Family Crime : गुस्से में आइरन के तार से पत्नी का घोंट डाला गला

Family Crime : 29 दिसंबर, 2021 की रात को देहरादून के थाना नेहरू कालोनी के थानाप्रभारी प्रदीप चौहान इलाके में गश्त लगा रहे थे. तभी उन्हें वायरलेस से पुलिस कंट्रोल रूम द्वारा डिफेंस कालोनी से सटे फ्रैंड्स एनक्लेव में एक महिला के आत्महत्या करने की सूचना मिली.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी थाने से सिपाही देवेंद्र और विजय को साथ ले कर फ्रैंड्स कालोनी जाने के लिए निकल पड़े.

इस की जानकारी चौहान ने सीओ अनिल जोशी और एसपी (सिटी) सरिता डोवाल व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी थी. साथ ही चौहान ने डिफेंस कालोनी पुलिस चौकीप्रभारी चिंतामणि मैठाणी को भी घटनास्थल पर जल्दी पहुंचने को कह दिया.

मात्र 10 मिनट में ही थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां जमा भीड़ को हटा कर पुलिस सूचना में बताए गए मकान के भीतर पहुंची तो वहां करीब 32 वर्षीया एक महिला बिछावन पर मृत पड़ी थी. उस का गला धारदार हथियार से रेता हुआ था.

उस शव के पास ही एक चाकू और कपड़े इस्तरी करने की आइरन का तार पड़ा हुआ था. शव के पास ही करीब एक साल का बच्चा लेटा था. जबकि उसी कमरे के कोने में एक 7 वर्षीय लड़की डरीसहमी सी खड़ी थी.

मौके की जांचपड़ताल के बाद थानाप्रभारी ने पाया कि शायद महिला की गला काट कर हत्या की गई है.

वहां मौजूद आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर मृतका का नाम श्वेता श्रीवास्तव मालूम हुआ. उस का पति सौरभ श्रीवास्तव घर पर नहीं मिला. पड़ोसियों ने बताया कि वे इस मकान में काफी समय से रह रहे थे. घटना के बाद सौरभ श्रीवास्तव अपनी स्कूटी ले कर कहीं चला गया था.

शव और घटना की जानकारी जुटाए जाने के दरम्यान सीओ अनिल जोशी और एसपी (सिटी) सरिता डोवाल भी वहां पहुंच गईं. पुलिस ने श्वेता की मौत की सूचना उन की बेटी के मोबाइल से उस के मायके वालों को दे दी.

फिर मौके की काररवाई पूरी कर शव पोस्टमार्टम के लिए दून अस्पताल भेज दिया. बच्चों को पड़ोसियों ने संभाल लिया. श्वेता की मौत की खबर पा कर उस के पिता अजय कुमार श्रीवास्तव भागेभागे कुशीनगर से देहरादून आ गए.

अगले दिन ही अजय कुमार ने थाने पहुंच कर थानाप्रभारी से अपनी बेटी श्वेता के संबंध में जानकारी ली. पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार श्वेता की गला काट कर हत्या हुई थी. थानाप्रभारी ने जब उन से किसी पर शक करने के बारे में पूछा तो अजय ने साफ कह दिया कि उन की बेटी का हत्यारा कोई और नहीं बल्कि उन का दामाद सौरभ श्रीवास्तव ही है.

उस के बाद अजय श्रीवास्तव ने अपने दामाद सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ अपनी बेटी श्वेता की हत्या करने की तहरीर थानाप्रभारी को दे दी.

अजय कुमार की तहरीर पर सौरभ श्रीवास्तव के खिलाफ श्वेता श्रीवास्तव की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

इस हत्याकांड की जांच डिफेंस कालोनी चौकीप्रभारी चिंतामणि मैठाणी को सौंपी गई थी. हत्या का आरोपी सौरभ फरार हो गया था. उस की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए गए थे.

अजय श्रीवास्तव ने स्थानीय लोगों की मदद से श्वेता के शव का अंतिम संस्कार देहरादून के ही श्मशान घाट में कर दिया था.

उस के 3 दिन बाद नेहरू कालोनी पुलिस को श्वेता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. रिपोर्ट में श्वेता की मौत का कारण गला काटना बताया गया था. उस के बाद तो पुलिस के सामने सौरभ को गिरफ्तार करना बड़ी चुनौती बन गई थी.

उस की खोजबीन और पकड़ के लिए एसएसपी जन्मेजय खंडूरी ने एसओजी टीम को भी लगा दिया. नए सिरे से पुलिस की 2 टीमों का गठन किया गया था.

बात 31 जनवरी, 2022 की है. शाम का अंधेरा घिर चुका था. एसओजी टीम को मुखबिर के द्वारा एक महत्त्वपूर्ण सूचना मिली. उस सूचना के आधार पर एसओजी टीम थानाप्रभारी प्रदीप चौहान के साथ डिफेंस कालोनी की एक सुनसान जगह पर पहुंच गई.

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वहां पर सड़क के किनारे एक बड़े पत्थर पर एक युवक खोयाखोया सा बैठा था. मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. हिरासत में लेते ही वह युवक बोला, ‘‘अरे, मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैं ने क्या किया है?’’

‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है, इसलिए चुपचाप थाने चलो,’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ थाने पहुंचने पर थानाप्रभारी ने उस से पूछा.

वह युवक चुप रहा.

‘‘जल्दी बताओ,’ उस के कुछ नहीं बोलने पर थानाप्रभारी ने डपट दिया.

‘‘जी…जी, सौरभ श्रीवास्तव.’’

‘‘पिता का नाम?’’

‘‘शंभूलाल श्रीवास्तव.’’

‘‘पूरा पता बताओ,’’ चौहान बोले.

‘‘कुशीनगर जिले का रहने वाला हूं. देहरादून में फ्रैंड्स एनक्लेव में रहता हूं.’’

‘‘इसे तुम पहचानते हो?’’ यह कहते हुए चौहान ने अपने मोबाइल की एक तसवीर उस के सामने कर दी. तसवीर देख कर सौरभ चुप लगा गया.

‘‘जवाब दो, हां या नहीं?’’

‘‘जी, पहचानता हूं. यह मेरी पत्नी श्वेता है.’’

‘‘वह अभी कहां है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम?’’ सौरभ बोला.

‘‘नहीं मालूम मतलब? कई दिनों से तुम कहां थे?’’

‘‘कंपनी के काम के सिलसिले में दिल्ली गया हुआ था,’’ सौरभ ने बताया.

‘‘उन दिनों में पत्नी और परिवार की तुम ने कोई खोजखबर क्यों नहीं ली?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘जी, मेरा मोबाइल दिल्ली जाते समय खो गया था.’’

‘‘इसे देखो,’’ चौहान ने दूसरी तसवीर उस के सामने कर दी.

तसवीर देख कर उस के मुंह से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी. सर्दी में भी उस के चेहरे पर पसीना आ गया था. उस ने सिर झुका लिया और फफकफफक कर रोने लगा.

दरअसल, वह तसवीर भी उस की पत्नी श्वेता की ही थी, लेकिन तसवीर में वह मृत थी. सौरभ को रोता देख कर एक पुलिसकर्मी ने पानी का गिलास ला कर उस के सामने रख दिया. सौरभ एक सांस में पूरा पानी गटागट पी लिया.

सौरभ थाने में अपनी पत्नी की लाश के फोटो देख कर हिल गया था. उस से श्वेता की हत्या की बाबत विस्तार से पूछताछ होने लगी. वह एक माह तक खुद को बचातेबचाते शरीर और दिमाग से काफी थक गया था. टूट चुके सौरभ ने पुलिस को पत्नी की हत्या के बारे में जो कुछ बताया, वह इस प्रकार था—

उत्तर प्रदेश में जिला कुशीनगर के पिटेरवा कस्बे के रहने वाले अजय कुमार श्रीवास्तव ने अपनी बेटी श्वेता श्रीवास्तव की शादी साल 2014 में हरिद्वार निवासी सौरभ श्रीवास्तव के साथ की थी.

श्वेता 6 माह ससुराल में रहने के बाद अपने पति के साथ देहरादून आ गई थी. ग्रैजुएट सौरभ को सरकारी नौकरी भले ही नहीं मिली थी, लेकिन वह सीएसडी कंपनी में मार्केटिंग के काम से संतुष्ट था.

उस की इतनी कमाई हो जाती थी कि वह पत्नी के शौक पूरे कर सके. उस की पसंद के कपड़े दिलवा सके. साथसाथ घूमनेफिरने जा जा सके, रेस्टोरेंट में डिनर कर सके, या फिर कीमती सामानों में एंड्रायड फोन या ज्वैलरी आदि की खरीदारी करने में नानुकुर नहीं करे. सौरभ की कोशिश रहती थी कि वह पत्नी की ख्वाहिश हरसंभव पूरी करता रहे.

दोनों की जिंदगी हंसीखुशी से गुजरने लगी थी. समय का पहिया भी अपनी गति से घूम रहा था. खुशहाल जीवन बिताते हुए श्वेता 2 बच्चों की मां बन गई थी. पहली संतान बेटी और उस के बाद बेटे के जन्म के बाद सौरभ ने पत्नी से परिवार पूरा होने की बात कही थी. पत्नी ने भी संतोष जताया था.

इसी के साथ सौरभ अपने छोटे से परिवार को हमेशा खुश रखने की कोशिश में रहने लगा था. अपने बढ़े हुए खर्च को पूरा करने के लिए सौरभ और मेहनत करने लगा था, ताकि पत्नी की कोई फरमाइश अधूरी न रह जाए.

यह कहा जा सकता है कि सौरभ और श्वेता के दांपत्य जीवन की गाड़ी पटरी पर सरपट दौड़ रही थी. इस में खलल तब पड़ गई, जब 2 साल पहले कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ा और लौकडाउन से अचानक कई विकट परिस्थितियां पैदा हो गईं.

सौरभ का कामधंधा भी प्रभावित हो गया. आमदनी धीरेधीरे कम होने लगी. इस के विपरीत श्वेता ने घरेलू खर्च, अपनी फरमाइशों और शौक में कोई कमी नहीं आने दी.

शुरुआत में तो कुछ महीने तक सौरभ जमापूंजी काम में लाता रहा, किंतु जैसेजैसे लौकडाउन की तारीखें बढ़ती चली गईं, वैसेवैसे उस की हालत बिगड़ने लगी. नौबत कर्ज ले कर घर खर्च पूरे करने की आ गई.

कुछ महीने बाद लौकडाउन में ढील मिली, लेकिन उस का काम पहले की तरह रफ्तार नहीं पकड़ पाया. इस के विपरीत श्वेता के फरमाइशों की लिस्ट बढ़ती रही. एक दिन सौरभ के काम से घर लौटते ही उस ने टोका, ‘‘तुम्हें कुछ याद है?’’

‘‘क्या याद नहीं है? मैं कुछ समझा नहीं.’’ सौरभ बोला.

‘‘मैं जानती हूं, तुम जानबूझ कर अनजान बन रहे हो,’’ श्वेता ने मुंह बना कर कहा, ‘‘तुम्हें सच में कुछ नहीं पता या कोई और बात है?’’

‘‘अरे, साफसाफ बोलो न, बात क्या है?’’ सौरभ ने पूछा.

इसी बीच उस की बेटी आ कर बोल पड़ी, ‘‘पापापापा, आज मम्मी का बर्थडे है. आप ने सुबह हैप्पी बर्थडे भी नहीं बोला.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. लो, अभी बोल देता हूं,’’ यह कहते हुए सौरभ ने ‘हैप्पी बर्थडे श्वेता डार्लिंग,’ बोल दिया.

‘‘केवल विश करने से नहीं होगा. बर्थडे गिफ्ट लाओ,’’ श्वेता बोली.

‘‘तुम कैसी बात करती हो, तुम्हें मालूम है, इन दिनों मेरा काम पहले की तरह नहीं चल रहा है,’’ सौरभ उदास लहजे में बोला.

‘‘तो मैं क्या करूं?’’ श्वेता ने कहा.

‘‘देखो, मुझे समझने की कोशिश करो. ऐसा तो पहली बार हुआ है, जब मैं तुम्हें बर्थडे गिफ्ट नहीं दे पा रहा हूं. पिछली बार तुम्हारी पसंद का मोबाइल फोन दिया था,’’ सौरभ बोला.

‘‘उस फोन पर तो बेटी का कब्जा हो गया है. उसी से पढ़ाई करती है.’’

‘‘अच्छा चलो, बर्थडे गिफ्ट उधार रहा मुझ पर.’’ सौरभ ने समझाया.

‘‘चलो मैं मान गई, लेकिन कम से कम आज कहीं डिनर पर तो ले चलो,’’ श्वेता बोली.

‘‘फिर वही बात श्वेता, अभी मैं एकएक पैसा जोड़ रहा हूं और तुम खर्च बढ़ाने की बात कर रही हो,’’ सौरभ तुनकते हुए बोला.

‘‘कितना खर्च बढ़ जाएगा? देखो, आज मैं ने घर में कुछ पकाया भी नहीं है. महीनों से घर में पड़ेपड़े बोर होने लगी हूं,’’ श्वेता ने कहा.

‘‘बाहर जाने में कई दिक्कतें हैं. वैसे भी रेस्टोरेंट में बैठ कर खाने पर रोक है.’’

‘‘तब कुछ औनलाइन ही मंगवा लो.’’ श्वेता के बोलते ही दूसरे कमरे से बेटी बोल पड़ी, ‘‘पापापापा, पिज्जा मंगवाना. मैं चीज वाला और्डर सेलेक्ट करूंगी. उस में कोल्डड्रिंक्स फ्री मिलेगा. …और मम्मी, चौकलेट वाला केक भी मंगवाना.’’

सौरभ और श्वेता के बीच बहस जैसी बातचीत औनलाइन और्डर पर आ कर थम गई. उस रोज सौरभ को 1150 रुपए का एक्सट्रा खर्च आ गया. श्वेता का बर्थडे घर पर ही  मना लिया गया, किंतु सौरभ इस चिंता में पड़ गया कि वह स्कूटी की किस्त कैसे दे पाएगा.

उस के बाद सौरभ ने खुद को कंपनी के काम में झोंक दिया. काफी मुश्किलों के बाद जरूरी खर्च पूरे करने लगा, लेकिन कर्ज चुका पाने में असमर्थ बना रहा. कभी घर की परेशानी तो कभी काम में आने वाली रुकावटों से जूझता रहा. परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी का निर्वाह करतेकरते वह थक सा गया था.

हालांकि वह जितना परेशान अपने काम को ले कर नहीं रहता था, उस से कहीं अधिक श्वेता की बातों को ले कर तनाव में रहता था.

श्वेता की फरमाइशें तो जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कई बार तो अपनी मांगों के लिए बच्चों की तरह जिद पकड़ लेती थी. इस बीच कोरोना का दूसरा फेज भी आया. उस झटके ने उसे और भी झकझोर कर रख दिया.

पत्नी की फिजूलखर्ची से वह तंग आ गया था. इस की वजह से वह मकान मालिक को 3 महीने का किराया नहीं दे पाया था, जिस से वह काफी तनाव में रहने लगा था. इस के बाद भी श्वेता ने अपने खर्च कम नहीं किए थे. वह उस से रोज अपने खर्च के लिए पैसे मांगती रहती थी.

इसी दौरान सौरभ की छोटी बहन की शादी 10 फरवरी, 2022 को होनी तय हो गई थी. जब सौरभ ने श्वेता को शादी में चलने के लिए कहा तो वह इस बात पर अड़ गई थी कि वह शादी में तभी जाएगी, जब वह उसे रानीहार खरीद कर देगा.

इस पर सौरभ ने उसे काफी समझाया कि शादी में पहले के जो जेवर हैं उन्हीं को पहन ले, लेकिन उस की जिद थी कि नया रानीहार ही चाहिए.

सौरभ की समस्या यह थी कि उसे शादी के लिए और भी दूसरे खर्च करने थे. सभी को नए कपड़े दिलवाने थे. बेटी को अच्छा फ्रौक और सैंडल खरीदने थे. जबकि पत्नी रानीहार की जिद पर अड़ी रही.

29 दिसंबर, 2021 की रात को श्वेता उस से रानीहार दिलाने के लिए बुरी तरह से झगड़ पड़ी. तब तक सौरभ का दिमाग काम करने की स्थिति में नहीं बचा था. पत्नी के व्यवहार से उसे काफी गुस्सा आ गया. बेटी दूसरे कमरे में सो रही थी. तूतूमैंमैं काफी बढ़ गई.

बात बढ़ने पर सौरभ ने पत्नी को गुस्से में उठा कर उसे बिछावन पर पटक दिया. उस के बाद पहले बच्चे की बैल्ट, फिर आइरन के तार से ही उस का गला कस दिया. दम घुटने से श्वेता तड़प उठी. तब सौरभ तुरंत किचन से चाकू लाया और पत्नी का गला रेत डाला. उस की मौत के बाद वह बच्चों को उसी हालत में छोड़ कर स्कूटी से चला गया था.

श्वेता की हत्या के बाद वह देहरादून के ही अलगअलग स्थानों पर छिपता रहा. उस ने पुलिस पर नजर बनाए रखी. जब विधानसभा की ओर से डिफेंस कालोनी की ओर आ रहा था, तब काफी थके होने के कारण सुस्ताने के लिए सड़क किनारे एक बड़े पत्थर पर ओट ले कर बैठ गया था. तभी पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर उसे गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सौरभ श्रीवास्तव के बयान दर्ज कर के अगले दिन उस का मैडिकल करवाया. उसी दिन उसे अदालत में पेश कर दिया, जहां से वह जेल भेज दिया गया. सौरभ द्वारा श्वेता की हत्या में प्रयुक्त चाकू व आइरन की तार, बेल्ट आदि पहले से ही बरामद हो चुकी थी. कथा लिखे जाने तक सौरभ श्रीवास्तव देहरादून जेल में बंद था. दोनों बच्चों को अजय श्रीवास्तव अपने साथ कुशीनगर ले गए थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इश्क के लिए बहनों की हत्या

कमरे में 7 वर्षीय बेटी शिल्पी खून से लथपथ पड़ी थी, उस के गले से खून बह रहा था. सुशीला घबराई हुई दूसरे कमरे की ओर दौड़ी, वहां का दृश्य भी ठीक वैसा ही था. इस कमरे में सब से छोटी 5 वर्षीय बेटी रोशनी का भी गला कटा हुआ था. उस के गले से भी खून बह रहा था.

खून से लथपथ बच्चियों के शव देखते ही घर में कोहराम मच गया. घर में 2 लाशें देख कर सुशीला और उस की बड़ी बेटी अंजलि दोनों दहाड़ें मार कर रोने लगीं. चीखने चिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी आ गए. जिस ने भी यह नजारा देखा, वह डर से सहम गया.

इसी बीच सूचना मिलने पर पिता जयवीर सिंह पाल भी बाजार से वापस लौट आए थे. घर में दोनों छोटी बेटियों की हत्या हो जाने से वह जमीन पर माथा पकड़ कर बैठ गए. दिनदहाड़े घर में 2 मासूम बच्चियों की हत्या हो जाने से गांव में सनसनी फैल गई. यह बात 8 अक्तूबर, 2023 शाम की है.

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                मृतक बच्चियां रोशनी और शिल्पी

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के गांव बहादुरपुर का निवासी है जयवीर सिंह पाल. वह खेतीकिसानी व पशुपालन कर अपने परिवार का पालनपोषण करता था. उस के 4 बेटे और 3 बेटियां थीं. बेटियों में सब से बड़ी 19 वर्षीय अंजलि और बेटा कन्हैया के अलावा 7 वर्षीय शिल्पी उर्फ सुरभि व 5 वर्षीय रोशनी थी.

दोपहर में मां सुशीला व पिता जयवीर खेत पर काम करने चले गए थे. 2 बेटे खेत पर बकरी चराने गए थे. जबकि नंदकिशोर 2 छोटे बेटे घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेल रहे थे. घर पर अंजलि व उस की दोनों छोटी बहनें शिल्पी व रोशनी थीं.

इस से पहले सुशीला देवी अपनी बड़ी बेटी 19 वर्षीय अंजलि व पति जयवीर के साथ खेत से चारा ले कर शाम साढ़े 6 बजे घर लौट रही थी, रास्ते से ही पति बाजार से सौदा लेने चले गए थे. मांबेटी जब घर पहुंचीं तो घर का मेनगेट खुला हुआ था.

दरवाजा खुला देखते ही सुशीला ने कहा, ”अंजलि तूने दरवाजा बंद क्यों नहीं किया था?’’

”मम्मी, खेत पर जाते समय मैं तो बाहर का दरवाजा बंद कर के गई थी, पता नहीं किस ने खोला है?’’ अंजलि ने बोला.

जैसे ही दोनों आंगन में पहुंचीं तो कमरों के दरवाजे भी खुले दिखाई दिए. इस पर सुशीला बेटी पर नाराज होते बोली, ”तुझे शायद ध्यान ही नहीं, तू घर के दरवाजे खुले छोड़ गई थी.’’

”नहीं मम्मी, मैं तो खेत पर जाते समय घर के सारे दरवाजे बंद कर गई थी. उस समय शिल्पी और रोशनी दोनों कमरे में सो रही थीं.’’

घर में सन्नाटा छाया हुआ था. दोनों छोटी बेटियां शिल्पी और रोशनी नजर नहीं आईं. यह सोच कर कि उठने के बाद कहीं खेलने तो नहीं चली गईं. सुशीला ने उन दोनों का नाम ले कर आवाज लगाई. लेकिन न तो घर के अंदर से और न बाहर से बेटियों की आवाज आई.

इस पर सुशीला एक कमरे में गई. कमरे का नजारा देखते ही उस के मुंह से चीख निकल गई. क्योंकि घर में उस की दोनों बेटियों शिल्पी और रोशनी की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

नजदीकी पर गया दोहरे हत्याकांड का शक

इसी बीच किसी ने थाना पुलिस को गांव में हुए दोहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. वारदात की सूचना पर एसएचओ अनिलमणि त्रिपाठी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. दोनों बच्चियों की हत्या धारदार हथियार से गला काटकर की गई थी. दोनों की हत्या का तरीका एक जैसा था.

हैरानी की बात यह थी कि घर में सारा सामान अपनी जगह पर रखा हुआ मिला.  इस से साफ जाहिर हो रहा था कि घर में लूटपाट जैसी कोई वारदात नहीं हुई थी. पूछताछ करने पर गांव वालों ने बताया कि उन्होंने किसी को घर में घुसते और हत्या कर के निकलते नहीं देखा.

इस से पुलिस को यह अंदेशा हुआ कि किसी ने जयवीर सिंह से दिली रंजिश मानते हुए इस वारदात को अंजाम दिया है.

घटना की गंभीरता को भांपते हुए एसएचओ ने विभाग के उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत  करा दिया. इस पर एएसपी (सिटी) कपिलदेव सिंह, सीओ (जसवंतनगर) अतुल प्रधान, एसएचओ (जसवंतनगर) मुकेश कुमार सोलंकी फोरैंसिक टीम सहित घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. दोनों बच्चियों की हत्या जिस हथियार से की गई, वह घटनास्थल पर नहीं मिला. इस संबंध में मृतक बच्चियों के मम्मीपापा से पूछताछ की गई.

उन्होंने बताया कि वे लोग खेत पर गए हुए थे. घर में सब से बड़ी बेटी अंजलि के साथ ही दोनों छोटी बेटियां शिल्पी और रोशनी थीं. दोनों की देखरेख की जिम्मेदारी अंजलि पर थी. जबकि चारों बेटे घर के बाहर थे. लेकिन घटना से कुछ देर पहले अंजलि खेत से चारा लेने चली गई. इस के बाद ही किसी ने बच्चियों को अकेला देख कर उन की हत्या कर दी.

पिता जयवीर ने बताया कि उन की किसी से रंजिश नहीं है, फिर भी उन की मासूम बेटियों की हत्या किस ने और क्यों की, कुछ समझ नहीं आ रहा है. रात में ही आईजी जोन कानपुर क्षेत्र प्रशांत कुमार गांव पहुंचे और घर वालों से घटना की जानकारी ली.

पुलिस पूछताछ में अंजलि ने बताया कि उस के खेत पर जाने के एकडेढ़ घंटे के अंदर ही घटना घटित हो गई. वह अपनी दोनों छोटी बहनों को सोते हुए छोड़ कर गई थी. लेकिन खेत से चारा ले कर मां के साथ लौट कर आई तो दोनों बहनें मृत मिलीं.

अंजलि के बयान पर यकीन किया जाए तो दोहरे हत्याकांड को उस के पीठ फेरते ही लगभग एक पौन घंटे के अंदर अंजाम दिया गया था. अब ऐसे में बड़ा सवाल यह था कि आखिर घर में मौजूद मासूम बच्चियों की भला किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी कि कातिल ने मौका मिलते ही घर में दोनों की गला रेत कर नृशंस हत्या कर दी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद रात में ही दोनों बच्चियों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. फोरैंसिक टीम ने इस संबंध में जांच की. जयवीर सिंह पाल ने थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जांच के दौरान पुलिस को किसी नजदीकी का हाथ होने की आशंका दिखाई दी, लेकिन यह केवल कयास भर ही था.

पुलिस दोहरे हत्याकांड के हत्यारों का पता लगाने के लिए छानबीन में पूरी तरह जुट गई. पुलिस को अब तक अंदेशा हो चुका था कि बच्चियों के हत्यारे गांव में ही छिपे हैं. हत्यारे मृतक बच्चियों के परिचित रहे होंगे, इसीलिए किसी ने उन के घर पर आने और जाने पर गौर नहीं किया. जयवीर का घर इस तरह का बना है कि बच्चियों की चीख भी घर से बाहर नहीं आ सकती थी, फिर हत्या कमरों में हुई थी.

अंजलि के बयानों में दिखा विरोधाभास

पूछताछ के दौरान सुशीला और जयवीर के बयान तो एकदूसरे से मैच कर रहे थे, लेकिन अंजलि बारबार अपने बयानों से पलट रही थी. उस ने बताया कि वह तुरंत ही मां के पीछे खेत पर चली गई थी. जबकि सुशीला ने बताया कि उन के जाने के 2 घंटे बाद अंजलि खेत पर पहुंची थी.

सुशीला ने यह भी बताया कि वह अंजलि को दोनों छोटी बहनों का ध्यान रखने की कह कर गई थी. जबकि अंजलि अपने मन से खेत पर पहुंची थी, उसे खेत पर आने को किसी ने नहीं कहा था.

पुलिस और फोरैंसिक टीम सबूत जुटाने व छानबीन में लग गई. घर में हत्या के बाद फर्श पर बहे खून को साफ किया गया था. इस का मतलब था कि हत्यारों ने हत्या के बाद इत्मीनान से खून भी साफ किया था. पुलिस की नजरों में कमरे की ज्यादा सफाई करना खटक गया.

पुलिस ने पूरा घर खंगाला. इस दौरान घर के टिन शेड में रखा फावड़ा मिला. इस फावड़े को पानी से साफ किया गया था, लेकिन उस पर खून के कुछ छींटे दिखाई दे रहे थे. इसी के साथ घर में गीले कपड़े भी मिले, जिन्हें धो कर सूखने के लिए आंगन में तार पर डाला गया था.

शाम के समय कपड़े कौन धोता है? पूछने पर सुशीला ने बताया कि ये कपड़े अंजलि के हैं. गौर से देखने पर पता चला कि कपड़ों को खून के दाग मिटाने के लिए धोया गया था. एसपी (सिटी) कपिलदेव सिंह, सीओ अतुल प्रधान और फोरैंंसिक टीम की पड़ताल में पूरा मामला स्पष्ट हो गया.

अब शक पूरी तरह अंजलि पर था. अंजलि से पूछताछ की तो वह बारबार बयान बदलने लगी. तब एसएचओ अंजलि को महिला पुलिस की मदद से थाने ले गए. वहां पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की.

अब अंजलि के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. वह पूरी तरह टूट गई. उस ने कुबूल कर लिया कि अपनी सगी दोनों बहनों की हत्या उस ने अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए की थी. उस ने पुलिस को हत्या की पूरी दास्तां सुना दी, जिसे सुन कर पुलिस भी सन्न रह गई. पुलिस ने दोहरे हत्याकांड का परदाफाश घटना के 20 घंटे बाद ही कर दिया.

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हत्यारोपी बहन अंजलि और उसका प्रेमी अमन

बहनों ने प्रेमी से मिलते देख लिया था

दोहरे हत्याकांड से एक सप्ताह पहले की बात है. उस दिन भी घर पर अंजलि अपनी दोनों छोटी बहनों शिल्पी और रोशनी के साथ थी. दोनों बहनें घर के बाहर पड़ोस के बच्चों के साथ खेल रही थीं. अंजलि का पास के ही गांव के रहने वाले अमन नाम के युवक से प्यार का चक्कर चल रहा था. मौके का फायदा उठाने के लिए अंजलि ने प्रेमी अमन को फोन कर चुपचाप घर पर बुला लिया.

अमन भी सब की नजरों से बच कर अंजलि के पास आ गया. घर आते ही दोनों एकदूसरे के गले लग गए. अंजलि और अमन छत पर जा कर बातें करने लगे. दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे, इसलिए एकदूसरे के लिए तड़प रहे थे.

घर के बाहर अमन से मिलने में खतरा था. क्योंकि यदि उन दोनों को बतियाते या मिलते कोई देख लेता तो बात का बतंगड़ बन जाता, दोनों पकड़े जाते. इसलिए उस दिन मौका अच्छा देख कर अंजलि ने अमन को घर पर ही बुला लिया था.

छत पर एकदूसरे का हाथ थामे दोनों प्यार भरी बातें करते हुए भविष्य के सपने बुन रहे थे. शारीरिक स्पर्श से दोनों उत्तेजित हो गए. उसी समय अमन ने अंजलि को सीने से लगा लिया. फिर दोनों ही अपना नियंत्रण खो कर एकदूसरे में गुंथ गए. इस का पता उन्हें तब चला, जब खेलते खेलते दोनों छोटी बहनें पता नहीं कब छत पर आ गई थीं.

मासूम बच्चियों ने अपनी बहन को प्रेमी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था. आहट होने पर दोनों झटपट अलग हो गए और अपने कपड़े ठीक किए.

अपनी बहनों को छत पर सामने देख कर अंजलि के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. उस समय अमन बिना कुछ कहे वहां से चला गया. अंजलि ने अमन के जाने के बाद दोनों बहनों शिल्पी और रोशनी को अमन के घर आने की बात मम्मीपापा व घर में किसी को न बताने को कहा. इस के लिए उस ने दोनों को खाने की चीजें व अच्छे कपड़े दिलवाने की बात कही, लेकिन शाम को दोनों बच्चियों ने मां के खेत से आने के बाद उन से अंजलि की शिकायत कर दी.

सयानी और घर की सब से बड़ी बेटी के इस आचरण से सुशीला बहुत परेशान हो गई. उस ने इस बात को अपने पति को बता दिया. इस पर अंजलि की घर में बहुत फजीहत हुई. मम्मीपापा ने उस की पिटाई करने के साथ ही बेइज्जत भी किया, कहा, ”तुझ से अच्छी तो ये दोनों बहनें हैं.’’

यह भी हिदायत दी गई कि यदि वह लड़का दोबारा घर आया या तूने उस से मोबाइल पर बात की तो बहुत बुरा होगा. इतना ही नहीं उस दिन से अंजलि का घर से बाहर निकलना भी बंद करा दिया गया.

यह बात अंजलि के दिल में घर कर गई. अपनी शिकायत किए जाने से वह दोनों बहनों से बुरी तरह से चिढ़ गई थी. छोटे भाईबहनों के सामने रोजरोज ताने मिलने और होने वाली बेइज्जती उसे नश्तर की तरह चुभ रही थी. इस से वह तंग आ चुकी थी.

25 मिनट में काट डाला दोनों बहनों को

8 अक्तूबर, 2023 को अंजलि के मम्मीपापा दोपहर में ही खेत पर चले गए थे. 2 भाई बकरी चराने खेत पर व 2 भाई खेलने चले गए थे. घर में दोनों छोटी बहनें व अंजलि रह गई थी. मम्मी रात का खाना बनाने व बहनों का ध्यान रखने के लिए कह गई थी.

जब से छोटी बहनों ने अंजलि की शिकायत मम्मीपापा से की थी उसे बहनों पर बहुत गुस्सा आता था, लेकिन वह उसे खून के घंूट की तरह पी जाती थी. उस दिन खाना बनाने के बाद जब वह किचन से बाहर निकली तो दोनों बहनें अलगअलग कमरों में बैठी थीं.

अंजलि ने दोनों को आवाज दे कर अपने पास बुलाया, लेकिन कोई भी बहन उस के पास नहीं आई. बारबार पुकारने पर भी  दोनों कुछ नहीं बोल रहीं थीं. गुस्सा तो पहले से ही था. उस की बात अनसुनी करने पर अंजलि का पारा हाई हो गया और इस के बाद प्यार में अंधी अंजलि ने दोनों को मारने की साजिश रच डाली.

पहले अंजलि ने रोशनी को कमरे में बंद कर दिया. फिर आंगन में रखा फावड़ा उठाया और सीधे शिल्पी के कमरे में गई. अंजलि को देख कर शिल्पी मुसकराई. उस की हंसी अंजलि को बरदाश्त नहीं हुई. शिल्पी कुछ समझ पाती, उस से पहले ही अंजलि ने उस के गले पर फावड़े से वार कर दिया.

एक ही वार में वह जमीन पर गिर गई और तड़पने लगी. उस के शरीर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. उस को वहीं छोड़ कर वह रोशनी के कमरे में गई और उस के गले पर भी फावड़े से प्रहार कर उस को भी मार डाला. इस के बाद वह घर के कोने में जा कर बैठ गई.

जब उसे इत्मीनान हो गया कि दोनों बहनें मर गई हैं, तब सब से पहले अंजलि ने दोनों के शवों को कमरों में एक कोने में खींच कर रख दिया. उस के बाद दोनों कमरों में फैला खून साफ किया.

हत्या करते समय अंजलि के कपड़ों पर भी खून लग गया था. वह कपड़े धो कर सूखने को डाल दिए. खून से सने फावड़े को धो कर उसी जगह रख दिया, जहां से उठाया था. इतना सब करने के बाद वह बहनों को देखने गई, दोनों मर चुकी थीं. एक गिलास पानी पीने के बाद अंजलि भी खेत पर पहुंच गई.

सुशीला अपने पति जयवीर सिंह  के साथ दोपहर में खेत पर काम करने चली गई थी. खेत पर जाते समय सुशीला ने बेटी अंजलि से कहा था कि शाम की रोटी बना लेना. अंजलि शाम साढ़े 5 बजे खाना बना कर वारदात को अंजाम दे कर खेत पर अपने मम्मीपापा के पास पहुंच गई थी.

अंजलि ने घर से निकलते समय पूरे घर के दरवाजे खोल दिए थे. घर का मुख्य दरवाजा भी खुला छोड़ दिया था, जिस से उस पर किसी को शक न जाए. उसे उम्मीद थी कि अपनी बनाई योजना से वह पुलिस की नजरों से बच जाएगी.

अपनी सगी 2 बहनों की हत्या के बाद भी उस के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. वह हंसते हुए खेत पर पहुंच कर मम्मी के साथ काम करने लगी. मां ने शिल्पी और रोशनी के बारे में पूछा तो बता दिया कि दोनों खाना खा कर सो रही हैं. खेत पर काम करने के बाद वह पशुओं के लिए चारा ले कर मां के साथ घर वापस आ गई.

प्रेमी अमन ने हत्या के लिए उकसाया अंजलि को

अपने इस दर्द को अंजलि ने फोन से अपने प्रेमी अमन को भी बता दिया था. उन के प्यार के रास्ते में रोड़े अटका रही बहनों को ठिकाने लगाने की योजना बनाई गई. एएसपी (ग्रामीण) सत्यपाल सिंह ने बताया कि अमन ने दोनों बहनों की हत्या के लिए अंजलि को उकसाया था. तब 8 अक्तूबर को घर में अकेली बहनों की फावड़े से गला काट कर अंजलि ने हत्या कर दी. अंजलि को गिरफ्तार करने वाली टीम में एसएचओ अनिलमणि त्रिपाठी, सर्विलांस प्रभारी रमेश सिंह, एसओजी इंसपेक्टर तारिक खान, एसआई समित चौधरी शामिल थे.

पुलिस ने आलाकत्ल फावड़ा, अंजलि के कपड़े, 2 मोबाइल फोन, बाल्टी आदि को बरामद कर लिया. पुलिस ने अंजलि को  9 अक्तूबर, 2023 को इटावा कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

9 अक्तूबर की शाम 5 बजे गमगीन माहौल में दोनों बहनों का अंतिम संस्कार पैतृक निजी जमीन पर किया गया. इस दौरान भारी पुलिस बल व सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों व परिजनों ने भरी आंखों से दोनों बच्चियों को अंतिम विदाई दी.

अंतिम संस्कार के समय एसपी (सिटी) कपिलदेव सिंह व सीओ अतुल प्रधान के अलावा जिले के विभिन्न थानों की फोर्स मौजूद रही. इस वारदात के बाद गांव में चर्चाओं का दौर बना रहा.

अंजलि को तो पुलिस ने गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. अब पुलिस अंजलि के  प्रेमी की सरगरमी से तलाश में जुटी हुई थी. एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने सीओ अतुल प्रधान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. पुलिस टीम ने मुखबिर की सूचना पर इस घटना के दूसरे आरोपी व अंजलि के प्रेमी अमन निवासी खाका बाग, थाना बलरई को कोकावली अंडावली मोड़ के पास से गिरफ्तार कर लिया.

एसएसपी संजय कुमार वर्मा ने बताया कि वैज्ञानिक साक्ष्य और अन्य सबूतों के आधार पर निकल कर आया है कि प्रेमी अमन ने हत्या के लिए अंजलि को उकसाया था.

पुलिस ने अमन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 115, 120बी के अंतर्गत मामला दर्ज कर उसे भी कोर्ट के समक्ष पेश कर 11 अक्तूबर, 2023 को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेरहम हुआ रिश्ता, बच्चे बने कातिल

शाम तक घर का माहौल खुशनुमा था. डिंपल ने हंसीखुशी शाम का खाना बनाया और सभी ने अपने  पापा सुंदर लाल के साथ बैठ कर खाना खाया. उस के कुछ देर बाद ही सुंदर लाल के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

चूंकि सुंदर लाल अपने घर में अकेले ही रहते थे. इसी कारण अचानक ही उन के घर से रोनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पड़ोस में रह रहे उन के भाई ओमप्रकाश व अन्य लोग उन के घर पर पहुंचे. सुंदर लाल के घर पहुंचते ही उन्होंने कई बार घर के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला. काफी आवाज लगाने पर भी घर का दरवाजा नहीं खुला तो लोगों ने घर का दरवाजा तोड़ डाला.

जब लोग घर में घुसे तो अंदर सुंदर लाल का खून से लथपथ शव पड़ा हुआ था. जिस ने भी सुंदर लाल का शव देखा, वह सिहर उठा. सुंदर लाल के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था. उन के हाथपांव रस्सी से बांधे हुए थे.

अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा थाने से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव पड़ता है भांगा देवली. इसी गांव में रहते थे भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के सेवानिवृत्त जवान सुंदर लाल. सुंदर लाल की पत्नी की 2018 में मृत्यु हो गई थी. उन के 3 बच्चे थे, जिन में सब से बड़ी बेटी 25 वर्षीय डिंपल, उस के बाद 21 वर्षीय बेटा रितिक और सब से छोटी नाबालिग बेटी अंशिका (काल्पनिक नाम) थी. तीनों ही बच्चे अपने पिता के देहरादून स्थित सरकारी क्वार्टर में रहते थे.

सुंदर लाल की सब से बड़ी बेटी डिंपल एक निजी स्कूल में टीचर थी. बेटा रितिक वहीं पर एक जिम में ट्रेनर था, जबकि सब से छोटी बेटी अंशिका कक्षा 9 में पढ़ रही थी.

ये सभी अपने पापा सुंदर लाल से मिलने के लिए 28 दिसंबर, 2023 को देहरादून से अपने गांव भांगा देवली पहुंचे थे. लेकिन उसी रात को ही उन के घर से रोनेचिल्लाने की आवाजें आ रही थीं. आवाज सुन कर ही पड़ोसी उन के घर पहुंचे थे. तब घर में सुंदर लाल की लाश मिली थी.

उस के बाद ओमप्रकाश ने इस की सूचना गांव प्रहरी प्रधान पति को दी. उस वक्त तक सुंदर लाल के घर पर काफी लोग इकट्ठा हो गए थे. सुंदर लाल का बेटा और बेटियां घर में ही थे. जब उन्होंने गांव वालों को घर के अंदर आते देखा तो उन्होंने उन्हें घर से भगाने की कोशिश की.

अपने पापा की मौत पर बच्चों द्वारा कोई शोक भी नहीं मनाया जा रहा था. इस से गांव वालों को उन तीनों बच्चों पर ही शक हुआ कि जरूर इन बच्चों ने ही सुंदर लाल की हत्या की होगी. लिहाजा गांव वाले वहां से गए नहीं बल्कि उन्होंने तीनों बच्चों को एक कमरे में बंद करने के बाद तुरंत पुलिस को इस की सूचना दे दी.

सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही लमगड़ा थाने के एसएचओ दिनेश नाथ महंत वहां पहुंच गए. उन्होंने मृतक के तीनों बच्चों और एक अन्य व्यक्ति को हिरासत में ले लिया. इन चारों में 3 बच्चे सुंदर लाल के थे, जबकि उन में एक शख्स ऐसा था, जिसे न तो सुंदर लाल के परिवार वाले जानते थे और न ही उसे इस से पहले कभी उन के घर पर देखा गया था.

पुलिस ने सब से पहले उसी शख्स से जानकारी ली तो पता चला कि वह सुंदर लाल की बड़ी बेटी डिंपल का प्रेमी था, जो दिल्ली के संगम विहार में रहता था.

इस घटना की जानकारी एसएचओ दिनेश नाथ महंत ने अपने उच्चाधिकारियों को दी, जिस की सूचना पाते ही सीओ (अल्मोड़ा) विमल प्रसाद व एसएसपी रामचंद्र राजगुरु घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल का पुलिस ने बारीकी से निरीक्षण किया. सुंदर लाल को बड़ी ही बेरहमी के साथ डंडों से पीटपीट कर मारा गया था. उस के शरीर पर अनगिनत चोटों के निशान मौजूद थे.

सुंदर लाल के घर में तीनों बच्चों और डिंपल के प्रेमी के पाए जाने से यह तो साफ हो ही गया था कि उन की हत्या इन्हीं चारों ने साथ मिल कर की थी. पुलिस ने इस मामले में चारों से पूछताछ की तो उन्होंने हत्या की जो कहानी बताई, वह वास्तव में चौंकाने वाली ही थी.

पुलिस ने फिलहाल उन चारों को ही हिरासत में ले लिया. इस के बाद सुंदर लाल की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भेज दी. पूर्व सैनिक की हत्या से उस के परिवार वालों के साथसाथ गांव वाले भी दुखी थे. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद देर रात को पुलिस ने सुंदर लाल का शव उस के परिवार वालों को सौंप दिया था. तत्पश्चात नगर के नजदीक विश्वनाथ घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस दौरान ग्रामीणों ने आरोपियों के खिलाफ सख्त काररवाई की भी मांग की.

अल्मोड़ा जिले के गांव लमगड़ा निवासी सुंदर लाल इंडो तिब्बत बौर्डर पुलिस (आईटीबीपी) में कार्यरत थे. उन की नौकरी ही कुछ ऐसी थी कि उन की पोस्टिंग अधिकांश बाहर ही होती थी. इसी कारण सभी बच्चों की परवरिश उन की मां की देखरेख में ही हुई थी. जिस के कारण तीनों बच्चों को अपने पापा से पहले से ही ज्यादा लगाव नहीं था.

अब से लगभग 9 साल पहले उन की पत्नी गीता देवी अचानक बीमार हो गईं. पीलिया के कारण एक दिन उन की मृत्यु हो गई. पत्नी की मौत के समय सुंदर लाल बाहर ही नौकरी कर रहे थे. मम्मी की मृत्यु के बाद बच्चे अकेले पड़ गए थे.

हालांकि गांव में उन के परिवार वाले भी रहते थे. लेकिन बिना मांबाप के बच्चों का रहना गांव में मुश्किल हो गया था.

अपनी पत्नी के खत्म होने के बाद सुंदर लाल सर्विस पर जहांजहां गए, बच्चों को भी साथ ले गए थे. लेकिन जैसे ही बच्चे समझदार हुए तो उन की पढ़ाई डिस्टर्ब होने लगी थी.

बच्चों की परेशानी को देखते हुए सुंदर लाल ने आईटीबीपी की ओर से सीमाद्वार परिसर देहरादून में मिले सरकारी क्वार्टर में बच्चों के रहने की व्यवस्था कर दी.

वहीं पर बच्चे पढऩे लगे थे. देहरादून में रहते ही उन की बड़ी बेटी डिंपल ने पीएचडी कर ली थी. उन के बेटे ने एम.काम. पास कर लिया था. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन की बड़ी बेटी डिंपल ने देहरादून के ही एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया था. जबकि बेटे ने वहीं पर एक जिम में नौकरी कर ली थी.

नौकरी के अंतिम पड़ाव में सुंदर लाल की पोस्टिंग लद्ïदाख में थी. उस के बावजूद भी वह हर रोज सुबहशाम फोन पर अपने बच्चों की खैरखबर लेते रहते थे. देहरादून में रहते ही बड़ी बेटी डिंपल का फेसबुक के माध्यम से दिल्ली के संगम विहार निवासी हर्षवर्धन से संपर्क हो गया. दोनों की आपस में दोस्ती भी हो गई थी. उसी दोस्ती के सहारे हर्षवर्धन का उस के पास देहरादून आनाजाना भी शुरू हो गया था.

बाद में यह बात सुंदर लाल को पता चल गई थी. उस के कुछ समय बाद ही सुंदर लाल देहरादून आए तो उन्होंने बेटी डिंपल को समझाने की कोशिश की. लेकिन डिंपल उन की एक भी बात मानने को तैयार न थी. ऐसे में सुंदर लाल को डर था कि हर्षवर्धन के उन के कमरे पर आनेजाने से उन के और बच्चों पर भी बुरा असर पड़ सकता है. इसी कारण उन के भविष्य को ले कर वह परेशान हो उठे.

बेटी को समझानेबुझाने के बाद सुंदर लाल फिर से अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. लेकिन ड्यूटी पर जाने के बाद भी उन का मन बच्चों की तरफ ही लगा रहता था. उसी दौरान एक दिन उन्हें पता चला कि डिंपल छोटे भाईबहन को देहरादून में अकेला छोड़ कर अपने प्रेमी के पास भी चली गई थी.

बेटी के बारे में सोचसोच कर सुंदर लाल कुछ ज्यादा ही परेशान थे. इस से उन्हें लगने लगा था कि बेटी कहीं उन की बिना मरजी के हर्षवर्धन के साथ ही शादी न कर ले. जबकि सुंदर लाल उस की शादी किसी अच्छे घराने में अपने हिसाब से करना चाहते थे.

हर्षवर्धन के प्यार में पडऩे के बाद डिंपल ने अपने पापा से और अधिक पैसों की डिमांड करनी शुरू कर दी थी, जिस के कारण सुंदर लाल परेशान हो उठे और उन का बच्चों के प्रति रुख बदलता गया.

अब से लगभग 3 महीने पहले ही सुंदर लाल सेवानिवृत्त हुए थे. सेवानिवृत्त होने के बाद वह अपने बच्चों के पास देहरादून में ही आ कर रहने लगे थे. लेकिन उन के वहां आने के बाद भी उन की बड़ी बेटी डिंपल अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी. उन्होंने बच्चों को सबक सिखाने के लिए अकेले ही गांव का रुख कर लिया.

गांव आ कर वह अपने भाई के साथ रहने लगे. उस के बाद उन्होंने बेटी के व्यवहार से तंग आ कर बच्चों को खर्च के लिए पैसे भेजने भी बंद कर दिए थे.

हालांकि उन की बेटी के साथसाथ बेटा भी कमाने लगा था. लेकिन उन की छोटी बेटी रितिका इस वक्त पढ़ाई कर रही थी. उसे जब कभी भी पैसों की जरूरत होती तो वह अपने भाई से पैसे मांगती थी. एक बाप के होते उस का भाई से पैसे मांगना उसे कुछ खलने लगा था.

सुंदर लाल के गांव जा कर रहने पर उन के बच्चों को भी शक होने लगा था कि कहीं उन के परिवार वाले उन की संपत्ति पर कब्जा न कर लें. अपने पिता के इस व्यवहार से तंग आ कर उन के बच्चे उन के बारे में गलत अर्थ लगाने लगे थे.

उन्हें शक होने लगा था कि उन के पापा के गांव में किसी औरत के साथ अवैध संबंध तो नहीं हैं, जिस के प्यार में पड़ कर वह अपना सारा पैसा उसी औरत के नाम पर न कर दें. यह बात डिंपल ने अपने प्रेमी से भी कह दी थी.

सुंदर लाल को रिटायरमेंट पर काफी मोटी रकम मिली थी. उन के रिटायरमेंट होते ही बच्चों की निगाहें उसी पैसे पर अटकी हुई थीं. उस के बाद से ही उन की बड़ी बेटी और बेटा उन से पैसों की मांग कर रहे थे. लेकिन सुंदर लाल उन पैसों को उन के बेहतर भविष्य के लिए संजो कर रखना चाहते थे. इसी गलतफहमी की वजह से बच्चों और पिता में आए दिन विवाद रहने लगा था.

इसी विवाद के चलते ही डिंपल ने अपने प्रेमी हर्षवर्धन को देहरादून बुला लिया. उस के देहरादून आते ही उस ने सब कुछ उस के सामने रखते हुए उस से उन के साथ गांव चलने को कहा. हर्षवर्धन पहले ही पैसों का लालची था. उसे पता था कि अगर डिंपल के पापा किसी तरह से डिंपल की शादी उस के साथ करने के लिए राजी हो गए तो वह मालामाल हो जाएगा.

लेकिन सब कुछ हाथ से निकलते देख उस का माथा भी ठनकने लगा था. इसी कारण ही वह जल्दी ही उन के साथ गांव जाने के लिए तैयार हो गया. घर से निकलने से पहले ही चारों ने सोचा था कि वह किसी भी तरह से सुंदर लाल को समझाबुझा कर अपने साथ देहरादून ले आएंगे.

28 दिसंबर, 2023 को योजना बना कर सभी गांव पहुंचे. गांव पहुंचते ही चारों ने सुंदर लाल को समझाने की कोशिश की. उन्होंने बारबार उन से विनती की कि बच्चों को इस तरह से शहर में छोड़ कर आप का गांव में आ कर रहना ठीक नहीं. इस से आप के बच्चों की ही बदनामी होती है. लेकिन सुंदर लाल किसी भी कीमत पर न तो गांव छोड़ कर उन के साथ रहने को तैयार थे और न ही उन्हें कोई पैसा देने के लिए राजी हुए.

सुंदर लाल के तीनों बच्चे क्यों बने जल्लाद

29 दिसंबर की रात को दोनों के बीच यह विवाद और भी तूल पकड़ गया. सुंदर लाल शराब के नशे में किसी की भी सुनने को तैयार न थे. उस के बाद उन की बेटी, बेटे और हर्षवर्धन ने उन को खत्म करने की योजना बनाई, ताकि उन की संपत्ति उन्हीं के पास रहे.

उस शाम जब बातों ही बातों में बात आगे बढ़ गई तो चारों ने सब से पहले सुंदर लाल के पैर बांधे, ताकि वह घर से निकल कर कहीं भाग न सकें. उस के बाद लाठीडंडों से उन्हें पीटना शुरू किया.

जैसे ही सुंदर लाल ने चीखना शुरू किया तो उन की आवाज सुन कर उन के चाचा और पड़ोसी उन के घर पहुंचे. घर पहुंचते ही सभी ने उन के घर का दरवाजा खुलवाने की कोशिश की तो किसी ने भी दरवाजा नहीं खोला और उन्होंने उन के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया ताकि चीख बाहर न निकले.

जब बाहर खड़े लोगों ने सुंदर लाल को बचाने के लिए उन के घर का दरवाजा जोरजोर से पीटना शुरू किया तो हर्षवर्धन ने घर में रखे एक स्टील के पाइप को कपड़े में छिपा कर गांव वालों को धमकाने की कोशिश की. उस ने कहा कि यह उन के घर का मामला है, अगर किसी ने भी उन के मामले में हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो वह गोली चला कर उन की हत्या कर देगा.

गांव वालों ने उस पाइप को बंदूक समझा और फिर सभी डर के मारे वहां से भाग गए. उन के वहां से जाते ही उन्होंने फिर से सुंदर लाल पर जुल्म ढहाना शुरू कर दिया. उस के बाद हर्षवर्धन जल्लाद बन बैठा था. वह उसी वक्त घर में रखी एक दरांती उठा लाया. उस के बाद उस ने उस दरांती से वार कर सुंदर लाल की हत्या कर दी थी.

फिर गांव वाले भी दरवाजा तोड़ कर घर में घुस आए थे. इस से पहले कि वे भागने की कोशिश करते, गांव वालों ने उन्हें एक कमरे में बंद करने के बाद पुलिस को फोन कर दिया. जिस के बाद पुलिस ने चारों को गिरफ्तार कर लिया था.

पुलिस ने इस हत्याकांड में प्रयुक्त लाठी, डंडे व दरांती भी बरामद कर ली थी. इस मामले में मृतक सुंदर लाल के भाई ओमप्रकाश निवासी भांगा देवली के द्वारा चारों आरोपियों के खिलाफ हत्या करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

इस मामले के हत्यारोपी डिंपल, उस के पे्रमी हर्षवर्धन व बेटे रितिक को पुलिस ने न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया था. जबकि चौथी आरोपी नाबालिग बेटी अंशिका को बाल सुधार गृह भेजा गया था.

सुंदर लाल के 3 बच्चे थे, उन के बाद सब कुछ उन्हीं के नाम आने वाला था. फिर ऐसे में उन्होंने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया. उन सभी ने अपने बाप के खून से हाथ रंगते हुए अपना भविष्य ही चौपट कर लिया था.

पैसे का लालच इंसान को किस कदर अंधा बना देता है कि वह उस के लालच में अपनेपराए के मायने भी भूल जाता है और उसी के लिए खूनखराबा भी कर डालता है. चाहे भले ही उस के बाद उसे धनदौलत मिले न मिले, लेकिन वह उस के बाद अपनी जिंदगी को पूरी तरह से तबाह कर डालता है. यही सब किया इन तीनों बच्चों ने. उन्होंने अपने पापा की रिटायर रकम को एकमुश्त हड़पने के लिए अपनी जिंदगी को ही दागदार बना डाला था.

कातिल निकली सौतेली मां : मंजीत का ऐसा कौन सा स्वार्थ रह गया

‘‘देखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा.

पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था.

‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं और यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मेरी लापरवाही में तुम घर को अच्छी तरह संभाल सकती हो. फिर अब कुछ ही दिनों की तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’ पति ने समझाया.

कहने को तो यह बात यहीं खत्म हो गई थी पर राजबीर कौर अच्छी तरह जानती थी कि अब आगे कुछ ठीक होने वाला नहीं है. इसलिए उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा, वह अपने घर को बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

पंजाब के अमृतसर देहात क्षेत्र के थाना रमदास के गांव कोटरजदा के मूल निवासी थे बलदेव सिंह. पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे थे परगट सिंह, काबल सिंह और हरदीप सिंह. बलदेव सिंह ने समय रहते सभी बेटों की शादियां कर दी थीं और तीनों भाइयों में जमीन का बंटवारा भी कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा ली थी.

अपने हिस्से की जमीन ले कर परगट सिंह ने अपना अलग मकान बना लिया था. काबल और हरदीप अपने पुश्तैनी घर में मातापिता के साथ रहते थे. काबल सिंह की शादी मनजीत कौर के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे थे 13 वर्षीय मनप्रीत सिंह और 12 वर्षीय गुरप्रीत सिंह.

सन 2003 में हरदीप सिंह की शादी खतराये निवासी राजबीर कौर के साथ हुई थी. शादी के बाद उन के घर किरनजोत सिंह ने जन्म लिया था. बच्चे के जन्म से दोनों पतिपत्नी बड़े खुश थे. तीनों भाइयों की अपनी अलगअलग जमीनें थीं. सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 24 जून, 2008 को काबल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. इस के बाद तो उस घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उस की खेती आदि के काम कोई करने वाला नहीं था क्योंकि उस समय बच्चे भी छोटे थे. तब भाई के खेतों के काम से ले कर उस के दोनों बच्चों की देखभाल का जिम्मा हरदीप सिंह ने संभाल लिया था.

अपनी विधवा भाभी मनजीत कौर से सहानुभूति रखने और उस की मदद करतेकरते हरदीप सिंह का झुकाव धीरेधीरे अपनी विधवा भाभी की ओर होने लगा. हरदीप की पत्नी राजबीर कौर इन सब बातों से बेखबर नहीं थी.

वह समयसमय पर पति हरदीप सिंह को उस की अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का अहसास दिलाती रहती थी. पर उस ने इन बातों को ले कर कभी पति से क्लेश या लड़ाईझगड़ा नहीं किया था. वह हर मसले को प्यार और समझदारी से निपटाने के पक्ष में थी और यही बात उस के हक में नहीं रही.

उसे जब इन सब बातों की समझ आई तब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका था. उस का पति हरदीप अब उस का नहीं रहा. वह कभी का अपनी विधवा भाभी मंजीत कौर की आगोश में जा चुका था. राजबीर कौर ने जब अपना घर उजड़ता देखा तब उस की नींद टूटी और उस ने इस रिश्ते का जम कर विरोध किया था.

बाद में उस ने इस मसले पर रिश्तेदारों से शिकायत भी की पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस पूरे मामले में राजबीर कौर की यह गलती रही कि उस ने अपने पति पर विश्वास करते हुए समय रहते इन सब बातों का विरोध नहीं किया था. शायद उसे पति की वफादारी और अपनी समझ पर भरोसा था. बहरहाल उस का बसाबसाया घर टूट गया था. हरदीप सिंह और राजबीर कौर के बीच तलाक हो गया था. यह सन 2013 की बात है.

राजबीर कौर का हरदीप सिंह से तलाक भले ही हो गया था, पर वह वहीं रहती रही. हरदीप सिंह अपने 9 वर्षीय बेटे किरनजोत सिंह और अपने दोनों भतीजों मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह के साथ मंजीत कौर के साथ रहने लगा था. भाभी के साथ रहने पर लोगों ने कुछ दिनों तक चर्चा जरूर की पर बाद में सब शांत हो गए.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सब अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हरदीप तीनों बच्चों और दूसरी पत्नी मंजीत कौर के साथ खुशी से रह रहा था.

बात 28 जून, 2018 की है. तीनों बच्चों सहित हरदीप और मंजीत कौर रात का खाना खा कर सो गए थे. हरदीप और मंजीत कौर कमरे के अंदर और तीनों बच्चे बाहर बरामदे में सो रहे थे. बिस्तर पर लेटते ही हरदीप को तो नींद आ गई थी पर मंजीत कौर अपने बिस्तर पर लेटेलेटे ही टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी. कमरे की लाइट बंद थी पर टीवी चलने के कारण उस कमरे में पर्याप्त रोशनी थी.

रात के करीब 12 बजे का समय होगा कि मंजीत कौर ने अपने कमरे में एक साया देखा. साया कमरे से बाहर की ओर निकल गया था. फिर अचानक मंजीत कौर की नजर कमरे में रखी हुई अलमारी पर पड़ी. अलमारी खुली हुई थी और पास ही सामान बिखरा पड़ा था. यह देख कर वह चौंक गई. घबरा कर उस ने पास में सोए पति हरदीप को जगाया और अलमारी की ओर इशारा किया.

कमरे में चल रहे टीवी की रोशनी में उसे भी खुली अलमारी के आसपास कपड़े आदि बिखरे दिखे. इस के बाद हरदीप ने तुरंत उठ कर घर की लाइट जला दी. वह समझ गया कि घर में चोरी हो गई है. कमरे से निकल कर जब वह बरामदे में पहुंचा तो उस की नजर बरामदे में सोए बच्चों पर गई. वहां मनप्रीत और गुरप्रीत तो सो रहे थे, लेकिन उस का अपना 9 वर्षीय बेटा किरनजोत सिंह गायब था.

यह सब देख कर हरदीप ने चोरचोर का शोर मचाना शुरू कर दिया था. रात के सन्नाटे में उस की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर आ गए और जब सब को पता चला कि 9 वर्षीय किरनजोत को भी चोर अपने साथ उठा कर ले गए हैं तो सब हैरान रह गए.

किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ऐसे में किरनजोत को कहां और कैसे ढूंढा जाए. फिर भी समय व्यर्थ न करते हुए सभी लोग रात में ही किरनजोत की तलाश में अलगअलग दिशाओं में निकल पड़े.

पूरी रात किरनजोत की तलाश होती रही. लोगों ने गांव से ले कर मुख्य मार्ग तक भी छान मारा पर वह नहीं मिला. पूरी रात बीत गई थी पर किरनजोत का कुछ पता नहीं चला था. हरदीप सिंह की पहली बीवी यानी किरनजोत को जन्म देने वाली मां राजबीर कौर को जब अपने बेटे के चोरी होने का पता चला तो रोरो कर उस ने अपना बुरा हाल कर लिया था.

किरनजोत को तलाश करतेकरते दिन निकल आया था. बच्चे के न मिलने पर सभी लोग निराश थे. कुछ देर बाद गांव के एक आदमी ने हरदीप सिंह को आ कर यह खबर दी कि किरनजोत की लाश नहर किनारे पड़ी है.

यह सुनते ही हरदीप व अन्य लोग नहर किनारे पहुंचे तो वास्तव में वहां किरनजोत की लाश मिली. कुछ ही देर में गांव के तमाम लोग नहर किनारे जमा हो गए. किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी.

सूचना मिलते ही थाना रमदास के थानाप्रभारी मनतेज सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने बच्चे की लाश को अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद मनतेज सिंह ने हरदीप सिंह के घर का मुआयना किया. हरदीप सिंह से बात करने के बाद पता चला कि उस के घर का कोई सामान चोरी नहीं हुआ था. इस से यही पता लगा कि वारदात को चोरी का रूप देने की कोशिश की गई है.

पुलिस को यह भी पता चला कि कमरे में कोई साया होने की बात सब से पहले हरदीप सिंह की पत्नी मंजीत कौर ने बताई थी, इसलिए थानाप्रभारी ने मंजीत कौर के ही बयान लिए.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह को मंजीत के बयानों में काफी झोल दिखाई दे रहे थे. यह बात भी उन्हें हजम नहीं हो रही थी कि कमरे में जागते और टीवी देखते हुए कैसे चोर की हिम्मत हो गई कि वह चोरी करने के साथसाथ बच्चे को भी उठा कर अपने साथ ले गया. भला उस बच्चे से उसे क्या मतलब था और किस मकसद से उस ने बच्चे को अगवा किया था. लाख सोचने पर भी मनतेज सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी.

तब थानाप्रभारी ने अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों को सच्चाई का पता करने पर लगाया. इस बीच अस्पताल में किरनजोत के पोस्टमार्टम के समय उस की मां राजबीर कौर ने खूब हंगामा खड़ा किया. उस ने अपनी जेठानी मंजीत कौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि किरनजोत की हत्या के पीछे मंजीत कौर का ही हाथ है क्योंकि वह उसे अपना सौतेला बेटा मानती थी.

राजबीर कौर के आरोप को मद्देनजर रखते हुए पुलिस ने अपने मुखबिरों को सच्चाई का पता लगाने के लिए लगाया. इस के बाद थानाप्रभारी को मंजीत कौर के बारे में जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किरनजोत की मौत के बारे में बताया कि उस की मौत गला घोंटने से हुई थी.

सोचने वाली बात यह थी कि मारने वाले ने बच्चे को घर से उठाया और हत्या के बाद वह उसे नहर के किनारे फेंक आया. इस में इकट्ठे सो रहे तीनों बच्चों में से उस ने किरनजोत सिंह को ही क्यों उठाया.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह ने मृतक किरनजोत की मां राजबीर कौर से भी पूछताछ की. राजबीर कौर ने बताया कि 10 साल पहले उस का विवाह हरदीप सिंह के साथ हुआ था.

उस के जेठ काबल सिंह की मौत हो जाने के बाद उस के पति हरदीप सिंह के उस की जेठानी मंजीत कौर से अवैध संबंध हो गए थे. इस कारण उस ने अपने पति को तलाक दे दिया और दूसरा विवाह कर लिया.

उस के पति हरदीप सिंह ने भी उस की जेठानी के साथ शादी कर ली थी. शादी के बाद न तो उस की जेठानी उसे उस के बेटे किरनजोत से मिलने देती थी और न ही वह उसे पसंद करती थी. उसे पूरा यकीन है कि उस के बेटे की हत्या मंजीत कौर ने ही करवाई है.

थानाप्रभारी ने महिला हवलदार सुरजीत कौर को भेज कर मंजीत कौर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. शुरुआती दौर में वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए चोरी की कहानी पर डटी रही पर जब उस से पूछा गया कि क्याक्या सामान चोरी हुआ है तो यह सुन कर वह बगलें झांकने लगी.

थोड़ी सख्ती करने पर उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसी ने किरनजोत की गला घोंट कर हत्या की थी और लाश को गोद में उठा कर नहर किनारे फेंक आई. फिर आधी रात को अपने पति हरदीप को जगा कर चोरी वाली कहानी सुनाई थी.

इस की वजह यह थी कि मंजीत कौर को हरदीप और किरनजोत के बीच का प्यार खलता था. वह नहीं चाहती थी कि उस के दोनों बेटों के अलावा उस का पति हरदीप अपनी पहली बीवी से हुए बेटे किरनजोत के साथ कोई भी रिश्ता रखे. पिता का यही प्यार बेटे की मौत का कारण बन गया.

दरअसल हरदीप सिंह तीनों बच्चों से तो प्यार करता था पर वह सब से अधिक अपने किरनजोत को चाहता था. पति के इस प्यार की वजह से मंजीत कौर को यह भ्रम हो गया था कि हरदीप सिंह किरनजोत के बड़े होने पर अपनी सारी जायदाद उसी के नाम कर देगा.

ऐसे में उस के पैदा किए बच्चे दानेदाने को मोहताज हो जाएंगे, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी. हरदीप ने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि मंजीत कौर ऐसा भी कुछ सोच सकती है.

मंजीत कौर के बयान दर्ज करने के बाद किरनजोत सिंह की हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाप बेटे की एक बीवी – भाग 3

पिछले कुछ दिनों से पूजा पुरुष सुख से वंचित थी. ऐसे में उस की नजर नारी सुख से वंचित कौर सिंह पर पड़ी तो वह उस की ओर आकर्षित होने लगी. उस ने कौर सिंह की अधेड़ उम्र को भी नहीं देखा. कौर सिंह ने पूजा की नजरों को पहचान लिया और वह भी इशारोंइशारों में उस से मन की बात कहने लगा.

आखिर एक रात जब कालू और संदीप सो रहे थे तो पूजा कौर सिंह की ढाणी में पहुंच गई. उसी दिन से दोनों के बीच संबंध बन गए. एक सप्ताह तक कौर सिंह और पूजा का अनैतिक खेल बेरोकटोक जारी रहा. पर एक रात कालू ने पूजा को कौर सिंह के साथ आपत्तिजनक हालत में रंगेहाथों पकड़ लिया. उस दिन कालू ने गुस्से से पूजा की पिटाई कर डाली. साथ ही कौर सिंह को भलाबुरा भी कहा. कभी संदीप की दीवानी पूजा अब कौर सिंह पर फिदा हो गई थी. पूजा ने संदीप से रिश्ता होने की बात भी कौर सिंह को बता दी थी.

कालू को शक हुआ तो उस ने पूजा की निगरानी शुरू कर दी. अब पूजा कौर सिंह या संदीप से एकांत में नहीं मिल पा रही थी. वह मौका तलाश कर कौर सिंह से मिली और उस के सीने पर सिर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तेरे बिनारह नहीं सकती.’’ कहने के साथ ही पूजा सिसकने लगी.

‘‘पूजा, तू घबरा मत, मैं कल ही इस काम का तोड़ निकाल लूंगा.’’ कौर सिंह ने उसे सांत्वना दी. तब तक उन तीनों को वहां आए केवल 20 दिन ही हुए थे.

अगली रात योजना के अनुरूप पूजा ने कालू के खाने में नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. रात 11 बजे के करीब कौर सिंह कालू की ढाणी में आया. उस ने गहरी नींद में सोए अपने बेटे संदीप को उठाया. पूजा पहले से जाग रही थी. कौर सिंह ने पूजा व संदीप को बेसुध पड़े कालू के हाथपांव पकड़ने को कहा. दोनों ने वैसा ही किया.

कौर सिंह ने पूजा का दुपट्टा ले कर कालू के गले में डाला और जोर से खींच दिया. नशे में ही कालू ने दम तोड़ दिया. तीनों ने ठाणी के पीछे पहले से बनाए गड्ढे में कालू के शव को डाल कर दफना दिया. उस रात पूजा ने बापबेटे दोनों के साथ बीच सैक्स का आनंद उठाया.

कौर सिंह भी पूजा का दीवाना हो चुका था. 5 रोज बाद उस ने संदीप को भी डराधमका कर भगा दिया. अब पूजा पर उस का एकाधिकार हो गया था. दोनों ने 10 रोज मजे से गुजार दिए.

एक दिन पूजा के पास उस की मां विद्या का फोन आया. उस ने मां को बताया कि वह मजे में है. विद्या ने कालू से बात करवाने को कहा तो पूजा ने कहा कि वह काम पर गए हैं. विद्या ने रात को फिर फोन किया तो पूजा ने कहा कि वह एक जरूरी काम से गांव चले गए हैं. कल बात करवा दूंगी.

लेकिन कई दिन तक विद्या की कालू राम से बात नहीं हो सकी. अनहोनी की आशंका के चलते विद्या ने कालू के छोटे भाई दीपक को बुलाया. दीपक कमरानी आ गया. दीपक को बताया गया कि 4 दिन से पूजा का फोन बंद है और कई दिनों से कालू का भी कोई अतापता नहीं है.

सलाह मशविरा कर के दोनों परिवारों ने 12 फरवरी, 2018 को टिब्बी पुलिस थाने में दीपक की ओर से कालू की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. इस मामले की जांच सहायक उप निरीक्षक लेखराम को सौंप दी गई.

शुरुआती जांच पड़ताल में लेखराम को पूजा के अनैतिक संबंधों की जानकारी मिली तो उन्होंने इस मामले को गंभीरता से लिया. तब तक कौर सिंह को पुलिस की भागदौड़े का पताचल चुका था. वह पूजा को ले कर फरार हो गया था.

कई दिनों तक पुलिस और संदिग्धों के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. एक दिन विद्यावती के पास पूजा का फोन आया और उस ने अपनी कुशलक्षेम बताते हुए मायके के हालात के बारे में पूछा. फोन आने की सूचना लेखराम तक पहुंचा दी गई. उस अनजान नंबर को ट्रेस किया गया तो वह नंबर पंजाब के गांव वरियामखेड़े के एक किसान का पाया गया.

पुलिस ने दबिश दी तो पूजा और गौर सिंह वहां से भी भाग निकले. अगले दिन कौर सिंह का बेटा संदीप पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उस ने प्रारंभिक पूछताछ में यह राज उगल दिया कि तीनों ने मिल कर कालू की हत्या कर के उस की लाश ठाणी के पिछवाड़े दबा दी है.

गुमशुदगी का मामला हत्या में तब्दील हो चुका था. वारदात रावतसर क्षेत्र में हुई थी. एएसआई लेखराम की रिपोर्ट पर 17 फरवरी को रावतसर में तीनों के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत अभियोग दर्ज कर लिया गया.

थानाप्रभारी पुष्पेंद्र सिंह ने शेष हत्यारोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी हेतु अमर सिंह प्रहलाद, अविनाश व महिला कांस्टेबल सावित्री की एक टीम गठित की और अपराधियों को ढूंढने लगे. अपराधबोध से ग्रस्त व भागदौड़ से थके कौर सिंह व पूजा लुकछिप कर विद्या के पास पहुंच गए. पुलिस को सूचना मिली तो दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने अगले दिन तीनों को नोहर की अदालत में पेश कर के 3 दिन का पुलिस रिमांड ले लिया. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने कालू का शव, जो हड्डियों में तब्दील हो चुका था, बरामद कर लिया. हत्या में इस्तेमाल किया गया पूजा का दुपट्टा भी जब्तहो गया. व्यापक पूछताछ के बाद पुलिस ने अदालत के आदेश पर पूजा व उस के दोनों आशिक बापबेटे कौर सिंह और संदीप को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

सैक्स की आंच में अंधी हो कर एक वर्षीय अपनी बच्ची के भविष्य को अंधियारे में धकेलने वाली पूजा ने न केवल अपने पति को परलोक पहुंचाया बल्कि स्वयं के साथसाथ बापबेटे को भी काल कोठरी में पहुंचा दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित