दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 2

बारात जनवासे पहुंच गई. मिंटू साए की तरह मनु के आगेपीछे घूम रही थी. सुकृति रिश्तेदारों में व्यस्त थी, इसलिए मनु को समय नहीं दे पा रही थी. उस ने देखा कि उस की चचेरी बहन उस की जिम्मेदारी निभा रही है. मनु बोर नहीं हो रहा, यही उस के लिए पर्याप्त था. मिंटू ने लहंगाओढ़नी पहना था.

दुलहन सी सजी मिंटू ने मनु से पूछा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं जीजू?’’

‘‘माइंड ब्लोइंग रियली.’’ मनु ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘जीजू, झूठी प्रशंसा कर के आप मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हैं.’’

ऐसी बात कह कर शायद मिंटू मनु को और कुरेदना चाह रही थी. अब तक मनु भी काफी खुल चुका था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मिंटू, अपनी लाइफ में मैं ने इतनी सुंदर लड़की पहले नहीं देखी. जी चाहता है कि…’’

मनु का वाक्य पूरा होता, उस के पहले ही मिंटू तपाक से बोली, ‘‘क्या चाहता है जीजू आप का दिल? जरा हमें भी तो पता चले.’’

मिंटू की इस बात से मनु का साहस बढ़ा. उस ने बिना कुछ सोचेसमझे कहा, ‘‘अगर सामने कोई खूबसूरत अप्सरा खड़ी हो तो पुरुष का दिल क्या चाहेगा?’’

‘‘क्या चाहेगा, आप ही बता दीजिए?’’ मिंटू ने मुसकराते हुए पूछा.

मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो पल भर बाद मिंटू ही बोली, ‘‘आप तो लड़कियों की तरह शरमा रहे हैं. आय एम योर फ्रैंड जीजू, प्लीज बताइए ना.’’

मनु अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पाया और दिल की ख्वाहिश जाहिर करते हुए बोला, ‘‘वांट ए किस, आई मीन लव…’’

‘‘इस में इतना शरमाने की क्या बात थी जीजू? मैं ने तो सोचा था आप…’’ इस बार मिंटू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी. लेकिन मनु की बात उस के दिल को भेद गई थी. थोड़ा रुक कर मिंटू बोली, ‘‘मैं आप को एक गिफ्ट देना चाहती हूं जीजू.’’

‘‘क्या?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘एक ऐसा गिफ्ट, जो आप को बहुत पसंद आएगा.’’ मिंटू ने हंसते हुए कहा.

‘‘दीजिए, देखें तो क्या दे रही हैं अपने जीजू को?’’ मनु ने पूछा.

‘‘अभी नहीं. समय आने दो, फिर देखना.’’

मनु कुछ और कहता, जानवासे से बारात चल पड़ी. बारातियों में तमाम लोग डांस कर रहे थे. लेकिन जब मिंटू ने डांस शुरू किया तो उस ने तुरंत भीड़ से मनु को अपने साथ डांस करने के लिए खींच लिया. सुकृति भी अब उस के साथ डांस करने लगी.

बारात लड़की वालों के घर पहुंच गई. अचानक सुकृति को याद आया कि वह अपना सूटकेस लौक करना भूल गई थी. उस ने यह बात मनु से कही तो वह अपनी कार से जनवासे जाने लगा. वह पंडाल से बाहर आया था कि पीछे से दौड़ती हुई मिंटू आई और उस के साथसाथ चलने लगी. चलते हुए ही उस ने पूछा, ‘‘जनवासे जा रहे हैं क्या जीजू?’’

‘‘हां, तुम्हें भी कोई काम है क्या?’’

‘‘मुझे भी वहां से अपनी एक ड्रेस लानी है.’’ मिंटू ने कहा.

मनु के साथ मिंटू भी कार में बैठ गई. कार में सिर्फ वही दोनों थे. कार थोड़ी दूर ही चली होगी कि मिंटू ने मनु का हाथ दबा कर कार रुकवा ली. मनु कुछ समझ पाता, बिजली की सी फुर्ती से मिंटू ने मनु के गाल पर चुंबनों की बौछार कर दी. मनु भौचक्का रह गया. मिंटू ने कहा, ‘‘जीजू मेरी गिफ्ट कैसी लगी? बदले में अब आप मुझे गिफ्ट में क्या दे रहे हैं?’’

मनु की भी भावनाएं भड़क उठी थीं. उस ने भी आगे बढ़ कर मिंटू के होठों पर अपने होंठ रख दिए. मनु ने स्वयं को जैसेतैसे संयत किया. रिश्तों की नाजुकता ने आवेश पर ब्रेक लगाया तो कार आगे बढ़ी. जनवासा आ चुका था. मनु कार में ही बैठा रहा. मिंटू जा कर सुकृति का सूटकेस और अपनी ड्रेस ले आई.

भावावेश में यह सब जो हुआ था, मनु को पश्चाताप हो रहा था. उसे परेशान देख कर मिंटू ने कहा, ‘‘इतने टैंस क्यों हो रहे हैं जीजू? मैं आप की साली ही तो हूं. साली यानी आधी घर वाली. इतना हक तो बनता ही है आप का?’’

मनु थोड़ा संयत हुआ. मिंटू की दिलकश अदाएं उस पर भारी पड़ने लगी थीं. दोनों बारात में शामिल हो गए. लड़की वालों का घर आ गया. शादी की वह रात इसी तरह हंसीमजाक में बीत गई. सुबह दुलहन की विदाई के बाद सुकृति मनु की कार में बैठ गई थी. शादी निपट चुकी थी. मनु को अपना बिजनैस देखना था, इसलिए उसे लौटना था. वह चला आया, लेकिन सुकृति 2-4 दिनों के लिए रुक गई. रश्मि और उस की बेटी मिंटू के व्यवहार ने उस की जिंदगी में नए रंग भर दिए थे. मिंटू उस से रुकने के लिए जिद कर रही थी, लेकिन बिजनैस की वजह से उस का रुकना संभव नहीं था.

मनु रास्ते में ही था कि उस के मोबाइल फोन पर मिंटू के एसएमएस धड़ाधड़ आने लगे. मनु के पास इतना समय नही था कि वह जवाब देता. 2-4 के जवाब दिए, बाकी फोन पर बात कर ली. 2-4 दिनों बाद मिंटू मां के साथ अहमदाबाद चली गई.

सुकृति ने शायद उन के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता को भांप लिया था, इसलिए मनु को सचेत किया, ‘‘आप इन लोगों से ज्यादा नजदीकी मत बढ़ाइए. आप उन लोगों को नहीं जानते, धोखा उन की रगरग में बसा है.’’

मनु पशोपेश में पड़ गया. अपनों के बारे में सुकृति के विचार जान कर उसे बड़ा अजीब लगा. इस के बाद उस ने सुकृति को उन लोगों के बारे में बताना बंद कर दिया. मिंटू बारबार मनु से अहमदाबाद आने की जिद कर रही थी. उस की डिमांड पर मनु ने कुरियर से उस के लिए एक कीमती मोबाइल सेट और कुछ शानदार ड्रेसेज भेज दी थीं. यह सब पा कर मिंटू बहुत खुश हुई थी.

मनु अकसर मिंटू के लिए कुछ न कुछ भेजने लगा था. उस के मोबाइल में पैसे डलवाना तो आम बात थी. वह थी ही इतनी बातूनी. वही क्या, उस की मम्मी यानी रश्मि भी मनु से घंटों बातें करती थी. मनु को मोबाइल के बिल की उतनी चिंता नही थी, लेकिन उस के पास समय नहीं होता था.

शोरूम में ग्राहकों के सामने ज्यादा देर मोबाइल पर बात नहीं कर सकता था. इधर वह मोबाइल में इतना उलझा रहने लगा था कि शोरूम का सिस्टम गड़बड़ाने लगा था. उस में आए इस बदलाव से शोरूम के कर्मचारी हैरान थे.

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के थाना गजरौला कलां का संतरी बरामदे में खड़ा इधरउधर ताक रहा था. उसी समय एक युवक तेजी से  आया और थानाप्रभारी भुवनेश गौतम के औफिस में घुसने लगा तो उस ने टोका, ‘‘बिना पूछे कहां घुसे जा रहे हो भाई?’’

युवक रुक गया. वह काफी घबराया हुआ लग रहा था. उस ने कहा, ‘‘साहब से मिलना है, मेरी पत्नी को बदमाश उठा ले गए हैं.’’

‘‘तुम यहीं रुको, मैं साहब से पूछता हूं, उस के बाद अंदर जाना.’’ कह कर संतरी थानाप्रभारी के औफिस में घुसा और पल भर में ही वापस आ कर बोला, ‘‘ठीक है, जाओ.’’

संतरी के अंदर जाने के लिए कहते ही युवक तेजी से थानाप्रभारी के औफिस में घुस गया. अंदर पहुंच कर बिना कोई औपचारिकता निभाए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं लालपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा नाम प्रमोद है. मैं अपनी पत्नी को विदा करा कर घर जा रहा था. गांव से लगभग 2 किलोमीटर पहले कुछ लोग बोलेरो जीप से आए और मेरी पत्नी को उसी में बैठा कर ले कर चले गए.’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने प्रमोद को ध्यान से देखा. उस के बाद मुंशी को बुला कर उस की रिपोर्ट दर्ज करने को कहा. मुंशी ने प्रमोद के बयान के आधार पर उस की रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद प्रमोद ने थानाप्रभारी के औफिस में आ कर कहा, ‘‘साहब, अब मैं जाऊं?’’

थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने उसे एक बार फिर ध्यान से देखा. प्रमोद ने उन से एक बार भी नहीं कहा था कि वह उस की पत्नी को तुरंत बरामद कराएं. उस के चेहरे के हावभाव से भी नहीं लग रहा था कि उसे पत्नी के अपहरण का जरा भी दुख है.

उन्होंने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम हमें वह जगह नहीं दिखाओगे, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है? अपहर्त्ता जिस बोलेरो जीप से तुम्हारी पत्नी को ले गए हैं, उस का नंबर तो तुम ने देखा ही होगा. वह नंबर नहीं बताओगे?’’

थानाप्रभारी की बातें सुन कर प्रमोद के चेहरे के भाव बदल गए. वह एकदम से घबरा सा गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं गाड़ी का नंबर नहीं देख पाया था. यह सब इतनी जल्दी और अचानक हुआ था कि गाड़ी का नंबर देखने की कौन कहे, मैं तो यह भी नहीं देख पाया कि अपहर्त्ता कितने थे.’’

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हारे साथ चल कर वह जगह देखते हैं, जहां से तुम्हारी पत्नी का अपहरण हुआ है. तुम घबराओ मत, हम नंबर और अपहर्त्ताओं के बारे में भी पता कर लेंगे.’’ कह कर थानाप्रभारी ने गाड़ी निकलवाई और सिपाहियों के साथ प्रमोद को भी गाड़ी में बैठा कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. सिपाहियों के साथ बैठा प्रमोद काफी परेशान सा लग रहा था.

जिस की पत्नी का अपहरण हो जाएगा, वह परेशान तो होगा ही, लेकिन उस की परेशानी उस से हट कर लग रही थी. थानाप्रभारी जब गांव के मोड़ पर पहुंचे तो प्रमोद ने कहा, ‘‘साहब, मुझे तो अब याद ही नहीं कि अपहरण कहां से हुआ था? मैं तो पत्नी के साथ पैदल ही जा रहा था. अंधेरा होने की वजह से मैं वह जगह ठीक से पहचान नहीं सका.’’

‘‘तुम ने शोर मचाया था?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, शोर मचाने का मौका ही कहां मिला. वह आंधी की तरह आए और मेरी पत्नी को जीप में जबरदस्ती बैठा कर ले गए.’’ प्रमोद ने कहा.

थानाप्रभारी को प्रमोद की इस बात से लगा कि मामला अपहरण का नहीं, कुछ और ही है. पूछने पर प्रमोद यह भी नहीं बता रहा था कि उस की ससुराल कहां है. संदेह हुआ तो उन्होंने गुस्से में कहा, ‘‘सचसच बता, क्या बात है?’’

प्रमोद कांपने लगा. थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि यह झूठ बोल रहा है. उन्होंने उसे जीप में बैठाया और थाने आ गए. थाने ला कर उन्होंने उस से पूछताछ शुरू की. शुरूशुरू में तो प्रमोद ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन जब उस ने देखा कि पुलिस अब सख्त होने वाली है तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, अपने दोस्त मुकेश के साथ मिल कर मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और लाश एक गन्ने के खेत में छिपा दी है.’’

रात में तो कुछ हो नहीं सकता था, इसलिए पुलिस सुबह होने का इंतजार करने लगी. सुबहसुबह पुलिस लालपुर पहुंची तो गांव वाले हैरान रह गए. उन्हें लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. जब प्रमोद ने गन्ने के खेत से लाश बरामद कराई तो लोगों को पता चला कि प्रमोद ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 20 साल के करीब थी. वह साड़ीब्लाउज पहने थी. गले पर दबाने का निशान स्पष्ट दिखाई दे रहा था. गांव वालों से जब प्रमोद के घर वालों को पता चला कि प्रमोद ने अर्चना की हत्या कर दी है तो वे भी हैरान रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्रमोद ऐसा भी कर सकता है. लेकिन जब वे घटनास्थल पर पहुंचे तो अर्चना की लाश देख कर सन्न रह गए. पुलिस ने मृतका अर्चना के पिता डालचंद को भी फोन द्वारा सूचना दे दी थी कि उन की बेटी अर्चना की हत्या हो चुकी है.

इस सूचना से डालचंद और उन की पत्नी शारदा हैरान रह गए थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे हो गया. कल शाम को ही तो उन्होंने बेटी को विदा किया था. उस समय तो सब ठीकठाक लगा था. रास्ते में ऐसा क्या हो गया कि अच्छीभली बेटी की हत्या हो गई.

डालचंद ने सिर पीट लिया. उन के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘किस ने मेरी बेटी को मार दिया? उस ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘हमारी बेटी को किसी और ने नहीं, प्रमोद ने ही मारा है.’’ रोते हुए शारदा ने कहा.

पत्नी की इस बात से डालचंद हैरान रह गया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम्हें पता नहीं है. दामाद का गांव की ही किसी लड़की से चक्कर चल रहा था. उसी की वजह से उस ने मेरी बेटी को मार डाला है.’’ शारदा ने कहा.

पत्नी भले ही कह रही थी कि अर्चना की हत्या प्रमोद ने की है, लेकिन डालचंद को विश्वास नहीं हो रहा था. सूचना पाने के बाद डालचंद परिवार के कुछ लोगों के साथ थाना गजरौला कलां जा पहुंचा. अर्चना की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया था. थानाप्रभारी ने जब उसे बताया कि अर्चना की हत्या उस के दामाद प्रमोद ने ही की है, तब कहीं जा कर उसे विश्वास हुआ.

पूछताछ में शारदा ने बताया कि अर्चना ने उन से बताया था कि प्रमोद का गांव की ही किसी लड़की से प्रेमसंबंध है. लेकिन उस ने बेटी की इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे लगा कि हो सकता है शादी के पहले रहे होंगे. शादी के बाद संबंध खत्म हो जाएंगे. उसे क्या पता कि उसी संबंध की वजह से प्रमोद उस की बेटी को मार डालेगा.

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 1

खटखट की आवाज से असलम की आंख खुली तो आंखों की कड़वाहट से ही वह समझ गया कि अभी सवेरा नहीं हुआ है. लाइट जला कर उस ने समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. उतनी रात को कौन आ गया? असलम सोच ही रहा था कि दोबारा खटखट की आवाज आई. वह झट से उठा. रात का मामला था, इसलिए बिना पूछे दरवाजा खोलना ठीक नहीं था. उस ने पूछा, ‘‘कौन?’’

बाहर से सहमी सी आवाज आई, ‘‘भाईजान, मैं रुखसाना.’’

रुखसाना का नाम सुन कर उस ने झट से दरवाजा खोल दिया. क्योंकि वह उस की पड़ोसन थी. सामने खड़ी रुखसाना से उस ने पूछा, ‘‘भाभीजी आप, सब खैरियत तो है?’’

‘‘माफ कीजिएगा भाईजान, आप को इतनी रात को तकलीफ दी.’’ रुखसाना ने कहा तो असलम बोला, ‘‘जाबिरभाई और बच्चे तो ठीक हैं न?’’

‘‘असलम भाई, मुझे लगता है, मेरे घर कोई अनहोनी हो गई है. काफी देर पहले जाबिर टौयलेट के लिए ऊपर गए थे. लेकिन अभी तक वह नीचे नहीं आए हैं. मेरा जी घबरा रहा है.’’

‘‘नीचे नहीं आए, क्या मतलब? मैं समझा नहीं?’’ असलम ने हैरानी से कहा.

‘‘आज उन की तबीयत ठीक नहीं थी. शाम को भी देर से आए थे. खाना खाने के बाद दवा ली और सो गए. थोड़ी देर बाद वह टौयलेट जाने के लिए उठे. नीचे वाला टौयलेट खराब था, इसलिए मैं ने उन्हें ऊपर जाने को कहा. वह ऊपर वाले फ्लोर पर चले गए. जबकि मैं लेटी ही रही. काफी देर हो गई और वह ऊपर से नीचे नहीं आए तो मेरा जी घबराने लगा. इसलिए मैं आप के पास आ गई.’’

‘‘आप ने ऊपर जा कर नहीं देखा?’’ असलम ने पूछा.

‘‘जा रही थी, लेकिन सीढि़यों के दरवाजे की दूसरी ओर से कुंडी बंद थी, इसलिए जा नहीं सकी. मैं ने कई आवाजें दीं. दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. मुझे लगता है, कोई गड़बड़ हो गई है?’’ रुखसाना ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘आप परेशान मत होइए भाभीजान. चलिए मैं देखता हूं.’’ कह कर असलम अपनी पत्नी के साथ रुखसाना के घर की ओर चल पड़ा.

रुखसाना, उस का बेटा साजिद, असलम और उस की पत्नी ऊपर जाने के लिए सीढि़यों पर चढ़ने लगे. ऊपर जाने वाले दरवाजे की कुंडी दूसरी ओर से बंद थी, इसलिए सभी को वहीं रुकना पड़ा. असलम ने वहीं से कई आवाजें लगाईं, लेकिन दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला. सभी नीचे उतरने लगे तो एकाएक असलम की नजर बालकनी पर चली गई. उसे लगा, वहां चादर में लिपटा कुछ पड़ा है. उस ने उस ओर इशारा कर के कहा, ‘‘भाभीजान, उधर देखिए, वह क्या पड़ा है?’’

रुखसाना ने उधर देखा. उस का बेटा साजिद वहां भाग कर पहुंचा. उस में से खून बह रहा था. उस ने झुक कर चादर हटाई. इस के बाद एकदम से चीखा, ‘‘अम्मी. यह तो अब्बू हैं.’’

रुखसाना चीखी, ‘‘या खुदा यह क्या हो गया? जाबिर तुम्हारा यह हाल किस ने किया?’’

साजिद भी जोरजोर से रोने लगा था.

असलम ने अपने मोबाइल फोन से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. फिर तो थोड़ी ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. पीसीआर पुलिस ने चादर हटाई तो उस में खून से सनी जाबिर की लाश लिपटी थी. पीसीआर पुलिस ने संबंधित थाना जीटीबी एन्क्लेव को घटना के बारे में सूचित किया. कुछ देर बाद थाना जीटीबी एन्क्लेव के थानाप्रभारी नरेंद्र सिंह चौहान और इंसपेक्टर एटीओ राकेश कुमार दोहाना पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे.

घटनास्थल का मुआयना करने के दौरान ही पुलिस को खून सना एक चाकू मिला. पुलिस ने उसे कब्जे में ले लिया, क्योंकि हत्या उसी से की गई थी. पुलिस ने पूछताछ की तो रुखसाना ने वही बातें बताईं, जो वह असलम को पहले ही बता चुकी थी. स्थिति को देखते हुए पुलिस उस से ज्यादा पूछताछ नहीं कर सकी. लेकिन घटनास्थल के हालात से साफ था कि यह हत्या लूटपाट की वजह से नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान जस का तस था.

चूंकि मकान में आनेजाने का एक ही दरवाजा था, इसलिए पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्या किसी जानकार ने की है या फिर इस में घर के किसी सदस्य का हाथ है. पुलिस परिवार वालों और रिश्तेदारों के नामपते तथा फोन नंबर ले रही थी, तभी क्राइम टीम और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने आ कर अपनी काररवाई निपटा ली. इस के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

थाना जीटीबी एन्क्लेव में उसी दिन यानी 16 जून, 2013 को जाबिर की हत्या का यह मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. इस के बाद मामले के खुलासे के लिए डीसीपी वी.वी. चौधरी एवं स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव कुमार यादव ने स्पेशल सेल के इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर प्रवीण कुमार, संदीप कुमार, हेडकांस्टेबल संजीव, दिलावर, सुरेश और राजवीर को शामिल किया गया.

पुलिस को पता था कि जाबिर के मकान में आनेजाने के लिए एक ही दरवाजा था, इसलिए हत्यारा उसी दरवाजे से आया होगा और जाबिर की हत्या कर के उस की लाश को चादर में लपेट कर उसी दरवाजे से बाहर गया होगा. जाबिर का हत्यारा या तो जानपहचान का था या फिर घर का ही कोई सदस्य था.

पुलिस ने सभी नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया था. इसी के साथ मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि जाबिर के शरीर पर चाकू के 32 वार किए गए थे. पुलिस जांच में क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा जाबिर और रुखसाना के बारे में जान लें.

जाबिर और रुखसाना उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं के गांव रमजानपुर के रहने वाले थे. जाबिर 30-32 साल का रहा होगा, तभी उसे 15 साल की रुखसाना से प्यार हो गया था. इस की वजह यह थी कि जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह फूल की तरह महक उठी थी, जिस पर भंवरे मंडराने लगे थे.

रुखसाना के घर से निकलते ही चाहने वाले उस के पीछे लग जाते थे. कोई उसे परी कहता तो कोई जन्नत की हूर तो कोई अप्सरा तो कोई दिल की रानी. वह फूल कर कुप्पा हो जाती. फिर तो जल्दी ही वह न जाने कितनों के दिलों की रानी बन गई. उस के ये प्रेमी उसे घुमानेफिराने और मौज कराने लगे. ये लड़के उसे ऐसे ही नहीं मौज करा रहे थे, वे उस के शरीर से अपनी एकएक पाई वसूल रहे थे.

रुखसाना को भी इस में मजा आ रहा था. धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई. हालत यह हो गई कि जब तक वह किसी लड़के से शारीरिक संबंध न बना लेती, उस का मन बेचैन रहता. उस के ऐसे ही यारों में एक जाबिर भी था. जाबिर उस से उम्र में बड़ा जरूर था, लेकिन शारीरिक संबंधों की आदी बन चुकी रुखसाना के लिए अब उम्र के कोई मायने नहीं रह गए थे.

जाबिर भी उसी मोहल्ले में रहता था, जिस मोहल्ले में रुखसाना रहती थी. वह नौशे मियां का बेटा था. जाबिर अन्य लड़कों से थोड़ा अलग था. दरअसल वह उस के दिल का राजा बनना चाहता था. रुखसाना को वह अपनी बीवी बनाना चाहता था. लेकिन लाख कोशिशों के बाद रुखसाना इस के लिए तैयार नहीं थी. इस की वजह यह थी कि वह उम्र में उस से काफी बड़ा था. रुखसाना का कहना था कि मौजमस्ती की बात दूसरी है और बीवी बन कर रहने की बात दूसरी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला एटा की कोतवाली देहात के गांव नगला समल में रहता था रुकुमपाल. शहर के नजदीक और सड़क के किनारे बसा होने की वजह से गांव के लोग खुश और संपन्न थे. रुकुमपाल के पास खेती की जमीन ठीकठाक थी और वह मेहनती भी था, इसलिए गांव के हिसाब से उस के परिवार की गिनती खुशहाल परिवारों में होती थी. हंसीखुशी के साथ जिंदगी गुजार रही थी कि एक दिन अचानक रुकुमपाल की पत्नी श्यामश्री की मौत हो गई.

श्यामश्री की मौत हुई थी तो बेटी आशा 6 साल की थी और बेटा शीलेश 4 साल का. छोटेछोटे बच्चों को संभालना मुश्किल था, इसलिए घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार भी उस की दूसरी शादी कराना चाहते थे. लेकिन रुकुमपाल ने शादी से तो मना किया ही, खुद को संभाला और बच्चों को भी संभाल लिया.

पत्नी की मौत के बाद बच्चों को मां रामरखी के भरोसे छोड़ कर रुकुमपाल परिवार और जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा था. शादी से उस ने मना ही कर दिया था, इसलिए दोनों बच्चों को बाप के साथसाथ वह मां का भी प्यार दे रहा था. इस में उसे परेशानी तो हो रही थी लेकिन बच्चों के लिए वह इस परेशानी को झेल रहा था. क्योंकि वह बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता था.

समय जितना जालिम होता है, उतना ही दयालु भी होता है. समय के साथ बड़ेबड़े जख्म भर जाते हैं. रुकुमपाल की जिंदगी भी सामान्य हो चली थी. बच्चे भी मां को भूल कर अपनीअपनी जिंदगी संवारने में लग गए थे.

आशा पढ़लिख कर शादी लायक हो गई तो रुकुमपाल ने एटा के ही गांव नगला बेल के रहने वाले विनोद कुमार के साथ उस का विवाह कर दिया था. विनोद वन विभाग में नौकरी करता था. नौकरी की वजह से वह एटा में रहता था, इसलिए आशा भी उस के साथ एटा में ही रहने लगी थी.

रुकुमपाल बेटे को पढ़ाना चाहता था, लेकिन शीलेश इंटर से ज्यादा नहीं पढ़ सका. पढ़ाई छोड़ कर वह दिल्ली चला गया और किसी फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. हालांकि रुकुमपाल चाहता था कि शीलेश गांव में ही रहे, क्योंकि उस के पास जमीन ठीकठाक थी. लेकिन शीलेश को जो आजादी दिल्ली में मिल रही थी, शायद वह गांव में नहीं मिल सकती थी, इसलिए उस ने रुकुमपाल से साफ कह दिया था कि वह जहां भी है, वहीं ठीक है.

पत्नी की मौत के बाद रुकुमपाल ने अपना पूरा जीवन यह सोच कर बच्चों के लिए होम कर दिया था कि यही बच्चे बुढ़ापे का सहारा बनेंगे. बेटी तो ससुराल चली गई थी. बचा शीलेश, वह उस की कल्पना से अलग ही स्वभाव का लग रहा था. उस का सोचना था कि पिता ने अपना फर्ज पूरा किया है, उस के लिए कोई कुर्बानी नहीं दी है.

अपनी इसी सोच की वजह से कभीकभी शीलेष रुकुमपाल को ऐसी बात कह देता था कि उस के मन को गहरी ठेस पहुंचती थी. लेकिन उस के लिए शीलेश अभी भी बच्चा ही था. इसलिए वह उस की इन बातों को दिल से नहीं लेता था.

रुकुमपाल को अपने फर्ज पूरे करने थे, इसलिए वह शीलेश की शादी के लिए जीजान से जुट गया. आखिर उस की तलाश रंग लाई और एटा के ही गांव निछौली कलां के रहने वाले सोबरन की बेटी ममता उसे पसंद आ गई. फिर उस ने धूमधाम से उस की शादी कर दी.

सोबरन की 4 बेटियों में ममता सब से छोटी थी. उस का एक ही भाई था किशोरी. अंतिम बेटी होने की वजह से सोबरन ने ममता की शादी खूब धूमधाम से की थी.

ममता के आने से सब से ज्यादा खुशी दादी रामरखी को हुई थी. क्योंकि घर में दुलहन के आ जाने से उसे एक सहारा मिल गया था. कुछ दिन गांव में रह कर ममता शीलेश के साथ दिल्ली चली गई थी.

ममता गर्भवती हुई तो शीलेश उसे गांव छोड़ गया. कुछ दिनों बाद ममता ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी पैदा होने के बाद भी ममता दिल्ली नहीं गई. अब महीने, 2 महीने में शीलेश ही पत्नी और बिटिया से मिलने गांव आ जाता था.

बेटी 2 साल की हुई तो ममता एक बार फिर गर्भवती हुई. इस बार उस ने बेटे को जन्म दिया. ममता दिल्ली जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन रुकुमपाल और रामरखी ने उसे जबरदस्ती दिल्ली भेज दिया. दिल्ली आने के बाद कुछ दिनों में ममता को लगा कि पति की कमाई से घर ठीक से नहीं चल सकता तो वह गांव लौट आई और रुकुमपाल से साफ कह दिया कि अब वह दिल्ली नहीं जाएगी.

ममता मजबूरी में गांव में रह रही थी, क्योंकि एक तो पति की कमाई में गुजर नहीं होता था, दूसरे उस के छोटे से कमरे में बच्चों के साथ उसे घुटन सी होती थी. गांव में दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन पति के बिना रात काटना मुश्किल हो जाता था. जिस्म की भूख और अकेलापन काटने को दौड़ता था.

ममता ने शीलेश से कई बार कहा कि वह आ कर गांव में रहे, लेकिन शीलेश को शहर का जो चस्का लग चुका था, वह उसे गांव वापस नहीं आने दे रहा था. पति की इस उपेक्षा से नाराज हो कर ममता मायके चली गई थी. लेकिन अब मायके में तो जिंदगी कट नहीं सकती थी, इसलिए मजबूर हो कर उसे ससुराल आना पड़ा. फिर मांबाप ने भी कह दिया था कि वह जैसी भी ससुराल में है, उसे उसी में खुश रहना चाहिए.

ममता को ससुराल में कोई भी परेशानी नहीं थी. परेशानी थी तो सिर्फ यह कि पति का साथ नहीं मिल पा रहा था. इस परेशानी का भी वह हल ढूंढने लगी. तभी एक दिन वह मायके जा रही थी तो एटा में उस की मुलाकात हरीश से हो गई.

हरीश और ममता एकदूसरे को शादी के पहले से ही जानते थे. हरीश उस के गांव के पास का ही रहने वाला था. दोनों एकदूसरे को तब से पसंद करते थे, जब साथसाथ पढ़ रहे थे. बसअड्डे पर हरीश मिला तो ममता ने पूछा, ‘‘हरीश गांव चल रहे हो क्या?’’

‘‘अब शाम हो गई है तो गांव ही जाऊंगा न. लगता है, तुम्हें देख कर लग रहा है कि तुम भी मायके जा रही हो?’’ हरीश ने पूछा.

‘‘हां, मायके ही जा रही हूं. अब तुम मिल गए हो तो कोई परेशानी नहीं होगी. बाकी बच्चों को ले कर आनेजाने में बड़ी परेशानी होती है.’’

‘‘किसी को साथ ले लिया करो.’’ हरीश ने कहा तो ममता तुनक कर बोली, ‘‘किसे साथ ले लूं. वह तो दिल्ली में रहते हैं. घर में बूढ़े ससुर हैं, उन्हें खेती के कामों से ही फुरसत नहीं है.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम से इतनी दूर दिल्ली में रहते हैं और तुम यहां गांव में रहती हो?’’

‘‘क्या करूं, उन के साथ वहां छोटी सी कोठरी में मेरा दम घुटता है, इसलिए मैं यहां गांव में रहती हूं.’’

‘‘तो उन से कहो, वो भी यहां गांव में आ कर रहें. पति के बिना तुम अकेली कैसे रह लेती हो?’’ हरीश ने कहा तो ममता निराश हो कर बोली, ‘‘उन्हें गांव में अच्छा ही नहीं लगता.’’

‘‘लगता है, वहां उन्हें कोई और मिल गई है. तुम यहां उन के नाम की माला जप रही हो और वह वहां मौज कर रहे हैं.’’

‘‘भई वह मर्द हैं, कुछ भी कर सकते हैं.’’

‘‘तो औरतों को किस ने मना किया है. वह वहां मौज कर रहे हैं, तुम यहां मौज करो. तुम्हारे लिए मर्दों की कमी है क्या.’’

वैसे तो हरीश ने यह बात मजाक में कही थी, लेकिन ममता ने इसे गंभीरता से ले लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 बच्चों की मां हूं, मुझे कौन पूछेगा?’’

‘‘तुम हाथ बढ़ाओ,सब से पहले मैं ही पकड़ूंगा.’’ हरीश ने हंसते हुए कहा, ‘‘ममता, मैं तुम्हें तब से प्यार करता हूं, जब हम साथ में पढ़ते थे. लेकिन मैं अपने मन की बात कह पाता, उस के पहले ही तुम किसी और की हो गई.’’

जब ममता ने भी उस से मन की बात कह दी तो दोनों चोरीछिपे मिलने ही नहीं लगे बल्कि संबंध भी बना लिए. ममता मौका निकाल कर हरीश से मिलने लगी. हरीश से संबंध बनने के बाद ममता को शीलेश की कोई परवाह नहीं रह गई.

अधिवक्ता पत्नी की जिंदगी की वैल्यू पौने 6 करोड़ – भाग 1

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिन्हा की कोठी दोमंजिला थी. इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी.

रेनू के सिर और कान से थोड़ा खून जरूर बह रहा था. जिस्म के दूसरे हिस्सों में भी चोट के कई निशान दिखाई पड़ रहे थे. इस से साफ था कि रेनू सिन्हा ने हत्या से पहले कातिल के साथ संघर्ष किया था. हैरानी की बात यह थी कि घर का सारा सामान अपनी जगह था, यानी वहां कोई लूटपाट या डकैती जैसी वारदात के कोई संकेत दिखाई नहीं पड़ रहे थे. लेकिन ताज्जुब की बात यह थी कि रेनू का पति नितिन फरार था.

यह वारदात 10 सितंबर, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिला नोएडा के सेक्टर 30 में स्थित कोठी नंबर डी 40 में हुई थी, उस के कारण पूरे पुलिस विभाग की नींद उड़ गई थी. वारदात ही ऐसी थी कि उस इलाके में रहने वाले लोगों के दिलोदिमाग में भी दहशत भर गई थी.

यह ऐसा सुरक्षित व पौश इलाका है, जहां कड़ी सुरक्षा के कारण अपराधी वहां आने से पहले सौ बार सोचे. यहां स्थित जिस आलीशान कोठी में ये वारदात हुई थी, उस में दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाली 61 साल की सीनियर महिला एडवोकेट रेनू सिन्हा अपने पति नितिन नाथ सिन्हा के साथ रह रही थीं. पति ने कुछ साल पहले ही इंडियन इनफार्मेशन सर्विसेस यानी आईआईएस से वीआरएस लिया था.

दरअसल, रेनू सिन्हा पिछले शनिवार शाम से ही किसी का फोन नहीं उठा रही थीं. कोठी में 2 लोग रहते थे, रेनू सिन्हा और उन के पति नितिन नाथ सिन्हा. रेनू दिल्ली हाईकोर्ट में अभी रेगुलर प्रैक्टिस कर रही थीं, जबकि उन के पति नितिन नाथ सर्विस से वीआरएस लेने के बाद ज्यादातर वक्त घर पर ही बिताते थे. कभी वह गोल्फ कोर्स क्लब या दोस्तों से मुलाकात के लिए चले जाते थे.

हैरत की बात यह थी कि जो लोग रेनू सिन्हा से बात करना चाहते थे, जब उन का फोन नंबर नहीं मिला तो उन्होंने नितिन नाथ सिन्हा के फोन पर संपर्क करना चाहा, तब उन का फोन भी पिक नहीं हुआ. रेनू सिन्हा का फोन नहीं मिलने के कारण सब से ज्यादा चितिंत रेनू के भाई अजय सिन्हा थे.

पेशे से पत्रकार अजय सिन्हा वैसे तो मूलरूप से बिहार के पटना के रहने वाले हैं, लेकिन काफी लंबे समय से अपनी पेशेवर जिंदगी के कारण वह भी नोएडा में ही रह रहे थे. कुछ भी हो जाए, रेनू सिन्हा हर रोज अपने भाई व परिवार के लोगों से बात जरूर करती थीं, लेकिन शनिवार के बाद जब रविवार को भी उन्होंने न तो खुद किसी को फोन किया और न ही उन्होंने किसी का फोन पिक किया तो अजय सिन्हा की भी चिंता बढ़ गई.

चिंता उस समय और भी ज्यादा बढ़ गई जब रेनू की एक हमउम्र दोस्त प्रमिला सिंह रविवार सुबह करीब एक बजे उन के घर पहुंचीं तो कोठी का मेन गेट बंद था. उन्होंने रेनू व उन के पति को कई बार फोन किया, उन के फोन की घंटी तो बजती रही, लेकिन फोन पिक नहीं किया गया.

प्रमिला ने यह बात फोन कर के रेनू के भाई को बताई. तब अजय को आशंका हुई कि उन की बहन के साथ कुछ अनहोनी जरूर हो गई है. क्योंकि वह जानते थे कि अपने पति नितिन नाथ के साथ रेनू के सबंध अच्छे नहीं हैं. यह बात उन का पूरा परिवार जानता था.

किसी अनहोनी की आशंका में अजय सिन्हा ने कोतवाली सेक्टर 20 नोएडा के एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला को फोन कर के बताया कि उन की बहन रेनू सिन्हा जो अपने पति के साथ सेक्टर 30 के डी 40 में रहती हैं, वह किसी का फोन नहीं उठा रही हैं. वह पुलिस को भेज कर पता कराने की कोशिश करें कि उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है. दरअसल, रेनू सिन्हा का घर सेक्टर 20 थाना क्षेत्र में ही था.

बाथरूम में मिली रेनू सिन्हा की लाश

एक बात तो तय थी कि रेनू और नितिन नाथ के फोन औन थे, उन दोनों के फोन की घंटी भी बज रही थी, लेकिन फोन अन आंसर्ड जा रहा था. यानी काल नहीं उठ रही थी. यही वजह थी कि रेनू के भाई अजय सिन्हा ने सेक्टर 20 थाने के एसएचओ को फोन कर के बहन की गुमशुदगी की खबर दी.

एसएचओ धर्मप्रकाश शुक्ला ने स्थानीय चौकी के इंचार्ज को पुलिस टीम के साथ सेक्टर 30 में डी ब्लौक की कोठी नंबर 40 पर पहुंचने के लिए कहा तो वह पुलिस टीम के साथ तत्काल ही वहां पहुंच गए. उन्होंने देखा कोठी के गेट पर तो ताला लटका था.

जब यह बात एसएचओ को पता चली तो उन्होंने अजय सिन्हा को बता दिया कि कोठी पर ताला लटका है और आगे की काररवाई के लिए उन्हें थाने आना होगा. करीब ढाई बजे अजय सिन्हा अपने 1-2 परिचितों को ले कर सेक्टर 20 थाने पहुंच गए.

उन्होंने इंसपेक्टर शुक्ला को सारी बात बताई. साथ ही बताया, “अगर मेरी बहन लापता हैं तो इस का साफ मतलब है कि जीजा नितिन नाथ ने ही उन्हें या तो कोई नुकसान पहुंचा दिया है या उन्हें गायब कर दिया है.”

“ऐसा भी तो हो सकता है कि वे दोनों अपनी मरजी से कहीं चले गए हों और किसी कारणवश उन के फोन उन के पास नहीं हो.” इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

“नहीं इंसपेक्टर साहब, ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मेरी बहन कैंसर पेशेंट हैं और करीब एक महीना पहले ही अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आई हैं,” अमेरिका के अजय सिन्हा ने कहा.

“लेकिन आप ने अभी अपने जीजा पर शक जताया, इस की कोई खास वजह?” इंसपेक्टर शुक्ला ने अजय से पूछा.

इस के बाद अजय ने जो कुछ बताया, इंसपेक्टर शुक्ला के लिए यह समझने को काफी था कि नितिन नाथ पर किया गया शक बेवजह नहीं है.

अगले 2 घंटे बाद इंसपेक्टर धर्मप्रकाश शुक्ला अजय सिन्हा और पुलिस की टीम को ले कर एडवोकेट रेनू सिन्हा की कोठी पर पहुंच गए. पुलिस ने सब से पहले ताला तोडऩे वाले को बुलवा कर कोठी के मुख्य गेट पर लगे ताले को तुड़वाया तो देखा छोटे गेट की कुंडी अंदर से बंद थी.

अजय सिन्हा के किसी पत्रकार दोस्त ने पुलिस कमिश्नर (नोएडा) लक्ष्मी सिंह को भी फोन कर दिया था, जिस के कुछ देर बाद सेंट्रल नोएडा के डीसीपी हरीश चंद्र, एडिशनल डीसीपी शक्तिमोहन अवस्थी, इलाके के एसीपी सुमित शुक्ला भी मौके पर ही पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के मौके पर पहुंचते ही सेक्टर 20 थाने की पुलिस और ज्यादा अलर्ट हो गई. इस पूरी कवायद में शाम के 7 बज चुके थे.

कोठी का ताला तोडऩे के बाद जब पुलिस अंदर घुसी तो ड्राइंगरूम के दरवाजे को खोलने के बाद पुलिस ने घर के एकएक कमरे को चैक करना शुरू किया. रेनू सिंह की कोठी दोमंजिला थी. भूतल पर ही रेनू और नितिन नाथ सिन्हा का बैडरूम था. शायद उन के कमरे से उन के लापता होने का कोई सुराग मिल जाए, यह सोच कर तमाम आला अफसर जब उन के कमरे में गए तो उन्हें वहां ऐसा कुछ संदेहजनक नहीं लगा.

इसी बीच पुलिस दल में शामिल लोगों ने जब बाथरूम का दरवाजा खोला तो एक तरह से उन की चीख निकलतेनिकलते बची. क्योंकि वहां रेनू की लाश पड़ी थी. अधिकारियों के कहने पर एक पुलिसकर्मी ने रेनू की नब्ज टटोली, लेकिन उन का शरीर पूरी तरह निर्जीव था. लाश पूरी तरह ठंडी पड़ चुकी थी, जिस का मतलब साफ था कि उन की मौत को कई घंटे बीत चुके हैं.

अजय सिन्हा और उन के घर वाले रेनू सिंह की लाश मिलने के बाद फूटफूट कर रोने लगे. आसपास के कमरों में भी छानबीन की गई. आशंका थी कि कहीं किसी ने रेनू के पति नितिन नाथ की भी तो हत्या नहीं कर दी हो, लेकिन भूतल पर कहीं कुछ नहीं मिला.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 1

मनु खड़ा इधरउधर देख रहा था, तभी उस के सामने खड़ी महिला ने कहा, ‘‘क्या हाल है जी. लगता है, आप ने मुझे पहचाना नहीं?’’ मनु ने देखा,

सामने खड़ी महिला अधेड़ उम्र की थी. लेकिन उस उम्र में भी वह काफी आकर्षक दिख रही थी. वह ताऊ ससुर के लड़के की शादी में ससुराल आया था. उस की पत्नी सुकृति घर के कामों में व्यस्त थी. गांवों में लोकलाज के भय से लड़कियां प्राय: अपने पति से दूर ही रहती हैं.

उस महिला को गौर से देखते हुए मनु ने कहा, ‘‘जी, सही कहा आप ने. मैं ने वाकई आप को नहीं पहचाना.’’

‘‘अरे मैं रश्मि, आप की चचिया सास हूं.’’

‘‘ओह, नमस्ते! सौरी मैं आप को पहचान नहीं सका.’’ मनु ने खेद व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘जब आप ने मुझे पहले देखा ही नहीं है तो भला पहचानेंगे कैसे. बताइए आप की क्या सेवा करूं? आप तो हमारे खास मेहमान हैं.’’  खुद को रश्मि बताने वाली उस महिला ने इठलाते हुए कहा.

‘‘जी बस कुछ नहीं. मैं मेहमान नहीं, घर का सदस्य हूं. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो बताइए.’’

‘‘पहले आप चायकौफी तो पी लीजिए, काम तो होता रहेगा.’’

‘‘कौफी?’’ मनु ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्यों नहीं जमाई राजा. गांव हुआ तो क्या हुआ, हमारे यहां सब चीज का इंतजाम है. मेरे रहते भला किसी चीज की कमी हो सकती है क्या.’’ रश्मि ने गर्व से सीना फुला कर कहा.

‘‘… तो फिर एक कप कौफी प्लीज…’’

मनु के इतना कहते ही रश्मि ने आवाज लगाई, ‘‘मिंटू बेटा, जरा कौफी तो बनाना अपने जीजू के लिए.’’

रश्मि के आवाज लगाते ही 22-23 साल की एक सुंदर सी लड़की आ कर खड़ी हो गई. दोनों हाथ जोड़ कर उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘नमस्ते जीजाजी, कैसे हैं आप? मैं मिंटू, आप की साली?’’

मनु उसे देखता ही रह गया. गजब का सौंदर्य पाया था उस ने. श्वेत धवल संगमरमरी बदन, घुंघराले बाल, कजरारे नयननक्श वाली मिंटू कैपरी और लाइट पिंक कलर का टौप पहने थी, जो गांव में उस के लिए थोड़ा अटपटा लग रहा था.

‘‘मैं ने आप के बारे में बहुत सुना है मनु जी.’’ चचिया सास रश्मि ने कहा.

‘‘क्या सुना है आप ने मेरे बारे में?’’ मनु ने पूछा.

‘‘यही कि आप खानदानी रईस हैं. बड़े बिजनेसमैन भी हैं. हमारी सुकृति के तो भाग्य ही खुल गए हैं, ऐसी ससुराल पा कर.’’ रश्मि ने मुसकराते हुए कहा. मनु ने कोई जवाब नहीं दिया तो रश्मि ने ही आगे कहा, ‘‘आप चुप क्यों हो गए मनुजी?’’

‘‘नहीं तो, मैं ने भी सुकृति से आप के बारे में बहुत कुछ सुना है. आप उस की फेवरेट आंटी हैं.’’ मनु ने कहा.

‘‘हां, यह बात तो सही है. सुकृति का बचपन मेरे पास ही बीता है. आप को पता नहीं होगा, उस का सुकृति नाम मैं ने ही रखा था.’’ रश्मि गर्व से बोली.

‘‘वैसे भी आप इन लोगों से थोड़ा अलग लगती हैं.’’ मनु ने कहा.

‘‘देखा नहीं आप ने, घर में जमाई आया है. लेकिन किसी को फुरसत नहीं है उस का खयाल रखने का. अगर मैं ना होती तो आप यहां गांव में बोर हो जाते.’’

मनु को लगा, आंटी बात तो सही कह रही है. सुकृति, उस के सासससुर या किसी अन्य परिजन के पास इतना समय नहीं था कि कोई उस का खयाल रखता. यह भी हो सकता था कि उन में इतनी समझ ही नहीं थी.

इतने में कौफी के 3 कप ट्रे में सजाए मुसकराती हुई मिंटू ने कमरे में प्रवेश किया. कौफी का एक कप उठा कर रश्मि बाहर निकल गई. अब कमरे में मनु और मिंटू ही रह गए. मां के जाते ही मिंटू ने कहा, ‘‘जीजाजी, कभी हमारे यहां भी आइए ना?’’

‘‘अब आप ने बुलाया है तो जरूर आऊंगा.’’ मनु ने कहा.

‘‘कौफी कैसी लगी जीजू? मैं ने आप के लिए बड़े प्यार से बनाई है.’’ मिंटू ने दिलकश अंदाज में मुसकराते हुए कहा.

‘‘प्यार से बनाई है न?’’

‘‘और नहीं तो क्या, आप हमारे स्पैशल जीजू हैं ना इसलिए…’’

बातचीत से मिंटू बहुत ही फ्रैंक नेचर की लग रही थी. बातबात में खिलखिला कर हंसना, मनु से उलटेसीधे मजाक करना, उसे कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा था. थोड़ी ही देर में उस ने मनु के बारे में सब कुछ पूछ लिया. एक विचित्र से चुंबकीय आकर्षण में मनु बंधता जा रहा था.

खाने का समय हुआ तो रश्मि मनु को अपने कमरे में बुला ले गई. उन्होंने उस के खाने की व्यवस्था अलग से अपने कमरे में कर रखी थी. जबकि अन्य रिश्तेदार बाहर दालान में बैठ कर खा रहे थे. खाने के बाद कुछ अन्य बच्चे आ गए तो मनु के साथ अंताक्षरी होने लगी. लड़कपन अभी उस में भी  था. उस के विवाह को अभी 3 साल ही तो हुए थे.

सुकृति शहर की व्यस्त लाइफ में अभी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी. मनु सुबह जल्दी ही शोरूम पर चला जाता था तो घर लौटने में रात के 8-9 बज जाते थे. ससुराल में ऐशोआराम की कोई कमी नहीं थी, लेकिन सुकृति को इन भौतिक सुखों से कहीं ज्यादा मनु के साथ समय बिताना अच्छा लगता था, लेकिन यह संभव नहीं था.

गांव की वह रात मनु के लिए अच्छे अनुभव वाली रही. व्यस्त जीवन में बहुत कम अवसर मिलता था, जब वइ इस तरह एंजौय कर पाता था. मनु, रश्मि, मिंटू और बच्चे देर रात तक हंसीमजाक करते रहे.

अगले दिन बारात जानी थी. मिंटू ने अपनी ड्रेस मनु को दिखाई. मनु ने मजाक करते हुए कहा, ‘‘अगर मुझे पहले से पता होता कि यहां तुम्हारी जैसी साली मिलेगी तो मैं तुम्हारे लिए नएनए डिजाइन की ड्रेस ले आता.’’

मनु का इतना कहना था कि मिंटू ने दुनिया भर की फरमाइशें कर डालीं. सुकृति दूल्हे की कार से चली गई थी. रश्मि और मिंटू एक बच्चे को ले कर मनु की कार में बैठ गईं. शादी का एकएक पल मनु के लिए यादगार बनता जा रहा था.  मिंटू जैसी फ्रैंड पा कर बर्फ सी जमी उस की भावनाओं में गर्माहट आने लगी थी. मनु कार चला रहा था. उस की बगल में बैठी मिंटू उस के मोबाइल से खेल रही थी.

रश्मि ने मिंटू को मनु का मोबाइल लौटाने को कहा तो शिष्टाचारवश मनु ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं आंटी, खेलने दो मिंटू को.’’

मिंटू ने अपना मुंह मनु के कान के पास ले कर जा कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘थैंक्यू जीजू, आपने मेरी लाज रख ली.’’

‘‘डू यू नो… साली जी, साली आधी घर वाली होती है. अब मेरा इतना हक तो बनता ही है ना?’’ मनु ने कहा.

वैसे तो यह सामान्य बात थी, लेकिन मनु के लिए अब सामान्य नहीं रह गई थी. उस का मिंटू के प्रति आर्कषण निर्णायक रूप लेने लगा था. फ्रैंक नेचर की होने की वजह से मिंटू खुल कर हंसीमजाक तो कर ही रही थी, स्पर्श करने का भी कोई मौका नहीं छोड़ रही थी. उस का यह बिंदासपन मनु के दिल में अलग तरह की भावना पैदा कर रहा था.

मौका मिलने पर मनु ने उस का दायां हाथ दबा दिया. कनखियों से निहारते हुए मिंटू मुसकराई तो मनु की हिम्मत बढ़ गई. उसे लगा, उस के जीवन के खालीपन को भरने वाला कोई सच्चा साथी मिल गया है.

पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल – भाग 3

24 अक्टूबर की रात के 9 बज चुके थे. योगिता ने उस दिन पति को खुश करने का फैसला कर लिया था. इस के लिए उस ने विशेष रूप से आकर्षक ड्रेस पहनी थी. कालिका सिंह जब घर पहुंचा तो वह शराब के नशे में था.

योगिता ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘आज से हम सब कुछ भूल कर एक नए जीवन की शुरुआत करेंगे. मैं ने पिछली सारी बातें भुला दी हैं, तुम भी सब भूल जाओ.’’

कालिका सिंह उस वक्त काफी नशे में था. कुछ योगिता ने उकसाया और कुछ उस का खुद का मन बहकने लगा. उसी मन:स्थिति में उस ने योगिता से पूछा, ‘‘बच्चे सो गए क्या?’’

‘‘हां, बच्चों को मैं ने खिलापिला कर सुला दिया है.’’ योगिता ने कातिलाना अंदाज में कहा. फिर वह कालिका को बेडरूम में ले गई और मिलन के लिए उकसाने लगी. कालिका सिंह जवान तो था ही, बहकने लगा. तब योगिता बोली, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए एक खास दवा का इंतजाम किया है. उसे खा लो, जोश बढ़ेगा तो लगेगा हम कुछ खास कर रहे हैं. आज मैं तुम्हारे प्यार में सबकुछ भूल जाना चाहती हूं.’’

शारीरिक सुख के चक्कर में आदमी सब कुछ भूल जाता है. उस वक्त वह सिर्फ एक ही बात सोचता है कि अपनी पार्टनर के साथ ज्यादा से ज्यादा आनंद उठाए. कालिका सिंह के साथ भी यही हुआ.

योगिता ने उसे फुसला कर जरूरत से ज्यादा सैक्सवर्धक दवा खिला दी. शराब के नशे में कालिका ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. दोनों ने कपड़े भी उतार दिए. लेकिन मिलन की स्थिति आने से पहले ही कालिका सिंह बेहोश हो गया.

उस के बेहोश होते ही योगिता ने कपड़े पहन कर गौरव को फोन किया. वह तुरंत आ गया. सब कुछ पहले से ही तय था. इसलिए दोनों ने बिना देर किए बेहोश पड़े कालिका का गला टीवी केबिल के तार से कस दिया. जब कालिका मर गया तो योगिता ने उस के सिर पर वार कर के सिर फोड़ दिया. दोनों ने इस घटना को लूट साबित करने के लिए घर के सामान की तोड़फोड़ शुरू कर दी. उन्होंने सारा सामान इधरउधर बिखेर दिया.

योगिता ने गौरव से कह कर खुद को भी चोट पहुंचवाई, ताकि किसी को शक न हो. इस के बाद गौरव अपने घर लौट गया. गौरव के जाने के बाद योगिता ने पुलिस को फोन किया. पुलिस ने आ कर घायल योगिता को अस्पताल में भर्ती कराया. कालिका का शव देख कर पुलिस को लगा कि सिर फटने से ज्यादा खून बह गया होगा, जिस से वह मर गया है. लेकिन जब कालिका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह दम घुटना पता चली तो पुलिस ने अपनी जांच की दिशा बदल दी.

एक तो पुलिस को घर में लूट का कोई सुबूत नहीं मिला, दूसरे मोहल्ले वालों ने रात में गौरव के आने का जिक्र किया था, जिस से शक की सुई योगिता और गौरव की ओर घूम गई. अंतत: एक माह की लंबी छानबीन के बाद रायबरेली पुलिस ने कालिका हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

जिस समय योगिता और गौरव शर्मा रायबरेली के एसपी औफिस में पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय के सामने अपना गुनाह कुबूल कर रहे थे, बाहर बैठे उन के परिवार के लोग टीवी स्क्रीन पर उन की बातें देखसुन रहे थे. कालिका के घर वालों को पहले से ही इस बात का अंदेशा था. लेकिन सच सामने आने के बाद उन की आंखों के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे.

खुलासा होने तक योगिता के घर वाले इस मामले को प्रौपर्टी डीलिंग की दुश्मनी मान रहे थे. लेकिन अपनी बेटी का कारनामा सुन कर उन का सिर शरम से झुक गया. गौरव के पिता और उन के साथी वकील जो अब तक गौरव को निर्दोष मान रहे थे, वह भी अफसोस जताने लगे.

कुछ देर बाद पुलिस गौरव और योगिता को ले कर बाहर आई तो योगिता का सिर झुका हुआ था. पत्रकारों ने उस से पूछा कि अब वह क्या कहना चाहती है तो उस ने कहा, ‘‘मुझे जेल भेज दो और गौरव को छोड़ दो. मेरा क्या, मैं तो शादीशुदा हूं, मेरे दो बच्चे है, जिंदगी का पूरा सुख भी भोग लिया है, जबकि गौरव की जिंदगी की अभी शुरुआत है. उसे माफ कर दीजिए.’’

भले ही गौरव ने योगिता के दबाव में ऐसा किया था, पर उस का अपराध क्षमा योग्य नहीं था. पुलिस ने दोनों को सीजेएम दिनेश कुमार मिश्रा की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. अब गौरव और योगिता का भविष्य अदालत तय करेगी. योगिता के दोनों बेटे अपने चाचा के घर चले गए. इन मासूमों को अब अपनी मां और पिता, दोनों के बिना जीने की आदत डालनी होगी.

—कथा पुलिस सूत्रों, जनचर्चा और अभियुक्तों के बयानों पर आधारित है.

गलत आदतों से हुई सजा ए मौत

पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल – भाग 2

रायबरेली के रानानगर निवासी कालिका सिंह ने अपने पिता का नाम रोशन करने के लिए उन के नाम पर महाराजगंज में स्कूल खोल रखा था. कालिका चूंकि खूब पैसा कमाना चाहता था, इसलिए उस ने स्कूल चलाने के साथसाथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया था. उस का ज्यादातर समय इसी काम में बीतता था.

कालिका ने अपनी पत्नी योगिता को स्कूल की प्रिंसिपल बना रखा था. योगिता और कालिका की शादी 10 साल पहले हुई थी. योगिता सुल्तानपुर जिले के गौरीगंज कस्बे की रहने वाली थी. उस ने एमए तक पढ़ाई की हुई थी. योगिता और कालिका के 2 बेटे थे, 8 साल का यश और 6 साल का जय. कालिका सिंह में एक बुराई यह थी कि वह शराब का आदी हो गया था. इसी वजह से वह पत्नी और बच्चों की तरफ ध्यान नहीं दे पाता था.

पति की इसी आदत की वजह से योगिता को लगता था कि उस का पति दूसरी महिलाओं के चक्कर में पड़ गया है. उसे अपने स्कूल की कुछ महिला टीचरों पर शक होने लगा था. इसी बात को ले कर दोनों के बीच मनमुटाव और ज्यादा बढ़ने लगा. कालिका सिंह के स्कूल में एक टीचर था गौरव शर्मा. वह रायबरेली का रहने वाला था. योगिता 25 साल के गौरव को पसंद करने लगी थी. कहा जाता है कि पति के रंगढंग देख कर उस के मन में गौरव के प्रति प्रेम पनपने लगा था.

प्रिंसिपल होने के नाते योगिता की बात मानना गौरव की मजबूरी थी. योगिता जब तब मोबाइल पर गौरव से बातचीत करने लगी थी. रात में वह परेशान होती तो फोन पर गौरव से बात कर लेती. कुछ दिनों बाद कालिका सिंह को इस बात का पता चल गया तो वह योगिता पर शक करने लगा. कभीकभी अपना यह शक वह योगिता पर जाहिर भी कर देता था. साथ ही कहता भी था कि मैं सब पता लगा लूंगा. इस से डर कर योगिता मोबाइल और सिम बदलबदल कर गौरव से बात करने लगी.

पतिपत्नी के मन में एकदूसरे के प्रति शक का कीड़ा तेजी से घर करता जा रहा था. दूरियां भले ही काफी बढ़ गई थीं, इस के बावजूद 22 अक्टूबर, 2013 को योगिता ने पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा. लेकिन कालिका सिंह उस दिन समय पर घर नहीं पहुंचा तो योगिता नाराज हो गई. उस ने फोन कर के गौरव शर्मा को अपने घर बुला लिया. इसी बीच कालिका सिंह घर पहुंच गया.

उस के पहुंचते ही योगिता व्यंग्य भरे लहजे में बोली, ‘‘किस के साथ करवाचौथ मना कर आ रहे हो? तुम्हारे लिए तो कई व्रत रखती होंगी. इसीलिए तुम ने मेरे व्रत की कोई अहमियत नहीं समझी.’’

‘‘तुम ने आते ही बेकार की बात शुरू कर दी. मैं कुछ काम में फंस गया था. आने में देर हो गई.’’ कालिका ने समझाने के लिए कहा तो योगिता तुनक कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारे सब बहाने अच्छी तरह जानती हूं. अब मैं भी तुम्हें तुम्हारे ही अंदाज में जवाब दूंगी. फिर तुम्हें अहसास होगा कि औरत का दर्द क्या होता है.’’

कालिका शराब के नशे में था. उसे गुस्सा आने लगा. उस ने ताव से पूछा, ‘‘क्या करोगी तुम, जरा मैं भी तो जानूं?’’

योगिता भी गुस्से में थी. बिना सोचेसमझे उस ने कालिका को चिढ़ाने के लिए वहां मौजूद गौरव शर्मा के पास जा कर पहले आरती की थाली से उस की आरती उतारी, फिर उस के पैर छू लिए. यह देख कर कालिका सिंह सन्न रह गया.

वह गुस्से में बोला, ‘‘योगिता, तुम ने अपना फैसला सुनाया नहीं, बल्कि कर के दिखा भी दिया. अब मेरा फैसला भी सुन लो. आज से तुम मेरी पत्नी नहीं रही. मेरे लिए तुम मर चुकी हो. मैं आज से तुम्हारा छुआ खाना तक नहीं खाऊंगा.’’

अपनी बात कह कर कालिका सिंह अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के सो गया. योगिता ने सोचा कि कालिका ने यह बात नशे में कही है, सुबह तक सब भूल जाएगा.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सुबह भी कालिका का रात वाला गुस्सा बना रहा. वह बिना खाना खाए ही घर से निकल गया. उस के बाद योगिता ने भी खाना नहीं बनाया. उस के दोनों बेटों ने बे्रड खा कर दिन गुजारा. 23 अक्टूबर की सुबह भी पतिपत्नी के बीच की लड़ाई शांत नहीं हुई. गुस्से में कालिका सिंह रायबरेली से दूर डलमऊ घाट पर गया. यहां लोग अपने परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए आते हैं.

उस ने क्रियाकर्म कराने वाले पंडे को बुला कर कहा, ‘‘पंडित जी, मेरी पत्नी मर गई है, मैं उस का पिंडदान करना चाहता हूं.’’

पंडे ने पूछा, ‘‘पिंडदान का सामान आप लाए हैं या मुझे मंगाना पड़ेगा.’’

‘‘मैं कोई सामान नहीं लाया हूं. आप ही मंगा लें और विधिवत पिंडदान करें. मैं सारा खर्चा दूंगा.’’ कालिका ने कहा.

पंडे ने आधे घंटे में सारे सामान का इंतजाम कर दिया. इस के बाद कालिका सिंह ने अपनी पत्नी योगिता का विधिवत पिंडदान किया और सिर के बाल भी मुंडवा लिए. शाम को वह घर लौटा तो उसे देख कर योगिता सन्न रह गई. उस ने खाने के लिए पूछा तो कालिका सिंह ने पिंडदान वाली बात बता कर दोटूक कह दिया कि वह उस के लिए मर चुकी है. इस से योगिता को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसे चिंता इस बात की थी कि यह बात जब मोहल्ले वालों और नातेरिश्तेदारों को पता चलेगी तो लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे.

रात में कालिका के सो जाने के बाद योगिता ने गौरव को फोन कर के पिंडदान वाली पूरी बात बताई. साथ ही यह भी कहा, ‘‘अब मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. कल जब यह बात सब को पता चलेगी तो मेरी बड़ी बदनामी होगी.’’

गौरव ने योगिता को समझाने की कोशिश की. दरअसल उसे लगने लगा था कि अब अगर योगिता ने कुछ किया तो मामला गड़बड़ हो सकता है. इसलिए वह इस मामले से दूर रहना चाहता था. योगिता भी इस बात को समझ रही थी.

गौरव को अनमनी बातें करते देख वह धमकी देते हुए बोली, ‘‘गौरव, अगर तुम ने मेरी मदद नहीं की तो मैं फांसी लगा कर आत्महत्या कर लूंगी और सुसाइड में तुम्हारा नाम लिख जाऊंगी.’’

योगिता की इस धमकी से गौरव परेशान हो गया. वह बोला, ‘‘तुम ऐसा कुछ मत करो. तुम जो कहोगी, मैं करने को तैयार हूं.’’

योगिता किसी भी कीमत पर अपने परिचितों और रिश्तेदारों को यह पता नहीं चलने देना चाहती थी कि उस के रहते कालिका ने उस का पिंडदान कर दिया है. इस के लिए उस ने मन ही मन योजना बना ली कि उसे क्या करना है.

Top 11 Best Family Crime Stories in Hindi : बेस्ट फैमिली क्राइम स्टोरीज हिंदी में

Top 11 Best Family Crime Stories in Hindi : इन फैमिली क्राइम स्टोरीज को पढ़कर आप जान पाएंगे कि आज कल के बदलते परिवेश में कैसे परिवार के सदस्य भी एक दूसरे के खून के प्यासे बनते जा रहे है. छोटी छोटी बातों के लिए अपनों की जान के दुश्मन बनते रिश्तों की सच्चाई जानने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां Top 11 Best Hindi Family Crime Stories 

1. रेशमा की हंसी ने बुलाई मौत

शोर सुन कर आसपास के घरों से लोग निकल आए. उन्होंने तभी देखा कि नन्हे अपनी पत्नी रेशमा के बाल पकड़ कर खींचता हुआ अपने घर में ले गया था. उधर नाजमा व अन्य लोगों ने देखा कि रसोई का शेड टूटा हुआ नीचे पड़ा है, वहां पर खून भी पड़ा था. इस के अलावा जिधर से नन्हे अपनी पत्नी रेशमा को घसीट कर ले गया था, वहां पर खून की बूंदें दिखाई दे रही थीं. इकट्ठा हुए लोग यह जानने के लिए नन्हे के घर पहुंच गए थे कि आखिर हुआ क्या है.

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2. जलन में जल गया पूरा परिवार

पुलिस ने किसी तरह दरवाजा खोला. दरवाजा खुलने पर जब सभी अंदर गए तो अंदर का दृश्य भयानक था. घर के अंदर एक कमरे में 5 लाशें पड़ी थीं, जिन में सुकांतो के बेटे, पत्नी, भतीजे की पत्नी और 2 बच्चियों की लाशें थीं. पर इन के शरीर पर किसी भी तरह की चोट वगैरह का कोई निशान नहीं था.

दूसरे कमरे में अकेले सुकांत सरकार ऐसे थे, जिन की सांसें अभी चल रही थीं. पर वह बुरी तरह घायल थे. उन का पूरा शरीर खून से लथपथ था. उन के पास एक बड़ा सा चाकू पड़ा था. चाकू पर भी खून लगा था. साफ लग रहा था उसी चाकू से उन पर वार हुए थे.

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3. 17 साल बाद खुला मर्डर मिस्ट्री का राज

दरवाजा खोल कर जैसे ही जनार्दन नायर अंदर घुसे, चीखते हुए तुरंत बाहर आ गए. घर के अंदर उन की 50 साल की पत्नी रमादेवी की खून से सनी लाश पड़ी थी. पत्नी की लाश देख कर वह चीखनेचिल्लाने लगे. उन की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी इकट्ठा हो गए.

रमादेवी के मर्डर की बात सुन कर पड़ोसी भी हैरानपरेशान हो गए. दिनदहाड़े किसी के घर में घुस कर इस तरह हत्या कर देने वाली बात हैरान करने वाली तो थी ही, डराने वाली भी थी. सभी लोग सहम उठे थे. महिलाएं कुछ ज्यादा ही डरी हुई थीं. क्योंकि दिन में वही घर में अकेली रहती हैं.

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4. खुशी के माहौल में 4 हत्याएं

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वे दोनों भी कब सो गए, उन्हें नहीं पता चला. रात के 2 बज गए थे. अचानक घर में चीखपुकार मच गई. गांव वाले भी चीखने की आवाजें सुन कर मनाराम के घर की ओर दौड़ पड़े. घर से आ रही रोनेधोने और चीखने की आवाजों के अलावा ‘मैं मार दूंगा…सब को मार दूंगा’ की आवाज भी शामिल थी. गांव वाले कुछ समझ पाते, इस से पहले ही उन्होंने मनाराम को कुल्हाड़ी ले कर घर से निकलते देखा.

वह बाहर आया और वहीं लडख़ड़ाता हुआ धड़ाम से गिर पड़ा. उस के हाथ की कुल्हाड़ी छिटक कर दूर गिर गई. उस पर खून लगा हुआ था. जमीन पर गिरा हुआ मनाराम अब भी बड़बड़ा रहा था, ‘मार डालूंगा…सब को मार डालूंगा…मुझे भी मार दो!’

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5. मां के प्रेम का जब खुला राज

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घर पहुंच कर नेत्रपाल ने अनुज को गोद से उतार कर राधा की गोद में दे दिया तो एक बार फिर दोनों की अंगुलियां टकरा गईं. वही सनसनी फिर राधा की देह से गुजर गई. नेत्रपाल ने मुसकरा कर कहा, “अब चलता हूं भाभी.”

“अरे ऐसे कैसे जाओगे? तुम ने मेरी इतनी मदद की है, बदले में मेरा भी तो फर्ज बनता है. अंदर चलो, चाय पी कर जाना.” कहते हुए राधा ने घर का ताला खोला और नेत्रपाल का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.

भीतर आ कर उस ने बेटे को गोद से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के बाद उस ने साड़ी का पल्लू सिर से उतारा ही था कि झटके से उस का जूड़ा खुल गया. लंबे बाल कंधों पर लहराने लगे. नेत्रपाल को राधा की यह दिलकश अदा भा गई.

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6. जिन्दा दफन की आंगन की किलकारी

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इस के अलावा उस के मन में एक बात यह भी घूम रही थी कि यदि बच्ची नहीं मरी तो वह उस की वजह से पूरी जिंदगी परेशान रहेगा. लिहाजा उस ने बेटी को खत्म करने की सोची. इस बारे में उस ने अपने साले दिनेश से बात की तो उस ने भी जीजा की हां में हां मिलाते हुए 6 दिन की बच्ची को खत्म करने को कहा.

दोनों ने बच्ची को मारने का फैसला तो कर लिया लेकिन अपने हाथों से दोनों में से किसी की भी उस का गला दबाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. फिर उन्होंने तय किया कि बच्ची को जिंदा ही गड्ढे में दफना देंगे और जब सुनीता पूछेगी तो कह देंगे कि बच्ची की मौत हो गई थी और उसे दफना आए हैं.

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7. बेटी बनी गवाह : मां को मिली सजा – भाग 1

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कुछ ही देर में 15 साल की प्रियांशी गवाही देने अदालत में खड़ी हुई तो वकील अखिलेश भाटी ने उस से सवाल किया, “जिस दिन तुम्हारे पापा का मर्डर हुआ था,उस वक्त तुम क्या कर रही थी और तुम ने क्या देखा?”

“जी सर ,उस दिन मैं मम्मी के साथ ऊपर के कमरे में गई थी. उस समय मम्मी फोन पर किसी से बात कर रहीं थीं, तभी मैं ने नीचे उतर कर देखा तो 2 लोग मेरे पापा के कमरे से बाहर निकल रहे थे, उन में से एक प्रकाश अंकल भी थे. मैं ने पापा के कमरे में जा कर देखा तो पापा खून से लथपथ पड़े हुए थे, उन की गरदन पर किसी धारदार हथियार के निशान साफ दिख रहे थे. उसी समय मैं ने मम्मी को आवाज दे कर नीचे बुलाया था.”

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8. कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 1

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निष्ठा ने जब पिता के चीखने की आवाज सुनी तब वह पहली मंजिल पर थी. चीख की आवाज सुन कर निष्ठा ने सोचा कि शायद आज फिर पापा का किसी से झगड़ा हो गया है. वह जल्दीजल्दी सीढि़यों से उतर कर नीचे आई. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था उस ने जैसे ही दरवाजा खोला उस के पिता सामने गिरे पड़े थे और हाथ में चाकू लिए एक युवक वहां से भाग रहा था. कुछ आगे एक युवक लाल रंग की मोटरसाइकिल पर बैठा था. जिस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. कुछ लोग गली में मौजूद थे लेकिन उन्हें पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. युवक मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए.

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9. 50 बोटियों में बंटी झारखंड की रुबिका

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रूबिका पहाड़न का टुकड़ों में कटा हुआ शव मोमिन टोला स्थित एक पुराने और बंद पड़े मकान में मिला. उस की लाश को दरजनों टुकड़ों में काटा गया था. लाश के टुकड़ों को देख कर कोई भी हत्यारों की हैवानियत का अंदाजा सहज ही लगा सकता था.

रूबिका की बोटीबोटी करने वालों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं. उस के शव की पहचान न हो सके, इस के लिए आरोपियों ने उस की खाल तक उतार दी थी. शव के बरामद हुए 50 टुकड़ों में दाएं पैर के अंगूठे, कपड़े आदि से ही उस की पहचान हुई. शव के टुकड़े इलैक्ट्रिक कटर जैसे किसी औजार से किए गए जान पड़ते थे. रूबिका का सिर 2 हफ्ते बाद मोमिन टोला के निकट तालाब के पास से बरामद हुआ था.

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10. 3 महीने बाद खुला सिर कटी लाश का राज

सर्चिंग के दौरान हनुमान डोल मंदिर से करीब 50 मीटर दूर एक पुलिया के नीचे प्लेटफार्म से सटी रेत पर चादर से लिपटा एक शव बीट गार्ड को दिखाई दिया. शव मिलने की सूचना जब तक उस ने थाना रानीपुर को दी, तब तक शाम हो चुकी थी. तीसरे दिन 29 दिसंबर, 2023 को जब रानीपुर पुलिस फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंची तो देखा कि शव के सिर्फ पैर दिख रहे थे. शव पत्थर और रेत में ढंका हुआ था. जब पुलिस टीम ने शव बाहर निकाला तो एक धड़ मिला, जिस के शरीर से सिर गायब था. कपड़ों के लिहाज से यह लाश किसी महिला की थी.

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11. तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि

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निशा खुद को अब बहुत ऊंची तांत्रिक समझने लगी थी. उस पर पैसा बरस रहा था, लेकिन घर में शौहर और बच्चों से वह दूर होती आ रही थी. उन्हीं दिनों उस की जिंदगी में सऊद फैजी ने कदम रखा. वह पार्षद रह चुका था, उसे 36 साल की निशा की देह में ऐसी कशिश दिखाई दी कि वह उस के घर के चक्कर काटने लगा.

रोजरोज आने से निशा का झुकाव उस की ओर होने लगा. वह सऊद फैजी के प्रेम में उलझ गई. सऊद फैजी जवान था और जोशीला भी था. एक दिन एकांत में उस ने निशा को बाहुपाश में जकड़ लिया. निशा ने कोई विरोध नहीं किया, उस ने अपने आप को सऊद फैजी की बांहों में सौंप दिया.

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