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हर साल बैसाखी के पर्व पर भारत से सिख व हिंदू श्रद्धालुओं का एक जत्था पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा पंजा साहिब ननकाना साहिब जाता है. वैसे समय समय पर गुरुओं के प्रकाशपर्व या गुरुपर्व पर श्रद्धालु पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों के दर्शन, सेवा आदि करने जाते रहते हैं. पर 13 अप्रैल, 2018 की बैसाखी के पर्व का अपना एक विशेष महत्त्व होता है.

वहां जाने वाले श्रद्धालुओं में उस समय एक अजीब सा उत्साह होता है. जो जत्था पाकिस्तान जाता है, उस की तैयारियां और श्रद्धालुओं की बुकिंग का काम कई महीने पहले से ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की देखरेख में किया जाता है और जत्थे को सहीसलामत पाकिस्तान ले कर जाने और दर्शन करवा कर वहां से वापस भारत आने तक की जिम्मेदारी एसजीपीसी की ही होती है.

इस साल 12 अप्रैल को एसजीपीसी के कार्यकारी सदस्य गुरमीत सिंह की अगुवाई में 717 सदस्यों का जत्था गुरुद्वारा पंजा साहिब में बैसाखी का जश्न मनाने के लिए भारत से पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ. पाकिस्तान के पवित्र मंदिरों, गुरुद्वारों की यात्रा करने के बाद यात्री जत्था जब 21 अप्रैल को वापस भारतपाक बौर्डर पर पहुंचा तो पता चला कि जत्थे में एक यात्री कम है.

इस मामले में जब छानबीन की गई तो पंजाब के होशियारपुर जिले के गढ़शंकर की एक सिख महिला किरनबाला जत्थे में नहीं थी. वह तीर्थयात्रा के दौरान गायब हो गई थी. उस समय ऐसा संभव नहीं था कि किरनबाला की तलाश की जाए, अत: जत्था किरनबाला के बिना ही अमृतसर लौट आया.

किरनबाला हुई लापता

बाद में पता चला कि जत्थे से अलग हो कर किरनबाला ने 16 अप्रैल, 2018 को लाहौर में एक मुसलमान युवक से विवाह कर लिया था. यात्रियों से पूछताछ के बाद पता चला कि पंजा साहिब से लाहौर लौटते समय रावी नदी के निकट से ही किरनबाला अचानक बस से गायब हा गई थी. वह अपना सामान भी बस में ही छोड़ गई थी. उस समय इस बात की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया था कि उस के मन में क्या खिचड़ी पक रही है.

किरनबाला एसजीपीसी के प्रतिनिधिमंडल की ओर से बतौर तीर्थयात्री 12 अपैल को पाकिस्तान रवाना हुई थी. वह भारतीय पासपोर्ट पर पाकिस्तानी वीजा के साथ गई थी, जो 21 अप्रैल तक वैध था. बाद में उस ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिख कर अनुरोध किया कि मैं ने लाहौर के दारुल उलूम जामिया नईमिया में अपनी मरजी से इसलाम धर्म अपनाया है और लाहौर के हंजरवाल मुलतान रोड निवासी मोहम्मद आजम से निकाह कर लिया है. इसलिए मेरे वीजा की अवधि बढ़ाई जाए ताकि मैं अपने शौहर के साथ पाकिस्तान में रह सकूं.

आवेदन में उस का नाम आमना बीबी लिखा था. मंत्रालय ने उस की अरजी स्वीकार कर वीजा की अवधि 30 दिन के लिए बढ़ा दी. यह मामला पाकिस्तानी मीडिया में भी चर्चित हो गया. यह जानकारी मिलने के बाद एसजीपीसी और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया. सुरक्षा एजेंसियों को जांच के बाद पता चला कि किरनबाला को सिख जत्थे के साथ श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे के मैनेजर की सिफारिश पर जत्थे के साथ पाकिस्तान भेजा गया था. जब मैनेजर के बारे में पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह छुट्टी ले कर कनाडा जा चुका है.

खुफिया एजेंसियों ने मैनेजर का भी रिकौर्ड खंगालना शुरू कर दिया कि उस की ओर से अब तक पाकिस्तान गए सिख श्रद्धालुओं के जत्थे में किनकिन लोगों की सिफारिश की गई है. कुछ केंद्रीय एजेंसियों और राज्य की खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों ने भी एसजीपीसी के कर्मचारियों से बात कर के तथ्य जुटाने की कोशिश की.

खुफिया एजेंसियों का अलर्ट

खुफिया एजेंसियां यह पता लगाने की कोशिश कर रही थीं कि किरनबाला ने जत्थे के साथ जाने के लिए अपने क्षेत्र के एसजीपीसी के सदस्यों से सिफारिश न करवा कर अमृतसर जिले के रहने वाले उस मैनेजर से ही क्यों सिफारिश करवाई. यह मैनेजर एक पूर्वमंत्री के पीए का अतिकरीबी था.

किरनबाला पंजाब में अपने 3 बच्चे छोड़ गई थी, जिन में 2 बेटे और एक बेटी है. लेकिन पाकिस्तान में मोहम्मद आजम से शादी करने के बाद वह अपने 3 बच्चों के होने से भी मुकर गई. उस ने पाकिस्तानी मीडिया से कहा कि उस के कोई बच्चा नहीं है. अपने तीनों बच्चों को उस ने अपनी मौसी के बच्चे बताया. जबकि उस की सास और ससुर ने बताया कि किरनबाला वैसे तो 5 बच्चों की मां है. उस के एक बच्चे की मौत उस के जन्म के 4 दिन बाद ही हो गई थी, जबकि दूसरा बच्चा मृत पैदा हुआ था.

अपनी बात को साबित करने के लिए उस के ससुर तरसेम सिंह ने किरनबाला का आधार कार्ड, राशन कार्ड और किरनबाला के तीनों बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र, बीपीएल कार्ड और बेटी के साथ खोले गए बैंक खाते की प्रतियां भी दिखाईं. पाकिस्तान जाते समय किरनबाला 12 साल की अपनी बड़ी बेटी को यह समझा कर गई थी कि वह 21 तारीख को लौट आएगी. तब तक वह अपने छोटे भाइयों का ध्यान रखे. उस ने बच्चों को यह भी समझाया था कि वह दादादादी की बात मानें और घर में किसी को तंग न करें.

किरनबाला की पृष्ठभूमि

किरनबाला का परिवार मूलरूप से पठानकोट के गांव शेरपुर का निवासी था. लेकिन उस के पिता मनोहरलाल लंबे समय से उत्तरी दिल्ली के मुखर्जीनगर इलाके में रहने लगे थे. किरन का जन्म पंजाब के होशियारपुर  के गढ़शंकर गांव में हुआ था. मातापिता के अलावा मायके में उस की एक छोटी बहन और छोटा भाई है. बहन की शादी हो चुकी है, जबकि भाई दिल्ली में पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता है.

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