कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘यार, मैं ने कब मना किया है. बताओ, अब कहां आना है, कब आना है, इस की व्यवस्था तो तुम दोनों ही करोगे न. तुम तो जब भी मुझे पुकारोगे, मैं दौड़ी चली आऊंगी,’’ यह कहते हुए हंसते हुए दोनों को बायबाय करती आशा आटोरिक्शा में बैठ गई.

दीपक और विकास ने दिमाग दौड़ाया तो विकास ने दीपक को बताया कि पास ही हनुमानगढ़ में उस का एक दोस्त है, जिस ने उसे अपने मकान की चाबी देखभाल करने के लिए दी है. वह दोस्त एक विवाह समारोह में सपरिवार गया है. वहां पर चोरी का खतरा रहता है, उन का घर भी अन्य घरों से काफी दूरी पर है और अकेला घर है. इसलिए मुझे रात को वहीं पर सोना है.

दूसरे दिन दीपक ने आशा को बुला लिया और उसे ले कर विकास के बताए घर हनुमानगढ़ चला गया. वहां तीनों को अपनी हसरतें पूरी करने का पूरा मौका मिला. दिन भर तीनों ने कई बार अपने जिस्मों की प्यास बुझाई. इस के बाद वे तीनों एक साथ मिल कर वासना का यह खेल खुल कर खेलने लगे थे.

लेकिन कहते हैं कि गलत काम की एक न एक दिन पोल जरूर खुलती है. किसी से आशा के पति राजू को यह बात पता चल गई कि आशा आजकल दीपक और एक और एक अन्य युवक के साथ घूमती फिरती है.

राजू अपनी खेती में इतना व्यस्त रहता था कि उसे आशा के बारे में पता ही नहीं चल पाता था. इसलिए जब राजू को यह बात पता चली तो उस ने आशा को बहुत बुराभला कहा और जम कर पिटाई भी कर डाली.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 12 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...