अलावा जांच एजेंसी ने एक दूसरी कार लाल रंग की फोर्ड इकोस्पोर्ट भी फरीदाबाद से बरामद की है, जो ब्लास्ट को अंजाम देने वाले आतंकी डा. उमर मोहम्मद से जुड़ी पाई गई.
सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि कार बम धमाके की इस पूरी साजिश में तीनों गाडिय़ों का इस्तेमाल अलगअलग चरणों में किया गया था. रिपोर्ट लिखे जाने तक दिल्ली ब्लास्ट में अब तक अलगअलग राज्यों के रहने वाले करीब 15 लोगों की मौत हो चुकी है.
महिला विंग की कमांडर थी डा. शाहीन

इस मौड्यूल की इकलौती लेडी डा. शाहीन सईद मूलरूप से लखनऊ के खंदारी बाजार स्थित मकान नंबर 121 में अपने परिवार के साथ रहती थी, यही उस का पुश्तैनी घर है. परिवार पढ़ालिखा और शांत स्वभाव का है. पिता रिटायर्ड कर्मचारी हैं, जबकि परिवार का बड़ा बेटा शोएब परिवार के साथ यहीं रहता है. इलाहाबाद मैडिकल कालेज से पास होने के बाद शाहीन ने कुछ समय दिल्ली में काम किया, फिर फरीदाबाद में स्थायी नौकरी मिल गई.
कुछ साल पहले उस की शादी महाराष्ट्र के एक युवक से हुई थी. तब से वह वहीं रह रही थी. शाहीन के छोटे भाई परवेज अंसारी के घर पर भी एनआईए ने छापेमारी कर उसे गिरफ्तार किया है. यह छापेमारी डालीगंज क्षेत्र में स्थित उस के आवास पर हुई. अल फलाह यूनिवर्सिटी में डा. मुजम्मिल की खास और जैशएमोहम्मद की वूमेन विंग की कमांडर डा. शाहीन का भाई डा. परवेज अंसारी भी इस आतंकी साजिश में शामिल था. दावा किया जाता है कि परवेज भी आत्मघाती हमलावर बनने की राह पर चल पड़ा था. डा. शाहीन सईद भारत में आतंकी संगठन जैशएमोहम्मद की महिला विंग की कमांडर थी. उस का काम आतंकी महिलाओं की फौज तैयार करना था.
यूनिवर्सिटी का फाउंडर भी शिकंजे में

एनआईए दिल्ली ब्लास्ट से जुड़े आतंकी डौक्टरों के अल फलाह कनेक्शन की जांच कर रही है. दिल्ली ब्लास्ट के बाद हुई जांच में पहले इंदौर में महू के रहने वाले अल फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन मोहम्मद जावेद अहमद सिद्ïदीकी का पुश्तैनी मकान अवैध निर्माण पर पाया गया. छावनी परिषद ने मकान पर अनधिकृत निर्माण हटाने का नोटिस चस्पा करने के 3 दिन बाद बुलडोजर से अवैध निर्माण हटा दिया है. दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने यूनिवर्सिटी के खिलाफ मामला दर्ज किया और तलाशी ली तो उस के बाद ईडी ने भी अल फलाह यूनिवर्सिटी के फाउंडर जावेद अहमद सिद्ïदीकी के खिलाफ मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज कर लिया. 18 नवंबर को दिल्ली में 19 जगहों पर छापेमारी की गई.
इस दौरान ईडी ने 48 लाख रुपए नकद, कई डिजिटल डिवाइस और महत्त्वपूर्ण दस्तावेज जब्त किए. ओखला स्थित मुख्यालय और ट्रस्टियों के ठिकानों पर भी छापेमारी के बाद यूनिवर्सिटी के फाउंडर सिद्ïदीकी को गिरफ्तार कर लिया गया. उसे ईडी ने साकेत कोर्ट में पेश किया था. कोर्ट ने उसे 13 दिन की ईडी की रिमांड पर भेजा था. जावेद अहमद सिद्ïदीकी की गिरफ्तारी मनी लांड्रिंग से जुड़े मामले में हुई है. ईडी ने यह जांच दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच की 2 एफआईआर के आधार पर की है. इन एफआईआर में आरोप है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी ने गलत और भ्रामक दावे से मान्यता ली. यूनिवर्सिटी ने झूठा दावा किया कि उसे एनएएसी से मान्यता मिली है.
यूनिवर्सिटी ने यह भी गलत जानकारी दी कि उसे यूजीसी की धारा 12(बी) के तहत मान्यता प्राप्त है. जबकि यूजीसी ने साफ कहा है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी केवल धारा 2(एफ) के तहत एक स्टेट प्राइवेट यूनिवर्सिटी है और उस ने कभी 12(बी) के लिए आवेदन ही नहीं किया. अल फलाह यूनिवर्सिटी में गंभीर वित्तीय अनियमितताओं का भी पता चला है. यूनिवर्सिटी की मान्यता को ले कर भी गंभीर गड़बडिय़ां सामने आई हैं. आतंकी डौक्टरों का अड्ïडा बनी अल फलाह यूनिवर्सिटी के फाउंडर जावेद अहमद सिद्ïदीकी से अब ईडी कई राज उगलवाने की तैयारी में है. उस के फंडिंग सोर्स का पता लगाया जा रहा है.
अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़ी कई मुखौटा कंपनियों का पता चला है, जो सिर्फ कागजों पर ही अस्तित्व में थीं. माना जा रहा है कि इन कंपनियों का इस्तेमाल फरजी लेनदेन और हवाला कारोबार में किया गया. अल फलाह ट्रस्ट और उस से जुड़े संस्थानों का भी पूरा ब्यौरा खंगाला जा रहा है. उस की 9 शेल कंपनियां एक ही पते पर पाई गईं, लेकिन उन में कोई काम नहीं हो रहा था. सिद्ïदीकी का सब से पुराना संबंध अल फलाह इनवैस्टमेंट कंपनी से है, जिस में वह 18 सितंबर, 1992 को शामिल हुआ था. अन्य कंपनियों में अल फलाह सौफ्टवेयर, अल फलाह एनर्जीज, तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन और अल फलाह एजुकेशन सर्विस शामिल हैं, जिस में वह 26 दिसंबर, 2023 से जुड़ा था. अधिकांश कंपनियों के रजिस्ट्रैशन का पता अल फलाह हाउस, जामिया नगर, ओखला, दिल्ली ही है. अल फलाह विश्वविद्यालय की शुरुआत 1997 में एक इंजीनियरिंग कालेज के रूप में हुई थी.
जावेद ने पहले महू के क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की और बाद में इंदौर से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक किया. उस ने सिविल सेवा परीक्षा में 3 बार इंटरव्यू दिया, लेकिन उस का चयन नहीं हो पाया. उस ने साल 1992 में जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफैसर के तौर पर 2 साल नौकरी की. अल फलाह समूह का 61 वर्षीय चेयरमैन जावेद अहमद सिद्ïदीकी 7.5 करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में 3 साल जेल में बंद रह चुका है. सिद्ïदीकी पर आरोप था कि उस ने निवेशकों के धन से फरजी दस्तावेजों के जरिए शेयर खरीदे.
वाइट कौलर ‘डौक्टर टेरर मौड्यूल’ के खतरनाक इरादे

अब आतंकी ‘जैविक’ और ‘उर्वरक’ धमाकों से लैस हो कर आप के इर्दगिर्द बड़े खतरे की तरह मंडरा रहे हैं. ये है देश में कुख्यात ‘डौक्टर टेरर मौड्यूल’. फरीदाबाद के आतंकी डौक्टरों से पहले गुजरात एटीएस की गिरफ्त में आए डा. अहमद मोईनुद्ïदीन सैयद का साइनाइड से भी हजार गुना घातक जैविक हथियार ‘रिसिन’ से नरसंहार की तैयारी तो इसी बात के संकेत हैं. एक तरफ जैशएमोहम्मद तो दूसरी तरफ इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रोविएंस मौड्यूल. लाल किला ब्लास्ट से चंद रोज पहले गुजरात एटीएस ने हैदराबाद के एक डा. अहमद मोहिनुद्ïदीन सैयद को भारत के कई शहरों में जैविक आतंकी हमले की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस की निशानदेही पर यूपी के आजाद सुलेमान शेख और मोहम्मद सुहेल सलीम खान को दबोचा गया.
गुजरात एटीएस ने दावा किया कि इन के निशाने पर दिल्ली, लखनऊ और अहमदाबाद थे. इन के पास रिसिन नाम का खतरनाक जहर मिला. गुजरात एटीएस की मानें तो रिसिन एक ऐसा जहर है, जो अरंडी के बीजों से तैयार होता है. इस की मात्रा अगर एक ग्राम भी हो तो सैकड़ों लोगों की जान जा सकती है. रिसिन को डब्लूएचओ की कैटिगरी बी में बायोटेररिज्म का पदार्थ माना गया है. रिसिन एक बार शरीर के अंदर पहुंच जाए तो 24 से 72 घंटे के भीतर मौत निश्चित है.
आरोपी डा. सैयद रिसिन तैयार करने की कोशिश कर रहा था. वह दिल्ली के आजादपुर मंडी, अहमदाबाद के नारोड़ा फल बाजार और लखनऊ के भीड़भाड़ वाले इलाकों का सर्वे कर चुका था. एटीएस ने उस के पास से 2 ग्लौक पिस्टल, एक बरेटा पिस्टल, 30 काट्र्रिज और 4 लीटर कैस्टर आयल बरामद किया, जिसे रिसिन बनाने में शुरुआती सामग्री माना जाता है. सैयद कथित रूप से आईएसकेपी और पाकिस्तान स्थित हैंडलर के संपर्क में था. उस ने यह भी बताया कि उस ने रिसिन बनाने के लिए रिसर्च शुरू कर दी थी और इस के कैमिकल प्रोसेस के लिए जरूरी उपकरण और कच्चा माल जुटा लिया था.
फरीदाबाद की अल फलाह यूनिविर्सिटी, जिसे दिल्ली समेत देश को टारगेट करने के लिए बेस कैंप चुना गया था. इस पूरे मौड्यूल के खुलासे में अहम रोल है उस परचे का, जिसे 19 अक्तूबर को कश्मीर के नौगाम में चिपकाया गया था. यह पर्चा जैशएमोहम्मद के नाम से धमकी भरा था. इसी धमकी भरे परचे के बाद हुई धरपकड़ में डाक्टरों का ये मौड्यूल भी पकड़ा गया. फरीदाबाद से गिरफ्तार डा. मुजम्मिल के कुबूलनामे और शाहीन की गिरफ्तारी के बाद डा. उमर विस्फोट से लदी कार को ले कर निकल पड़ा. आधीअधूरी तैयारी के साथ लाल किले पर पहुंच कर उस ने आत्मघाती हमला कर दिया. यह धमाका अमोनियम नाइट्रेट से किया गया था. जांच एजेंसी का मानना है कि 3 हजार किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट अगर एक साथ फटता तो बहुत भारी तबाही होती.
आतंकी डा. मुजम्मिल था शाहीन का दीवाना

दिल्ली ब्लास्ट के बाद फरीदाबाद की अल फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े आतंकी डौक्टरों की साजिश को बेनकाब किया गया. देश को बड़े धमाकों से दहलाने का नेटवर्क कैसे तैयार हुआ, आतंकी डौक्टरों का आका कौन था, इस की परतें भी अब खुलने लगी हैं. आतंकियों के इसी नापाक गठजोड़ में शामिल डा. मुजम्मिल शकील का जो कुबूलनामा सामने आया है, वह बताता है कि इस वाइट कौलर टेरर मौड्यूल के जेहन में क्या जहर घुला था. मुजम्मिल ने जैश ए मोहम्मद की महिला कमांडर डा. शाहीन से उस की नजदीकियों को ले कर भी चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
मुजम्मिल ने गहरे राज जांच एजेंसियों की पूछताछ में उगले हैं. मुजम्मिल ने बताया है कि शाहीन से उस की मुलाकात अल फलाह यूनिवर्सिटी में हुई थी. वह उस से काफी बड़ी थी और उस की सैलरी भी मुजम्मिल से काफी ज्यादा थी. वह शाहीन के प्यार में पागल हो गया और यह आशिकी इस कदर परवान चढ़ी कि दोनों ने 2023 में निकाह कर लिया. डा. शाहीन का पहला पति जफर हयात मुंबई में रहता था, जो शाहीन के मौडर्न खयालातों का खुलासा पहले ही कर चुका है. उसे बुरके से चिढ़ थी और अमेरिका, आस्ट्रेलिया जैसे देश में बसना चाहती थी. लेकिन उस का दूसरा पति गाजियाबाद में एक कपड़े की दुकान चलाने वाला था, जिस से भी उस की नहीं बनी. फिर अल फलाह में वो डा. मुजम्मिल के करीब आ गई.

डा. मुजम्मिल ने जांच एजेंसियों को बताया कि उस ने शाहीन से तीसरी शादी की. डा. शाहीन सऊदी अरब में भी रह कर आई और वहां भी असिस्टेंट प्रोफेसर थी. उस ने आतंकी मौड्यूल के लिए बैंक खाते से करीब 25 लाख रुपए आतंकी साजिश के लिए दिए थे. मुजम्मिल के मुताबिक, वह और उमर उन नबी अफगानिस्तान या सीरिया में बसना चाहते थे. वह उमर के साथ तुर्की भी गया था, जहां आतंकी हैंडलर्स से मुलाकात के साथ उन की ट्रेनिंग हुई. उस हैंडलर का कोड नेम ‘उकासा’ था.
मुजम्मिल ने बताया कि वह उमर, आदिल, शाहीन और मुफ्ती इरफान मिल कर एक बड़ी साजिश रच रहे थे. चीन की मैंडरिन भाषा में बने ग्रुप का हेड उमर ही था. उमर चीनी भाषा में आतंकी नेटवर्क के बीच बातें करता था. मुजम्मिल ने बताया कि वह और डा. उमर, मुफ्ती इरफान और डा. आदिल के साथ शाहीन ने 3 साल पहले इस आतंकी साजिश का खाका बुना था. Delhi News
(एनआईए की जांच व घटनाक्रम में हुई पूछताछ पर आधारित है)






