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विजय और प्रदीप ज्यादा नहीं पढ़ पाए थे. शादी के बाद दोनों भाई खेती करने के अलावा खर्चे के लिए गांव में ही घर की जरूरतों के सामानों की एक दुकान खोल ली थी. दोनों भाई भले ही नहीं पढ़ पाए थे, लेकिन वे अपने छोटे भाइयों संदीप और देवेंद्र की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे.

इसी का नतीजा था कि संदीप ने बीटेक कर लिया. इस के बाद उसे दिल्ली में नौकरी मिल गई तो वह देवेंद्र को भी अपने साथ दिल्ली ले आया. देवेंद्र नौकरी करने के साथसाथ सीए की तैयारी भी कर रहा था. विजय का अपना परिवार तो व्यवस्थित हो गया था, लेकिन बड़ी बहन मंजू के पति की मौत हो जाने से वह परेशानी में पड़ गई. उस के 3 बच्चे थे, 2 बेटे शिवम और दीपक तथा एक बेटी मानसी.

पति की मौत से मंजू को खर्चा चलाना मुश्किल हो गया तो विजय भांजों की पढ़ाई का नुकसान न हो, यह सोच कर उन्हें अपने घर ले आया. उधर मंजू को एक स्कूल में आया की नौकरी मिल गई तो उस की परेशानी थोड़ी कम हो गई.

शिवम ने मामा के घर रह कर इंटर तक की पढ़ाई की. बहन की परेशानी को देखते हुए विजय उसे अपने घर रख कर पढ़ा तो रहा था, लेकिन वह भांजे से खुश नहीं था. इस की वजह यह थी कि उस के खर्चे बहुत ज्यादा थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रुपए कहां खर्च करता है.

जब तक शिवम ननिहाल में रहा, तब तक थोड़ाबहुत मामा के अंकुश में रहा. लेकिन 12वीं पास कर के वह मां के पास आ गया तो पूरी तरह से आजाद हो गया. फिरोजाबाद में उस ने बीएससी करने के लिए एक कालेज में दाखिला ले लिया.

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