कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
ऑडियो में सुनें पूरी कहानी
0:00
12:24

मेजर अमित द्विवेदी की पोस्टिंग दिल्ली में आर्मी की इंजीनियरिंग विंग में थी. वहां से करीब 3 किलोमीटर दूर उन्हें दिल्ली कैंट की औफिसर्स कालोनी में सरकारी आवास मिला हुआ था. उन का घर से औफिस आनाजाना सरकारी जिप्सी से होता था. घर से औफिस का रास्ता केवल 20 मिनट का था. 23 जून, 2018 को अमित द्विवेदी अपने औफिस से दोपहर करीब 2 बजे घर पहुंचे.

मेजर द्विवेदी घर पहुंचे तो उन की पत्नी शैलजा दिखाई नहीं दी. उन्होंने अपने 6 वर्षीय बेटे अयान से शैलजा के बारे में पूछा. अयान ने बताया कि मौम अभी अस्पताल से नहीं लौटी हैं. शैलजा को अस्पताल में इतनी देर नहीं लगनी चाहिए थी, इसलिए मेजर अमित को थोड़ी चिंता हुई.

दरअसल, शैलजा की एड़ी में दर्द रहता था, जिस का इलाज आर्मी के बेस अस्पताल में चल रहा था. दर्द की वजह से वह कई दिनों तक अस्पताल में भरती भी रही थीं. बाद में उन्हें फिजियोथेरैपी के लिए रोजाना अस्पताल जाना पड़ता था. हर रोज वह पति के औफिस जाते समय उन की जिप्सी से अस्पताल चली जाती थीं. फिजियोथेरैपी के बाद वह पति के ड्राइवर पवन को फोन कर देती थीं. पवन जिप्सी ले कर अस्पताल पहुंच जाता था और वहां से शैलजा को घर छोड़ने के बाद औफिस लौट जाता था.

उस दिन शैलजा को अस्पताल में अपना एमआरआई कराना था, जिस के लिए उन्हें देर से अस्पताल जाना था. उस दिन वह पति के साथ नहीं गई थीं. बाद में उन्होंने ड्राइवर पवन को बुला लिया था. रोजाना की तरह उस दिन वह जिप्सी को अस्पताल के अंदर न ले जा कर अस्पताल के गेट पर ही उतर गई थीं. ड्राइवर वहीं से वापस चला गया था.

मेजर अमित बेटे अयान से पत्नी के बारे में पूछ ही रहे थे कि तभी घर के अर्दली ने बताया, ‘‘सर, मेमसाहब ने घर पर फोन कर के बताया था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है. साहब और अयान को लंच सर्व कर देना.’’

मेजर अमित ने सोचा कि हो सकता है, शैलजा के एमआरआई की रिपोर्ट मिलने में देर हो रही हो, इसलिए घर फोन कर के देर से लौटने को कहा है. मेजर द्विवेदी ने बेटे के साथ लंच कर के पत्नी का मोबाइल नंबर मिलाया. शैलजा का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह डाक्टर के रूम में होगी, कोई डिस्टर्ब न हो, इसलिए फोन बंद कर लिया होगा. वैसे भी शैलजा तेजतर्रार और सुलझी हुई महिला थीं.

लापता हुईं शैलजा

आधे घंटे बाद मेजर अमित द्विवेदी ने फिर से पत्नी का नंबर मिलाया. शैलजा का फोन अब भी स्विच्ड औफ था. तब तक दोपहर के 3 बज चुके थे. अस्पताल के सभी डाक्टर 3 बजे से पहले ही ओपीडी के सभी मरीजों को देख चुके होते हैं. एक बार अमित द्विवेदी ने सोचा कि शैलजा कहीं और चली गई होगी, लेकिन ऐसा होता तो वह घर फोन जरूर करतीं.

मेजर अमित का मन नहीं माना तो उन्होंने आर्मी अस्पताल में फोन कर के शैलजा के बारे में पूछा. वहां से पता चला कि जो डाक्टर शैलजा का इलाज कर रहे थे, शैलजा उन के पास पहुंची ही नहीं थी. यह जान कर मेजर अमित का चिंतित होना स्वाभाविक था. वैसे भी उस दिन ड्राइवर पवन ने शैलजा को अस्पताल के गेट पर उतारा था.

इस से मेजर अमित की परेशानी बढ़ गई. वह सेना की जिस इंजीनियरिंग विंग में थे, उस विंग को उन्होंने पत्नी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. शैलजा के गायब होने की बात सुन कर मेजर अमित के साथ काम करने वाले सेना के कई अधिकारी उन के घर पहुंच गए. अमित ने उन्हें पूरी बात बता दी. इस बीच अमित ने कई बार पत्नी का फोन भी मिलाया, लेकिन वह स्विच्ड औफ ही था.

मेजर अमित के साथियों ने इस संबंध में पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. उसी दिन यानी 23 जून को पश्चिमी दिल्ली के थाना नारायणा को पुलिस कंट्रोल रूम से दोपहर करीब डेढ़ बजे सूचना मिली थी कि बरार स्क्वायर की मुख्य सड़क पर किसी महिला का एक्सीडेंट हो गया है.

पुलिस कंट्रोल रूम को यह जानकारी एक औटो चालक दीपक ने दी थी. एक्सीडेंट की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुनील चौहान पुलिस टीम के साथ बरार स्क्वायर पहुंच गए.

एक्सीडेंट की जगह बरार स्क्वायर मैट्रो स्टेशन से करीब 400 मीटर दूर थी. पुलिस ने देखा वहां सड़क पर 30-35 साल की एक महिला कुचली पड़ी थी. सड़क पर दूर तक खून फैला था. उस जगह किसी कार के टायरों के निशान भी थे.

थानाप्रभारी सुनील चौहान ने टायरों के निशानों को गौर से देखा तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. टायरों के निशान से साफ पता चल रहा था कि उस महिला पर जानबूझ कर कई बार कार चढ़ाई गई थी.

मृतका कौन है और कहां की रहने वाली है, जानने के लिए महिला कांस्टेबल ने तलाशी ली तो मृ़तका के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से उसे पहचाना जाता. पहनावे से मृतका किसी उच्च परिवार की लग रही थी.

थानाप्रभारी ने लाश का निरीक्षण किया तो मृतका के गले पर किसी पतले और तेजधार हथियार से काटने का घाव मिला. गले का घाव देख कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि मामला दुर्घटना का नहीं, बल्कि हत्या का है. हत्यारा संभवत: शातिर दिमाग था, जिस ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की थी. चौहान ने इस की जानकारी उच्च अधिकारियों को दे दी.

कुछ ही देर में एसीपी सोमेंद्र पाल त्यागी भी वहां आ गए. उन्होंने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी मृतका को नहीं पहचान सका. मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीमों को भी बुलवा लिया गया था. दोनों टीमों ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश को हरिनगर स्थित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया.

अस्पताल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी सुनील चौहान थाने लौटे ही थे, तभी मेजर अमित द्विवेदी अपने साथियों के साथ नारायणा थाने पहुंच गए. सेना के अधिकारियों को एक साथ आया देख सुनील चौहान समझ गए कि मामला गंभीर है.

शैलजा मिली तो पर लाश के रूप में

मेजर अमित द्विवेदी ने थानाप्रभारी को अपनी पत्नी शैलजा के गायब होने की बात बताई. उन्होंने बताया कि वह सुबह बेस अस्पताल गई थी, उस के बाद घर नहीं लौटी. अमित द्विवेदी ने उन्हें पत्नी का हुलिया आदि भी बता दिया. उन की बात सुन कर थानाप्रभारी के दिमाग में उस युवती की लाश का चित्र घूम गया, जिसे वह कुछ देर पहले ही दीनदयाल उपाध्याय की मोर्चरी में रखवा कर आए थे.

वजह यह थी कि मेजर द्विवेदी ने अपनी पत्नी का जो हुलिया बताया था, वह लाश से मिलताजुलता था. इत्मीनान से मेजर की बात सुन कर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आज ही बरार स्क्वायर के पास एक महिला की लाश मिली है. मृतका का गला काटने के बाद किसी ने लाश को कार से कुचला था. उस की डैडबौडी दीनदयान उपाध्याय अस्पताल की मोर्चरी में रखी है.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...