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पहली सितंबर, 2022 की सुबह जगदीश चंद्र अपने काम पर निकला था. वह ठेकेदार कविता मनराल के ठेके में ‘हर घर नल, हर घर जल’ अभियान के तहत काम करता था. लेकिन देर रात तक वह घर नहीं पहुंचा तो उस की पत्नी गीता परेशान हो उठी. उस के बाद गीता ने किसी के माध्यम से ठेकेदार कविता मनराल से बात की.

ठेकेदार कविता मनराल ने जगदीश चंद्र का पता किया तो जानकारी मिली कि कुछ लोग उसे अपनी गाड़ी में बैठा कर ले गए हैं. जिस के कारण कविता मनराल को उस के अपहरण होने की शंका हुई. उसी शंका के आधार पर कविता मनराल ने तुरंत ही इस की सूचना स्थानीय प्रशासन को दी.

जगदीश चंद्र के अपहरण की सूचना मिलते ही एसडीएम शिप्रा जोशी ने इस की सूचना राजस्व विभाग पुलिस और नियमित पुलिस को दी. उस के बाद संयुक्त टीमों ने जगदीश चंद्र की खोजबीन शुरू की. रात के कोई 10 बजे सिनार मोटर मार्ग पर पुलिस को सामने से एक मारुति वैन आती दिखाई दी.

पुलिस ने उसे रोक कर उस की चैकिंग की तो उस में बेल्टी गांव निवासी जोगा सिंह, उस की पत्नी भावना देवी व बेटा गोविंद सिंह सवार थे. पुलिस ने मारुति कार की तलाशी ली तो उसी गाड़ी में जगदीश चंद्र बेहोशी की हालत पड़ा मिला.

पुलिस को देख कर जोगा सिंह, उस की पत्नी और बेटा घबरा गए. वे जगदीश चंद्र के बेहोश होने के बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. तब पुलिस ने उन तीनों को हिरासत में ले लिया. पुलिस जगदीश चंद्र को तुरंत ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भिकियासैंण ले जाया गया, जहां पर डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया.

जगदीश चंद्र का अपहरण करने के बाद हत्या करने की सूचना से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई. जगदीश चंद्र क्षेत्र में एक सम्मानित व्यक्ति था. उस ने इसी वर्ष सल्ट सीट से उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था.

जगदीश चंद्र की हत्या की खबर की सूचना मिलते ही उस के गांव पनुवाधोखन में मातम छा गया था. उस की बूढ़ी मां का रोरो कर बुरा हाल था. वहां पर मौजूद सभी लोग उस की हत्या से स्तब्ध थे. जगदीश ने अभी 12 दिन पहले ही गीता के साथ शादी की थी. उस की हत्या की सूचना सुनते ही गीता बेहोश हो गई थी.

उस के बाद पुलिस तीनों आरोपियों को भिकियासैंण पटवारी चौकी ले कर गई. वहां पुलिस ने उन से जगदीश के बारे में पूछताछ की. पूछताछ के दौरान तीनों ने उस का अपहरण कर उसे पीटपीट कर मार डालने की बात स्वीकार की.

इस घटना से संबधित सभी तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने जगदीश के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिकियासैंण के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया था. डा. संदीप कुमार दीक्षित और डा. दीप प्रकाश पार्की के पैनल ने शव का पोस्टमार्टम किया.

पोस्टमार्टम के बाद रिपोर्ट में बताया कि मृतक के सिर व पूरे शरीर पर 27 से अधिक चोटें पाई गईं. उस की बाईं कलाई की दोनों हडिड्यां, पैर की बाईं एड़ी व नाक की हड्डी टूटने के साथ ही 4 पसलियां व एक जबड़ा भी टूटा हुआ पाया गया. वही सब उस की मौत का कारण भी बनी. जगदीश चंद्र के शव का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस का शव उस के परिवार को सौंप दिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद जगदीश चंद्र की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तराखंड राज्य में एक जिला है अल्मोड़ा. अल्मोड़ा में ही भिकियासैंण तहसील का एक गांव है बेल्टी. इसी गांव में रहता था नंदन सिंह का परिवार. नंदन सिंह का मेहनतमजदूरी करना मुख्या पेशा था. नंदन सिंह का छोटा परिवार था. उस की पत्नी भावना, बेटी गीता उर्फ गुड्डी, 2 बेटे ललित और कैलाश.

नंदन सिंह की शराब पीने की आदत थी. वह दिनभर में जो कुछ कमाता था, उस का आधा हिस्सा शराब पीने में खर्च कर डालता था. बच्चे बड़े हुए, खर्च बढ़ा तो उस का परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने लगा. उस के बाद घर में पतिपत्नी में विवाद रहने लगा. धीरेधीरे विवाद ने इतना बढ़ गया कि एक दिन नंदन सिंह ने बच्चों सहित पत्नी को ही घर से बाहर निकाल दिया.

नंदन सिंह के घर से निकालते ही भावना देवी के सामने संकट आ खड़ा हुआ था. उस के बाद उस ने कई रिश्तेदारों व जानपहचान वालों से नंदन को समझाने के लिए दबाव डाला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उस ने भावना और बच्चों को अपने घर में रखने से साफ मना कर दिया था.

फिर भी भावना ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को साथ ले कर मेहनतमजदूरी के उद्देश्य से भिकियासैंण जा पहुंची. वहां पर उस की मुलाकात जोगा सिंह से हुई.

जोगा सिंह के पास खेतीबाड़ी थी. उस के साथ ही उस ने कुछ जानवर भी पाल रखे थे. जोगा सिंह की पत्नी किसी बीमारी के चलते मर चुकी थी. उस के पास एक ही बेटा था गोविंद सिंह. घर पर काम अधिक होने के कारण उसे एक व्यक्ति की सख्त जरूरत थी.

भावना देवी ने अपनी परेशानी जोगा सिंह के सामने रखी तो वह उसे अपने घर पर रखने को तैयार हो गया. उस के बाद भावना देवी अपने बच्चों को साथ ले कर जोगा सिंह के साथ ही रहने लगी थी.

जोगा सिंह के घर पर रहते हुए भावना देवी ने उसके घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी. जिस से जोगा सिंह भी बहुत ही खुश हुआ था. धीरेधीरे जोगा सिंह ने भावना देवी को अपनी पत्नी का दरजा देते हुए एक पत्नी के सारे अधिकार भी सौंप दिए थे. भावना देवी अपने बच्चों और जोगा सिंह के साथ हंसीखुशी से दिन बिताने लगी थी.

उस समय गीता कक्षा 8 में पढ़ती थी. लेकिन जोगा सिंह के घर आने के बाद उस की पढ़ाई बंद करा दी गई. हालांकि गीता पढ़लिख कर भविष्य में कुछ बनना चाहती थी. लेकिन जोगा सिंह ने उस की पढ़ाई पर पाबंदी लगा दी थी.

जोगा सिंह का कहना था कि हमारे घर पर ही इतना कामधंधा है. उसे करने के लिए भी घर पर कोई चाहिए. फिर पढ़लिखकर वह कौन सी नौकरी करने वाली है.

उस वक्त गीता का बचपना था. फिर भी उसे उचित और अनुचित की समझ तो थी. लेकिन इस वक्त उस का परिवार दूसरे के यहां शरण लिए हुए था. यही उस की सब से बड़ी विवशता थी. फिर उस ने अपने भाग्य का लेखा समझते हुए पढ़ाई की तरफ से मुंह फेर लिया. गीता की पढ़ाई छुड़ाते ही जोगा सिंह ने उसे खेती के काम में लगा दिया था.

गीता उस समय बालिका थी. वह अपनी क्षमता के अनुसार बहुत काम कर लेती थी. लेकिन उस के बावजूद भी उस के सौतेले बाप जोगा सिंह ने उसे बैलों से खेत जुताई करना तक सिखा दिया था.

वह बैलों से खेती भी करने लगी. उस के बावजूद भी उस की थोड़ी सी गलती पर जोगा सिंह और उस का बेटा गोविंद सिंह उसे बुरी तरह से मारनेपीटने लगे थे.

बंधुआ मजदूर की तरह करती थी काम

शुरूशुरू में तो उस की मां भावना यह सब सहन करती रही. लेकिन जब वे लोग हदें पार करने लगे तो भावना को भी बुरा लगने लगा था. उस ने बेटी के पक्ष में बोलना शुरू किया तो जोगा सिंह और उस का बेटा गोविंद उसे भी भलाबुरा कहने लगे. लेकिन भावना उन के अहसानों के तले दबी थी. यही कारण था कि उन की हर बात सहन करना उस की मजबूरी थी.

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