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लाली बगीचे में पहुंची तो वहां मंदिर के पास विकेश खड़ा था. एक पल दोनों खामोश एकदूसरे को निहारते रहे. विकेश ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘कैसी हो भाभी?’’

‘‘मुझे भाभी मत कहो,’’ बुझे मन से लाली ने उत्तर दिया, ‘‘तुम्हारे भाई ने यह हक खो दिया है.’’ लाली बोली.

‘‘जानता हूं, तभी तो आप से मिलने के लिए महीनों से परेशान था.’’ विकेश ने कहा.

‘‘वह क्यों?’’

‘‘यही कि आप के जख्मी दिल को सहानुभूति का मरहम लगा कर आप की पीड़ा को कुछ कम कर सकूं.’’

‘‘आप ने मेरे लिए इतना सोचा, शुक्रिया.’’

‘‘इस में शुक्रिया की क्या बात है.’’

‘‘अब तो उन के बिना मैं ने जीना सीख लिया है, कह देना उन से.’’

‘‘क्या मैं आप की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा सकता हूं?’’ विकेश ने सकुचाते हुए उस की ओर अपना दाहिना हाथ बढ़ाया तो लाली कुछ सोचने लगी. फिर कुछ देर बाद उस ने भी अपना दाहिना हाथ उस की ओर बढ़ा दिया.

‘‘बताओ, क्यों बुलाया था मुझे?’’ अपना हाथ छुड़ाते हुए लाली ने पूछा.

‘‘मुझे आप का दुख देखा नहीं जा

रहा था.’’

‘‘कहा न मैं ने, किसी के बगैर जीना सीख लिया है.’’

‘‘लेकिन मैं...मैं आप से...’’

‘‘तुम मुझ से क्या?’’

‘‘मैं आप से प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘लेकिन मैं तुम से प्यार नहीं करती.’’

‘‘मैं बिट्टू जैसा नहीं हूं, जो आप को धोखा दूं.’’

‘‘मेरा ‘प्यार’ शब्द से भरोसा उठ गया है. इस शब्द ने बहुत दुख दिया है मुझे. टूट गई हूं मैं. कोई ऐसा कंधा भी नहीं, जिस पर अपना सिर रख कर आंसू बहा सकूं.’’

‘‘है न मेरा कंधा, जिस पर सिर रख कर आप जी भर कर रो सकती हैं. मैं बिलकुल भी बुरा नहीं मानूंगा.’’

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