Emotional Love Story: प्यार में मजाक हो सकता है, मगर मजाक में प्यार नहीं. मैं पागल थी न, किसी दूसरे की मंजिल को अपनी मंजिल समझ बैठी. … बस मैं अपनी मोहब्बत की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकी. कुसूर तो मेरा ही है कि हमदर्दी को मोहब्बत समझ लिया. अचानक मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा. कोई बडे़ जोर से दरवाजा पीट रहा था. ‘‘भई, क्या मुसीबत आ गई? अभी तो सिर्फ 8 बजे हैं.’’ मैं ने चिल्ला कर कहा.

‘‘अशरफ भाई, दरवाजा खोलें.’’ शाजिया की कांपती

आवाज में न जाने क्या था कि मैं ने बिस्तर से छलांग लगाई और दरवाजा खोल दिया.

‘‘अशरफ भाई, वह… वह शज्जो मर गई. उस ने खुदकुशी कर ली है.’’

फिर मैं घर के अंदरूनी हिस्से की तरफ भागा. सब शज्जो के कमरे में जमा थे और वह सिर से पैर तक सफेद चादर ओढ़े पड़ी थी. चाची अम्मां के विलाप दिल को दहलाए दे रहे थे. यह अचानक क्या हो गया? मेरा दिल जैसे फटने को था. मैं घबरा कर कमरे से निकल आया. बरामदे में सब लड़केलड़कियां खड़े रो रहे थे. मुझे देख कर जमाल एकदम मुझ से लिपट गया, ‘‘अशरफ, मेरा गला दबा दो अशरफ… मैं शज्जो का कातिल हूं… मुझे मार दो. हमारे मजाक ने उस की जान ले ली. मैं सोच भी नहीं सकता था कि वह इतना आगे बढ़ जाएगी. मुझे फांसी पर लटकना चाहिए. मैं उस का कातिल हूं.’’

‘‘नहीं जमाल, हम सभी उस के मुजरिम हैं, सिर्फ तुम्हीं नहीं.’’ मैं ने रुंधी आवाज में कहा. मेरा दिल चाह रहा था कि मैं अकेले में बैठ कर खूब रोऊं और जी का बोझ हल्का करूं. मैं जल्दी से दादीजान के कमरे में घुस गया और आंसुओं से दिल की आग ठंडी करने लगा. हमारा खानदान बहुत बड़ा था और यह हमारी दादी का कारनामा था, जिन्होंने अपने चारों बेटों को एक छत तले रखा था. यह लंबीचौड़ी कोठी दादाजान ने बड़ी चाहत से बनवाई थी. दादीजान गांव की रहने वाली थीं. उन्होंने बेटों को अच्छी तालीम दिलाई. पढ़ीलिखी बहुएं लाईं, मगर उन्हें शहरों का यह लच्छन कि शादी होते ही बेटा मांबाप से अलग हो जाए, जरा भी पसंद नहीं आया था.

यों भी हम सब बड़ी मोहबबत से रहते थे. इसलिए किसी तल्खी का सवाल ही पैदा नहीं होता था. दादाजान का इंतकाल हो गया था, अब्बू चूंकि सब से बड़े थे, इसलिए अब वही घर के मालिक थे. सब से छोटे चाचा के यहां शज्जो के सिवा कोई औलाद जिंदा न रही. वह छोटे चाचा की औलाद बिलकुल नहीं लगती थी. चाचा और चाची, दोनों गोरेचिट्टे और जहीन थे, मगर शज्जो सांवली थी. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह बेहद कमअक्ल थी, न कोई सलीका, न शऊर, ऊपर से एकदम कुंद दिमाग. इसलिए वह पांचवीं से आगे नहीं पढ़ सकी.

बचपन में हम सब उस से बहुत खार खाते थे, क्योंकि दादीजान को वह सब से ज्यादा प्यारी थी. मगर जब हमें जरा समझ आई तो उस का खयाल रखने लगे. लड़कियां तो उस से बहुत घुलमिल कर रहतीं. लेकिन हम लोग कभीकभी उसे बेवकूफ बनाया करते, जिस में कभी कोई लड़की भी शामिल हो जाती. मगर जहां वह मुंह फाड़ कर रोना शुरू करती, हम लोग हाथ जोड़ कर उस के सामने खड़े हो जाते, वरना घर भर की डांट सुननी पड़ती. उस दिन नजमा बाजी की शादी तय हुई थी. हौल कमरे में सब मेहमान जमा थे. लड़कियों ने जर्द रंग के सूट पहने थे. राहेला की रंगत पर तो जर्द रंग बहुत खिल रहा था और जमाल ख्वाहमख्वाह हौल कमरे का चक्कर लगा रहा था.

हम सभी जानते थे कि वे दोनों एकदूसरे में दिलचस्पी रखते थे. लड़के जमाल को छेड़ रहे थे. नजमा बाजी की सहेलियां गीत गाने में मगन थीं. उस समय किसी को भी याद नहीं था कि शज्जो हमारे बीच नहीं थी और अपनी आदत के मुताबिक कहीं कोने में दुबकी रो रही होगी, क्योंकि सीमा ने उस की सांवली रंगत पर जर्द जोड़े का मजाक उड़ाया था.

जमाल किसी काम से ऊपर जाने लगा तो उस ने देखा कि शज्जो सीढि़यों पर बैठी रो रही थी. जमाल ने पूछा, ‘‘अरे क्या हुआ शज्जो? तुम हौल में नहीं गईं?’’

‘‘मैं वहां नहीं जाऊंगी. सब लड़कियां मेरा मजाक उड़ाती हैं.’’

जमाल ने उस की तरफ देखा. सिर में खूब तेल चुपड़ा हुआ था. 2 चोटियां खूब कसकस कर आगे डाली हुई थीं. गहरे जर्द रंग का सूट उस की स्याह रंगत पर बड़ा अजीब लग रहा था. जमाल को उस से हमदर्दी महसूस हुई. मगर मुश्किल यह थी कि वह किसी की बात नहीं मानती थी. अपनी मर्जी ही चलाती थी. चाची ने भी सब्रशुक्र कर के उसे उस के हाल पर छोड़ दिया था.

‘‘तो तुम कपड़े बदल लो न.’’ जमाल ने मशविरा दिया.

‘‘मुझे नहीं पता कि मैं कौनसे कपड़े पहनूं?’’ वह सिसक कर बोली.

‘‘अच्छा आओ, मैं बताता हूं.’’ जमाल ने मशविरा दिया.

थोड़ी देर बाद वह हौल में दाखिल हुई तो एकदम बदली हुई थी. मोतिए के हलके रंग के लिबास से उस की शख्सियत ही बदल गई थी. उस के लंबेघने बाल उस की पीठ पर लहरा रहे थे, स्याह रेशम जैसे चमकते हुए कमर से भी एक बालिश्त नीचे. दूसरी लड़कियों के बाल या तो कटे हुए थे या इतने खूबसूरत और घने नहीं थे. सब लड़कियां उस के बालों पर रश्क करती थीं.

इस के बाद वह जमाल से पूछपूछ कर ही कपड़े पहनने लगी. सब हैरान थे कि इतना सलीका उसे कहां से आ गया. मगर बारात वाले दिन वह फिर सीढि़यों पर बैठी सिसकसिसक कर रो रही थी. मैं ने उसे देखा तो एक नई शरारत सूझी. मैं ने जमाल से कहा, ‘‘शज्जो बुला रही है.’’

इधर से उधर दौड़तेभागते वह बहुत थक गया था. उसे गुस्सा आ गया, ‘‘अरे वाह, मैं क्या उस का नौकर हूं कि उसे मशविरे देता रहूं? किसी लड़की से क्यों नहीं पूछ लेती? देखता हूं उसे.’’ कह कर वह सीढि़यों की तरफ लपका, जहां शज्जो बैठी रो रही थी.

‘‘अब क्या हो गया? कौन सी मुसीबत आ गई?’’ वह उस के करीब आ कर चिल्लाया.

डर के मारे उस ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया. चेहरे पर सुर्खी और पाउडर फैला हुआ था मानो मेकअप करने की कोशिश की गई थी. जमाल उसे देख कर पसीज गया और नरमी से बोला, ‘‘तुम तैयार क्यों नहीं हो जातीं? कोई भी लड़की तुम्हें तैयार कर देगी.’’

‘‘कोई मेरी बात नहीं सुन रहा. सब अपनी तैयारी में लगे हैं.’’

‘‘ठहरो, मैं किसी को भेजता हूं.’’ वह झल्लाया हुआ ड्रेसिंगरूम में आया, जहां सब लड़कियां तैयार हो रही थीं. कोई इस्त्री कर रही थी, कोई नेल पौलिश लगा रही थी, किसी को कपड़ों से मैच करती हुई लिपस्टिक की तलाश थी. शोर सा मचा हुआ था.

‘‘तुम लोगों को अपनी ही पड़ी रहती है. किसी और की तरफ भी देख लिया करो.’’ जमाल चिल्लाया.

‘‘क्या हुआ जमाल भाई?’’ नईमा ने पूछा.

‘‘शज्जो को कोई तैयार नहीं कर सकता? अगर तुम से किसी की सगी बहन एब्नौर्मल होती तो क्या तुम लोग उसे यों छोड़ देते?’’

‘‘सौरी जमाल भाई.’’ नईमा बोली और जा कर शज्जो को ड्रेसिंगरूम में ले आई.

राहेला और जमाल के ‘अफेयर’ का सब को पता था. राहेला उस दिन बहुत प्यारी लग रही थी. जमाल के सामने पड़ते ही वह छुईमुई की तरह सिमट जाती. मैं ने महसूस किया कि शज्जो बड़ी अजीब नजरों से जमाल को देख रही थी. उसी समय मेरे दिमाग में एक नई शरारत का खयाल आया और मैं खुर्रम की तरफ बढ़ गया. शरारतों में वही मेरा पार्टनर होता था और मैं जो कुछ सोच रहा था, उस की राह अपने आप हमवार हो रही थी. रात गए नजमा बाजी की विदाई के बाद हम सब सोने के लिए ऊपर आने लगे तो देखा, शज्जो दूध का गिलास लिए जा रही थी.

‘‘अरे भई, यह किस की खातिरें हो रही हैं?’’ खुर्रम चहका.

वह एक लम्हे को घबराई, फिर बोली, ‘‘वह… जमाल भाई को… रात को दूध पीने की आदत है न, मैं ने सोचा, सब थक गए हैं, मैं दे आऊं.’’

‘‘भई, आदत तो हम सब को भी है. यह सिर्फ जमाल ही पर मेहरबानी क्यों?’’ मैं ने झुक कर धीरे से कहा.

वह एकदम सुर्ख हो गई, ‘‘अल्लाह, मुझे… जाने दीजिए न.’’ उस ने इस तरह इठला कर कहा कि हम सब हैरान हो कर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. उस के चेहरे की सांवली रंगत हया की सुर्खी से मिल कर अजीब असर दे रही थी. मगर उस समय हम इतने थके हुए थे कि कोई और बात किए बगैर अपनेअपने कमरों में घुस गए.

फिर तो यह होने लगा कि जमाल के हर काम के लिए शज्जो दौड़ी जाती. शेव का पानी दिया जाता, कभी मोजेरूमाल धोए जाते, कभी कपड़ों पर इस्त्री की जाती. मैं और खुर्रम उसे शह देते रहते. हमारी फैमिली इतनी बड़ी थी कि किसी ने उस के इस बदलाव को महसूस नहीं किया. अगर किया भी तो यही सोचा कि जमाल उस का इतना खयाल रखता है, इसलिए वह भी उस के काम करती है.

नजमा बाजी की शादी के आठवें दिन दूरनजदीक के सभी रिश्तेदार विदा हो गए. हम सब राहेला के कमरे में बैठे गपशप कर रहे थे कि नबीला बोली, ‘‘आप लोग इजाजत दें तो मैं एक हैरतअंगेज बात जाहिर करूं?’’

‘‘इरशाद, इरशाद.’’ सब ने कहा.

जमाल बड़ी स्टाइल से सिगरेट के हलकेहलके कश ले रहा था. हम लोग लड़कियों के कमरे में छिप कर सिगरेट पिया करते थे. मैं एकदम बीच में कूद पड़ा, ‘‘अरे नबीला बोलो, जमाल की मजाल है जो तुम से कुछ कहे.’’

‘‘तो जनाब, बात यह है जमाल भाई कि अब आप राहेला बाजी से हाथ धो लें.’’

राहेला का चेहरा एकदम फक हो गया. ‘‘क्यों? क्यों?’’ सब चिल्लाए.

‘‘इसलिए कि शज्जो का दिल जमाल भाई पर आ गया है.’’

‘‘क्या?’’ जमाल के हाथ से सिगरेट गिर गई, ‘‘नबीला, मुझे ऐसे मजाक पसंद नहीं.’’ वह दहाड़ा.

‘‘मजाक कौन कर रहा है? उस ने खुद मुझे बताया है और यह भी कहा है कि जमाल भाई भी मुझे पसंद करते हैं. तभी तो वह मेरा इतना खयाल रखते हैं.’’

यह सुन कर सब के कहकहों से कमरा गूंज उठा. राहेला भी नौर्मल हो गई.

‘‘मैं उस का सिर तोड़ दूंगा.’’ जमाल दरवाजे की तरफ लपका.

मैं ने बढ़ कर उसे पकड़ लिया, ‘‘दिलवालों के सिर नहीं तोड़ा करते यार.’’

‘‘तुम मजाक के मूड में हो और…’’

‘‘मेरी जान पर बनी है.’’ खुर्रम ने चहक कर जुमला पूरा किया.

‘‘जरासी हमदर्दी क्या दिखा दी, मोहतरिमा उलटासीधा सोचने लगी. लड़कियां होती ही ऐसी हैं.’’ जमाल गुस्से से सुर्ख हो रहा था.

‘‘अच्छा, तो क्या राहेला से भी तुम ने हमदर्दी की है?’’ शईब ने बड़ी मासूमियत से पूछा.

जमाल गुस्से से तिलमिला रहा था और सब का हंसी के मारे बुरा हाल था.

‘‘अच्छा चलें, जमाल भाई, गुस्सा थूक दें. मैं शज्जो को प्यार से समझा दूंगी.’’ रोबीना ने कहा.

‘‘न भई न.’’ अब सीन शुरू हो गया है तो फिल्म भी जरूर बनेगी. हर बात में मुझे मजाक सूझता था. इस में भी मजाक का पहलू निकल आया. प्यारमोहब्बत को भी मैं ने मजाक समझ लिया था. यह न समझा कि कोई संजीदा भी हो सकता है.

‘‘हां भई, अब जमाल को मैदान में आ जाना चाहिए.’’ खुर्रम ने हाथ फैला कर फिल्मी अंदाज में कहा.

‘‘क्या कह रहे हो खुर्रम?’’ राहेला नाराज होने लगी.

‘‘यार, इस से तुम्हारे लिए कोई फर्क नहीं पड़ेगा. बस जबरदस्त मजा आएगा.’’ मैं ने जमाल को बहलाया.

‘‘तुम लोगों का शायद दिमाग खराब हो गया है.’’ जमाल ने झुंझला कर कहा, ‘‘तुम खुद क्यों नहीं रचा लेते यह ड्रामा? मुझे क्यों घसीट रहे हो?’’ जमाल उकता गया.

हम सभी उस के पीछे पड़ गए तो उस ने राजी हो कर कहा, ‘‘लेकिन देखो, मुझ पर कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. अच्छी तरह सोच लो. अगर कोई गड़बड़ हुई, तो..?’’

‘‘हां, हां,’’ मैं ने उस की बात काट दी, ‘‘सारी जिम्मेदारी हमारी है भई, तुम्हें फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं.’’

फिर शरारतों का एक नया दौर शुरू हो गया. इम्तहानों से तो हम सब फारिग हो चुके थे. दिमाग में यही सब समाया हुआ था. कभी खुर्रम ढेर सारे फूल ला कर शज्जो को देता कि जमाल ने दिए हैं. कभी मैं कोई छोटासा तोहफा जमाल के नाम से उसे देता. कभी कहता कि जमाल ने चाय मंगवाई है, उसे तुम्हारे सिवा किसी के हाथ की चाय पसंद ही नहीं. उस समय उस के चेहरे पर गुलालसा बिखर जाता और हम लोग खूब हंसते. काश, उस मासूम लड़की को हम ने यों तंग न किया होता.

उस दिन पिक्चर का प्रोग्राम बना तो मैं ने शज्जो से कहा, ‘‘फिल्म देखने चल रही हो?’’

‘‘नहीं अशरफ भाई, मेरी तबीयत जरा खराब है.’’ उस ने थकेथके लहजे में जवाब दिया.

‘‘भई शज्जो, तुम हम सभी का यह प्रोग्राम खराब मत करो. यह पिक्चर जमाल दिखा रहा है. तुम नहीं गईं तो वह किसी को नहीं ले जाएगा.’’ मैं ने जबरदस्त ऐक्टिंग की.

‘‘सच अशरफ भाई?’’ उस ने हैरत से कहा.

‘‘हां भई, यकीन नहीं आता तो खुद जा कर पूछ लो जमाल से.’’

वह शरमाईशरमाई सी तैयार होने चल दी. थोड़ी देर बाद वह तैयार हो कर निकली तो सब ने उसे बड़े ताज्जुब से देखा. हलके गुलाबी रंग के कुर्तेसलवार पर उस ने अपने लंबे बाल खुले छोड़ रखे थे. मेकअप भी बड़े सलीके से किया था.

‘‘या अल्लाह, इतना सलीका कहां से आ गया?’’ नबीला ने सरगोशी की. वाकई शज्जो से न जाने क्या बातें करता रहा. फिल्म खत्म हुई तो सब के चेहरे शज्जो की तरफ मुड़ गए. वह शरमाईशरमाई सी अंगुलियां मरोड़ रही थी. इस के बाद फिर हम सभी आउटिंग के प्रोग्राम ज्यादा बनाने लगे. हर प्रोग्राम में शज्जो जरूर शामिल होती. कपड़े भी वह बड़े सलीके से पहनने लगी थी. शाम को हमारी महफिलों में भी शामिल होती. जमाल गजब की अदाकारी कर रहा था. शज्जो की मौजूदगी में वह राहेला से बिलकुल लापरवाह रहता.

इम्तहान का नतीजा निकला. जमाल अच्छे नंबरों से पास हो गया. अब ताई अम्मी चाह रही थीं कि शादी न सही तो कम से कम जमाल की सगाई ही हो जाए. उधर शज्जो का यह हाल था कि आंखों में सितारे से चमकने लगे थे. वह संजीदा भी हो गई थी. पहले की तरह धुआंधार तरीके से रोती भी नहीं थी. उस दिन सभी बुजुर्ग हौल कमरे में जमाल और राहेला के रिश्ते के बारे में बातचीत कर रहे थे और हम सब रोबीना के कमरे में जमा थे. शज्जो को इस मामले की कुछ खबर नहीं थी. वह अपने कमरे में थी. अचानक जमाल बोला, ‘‘भई, शज्जो का क्या होगा? अब इस ड्रामा का ड्रौपसीन करो.’’

‘‘होगा क्या मियां? ब्याह होगा तुम्हारे साथ.’’ शईब बड़े मजे से बोला.

‘‘तुम होश में तो हो?’’ जमाल झल्ला गया.

‘‘भई, आखिर क्या खराबी है शज्जो में? जुल्फें बिखरा दे तो रात हो जाए.’’ मैं ने फिकरा कसा.

‘‘यार ज्यादा तंग मत करो और हल सोचो इस मसले का.’’ जमाल परेशान हो कर बोला.

‘‘कह दो कि शज्जो यह शादी नहीं हो सकती. हमारे दरमियान बुजुर्गों ने राहेला को दीवार बना दिया है. अब हम और तुम सातवें आसमान पर ही मिल सकते हैं.’’ खुर्रम ने फिल्मी डायलाग बोले तो सब हंस पड़े. जमाल तिलमिला कर खड़ा हो गया, ‘‘ठीक है, तुम लोग मजाक करते रहो. मैं अभी शज्जो को ला कर तुम्हारे सामने खड़ी करता हूं और उसे साफसाफ बताता हूं कि मुझे तुम से सिर्फ हमदर्दी थी. न कभी मोहब्बत थी, न हो सकती है और यह सब महज तुम सब लोगों के मजबूर करने पर हुआ कि मैं मोहब्बत का झूठा खेल खेलूं.’’

उस ने कमरे से बाहर जाना चाहा, मगर मैं ने और खुर्रम ने जबरदस्ती उसे पकड़ लिया, ‘‘यार, तुम ख्वाहमख्वाह परेशान हो रहे हो. अब फौरन तो कुछ कर नहीं सकते. तुम बस खामोश रहो. हम आहिस्ताआहिस्ता उस का दिमाग तुम्हारी तरफ से हटा देंगे. वैसे भी कौनसा वह तुम से संजीदा होगी. उस की छोटीसी अक्ल में मोहब्बत भला कहां समा सकती है.’’ मैं शायद संगदिल था, तभी तो हर बात को मजाक में उड़ाने का आदी था.

मैं जमाल को समझाबुझा कर कमरे से निकला तो शज्जो तेजी से अपने कमरे की तरफ जाती हुई दिखाई दी. तो क्या उस ने सब सुन लिया? मेरा दिल धक से रह गया. एक लम्हे को मैं कांप उठा कि अगर उस ने सुन लिया होगा तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी. उस समय मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अब मुझे क्या करना चाहिए. मैं दबे कदमों से शज्जो के कमरे की तरफ बढ़ा. मगर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उस के कमरे में जाऊं. मैं ने चुपचाप दरवाजे का परदा सरका कर झांका. मगर उस ने देख लिया, ‘‘अंदर आ जाएं अशरफ भाई.’’

उस की आवाज से मैं चौंक उठा. मैं डरतेडरते अंदर चला गया. उस की आंखों में आंसू नहीं थे. मगर मुझे यों लगा, जैसे उस के चेहरे का एकएक अक्स रो रहा हो. वीरान आंखों से वह मुझे देख रही थी. मगर शायद यह मेरा अहसास था, क्योंकि वह तो बगैर रोए रह नहीं सकती थी. शायद उस ने कुछ सुना ही नहीं था.

‘‘शज्जो, अभी तुम कहां गई थी?’’ हिम्मत कर के मैं ने पूछ ही लिया.

‘‘मैं… मैं जरा नबीला के कमरे तक गई थी. वह वहां नहीं थी तो मैं वापस आ गई.’’

‘‘तुम क्या रोबीना के कमरे की तरफ भी आई थी?’’ मेरी जरा हिम्मत बंधी.

‘‘नहीं, मैं वहां तो नहीं गई.’’ उस ने अजीब से लहजे में जवाब दिया. फिर बोली, ‘‘आप को मुझ से कुछ काम है?’’

‘‘नहीं शज्जो, बस यूं ही तुम से बात करने को दिल चाह रहा था.’’ मैं गड़बड़ा गया.

‘‘अशरफ भाई, प्लीज आप बुरा मत मानिएगा. मुझे सख्त नींद आ रही है.’’

मैं हैरान रह गया. आज वह कैसी बातें कर रही थी? पहले मैं उस के कमरे में जाता तो वह जबरदस्ती पकड़पकड़ कर बैठाती और बातें कर के दिमाग खराब कर देती. मैं चुपचाप बाहर आ गया और जब मैं ने यह सारा ब्यौरा दूसरों को सुनाया तो जमाल हत्थे से उखड़ गया, ‘‘यह सब तुम लोगों की शरारत थी. तुम लोगों ने बात इतनी आगे बढ़ा दी…’’ मारे गुस्से के उस से बोला नहीं जा रहा था, ‘‘अगर उसे कुछ हो गया तो मैं अपने आप को और तुम लोगों को कभी माफ नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘अरे यार,’’ शईब बेजारी से बोला, ‘‘तुम्हें तो ख्वाहमख्वाह तकरीरें करने का शौक है. अगर उस ने कोई बात सुन ली होती न तो अभी यहां भूचाल आ गया होता. इतने धुआंधार तरीके से रोनाधोना मचता कि सारा घर कांप कर रह जाता.’’

… और यों बात आईगई हो गई. दूसरे दिन हम सब लौन में बैठे थे कि वह हमारे दरमियान आ बैठी. जमाल तो उसे देख कर फौरन चला गया.

मैं ने गौर से उस की तरफ देखा. मैं ही क्या, सभी चोर नजरों से उसी तरफ देख रहे थे. मुझे उस की आंखों में बुझते दीयों जैसी कैफियत नजर आई. हम सब परेशान थे. मगर थोड़ी ही देर में उस ने राहेला की किसी बात पर कहकहा लगाया तो हम सब ने सुकून की सांस ली कि उस ने कोई बात नहीं सुनी, वरना वह इतने इत्मीनान से न बैठी होती. मैं ने दिल में इरादा कर लिया कि आज के बाद यह मजाक खत्म. मैं उसे आहिस्ताआहिस्ता जमाल और राहेला के रिश्ते के बारे में भी बता दूंगा, प्यार से समझा दूंगा. न जाने क्यों वह बातबात पर कहकहे लगा रही थी. रात को उस ने जिद की कि पिक्चर देखी जाए. सब हैरान थे कि उसे क्या हो गया है. पिक्चर देख कर लौटे तो वह जोर देने लगी कि यहीं लौन में बैठ कर बातें की जाएं.

‘‘भई क्या बात है, आज तुम बहुत खुश हो?’’ शईब ने सवाल किया.

‘‘आज मैं खुश हूं, मगर कल आप सभी लोग खुश हो जाएंगे.’’ उस ने कहा और फिर न जाने कहांकहां की बातें करती रही.

आखिर रात एक बजे जब दादीजान ने हमें डांटा तो हम सब सोने चले गए. शज्जो का कमरा सामने ही था. एक लम्हे को दरवाजे पर रुक कर उस ने हम सब की तरफ देखा. जमाल को देखते समय उस की आंखों में अजीबसी हसरत थी. फिर वह हाथ हिला कर अंदर चली गई.

… न जाने रात के कौन से पहर उस ने नींद की गोलियों की पूरी शीशी गले में उडे़ल ली और चुपचाप सो गई. न रोई, न चिल्लाई. न किसी से कोई शिकायत की. खामोशी के साथ सब से नाता तोड़ गई और जिंदगी भर को एक कसक हमें दे गई. अब मुझे उस के कहे जुमले का खयाल आया कि कल आप सब खुश हो जाएंगे. अरे पगली, क्या तेरे चले जाने से हम खुश होते? मुझे क्या मालूम था कि मेरा मजाक जानलेवा साबित होगा? मुझे अपने आप से नफरत हो रही थी. मेरा दिल चाह रहा था कि चिल्लाचिल्ला कर कहूं, ‘‘मैं शज्जो का कातिल हूं. मैं ने उसे मारा है, मेरी बातों ने, मेरे मजाक ने मारा है.’’

अचानक राहेला घबराई हुई आई, ‘‘अशरफ भाई. यह… यह परचा उस की मेज पर रखा था. मैं ने छिपा लिया था, किसी को दिखाया नहीं.’’

मैं ने परचा झपट कर पढ़ना शुरू किया. लिखा था:

‘‘अशरफ भाई, मैं ने सारी बातें सुन ली थीं. आप सब से कह दें कि किसी शख्स, खास तौर पर जमाल को मुझ से शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं. मेरी किस्मत यही थी कि लोग मुझ से मोहब्बत का ढोंग रचाएं. मुझ से मजाक करें, मगर इतना समझ लें कि प्यार मजाक नहीं होता और अगर प्यार को मजाक बना लिया जाए तो वह किसी एक की जान ले लेता है. प्यार में मजाक हो सकता है, मगर मजाक में प्यार नहीं. मैं पागल थी न कि किसी दूसरे की मंजिल को अपनी मंजिल समझ बैठी. मैं यह बरदाश्त न कर सकी कि यों भरे कमरे में मेरा मजाक उड़ाया जाए. मेरे पाकीजा जज्बातों की तौहीन की जाए. मुझे जमाल से शादी न होने का गम नहीं, बस मैं अपनी मोहब्बत की तौहीन बरदाश्त नहीं कर सकी. कुसूर तो मेरा है कि हमदर्दी को मोहब्बत समझ बैठी. यह भी नहीं सोचा कि मैं तुम खूबसूरत लोगों के दरमियान नजर का टीका हूं. अब मैं सब से नाता तोड़ रही हूं. मुझे माफ कर दीजिएगा.’’

—सिर्फ शज्जो

‘‘शज्जो, तू इतनी गहरी निकली कि इतनी बड़ी बात को यों दिल में उतार गई? तू तो जराजरा सी बात पर रोधो कर चुप हो जाती थी. काश, तू चिल्लाचिल्ला कर रो देती. काश, तू हम से लड़ लेती. तू मेरे मुंह पर थप्पड़ दे मारती. मुझे जलील कर देती. मगर यह तो न करती. शज्जो मेरी बहन, मैं तुझे कहां ढूंढू? तू मिल जाए तो तेरे कदमों में सिर रख कर माफी मांग लूं. मैं अपनी नजरों में गिर गया हूं. मेरे मजाक ने यह कैसा गुल खिलाया? वह मासूम लड़की, जो किसी की मोहब्बत चाहती थी, जो किसी के सपने सजाए बैठी थी, उस के सपनों को हम ने किस बुरी तरह चकनाचूर किया कि उस ने अपनी जान दे दी. या अल्लाह, मुझे मौत दे दे, मुझे भी उठा ले.’’

मैं दीवार से सिर टकराटकरा कर रो रहा था. बुजुर्ग मुझे चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. मगर किसी को पता नहीं था कि वह कैसे जख्म डाल गई थी हम सभी के दिलों पर. Emotional Love Story

 

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