किचन में खाना बना रही सुजाता को उस के फोन ने आवाज दी, जो डाइनिंग टेबल पर रखा था. सुजाता ने अपने आटे से सने हाथों को पानी से साफ किया और अपने फोन की ओर बढ़ी.

सुजाता ने देखा कि किसी अनजान नंबर से फोन आया है. पहली बार तो उस ने फोन उठाया ही नहीं, पर जब दोबारा फोन बजा तो फोन उस के हाथ में ही था, सो झट से उठा कर सुजाता ने पूछा, ‘‘हैलो... कौन बोल रहा है?’’

सामने से एक अनजान आवाज आई, ‘और भई सुजाता, आजकल तो लगता है भूल ही गई हो हमें?’

‘‘हां... पर आप कौन हैं?’’

‘अब आप तो फोन करेंगी नहीं, तो सोचा कि क्यों न हम ही कर लें,’ उस अनजान आदमी ने कहा.

‘‘पर माफ कीजिएगा, आप हैं कौन? आप को पहचाना नहीं,’’ सुजाता ने कहा.

‘अच्छा चलिए, अब आप ही बताइए कि मैं कौन हूं? देखता हूं, आप मुझे पहचान पाती हैं या नहीं?’

‘‘अच्छा तो आप बताइए कि आप मुझे कब से जानते हैं और कैसे जानते हैं?’’ सुजाता ने पूछा.

‘अरे, हम तो आप को बचपन से जानते हैं. बस, आप ही भूल गई हैं.’

‘‘तुम कहीं सचिन तो नहीं?’’

‘जी हां, अब कैसे पहचान लिया?’

‘‘तुम सच में सचिन ही हो?’’ सुजाता ने हैरानी से पूछा.

‘क्यों, कोई शक है क्या?’

‘‘अरे... नहीं यार, मैं ने तो बस ऐसे ही तुक्का मारा और सही लग गया. यह बताओ कि तुम्हारी आवाज कैसे बदल गई है पहले से?’’

‘बदलेगी नहीं क्या... इतने दिन भी तो हो गए हैं,’ सचिन ने बताया.

‘‘और बताओ क्या चल रहा है आजकल? वैसे भी कालेज खत्म होने के बाद आज बात हो पा रही है हमारी,’’ सुजाता ने कहा.

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