फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 2

यह एक अजीब सी बात इस लिहाज से थी कि हत्या के मामले में किसी भी पिता की कोशिश बेटे को बचाने की रहती है. लेकिन बाबूलाल इस का अपवाद था. हालांकि संभावना इस बात की भी थी कि वह वाकई सच बोल रहा हो क्योंकि रामजी घोषित तौर पर मंदबुद्धि वाला था और गुस्सा आ जाने पर ऐसा कर भी सकता था. लेकिन इस थ्यौरी में आड़े यही बात आ रही थी कि कोई मंदबुद्धि इतनी प्लानिंग से हत्या नहीं कर सकता.

अभयराज सिंह ने नीतू के बारे में जानकारियां इकट्ठी करने के लिए एक लेडी कांस्टेबल को काम पर लगा दिया था. अलबत्ता अभी तक की जांच में ऐसी कोई बात सामने नहीं आई थी जिस से यह लगे कि नीतू के चालचलन में कोई खोट थी. ये सब बातें अभयराज ने जब आला अफसरों से साझा कीं तो उन्होंने बाबूलाल को टारगेट करने की सलाह दी.

महिला कांस्टेबल की दी जानकारियों ने मामला सुलझाने में बड़ी मदद की. पता यह चला कि नीतू दूसरी महिलाओं के साथ मजदूरी करने ब्यौहारी जाती थी और शाम तक लौट आती थी. 25 मार्च को यानी हादसे के दिन भी वह मजदूरी करने गई थी. लेकिन लौटते वक्त वह गांव के बाहर से ही अपने ससुर बाबूलाल से मिलने खेत की तरफ चली गई थी.

बाबूलाल शक के दायरे में तो पहले से ही था पर इस खुलासे से उस पर शक और गहरा गया था. चूंकि उसे धर दबोचने के लिए कोई पुख्ता सबूत या गवाह नहीं था. इसलिए पुलिस ने बारबार पूछताछ करने का अपना परंपरागत तरीका आजमाया.

इस पूछताछ में उस के साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई और न ही कोई यातना दी गई. पुलिस ने तरहतरह से उसे धर्मग्रंथों का हवाला दिया कि जो जैसे कर्म करता है उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है. फिर चाहे वह नीचे धरती पर मिले या ऊपर कहीं मिले.

धर्मगुरुओं  की तरह प्रवचन दे कर जुर्म कबूलवाने का शायद यह पहला मामला था. कर्म फल और पाप पुण्य की पौराणिक कहानियों का बाबूलाल पर वाजिब असर पड़ा और उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया.

यह डर था या ग्लानि थी यह तो शायद बाबूलाल भी न बता पाए, लेकिन नीतू की हत्या की जो वजह उस ने बताई वह वाकई अनूठी थी. कहानी सुनने से पहले पुलिस ने उस की निशानदेही पर खेत में छिपाई गई चप्पलें व साड़ी बरामद करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई.

बहू नीतू की हत्या की वजह बताते हुए बाबूलाल का चेहरा सपाट था. बाबूलाल तब किशोरावस्था में था जब उस के पिता संतोषी राठौर की मौत हो गई थी. शादी के बाद पत्नी भी ज्यादा साथ नहीं निभा पाई, लेकिन इन तकलीफों से बड़ी उस की तकलीफ मंदबुद्धि बेटा रामजी था.

जवान होते रामजी को देख बाबूलाल का कलेजा मुंह को आता था कि उस के बाद यह लड़का किस के भरोसे रहेगा. कम अक्ल रामजी को पालतेपोसते बाबूलाल ने कई जगह उस की शादी की बात चलाई लेकिन जिस ने भी रामजी की मंदबुद्धि के चर्चे सुने उस ने बाबूलाल के सामने हाथ जोड़ लिए. खेतीकिसानी बहुत ज्यादा भी नहीं थी, इसलिए बाबूलाल ज्यादा पैसों के लिए खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करता था, जिस के चलते 54 साल की उम्र भी उस पर हावी नहीं हो पाई थी.

फिर एक दिन पागल कहे जाने वाले रामजी की तब मानो लाटरी लग गई, जब बात चलाने पर नीतू के घर वाले रामजी से उस की शादी करने तैयार हो गए. नीतू गठीले बदन की चंचल लड़की थी, जिसे पत्नी बनाने का सपना आसपास के गांवों के कई युवक देख रहे थे.

गोरीचिट्टी नीतू की खूबसूरती के चर्चे हर कहीं थे पर लोग यह जानकर हैरान रह गए कि उस की शादी रामजी से हो रही है, जिसे गांव की भाषा में पागल, सभ्य लोगों की भाषा में मंदबुद्धि और आजकल सरकारी जुबां में मानसिक रूप से दिव्यांग कहा जाता है.

जब नीतू के घर वालों ने रिश्ते के बाबत हां भर दी तो बाबूलाल की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. घर में बहू के पांव पड़ेंगे, अरसे बाद छमछम पायल बजेगी और जल्द ही पोता उस की गोद में होगा जैसी बातें सोच कर वह अपनी गुजरी और मौजूदा जिंदगी के दुख भूलता जा रहा था.

उधर रामजी पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था, वह तो अपनी दुनिया में मस्त था, जैसे कुछ हो ही नहीं रहा हो. शादी के नए कपड़े, धूमधड़ाका, बैंडबाजा बारात वगैरह उस के लिए बच्चों के खेल जैसी बातें थीं. पर बाबूलाल का मन कह रह था कि बहू के आते ही वह सुधर भी सकता है.

खुशी से फूले नहीं समा रहे बाबूलाल को आने वाली परेशानियों और दुश्वारियों का अहसास तक नहीं था. नीतू बहू बन कर आई तो वाकई घर में रौनक आ गई. पर यह रौनक चार दिन की चांदनी सरीखी साबित हुई.

सुहागरात के वक्त नीतू शर्माती लजाती कमरे में बैठी पति का इंतजार कर रही थी कि वह आएगा, रोमांटिक और प्यार भरी बातें करेगा, फिर मन की बातों के बाद धीरे से तन की बात करेगा और फिर… फिल्मों और टीवी सीरियलों में देखे सुहागरात के दृश्य नीतू की जवानी और सपनों को पर लगा रहे थे जिन्हें सोच कर ही वह रोमांचित हुई जा रही थी.

रामजी कमरे में आया और बगैर कुछ कहे सुने बिस्तर पर गया तो नीतू एकदम से कुछ समझ नहीं पाई. उस रात रामजी ने कुछ नहीं किया तो यह सोच कर नीतू ने खुद के मन को तसल्ली दी कि होगी कोई वजह और आजकल के मर्द भी शर्माने में औरतों से कम नहीं हैं.

यह सिलसिला लगातार चला तो शर्म छोड़ते खुद नीतू ने पहल की लेकिन यह जानसमझ कर वह सन्न रह गई कि रामजी मानसिक ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी अक्षम है. एक झटके में आसमान से जमीन पर गिरी नीतू की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गई थी.

घर के कामकाज करती नीतू को लगने लगा था कि उस की हैसियत एक नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं है और बाबूलाल व रामजी ने उसे धोखा दिया है. यह सोच कर वह चोट खाई नागिन की तरह फुंफकारने लगी. इस पर रामजी ने उसे मारना पीटना शुरू कर दिया तो वह मायके चली गई और दहेज की रिपोर्ट भी लिखा दी. बेटेबहू के बीच अनबन की असल वजह जब बाबूलाल को पता चली तो वह अवाक रह गया.

अब उसे समझ आया कि क्यों बातबात पर नीतू गुस्सा होती रहती है. इधर दहेज की रिपोर्ट तलवार बन कर उस के सिर पर लटक रही थी. रामजी को तो कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन पुलिस काररवाई से उस का नप जाना तय था.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 3

अनुष्का का शक गहरा गया. वह दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रविंद्र यादव से मिली और उन्हें अपने साथ घटी पूरी कहानी बता दी. रविंद्र यादव को यह मामला काफी गंभीर लगा. उन्होंने अनुष्का को क्राइम ब्रांच के पुलिस उपायुक्त भीष्म सिंह के पास भेज दिया साथ ही डीसीपी को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द जरूरी काररवाई करें.

डीसीपी ने अनुष्का की शिकायत पर थाना क्राइम ब्रांच में 7 मार्च, 2014 को राजीव यादव, अजय यादव, अमित चौहान आदि के खिलाफ धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही उन्होंने एसीपी होशियार सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल संजीव कुमार, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, राजकुमार, उपेंद्र, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन, संदीप आदि को शामिल किया गया.

जिस फोन नंबर से राजीव अनुष्का से बात करता था, वह उस ने बंद कर रखा था. पुलिस टीम ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और उस काल डिटेल्स का अध्ययन कर के यह जानने में जुट गई कि राजीव यादव की ज्यादातर किन फोन नंबरों पर बातें होती थीं. इस के अलावा जिन बैंक खातों में अनुष्का ने साढ़े 24 लाख रुपए जमा कराए थे, उन की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

इस जांच से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि राजीव यादव का असली नाम अजय यादव है और जिस अमित चौहान को उस ने अपना बौडीगार्ड बताया था, वह उस का ड्राइवर है. खुफिया तरीके से जांच करने पर पता चला कि अमित चौहान नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला है और अजय यादव दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 का. ये दोनों ही अपने घरों से फरार थे. उन की तलाश के लिए मुखबिर भी लगा दिए.

इसी बीच 21 मार्च, 2014 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि अजय यादव आज अपनी होंडा सिटी कार डीएल4सीएएच 9066 से गुड़गांव-आयानगर जाएगा. यह खबर मिलते ही पुलिस टीम बौर्डर पर पहुंच गई और उधर से गुजरने वाली कारों पर नजर रखने लगी. उसी दौरान पुलिस को उक्त नंबर की होंडा सिटी कार आती दिखी तो उस ने उसे रोक लिया. उस समय कार में ड्राइवर के अलावा अधेड़ उम्र का एक आदमी बैठा हुआ था.

कार रुकते ही ड्राइवर बोला, ‘‘आप को पता नहीं गाड़ी किस की है?’’

‘‘नहीं, बताओ तभी तो पता चलेगा.’’ एक पुलिसकर्मी बोला.

‘‘ये गाड़ी डीआईजी साहब की है जो गाड़ी में ही बैठे हुए हैं.’’ ड्राइवर ने बताया.

इस से पहले कि पुलिस कुछ कहती, कार में बैठे शख्स ने ड्राइवर से बात कर रहे पुलिसकर्मी को इशारे से अपने पास बुलाया. पास में खड़े एसआई विनय त्यागी कार में बैठे उस शख्स के पास पहुंचे तो उस शख्स ने खुद को डीआईजी इंटेलीजेंस ब्यूरो बताया.

एसआई विनय त्यागी को यह जानकारी मिल ही चुकी थी कि अजय यादव बहुत ही शातिर किस्म का है. इसलिए उन्होंने उस से आइडेंटिटी कार्ड मांगा तो वह आईडी कार्ड तो क्या ऐसी कोई चीज नहीं दिखा सका जिस से साबित हो सके कि वह पुलिस में है. लिहाजा वह उन दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ले आए.

औफिस में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अजय यादव उर्फ राजीव यादव व अमित चौहान बताए. इन के खिलाफ ही अनुष्का ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

पूछताछ में पता चला कि अजय यादव बहुत अच्छे परिवार से है. उस के पिता आईएएस औफीसर थे. प्रतिष्ठित परिवार का अजय यादव एक ठग कैसे बना, इस बारे में जब उस से पूछताछ की गई तो उस के शातिर ठग बनने की एक दिलचस्प कहानी सामने आई.

अजय सिंह यादव के पिता जय नारायण सिंह आईएएस अधिकारी थे. वह सन 1979 में दिल्ली में एमसीडी के कमिश्नर रह चुके थे. अजय सिंह ने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज से 1976 में ग्रैजुएशन पूरा किया. पिता चाहते थे कि वह भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करे. इस के लिए दिनरात एक करना होता है. यह सब करने के लिए अजय तैयार नहीं था. तब जयनारायण सिंह ने अपने प्रभाव से अजय की नौकरी फल एवं सब्जीमंडी आजादपुर में प्रवर्तन अधिकारी के पद पर लगवा दी.

चूंकि अजय की शुरू से ही खुले हाथों से पैसे खर्च करने की आदत थी. इसलिए नौकरी से उसे जो पैसे मिलते थे, वह उस की आंख तले नहीं आते थे. इस के अलावा उस की नौकरी बड़ी आसानी से लगी थी इसलिए उस नौकरी पर उस का मन नहीं लगा. 5-6 साल बाद ही उस ने वह नौकरी छोड़ दी.

उस का मानना था बिजनैस में मोटी कमाई होती है इसलिए अब वह किसी बिजनैस में हाथ आजमाना चाहता था. उसे चूंकि बिजनैस का कोई अनुभव नहीं था इसलिए पिता ने उसे बिजनैस करने को मना किया, लेकिन वह नहीं माना. उस ने एक नामी ब्रांड के रिफाइंड तेल की डिस्ट्रीब्यूशनशिप ले ली. राजस्थान में उस ने अपना कारोबार शुरू कर दिया. लेकिन घाटा होने की वजह से उस ने इस कारोबार को बंद कर दिया.

अजय यादव तेजतर्रार और पढ़ालिखा युवक था. पिता के प्रभाव की वजह से उस के कुछ राजनीतिज्ञों से भी अच्छे संबंध हो गए थे. रिफाइंड तेल का बिजनैस बंद करने के बाद वह केंद्र सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री का पीए बन गया. वहां उस की मुलाकात तमाम अधिकारियों से होती रहती थी. वहां रह कर वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बात और काम करने की शैली सीख गया था.

अजय यादव अविवाहित था. प्रशासनिक अधिकारी का बेटा होने की वजह से उस के लिए अच्छे परिवारों से रिश्ते आने लगे. सन 1981 में राजस्थान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री की बेटी से उस की शादी हो गई.

कालेज के दिनों से ही वह खर्चीली लाइफस्टाइल जीने का शौकीन था. यही आदत उस की अब भी बनी हुई थी. मंत्री का पीए बनने के बाद वह जो कमा रहा था, उस कमाई से भी वह संतुष्ट नहीं था. लिहाजा उस ने मंत्री के पीए की नौकरी भी छोड़ दी.

उसी दौरान उस ने दिल्ली में कुछ ब्लूलाइन बसें चलवाईं. बसों से उसे जो आमदनी होती थी, उस से ज्यादा उस के खर्चे थे. ऊपर से बसों की मेंटीनेंस में उस के मोटे पैसे खर्च हो जाते थे लिहाजा उस ने वे भी बेच दीं. सन 1990 में अजय ने देहरादून स्थित अपने बंगले में होटल खोला, लेकिन उस से भी उसे अपेक्षा के मुताबिक इनकम नहीं मिली.

अजय के खर्चे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन आमदनी का कोई स्थाई स्रोत नहीं था. लिहाजा वह परेशान रहने लगा. तब उस ने दिल्ली और हरियाणा की रीयल एस्टेट कंपनियों में नौकरियां कीं. नौकरी में उस की भागदौड़ ज्यादा हो गई थी जिस की वजह से उसे शुगर, उच्च रक्तचाप और अन्य कई बीमारियों ने घेर लिया. 2008-09 में वह पूरी तरह बेरोजगार हो गया तो उसे पैसों की तंगी होने लगी.

षडयंत्र : पैसों की चाह में – भाग 2

बहरहाल, अमरजीत सिंह के गायब होने के बाद उन के दोनों बेटे, गुरदीप सिंह और गुरचरण सिंह हर संभावित जगह पर उन की तलाश करते रहे. लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. ऐसे में ही किसी दिन उन की मुलाकात गांव के ही कृपाल सिंह से हुई तो उस ने उन्हें बताया कि जिस दिन से सरदार जी गायब हैं, उस दिन सुबह वह खेतों पर जा रहा था तो उस ने उन्हें स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर के साथ देखा था. उस समय वह काफी नशे में लग रहे थे.

उस के पूछने पर सुखमीत कौर ने बताया था कि वे सरदारजी को अपने भाई की जमीन दिखाने यूपी ले जा रहे हैं. उस समय वे लोग ब्रह्मकुमारी सदन के मोड़ पर खड़े थे. कुछ देर बाद एक इंडिका कार आई तो सभी उस में सवार हो कर चले गए थे.

कृपाल सिंह से मिली जानकारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि पिता के स्वर्ण सिंह के साथ जाने की बात उन्हें बिलकुल पता नहीं थी. स्वर्ण सिंह ने भी यह बात नहीं बताई थी. इस के अलावा अमरजीत सिंह के औफिस से ढाई करोड़ रुपए की जमीन के सौदे के कागजात भी मिल गए थे, जिन्हें देख कर दोनों भाइयों ने अंदाजा लगाया कि कहीं इसी ढाई करोड़ रुपए की जमीन के लिए तो उन के पिता का अपहरण नहीं किया गया.

इस के बाद गुरचरण सिंह और गुरदीप सिंह को लगा कि अब समय बेकार करना ठीक नहीं है. दोनों भाई थाना सदर के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ से मिले और उन्हें पूरी बात बताई. चूंकि अमरजीत सिंह ग्रेवाल बड़े और जानेमाने आदमी थे, सो अमनदीप सिंह बराड़ ने गुरदीप सिंह के बयान के आधार पर ही अमरजीत सिंह के मामले को अपराध संख्या 124/2013 पर भादंवि की धारा 364-120बी के तहत दर्ज कर मामले की सूचना उच्चाधिकारियों को दे कर खुद इस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने स्वर्ण सिंह और उस की तलाश के लिए एक टीम बनाई, जिस में एएसआई रामपाल सिंह, दविंदर सिंह, मुख्तियार सिंह, हेडकांस्टेबल कुलवंत सिंह, हरपाल सिंह, सुखविंदर सिंह और तलविंदर सिंह को शामिल किया गया. अगले ही दिन इस पुलिस टीम ने मुखबिरों की सूचना पर लुधियाना के बाहरी क्षेत्र से स्वर्ण सिंह और उस की पत्नी सुखमीत कौर को कार सहित गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर इन से पूछताछ की जाने लगी तो इन्होेंने अमरजीत सिंह के साथ यूपी जाने की बात से साफ मना कर दिया. उन का कहना था कि उन्होंने अमरजीत सिंह को जगराओं के निकट एक जमीन दिखा कर उन्हें उन के घर छोड़ दिया था.

पुलिस टीम ने लाख कोशिश की, लेकिन वे अपने बयान पर अड़े रहे. इधर थाना पुलिस पूछताछ में लगी थी तो दूसरी ओर गुरदीप सिंह जीटी रोड स्थित शंभू बार्डर के टोल टैक्स नाका से सीसीटीवी की फुटेज ले आया. थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ ने वह फुटेज देखी तो उस में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि 25 अगस्त की सुबह 9 बजे के आसपास इंडिका कार, जिस का नंबर पीबी19ई-2277 था. उस की अगली सीट पर नशे की हालत में अमरजीत सिंह बैठे थे. ड्राइवर की सीट पर स्वर्ण सिंह बैठा था और पीछे की सीट पर सुखमीत कौर बैठी थी. अगले दिन यानी 26 अगस्त की शाम को वही गाड़ी लौटी थी, लेकिन उस में अमरजीत सिंह नहीं थे.

फुटेज देख कर स्वर्ण सिंह कुछ कहने लायक नहीं रह गया था. फिर भी उस ने बात को घुमाने की कोशिश की. उस ने कहा कि कुछ जमीन अंबाला के पास थी. सरदारजी ने कहा था कि जब यहां तक आए हैं तो लगे हाथ उसे भी देख लेते हैं. उसे देखने के लिए वे अंबाला चले गए थे. लेकिन स्वर्ण सिंह का यह बहाना भी नहीं चला और उसे अपना अपराध स्वीकार करना पड़ा.

स्वर्ण सिंह ने बताया था कि अमरजीत की हत्या कर के उन की लाश को उन लोगों ने नहर में फेंक दी थी. स्वर्ण सिंह के बताए अनुसार, इस हत्याकांड में 5 लोग शामिल थे, एक तो वह स्वयं था, दूसरा उस का भाई गुरचरन सिंह, तीसरा साला कुलविंदर सिंह, चौथा पत्नी सुखमीत कौर और पांचवां था अमित कुमार.

स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर पुलिस गिरफ्त में थे. उन के बयान के बाद पुलिस ने इस मुकदमे में धारा 364-120बी के साथ 302-201बी, 25-54-59 आर्म्स एक्ट जोड़ कर स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान ही उन की निशानदेही पर उत्तर प्रदेश के पृथ्वीपुर से उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने स्वर्ण सिंह और सुखमीत कौर के साथ गुरचरण सिंह एवं कुलविंदर सिंह को अदालत में पेश कर के लाश एवं सुबूत जुटाने के लिए 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पंजाब पुलिस ने उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद के निकट रामगंगा नदी में जाल डाल कर मृतक अमरजीत सिंह की लाश की तलाश के लिए मीरजापुर से जलालाबाद तक जाल डाला. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लाश बरामद नहीं हो सकी.

पुलिस ने गिरफ्तार अभियुक्तों की निशानदेही पर इस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अमित कुमार उर्फ विजय उर्फ रोहित चोपड़ा की तलाश में कई जगह छापे मारे, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं लगा. इस बीच पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त कार, डंडा, 32 और 315 बोर के 2 रिवाल्वर के साथ 10 लाख रुपए नकद बरामद किए थे.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने चारों अभियुक्तों स्वर्ण सिंह, उस की पत्नी सुखमीत कौर, उस के भाई गुरचरन सिंह और साले कुलविंदर सिंह को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जिला जेल भेज दिया गया.

गिरफ्तार चारों अभियुक्तों से की गई पूछताछ में अमरजीत सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह ठगी, बेईमानी, ईर्ष्या और उच्च महत्त्वाकांक्षा की पृष्ठभूमि पर तैयार की गई थी. सही बात तो यह थी कि इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि काफी पहले ही तैयार कर ली गई थी. अगर हत्यारे अपनी योजनानुसार अपने इरादों में सफल हो जाते तो उन की जगह मृतक के दोनों बेटे पिता की हत्या के आरोप में जेल की हवा खा रहे होते और अभियुक्त उन की प्रौपर्टी पर ऐश कर रहे होते.

जिस्म के आईने में देखी तिजोरी

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 2

11 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा, ‘‘अनुष्का, मेरे साथ एक वाकया हो गया है. कल रात बदमाशों से हुई मुठभेड़ के दौरान मेरे पैर में गोली लग गई है. इस के अलावा मेरे कूल्हे की हड्डी में भी फ्रैक्चर हो गया है. इस समय मैं मिजोरम के एक प्राइवेट अस्पताल में हूं.’’

यह खबर सुनते ही अनुष्का घबरा गई. वह फोन पर ही इस घटना पर दुख जताने लगी. तभी राजीव बोला, ‘‘अनुष्का, तुम मेरी चिंता मत करो. जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा. लेकिन तुम्हें तो मालूम ही है कि कल मेरा एटीएम कार्ड कहीं गिर गया था. यहां अस्पताल में कुछ पैसों की जरूरत है.

यदि संभव हो सके तो कुछ पैसे औनलाइन ट्रांसफर कर दो. ठीक होने के बाद मुझे विभाग से सारा पैसा मिल जाएगा, तब मैं तुम्हारे पैसे लौटा दूंगा. मैं अपने बौडीगार्ड का एकाउंट नंबर मैसेज कर रहा हूं. उसी में डाल देना. बौडीगार्ड बैंक से पैसे ला कर अस्पताल में जमा करा देगा.’’

कुछ ही देर बाद अनुष्का के फोन पर राजीव द्वारा भेजा गया मैसेज मिला. उस ने मैसेज में बैंक का खाता नंबर भेजा था. अनुष्का ने 12 दिसंबर 2013 को राजीव के भेजे गए कार्पोरेशन बैंक के खाता नंबर 124800101003359 में 75 हजार रुपए औनलाइन ट्रांसफर कर दिए.

अनुष्का कामना करने लगी कि राजीव जल्द ठीक हो जाए. चूंकि राजीव उस का होने वाला पति था इसलिए उस का ध्यान उस की तरफ ही लगा हुआ था. वह दिन में कईकई बार फोन कर के उस का हालचाल मालूम करती रहती थी.

19 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा कि उस की हालत ठीक न होने की वजह से उसे चेन्नई के अपोलो अस्पताल ले जाया जा रहा है. वहां उस के औपरेशन वगैरह पर मोटा पैसा खर्च होने की उम्मीद है. उस ने उस से और पैसे भेजने को कहा.

अनुष्का नहीं चाहती थी कि राजीव को कुछ हो जाए, इसलिए उस ने उसी दिन उस के द्वारा भेजे गए खाता नंबर में सवा 4 लाख रुपए जमा करा दिए. 13 दिसंबर जो शादी की तारीख मुकर्रर की गई थी, वह अचानक आई विपदा की वजह से निकल गई. धीरेधीरे 2013 बीत कर नया साल 2014 भी आ गया. अनुष्का का मन कर रहा था कि अस्पताल जा कर वह राजीव को देख आए लेकिन बिजनैस और अन्य वजहों से वह चेन्नई नहीं जा सकी. वह फोन पर जरूर उस के संपर्क में रही.

अनुष्का ने राजीव से कह दिया था कि वह इलाज की चिंता न करे. जितना भी संभव हो सकेगा वह उस की मदद करेगी. एक दिन राजीव ने उस से कहा, ‘‘डाक्टरों ने बताया है कि इलाज लंबा चलेगा, जिस में पैसों की भी जरूरत पड़ेगी. मेरे ठीक होने तक तुम जरूरत के मुताबिक पैसे देती रहना. ठीक होने पर मैं तुम्हारे सारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

‘‘आप पैसों की चिंता न करें, बस अपना खयाल रखें.’’ अनुष्का बोली.

‘‘अनुष्का मेरे एक दोस्त हैं अजय सिंह यादव जो यहीं पर डीआईजी हैं. मैं उन का आईसीआईसीआई बैंक का खाता नंबर एसएमएस कर रहा हूं. तुम उस में भी पैसे भेज सकती हो. पैसे भेजने के बाद तुम मुझे फोन जरूर कर देना.’’ राजीव ने बताया.

इस तरह 12 दिसंबर, 2013 से 7 फरवरी, 2014 तक अनुष्का अलगअलग बैंक खातों में राजीव यादव के साढ़े 24 लाख रुपए भेज चुकी थी. इसी बीच राजीव ने उसे बताया कि उस का ब्लड प्रेशर लगातार बढ़ रहा है और कूल्हे का औपरेशन करने के लिए उसे चेन्नई से हैदराबाद के अपोलो अस्पताल भेजा जा रहा है.

राजीव की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ने की बात सुन कर अनुष्का को और ज्यादा चिंता होने लगी. उस ने राजीव को अस्पताल जा कर देखने का प्रोग्राम बना लिया. 21 फरवरी, 2014 को वह हैदराबाद के अपोलो अस्पताल पहुंच गई. अस्पताल पहुंचने पर उसे जो सूचना मिली, उसे सुन कर उस के होश ही उड़ गए.

अस्पताल से उसे जानकारी मिली कि राजीव यादव नाम का कोई पुलिस अधिकारी अस्पताल में भरती ही नहीं है. जबकि राजीव ने उसे उसी अस्पताल में भरती होने की बात कही थी.

जब वह इस अस्पताल में नहीं है तो कहां गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे किसी और अस्पताल भेज दिया हो? यह सोच कर उस ने उसी समय राजीव को फोन मिलाया. उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई बार फोन मिलाने के बाद भी फोन स्विच्ड औफ मिलता रहा तो निराश हो कर वह कानपुर लौट आई.

घर लौटने के बाद उस ने राजीव को फिर से फोन मिलाया. इस बार फोन मिलने पर बात हुई तो राजीव ने अपनी सफाई में कहा कि सुरक्षा कारणों से वह अस्पताल में दूसरे नाम पर भरती हुआ है.

राजीव ने उस से पैसों की और डिमांड की तो अनुष्का ने उसे अब पैसे न होने का बहाना बना दिया. अनुष्का ने जब उस से पूछा कि वह अस्पताल में किस नाम से भरती है तो उस ने वह नाम नहीं बताया बल्कि उस ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया.

इस से अनुष्का को राजीव की बातों पर शक होने लगा था. उस ने राजीव को आईसीआईसीआई, ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स और कार्पोरेशन बैंक के जिन खातों में पैसे भेजे थे. वह अपने स्तर से यह पता लगाने में जुट गई कि यह खाते किन नामों पर हैं.

उसे पता चला कि आईसीआईसीआई बैंक और ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स के खाते अजय सिंह यादव के थे, जो ग्रेटर कैलाश पार्ट-2, नई दिल्ली का रहने वाला था जबकि कार्पोरेशन बैंक का खाता अमित चौहान का निकला जो नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला था. जिस वोडाफोन मोबाइल नंबर से राजीव यादव बात करता था वह भी अमित चौहान के नाम पर लिया गया था.

इसी बीच 26 फरवरी, 2014 को अनुष्का को राजीव यादव ने फोन कर के बताया कि वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो रहा है. डिस्चार्ज होने के कुछ दिनों बाद उसे आईएएस एकेडमी मसूरी भेजा जाएगा. वह वहां कुछ दिनों इंस्ट्रक्टर के रूप में काम करेगा.

राजीव ने अस्पताल का बिल चुकाने के लिए अनुष्का से कुछ पैसे और भेजने को कहा. चूंकि अनुष्का को राजीव पर शक हो गया था इसलिए उस ने उस की बात को फोन में रिकौर्ड करना शुरू कर दिया था. अपनी मजबूरी बताते हुए उस ने उसे और पैसे देने में असमर्थता जता दी.

और पैसे न मिलने की बात सुन कर राजीव यादव ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया. इस के बाद वह फोन औन नहीं हुआ. शादी के जाल में फंस कर अनुष्का राजीव को साढ़े 24 लाख रुपए दे चुकी थी. और पैसे न मिलने की बात पर जिस तरह राजीव यादव ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था, उस से अनुष्का को लगा कि उस के साथ कोई बड़ा फ्रौड हुआ है.

अपने स्तर से जानकारी पाने के लिए वह दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में उस पते पर गई जहां वह रहता था, जिस के खातों में उस ने मोटी रकम ट्रांसफर की थी. राजीव ने अजय यादव को मिजोरम का डीआईजी बताया. लेकिन पड़ोसियों से बात करने पर पता चला कि वहां कोई पुलिस अधिकारी नहीं रहता.

मासूम की लाश पर लिखी सपनों की इबारत – भाग 1

उस दिन अक्टूबर की 9 तारीख थी. धरती पर सुरमई शाम उतर आई थी. सूरज दूर पहाड़ों की ओट में छिपने लगा था. राजस्थान में चंबल नदी के  किनारे बसे और पूरे देश में एजुकेशन हब के नाम से मशहूर शहर कोटा की पौश कालोनी तलवंडी निवासी पुनीत हांडा बैंक से अभीअभी घर लौटे थे.

दिनभर के थकेमांदे पुनीत ने घर आते ही पत्नी श्रद्धा से बेटे रुद्राक्ष के बारे में पूछा. रसोई में पुनीत के लिए चाय बनाने में व्यस्त श्रद्धा ने वहीं से हंसते हुए कहा, ‘‘आप को पता तो है, रुद्राक्ष पड़ोस के हनुमान मंदिर पार्क में खेलने जाता है, फिर भी आप रोजाना घर आते ही उस के बारे में पूछते हैं.’’

पत्नी के जवाब से संतुष्ट हो कर पुनीत फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गए. कुछ देर में वह हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकल आए. इतनी देर में श्रद्धा चाय और एक प्लेट में बिस्किट ले कर ड्राइंगरूम में आ गई. दोनों चाय की चुस्कियां लेते हुए इधरउधर की बातें करने लगे.

इसी बीच पुनीत की नजर दीवार पर टंगी घड़ी पर पड़ी. शाम के 7 बज चुके थे, रुद्राक्ष अभी तक घर नहीं लौटा था. पुनीत ने श्रद्धा की ओर देखते हुए कहा कि रुद्राक्ष रोजाना तो ज्यादा से ज्यादा साढे़ 6 बजे तक घर लौट आता था. आज क्यों नहीं आया?

श्रद्धा साड़ी के पल्लू से चेहरे को पोंछते हुए बोलीं, ‘‘हो सकता है, वह अपने दोस्तों के साथ अभी तक खेलने में लगा हो. फिर भी पापा से कहती हूं कि अपने लाडले पोते को पार्क से ले आएं.’’

श्रद्धा ने ससुर एम.एम. हांडा को रुद्राक्ष के अब तक घर नहीं आने की बात बताई तो वह उसे पार्क से लाने के लिए जाने लगे, तभी घर के लैंडलाइन पर फोन की घंटी बजने लगी. पुनीत ने फोन उठाया. फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘तू पुनीत बोल रहा है?’’

फोन सुन कर पुनीत को झटका सा लगा. भद्दी आवाज में कोई उन्हें तू कह कर बोल रहा था. फिर भी उन्होंने यह सोच कर कि हो न हो कोई दोस्त हो, आवाज पहचानने की कोशिश की, लेकिन कुछ याद नहीं आया.

पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन पर दूसरी ओर से रौबीली आवाज सुनाई दी, ‘‘तू बैंक मैनेजर है ना… तेरी बीवी का नाम श्रद्धा है और वह टीचर है. रुद्राक्ष तेरा ही बेटा है ना…?’’

पुनीत इस तरह के सवालों से झल्ला गए. फिर भी उन्होंने शांत स्वर में कहा, ‘‘हां.’’

पुनीत के हां कहते ही फोन पर दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सुन, तेरे बेटे रुद्राक्ष का अपहरण हो गया है. हम उसे कश्मीर भेज रहे हैं. कल सुबह तक 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लेना.’’

पुनीत कुछ पूछते, इस से पहले ही फोन करने वाले ने कहा, ‘‘याद रखना, पुलिस को सूचना दी तो बच्चा जिंदा नहीं बचेगा. जितनी तेजी से फोन करने वाले ने बात की थी. उतनी ही तेजी से दूसरी तरफ से फोन कट गया.’’

फोन सुन कर पुनीत सन्न रह गए. एकाएक यह बात उन की समझ में नहीं आई कि क्या करें? उन्होंने श्रद्धा को आवाज दे कर बुलाया और उन्हें फोन पर हुई सारी बातें बताईं.

रुद्राक्ष के अपहरण और 2 करोड़ की फिरौती मांगने की बातें सुन कर श्रद्धा बेसुध हो गईं. उन की आंखों से आंसू टपकने लगे. श्रद्धा ने पुनीत से कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे बच्चे का अपहरण भला कोई क्यों करेगा? हमारी तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है.’’

पुनीत ने श्रद्धा को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘हिम्मत रखो, सब ठीक हो जाएगा. पुनीत कहीं नहीं गया होगा, चलो पार्क में ढूंढ़ते हैं.’’

बात वाकई चिंता की थी. फोन पर इस तरह का मजाक भी संभव नहीं था. रुद्राक्ष और श्रद्धा अपने घर के पड़ोस वाले पार्क में पहुंचे, लेकिन वहां कोई नहीं था. चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था. रुद्राक्ष के दोस्तों से पूछताछ के लिए वे आसपास रहने वाले बच्चों के घर गए. बच्चों से पता चला कि 3-4 दिन से रोजाना एक व्यक्ति पार्क में आता था.

निशान माइक्रा कार से आने वाला वह व्यक्ति पार्क में बच्चों से बड़े प्यार से बातें करता था, उन से स्पेलिंग वगैरह के अलावा उन के मातापिता के कामकाज के बारे में भी पूछा करता था. साथ ही बच्चों को चौकलेट भी देता था. 3-4 दिन में ही वह पार्क में आने वाले बच्चों से काफी घुलमिल गया था. रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों ने बताया कि वही व्यकित रुद्राक्ष को अपने साथ ले गया था.

पार्क में खेलने वाले बच्चों ने जो कुछ बताया, उस से यह बात साफ हो गई कि फोन झूठा नहीं था और न ही उन से कोई मजाक किया गया था. मतलब साफ था कि 7 साल के मासूम रुद्राक्ष का वाकई अपहरण हो गया था.

अपहरण की बात सामने आने के बाद पुनीत व श्रद्धा की रुलाई फूट पड़ी. रुद्राक्ष उन के जिगर का टुकड़ा था, लेकिन रोने से कुछ नहीं होने वाला था. पुनीत ने सोचविचार कर अपने परिचितों को फोन कर के तुरंत घर पर बुलाया.

कुछ ही देर में पुनीत के यारदोस्त व करीबी रिश्तेदार आ गए तो पुनीत ने उन्हें रुद्राक्ष के अपहरण होने और 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगने की बात बताई. रुद्राक्ष के अपहरण की बात सुन कर सभी को झटका लगा. सभी ने पुनीत और श्रद्धा को हिम्मत से काम लेने और पुलिस को सूचना देने की सलाह दी. पुनीत ने अपने कुछ परिचितों के साथ थाना जवाहरनगर पहुंच कर रुद्राक्ष के अपहरण और फोन पर 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगे जाने की सूचना दे दी. पुलिस ने तत्काल अपहरण का केस दर्ज कर लिया.

पुनीत हांडा कोटा के संभ्रांत नागरिक हैं. वे बूंदी सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक की तालेड़ा शाखा के मैनेजर हैं. उन की पत्नी श्रद्धा हांडा स्कूल में टीचर हैं. रुद्राक्ष के अपहरण और फिरौती मांगे जाने की बात पूरे शहर में रात को ही आग की तरह फैल गई. लोकल चैनलों पर खबरें आने लगीं.

कोटा के सांसद ओम बिड़ला को इस मामले की जानकारी मिली तो वह विधायक संदीप शर्मा के साथ पुनीत हांडा के घर पहुंचे और उन्हें भरोसा दिलाया कि चिंता न करें, रुद्राक्ष को सहीसलामत घर ले कर आएंगे. ओम बिड़ला दबंग सांसद हैं. उन्होंने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से फोन पर बात की और रुद्राक्ष के अपहरण के मामले की जानकारी दे कर बच्चे का तुरंत सुराग लगवाने का आग्रह किया.

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उस दिन जयपुर में ही थीं और एक दिन बाद सिंगापुर के दौरे पर जाने की तैयारियों में लगी थीं. उन्होंने मामले की संवेदनशीलता को महसूस कर के तुरंत प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओमेंद्र भारद्वाज को तलब कर अपहृत बच्चे का पता लगाने के  निर्देश दिए. डीजीपी ने कोटा के पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि जैसे भी संभव हो, रुद्राक्ष का पता लगाएं. इस के लिए विशेष पुलिस टीमें तैनात की जाएं.

डीजीपी के निर्देश पर कोटा के आईजी डा. रविप्रकाश, एसपी ग्रामीण डा. विकास पाठक, कार्यवाहक एसपी मनीष अग्रवाल, एएसपी सिटी राजन दुष्यंत और डीएसपी हिमांशु सहित तमाम पुलिस अधिकारी रुद्राक्ष की तलाश में जुट गए. इस के साथ ही कोटा और आसपास के इलाके में कड़ी नाकेबंदी कर दी गई.

सब से पहले अपहरणकर्ताओं का पता लगाना जरूरी था. इस के लिए पुलिस ने पार्क में रुद्राक्ष के साथ खेलने वाले बच्चों, पार्क में आने वाले लोगों, पार्क में बने हनुमान मंदिर के पुजारी और अन्य लोगों से पूछताछ की. पार्क के आसपास के मकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने के बाद निशान माइक्रा कार को चिह्नित कर लिया गया. परेशानी यह थी कि कैमरों की फुटेज में न तो कार का नंबर दिखाई दे रहा था, न ही कार चलाने वाले का चेहरा नजर आ रहा था. कार के शीशों पर काली फिल्म चढ़ी थी. फिर भी पुलिस उस निशान माइक्रा कार की तलाश में जुट गई.

पूरी रात पुलिस रुद्राक्ष के अपहरण की गुत्थी सुलझाने के प्रयास में जुटी रही. दूसरी ओर पुनीत के घर आधी रात तक लोगों का आनाजाना लगा रहा. लोग उन्हें दिलासा देते रहे. बेटे रुद्राक्ष का फोटो देखदेख कर श्रद्धा बारबार रो रही थीं. एक बार तो वह गश खा कर अचेत भी हो गईं. पुनीत व श्रद्धा समेत पूरे परिवार के लोगों ने पूरी रात जाग कर गुजारी. उन्हें उम्मीद थी कि पता नहीं कब पुलिस का फोन आ जाए कि रुद्राक्ष का पता लग गया है या अपहर्ताओं का ही दोबारा फोन आ जाए.

जाना अनजाना सच : जुर्म का भागीदार – भाग 1

ठंडी बर्फीली हवा के झोंके तन को भिगो रहे थे, मन की उड़ान सातवें आसमान को छू रही थी. पहाड़ों की शीतलता का अहसास, बादलों से आंखमिचौली करती गुनगुनी धूप, सब कुछ बहुत दिलकश था. चीड़ और देवदार के वृक्षों के इर्दगिर्द चक्कर काटते धुंधभरे बादलों को देख कर हम दिल्ली की तपती गर्मी को भूल गए थे. होटल की लौबी से जब मैं नैनी झील पर तैरती रंगबिरंगी कश्तियां देखती तो सोचती उन पर बैठे हर शख्स की जिंदगी कितनी हसीन है.

क्यारियों में खिले रंगबिरंगे फूल और उन पर मंडराती तितलियां मन को कल्पनालोक की सैर करा रही थीं. लौबी से अंदर आ कर मैं कमरे का जायजा लेने लगी. तभी वेटर चाय और गरमगरम पकौडे़ ले आया. जब हम चाय पी रहे थे तभी मेरी नजर मेराज पर पड़ी. उन की आंखों में मुझे प्यार का सागर लहराता नजर आया. जिस चाहत भरी नजर के लिए मैं सालों से तरसती रही थी, आज वही नजर मुझ पर मेहरबान सी लगी.

सचमुच हम दोनों जिंदगी की भीड़ में गुम हो गए थे. देवर और ननदों को संभालने और बड़ा करने की जिम्मेदारी में शायद हम यह भी भूल गए थे कि हम पतिपत्नी भी हैं. अचानक मेराज उठे और शौल ला कर मेरे कंधों पर डाल दी. मैं ताज्जुब से सिहर सी गई. यह स्वाभाविक भी था क्योंकि जिस ने सालों से मेरी परवाह नहीं की, वह आज मुझे सपनों के शहर में ले आया था. अचानक मेराज मुझ से बोले, ‘‘फ्रेश हो जाओ, नीचे लेक पर चलते हैं, फिर कहीं बाहर डिनर करेंगे.’’

यह एक तरह से मेरे लिए सरप्राइज था. मैं जल्दी से तैयार हो गई. होटल से लेक तक काफी लंबी ढलान थी, मेरे कदम उखड़ रहे थे. तभी मेराज ने मेरा बर्फ सा ठंडा हाथ थाम लिया. उन की गरम गुदगुदी हथेली में अपना हाथ दे कर मुझे ऐसा लगा जैसे भूल से किसी ने मुझे कतरा भर इज्जत बख्श दी हो.

उस दिन जो हो रहा था, वैसा कभी नहीं हुआ था. मैं और मेराज कश्ती में बैठ कर देर शाम तक नैनी झील में हवा से उठतीबैठती लहरों का आनंद लेते रहे. हां, हमारे बीच बातचीत कोई नहीं हुई. दोनों ही एकदूसरे की जगह दूसरे जोड़ों को देखते रहे. इस बीच मेराज ने 2-3 बार मुझे कनखियों से जरूर देखा था. हमारा यह नौका विहार रूमानी भले ही नहीं था, फिर भी बहुत अच्छा लगा. जब अंधेरा घिरने लगा तो हम डिनर के लिए एक अच्छे होटल में चले गए.

होटल रंगीन रोशनियों से दमक रहा था, इत्र की खुशबू से सराबोर. आसमानी लिबास और पुराने डिजाइन के गहनों में मैं बहुत दिलकश लग रही थी. डिनर के दौरान मेराज एकटक मुझे देखे जा रहे थे. उन की आंखों की गहराइयों में न जाने ऐसा क्या था कि मैं अंदर तक पिघलती जा रही थी. मेरे जीवन से जो खुशी विदा ले चुकी थी, वह दोबारा दस्तक देती सी लग रही थी.

‘‘तुम बहुत प्यारी हो सलमा’’ मेराज के थरथराते होंठों से निकले शब्दों को सुन कर मुझे लगा जैसे मैं किसी और ही लोक में हूं. जिन अल्फाजों को सुनने के लिए मैं सालों से तरस रही थी, वह मेरे कानों में शहद घोल रहे थे.

जीने के लिए खुशी के दो पल भी काफी होते हैं. मुझे लग रहा था जैसे मेराज के शब्द पहाडि़यों से टकरा बारबार मेरे कानों तक आ रहे हों. जिस तरह तितलियां मौन रह कर भी संगीत पैदा करती हैं, वैसे ही मेराज के हावभाव मेरे इर्दगिर्द संगीतमय माहौल पैदा कर रहे थे.

जब से हमारा निकाह हुआ, मैं ने मेराज को गुस्से में ही पाया था. बातबात पर मुझे बेइज्जत करना, मेरे घर वालों को उलटासीधा कहना, मेरी तरफ घूर कर देखना, मुझ पर मालिक की तरह हुक्म चलाना, उन की आदत में शामिल था. मैं ने उन्हें कभी हंसते हुए नहीं देखा था. उन के साथ मैं ने कई साल बड़ी खामोशी के साथ गुजारे थे.

मेराज सभी से ठीक से पेश आते थे लेकिन जैसे ही मुझ से निगाह मिलती, एक संजीदगी भरी उदासी उन के चेहरे पर उतर आती थी.  फिर हमारे बीच एक सर्द धुआं सा फैल जाता था और यह आपे से बाहर हो जाते थे. अपने लिए उन की आंखों में छाई नफरत मुझ से बरदाश्त नहीं होती थी. कई बार तो मैं रोने बैठ जाती थी.

वक्त गुजरते देर नहीं लगती. वह आ कर कब चला जाता है, पता नहीं चलता. हां, वक्त अपने पीछे ढेरों कहानियां जरूर छोड़ जाता है. मेरे देवर मोहम्मद रजा सैफ ने शायद मेरे दर्द को समझ लिया था. जब वह किशोर थे तभी से मेरी उदासी और नम आंखों के दर्द को पढ़ने लगे थे. जब वह जवान हो गए और बिजनैस संभालने लगे तो उन्होंने अपनी प्यारी भाभी यानी मुझे कुछ सुकून पहुंचाना चाहा. इसीलिए उन्होंने जबरन टैक्सी करवा कर हमें यहां भेज दिया था. होटल की बुकिंग भी रजा ने कराई थी.

डिनर के बाद मेराज के मन में न जाने क्या आया कि मेरा हाथ थाम कर बोले, ‘‘अभी और घूमने का मन है, चलो फिर से झील में चलते हैं. रोशनी और अंधेरे के समीकरण में कश्तियों में घूमने का अलग ही मजा है.’’

मैं भला क्यों मना करती. मेरा मन तो चाह रहा था कि वह रात भर मेरे साथ घूमते रहें.  हम लेक किनारे खड़ी बोट पर बैठ गए. कुछ ही देर पहले बारिश हुई थी. हवा अब भी चल रही थी, जिस के वेग से बोट हिल रही थी. लहरें इतनी ऊपर तक आ रही थीं कि उन का आक्रामक रूप देख कर डर लग रहा था. एक जगह रोशनी देख मैं ने झील में झांका तो अपना ही अक्स डरावना सा लगा.

मेरी कहानी एक औरत के अपमान की कहानी थी. ऐसी औरत की कहानी जो सालों से अपने ही हमसफर के हाथों अपमान की शिकार होती रही थी. पुरुष कभी पिता बन कर, कभी पति बन कर, कभी भाई बन कर तो कभी बेटा बन कर औरत को अपमान की भट्ठी में जलाता रहा है. मेराज ने मुझे मेरा ही हमनवा बन कर अपमान की आग में जलाया था.

झील के हिलते हुए पानी में अपना बदसूरत सा अक्स देख कर मेरी आंखें भर आईं. मेरी आंसुओं भरी आंखों से मेराज कभी नहीं पसीजे थे. लेकिन उस तनहाई में अचानक बोले, ‘‘सलमा, मैं ने तुम्हारे साथ जो सुलूक किया, उस के लिए मैं ताउम्र शर्मिंदा रहूंगा.’’

फिर अचानक उन्होंने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने सीने में छिपा लिया. मेराज का गला भर आया था, आंखें नम थीं. कुछ ठहर कर उन्होंने फिर कहा, ‘‘सालों से मेरे दिल पर एक बोझ है, जिसे मैं आज सुकून भरे इन लम्हों में मन से उतार देना चाहता हूं. मैं जानता हूं तुम बेहद खूबसूरत हो, जहीन हो. फिर भी शादी के बाद से आज तक मैं तुम्हें वैसा प्यार नहीं कर सका, जैसा मुझे करना चाहिए था. तुम्हें देखते ही मेरे मन में नफरत की एक सर्द लहर सी दौड़ जाती थी. इसी वजह से मैं तुम्हारे दामन में चाहत का कोई फूल नहीं डाल सका.’’

‘‘आप को खुश रखूं, आप के लिए दुआएं मांगू, मेरे जीने का तो बस यही एक मकसद है. फिर भी मैं उस वजह को जानने के लिए बेताब हूं, जिस की मुझे इतनी लंबी सजा मिली.’’ कह कर मैं हैरानी से मेराज को देखने लगी. मेरे सवाल के जवाब में मेराज ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर मैं सन्न रह गई. सर्दी के बावजूद मेरा बदन पसीनेपसीने हो गया.

सपना का अधूरा सपना – भाग 1

फिरोजाबाद की नवनिर्मित कालोनी सुदामानगर के रहने वाले कुंवरपाल सिंह यादव के जानवरों के लगातार रंभाने  से पड़ोसियों का ध्यान उन की ओर गया. इस की वजह यह थी कि वे इस तरह रंभा रहे थे, जैसे उन्हें कई दिनों से चारापानी न मिला हो. उन के रंभाने से परेशान हो कर पड़ोसी कुंवरपाल के घर गए तो पता चला कि घर में बाहर से ताला बंद है.

कुंवरपाल का इस तरह ताला बंद कर के घर छोड़ कर जाना हैरान करने वाला था. क्योंकि उन्होंने तमाम गाएं और भैंसें पाल रखी थीं, इसलिए उन्हें छोड़ कर वह पूरे परिवार के साथ कहीं नहीं जा सकते थे. लोगों को किसी अनहोनी की आशंका हुई तो कालोनी के 2 लड़के कुंवरपाल के बगल वाले घर की सीढि़यों से चढ़ कर छत के रास्ते उन के घर जा पहुंचे.

नीचे कमरे में उन्होंने जो देखा, उन की चीख निकल गई. एक कमरे में पड़े तखत पर एक लाश पड़ी थी. लड़कों ने उसे पहचान लिया, वह कुंवरपाल की बड़ी बेटी सपना की लाश थी. उस के दोनों हाथों में नंगा तार बंधा था, जिस का दूसरा छोर स्विच बोर्ड के पास नीचे फर्श पर पड़ा था. देखने से ही लग रहा था कि उसे करंट लगा कर मारा गया था.

उन लड़कों के चीखने से बाहर खड़े लोग समझ गए कि अंदर कोई अनहोनी घटी है. जब लड़कों ने बाहर आ कर पूरी बात बताई तो उन्हें थोड़ा राहत महसूस हुई कि घर के बाकी लोग जहां भी हैं, सुरक्षित हैं. फिर भी लोगों के मन में आशंका तो थी ही, इसलिए तरहतरह की बातें होने लगीं.

जिस ने भी कुंवरपाल की बेटी सपना की हत्या के बारे में सुना, उस के घर की ओर भागा. यह इलाका फिरोजाबाद की उत्तर कोतवाली के अंतर्गत आता था, इसलिए सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा एसएसआई के.पी. सिंह, एसआई अर्जुनलाल वर्मा, सिपाही धर्मेंद्र सिंह, श्यामसुंदर और उमेशचंद को साथ ले कर कुंवरपाल के घर आ पहुचे.

कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा ताला तोड़वा कर कुछ लोगों के साथ घर के अंदर पहुंचे तो तखत पर पड़ी लाश देख कर हैरान रह गए. क्योंकि लाश देख कर ही लग रहा था कि लड़की की हत्या करंट लगा कर बड़ी बेरहमी से की गई थी. उन्होंने फोटोग्राफर बुला कर घटनास्थल की और लाश की फोटोग्राफी कराई. इस के बाद लाश का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. मृतका की गर्दन पर करंट लगाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. दाएं हाथ की अंगुली में तो करंट लगाने से छेद हो गया था.

मामला हत्या का था, इसलिए कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा ने घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. घर के अन्य लोग गायब थे, इसलिए पुलिस को संदेह हो रहा था कि कहीं इस हत्या में घर वालों का ही हाथ तो नहीं है. क्योंकि ऐसा कहीं से नहीं लग रहा था कि मृतका के घर में अकेली होने पर बाहर के लोगों ने आ कर उस की हत्या की हो. क्योंकि वहां न तो लूटपाट का कोई निशान था, न दुष्कर्म का. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर कुंवरपाल के मकान को सील कर दिया. यह 26 जुलाई, 2014 की घटना थी.

उसी दिन शाम 5 बजे के आसपास फिरोजाबाद के ही लोहियानगर का रहने वाला अभिनय राणा जिलाधिकारी विजय करन आनंद के आवास पर अपने कुछ साथियों के साथ पहुंचा. जिलाधिकारी से मिल कर उस ने बताया कि सुदामानगर में जिस लड़की की हत्या हुई है, वह उस की पत्नी सपना थी. उस की हत्या उस के पिता कुंवरपाल यादव ने पत्नी उर्मिला यादव तथा 2 सालों नंदकिशोर और राधाकिशन के साथ मिल कर की थी.

अभिनय राणा ने सपना को पत्नी बताया ही नहीं था, बल्कि पत्नी होने के तमाम सुबूत भी जिलाधिकारी को दिए थे. सुबूत देख कर जिलाधिकारी को समझते देर नहीं लगी कि यह औनर किलिंग का मामला है. उन्होंने तुरंत अभिनय राणा की तहरीर पर कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा को सपना की हत्या का मुकदमा दर्ज करने का आदेश कर दिया था.

अभिनय राणा जिलाधिकारी आवास से सीधे उत्तर कोतवाली पहुंचा और जिलाधिकारी के आदेश वाली तहरीर तथा सारे सुबूत कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा के सामने रख दिए तो उस तहरीर और सुबूतों के आधार पर उन्होंने अभिनय राणा की पत्नी सपना की हत्या का मुकदमा उस के पिता कुंवरपाल सिंह यादव, मां उर्मिला यादव तथा दोनों मामाओं, नंदकिशोर और राधाकिशन के नाम दर्ज करा कर मामले की जांच की जिम्मेदारी खुद संभाल ली.

नामजद मुकदमा दर्ज होते ही अभियुक्तों की तलाश में कोतवाली प्रभारी शशिकांत शर्मा ने अपनी टीम के साथ लगभग दर्जन भर जगहों पर छापे मारे, लेकिन एक भी अभियुक्त उन के हाथ नहीं लगा. वह मुखबिरों के साथसाथ सर्विलांस की भी मदद ले रहे थे. लेकिन सभी अभियुक्तों के मोबाइल बंद थे, इसलिए उन्हें सर्विलांस का कोई फायदा नहीं मिल रहा था.

घटना से पूरे 15 दिनों बाद रक्षाबंधन के अगले दिन यानी 11 अगस्त को किसी मुखबिर से शशिकांत शर्मा को कुंवरपाल के बारे में पता चल गया कि वह कहां छिपा है. फिर क्या था, शशिकांत शर्मा ने अपने सहयोगियों एसएसआई के.पी. सिंह, एसआई अर्जुनलाल वर्मा, सिपाही धर्मेंद्र सिंह, उमेशचंद और श्यामसुंदर के साथ रात 2 बजे छापा मार कर कुंवरपाल सिंह यादव को गिरफ्तार कर लिया.

कुंवरपाल राजनीतिक पहुंच वाला आदमी था. उस ने अपनी इस पहुंच के बल पर पुलिस पर दबाव बनाने की कोशिश भी की, लेकिन उस की एक नहीं चली. उस ने जिसे भी फोन किया, उस ने उस समय किसी भी तरह की मदद करने से मना कर दिया. इस तरह उस की गिरफ्तारी के बाद उस की जानपहचान का कोई भी नेता उस के काम नहीं आया.

थाने ला कर कुंवरपाल से पूछताछ शुरू हुई. जाहिर सी बात है, कोई भी जल्दी से यह नहीं स्वीकार करता कि उस ने अपराध किया है. कुंवरपाल भी झूठ बोलता रहा. लेकिन पुलिस के पास उस के हत्यारे होने के तमाम सुबूत थे. इसलिए उन्हीं सुबूतों के बल पर पुलिस ने उस से स्वीकार करा लिया कि सपना की हत्या उसी ने की थी.

इस के बाद कुंवरपाल ने सपना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कंपा देने वाली थी. उस के द्वारा सुनाई गई कहानी और अभिनय राणा द्वारा सुनाई गई कहानी को मिला कर सपना की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद की नवनिर्मित कालोनी सुदामानगर के रहने वाले कुंवरपाल सिंह यादव की बड़ी बेटी सपना के जवानी में कदम रखते ही वह नौजवानों का सपना बन गई थी. उस की उम्र का वह हर नौजवान उस का सपना देखने लगा था, जिस ने उसे एक बार देख लिया था.

लेकिन हर किसी का सपना कहां पूरा होता है. पूरा होता भी कैसे, सपना अकेली थी, जबकि उस का सपना देखने वाले तमाम नौजवान थे. जवान और खूबसूरत सपना यादव जल्दी ही सहपाठियों की ही नहीं, कालेज के तमाम नौजवानों के दिल की धड़कन बन चुकी थी.

यही नहीं, कालोनी और जिस रास्ते से वह आतीजाती थी, उस रास्ते के भी तमाम नौजवान उसे हसरतभरी नजरों से ताकते थे. उसे देखने वाला हर नौजवान उस की नजदीकी के लिए बेताब रहने लगा था. सपना का सपना देखने वाले भले ही तमाम लोग थे, लेकिन उन में से कोई भी सपना का सपना नहीं था. उस का सपना तो कोई और ही था.

फरेब के जाल में फंसी नीतू – भाग 1

लाश की हालत देख कर पुलिस वाले तो दूर की बात कोई भी आम आदमी बता देता कि हत्यारा या हत्यारे मृतका से किस हद तक नफरत करते होंगे. साफ लग रहा था कि हत्या प्रतिशोध के चलते पूरी नृशंसता से की गई थी और युवती के साथ बेरहमी से बलात्कार भी किया गया था.

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को जोड़ते जिला शहडोल के ब्यौहारी थाने के इंचार्ज इंसपेक्टर सुदीप सोनी को भांपते देर नहीं लगी कि मामला उम्मीद से ज्यादा गंभीर है. 25 मार्च की सुबहसुबह ही उन्हें नजदीक के गांव खामडांड में एक युवती की लाश पड़ी होने की खबर मिली थी. वक्त न गंवा कर सुदीप सोनी ने तुरंत इस वारदात की खबर शहडोल से एसपी सुशांत सक्सेना को दी और पुलिस टीम ले कर खामडांड घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

गांव वाले जैसे उन के आने का ही इंतजार कर रहे थे. पुलिस टीम के आते ही मारे उत्तेजना और रोमांच के उन्होंने सुदीप को बताया कि लाश गांव से थोड़ी दूर आम के बगीचे में पड़ी है. पुलिस टीम जब आम के बाग में पहुंची तो लाश देखते ही दहल उठी. ऐसा बहुत कम होता है कि लाश देख कर पुलिस वाले ही अचकचा जाएं.

लाश लगभग 24 वर्षीय युवती की थी, जिस की गरदन कटी पड़ी थी. अर्धनग्न सी युवती के शरीर पर केवल ब्लाउज और पेटीकोट थे. ब्लाउज इतना ज्यादा फटा हुआ था कि उस के होने न होने के कोई माने नहीं थे. दोनों स्तनों पर नाखूनों की खरोंच के निशान साफसाफ दिखाई दे रहे थे.

पेटीकोट देख कर भी लगता था कि हत्यारे चूंकि उसे साथ नहीं ले जा सकते थे इसलिए मृतका की कमर पर फेंक गए थे. युवती के गुप्तांग पर जलाए जाने के निशान भी साफसाफ नजर आ रहे थे. गाल पर दांतों से काटे जाने के निशान देख कर शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी कि मामला बलात्कार और हत्या का था.

खामडांड छोटा सा गांव है जिस में अधिकतर पिछडे़ और आदिवासी रहते हैं इसलिए पुलिस को लाश की शिनाख्त में दिक्कत पेश नहीं आई. लाश के मुआयने के बाद जैसे ही सुदीप सोनी गांव वालों से मुखातिब हुए तो पता चला कि मृतका का नाम नीतू राठौर है और वह इसी गांव के किसान बाबूलाल राठौर की बहू और रामजी राठौर की पत्नी है.

सुदीप ने तुरंत उपलब्ध तमाम जानकारियां सुशांत सक्सेना को दीं और उन के निर्देशानुसार जांच की जिम्मेदारी एसआई अभयराज सिंह को सौंप दी. चूंकि लाश की शिनाख्त हो चुकी थी इसलिए पुलिस के पास करने को एक ही काम रह गया था कि जल्द से जल्द कातिल का पता लगाए.

कागजी काररवाई पूरी कर  के नीतू की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. नीतू की हत्या की खबर उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी जो मऊ गांव में रहते थे. मौके पर अभयराज सिंह को कोई सुराग नहीं लग रहा था. अलबत्ता यह बात जरूर उन की समझ में आ गई थी कि कातिल उन की पहुंच से ज्यादा दूर नहीं है. छोटे से गांव में मामूली पूछताछ में यह उजागर हुआ कि नीतू के घर में उस के ससुर बाबूलाल और पति रामजी के अलावा और कोई नहीं है.

नीतू और रामजी की शादी अब से कोई 4 साल पहले हुई थी. बाबूलाल का अधिकांश वक्त खेत में ही बीतता था और इन दिनों तो फसल पकने को थी इसलिए दूसरे किसानों की तरह वह खाना खाने ही घर आता था. फसल की रखवाली के लिए वह रात में सोता भी खेत पर ही था.

इसी पूछताछ में जो अहम जानकारियां पुलिस के हाथ लगीं उन में से पहली यह थी कि रामजी एक कम बुद्धि वाला आदमी है और आए दिन नीतू से उस की खटपट होती रहती थी. दूसरी जानकारी भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं थी कि 2 साल पहले 2016 में इन पतिपत्नी के बीच जम कर झगड़ा हुआ था. झगड़े के बाद नीतू मायके चली गई थी और उस ने ससुर व पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था, पर बाद में सुलह हो जाने पर नीतू वापस ससुराल आ गई थी.

ब्यौहारी थाने में पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया और नीतू का शव उस के ससुराल वालों को सौंप दिया. दूसरे दिन ही उस का अंतिम संस्कार भी हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की हत्या धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

ये जानकारियां अहम तो थीं लेकिन हत्यारों तक पहुंचने में कोई मदद नहीं कर पा रही थीं. गांव वाले भी कोई ऐसी जानकारी नहीं दे पा रहे थे जिस से कातिल तक पहुंचने में कोई मदद मिलती.

नीतू के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने उस के मायके वालों से पूछताछ की तो उन्होंने सीधेसीधे हत्या का आरोप बाबूलाल और रामजीलाल पर लगाया. उन का कहना था कि शादी के बाद से ही बापबेटे दोनों नीतू को दहेज के लिए मारतेपीटते रहते थे. लेकिन नीतू की हत्या जिस तरह हुई थी उस से साफ उजागर हो रहा था कि हत्या बलात्कार के बाद इसलिए की गई थी कि हत्यारा अपनी पहचान छिपा सके. वैसे भी आमतौर पर दहेज के लिए हत्याएं इस तरह नहीं की जातीं.

रामजी राठौर के बयानों से पुलिस वालों को कुछ खास हासिल नहीं हुआ, क्योंकि बातचीत करने पर ही समझ आ गया था कि यह मंदबुद्धि आदमी कुछ भी बोल रहा है. पत्नी की मौत का उस पर कोई खास असर नहीं हुआ था. अभयराज सिंह को वह कहीं से झूठ बोलता नहीं लगा. मंदबुद्धि लोगों को गुस्सा आ जाए तो वे हिंसक भी हो उठते हैं पर इतने योजनाबद्ध तरीके से हत्या करने की बुद्धि उन में होती तो वे मंदबुद्धि क्यों कहलाते.

बाबूलाल से पूछताछ की गई तो उस ने अपने खेत पर व्यस्त होने की बात कही. लेकिन हत्या का शक बेटे रामजी पर ही जताया. इशारों में उस ने पुलिस को बताया कि रामजी चूंकि पागल है इसलिए गुस्से में आ कर पत्नी की हत्या कर सकता है.

बाबूलाल ने अपनी बात में दम लाते हुए यह भी कहा कि मुमकिन है कि नीतू रामजी के साथ सोने से इनकार कर रही हो, इसलिए रामजी को उसे मारने की हद तक गुस्सा आ गया हो और इसी पागलपन में उस ने नीतू की हत्या कर डाली हो.

शादी के नाम पर ऐसे होती है ठगी – भाग 1

मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर दिए  फरजी विज्ञापनों के जाल में फंस कर कई लोग ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. जब तक उन्हें हकीकत पता चलती है तब तक उन का बहुत कुछ लुट चुका होता है. जल्दबाजी में उठाए गए ऐसे कदमों की वजह से उन्हें जिंदगी भर पछताना भी पड़ जाता है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गीतानगर की रहने वाली अनुष्का एक उच्चशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी. उस के यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस का पालनपोषण बड़े ही नाजों में हुआ था. उस की पढ़ाईलिखाई भी अच्छे स्कूल, कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा पूरी करतेकरते अनुष्का जवान हो चुकी थी. तब पिता ने उस की शादी अपनी ही हैसियत वाले परिवार में कर दी. शादी के बाद अनुष्का पति के घर चली गई.

कहते हैं कि शादी के बाद लड़की के नए जीवन की शुरुआत अपने पति के संग होती है. वहां उसे ससुराल के मुताबिक ही खुद को ढालना होता है. अनुष्का ने भी ऐसा ही किया. अपने गृहस्थ जीवन से वह खुश थी. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. बेटी के जन्म के बाद उस की खुशी और बढ़ गई. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

पति से उस के मतभेद हो गए. हालत यह हो गए कि उस का ससुराल में रहना दूभर हो गया तो वह मायके आ गई. हर मांबाप चाहते हैं कि उन की बेटी ससुराल में हंसीखुशी के साथ रहे. अनुष्का गुस्से में जब मायके आई तो मांबाप ने उसे व दामाद को समझाया. समझाबुझा कर उन्होंने बेटी को ससुराल भेज दिया.

उन्होंने अनुष्का को ससुराल भेजा तो इसलिए था कि गिलेशिकवे दूर होने के बाद उस की गृहस्थी की गाड़ी सही ढंग से चलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों बाद ही पति के साथ उस का तलाक हो गया. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पति से तलाक होने के बाद अनुष्का बेटी के साथ मायके में ही रहने लगी. अनुष्का पढ़ीलिखी थी इसलिए अब अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह आत्मनिर्भर बन कर बेटी को ऊंची तालीम दिलाएगी. इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के उस ने रेडीमेड गारमेंट का बिजनैस शुरू कर दिया. कुछ सालों की मेहनत के बाद उस का बिजनैस जम गया और उसे अच्छी कमाई होने लगी.

अनुष्का अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान दे रही थी. वह चाहती थी कि बेटी को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाए कि उस का भविष्य उज्ज्वल बन सके. उस की बेटी इस समय मुंबई के एक नामी इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रही है. अनुष्का भी अब 47 साल की हो चुकी थी. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए उसे कभीकभी जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. इस के लिए उस ने वैवाहिक विज्ञापनों की वेबसाइट जीवनसाथी डौटकौम पर नवंबर, 2013 में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा दिया था.

वैवाहिक विज्ञापनों की इसी साइट पर राजीव यादव नाम के एक आदमी ने भी रजिस्ट्रेशन करा रखा था. 58 वर्षीय राजीव यादव ने अपनी पर्सनल डिटेल में खुद को आईपीएस बताया था. वह भी अपने लिए जीवनसंगिनी तलाश कर रहा था. राजीव रोजाना जीवनसाथी डौटकौम साइट पर अपनी पसंद की महिला की तलाश करने लगा. साइट सर्च के दौरान उस की नजर अनुष्का की प्रोफाइल पर ठहर गई.

उस ने जल्दी ही अनुष्का को ईमेल भेज कर बात करने की इच्छा जाहिर की. अनुष्का ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तब राजीव यादव ने उस से खुद को आईपीएस अफसर बताते हुए कहा कि उस की पोस्टिंग भारत के नार्थईस्ट इलाके मिजोरम में डीआईजी के पद पर है और वह वहां अकेला रहता है.

राजीव ने जब अपने बारे में बताया तो अनुष्का को लगा कि उस की बाकी जिंदगी राजीव के साथ ठीक से कट जाएगी. कुल मिला कर राजीव उसे अच्छा लगा. सोचविचार कर अनुष्का ने भी राजीव को अपना परिचय दे दिया और कहा कि पहले पति से उस की एक बेटी है, जो मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. राजीव ने उस की बेटी को भी अपनाने की हामी भर ली.

इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसी दौरान राजीव ने बताया कि जब वह छोटा था कि उस के मांबाप की मौत हो गई थी. एक छोटा भाई था जो भारतीय सेना में ब्रिगेडियर था. उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. लेकिन वहां हुए एक बम विस्फोट में उस की मौत हो चुकी है.

कुछ दिनों की बातचीत के बाद राजीव और अनुष्का ने शादी की बात फाइनल कर ली. उन्होंने तय कर लिया कि वे 13 दिसंबर, 2013 को शादी कर लेंगे. राजीव यादव ने कहा कि वह मिजोरम से 13 दिसंबर को कानपुर पहुंच जाएगा और परिवार के नजदीकी लोगों के बीच एक सादे समारोह में उसी दिन शादी कर के वापस लौट आएगा.

अनुष्का की यह दूसरी शादी थी इसलिए वह भी शादी के समय कोई बड़ा दिखावा और तामझाम नहीं चाहती थी. इसलिए उसे राजीव का प्रस्ताव पसंद आ गया. शादी करने से 3 दिन पहले 10 दिसंबर को राजीव ने अनुष्का से फोन पर बात की. बातचीत के दौरान उस ने बताया कि उस का पर्स कहीं गिर गया है. उस में एटीएम कार्ड व अन्य कार्ड थे.

अनुष्का ने राजीव की इस बात को सीरियसली नहीं लिया क्योंकि आए दिन तमाम लोगों के एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि महत्त्वूपर्ण सामान चोरी होते रहते हैं या कहीं खो जाते हैं. इसलिए उस ने राजीव से यह कहा कि जो एटीएम कार्ड पर्स में थे, उन्हें लौक जरूर करा दें ताकि कोई उन का दुरुपयोग न कर सके. अनुष्का ने अपने होने वाले पति को यह सुझाव दे तो दिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि राजीव यह छोटी सी सूचना दे कर उसे ऐसे जाल में फांसने जा रहा है, जहां से निकलना उस के लिए आसान नहीं होगा.

दोनों की फोन पर रोजाना ही बातचीत होती थी. अनुष्का उस की बातों से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उस पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थी. 13 दिसंबर की दोनों की शादी होने वाली थी इसलिए अब केवल 2 दिन ही बचे थे. 2 दिनों बाद वे एकदूसरे से पहली बार मिलने जा रहे थे. अनुष्का की खुशी बढ़ती जा रही थी. ये 2 दिन उसे 2 साल से भी ज्यादा लंबे लग रहे थे. एकएक पल का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

इस से पहले कि अनुष्का राजीव यादव के साथ शादी के बंधन में बंध पाती, उसे ऐसी खबर मिली कि उस के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई.