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एसपी केशव कुमार के आदेश पर चारों टीमों का नेतृत्व एएसपी कुंवर ज्ञानंजय सिंह कर रहे थे. पुलिस ने मृतक की पत्नी नुसरत जहां को शक के दायरे में ले लिया और जांच में एक चौंकाने वाली बात सामने आई कि पतिपत्नी के बीच रिश्ते मधुर नहीं थे. उन में काफी तनाव और कड़वाहट थी और दोनों में अकसर झगड़ा होता रहता था.

मियांबीवी के बीच बिगड़े रिश्ते की असल वजह पति इम्तियाजुल का पत्नी के चरित्र पर शक करना था. इसी बिंदु को आधार मान कर पुलिस ने अपनी जांच आगे बढ़ाई और नुसरत जहां के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. यही नहीं, पुलिस ने उस के नंबर की पिछले 15 दिनों की कालडिटेल्स भी निकलवाई.

पुलिस ने उस के बातचीत की रिकौर्डिंग भी सुनी तो उस के पैरों से जमीन जैसे खिसक गई. बातचीत की रिकौर्डिंग ने पुलिस के शक को यकीन में बदल दिया. पति की हत्या में नुसरत जहां का पूरापूरा हाथ था लेकिन पुलिस ने उसे आभास तक नहीं होने दिया नहीं तो उस का साथ देने वाले सावधान हो जाते.

बहरहाल, जिस नंबर से नुसरत जहां के फोन पर आखिरी बार काल आया था, उसी नंबर से उस की लंबी बातचीत हुआ करती थी.

पुलिस ने जब उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह दरगाह शरीफ थाना क्षेत्र के मुसल्लमपुर राम के रहने वाले नदीम अहमद का नंबर था. फिर देर रात नदीम अहमद के घर दबिश दे कर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले कर थाने ले आई.

सख्ती के साथ पूछताछ में वह पुलिस के सामने टूट गया और अपना जुर्म कुबूलते हुए बताया कि उस ने अपने दोस्त और मसजिद के इमाम दाऊद के साथ मिल कर वकील इम्तियाजुल हक की हत्या की थी. इस में मृतक की पत्नी नुसरत जहां ने उस की पूरी मदद की थी.

उसी रात पुलिस ने नदीम अहमद की निशानदेही पर कोतवाली नगर स्थित काजीपुरा निवासी दाऊद अहमद और जमील कालोनी से नुसरत जहां को गिरफ्तार कर लिया. दोनों आरोपियों ने भी अपने अपराध स्वीकार कर लिए.

24 घंटे के भीतर पुलिस ने वकील इम्तियाजुल हक हत्याकांड का खुलासा कर दिया था. अगले दिन 17 अक्तूबर, 2022 को पुलिस लाइन में एएसपी कुंवर ज्ञानंजय सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर केस का खुलासा कर दिया.

प्रैसवार्ता संपन्न होने के बाद तीनों आरोपियों को अदालत के सामने पेश कर जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में अधिवक्ता इम्तियाजुल हक हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

40 वर्षीय इम्तियाजुल हक मूलरूप से बहराइच जिले के थाना दरगाह शरीफ इलाके के सलारगंज स्थित जमील कालोनी में अपने परिवार सहित पैतृक मकान में रहते थे. पतिपत्नी और 2 बच्चे. यही उन का हंसताखेलता परिवार था.

उन का छोटा भाई रिजवानुल हक मांबाप के साथ रहता था. हालांकि दोनों भाइयों के बीच पैतृक संपत्तियों का बंटवारा हो चुका था. बंटवारे के बाद मांबाप ने खुद छोटे बेटे के साथ रहना पसंद किया तो बड़ा बेटा इम्तियाजुल ने उन के फैसले को मान लिया.

यूं तो इम्तियाजुल हक पेशे से वकील थे. उन की अच्छी वकालत चलती थी. मिलनसार प्रवृत्ति के इम्तियाजुल अपने पेशे में ईमानदार थे. जिस का भी केस अपने हाथों में लेते थे, उस की जीत होनी पक्की रहती थी. इस वजह से उन के मुवक्किल मुंहमांगी फीस देने को तैयार रहते थे.

अनुभवी वकील इम्तियाजुल हक वकालत से इतना कमा लेते थे कि उन की जिंदगी बड़े चैन से कट रही थी. घर में हर सुखसुविधा मुहैया थी. चाहे वह खानेपीने वाली चीज हो अथवा भौतिक सुख. किसी भी चीज में वह कभी कटौती नहीं करते थे. बच्चे भी अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे. वे पढ़ने में होशियार थे.

इम्तियाजुल हक की अपनी सोच थी कि बच्चे अंगरेजी के साथसाथ अन्य भाषाओं का ज्ञान हासिल कर रहे हैं तो क्यों न उन्हें अरबी भाषा का भी ज्ञान दिया जाए जो कभी न कभी उन के काम आ सकता है.

उन्होंने अपने कुछ परिचितों से बात छेड़ी तो उन के एक दोस्त ने सलारगंज स्थित मसजिद के मुअज्जिन नदीम अहमद का नाम सुझाया और कहा कि वह बेहद काबिल उस्ताद हैं. उन्हें अरबी का अच्छा ज्ञान है.

अधिवक्ता इम्तियाजुल हक की ओर से हरी झंडी मिलते ही वह दोस्त एक दिन रविवार की सुबह नदीम अहमद को अपने साथ ले कर उन के घर पहुंचा तो बच्चों से उसे मिला दिया गया और परिचय भी करवा दिया कि अब से ये आप को अरबी की तालीम देंगे. ये आप के उस्ताद हैं.

उस दिन के बाद से नदीम अहमद इम्तियाजुल के दोनों बच्चों को घर पर आ कर अरबी की तालीम देने लगा. यह घटना से करीब एक साल पहले की बात है.

नदीम अहमद गोराचिट्टा, सुंदर और लंबाचौड़ा इकहरे बदन वाला नौजवान था. यही नहीं उस की बोली में गजब की मिठास थी. अपनी मीठी बोली से किसी को भी अपनी ओर सरलतापूर्वक रिझा सकता था. इम्तियाजुल के दोनों बच्चे भी नदीम की मीठी बोली के कायल थे.

चूंकि नदीम अहमद बच्चों का उस्ताद था, इस लिहाज से दोनों बच्चों की मां नुसरत जहां उर्फ गुलसुम उस के स्वागत में चायनाश्ता वगैर खुद देने आती थी. क्योंकि दोनों बेटों के अलावा परिवार में कोई नहीं था जो उस्ताद को चायनाश्ता ले जाता.

भले ही नुसरत जहां 2 बच्चों की मां थी. 12-14 साल के करीब दोनों बच्चों की उम्र भी हो चुकी थी लेकिन शक्लोसूरत देख कर कोई नहीं बता सकता था कि वह इतने बड़ेबड़े बच्चों की मां होगी.

गले में दुपट्टा डाले और उसी के मैचिंग का पहने जब वह पहली बार हाथ में चाय की प्याली ले कर कुरसी पर बैठे नदीम के सामने गई तो नदीम की नजरें नुसरत जहां के गोल और सुंदर मुखड़े से टकराईं. उस की सुंदरता देख कर वह उस का मुरीद हो गया था. ऐसा नहीं था कि नुसरत ने उस्ताद नदीम की हरकतों को देखा न हो, उस ने अपनी झुकीझुकी नजरों से सब देख लिया था. फिर वह उस के सामने पड़ी मेज पर चाय की प्याली और नमकीन से भरी प्लेट रख कर अपने कमरे में लौट आई.

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