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6 दिसंबर को हिमांशु का विवाह ठीकठाक संपन्न हो गया और बहू घर आ गई. खुशी के माहौल में राजकुमार गुप्ता पूर्व की घटनाओं को भूल कर अपने कामकाज में लग गए.

रोज की तरह 4 जनवरी को भी राजकुमार गुप्ता अपनी दुकान पर चले गए. घर में पत्नी सुनीता और बहू रश्मि रह गईं. मकान के पीछे वाले एक कमरे में राजकुमार की विधवा भाभी जगतदुलारी अपने बेटे सत्यम के साथ रहती थीं. एक बजे के करीब भाई रामप्रसाद की बेटी रक्षा आ गई. आगे वाले कमरे में सुनीता आराम कर रही थीं, इसलिए उन से दुआसलाम कर के वह हिमांशु की पत्नी रश्मि के पास चली गई. वहां वह लैपटौप पर उस की शादी की वीडियो देखने लगी.

5 बजे के आसपास रक्षा अपने घर जाने के लिए जब बाहर वाले कमरे से हो कर गुजर रही थी तो अपनी चाची सुनीता को बेड पर घायल पड़ी देख चीख पड़ी. उसी की चीख से इस घटना के बारे में पता चला.

पुलिस को पक्का यकीन था कि इस वारदात में घर के किसी आदमी का हाथ है. ऐसे में पुलिस की निगाह बारबार रक्षा गुप्ता पर जा कर टिक रही थी. लेकिन बिना सुबूत के उस पर हाथ नहीं डाला जा सकता था. इसलिए पुलिस सुबूत जुटाने लगी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसएसपी यशस्वी यादव ने इस मामले के खुलासे के लिए एसपी (ग्रामीण) डा. अनिल मिश्रा, सीओ रोहित मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी संजय मिश्रा और थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी आलोक कुमार के नेतृत्व में 4 टीमें बनाईं.

मोबाइल फोन अपराधियों तक पहुंचने में काफी मददगार साबित होता है, इसलिए पुलिस की इन टीमों ने मोबाइल फोन के जरिए हत्यारों तक पहुंचने की योजना बनाई. पुलिस ने मृतका सुनीता, रश्मि और रक्षा के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इन का अध्ययन करने के बाद पुलिस ने उन मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया, जिन पर उसे संदेह हुआ.

रक्षा के नंबर की काल डिटेल्स में पुलिस को एक नंबर ऐसा मिला, जिस पर घटना के बाद तक उस का संपर्क बना रहा था. लेकिन उस के बाद वह मोबाइल नंबर बंद हो गया था. इस बात से पुलिस को रक्षा गुप्ता पर शक और बढ़ गया.

पुलिस ने इसी शक के आधार  पर घटना के समय से 2 घंटे पहले और 2 घंटे बाद का पशुपतिनगर क्षेत्र के सभी मोबाइल टावरों का पूरा विवरण निकलवाया. इस का फिल्टरेशन किया गया तो रक्षा की उस नंबर से घटना के पहले और बाद में बातचीत होने की पुष्टि तो हुई ही, उस नंबर की उपस्थिति भी पशुपतिनगर की पाई गई.

जांच में यह भी पता चला कि दोनों ने एकदूसरे को एसएमएस भी किए थे. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह नंबर सत्येंद्र यादव का था, जो रक्षा के ही मोहल्ले का रहने वाला था.

पुलिस को जब पता चला कि घटना के पहले और बाद में रक्षा और सत्येंद्र ने एकदूसरे को मैसेज किए थे तो पुलिस ने रक्षा के मोबाइल का इनबौक्स देखा. लेकिन उस में कोई मैसेज नहीं था. इस का मतलब उस ने मैसेज डिलीट कर दिए थे.

पुलिस ने बहाने से सत्येंद्र का मोबाइल फोन ले कर उसे भी चेक किया. उस ने भी सारे मैसेज डिलीट कर दिए थे. शायद उन्हें यह पता नहीं था कि पुलिस चाहे तो उन मैसेजों को रिकवर करा सकती है. पुलिस को लगा कि अगर मैसेज रिकवर हो जाएं तो इस लूट और हत्या का खुलासा हो सकता है.

और सचमुच ऐसा ही हुआ. मैसेज रिकवर होते ही राजकुमार के घर हुई लूट और हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि रक्षा ने ही मैसेज द्वारा चाचा के घर की जानकारी दे कर अपने प्रेमी सत्येंद्र यादव से यह लूटपाट कराई थी. पुलिस ने जो मैसेज रिकवर कराए, वे इस प्रकार थे :

घटना से थोड़ी देर पहले रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज किया था, ‘चाची घर पर हैं, अभी मत आना.’

जवाब में सत्येंद्र ने मैसेज किया था, ‘चाची हैं तो क्या हुआ, मैं आ रहा हूं.’

इस के बाद सत्येंद्र ने अगला मैसेज भेज कर रक्षा से पूछा, ‘मैं तुम्हारी चाची के घर के पास पहुंच गया हूं.    गेट खुला है या नहीं?’

रक्षा ने जवाब दिया था, ‘गेट बंद है, लेकिन अंदर से लौक नहीं है.’

‘मैं घर के अंदर आ गया हूं. तुम अपनी भाभी को संभालना.’ सत्येंद्र ने मैसेज भेजा.

‘ठीक है, गुडलक. ओके.’ रक्षा ने जवाब दिया.

इस के बाद सत्येंद्र ने 5 बजे के करीब रक्षा को मैसेज भेजा, ‘काम हो गया है, मैं जा रहा हूं.’

रक्षा ने जवाब दिया, ‘ओके.’

पुलिस जांच शुरू हुई तो रक्षा ने सत्येंद्र को मैसेज भेजा, ‘कहीं हम फंस न जाएं?’

‘सोने वाला जाग कर गवाही नहीं देगा, परेशान मत हो.’ सत्येंद्र ने उसे तसल्ली दी थी.

रक्षा का आखिरी मैसेज था, ‘नौबस्ता पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच की टीम भी आई थी. एक मोटा दरोगा मुझे घूर रहा था. लगता है, उसे कुछ शक हो गया है.’

सुरक्षा की दृष्टि से सत्येंद्र और रक्षा ने फोन से बातचीत बंद कर दी थी. दोनों एकदूसरे को केवल एसएमएस कर रहे थे. सत्येंद्र ने रक्षा के आखिरी मैसेज के जवाब में कहा था, ‘तुम मोबाइल के इनबौक्स से सारे मैसेज डिलीट कर दो. उस के बाद कुछ नहीं होगा. मैं भी पुलिस के बारे में पता करता रहूंगा.’

इस के बाद पुलिस के लिए संदेह की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. उसे अकाट्य सुबूत मिल गए थे. पुलिस 6 जनवरी, 2014 को रक्षा को उस के घर से हिरासत में ले कर थाना नौबस्ता ले आई. पुलिस ने उस से पूछताछ शुरू की तो काफी देर तक वह इस मामले में अपना और सत्येंद्र का हाथ होने से इनकार करती रही. लेकिन जब पुलिस ने उस के द्वारा डिलीट किए गए मैसेजों को लैपटौप की स्क्रीन पर दिखाना शुरू किया तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं.

अब रक्षा के पास सच उगलवाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था. उस ने अपनी चाची सुनीता की हत्या और लूट में सहयोग का अपना जुर्म स्वीकार करते हुए पुलिस को सत्येंद्र से प्यार होने से ले कर इस अपराध में शामिल होने तक की पूरी कहानी सुना दी.

रक्षा के पिता रामप्रसाद की छोटी सी परचून की दुकान थी. उस दुकान से सिर्फ गुजरबसर हो पाती थी. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इस के बावजूद उस के पिताजी उसे पढ़ाना चाहते थे. वह महिला महाविद्यालय किदवईनगर से बीए कर रही थी. वह पढ़ने में ठीक थी. 2 साल पहले कोयलानगर की रहने वाली एक सहेली के यहां उस की मुलाकात सत्येंद्र यादव से हुई तो वह उस के प्रेम में पड़ गई.

सत्येंद्र यादव भी कोयलानगर के ही रहने वाले अमर सिंह का बेटा था. वह रक्षा की सहेली के यहां अकसर आताजाता रहता था. इसी वजह से रक्षा से उस की मुलाकात होने लगी थी. इन्हीं मुलाकातों में दोनों में आंखमिचौली शुरू हुई तो रक्षा बहकने लगी.

आगे चल कर रक्षा और सत्येंद्र के बीच ऐसा आकर्षण बढ़ा कि बिना मिले उन का मन ही नहीं लगता था. दोनों मोबाइल पर भी लंबीलंबी बातें करते थे. इस तरह जब दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा तो इस के चर्चे मोहल्ले में होने लगे.

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