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महादेव बुक से जुड़ते गए लोग

औनलाइन गेमिंग वाले सट्टे के कई ऐप्स पहले से चर्चा में थे, लेकिन महादेव बुक उन से अलग और आकर्षक था. इस के काम करने का तरीका लोगों को बहुत जल्द ही पसंद आ गया था. साथ ही यह प्रमोटरों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुरगी से कम नहीं था. क्योंकि इस के जरिए लोग अलगअलग किस्म के गेम्स में सट्टा लगवाने लगे थे. वे थे— क्रिकेट, टेनिस, बैडमिंटन, फुटबाल जैसे फील्ड और कोर्ट गेम्स. इन के अलावा पोकर, तीन पत्ती, ड्रैगन टाइगर नाम के ताश के खेल भी थे.

यही नहीं, इस ऐप में लोगों से भारत में होने वाले चुनावों में भी सट्टा लगवाने के तरीके भी थे. जैसे, कौन कितनी सीट जीतेगा टाइप का सट्टा था. सट्टा सही हुआ तो जीत संभव और गलत हुआ तो हार गए. 100 रुपए का लगाया तो आप जीतने पर 100 रुपए मिलते थे. हारने पर 100 रुपए देने होते थे. यानी जो रुपया लगाया, वह नहीं मिलने वाला था. जब यह ऐप लांच हो गया तो लोगों ने धीरेधीरे पैसा लगाना शुरू किया.

धीरेधीरे ऐप का कारोबार बढऩे लगा. लोग उस की गिरफ्त में आने लगे. मूर्ख बनने लगे. ठगे जाने लगे. उन की ठगी उसी तरह होती थी, जैसी ठगी के शिकार कभी सौरभ और रवि हुए थे. शुरू में थोड़ा पैसा लगाने पर प्रौफिट होता था. बाद में आदत लग जाने पर लोग मोटा पैसा लगाने लगे थे. फिर तो समझें कि उन का डूबना तय था.

कहने को तो महादेव बुक का हैडऔफिस दुबई में बनाया गया था और दोनों प्रमोटर यानी सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल दुबई में ही बैठते थे. वहीं से कामधंधा संभालते थे, जबकि भारत में महादेव बुक का काम पैनल के जरिए होता है. इन पैनल को ब्रांच भी कहा जाता था. ये किसी बड़ी कंपनी के क्षेत्रीय या सिटी औफिस की तरह काम करते थे.

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