जरीना के घर वालों ने शैफी से उस की शादी उस की संपन्नता की वजह से की थी. शैफी 3 बच्चों का बाप था, जबकि जरीना कुंवारी थी. जरीना भले ही शैफी के 7 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन वह शैफी से न कभी तन से संतुष्ट हुई, न मन से. उस ने अपनी जवानी कसमाहट में निकाल दी थी. उस की भावना का जो ज्वार उफान मारता था, शैफी कभी उसे शांत नहीं कर पाया था.
समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. शैफी ने पहली पत्नी से पैदा हुई संतानों का विवाह कर दिया. बड़ी बेटी हसीना का विवाह उस ने मथुरा के मांट कस्बे में किया तो बड़े बेटे शमशेर का विवाह आगरा के ही बाईपुर में किया था.
जरीना शैफी की पहली पत्नी के बेटे शमशेर को अपनी पत्नी के साथ कमरे में सोते देखती तो उस के मन में आता कि अगर उस का विवाह किसी हमउम्र के साथ हुआ होता तो वह भी इसी तरह उस के साथ कमरे में लेटी होती. ऐसा ही कुछ सोचतेसोचते उस की नजर घर के सामने रहने वाले हनीफ खां के बेटे वकील पर पड़ी, जो जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था.
वकील और उस की उम्र का अंतर इसी बात से लगाया जा सकता है कि जरीना की शादी के 2 साल बाद वकील पैदा हुआ था. वकील उम्र के उस दौर से गुजर रहा था, जब औरतें बहुत आकर्षित करती हैं. इस उम्र में अच्छेबुरे और रिश्तेनातों का भी खयाल नहीं रहता. आदमी की यह उम्र जल्द ही भटका देने वाली होती हैं.
जरीना की नजरें वकील पर पड़ीं तो उस ने उसे हुस्न के लटकेझटके दिखाने शुरू किए. महिला देह के आकर्षण में बंधे वकील को भटकते देर नहीं लगी. जरीना की देह को पाने के लिए उस का मन मचल उठा. पिता की मौत के बाद वकील के भाइयों ने घर का बंटवारा कर लिया था. वकील के हिस्से में भी एक कमरा आया था, जिस में वह अकेला ही रहता था. वही कमरा वकील और जरीना के मिलने का साधन बना.
पिता की मौत के बाद वकील का कोई निश्चित ठौर ठिकाना नहीं रहा था तो शैफी ने उस के खानेपीने की व्यवस्था अपने यहां करवा दी थी. कभी वह उन के घर जा कर खाना खा लेता था तो कभी जरीना उस के कमरे पर जा कर खाना दे आती थी. ऐसे ही पलों में दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ा था और परिणामस्वरूप उन के बीच अवैध संबंध बन गए थे.
दोनों मौके का फायदा उठा रहे थे. कोई उन पर शक भी नहीं करता था. इस की वजह दोनों की उम्र का अंतर था. जरीना की उम्र वकील की उम्र से दोगुनी से अधिक थी. दोनों मांबेटे जैसे लगते थे.
धीरेधीरे महीनों बीत गए. जरीना को प्रेमी से छिपछिप कर मिलना अच्छा नहीं लगता था. वह प्रेमी के साथ खुल कर मौजमजा करना चाहती थी. शैफी उस की जो इच्छाएं पूरी नहीं कर सका था, अब वह अपने आशिक के साथ पूरी कर लेना चाहती थी. लेकिन यह तभी संभव था, जब दोनों साथ रहें.
जरीना वैसे भी शैफी से बुरी तरह ऊब चुकी थी. इसी का नतीजा था कि उस ने अपनी आधी से भी कम उम्र के प्रेमी वकील के साथ भागने का निश्चय कर लिया. अपने शरीर के आकर्षण की बदौलत उस ने प्रेमी वकील को इस के लिए भी राजी कर लिया. वकील अकेला तो था ही, शायद इसीलिए जरीना ने जब उस से भागने को कहा तो वह खुशीखुशी तैयार हो गया.
योजना बनी और फिर उसी योजना के अनुसार एक दिन हैदराबाद जाने की बात कह कर वकील अपने कमरे पर ताला लगा कर जरूरत का सारा सामान अपने साथ ले कर चला गया.
वकील ने घर में भले ही हैदराबाद बताया था, लेकिन वह हाथरस गया था, जहां पहले ही उस ने मोहल्ला वालापट्टी में कमरा किराए पर ले रखा था. आगरा वाले कमरे का सामान उस ने वहां पहुंचा दिया. वह अपने साथ ऐसा कोई सामान नहीं ले गया था, जिस से लोग उस पर शक करते. वकील के जाने के 15 दिनों बाद अचानक एक दिन जरीना भी घर से गायब हो गई.
जरीना का इस तरह अचानक घर से गायब हो जाना हैरानी वाली बात थी. 7 बच्चों की मां जरीना के बेटे बेटियों में 2 की तो शादी भी हो चुकी थी. सालभर पहले वह नानी भी बन चुकी थी, इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता था कि किसी के प्रेम में पागल हो कर वह पति और बच्चों को छोड़ कर भाग गई होगी. 45-50 वर्षीया जरीना का अपने शौहर शैफी से कोई झगड़ा वगैरह भी नहीं हुआ था. वह किसी पराई औरत के प्यार में पागल भी नहीं था कि घर में किसी तरह का क्लेश रहा हो.
पूरे परिवार ने जरीना को कहांकहां नहीं खोजा, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. शैफी उत्तर प्रदेश के शहर आगरा के थाना एत्माद्दौला के मोहल्ला इसलामनगर का रहने वाला था. मोहल्ले में उस की गिनती एक तरह से संपन्न और प्रभावशाली लोगों में होती थी. इसलिए दुख की इस घड़ी में पूरा मोहल्ला उस के साथ था. जरीना की खोजखबर में सभी उस की मदद कर रहे थे.
कई दिन बीत गए और जरीना का कुछ पता नहीं चला तो मोहल्ले के कुछ वरिष्ठ और प्रभावशाली लोगों के साथ वह थाना एत्माद्दौला पहुंच गया. थाना पुलिस ने जरीना की गुमशुदगी दर्ज कर ली और कहा कि वह तो जरीना को तलाश करेगी ही, वह खुद भी उस की तलाश करता रहे. यह 4 साल पहले की बात है.
पुलिस को जरीना की क्या चिंता थी, जो उस के पीछे भागती. लेकिन शैफी की तो पत्नी थी, इसलिए वह लगातार उस की तलाश करता रहा. अगर जरीना अपना मोबाइल फोन साथ ले गई होती तो उस के लोकेशन के आधार पर थाना पुलिस शायद उस का पता लगा लेती. लेकिन जरीना का फोन उस के बैड पर पड़ा मिला था.
दिन, हफ्ते, महीने ही नहीं, पूरे ढाई साल गुजर गए, जरीना का कुछ पता नहीं चला. वह जिंदा है या मर गई, इस बात का भी कुछ पता नहीं चला था. उस का इस तरह रहस्यमय ढंग से गायब हो जाना मोहल्ले वालों के लिए हैरानी की बात थी.
इसी पूछताछ में पुलिस को पता चला कि नुसरत रईस की चौथी बीवी थी. रईस ने पहला निकाह अमरोहा की शबाना से किया था. उसे तलाक दे कर रईस ने गुइयाबाग निवासी नरगिस से दूसरा निकाह किया था. कुछ दिनों साथ रख कर रईस ने उसे भी छोड़ दिया था. इस के बाद रईस ने लालबाग निवासी रानी से निकाह किया. उसे भी छोड़ कर उस ने 8 साल पहले नुसरतजहां से निकाह किया, जिस से उसे 3 बच्चे थे.
पुलिस ने मृतक रईस मंसूरी के फोन नंबर को सॢवलांस पर लगाया तो वह बंद आ रहा था. लेकिन जांच में पता चला कि उस के फोन की अंतिम लोकेशन 15 दिसंबर की शाम को उसी इलाके में थी, जहां आलम रहता था. इस से यह तो पता चल रहा था कि रईस आलम के यहां गया था, लेकिन वहां जाने के बाद उस का फोन बंद क्यों हो गया? पुलिस को यही पता लगाना था.
पुलिस टीम बखलान के रहने वाले आलम के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ के लिए पुलिस उसे थाने ले आई. अनिल कुमार वर्मा ने आलम से रईस की हत्या के बारे में पूछताछ शुरू की तो वह यही कहता रहा कि उस के यहां इनवर्टर लगाने के बाद रईस चला गया था. इस के बाद वह कहां गया, उसे पता नहीं. वह खुद को बेकुसूर बता रहा था.
पूछताछ के दौरान ही एसएसआई मनोज कुमार सिंह को मुखबिर से पता चला कि मृतक रईस के आलम की बहन से नाजायज संबंध थे. यह बात उन्होंने अनिल कुमार वर्मा को बता दी. जिस तरह क्रूरता से रईस की लाश के टुकड़े कर के उस के गुप्तांग को काट कर फेंक दिया गया था, उस से अनिल कुमार वर्मा को लग रहा था कि हत्या के पीछे प्रेमप्रसंग का मामला है.
मनोज कुमार सिंह की बात ने उन के शक को पुख्ता कर दिया. उन्हें लगा कि आलम झूठ बोल रहा है. इसलिए उन्होंने उस से थोड़ी सख्ती की तो वह सारी सच्चाई बताने को तैयार हो गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि रईस मंसूरी की हत्या उसी ने की थी. उस ने उस के सामने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. आलम से पूछताछ में रईस मंसूरी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.
रईस मंसूरी और आलम के पिता जमा खां आपस में अच्छे दोस्त थे. कहा जाता है कि दोनों बिजली की लाइनों का तार चोरी किया करते थे. चोरी किए तार से जो पैसा मिलता था, उसे वे आपस में बांट लेते थे. इसी काम से वे अपनेअपने परिवारों को पाल रहे थे. लेकिन जमा खां की पत्नी को जानकारी नहीं थी कि उस का पति बिजली के तार चोरी करता है. उसे तो जमा खां ने यही बताया था कि वह इलैक्ट्रिशियन है.
करीब 15 साल पहले की बात है. रईस और जमा खां काशीपुर की तरफ बिजली के तार काटने गए थे. जमा खां ने पत्नी को बताया था कि उसे काशीपुर में बिजली फिटिंग का एक बड़ा काम मिला है, रईस के साथ वह उस काम को करने जा रहा है. उस की पत्नी रईस को जानती थी, क्योंकि वह उस के यहां आताजाता रहता था. उस ने कहा था कि वह वहां से कई दिनों बाद लौटेगा. लेकिन वह वहां से जिंदा नहीं लौट सका.
दरअसल, हुआ यह कि जब दोनों रात को काशीपुर के जंगल में 11 हजार वोल्ट की लाइन के तार काट रहे थे, तभी जमा खां को बिजली ने करंट मार दिया. वह खंभे से नीचे गिरा और उस की मौत हो गई. दोस्त को मरा देख कर रईस डर गया. कहीं वह पुलिस के चक्कर में न फंस जाए, वह उसे वहीं छोड़ कर घर चला आया.
अगले दिन लोगों ने खेत में लाश देखी तो इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस मौके पर पहुंची तो लाश के पास बिजली के तार काटने के औजार देख कर पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह बिजली के तार काटने वाला चोर है और बिजली के करंट की चपेट में आ कर मर गया है. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश का पोस्टमार्टम कराया और शिनाख्त न होने के बाद अज्ञात मान कर उस का अंतिम संस्कार करा दिया.
इस के बाद एक दिन जमा खां की पत्नी को बाजार में रईस मिला तो वह उसे देख कर चौंकी, क्योंकि उस का पति तो रईस के साथ काम करने काशीपुर गया था. तसलीमा ने उस से पति के बारे में पूछा तो रईस ने बताया कि उस की एक हादसे में मौत हो गई है.
पति की मौत की बात सुन कर तसलीमा चौंकी, “यह तुम क्या कह रहे हो, यह नहीं हो सकता?”
“मैं सच कह रहा हूं भाभी, करंट लगने से जमा खां की मौत हो गई है.” रईस ने कहा.
“यह कैसे और कहां हो गया? तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?” तसलीमा ने पूछा.
“हम दोनों बिजली का तार काटने काशीपुर गए थे. वहीं तार काटते समय उन्हें 11 हजार वोल्ट का करंट लग गया, जिस से वह खंबे से नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई.” रईस ने बताया.
“मेरे पति चोर नहीं थे, वह तो इलैक्ट्रिशियन थे. तुम झूठ बोल रहे हो.” तसलीमा रोते हुए बोली.
“नहीं भाभी, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं. उन्होंने तुम्हें बताया होगा कि वह इलैक्ट्रिशियन हैं. हकीकत में हम दोनों तार काट कर बेचा करते थे.” रईस ने कहा.
“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं हो रहा. मैं काशीपुर जा कर वहां की पुलिस से मिलूंगी.” तसलीमा ने कहा.
“तुम वहां जाना चाहती हो तो जरूर जाओ. लेकिन वहां जा कर तुम खुद भी फंस सकती हो. वहां की पुलिस ने जब जमा खां की लाश बरामद की थी, तब उस के साथ तार काटने के औजार भी मिले थे. जब तुम वहां जाओगी, पुलिस तुम से कहेगी कि एक चोर की बीवी हो कर तुम ने पुलिस को इस की खबर क्यों नहीं दी?” रईस ने उसे डराने के लिए कहा.
तसलीमा सीधीसादी औरत थी. वह रईस की बातों से डर कर काशीपुर नहीं गई और पति की मौत का गम सीने में दबा कर रहने लगी. उस समय उस का बेटा आलम 13 साल का था.
मसीना अस्पताल में भरती प्रीति राठी की सेहत में जब 15 दिनों तक कोई सुधार नहीं आया तो उस के बेहतर इलाज के लिए और यह जघन्य अपराध करने वाले के विरुद्ध मुंबई से ले कर दिल्ली तक आवाजें उठने लगीं. कई महिला संगठनों द्वारा उठाई गई यह आवाज जब महाराष्ट्र विधानसभा तक पहुंची तो महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री आर.आर. पाटिल ने प्रीति का इलाज किसी अच्छे अस्पताल में कराने और इलाज का सारा खर्चा सरकार द्वारा उठाए जाने का ऐलान कर दिया. इस के साथ ही प्रीति को मसीना अस्पताल से निकाल कर मुंबई अस्पताल में भरती करा दिया गया. लेकिन उस की सेहत में यहां भी कोई सुधार नहीं हुआ.
इसी बीच प्रीति ने इस केस के इन्वेस्टीगेशन अफसर को एक मार्मिक पत्र लिखा—
‘पुलिस भैया, मेरा क्या कुसूर था जो मुझे यह सजा मिली. मैं तो भारतीय मेडिकल सर्विस में इसलिए शामिल हुई थी कि देशवासियों की सेवा कर सकूं. घायलों, मरीजों के काम आ सकूं. मैं बीमार, लाचार भाईबहनों के लिए मुंबई आई थी, मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था? मेरे साथ उस ने ऐसा क्यों किया? जिस ने भी यह सब किया है, उसे आप छोड़ना नहीं. उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए.
—आप की बहन प्रीति.’
इस पत्र को लिखने के 2-3 दिनों बाद ही 31 मई को प्रीति ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया. प्रीति की मौत के बाद जब उस का यह भावुक पत्र मुंबई के समाचार पत्रों में छपा तो जिस ने भी पढ़ा, उस के दिल को छू गया. फलस्वरूप इस मामले ने फिर तूल पकड़ लिया और उस पर एसिड फेंकने वाले को जल्द से जल्द पकड़ने की मांग जोर पकड़ने लगी. मुंबई से ले कर दिल्ली तक के महिला संगठनों ने इसे ले कर धरनेप्रदर्शन शुरू कर दिए.
लोगों के बढ़ते आक्रोश को देख कर महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच जीआरपी की सीआईडी को सौंप दी. इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण ने जांच में तेजी लाने का भी स्पष्ट आदेश दिया. इस के बावजूद इस मामले की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही. सीआईडी (जीआरपी) तमाम कोशिशों के बाद भी प्रीति के अपराधी तक नहीं पहुंच सकी. देखतेदेखते घटना को घटे 6 महीने बीत गए.
अपनी बेटी को इंसाफ न मिलते देख प्रीति के पिता अमर सिंह राठी का धैर्य जवाब दे गया. कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्होंने बौंबे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिस में उन्होंने इस एसिड कांड की जांच मुंबई क्राइम ब्रांच या सीबीआई से कराने की मांग की. उन की याचिका पर बौंबे हाईकोर्ट ने सीआईडी (जीआरपी) को इस केस की फाइल इस आदेश के साथ मुंबई के पुलिस कमिश्नर को सौंपने का आदेश दिया कि मामले की जांच मुंबई क्राइम ब्रांच से कराई जाए.
मुंबई हाईकोर्ट के आदेश पर 4 दिसंबर, 2013 को इस केस की फाइल मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर चौधरी सतपाल सिंह के पास आ गई. उन्होंने जांच के लिए प्रीति राठी केस की फाइल ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (क्राइम) हिमांशु राय को सौंप दी. केस स्टडी करने के बाद हिमांशु राय ने इस मामले की जांच की जिम्मेदारी पुलिस उपायुक्त अंबादास पोटे, अतिरिक्त पुलिस आयुक्त निकेत कौशिक और सहायक पुलिस आयुक्त प्रफुल्ल भोसले को सौंपी. भोसले ने इस केस को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया.
उन्होंने इस की विस्तृत जांच और प्रीति के गुनाहगार को पकड़ने के लिए क्राइमब्रांच यूनिट 2 के वरिष्ठ निरीक्षक प्रशांत राजे, सहायक पुलिस निरीक्षक सुदेश भजगांवकर, सिपाही सुभाष माली, हृदयनाथ मिश्रा और क्राइम ब्रांच यूनिट-5 के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अशोक खोत, पुलिस निरीक्षक नितिन पाकांडे, सिपाही दीपक तोले, सुरेश पाटिल को चुना.
इस संयुक्त टीम ने सरगर्मी से अपनी जांच शुरू कर दी. इस के लिए बांद्रा जीआरपी पुलिस और सीआईडी (जीआरपी) की तफ्तीश फाइल का बड़ी बारीकी से अध्ययन किया गया. केस फाइल की स्टडी के बाद नए सिरे से मामले की तफ्तीश शुरू की गई. मुंबई क्राइम ब्रांच ने सब से पहले 2 मई, 2013 को गरीब रथ एक्सप्रेस से आए 1200 यात्रियों के रिजर्वेशन का चार्ट निकलवाया. इस के बाद उस में से 18 से 20 साल तक की उम्र वालों को छांट कर उन के नाम, पते और फोन नंबर निकलवाए.
इस तरह के करीब 60 युवक थे, ये सभी ऐसे थे, जिन्होंने घटना वाले दिन उसी टे्रन से दिल्ली से मुंबई का सफर किया था, जिस में प्रीति दिल्ली आई थी. ये वे लोग थे, जो प्रीति के साथ ही मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर उतरे थे. छांटे गए सभी युवकों में से कुछ को क्राइम ब्रांच ने अपने दफ्तर बुला कर पूछताछ की और कुछ से फोन पर बात की.
इस प्रयास में क्राइम ब्रांच को कोई कामयाबी तो नहीं मिली, लेकिन वह इस नतीजे पर जरूर पहुंच गई कि इस मामले के तार दिल्ली से ही जुड़े हैं. इस नतीजे पर पहुंचने के बाद मुंबई क्राइम ब्रांच ने जांच दिल्ली से ही शुरू करने का फैसला किया. इस के लिए क्राइम ब्रांच की एक टीम ने दिल्ली जा कर गुप्तरूप से प्रीति राठी के घर के आसपास डेरा जमा लिया.
क्राइम ब्रांच के अफसर प्रीति राठी के घर के आसपास और उस कालोनी में रहने वाले 18 से 20 साल के सभी युवकों पर कड़ी नजर रखते हुए उन की बैकग्राउंड टटोलने में जुट गए.
दिल्ली में की जा रही तफ्तीश से क्राइम ब्रांच अधिकारियों को इस बात का पूरा विश्वास हो चला था कि प्रीति राठी पर एसिड फेंकने वाला उस के आसपास का ही कोई युवक था. वह भले ही कोई भी रहा हो, काफी सुलझा हुआ और चतुरचालाक था. उस युवक तक पहुंचना आसान नहीं था. लेकिन क्राइम ब्रांच के अफसरों ने हिम्मत नहीं हारी. वे कालोनी में रहने वाले हर उस परिवार की जांचपड़ताल कर रहे थे, जिन में 18 से 20 साल तक के युवक थे.
मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम को दिल्ली में डेरा डाले लगभग 30-35 दिन बीत चुके थे. क्राइम ब्रांच अफसरों की हिम्मत जवाब देने लगी थी. वे दिल्ली से वापस लौटने की सोच रहे थे कि उन्हें एक ऐसी जानकारी मिली, जो उम्मीद की नई किरण दिखाने वाली थी. पता चला कि प्रीति राठी के घर के सामने रहने वाला अंकुर पंवार अहमदाबाद के एक फाइवस्टार होटल में काम करता है और आजकल घर आया हुआ है. यह भी पता चला कि जब प्रीति मुंबई गई थी, तब वह दिल्ली में ही था.
प्रियंका उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने आज खुद को विशेष रूप से सजायासंवारा था.
करन ने पहुंचते ही उसे बांहों में समेट लिया, “चाची, आज तो तुम हुस्न की परी लग रही हो, नजरें हटाने को जी नहीं चाहता.”
“थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.” प्रियंका ने मुसकरा कर कहा, “कम से कम दरवाजा तो भीतर से बंद कर लो, किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.”
करन ने फौरन घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बाहें फैलाईं, प्रियंका आ कर उन में समा गई. करन के तपते होंठ प्रियंका के नरम अधरों पर जम गए. इस के बाद वासना का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा, सात फेरों के वक्त पति को दिए वचन, सब बह गए.
अवैध रिश्तों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एक दूसरे की बाहों में सिमट कर हवस की आग बुझा लेते. चूंकि दोनों का रिश्ता चाचीभतीजे का था, इसलिए किसी को शक नहीं होता था. लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपतीं नहीं. धीरेधीरे पूरे गांव में करन और प्रियंका के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.
कुछ दिनों बाद सुरेंद्र सूरत से गांव आया तो उस के कानों में पत्नी और करन के नाजायज रिश्तों की भनक पड़ी. सुन कर जैसे उस पर पहाड़ टूट पड़ा. प्रियंका को मालूम नहीं था कि उस के पति को उस के और करन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका है.
वह खनकती आवाज में बोली, “क्या बात है, आज तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”
“सच जानना चाहती हो तो सुनो, तुम जो कर रही हो, उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन सरक गई है. तुम्हारे और करन के बारे में लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना छिपाए सारा सच बता दो.” सुरेंद्र ने मन की बात कह दी.
प्रियंका पति की बातें सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेंद्र को सब कुछ पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह घबराए स्वर में बोली, “सब झूठ है, लोग हम से जलते हैं, इसलिए उन्होंने तुम्हारे कान भर दिए हैं.”
प्रियंका ने समझ लिया था कि त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, “मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हंू. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर, मेरी ओर देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकता. तुम मुझ पर यकीन करो, तुम ने जो कुछ भी सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. वैसे भी जिन के पति परदेश में कमाते हैं, उन की औरतों को लोग शक की निगाहों से देखते और बदनाम करते हैं.”
आखिरकार प्रियंका की बातों से सुरेंद्र को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने पत्नी पर यकीन कर लिया. कुछ रातें पत्नी के साथ बिता कर सुरेंद्र सूरत चला गया. उस के जाते ही करन और प्रियंका की रातें फिर रंगीन होने लगीं. अब दिन में करन ने प्रियंका के घर आनाजाना बंद कर दिया, ताकि लोगों को उस पर शक न हो.
प्रियंका मोबाइल फोन से पति से मीठीमीठी बातें करती रहती थी. वह उसे भरोसा दिलाती रहती थी कि वह सिर्फ उसी की है. उस ने अपनी चरित्रहीनता छिपाने के लिए अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में पति को फोन पर बताया कि 30 अक्टूबर को करवाचौथ है, इसलिए वह करवाचौथ के पहले ही छुट्टी ले कर आ जाए. उस ने यह भी कहा कि इस बार वह कम से कम एक महीने की छुट्टी ले कर आए, क्योंकि करवाचौथ के बाद दीपावली का त्यौहार है.
सुरेंद्र ने प्रियंका को आश्वासन दिया कि वह करवाचौथ से 2-4 दिन पहले ही आ जाएगा. चाहे छुट्टी मिले या न मिले. इस के बाद सुरेंद्र घर आने की तैयारी करने लगा. उसे जैसे ही फैक्ट्री से पेमेंट मिला, उस ने पत्नी के लिए अच्छी सी साड़ी व अन्य सामान खरीदा, साथ ही बच्चों के लिए कपड़े भी. फिर वह ट्रेन से गांव के लिए चल पड़ा.
सुरेंद्र ने जैसा कहा था, वैसा ही किया. वह 25 अक्तूबर को अपने गांव कृपालपुर पहुंच गया. जबकि करवाचौथ 30 अक्तूबर को था. सुरेंद्र के आ जाने से करन और प्रियंका को मिलने में दिक्कत होने लगी.
इस दिक्कत को दूर करने के लिए करन मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीद लाया. उस ने गोलियां प्रियंका को दे कर कहा कि वह रात में पति को दूध में मिला कर दे दिया करे, ताकि उस के बेसुध हो कर सो जाने के बाद वे दोनों आसानी से मिल सकें. प्रियंका ने नींद की गोलियां तो संभाल कर रख लीं, लेकिन करवाचौथ के पहले वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.
करवाचौथ वाले दिन प्रियंका ने अन्य सुहागिनों की तरह दिन भर व्रत रखा. शाम को खूब शृंगार किया और चांद देख कर व्रत पूरा किया. रात को वह पूरी तरह पति को समर्पित रही. सुरेंद्र को लगा कि उस की पत्नी उसी की है. गांव वाले बेकार में उस पर लांछन लगाते हैं.
अगले दिन करन से प्रियंका का सामना हुआ तो उस ने उलाहना दिया “तुम तो अपने पति के साथ करवाचौथ मनाती रहीं और मैं तुम्हारी याद में सारी रात करवट बदलता रहा. मुझे भी तुम्हारे साथ करवाचौथ मनाना है. मैं भी तो तुम्हारे पति से कम नहीं हूं.”
प्रियंका मुसकरा कर बोली, “तुम्हें मौका जरूर मिलेगा. तुम्हारी मर्दानगी की मैं दीवानी हूं. आज रात को जब मैं मिसकाल करूं तो चुपके से आ जाना. दरवाजा खुला रहेगा.”
सुरेंद्र गांव में घूमफिर कर रात 9 बजे घर लौटा. उस ने खाना खाया और चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद प्रियंका नींद की गोलियां मिला दूध ले कर आई और सुरेंद्र को थमा दिया. सुरेंद्र ने दूध पी लिया और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा. सुरेंद्र गहरी नींद में सो गया तो प्रियंका ने करन को मिसकाल दी. थोड़ी देर बाद करन आ गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. सुरेंद्र के आने के बाद जो क्रम टूट गया था, वह फिर शुरू हो गया.
गुरप्रीत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, गोली उसे कनपटी से सटा कर मारी गई थी. जबकि जसवीर का कहना था कि बदमाशों ने मोटरसाइकिल रुकवा दूर से उस पर और गुरप्रीत पर गोली चलाई थी. जसवीर और नबी बख्श के बयानों की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.
उन्होंने दोनों की काल डिटेल्स की जांच की तो जसवीर की काल डिटेल्स में 2 मोबाइल नंबर ऐसे मिले, जिन पर बहुत ज्यादा फोन किए गए थे. उन्होंने उन नंबरों की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उसे देख कर उन्हें लगा कि यह सारा खेल जसवीर का ही खेला है. उन्होंने सबइंसपेक्टर गौरव बिश्नोई के नेतृत्व में कुछ पुलिस वालों को जसवीर को गिरफ्तार करने भेज दिया. गौरव बिश्नोई जसवीर के घर पहुंचे तो वह घर में ही मिल गया. वह उसे पकड़ कर थाने ले आए.
अनिल कुमार सिरोही ने जसवीर से पूछताछ शुरू की तो एक बार फिर उस ने सारा आरोप नबी बख्श के ऊपर मढऩे की कोशिश की, लेकिन जब उसे उस के दोस्त पिंकू उर्फ महेंद्र और उस की काल डिटेल्स और मोबाइल फोन की लोकेशन दिखाई गई तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जो बयान दिया, उस के अनुसार गुरप्रीत की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.
बरेली के थाना भोजीपुरा के गांव कैथोला बेनीराम के रहने वाले लक्खा सिंह के बेटे जसवीर सिंह की गिनती इलाके के प्रतिष्ठित और संपन्न किसानों में होती थी. उस की सौ बीघा खेतों में लहलहाती फसल स्वयं उस की संपन्नता की कहानी बयां करती थी. हर साल गन्ने की खेती से उसे लाखों की रकम मिलती थी.
18 साल पहले उस की शादी बिलासपुर की रहने वाली गुरप्रीत कौर से हुई थी. गुरप्रीत बेहद खूबसूरत थी. उस की जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर जसवीर फूला नहीं समा रहा था. दूसरी ओर गुरप्रीत भी जसवीर जैसे बांके छैलछबीले नौजवान को जिंदगी के हमसफर के रूप में पा कर अपने मातापिता की पसंद पर गर्व कर रही थी कि जिन्होंने अपनी चांद जैसी गोरी और फूल जैसी खूबसूरत बेटी के लिए हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में एक सुखीसंपन्न दामाद ढूंढ़ा था.
जसवीर से शादी के बाद गुरप्रीत को ऐसा लगा, जैसे उस की सारी मनोकामना पूरी हो गई है. जसवीर के घर किसी चीज की कमी नहीं थी. गुरप्रीत पति से जिस भी चीज की मांग करती, वह उस की हर मांग को पलक झपकते पूरा कर देता था. क्योंकि पत्नी की खुशी में ही वह अपनी खुशी समझता था. उन का दांपत्य हंसीखुशी से गुजर रहा था.
देखतेदेखते कई साल गुजर गए. इस बीच गुरप्रीत 3 बच्चों की मां बन गई. उस के तीनों बेटों के नाम गुरुशांत, रौकी और शैंकी थे. बच्चे जैसेजैसे बड़े हुए, जसवीर ने उन की पढ़ाई की व्यवस्था बरेली शहर के एक नामी स्कूल में कर दी. गुरप्रीत और जसवीर चाहते थे कि उन के तीनों बेटे पढ़लिख कर उन का नाम रौशन करें.
शादी के कुछ सालों बाद जसवीर के रंगढंग में बदलाव आने लगा तो गुरप्रीत को ङ्क्षचता हुई, क्योंकि जसवीर शराब पीने के साथसाथ दूसरी औरतों में रुचि लेने लगा था. उस ने पति को खानदान की इज्जत की दुहाई देते हुए समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर पत्नी की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह हमेशा शराब और शबाब में डूबा रहने लगा.
गुरप्रीत ने पहले जसवीर को प्यार से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन जब उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ तो वह उस की बुराइयों का विरोध करते हुए उस से लडऩेझगडऩे लगी. जसवीर अब तक इस सब का आदी हो चुका था, इसलिए गुरप्रीत का रोकनाटोकना उसे अच्छा नहीं लगता था. उस का मानना था कि वह उस की सारी जरूरतें पूरी कर
देता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देता है तो वह बेवजह उस के रास्ते में टांग अड़ाती है. मर्दों के तो 10 तरह के शौक होते हैं, फिर उस के पास कमी ही किस चीज की है. जब उस के पास इतनी दौलत है तो उसे जिंदगी में सारे शौक पूरे कर लेने चाहिए.
शादी के इतने सालों बाद और 3 बच्चे होने से गुरप्रीत में अब पहले वाली खूबसूरती नहीं रह गई थी. जबकि जसवीर कमउम्र की खूबसूरत लड़कियों के साथ मौजमस्ती करना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था. गुरप्रीत को गांव के किसी न किसी से पति की हरकतों के बारे में पता चल ही जाता था. उस समय तो वह पति की करतूतें सुन कर खून का घूंट पी कर रह जाती, लेकिन जब जसवीर घर आता तो वह उस की जम कर खबर लेती.
ऐसा रोजरोज होने से जसवीर का मन गुरप्रीत की ओर से उचट गया, अब वह घर आने से भी कतराने लगा. जबकि गुरप्रीत पति से पहले जैसा प्यार चाहती थी. लेकिन घर से बाहर मौजमस्ती कर के लौटे जसवीर के शरीर में इतनी ताकत नहीं होती थी कि वह पत्नी को संतुष्ट कर सके. वैसे भी अब उस की उम्र 55 साल के करीब थी. इस उम्र में वह जोश कहां होता है, जो जवानी के शुरुआती दिनों में होता है. नतीजतन गुरप्रीत कौर की सारी रात करवटों में बीत जाती.
अगले दिन वह पति की उलटीसीधी हरकतों का विरोध करते हुए उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिश करती. लेकिन पत्नी के लाख विरोध के बावजूद जसवीर पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. वह वही करता था, जो उस के मन में आता था.
दौलत के मद में चूर जसवीर अपनी अय्याशियों और शौक के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहता था. एक साल पहले उस की मुलाकात बरेली के थाना सीबीगंज के गांव जौहरपुर के रहने वाले ड्राइवर बालकराम से हुई. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी तो एक दिन वह बालकराम के साथ उस के घर चला गया. वहां उस की सयानी बेटी शानू उस के सामने आई तो जसवीर की आंख फटी की फटी रह गई.
उन्होंने अपनी टीम के साथ डा. मुकेश चांडक के घर और डेंटल क्लिनिक से अपहर्त्ता की खोज शुरू की. उन्हें लग रहा था कि युग के अपहरण में निश्चित रूप से ऐसा कोई आदमी शामिल है, जो इस परिवार के बारे में सब कुछ अच्छी तरह से जानतापहचानता है.
इसी बात को ध्यान में रख कर इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक के घर और क्लिनिक में काम करने वाले सभी नौकरों के अलावा सोसायटी के सभी सिक्योरिटी गार्डों से भी लंबी पूछताछ की. इसी पूछताछ में उन्हें एक ऐसा सुराग मिला, जिस ने उन्हें युग के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा दिया.
सोसायटी के एक सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें बताया, ‘‘सर, पौने चार बजे के आसपास सोसायटी के अंदर एक लड़का आया था, जो युग के बारे में पूछ रहा था. वह डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक की शर्ट पहने था, इसीलिए उस पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सका था.’’ इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार को इस तरह एक अहम सुराग मिल गया था.
उन्होंने तुरंत डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी लड़कों को बुला कर उस गार्ड के सामने खड़ा किया तो वह युवक उन में नहीं था. इस से साफ हो गया कि युग के अपहरण में उसी युवक का हाथ था, जो उन की क्लिनिक की शर्ट पहन कर आया था.
अब पुलिस को यह पता करना था कि उस युवक को डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में काम करने वाले लड़के जो शर्ट पहनते हैं, वह उसे कहां से मिली. या तो वह पहले उन की क्लिनिक में काम कर चुका था या फिर क्लिनिक में काम करने वाले किसी लड़के ने उसे वह शर्ट दी थी?
थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी नौकरों से पूछताछ की. उन में से उन्हें कोई संदिग्ध नजर नहीं आया. इस का मतलब वह कोई बाहरी आदमी था. निश्चित ही उस की डाक्टर साहब से कोई दुश्मनी रही होगी. पुलिस चक्कर में पड़ गई कि डा. मुकेश चांडक का ऐसा कौन दुश्मन हो सकता है, जिस ने उन के बेटे का अपहरण किया है.
थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक से इस बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले उन्होंने राजेश दवरे नामक युवक को डांटफटकार कर नौकरी से निकाल दिया था. उस का पता डा. मुकेश चांडक के पास था ही, थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने देर किए बगैर राजेश दवरे के घर पर छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया.
थाने ला कर राजेश दवरे से पूछताछ शुरू हुई तो काफी देर तक वह स्वयं को निर्दोष बताता रहा. उस का कहना था कि वह युग का अपहरण क्यों करेगा? लेकिन पुलिस को पूरा विश्वास था कि यह काम उसी ने किया है, इसलिए जब पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने युग के अपहरण और हत्या की सच्चाई उगल दी.
राजेश दवरे ने डा. मुकेश चांडक द्वारा किए गए अपमान का बदला लेने के लिए अपने दोस्त अरविंद सिंह की मदद से उन के बेटे युग का अपहरण कर के हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने डाक्टर से एक मोटी रकम वसूल करने की साजिश भी रची थी. इस के बाद पुलिस ने उस के साथी अरविंद सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन फिरौती की रकम वसूलने के पहले ही पकड़ा गया था. पुलिस पूछताछ में राजेश दवरे ने युग के अपहरण और हत्या के पीछे जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.
22 वर्षीय राजेश दवरे अपने भाईबहनों के साथ नागपुर वांजरी लेक आउट में रहता था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह 12वीं तक ही पढ़ सका था. पैसे के की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका तो कंप्यूटर सीख लिया और गुजरबसर के लिए छोटीमोटी नौकरी ढूंढ़ने लगा.
राजेश को कहीं से पता चला कि दंत चिकित्सक डा. मुकेश चांडक की डेंटल क्लिनिक में कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है तो वह उन के यहां जा पहुंचा. बातचीत से वह तेजतर्रार और व्यवहारकुशल लगा तो डा. मुकेश चांडक ने उसे अपने यहां रख लिया. क्लिनिक में उस का काम मरीजों से फीस लेना और उन्हें टोकन देना था. डा. साहब के यहां से उसे इतना वेतन मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. अपनी इस नौकरी से वह खुश भी था.
कुछ दिनों तक तो राजेश दवरे ने अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया. इस बीच उस ने डा. मुकेश चांडक के दिल में अपने लिए जगह भी बना ली. लेकिन जब उस ने देखा कि डाक्टर साहब उस पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करने लगे हैं तो वह पैसों की हेराफेरी करने लगा.
क्लिनिक में मरीजों की भीड़भाड़ और उन से बरसती दौलत देख कर राजेश के मन में बेईमानी करने की बात आने लगी. वह क्लिनिक में आने वाले मरीजों के बिलों में हेराफेरी कर के अधिक पैसे वसूल करने लगा. इस के अलावा वह कुछ लोगों से फीस के अलावा भी कुछ पैसे ले कर उन्हें बिना नंबर के ही एंट्री दे देता. यही नहीं, वह कुछ मरीजों से फीस तो ले लेता था, लेकिन उसे चढ़ाता नहीं था.
इस तरह हेराफेरी कर के राजेश रोजाना 3-4 सौ रुपए अलग से कमाने लगा था. इन पैसों को वह घर में देने के बजाय दोस्तों के साथ बीयर बारों में जा कर अय्याशी करता था. बार डांसरों पर उड़ाता, उन के साथ मौजमस्ती करता. इस ऊपर की कमाई से राजेश और उस के दोस्तों की बल्लेबल्ले थी.
लेकिन यह भी सच है कि बुराई कोई भी हो, वह अधिक दिनों तक छिपी नहीं रहती. यही राजेश दवरे के साथ हुआ. युग देखने में भले छोटा था, लेकिन दिमाग का काफी तेज था. कंप्यूटर पर उस का दिमाग कंप्यूटर की ही तरह चलता था. स्कूल से छुट्टी होने के बाद वह अकसर क्लिनिक आ जाता और कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता. गेम खेलने के दौरान ही उस ने राजेश की हेराफेरी पकड़ ली थी और डा. मुकेश चांडक से पूरी बात बता दी थी.
जब राजेश दवरे की हेराफेरी की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने उसे पूरे स्टाफ के सामने काफी डांटा फटकारा. लेकिन नौकरी से नहीं निकाला, सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ दिया. डा. मुकेश चांडक तो इस बात को भूल गए. लेकिन राजेश नहीं भूला, क्योंकि एक तो उस की कमाई बंद हो गई थी, दूसरे पूरे स्टाफ के सामने उस की काफी बेइज्जती हुई थी. इसलिए वह इस बात को भुला नहीं पा रहा था. इस सब की वजह युग था, इसलिए उसे युग से नफरत हो गई थी.
धीरेधीरे नफरत की यह आग इतनी तेज होती गई कि वह युग को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने किसी बात पर नाराज हो कर युग को एक तमाचा भी मार दिया. जब इस बात की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने पहले तो राजेश को खूब खरीखोटी सुना कर अपमानित किया, उस के बाद नौकरी से निकाल दिया. यह इसी साल अगस्त महीने की बात थी.
उन्होंने उस लडक़े को प्रेमलता से मिलने की इजाजत तो दे दी, लेकिन महिला सिपाही रेनू सारस्वत को उस के पीछे लगा दिया कि वह किसी भी तरह उन की बातें सुनने की कोशिश करे. रेनू उधर से गुजरी तो लडक़ा कह रहा था, “तुम ने ताजमहल वाले फोटो जला दिए हैं न?”
“हां, जला दिए हैं. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है?”
यह सुन कर रेनू चौंकी. वह तुरंत मुंशी मंसूर अहमद के पास पहुंची और उन से बता दिया कि प्रेमलता से जो लडक़ा मिलने आया है, वही बबलू है. मंसूर अहमद तेजी से बाहर आए. बबलू को शायद शक हो गया था, इसलिए वह तेजी से बाहर की ओर चला जा रहा था. मंसूर अहमद ने संतरी को आवाज देते हुए तेजी से उस की ओर दौड़े. आखिर उन्होंने उसे दबोच ही लिया.
इस के बाद उसे अंदर ला कर पूछताछ की गई तो एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई, जिस में प्रेम की राह में रोड़ा बनने वाले गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या कर दी गई थी. यह पूरी कहानी इस प्रकार थी.
उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी का एक गांव है भरथरा, जहां महेशचंद फौजी परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटे और 4 बेटियां थीं. प्रेमलता उन में सब से बड़ी थी. उस ने बीए करने के बाद बीएड किया और नौकरी की तलाश में लग गई. इसी के साथ महेशचंद उस की शादी के लिए लडक़ा ढूंढऩे लगे.
महेशचंद की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी, बेटी भी पढ़ीलिखी थी. इसलिए वह उस के लिए खातेपीते परिवार का पढ़ा लिखा लडक़ा तलाश रहे थे. इसी तलाश में उन्हें किसी से जिला एटा के थाना बागवाला के गांव लोहाखार के रहने वाले रामसेवक के बेटे गवेंद्र के बारे में पता चला तो वह उस के घर जा पहुंचे.
रामसेवक का खातापीता परिवार था. उस के पास ठीकठाक जमीन थी. गांव में पक्का मकान था, एक मकान मैनपुरी के नगला कीरतपुर में भी था. गवेंद्र ने पौलिटैक्निक करने के साथ बीए भी कर रखा था. वह नौकरी की तलाश में था. महेशचंद को गवेंद्र प्रेमलता के लिए पसंद आ गया. उसे लगा कि गवेंद्र को जल्दी ही कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. उस के बाद उन की बेटी की जिंदगी संवर जाएगी. उस ने गवेंद्र को प्रेमलता के लिए पसंद कर लिया और उस के साथ प्रेमलता की शादी कर दी.
प्रेमलता ससुराल आ गई. रामसेवक का छोटा सा परिवार था. पतिपत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी नीरज थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. इसलिए घर में सिर्फ 4 ही लोग बचे थे. प्रेमलता को पूरा विश्वास था कि उस के पति को जल्दी ही कहीं न कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. वैसे घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, लेकिन पति की कमाई की बात अलग ही होती है.
गवेंद्र नौकरी की कोशिश में लगा था, लेकिन नौकरी मिल नहीं रही थी. इस बीच वह 2 बच्चों उमंग और तमन्ना का पिता बन गया. प्रेमलता खुद भी बीए, बीएड थी. लेकिन बच्चे छोटे थे, दूसरे गवेंद्र नहीं चाहता था कि वह नौकरी करे, इसलिए प्रेमलता ने अपने लिए कोशिश नहीं की.
सन 2012 में गवेंद्र को मैनपुरी के कीरतपुर स्थित सेवाराम जूनियर हाईस्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मिल गई. नौकरी भले ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की थी, लेकिन सरकारी थी, इसलिए उस ने इसे जौइन कर लिया. लेकिन प्रेमलता को यह नौकरी पसंद नहीं थी, वह शायद किसी अधिकारी की बीवी बनना चाहती थी. चपरासी की बीवी कहलवाना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं था. इसलिए उस ने सोचा कि अब उसे ही कुछ करना होगा. वह अपने कैरियर के बारे में सोचने लगी. उस के बच्चे भी बड़े हो गए थे, इसलिए वह खुद कुछ कर के समाज में नाम और पैसा कमाना चाहती थी.
उसी बीच ससुराल जाते समय बस में उस की मुलाकात बबलू से हुई. बबलू भी उसी सीट पर बैठा था. रास्ते में बबलू उस के बच्चों से बातें करतेकरते उस से भी बातें करने लगा. उस ने बताया कि वह आगरा के आईआईएमटी कालेज से जीएनएम (जनरल नॄसग मिडवाइफरी) का कोर्स कर के आगरा के पुष्पांजलि अस्पताल में नौकरी करता है.
जब प्रेमलता ने कहा कि उस ने भी बीए, बीएड किया है, लेकिन लगता नहीं कि उसे नौकरी मिलेगी तो उस ने कहा, “अगर तुम जीएनएम का कोर्स कर लो तो जल्दी ही तुम्हें कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी. रही बात दाखिले की तो वह तुम मुझ पर छोड़ दो.”
इस के बाद दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. 2-4 दिन ससुराल में रह कर प्रेमलता पति के पास आई तो उस ने गवेंद्र से कहा, “भई अब इस तरह काम नहीं चलेगा. बच्चों के भविष्य के लिए मुझे भी कुछ करना होगा. बीए, बीएड से तो नौकरी मिल नहीं सकती, इसलिए मैं जीएनएम का कोर्स करना चाहती हूं. इस से किसी न किसी अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी.”
गवेंद्र को लगा कि अब बच्चे समझदार हो गए हैं. ऐसे में प्रेमलता कुछ करना चाहती है तो इस में बुराई क्या है. वह प्रेमलता को जीएनएम का कोर्स कराने के लिए राजी हो गया. गवेंद्र के पिता रामसेवक रिटायर हो चुके थे. इसलिए अब वह भी उसी के साथ रहने लगे थे.
प्रेमलता ने बबलू की मदद से आईआईएमटी में अपना दाखिला करा लिया. बबलू उसे सुनहरे भविष्य का सपना दिखाने लगा. प्रेमलता की पढ़ाई शुरू हो गई. बबलू लायर्स कालोनी में कमरा किराए पर ले कर रहता था. प्रेमलता को भी उस ने उसी कालोनी में कमरा दिला दिया. अब दोनों की रोज मुलाकात होने लगी. बबलू प्रेमलता के कमरे पर भी आनेजाने लगा.
लगातार मिलने और कमरे पर आनेजाने से प्रेमलता और बबलू में प्यार ही नहीं हो गया, प्रेमलता ने उस से शारीरिक संबंध बना कर उस ने रिश्तों की मर्यादा भंग कर दी. सपनों को ख्वाहिश बनाया तो तन और मन से पति से ही नहीं, बच्चों से भी दूर हो गई.
बबलू को जब लगा कि प्रेमलता पूरी तरह से उस की हो गई है तो उस ने उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. तब प्रेमलता ने कहा, “बबलू यह सब इतना आसान नहीं है. क्योंकि गवेंद्र मुझे आसानी से छोडऩे वाला नहीं है.”
“तो ठीक है, मैं उसे रास्ते से हटाए देता हूं.” बबलू ने कहा तो प्रेमलता गंभीर हो कर बोली, “यह तो और भी आसान नहीं है.”
प्रेमलता भी अब गवेंद्र से छुटकारा पा कर बाकी की जिंदगी बबलू के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन वह उसे छोड़ कर बबलू से शादी नहीं कर सकती थी. क्योंकि ऐसा करने पर मायके वाले उस का साथ न देते. इसलिए वह बड़ी उलझन में फंसी थी. वह इस बारे में कुछ करती, उस के पहले ही उस की पोल खुल गई.
लगभग 3 बजे अनुज ने आ कर ड्राइवर ने कहा, ‘‘हमें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. उन के पास गाड़ी भी है. हम लोग उन के साथ घूमेंगे, तुम जाओ.’’
‘‘कल कितने बजे आना है साहब?’’ ड्राइवर ने पूछा तो अनुज बोला, ‘‘अब आने की जरूरत नहीं है. कल सुबह हम मुंबई लौट जाएंगे.’’
ड्राइवर कार ले कर चला गया और उस ने यह बात विनोद अत्री को बता दी. अनुज ने कार ड्राइवर समेत वापस भेजी थी. अत: वे निश्चिंत हो गए.
अनुज और सोनम की होटल में 3 दिन की बुकिंग थी. तीसरे दिन उन्हें लौट कर मुंबई पहुंच जाना था. जब वे उस दिन देर रात तक वापस नहीं लौटे तो विजयकरण को चिंता हुई. उन्होंने अगले दिन अपने दोस्त विनोद अत्री को फोन किया. उन्होंने बताया कि अनुज ने अंजुना बीच से यह कह कर ड्राइवर को कार सहित वापस भेज दिया था कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं और वे उन्हीं के साथ घूमेंगे. उन के पास कार भी है.
अनुज और सोनम न तो वापस लौटे थे और न उन्होंने फोन किया था. विजयकरण को चिंता हुई. चिंता इसलिए स्वाभाविक थी क्योंकि अनुज फोन करने में कतई लापरवाह नहीं था. विजयकरण ने अपने दोस्त विनोद अत्री से कहा कि वे होटल में पता लगा कर बताएं.
विनोद अत्री ने होटल से पता किया तो वहां के कर्मचारियों ने बताया कि अनुज और सोनम सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास होटल से साथसाथ निकले थे. शाम को देर रात तक वे वापस नहीं लौटे. रात को लगभग पौने 12 बजे मैडम एक मारुति कार में होटल आईं. तब साहब उन के साथ नहीं थे.
अलबत्ता स्मार्ट सा एक व्यक्ति और खूबसूरत सी एक महिला उन के साथ आए थे. मैडम ने बताया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. वे लोग होटल छोड़ कर जा रहे हैं और दोस्तों के साथ ही रहेंगे. मैडम ने होटल का बिल चुकाया और अपना सामान ले कर उन्हीं के साथ चली गईं.
विनोद अत्री ने यह बात विजयकरण को बताई तो उन की चिंता और भी बढ़ गई. उन की समझ में नहीं आया कि जब सोनम होटल से सामान लेने आई तो अनुज उस के साथ क्यों नहीं था. दिल्ली के दोस्तों या परिचितों के मिलने की बात मान भी ली जाती तो होटल छोड़ने के लिए अनुज को उस के साथ आना चाहिए था.
2 दिन से अनुज का फोन न करना भी चिंता पैदा कर रहा था. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. अनुज और सोनम को 2 दिन बाद दिल्ली लौटना था. वापसी के लिए राजधानी एक्सप्रेस में उन का रिजर्वेशन था. क्या पता वे दोनों शाम तक लौट आएं, यह सोच कर विजयकरण ने उन का इंतजार किया. लेकिन जब उस दिन शाम तक न वे आए और न उन का फोन आया तो परेशान हो कर उन्होंने अनुज के पिता चंद्रप्रकाश को फोन कर के सारी बात बताई.
बेटे और पुत्रवधू के यूं गायब होने की बात सुन कर चंद्रप्रकाश आश्चर्यचकित रह गए. वह इस बात से पहले ही परेशान थे कि अनुज और सोनम ने 3 दिनों से फोन क्यों नहीं किया. उन के फोन भी बंद थे. नवविवाहित जवान बेटे और बहू का मामला था. उन के पास पैसे और लाखों के जेवर थे. चंद्रप्रकाश अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर अगले दिन सुबह की फ्लाइट से मुंबई जा पहुंचे. वहां से वे विजयकरण के साथ गोवा गए.
गोवा में उन्होंने विनोद अत्री को भी साथ ले लिया. ये सब लोग सब से पहले उस होटल में पहुंचे, जहां अनुज और सोनम ठहरे थे. वहां पर उन्होंने होटल कर्मचारियों से उन दोनों के बारे में पूछताछ की तो कर्मचारियों ने वही बातें बताईं जो वे विनोद अत्री को पहले ही बता चुके थे.
उन के अनुसार, उस दिन सुबह को अनुज और सोनम गए तो साथसाथ थे लेकिन रात को जब पौने 12 बजे सोनम आई तो उस के साथ अनुज की जगह एक महिला और पुरुष थे, जो सफेद रंग की आल्टो कार से आए थे. होटल कर्मचारियों ने सोनम के साथ आने वालों का हुलिया भी बताया. उस हुलिए के किसी आदमी या औरत को चंद्रप्रकाश नहीं जानते थे.
मामला गंभीर लग रहा था. चंद्रप्रकाश और उन के दोस्त उत्तरी गोवा स्थित अंजुना थाने पहुंचे और थानाप्रभारी को पूरी बात बता कर अनुज व सोनम की हत्या करने की नीयत से अपहरण की आशंका व्यक्त करते हुए रिपोर्ट लिखा दी.
अंजुना थाने की पुलिस ने 1 दिन पहले अंजुना बीच की ओर जाने वाले रोड के किनारे एक अज्ञात युवती का शव बरामद किया था. युवती स्विमिंग सूट पहने थी. पुलिस को लगा था कि उस युवती की मृत्यु संभवत: नहाते वक्त डूबने से हुई होगी. इत्तफाक से युवती की लाश का पोस्टमार्टम उसी दिन हुआ था. लाश का अभी संस्कार नहीं किया गया था. पुलिस ने चंद्रप्रकाश और उन के साथियों को अस्पताल ले जा कर लाश दिखाई तो वे पहचान गए. वह लाश सोनम की ही थी.
अंजुना थाने की पुलिस ने अनुज का हुलिया बयान कर के उस की गुमशुदगी का संदेश गोवा के सभी थानों को भेज दिया था. उसी दिन दोपहर बाद सूचना मिली कि वाडा तोड़ और कोलबा बीच की सड़क के किनारे एक युवक का शव मिला था, जिस का हुलिया भेजे गए हुलिए से मिलता था.
अंजुना बीच और कोलबा बीच जहां युवक की लाश मिली, में 65 किलोमीटर की दूरी थी. इस युवक के शरीर पर भी स्विमिंग सूट था. युवक की लाश का पोस्टमार्टम भी उसी दिन हुआ था और लाश सुरक्षित थी. पुलिस के अनुमान के हिसाब से युवक की मृत्यु नहाते समय डूबने से हुई थी. चंद्रप्रकाश और उन के साथ गए लोगों को युवक की लाश दिखाई गई तो वे देखते ही बिलख पड़े. वह उन का बेटा अनुज ही था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अनुज की मृत्यु का कारण डूबना बताया गया था और पुलिस भी यही मान कर चल रही थी. लेकिन चंद्रप्रकाश इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन का कहना था कि अनुज तैरना जानता था. उस के डूबने का प्रश्न ही नहीं था. यह बात सभी की समझ के बाहर थी कि अनुज और सोनम की लाशें एकदूसरे से 65 किलोमीटर दूर कैसे मिलीं. वे लोग सोनम की मौत को भी डूबने का मामला मानने को तैयार नहीं थे.