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निर्देशक: पुलकित

निर्माता: गौरी खान, गौरव वर्मा

संपादन: जुबिन शेख

छायांकन: कुमार सौरभ

ओटीटी: नेटफ्लिक्स

कलाकार: भूमि पेडनेकर, संजय मिश्रा, साई ताम्हणकर, आदित्य श्रीवास्तव, दुर्गेश कुमार, चितरंजन त्रिपाठी, सूर्य शर्मा, समता सुदीक्षा

नेटफ्लिक्स पर रिलीज ‘भक्षक’ (Bhakshak) सत्य घटना से प्रेरित फिल्म है. इस फिल्म को शाहरुख खान (Shahrukh Khan) की रेड चिलीज एंटरटेनमेंट लिमिटेड (Red Chilies Entertainment Limited) ने प्रोड्यूस किया है. इसे ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स (Netflix) के लिए बनाया गया है.

फिल्म में भूमि पेडनेकर (Bhumi Pednekar) का मुख्य रोल है. यह वैशाली सिंह नाम से एक पत्रकार की भूमिका में है. कलाकार आदित्य श्रीवास्तव (Aditya Shrivastava)  को बंसी साहू के नाम से प्रस्तुत किया गया है. बंसी साहू को फिल्म की कहानी में बालिकाओं के आश्रय गृह का संचालक दिखाया गया है.

बंसी साहू पत्रकार भी है. फिल्म में इस की भूमिका खलनायक के रूप में है. संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) ने भास्कर सिंह के नाम से न्यूज चैनल के फोटोग्राफर की भूमिका निभाई है. साई ताम्हनकर एसपी जसमीत कौर, सूर्य शर्मा ने अरविंद सिंह नाम से फिल्म में अपना रोल अदा किया है. दुर्गेश कुमार ने गुप्ताजी के रूप में एक मुखबिर की भूमिका निभाई है. दानिश इकबाल ने सुरेश सिंह का रोल किया है. यह मेहमानजी के नाम से भी फिल्म में चर्चित है.

शाहरुख खान की कंपनी रेड चिलीज ने पिछली फिल्में ‘जवान’ और ‘डंकी’ बनाई हैं. दोनों नोट छापने वाली फिल्में रहीं, लेकिन फिल्म ‘भक्षक’ फ्लौप फिल्म है.

फिल्म की हीरोइन भूमि पेडनेकर है. फिल्म ‘पति, पत्नी और वो’ के बाद से उस का कमाल न सिनेमाघरों में दिखा और न ही ओटीटी पर. महाराष्ट्र के पूर्वमंत्री सतीश पेडनेकर की इस बिटिया ने अपने पिता के देहांत के बाद पारिवारिक, सामाजिक और व्यवसायिक जीवन में काफी संघर्ष किया है.

‘भक्षक’ एक सनसनीखेज रोमांचक फिल्म है. इस में न तो रोमांच है और न ही खोजबीन. इस कारण यह फिल्म थकाऊ और थोड़ी बोरिंग बन जाती है. कहानी कहने में भी जल्दबाजी की गई है. यहां तक कि डर का भाव भी ठीक से उभर नहीं पाता है. जबकि ये सारी चीजें, इस तरह की फिल्म के लिए सब से अहम तत्त्व हैं.

पूरी फिल्म में शायद ऐसा कोई मौका नहीं आया, जब दर्शक उस से भावनात्मक रूप से जुड़ पाते. वैशाली के पति के किरदार को ठीक से न निभाने के कारण स्क्रीन पर ज्यादा वक्त नहीं दिया गया है.

फिल्म में एक सीन है, जहां एक महिला पुलिस अधिकारी वैशाली से कहती है कि कानून से उन के हाथ बंधे हुए हैं. सबूत दीजिए तो गिरफ्तारी होगी. यह बात एक पुलिस अधिकारी कह रही है, जिस का काम ही सबूत इकट्ठा करना है. संजय मिश्रा फिल्म में खो से जाता है, जबकि ‘सीआईडी’ फेम आदित्य श्रीवास्तव एक दुष्ट विलेन के रोल में छाप नहीं छोड़ पाता.

साई ताम्हणकर एक खास भूमिका में है, बंसी साहू को बिना किसी परेशानी के पकड़ लेती है, जिस से कुछ सवाल भी बिना उत्तर के रह जाते हैं. जैसे ही बंसी साहू के पात्र को जब पता चलता है कि बालिका गृह पर पुलिस की छापेमारी होनी है तो वह भागता क्यों नहीं है. सबूत मिटाने का प्रयास क्यों नहीं करता है.

गिरफ्तार होने के बाद भी उस ने अपने आकाओं को फंसाने के लिए भी किसी तरह का कोई भी बयान नहीं दिया. पुलिस का पक्ष भी काफी कमजोर लिखा गया है. फिल्म में जसमीत कौर के किरदार को ठीक से गढ़ा नहीं गया है.

कौन करता है बालिका गृह में यौन शोषण

‘भक्षक’ की कहानी की शुरुआत काफी दर्दनाक तरीके से होती है. दिखाते हैं कि एक लड़की दर्द से चिल्ला रही थी. बच्चा बाबू नाम का आदमी उस पर हंस रहा है. तभी थोड़ी देर बाद सोनू नाम का आदमी आता है. तब पता चलता है कि बच्चा बाबू उस लड़की के साथ दुष्कर्म कर रहा था.

उस बच्ची ने बच्चा बाबू के हाथ में काट लिया, जिस से गुस्से में उस ने बच्ची के गुप्तांग में मिर्ची लगा दी. इस के कारण वह लड़की दर्द के मारे चिल्ला रही थी.

प्रताडऩा का ऐसा तरीका होना कहीं सुना भी नहीं गया. मिर्च पाउडर डालने वाले के हंसने में भी वो अदाकारी नहीं, जिस तरह एक कलाकार में होनी चाहिए.

यह सीन एक होटल का है. होटल के कमरे में लाल मिर्च पाउडर होने का प्रश्न नहीं है. यदि कोई दुष्कर्म करने के इरादे से किसी लड़की को किसी होटल में ले कर जाता है तो लाल मिर्च का पाउडर ले कर क्यों जाएगा? क्या उसे पहले से पता थी कि लड़की उसे दुष्कर्म करने नहीं देगी.

कहानीकार व फिल्म निर्माता ने इस सीन में एकदम अतिशयोक्ति प्रस्तुत की है. इस तरह दर्शकों का दिल दहलाने की मंशा सफल नहीं हुई. अब उस लड़की की हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाती है. तब सोनू किसी आदमी को फोन कर के सारी बात बताता है. थोड़ी देर बाद सोनू और बच्चा बाबू उस लड़की की हत्या कर देते हैं.

वह श्मशान में जा कर उस लड़की की लाश को एक आदमी से जलाने के लिए कहते हैं. बदले में वह उसे पैसे भी देते हैं. सोनू उस आदमी को कहता है कि यह काम बंसी साहू का है. यह बात श्मशान के आदमी को आतंकित करने के लिए बंसी साहू के गुर्गों ने कही. अगर कोई पूछे तो कुछ भी बताना मत.

इतना सुन कर भी श्मशान के आदमी पर डर का भाव स्पष्ट नहीं होता. उस के बाद वह आदमी लड़की की लाश को जला देता है. बंसी साहू अगर इतना ही कुख्यात था तो पैसे क्यों दिए? यहां डायरेक्टर ने कई लाशें श्मशान में जलती हुई दिखाई हैं.

समय रात 3 बजे के बाद का है. माना जाता है कि सूरज छिपने के बाद किसी का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता. फिर ऐसा कौन सा श्मशान था कि कई लाशें पहले से ही इतनी रात में जलाई जा रही थीं. फिल्म निर्माता सही तरीके से श्मशान के दृश्य को फिल्मा नहीं सके. श्मशान के दृश्य को प्रमाणित करने के लिए निर्माताओं ने रात 3 बजे के बाद ही लाशें जलने का सीन फिल्मा दिया.

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अगले सीन में वैशाली सिंह नाम की रिपोर्टर को दिखाते हैं, जिस को आधी रात को किसी गुप्ता नाम के आदमी का फोन आता है, जोकि उस का खबरी था. वैशाली सिंह अब गुप्ताजी से मिलती है.

वह वैशाली को सरकारी औडिट की रिपोर्ट देता है, जिस में मुनव्वरपुर के चाइल्ड सेंटर में बच्चियों के साथ हो रहे दुष्कर्म का उल्लेख था. वैशाली पहले तो इस रिपोर्ट को लेने से मना कर देती है. कहती है कि इन सब पर ऐक्शन लेने का काम पुलिस का है.

गुप्ताजी कहते हैं कि न्यूज रिपोर्टर का काम होता है सच को बाहर लाना. आप अपना काम कीजिएगा. पुलिस वाले इस मामले में कुछ भी नहीं कर रहे हैं. इस कांड में काफी बड़ेबड़े लोग शामिल हैं.

वैशाली गुप्ताजी की यह फाइल ले कर कहती है कि आप को इस के पैसे जल्दी ही मिल जाएंगे. फिल्म में यह सीन देख कर एक पत्रकार ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बिहार में कोई भी पत्रकार या चैनल वाले ऐसी सूचनाएं देने वाले को रुपए नहीं देते हैं. फिल्म का यह सीन पत्रकारों का अपमान करता है.

ऐसा चलन बिहार में कभी नहीं रहा. फिल्म में रात में खबरची को फोन करते दिखाया है. यह काम दिन में भी हो सकता था. वैशाली अकेले रात में ही गुप्ताजी से मिलने भी पहुंच जाती है. यह ऐसा कोई खुफिया मामला नहीं था, जिसे रात में फिल्माया जाना बहुत जरूरी था. दूसरी बात यह कि उस का अपना चैनल  इस स्थिति में नहीं है कि उस में इतनी आमदनी हो कि वह अपना ही गुजारा कर सके.

गुप्ताजी की डिमांड 51 हजार रुपए इस खबर की थी. फिर इतनी महंगी खबर का भुगतान कहां से किया जाता. इस से तो ऐसा लगता है कि खबरें लेने और फिर उसे चैनल पर दिखाने का धंधा चल रहा है. अगले दिन अब वैशाली उस रिपोर्ट को पढ़ती है, जिस से वैशाली को पता चलता है कि मुनव्वरपुर की बच्चियों के साथ काफी गलत हो रहा है.

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कौन है दबंग बंसी साहू

अगले सीन में भास्कर सिन्हा को दिखाते हैं, जो वैशाली का कैमरामैन है. तब पता चलता है कि वैशाली का एक कोशिश नाम का न्यूज चैनल है, जिस के अभी ज्यादा दर्शक नहीं हैं, पर वैशाली का सपना है कि वह अपने चैनल को काफी बड़ा बनाएगी. वैशाली अब अपने कैमरामैन भास्कर के साथ मिल कर अपने ‘कोशिश चैनल’ पर डेली न्यूज की रिपोर्टिंग करती है.

फिर वैशाली के घर में हम उस के पति अरविंद को देखते हैं, जोकि पोस्ट औफिस में काम करता है. वैशाली और अरविंद की बातों से पता चलता है कि वैशाली का चैनल अच्छा नहीं चल रहा है और अरविंद के परिवार वाले वैशाली पर बच्चा पैदा करने के लिए दबाव बना रहे हैं. पर वैशाली का कहना है कि वह कुछ हासिल करने के बाद ही बच्चा पैदा करेगी.

पत्रकारिता के लिए या न्यूज चैनल चलाने के लिए किसी चैलेंज को स्वीकार करने के लिए समाज में ऐसा कहीं नहीं देखा गया कि शादीशुदा होने के बाद भी बच्चा न पैदा किया जाए.

मुनव्वरपुर का मामला तो अभी संज्ञान में आया था. 6 साल पहले तो ऐसा कोई भी मिशन नहीं था, जिस के लिए बच्चा पैदा न करने का संकल्प लिया जाए. अगले दिन वैशाली भास्कर के साथ मुनव्वरपुर निकल जाती है. ताकि वह मुनव्वरपुर की बालिका सेवा गृह में बच्चे के साथ दुष्कर्म के बारे में कुछ पता लगा सके.

जैसे ही वैशाली और भास्कर बालिका सेवा गृह पहुंचते हैं. वैशाली अपने मोबाइल से फोटो खींच रही है, जहां बिल्डिंग के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा, जिस से कोई खोजी मामला उजागर हो सके. निर्माता और फिल्म के अन्य सहयोगी फिल्म में कैमरामैन भास्कर को दिखा रहे हैं. मोबाइल से फोटो खींचते हुए वैशाली को. क्या मजाक है. इतनी भी इन में समझ नहीं है.

तब वहां पर सोनू आ कर वैशाली और भास्कर को अपने निजी क्षेत्र में फोटो खींचने से मना कर के उन्हें वहां से भगा देता है. उस अकेले साधारण से दिखने वाले सोनू से ये लोग किसी तरह का कोई प्रतिरोध नहीं करते और चुपचाप खिसक जाते हैं.

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