
5 अक्तूबर, 2018 सुबह करीब 9 बजे वोराले गांव की रहने वाली मालन म्हमाणे अपने घर की सफाई कर रही थी, तभी उसे 2 खत मिले. मालन म्हमाणे ने वह खत ला कर अपने बेटे बालासाहेब म्हमाणे को देते हुए पढ़ कर सुनाने को कहा.
बालासाहेब म्हमाणे ने जब खतों को पढ़ा तो वह परेशान हो उठा. उस के चेहरे पर पसीना आ गया, क्योंकि वे दोनों खत उस की भांजी अनुराधा के द्वारा लिखे हुए थे. वह उन के यहां ही रह रही थी और एक दिन पहले ही अपनी मां के साथ अपने घर लौट गई थी. दोनों खतों में अनुराधा ने अपने पिता और सौतेली मां से अपनी जान को खतरा और अपनी हत्या का संदेह जताया था.
बेटे को परेशान देख कर मां मालन म्हमाणे भी घबरा गईं. उन्होंने बालासाहेब का कंधा हिलाते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ तुझे, यह खत किस के हैं, जो तू इतना परेशान हो गया?’’
बालासाहेब म्हमाणे ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां यह खत अनुराधा के हैं और इन में कुछ अच्छा नहीं लिखा है. उस के साथ कुछ गलत होने वाला है.’’
यह सुन कर मालन म्हमाणे के होश उड़ गए.
अनुराधा कैसी है, यह जानने के लिए मां ने उसी समय उसे फोन किया तो दूसरी ओर से किसी ने फोन नहीं उठाया. इस के बाद तो उन का और ज्यादा परेशान होना स्वाभाविक था. लिहाजा उन दोनों ने अनुराधा के गांव जाने की तैयारी कर ली.
उसी समय किसी ने उन्हें फोन कर के अनुराधा के बारे में जो बताया, उसे सुन कर मांबेटे के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्हें बताया गया कि अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण अनुराधा की मौत हो गई और रात में ही उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया गया.
मालन म्हमाणे ने अपने दामाद यानी अनुराधा के पिता को फोन किया तो उन्होंने भी अनुराधा की डेंगू से मौत हो जाने की पुष्टि की. यह बात मालन के गले नहीं उतरी थी. अनुराधा को भला ऐसी कौन सी बीमारी हो गई थी, जब वह यहां से गई थी तो भलीचंगी थी.
अपनी नातिन की मौत की बात मालन के गले नहीं उतर रही थी. आश्चर्य की बात यह थी रिश्तेदारों को कोई खबर दिए बिना उस का दाह संस्कार भी कर दिया गया था.
मालन को अनुराधा के मांबाप पर संदेह होने लगा. अनुराधा का मातम मनाने के लिए उस के घर न जा कर वह सीधे मंगलमेढ़ा पुलिस थाने पहुंच गई. थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे की सारी बातें बता कर उन्होंने अनुराधा के दोनों खत थानाप्रभारी को सौंप दिए.
मामला संदिग्ध भी था और सनसनीखेज भी. मंगलमेढ़ा थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उन की शिकायत दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक टीम को दे दी. इस के बाद वह असिस्टेंट इंसपेक्टर वैभव मार्कंड, सिपाही दत्तात्रेय तोंदले, संजय गुंटाल को साथ ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.
अनुराधा की अचानक मौत और उस के दाह संस्कार करने की खबर जब गांव में फैली तो गांव वाले हैरान रह गए. देखते ही देखते गांव के तमाम लोग अनुराधा के घर के सामने इकट्ठे हो गए.
पुलिस टीम ने अनुराधा के परिवार वालों और गांव वालों से उस के बारे में पूछताछ शुरू की. थोड़ी देर में जानकारी पा कर एसपी (ग्रामीण) मनोज पाटिल, एसडीपीओ दिलीप जगदाले भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए. लोगों से बातचीत कर के और थानाप्रभारी को दिशानिर्देश दे कर अधिकारी अपने औफिस लौट गए.
अपने वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी प्रभाकर मोरे उस जगह पर पहुंचे, जहां अनुराधा का अंतिम संस्कार किया गया था. वहां से उन्होंने अनुराधा के शव की राख का सैंपल लिया. जब अनुराधा के कमरे की तलाशी ली गई तो वहां जहरीले पदार्थ की एक शीशी मिली.
दोनों को परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेज दिया गया. विस्तृत पूछताछ के लिए पुलिस अनुराधा के मांबाप को थाने ले आई. उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि अनुराधा ने उन के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे, जिस से उन्हें उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. अनुराधा की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—
20 वर्षीय अनुराधा देखने में जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और महत्त्वाकांक्षी भी थी. जो उसे देखता था, अपने आप उस की तरफ खिंचा चला जाता था. लेकिन अनुराधा जिस की तरफ खिंची चली गई, वह उस के बचपन का दोस्त श्रीशैल विराजदार था.
अनुराधा के पिता विट्ठल विराजदार महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के तीर्थस्थल पंढरपुर, तालुका मंगलमेढ़ा, गांव सलगर के रहने वाले थे. तालुका मंगलमेढ़ा में उन की गिनती एक रसूखदार किसान के रूप में होती थी. उन की समाज में काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी.
एक अच्छे काश्तकार होने के साथ साथ वह मंगलमेढ़ा विद्या मंदिर हाईस्कूल में क्लर्क थे. वह इज्जतदार सामाजिक व्यक्ति थे, जबकि अनुराधा का स्वभाव अपने पिता से एकदम अलग था. वह खुले दिमाग की थी. उस के स्वभाव में इंसानियत भी थी और दया भी. वह ऊंचनीच, अमीरगरीब के भेदभाव को नहीं मानती थी.
अनुराधा अपनी बहन और भाई से बड़ी थी. जब वह 2-3 साल की थी, तभी उस की मां की मृत्यु हो गई थी. मां की मौत के बाद पिता के सामने बच्चों की देखभाल और काश्तकारी की वजह से समस्या खड़ी हो गई. इस समस्या के चलते वह किसी पर भी ध्यान नहीं दे पा रहे थे.
तब विट्ठल विराजदार ने अपने नातेरिश्तेदारों और परिवार वालों से सलाहमशविरा कर के दूसरी शादी करने का फैसला किया और पास के गांव की रहने वाली श्रीदेवी से दूसरा विवाह कर लिया.
श्रीदेवी ने विट्ठल विराजदार की गृहस्थी को संभल लिया. अपनी काश्तकारी संभालने के लिए विट्ठल ने कर्नाटक के सिंदगी के रहने वाले चिन्नप्पा विराजदार को अपने यहां नौकरी पर रख लिया. इस के बाद विट्ठल विराजदार की गाड़ी पटरी पर आ गई.
श्रीशैल विराजदार और अनुराधा हमउम्र थे. श्रीशैल जब कभी अपने पिता से मिलने आता तो अनुराधा उस से घुलमिल जाती थी. उस समय वह यह नहीं जानती थी कि वह उन के नौकर का बेटा है.
कुछ दिनों तक तो श्रीदेवी अपनी सौतन के बच्चों की ठीक से देखभाल करती रही, लेकिन जब वह स्वयं मां बनी तो सौतन के बच्चों के प्रति उस का व्यवहार बदल गया. इसी बीच संदिग्ध परिस्थितियों में अनुराधा की छोटी बहन की मौत हो गई, जिस से अनुराधा को काफी दुख हुआ.
4 साल की हो चुकी अनुराधा को मां और सौतेली मां के बीच के फर्क का अंदाजा होने लगा था. यह फर्क भारी दरार में न बदल जाए, इसलिए विट्ठल विराजदार ने उसे कुछ दिनों के लिए वोराले गांव में उस की नानी और मामा के यहां भेज दिया.
वोराले गांव में अपनी नानी और मामा के साथ रह कर अनुराधा काफी होशियार और समझदार हो गई थी. उस ने जब 10वीं क्लास अच्छे अंकों से पास करती तो आगे की पढ़ाई के लिए विट्ठल विराजदार अनुराधा को अपने गांव ले आए और अच्छे कालेज में दाखिला दिलवा दिया.
अनुराधा डाक्टर बनना चाहती थी. उस की पढ़ाई में रुचि और मेहनत देख कर विट्ठल अनुराधा को डाक्टर के रूप में देखने लगे थे.
अनुराधा ने भी अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए जीतोड़ मेहनत की, जिस से 12वीं की परीक्षा में उस ने 99 प्रतिशत अंक हासिल किए. इस के बाद अनुराधा ने कर्नाटक के सिंदगी मैडिकल कालेज में एडमिशन ले लिया और कालेज के हौस्टल में रह कर मैडिकल की पढ़ाई करने लगी.
विट्ठल विराजदार की खेती संभालने वाला चिन्नप्पा विराजदार सिंदगी का रहने वाला था. उस का बेटा श्रीशैल अनुराधा का बचपन का दोस्त था. सिंदगी मैडिकल कालेज में आ जाने के बाद श्रीशैल कभीकभी अनुराधा से मिलने आने लगा. वह उस का पूरा ध्यान रखता था. कभीकभी अनुराधा भी श्रीशैल के घर पहुंच जाती थी. श्रीशैल के परिवार वाले अपने मालिक की बेटी की हैसियत से उस का आदरसत्कार करते थे.
छुट्टी के दिनों में श्रीशैल अनुराधा को ले कर इधरउधर घुमाने के लिए निकल जाता था. दोनों की बचपन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला. जैसे जैसे समय बीत रहा था, वैसेवैसे उन के प्यार का रंग भी गहरा होता जा रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब अनुराधा और श्रीशैल ने एकदूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खा लीं.
किसी माध्यम से जब इस बात की जानकारी अनुराधा के पिता विट्ठल विराजदार को हुई तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने अनुराधा को ले कर जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरता हुआ नजर आया.
मामला काफी नाजुक था. मौका देख कर पतिपत्नी दोनों ने अनुराधा को काफी समझाया. उसे अपनी मान मर्यादा के बारे में सचेत किया. लेकिन श्रीशैल के प्यार में आकंठ डूबी अनुराधा पर उन की किसी बात का असर नहीं हुआ.
अनुराधा पर अपनी बातों का असर न होता देख विट्ठल विराजदार और उन की पत्नी श्रीदेवी परेशान हो उठे. उन्होंने श्रीशैल और अनुराधा को एकदूसरे से दूर करने के लिए अपने यहां काम कर रहे श्रीशैल के पिता को यह कह कर काम से निकाल दिया कि वह अपने बेटे को समझा दे. अगर उस ने उन की इज्जत से खेलने की कोशिश की तो परिणाम अच्छा नहीं होगा.
इस के साथसाथ उन्होंने अनुराधा को मैडिकल कालेज के हौस्टल से बुला कर घर पर पढ़ाई करने को कहा. इस के बावजूद श्रीशैल ने अनुराधा का पीछा नहीं छोड़ा तो विट्ठल विराजदार ने अपने सगे संबंधियों के साथ श्रीशैल को काफी मारापीटा.
उन लोगों ने परिवार वालों को यह धमकी भी दी कि वह उसे उन की बेटी अनुराधा से दूर रखें. विट्ठल विराजदार और सगे संबंधियों के खिलाफ श्रीशैल के परिवार वालों ने बीजापुर एसीपी औफिस में जा कर शिकायत की.
कहते हैं इश्क बगावत कर बैठे तो दुनिया का रुख मोड़ दे, महलों में आग लगा दे. यही हाल अनुराध और श्रीशैल का था. परिवार की सख्तियों के बावजूद उन के प्यार में कोई कमी नहीं आई थी. बल्कि उन का प्यार और मजबूत हो गया था. दोनों एकदूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. उन की मुश्किलें अब पहले से जरूर ज्यादा बढ़ गई थीं, लेकिन अब वे सावधानी बरतने लगे थे.
श्रीशैल और अनुराधा अमीर गरीब, मानसम्मान की सीमाएं खत्म कर एक हो जाना चाहते थे. उन्हें तलाश थी तो सिर्फ एक मौके की. यह मौका उन्हें पहली अक्तूबर, 2018 को मिल गया. उस दिन कालेज के एक पेपर के बहाने अनुराधा घर से निकली तो वापस नहीं आई. उस ने अपने प्रेमी श्रीशैल के साथ बीजापुर जा कर कोर्टमैरिज कर ली. वहां से वह श्रीशैल के साथ उस के घर चली गई.
इस बात की जानकारी जब विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी को हुई तो उन का खून खौल उठा. अनुराधा ने अपने से कम हैसियत और कम पढ़ेलिखे नौकर के बेटे के साथ कोर्टमैरिज कर उन के अहं और मानसम्मान को जो ठेस पहुंचाई थी, वह उन की बरदाश्त के बाहर था. उन्हें अनुराधा से नफरत हो गई.
2 अक्तूबर, 2018 को विट्ठल विराजदार अनुराधा की ससुराल गए, वहां उन्होंने ठंडे दिमाग से उस के घर वालों और श्रीशैल से बातचीत की और शादी की कुछ रस्मों को निभाने के बहाने अनुराधा को अपने साथ ले आए. लेकिन वह अनुराधा को अपने घर लाने के बजाए अपनी ससुराल वोराले गांव ले कर गए. वहां अनुराधा के मामा और नानी को सारी बातें बता कर उसे समझाने के लिए कहा.
वह 2 दिनों तक अपनी ननिहाल में मामा और नानी के साथ रही, लेकिन डरी और सहमी सी. मामा और नानी ने उसे काफी समझाया, लेकिन अनुराधा के मन से पिता और सौतेली मां का भय कम नहीं हुआ.
उस ने 2 दिनों में अपने पिता और सौतेली मां के खिलाफ 2 लंबे खत लिखे, जिस में उस ने अपनी मौत हो जाने की जिम्मेदारी उन के ऊपर डाली और वह खत किचन में रख दिए, जो बाद में उस की नानी के हाथ लग गए थे.
4 अक्तूबर, 2018 को एक खतरनाक योजना बना कर विट्ठल विराजदार अपनी ससुराल आया और अपनी सास व साले से यह कह कर अनुराधा को अपने साथ ले गया कि उसे पेपर दिलवाने कालेज ले कर जाना है. अनुराधा की मौत से अनभिज्ञ उस की नानी और मामा ने उसे विट्ठल विराजदार के साथ भेज दिया.
घर के अंदर अनुराधा की सौतेली मां श्रीदेवी ने उस की मौत का सारा इंतजाम पहले ही तैयार कर रखा था. गांव आ कर विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी ने अनुराधा पर श्रीशैल से रिश्ता खत्म करने का दबाव बनाया, जिसे अनुराधा ने नकार दिया. इस से नाराज विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी ने अनुराधा को जबरन जहरीला पदार्थ पिला दिया, जिस की वजह से सुबह 4 बजे अनुराधा की मौत हो गई.
पुलिस के शिकंजे से बचने के लिए विट्ठल रात में ही अनुराधा के शव को अपने खेत में ले गया और जला दिया. सुबह को उस ने गांव में यह अफवाह फैला दी कि अनुराधा की डेंगू के कारण अचानक मौत हो गई थी. इसलिए उस ने रात में ही उस का दाह संस्कार कर दिया. इस तरह सिर्फ 5 दिन की दुलहन अनुराधा खोखली प्रतिष्ठा और अहं की आग में जल कर राख हो गई थी.
अनुराधा की मौत की खबर जब टीवी द्वारा श्रीशैल और उस के परिवार वालों को मिली तो उन पर वज्रपात सा हुआ. अनुराधा के मातापिता श्रीशैल को भी मारने वाले थे, मगर वह बच गया.
जांच अधिकारी सहायक इंसपेक्टर वैभव मार्कंड ने विट्ठल विराजदार और श्रीदेवी से पूछताछ कर उन के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. बाद में दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस के साथ ही पुलिस ने अनुराधा की छोटी बहन की संदिग्ध स्थिति में हुई मौत की जांचपड़ताल भी शुरू कर दी थी.
मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’
आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’
‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’
आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’
मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’
मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.
‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’
वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’
‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’
‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.
कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’
‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’
उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.
गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.
उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.
‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.
वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.
असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.
दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’
वह कयूम था.
वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.
मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’
उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’
वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.
‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’
उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’
कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.
कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.
यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.
कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.
कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.
वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.
उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.
जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.
कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.
उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.
कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.
उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.
मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.
मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.
रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.
रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई.
मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’
उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’
‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.
‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है. मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.
‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.
‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.
‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’
‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’
‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.
‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’
मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’
‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’
मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.
‘‘एक बात सच सच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’
‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’
‘‘कयूम तो पागल है.’’
‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’
‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’
‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’
बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.
गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारी बारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.
मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.
सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.
कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.
रात आधी से अधिक बीत चुकी थी. मेरे सामने एक जटिल विवेचना थी. मैं थोड़ा सा आराम करने के लिए लेट गया. मेरे बुलाए गामे शाह के तीनों आदमी आ गए थे. उन से भी मुझे पूछताछ करनी थी. ऐसे लोगों से जांच थाने में ही होती है. मैं ने उन्हें यह कह कर थाने भेज दिया कि मेरा इंतजार करें.
सुबह मेरी आंख खुली. नाश्ते के बाद मैं ने सब से पहले रशीद को बुलवाया. वह भी सुंदर जवान था. मैं ने उसे अपने सामने बिठाया, वह घबराया हुआ था. उस की आंखें जैसे बाहर को आ रही थीं.
मैं ने कहा, ‘‘तुम ही कुछ बताओ रशीद, मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं. मंजूर की हत्या किस ने की है?’’
‘‘मैं क्या बता सकता हूं सर,’’ उस के मुंह से ये शब्द मुश्किल से निकले थे.
‘‘इतना मत घबराओ, जो कुछ तुम्हें पता है, सचसच बता दो. मुझे जो दूसरों से पता चलेगा वह तुम ही बता दो. फिर देखो, मैं तुम्हें कितना फायदा पहुंचाता हूं.’’
‘‘मैं कुछ नहीं जानता सर,’’ उस ने आंखें झुका लीं.
‘‘ऊपर देखो, तुम सब कुछ जानते हो. तुम्हें बोलना ही पड़ेगा. मंजूर अपना हिस्सा लेने की कोशिश कर रहा था, तुम ने सोचा इसे दुनिया से ही उठा दो.’’
‘‘नहीं सर,’’ वह तड़प कर बोला, जैसे उस में जान आ गई हो. वह अपने आप को निर्दोष साबित करने लगा.
हत्या के जितने भी कारण बताए गए थे. मैं ने एकएक कर के उस के सामने रखे. वह सब से इनकार करता रहा. मैं ने जब उस से पूछा कि हत्या के समय वह कहां था तो उस ने बताया कि वह घर पर ही था.
‘‘सूरज डूबने के कितनी देर बाद घर आए थे?’’
‘‘मैं तो सूरज डूबते ही घर आ गया था.’’
‘‘इस से पहले कहां थे?’’
‘‘बाग में.’’
चूंकि वह मेरी नजरों में संदिग्ध था, इसलिए मैं ने उस से खास तरह की पूछताछ की. रशीद से जो बातें हुईं, मैं ने उन्हें अपने दिमाग में रखा और बाहर आ कर चौकीदार से कहा कि रशीद के बाग में जो मजदूर काम करता है, उसे और उस की पत्नी को ले आए.
रशीद को मैं ने बाहर बिठा दिया और उस के बाप को बुलाया. बाप आ गया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘हत्या के दिन रशीद घर किस समय आया था?’’
उस ने बताया कि वह सूरज डूबने के बाद आया था.
‘‘एक घंटा या 2 घंटे बाद?’’
‘‘डेढ़ घंटा समझ लें.’’
यह रशीद का बाप था, इसलिए मैं उस से उम्मीद नहीं रख सकता था कि वह सच बोलेगा.
रशीद का नौकर जो बाग में रहता था, मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम इन लोगों के रिश्तेदार नहीं हो, नौकर हो. इन के गले की फांसी का फंदा अपने गले में मत डलवाना. मैं जो पूछूं, सचसच बताना. तुम जानते हो कल रात मंजूर की हत्या हुई है. शाम को रशीद बाग में था, क्या यह सही है?’’
‘‘हां हुजूर, वह बाग में ही था.’’
‘‘पहले तो वह अकेला ही था,’’ मजदूर ने जवाब दिया, ‘‘पनेरी लगानी थी. रशीद हमारे साथ था, फिर मंजूर आ गया था.’’
‘‘कौन मंजूर?’’ मैं ने हैरानी से कहा.
‘‘वही मंजूर सर, जिस की हत्या हुई है.’’
मुझे ऐसा लगा, जैसे अंधेरे में रोशनी की किरन दिखाई दी हो.
‘‘हां, फिर क्या हुआ?’’ मैं ने इस आशा से पूछा कि वह यह कहेगा कि उन की लड़ाई हुई थी.
‘‘मंजूर रशीद को अलग ले गया.’’ मजदूर ने कहा, ‘‘फिर वे चारपाई पर बैठे रहे.’’
‘‘कितनी देर बैठे रहे?’’
‘‘सूरज डूबने तक बैठे रहे.’’
‘‘तुम में से किसी ने उन की बातें सुनीं?’’
‘‘नहीं हुजूर, हम दूर क्यारियों में पनेरी लगा रहे थे. जब अंधेरा हो गया तो हम काम छोड़ कर अपने कोठों में चले गए.’’
‘‘ये बताओ, क्या वे ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे? मेरा मतलब क्या वे झगड़ रहे थे?’’
‘‘नहीं हुजूर, वे तो बड़े आराम से बातें कर रहे थे. जब अंधेरा हुआ तो दोनों ने हाथ मिलाया और मंजूर चला गया.’’
‘‘…और रशीद?’’
‘‘वह कुछ देर बाग में रहा, उस ने हम से पनेरी के बारे में पूछा और फिर वह भी चला गया.’’
‘‘तुम ने उसे जाते हुए देखा था? उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?’’
‘‘नहीं हुजूर,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘जाने से पहले वह कमरे में गया था. जब वापस आया तो अंधेरा हो गया था. उस के हाथ में क्या था, हमें दिखाई नहीं दिया.’’
मैं ने उस की पत्नी को बुला कर उस से पूछा कि क्या मंजूर पहले कभी बाग में आया था. उस ने बताया कि परसों से पहले वह तब आया था, जब उन का झगड़ा चल रहा था. मैं ने उस से पूछा कि रशीद जब बाग से निकल रहा था तो क्या उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी?
‘‘हां थी हुजूर.’’
‘‘अंधेरे में तुम्हें कैसे पता चला कि उस के हाथ में कुल्हाड़ी है?’’
‘‘डंडा होगा या कुल्हाड़ी होगी. अंधेरे में साफसाफ नहीं दिखा.’’
मैं ने मजदूर को अंदर बुलाया और कुछ बातें पूछ कर जाने दिया. उस के बाद मेरे 2 मुखबिर आ गए. उन्होंने वही बातें बताईं जो मुझे पहले पता लग गई थीं. उन्होंने विश्वास के साथ कहा कि आमना चरित्रवान औरत है. कयूम के बारे में बताया कि वह दिमागी तौर पर कमजोर है, लेकिन बात खरी करता है. उन्होंने भी रशीद पर शक किया.
उन में से एक ने कहा, ‘‘जनाब, आप गामे शाह को भी सामने रखें. कयूम और मंजूर ने उसे ऐसी फैंटी लगाई थी कि वह काफी देर तक बेहोश पड़ा रहा था. वह बहुत जहरीला आदमी है, बदला जरूर लेता है.’’
‘‘लेकिन उस ने कयूम से तो बदला नहीं लिया?’’
‘‘वह कहता था कि मंजूर को ठिकाने लगा कर उस की बीवी का अपहरण करेगा.’’
उस समय तक मृतक का अंतिम संस्कार हो चुका था. मैं ने मंजूर की पत्नी को बुलवाया. उस की आंखें सूजी हुई थीं. लेकिन मुझे पूछताछ करनी थी. अभी तक मुझे आमना और कयूम पर ही शक था.
‘‘मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता आमना. यह समय पूछने का तो नहीं है, लेकिन मैं केस की जांच कर रहा हूं. मैं चाहता हूं कि तुम से यहीं कुछ पूछ लूं, नहीं तो तुम्हें थाने में आना पड़ता, जो अच्छा नहीं होता. तुम जरा अपने आप को संभालो और मुझे बताओ कि मंजूर और रशीद की दुश्मनी का क्या मामला था?’’
उस ने वही बातें बताईं जो पहले बता चुकी थी.
‘‘क्या रशीद ने तुम्हारे साथ कोई छेड़छाड़ की थी?’’ मैं ने आमना से पूछा. उस ने बताया कि 2 बार की थी. मैं ने तंग आ कर यह बात अपने पति को बता दी थी. कयूम को भी पता लग गया. दोनों उस का वही हाल करना चाहते थे जो उन्होंने गामे शाह का किया था.
‘‘मैं ने सुना है कि वह रशीद के बाग में गया था. वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंचा. क्या तुम्हें पता है कि वह रशीद के बाग में गया था?’’
आमना ने जवाब दिया, ‘‘नहीं, वह बताता भी कैसे. आप के कहने के मुताबिक वह वहां से निकला तो लेकिन घर नहीं पहुंच सका. जाहिर है, रशीद ने उस की हत्या कर दी थी.’’
‘‘यह तो तुम कभी नहीं बताओगी कि कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे थे?’’
उस कहा, ‘‘मैं तो बता दूंगी, लेकिन आप यकीन नहीं करेंगे. वह मेरा भाई है.’’
‘‘आमना…सच्ची बात कहनी है तो खुल कर कहो. कयूम के साथ तुम्हारे संबंध कैसे हैं, मेरा इस से कुछ लेना देना नहीं. मैं ने मंजूर के हत्यारे को पकड़ना है. क्या तुम्हारे दिल में वैसी ही मोहब्बत है, जैसी कयूम के दिल में तुम्हारे लिए है.’’
‘‘नहीं,’’ आमना ने कहा, ‘‘जब वह महज 12-13 साल का था, तभी से हमारे यहां आता था. अब वह जवान हो गया है. मुझे डर था कि मेरा शौहर आपत्ति करेगा, लेकिन उस ने कोई आपत्ति नहीं की. मैं ने कयूम से कहा था, जवान औरत से जवान आदमी की मोहब्बत किसी और तरह की होती है. कयूम ने मेरी ओर हैरानी से देखा और देखते ही देखते उस की आंखों में आंसू आ गए.
‘‘वह मुझ से 4-5 साल छोटा है. मैं ने उसे अपने गले से लगा लिया तो वह हिचकियां ले कर रोने लगा. मैं ने उसे चुप कराया. वह बोला, ‘आमना, यह कहने से पहले मुझे जहर दे देती.’ इस मोहब्बत को देख कर लोगों ने उसे रिश्ते देने बंद कर दिए.
‘‘मैं ने उस से कहा, मैं तुम्हारा किसी और जगह रिश्ता करवा दूंगी. उस ने दोटूक जवाब दिया, जब तक तुम जिंदा हो, मैं कहीं शादी नहीं कर सकता. अगर किसी लड़की से मेरी शादी हो भी जाती है और वह मुझे अच्छी लगती है तो मैं उसे पत्नी नहीं समझूंगा, क्योंकि उस में मुझे तुम दिखाई दोगी और मैं तुम्हें बहुत पवित्र समझता हूं.’’
मैं ने आमना को जाने की इजाजत दे दी, लेकिन अपने दिमाग में उसे संदिग्ध ही रखा.
थानाप्रभारी नवीन सिंह को जब मुखबिर के जरिए पता चला कि शिवम फरार हो गया है तो उन का माथा ठनका. उन्होंने इस बाबत जब शिवम के पिता विनोद विश्नोई से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि शिवम बहुत परेशान था. वह खाना भी ठीक से नहीं खा पा रहा था. कोई बात पूछने पर उलझ जाता था. फिर अकस्मात कहीं चला गया. वह कहां गया और किस हालत में है उन्हें नहीं पता.
यकीन नहीं था भाई ही ऐसा करेगा
शिवम पर शक गहराया तो पुलिस टीम उस के पीछे पड़ गई. सर्विलांस सेल प्रभारी राजीव कुमार ने उस के मोबाइल फोन के नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी भी शिवम की टोह में जुट गए. पुलिस टीम ने अपने खास मुखिबर भी शिवम की सुरागरसी में लगा दिए.
उस की लोकेशन कभी रनियां में मिलती तो कभी पुखरायां में. बारबार लोकेशन बदलने से वह पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा था.
10 नवंबर, 2018 की दोपहर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, एसपी द्वारा गठित टीम के साथ विचारविमर्श कर रहे थे, तभी उन्हें एक मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि शिवम, राजपुर औरैया रोड स्थित एक ढाबे पर मौजूद है.
मुखबिर की सूचना महत्त्वपूर्ण थी, इसलिए उन्होंने बिना देर किए पुलिस टीम के साथ मुखबिर की निशानदेही पर ढाबे पर छापा मारा. पुलिस को आया देख कर शिवम भागा, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. शिवम को थाना राजपुर लाया गया.
थाने पर जब शिवम ने आकाश की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह रिश्तों की दुहाई दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करने लगा. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो वह टूट गया.
उस ने हत्या का राज खोलते हुए बताया कि आकाश ने उस की बहन को बदनाम किया था. बदनामी न करने के लिए उस ने आकाश को बहुत समझाया. वह नहीं माना तो उस ने उसे अपहृत कर के बंबे में डुबोडुबो कर मार डाला. हालांकि वह आकाश को बहुत चाहता था और उस की हत्या नहीं करना चाहता था.
गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीम ने घटना को रिक्रिएट किया. रिक्रिएशन के दौरान शिवम ने जिस तरह आकाश का अपहरण किया तथा जिस तरह उसे बंबे में डुबो कर मारा, सब कर के दिखाया. इस से यह बात स्पष्ट रूप से साबित हो गई कि शिवम ही आकाश का हत्यारा था. थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह ने आकाश की हत्या का राज खोलने तथा हत्यारे को पकड़ने की जानकारी एसपी राधेश्याम को दे दी.
चूंकि अभियुक्त शिवम ने आकाश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. इसलिए थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह ने शिवम को अपहरण व हत्या की धारा 363, 302 आईपीसी के तहत विधिवत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस की जांच और अभियुक्त शिवम के बयानों से पूरी साजिश का पता चल गया.
कानपुर देहात जनपद का कस्बा राजपुर कानपुर मुख्यालय माती से लगभग 30 किलोमीटर दूर है. सुनील विश्नोई राजपुर कस्बे में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी रानी के अलावा 2 बेटे आकाश, अंशु और एक बेटी राधा थी. सुनील सीधासादा व्यवसाई था. व्यवसाय से ही वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था.
सुनील विश्नोई पानतंबाकू से संबंधित चीजों का व्यवसाय करता था. यह सामान वह अकबरपुर, पुखरायां, भोगनीपुर व रनियां आदि कस्बों में पान की दुकानों व जनरल स्टोर्स पर सप्लाई करता था. इस के अलावा वह आसपास के बाजारों में भी अपना सामान बेचता था. इस काम में उसे अच्छी कमाई हो जाती थी.
सुनील विश्नोई का 12 वर्षीय पुत्र आकाश पढ़ने में जितना तेज था, उस से कहीं ज्यादा शरारती भी था. पढ़ाई के साथसाथ वह अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाता था. आकाश की मां रानी व बहन राधा भी काम में हाथ बंटाती थीं.
पतिपत्नी नहीं समझ पाए शिवम की नीयत
सुनील के घर से 2 मकान आगे उस का बड़ा भाई विनोद रहता था. विनोद किसान था. खेती की उपज से वह अपने परिवार का पालनपोषण करता था. विनोद के बेटे का नाम शिवम था. वह खेती के कामों में अपने पिता का हाथ बंटाता था. विनोद गुस्सैल स्वभाव का था. इसलिए मोहल्ले के लोग उसे पसंद नहीं करते थे.
सुनील और विनोद दोनों भाइयों में खूब पटती थी. दोनों का एकदूसरे के घरों में आनाजाना व उठनाबैठना था. सुनील का बेटा आकाश व विनोद का बेटा शिवम चचेरे भाई थे. उन में भी खूब पटती थी. दोनों एक दूसरे के घरों में बेरोकटोक आतेजाते थे.
शिवम की बहन मोहल्ले के एक युवक से प्यार करती थी. दोनों चोरीछुपे मिलते थे. एक रोज आकाश ने दोनों को हंसते बतियाते और अश्लील हरकत करते देख लिया.
आकाश ने प्रेमप्रसंग वाली बात पहले मां रानी को बताई फिर मोहल्ले के अन्य लोगों को भी बता दी. इस से यह बात पूरे क्षेत्र में फैल गई. शिवम को जानकारी हुई तो उस ने आकाश को फटकारा और आइंदा जुबान बंद रखने को कहा. लेकिन आकाश नहीं माना.
बहन के प्रेमप्रसंग को ले कर शिवम की बदनामी हो रही थी. उस का गली से निकलना दूभर हो गया था. उस ने आकाश को सबक सिखाने की ठान ली और उचित समय का इंतजार करने लगा.
21 सितंबर, 2018 को जब आकाश स्कूल से लौटा और खेलने के लिए पार्क में पहुंचा तो उस पर शिवम की नजर पड़ गई. जब आकाश खेल चुका तो शिवम ने उसे बुलाया और बहलाफुसला कर अपने साथ कस्बे के बाहर बंबे पर ले आया.
कुछ देर वह आकाश से बतियाता रहा, फिर अकस्मात उस का गला दबाने लगा. आकाश छटपटाने लगा तो शिवम ने उसे बंबे में धकेल दिया और डुबोडुबो कर मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद उस ने शव को पत्थर से दबा दिया और वापस घर आ गया.
इधर आकाश खेल कर घर वापस नहीं आया तो उस की मां रानी को चिंता हुई. वह उसे खोजने घर से निकल पड़ी.
आकाश तो किसी को नहीं मिला लेकिन 4 दिन बाद उस की लाश बंबे में उतराती मिली. पूछताछ के बाद पुलिस ने शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
मैं ने दूसरों से बाहर बैठने को कहा. जब वे चले गए तो मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हारे खास दोस्त की हत्या हो गई. जब तुम्हें उस की हत्या की सूचना मिली तो तुम ने सोचा होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है?’’
‘‘यह तो स्वाभाविक है. लेकिन मंजूर ऐसा आदमी था कि दुश्मनी को दबा लेता था. कोशिश करता था कि किसी के साथ लड़ाईझगड़ा न हो.’’
‘‘क्या तुम बता सकते हो कि उस के दुश्मन कौन कौन थे?’’
‘‘इतनी गहरी दुश्मनी तो उस की किसी के साथ नहीं थी, लेकिन मंजूर मुझ से एक ही आदमी की बात करता था और उस के दिल में उस आदमी से दुश्मनी बैठी हुई थी. वह उस के चाचा का लड़का है. वे 3 भाई हैं, वह बीच का है.’’
‘‘उस के साथ क्या दुश्मनी थी?’’
‘‘यह दुश्मनी जमीन के बंटवारे पर हुई थी. सब जानते हैं कि उन्होंने मंजूर की जमीन का कुछ हिस्सा धांधली से हड़प लिया था. मंजूर ने चाचा को बताया था, चाचा मान गया था कि मंजूर ठीक कहता है. उस का बड़ा बेटा भी मान गया था लेकिन बीच वाला, जिस का नाम रशीद है, वह नहीं माना था. यहां तक कि वह मरने मारने पर उतर आया था.
‘‘मंजूर अपना यह दुखड़ा मुझे सुनाता रहता था. उस के दादा का एक बाग है, जिस में उस के बाप ने कुआं, रेहट भी लगवाई थी. उस ने इस बाग में बहुत मेहनत की थी. बाप मर गया तो मंजूर ने बाग में जाना शुरू कर दिया. रशीद भी जाने लगा और धीरेधीरे बाग पर कब्जा कर लिया. मंजूर की मजबूरी यह थी कि वह अकेला था, 2-3 भाई होते तो किसी की हिम्मत नहीं होती.’’
उस ने बताया कि रशीद मंजूर को छेड़ता रहता था. 2-3 बार मंजूर सीधा हुआ तो उस ने रशीद से कहा कि मैं परिवार की इज्जत की वजह से चुप रहता हूं, अगर तुम ने अपनी जबान बंद नहीं की तो मैं तुम्हारी जबान बंद कर के दिखा दूंगा.
उन की दुश्मनी का एक और कारण था. बिरादरी के एक परिवार ने अपनी बेटी का रिश्ता मंजूर को दे दिया. बात पक्की हो गई. मंजूर ने लड़की को कपड़े और अंगूठी भेज दी. 8-10 दिन बाद अंगूठी वापस आ गई, साथ ही कपड़े भी. यह भी कहा गया था कि मंगनी तोड़ दी गई है. 2-3 दिन बाद उस की मंगेतर के घर वालों ने उस की शादी रशीद से कर दी और कुछ दिन बाद मंजूर की शादी आमना से हो गई.
‘‘आमना का चालचलन कैसा है?’’
उस ने कहा, ‘‘सर, वह चालचलन की बहुत अच्छी है.’’
‘‘यह कयूम का क्या चक्कर है?’’
‘‘कोई चक्कर नहीं है सर, उस के घर में आने पर और काफीकाफी देर तक बैठने पर न तो आमना को ऐतराज था और न मंजूर को.’’
‘‘आमना के साथ कयूम का कैसा संबंध था?’’
‘‘सर, संबंध एकदम पाक था. उस के अच्छे चरित्र का एक उदाहरण सुनाता हूं. 10 साल तक जब उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो आमना गामे शाह के पास गई. गामे शाह चरित्रहीन व्यक्ति है. उस के पास चरित्रहीन औरतें आती हैं और उन औरतों ने ही गामे शाह को मशहूर कर रखा है कि वह निस्संतान औरतों को संतान देता है.
‘‘आमना भी गामे शाह के घर पहुंच गई. उस ने आमना की इज्जत पर हाथ डाला तो वह गाली गलौज कर के चली आई. अगर वह चरित्रहीन होती तो उस से संतान ले कर आ जाती और मंजूर उसे अपनी संतान समझ कर पाल लेता.’’
‘‘यह घटना कब की है?’’
‘‘4-5 दिन पहले की बात है. जब आमना ने गामे शाह की बात मंजूर को बताई तब कयूम वहीं बैठा हुआ था. कयूम भड़क गया, वे दोनों उस के घर गए और उसे बाहर बुला कर इतना पीटा कि वह बहुत देर तक उठ नहीं सका. उस के पास 2-3 जुआरी शराबी रहते थे. वे गामे शाह को बचाने आए तो दोनों ने उन्हें भी पीटा.’’
‘‘अगर मैं कहूं कि मंजूर का हत्यारा कयूम है तो तुम क्या कहोगे?’’ मैं ने मंजूर के दोस्त से कहा.
‘‘मैं नहीं मानूंगा,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘मुझ से अगर पूछोगे तो मैं 2 आदमियों के नाम लूंगा. एक तो गामे शाह और दूसरा रशीद.’’
मैं इस सोच में पड़ गया कि हो सकता है मंजूर और रशीद का कहीं आमनासामना हो गया हो और उन का झगड़ा हुआ हो. इसी झगड़े में रशीद ने उसे मार डाला हो. यह घटना ऐसी थी, जिस का कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था.
सूरज डूबने वाला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में हत्या का समय लगभग सूरज छिपने के डेढ़-2 घंटे बाद का लिखा था. सर्जन ने सिर पर 2 ही घाव लिखे थे, जो मैं ने देखे थे. उस ने यह भी लिखा था कि वह इन घावों के कारण ही मरा था.
मैं ने कयूम को बुलाने के लिए कहा. कुछ देर बाद एक सुंदर जवान मेरे सामने लाया गया. नंबरदार ने बताया कि यही कयूम है.
‘‘आओ जवान,’’ मैं ने दोस्ताना तौर पर कहा, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत थी.’’
मैं ने नंबरदार को इशारा किया तो वह बाहर चला गया.
मेरे पूछने पर उस ने रशीद के बारे में वही सब बातें कहीं जो मंजूर के दोस्त ने सुनाई थी. मैं ने उस से सवाल किया, ‘‘एक बात बताओ कयूम, मंजूर ने कभी यह कहा था कि वह रशीद की हत्या कर देगा?’’
कयूम ने तुरंत जवाब नहीं दिया. पहले उस ने दाएंबाएं फिर ऊपर देखा. फिर मेरी ओर देख कर ऐसे सिर हिलाया, जैसे उसे पता न हो. ‘‘शायद कभी कहा हो.’’ उस ने मरी सी आवाज में कहा. फिर बोला, ‘‘मंजूर, उस से बहुत परेशान था. सरकार, उसे तो मैं ही पार लगाने वाला था, लेकिन आमना भाभी ने रोक लिया.’’
‘‘कोई खास बात हुई थी या पुरानी बातों पर तुम उसे खत्म करना चाहते थे?’’
‘‘बड़ी खास बात थी सरकार. कोई डेढ़-2 महीने पहले की बात है. रशीद मंजूर के घर किसी काम से गया था. उस कमीने ने आमना भाभी को अकेला देख कर उन्हें फांसने की कोशिश शुरू कर दी थी. आमना भाभी ने उसे उसी समय भलाबुरा कह कर घर से बाहर कर दिया था.
‘‘2-3 दिन बाद आमना भाभी खेतों में गईं तो रशीद उन्हें रोक कर बोला, ‘‘पता नहीं, तुम मंजूर जैसे कमजोर और कायर आदमी के साथ कैसे गुजर कर रही हो.’’
आमना भाभी ने कहा, ‘‘शायद तुम जिंदा नहीं रहना चाहते हो. तुम तो दुनिया में नहीं रहोगे लेकिन तुम्हारे पीछे रहने वाले लोग मान जाएंगे कि मंजूर कमजोर नहीं था.’’
मंजूर से मैं ने यह बात बहुत बाद में सुनी. मैं ने उस से कहा कि उस ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई. जवाब में मंजूर ने कहा, ‘‘मुझे जो करना था, कर दिया.’’
मैं ने उस से पूछा कि उस ने क्या किया था. उस ने बताया कि उस ने रशीद की गरदन अपनी बांहों में ऐसे दबा ली थी कि उस की आंखें बाहर निकल आई थीं. फिर उस की गरदन छोड़ कर कहा, ‘‘जा इस बार छोड़ दिया.’’
रशीद ने दूर जा कर कहा, ‘‘मंजूरे, मैं तुझ से बदला जरूर लूंगा.’’
‘‘उस के बाद रशीद ने तो कोई हरकत नहीं की?’’
‘‘अगर करता तो आज मैं आप के सामने नहीं होता और न रशीद दुनिया में होता. मैं ने एक दिन खेत में उस का कंधा हिला कर कहा था, गांव में सिर उठा कर मत चलना. और हां, मंजूर को कमजोर मत समझना. तेरी मौत उसी के हाथों लिखी है.’’
‘‘उस ने कुछ जवाब दिया?’’
‘‘वह कांपने लगा, ऐसा लगा जैसे माफी मांग रहा हो. वास्तव में मंजूर और आमना में बहुत मोहब्बत थी.’’
‘‘आमना तो तुम से भी मोहब्बत करती थी,’’ मैं ने कहा.
‘‘सरकार, किस बहन और भाई में मोहब्बत नहीं होती. अंतर यह है कि हम दोनों के मांबाप अलग अलग थे, लेकिन मैं महसूस करता हूं कि हम दोनों एक ही मां के पेट से पैदा हुए थे.’’
‘‘मुझे किसी ने बताया था कि कोई तुम्हें अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता?’’
‘‘कोई रिश्ता देगा भी तो मैं कबूल नहीं करूंगा. जब तक आमना मेरे सामने मौजूद है, मैं किसी और औरत का रिश्ता कबूल नहीं करूंगा.’’
मैं ने उस का अर्थ यह निकाला कि उस का और आमना का संबंध दूसरी तरह का था. मतलब आमना को बहन कहना परदा डालने जैसा था.
मंजूर के घर से रोने और चीखने की आवाजें आ रही थीं. आमना की चीख सुनाई दी तो कयूम ने कहा, ‘‘थानेदार साहब, आप मुझे इजाजत दें, जब आप बुलाएंगे मैं हाजिर हो जाऊंगा.’’ मैं ने उसे जाने दिया.
3 दिन बाद आई मौत की खबर
25 सितंबर, 2018 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह क्षेत्र के एक कुख्यात अपराधी की फाइल का निरीक्षण कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से पूछा गया, ‘‘आप इंसपेक्टर साहब बोल रहे हैं?’’
‘‘जी हां, मैं इंसपेक्टर राजपुर नवीन कुमार सिंह बोल रहा हूं, कहिए क्या बात है?’’
‘‘सर, यहां बंबे में एक लाश उतरा रही है. आप जल्दी आइए.’’
‘‘लाश स्त्री की है या पुरुष की?’’
‘‘सर, लाश न स्त्री की है न पुरुष की. देखने से लगता है लाश किसी 10-12 साल के बच्चे की है.’’
‘‘बच्चे की लाश?’’ सुनते ही थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह का माथा ठनका. नवीन सिंह ने एसआई देशराज सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र तथा आकाश के पिता सुनील विश्नोई को साथ लिया और राजपुर स्थित बंबे पर पहुंच गए. वहां काफी भीड़ जुटी थी, लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.
इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह भीड़ को हटा कर बंबे के किनारे पहुंचे. उन्होंने बंबे में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. सुनील विश्नोई ने जब लाश देखी तो वह फफक कर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, लाश मेरे बेटे आकाश की है.’’ रोते हुए ही उस ने बेटे की हत्या की खबर अपने घर वालों को दी. सुनते ही उस के घर में कोहराम मच गया.
आकाश की लाश की शिनाख्त होने के बाद नवीन कुमार सिंह ने अपहृत आकाश की हत्या करने और लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस कप्तान राधेश्याम विश्वकर्मा और सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का मुआयना किया.
ऐसा लग रहा था जैसे आकाश की हत्या गला दबा कर की गई हो. या फिर उसे पानी में डुबो कर मारा गया हो. उस के शरीर पर चोटों के निशान नहीं थे.
एसआई देशराज सिंह ने शव को माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया. इस के साथ ही आज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले में हत्या की धारा भी जोड़ दी गई. पोस्टमार्टम के बाद आकाश की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.
पुलिस इस मामले को काफी संवेदनशील मान कर चल रही थी. हालांकि आकाश एक छोटे व्यवसाई का बेटा था, फिर भी पुलिस को डर था कि कहीं व्यापारी इस के विरोध में न उतर आएं. इसी के मद्देनजर पुलिस अधिकारी सुनील के सीधे संपर्क में थे और उसे आश्वासन दे रहे थे कि जल्दी ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.
एसपी राधेश्याम विश्वकर्मा ने आकाश के अपहरण और हत्या के मामले की तह तक पहुंचने के लिए सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर की निगरानी में एक पुलिस टीम बनाई.
इस टीम में राजपुर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र, कांस्टेबल राकेश कुमार, स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी, सर्विलांस सेल के राजीव कुमार, प्रहलाद सिंह, मोहित तिवारी, अनूप कुमार तथा प्रशांत को शामिल किया गया.
आकाश के गायब होने के बाद, उस के घर वालों के पास फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया था. न ही पत्र के माध्यम से कोई सूचना आई थी. इस से स्पष्ट था कि उस का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. इस से पुलिस टीम को लग रहा था कि आकाश की हत्या दुश्मनी या किसी अन्य वजह से की गई होगी.
2 लोगों पर जताया शक
आकाश के पिता सुनील विश्नोई का पान, तंबाकू से संबंधित सामान सप्लाई करने का व्यवसाय था. पुलिस ने सोचा कि हो न हो उस की किसी दुश्मनी का खामियाजा उस के बेटे को भुगतना पड़ा हो. इसलिए इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने सुनील विश्नोई से पूछा कि उस की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है.
‘‘सर, हम लोग छोटे व्यवसाई हैं. रंजिश की बात तो दूर अगर कोई हम से नाराज हो कर चार बातें कह भी जाए तो हम सुन कर चुप रह जाते हैं.’’ सुनील विश्नोई ने दिमाग पर जोर डाल कर बताया कि 3 साल पहले कस्बे के 2 युवकों से उस का माल जबरदस्ती छीनने को ले कर विवाद हुआ था. उन्होंने उसे सबक सिखाने की धमकी भी दी थी.
सुनील विश्नोई के बयान के आधार पर पुलिस बिना देरी किए उन युवकों के घर पहुंच गई. दोनों युवकों को थाने लाया गया पुलिस टीम ने दोनों से अपने तरीके से पूछताछ की. पूछताछ में दोनों बेकसूर लगे तो उन्हें छोड़ दिया गया.
मतलब जांच जहां से शुरू हुई, वहीं आ कर रुक गई. पुलिस अधीक्षक राधेश्याम व सीओ अर्पित कपूर पुलिस टीम के सीधे संपर्क में थे. उन के दिशा निर्देश के बाद टीम ने आकाश के पिता सुनील विश्नोई और मां रानी से पुन: बात की.
दरअसल, पुलिस टीम को जांच आगे बढ़ाने के लिए कहीं से कोई क्लू नहीं मिल रहा था. इसलिए टीम को शक हुआ कि कहीं हत्यारा विश्नोई परिवार का कोई करीबी तो नहीं है. क्योंकि ऐसे लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं और उन पर किसी को शक भी नहीं होता है.
पुलिस टीम ने सुनील, उस की पत्नी रानी व अन्य लोगों से आकाश के गुम होने के बाद परिवार वालों की गतिविधियों के बारे में पूछताछ की. हालांकि इस बात पर सुनील व कुछ अन्य घर वालों ने ऐतराज भी किया. उन का सगा सबंधी या पारिवारिक सदस्य ऐसा क्यों करेगा? लेकिन जब पुलिस टीम ने उन्हें समझाया तो वे पिछली बातें याद करने के लिए दिमाग पर जोर डालने लगे.
कुछ देर बाद सुनील विश्नोई ने बताया कि जब वे लोग आकाश को तलाश कर रहे थे तो घर वाले 2-2, 3-3 के ग्रुप में थे. लेकिन शिवम सब से अलग अकेला घूम रहा था. इतना ही नहीं वह कुछ घबराया हुआ भी दिख रहा था. पति की बात खत्म होते ही रानी ने बताया कि घटना वाली रात जब वह आकाश को देखने शिवम के घर गई थीं तो उस ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया था और खुद घर में देखने चला गया था.
सुनील विश्नोई के मकान के तीसरे नंबर का मकान शिवम का था. पुलिस शिवम के घर पहुंची. उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘आकाश मेरा चचेरा भाई था. मैं उसे बहुत प्यार करता था. भला मैं उस के साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं? उसे ढूंढने के लिए मैं ने रात दिन एक कर दिया और आप उसे मारने की बात कह रहे हैं.’’
शिवम ने बिना घबराए जिस तरह अपनी बात कही, उस से पुलिस को लगा कि शायद शिवम सच बोल रहा है. अत: पुलिस ने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. शिवम पुलिस की पकड़ से बच तो गया, लेकिन अब उसे डर सताने लगा. इसी डर से वह घर में किसी को बिना कुछ बताए फरार हो गया.