ओमप्रकाश जितना सीधासादा था, उतना ही मेहनती भी था. गांव में इधरउधर बैठने के बजाय वह अपने खेती के काम में लगा रहता  था. उस के खेतों में अच्छी पैदावार होती थी. इसी वजह से गांव के लोग उस की पीठ पीछे भी तारीफ करते थे. ओमप्रकाश के घर के पास ही संतोष रावत रहता था. शादीशुदा होते हुए भी दूसरी महिलाओं से नजदीकी बढ़ाना उस की आदत में शुमार था.

एक दिन वह ओमप्रकाश के घर गया. वहां उस की पत्नी सुनीता मिली. वह उस से ओमप्रकाश की तारीफ  करते हुए बोला, ‘‘भाभी, तुम भैया को ऐसा क्या खिलाती हो कि दिनरात खेतों में जुटे रहते हैं, फिर भी नहीं थकते. मेरे घर वाले कहते हैं कि मेहनत करने का सबक ओमप्रकाश से सीखो.’’

पति की प्रशंसा सुन कर सुनीता मुसकराई, लेकिन बोली कुछ नहीं. संतोष ने समझा कि वह पति की तारीफ सुन कर मन ही मन गदगद हो रही है. इसलिए उस ने ओमप्रकाश की तारीफ के पुल बांधना जारी रखा.

‘‘सुबह से देर शाम तक खेत में ही तो जुटे रहते हैं. जबकि आदमी को घर की तरफ ध्यान देना भी जरूरी होता है. घर में जो काम करना चाहिए, वह तो करते नहीं.’’ सुनीता ने कहा.

संतोष के दिमाग में बिजली सी कौंधी. वह सोचने लगा कि ऐसा कौन सा काम है, जो भैया घर पर नहीं करते. जिज्ञासा शांत करने के लिए वह बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी बात समझा नहीं. ऐसा कौन सा काम है जो भैया नहीं करते?’’

मन की भड़ास निकालने के लिए सुनीता ने जैसे ही मुंह खोला, तभी उस की जेठानी कमला आ गई. वे दोनों आपस में बतियाने लगीं तो संतोष वहां से चला गया.

ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के गांव सलोनीपुर मजरा खिजना का रहने वाला था. उस का विवाह करीब 6 साल पहले सीतापुर के महमूदाबाद थाना के जसमंडा गांव की रहने वाली सुनीता से हुआ था. सुनीता खूबसूरत थी, इसलिए उस से शादी कर के ओमप्रकाश बहुत खुश था. बाद में सुनीता 2 बेटों और 1 बेटी की मां बनी.

संतोष ओमप्रकाश को बड़ा भाई मानता था. ओमप्रकाश भी छोटा भाई मान कर उस का पूरा खयाल रखता था. इसी वजह से संतोष उस के घर आताजाता रहता था. सुनीता और संतोष में खूब पटती थी. उन के बीच हंसीमजाक भी चलता रहता था.

सुनीता द्वारा कही गई बात संतोष के जेहन में घूम रही थी. वह समझ गया था कि सुनीता ओमप्रकाश से संतुष्ट नहीं है. अगर वह संतुष्ट होती तो पति की तारीफ सुन कर खुश हो जाती और कुछ न कुछ जरूर कहती. वह किस वजह से असंतुष्ट थी, यह तो वही जानती होगी. लेकिन संतोष का मन कह रहा था कि वह दैहिक रूप में असंतुष्ट होगी. लेकिन ऐसा होता तो उस के आंगन में 3 बच्चे नहीं खेल रहे होते.

संतोष ने काफी सोचा, लेकिन वह सुनीता की असंतुष्टि का कारण नहीं जान पाया. हकीकत जानने के लिए अगले दिन दोपहर में वह सुनीता के घर जा पहुंचा.

उस समय सुनीता घर में अकेली थी. संतोष उस के पास जा कर बैठ गया. दोनों ने मुसकान बिखेर कर एकदूसरे के प्रति मन की खुशी जाहिर की. बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो संतोष के मन की बात होंठों पर आ गई, ‘‘भाभी, कल तुम जो बात कह रही थीं, कमला भाभी के आ जाने की वजह से अधूरी रह गई थी. आखिर वह क्या बात है?’’

सुनीता ने गहरी नजरों से संतोष को देखा. फिर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘लगता है कि कल से तुम इसी उधेड़बुन में लगे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन कोई बात अधूरी रह जाए तो मन को मथती रहती है.’’ संतोष बोला.

‘‘उसी बात को जानने के लिए बेचैन हो?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां भाभी,’’ संतोष बोला.

‘‘मान लो, मैं बता भी दूंगी तो उस से क्या फायदा होगा? जो काम वह नहीं करते, उसे तुम कर दोगे?’’ सुनीता ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

सुनीता की आंखों में छाए नशे और बातों से संतोष अच्छी तरह समझ गया कि वह क्या चाहती है. इसलिए वह भी उसी अंदाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी हर तरह की सेवा करने को मैं तैयार हूं. कुछकुछ तुम्हारी भावनाओं को समझ भी रहा हूं.’’

‘‘संतोष सोच लो, तुम शादीशुदा हो. बीवी के होते हुए तुम मेरे लिए टाइम निकाल पाओगे?’’

‘‘उस की चिंता मत करो. उसे भनक तक नहीं लगेगी. सच तो यह है कि भाभी, मैं तुम्हें बहुत दिनों से प्यार करता हूं, लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.’’ संतोष ने सुनीता के नजदीक आते हुए कहा.

उस समय कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था. इसलिए दोनों खुद पर काबू न रख सके और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अवैध संबंधों की राह बहुत ढलवां होती है. कोई भी आदमी इस पर एक बार कदम रख देता है तो वह फिसलता ही जाता है. संतोष और सुनीता ने शादीशुदा होते हुए भी ऐसे रास्ते पर कदम रखा था, जिस का खामियाजा हमेशा गलत ही होता है. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी को धोखा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते रहे. उन्होंने वासना की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

पाप की गठरी अधिक दिनों तक बंधी नहीं रहती. एक न एक दिन उस की गांठ खुल ही जाती है. धीरेधीरे दोनों के नाजायज संबंधों की भनक गांव के लोगों को भी लग गई. गांव में अपनी बदनामी होते देख सुनीता संतोष से दूरी बनाने लगी. लेकिन संतोष उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था. वह जबतब उस के यहां आता रहा.

इसी साल मार्च में ओमप्रकाश का भांजा विकास घर आया. 18 साल का विकास उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव इब्राहीमपुर में रहता था. विकास शारीरिक रूप से मजबूत था.

उसे देख कर पथभ्रष्ट हो चुकी सुनीता के मन में लालच के बीज अंकुरित होने लगे. इस से पहले भी उस ने विकास को कई बार देखा था, लेकिन इस बार उस की सोच बदल गई थी. सुनीता ने विकास की खूब आवभगत की. वह कई दिनों तक मामा के घर रुका रहा. इस दौरान सुनीता विकास के इर्दगिर्द मंडराती रही. मौका देख वह उस से हंसीमजाक भी करती थी.

कुछ दिन रुकने के बाद जब विकास वापस जाने लगा तो सुनीता विकास का हाथ थाम कर बोली, ‘‘विकास, अब कब आओगे?’’

मामी के इस तरह हाथ पकड़ने से विकास के शरीर में सनसनाहट सी दौड़ गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह वहां से अभी न जाए, लेकिन पापा का फोन आ गया था, जिस से उसे वहां से उसी समय जाना पड़ रहा था. उस ने सुनीता को मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘मामी, वैसे तो मेरा यहां से जाने का मन नहीं कर रहा है. लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

विकास ने मामी के खूबसूरत चेहरे पर नजरें जमाईं तो उस की आंखों में प्यार का मूक आमंत्रण था.

विकास अपने घर तो वापस आ गया, लेकिन उस के मनमस्तिष्क में मामी का खूबसूरत बदन और उस के द्वारा कहे शब्द ही घूम रहे थे. उस का घर पर भी मन नहीं लग रहा था. कुछ दिनों बाद ही वह अपने मन में मामी की नजदीकी हासिल करने के सपने संजोए उस के घर आ गया.

विकास को आया देख सुनीता की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अब जल्द ही अपनी हसरतें पूरी करना चाहती थी. एक दिन उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास क्या तुम ने किसी लड़की से प्यार किया है?’’

‘‘क्यों.’’ विकास ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘बताओ तो सही.’’ कह कर सुनीता विकास के करीब आ गई.

‘‘एक है, लेकिन पता नहीं वह भी मुझ से प्यार करती है या नहीं.’’

‘‘तुम्हें उस के सामने प्यार का इजहार करना चाहिए.’’ सुनीता ने कहा.

‘‘सोचा कहीं बुरा न मान जाए. अच्छा मामी यह बताओ, अगर उस की जगह तुम होती तो क्या करतीं?’’

‘‘मेरे ऐसे भाग्य कहां.’’ कह कर सुनीता उदास हो गई.

‘‘फिर भी बताओ तो सही. तुम्हारा क्या जवाब होता?’’

‘‘तो मैं तुम्हारे गले में बांहों का हार पहना देती. मगर विकास तुम यह मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘क्योंकि वह और कोई नहीं, तुम ही हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें बांहों में भर कर खूब प्यार लुटाना चाहता हूं.’’ विकास की आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे.

‘‘बिलकुल बुद्धू हो, औरत की आंखों की भाषा पढ़ना भी नहीं जानते.’’

सुनीता की बात सुन कर विकास ने उसे अपनी बांहों में भर कर उस के चेहरे को चूम लिया. सुनीता ने भी उसे अपने अनुभव के जलवे दिखाने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में उन के बीच ऐसे संबंधों ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध कहता है.

विकास का वहां ज्यादा दिनों तक रहना रिश्तों में शक पैदा कर सकता था, इसलिए कुछ दिनों बाद वह वहां से चला गया और थोड़ेथोड़े दिनों बाद मामी से मिलने आने लगा. इस तरह उन का यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. ओमप्रकाश को इस की भनक तक न लगी. 24 अगस्त, 2013 को सीतापुर जिले की महमूदाबाद थाना पुलिस को गांव याकूबनगर के पास एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

लाश की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश याकूबनगर से पैतेपुर गांव जाने वाली सड़क पर पड़ी थी. उन्होंने देखा कि उस की गरदन पर गहरे घाव थे, जबकि बाकी शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे. घाव किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. वहां पर तमाम लोग इकट्ठा थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय, सीतापुर भेज दिया.

अगले दिन समाचारपत्रों में लाश मिलने का समाचार फोटो सहित छपा, इस के बावजूद लाश की शिनाख्त के लिए कोई थाने नहीं आया. लाश की शिनाख्त होने के बाद ही केस की काररवाई संभव थी. इसलिए पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि कहीं आसपास के जिलों के किसी थाने से इस हुलिया का आदमी तो लापता नहीं है. पुलिस की इस काररवाई का भी कोई नतीजा नहीं निकला.

13 सितंबर  को देशराज रावत नाम का एक आदमी थाना महमूदाबाद पहुंचा. उस ने बताया कि वह बाराबंकी के बड्डूपुर थानाक्षेत्र में सलोनीपुर गांव का रहने वाला है. उस का बेटा संतोष 23 अगस्त से गायब है.

थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने याकूबनगर के पास से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, उस के कपड़े और फोटो देशराज को दिखाए. कपड़े और फोटो देखते ही देशराज रोने लगा. उस ने कहा कि यह सब सामान उस के बेटे का ही है. लाश की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने देशराज रावत से मालूमात की तो उस ने बताया कि संतोष 23 अगस्त को घर से गायब हुआ था. गांव में ही रहने वाले ओमप्रकाश की पत्नी सुनीता के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस ने शक जताया कि उस के बेटे की हत्या सुनीता या उस के घर वालों ने की होगी.

देशराज रावत से अहम जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर सुभाषचंद्र तिवारी ने अपनी तहकीकात शुरू की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि संतोष और सुनीता के बीच अवैध संबंध थे. उन्हें यह भी पता चला कि संतोष के गायब होने के एक दिन पहले ही वह अपने मायके आ गई थी. उस का मायका महमूदाबाद थानाक्षेत्र के जसमंडा गांव में था. संतोष की लाश उस के गांव से कुछ दूर मिलने से जाहिर होता था कि उस की हत्या में सुनीता का हाथ हो सकता है.

पुलिस सुनीता की तलाश में जुट गई और मुखबिर की सूचना पर उसे 19 सितंबर को मोतीपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने संतोष की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि संतोष की हत्या में उस के साथ उस का भांजा व प्रेमी विकास और उस का जेठ सियाराम भी शामिल था.

पूछताछ में सुनीता ने बताया कि संतोष उस के गले की हड्डी बनता जा रहा था. उस की वजह से वह पूरे गांव में बदनाम हो गई थी, लेकिन वह था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं तैयार था. उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई.

यह सब अकेली सुनीता के बस की बात नहीं थी. इस के लिए उस ने विकास को तैयार करने का मन बनाया. उस ने रोते हुए विकास से कहा, ‘‘विकास, संतोष ने मेरा जीना हराम कर दिया है. जहां भी जाती हूं, उस की वजह से मुझे बदनामी झेलनी पड़ती है. वह मेरा किसी हाल में पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’

सुनीता को रोते देख कर विकास का दिल भर आया. उस ने कहा, ‘‘रोओ मत मामी, मैं हूं न. अगर वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रहा तो उसे यह दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी.’’ कहते हुए विकास के चेहरे पर कठोरता आ गई.

यह देख कर सुनीता मन ही मन खुश हुई, लेकिन फिर संभल कर बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो, यही एक तरीका है. लेकिन इस के लिए मेरे जेठ यानी तुम्हारे बड़े मामा सियाराम को भी तैयार करना होगा. तीन लोगों के साथ होने से संतोष बच के नहीं निकल पाएगा.’’

विकास ने सहमति दे दी. इस के बाद उस ने बड़े मामा सियाराम से बात की और घर की इज्जत को बचाने का वास्ता दे कर उसे साथ देने के लिए राजी कर लिया. फिर तीनों ने बैठ कर संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

योजनानुसार 22 अगस्त, को सुनीता अपने बच्चों के साथ विकास और सियाराम को ले कर अपने मायके आ गई. 23 अगस्त को सुनीता ने संतोष को फोन कर के मिलने के लिए गांव जसमंडा बुलाया. सुनीता के बुलाने पर संतोष तुरंत बाराबंकी से बस द्वारा लखनऊ होते हुए पहले सीतापुर के कस्बा महमूदाबाद पहुंचा और वहां से सुनीता द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गया.

विकास और सियाराम उस जगह पर पहले ही छिप कर बैठ गए थे. उस समय रात के करीब 9 बज रहे थे. वादे के अनुसार सुनीता संतोष को निश्चित जगह पर मिल गई और उस से बातें करती हुई चलने लगी. वह याकूबपुर गांव के पास पहुंचे ही थे कि अंधेरे का फायदा उठा कर पीछेपीछे आ रहे विकास और सियाराम ने संतोष को दबोच कर जमीन पर गिरा लिया. इस के बाद उन्होंने बांके से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में संतोष की मौत हो गई. बांके को वहीं पास की झाडि़यों में छिपा कर तीनों वहां से फरार हो गए.

अगले दिन 20 सितंबर को विकास और सियाराम को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर उन से पूछताछ की. उन्होनें भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने सुनीता, विकास और सियाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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