कानपुर देहात जनपद के थाना मूसानगर का एक गांव है कृपालपुर, जिस में रामसुमेर यादव अपने 2 बेटों रघुराज व सुरेंद्र के साथ रहता था. रामसुमेर की खेतीबाड़ी की कुछ जमीन थी, जिस से परिवार का भरणपोषण होता था. वह भले ही संपन्न किसान नहीं था, लेकिन गांव में उस की अच्छीभली इज्जत थी.
रामसुमेर का बड़ा बेटा रघुराज तो पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगा था, लेकिन सुरेंद्र का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. समय के साथ रामसुमेर ने रघुराज का घर बसा दिया, लेकिन सुरेंद्र के साथ परेशानी यह थी कि उस की संगत ठीक नहीं थी. वह नशा करने का आदी हो गया था. नशे में वह लड़ाईझगड़ा और मारपीट करता तो उस की शिकायत रामसुमेर तक पहुंचती.
ऐसे में लोगों ने सलाह दी कि सुरेंद्र का विवाह कर दिया जाए. इस के पांव में गृहस्थी की बेडिय़ां पड़ेंगी तो यह अपनेआप सुधर जाएगा. लोगों की सलाह मान कर रामसुमेर सुरेंद्र के लिए लडक़ी की तलाश में जुट गया. नतीजा सार्थक रहा. कुछ ही दिनों बाद सुरेंद्र का विवाह घाटमपुर तहसील के सजेती गांव निवासी सूरज सिंह यादव की बेटी प्रियंका से हो गया.
प्रियंका काफी खूबसूरत थी. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी खूबसूरत बीवी मिलेगी. उस के रूपसौंदर्य ने उस पर जादू सा कर दिया. प्रथम मिलन की रात प्रियंका जिस तरह उसे समर्पित हुई, उस से सुरेंद्र उस का दीवाना हो गया. सुंदर और समझदार प्रियंका ने सुरेंद्र के आवारा कदमों में ऐसी बेडिय़ां डालीं कि वह घरगृहस्थी के कामों में रम गया.
विवाह के बाद परिवार का खर्च बढ़ा तो खेती की पैदावार से दोनों भाइयों का गुजारा होना मुश्किल हो गया. तंगी की वजह से परिवार में कलह शुरू हो गई. यह देख कर रामसुमेर ने दोनों बेटों का बंटवारा कर दिया. बंटवारे के बाद सुरेंद्र प्रियंका के साथ अलग रहने लगा. उस का मन खेती में कम लगता था, इसलिए वह किसी दूसरे काम की तलाश में जुट गया.
गांव के कुछ लडक़े गुजरात के सूरत शहर की कपड़ा मिलों में काम करते थे. वे काफी खुशहाल थे. सुरेंद्र ने पत्नी से सूरत जाने की बात की तो उस ने इजाजत दे दी. इस के बाद वह अपने एक दोस्त के साथ सूरत चला गया. वहां वह उसी दोस्त के साथ रहा. उसी के सहयोग से उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, बाद में वह किराए का कमरा ले कर अलग रहने लगा.
सुरेंद्र सूरत में था और प्रियंका गांव में. नईनवेली दुलहन को पति के साथ रहने के बजाय तनहाई में रहना पड़ रहा था. उस की उमंगें दम तोड़ रही थीं. पति से सिर्फ उस की मोबाइल के जरिए बात हो पाती थी. प्रियंका अपने मन की बात पति से कहती तो वह हफ्ते भर की छुट्टी ले कर घर आ जाता.
तब वह उस से कहती, “तुम सूरत में रहते हो और मैं यहां गांव में अकेली पड़ी रहती हूं, क्यों नहीं मुझे भी अपने साथ ले चलते?”
सुरेंद्र हर बार प्रियंका से वादा करता कि अगली बार जब आएगा तो वह उसे साथ ले जाएगा. लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. इस तरह 4 साल से अधिक बीत गए. इस दौरान प्रियंका 2 बच्चों आलोक और अंशिका की मां बन गई.
प्रियंका की सभी जरूरतें तो पति के हिस्से की जमीन तथा उस के भेजे पैसे से पूरी हो जाती थीं, लेकिन देह की जरूरतें वह कैसे पूरी करती? तनहा रातों में बिस्तर उसे काटने दौड़ता था. आखिर उस ने एक ऐसे मर्द की तलाश शुरू कर दी, जो उस के तनमन का सच्चा साथी बन सके.
प्रियंका के घर से चंद कदमों के फासले पर करन सिंह रहता था. वह शरीर से हृष्टपुष्ट और भरपूर जवान था. वह नौकरी कर के अच्छा कमाता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. वह सिगरेट और शराब का शौकीन था. सुरेंद्र और करन रिश्ते में चाचाभतीजा थे.
सुरेंद्र परिवार से अलग रहता था. चूंकि वह सूरत में नौकरी करता था और उस की पत्नी बच्चों के साथ गांव में अकेली रहती थी, इसलिए करन ने उस के घर आनाजाना शुरू कर दिया. सुरेंद्र जब छुट्टी पर घर आता, दोनों की सुरेंद्र के घर पर ही महफिल जमती.
करन प्रियंका को चाची कहता था. प्रियंका के मन में पाप समाया तो वह करन से हंसीमजाक करने लगी. कभीकभी मजाक में वह कोई ऐसी बात कह देती कि करन झेंप जाता. करन कोई दूधपीता बच्चा तो था नहीं, इसलिए जल्द ही समझ गया कि चाची उस से क्या चाहती है. परिणामस्वरूप वह भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफें करते हुए उस के आगेपीछे मंडराने लगा.
दो बच्चों की मां बनने के बावजूद प्रियंका के रूपलावण्य में कोई कमी नहीं आई थी. उस की चाल में ऐसी मस्ती थी कि देखने वालों के मुंह से आह निकलती थी. गांव के कई युवक उस का दीदार करने को तरसते थे. एक करन ही ऐसा था, जिसे प्रियंका के पास घंटों बैठने और बतियाने का मौका मिलता था. प्रियंका उस से खूब हंसीमजाक करती थी.
चूंकि करन सुरेंद्र का भतीजा था, इसलिए उस ने कभी चाचीभतीजे के रिश्ते से अलग हट कर नहीं देखा. लेकिन सुरेंद्र को क्या मालूम था कि उस का भतीजा ही उस की पीठ में छुरा घोंपेगा. घर आतेजाते करन अक्सर प्रियंका की तारीफें करता तो वह गदगद हो जाती.
एक दिन करन जब उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा तो वह बोली, “ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस की पति ही कद्र न करे. मैं ने कितनी बार कहा कि साथ ले चलो, लेकिन वह हर बार टाल जाते हैं.”
करन को प्रियंका की किसी ऐसी ही कमजोर नस की तलाश थी. जब उस ने अपने पति की बेरुखी बयां की तो करन उस का हाथ थाम कर बोला, “तुम क्यों चिंता करती हो चाची, आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.”
“सच करन?” प्रियंका ने मुसकरा कर पूछा.
“हां चाची, सोलह आने सच.”
“तो कल दोपहर में आना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.”
करन ने वह रात करवटें बदलते हुए काटी. सारी रात वह प्रियंका के खयालों में डूबा रहा. अगले दिन दोपहर होते ही वह प्रियंका के घर जा पहुंचा.