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इस कंपनी की ओर से मजदूरों का ठेका दिनेश खंडेलवाल और उन का मुंशी अमन लेता था. लगभग 5 महीने पहले उस के पति सत्येंद्र का पैसे के लेनदेन को ले कर ठेकेदार दिनेश और मुंशी अमन से झगड़ा हुआ था, जिस में मारपीट भी हुई थी.

इस के बाद से वह काफी परेशान रहते थे. वह शराब भी बहुत ज्यादा पीने लगे थे. कहीं ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन ने ही तो उन की हत्या नहीं कर दी है. पूछताछ के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने आ कर थानाप्रभारी आशीष मिश्र ने सत्येंद्र तिवारी की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन को हिरासत में ले लिया गया. थाने में दोनों से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों ने साफ मना कर दिया.

अमन का कहना था कि पैसों को ले कर उस का सत्येंद्र से झगड़ा जरूर हुआ था, लेकिन वह झगड़ा ऐसा नहीं था कि बात हत्या तक पहुंच जाती. सत्येंद्र की पत्नी उसे गलत फंसा रही है. ऐसा ही दिनेश ने भी कहा था. उन की बातों से पुलिस को लगा कि दोनों निर्दोष हैं तो उन्हें छोड़ दिया गया था.

आशीष मिश्र को इस मामले में कोई सुराग नहीं मिल रहा था. जबकि अधिकारियों का उन पर काफी दबाव था. अंत में उन्होंने मुखबिरों का सहारा लिया. आखिर उन्हें मुखबिरों से मदद मिल गई. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि सत्येंद्र की हत्या उस के बेटे जय ने ही की है. इस में उस की मां सुलभ और उस के प्रेमी दीपक कठेरिया का भी हाथ हो सकता है.

बात थोड़ा हैरान करने वाली थी, लेकिन अवैध संबंधों में कुछ भी हो सकता है. यह सोच कर आशीष मिश्र ने मसवानपुर स्थित मृतक सत्येंद्र तिवारी के घर छापा मार कर जय और उस की मां सुलभ को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर सुलभ और जय से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों कसमें खाने लगे. लेकिन पुलिस के पास जो सबूत थे, उस से पुलिस ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया और उन से सख्ती से पूछताछ की. फिर तो मांबेटे ने सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पता चला कि जय ने पड़ोस में रहने वाले दीपक कठेरिया की मदद से पिता की हत्या की थी. क्योंकि सुलभ के दीपक कठेरिया से अवैध संबंध थे. सत्येंद्र इस बात का विरोध करता था. शराब के नशे में वह अकसर पत्नी और बेटे की पिटाई करता था. उस की इसी हरकत से तंग आ कर बेटे और प्रेमी की मदद से सुलभ ने पति की हत्या करवा दी थी.

सत्येंद्र की हत्या में दीपक का नाम आया तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में दीपक ने जय और सुलभ को देखा तो उस ने भी सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दीपक और जय ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड और खून सने अपने कपड़े बरामद करा दिए थे, जो जय ने अपने घर में छिपा रखे थे. सभी से पूछताछ में सत्येंद्र तिवारी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर शहर से 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा बसा है बिल्हौर. इसी कस्बे से कुछ दूरी पर एक गांव है विशधन. ब्राह्मणबाहुल्य इस गांव में रमेशचंद्र दुबे अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां शुभि और सुलभ तथा एक बेटा अरुण था. रमेशचंद्र दुबे अध्यापक थे. उन के पास खेती की थोड़ी जमीन थी. इस तरह उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़ी बेटी शुभि की शादी उन्होंने कन्नौज में की थी.

इस के बाद सुलभ शादी लायक हुई तो कानपुर शहर में मसवानपुर बस्ती में रहने वाले नीरज तिवारी के बेटे सत्येंद्र से उस की शादी कर दी. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उस का रंग थोड़ा सांवला था और वह सुलभ से उम्र में भी बड़ा था. सुलभ काफी खूबसूरत थी. इस के बावजूद उस ने कभी कोई ऐतराज नहीं किया.

देखतेदेखते 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इस बीच सुलभ 2 बच्चों जय और पारस की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद सत्येंद्र की नौकरी आर्डिनैंस फैक्ट्री में संविदा कर्मचारी के रूप में लग गई. लेबर कौंट्रैक्ट कंपनी वृंदावन एसोसिएट्स के तहत उसे काम पर रखा गया. यह कंपनी रक्षा प्रतिष्ठानों में मजदूर सप्लाई करने का ठेका लेती है. सत्येंद्र को वहां से ठीकठाक पैसे मिल रहे थे, इसलिए घर में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी.

बच्चे बड़े हुए तो घर में रहने की परेशानी होने लगी. सत्येंद्र बच्चों के साथ अलग मकान ले कर रहने लगा. सुलभ यही चाहती भी थी. बच्चे बड़े हुए तो खर्च बढ़ा, जिस से घर में पैसों को ले कर तंगी रहने लगी. उसी बीच सत्येंद्र शराब पीने लगा. उस की कमाई का एक हिस्सा शराब पर खर्च होने लगा तो घर खर्च को ले कर सुलभ परेशान रहने लगी. वह पति को शराब पीने को मना करती तो सत्येंद्र उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि मारपीट भी करता. इस का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ने लगा.

एक दिन सत्येंद्र के साथ एक युवक आया, जिस के बारे में उस ने सुलभ को बताया कि यह उस का दोस्त दीपक कठेरिया है. वह भी मसवानपुर में ही रहता था. दोनों साथसाथ खातेपीते थे. दीपक ने खूबसूरत सुलभ को देखा तो पहली ही नजर में उस पर मर मिटा. दीपक शरीर से हृष्टपुष्ट और सुलभ से कमउम्र का था, इसलिए सुलभ भी उस की ओर आकर्षित हो गई. दीपक उस दिन करीब एक घंटे तक घर में रहा. इस बीच दोनों एकदूसरे को ताकते रहे.

एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन सत्येंद्र फिर दीपक को घर ले आया. उस का आना सुलभ को अच्छा लगा. बातोंबातों में दीपक ने सुलभ का फोन नंबर ले लिया. इस के बाद दीपक ने बहाने से सुलभ को फोन किया तो उस ने बातचीत में दिलचस्पी दिखाई. फिर तो दोनों में बातें होने लगीं.

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