
गायत्री ने उसी दिन फोन कर के अनिल को बहू की करतूतें बताते हुए तुरंत घर आने को कहा. अनिल छुट्टी ले कर अगले ही दिन घर आ गया. पत्नी की बेवफाई पर उस का खून खौल उठा था. उस ने पुष्पा की खूब पिटाई की, साथ ही उस ने यह भी कह दिया कि अब वह उसे दिल्ली ले जाएगा. उस ने पुष्पा से दिल्ली चलने की तैयारी करने के लिए कह दिया.
लेकिन पुष्पा ने दिल्ली जाने से साफ मना कर दिया. इस की शिकायत उस ने पत्नी के मायके वालों से की. उन्होंने भी पुष्पा को समझाया. अगले दिन सुबह अनिल जब घर से निकला तो उसे रामखिलौने दिख गया. गुस्से में अनिल उस के पास पहुंचा और बोला, ‘‘रामखिलौने तुम होश में आ जाओ, वरना इस का अंजाम बहुत बुरा होगा.’’
रामखिलौने ने कुछ नहीं कहा. वह वहां से चला गया.
अनिल केवल 2 दिनों की छुट्टी ले कर आया था. पत्नी ने जब उस के साथ जाने से मना कर दिया तो मन मसोस कर वह अकेला ही दिल्ली चला गया. दिल्ली जाने के बाद उस का मन अपने काम में नहीं लगा. उस का ध्यान पत्नी पर ही लगा रहता था. मन चिंता से भरा हुआ था. आखिर एक दिन वह नौकरी छोड़ कर गांव चला आया. पुष्पा को जब पता चला कि उस का पति अब घर में ही रहेगा तो उस के पांव के नीचे से जमीन खिसक गई.
अनिल घर तो आ गया, पर मन में शक बना रहा. उस ने पुष्पा पर नजर रखनी शुरू कर दी. साथ ही उस ने उस पर कई तरह की बंदिशें भी लगा दीं. इस से उन के दांपत्य रिश्ते में खटास पैदा हो गई. पति की मौजूदगी और बंदिशों की वजह से उस की अपने प्रेमी रामखिलौने से मुलाकात नहीं हो पा रही थी, इसलिए पति उसे दुश्मन लगने लगा. वह उस से छुटकारा पाने के उपाय खोजने लगी.
एक दिन उस ने रामखिलौने से कह भी दिया, ‘‘या तो तुम मुझे यहां से कहीं दूर ले चलो या फिर मेरा खयाल दिल से निकाल दो.’’
‘‘देखो पुष्पा, मैं तुम्हें भगा कर नहीं ले जा सकता, क्योंकि बाद में पुलिस मुझे पकड़ कर जेल में डाल देगी और मैं तुम से दूर नहीं रहना चाहता. मुझे लगता है अनिल को ही रास्ते से हटा देना चाहिए.’’ रामखिलौने ने कहा.
‘‘तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो. यही ठीक रहेगा.’’ इस तरह पुष्पा ने पति को ठिकाने लगाने की अनुमति दे दी. इस के बाद पुष्पा और रामखिलौने ने अनिल को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.
21 जुलाई, 2014 को अनिल थकामांदा खेत से घर लौटा और खाना खा कर अपने कमरे में चला गया. आने वाली मुसीबत से बेखबर घर के अन्य लोग भी सो गए. सुबह पुष्पा उठी और चूल्हे पर चाय चढ़ा दी. गायत्री ने पुष्पा से कहा कि वह अनिल को जगा दे, जिस से वह भी नाश्ता कर ले.
तभी पुष्पा बोली, ‘‘अम्मां मैं परांठे बना रही हूं, तुम्हीं उन्हें उठा दो.’’
गायत्री अनिल को जगाने उस के कमरे में गई तो वह कमरे में नहीं मिला. वहीं से उस ने कहा, ‘‘बहू, लगता है अनिल बाहर निकल गया है.’’
‘‘नहीं अम्मा, बाहर का दरवाजा तो बंद है. अगर वह बाहर जाते तो दरवाजा खुला होता. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह छत पर चले गए हों.’’ पुष्पा ने कहा.
बहू के कहने पर गायत्री छत पर गई. छत पर पहुंचते ही वह चीखी तो रामनिवास ने पूछा, ‘‘क्या हुआ गायत्री?’’
‘‘हम लुट गए, बर्बाद हो गए.’’ गायत्री रोते हुए बोली.
पत्नी के इस तरह रोने से परेशान हो कर रामनिवास भी छत पर पहुंच गया. ऊपर का नजारा देख कर वह भी सन्न रह गया. छत पर अनिल की लाश पड़ी थी. बेटे की लाश देख कर वह भी चीखने लगा. इस के बाद तो तमाम लोग वहां जमा हो गए. उसी दौरान किसी ने थाना नया गांव को फोन द्वारा इस बात की सूचना दे दी.
थोड़ी देर में थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जब लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आए. सिर्फ गले पर निशान मिले, जिस से अनुमान लगाया कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई है. अनिल के घर वालों से पूछताछ करने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. मुखराम ने पुष्पा और रामखिलौने पर हत्या का आरोप लगाते हुए एक तहरीर थानाप्रभारी को दी. थानाप्रभारी ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.
थानाप्रभारी को ध्यान आया कि जब वह अनिल की हत्या की सूचना पर उस के घर गए थे तो उस समय उस की पत्नी पुष्पा रोते हुए कह रही थी कि उस के पति को बदमाशों ने मारा है, जबकि उस के मांबाप का कहना था कि पुष्पा और रामखिलौने के बीच नाजायज संबंध थे. इसलिए अनिल की हत्या उन्हीं दोनों ने की है.
थानाप्रभारी ने पुष्पा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. सख्ती से पूछताछ करने पर पुष्पा ने कुबूल कर लिया कि उसी ने प्रेमी रामखिलौने के साथ मिल कर कमरे में पति की हत्या गला दबा कर की थी और बाद में लाश छत पर डाल दी थी.
इस के बाद पुलिस ने रामखिलौने के घर दबिश दी, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. पूछताछ के बाद पुलिस ने पुष्पा को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया. 2 दिनों बाद अनिल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. उस में बताया गया था कि अनिल की मौत जहर खाने से हुई थी.
इस से पता चला कि पुष्पा ने पति को जहर खिलाने वाली बात छिपा ली थी. उसी दौरान रामखिलौने ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया था. मामले की तफ्तीश सबइंसपेक्टर विनोद कुमार कर रहे थे.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
अब रामखिलौने का उस के यहां आनाजाना उस समय होने लगा, जब रामनिवास और गायत्री खेतों पर होते. एक दिन मौका पा कर रामखिलौने घर आया तो बातोंबातों में उस ने पुष्पा की खूबसूरती की तारीफ शुरू कर दी. पुष्पा हैरानी से उस की ओर देखने लगी. इस से पहले कि वह उस से कुछ कह पाती, उस ने लपक कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं और अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’
‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ पुष्पा अपना हाथ छुड़ा कर बोली, ‘‘जानते हो मैं तुम्हारे बड़े भाई की पत्नी हूं.’’
पुष्पा कहने को तो यह बात कह गई, लेकिन उसे रामखिलौने का स्पर्श अच्छा लगा था.
रामखिलौने ने कहा, ‘‘भाभी, मैं वादा करता हूं कि हमेशा तुम्हारा साथ दूंगा और जीवन भर तुम्हें प्यार करता रहूंगा.’’
पुष्पा रामखिलौने की बात का जवाब दिए बगैर दूसरे कमरे में चली गई. उस के तेवर देख कर रामखिलौने डर गया और वहां से चला गया. उस के जाने के बाद पुष्पा परेशान हो कर चारपाई पर बैठ गई और अभीअभी जो हुआ था, उसी के बारे में देर तक सोचती रही. आखिर उस के बागी मन ने तय कर लिया कि वह रामखिलौने की मोहब्बत को कुबूल कर लेगी.
अगले कुछ दिनों तक रामखिलौने डर की वजह से पुष्पा के यहां नहीं आया. पुष्पा काफी परेशान थी. एक दिन उस ने गली में रामखिलौने को खड़ा देखा तो उसे चाहत भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘बस यही है तुम्हारी मोहब्बत. उस दिन तो बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे.’’
पुष्पा की बातें सुन कर रामखिलौने खुश हो गया. वह समझ गया कि पुष्पा उस से नाराज नहीं है. उस ने कहा, ‘‘भाभी, मैं तो आने ही वाला था.’’
‘‘सब जानती हूं मैं.’’ पुष्पा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज आधी रात को आ जाना, मैं इंतजार करूंगी.’’
रामखिलौने का दिल बल्लियों उछलने लगा. वह अपने घर चला गया और रात होने का इंतजार करने लगा. अब उस के लिए एकएक पल बहुत लंबा महसूस हो रहा था. वह चाह रहा था कि जल्द से जल्द रात हो, जिस से वह पुष्पा से मिल सके. सूरज छिपने के बाद जैसेजैसे अंधेरा गहरा रहा था, रामखिलौने के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं.
दूसरी ओर पुष्पा को पूरा विश्वास था कि रामखिलौने रात को जरूर आएगा. इसलिए उस ने फटाफट घर का काम निपटाया और बेटे को सुला दिया. सासससुर भी खापी कर सो गए. वह बेसब्री से रामखिलौने का इंतजार करने लगी. आधी रात के करीब उस के दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई. पुष्पा का दिल धड़कने लगा.
दबे पांव पुष्पा दरवाजे पर पहुंची. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने रामखिलौने को देख कर खुश हो गई. इशारे से उस ने उसे अंदर बुला लिया और अपने कमरे में ले गई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. कुछ ही देर में उन के रिश्ते तारतार हो गए.
इस के बाद रामखिलौने खुश हो कर चुपचाप वहां से चला गया. दिल्ली में बैठा अनिल अपनी नौकरी में व्यस्त था. उस की गृहस्थी में उस का चचेरा भाई सेंध लगा सकता है, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था. वह तो इसी कोशिश में लगा था कि किसी तरह वह दिल्ली में अपना घर बना ले.
अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है, जो कोई एक बार इस राह पर कदम बढ़ाता है, वह गर्त में धंसता चला जाता है. अब तो पुष्पा को जब भी मौका मिलता, वह रामखिलौने को अपने घर बुला लेती. चूंकि उन का यह खेल घर में होता था, इसलिए काफी समय उन के संबंधों की किसी को भनक नहीं लगी.
इस बीच पुष्पा के तेवर काफी बदल गए थे. गायत्री समझ नहीं पा रही थी कि वह बहू से कुछ काम करने को कहती है तो वह तबीयत खराब होने की बात कह कर टाल क्यों देती है, जबकि जब कभी रामखिलौने आता है, तुरंत उठ कर चाय बनाने चली जाती है.
गायत्री ने पहले तो इस बात पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब एक पड़ोसन ने रामखिलौने के उन के घर रोजाना आने की बात बताई तो वह चौंकी. गायत्री सोचने लगी कि कहीं उस की बहू और रामखिलौने के बीच कोई चक्कर तो नहीं है. यह शक गायत्री के दिमाग में बैठ गया.
अगले दिन वह पति के साथ खेत पर नहीं गई. दोपहर में रामखिलौने घर आया तो ताई को देख कर सकपका गया. उस ने कहा, ‘‘रामिखलौने, तू दिनभर इधरउधर घूमता रहता है, तेरे पास कोई काम नहीं क्या है?’’
रामखिलौने हंसने लगा, ‘‘तुम ने यह कैसे सोच लिया ताई कि मैं कोई काम नहीं करूंगा? देखना एक दिन मैं ऐसा काम करूंगा कि तुम हैरान रह जाओगी.’’
‘‘ठीक है, जब करना तब करना, लेकिन दिन भर मेरे घर के फेरे लगाने की जरूरत नहीं है.’’
सास की यह बात पुष्पा ने भी सुन ली थी. वह डर गई कि कहीं सास को उन के संबंधों पर शक तो नहीं हो गया, जो वह रामखिलौने से इस तरह कह रही है. ताई की बात सुन कर रामखिलौने का भी चेहरा उतर गया. वह उसी समय बिना कुछ कहे वहां से चला गया. रामखिलौने ने अब पुष्पा के यहां जाना बंद कर दिया. प्रेमी से मुलाकात न होने की वजह से पुष्पा बेचैन रहने लगी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस से कैसे मिले.
एक दिन पुष्पा की तबीयत खराब हो गई. वह गांव के डाक्टर से दवा लेने गई. घर लौटते समय उसे रामखिलौने मिल गया. उस ने रामखिलौने से बेचैनी प्रकट की तो उस ने कहा, ‘‘तुम चिंता न करो भाभी. मैं तुम्हें एक मोबाइल दे दूंगा. तुम जब भी बुलाओगी, मैं आ जाऊंगा.’’
‘‘लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? मैं जानती हूं कि जब अनिल आएगा तो इस बात को ले कर घर में तूफान खड़ा हो जाएगा. इसलिए बेहतर होगा कि तुम सतर्क रहो.’’
2 दिनों बाद रामखिलौने ने एक मोबाइल फोन खरीद कर पुष्पा को दे दिया. अब दोनों मोबाइल से रात को अपने मन की बातें करने लगे. चूंकि अब पुष्पा की सास सतर्क हो चुकी थी, इसलिए वह बहू की गतिविधियों पर नजर रखने लगी थी. एक रात उस ने बहू और रामखिलौने को छत पर देख लिया. गायत्री को देख कर रामखिलौने छत से कूद कर भाग गया. इस के बाद गायत्री ने पुष्पा को बहुत फटकारा.
उत्तर प्रदेश के जिला एटा के थाना नया गांव के तहत आता है एक गांव असदपुर, जहां रामनिवास लोधी अपने 3 बेटों, मुखराम, अनिल और भूप सिंह के साथ रहते थे. रामनिवास की खेती की कुछ जमीन थी, उसी से वह परिवार का भरणपोषण करते थे. मुखराम जब जवान और समझदार हुआ तो वह घर की आमदनी बढ़ाने के उपाय खोजने लगा.
उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में नौकरी करते थे, वे काफी खुशहाल थे. दिल्ली जाने के बारे में उस ने भी पिता से बात की और अपने एक दोस्त के साथ दिल्ली चला गया. कुछ दिन वह दोस्त के यहां रहा. उसी के सहयोग से उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई. बाद में वह दिल्ली के नंदनगरी इलाके में किराए का कमरा ले कर अकेला रहने लगा.
नौकरी करने के बाद मुखराम को फैक्ट्री से जो तनख्वाह मिलती थी, उस में से वह अपने खर्चे के पैसे रख कर बाकी पैसे घर भेज देता था. इस से घर के आर्थिक हालात सुधरने लगे. पैसा आया तो मुखराम बनठन कर रहने लगा. उस की शादी के लिए रिश्ते भी आने लगे. घर वालों को एटा की ही रजनी पसंद आ गई. बातचीत के बाद मुखराम की रजनी से शादी हो गई. शादी के कुछ दिनों बाद मुखराम रजनी को दिल्ली ले आया. इस तरह उन की जिंदगी हंसीखुशी से कटने लगी.
भाई को देख कर अनिल ने भी गांव की संकुचित सीमा से निकल कर दिल्ली के खुले आकाश में सांस लेने का फैसला कर लिया. एक दिन वह भी बड़े भाई मुखराम के साथ दिल्ली चला गया. भाई ने उस की भी नौकरी लगवा दी.
दोनों भाई साथ रह रहे थे, इसलिए घर वाले उन की तरफ से बेफिक्र थे. अनिल को भी दिल्ली की जिंदगी रास आ गई थी. दोनों भाई 2-4 दिनों के लिए छुट्टियों पर ही घर जाते थे. घर पर उन का छोटा भाई भूप सिंह ही रह गया था. वह पिता के साथ खेती करता था. अनिल भी कमाने लगा तो रामनिवास उस के लिए भी लड़की तलाशने लगा.
एक रिश्तेदार के जरिए फर्रुखाबाद जिले के गांव रहीसेपुर के रहने वाले सुरेश की बेटी पुष्पा का रिश्ता अनिल के लिए आया तो रामनिवास ने उस की भी शादी पुष्पा से कर दी. यह करीब 5 साल पहले की बात है. कुछ दिनों बाद पुष्पा भी अनिल के साथ दिल्ली आ गई. दोनों भाई एक ही कमरे में रहते थे. पुष्पा को यह अच्छा नहीं लगता था.
अनिल ने पुष्पा को समझाया कि महानगर की जिंदगी ऐसी ही होती है. आदमी को हालात से समझौता करना पड़ता है. पुष्पा का दिल्ली में मन लग जाए, इस के लिए अनिल ने पुष्पा को दिल्ली में खूब घुमायाफिराया. पुष्पा के लिए यह बिलकुल नया अनुभव था. उसे अच्छा तो लगा, लेकिन किराए के छोटे से कमरे में उस का मन नहीं लगा तो अनिल उसे गांव छोड़ आया.
उस बीच अनिल का छोटा भाई भूप सिंह भी अपने भाइयों के पास दिल्ली आ गया. अनिल दिल्ली में था और पुष्पा गांव में सासससुर के पास. नईनवेली दुलहन को पति के साथ रहने के बजाय तनहाई में रहना पड़ रहा था. उस की उमंगे दम तोड़ती नजर आ रही थीं. केवल मोबाइल के जरिए ही उस की पति से बात हो पाती थी.
पुष्पा अपने मन की बात पति से बताती तो वह 1-2 दिन की छुट्टी ले कर घर आ जाता. पुष्पा मन की पूरी बात भी नहीं कह पाती थी कि अनिल वापस जाने की बात करने लगता था, क्योंकि उसे अपनी ड्यूटी भी तो देखनी थी. हर बार पुष्पा उदास मन से उसे विदा करती. एक बार पुष्पा की उदासी देख कर अनिल ने अपने मांबाप से कहा कि वह पुष्पा को दिल्ली ले जाना चाहता है. मांबाप ने इजाजत दे दी तो वह उसे एक बार फिर दिल्ली ले गया.
पुष्पा अनिल के साथ उसी एक कमरे के घर में आ गई. वह मन लगाने की कोशिश करने लगी. अनिल ने सोचा कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा, लेकिन उसी बीच पुष्पा गर्भवती हो गई. पुष्पा ने यह खुशखबरी सास गायत्री को दी तो गायत्री को लगा कि ऐसी हालत में बहू को गांव आ जाना चाहिए, क्योंकि ऐसे में काफी देखभाल की जरूरत होती है. इसलिए गायत्री ने अनिल से कह दिया कि छुट्टी मिलने पर वह बहू को गांव छोड़ जाए.
कुछ दिनों बाद पुष्पा गांव आ गई. अब सास उस की देखभाल करने लगी. समय आने पर पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद घर में खुशी छा गई. अनिल भी फूला नहीं समा रहा था. बच्चे का नाम आयुष रखा गया.
घर में पोते के आ जाने से रामनिवास और गायत्री के दिन उस के साथ अच्छे से कटने लगे. उधर अनिल का भी मन करता कि बेटा उस की नजरों के सामने रहे, ताकि वह उसे प्यार कर सके. लेकिन ऐसा संभव नहीं था. वह महीने-दो महीने में घर आता और 1-2 दिन रह कर दिल्ली चला जाता.
रामनिवास का छोटा भाई वेदराम उस के घर से कुछ दूरी पर अपने परिवार के साथ रहता था. उस का बेटा रामखिलौने अविवाहित था. रामनिवास के तीनों बेटे दिल्ली में थे, इसलिए रामखिलौने जबतब ताऊ के घर आ जाता और घर के छोटेमोटे काम कर देता.
घर में किसी के न होने से पुष्पा भी रामखिलौने से ही अपनी जरूरत का सामान मंगवाती थी. वह जब भी उस के घर आता, पुष्पा उसे चायनाश्ता करा देती थी. पुष्पा की नजदीकी रामखिलौने की जवान उमंगों को हवा दे रही थी, इसलिए उस का नजरिया भाभी के प्रति बदल रहा था. नजरिया बदला तो उस का वहां आनाजाना बढ़ गया.
एक दिन रामखिलौने ताऊ के घर आया तो पुष्पा अकेली थी. रामखिलौने को लगा कि भाभी से अपने दिल की बात कहने का यह अच्छा मौका है. पुष्पा उस के लिए चाय बना कर लाई तो चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘भाभी भैया कितना निर्दयी है कि उसे न तो तुम्हारी परवाह है और न ही छोटे से बच्चे की. बीवीबच्चे को यहां छोड़ कर वह दिल्ली में आराम से बैठा है.’’
इस के बाद रामखिलौने कुछ देर पुष्पा की तारीफ करता रहा. वह तो चला गया, पर उस की बातों ने पुष्पा के मन में चिंगारी लगा दी, जो धीरेधीरे सुलगने लगी थी. अब उसे अपनी जेठानी से जलन होने लगी, जो दिल्ली में अपने पति के पास रह रही थी. तनहाई के उन उदास दिनों में उसे लगने लगा कि रामखिलौने ही एक ऐसा आदमी है, जो उस के दर्द को समझता है.
एक दिन रामखिलौने आयुष के लिए कपड़े ले आया. पुष्पा के मना करने के बाद भी वह जबरदस्ती उसे थमा गया. अब वह आयुष के बहाने पुष्पा के नजदीक आने कोशिश करने लगा था. उस के जाने के बाद पुष्पा देर तक उस के बारे में सोचती रही. उसे लगा कि रामखिलौने अच्छा इंसान है, जो उस के बारे में चिंतित रहता है. जबकि पति को उस की जरा भी परवाह नहीं है. धीरेधीरे उस का झुकाव रामखिलौने की तरफ होने लगा.
उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की एक अदालत में 23 मार्च, 2023 को काफी गहमागहमी थी. उस रोज एक बहुचर्चित मामले की सुनवाई होने वाली थी. केस आगरा से प्रकाशित होने वाले अखबार ‘स्वराज्य टाइम्स’के संपादक विजय शर्मा की पत्नी नीलम शर्मा की हत्या और उन के घर में लूटपाट का था. विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद के जरिए उस बहुचर्चित केस का फैसला सुनाया जाना था.
दोनों आरोपियों को न्यायालय में कड़ी सुरक्षा के बीच लाया जा चुका था. पीडित पक्ष के लोग पहले ही आ चुके थे. कोर्टरूम के बाहर बड़ी तादात में मीडिया की निगाहें भी उन पर टिकी हुई थीं. न्यायाधीश मोहम्मद राशिद कोर्टरूम में अपनी कुरसी पर बैठ चुके थे.
अखबार के संपादक के घर हुई वारदात
जिस मामले की सुनवाई होनी थी, वह वारदात दरअसल 9 साल पुरानी 20 फरवरी, 2014 की थी. उस रोज गंगे गौरीबाग, बल्केश्वर क्षेत्र के रहने वाले ‘स्वराज्य टाइम्स’ के संपादक विजय शर्मा अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में शामिल होने के लिए फिरोजाबाद गए हुए थे. अपने साथ बेटी निवेदिता और बेटे अंजेश को भी ले गए थे.
घर पर उन की 48 वर्षीया पत्नी नीलम शर्मा और वृद्ध पिता आनंद शर्मा रह गए थे. शर्मा को अपने बच्चों समेत उसी रोज आधी रात तक वापस लौट आना था. तय कार्यक्रम के अनुसार शर्मा बच्चों समेत लौट आए. घर का दरवाजा खटखटाते ही वह अपनेआप खुल गया. अंदर दाखिल हुए तो भीतर का दृश्य देख कर सन्न रह गए. सामने जो दिखा, उसे देख उन के होश उड़ गए. घर का सामान जहांतहां बिखरा पड़ा था. पत्नी नीलम के कमरे का दरवाजा भी खुला था. कमरे की लाइट जल रही थी.
शर्मा और बच्चे जैसे ही दरवाजे पर पहुंचे, बेटी निवेदिता और बेटे की चीख निकल गई. शर्मा कमरे घुसे. वहां पालतू जरमन शैफर्ड डौग ‘टफी’ भी खून से लथपथ पड़ा था. वहीं नीलम भी पास में ही मृत पड़ी थीं. उन के शरीर से बहुत सारा खून निकल कर पूरे फर्श पर फैल चुका था.
मां की लाश देख कर दोनों भाईबहन रोने लगे. शर्मा तो जड़वत बन गए थे. वे समझ नहीं पा रहे कि यह सब कैसे हो गया? ऐसा किस ने किया? पिता आनंद शर्मा का ख्याल आते ही उन के कमरे की ओर गए. उन के कमरे की बाहर से कुंडी लगी थी. कुंडी खोली तो भीतर अंधेरा था. संभवत: वह सो रहे थे. आनंद शर्मा बेसुध सोए हुए थे. सांस चलने की आवाज आ रही थी.
दोबारा अपने कमरे में आ कर ध्यान से देखा तो पाया कि पत्नी की धारदार हथियार से हत्या की गई थी. कुत्ते पर भी कई हमले की जाने का निशान था. अलमारी की तिजोरी के खुले होने पर गहने, नकदी आदि लूट के भी सबूत मिले. कमरे से बाहर पालतू तोते ‘हीरा’का पिंजरा शाल से ढंका हुआ था. बच्चों के द्वारा शाल हटाते ही तोता जोरजोर से पंख फडफ़ड़ाता हुआ चीखने लगा.
वारदातके मिटा दिए थे सबूत
शर्मा परिवार ने इधरउधर नजर दौड़ाई. उन्होंने पाया कि वारदात के सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की गई थी. दीवारों, फर्श आदि पर खून के दागधब्बे मिटाए जाने के निशान दिख रहे थे. फर्श की सफाई की गई थी. विजय शर्मा के घर से बच्चों के रोने और शोरशराबे की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी आ गए थे. वे भी घर का दृश्य देख कर दंग रह गए.
शर्मा ने इस बारे में पुलिस को सूचित कर दिया. संपादक की पत्नी के मर्डर की सूचना पा कर कुछ मिनटों में ही थाना न्यू आगरा से पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. शर्मा ने उन्हें अज्ञात बदमाशों द्वारा पत्नी और पालतू कुत्ते की हत्या के साथसाथ ज्वैलरी, नकदी, घड़ी व अन्य सामान लूट की आशंका जताई.
इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम ने गहन जांच की, लेकिन फिंगरप्रिंट्स मिटाए जाने और दूसरे साक्ष्य खत्म किए जाने के चलते वारदात की तह तक जाने के सबूत नहीं मिले. हालांकि फोरैंसिक टीम को कुछ सबूत जमा करने में सफलता मिल गई थी
पुलिस के सामने हत्या और लूट की जांच एक बड़ी चुनौती थी. वे उलझन में पड़ गए थे कि हमलावर कितने लोग होंगे? घर में कैसे घुसे होंगे? इस के पीछे लूटपाट के अलावा और क्या कारण हो सकता है? इस पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभव है नीलम या उस वक्त घर में मौजूद परिवार के दूसरे किसी ने सोने से पहले दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया होगा. यह भी आशंका जताई गई कि पूरी वारदात को अंजाम देने वाला कोई परिचित भी हो सकता है.
पुलिस जांच टीम पालूत कुत्ते को धारदार हथियार से बेरहमी से मार दिए जाने को ले कर हैरान थी. नीलम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी हत्या संबंधी कुछ जानकारियां मिल गई थीं. कुत्ते के शव का पोस्टमार्टम करवा कर उस की रिपोर्ट जुटा ली गई थी. पड़ोसियों ने कुत्ते के बारबार भौंकने की आवाजें सुनी थीं, लेकिन उन्होंने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. कारण पालतु कुत्ता बीचबीच में अकसर भौंकता रहता था. उन्होंने पुलिस को घटना के बारे में कुछ भी बताने से इनकार कर दिया.
पुलिस को नहीं मिला सुराग
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार नीलम के शरीर पर धारदार हथियार से 14 और पालतू कुत्ते ‘टफी’ पर 9 वार किए गए थे. गहरी चोटें और अत्यधिक खून बहने से दोनों की मौत हो गई थी. इस संबंध में थाना न्यू आगरा में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ लूट व हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.
नीलम शर्मा मर्डर केस के सबूत जुटाने और सुराग के लिए जांच टीम ने विजय शर्मा के घर को 3 दिनों तक सील कर दिया था. उन से पूछताछ के बाद पुलिस को 3 लोगों पर संदेह हुआ था, लेकिन सबूत के बिना उन के खिलाफ काररवाई नहीं हो पाई थी. विजय शर्मा ने भी अपने बयान में उन्हीं 3 लोगों पर शक जताया था, जिन पर पुलिस को संदेह था.
संदिग्धों में से एक व्यक्ति का संबंध जमीन खरीद को ले कर था. इस सिलसिले में उस के साथ रुपए के लेनदेन में कुछ ज्यादा ही विवाद हो गया था. उस से पूछताछ करने पर उस ने हत्या से इनकार कर दिया, लेकिन पैसे को ले कर शर्मा के साथ विवाद की बात मान ली.
कई दिन बीत जाने के बावजूद मामले को सुलझाया नहीं जा सका था. मामला एक अखबार के संपादक से जुड़ा हुआ था. इस कारण मीडिया में जांच की देरी को ले कर कई सवाल उठने और पुलिस पर दबाव भी बनने लगा था. तत्कालीन एसएसपी शलभ माथुर ने पुलिस की टीमें बनाईं और जल्द से जल्द इस घटना का परदाफाश करने के निर्देश दिए.
तोता ‘हीरा’ने दिया हत्यारे का सुराग
शर्मा परिवार को अपने पालतु कुत्ते ‘टफी’ और तोते ‘हीरा’ से काफी प्यार था. दोनों ही परिवार के सभी सदस्यों को अच्छी तरह पहचानते थे. तोता तो घर वालों की बातों को समझता भी था. श्रीमती शर्मा खुद और उन के दोनों बच्चे तोते से बातें भी किया करते थे. वह तुरंत बोल देता था.
नीलम शर्मा तोते को अपने हाथों से छोटाछोटा निवाला दिया करती थीं. तोता पिंजरे से नुकीली चोंच बाहर निकाल कर निवाला मुंह में ले लेता था. तुरंत गटकने के बाद खुशी से पंख फडफ़ड़ा देता था. नीलम शर्मा भी खुशी से बोल देती थीं, ‘‘चलो हो गया! बस बस!!’’
यही हाल टफी का भी था. उसे भी परिवार के सदस्यों के हाथों से परोसा गया उस का खाना या उस के लिए बाजार से मंगवाया गया खाना ही पसंद था. घटना को हुए 3 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस अभियुक्तों को पकडऩा तो दूर, उन का सुराग तक नहीं लगा पाई थी.
उधर मालकिन की मौत के बाद तोता ‘हीरा’ सुस्त हो गया था. उस ने खानापीना छोड़ दिया था. कारण उस से बात करने वाला कोई नहीं था. हत्यारे ने तोते के पिंजरे पर शाल डाल दी थी. पुलिस ने जांच के सिलसिले इस बात पर भी गौर किया. मतलब निकाला गया कि बदमाशों ने टफी की तो हत्या कर दी, लेकिन तोते ने भी शोर मचाया होगा, इस कारण उस के पिंजरे को शाल से ढंक दिया होगा.
पूछताछ में शर्मा ने जब किसी परिचित पर संदेह जताया तब उन्हें एक पड़ोसी ने तोते से बात करने की सलाह दी. शायद उस से कोई सुराग मिल सके. शर्मा और उन के बच्चों को यह बात सही लगी और वे पिंजरे के पास जा कर तोते से बात करते हुए कहा, ‘‘हीरा, हीरा! घर में मालकिन का कत्ल हो गया और तुम देखते रहे! बताओ, क्यों नहीं बचाया?’’
यह सुनते ही तोता अपना पंख तेजी से फडफ़ड़ाने लगा. पिंजरे में ही इधरउधर, ऊपरनीचे करने लगा. इस हालत से उस की बेचैनी साफ झलक रही थी. उस के शांत होने पर बेटी प्यार से बोली, ‘‘मेरे मिट्ठू! मेरे हीरा!! मम्मी को किस ने मारा? आशु ने मारा?’’
यह नाम सुनते ही तोता ‘आशु आशु’ कह कर तेजी से गरदन हिला कर चीखने लगा. ऐसा कई बार हुआ. आशुतोष उर्फ आशु विजय शर्मा का भांजा था. इस की जानकारी विजय शर्मा ने पुलिस को दी. यह भी बताया कि पत्नी के अंतिम संस्कार के दिन आशु घर आया था. उस के बाद वह एक बार भी घर नहीं आया. शर्मा के कहने पर पुलिस ने भी घर आ कर इस बात को देखा कि तोता आशु के नाम पर अपना गरदन ऊपर नीचे हिला कर ‘आशुआशु’ चीखने लगता था.
तोते की गवाही पर आशु हुआ गिरफ्तार
पुलिस ने 25 फरवरी, 2014 को अर्जुन नगर, थाना शाहगंज निवासी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने इस घटना से इनकार किया, किंतु पूछताछ के दौरान उस के दाएं हाथ पर कई जख्म दिखाई दिए. इस पर पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए उन जख्मों के बारे में जानना चाहा. इस पर आशु सकपका गया. चोट के संबंध में पुलिस के सवालों के आगे आशु टिक नहीं पाया. उस ने इस अपराध को अंजाम देने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस के सामने जो कुछ बताया उस से काफी चौंकाने वाला सच सामने आया.
उस ने बताया कि इस घटना में उस का दोस्त रोनी मैसी भी शामिल था. उस की भी तुरंत गिरफ्तारी हो गई. दोनों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कटार (चाकू), हत्या के दौरान लूटे गए गहने, नकदी व घड़ी समेत वारदात में प्रयोग किया गया स्कूटर बरामद कर लिया गया. हत्या का खुलासा होने के बाद पुलिस ने माल बरामदगी के साथ पूरा क्राइम सीन रीक्रिएट कर साक्ष्य जुटाए. आशु ने बताया कि उस ने अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ मिल कर ही इस घटना को अंजाम दिया था. पहले वह मामामामी के घर में ही रहता था.
दरअसल, विजय शर्मा का बेटा अजेश मानसिक रूप से बीमार रहता था. तब उन्होंने अपने सगे भांजे आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु को बेटे की तरह पाला था, लेकिन उस के गलत आचरण की वजह से उन्होंने उसे अलग रहने को कह दिया. तब वह अपने दोस्त रोनी मैसी के साथ अर्जुन नगर में रहने लगा. लेकिन उस का अपने मामा के यहां आनाजाना लगा रहता था. उसे उन के घर की हर चीज की जानकारी थी.
आशु को मामा के पास घर में काफी गहने व नकदी मौजूद होने की जानकारी थी. उसे वारदात वाली रात को मामा के फिरोजाबाद में शादी में जाने और मामी के घर में अकेले होने की जानकारी थी. उसे रुपयों की जरूरत थी. इसी लूट के इरादे से उस ने अपनी योजना में दोस्त रोनी मैसी को भी शामिल कर लिया.
भांजा बना आस्तीन का सांप
योजना के अनुसार दोनों रात को स्कूटर से मामा के घर पहुंचे. आशु ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. आवाज पहचान कर मामी नीलम शर्मा ने दरवाजा खोल दिया. दोनों घर में घुस आए. पालतू कुत्ता टफी भौंका, लेकिन आशु ने उसे पुचकार कर शांत कर दिया. वह आशु को पहचानता था. रोनी मैसी नकाब में था. उस ने नीलम शर्मा को कमरे में ले जा कर उन्हें धमकाते हुए कहा कि यदि अपनी जान की खैर चाहती हो तो कैश और गहने निकाल कर दे दो.
पीछे से आशु भी कमरे में पहुंच गया. इस पर नीलम की नजर उस पर पड़ी. उन्होंने आशु से नाराज हो कर ऐसा करने से मना किया. इस पर आशु भी गुस्से में आ गया और साथ लाए तेज धार वाले कटार (चाकू) से नीलम शर्मा के ऊपर ताबड़तोड़ हमले कर दिए. वह तुरंत जमीन पर गिर पड़ीं.
नीलम पर हमला होते देख पालतू कुत्ता ‘टफी’ आशु पर झपट पड़ा. अपने बचाव में आशु ने कटार से कुत्ते पर भी तेजी से लगातार वार कर दिया. उसे भी वहीं मार डाला. यह देख कर पिंजरे में बंद तोते ने शोर मचाया तो उन्होंने पिंजरा वहां पड़े शाल से ढक दिया. मामी और कुत्ते की हत्या के बाद गहने, नकदी आदि लूट कर दोनों फरार हो गए. फरार होने से पहले दोनों ने सारे सबूत भी मिटा दिए.
आशु और रोनी के इन बयानों के आधार पर पुलिस ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 394, 302, 429, 411, 4/25 आम्र्स ऐक्ट के अंतर्गत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश कर दिया. कोर्ट में सुनवाई के बाद दोनों को जेल भेज दिया गया.
9 साल बाद मिला न्याय
इस सनसनीखेज केस की सुनवाई आगरा जिले के विशेष न्यायाधीश (दस्यु प्रभावी क्षेत्र) मोहम्मद राशिद की कोर्ट में 9 साल तक चली. पुलिस ने जो चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी, उस में जुटाए गए साक्ष्य ज्यादा ठोस नहीं थे, लेकिन अभियोजन टीम ने इन को मजबूत साक्ष्यों के रूप में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस मामले में फोरैंसिक टीम जांच के बाद किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी.
अभियोजन पक्ष के पास परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अलावा गवाह भी थे, लेकिन वह बहुत अधिक मजबूत नहीं लग रहे थे. ऐसे में अभियोजन पक्ष के सामने उन्हीं साक्ष्यों के आधार पर दोषियों का दोष सिद्ध कर उन्हें सजा दिलाने की कड़ी चुनौती थी.
अभियोजन टीम ने इस संबंध में आगरा के संयुक्त निदेशक अभियोजन महेंद्र कुमार दीक्षित से सलाहमशविरा किया. अभियोजन पक्ष, जिस में वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी जय नारायण गुप्ता, अभियोजन अधिकारी मनीष कुमार तथा एडीजीसी (क्राइम) आदर्श चौधरी शामिल थे, ने ठोस साक्ष्यों के अभाव के बावजूद अथक परिश्रम कर मौजूद साक्ष्यों की छोटी से छोटी कडिय़ों को जोड़ कर दमदार पैरवी की.
दोषियों को हुई उम्रकैद
9 साल तक केस का ट्रायल चला. बहस के दौरान अभियोजन टीम ने अपना पक्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया. इस केस में वादी संपादक विजय शर्मा की कोरोना के दौरान 2021 में मृत्यु हो चुकी थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 14 गवाह पेश किए गए. इन में वादी की बेटी निवेदिता तथा 3 अन्य गवाह लोकेश शर्मा, हरेश पचौरी व सुनील शर्मा के बयानों को आधार बनाया.
अभियोजन टीम ने बहस के दौरान कहा कि गवाह लोकेश शर्मा ने आरोपी आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त रोनी मैसी को स्कूटर पर विजय शर्मा के घर की ओर जाते देखा था. वहीं हरेश पचौरी ने उसी स्कूटर पर आशुतोष गोस्वामी व उस के दोस्त को निकलते देखा था. जबकि गवाह सुनील शर्मा ने घटना के बाद जब मृतका नीलम शर्मा की डैडबौडी पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए घर पर आई तो उस समय आरोपी आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु, जिसे वे पहले से जानते थे, को वहां देखा. आशुतोष के हाथ पर चोट के निशान थे, जो मृतका नीलम की हत्या के समय उन के पालतू डौगी द्वारा आशुतोष पर हमला किए जाने के दौरान आए थे.
बहस के दौरान अभियोजन अधिकारियों ने कहा कि उस के बाद आरोपी आशुतोष व उस का दोस्त रोनी मैसी फरार हो गए. बाद में पुलिस ने दोनों को उसी स्कूटर सहित गिरफ्तार कर लिया और उन की निशानदेही पर मृतका नीलम के घर से लूटे गए आभूषण, नकदी तथा हत्या में प्रयुक्त (आलाकत्ल) कटार को बरामद कर लिया गया.
घटना के समय नीलम शर्मा के वफादार पालतू जरमन शैफर्ड डौग टफी तथा तोते ने अपनी अपनी तरह से आरोपियों का प्रतिरोध किया था. इस दौरान आशुतोष के शरीर पर चोटें आई थीं. इस पर आशुतोष ने डौग टफी को मार दिया गया व तोते के शोर मचाने पर पिंजरे को शाल से ढंक दिया गया था. इस के बाद हत्या व लूट को अंजाम दिया. इन आरोपियों के अलावा यह अपराध अन्य किसी ने नहीं किया है. अभियुक्तों की ओर से एक गवाह पेश किया गया. जिस की गवाही न्यायालय ने नहीं मानी. वहीं बचाव पक्ष की दलीलों को भी नकार दिया गया.
कोर्ट में पेश किए गए गवाहों, सबूतों और दोनों ओर के अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद विशेष न्यायाधीश मोहम्मद राशिद ने दोनों आरोपियों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और रोनी मैसी को दोषी मानते हुए उम्रकैद व 72 हजार रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई.
दोनों आरोपियों को 4 मामलों में सजा सुनाई गई. आशुतोष और रोनी मैसी को धारा 394 भादंवि लूट के मामले में 10 वर्ष के कठिन कारावास और 10 हजार रुपए का जुरमाने की सजा मिली, वहीं धारा 302 आईपीसी में आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए जुरमाना था. धारा 429 आईपीसी में 4 वर्ष कारावास, 3 हजार रुपए जुरमाना, धारा 411 आईपीसी में लूटा गया माल बरामदगी में 3 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए का जुरमाना तथा आशुतोष को धारा 4/25 आयुध अधिनियम में 2 वर्ष के कारावास और 2 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई गई. कोर्ट ने कहा कि सभी सजाएं साथसाथ चलेंगी.
दोनों अभियुक्तों आशुतोष गोस्वामी उर्फ आशु और उस के दोस्त रोनी मैसी जमानत पर थे. वे दोनों कोर्ट में मौजूद थे. पुलिस ने फैसला सुनाए जाने के बाद दोनों को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.
एडीजीसी आदर्श चौधरी ने बताया कि इस केस में तोता ‘हीरा’ पुलिस की विवेचना का हिस्सा रहा था, लेकिन वह साक्ष्य का हिस्सा नहीं हो सका, क्योंकि कोर्ट में पक्षी की गवाही के लिए कोई कानूनन विधि नहीं है.
ऐसे अपराधी सोचते हैं कि वे मौके से साक्ष्य मिटा कर के अपना गला बचा लेंगे. सजा मिलने से ऐसे अपराधियों को खौफ होगा और न्याय की देवी पर लोगों का भरोसा कायम रहेगा.
अच्छा इंसान वही होता है, जो अपनी गलती स्वीकार कर के उसे सुधार ले, लेकिन चंचल ने उल्टा दांव चला. वह हैरान हो कर बोली, “यह आप क्या कह रही हैं मांजी? आप को इतनी घटिया बातें सोचते हुए शरम नहीं आई?”
“सोचना क्या, मैं सब देख रही हूं.” कमला गुस्से से बोलीं.
“सच देखतीं तो आप ऐसा नहीं बोलतीं. ऐसा कुछ भी नहीं है, जैसा आप सोच रही हैं. अपने दिमाग से इस तरह की बातों को निकाल दीजिए.”
“सच्चाई तो कड़वी लगती है बहू, लेकिन मैं ने तुम्हें समझाना अपना फर्ज समझा. मैं तुम्हारी हरकतों से अपने परिवार को बदनाम नहीं होने दूंगी.” बहू के शातिराना रुख से हैरान कमला ने चेतवानी भरे लहजे में कहा.
उन्होंने अगले दिन संजय को भी समझाया कि वह उन के यहां ज्यादा न आया करे. पतन की राहें बहुत रपटीली होती हैं. कुछ दिनों तो दोनों दूर रहे, लेकिन बहुत जल्द दोनों पुराने ढर्रे पर उतर आए. संजय रात के वक्त भी छिपतेछिपाते आने लगा. जो गलतियां करता है, वह कहीं न कहीं लापरवाह भी हो जाता है. एक रात कमला ने उन दोनों को पकड़ा तो उन्हें जम कर फटकारा.
संजय चुपचाप वहां से खिसक गया. कमला ने चंचल को खरीखोटी सुनाई, “मैं ने सोचा था चंचल कि तू मेरी बातों से संभल जाएगी, लेकिन अब पानी सिर से ऊपर चला गया है. अब मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे इस बारे में दीपक से बात करनी पड़ेगी.”
चंचल रंगेहाथों पकड़ी गई थी. उस के पास कहनेसुनने को कुछ नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात उस के पति तक पहुंचे. उस ने कमला से माफी मांग कर कभी कोई गलती न करने की कसम खाई. सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते. कमला ने भी वक्त के साथ बहू को माफ कर दिया. बेटे को दु:ख न पहुंचे, इसलिए वह इन बातों को दबा गईं. संजय का आनाजाना भी कम हो गया. अपने किए पर वह भी माफी मांग चुका था.
कुछ दिनों की सावधानी के बाद दोनों अब देहरादून जा कर एकदूसरे से मिलने लगे. चंचल फैशन डिजाइनिंग के कोर्स के लिए जाती थी. इसी बहाने वह संजय से मिल लेती थी. मोबाइल पर भी वह बातें और एसएमएस किया करते थे. अब दोनों को ही परिवार के लोग बाधा लगने लगे थे.
अपने अवैध रिश्ते मे संजय और चंचल एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुके थे. संजय दुष्ट और अपराध करने वाला युवक था. चंचल पूरी तरह उस के रंग में रंगी हुई थी. उन के प्रेमप्रसंग में कमला व राजेंद्र बड़ी बाधा थे, गनीमत यह थी कि ये बातें अभी दीपक को नहीं पता थी. संजय चाहता था कि अपने और चंचल के बीच की हर दीवार को गिरा कर न सिर्फ उस से विवाह कर ले, बल्कि करोड़ों की प्रौपर्टी भी उस की हो जाए. उस ने इस बारे में चंचल से बात की तो उस ने भी अपनी स्वीकृति दे दी.
इस के बाद संजय इसी बारे में सोचने लगा. उस ने रुपयों का इंतजाम कर के 30 हजार रुपए में सितारगंज के रहने वाले दुष्ट प्रवृत्ति के युवक अनिल कुमार से एक माउजर खरीद लिया. संजय व चंचल चाहते थे कि हत्याएं इतनी सफाई से की जाएं कि किसी को उन के ऊपर जरा भी शक न हो.
वे दोनों जानते थे कि कमला राजेंद्र के लिए लडक़ी देखने के लिए पिथौरागढ़ जाने वाली हैं. इसी बात को ध्यान में रख कर वह पहले ही अपने पति के पास उड़ीसा चली गई. उड़ीसा जाने के बावजूद वह संजय के संपर्क में बनी रही. संजय ने उस से वादा किया कि अगर कमला पिथौरागढ़ गईं तो वह सभी का काम तमाम कर देगा. संजय ने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए कमला और राजेंद्र से मेलजोल और बढ़ा लिया. उसे पता चला कि 27 नवंबर को उन्हें पिथौरागढ़ जाना है.
राजेंद्र को ड्राइवर की जरूरत थी. उस ने इस बारे मं सजय से कहा तो वह खुद उन के साथ जाने को तैयार हो गया. संजय कार चलाना जानता था. कमला और राजेंद्र को इस बात की खुशी हुई कि संजय उन के लिए अपना समय निकाल रहा है.
27 नवंबर को वह उन्हें कार से ले कर पिथैरागढ़ के लिए निकला. संयोगवश उसे किसी ने भी उन के साथ जाते नहीं देखा. संजय ने अपने पास माउजर और एक चाकू रख लिया. ये लोग हरिद्वार पहुंचे तो दीपक का फोन आया और उस ने मां से बात की.
इस के बाद संजय ने बहाने से राजेंद्र का मोबाइल लिया और उस का सिम ढीला कर दिया, जिस से उस का नेटवर्क चला गया. राजेंद्र टैक्नोलौजी के मामले में कमजोर था, इसलिए उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. संजय नहीं चाहता था कि किसी का फोन आए और वह लोग उस के साथ होने के बारे में कुछ बता दें. वे काशीपुर पहुंचे तो राजेंद्र ने एटीएम से कुछ पैसे निकाले.
इस बीच संजय ने 2 बार चंचल से 4-4 मिनट बात की. इस के बाद जंगल का रास्ता सुनसान था. कमला और भास्कर कार में सो रहे थे, जबकि राजेंद्र जाग रहा था. सिडकुल के पास पहुंच कर संजय ने कार रोक दी. राजेंद्र ने उस से कार रोकने की वजह पूछी तो उस ने कहा कि उसे थकान हो रही है. कुछ देर रुक कर चलेंगे. संजय कार से नीचे उतर गया. राजेंद्र भी नीचे उतर गया. बाहर से कार के अंदर कोई आवाज न जाए, इसलिए संजय ने कार के शीशे बंद कर दिए.
संजय बात करते हुए बहाने से राजेंद्र को कुछ दूर ले गया और माउजर से उस के सिर में गोली मार दी. राजेंद्र ने तुरंत ही दम तोड़ दिया. संजय उसे खींच कर झाडिय़ों में ले गया और लाश को छिपा दिया. इस बीच उस ने राजेंद्र की जेब से मोबाइल निकाल कर उसे स्विच्ड औफ कर दिया.
इस के बाद वह कमला जोशी के पास पहुंचा और उन्हें बताया कि राजेंद्र झाडिय़ों के पीछे बैठ कर शराब पी रहा है और आने से मना कर रहा है. यह सुन कर कमला जोशी उस के साथ चल दीं. मौका पाते ही संजय ने उन्हें भी गोली मार दी.
दोनों शव ठिकाने लगा कर वह कार ले कर थोड़ा दूर आगे गया और एक जगह पर कार रोक कर भास्कर को जगा कर अपने साथ झाडिय़ों की तरफ ले गया. संजय हैवान बन चुका था. उस ने चाकू निकाल कर मासूम भास्कर की पहले गरदन काटी और फिर उस के पेट पर वार किए. भास्कर ने तड़प कर दम तोड़ दिया. हत्या कर के तीनों की लाशें ठिकाने लगाने के बाद उस ने यह बात चंचल को एसएमएस कर के बता दी.
कमला ने बैग में जो आभूषण लडक़ी को देने के लिए रखे थे, वह उस ने खुद कब्जा लिए. उस ने एक थैले में आभूषण, चाकू व माउजर रखा और आगे जा कर कलमठ में जंगल में एक स्थान पर गड्डा खोद कर उसे छिपा दिया. इस के बाद वह रुद्रपुर होते हुए बिलासपुर पहुंचा और सडक़ किनारे कार छोड़ कर बस से देहरादून चला गया. हत्या का मामला ठंडा हो जाने के बाद चंचल और संजय की योजना दीपक को भी ठिकाने लगाने की थी. लेकिन उस से पहले ही वे पुलिस के शिकंजे में आ गए.
संजय की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हथियार और आभूषण बरामद करने के साथ ही पुलिस ने माउजर बेचने वाले अनिल को भी गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत भेज दिया गया.
चंचल के अविवेक ने जहां एक भरेपूरे परिवार को उजाड़ दिया, अंधे प्यार और लालच ने संजय को भी जुर्म की राह पर धकेल दिया. दोनों ने मर्यादाओं का खयाल किया होता तो ऐसी नौबत कभी नहीं आती. चंचल के पति दीपक का कहना था कि उसे नहीं लगता कि उस की पत्नी का हत्या में कोई हाथ है. वह पूरे कांड का मास्टरमाइंड संजय को मानता है. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.
अब मुन्नालाल की परेशानी और बढ़ गई, क्योंकि वह जानता था कि बाबा पत्नी के लिए नहीं, सगुना के लिए नौकरी छोड़ कर आया था. जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने ससुर को बुला कर सगुना के बारे में सब कुछ बता दिया.
डबली ने बेटी को खूब डांटा. इज्जत और दोनों बच्चों का हवाला दे कर समझाया भी लेकिन सगुना के मन को अब सिर्फ बाबा जानता था. इसीलिए जब उस ने बाबा को फोन कर के कहा कि वह इस माहौल में कतई नहीं रह सकती, किसी दिन आत्महत्या कर लेगी तो एक बार फिर बाबा सगुना को ले उड़ा.
रेखा को जब पता चला कि उस का पति 2 बच्चों की मां के इश्क में पड़ा है तो वह परेशान हो उठी. क्योंकि अब वह खुद भी बाबा के एक बेटे की मां बन चुकी थी. इस बार मुन्नालाल को लगा कि अब उस की गृहस्थी नहीं बच सकती तो उस ने थाने जा कर बाबा के खिलाफ पत्नी को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.
थानाप्रभारी ए.एम. काजी ने मुलायम सिंह को बुला कर बाबा और सगुना को ढूंढ़ कर लाने का दबाव बनाया. बाबा की इस हरकत से मुलायम सिंह ही नहीं, उस के बेटे सुभाष, धर्मेंद्र, प्रमोद और सर्वेश भी परेशान थे. पुलिस के दबाव में उन्होंने सगुना और बाबा को ढूंढ निकाला. सगुना को ला कर उन्होंने मुन्नालाल के हवाले कर दिया तो उन की जान छूटी.
सगुना घर तो आ गई थी, लेकिन क्या गारंटी थी कि वह ऐसा काम फिर नहीं करेगी. फिर ऐसा न हो, इस के लिए मुन्नालाल ने पंचायत बुलाई. सगुना और बाबा को भी पंचायत में बुलाया गया. गांव वालों ने फैसला किया कि अगर बाबा ने फिर इस तरह की कोई हरकत की तो उस के परिवार से गांव का कोई आदमी संबंध नहीं रखेगा. सगुना को भी गांव से निकाल दिया जाएगा.
पंचायत के इस फैसले से मुलायम सिंह और उस के बेटे घबरा गए. उन्होंने बाबा और उस की पत्नी को दिल्ली भेज दिया. रेखा भी बाबा के व्यवहार से आहत थी. उस ने धमकी दी कि अगर फिर उस ने इस तरह की कोई हरकत की तो वह उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करेगी. बाबा ने भी सोचा कि अब वह दिल्ली में ही रहेगा, जिस से उस के घर वालों को कोई परेशानी न हो.
पंचायत ने भले ही 2 प्रेमियों को अलग कर दिया था, लेकिन दिल से वे अलग नहीं हो पाए थे. सगुना की तड़प बढ़ती जा रही थी. इसे मिटाने के लिए वह देर रात तक प्रेमी से फोन पर बातें करती रहती थी. इस से मुन्नालाल काफी तनाव में रहता था. उस का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था और यह गुस्सा सगुना पर ही उतारता था. उस के दोनों बेटे मांबाप के इस व्यवहार से बहुत डरे रहते थे.
मुन्नालाल को लगता था कि हालात उस के काबू से बाहर होते जा रहे हैं सगुना के प्रति उस की नफरत बढ़ने लगी. फिर भी अपने घर को बचाने के लिए उस ने एक बार कोशिश की. उस ने सगुना को अपने पास बैठा कर समझाया, ‘‘देखो सगुना, तुम जो कर रही हो, वह अच्छा नहीं है. खुद को संभालो, क्योंकि तुम्हारी इन हरकतों का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.’’
सगुना ने कहा, ‘‘पहले तुम अपने व्यवहार को देखो. तुम पत्नी को आदमी नहीं, जानवर समझते हो. अगर तुम्हारा ही व्यवहार अच्छा होता तो यह सब नहीं होता, जो हुआ है. पहले खुद को संभालो, उस के बाद मुझ से कहना. तुम्हारी पहली दोनों बीवियां भी तुम से कहां खुश थीं.’’
‘‘लेकिन वे चरित्रहीन तो नहीं थीं.’’
‘‘हां, मैं चरित्रहीन हूं. तुम से शादी करने का मतलब यह तो नहीं कि मुझे 2 पल की खुशी न मिले. तुम ने मेरे जीवन को नरक बना दिया है. तुम न 2 पल की खुशी दे सकते हो न जहां से मिल रही है, वहां से मिलने देते हो. अगर मैं 2 पल की खुशी कहीं से हासिल करना चाहती हूं तो तुम उस में रोड़ा बन जाते हो.’’
मुन्नालाल समझ गया कि यह बाबा को नहीं छोड़ेगी. यह इसी तरह उस की इज्जत से खेलती रहेगी. उसे गुस्सा आ गया. उस ने तय कर लिया कि अब वह इसे इज्जत से खिलवाड़ करने के लिए जिंदा नहीं छोड़ेगा. इरादा पक्का कर के वह घर से निकल गया.
देर रात उस ने अपने दोनों बेटों को दूसरे कमरे में लेटा कर फावड़े से सगुना को काट कर मार डाला. गुस्से में उस ने खून तो कर दिया, लेकिन लाश देख कर घबरा गया. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो गड्ढा खोद कर उस ने लाश को उसी में गाड़ दिया.
मुन्नालाल ने सारे सुबूत तो मिटा दिए, लेकिन उसे लगा कि जब लोग उस से पूछेंगे कि सगुना कहां गई है तो वह क्या जवाब देगा?
अब उसे पुलिस का डर सताने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने दोनों बेटों को लिया और मैनपुरी में रहने वाली नरेश की बेटी के यहां जा पहुंचा. उसे लग रहा था कि वह किसी भी हालत में पुलिस से नहीं बच पाएगा. उस की अंतरात्मा भी उसे धिक्कारने लगी थी कि उस ने ठीक नहीं किया. जब मन पर बोझ बहुत ज्यादा हो गया तो उस ने बच्चों को वहीं छोड़ दिया और खुद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर के सामने जा कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया.
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर ने थाना बेवर के थानाप्रभारी ए.एम. काजी को बुला कर मुन्नालाल को उन के हवाले कर दिया. थानाप्रभारी ने गांव जा कर मुन्नालाल की निशानदेही पर सगुना की लाश और फावड़ा बरामद कर लिया. पूरा गांव मुन्नालाल की इस हरकत पर हैरान था. पुलिस ने अपनी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मुन्नालाल को ले कर थाने आ गई.
इस के बाद मुन्नालाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस तरह गुस्से में मुन्नालाल ने अपना घर बरामद कर के अपने बच्चों को अनाथ कर दिया.
पुलिस ने दीपक और उस की पत्नी चंचल से भी पूछताछ की, लेकिन उन्होंने किसी से भी कोई रंजिश होने से इंकार कर दिया. जोशी परिवार के पास करोड़ों की पारिवारिक जमीन थी. यह पूरी प्रौपर्टी कमला के नाम थी. इस नजरिए की गई जांच में सामने आया कि प्रौपर्टी को ले कर भी किसी से किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं था. ड्राइवर का पता लगाने के लिए पुलिस ने राजेंद्र के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल की, लेकिन उस में भी कोई नंबर ऐसा नहीं मिला, जो किसी ड्राइवर का रहा हो.
राजेंद्र के मोबाइल में आखिरी काल पिथौरागढ़ से आई थी. पुलिस वहां पहुंची तो वह उस लडक़ी के पिता का नंबर था, जिसे जोशी परिवार देखने जा रहा था. उन्होंने बताया कि राजेंद्र का फोन 27 नवंबर को सिर्फ यह बताने के लिए आया था कि वे लोग उन के यहां आ रहे हैं. इस के बाद राजेंद्र से चाहकर भी उन का कोई संपर्क नहीं हो सका था.
पुलिस के सामने अब 2 तरह की आशंकाएं थीं. एक तो यह कि इस परिवार की हत्याएं लूटपाट के लिए की गई थीं और दूसरी यह कि कार ड्राइवर ने ही उन लोगों के साथ कुछ गलत किया हो. इस बात को ध्यान में रख कर दोनों जिलों देहरादून और ऊधमसिंहनगर की पुलिस ने कई संदिग्ध लोगों से पूछताछ की. लेकिन कोई सुराग नही मिल सका. मामला उलझ कर रह गया था.
वारदात का मोटिव समझ से परे था. जोशी परिवार की खुले तौर पर किसी से कोई रंजिश नहीं थी और न ही कोई दूसरा ऐसा विवाद जिस के लिए परिवार को ही लापता कर दिया जाता. नि:संदेह इस घटना को साजिश के तहत अंजाम दिया गया था. पुलिस ने राजेंद्र के पूर्व ससुराल वालों से भी पूछताछ की, लेकिन इस का भी कोई नतीजा नहीं निकला. पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी, परंतु कहीं से कोई सुराग हाथ नहीं लग रहा था.
पुलिस ने शक के आधार पर काम करती है. परिवार की समाप्ति पर कमला की करोड़ों की प्रौपर्टी का दीपक ही एकलौता वारिस था. यह भी संभव था कि उस के इशारे पर ही किसी रहस्यमय तरीके से इस मामले को अंजाम दिया गया हो. आज के दौर में प्रौपर्टी को ले कर हत्याएं हो जाना कोई नई बात नहीं है. अपने ही अपनों के खून के प्यासे बन जाते हैं. प्रौपर्टी के एंगल पर पुलिस ने दीपक को भी शक के दायरे में रख कर 5 दिसंबर को उस से गहन पूछताछ की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
पुलिस किसी नतीजे पर पहुंच पाती, इस से पहले गुत्थी और ज्यादा उलझ गई. एसएसपी केवल खुराना के निर्देश पर पुलिस ने 7 दिसंबर को उस स्थान के आसपास कांबिग कर के खोजबीन शुरू की, जहां भास्कर का शव मिला था. इस खोजबीन में उत्तर दिशा की झाडिय़ों से पुलिस को 2 शव और मिले. दोनों शव बुरी तरह सडग़ल चुके थे. कपड़ों के आधार पर उन की शिनाख्त कमला और राजेंद्र के रूप में की गई. पुलिस ने दोनों शवों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.
इस सनसनीखेज तिहरे हत्याकांड में पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि हत्याओं को किस ने और क्यों अंजाम दिया? ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती थी, जिस के लिए 3 हत्याएं कर दी गईं. ड्राइवर का अब तक कुछ पता नहीं चल सका था. जबकि वही मुख्य संदिग्ध भी था. वह सुपारी किलर भी हो सकता था और किसी लुटेरे गिरोह का सदस्य भी. दीपक व उस की पत्नी किसी रंजिश की बात से इनकार कर चुके थे.
इस मामले की जांच में स्पैशल औपरेशन गु्रप की टीम को भी लगा दिया गया. देहरादून व ऊधमसिंहनगर पुलिस की 10 टीमें केस के खुलासे में जुट गईं. पुलिस के शक की सुई ड्राइवर पर ही टिकी थी. क्योंकि कुछ ऐसे ड्राइवर भी होते हैं, जो दिखावे के लिए तो कार चलाने का काम करते हैं, लेकिन किसी गिरोह के साथ मिल कर अपराध को अंजाम देते हैं.
देहरादून से सितारगंज के बीच कई सुनसान इलाके थे, लेकिन हत्यारों ने उसी स्थान को क्यों चुना, यह भी एक बड़ा सवाल था. ऐसा प्रतीत होता था कि हत्या पूर्व नियोजित थी और शातिराना अंदाज में तीनों को ठिकाने लगा दिया गया था. पुलिस के पास हत्या की जांच के लिए 3 ङ्क्षबदु प्रमुख थे. एक ड्राइवर, दूसरा संपत्ति और तीसरा प्रेम प्रसंग.
संपत्ति के मामले में पुलिस दीपक से खूब घुमाफिरा कर गहन पूछताछ कर चुकी थी. वह खुद को बेकसूर बता रहा था. उस के खिलाफ पुलिस को कोई सबूत भी नहीं मिला था. ड्राइवर के गुनाहगार और राजदार होने के शक में भी कई लोगों से पूछताछ की जा चुकी थी.
जांच कर रही पुलिस ने इस बार नजरिया बदल कर प्रेम के एंगल पर भी काम करना शुरू किया. इस के लिए कुछ रिश्तों को खंगालना शुरू किया गया. इस कड़ी में घर की छोटी बहू यानी दीपक की पत्नी चंचल पर जांच केंद्रित की गई. पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स की जांचपड़ताल शुरू की तो पुलिस चौंकी. दरअसल घटना वाले दिन उस के मोबाइल पर एक नंबर से कुछ एसएमएस किए गए थे, जिस नंबर से एसएमएस किए गए थे, वह श्यामपुर के ही संजय पंत का था.
संजय पंत जोशी परिवार के पड़ोस में ही रहता था. इस पर पुलिस ने संजय के मोबाइल की लोकेशन की जांच की तो उसे यह देख कर झटका लगा कि घटना वाले दिन उस की लोकेशन राजेंद्र के मोबाइल के साथसाथ सितारगंज तक गई थी. इस से साफ था कि घटना वाले दिन वह उन के साथ था. चंचल और संजय मोबाइल पर अकसर बातें किया करते थे. काल डिटेल्स इस की गवाही दे रही थी. इस का मतलब संजय और चंचल का जरूर कोई गहरा कनेक्शन था.
गुत्थी सुलझती नजर आई तो पुलिस बिना देरी किए देहरादून पहुंची. संजय को पकड़ लिया गया. देहरादून के एसपी (सिटी) अजय कुमार के निर्देश पर चंचल को भी हिरासत में ले लिया गया. उन दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस ऊधमसहनगर आ गई.
पुलिस ने दोनों के मोबाइल ले कर चेक किए तो उन में से घटना वाली तारीख के एसएमएस नदारद थे. जाहिर था कि उन्होंने एसएमएस डिलीट कर दिए थे. पुलिस ने दोनों से गहराई से पुछताछ की तो उन्होंने जो बताया, सुन कर पुलिस के भी रोंगटे खड़े हो गए.
जोशी परिवार का कातिल संजय पंत था और इस साजिश में चंचल भी शामिल थी. दोनों के अवैध रिश्ते और संपत्ति का लालच इतने बड़े कांड की वजह बन गया था. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक बहू पूरे परिवार के लिए काल बन जाएगी.
करीब डेढ़ साल पहले संजय और चंचल की नजरें चार हुई थीं, धीरेधीरे दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया था. चंचल का पति दूर रहता था, संजय ने इस बात का फायदा उठाया और अपनी मीठीमीठी बातों से चंचल को अपनी तरफ आकॢषत करने में कामयाब हो गया. चंचल को भी पति से दूरियां खलती थीं. भविष्य की परवाह किए बिना दोनों ने प्रेम की पींगे बढ़ानी शुरू कर दीं. संजय किसी न किसी बहाने से कमला के घर आनेजाने लगा. एक ही गांव और पड़ोसी होने से उस का इस तरह आना कोई अप्रत्याशित बात नहीं थी.
वक्त गुजरता रहा. संजय और चंचल मुलाकातों के अलावा मोबाइल पर भी बातें किया करते थे. दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार कर चुके थे. एक दौर ऐसा भी आया, जब उन के बीज मर्यादा की दीवार गिर गई. यूं तो हर नजरिए से उन का रिश्ता अवैध था, लेकिन उन दोनों को इस में खुशियां मिल रही थीं.
चंचल काफी पढ़ीलिखी थी. उस की समझदारी पर पूरे परिवार को गर्व था. कमला ने जमाना देखा था. बहू के रंगढंग उन से छिप नहीं सके. उन्होंने एक दिन चंचल को समझाया, “संजय का हमारे घर ज्यादा आनाजाना ठीक नहीं है बहू. मैं सबकुछ जान कर भी अंजान नहीं रह सकती. तुम खुद को सुधार लो, इसी में परिवार की भलाई है.”
चंचल जैसे इस के लिए पहले से तैयार थी. यह एक सच है कि ऐसी गलतियां कर ने वाला इंसान अपनी कारगुजारियों को छिपाने के लिए झूठ बोलने लगता है और इसी के चलते वह काफी शातिर भी हो जाता है. वह जानती थी कि एक न एक दिन यह नौबत आ कर रहेगी.
उसी बीच बाबा दिल्ली से आया तो सगुना से मिलने उस के घर जा पहुंचा. सगुना मुंह लटकाए दरवाजे पर बैठी थी. उस तरह बैठी देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, लगता है आज तुम खुश नहीं हो, क्या बात है, मुझे बताओ. मैं भी तो तुम्हारा कुछ लगता हूं.’’
‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम्हारे भैया से कब से एक फोन के लिए कह रही हूं. उन के पास पैसा ही नहीं रहता कि एक फोन ला कर दे दें. फोन न होने की वजह से मायके का हालचाल भी नहीं मिल पाता.’’
‘‘बस, इतनी सी बात के लिए मुंह लटकाए बैठी हैं. इस बार आऊंगा तो आप के लिए मोबाइल ले कर आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.
सगुना ने उसे घूर कर देखा. वह उस के लिए इतने पैसे खर्च करने को तैयार है. उस का कितना खयाल रखता है. अगले दिन बाबा दिल्ली चला गया. लेकिन अगली बार आया तो सगुना के हाथ पर एकदम नया मोबाइल रख दिया. सगुना हैरान रह गई. वह पति से कब से मोबाइल लाने को कह रही थी. वह सुन ही नहीं रहा था. बाबा से सिर्फ जिक्र किया और उस ने मोबाइल ला कर दे दिया. यह उस का कितना खयाल रखता है.
सगुना को हैरान और सोच में डूबा देख कर बाबा ने कहा, ‘‘भाभी, तुम हैरान क्यों हो रही हो. सच्चाई यह है कि मैं तुम से प्यार करता हूं. इसलिए तुम्हें वे सारी खुशियां देना चाहता हूं, जो मुन्नाभाई तुम्हें नहीं दे पा रहे हैं.’’
‘‘यह कैसे हो सकता है देवरजी.’’ सगुना ने उलझन में कहा, ‘‘मैं शादीशुदा हूं. मैं तुम से प्यार कैसे कर सकती हूं?’’
‘‘प्यार करने वाले कुछ नहीं देखते. उन्हें सिर्फ अपने प्यार की चिंता होती है. अच्छा, यह बताओ, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करती?’’ बाबा ने सगुना की आंखों में झांकते हुए पूछा.
सगुना ने सिर झुका लिया. बाबा ने इधरउधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया तो उस ने उस के गालों को छू कर होंठों से लगाया और मुसकराते हुए चला गया. सगुना उसे तब तक देखती रही, जब तक बाबा दिखाई देता रहा. आंखों से ओझल होते समय बाबा ने हाथ हिलाया तो उसी तरह हाथ हिला कर सगुना ने भी जवाब दिया.
बाबा का दिया मोबाइल सगुना ने छिपा कर रख दिया. फिर 2 दिनों बाद वह मायके गई और वहां से लौटी तो मुन्नालाल को बताया कि भाई ने उसे मोबाइल खरीद कर दे दिया है. मुन्नालाल ने सोचा, चलो अच्छा ही हुआ, अब सगुना उसे मोबाइल के लिए परेशान तो नहीं करेगी. उसे क्या पता था कि यह मोबाइल उस का घर बारबाद करने के लिए आया है.
इस के बाद सगुना और बाबा के बीच बात होने लगी. इस बातचीत ने दोनों को और करीब ला दिया. फिर अगली बार बाबा गांव आया तो बेखौफ सगुना से मिला और पति के प्यार की प्यासी सगुना को बाबा से इतना प्यार मिला कि वह मुन्नालाल के प्रति बेवफा हो गई. दिल में उस ने मुन्नालाल की जगह बाबा को बैठा लिया.
कुछ दिनों तक तो सगुना और बाबा के संबंधों की किसी को खबर नहीं लगी. लेकिन जब बाबा का मुन्नालाल के घर कुछ ज्यादा ही आनाजाना हो गया तो उसे ले कर कानाफूसी होने लगी. किसी पड़ोसी ने जब मुन्नालाल को बताया कि बाबा उस की गैरमौजूदगी में उस के घर आताजाता है तो पहले तो उस ने जम कर सगुना की ठुकाई की, उस के बाद बोला, ‘‘आज के बाद बाबा घर में दिखाई दिया तो अच्छा नहीं होगा.’’
इस के बाद उस ने सगुना का मोबाइल फोन ले कर देखा तो उस की जिस नंबर पर सब से ज्यादा बात हुई थी वह बाबा का नंबर था. मुन्नालाल के मन में शक का बीज पड़ गया. उसे एक बार फिर अपनी गृहस्थी बरबाद होती नजर आने लगी.
शक ने मुन्नालाल को पागल कर दिया. वह बातबात में सगुना से लड़ाईझगड़ा और मारपीट करने लगा. उस की मारपीट से तंग आ कर एक दिन सगुना ने फोन पर बाबा से साफ कह दिया, ‘‘तुम्हारी वजह से मैं रोज पिटती हूं. तुम मुझे अपने साथ ले चलो, वरना मुझे छोड़ दो.’’
‘‘ठीक है, तुम तैयार रहना मैं जल्दी ही घर आ रहा हूं. इस बार मैं तुम्हें भी साथ ले आऊंगा.’’ बाबा ने कहा.
इस के बाद एक दिन सगुना गायब हो गई. परेशान मुन्नालाल भाई नरेश के पास पहुंचा और सारी बात बताई. नरेश तो कुछ नहीं बोला, लेकिन उस के बेटे सुलखान ने कहा, ‘‘चाची की वजह से गांव में हमारी बहुत बदनामी हुई है. अगर चाची लौट कर नहीं आती तो समाज में हमारा उठनाबैठना मुश्किल हो जाएगा.’’
इस के बाद काफी सोचविचार कर दोनों भाई बाबा के पिता मुलायम सिंह के पास पहुंचे, जब इन लोगों ने उसे बताया कि बाबा सगुना को भगा ले गया है तो पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ. लेकिन जब इन लोगों ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने सगुना को बाबा के पास से ला कर उन के हवाले नहीं किया तो वे बापबेटे के खिलाफ सगुना को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे.
ग्रामप्रधान ने भी मुलायम सिंह पर दबाव बनाया तो मुलायम सिंह ने बेटे को फोन किया. सचमुच सगुना उसी के साथ थी. उस ने उसे गांव ले कर आने को कहा. इस तरह लगभग सप्ताह भर बाद सगुना एक बार फिर मुन्नालाल के पास आ गई.
बेटा दोबारा इस तरह का काम न करे, मुलायम सिंह ने उस के लिए लड़की तलाशने लगा. जल्दी ही उस ने हरदोई में उस की शादी तय कर दी. जब इस बात की जानकारी सगुना को हुई तो उस ने बाबा को फोन कर के साफसाफ कह दिया कि अब वह उस के बिना कतई नहीं रह सकती. तब उस ने उसे आश्वासन दिया कि शादी के बाद भी वह उसी का रहेगा.
मुन्नालाल पत्नी पर नजर रखता था. लेकिन बाबा के प्यार में पागल सगुना को अब उस की जरा भी परवाह नहीं रह गई थी. यही वजह थी कि अब वह आक्रामक होती जा रही थी. दूसरी ओर मुन्नालाल परेशान था कि अगर सगुना चली गई तो इस के बाद कोई उसे अपनी लड़की देने वाला नहीं है.
बाबा की शादी रेखा से हो गई थी. बाबा के घर वाले चाहते थे कि वह अपनी पत्नी को दिल्ली ले जाए. इस शादी से मुन्नालाल ने भी राहत महसूस की थी कि बाबा नईनवेली दुलहन पा कर सगुना को भूल जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. क्योंकि कुछ दिनों बाद बाबा नौकरी छोड़ कर गांव आ गया.