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आखिर रात आ ही गई. घर वाले जब सो गए तो महावीर चुपचाप दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया. वह बदन सिंह के दरवाजे पर पहुंचा तो दरवाजा भिड़ा हुआ था. हलका का धक्का देते ही वह खुल गया. जैसे ही वह अंदर गया तो निर्मला कमरे से निकल आई. महावीर को देख कर वह खुश हो गई और दरवाजे की कुंडी लगा दी. वह कमरे में महावीर के पास आ कर बोली, ‘‘इस आशिकी के चक्कर में तुम क्यों 2 परिवारों को बरबाद करना चाहते हो. जानते तो हो मेरे 2 बच्चे हैं.’’

‘‘जानता हूं, पर इस दिल का क्या करूं जो मानता ही नहीं है.’’ महावीर ने कहा.

‘‘क्या तुम सचमुच मेरे प्रति गंभीर हो?’’ निर्मला ने पूछा, ‘‘केला का क्या होगा, सोचा है कभी.’’

‘‘हां, बिलकुल गंभीर हूं. उस की चिंता मत करो. वह भी अपने बारे में सोच ही लेगी.’’ कहते हुए महावीर ने निर्मला को खींच कर गले से लगा लिया. महावीर के आगोश में निर्मला ने भी समर्पण कर दिया. उस ने अपनी जिंदगी की नाव को तूफान के हवाले कर दिया.

इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस से उन्हें संतुष्टि भले ही हासिल हुई होगी पर यह बात सच थी कि उन्होंने जो काम किया, उस से उन के पारिवारिक रिश्तों की बुनियाद हिलने की शुरुआत हो चुकी थी.

देर रात महावीर घर पहुंचा तो घर में सभी को सोते देख कर उस ने राहत की सांस ली. अब महावीर और निर्मला की आशिकी मोबाइल के जरिए चलने लगी. दोनों मिलने का समय तय कर लेते और समय निकाल कर एकदूसरे की बांहों में खो जाते.

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