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‘‘है लो, एसएचओ कानूनगो साहब बोल रहे हैं?’’ मोबाइल पर आई काल पर किसी अनजान आदमी ने पूछा.

‘‘हां, मैं एसएचओ बोल रहा हूं.’’ फतेहपुर थाने के थानेदार मुकेश कानूनगो ने जवाब दिया.

‘‘एसएचओ साहब, आप के मतलब की एक सूचना है.’’ दूसरी ओर से काल करने वाले ने कहा.

‘‘आप कौन बोल रहे हो और सूचना क्या है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘एसएचओ साहब, आप आम खाओ, पेड़ मत गिनो.’’ काल करने वाला बोला, ‘‘सूचना यह है कि बदमाश अजय चौधरी, जगदीप उर्फ धनकड़ और कैलाश नागौरी वगैरह फतेहपुर में मंडावा रोड स्थित बेसवा गांव के पास पर आ रहे हैं.’’

सूचना देने वाले ने अपनी बात कह कर बिना नाम, परिचय बताए फोन काट दिया. थानेदार कानूनगो ने पलट कर उसी नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने काल रिसीव नहीं की.

यह बात बीते 6 अक्तूबर की रात 11 बजे के आसपास की है. उस समय राजस्थान में सीकर जिले के थाना फतेहपुर के थानेदार मुकेश कानूनगो अपने मातहतों को निर्देश दे कर रात की गश्त पर निकलने वाले थे. निकलने से कुछ देर पहले ही उन के मोबाइल पर यह काल आई थी.

कानूनगो को पता था कि अजय चौधरी गैंगस्टर है और कई बड़ी वारदातें कर चुका है. अजय को फेसबुक पर हथियारों के साथ फोटो डालने का शौक था. कुछ समय पहले अजय की हिस्ट्रीशीटर मनोज स्वामी से खटपट हो गई थी. उस ने मनोज स्वामी को देख लेने की धमकी दी थी. तभी से अजय उस की हत्या करने की फिराक में था.

मनोज ने पुलिस को अपनी जान पर मंडराते खतरे के बारे में बता दिया था. पुलिस ने बदमाशों की तलाश के लिए मनोज जैसी दिखने वाली स्कौर्पियो प्राइवेट गाड़ी किराए पर ले रखी थी. यह गाड़ी थाने के बाहर ही खड़ी थी.

दरअसल, पुलिस को अजय चौधरी और उस के साथियों के फतेहपुर में होने की सूचना 2-3 दिन से मिल रही थी. पुलिस लगातार भागदौड़ कर उन की तलाश भी कर रही थी, लेकिन वे पकड़ में नहीं आ पा रहे थे.

थानाप्रभारी ने सोचा कि अजय चौधरी के फतेहपुर इलाके में घूमने की सूचना सही है तो वह कोई अपराध भी कर सकता है, इसलिए उस की तलाश की जाए. अगर वह पकड़ में आ गया तो कोई बड़ा अपराध नहीं हो सकेगा.

यही सोच कर थानाप्रभारी कानूनगो ने अपनेसाथ 4 कांस्टेबल रामप्रकाश, रमेश, शिव भगवान और सांवरमल को लिया और थाने के बाहर खड़ी स्कौर्पियो गाड़ी से बदमाशों की तलाश में चल दिए. सभी सादे कपड़ों में थे.

मंडावा रोड पर बेसवा गांव के पास पुलिस को एक बोलेरो आती दिखाई दी. बोलेरो जब पुलिस की स्कौर्पियो के पास से आगे निकली तो ड्राइवर ने बताया कि बोलेरो में अजय है. यह सुन कर इंसपेक्टर ने ड्राइवर से पीछा करने को कहा. पुलिस की स्कौर्पियो बोलेरो का पीछा करने के लिए आगे बढ़ती, उस से पहले ही बोलेरो पलट कर वापस आई और पुलिस की गाड़ी के पास रुक गई.

यह देख कोतवाल मुकेश कानूनगो और सिपाही रामप्रकाश गाड़ी से नीचे उतर गए. इसी दौरान बोलेरो में सवार बदमाशों ने फायरिंग शुरू कर दी. फायरिंग में मुकेश कानूनगो और रामप्रकाश गंभीर रूप से घायल हो गए.

कानूनगो की गरदन में और रामप्रकाश की छाती में गोली लगी थी. फायरिंग होती देख कानूनगो के साथ आए शेष तीनों कांस्टेबल कुछ करते, इस से पहले ही बदमाश फायरिंग करते हुए बोलेरो से भाग गए.

तीनों कांस्टेबल खून से लथपथ थानाप्रभारी और सिपाही को फतेहपुर स्थित अस्पताल ले कर गए, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. कांस्टेबलों ने पुलिस कंट्रोल रूम और अपने थाने को वारदात की सूचना दे दी. थाने से पुलिस अधिकारियों को घटना की जानकारी दी गई.

कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या की सूचना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. सीकर एसपी प्रदीप मोहन शर्मा सहित जिले के तमाम अफसर मौके पर पहुंच गए. जयपुर से आईजी वी.के. सिंह भी रात को ही फतेहपुर आ गए. पुलिस ने बदमाशों को पकड़ने के लिए सीकर, चुरू और झुंझुनू जिले में कड़ी नाकेबंदी करा दी.

इस बीच कोतवाल और कांस्टेबल पर फायरिंग करने के बाद बदमाश बोलेरो से फतेहपुर शहर में नायकों के मोहल्ले में पहुंचे और वहां अब्दुल हन्नान के मकान का दरवाजा खटखटाया.

काफी देर तक दरवाजा नहीं खुलने पर बदमाशों ने परिवार के लोगों को धमकी दी. इस के बाद उन्होंने पहले हवाई फायर किया और फिर दरवाजे पर गोली चलाई. फायरिंग की आवाज सुन कर आसपास के लोग जाग गए तो बदमाश भाग खड़े हुए.

राजस्थान में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के दूसरे दिन हुई इस घटना ने पूरी पुलिस फोर्स के साथ सरकार को भी झकझोर दिया था. इस घटना से शेखावटी में फिर गैंगवार होने की आशंका बढ़ गई थी. इस का कारण यह था कि पुलिस जो प्राइवेट स्कौर्पियो ले कर गैंगस्टर अजय चौधरी और उस के साथियों को पकड़ने के लिए निकली थी, उस गाड़ी को संभवत: अजय ने मनोज स्वामी की समझा था. अजय ने पुलिस के सहयोग से मनोज द्वारा उसे पकड़वाए जाने की आशंका से ही फायरिंग की थी.

दूसरे दिन इस घटना के विरोध में फतेहपुर कस्बा बंद रहा. राजस्थान के डीजीपी ओ.पी. गल्होत्रा, एटीएस के एडीशनल डीजीपी उमेश मिश्रा सहित जयपुर से आला पुलिस अफसर फतेहपुर पहुंच गए.

कोतवाल मुकेश कानूनगो और कांस्टेबल रामप्रकाश के घर वालों ने दोनों को शहीद का दर्जा देने और बदमाशों की गिरफ्तारी की मांग को ले कर शव लेने से इनकार कर दिया. जयपुर के आईजी वी.के. सिंह के आश्वासन पर वे लोग शव लेने पर राजी हुए.

कोतवाल मुकेश कानूनगो का परिवार जयपुर में थाना मुरलीपुरा के पास रहता है. वे मूलत: जयपुर जिले के गोविंदगढ़ के रहने वाले थे. कांस्टेबल रामप्रकाश झुंझुनू जिले में मुकंदगढ़ के घोड़ीवारा के रहने वाले थे. रामप्रकाश के पिता राजेंद्र सिंह सीकर जिले में थाना सदर में एएसआई हैं.

फतेहपुर में पोस्टमार्टम वगैरह की आवश्यक काररवाई पूरी होने के बाद पुलिस अफसरों ने कोतवाल मुकेश कानूनगो और कांस्टेबल रामप्रकाश के तिरंगे में लिपटे शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कोतवाल के शव को आईजी और एसपी ने कंधा दे कर जयपुर के लिए रवाना किया. इस से पहले पुलिस अधिकारियों और सीकर कलेक्टर नरेश ठकराल ने उन के शव पर पुष्पचक्र अर्पित किए. दोनों को गार्ड औफ औनर भी दिया गया.

कोतवाल मुकेश कानूनगो का शव जयपुर में मुरलीपुरा की रामेश्वरम धाम कालोनी स्थित उन के मकान पर पहुंचा, तो परिवार में कोहराम मच गया. दरअसल, मुकेश ने पत्नी मीरा से 7 अक्तूबर को जयपुर स्थित घर आने की बात कही थी, क्योंकि उस दिन ससुराल में उन की सास का श्राद्ध था. यह अलग बात है कि मुकेश 7 अक्तूबर को ही घर पहुंचे, लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए.

अंत्येष्टि की तैयारी के दौरान मुकेश के बैच के साथी पुलिस अधिकारियों और रिश्तेदारों ने सरकार से शहीद का दरजा देने और विशेष सहायता पैकेज देने की मांग की. लोगों में इस बात का भी गुस्सा था कि कोई मंत्री या प्रशासनिक अधिकारी संवेदना जताने तक नहीं आया था.

बाद में विधायक हनुमान बेनीवाल वहां पहुंचे. उन्होंने दोनों पुलिसकर्मियों को वीरता अवार्ड, अनुकंपा नियुक्ति और स्पैशल पैकेज की मांग की. सीकर एसपी प्रदीप मोहन और जयपुर के डीसीपी वेस्ट अशोक कुमार गुप्ता ने लोगों को समझाबुझा कर शांत किया.

कांस्टेबल सांवरमल की रिपोर्ट पर थाने में मुकेश कानूनगो व कांस्टेबल रामप्रकाश की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया था. इस में फतेहपुर निवासी अजय चौधरी, खांजी का बास निवासी जगदीप उर्फ धनकड़, फतेहपुर निवासी दिनेश उर्फ लारा और जलालसर निवासी ओमप्रकाश उर्फ ओपी को नामजद किया गया था. इन के अलावा 3-4 अज्ञात बदमाश बताए गए थे.

फतेहपुर में पुलिस ने जांचपड़ताल की तो पता चला कि पुलिस दल पर फायरिंग कर के बेसवा गांव की तरफ तेज गति से भागे बदमाशों की गाड़ी थोड़ी दूर आगे जा कर पलट गई थी. वहां उन्होंने अपने साथियों से 3 मोटरसाइकिलें मंगाईं.

इन मोटरसाइकिलों पर अजय और उस के साथी फतेहपुर पहुंचे और नायकों के मोहल्ले में फायरिंग की. पुलिस ने सड़क पर पलटी मिली बोलेरो बरामद कर ली. बोलेरो के अंदर खून के निशान मिले. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि गाड़ी पलटने से बदमाशों को चोटें आई होंगी.

अजय और उस के साथियों को बाइक मुहैया कराने वाले नारीबारी गांव के 2 युवकों को पुलिस ने दूसरे दिन हिरासत में ले कर पूछताछ की तो पता चला कि अजय चौधरी अपने गैंग के साथ चुनाव के लिए आने वाले अवैध पैसे लूटने की फिराक में था. इसीलिए वह फतेहपुर आया था. पैसा लूट कर वह हथियार खरीदना चाहता था.

पुलिस का स्पैशल औपरेशन ग्रुप और आतंकवाद निरोधक दस्ता भी बदमाशों की तलाश में जुटा था. कई संदिग्ध लोगों से पूछताछ की गई. पुलिस की 10 से ज्यादा टीमें लगातार छापे मारती रहीं, साथ ही कड़ी नाकेबंदी कर के जांचपड़ताल भी करती रहीं. लेकिन हत्यारों का कोई ठोस सुराग नहीं मिला.

सरकार के निर्देश पर 9 अक्तूबर की रात करीब साढ़े 10 बजे से सीकर, चुरू व झुंझुनू जिले में इंटरनेट बंद करवा दिया गया. इस के पीछे कारण यह था कि पुलिस को जांच में पता चला था कि अजय चौधरी के गिरोह के बदमाश वाट्सऐप कालिंग, मैसेजिंग और वीडियो कालिंग के जरिए एकदूसरे से बात कर रहे थे.

इस वजह से पुलिस उन की लोकेशन ट्रेस नहीं कर पा रही थी. पुलिस का अनुमान था कि बदमाश शेखावटी इलाके में ही कहीं छिपे हैं, इसलिए आईजी ने संभागीय आयुक्त से बात कर के 3 जिलों में इंटरनेट बंद करवा दिया था.

पुलिस ने थानाप्रभारी व कांस्टेबल की हत्या वाली रात फतेहपुर शहर में नायकों का मोहल्ला में अब्दुल हन्नान के घर फायरिंग करने के मामले में 10 अक्तूबर को 2 बदमाशों दिनेश लारा और कैलाश नागौरी को गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में अब्दुल हन्नान के बेटे मुख्तियार ने अजय चौधरी, दिनेश उर्फ लारा और कैलाश उर्फ नागौरी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

दूसरी ओर, 3 जिलों में इंटरनेट बंद किए जाने के बाद तरहतरह की अफवाहों का बाजार गर्म हो गया. सोशल मीडिया पर पुलिस द्वारा 2 बदमाशों का एनकाउंटर किए जाने की सूचना वायरल होती रही. बाद में एनकाउंटर की सूचनाओं को गलत बताते हुए पुलिस ने लोगों से अपील की कि सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वाली बातें शेयर न करें.

पुलिस की जांचपड़ताल में 11 अक्तूबर को यह खुलासा हुआ कि अजय चौधरी और उस के गिरोह ने कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या में जिस बोलेरो का इस्तेमाल किया था, वह चुरू जिले के श्रवण के नाम थी. श्रवण ने यह गाड़ी चुरू के ही एक व्यक्ति को बेच दी थी.

इस तरह यह गाड़ी 9 बार बिक चुकी थी, लेकिन किसी भी खरीदार ने गाड़ी के कागजात व आरसी अपने नाम ट्रांसफर नहीं करवाए थे. केवल स्टांप पेपर पर इकरारनामे के आधार पर गाड़ी की खरीदफरोख्त होती रही. फिलहाल यह बोलेरो फतेहपुर के एक व्यक्ति के पास थी. पुलिस ने उस की तलाश की तो वह फरार हो गया.

अब्दुल हन्नान के घर फायरिंग वाले मामले में गिरफ्तार दिनेश उर्फ लारा और कैलाश उर्फ नागौरी को पुलिस ने 11 अक्तूबर को अदालत में पेश कर के 5 दिन के रिमांड पर ले लिया. पूछताछ में इन के हरियाणा सहित राजस्थान के कई जिलों के अपराधियों से संपर्क का पता चला.

कोतवाल व कांस्टेबल की हत्या के आरोपी पकड़ में न आए तो सीआईडी अपराध शाखा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ने 12 अक्तूबर को 4 आरोपियों पर इनाम घोषित कर दिया.

इन में मुख्य आरोपी अजय चौधरी और जगदीप उर्फ धनकड़ पर 40-40 हजार रुपए और ओमप्रकाश उर्फ ओपी व अनुज उर्फ छोटा पांडिया पर 20-20 हजार रुपए का इनाम रखा गया. इसी के साथ इन बदमाशों के पोस्टर सीकर, चुरू व झुंझुनू जिलों के अलावा कई अन्य स्थानों पर लगवाए गए.

इन में झुंझुनू जिले के मंडावा निवासी अनुज उर्फ छोटा पांडिया का नाम गिरफ्तार आरोपी दिनेश उर्फ लारा से पूछताछ में सामने आया था.

कोतवाल व कांस्टेबल की हत्या की वारदात में अनुज मुख्य आरोपी अजय के साथ था. अनुज का पहला भी आपराधिक रिकौर्ड था. आजकल वह फतेहपुर में अपनी ननिहाल में रहता था. पहले वह पांडिया गैंग से जुड़ा हुआ था, लेकिन बाद में अजय चौधरी के साथ जुड़ गया था. वह अजय का खास गुर्गा और हथियार चलाने में माहिर था.

दिनेश उर्फ लारा से पूछताछ में पुलिस को अजय, जगदीप और अनुज के कई ठिकानों का पता चला. इस पर पुलिस ने दिल्ली, हरियाणा सहित राजस्थान के शहरों से ले कर गांव ढाणी तक विभिन्न स्थानों पर छापे मारे, लेकिन घटना के एक सप्ताह बाद भी पुलिस के हाथ खाली ही रहे.

बदमाशों के संबंध में सूचना मिलने पर राजस्थान एटीएस के एडिशनल एसपी बजरंग सिंह अपनी टीम के साथ 12 अक्तूबर की शाम जयपुर से पुणे के लिए रवाना हुए. जयपुर स्थित एटीएस मुख्यालय से पुलिस इंसपेक्टर मनीष शर्मा और राजेश दुनेजा लगातार उन को तकनीकी सहयोग दे रहे थे.

पुणे पहुंच कर 3-4 जगह दबिश देने के बाद 14 अक्तूबर को तड़के पुलिस टीम ने रामपाल जाट को पकड़ लिया. रामपाल जाट भी मुकेश कानूनगो और रामप्रकाश की हत्या में शामिल था. पूछताछ में उस ने बताया कि अजय और जगदीप नेपाल जाने की बात कह कर 13 अक्तूबर की रात मुंबई चले गए थे.

यह जानकारी मिलने पर एडिशनल एसपी बजरंग सिंह बिना समय गंवाए पुणे से रवाना हो कर 14 अक्तूबर की सुबह करीब 8 बजे मुंबई पहुंच गए. मुंबई में रामपाल को उन्होंने पहले से आई हुई जयपुर रेंज की पुलिस टीम के हवाले कर दिया. फिर सीकर जिले के नवलगढ़ के डीएसपी रामचंद्र मूंड और सीआई महावीर को ले कर मुंबई एटीएस व क्राइम ब्रांच के साथ दादर रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अजय व जगदीप को दादर स्टेशन पर कोलकाता जाने वाली ट्रेन से पकड़ा गया.

तीनों आरोपियों को पुलिस मुंबई व पुणे से ले कर 15 अक्तूबर को जयपुर पहुंची. बाद में पुलिस इन्हें कड़े सुरक्षा घेरे में सीकर लाई. इधर पुलिस ने एक अन्य आरोपी आमिर को फतेहपुर के कोलीड़ा गांव से पकड़ा. वह अजय के गैंग का मुख्य चालक था. उस दिन भी वह अजय के साथ था और बोलेरो चला रहा था. पुलिस पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह थी—

अजय चौधरी राजस्थान में शेखावटी का डौन बनने के लिए हिस्ट्रीशीटर मनोज स्वामी की हत्या करना चाहता था. 6 अक्तूबर की रात मनोज की स्कौर्पियो देख कर ही अजय अपने साथियों के साथ बोलेरो से वापस लौट आया था. स्कौर्पियो में मनोज के होने की संभावना के चलते अजय और उस के साथियों ने स्कौर्पियो से उतरे फतेहपुर इंसपेक्टर मुकेश कानूनगो व कांस्टेबल रामप्रकाश पर फायरिंग की थी. अजय को यह पता नहीं था कि वे लोग पुलिस वाले हैं.

उस समय सभी पुलिस वाले सादे कपड़ों में थे और मनोज स्वामी जैसी ही स्कौर्पियो में थे. अजय और उस के साथियों को दूसरे दिन पता चला कि उन्होंने जिन लोगों को गोली मारी थी, वे पुलिस वाले थे.

इंसपेक्टर और कांस्टेबल को गोली मारने के बाद अजय अपने साथियों के साथ बोलेरो से तेजीसे भागा तो इन लोगों की गाड़ी पलट गई. इस से जगदीप के हाथ में फ्रैक्चर आ गया और रामपाल को चोटें आईं. अजय व लारा बाइक मंगवा कर वहां से फतेहपुर चले गए.

आमिर व ओमप्रकाश उर्फ ओपी नवलगढ़ की तरफ गए, जबकि रामपाल व जगदीप पास में ही रामपाल की बहन के घर छोटी बिड़ौदी चले गए. बहन के घर से दोनों नवलगढ़ पहुंचे और अपना इलाज कराया. बाद में बाइक पर कच्चे रास्तों से सीकर जिले के नीमकाथाना पहुंचे. नीमकाथाना से ट्रेन द्वारा ये लोग अहमदाबाद गए और फिर पुणे. पुणे से जगदीप अजय के साथ मुंबई चला गया और रामपाल वहीं रह गया. रामपाल को पुलिस ने पुणे से पकड़ा.

दूसरी तरफ अजय 7 अक्तूबर को फतेहपुर से बस से सीकर आया. सीकर से जयपुर हो कर वह बस से पहले दिल्ली फिर फरीदाबाद पहुंचा. उस ने फरीदाबाद में पढ़ाई की थी, इसलिए फरीदाबाद में उस के कई दोस्त थे. फरीदाबाद से वह पुणे गया.

पुलिस उन के मोबाइल नंबर ट्रेस न कर सके, इस के लिए वे वाट्सऐप कालिंग करते थे. मोबाइल में सिम का इस्तेमाल करने के बजाए ये लोग इंटरनेट के लिए डोंगल का इस्तेमाल करते थे. इस के अलावा ट्रेन में यात्रियों या सड़क पर राहगीरों से मोबाइल मांग कर वाईफाई का इस्तेमाल करते थे.

पुणे में ये लोग दिन में मंदिरों में रहते थे और रात को किराए के फ्लैट में चले जाते थे. अजय ने अपना हुलिया भी बदल लिया था. उस ने अपने बाल छोटे करवा लिए थे और क्लीन शेव रहने लगा था.

बाद में पुलिस ने 16 अक्तूबर को एक अन्य आरोपी ओमप्रकाश उर्फ ओपी को गिरफ्तार कर के उस से एक पिस्टल बरामद की. वह घटनास्थल से 5 किलोमीटर दूर जलालसर गांव में खेतों में छिपा रहा था. यहां तक कि वह अपने घर पर भी गया था, जबकि पुलिस उसे पूरे राजस्थान और हरियाणा में ढूंढ रही थी. वह अपने पास मोबाइल नहीं रखता था, इसलिए पुलिस को उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी.

इसी दिन अनुज उर्फ छोटा पांडिया को पुलिस ने भीलवाड़ा से गिरफ्तार कर लिया. वह अहमदाबाद से भीलवाड़ा आया था. अहमदाबाद में उस के परिवार का ट्रांसपोर्ट का काम है. वारदात के बाद वह फतेहपुर से सीकर आया और वहां से जयपुर चला गया. जयपुर से ट्रेन द्वारा वह अहमदाबाद चला गया था.

मुख्य आरोपी अजय ने सीकर की मोहन कालोनी में अपने मामा बलबीर के घर हथियार छिपा कर रखे थे. पुलिस ने इस मकान से 2 देसी कट्टे और 14 कारतूस बरामद किए. साथ ही बलबीर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. लारा के घर से भी हथियार बरामद किए गए. रामपाल और अनुज उर्फ छोटा पांडिया के ठिकानों से भी 2 देसी कट्टे व कारतूस बरामद किए गए.

सवाल यह है कि कोतवाल और कांस्टेबल की हत्या की घटना के बाद राजस्थान की पूरी पुलिस फोर्स सक्रिय हो गई थी. जगहजगह कड़ी नाकेबंदी और जांचपड़ताल की जा रही थी. इस के बावजूद आरोपी फतेहपुर से नवलगढ़ चले गए, जहां उन्होंने इलाज करवाया. फिर नीमकाथाना में घूमते रहे.

वे आराम से सीकर, जयपुर, दिल्ली, फरीदाबाद, पुणे व मुंबई पहुंच गए. लेकिन पुलिस ने उन्हें कहीं भी रोकाटोका नहीं. उन की मोबाइल पर भी आपस में बातचीत होती रही, फिर भी पुलिस उन की लोकेशन एक सप्ताह तक नहीं ढूंढ सकी.

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