Best Short Story in Hindi : फिल्म लेखक और अभिनेत्री के इश्क़ की उड़ान

Best Short Story in Hindi : 26 दिसंबर, 2021 की सुबह का वक्त था. उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना खागा के थानाप्रभारी  आनंद प्रकाश शुक्ला क्षेत्र के एक कुख्यात अपराधी की फाइल पलट रहे थे. तभी एक युवक ने उन के कक्ष में प्रवेश किया.

वह बेहद घबराया हुआ था. उन्होंने एक नजर उस पर डाली फिर पूछा, ‘‘सुबहसुबह कैसे आना हुआ? क्या कोई खास बात है? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?’’
‘‘सर, मेरा नाम इंद्रमोहन सिंह राजपूत है. मैं गुलरिहनपुर मजरे के कूरा गांव का रहने वाला हूं. बीती रात मेरी पत्नी योगमाया ने हंसिया से गला रेत कर आत्महत्या कर ली. उस की लाश घर के अंदर पड़ी है. रात में सूचना देने नहीं आ सका. इसलिए सुबह आया हूं.’’

थानाप्रभारी आनंद शुक्ला के सामने कई ऐसे सवाल थे, जिन के जवाब इंद्रमोहन सिंह दे सकता था. लेकिन पहली जरूरत मौके पर पहुंचने की थी. इसलिए उन्होंने सब से पहले एसपी (फतेहपुर) राजेश कुमार सिंह और डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा को घटना की जानकारी दी. फिर वह पुलिस टीम ले कर मौके पर पहुंच गए. उस समय इंद्रमोहन सिंह के घर के बाहर लोगों की भीड़ थी. भीड़ को हटाते हुए थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला ने सहकर्मियों के साथ घर के अंदर प्रवेश किया और उस कमरे में पहुंचे, जहां मृतका की लाश पड़ी थी.

कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर पड़े पलंग पर योगमाया नाम की युवती की लाश खून से तरबतर पड़ी थी. उस के गले पर 3 गहरे घाव थे, जिन से खून रिस रहा था. खून से बिस्तर तरबतर था. पलंग के पास ही खून सना हंसिया पड़ा था, जिसे श्री शुक्ला ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया. मृतका योगमाया का रंग गोरा, शरीर स्वस्थ और उम्र 25 वर्ष के आसपास थी. मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ. शव निरीक्षण के बाद थानाप्रभारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह मामला आत्महत्या का नहीं है,

बल्कि रणनीति के तहत हत्या का है. पुलिस को गुमराह करने के लिए आत्महत्या की सूचना दी गई है.
सच्चाई का पता लगाने के लिए वह वहां पर मौजूद मृतका के मायके वालों से जानकारी के लिए बड़े तभी एसपी राजेश कुमार सिंह तथा डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा वहां आ गए.

पुलिस को दिखा हत्या का मामला

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर इंसपेक्टर आनंद प्रकाश शुक्ला से बातचीत की. इंसपेक्टर शुक्ला ने शक जाहिर किया कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का है और इस का रहस्य मृतका के पति इंद्रमोहन सिंह के पेट में ही छिपा है. मौके पर मृतका का पति इंद्रमोहन सिंह मौजूद था. अत: एसपी राजेश कुमार सिंह ने उस से पूछताछ की. इंद्रमोहन सिंह ने बताया कि वह रंगकर्मी है. भोजपुरी फिल्मों में कहानी लेखन का काम करता है. इस के अलावा वह भोजपुरी गानों पर एलबम बनाता है.

कल सुबह वह पहले अपनी ससुराल गया, फिर वहां से लखनऊ चला गया था. घर पर उस की पत्नी योगमाया, एक वर्षीय बेटा अनमोल तथा भोजपुरी फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री नेहा वर्मा थी. देर रात जब वह घर वापस आया तो नेहा वर्मा ने बताया कि योगमाया ने आत्महत्या कर ली. रात अधिक हो जाने के कारण वह थाने नहीं गया. सुबह सूचना देने गया. भोजपुरी फिल्म नायिका नेहा वर्मा डरीसहमी घर पर ही मौजूद थी. राजेश कुमार सिंह ने नेहा वर्मा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात 8 बजे उस ने और योगमाया ने साथ बैठ कर खाना खाया था. उस के बाद योगमाया अपने बेटे के साथ कमरे में जा कर लेट गई और वह दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

रात 10 बजे के लगभग उसे बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी तो वह कमरे में गई. वहां पलंग पर योगमाया मृत पड़ी थी. उस ने हंसिया से गला रेत कर आत्महत्या कर ली थी. कुछ देर बाद इंद्रमोहन सिंह आ गए. तब वह बच्चे को गोद में ले कर चीखते हुए बाहर निकले. उस के बाद इंद्रमोहन सिंह के मातापिता व भाई आ गए, जो पड़ोस में रहते हैं. नेहा वर्मा ने यह भी बताया कि वह 2 साल से इंद्रमोहन सिंह के संपर्क में है. वह भोजपुरी फिल्मों में साइड रोल करती है. अभी कुछ माह पहले ही उस की ‘पश्चाताप’ फिल्म बनी है, जो जल्द ही रिलीज होने वाली है. इस भोजपुरी फिल्म में उस का साइड रोल है.

फिल्म की कहानी इंद्रमोहन सिंह ने लिखी थी. उस ने बताया कि वह 4 दिन पहले ही अपने पिता के साथ गोरखपुर से कूरा गांव आई थी. पहले भी वह कई बार इंद्रमोहन सिंह के साथ गांव आई थी. पूछताछ के दौरान राजेश सिंह की नजर नेहा वर्मा के कपड़ों पर पड़ी. वह सलवार सूट पहने थी. सलवार खून से सनी थी और हाथों पर भी खून के दाग थे. गले पर खरोंच का निशान था. श्री सिंह ने वहां पर लगे खून के बाबत उस से पूछा, तो वह सकपका गई और कोई सही जवाब न दे सकी. वह कभी इंद्रमोहन सिंह की तरफ देखती तो कभी आंखें नीची कर लेती.

राजेश कुमार सिंह समझ गए कि नेहा वर्मा कुछ गहरा राज छिपा रही है. यह मामला आत्महत्या का नहीं है. हत्या के इस मामले में नेहा का हाथ हो सकता है. योगमाया के शव के पास उस की सास कृष्णा व ससुर चंद्रमोहन सुबक रहे थे. डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा ने उन से पूछताछ की तो कृष्णा देवी ने बताया, ‘‘साहब, हमारी बहू योगमाया आत्महत्या नहीं कर सकती, उस की हत्या की गई है. नेहा और इंद्रमोहन के बीच नाजायज रिश्ता है, जिस का विरोध योगमाया करती थी. इसी विरोध के चलते नेहा ने उस को रास्ते से हटा दिया साहब, उस को तुरंत गिरफ्तार करो.’’

मृतका के भाई सत्यप्रकाश ने डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा को बताया कि बहनोई इंद्रमोहन व नेहा वर्मा के बीच पिछले 2 सालों से अवैध संबंध है. इस नाजायज रिश्ते का बहन विरोध करती थी. इस पर इंद्रमोहन उसे प्रताडि़त करता था. कई बार उसे समझाने की कोशिश की गई लेकिन वह नहीं माना. इन्हीं नाजायज रिश्तों का विरोध करने पर इंद्रमोहन और नेहा वर्मा ने उस की हत्या कर दी और आत्महत्या करने की झूठी सूचना थाने जा कर दी. आसपड़ोस के लोगों ने भी नाजायज रिश्ता पनपने और हत्या का शक जताया. शक के आधार पर पुलिस अधिकारियों ने इंद्रमोहन सिंह राजपूत और उस की प्रेमिका नेहा वर्मा को हिरासत में ले लिया और मृतका योगमाया के शव को पोस्टमार्टम हेतु फतेहपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इंद्रमोहन सिंह राजपूत और नेहा वर्मा को थाना खागा लाया गया. यहां पुलिस कप्तान राजेश कुमार सिंह व डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा ने दोनों से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की तो उन को सच्चाई उगलने में ज्यादा देर नहीं लगी. नेहा ने बताया कि वह इंद्रमोहन राजपूत से प्यार करने लगी थी. दोनों के बीच अवैध रिश्ता भी बन गया था. वह इंद्रमोहन से शादी रचाना चाहती थी. लेकिन उस की पत्नी योगमाया बाधक थी. इस बाधा को दूर करने के लिए उन दोनों ने साजिश रची और योगमाया की हत्या कर दी. वह अपना जुर्म कुबूल करती है.

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इंद्रमोहन सिंह राजपूत ने बताया कि वह खूबसूरत नेहा वर्मा के प्यार में अंधा हो गया था. वह उस से शादी कर खुशियां पाना चाहता था. नेहा के कहने पर उस ने पत्नी की मौत का षडयंत्र रचा और उसे मौत की नींद सुला दिया. चूंकि इंद्रमोहन और नेहा ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल हंसिया भी बरामद हो गया था. अत: थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला ने मृतका के भाई सत्यप्रकाश को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत इंद्रमोहन सिंह राजपूत तथा नेहा वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में इश्क में डूबी एक ऐसी नायिका की कहानी सामने आई, जो खुद ही नायिका से खलनायिका बन गई. उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के थरियांव थाना अंतर्गत एक गांव है अब्दुल्लापुर घूरी. इसी गांव में विदित कुमार राजपूत अपने परिवार के साथ रहते थे. उस के परिवार में पत्नी आरती के अलावा एक बेटा सत्यप्रकाश तथा 2 बेटियां दिव्या व योगमाया थीं. विदित कुमार किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. बड़ी बेटी दिव्या का विवाह वह कर
चुके थे.

ममेरी बहन से की थी लवमैरिज

दिव्या से छोटी योगमाया थी. वह छरहरी काया और तीखे नाकनक्श वाली लड़की थी. उस की मुसकान सामने वाले पर गहरा असर डालती थी. योगमाया जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में भी उतनी ही तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा सरस्वती बालिका इंटर कालेज से पास कर ली थी और आगे भी पढ़ना चाहती थी. लेकिन मांबाप ने उस की पढ़ाई बंद करा दी और घरेलू काम में लगा दिया.
योगमाया के घर इंद्रमोहन सिंह का आनाजाना लगा रहता था. वह फतेहपुर जिले के ही थाना खागा के गांव कूरा के रहने वाले चंद्रमोहन राजपूत का बेटा था. रिश्ते में दोनों सगे ममेरे भाईबहन थे. घर आतेजाते योगमाया की खूबसूरती और मुसकान इंद्रमोहन के दिल में बस गई थी.

एक दिन इंद्रमोहन ने उस से अपने मन की बात भी कह दी, ‘‘योगमाया, मैं तुम से प्यार करता हूं. यदि तुम मेरा प्यार कुबूल कर लोगी, तो मैं खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब इंसान समझूंगा.’’

योगमाया उम्र के जिस पायदान पर थी, उस उम्र में लड़कियों को ऐसी बातें गुदगुदा देती हैं. योगमाया का दिलोदिमाग भी सनसनी से भर गया. उस ने इंद्रमोहन की आंखों में देखा. उन आंखों में प्यार का सागर ठाठें मार रहा था. उस की आंखों में देखते हुए कुछ देर तक वह सोच में डूबी रही, उस के बाद बोली, ‘‘अगर मैं तुम्हारा प्यार कुबूल कर लूं तो तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?’’
‘‘शादी?’’ इंद्रमोहन ने तपाक से जवाब दिया.
‘‘लेकिन हमारातुम्हारा रिश्ता तो बहनभाई का है. हम दोनों के घर वाले राजी नहीं हुए तो…?’’ योगमाया ने पूछा.
‘‘…तो हम भाग कर प्रेम विवाह कर लेंगे.’’
योगमाया मुसकराई फिर नजरें झुका कर स्वीकृति में सिर हिला दिया.

इंद्रमोहन और योगमाया के घर वालों को दोनों के प्यार व शादी रचाने की बात पता चली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. घर वालों ने दोनों को बहुत समझाया, लेकिन जब वह नहीं माने तो विदित कुमार ने 20 वर्षीय बेटी योगमाया की शादी 12 फरवरी, 2015 को इंद्रमोहन राजपूत के साथ कर दी.

फिल्म कहानी लेखक बन गया इंद्रमोहन

शादी के बाद योगमाया इंद्रमोहन की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. चूंकि इंद्रमोहन की मां कृष्णा इस शादी से नाराज थी, अत: वह पति चंद्रमोहन व छोटे बेटे जंगबहादुर के साथ अलग मकान में रहने लगी. वह इंद्रमोहन व योगमाया से बहुत कम बातचीत करती थी. इंद्रमोहन सिंह बीए पास था. उस का रुझान भोजपुरी फिल्मों की तरफ था. वह फिल्म लेखन में अपनी किस्मत आजमाना चाहता था. उस ने भोजपुरी फिल्म के लिए कई कहानियां लिखीं, कुछ कहानी भोजपुरी फिल्म निर्माताओं को पसंद आईं तो कुछ कूड़ेदान में चली गईं.

लेकिन इंद्रमोहन सिंह हताश नहीं हुआ और लेखन कार्य तथा निर्माताआें के संपर्क में बना रहा. इंद्रमोहन सिंह अपनी पत्नी योगमाया से खूब प्यार करता था और उसे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने देता था. योगमाया भी इंद्रमोहन की सेवा करती थी. आर्थिक संकट में भी वह पति का साथ देती थी. आर्थिक संकट के दौरान एक बार तो उस ने अपने आभूषण तक बेच दिए थे. इंद्रमोहन और योगमाया का जीवन सुखमय बीत ही रहा था कि इसी बीच नेहा वर्मा नाम की बला आ गई, जिस ने योगमाया की जिंदगी में जहर घोल दिया. उस ने योगमाया के जीवन की खुशियां तो छीनी ही फिर आखिर में जिंदगी भी छीन ली.

नेहा वर्मा मूलरूप से मुंडेरा कस्बे के महराजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता काशीनाथ वर्मा गोरखपुर के सुभाष नगर मोहल्ले में रहते थे. वह प्राइवेट फर्म में नौकरी करते थे. काशीनाथ साधारण पढ़ेलिखे व्यक्ति थे. आमदनी भी सीमित थी. लेकिन वह सीमित आमदनी में भी खुश थे. मुंडेरा कस्बे में उन का आनाजाना लगा रहता था.

नेहा वर्मा से हुई मुलाकात

20 वर्षीय नेहा वर्मा गोरीचिट्टी छरहरी काया की युवती थी. नैननक्श भी तीखे थे. सब से खूबसूरत थीं उस की आंखें. खुमार भरी गहरी आंखें. उस की आंखों में ऐसी कशिश थी कि जो उस में देखे, खो सा जाए. नेहा ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. वह फैशनेबल थी. अकसर मौडर्न कपड़े पहनती थी और खुद को सजासंवरा बनाए रखती थी. सुंदर चेहरे वाली नेहा की आकर्षक देह पर मौडर्न कपड़े खूब फबते थे. जिस से देखने में वह फिल्मी हीरोइन सरीखी लगती थी. वह स्वभाव से चंचल और समय के हिसाब से काफी तेज थी. नेहा भोजपुरी फिल्में खूब देखती थी. उस का भी सपना था कि वह फिल्मों में काम करे.

वह फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना संजोए बैठी थी. नेहा वर्मा और इंद्रमोहन सिंह की पहली मुलाकात 25 नवंबर, 2019 को मुंडेरा (महराजगंज) में एक पारिवारिक शादी समारोह में हुई. इस शादी समारोह में नेहा वर्मा अपने पिता काशीनाथ के साथ आई थी, जबकि इंद्रमोहन अपनी पत्नी योगमाया के साथ आया था. सजीसंवरी नेहा पर जब इंद्रमोहन की नजर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उस के दिल में रचबस गई. मौका मिला तो दोनों में हायहैलो हुई और फिर परिचय हुआ.

इंद्रमोहन ने बताया कि वह फतेहपुर जिले के कूरा गांव का रहने वाला है और भोजपुरी फिल्मों में फिल्म की कहानी लेखन का कार्य करता है. नेहा वर्मा ने बताया कि वह गोरखपुर से पिता के साथ आई है. उसे भोजपुरी फिल्में पसंद है. वह भी फिल्मों में काम करना चाहती है. नेहा ने इंद्रमोहन का परिचय अपने पिता काशीनाथ से भी कराया. इंद्रमोहन ने भी अपनी पत्नी योगमाया का परिचय नेहा से कराया.

उस शादी समारोह में नेहा वर्मा और इंद्रमोहन ने एकदूसरे से खूब बातचीत की तथा एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद दोनोें के बीच मोबाइल फोन पर बातचीत होने लगी.
इंद्रमोहन नेहा से मिलने गोरखपुर भी जाने लगा. नेहा और इंद्रमोहन के बीच पहले दोस्ती हुई फिर प्यार पनपने लगा. इसी बीच इंद्रमोहन और नेहा भोजपुरी फिल्म के गाने पर एलबम भी बनाने लगे. इंद्रमोहन ने नेहा को कई भोजपुरी फिल्म निर्माताओं से भी मिलवाया और फिल्म में रोल देने का अनुरोध किया.

साथसाथ काम करते दोनों के बीच प्यार पनपा तो तन मिलन की भी इच्छा प्रबल हो उठी. एक दिन प्यार के क्षणों में दोनों के तन सटे तो दोनों ने एकदूसरे को बांहों में भर
लिया. फिर तो उन्हें एकाकार होने में ज्यादा देर नहीं लगी. अवैध संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. नेहा इंद्रमोहन के प्यार में ऐसी पड़ी कि हमेशा के लिए उस के साथ रहने के बारे में सोचने लगी.

फिल्म में नेहा को दिलाया रोल

फरवरी, 2020 में इंद्रमोहन सिंह राजपूत ने फिल्म ‘पश्चाताप’ की कहानी लिखी. यह कहानी भोजपुरी फिल्म निर्मातानिर्देशक सन्नी प्रकाश को पसंद आ गई. सन्नी प्रकाश ने फिल्म के कलाकारों का चयन किया और इंसपायरर फिल्म ऐंड एंटरटेनमेंट प्रा.लि. के बैनर तले फिल्म बनाने का निर्णय लिया. इस फिल्म में नायकनायिका के रूप में राकेश गुप्ता तथा स्मिता सना का चयन हुआ. साथ ही सहनायिका के रूप में नेहा वर्मा का चयन हुआ. ग्रामीण परिवेश की इस ‘पश्चाताप’ फिल्म की शूटिंग 21 सितंबर, 2020 से फतेहपुर के आसपास के क्षेत्र से शुरू हुई. शूटिंग के लिए नेहा वर्मा गोरखपुर से फतेहपुर आती थी और इंद्रमोहन सिंह राजपूत के गांव कूरा में उसी के घर में रुकती थी.

इंद्रमोहन की पत्नी योगमाया पति पर आंखें मूंद कर विश्वास करती थी और उस के कहने पर नेहा की सेवा में लगी रहती थी. लेकिन उस के विश्वास को ठेस तब लगी, जब उस ने एक रात नेहा को पति के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. कोई भी औरत भूख और पति की प्रताड़ना तो सह सकती है, लेकिन पति का बंटवारा कभी नहीं. योगमाया को भी पति का बंटवारा मंजूर नहीं था. सो उस ने विरोध शुरू कर दिया. नेहा को ले कर वह पति से लड़नेझगड़ने लगी. नेहा वर्मा को योगमाया का विरोध खटकने लगा. वह इंद्रमोहन को योगमाया के खिलाफ भड़काने लगी.

इस का नतीजा यह हुआ कि इंद्रमोहन पत्नी को अधिक प्रताडि़त करने लगा. तब योगमाया ने पति और नेहा के बीच पनप रहे रिश्तों की जानकारी सास कृष्णा तथा अपने मायके वालों को दे दी. सब ने इंद्रमोहन को समझाया भी, लेकिन वह नहीं माना. फिल्म ‘पश्चाताप’ की शूटिंग 6 महीने तक चली. इस बीच नेहा वर्मा कई बार कूरा गांव आई. वह जब भी आती, घर में कलह होती. नेहा वर्मा इंद्रमोहन के प्यार में इतनी डूब गई थी कि वह उस के साथ शादी कर घर बसाने की सोचने लगी थी. लेकिन वह यह भी जानती थी कि योगमाया के रहते घर बसाना संभव नहीं है.

उस के प्यार में योगमाया बाधा बनी तो उस ने उसे मिटाने का निश्चय कर लिया. इंद्रमोहन पहले ही नेहा की खूबसूरती का कायल था, सो वह उस की जायजनाजायज बातों को मान लेता था. इंद्रमोहन अब तक एक बच्चे का बाप बन चुका था, लेकिन उसे बच्चे से ज्यादा लगाव न था. योगमाया से भी वह नफरत करने लगा था.

पे्रमिका नेहा के साथ किया पत्नी का कत्ल

21 दिसंबर, 2021 को नेहा वर्मा अपने पिता काशीनाथ वर्मा के साथ गोरखपुर से इंद्रमोहन के घर कूरा गांव आई. उसे पता चला था कि फिल्म ‘पश्चाताप’ जल्दी ही रिलीज होने वाली है. सिनेमाघरों में पोस्टर भी चस्पा हो गए थे. एक दिन रुक कर काशीनाथ वर्मा तो वापस चले गए लेकिन नेहा इंद्रमोहन के घर ठहर गई. 23 दिसंबर, 2021 की रात योगमाया ने नेहा और इंद्रमोहन को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस पर उस ने जम कर हंगामा किया और पति तथा नेहा को खूब खरीखोटी सुनाई. अपमानित नेहा ने इंद्रमोहन को योगमाया  के खिलाफ भड़काया और रास्ते से हटाने को कहा.

इंद्रमोहन पहले तो राजी नहीं हुआ, लेकिन बाद में मान गया. इस के बाद नेहा और इंद्रमोहन ने योगमाया की हत्या का षडयंत्र रचा. 25 दिसंबर, 2021 को योजना के तहत इंद्रमोहन अपने भाई जंगबहादुर के साथ लखनऊ जाने की बात कह कर घर से निकला. लेकिन लखनऊ न जा कर वह अपनी ससुराल घुरू गया और अपने साले सत्यप्रकाश से मिला. उस ने साले को भी बताया कि वह किसी काम से लखनऊ जा रहा है. भाई जंगबहादुर को उस ने फतेहपुर भेज दिया. इधर घर में योगमाया, उस का एक वर्षीय बेटा अनमोल तथा नेहा वर्मा थी. रात 8 बजे योगमाया ने नेहा वर्मा के साथ खाना खाया फिर बच्चे के साथ कमरे में पड़े पलंग पर जा कर लेट गई. कुछ देर बाद योगमाया सो गई.

लेकिन नेहा वर्मा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. योजना के तहत उसने इंद्रमोहन से मोबाइल फोन पर बात की और घर बुला लिया. रात 10 बजे नेहा वर्मा और इंद्रमोहन, योगमाया के कमरे में पहुंचे. नेहा के हाथ में हंसिया था. कमरे में योगमाया रजाई से मुंह ढंके सो रही थी. नेहा उस की छाती पर सवार हो गई और रजाई मुंह से हटा कर उस की गरदन पर हंसिया से वार कर दिया. योगमाया चीखी और उठने का प्रयास किया लेकिन उठ न सकी. बचाव में उस ने नेहा की गरदन पकड़ ली. इसी बीच नेहा ने हंसिया से वार पर वार योगमाया की गरदन पर किए. जिस से उस की गरदन पर 3 गहरे जख्म बने और खून की धार बहने लगी.

फिर भी उस ने उठने का प्रयास किया और पैर पटकने लगी. तभी इंद्रमोहन ने उस के पैर दबोच लिए और नेहा ने फिर गरदन पर हंसिया से वार किए. कुछ देर तड़पने के बाद योगमाया ने दम तोड़ दिया. इसी बीच मां की बगल में लेटा मासूम अनमोल तेज आवाज में रोने लगा तो इंद्रमोहन ने उसे गोद में उठा लिया. फिर वह चीखता हुआ घर के बाहर आया. उस की चीखने की आवाज सुन कर उस के मातापिता व पड़ोसी आ गए. उन सब को इंद्रमोहन ने बताया कि योगमाया ने आत्महत्या कर ली है. लेकिन मातापिता व पड़ोसियों ने उस की बात का यकीन नहीं किया.

नेहा वर्मा के हाथों में लगा खून तथा खून से सराबोर सलवार देख कर सब समझ गए कि मामला हत्या का है. रात अधिक हो जाने के कारण इंद्रमोहन थाने नहीं गया. सुबह 7 बजे वह थाना खागा पहुंचा और पत्नी योगमाया द्वारा आत्महत्या किए जाने की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला पुलिस टीम के साथ इंद्रमोहन के घर पहुंचे. 27 दिसंबर, 2021 को थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला ने आरोपी इंद्रमोहन सिंह राजपूत तथा नेहा वर्मा से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. Best Short Story in Hindi
—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

आशुतोष राणा : कस्बे से मायानगरी तक का सफर

ऐसा नहीं है कि फिल्मी कलाकार केवल बड़ेबड़े शहरों में पैदा होते हैं, गांवकस्बों के रंगमंचों से भी अदाकारी की बारीकियां सीख कर कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में अपना मुकाम बना सकते हैं. इस बात को बौलीवुड के मशहूर ऐक्टर आशुतोष राना ने साबित कर के दिखा दिया है. हजारों कलाकारों की भीड़ से निकल कर आशुतोष राना ने आखिर किस तरह बौलीवुड में अपनी जगह बनाई?

बौलीवुड के सफल अभिनेता और विलेन का जानदार रोल निभाने वाले आशुतोष राना का जन्म मध्य प्रदेश के जिला  नरसिंहपुर के एक छोटे से कस्बे गाडरवारा में 10 नवंबर, 1967 को हुआ था. एक छोटे से कस्बे से मायानगरी तक का सफर तय करने वाले आशुतोष की प्राथमिक स्तर की शिक्षा गाडरवारा के गंज स्कूल में हुई थी. उस के बाद जबलपुर और अहमदाबाद में उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा ली.

अहमदाबाद से लौट कर गाडरवारा के सब से पुराने बीटीआई स्कूल में नौवीं कक्षा में दाखिला ले कर उन्होंने 11वीं पास की थी. स्कूली जीवन से जुड़ी यादों को साझा करते हुए आशुतोष के भाई प्रो. नंदकुमार नीखरा बताते हैं कि आशुतोष की पढ़ाई को ले कर परिवार के लोग ज्यादा उम्मीद नहीं रखते थे. जब वह मैट्रिक पास हुए तो मार्कशीट को एक हाथ ठेला पर सजा कर बैंडबाजे के साथ अपने दोस्तों के साथ नाचतेगाते जुलूस ले कर घर पहुंचे थे.

आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि आशुतोष राना ने अपना नाम खुद रखा था. बचपन में जब उन के घर में भगवान शिव का अभिषेक चल रहा था, तभी पंडितजी के द्वारा बोले गए मंत्र ‘ॐ आशुतोषाय नम:’ को सुन कर उन्होंने पंडितजी से पूछा, ‘‘पंडितजी, आशुतोष का मतलब क्या होता है?’’

तब पंडितजी ने उन्हें बताया, ‘‘आशुतोष का मतलब है जो शीघ्र प्रसन्न है जाए. भगवान शिव भी जल्दी खुश हो जाते हैं.’’

पंडितजी की बात सुन कर उन्होंने मां से कहा था, ‘‘मां आज से मेरा नाम आशुतोष होगा.’’

इसी तरह स्कूल पढ़ते समय आशुतोष की छवि एक दबंग युवा के रूप में बन चुकी थी. गाडरवारा में रोज ही उन के कारनामों के किस्से सुनाई देने लगे थे. एक दिन उन के भाई ने उन से कहा था, ‘‘ये तुम्हारे नाम के आगे जो नीखरा लगा है, इस कारण लोग तुम्हारा लिहाज करते हैं, तुम्हारे पावर के कारण नहीं.’’

आशुतोष को यह बात चुभ गई, उस के बाद उन्होंने परिवार की प्रतिष्ठा व पद का लाभ न लेने के लिए अपने नाम के आगे लगा सरनेम ‘नीखरा’ हटा कर ‘राना’ कर लिया. आशुतोष बताते हैं कि अपने पिता के नाम राम नारायण के पहले अक्षर ‘रा’ और ‘ना’ को मिला कर उन्होंने अपना सरनेम राना कर लिया था.

स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वह 1984 में ग्रैजुएशन करने मध्य प्रदेश की सागर यूनिवर्सिटी में चले गए थे. उस समय वह यूनिवर्सिटी टौप यूनिवर्सिटी में शुमार थी, जिस में प्रदेश के 128 कालेज जुड़े हुए थे. आशुतोष राना सागर यूनिवर्सिटी गए तो वहां नेतागिरी करने लगे.

वह सागर यूनिवर्सिटी के विवेक हौस्टल में रहते थे. यूनिवर्सिटी में राना की छवि रौबिनहुड की तरह थी. उस दौरान वह पढ़ने वाले स्टूडेंट्स की हरसंभव मदद करते थे, भले ही इस के लिए उन्हें प्रशासन से टकराव करना पड़े.

सागर यूनिवर्सिटी में आशुतोष राना के सहपाठी रह चुके शिक्षक व साहित्यकार सुशील शर्मा बताते हैं, ‘‘उस समय हम एमटेक के छात्र थे. आशुतोष विवेक हौस्टल के कमरा नंबर 65 में रहते थे. गाडरवारा के होने के चलते हमारी अकसर मुलाकात उन से होती थी. वह उस समय दृश्य और श्रव्य विभाग के छात्र हुआ करते थे. हमें देख कर आशुतोष अकसर बुंदेली भाषा में कहा करते थे, ‘बड्डे, तुम तो बड़े पढ़ने वाले हो और हम से जा पढ़ाई होत नैया. कछु जड़ीबूटी दे दो हमें भी.’

आज भी आशुतोष राना जब गाडरवारा आते हैं तो अपने दोस्तों और परिचितों से उसी सहजता से मिलतेजुलते हैं और उन की बोलती आंखें आज भी बिना कुछ कहे संवाद करती हैं.

आशुतोष राना को कालेज के दिनों से ही अदाकारी से बेहद लगाव हो गया था और दशहरे पर वह पुरानी गल्ला मंडी, गाडरवारा में होने वाली रामलीला में रावण का किरदार निभाने लगे थे. रावण का ही किरदार चुनने की खास वजह बताते हुए आशुतोष कहते हैं, ‘‘रामलीला में राम व रावण के किरदार ही अहम हैं. सपाट किरदार कभी मेरी पसंद नहीं रहे. चूंकि उस समय राम का किरदार ब्राह्मण जाति के कलाकारों को मिलता था तो फिर रावण का किरदार मेरी पहली पसंद था.’’

संस्कार मिले हैं परिवार से

आशुतोष राना के पिता रामनारायण नीखरा इलाके के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. आशुतोष 7 भाई और 5 बहनों में सब से छोटे थे. इस वजह से सभी के लाडले और हठीले भी थे. बड़ों के प्रति आदर रखने का पाठ उन्हें बचपन में ही पढ़ाया गया था.
राना बताते हैं कि मिडिल स्कूल पढ़ने के लिए उन्हें उन के अन्य 2 भाइयों के साथ जबलपुर के एक अंगरेजी मीडियम स्कूल में भेजा गया. 2 भाइयों के साथ वह वहीं हौस्टल में रहा करते थे. कुछ दिन बाद रविवार को मां और बाबूजी मिलने के लिए आए थे. इंग्लिश मीडियम स्कूल में अनुशासन सिखाया गया था तो दौड़ कर सीधे मिल भी नहीं सकते थे.

खैर, कुछ देर बाद हम लोग टाईवाई लगा कर और अपने हाथ पीछे बांध कर अनुशासन में खड़े हो गए. जैसे ही मांबाबूजी मिलने आए तो उन को इंप्रैस करने के लिए मैं ने कहा, ‘‘गुडमौर्निंग बाबूजी. गुडमौर्निंग मम्मी.’’
स्कूल में सिखाए अनुशासन के कारण हम तीनों भाइयों ने बाबूजी और मां के लपक कर पैर भी नहीं छुए. बाबूजी और मां ने उस समय तो कुछ नहीं कहा केवल मुसकरा कर रह गए.

खाने के बाद बाबूजी ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘चलिए रानाजी, अपना सामान बांध लीजिए. अब आप वहीं पढ़ेंगे.’’

हम सब लोग तो सोच रहे थे कि बाबूजी शाबाशी देंगे, पर यहां तो बाबूजी का रुख देख कर पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसकने लगी. हम सभी भाइयों ने परेशान हो कर बाबूजी से पूछा, ‘‘बाबूजी, आखिर हम लोगों से क्या गलती हो गई, जो आप स्कूल छोड़ कर घर चलने को कह रहे हैं?’’

तब बाबूजी ने हम लोगों को स्नेह से समझाते हुए कहा, ‘‘हम ने तुम लोगों को यहां कुछ नया सीखने भेजा है न कि पुराना भूलने के लिए. शिक्षा वही होती है जब हम अपने संस्कार उस में समाहित रखें.’’

उसी समय हम लोगों ने कान पकड़ कर बाबूजी से माफी मांगी और बाबूजी की दी गई सीख हम लोगों की समझ में आ गई. और तभी से हम नया तो सीख लेते हैं पर पुराना कभी नहीं भूलते. शिक्षा में ज्ञान के साथ संस्कार और संस्कृति का होना बहुत आवश्यक है.

बचपन से ही थे शरारती

आशुतोष राना बचपन के दिनों से ही शरारती थे. घर वालों के लाडप्यार का फायदा उठा कर वह शरारतों में अव्वल रहते थे. सोहागपुर डिग्री कालेज में प्रिंसिपल व उन के भाई डा. नंदकुमार नीखरा एक किस्सा सुनाते हुए कहते हैं कि इन्हीं शरारतों की वजह से जब राना 6 साल के थे, तब उन के कमर में चोट लग गई थी. उस समय सिर से पैर तक उन्हें प्लास्टर चढ़ा था. गरमी का मौसम था. आशुतोष ने मां से कहा, ‘‘मुझे कमरे से आंगन की खुली जगह में ले चलो.’’

तब घर के लोग पलंग सहित उन्हें आंगन में ले आए. उस के बाद राना ने कहा, ‘‘मुझे बरसात देखनी है.’’

राना की जिद से सभी परेशान हो गए. फिर हम सभी भाईबहनों ने घर के ऊपर के टीन की छत पर चढ़ कर बाल्टियों से पानी उड़ेलना शुरू कर दिया. इस तरह कृत्रिम बारिश का नजारा आशुतोष के सामने पेश कर दिया. राना इस पर भी खुश नहीं हुए और उन्होंने कहा सभी लोग डांस करें. फिर क्या था उन की जिद पूरी करने आधे लोग आंगन में डांस करने लगे.

स्कूल पढ़ते वक्त भी उन की शरारतें कम नहीं हुई थीं. बीटीआई स्कूल में उन के टीचर रहे सुदामा प्रसाद सोनी बताते हैं कि जब आशुतोष 11वीं कक्षा में पढ़ते थे, तब एक बार स्कूल के प्रिंसिपल साहब के साथ हमें पास के गांव चीचली जाना था तो मैं ने आशुतोष से कहा कि तुम अपने घर से जीप ले कर आ जाओ.

राना ने मेरी बात मानते हुए जीप स्कूल के सामने ला कर खड़ी कर दी. कुछ समय बाद जब हम जाने के लिए तैयार हो गए तो राना ने शरारती अंदाज में कहा, ‘‘सर, जीप स्टार्ट नहीं हो रही.’’

स्कूल के चपरासी ने धक्का लगाया, मगर फिर भी जीप स्टार्ट नहीं हुई तो आशुतोष ने कहा, ‘‘सर, आप लोगों को भी मिल कर धक्का लगाना पड़ेगा.’’

जैसे ही प्रिंसिपल साहब के साथ हम लोगों ने धक्का लगाया तो आशुतोष ने जीप स्टार्ट कर दी. बाद में पता चला कि जीप में कोई खराबी नहीं थी, आशुतोष ने मजा लेने के लिए हम से जबरन धक्का लगवाया था.

छठीं क्लास में पढ़ते लिखा लव लेटर

आशुतोष राना का बचपन उन की खास तरह की शरारतों के बीच बीता है. अहमदाबाद के स्कूल में पढ़ाई के दौरान एक लड़की उन्हें पसंद आ गई. एक दिन उन्होंने लव लेटर लिखा और उस लड़की की बेंच की ओर उछाल दिया, मगर वह लव लेटर उस लड़की की बेंच पर न पड़ कर दूसरी लड़की की बेंच पर गिर गया.
उस लड़की ने लव लेटर पढ़ते हुए इशारे से पूछा, ‘ये मेरे लिए है?’ आशुतोष ने इशारे से ही कहा, ‘नहीं, आप के लिए नहीं आगे वाली सीट पर बैठी लड़की के लिए है.’

बस, फिर क्या था उस लड़की ने लव लेटर क्लास में मौजूद टीचर को दे दिया. टीचर उन्हें मैथ और अंगरेजी पढ़ाते थे, उन्होंने आशुतोष को खड़ा कर के पूछा, ‘‘माय डार्लिंग का क्या मतलब होता है?’’

आशुतोष ने बड़े ही मासूमियत से जबाब देते हुए कहा, ‘‘सर माय डार्लिंग का मतलब होता है मेरे प्रिय.’’

फिर क्या था, टीचर ने आशुतोष को झापड़ रसीद कर दिया. आशुतोष को उस समय यह समझ नहीं आया कि उन्हें गलत आंसर के लिए मार पड़ी है या कुछ और वजह से. इस वजह से आशुतोष को मैथ और अंगरेजी से नफरत सी हो गई थी.
स्कूल के प्रिंसिपल ने उन के भाई मदन मोहन नीखरा को बुला कर आशुतोष की इस हरकत की शिकायत की तो राना दुखी हो गए थे. बाद में उन के भाई ने उन्हें स्कूटर से अहमदाबाद घुमाया और उन को समझाते हुए आगे से पढ़ाई पर ध्यान देने की बात कह कर उन का मन बहलाया था.

गुरु के आशीर्वाद से पाया मुकाम

सागर यूनिवर्सिटी में जब आशुतोष कालेज की पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान उन के बहनोई ने उन्हें पंडित देव प्रभाकर शास्त्री से मिलवाया था. देव प्रभाकर शास्त्री को दद्दाजी के नाम से जाना जाता था. जब आशुतोष राना उन से मिले तो दद्दाजी ने उन की अभिनय क्षमता की परख करते हुए उन्हें ऐक्टिंग कोर्स करने के लिए प्रेरित किया.
आशुतोष ने अपने गुरु की सलाह से साल 1994 में दिल्ली के एनएसडी यानी नैशनल स्कूल औफ ड्रामा में दाखिले के लिए गए और फर्स्ट अटेंप्ट में ही उन का सिलेक्शन हो गया.

एनएसडी में पढ़ाई करने के बाद वह काम की तलाश में मुंबई चले गए और महेश भट्ट के टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ से टेलीविजन पर एंट्री की.

‘जख्म’, ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके आशुतोष राना की जिंदगी में एक दिन ऐसा भी आया, जब महेश भट्ट ने उन्हें सैट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस की वजह सिर्फ यह थी कि आशुतोष ने उन के पैर छू लिए थे.

आशुतोष राना ने एक रोचक किस्सा सुनाते हुए कहा, ‘‘मुझे फिल्मकार और डायरेक्टर महेश भट्ट से मिलने को कहा गया. मैं उन से मिलने गया और जा कर भारतीय परंपरा के मुताबिक उन के पैर छू लिए. पैर छूते ही वह भड़क उठे, क्योंकि उन्हें पैर छूने वालों से बहुत नफरत थी. उन्होंने मुझे अपने फिल्म सैट से बाहर निकलवा दिया और असिस्टैंट डायरेक्टरों पर भी काफी गुस्सा हुए कि आखिर उन्होंने मुझे कैसे फिल्म के सैट पर घुसने दिया.’’

आशुतोष राना ने आगे बताया कि इतनी बेइज्जती के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जब भी महेश भट्ट मिलते या कहीं दिखते तो वे लपक कर उन के पैर छू लेते और वे बहुत गुस्सा होते.

आखिरकार एक दिन महेश भट्ट ने आशुतोष राना से पूछ ही लिया, ‘‘तुम मेरे पैर क्यों छूते हो जबकि मुझे इस से नफरत है?’’
आशुतोष ने जवाब दिया, ‘‘बड़ों के पैर छूना मेरे संस्कार में है, जिसे मैं नहीं छोड़ सकता.’’

यह सुन कर महेश भट्ट ने उन्हें गले से लगा लिया और साल 1995 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले टीवी सीरियल ‘स्वाभिमान’ में एक गुंडे ‘त्यागी’ का रोल दिया. बाद में तो उन्होंने महेश भट्ट द्वारा निर्देशित कई फिल्मों में काम किया, जिन में ‘जख्म’ और ‘दुश्मन’ खास हैं.

एनएसडी के 1994 बैच के छात्र रहे आशुतोष राना कहते हैं कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें एनएसडी में ही नौकरी का औफर हुआ और वह भी मोटी तनख्वाह पर, लेकिन
उन्होंने फिल्म जगत में जाने का रास्ता चुना.

रेणुका शहाणे से प्रेम की दिलचस्प कहानी

कभी जी टीवी के फेमस रिएलिटी गेम शो ‘अंताक्षरी’ में अन्नू कपूर की कोहोस्ट रही और फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ में सलमान खान की भाभी के रोल से मशहूर हुई रेणुका शहाणे से आशुतोष राना ने शादी की.

आशुतोष राना की रेणुका से पहली मुलाकात फिल्म ‘जयति’ की शूटिंग के समय हुई थी. रेणुका और आशुतोष की दोस्ती मेल मुलाकात के बाद प्यार में बदल गई और उन्होंने साल 2001 में शादी कर ली.

रेणुका से शादी करना आशुतोष के लिए आसान नहीं था. इस की वजह यह थी कि रेणुका तलाकशुदा थीं और दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं थीं. हालांकि, आशुतोष राना ने भी ठान लिया था कि रेणुका को मजबूर कर देंगे कि वह उन्हें आई लव यू बोलें और ऐसा ही हुआ.

आशुतोष और रेणुका की पहली मुलाकात डायरेक्टर हंसल मेहता की एक फिल्म की शूटिंग के दौरान हुई थी. यह मुलाकात सिंगर राजेश्वरी सचदेव ने कराई थी. उस वक्त तक आशुतोष तो रेणुका के बारे में थोड़ाबहुत जानते थे, लेकिन रेणुका के लिए वह पूरी तरह अंजान थे.

पहली मुलाकात में ही आशुतोष रेणुका को दिल दे बैठे थे. हालांकि, इस मुलाकात के बाद दोनों कई महीनों तक नहीं मिले, फिर धीरेधीरे दोनों मे बातचीत शुरू हुई. रेणुका शहाणे की पहली शादी टूट चुकी थी. उन्होंने मराठी थिएटर के डायरेक्टर विजय केनकरे से शादी की थी. ऐसे में रेणुका के मन में शादी को ले कर कुछ संदेह था.

रेणुका की मां मशहूर लेखिका शांता गोखले भी अपनी बेटी की शादी को ले कर थोड़े असमंजस में थीं. दरअसल, रेणुका के घर वालों को रेणुका की दूसरी शादी के बजाय इस बात को ले कर संशय था कि आशुतोष मध्य प्रदेश के छोटे से गांव से थे और उन की फैमिली में 12 लोग थे.

उस समय डायरेक्टर रवि राय आशुतोष और रेणुका के साथ एक शो करना चाहते थे. इस मौके का फायदा उठाते हुए आशुतोष ने रवि से रेणुका का नंबर मांग लिया. रवि ने नंबर देते हुए साफतौर पर बता दिया कि रेणुका रात को 10 बजे के बाद किसी के फोन का जवाब नहीं देतीं और न ही अनजान नंबर की काल उठाती हैं. आंसरिंग मशीन पर मैसेज छोड़ना पड़ता है.

बस, फिर क्या था आशुतोष ने रेणुका की आंसरिंग मशीन पर अपना नंबर न देते हुए एक मैसेज छोड़ा, जिस में उन्हें दशहरे की बधाई दी थी. उन्होंने अपना नंबर जानबूझ कर नहीं दिया था. आशुतोष का मानना था कि अगर रेणुका को मुझ से बात करनी होगी तो वो खुद कोशिश करेंगी और कहीं न कहीं से मेरा नंबर तलाश ही लेंगी.
कुछ दिनों बाद आशुतोष को अपनी बहन से मैसेज मिला कि रेणुका का फोन आया था और उन्होंने उन्हें दशहरा की शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद दिया है.

कुछ समय तक दोनों के बीच संदेशों का सिलसिला चलता रहा और फिर रेणुका ने उन्हें अपना पर्सनल नंबर दे दिया. जैसे ही आशुतोष को रेणुका का नंबर मिला, उसी दिन रात साढ़े 10 बजे रेणुका को काल किया और कहा, ‘थैंक्यू रेणुकाजी, आप ने अपना नंबर दे दिया.’

इस के बाद करीब 3 महीने तक उन की यूं ही फोन पर बात होती रही. आशुतोष राना के मुताबिक, एक बार रेणुका गोवा में शूटिंग कर रही थीं तो मैं ने उन्हें फोन पर एक कविता सुना दी. इस कविता में मैं ने इकरार, इनकार, खामोशी, खालीपन और झुकी निगाहें… सब कुछ लिखा था.

इस कविता को सुनने के बाद रेणुका अपने आप को रोक नहीं पाईं और उन्होंने फोन पर ही ‘आई लव यू’ कहा. यह सुन कर आशुतोष खुशी से पागल हो गए और अपने आप को संभालते हुए बोले, ‘‘रेणुकाजी, मिल कर बात करते हैं.’’
शादी के बाद आशुतोष राना जब रेणुका को ले कर गाडरवारा आते थे तो रेलवे स्टेशन से घर तक की दूरी उस समय चलने वाले घोड़ा तांगे से तय करते थे. आज उन के 2 बेटे शौर्यमान और सत्येंद्र हैं.

अभी भी जब आशुतोष गाडरवारा आते हैं तो अपने बंगले पर दोस्तों और प्रशंसकों से दिल खोल कर मिलते हैं. उन से मिलने वालों को वह इस बात का तनिक भी आभास नहीं होने देते कि वह बौलीवुड के स्टार हैं.

आशुतोष का फिल्मी सफर

साल 1996 में आशुतोष राना की पहली फिल्म ‘संशोधन’ थी. इस के बाद उन्होंने ‘कृष्ण अर्जुन’, ‘तमन्ना’, ‘जख्म’, ‘गुलाम’ समेत कई फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उन्हें असली पहचान साल 1998 में आई काजोल स्टारर फिल्म ‘दुश्मन’ ने दिलाई.
‘बादल’, ‘अब के बरस’, ‘कर्ज’, ‘कलयुग’ और ‘आवारापन’ जैसी फिल्मों में विलेन के किरदार के लिए आशुतोष को जाना जाने लगा.

फिल्म ‘दुश्मन’ में आशुतोष राना ने साइकोकिलर गोकुल पंडित का किरदार निभाया था. इस किरदार से आशुतोष ने दर्शकों का दिल जीत लिया था. उन्हें 1999 में फिल्म ‘दुश्मन’ और ‘संघर्ष’ के लिए बेस्ट विलेन के फिल्मफेयर अवार्ड से भी नवाजा गया था. बायोपिक फिल्म ‘शबनम मौसी’ के किरदार को भी लोगों ने काफी पसंद किया था.

आशुतोष राना एक ऐसे ऐक्टर हैं,जो निगेटिव रोल में भी जान फूंक देते हैं. जब उन्होंने फिल्म ‘संघर्ष’ में लज्जाशंकर पांडे का रोल निभाया तो दर्शकों की चीख निकल गई थी. बच्चों की बलि देने वाले कैरेक्टर को इस तरह निभाया कि थिएटर में बैठे दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए थे.

और खौफ का ऐसा तिलिस्म आशुतोष जैसे कलाकार ही कर सकते हैं. ‘संघर्ष’ फिल्म में आशुतोष राना ने एक ऐसे किन्नर का रोल किया था, जो बच्चों की बलि दे कर अमर हो जाना चाहता है.

लज्जाशंकर पांडे का चीखना, सनकीपन और जीभ को ट्विस्ट करने वाली आवाज
ने थिएटर में बैठे दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी थी.
खतरनाक विलेन बन कर रहे चर्चा में

इस रोल के बाद तो आशुतोष बौलीवुड के सब से खतरनाक विलेन बन गए. कहते हैं कि महेश भट्ट ने इस फिल्म को बनाने के बारे में जब सोचा था तो उन के दिमाग में सिर्फ आशुतोष ही थे और उन्होंने कहा भी था कि इस फिल्म जैसा विलेन आज तक बौलीवुड में नहीं देखा गया होगा. यह बात सच निकली और ‘संघर्ष’ जब रिलीज हुई तो खौफनाक अभिनय के लिए आशुतोष को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

आशुतोष राना बौलीवुड के ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें अभिनय करते हुए देखते वक्त लोग नजरें नहीं हटा पाते. उन के चेहरे के एक्सप्रैशन ऐसे होते हैं कि उस के सामने अच्छेअच्छे साउंड इफेक्ट भी फीके पड़ जाते हैं. वैसे तो वो एक वर्सेटाइल ऐक्टर हैं लेकिन उन्होंने विलेन के कुछ किरदार ऐसे निभाए हैं जिन्हें देखते ही थिएटर में दर्शक भी भौचक्के रह जाते हैं.

बौबी देओल की सुपरहिट फिल्म ‘बादल’ में आशुतोष राना ने डीआईजी जय सिंह राना का किरदार निभाया था. जय सिंह एक ऐसा बेहरम इंसान था, जिस ने अपने फायदे के लिए पूरे गांव तक को जला डाला था.

इमरान हाशमी स्टारर फिल्म ‘आवारापन’ में आशुतोष ने जुर्म की दुनिया के बादशाह भरत दौलत मलिक का रोल किया था. उन के इस किरदार को लोगों ने बहुत सराहा था. फिल्म ‘अब के बरस’ में इन्होंने एक राजनीतिज्ञ तेजेश्वर सिंघल का किरदार निभाया था. एक ऐसा शख्स जो 2 प्यार करने वालों को जुदा करने की कसम खाता है.
आशुतोष राना ने फिल्म ‘हासिल’ में मेन विलेन गौरीशंकर पांडे का रोल किया था. जिम्मी शेरगिल और इरफान खान जैसे कलाकारों के बीच इस फिल्म में उन्हें नोटिस किए बिना नहीं रहा जा सकता. मोहित सूरी की फिल्म ‘कलयुग’ में उन्होंने जौनी नाम के एक दलाल का रोल किया था. उन के इस कैरेक्टर की भी लोगों ने ख़ूब तारीफ की थी.

चंबल के बागी डाकुओं पर बनी फिल्म ‘सोन चिरैया’ में आशुतोष राना ने एक खतरनाक पुलिस अफसर वीरेंद्र सिंह गुर्जर का किरदार निभाया था. ऐसा निर्दयी पुलिस वाला जो डाकुओं से खार खाता है और उन्हें मार कर ही दम लेता है. उन के इस रोल की क्रिटिक्स ने ख़ूब सराहना की थी. इस फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत भी थे.
के.सी. बोकाडिया की फिल्म ‘डर्टी पौलीटिक्स’ में आशुतोष ने ओमपुरी, नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, राजपाल यादव, गोविंद नामदेव और मल्लिका शेरावत के साथ काम किया था.

मनोहर कहानियां का शो भी किया होस्ट

आशुतोष राना ने जहां जैसा रोल मिला, उसी में संतोष कर अपने अभिनय की यात्रा को जारी रखा. जब हिंदी फिल्मों में काम नहीं मिला तो कई तेलुगू, मराठी, तमिल , कन्नड़ जैसी भाषाओं की फिल्मों में काम किया. आशुतोष बताते हैं कि दक्षिण भारत की 2-3 फिल्मों में काम कर के जो पैसा मिलता था, उस से एक साल का कोटा पूरा हो जाता था.

अपनी शुद्ध हिंदी बोलने और ऐक्टिंग के अंदाज की वजह से उन्होंने कई टीवी शो ‘बाजी किस की’, ‘सरकार की दुनिया’ में होस्ट के रूप में काम किया है.
दिल्ली प्रैस की मनोहर कहानियां की अपराध कथाओं पर बने टीवी शो ‘अद्भुत कहानियां’ को होस्ट करने की जिम्मेदारी भी आशुतोष ने निभाई है.

आशुतोष ने डिजिटल प्लेटफार्म पर भी अपनी धमाकेदार एंट्री की है . एमएक्स प्लेयर पर दिखाई जाने वाली हिस्टोरिकल ड्रामा वेब सीरीज ‘छत्रसाल’ में उन्होंने औरंगजेब का किरदार निभाया है.

आशुतोष ने ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज हुई एक फिल्म ‘पगलैट’ में भी काम किया है. ‘पगलैट’ का निर्माण सीखिया फिल्म्स और बालाजी मोशन पिक्चर ने मिल कर किया है व इस के निर्देशक उमेश बिष्ट हैं.

फिल्म भारतीय मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी बताती है, जो संकट में आ जाता है. निर्माता गुनीत मोंगा की इस फिल्म को फ्रांस का सब से बड़ा सिविलियन अवार्ड मिल
चुका है.
पहली जुलाई, 2022 को आशुतोष राना की जैकी श्राफ और आदित्य राय कपूर के साथ एक फिल्म ‘ओम’ रिलीज हुई है. एक्शन से भरपूर इस फिल्म में आशुतोष राना जैकी श्राफ के भाई जय की भूमिका में हैं.

राना का साहित्य प्रेम

आशुतोष राना अपनी लाजवाब हिंदी के लिए भी काफी लोकप्रिय हैं. साहित्य का माहौल उन्हें अपने घर से ही मिला है. 7 भाई और 5 बहनों के परिवार में उन से बड़े भाई प्रभात नीखरा ‘दादा भैया’ बुंदेली भाषा के जानेमाने कवि हैं. अमरावती, महाराष्ट्र के हास्य व्यंग्य कवि किरण जोशी एक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि कविताओं से आशुतोष का बहुत लगाव रहा है.

1991 में जब गाडरवारा में कवि सम्मेलन हुआ था तो उन्होंने मंच पर आ कर सभी कवियों से आटोग्राफ लिए थे, जबकि आज
बौलीवुड में वह जिस मुकाम पर हैं तो
लोग उन से आटोग्राफ लेने की ख्वाहिश
रखते हैं.

आशुतोष राना अच्छे कवि होने के साथ साथ अच्छे लेखक भी हैं. उन के लिखे व्यंग्य ‘मौन मुसकान की मार’ नामक पुस्तक में प्रकाशित हुए हैं. उन की लिखी दूसरी पुस्तक ‘रामराज्य’ भी साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय हुई है.

हिंदी भाषा और साहित्य के प्रति आशुतोष के लगाव की वजह से उन को बड़ेबड़े साहित्यिक मंचों पर बुलाया जाता है. उन की कविताओं में नारी के प्रति प्रेम और सम्मान के भाव साफ दिखाई देते हैं. उन की कविताओं की बानगी देखिए—

प्रिय! लिख कर
नीचे लिख दूं नाम तुम्हारा
कुछ जगह बीच में छोड़
नीचे लिख दूं सदा तुम्हारा..
और लिखा बीच में क्या? ये तुम को पढ़ना है
कागज पर मन की भाषा का अर्थ समझना है
और जो भी अर्थ निकालोगी तुम, वो मुझ को स्वीकार है
मौन अधर.. कोरा कागज.. अर्थ सभी का प्यार है..
देश के हालात पर लिखी उन की पंक्तियां देखिए—
देश चलता नहीं, मचलता है,
मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ उछलता है,
जंग मैदान पर नहीं, मीडिया पर जारी है
आज तेरी तो कल मेरी बारी है.
आशुतोष का फिल्मी सफर अभी जारी है. उन के प्रशंसकों को पूरा भरोसा है कि आने वाले वक्त में गांव की मिट्टी में जन्मा यह ऐक्टर बुलंदियों के शिखर पर अपनी पताका मजबूती से जमाए रखेगा. द्य

टीवी एक्ट्रेस सुरभि तिवारी : भंवर में फंसी जिंदगी – भाग 3

दिल्ली पहुंचते ही सुरभि की ननदों और सास की प्रताड़ना फिर शुरू हो गई. ननदें सुरभि को मोटी कह कर ताने मारने लगीं. पतली होने के लिए फास्टिंग करने का दबाव बनाने लगीं. जैसेतैसे कुछ महीने बीत गए. प्रवीण का 7 जनवरी, 2020 को जन्मदिन आने वाला था.

सास ने सुरभि से कहा, ‘‘अच्छी साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ और मेरे साथ चलो. हम भाजपा दफ्तर के अलावा कुछ नेताओं के घर जाने वाले हैं.’’

किंतु सुरभि ने मना कर दिया. उस के बाद हर दिन घर के अंदर झगड़े होने लगे. अगले महीने ही 10 फरवरी, 2020 को शादी की पहली सालगिरह थी. परिवार ने इसे जश्न के तौर पर मनाने का निर्णय कर किसकिस को बुलाना है, उस की सूची बनाई जाने लगी.

सुरभि ने भी दिल्ली के अपने कुछ दोस्तों को बुलाने की सूची बनाई, मगर सास ने उसे किसी दोस्त या रिश्तेदार को बुलाने से मना कर दिया. इस बात पर सुरभि की सास के अलावा ननदों से भी काफी कहासुनी हो गई थी.

इतना ही नहीं, एक बार सुरभि बीमार हो गई थी. पैरों में काफी सूजन थी. सुरभि ने पड़ोसी से पूछ कर एक मसाज करने वाली महिला को बुलवा लिया था.

संयोग से वह मुसलिम थी. बात 16 फरवरी, 2020 की थी. वह मुसलिम महिला किचन में तेल गर्म करने गई तो ननद श्वेता ने उसे खूब डांटा कि वह उस के किचन में कैसे घुस आई. महिला सुरभि के पास जा कर रोेने लगी. उस वक्त प्रवीण घर में नहीं था.

शाम को प्रवीण के आने पर सुरभि ने दिन की घटना के बारे में शिकायत की. प्रवीण ने जब बहन से इस बारे बात की तब उस के साथ दोनों बहनें उलझ पड़ीं. यहां तक कि उसे ही डांटते हुए कहा, ‘‘मेरी मां ने जमीन बेच कर तुम्हें पायलट बनाया है. यह घर और तुम्हारी सारी प्रौपर्टी हमारी है. अभी का अभी तुम अपनी पत्नी सुरभि को ले कर घर से निकल जाओ.’’

सुरभि मजबूर हो कर चली आई मायके

यह सुरभि के लिए एक नई समस्या थी. उस वक्त सुरभि के ससुर व उन का मैडिकल सहायक हीरालाल भी मौजूद थे. उन्होंने इस पर जरा भी प्रतिक्रिया नहीं जताई. उस के बाद  16 फरवरी, 2020 को सुरभि दिल्ली से मुंबई आ गई. उस के बाद वह दोबारा दिल्ली नहीं गई.

दिल्ली से मुंबई आते समय वह अपने जेवर ले कर आई थी, जो उस ने रिश्तेदारों को दे दिए थे. जाते वक्त वह उसे वापस नहीं मिले. सुरभि के मुंबई पहुंचने पर प्रवीण उस से अकसर वीडियो काल कर हालसमाचार लेने लगा. एक महीने बाद ही कोरोना काल का दौर आया और पूरे देश में लौकडाउन लगा दिया गया. मुंबई का जीवन भी ठप हो गया. फिल्में और सीरियलों की शूटिंग बंद हो गई. इसी के साथ सुरभि की आमदनी भी रुक गई.

दूसरी तरफ पति अकसर वीडियो काल कर के पूछता था कि वह कहां है? क्या कर रही है? इत्यादि बातों से वह एकदम तंग आ चुकी थी. वह उसे न काम करने दे रहा था और न ही खर्च के लिए पैसे ही दे रहा था.

इधर मुंबई में अपने किस्त पर खरीदे फ्लैट में सुरभि के दिन मां के साथ गुजर रहे थे. सुरभि के पास कोई जमापूंजी नहीं थी. फ्लैट की ईएमआई चल रही थी. अंधेरी के लोखंडवाला में फ्लैट होने के चलते मेंटिनेंस का भी काफी खर्च था.

छोटेछोटे खर्चों का सुरभि देती थी पति को हिसाब प्रवीण उसे सिर्फ 20 हजार रुपए घर खर्च वगैरह के लिए देता था. लेकिन उस के खर्च की एकएक पाई का हिसाब लेता था. घर के राशन से ले कर आटोरिक्शा आदि तक के बिल वाट्सऐप पर मंगवाता था. आटोरिक्शा के मीटर की फोटो खींच कर प्रवीण के पास भेजनी पड़ती थी.

क्रेडिट कार्ड सुरभि के पास था, पर उस का ओटीपी प्रवीण के फोन पर ही आता था. जब भी सुरभि औनलाइन सामान मंगवाती थी, तब प्रवीण से ओटीपी मांग कर ही पेमेंट कर पाती थी.

प्रवीण हर माह लिखा कर सुरभि के हस्ताक्षर सहित कागज वाट्सऐप पर मंगाता था कि सुरभि ने कितने रुपए की सब्जी खरीदी. यहां तक कि 20 रुपए का वड़ा पाव खरीदा तो उस का भी बिल भेजना होता था. एक बार सुरभि ने पानीपूरी का पैकेट खरीद लिया था तो प्रवीण ने डांट कर कहा था कि घर में रह कर सामान्य खाना ही खाए. पानीपूरी खाना तो फिजूलखर्ची है.

इस तरह प्रवीण से मिल रहे मेंटल टार्चर से सुरभि डिप्रेशन में चली गई थी. एक तरफ कोरोना से बचाव करना था तो दूसरी तरफ पति की मानसिक प्रताड़ना की शिकार थी. एक बार वह नजदीक के कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल में इलाज कराने गई तो प्रवीण ने वह रकम यह कह कर नहीं दी कि यह गलत है. प्रवीण ने सुरभि से कहा कि उसे हर बार चैरिटी अस्पताल में इलाज कराना चाहिए.

एक बार मिल्लत नगर, अंधेरी के चैरिटी अस्पताल में जब वह अपना इलाज कराने गई, तब उस के कुछ दोस्तों ने देख कर सुरभि को सलाह दी कि इस तरह की नरक की जिंदगी जीने के बजाय उसे अपने पति से तलाक ले लेना चाहिए.

उन की सलाह पर ही सुरभि ने मन को कड़ा करते एक दिन फोन पर प्रवीण से यह बात कह दी. प्रवीण ने कह दिया कि वह उसे तलाक नहीं देगा. पूरी जिंदगी तड़पाएगा.

आखिरकार 20 जून, 2022 को मुंबई के वर्सोवा पुलिस थाने में एपीआई युवराज दलवी के सामने पति प्रवीण कुमार सिन्हा, सास लीलावती सिन्हा, ननद श्वेता व शिल्पा सिन्हा के खिलाफ सुरभि ने एक शिकायत दी.

मामला अदालत में गया और 498ए, 377, 406 आदि भादंवि की धाराओं के तहत  मुकदमा दर्ज कर लिया गया. कथा लिखे जाने तक अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हो चुकी थी.

इस तरह से ‘शगुन’, ‘कुमकुम’, ‘हरी मिर्च लाल मिर्च’, ‘कुलवधू’, ‘दीया और बाती हम’ व ‘एक रिश्ता साझेदारी का’ सहित कई सफल टीवी सीरियलों की अदाकारा सुरभि तिवारी ने महज 13 वर्ष की उम्र से अभिनय करना शुरू कर दिया था.

सीरियल ‘शगुन’ से उसे जबरदस्त सफलता मिली थी. 2009 में सुरभि तिवारी ने ‘म्हाडा’ की लौटरी से अंधेरी इलाके में मकान खरीदा, जिस के लिए स्टेट बैंक औफ इंडिया से 30 लाख रुपए का कर्ज भी लिया, जिस की ईएमआई जारी है.

वह अभिनय में इस कदर व्यस्त रही कि विवाह कर घर गृहस्थी बसाने के बारे में सोचने का मौका तक नहीं मिला था. उसे आखिरी बार ‘एक रिश्ता साझेदारी का’ सीरियल में देखा गया था.         द्य

(कथा सुरभि तिवारी से हुई बातचीत और   एफआईआर नंबर 03

टीवी एक्ट्रेस सुरभि तिवारी : भंवर में फंसी जिंदगी – भाग 2

प्रवीण ने मान लीं सुरभि की शर्तें

30 अक्तूबर, 2017 को प्रवीण और सुरभि की दूसरी मुलाकात जुहू के होटल नोवाटेल में हुई. वह डेटिंग लंबी थी. डिनर के साथसाथ करीब 2 घंटे लंबी बातचीत के दौरान प्रवीण ने शादी के बाद की जिंदगी के बारे में काफी बातें की.

प्रवीण ने कहा कि वह मुंबई में अपना मकान खरीद लेगा और अपने साथ सुरभि की मां को भी रखेगा. उस ने वादा किया कि सुरभि की इच्छा के मुताबिक उस की उम्र को देखते हुए जल्द ही परिवार भी आगे बढ़ा लेगा. वास्तव में उस वक्त तक सुरभि 39 की हो चुकी थी और शादी के बाद जल्द मां बनना चाहती थी.

प्रवीण ने इस पर भी हामी भर दी थी. उस के एक सप्ताह के भीतर ही 6 नवंबर, 2017 को प्रवीण ने एक बार फिर मुंबई पहुंच कर सांताक्रुज स्थित होटल ग्रैंड हयात में सुरभि से मुलाकात की. उन्होंने उस रोज भी मुंबई में अपना स्थायी ठिकाना बनाने का आश्वासन देते हुए बताया कि उस की  एअरलांइस कंपनी इंडिगो से ट्रांसफर की बात हो गई है. शादी के 6 महीने बाद वह दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हो जाएगा, किंतु तब तक उसे दिल्ली में ही रहना होगा.

इस पर सुरभि तिवारी ने कुछ देर सोच कर आगे का निर्णय मां के ऊपर छोड़ दिया. किंतु अगले दिन 7 नवंबर, 2017 को ही सुरभि ने ‘सायकोरियन मैट्रीमोनी सर्विसेस’ को फोन कर दूसरे लड़के की प्रोफाइल मांगी.

इस की जानकारी प्रवीण को भी हो गई. उस ने अपनी मां लीलावती सिन्हा को आगे कर दिया. अंतत: लीलावती ने सुरभि से फोन पर बात की और बीच का रास्ता निकालते हुए शादी का माहौल बनाने लगी.

लीलावती के फैसले को सुरभि और उस की मां भी नहीं बदल पाईं. फिर भी शादी की तारीख तय नहीं हो पा रही थी. सुरभि की शूटिंग के साथसाथ प्रवीण संग डेटिंग भी चलती रही.

बदला गिरगिट जैसा रंग 

अंतत: सुरभि ने अपने विचार बदल लिए. उन्होंने 10 दिसंबर, 2018 को दिल्ली के फैमिली कोर्ट में जा कर शादी कर ली. हालांकि हिंदू विधि विधान से उन की शादी 10 फरवरी, 2019 को यारी रोड, मुंबई में संपन्न हुई.

शादी के अगले रोज ही वे 9 दिनों के लिए हनीमून पर गोवा चले गए. दोनों गोवा के होटल में ठहरे. सुरभि ने महसूस किया कि प्रवीण बदला हुआ नजर आ रहा है. उस के बातचीत करने के ढंग और व्यवहार में से नरमी गायब हो चुकी है. वह उस के साथ एक तानाशाह की तरह पेश आ रहा है.

यही नहीं, रात को बैड पर जाने से पहले ही कह दिया कि वह अभी बच्चा नहीं चाहता है. जिंदगी के मजे लेना चाहता है. देश के विभिन्न शहरों के अलावा विदेश घूमना चाहता है. उस के बाद ही बच्चे की प्लानिंग करेगा. इस पर जब सुरभि ने कहा कि बच्चा पैदा करने की उम्र काफी निकल चुकी है, तब वह उसे झिड़क दिया करता.

सुरभि ने प्रवीण में बदलाव और भी कई स्तर पर महसूस किए. बच्चे की बात पर प्रवीण का निर्णय सुन कर सन्न रह गई. उसे जोर का झटका लगा. सुरभि के विरोध पर प्रवीण ने समझा कर उसे चुप करवा दिया.

हनीमून के 9 दिन बाद सुरभि अपने पति प्रवीण सिन्हा के साथ दिल्ली में द्वारका स्थित फ्लैट पर पहुंची. उस का स्वागत सास लीलावती सिन्हा, ससुर ब्रजेंद्र सिन्हा, 2 ननदें श्वेता सिन्हा और शिल्पा सिन्हा ने किया. वहां जा कर उसे पता चला कि अगले महीने 5 मार्च, 2019 को दिल्ली में शादी के रिसैप्शन का आयोजन किया गया है.

सुरभि के आते ही प्रवीण ने उस के सामने सादा कंप्यूटर पेपर और पेन देते हुए कहा, ‘‘इस पर लिख दो कि मैं ने तुम से बगैर दहेज लिए यह शादी की है. हम इस का प्रयोग आरा और पटना की चुनावी जनसभाओं में करेंगे, जिस से मेरी मां को चुनाव में जीतने के लिए अधिक से अधिक वोट मिलेंगे.’’

इस पर सुरभि तुनकती हुई बोली, ‘‘तो आप ने दहेज इस वजह से नहीं लिया कि मेरा इस्तेमाल राजनीतिक स्वार्थ के लिए कर सकें.’’

‘‘तुम हर बात को गलत ढंग से क्यों देखती हो. जब मेरी मां यानी कि अब तुम्हारी सास विधायक बन जाएगी, तब इस का फायदा तुम्हें और हम सभी को मिलेगा.’’

सुरभि को अपनी तरह से चलाना चाहते थे ससुराल वाले

घर के लोग शादी के रिसैप्शन की तैयारियों में जुट गए थे. मेहमानों के अलावा एक अलग लिस्ट पत्रकारों की भी बनी थी, लेकिन प्रवीण और उस की मां ने सुरभि को सख्त हिदायत दी थी कि वह मीडिया के सामने अकेली नहीं आएगी. उसे यहां मुंबई की बात भूलनी होगी. सब से महत्त्वपूर्ण हिदायत यह थी कि रिसैप्शन में जो भी उपहार मिलेंगे, उस पर उस का कोई अधिकार नहीं होगा. इस के साथ ही और भी कई तरह की हिदायतें दी गईं, जिसे सुन कर वह अंदर ही अंदर आने वाली विपत्तियों की कल्पना कर सिहर गई.

रिसैप्शन में लीलावती सिन्हा ने खुद को पटना में भाजपा की सक्रिय सदस्य के रूप में कार्यरत व एक माहिर राजनेता के तौर पर पेश किया. उन्होंने मीडिया के सामने सुरभि को चांदी का मुकुट पहना कर प्रदर्शित किया और उसे दहेज के बगैर लाई बहू के रूप में प्रचारित किया.

7 मार्च के बाद जब सुरभि की मां और भाई वापस मुंबई लौट आए, तब सास लीलावती ने भी अपना पैंतरा बदलते हुए सुरभि से तीखे लहजे में कहा, ‘‘देखो, अब तुम एक बिहारी परिवार की बहू हो. हमारे समाज की मान्यताओं के अनुसार रहो. कब, किस से, किस तरह मिलनाजुलना है, वह मैं बताऊंगी. अब डेली सोप वाले टीवी सीरियल में अभिनय करने के बजाय वेब सीरीज और फिल्मों में अभिनय करो. जब शूटिंग हो तब दिल्ली से मुंबई जाओ. अन्यथा दिल्ली या पटना में ही रहो.’’

इस के अलावा सास ने यह भी कहा कि वह उस के साथ कुछ भाजपा नेताआें से मिले और जब जरूरत हो, तब मेरे साथ राजनीतिक क्षेत्र में काम करना भी शुरू करे.

हालांकि सुरभि ने इस का विनम्रता से विरोध जताया कि उस की राजनीति में रुचि नहीं है और किसी नेता से मिलने की इच्छा भी नहीं रखती है. अभिनय को नहीं छोड़ सकती है. वह सिर्फ एक्टर ही बनी रहना चाहती है.

उस के बाद तो सुरभि की सास और उन की ननदों ने कठोर तेवर अपना लिए. उन के बदले हुए तेवर का असर सुरभि की निजी जिंदगी पर भी पड़ा. आए दिन किसी न किसी बहाने से प्रवीण की बहनें और मां उसे प्रताडि़त करने लगीं.

एक तरफ सुरभि के सामने सास और ननदों के ताने थे, दूसरी तरफ पति का अमानवीय व्यवहार. सुरभि ने अपनी समस्या मां सरिता तिवारी, भाई सौरभ तिवारी, बहन सारिका शुक्ला व सारिका के पति राजीव शुक्ला को भी सुनाई. उन से इस बारे में फोन पर बातें होती रहती थीं.

उन लोगों ने भी कई बार फोन कर प्रवीण को समझाने की कोशिश की, लेकिन बात और बिगड़ गई. बच्चे के नाम पर प्रवीण ने कहा, ‘‘तुम्हें हालात समझने चाहिए. ऐसा करो, हमें अभी बच्चे की जरूरत नहीं है. तुम कुछ दिन मुंबई में ही रह कर अभिनय करिअर को संवारो. मैं यहां किसी अच्छे कारोबार की योजना बना रहा हूं.’’

पतिपत्नी के बीच बढ़ गए मतभेद

मार्च में होली के दिन सुरभि अपने मायके मुंबई चली आई. जल्द ही प्रवीण दिल्ली लौट आया. बीचबीच में वह सुरभि को बुला कर अपने साथ फ्लाइट में ले जाने लगा. उन के बीच तनाव कुछ कम हो गया था. एक दिन पति को खुश देख कर सुरभि ने कहा, ‘‘आप अभी मुंबई में ही हो. तो फ्लैट तलाश कर खरीद लो.’’

जवाब में प्रवीण ने कहा, ‘‘यह तय है कि मैं मुंबई में घर नहीं खरीद सकता. और यहां किराए का भी मकान नहीं ले सकता. क्योंकि मेरे पास पैसे नहीं है. मेरे सारे पैसे खर्च हो चुके हैं. तुम्हें मेरे साथ दिल्ली में ही आ कर रहना होगा.’’

इस बात पर सुरभि और प्रवीण के बीच काफी बहस हुई. अंतत: प्रवीण अकेले ही दिल्ली लौट आया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते मतभेद को देख कर सुरभि की मां ने सुरभि को कुछ दिनों तक पति के साथ रहने की सलाह दी. मां के कहने पर 2-3 दिन के बाद सुरभि भी दिल्ली आ गई.

टीवी एक्ट्रेस सुरभि तिवारी : भंवर में फंसी जिंदगी – भाग 1

लंबे समय तक चलने वाले सीरियलों की दमदार अभिनेत्री सुरभि तिवारी की वैवाहिक जिंदगी 3 साल में ही लड़खड़ा गई. उन्हें न अच्छे ‘शगुन’ और ‘कुलवधू’ की अनुभूति हो पाई और न ही पायलट पति प्रवीण कुमार के संग साझेदारी का रिश्ता ही निभाना संभव हो पाया. मुंबई, दिल्ली और पटना तक के सफर में विधायक बनने का सपना संजोए सास लीलावती सिन्हा के लिए वह एक प्रचारक मात्र थी तो पति के लिए कुछ और. यौन हिंसा की शिकार ‘दीया और बाती हम’, ‘हरी मिर्च लाल मिर्च’ और ‘तोता वेड्स मैना’ की सुरभि का अब क्या होगा…पूछ रहे हैं उन के प्रशंसक.

करीब 6 साल पहले नवंबर 2016 की बात है. ‘शगुन’ सीरियल की अभिनेत्री सुरभि तिवारी एक सीरियल की शूटिंग से फारिग हो कर रात के साढ़े 9 बजे अंधेरी स्थित अपने फ्लैट लौट रही थी. कैब सामान्य गति से अपनी लेन में थी. उस के साथ सहकलाकार और सहेली अपूर्वा भी थी. तभी उस की मां का फोन आया था.

मां देरी होने पर चिंता जता रही थीं. तब सुरभि ने फोन पर जवाब में मां को समझाया, ‘‘बस मां, मैं 20 मिनट में पहुंच रही हूं. ये कैब वाले भैया गाड़ी थोड़ी धीमी चला रहे हैं. वैसे भी मेरे साथ अपूर्वा है न.’’

‘‘मां चिंता कर रही हैं न!’’ बगल में बैठी सहेली अपूर्वा बोली.

‘‘हां यार, मां को हमेशा एक ही चिंता रहती है… देर हो गई… रात हो गई… जमाना ठीक नहीं है…’’ सुरभि बोलने लगी.

‘‘मां हैं न! हर मां को बच्चों के भविष्य के साथसाथ सुरक्षा की भी चिंता रहती है. ऐसा कर तू अब शादी कर ले. फिर देखना तुम्हारी मां की यह चिंता हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी,’’ अपूर्वा बोली.

‘‘तू तो ऐसे बोल रही है, जैसे लड़का कहीं रखा हुआ हो, और जा कर मैं उसे उठा ले जाऊं मंडप पर.’’ सुरभि बोली.

‘‘ऐसा ही समझ. अपने फील्ड के किसी को पसंद कर लाइफ पार्टनर बना ले.’’ अपूर्वा ने समझाया.

‘‘अरे ना बाबा ना,’’ सुरभि तुरंत बोल पड़ी.

‘‘क्यों अपने फील्ड के लड़के में क्या कमी है? एक से बढ़ कर एक हैं सारे. …और बिहार यूपी के भी तो हैं.’’ अपूर्वा ने तर्क किया.

‘‘बात कमी की नहीं, मेरी पसंद की है. मैं चाहती हूं कि मेरा लाइफ पार्टनर हमारे फील्ड से अलग का हो. क्योंकि दिन भर सेट पर शूटिंग के बाद जब घर पर रहूं तब वहां कैमरा, सीन, सीरियल, चैनल आदि की बातें न हों. किसी तरह के कंप्टीशन की भावना दिमाग में हलचल न पैदा करे. मैं ऐसे व्यक्ति से शादी करना चाहती हूं, जो फिल्म या टीवी जगत का न हो, भले ही वह डाक्टर, इंजीनियर या कोई बैंककर्मी या फिर बिजनैसमैन ही क्यों न हो!’’ सुरभि बोली.

‘‘हां यार, तुम ने कहा तो सही है, लेकिन किस्मत भी तो कुछ होती है.’’ अपूर्वा ने कहा.

‘‘मैं भी देखती हूं मेरी किस्मत में क्या है?’’ सुरभि बोली.

‘‘किस्मत क्या होती है मैडमजी, वह तो कर्म से बदलती रहती है.’’ सुरभि को रोजाना घर तक छोड़ने वाला कैब ड्राइवर अचानक बोल पड़ा. उस की बात सुन दोनों हंस पड़ी.

‘‘लो, अब इस की भी सुनो.’’ अपूर्वा बोली. फिर चुप्पी छा गई.

लांकि तब तक सुरभि के दिमाग में शादी की बात बैठ गई थी. वह सोच में पड़ गई, ‘38 की होने को आई. अभी नहीं तो कब करेगी शादी? अपूर्वा ठीक ही तो कह रही है मेरी जाति, समाज में इतनी उम्र की लड़कियों को तो कोई पूछता ही नहीं. आखिर कहां तलाशा जाए मम्मी की पसंद का पारिवारिक फैमिली का लड़का.’

‘‘क्या सोचने लगी? अरे मैट्रीमोनियल साइट्स हैं न इस के लिए.’’ अपूर्वा उस के मन को भांपते हुए बोली.

जवाब में सुरभि मुसकरा दी. कुछ देर बाद बोली, ‘‘तुम्हारी नजर में कोई विश्वसनीय साइट हो तो बताना.’’

‘‘अब तो समझो हो गई शादी.’’ अपूर्वा हंसते हुए बोली.

मैट्रीमोनियल साइट से मिला जीवनसाथी

सुरभि को शादी के लिए टोकने वाली अकेली अपूर्वा ही नहीं थी. घर में मां से ले कर सेट पर साथ काम करने वाले दूसरे संगीसाथी भी घर बसाने के लिए जब तब कह देते थे. एक दिन सुरभि ने आखिरकार शादी करने का निर्णय ले लिया. दिसंबर, 2016 में उस ने सहेली की मदद से ‘सायकोरियन मैट्रीमोनी सर्विसेज’ में अपनी प्रोफाइल रजिस्टर करवा दी.

अपनी प्रोफाइल में उस ने स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह किस तरह के व्यक्ति से शादी करना चाहती हैं. इसी के साथ उस ने अपनी कुछ शर्तें भी रखीं. उन में एक महत्त्वपूर्ण शर्त यह भी थी कि वह शादी के बाद मुंबई में ही रहेगी. वह एक्टिंग शादी के बाद भी जारी रखेगी.

कुछ दिन बाद ही मैरिज ब्यूरो की तरफ से कई लड़कों के बायोडाटा सुरभि के ईमेल पर आ गए. उन्हीं में एक इंडिगो एअरलाइंस में कार्यरत पायलट प्रवीण कुमार सिन्हा का प्रोफाइल भी था.

उम्र के अंतर और कदकाठी, पर्सनैलिटी, प्रोफेशन के लिहाज से सुरभि के लिए वह सूटेबल था. सिर्फ शर्त के मुताबिक एक ही कमी थी कि उस की पोस्टिंग दिल्ली में थी. वह दक्षिणपश्चिमी दिल्ली के द्वारका इलाके में अपनी 2 बहनों श्वेता और शिल्पा सिन्हा के साथ रहता था. फिर भी वह सुरभि और उस की मां को जंच रहा था. उन्होंने सोचा क्यों न एक बार लड़के से बात की जाए.

पायलट की नौकरी तो मुंबई में भी की जा सकती है. इसी उम्मीद के साथ सुरभि ने काफी कुछ सोचविचार के बाद सितंबर, 2017 में पहली बार प्रवीण से बात की. उन की एक कैफे हाउस में मुलाकात हुई.

सुरभि ने सिर्फ एक ही सवाल किया, ‘‘क्या आप को मेरी सारी शर्तें मंजूर हैं?’’

इस पर प्रवीण चुप रहा. सुरभि कभी उस के चेहरे को तो कभी अपने हाथ में लिए कौफी के कप को देखती रही. जवाब का इंतजार था.

प्रवीण ने अपनी कौफी का प्याला उठाया. बोला, ‘‘शर्तें बदली भी जा सकती हैं.’’

‘‘कम से कम 2 शर्तें तो नहीं,’’ सुरभि तुरंत बोली.

‘‘…तो फिर मैं ही खुद को बदल लूंगा.’’ प्रवीण के इतना कहते ही सुरभि के चेहरे पर चमक आ गई.

‘‘हमारे पास मौके हैं तरक्की की मंजिल तक पहुंचने के लिए न कि शर्तों में बंध कर लड़खड़ाने के लिए.’’ प्रवीण बोला.

कौफी के अंतिम घूंट तक सुरभि को इतना तो अहसास हो ही गया था कि प्रवीण एक सुलझा हुआ और साथ देने वाला इंसान है. प्रवीण ने साफ लहजे में कह दिया था कि उसे मुंबई आ कर रहने में कोई आपत्ति नहीं है.

वैसे वह मूल निवासी आरा, बिहार का है. पढ़ाई पटना में हुई और नौकरी मिली तब दिल्ली के पालम एयरपोर्ट से सटे द्वारका में आ कर रहने लगा. प्रवीण ने स्पष्ट किया कि एविएशन के उस के कई दोस्त दिल्ली से आ कर मुंबई रहने लगे हैं, इसलिए वह भी ऐसा आसानी से कर सकता है.

उस रोज दोनों के बीच विवाह की सहमति बन गई. अब उन के बातविचार पर परिवार के अभिभावकों की मुहर लगनी बाकी थी. हालांकि सुरभि जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी. उस ने अपनी तरफ से सब कुछ समझने के लिए थोड़ा समय लिया. उस ने प्रवीण के बारे में कुछ और जानकारियां जुटा लीं.

पता चला कि प्रवीण की मां लीलावती सिन्हा भाजपा की एक सक्रिय नेता हैं और विधायक बनने के प्रयास में हैं. उन की बिहार की राजनीति में अच्छी दखल है.

कृतिका की रहस्यमय हत्या की हैरतअंगेज कहानी – भाग 3

क्राइम ब्रांच विजय द्विवेदी के पीछे लग गई. फलस्वरूप सन 2012 के शुरुआती दौर में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. उस वक्त वह कांग्रेसी नेता सुरेश कलमाड़ी को अपना शिकार बनाने की कोशिश कर रहा था. कलमाड़ी से भी उस ने खुद को जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बताया था. क्राइम ब्रांच ने उसे अपनी कस्डटी में ले कर पूछताछ की तो सारा मामला सामने आ गया.

यह बात जब कृतिका को पता चली तो वह स्तब्ध रह गई. विजय द्विवेदी के संपर्क और एक साल तक उस के साथ रहने के बावजूद भी वह उस की हकीकत नहीं जान पाई थी. दरअसल, वह उस से भी बड़ा ऐक्टर था. बहरहाल, विजय द्विवेदी के ठगी का परदा उठा नहीं कि कृतिका ने उस से तलाक ले लिया. उस का साथ छोड़ कर वह अलग रहने लगी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से बिता रही थी. छोटे पर्दे पर उस के लिए काम की कोई कमी नहीं थी. हत्या के पहले उस ने खुशीखुशी अपना बर्थडे मनाया था. उस के 2-3 दिनों बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

धीरेधीरे इस घटना को घटे लगभग एक माह के करीब हो गया. लेकिन अभी तक अभियुक्तों के बारे में पुलिस को कोई जानकारी नहीं मिली थी. पुलिस अपनी तफ्तीश की कोई दिशा तय करती, तभी सांताकु्रज के कालिया लैब की रिपोर्ट देख कर उन का ध्यान एमडी ड्रग्स की तरफ गया. इसी बीच कृतिका के परिवार वालों ने बताया कि अपनी पहली शादी और तलाक के बाद वह काफी दुखी थी, जिस के चलते वह ड्रग्स लेने लगी थी.

जांच अधिकारियों ने उन के इसी बयान को आधार बना कर जांच करने का फैसला किया. एसीपी अरुण चव्हाण ने एक नई टीम का गठन किया. इस टीम में उन्होंने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर उदय राजशिर्के, नंदकुमार गोपाल, खार पुलिस थाने के असिस्टैंट इंसपेक्टर जोगदंड, वैशाली चव्हाण, दयानायक और सावले आदि को शामिल किया. टीम के लोगों को अलगअलग जिम्मेदारी सौंपी गई.

सीनियर इंसपेक्टर सी.एस. गायकवाड़ के निर्देशन में जांच टीम ने पुन: घटनास्थल का निरीक्षण किया और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. इस कोशिश में पुलिस को एक फुटेज में 2 संदिग्ध युवकों की परछाइयां नजर आईं. लेकिन उन का चेहरा स्पष्ट नहीं था. इस के अलावा पुलिस ने करीब 200 लोगों से पूछताछ करने के अलावा कृतिका के फोन की 2-3 सालों की काल डिटेल्स और डाटा निकलवाया. इस के बाद पुलिस को तफ्तीश की एक हल्की सी किरण नजर आई. इसी के सहारे पुलिस कृतिका के हत्यारे ड्रग्स सप्लायर तक पहुंचने में कामयाब हो गई.

दरअसल, कृतिका को ड्रग्स लेने की आदत पड़ गई थी. उसे ड्रग्स आसिफ अली उर्फ सन्नी सप्लाई करता था. वह सिर्फ कृतिका को ही नहीं, बल्कि और भी कई फिल्मी हस्तियों को ड्रग्स सप्लाई किया करता था. इस चक्कर में वह जेल भी गया था. पूछताछ में उस ने बताया कि वह जेल जाने के पहले कृतिका को ड्रग्स सप्लाई करता था, लेकिन उस के जेल जाने के बाद कृतिका उस के दोस्त शकील उर्फ बौडी बिल्डर से ड्रग्स लेने लगी थी.

शकील उर्फ बौडी बिल्डर थाणे पालघर जनपद के उपनगर नालासोपारा (वेस्ट) की एक इमारत में किराए की काफी मोटी रकम दे कर रहता था. ड्रग्स सप्लाई के दौरान कृतिका और शकील खान की अच्छी दोस्ती हो गई थी. इसी के चलते वह कई बार कृतिका को उधारी में ड्रग्स दे देता था. फलस्वरूप कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बकाया रह गए थे. कृतिका उस का पैसा दे पाती, उस के पहले ही वह अगस्त, 2016 के पहले हफ्ते में जेल चला गया था.

शकील नसीम खान के अपने गिनेचुने ग्राहक थे. उन लोगों को ड्रग्स सप्लाई करने के लिए शकील खान बादशाह उर्फ साधवी लालदास से ड्रग्स लेता था. दोनों के बीच उधारी चलती रहती थी. नवंबर, 2016 में जब शकील जेल से बाहर आया तो उस के दोस्त बादशाह ने उस से अपने पैसों की मांग की. कृतिका पर उस के 6 हजार रुपए बाकी थे. दरअसल, एक ही धंधे में होने के कारण शकील खान ने बादशाह से ड्रग्स ले कर कृतिका को सप्लाई किया था. बादशाह ने जब शकील खान पर दबाव बनाया तो उस ने कृतिका से अपने बकाया  पैसों की मांग शुरू कर दी. लेकिन कृतिका उस का पैसा देने में आनाकानी कर रही थी. इस बीच करीब 6 महीने का समय निकल गया.

घटना के दिन शकील खान अपने दोस्त बादशाह को यह कह कर कृतिका के घर ले गया कि पैसा वह कृतिका के घर पर देगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. रात का खानापीना करने के बाद चलते समय जब शकील खान ने कृतिका से अपने पैसे मांगे तो उस ने पैसे देने में मजबूरी जताई. इस की वजह से दोनों में विवाद बढ़ गया.

कृतिका ने चिल्ला कर लोगों को एकत्र करने की धमकी दी तो शकील खान को गुस्सा आ गया. उस ने कृतिका के साथ मारपीट शुरू कर दी. शकील खान के पास लोहे का पंच था, जिस से उस ने कृतिका पर कई वार किए. इस के अलावा उस ने पास पड़ी किसी भारी चीज से भी उस के सिर पर वार कर दिया, जिस से उस की मौत हो गई. इस बीच उस का दोस्त बादशाह उन दोनों का बीच बचाव करता रहा. लेकिन कृतिका की जान नहीं बच सकी.

कृतिका की हत्या करने के बाद शकील खान ने कमरे का एसी चालू कर दिया. उस के बाद कृतिका के बदन के सारे जेवर और 22 सौ रुपए नकद ले कर बादशाह के साथ वहां से चला गया. बहरहाल, इन दोनों अभियुक्तों को पुलिस टीम ने 8 जुलाई को रात को नालासोपारा और पनवेल से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में दोनों ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है.

विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें अदालत पर पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में आर्थर जेल भेज दिया गया. दोनों अभियुक्त अभी जेल में हैं. लेकिन जांच अधिकारियों के सामने अभी भी एक प्रश्न मुंह बाए खड़ा है कि क्या मात्र 6 हजार रुपए के लिए कृतिका की हत्या की गई. ऐसा लगता तो नहीं है. क्योंकि 6 हजार रुपए न तो ड्रग्स सप्लायरों के लिए बड़ी रकम थी और न ही कृतिका के लिए. बहरहाल मामले की जांच अभी जारी है.

कृतिका की रहस्यमय हत्या की हैरतअंगेज कहानी – भाग 2

उस की हत्या में भी इमारत के सिक्योरिटी गार्ड राजकुमार का हाथ था. इसी थ्योरी के आधार पर इंसपेक्टर दया नायक ने अपनी टीम के साथ तफ्तीश उसी इमारत से शुरू की, जिस में कृतिका रहती थी. उन्होंने इमारत के आसपास रहने वालों से पूछताछ की, वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज खंगाले, वहां के सिक्योरिटी गार्डों से पूछताछ की और संदेह के आधार पर उसे हिरासत में भी लिया. उस इमारत का दूसरा सिक्योरिटी गार्ड लखनऊ गया हुआ था. उस की तलाश में पुलिस की एक टीम लखनऊ भी भेजी गई. लेकिन वहां से उसे खाली हाथ लौटना पड़ा.crime story

27 वर्षीया मौडल और अभिनेत्री कृतिका उत्तराखंड के हरिद्वार की रहने वाली थी. उस के पिता हरिद्वार के सम्मानित व्यक्ति थे. ऐशोआराम में पलीबढ़ी कृतिका खूबसूरत भी थी और महत्वाकांक्षी भी. वह ग्लैमर की लाइन में जाना चाहती थी. जबकि उस का परिवार चाहता था कि वह पढ़लिख कर कोई अच्छी नौकरी करे. कृतिका के सिर पर अभिनय और बौलीवुड का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उसे मांबाप की कोई भी सलाह अच्छी नहीं लगती थी. वह बौलीवुड में जाने के लिए स्कूल और कालेजों के हर प्रोग्राम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी. इसी के चलते उसे अनेक पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र मिल चुके थे.

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कृतिका बौलीवुड की रंगीन दुनिया में काम पाने के लिए प्रयास करने लगी. इस के लिए उस ने अपना फोटो प्रोफाइल तैयार करा लिया था, जिसे वह विभिन्न विज्ञापन एजेंसियों को भेजती रहती थी. कुछ एक एजेंसियों ने उसे रिस्पौंस भी दिया और उसे औडिशन के लिए भी बुलाया. मौडलिंग की दुनिया में वह कुछ हद तक कामयाब भी हो गई थी. इस से उस का हौसला काफी हद तक बढ़ गया. उसे मौडलिंग के औफर मिलने लगे थे.

वैसे बता दें कि कृतिका मौडल नहीं बनना चाहती थी, क्योंकि शरीर के कपड़े उतार कर देह की नुमाइश करना उसे अच्छा नहीं लगता था. पर फिल्मों में काम करने की ललक उसे ऐसे विज्ञापनों में काम करने को मजबूर करती रही और इन्हीं के सहारे वह मुंबई जा पहुंची.

सन 2009 में कृतिका मायानगरी मुंबई आ गई और मौडलिंग करने लगी. मौडलिंग के साथसाथ वह बौलीवुड की दुनिया में भी अपनी किस्मत आजमाती रही. इसी चक्कर में उस ने मौडलिंग एजेंसियों के कई औफर भी ठुकराए. परिणाम यह हुआ कि उस के पास मौडलिंग एजेसियों के औफर आने बंद हो गए. इस बीच वह कई फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों से भी मिली. लेकिन उन से उसे आश्वासन तो मिले, पर काम नहीं.

इस सब के चलते एक तरह से वह निराशा से घिर गई थी. तभी एक पार्टी में उस की मुलाकात दिल्ली के बिजनैसमैन राज त्रिवेदी से हुई. जल्दी ही राज त्रिवेदी और कृतिका ने शादी कर ली. शादी के बाद दोनों दिल्ली आ गए. लेकिन कृतिका अपनी शादीशुदा जिंदगी में अधिक दिनों तक खुश नहीं रह पाई और एक साल में ही राज त्रिवेदी से तलाक ले कर आजाद हो गई. अपनी शादी की असफलता से कृतिका टूट सी गई थी, लेकिन उस ने अपने सपनों को नहीं टूटने दिया था.crime story

दिल्ली में रहते हुए कृतिका की मुलाकात शातिर ठग विजय द्विवेदी से हुई. विजय द्विवेदी मुंबई के कई बड़े फिल्मी सितारों और राजनेताओं को चूना लगा चुका था. जिन में फिल्म जगत के जानेमाने अभिनेता गोविंदा, टीवी और भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री श्वेता तिवारी तथा बालाजी टेलीफिल्म्स की मालिक एकता कपूर और कांग्रेस के कद्दावर नेता अमरीश पटेल शामिल थे.

30 वर्षीय विजय द्विवेदी मूलरूप से दिल्ली का रहने वाला था. वह मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखता था, साथ ही सुंदर और आकर्षण व्यक्तित्व का मालिक था. खुद को वह कांग्रेस के कद्दावर नेता जनार्दन द्विवेदी का भतीजा बता कर लोगों को अपना परिचय बड़े ही रौब रुतबे वाले अंदाज में देता था. इस से लोग उस के प्रभाव में आ जाते थे. उस ने कृतिका को भी अपना परिचय इसी तरह दिया था. महत्वाकांक्षी कृतिका उस के प्रभाव में आ गई.

विजय द्विवेदी ने कृतिका को जब दिल्ली के एक मौल में शौपिंग करते देखा था, तभी उस ने सोच लिया था कि उसे किसी भी कीमत पर पाना है. वह कृतिका की सुंदरता पर कुछ इस तरह रीझा था कि जबतब कृतिका के आसपास शिकारी चील की तरह चक्कर लगाने लगा. आखिर एक दिन उसे कृतिका के करीब आने का मौका मिल ही गया.

कृतिका के करीब आते ही वह उस की तारीफों के पुल बांधने लगा, साथ ही उस ने उस की दुखती रगों पर हाथ भी रख दिया.उस ने कहा कि उस के जैसी युवती को मौडल, टीवी एक्ट्रेस या फिर फिल्म अभिनेत्री होना चाहिए. उस का यह तीर निशाने पर लगा. नतीजा यह हुआ कि शादी और फिर तलाक होने के बाद भी कृतिका के दिल में बौलीवुड के जो सपने बरकरार थे, उन्हें हवा मिल गई.

आखिरकार विजय द्विवेदी ने कृतिका को अपनी झूठी बातों से अपने प्रेमजाल में फांस लिया. कृतिका की नजदीकियां पाने के लिए उस ने उस की कमजोरी पकड़ी थी. उसे करीब लाने के लिए ही उस ने हाईप्रोफाइल अभिनेताओं और राजनीतिक रसूखदारों के नाम लिए थे. बात बढ़ी तो दोनों की मुलाकातें भी बढ़ गईं. कृतिका को भी विजय द्विवेदी से प्यार हो गया. कृतिका को अपनी मुट्ठी में करने के बाद विजय द्विवेदी ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और कृतिका से शादी कर ली.

सन 2011 में कृतिका विजय द्विवेदी के साथ अपनी किस्मत आजमाने वापस मुंबई आ गई. दोनों अंधेरी वेस्ट के लोखंडवाला कौंपलेक्स इलाके में किराए के एक फ्लैट में साथसाथ रहने लगे. मुंबई आने के बाद कृतिका फिर से बौलीवुड की गलियों में संघर्ष करने लगी. दूसरी ओर विजय द्विवेदी अपने शिकार ढूंढने लगा था. बहरहाल, इस बार एक तरफ कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी की किस्मत रंग लाई, वही दूसरी ओर विजय द्विवेदी की किस्मत के सितारे गर्दिश में आ गए.

कृतिका को जल्द ही फिल्म ‘रज्जो’ में कंगना रनौत के साथ एक बड़ा मौका मिल गया. यह फिल्म सन 2013 में बन कर रिलीज हुई तो दर्शकों को कृतिका का अभिनय पसंद आया. इस के बाद कृतिका के सितारे चमकने लगे. फिल्म ‘रज्जो’ के बाद टीवी धारावाहिक ‘परिचय’ से उस की एंट्री एकता कपूर की कंपनी में हो गई.

इस के साथ ही उसे क्राइम धारावाहिक ‘सावधान इंडिया’ में भी काम मिलने लगा. जहां सन 2013 से कृतिका का कैरियर संवरना शुरू हुआ, वहीं विजय द्विवेदी के कैरियर का सितारा सन 2012 डूब गया था. कांग्रेस नेता अमरीश पटेल को ठगने के बाद उस के कैरियर की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी.

कांग्रेस नेता अमरीश पटेल के ठगे जाने की खबर जब उन की पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी को मिली तो वह सन्न रह गए थे. उन्होंने इस मामले का संज्ञान लेते हुए इस की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण से कर दी कि कोई उन्हें अपना चाचा बता कर उन की छवि खराब करने की कोशिश कर रहा है. मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया.

कृतिका की रहस्यमय हत्या की हैरतअंगेज कहानी – भाग 1

छोटे शहरों से बड़े सपने ले कर सैकड़ों लड़कियां आए दिन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचती हैं. लेकिन इन में से गिनीचुनी लड़कियों को ही कामयाबी मिलती है. दरअसल, फिल्म इंडस्ट्री भूलभुलैया की तरह है, जहां प्रवेश करना तो आसान है, लेकिन बाहर निकलना बहुत मुश्किल. क्योंकि यहां कदमकदम पर दिगभ्रमित करने वाले मोड़ों पर गलत राह बताने वाले मौजूद रहते हैं, जिन के अपनेअपने स्वार्थ होते हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में एक तरफ जहां श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, हेमामालिनी, काजोल, जैसी अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय का परचम लहराया, वहीं दूसरी ओर दिव्या भारती, स्मिता पाटिल, जिया खान, नफीसा जोसेफ, शिखा जोशी, विवेका बाबा, मीनाक्षी थापा और प्रत्यूषा बनर्जी जैसी सुंदर व प्रतिभावान छोटे व बड़े परदे की अभिनेत्रियों ने भावनाओं में बह कर अथवा अपनी नाकामयाबी की वजह से जान गंवाई.

सच तो यह है कि प्राण गंवाने वाली किसी भी अभिनेत्री की मौत का सच कभी सामने नहीं आया. अब ऐसी अभिनेत्रियों में एक और नाम जुड़ गया है कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी का.

घटना 12 जून, 2017 की है. सुबह के करीब 10 बजे का समय था. मुंबई के उपनगर अंधेरी (वेस्ट) स्थित अंबोली पुलिस थाने के चार्जरूम में तैनात ड्यूटी अधिकारी को फोन पर खबर मिली कि चारबंगला स्थित एसआरए भैरवनाथ हाउसिंग सोसाइटी की 5वीं मंजिल के फ्लैट नंबर 503 में से दुर्गंध आ रही है.

ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने मामले की डायरी बना कर इस की जानकारी सीनियर क्राइम इंसपेक्टर दयानायक को दी. इंसपेक्टर दयानायक मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत अपने साथ पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस मामले की जानकारी थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ और वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी थी.crime story

जब पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची, तब तक वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई थी. भीड़ को हटा कर पुलिस टीम कमरे के सामने पहुंची. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि उस फ्लैट में 2-3 सालों से फिल्म और टीवी अभिनेत्री कृतिका उर्फ ज्योति चौधरी किराए पर रह रही थी. लेकिन वह अपने फ्लैट में कब आती थी और जाती थी, इस की जानकारी किसी को नहीं थी. चूंकि उस का काम ही ऐसा था, इसलिए किसी ने उस के आनेजाने पर ध्यान नहीं दिया था. पासपड़ोस के लोगों से भी उस का संबंध नाममात्र का था. पता चला कि कई बार तो वह शूटिंग पर चली जाती थी तो कईकई दिन नहीं लौटती थी.

फ्लैट की चाबी किसी के पास नहीं थी. जबकि फ्लैट बंद था. इंसपेक्टर दया नायक ने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर के फ्लैट का दरवाजा तोड़वा दिया. दरवाजा टूटते ही अंदर से बदबू का ऐसा झोंका आया कि वहां खड़े लोगों को सांस लेना कठिन हो गया. नाक पर रूमाल रख कर जब पुलिस टीम फ्लैट के अंदर दाखिल हुई तो कमरे का एसी 19 डिग्री टंप्रेचर पर चल रहा था. संभवत: हत्यारा काफी चालाक और शातिर था. लाश लंबे समय तक सुरक्षित रहे और सड़न की बदबू बाहर न जाए, यह सोच कर उस ने एसी चालू छोड़ दिया था. लाश की स्थिति से लग रहा था कि कृतिका की 3-4 दिनों पहले ही मौत हो गई थी.

इंसपेक्टर दया नायक अभी अपनी टीम के साथ घटनास्थल का निरीक्षण और मृतका कृतिका के पड़ोसियों से पूछताछ कर रहे थे कि अंबोली पुलिस थाने के थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़, डीसीपी परमजीत सिंह दहिया, एसीपी अरुण चव्हाण, क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के अधिकारी और फौरेंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई. फौरेंसिक टीम का काम खत्म हो जाने के बाद पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने घटनास्थल का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ से जरूरी बातें कर के अधिकारी अपने औफिस लौट गए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इंसपेक्टर दया नायक और सहयोगियों के साथ मिल कर घटनास्थल और मृतका कृतिका के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. कृतिका का शव उस के बैडरूम में बैड पर चित पड़ा था. शव के पास ही उस का मोबाइल फोन और ड्रग्स जैसा दिखने वाले पाउडर का एक पैकेट पड़ा था. पुलिस ने कृतिका का मोबाइल अपने कब्जे में ले लिया और पाउडर के पैकेट को जांच के लिए सांताकु्रज के कालिया लैब भेज दिया. फोन से कृतिका के घर वालों का नंबर निकाल कर उन्हें इस मामले की जानकारी दे दी गई.

घटनास्थल की जांच में कृतिका के बर्थडे का एक नया फोटो भी मिला, जिस में वह 2 युवकों और 3 युवतियों के बीच पीले रंग की ड्रेस में खड़ी थी और काफी खुश नजर आ रही थी. वह फोटो संभवत: 5 और 8 जून, 2017 के बीच खींची गई थी. कृतिका की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था, साथ ही उस की हत्या में अंगुलियों में पहने जाने वाले नुकीले पंजों का इस्तेमाल किया गया था. कृतिका के शरीर पर कई तरह के जख्मों के निशान थे, जिस से लगता था कि हत्या के पूर्व कृतिका के और हत्यारों के बीच काफी मारपीट हुई थी. हत्या में इस्तेमाल चीजों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

बैड पर कृतिका का खून बह कर बिस्तर पर सूख गया था और उसकी लाश धीरेधीरे सड़नी शुरू हो गई थी. घटनास्थल की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद पुलिस टीम ने कृतिका के शव को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले स्थित कूपर अस्पताल भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक काररवाई पूरी करcrime story

के पुलिस टीम थाने लौट आई. थाने आ कर थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ ने इस मामले पर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचारविमर्श किया और तफ्तीश का काम इंसपेक्टर दया नायक को सौंप दिया.

उधर कृतिका की मौत का समाचार मिलते ही उस के परिवार वाले मुंबई के लिए रवाना हो गए. कृतिका की हत्या हो सकती है, यह वे लोग सोच भी नहीं सकते थे. मुंबई पहुंच कर उन्होंने कृतिका का शव देखा तो दहाड़ें मार कर रोने लगे. पुलिस की जांच टीम ने उन्हें बड़ी मुश्किल से संभाला. पोस्टमार्टम के बाद कृतिका का शव उन्हें सौंप दिया गया.

इंसपेक्टर दया नायक ने कृतिका के परिवार वालों के बयान लेने के बाद थानाप्रभारी वी.एस. गायकवाड़ के दिशानिर्देशन में अपनी जांच की रूपरेखा तैयार की, ताकि उस के हत्यारे तक पहुंचा जा सके. एक तरफ इंसपेक्टर दया नायक अपनी तफ्तीश का तानाबाना तैयार कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर और जौइंट पुलिस कमिश्नर देवेन भारती के निर्देश पर क्राइम ब्रांच सीआईडी यूनिट-9 के इंसपेक्टर महेश देसाई भी इस मामले की छानबीन में जुट गए थे.

फिल्मों, सीरियल अथवा मौडलिंग करने वाली लड़कियों पर पासपड़ोस के लोगों, सोसायटी में काम करने वालों, ड्राइवरों और गार्डों वगैरह की नजर रहती है. उदाहरणस्वरूप वडाला की रहने वाली पल्लवी पुरकायस्थ को ले सकते हैं, जिस की हत्या इमारत के कश्मीरी सिक्योरिटी गार्ड ने उस की सुंदरता पर फिदा हो कर दी थी.

ऐसी ही एक और घटना अक्तूबर, 2016 में गोवा के पणजी में घटी थी. वहां सुप्रसिद्ध ब्यूटी फोटोग्राफर और जानी मानी परफ्यूमर मोनिका घुर्डे का शव सांगोल्डा विलेज की सपना राजवैली इमारत की दूसरी मंजिल पर मिला था.