13 अगस्त, 2018 को इस मामले में अदालत ने पीडि़त नसीम अंसारी के अधिवक्ता मनुज चौधरी की दलील सुनने के बाद थाना कुंडा की पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए. नसीम अंसारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि रहमत जहां ने उसे बिना तलाक दिए ही उस के साथ निकाह किया है, जो शरीयत के हिसाब से गलत है.
बदल गई रहमत जहां
दूसरी ओर रहमत जहां का कहना था कि उस ने नसीम की रजामंदी से ही शफी के साथ निकाह किया था. आर्थिक तंगी के चलते नसीम ने शफी अहमद से इस के बदले हर माह घर खर्च के लिए 12 हजार रुपए देने का समझौता किया था, जो शफी अहमद उसे हर माह दे रहे हैं. इस में उस का कोई कसूर नहीं. इस वक्त वह कानूनन शफी की पत्नी है और रहेगी. उस के दोनों बच्चे भी उसी के साथ रह रहे हैं, जिन्हें शफी के साथ रहने में कोई ऐतराज नहीं.
बहरहाल, नसीम अहमद की ओर से यह मामला थाना कुंडा में दर्ज हो गया. कुंडा थाने के थानाप्रभारी सुधीर ने सच्चाई सामने लाने के लिए जांच शुरू कर दी. इस मामले पर शुरू से प्रकाश डालें तो कहानी कुछ और ही कहती है.
उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का गांव सरबरखेड़ा थाना कुंडा क्षेत्र में आता है. सरबरखेड़ा मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला गांव है. अब से कुछ साल पहले यह गांव बहुत पिछड़ा हुआ था. गांव में गिनेचुने लोगों को छोड़ कर अधिकांश लोग मजदूरी करते थे. लेकिन गांव के पास में नवीन अनाज मंडी बनते ही गांव के लोगों के दिन बहुरने लगे.
अनाज मंडी बनने के बाद मजदूर किस्म के लोगों को घर बैठे ही मजदूरी मिलने लगी तो यहां के लोगों के रहनसहन में काफी बदलाव आ गया. बाद में गांव के पास हाईवे बनते ही जमीनों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं. यहां के कम जमीन वाले काश्तकारों ने अपनी जमीन बेच कर अपनेअपने कारोबार बढ़ा लिए.
इसी गांव में दादू का परिवार रहता था. दादू के पास जुतासे की नाममात्र की जमीन थी जबकि परिवार बड़ा था, जिस में 5 लड़के थे और 2 लड़कियां. जमीन से दादू को इतनी आमदनी नहीं होती थी कि अपने परिवार की रोजीरोटी चला सके. इस समस्या से निपटने के लिए दादू ने अनाज मंडी में अनाज खरीदने बेचने का काम शुरू कर दिया.
दादू गांवगांव जा कर धान, गेहूं खरीदता और उसे एकत्र कर के अनाज मंडी में ला कर बेच देता था. इस से उस के परिवार का पालनपोषण ठीक से होने लगा. दादू का काम मेहनत वाला था. इस काम से आमदनी बढ़ी तो उस के खर्च भी बढ़ते गए. पैसा आया तो दादू को शराब पीने की लत गई.
धीरेधीरे वह शराब का आदी हो गया, जिस की वजह से वह फिर आर्थिक तंगी में आ गया. जब घर के खर्च के लिए लाले पड़ने लगे तो वह जुआ खेलने लगा. दरअसल, उस की सोच थी कि वह जुए में इतनी रकम जीत लेगा कि घर के हलात सुधर जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा. वह मेहनत से जो कमाता जुए की भेंट चढ़ जाता.
उसी दौरान उस की मुलाकात नसीम से हुई. नसीम में जुआ खेलने की लत तो नहीं थी, लेकिन शराब पीने का वह भी आदी था. नसीम सरबरखेड़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर गांव बाबरखेड़ा का रहने वाला था. नसीम अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर का था. तीनों भाइयों पर जुतासे की थोड़ीथोड़ी जमीनें थीं. तीनों ही अलगअलग रहते थे.
कई साल पहले नसीम का निकाह थाना ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद में आने वाले गांव राजपुरा नंगला टाह निवासी सुगरा के साथ हुआ था.
समय के साथ सुगरा 6 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 लड़के और 4 लड़कियां थीं. थोड़ी सी जुतासे की जमीन से नसीम के बड़े परिवार का खर्च मुश्किल से चलता था. इस के बावजूद नसीम को शराब पीने की गंदी आदत पड़ गई थी. वह शराब पीने के चक्कर में इधरउधर चक्कर लगाता रहता था.
उसी दौरान उस की मुलाकात दादू से हो गई. शराब पीनेपिलाने के चलते दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए. जल्दी ही दोनों की दोस्ती हो गई. दोस्ती के चलते दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. उस वक्त तकदादू की बेटी रहमत जहां जवानी के दौर से गुजर रही थी. रहमत जहां देखनेभालने में बहुत सुंदर थी.
नसीम ने चलाया चक्कर
हालांकि नसीम का दादू के साथ दोस्ती का रिश्ता था, लेकिन जब नसीम ने रहमत जहां को देखा तो उस की नीयत में खोट आ गया. वह उसे गंदी नजरों से देखने लगा. रहमत जहां भी नसीम की निगाहों को परखने लगी थी. रहमत जहां को यह मालूम नहीं था कि नसीम शादीशुदा है.
लेकिन जब वह उस की नजरों में प्रेमी बन कर उभरा तो उस ने अपने दिल में उस के लिए गहरी जगह बना ली. प्रेम का चक्कर शुरू हुआ तो दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे.
दादू की बेटी क्या खिचड़ी पका रही है, उस के घर वालों को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी. उन्हीं दिनों दादू का बड़ा लड़का बीमार पड़ गया. बीमारी की वजह से उसे कई दिन तक अस्पताल में भरती रहना पड़ा. उस के इलाज के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी जबकि उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था.
कुछ दिन पहले ही नसीम ने अपनी जुतासे की थोड़ी सी जमीन बेची थी. उस के पास जमीन का कुछ पैसा बचा हुआ था. यह बात दादू को भी पता थी. दादू ने अपनी मजबूरी नसीम के सामने रखते हुए मदद करने को कहा तो नसीम ने उस के लड़के के इलाज के लिए कुछ रुपए उधार दे दिए. उन्हीं रुपयों से दादू ने अपने बेटे का इलाज कराया. उस का बेटा ठीक हो गया.
इस के कुछ दिन बाद नसीम ने दादू से अपने पैसे मांगे तो उस ने मजबूरी बताते हुए फिलवक्त पैसे न देने की बात कही. नसीम दादू की मजबूरी सुन कर शांत हो गया. नसीम के सामने दादू से बड़ी मजबूरी आ गई थी. लेकिन दादू की बेटी रहमत जहां को चाहने की वजह से वह दादू से कुछ कह भी नहीं सकता था.
यह बात दादू भी समझता था कि नसीम उस की बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है लेकिन वह नसीम के अहसानों तले दबा हुआ था, इसलिए उस के सामने मुंह खोल कर कुछ भी नहीं कह सकता था. अपनी मजबूरी के आगे दादू ने नसीम और अपनी बेटी रहमत जहां को अनदेखा कर दिया.