Hindi Stories: कोईकोई औरत बहती नदी सी होती है, जिधर रास्ता मिला उधर ही बह निकली. प्रियंका भी ऐसी ही औरत थी. वह भूल गई कि वह जीतीजागती औरत है, नदी नहीं. इसी का उसे ऐसा अंजाम भोगना पड़ा कि…

उत्तर प्रदेश के शहर बरेली में 30 अगस्त, 2015 की शाम एक महिला की हत्या की जानकारी होते ही शहर में सनसनी फैल गई. यह हत्या बारादरी थाना के मोहल्ला खुर्रम गौटिया में हुई थी. सूचना मिलने पर थानाप्रभारी मोहम्मद कासिम सहयोगियों के साथ मौके पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर कुछ देर बाद एसपी (सिटी) समीर सौरभ और सीओ (तृतीय) असित श्रीवास्तव भी आ पहुंचे. मृतका का नाम प्रियंका गुप्ता था. उसे दुपट्टे से गला घोंट कर मारा गया था. लाश रसोई में पड़ी थी और अभी भी उस के गले में दुपट्टा लिपटा था.

उस की उम्र 30 साल के पास रही होगी. रसोई में स्लैब पर प्लेट में खाना रखा था, जो बाहर से पैक हो कर आया था. इस से अनुमान लगाया गया कि जब मृतका खाना खाने की तैयारी कर रही थी, तभी हत्यारों ने उस की हत्या कर दी थी. उस का मोबाइल भी खाने के पास रखा था. घर की अलमारियों में ताले लगे थे. घर में लूटपाट का कहीं कोई निशान नजर नहीं आ रहा था. इस से यह बात साफ हो गई कि हत्यारों का मकसद सिर्फ हत्या करना था. पुलिस को मौके से कोई भी अहम सबूत नहीं मिला था. जांच के लिए पुलिस ने मोबाइल और अन्य जरूरी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया. फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट टीम को भी मौके पर बुलवा लिया गया था. टीम ने आ कर फिंगर प्रिंट उठा लिए.

घर के बाहर काफी भीड़ जमा थी. मृतका का पति, उस के 2 भाई भी वहां मौजूद थे. सभी दुखी और परेशान थे. जिस घर में हत्या हुई थी, मृतका वहां पति के साथ किराए पर रहती थी. पूछताछ में पुलिस को पता चला कि मृतका के पति अजय गुप्ता का लकड़ी का कारोबार था. हत्या का सब से पहले पता उस के पति अजय को ही चला था. उस ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार वह उस मकान में पत्नी के साथ लगभग 2 सालों से रह रहा था. उस की पत्नी प्रियंका घरेलू औरत थी. 29 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन वह बरेली के ही सीबीगंज में रह रहे अपने भाइयों विकास और सचिन को राखी बांधने गई थी. साथ में अजय भी था.

भाइयों को राखी बांध कर कुछ देर बाद प्रियंका वहां से वापस आ गई थी. चूंकि अजय को उस दिन कारोबार के सिलसिले में बदायूं जिले के दातागंज जाना था, इसलिए लगभग साढ़े 12 बजे वह पत्नी को कार से घर के बाहर उतार कर खुद दातागंज चला गया था. शाम को उस ने प्रियंका को फोन किया तो घंटी बजती रही, लेकिन फोन नहीं उठाया गया. रात में भी बात नहीं हो सकी. अगले दिन भी अजय ने फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला तो उस के मन में आशंका हुई. शाम को लौटा तो घर का दरवाजा बंद था. दीवार फांद कर वह अंदर पहुंचा तो प्रियंका को मृत पाया.

इस के बाद उस ने प्रियंका के भाइयों और रुद्रपुर में रहने वाली अपनी साली अंजलि को फोन कर के उस के कत्ल की सूचना दी. जब प्रियंका के भाई आ गए तो उस ने पुलिस को सूचना दी. अजय के अनुसार, प्रियंका के कान से सोने के टौप्स, गले की चेन, अंगूठियां और हाथों के कड़े गायब थे. इस के अलावा घर का कोई अन्य सामान गायब नहीं हुआ था. घटनास्थल की स्थिति और अजय के बयान से पुलिस अधिकारियों ने अंदाजा लगाया कि प्रियंका की हत्या करने वाले एक से अधिक थे, क्योंकि प्रियंका खुद काफी तनदुरुस्त थी. उसे कोई एक आदमी आसानी से काबू नहीं कर सकता था, दूसरे हत्यारों को वह अच्छी तरह जानती थी. इस की वजह यह थी कि प्रियंका किसी अंजान के लिए दरवाजा नहीं खोलती थी.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाने आ कर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस ने मृतका और उस के पति अजय का मोबाइल नंबर ले लिया. एसएसपी धरमवीर यादव ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. एसपी समीर सौरभ ने सीओ असित श्रीवास्तव के नेतृत्व में मामले के खुलासे के लिए एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी मोहम्मद कासिम, एसआई अजब सिंह, अनिल कुमार, शाहिद चौहान, बृजपाल सिंह, कांस्टेबल वारिस, अशोक व मोहम्मद यामीन आदि को शामिल किया गया.

अगले दिन इस पुलिस टीम को मृतका प्रियंका और अजय के बारे में जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. पता चला कि प्रियंका अजय की असली पत्नी नहीं थी. वह एक हाईप्रोफाइल कौलगर्ल थी और अजय के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी. एक बार वह देहव्यापार के मामले में जेल भी जा चुकी थी. अजय गुप्ता शादीशुदा था और उस की पत्नी पैतृक घर में रहती थी. इस जानकारी के बाद पुलिस को अजय गुप्ता पर ही शक हुआ, क्योंकि बातें छिपाने के अलावा एक बात और भी थी, जो शक पैदा करती थी. वह बात यह थी कि शाम से ले कर जब अगली दोपहर तक प्रियंका ने फोन नहीं उठाया था तो उस ने यह बात उस के भाइयों को क्यों नहीं बताई.

उन्हें बता दिया जाता तो वे जा कर देख सकते थे. अजय एक दिन के लिए बाहर गया था और प्रियंका की हत्या हो गई थी. यह इत्तफाक भी हो सकता था और साजिश भी. एक बात यह भी थी कि अजय शादीशुदा था, इसलिए संभव था कि वह प्रियंका से पीछा छुड़ाना चाहता हो. हत्या वह खुद भी कर सकता था और किसी से करा भी सकता था. पुलिस ने उसे थाने बुला कर पूछताछ की तो उस ने हत्या में अपना हाथ होने से साफ मना कर दिया. पूछने पर प्रियंका के भाइयों ने भी बताया था कि रक्षाबंधन पर प्रियंका के साथ अजय भी उन के यहां आया था और दोनों खुश लग रहे थे.

अजय की भूमिका की जांच के लिए एक पुलिस टीम बदायूं रवाना की गई. वहां से पता चला कि अजय वास्तव में काम के सिलसिले वहां गया था. उस के मोबाइल की लोकेशन भी इस की तसदीक कर रही थी. दूसरी ओर पुलिस को प्रियंका के मोबाइल की जो काल डिटेल्स मिली, उस में कई रसूखदार लोगों के नंबर थे. पुलिस ने उन नंबरों में हत्या का राज तलाशने की कोशिश की. पुलिस ने प्रियंका के भाइयों को भी शक के दायरे में रख कर पूछताछ की. बदनामी के चलते वे भी ऐसा कर सकते थे. लेकिन इस पूछताछ में हत्या का कोई राज पता नहीं लग सका.

पुलिस के लिए मामला पेचीदा हो गया था. प्रियंका के बारे में चौंकाने वाली जानकारियां मिल रही थीं. पुलिस ने प्रियंका की बहन अंजलि से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि वह बहन के पास आती रहती थी. हत्या से कुछ दिनों पहले ही वह अपने घर गई थी. पुलिस इस बात से पूरी तरह आश्वस्त थी कि हत्यारे जानकार थे. इस के बाद पुलिस ने शक के आधार पर ऐसे जानकार लोगों की सूची बनाई, जिन का प्रियंका के घर आनाजाना था. इन में एक नाम निश्चल गुप्ता उर्फ सोनू का भी था. निश्चल अजय की बुआ का बेटा था. पुलिस को यह भी पता चला कि प्रियंका उसे कतई पसंद नहीं करती थी. पुलिस ने निश्चल का नंबर हासिल कर के जांच की तो 27 अगस्त को उस की लोकेशन बरेली में मिली.

इस के बाद अजय और प्रियंका के भाइयों से पूछताछ की गई तो सचिन ने बताया कि उस दिन निश्चल अपने दोस्तों के साथ दीदी के घर आया था. पूछने पर उस ने कहा था कि वह मिलने के लिए आया है. वह कुछ देर रुक कर चला गया था. पुलिस ने उस के मोबाइल की 30 अगस्त की लोकेशन चेक की तो चौंकी, क्योंकि उस दिन उस का मोबाइल पूरे दिन बंद रहा था. इस बात ने उसे शक के घेरे में ला दिया. उस की काल डिटेल्स में 2 अन्य नंबर भी थे. उन पर भी निश्चल की बातें होती रहती थीं, लेकिन 30 अगस्त को वे भी बंद थे. 3 सितंबर को पुलिस टीम ने निश्चल और उस के 2 संदिग्ध दोस्तों गवेंद्र और मंगतराम को हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने तीनों को थाने ला कर पूछताछ की. निश्चल पहले तो पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि प्रियंका की हत्या उसी ने अपने 2 दोस्तों के साथ मिल कर की थी. निश्चल ने पुलिस को हत्या की ऐसी वजह बताई, जिसे सुन कर पुलिस भी हैरान रह गई. दरअसल, प्रियंका उर्फ पूजा रिश्तों और काम की ऐसी दलदल में उलझ चुकी थी, जिस से महत्त्वाकांक्षाओं के चलते उस का निकलना मुश्किल हो गया था. उस की जिंदगी नदी में डोलती उस नाव की तरह थी, जो बिना मांझी के खुद के इशारों पर तैरती है.

प्रियंका उत्तराखंड स्थित रुद्रपुर के भाटवाड़ा मंडी में रहने वाले प्यारेलाल गुप्ता की बड़ी बेटी थी. युवावस्था से ही प्रियंका न सिर्फ बनसंवर कर रहती थी, बल्कि अपनी मर्जी की जिंदगी जीती थी. प्रियंका चाहती थी कि वह शानदार जिंदगी जीए, लेकिन परिवार के हालात इतने बेहतर नहीं थे. परिवार की आर्थिक तंगियां उसे कांटे की तरह चुभती थीं. करीब 9 साल पहले घर वालों ने प्रियंका का विवाह दिल्ली के मंडावली, हसनपुर डिपो के रहने वाले सत्यप्रकाश के साथ कर दिया था. प्रियंका इस विवाह से काफी खुश थी. उस ने अच्छी जिंदगी के सपने सजा लिए थे. उस की परवरिश साधारण परिवार में हुई थी. उस ने सोचा था कि विवाह के बाद उस के सभी अरमान पूरे हो जाएंगे और पति उस का हर शौक पूरा कर देगा.

लेकिन ऐसा नहीं हो सका. क्योंकि सत्यप्रकाश रेलवे स्टेशन पर स्टौल लगाता था. उस की सीमित आय थी. उस की कमाई में दिल्ली जैसे महंगे शहर में जरूरतें ही पूरी हो सकती थीं, ख्वाहिशें नहीं. प्रियंका के लिए यह बड़ा झटका था. उस के ख्वाब चकनाचूर हुए तो उस ने अपने अरमानों को वक्ती तौर पर दफन कर दिया. वह चाहती थी कि उस का पति उसे सिनेमा दिखाए और खूब शौपिंग कराए, लेकिन सत्यप्रकाश के लिए यह संभव नहीं था.

समय अपनी गति से चलता रहा. प्रियंका 2 बच्चों, एक बेटे और बेटी की मां बनी. बाद में उस की बेटी की बीमारी के चलते मौत हो गई. अच्छा इंसान वही होता है, जो हालातों से समझौता कर के जिंदगी को उस के असल रूप में स्वीकार कर ले, लेकिन प्रियंका विपरीत विचारधारा की थी. खर्चों के मुद्दे पर उस की सत्यप्रकाश से अनबन रहने लगी. सत्यप्रकाश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन छोटीछोटी बातों पर झगड़ा होना आए दिन की बात हो गई, तो रिश्तों में कड़वाहट बढ़ने लगी. आए दिन रिश्तों में शिकायतों की आंधियां चलने लगें तो उन का चलना मुश्किल हो जाता है.

प्रियंका और सत्यप्रकाश के मामले में भी ऐसा ही हुआ. शिकवेशिकायतों के बीच 2 साल पहले दोनों एकदूसरे से अलग हो गए. बेटे को सत्यप्रकाश ने अपने पास ही रख लिया. प्रियंका की जिंदगी किस दिशा में जाने वाली थी, यह वह खुद भी नहीं जानती थी. लेकिन यह भी सच था कि वह आजादी की जिंदगी चाहती थी. पति से अलगाव के बाद वह मायके आ गई. उस का यह कदम घर वालों को रास नहीं आया. लेकिन प्रियंका अपने सामने किसी दूसरे की चलने नहीं देती थी. उसी बीच वह एक युवक के संपर्क में आ गई. कुछ समय वह दिल्ली में उस के साथ रही. प्रियंका के खर्चीले स्वभाव से अजिज आ कर उस युवक ने भी उस से किनारा कर लिया.

प्रियंका के खर्चे बड़े थे, जबकि कमाई का कोई जरिया नहीं था. अपने खर्चों को पूरा करने के लिए उस ने देहव्यापार को अपना लिया. बाद में एक परिचित के माध्यम से वह बरेली आ कर गोल्डन ग्रीन पार्क कालोनी में किराए पर मकान ले कर रहने लगी. प्रियंका के कदम पूरी तरह बहक चुके थे. बेटी की हरकतों से अजिज आ कर पिता ने भी उस से किनारा कर लिया. इस के बाद उस ने खुद भी उन के पास जाना बंद कर दिया. उसे लगता था कि वह जो कर रही है, वह ठीक है. बरेली में उस के संपर्क में एक के बाद एक कई रसूखदार लोग आ गए. इन में रईसजादे भी थे और राजनीतिक लोग भी.

प्रियंका महत्वाकांक्षी तो थी ही. ऐसे लोग खुशियों के बदले उस की हसरतों को पूरा करते थे. वह नोटों में खेलने लगी. उस ने अपनी जैसी युवतियों का ग्रुप बना लिया. सभी मिल कर धंधा करती थीं. प्रियंका के यहां अकसर लोगों का आनाजाना लगा रहता था. वह भी बनसंवर कर उन के साथ जाती थी. इन सब बातों से लोगों को उस की गतिविधियों पर शक हुआ. लोग विरोध करते थे, लेकिन प्रिंयंका के संबंध चूंकि रसूखदार लोगों से थे, इसलिए सीधे विरोध की कोई हिम्मत नहीं कर पाया था. एक बार इस की भनक पुलिस को लग गई तो अगस्त, 2013 में जाल बिछा कर पुलिस ने उस के कौलगर्ल रैकेट का परदाफाश कर दिया.

पुलिस ने उसे 2 अन्य युवतियों के साथ गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. इस गिरफ्तारी के दौरान उस ने पुलिस से अपना असली नाम छिपा लिया. उस ने पुलिस को अपना नाम पल्लवी गुप्ता बताया था. कुछ दिनों बाद प्रियंका को अपने चाहने वालों की मदद से जमानत मिल गई. इस के बाद उस की मुलाकात अजय गुप्ता से हुई. अजय गुप्ता का लकड़ी का कारोबार था. विवाहित अजय का परिवार बरेली के ही सहसवानी टोला में रहता था. प्रियंका और अजय चंद मुलाकातों में एकदूसरे के नजदीक आ गए. उन के बीच प्यार हो गया.

प्रियंका को अजय के सहारे की जरूरत थी. प्रियंका जहां रहती थी, वहां उस के पास काफी लोगों का आनाजाना बढ़ गया था. वह ठिकाना भी बदलना चाहती थी. अजय की मदद से उस ने मोहल्ला खुर्रम गोटिया में बीना मिश्रा का मकान किराए पर ले लिया. अजय ने खुद को उस का पति बताया. यह बात अलग थी कि दोनों का रिश्ता लिवइन रिलेशन का था. अजय का दामन थामने के बाद भी प्रियंका ने अपना असल धंधा नहीं छोड़ा. अजय भी उस की असलियत जानता था. यह प्यार था या कुछ और, अजय ने उसे उसी रूप में स्वीकार कर लिया. प्रियंका का लाइफस्टाइल हाईप्रोफाइल था.

अजय के साथ आए दिन सिनेमा हौल जा कर फिल्में देखना और शौपिंग करना उस की आदत में शुमार था. कई रईसजादे प्रियंका के पास आतेजाते थे. वह भी अकसर ऐसे लोगों के साथ घूमने जाया करती थी. पुलिस को शक न हो, इसलिए प्रियंका कुछ महीने में अपना नंबर बदल देती थी. इस दौरान वह नशा करने की भी आदी हो गई थी. प्रियंका के 2 भाई विकास और सचिन बरेली के सीबीगंज इलाके में रहते थे. समय के साथ उस ने परिवार से भी औपचारिक रिश्ते बनाने शुरू कर दिए थे. 5 महीने पहले प्रियंका के पैर में फैक्चर हो गया था. औपरेशन के बाद वह बिस्तर पर पड़ गई थी. परेशानी में इंसान को अपनों की ही याद आती है. प्रियंका को बुरे वक्त में अपनी छोटी बहन अंजलि की याद आई.

उस ने फोन पर आग्रह किया तो वह देखभाल के लिए बरेली आ गई. अजय गुप्ता के घर उस के फुफेरे भाई निश्चल गुप्ता उर्फ सोनू का भी आनाजाना  था. निश्चल उत्तराखंड के ऊधमसिंह-नगर का रहने वाला था. वहां उस की मुलाकात अंजलि से हुई तो दोनों के बीच दोस्ती हो गई. निश्चल नौजवान युवक था और विवाहित भी. वह प्रियंका की हकीकत जानता था, इसलिए उसे ज्यादा पसंद नहीं करता था. प्रियंका भी इस बात को जानती थी, लिहाजा वह भी निश्चल को ज्यादा महत्व नहीं देती थी. यहां तक कि उसे उस का अपने घर आना भी पसंद नहीं था.

प्रियंका को अंजलि से उस की दोस्ती खटकती थी. निश्चल को पता चला कि प्रियंका अंजलि को भी अपने पेशे में उतारना चाहती है तो उस ने अंजलि को सख्ती से मना कर दिया. प्रियंका को भी पता चल गया कि अंजलि निश्चल की बातों में आ गई है. एक दिन किसी बात पर निश्चल का प्रियंका से झगड़ा हो गया. निश्चल ने प्रियंका को झिड़क दिया, ‘‘तुम ज्यादा बोलने लायक नहीं हो. मैं तुम्हारी हकीकत जानता हूं. अंजलि तुम्हारे पास रहेगी तो तुम उसे भी अपने जैसा कर दोगी.’’

प्रियंका ने उसे आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा अंजलि से क्या मतलब, तुम कौन होते हो हमारे मामले में दखल देने वाले.’’

‘‘वह मेरी दोस्त है.’’ निश्चल ने कहा.

‘‘दूसरों को सिखाने के बजाय अपने दामन में झांक कर देखो. अपनी पत्नी को ही ले लो?’’

‘‘मेरी पत्नी में क्या कमी है? वह तुम से लाख गुना अच्छी है.’’

‘‘वह खुद भी कौलगर्ल है.’’ प्रियंका ने कहा.

यह सुन कर निश्चल को गुस्सा आ गया, ‘‘तुम्हें शरम आनी चाहिए ऐसी बकवास करते हुए. आइंदा ऐसी बात की तो अच्छा नहीं होगा.’’

‘‘पत्नी के बारे में सुन कर इतना बुरा लगा? मैं एक नहीं, हजार बार कहूंगी.’’

बात बढ़ गई. अंजलि ने किसी तरह दोनों को समझा कर मामला शांत किया. इस घटना के बाद दोनों के रिश्ते और भी कड़वे हो गए.

प्रियंका निश्चल को फूटी आंख पसंद नहीं करती थी. निश्चल को प्रियंका की बातें कांटे की तरह चुभी थीं. बाद में उसे पता चला कि वह उस की पत्नी को बेवजह बदनाम कर रही है. ऐसी बातों के बाद निश्चल ने प्रियंका के घर आनाजाना कम कर दिया, लेकिन इस के बाद भी उसे ऐसी बातें पता चलीं तो उस ने सोच लिया कि वह प्रियंका को इस बार धमकी भरे अंदाज में समझाएगा. अगस्त के पहले सप्ताह में अंजलि वापस अपने घर रुद्रपुर चली गई. निश्चल अंजलि से बातें किया करता था. एक दिन बातोंबातों में अंजलि ने निश्चल को बताया कि उस की पत्नी के बारे में अंजलि अजीब बातें कर रही थी. इस बात ने निश्चल के दिल में प्रियंका के प्रति पनप रहे गुस्से की आग में घी का काम किया.

वह उस से नफरत करने लगा. निश्चल की दोस्ती अपने ही जिले के नारायन कालोनी निवासी गवेंद्र गुप्ता और गदरपुर सिमैनी निवासी मंगतराम से थी. निश्चल ने एक दिन अपने दोस्तों को बैठा कर कहा, ‘‘तुम मेरे दोस्त हो, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद?’’ मंगतराम ने पूछा तो निश्चल ने प्रियंका की कड़वी बातें और उस की हकीकत बता कर कहा, ‘‘जो भी हो, मैं उसे एक बार समझाना चाहता हूं. मान गई तो अच्छा है वरना उस का किस्सा खत्म कर दूंगा. तुम लोगों को भी मेरे साथ चलना होगा.’’

‘‘ठीक है, हम तुम्हारा साथ देंगे.’’ दोनों दोस्तों ने कहा.

26 अगस्त को निश्चल अपने घर बुआ के घर जाने का बहाना कर के बरेली आ गया. उस रात वह अजय गुप्ता के पैतृक घर पर रुका. अगले दिन उस ने प्रियंका के घर जाने की ठान ली. निश्चल जानता था कि प्रियंका दिन में घर में अकेली ही होती है. उस के कहने पर अगले दिन यानी 27 अगस्त को उस के दोनों दोस्त भी मोटरसाइकिल से बरेली आ गए. निश्चल रुद्रपुर जाने की बात कह कर बुआ के घर से चला गया. तीनों स्टेशन के बाहर एकत्र हुए और वहां से वे प्रियंका के घर पहुंचे. इत्तफाक से उस समय प्रियंका का छोटा भाई सचिन उस से मिलने आया था. उसे देख कर उन का इरादा बदल गया. निश्चल के साथ चूंकि उस के दोस्त भी थे, इसलिए प्रियंका ने कड़वाहट जाहिर नहीं कि और उन्हें चायनाश्ता कराया. इस के बाद तीनों चले गए.

उस दिन की योजना फेल होने के बाद निश्चल किसी और मौके की तलाश में लग गया. 29 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार था. निश्चल को पता चला कि अजय गुप्ता उस दिन काम के सिलसिले में बदायूं जाने वाला है. निश्चल को लगा कि यह अच्छा मौका है. 29 अगस्त को अजय गुप्ता प्रियंका को कार से सीबीगंज उस के भाइयों के पास ले गया. वहां प्रियंका ने अपने भाइयों को राखी बांधी. इस के बाद अजय गुप्ता उसे खुर्रम गौटिया वाले घर पर छोड़ कर खुद बदायूं चला गया. दोपहर करीब ढाई बजे निश्चल अपने दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल से प्रियंका के घर पहुंचा. खतरे से अंजान प्रियंका ने उन के लिए दरवाजा खोल दिया. उस वक्त वह अकेली थी. तीनों अंदर आ कर बैठे तो निश्चल मुद्दे की बात पर आ गया.

वह धमकी भरे लहजे में प्रियंका से बोला, ‘‘तुम अपनी आदत से बाज नहीं आ रही हो और मेरी पत्नी को बदनाम कर रही हो. मैं तुम्हें आखिरी बार समझा रहा हूं, अगर आज के बाद मैं ने कुछ सुना तो अच्छा नहीं होगा.’’

उस की बात सुन कर प्रियंका भड़क उठी, ‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है, जो मुझे धमका रहा है. तू जानता नहीं मैं क्या चीज हूं?’’

‘‘बकवास बंद कर, मैं तुझे भी जानता हूं और तेरी औकात भी. एक कौलगर्ल है तू, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

यह कहने के साथ ही आवेश में निश्चल कुर्सी से खड़ा हो गया. प्रियंका आगबबूला हो उठी. वह गालियां देते हुए बोली, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत. रुक मैं अभी अजय को फोन कर के बताती हूं.’’

इस के साथ वह रसोई की ओर बढ़ी. उस का मोबाइल रसोई में रखा था, क्योंकि जिस समय निश्चल आया था, वह रसोई में अपने लिए खाना लगा रही थी. निश्चल समझ गया कि प्रियंका मानने वाली नहीं है. बात और बिगड़ सकती थी. वह अजय को फोन करती उस से पहले ही तीनों उस के पीछे रसोई में पहुंच गए. औपरेशन के बाद प्रियंका का पैर अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था. लंगड़ाते हुए ठोकर लगने से वह रसोई में गिर गई. निश्चल ने अपने दोस्तों से कहा, ‘‘इसे निपटा देते हैं, वरना यह हमें फंसवा देगी.’’

तीनों तुरंत सहमत हो गए. निश्चल ने उठने की कोशिश कर रही प्रियंका को पलक झपकते दबोच कर उस के गले में पड़ा दुपट्टा पकड़ कर कस दिया. उस ने हाथपैर चलाए तो दोनों दोस्तों ने पकड़ लिए. प्रियंका ज्यादा विरोध नहीं कर पाई और जिंदगी से हाथ हाथ धो बैठी. प्रियंका के मरने के बाद तीनों ने उस के गहने उतार लिए. हत्या के बाद निश्चल ने घर में रखा ताला उठाया और बाहर लगा दिया. तीनों वापस चले गए. इस बीच रास्ते में उन्होंने घर की चाबी एक नाले में फेंक दी. पुलिस की जांच से बचने के लिए उन्होंने उस दिन अपने मोबाइल बंद कर रखे थे.

तीनों को उम्मीद थी कि प्रियंका की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी पकड़े नहीं जाएंगे, लेकिन मोबाइल औफ करने वाली गलती उन्हें भारी पड़ गई. उधर अगले दिन अजय गुप्ता वापस आया तो हत्या का पता चला. इस बीच उस ने कई बार प्रियंका को फोन किया था, लेकिन कोई काल रिसीव नहीं हुआ था. विस्तृत पूछताछ के बाद पुलिस ने निश्चल और उस के साथियों के कब्जे से प्रियंका के लूटे गए गहने और हत्या में प्रयुक्त मोटरसाइकिल बरामद कर ली. उन के पकड़े जाने के बाद अजय गुप्ता ने राहत की सांस ली, क्योंकि पुलिस उस पर संदेह कर रही थी. पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत तें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक किसी की भी जमानत नहीं हो सकी थी. प्रियंका ने महत्वाकांक्षाओं व आजादियों में न पड़ कर समय रहते खुद को संभाल लिया होता और विश्वास कर के निश्चल के लिए दरवाजा नहीं खोला होता तो ऐसी नौबत नहीं आती. Hindi Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

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