इस के बाद थाना प्रभारी रामऔतार ने मृतक मनीष के पिता कल्लू की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत राजेश कुरील के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में इस दोहरे हत्याकांड के पीछे एक ऐसी औरत की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने शरीर सुख के लिए अपना ही घर उजाड़ दिया.
उत्तर प्रदेश के कानपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर नर्वल थाने के अंतर्गत एक गांव है रायपुर. बाबूराम कुरील अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रन्नो के अलावा 2 बेटियां अनीता, सुनीता तथा एक बेटा अरविंद था.
बाबूराम मनरेगा में मजदूरी करता था. उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस ने बड़ी बेटी अनीता का विवाह कर दिया था.
अनीता से 3 साल छोटी सुनीता थी. वह बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. सुनीता के युवा होते ही बाबूराम उस की शादी के लिए चिंतित रहने लगा. दौड़धूप और रिश्ते नातेदारो के सहयोग से उसे राजेश पसंद आ गया.
राजेश के पिता मौजीलाल कुरील नरौरा गांव के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी चंद्रावती के अलावा 2 बेटियां आशा, बरखा तथा बेटा राजेश था. मौजीलाल के पास 5 बीघा खेती की जमीन थी. राजेश पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था. राजेश, ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था, लेकिन शरीर से हष्टपुष्ट था.
मौजीलाल अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. राजेश अभी कुंवारा था. बाबूराम कुरील जब उस के पास सुनीता का रिश्ता ले कर आया तो मौजीलाल ने स्वीकार कर लिया.
अंतत: 7 जून, 2008 को राजेश के साथ सुनीता का विवाह हो गया. कुछ ही दिनों में सुनीता ससुराल के माहौल में रम गई. ससुराल में उसे सभी ने खूब प्यार दिया. शादी के एक साल बाद ही सुनीता एक बेटे की मां बन गई.
बेटे के जन्म के बाद ससुराल में सुनीता का मान और भी बढ़ गया था. सास चंद्रावती तथा ससुर मौजीलाल फूले नहीं समा रहे थे. इसी हंसीखुशी के साथ सुनीता और राजेश के गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी. बाद में सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बनी.
राजेश एक मामूली किसान था. 3 बच्चों के जन्म के बाद उस के परिवार का खर्च बढ़ गया था. इसलिए वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा. वह सुबह को पिता के साथ खेत पर चला जाता और शाम ढले घर लौटता. उस समय राजेश इतना थका होता था कि खाना खाने के बाद उसे केवल बिस्तर ही सूझता था.
दूसरी ओर सुनीता की हसरतें जवान थीं. 3 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उस का जिस्म कसा हुआ था. हर रात वह पति का प्यार चाहती थी, लेकिन राजेश उस की भावनाओं को नहीं समझता था.
जैसेतैसे दिन बीत रहे थे. सुनीता तन की शांति के लिए घर के बाहर ताकझांक करने लगी थी. दरअसल सुनीता का दिन तो कामकाज और बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. अंतत: उस की नजरें अपने से 10 साल छोटे कुंवारे मनीष पर टिक गईं.
मनीष के पिता कल्लू कुरील, फतेहपुर जनपद के औंग थाने के गांव गलाथा में रहते थे. उस के परिवार में पत्नी रामप्यारी के अलावा 5 बेटे, 2 बेटियां थीं. कल्लू के पास खेती की 8 बीघा जमीन थी जिस में अच्छी पैदावार होती थी. खेती के अलावा वह गल्ले का करोबार भी करता था. इस व्यापार में उस के बेटे भी उस का हाथ बंटाते थे. कुल मिला कर कल्लू की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.
ये भी पढ़ें- ‘वेलेंटाइन डे’ में कैसे बदली ‘एसिड अटैक’ की खुशियां
कल्लू की संतानों में मनीष सब से छोटा था. मनीष का मन न तो पढ़ाई में लगा और न ही खेती के काम में. आठवीं पास करने के बाद उस ने ड्राइवरी सीख ली और अपने दोस्त की टैंपों चलाने लगा. जब हाथ साफ हो गया तब उस ने पिता पर दबाव बना कर वैन खरीद ली और उसे चलाने लगा. वह कानपुर फतेहपुर के बीच वैन से सवारियां ढोने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होती थी.
चूंकि मनीष की मां रामप्यारी राजेश की बुआ थी, इस नाते राजेश और मनीष फुफेरे भाई थे. सुनीता जब ब्याह कर ससुराल आई थी तब मनीष केवल 12 साल का था. लेकिन अब वह 22 साल का गबरू जवान हो गया था.
मनीष का सुनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था इसलिए उन के बीच हंसीमजाक भी होती रहती थी. सुनीता ने मनीष के बारे में सोचा तो वह उसे अच्छा लगा. अत: उस का रुझान मनीष की ओर हो गया.
अब मनीष जब भी घर आता सुनीता जानबूझ कर अपने सुघड अंगों का प्रदर्शन करती. कुंआरा मनीष उन्हें ललचाई नजरों से देखता. सुनीता समझ गई कि मनीष पर उस के रूप का जादू चल गया है.
उन्हीं दिनों एक रोज मनीष आया तो सुनीता से नजरें मिलते ही वह मुसकराया, सुनीता के होंठों पर भी मुसकान खिल गई. कुछ देर बाद सुनीता चाय बना कर लाई और दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. उस समय घर में दोनों अकेले थे. चाय पीते समय मनीष सुनीता को बड़े गौर से देख रहा था. सुनीता ने उसे गहरी नजरों से देखा, ‘‘मनीष तुम मुझे इतना घूर कर क्यों देख रहे हो?’’
‘‘भाभी तुम हो ही इतनी खूबसूरत.’’ मनीष ने कहा तो सुनीता मुसकराई, ‘‘मनीष, मैं कुंवारी लड़की नहीं हूं, शादीशुदा और 3 बच्चों की मां हूं.’’
‘‘जानता हूं भाभी. पर तुम मेरे लिए कुंवारी जैसी ही हो.’’ कहते हुए मनीष ने सुनीता को अपनी बांहों में जकड़ लिया और चुंबनों की झड़ी लगा दी.
सुनीता ने नारी सुलभ नखरा किया, ‘‘मनीष छोड़ो मुझे. यह पाप है.’’
‘‘कोई पाप नहीं है भाभी. हम दोनों की जरूरत एक ही है. पापपुण्य को भूल जाओ.’’
सुनीता तो पहले से ही मनीष का साथ चाहती थी. उस का विरोध केवल बनावटी था. लिहाजा सुनीता ने भी मनीष के गले में बाहें डाल दीं. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. उस दिन के बाद देवरभाभी की पापलीला शुरू हो गई.
मनीष को जवान तथा मदमस्त कर देने वाली सुनीता का साथ मिला तो वह उस का दीवाना बन गया. दूसरी तरफ सुनीता भी कुंवारे मनीष से खुश थी. पति से ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था. अत: सुनीता ने मनीष को ही अपना सबकुछ मान लिया.