सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 3

रश्मि के अकेली आने पर मांबाप को समझते देर नहीं लगी कि बेटी दामाद में ऐसा कुछ जरूर हुआ है, जिस की वजह से रश्मि को घर छोड़ कर अकेली आना पड़ा. जब उन्होंने ध्यान से देखा तो उस के जिस्म पर उभरे नीले निशान दामाद की दरिंदगी की कहानी कह रहे थे.

पहली बार उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने बेटी को गलत हाथों में सौंप दिया है. आगे से ऐसा न हो, इस के लिए अर्जुन कुमार ने बेटी का मेडिकल करवाया और उसे ले कर महिला थाने पहुंच गए. महिला थाने की थानाप्रभारी से रश्मि के साथ हुए अत्याचार के बारे में बता कर कानूनी काररवाई करने को कहा, ताकि भविष्य में बेटी के साथ कोई अनहोनी हो तो इस के लिए उस के दामाद विवेक को जिम्मेदार माना जाए.

रश्मि नहीं चाहती थी कि उस के पिता कोई ऐसा काम करें, जिस से ससुराल जाने पर उसे परेशानी हो. इसलिए थानाप्रभारी से उस ने कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस के बावजूद रश्मि के लिए परेशानी खड़ी हो गई. विवेक को पता चल ही गया था कि रश्मि पिता के साथ महिला थाने गई थी. इस बात से रश्मि के प्रति उस का व्यवहार और बदल गया.

अब वह पहले से ज्यादा शराब पी कर आने लगा और रश्मि को परेशान करने लगा. इसी तरह 3 साल बीत गए. इन 3 सालों में रश्मि ने ससुराल में एक दिन भी सुख का अनुभव नहीं किया. कोई भी ऐसा दिन नहीं बीता, जिस दिन पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा या मारपीट न हुई हो. शारीरिक उत्पीड़न और प्रताड़ना उस की जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. एक तरह से उस की जिंदगी नरक बन कर रह गई थी.

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहतेसहते रश्मि पूरी तरह से टूट गई थी. जब उस की सहनशक्ति खत्म हो गई तो ससुराल में उस के साथ क्या क्या हुआ, उस ने एक एक बात मांबाप को बता दी. बेटी की दुखद कहानी सुन कर मांबाप के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे हैरानी से बेटी का मुंह ताकते रह गए कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उस ने उफ तक नहीं की. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि नाजों से पलीबढ़ी बेटी ससुराल में दुख के अंगारों पर झुलस रही है.

वह ऐसे गुनाह की सजा वह काट रही है, जिसे उस ने कभी किया ही नहीं है. बिना वजह रश्मि को परेशान किए जाने की बात से अर्जुन कुमार और अभिषेक बहुत दुखी हुए. अब उन के पास कानून का सहारा लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. इसलिए उन्होंने बेटी से दामाद द्वारा मारपीट करने की तहरीर महिला थाने में दिलवा दी.

रश्मि द्वारा दी गई तहरीर ने आग में घी का काम किया. महिला थाने की थानाप्रभारी ने विवेक को थाने बुलवा कर सब के सामने उसे इस तरह जलील किया कि वह भीगी बिल्ली बन कर रह गया. उस ने सब के सामने माफी मांगी और वादा किया कि भविष्य में वह फिर कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा.

विवेक के घडि़याली आंसू पर रश्मि तो पिघल गई, लेकिन उस के इस नाटक पर न तो अर्जुन और अभिषेक को यकीन हुआ, न ही थानाप्रभारी को. रश्मि के कहने पर उस के घर वाले और पुलिस उसे इस शर्त पर विवेक के साथ भेजने को राजी हुई कि भविष्य में अगर रश्मि के साथ किसी भी तरह की कोई अनहोनी होती है तो इस के लिए वही जिम्मेदार होगा. विवेक ने यह शर्त मान ली तो रश्मि को उस के साथ भेज दिया गया.

रश्मि पति के साथ ससुराल आ तो गई, लेकिन इस के बाद उसे मायके वालों का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ. विवेक का सख्त आदेश था कि वह न तो मायके जाएगी और न ही वहां फोन करेगी. यही नहीं, मायके वालों का फोन आता है, तब भी वह बात नहीं करेगी. इस तरह विवेक ने ससुराल वालों से संबंध लगभग तोड़ लिए. उसे नाराजगी इस बात की थी कि ससुर और साले ने दूसरी बार पत्नी से उस की शिकायत करा दी थी, जिस की वजह से उसे थाने में सब के साने जलील किया गया था. यह अपमान वह भूल नहीं पा रहा था.

रश्मि ने सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था. अब बेटी ही उस के लिए एकमात्र जीने का सहारा रह गई थी. उसे ही देख कर वह जी रही थी. सासससुर, ननददेवर सभी ने मुंह मोड़ लिया था. शायद उस ने भी ठान लिया था कि वह वही करेगी, जो भारतीय नारियां करती आई हैं. जिस इज्जत के साथ वह ब्याह कर ससुराल आई है, उसी इज्जत के साथ उस की अर्थी ससुराल से ही उठेगी. इसी तरह 5 साल बीत गए.

सन 2008 में रश्मि की छोटी बहन दिवीता की शादी तय हुई. बेटी की शादी तय होने की बात अर्जुन कुमार ने बेटी रश्मि और दामाद विवेक को भी बताई. बहन की शादी तय होने की बात सुन कर रश्मि बहुत खुश हुई. न जाने क्या सोच कर विवेक ने रश्मि को शादी में जाने की अनुमति दे दी. यही नहीं, वह खुद भी उस शादी में शामिल हुआ.

बेटीदामाद के आने से सभी को खुशी हुई. अर्जुन कुमार और उन की पत्नी को लगा, शायद अब सब ठीक हो जाएगा. इस के बाद विवेक खुद भी ससुराल आनेजाने लगा और रश्मि को भी साथ ले जाने लगा. 2 बार वह रश्मि को ले कर सिंगापुर भी घूमने गया. विवेक भले ही ससुराल आनेजाने लगा था और रश्मि को देश के बाहर घुमाने भी ले गया था, लेकिन रश्मि के साथ वह जो व्यवहार करता आया था, उस में कोई बदलाव नहीं आया था.

वह अभी भी रश्मि को न जलील करने से चूकता था, न उस के साथ मारपीट करने में पीछे रहता था. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह यह भी नहीं देखता था कि पत्नी से कहां और कैसा व्यवहार किया जाए. बाप के इस व्यवहार से श्रद्धा भी दुखी रहती थी. कहने का मतलब यह था कि विवेक ने शराफत का जो चोला ओढ़ रखा था, वह मात्र दिखावा था, जबकि उस की आदत में कोई सुधार नहीं आया था.

खिल गए खुशियों के गुलाब – भाग 1

डैक पर बजने वाला गाना भले ही बैडरूम में बज रहा था, लेकिन वह इतनी जोर से बज रहा था कि उस की लपेट में पूरा घर आ रहा था. घर में प्रवेश करते ही हम्माद ने देखा, लाउंज में खड़ा नौकर नसीर भी उस गाने का मजा ले रहा था. उसे देखते ही झट से सलाम कर के वह किचन की ओर बढ़ गया. हम्माद की अम्मी के कमरे का दरवाजा बंद था. सुबह से ही उन की तबीयत खराब थी. वह दवा खा कर लेटी थीं, मगर इस हंगामे में भला आराम कहां से मिलता.

काम की थकान की वजह से हम्माद का दिमाग पहले से ही खराब था, इस शोरगुल ने उसे और खराब कर दिया था. बैडरूम का दरवाजा खुला था. उस की बीवी दरखशां बैड पर औंधी लेटी गाने का मजा लेती हुई पैर हिला रही थी. हम्माद सिर दर्द की वजह से जल्दी घर आ गया था. इस हंगामे से उस की कनपटियां चटखने लगीं. दरखशां के करीब जा कर उस ने तेज आवाज में कहा, ‘‘मैडम…’’

दरखशां इस तरह चौंकी, जैसे किसी सुहाने ख्वाब में खोई रही है. वह एकदम से उठ बैठी. हम्माद ने डेक औफ किया और उसे घूरते हुए बोला, ‘‘यह घर है दरखशां. फिर अम्मी की तबीयत भी खराब है, इस के बावजूद तुम ने फुल वाल्यूम में डेक चला रखा है.’’

‘‘वो मैं… सौरी.’’ दरखशां घबराहट में बोली. उस का दिल बुरी तरह धड़क रहा था.

यह वक्त हम्माद के आने का नहीं था, इसलिए वह अपनी मनमर्जी कर रही थी. उस समय उस के दिमाग से यह बात निकल गई थी कि सास की तबीयत खराब है. उसे शर्मिंदगी महसूस हुई. वह इस तरह उठ कर खड़ी हुई, जैसे उस की टांगों में जान न हो.

‘‘एक कप चाय.’’ हम्माद की आवाज में गुस्सा साफ झलक रहा था. कह कर वह वौशरूम में घुस गया. दरखशां की आंखें भर आईं. क्योंकि वह ऐसे लहजे की आदी नहीं थी. आंसू पीते हुए उस ने नसीर से चाय बनाने को कहा और खुद लाउंज में जा कर खड़ी हो गई.

चाय ले कर दरखशां कमरे में आई तो हम्माद कपड़े बदल कर बिस्तर पर लेट चुका था. चाय के साथ 2 गोलियां निगल कर उस ने कप तिपाई पर रख दिया और खुद कंबल ओढ़ कर लेट गया. दरखशां यह भी नहीं कह सकी कि सिर दबा दे. कंबल के साथ हम्माद ने खामोशी भी ओढ़ ली थी. वह लाइट औफ कर के सोफे पर बैठ गई. उस का मन रोने को हो रहा था. हम्माद का यह रवैया उसे पसंद नहीं आया था. उस ने आंखें मूंद लीं. तभी उस के जेहन में गुजरे दिनों की फिल्म चलने लगी.

इंटर पास कर के दरखशां ने कालेज में दाखिला ले लिया था, इस के बावजूद गुड्डे गुडियों से खेलने का शौक उस का गया नहीं था. उस ने गुड्डे का नाम मून रखा था तो गुडि़या का पिंकी. उस के इस खेल में उस की सहेली मारिया के अलावा आसपड़ोस की कुछ अन्य लड़कियां भी शामिल होती थीं. मारिया का घर पड़ोस में ही था. इसलिए वह अकसर दरखशां के साथ ही रहती थी.

दरखशां को गुड्डेगुडि़या के साथ खेलते देख उस की अम्मी अमीना अकसर नाराज हो कर कहतीं, ‘‘इतनी बड़ी हो गई है, फिर भी गुड्डेगुडि़यों के साथ खेलती रहती है.’’

तब दरखशां के वालिद राशिद कहते, ‘‘खेलती है तो खेलने दो, हमारी एक ही तो बेटी है. कम से कम सहेलियों के साथ घर में खेलती है, बेटों की तरह बाहर तो नहीं जाती.’’

दरखशां थी ही इतनी प्यारी, मासूम सूरत, सुर्खी लिए सफेद रंगत, बड़ीबड़ी नशीली आंखें, दरमियाना कद, उस पर सितम ढाती भोलीभाली सूरत.

दरखशां के वालिद एक विदेशी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर नौकरी करते थे. दरखशां से 3 साल छोटे 2 जुड़वां भाई थे – शाहिद और जाहिद. भाईबहन आपस में दोस्ताना रवैया रखते थे, मगर दोनों भाई दरखशां को परेशान करने से बाज नहीं आते थे. वे शरारती भी बहुत थे. अक्सर वे दरखशां के गुड्डेगुडि़यों को छिपा देते. दरखशां अम्मी से शिकायत करती तो वे मून और पिंकी को उस के हाथ में थाम कर कहते, ‘‘अम्मी लगता है, आपी इन्हें अपने साथ ससुराल भी ले जाएंगी.’’

ससुराल के नाम पर घबरा कर दरखशां अम्मी के सीने से चिपक जाती. ससुराल जाने के खयाल से ही वह घबरा जाती थी. अभी वह 17 साल की ही तो थी. अगले महीने 5 अप्रैल को उस की सालगिरह थी, जिस की तैयारी अभी से शुरू हो गई थी. दरखशां की सालगिरह हमेशा बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी.

कालेज की पढ़ाई के दौरान दरखशां को गुड्डेगुडि़यों से खेलने का मौका कम ही मिलता था. लेकिन दिन में एक बार उन्हें अच्छी तरह देख कर वह तसल्ली जरूर कर लेती थी.

एक दिन वह कुछ पढ़ रही थी, तभी उस के वालिद ने उस की अम्मी से कहा, ‘‘अमीना, अब हमें दरखशां की शादी कर देनी चाहिए. रिश्ता अच्छा है, मना नहीं किया जा सकता. हम्माद मेरे दोस्त का बेटा है, डाक्टर है. देखाभला और जानासुना है. अब दोस्त नहीं रहा तो मना करना ठीक नहीं है. रजा ने इस रिश्ते के लिए मुझ से बहुत पहले ही वादा करा लिया था. उन की बेगम ने पैगाम भिजवाया है. कल वह आ रही हैं. सारी तैयारी कर लो. दरखशां को भी समझा देना. आज के जमाने में इस तरह का रिश्ता जल्दी कहां मिलता है.’’

अगले दिन हम्माद अपनी अम्मी साफिया बेगम और बहन शहनाज के साथ दरखशां को देखने आया. शहनाज की शादी हो चुकी थी. मारिया ने दिल खोल कर हम्माद की तारीफें कीं. साफिया बेगम ने दरखशां को अपने पास बिठाया और उस की नाजुक अंगुली में अंगूठी पहना कर रिश्ते के लिए हामी भर दी.

राशिद के सिर का बोझ उतर गया. दरखशां ने सरसरी तौर पर हम्माद को देखा. रौबदार संजीदा चेहरा, गंभीर आवाज. दरखशां का नन्हा सा दिल कांप उठा. उसे वह काफी गुस्से वाला लगा.

खाना वगैरह खा कर सभी चले गए. उन के जाते ही शाहिद और जाहिद ने दरखशां से छेड़छाड़ शुरू कर दी. उस की नाक में दम कर दिया. बेटी को परेशान होते देख अमीना नम आवाज में बोली, ‘‘मेरी बेटी को परेशान मत करो. अब सिर्फ 3 महीने की ही तो मेहमान है.’’

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 3

उस वक्त तो वह खून का घूंट पी कर रह गई पर अगले दिन 22 नवंबर को सुबह लगभग 10 बजे वह पूनम के घर जा पहुंची और पूनम से साफसाफ कह दिया, ‘‘रामकुमार जब उस का पति था तब था, अब वह उस का भी है. वह उसे अपना तनमन सौंप कर अपना पति मान चुकी है.’’

उस दिन रामकुमार की मौजूदगी में उन दोनों के बीच काफी कहासुनी हुई. कालिंदी ने पूनम से साफसाफ कह दिया कि उस ने दिलीप को छोड़ दिया है और अब रामकुमार के साथ ही रहेगी.

कालिंदी का पूनम से इस तरह बहस करना रामकुमार को अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस से नहीं रहा गया तो वह कालिंदी का हाथ पकड़ कर घर से बाहर ले आया. रामकुमार ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें जो भी कहना सुनना है मुझसे कहो लेकिन यहां नहीं, चलो हम कहीं बाहर चलते हैं. मैं वहीं तुम्हारी सारी बातों का जवाब दूंगा.’’

कालिंदी तैयार हो गई तो रामकुमार उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर एक रेस्टोरेंट में ले गया. वहां चायनाश्ते के दौरान उस ने कालिंदी को समझाया, ‘‘जब मैं तुम्हें अपने साथ रखने को तैयार हूं तो इस तरह घर आ कर तमाशा खड़ा करने का क्या मतलब? अब मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम हफ्ते दस दिन के लिए अपनी मां के घर चली जाओ. इस बीच मैं यहां पर तुम्हारे रहने का कोई इंतजाम कर के तुम्हें फोन कर दूंगा.’’

रामकुमार ने समझाबुझा कर कालिंदी को मायके जाने के लिए राजी कर लिया. इस के बाद टिकट और रास्ते के खर्च के लिए 5 सौ रुपए दे कर उस ने कालिंदी को दुर्ग बस स्टैंड पर छोड़ दिया. उसे दुर्ग बस स्टैंड छोड़ने के बाद रामकुमार रायपुर लौट आया. रात में लगभग 10 बजे जब वह घर पहुंचा तब भी पूनम का मिजाज गरम था. लेकिन वह उस से बिना कोई बात किए खाना खा कर चुपचाप सो गया.

खमतराई थानाप्रभारी संजय तिवारी को 23 नवंबर की सुबह सूचना मिली कि गोगांव नाले में एक महिला की लाश पड़ी है. लाश की खबर मिलते ही संजय तिवारी एसआई आर.पी. मिश्रा, हेडकांस्टेबल साबिर खान, कांस्टेबल शिवशंकर तिवारी, उमेश पटेल, बच्चन सिंह ठाकुर, गिरधर गोपाल द्विवेदी और एस.एस. ठाकुर को साथ ले कर गोगांव नाले के पास पहुंचे तो वहां काफी भीड़ जमा थी.

वहां पीले रंग की साड़ी पहने एक महिला का शव नाले के किनारे पानी में पड़ा था. पानी कम होने की वजह से लाश साफ दिख रही थी. थानाप्रभारी ने 2 सिपाहियों को नाले से लाश को बाहर निकलवाया तो पता चला लाश को वजनी पत्थर से दबाने की कोशिश की गई थी. मौके पर मौजूद भीड़ में कोई भी लाश को नहीं पहचान सका.

जब लाश की शिनाख्त नहीं हुई तो पुलिस ने नियमानुसार उस के फोटो करा कर पंचनामा तैयार किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए रायपुर भेज दिया. घटनास्थल की प्राथमिक औपचारिकता पूरी कर के संजय तिवारी अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. इस बाबत हत्या का मुकदमा दर्ज कर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. पाल को भी सूचना दे दी गई.

अगले दिन थानाप्रभारी संजय तिवारी को एक दिन की छुट्टी पर घर जाना था. वह एसआई आर.पी. मिश्रा को लावारिस लाश की शिनाख्त के लिए निर्देश दे कर चले गए. लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस के पास एक ही रास्ता था कि उस का फोटो अखबारों में छपाया जाए.

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा ने लाश का फोटो बनवा कर सिपाही बच्चन सिंह को देते हुए कहा कि वह उसे अखबार के दफ्तर में दे आए. सिपाही बच्चन सिंह उस फोटो को 2-3 बार ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘साहब, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि इस औरत की शक्ल 3-4 दिन पहले अपने पति के साथ थाने आई उस महिला से मिलती है जिस का पति से झगड़ा हुआ था.’’

आर.पी. मिश्रा ने गौर से देखा तो उन्हें भी बच्चन सिंह की बात में दम नजर आया. उन्होंने बच्चन सिंह से कहा, ‘‘रिकौर्ड से उस के पति का पता ले कर उस के घर जाओ. पहले उस से उस की पत्नी के बारे में पूछना. उस की बातों से कई चीजें साफ हो जाएंगी. कुछ गड़बड़ लगे तो उसे थाने ले आना.’’

सबइंसपेक्टर आर.पी. मिश्रा के निर्देश पर बच्चन सिंह ने दिलीप कौशिक के घर जा कर उस की पत्नी कालिंदी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि वह 2 दिन पहले सुपरवाइजर रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी. तब से वह वापस नहीं लौटी है. सिपाही बच्चन सिंह दिलीप से ज्यादा सवालजवाब न कर के उसे अपने साथ थाने ले आया.

थाने में एसआई आर.पी. मिश्रा ने जब गोगांव नाले में मिली लावारिस लाश के फोटो दिलीप के सामने रखे तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह लाश उस की पत्नी कालिंदी की ही है. अब सवाल यह था कि कालिंदी जब रामकुमार से मिलने की बात कह कर घर से निकली थी तो उस की लाश गोगांव नाले में कैसे पहुंच गई?

अगर दिलीप की बात सही थी तो इस सवाल का जवाब रामकुमार ही दे सकता था. आर.पी. मिश्रा 2 सिपाहियों को साथ ले कर रामकुमार के घर पहुंचे. रामकुमार तो घर पर नहीं मिला पर उस की पत्नी पूनम से यह पता जरूर चल गया कि वह 9 बजे ही अपनी कंस्ट्रक्शन साइट पर चला गया था. यह जानकारी भी मिली कि 22 नवंबर को कालिंदी पूनम के घर आई थी और उस से खूब लड़ी थी. बाद में रामकुमार उसे ले कर घर से बाहर निकल गया था. पूनम से कुछ और जानकारी और रामकुमार का मोबाइल नंबर ले कर थाने लौट आए.

थाने आ कर आर.पी. मिश्रा ने रामकुमार के मोबाइल पर फोन मिलाया तो पता चला वह संतोषी नगर जोन 4 में एक निर्माणाधीन बिल्डिंग की साइट पर काम करा रहा है. इस पर उन्होंने उस से कहा, ‘‘रामकुमार, मैं ने तुम्हें फोन इसलिए किया है कि दिलीप कौशिक अपनी पत्नी कालिंदी के साथ थाने में बैठा है. इन लोगों का कहना है कि तुम ने कालिंदी के सामने दिलीप को जान से मारने की धमकी दी है. इसलिए तुरंत थाने चले आओ. हम आप लोगों का समझौता करा देते हैं.’’

आर.पी. मिश्रा की बात सुन कर रामकुमार हड़बड़ी में बोला, ‘‘देखिए सर, अभी मैं अपनी साइट पर काम कर रहा हूं. काम खत्म होते ही मैं थाने आ जाऊंगा.’’

आर.पी. मिश्रा और कुछ कह पाते इस से पहले ही रामकुमार ने फोन काट दिया. इस के बाद उस का फोन स्विच्ड औफ हो गया. एसआई मिश्रा को लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. क्योंकि पहले तो रामकुमार थाने में कालिंदी की मौजूदगी की बात सुन कर चौंका था और फिर उस ने फोन बंद कर दिया था. उन्होंने तुरंत सिपाही बच्चन सिंह, शिवशंकर तिवारी और साबिर अली को संतोषी नगर के लिए रवाना कर दिया. जब पुलिस वहां पहुंची तो रामकुमार फरार होने की तैयारी में था.

पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. थाने में रामकुमार से पूछताछ की गई तो पहले तो वह कालिंदी की हत्या से इनकार करता रहा लेकिन जब उस से थोड़ी सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 2

एक बार राहुल और गीता के प्रेमसंबंध का खुला प्रदर्शन कुलवीर की नजरों के सामने आ गया. कुलवीर की आंखों में खून उतर आया. उस ने राहुल और गीता दोनों को जबरदस्त डांट लगाई. इतना ही नहीं, पारिवारिक रिश्ते और समाज की मानमर्यादा का हवाला देते हुए राहुल को घर आने से मना कर दिया. बहन गीता पर भी राहुल के घर आनेजाने से रोक लगा दी. दरअसल, गीता और राहुल को कुलवीर ने आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था.

गीता हुई राहुल की प्रेम दीवानी

बीते साल 2022 में दशहरे का त्योहार था, इस मौके पर घर के सभी सदस्य मेला घूमने लक्सर गए हुए थे. जबकि गीता किसी कारण साथ नहीं जा पाई थी. उसी समय कुलवीर ने राहुल को गीता के साथ देख लिया था. तभी से उस के दिमाग में खलबली मची हुई थी. वह गीता पर पैनी नजर रखे हुए था और राहुल से भी खिन्न रहने लगा था.

जब कभी राहुल उस के घर आता, तब वह उस से रूखेपन से बात करता. राहुल भी उस के इस व्यवहार से तंग आ गया था. गीता को तो घर से बाहर निकलने तक पर पाबंदी लगा दी थी. गीता जब इस का विरोध जताती थी तब वह उस की पिटाई कर देता था. कुलवीर ने गीता को राहुल से दूर रहने की सख्त चेतावनी दे दी थी. इस के उलट गीता का राहुल से छिप कर मिलना जारी था.

नाबालिग गीता पर राहुल ने ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस की प्रेम दीवानी बनी हुई थी, जबकि वह विवाहित और 2 बच्चों का बाप था. उन की आशिकी चरम पर थी. अकसर उन की मुलाकातें रात को होने लगी थीं. उन्हें जब भी मिलना होता था, गीता रात को अपने घर वालों को दूध में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी फिर दोनों एकांत में मिल लेते थे.

एक बार राहुल प्रेमिका को बाहों में भरता हुआ बोला, “गीता, आखिर हम लोग इस तरह छिप कर कब तक मिलते रहेंगे. कुलवीर हम पर हमेशा नजरें गड़ाए रहता है.’’

“हां, सही कहते हो, केवल वही हमारे प्यार का दुश्मन बना बैठा है. मुझे लग रहा है कि उसे ठिकाने लगाना होगा.’’ गीता तल्ख आवाज में बोली.

“क्या मतलब है तुम्हारा.’’ राहुल बोला.

“यही कि कोई तरीका निकालो उसे खत्म करने का,’’ गीता बोली.

“ठीक है, तुम तैयारी करो, मैं किसी से बात करता हूं.’’ राहुल बोला और कपड़े सहेज कर अपने घर चला गया.

राहुल और गीता ने एक योजना बना ली थी. योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2023 को रात के खाने के बाद गीता ने अपने घर वालों को दूध में नींद की गोलियां पीस कर दे दीं. कुछ समय में ही घर के सभी लोग अचेतावस्था में आ गए थे.

पूरा परिवार हो गया बेहोश

7 फरवरी की सुबह सूर्योदय होने के काफी समय बाद 55 वर्षीय सेठपाल के मंझले बेटे पंकज की नींद टूट गई. घर में सन्नाटा पा कर वह कुछ समझ नहीं पाया. हालांकि वह भी काफी सुस्ती महसूस कर रहा था. किसी तरह उठ कर अपने कमरे से बाहर निकला तो बाहर पिता को बेसुध सोया पाया. इतनी देर तक सोए रहने पर उसे आश्चर्य हुआ, जबकि वह सुबह के 5 बजे तक उठ जाते थे.

पंकज ने उन्हें झकझोर कर जगाया. उन्होंने आंखें खोलीं जरूर, मगर अर्द्धबेहोशी की हालत में ही रहे. उस वक्त भी उस पर कुछ बेहोशी छाई हुई थी. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि नींद आ रही है. उस ने पाया कि घर में मां और बहन गीता की भी कोई चहलपहल नहीं हो रही है. रसोई में सन्नाटा है. बाथरूम में भी किसी तरह की आवाज नहीं आ रही है. कुलवीर के कमरे में भी सन्नाटा है.

सेठपाल ने बेटे पंकज से चाय लाने को बोला. पंकज ने गीता, मां, छोटे भाई और यहां तक कि अपने बड़े भाई कुलवीर तक को बारीबारी से कई आवाजें लगाईं. उस का कोई जवाब नहीं मिला. वह खुद सुस्ती में था, इसलिए पहले चाय पीने की सोची और रसोई में चाय बनाने चला गया.

चाय का पानी गैस पर चढ़ा कर खुद बाथरूम में मुंह धोने लगा. ब्रश करने और मुंह धोने के क्रम में उस ने चेहरे को कई बार ठंडे पानी से धोया. तब उस की थोड़ी सुस्ती कम हुई. रसोई में आ कर उस ने चाय बनाई और 2 कप में ले कर पिता के कमरे में गया.

पिता वहीं कंबल में ही अधलेटे थे. आंखें बंद कर रखी थीं. पंकज ने उन से मुंहहाथ धोने के लिए कहा. जबकि सेठपाल ने सहारे से उन्हें उठाने का इशारा किया. उस वक्त भी उन्हें नींद आ रही थी. ऐसा लग रहा था, मानो उन की नींद पूरी नहीं हुई हो. एक तरह से वह अर्धनिद्रा की हालत में ही थे. पंकज उन की हालत को देख कर घबरा गया. किसी तरह से उस ने अपनी चाय पी और पड़ोसियों को आवाज लगाई.

पंकज की आवाज सुन कर कुछ पड़ोसी वहां आ गए. उन्होंने सेठपाल की हालत देखते ही पूछा, “इन्होंने कोई दवा खाई है क्या? इन पर किसी नशीली दवाई का रिएक्शन हुआ लगता है.’’

पड़ोसियों ने पाया कि सेठपाल की पत्नी, बेटी और छोटा बेटा भी एक कमरे में बेसुध सोए हैं. जबकि बड़ा बेटा कुलवीर अपने कमरे में नहीं है. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जरूर घर में कोई विवाद हुआ है. हो सकता है इसी कारण कुलवीर ने सभी को नशे की कोई दवा खिला दी हो और घर से चला गया हो.

पड़ोसियों ने सब से पहले गांव के एक आयुर्वेद डाक्टर को सेठपाल के घर पर बुलाया. परिवार के सभी सदस्यों के स्वास्थ्य की जांच करवाई. उन्होंने जांच में पाया था कि सेठपाल के परिवार वालों ने या तो किसी नशीली वस्तु का सेवन किया है या उन्हें किसी ने धोखे से ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां खिला दी हैं.

उन्हें कुछ दवाइयां दे कर प्राथमिक उपचार कर दिया गया. बाद में सभी को सरकारी अस्पताल में भरती करवाया गया. वहां वे 2 दिनों तक भरती रहने के बाद पूरी तरह से ठीक हो पाए. तब तक कुलवीर का कोई पता नहीं था. वह घर से गायब ही था.

कुलवीर की गुमशुदगी कराई दर्ज

तब सेठपाल व उस की पत्नी सुमन ने कुलवीर को ढूंढना शुरू कर दिया था. सेठपाल को कुलवीर की चिंता होनेलगी थी. उन्होंने उस के लापता होने की जानकारी कोतवाली लक्सर को देने का मन बनाया, जो उन के गांव से 5 किलोमीटर दूरी पर है.

वहां वह 10 फरवरी को दिन में 11 बजे के करीब पहुंचे और कोतवाल अमरजीत सिंह को बेटे कुलवीर के लापता होने की जानकारी दी. उस के बयानों के आधार पर कुलवीर की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली गई. शिकायत में उन्होंने पूरे परिवार को किसी के द्वारा बेहोशी दवा खिलाए जाने के बारे में भी बताया.

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 2

कमलेश प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस से छोटे विनय, विवेक और विकास विजय चौक स्थित फोटो विजन स्टूडियो को संभालते थे. रामस्वरूप लाट सुखी और संपन्न थे, इसलिए उन की समाज में एक हैसियत थी. रामस्वरूप की बड़ी बेटी कमला की शादी कोलकाता में हुई थी. बेटों में भी कमलेश और विनय की शादी हो चुकी थी. अब उन्हें 2 बेटों और 2 बेटियों की शादी करनी थी.

उसी बीच उन का बड़ा बेटा कमलेश अपने परिवार के साथ कैंट स्थित हरिओमनगर कालोनी में रहने चला गया. बाद में उस ने अपने लिए लखनऊ में मकान बनवा लिया तो अपना वह मकान सब से छोटे भाई विकास को दे कर परिवार के साथ लखनऊ चला गया. विकास उस में रहने लगा तो विनय ने कोतवाली के विष्णु मंदिर स्थित बशारतपुर मोहल्ले में अपने लिए मकान बनवा लिया. विवेक उस की दोनों, बहनें वंदना और एप्पुल तथा मांबाप आर्यनगर स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहते थे. रहते भले ही सभी भाई अलगअलग थे, लेकिन एकदूसरे से दिल से जुड़े थे.

अभिषेक को जब भी मौका मिलता, बहन का हालचाल लेने उस के घर जाता रहता था. इस के अलावा विवेक का स्टूडियो अभिषेक के घर के नजदीक ही था, इसलिए सालेबहनोई की मुलाकात अकसर होती रहती थी. रश्मि जब भी मायके आती, खुश नजर आती. इसलिए मायके वालों को यही लगता था कि वह ससुराल में खुश है.

लेकिन रश्मि की यह खुशी ऊपरी तौर पर थी, जबकि अंदर से वह बहुत दुखी थी. इस की वजह थी पति का शराबी होना. इस में दुख देने वाली बात यह थी कि शराब का घूंट हलक के नीचे उतरते ही विवेक किसी को भी नहीं पहचानता था, वह उस की पत्नी की क्यों न हो. उस स्थिति में अगर रश्मि कुछ कह देती तो विवेक उसे भद्दीभद्दी गालियां तो देता ही था, पिटाई करने में भी पीछे नहीं रहता था.

इस की एक वजह यह भी थी कि विवेक की कल्पना के अनुरूप रश्मि खूबसूरत नहीं थी, इसलिए वह उसे पत्नी नहीं मानता था. पति के इस उपेक्षित व्यवहार को रश्मि ने अपना भाग्य मान लिया था और ससुराल में उस के साथ क्या होता है, मायके वालों से नहीं बताया.

बात उन दिनों की है कि जब रश्मि को 7 माह का गर्भ था. नवरात्र चल रहे थे. विवेक स्टूडियो बंद कर के घर पहुंचा ही था कि उस की मां का फोन आ गया. मां उन दिनों लखनऊ में थी. विवेक ने फोन रिसीव किया तो मां ने बिना हालचाल पूछे ही कहा, ‘‘कैसे कहूं, समझ में नहीं आ रहा है. कहूंगी तो कहोगे कि मेरे पत्नी के पीछे हाथ धो कर पड़ी हूं.’’

‘‘कहो तो बात क्या है?’’ विवेक ने कहा.

‘‘तेरी पत्नी कह रही थी कि बहुओं को पीटना इस घर का रिवाज है. अब तुम्हीं बताओ, मैं ने कब किस के साथ मारपीट की है, जो मुझ पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं. जब से सुना है, कलेजे में आग लगी है. पूछ तो अपनी लुगाई से, आखिर वह चाहती क्या है? मांबेटे के बीच दरार क्यों डाल रही है?’’

मां ने ये बातें जिस तरह कही थीं, सुनते ही विवेक की देह में आग लग गई. उस ने आव देखा न ताव, रश्मि पर पिल पड़ा. उस के हाथ में जो भी आया वह उसी से उसे मारता रहा. उस समय उस ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि गर्भवती है. कहीं उल्टासीधा चोट लग गई तो क्या होगा.

आखिर इस पिटाई से रश्मि की हालत बिगड़ गई. वह चलने फिरने लायक नहीं रही. तब विवेक उसे रिक्शे पर बैठा कर ससुराल छोड़ आया. मांबाप और अभिषेक उस की हालत देख कर दंग रह गए. यह सब कैसे हुआ, सभी पूछते रह गए. लेकिन रश्मि ने बताया नहीं. उस ने झूठ बोल दिया कि पीरियड नजदीक होने की वजह से उसे कुछ तकलीफ हो गई है. जिस की वजह से इतनी रात को यहां आ गई.

मांबाप ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस की वजह यह थी कि उस के साथ यह सब जो हुआ था, उस के बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. उन्होंने उसे आराम करने के लिए कह दिया. विवेक उसे छोड़ कर उसी समय अपने घर लौट गया.

पति ने इतना मारापीटा था, इस के बावजूद रश्मि ने इस बात को दिल से नहीं लिया. शायद यही वजह थी कि उस ने मायके वालों से सच्चाई छिपा ली थी. उसे यह भी पता था कि अगर भाई को सच्चाई का पता चल गया तो हंगामा हो जाएगा. इसलिए चुप रहने में ही सब की भलाई है.

यही सोच कर रश्मि ने इस बात को भुला दिया. 3 दिनों बाद विवेक ने फोन किया. माफी मांगते हुए उस ने कहा कि उसे अपने किए पर काफी पछतावा है. इतने में ही रश्मि का दिल पसीज गया और उस ने विवेक को माफ कर दिया. यही नहीं, उस के साथ वह ससुराल भी आ गई.

रश्मि के ससुराल आने के बाद 2-4 दिनों तक घर का माहौल ठीक रहा. उस के बाद फिर पहले जैसे ही हालात हो गए. छोटीछोटी बातों को ले कर तूफान खड़ा होने लगा. विवेक पहले की तरह फिर रश्मि के साथ बदसलूकी और मारपीट करने लगा. जबकि उसे मना कर लाते समय उस ने वादा किया था कि अब वह उस के साथ न बदसलूकी करेगा न मारपीट. लेकिन घर आते ही वह अपना वादा भूल गया. धीरेधीरे रोज की यही नियति बन गई.

समय पर रश्मि ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम श्रद्धा रखा गया. विवेक बेटी को पा कर निहाल था. उस की एप्पुल बुआ उस पर जान छिड़कती थी. वैसे तो सब कुछ ठीक रहता था, लेकिन विवेक की मां के आते ही घर का माहौल खराब हो जाता. वह उलटासीधा पढ़ाती तो मां के प्रेम में अंधा विवेक वही करता, जो मां उसे करने को कहती. जब तक वह घर में नहीं रहती, घर में सुखचैन रहता. वैसे वह ज्यादातर बड़े बेटे बहू के साथ लखनऊ में रहती थी.

श्रद्धा 2-3 महीने की थी, तभी एक दिन विवेक की बहन वंदना ने विवेक और रश्मि को अपने घर खाने पर बुलाया. बेटी को साथ ले कर रश्मि पति के साथ ननद के यहां पहुंची. हंसीठिठोली के बीच विवेक बातबात में रश्मि को जलील करने लगा. रश्मि वहां तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर आ कर वह विवेक से जलील करने की वजह पूछने लगी.

विवेक ने ठीक से जवाब नहीं दिया तो इसी बात पर दोनों में नोकझोंक हो गई. विवेक दूसरे कमरे में जा कर सो गया और रश्मि अपने कमरे में. सुबह रश्मि ने विवेक से कुछ कहा तो रात की खुन्नस निकालने के लिए वह उस की पिटाई करने लगा. पति की इस हरकत से क्षुब्ध हो कर उसी समय रश्मि बेटी को ले कर मायके आ गई.

कालिंदी की जिद : पत्नी या प्रेमिका? – भाग 2

जहां कालिंदी और चांदनी काम करती थीं, वहां रामकुमार सुपरवाइजर था. 25 वर्षीय रामकुमार बघेल का काम था बिल्डिंग निर्माण में लगे मजदूरों पर नजर रखना और इस्तेमाल होने वाले सामान का खयाल रखना. रामकुमार की नजर जवान औरतों पर रहती थी. चांदनी उस की गिरफ्त में थी जबकि कालिंदी पर उस की नजरें जमी हुई थीं. चांदनी से रामकुमार ने कहा था कि वह कालिंदी को उस के करीब ले आएगी तो वह उसे इनाम देगा. वैसे भी वह कालिंदी का खास खयाल रखता था.

कालिंदी जवान थी. पुरुष सान्निध्य की चाह उस के मन में भी थी. चांदनी के उकसाने पर वह भी धीरेधीरे रामकुमार की ओर आकर्षित होने लगी. जल्दी ही रामकुमार समझ गया कि वह समर्पण के लिए तैयार है. उस ने थोड़ा प्रयास किया तो वह उस की बांहों में सिमट गई.

रामकुमार बघेल का घर कालिंदी के घर से महज एक किलोमीटर दूर भनपुरी इलाके में था. उस के परिवार में पत्नी पूनम के अलावा 2 बच्चे थे. 4 साल का बेटा जीतू और 2 साल की बेटी जूली.

रामकुमार की कालिंदी से नजदीकी बढ़ी तो वह उसे शहर घुमाने ले जाने लगा. कालिंदी ने भी उसे अपने घर बुलाना शुरू कर दिया. वह जिस तरह से उस की खातिरदारी करती थी और जैसे उस से हंसीठिठोली करती थी उस से दिलीप को समझते देर नहीं लगी कि कालिंदी के पांव बहक गए हैं. चूंकि घर का खर्च कालिंदी की कमाई से ही चल रहा था. इसलिए शुरू शुरू में दिलीप जानबूझ कर चुप रहा.

उस की इस चुप्पी का कालिंदी ने नाजायज फायदा उठाया और रामकुमार के साथ घर में ही रास रचाने लगी. रामकुमार आता तो वह कभी बेटे बबलू को घुमाने के बहाने तो कभी कोई सामान लाने के बहाने दिलीप को घर से बाहर भेज देती थी और रामकुमार को ले कर अंदर से कमरा बंद कर के मस्ती में डूब जाती थी. ऐसा नहीं था कि दिलीप कालिंदी की इस चाल को समझता नहीं था. लेकिन मुहल्ले वालों और पड़ोसियों के बीच तमाशा न बने इसलिए चुप रह जाता था.

कोई भी पति शारीरिक, मानसिक या आर्थिक रूप से भले ही कितना भी कमजोर क्यों न हो, यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि उस की पत्नी उस की नजरों के सामने किसी पराए मर्द के साथ हमबिस्तर हो. यह बात दिलीप के साथ भी थी. एक तरफ दिलीप पत्नी और रामकुमार के संबंधों को ले कर परेशान था तो दूसरी तरफ कालिंदी की आंखों से शर्मोहया का परदा बिलकुल हट गया था. वह पूरी तरह बेशर्म और निर्लज्ज हो गई थी. अब वह पति की मौजूदगी में ही उसे ले कर कमरे में चली जाती और अंदर से दरवाजा बंद कर लेती.

जब यह सब दिलीप के लिए बरदाश्त करना मुश्किल हो गया तो एक दिन उस ने रामकुमार के सामने ही कालिंदी से साफसाफ कह दिया, ‘‘अब मैं और ज्यादा बरदाश्त नहीं कर सकता. अपने यार से कहो यहां न आया करे.’’

‘‘आएंगे…जरूर आएंगे. इस घर पर जितना तुम्हारा हक है उतना ही मेरा भी है. यह मत भूलो कि मेरी कमाई से ही घर का सारा खर्च चलता है. मैं अगर किसी को घर बुलाती हूं तो तुम्हें क्यों जलन होती है.’’ कालिंदी उल्टे अपने पति पर ही बिफर पड़ी.

देखते देखते दोनों में तूतू, मैंमैं होने लगी जिस ने बढ़ते बढ़ते झगड़े का रूप ले लिया. मामला बिगड़ते देख रामकुमार वहां से चुपचाप खिसक गया. रामकुमार के जाने के बाद इस झगड़े ने और भी विकराल रूप ले लिया. कालिंदी और दिलीप दोनों आपे से बाहर हो कर मार पिटाई पर उतर आए.

पतिपत्नी को लड़ते देख अड़ोसी पड़ोसी भी आ गए. पड़ोसियों ने दोनों को समझाया लेकिन कोई भी झुकने को तैयार नहीं हुआ. इसी बीच किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. झगड़े की सूचना पा कर खमतराई के थानाप्रभारी संजय तिवारी ने 2 सिपाहियों को मामला सुलझाने के लिए बुनियादनगर में दिलीप के घर भेज दिया. सिपाही साबिर खान व उमेश पटेल जब दिलीप के घर पहुंचे तब भी दोनों में तकरार जारी थी. मामला गंभीर देख पुलिस वाले दोनों को थाने ले आए.

थाने में दिलीप कौशिक ने थानाप्रभारी संजय तिवारी के सामने कालिंदी की हकीकत बता कर कहा, ‘‘आप ही बताइए सर, कौन पति होगा जो अपनी आंखों के सामने पत्नी को दूसरे की बांहों में सिमटते हुए देखेगा? मैं इसे रोकता हूं तो यह लड़ने को आमादा हो जाती है.’’

थानाप्रभारी तिवारी ने जब इस बारे में कालिंदी से बात की तो उस ने दिलीप की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, आप इन की हालत देखिए. इन से कामधाम तो कुछ होता नहीं, ऊपर से पत्नी की जरूरतों को भी पूरा नहीं कर सकते. आप ही बताइए ऐसे आदमी के साथ मैं कितने दिन तक निभा सकूंगी. मैं ने इन से साफ कह दिया है कि अब मैं इन के साथ नहीं रह सकती. रामकुमार मुझे अपनाने के लिए तैयार है.’’

कालिंदी और दिलीप दोनों ने ही अपने बयानों में रामकुमार का जिक्र किया था. इसलिए थानाप्रभारी संजय तिवारी ने एक सिपाही भेज कर रामकुमार को बुलवा लिया. थाने में रामकुमार से पूछताछ हुई तो उस ने नजरें झुका कर स्वीकार कर लिया कि कालिंदी के साथ उस के जिस्मानी संबंध हैं. लेकिन जब उसे पत्नी बना कर साथ रखने की बात आई तो रामकुमार ने साफ कह दिया कि जब तक दिलीप और कालिंदी का कानूनन तलाक नहीं हो जाता वह कालिंदी को अपने साथ नहीं रख सकता. क्योंकि उसे अपने परिवार के बारे में भी सोचना है.

इस मुद्दे पर थाने में घंटों तक बात हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. जहां एक तरफ कालिंदी किसी भी कीमत पर दिलीप के साथ रहने को तैयार नहीं थी, वहीं दूसरी ओर दिलीप इस शर्त पर कालिंदी को छोड़ने को राजी हो गया कि कालिंदी की डिलीवरी के समय उस ने जो कर्ज लिया था उस की पूरी भरपाई कालिंदी करेगी. इस पर भी दोनों में काफी देर तक बहस हुई.

इसे पतिपत्नी के आपसी विवाद का मामला समझ कर संजय तिवारी ने इस मामले में थाने में 155 सीआरपीसी के तहत दर्ज कर के उस की एक कौपी दिलीप को सौंप दी. इस के बाद उन्होंने रामकुमार, दिलीप और कालिंदी को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. यह 20 नवंबर, 2013 की बात है.

इस पूरे मामले की जानकारी रामकुमार की पत्नी पूनम बघेल को हुई तो उस ने रामकुमार से इस बारे में तमाम तरह के सवालजवाब किए. फिर अगले दिन वह गुस्से में उफनती हुई सीधे कालिंदी के घर पहुंची और उसे खूब खरीखोटी सुनाई. उस ने कालिंदी से साफसाफ कह दिया कि वह उस के पति का पीछा करना छोड़ दे. उस की बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा कर उसे कुछ हासिल नहीं होगा. कालिंदी को खरीखोटी सुना कर पूनम अपने घर लौट गई. कालिंदी को पूनम का इस तरह घर आ कर दिलीप के सामने ही अच्छा बुरा कहना अच्छा नहीं लगा.

दर्द का एक ही रंग : कौन सा दर्द छिपा था उन आंखों में?

जब तक बीजी और बाबूजी जिंदा थे और सुमन की शादी नहीं हुई थी, तब तक सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने की उदासी का अहसास इतना गहरा नहीं था. घर की रौनक उदासी के अहसास को काफी हद तक हलका किए रहती थी. लेकिन सुमन की शादी के बाद पहले बाबूजी, फिर जल्दी ही बीजी की मौत के बाद हालात एकदम से बदल गए. घर में ऐसा सूनापन आया कि सुरेश और वंदना को बेऔलाद होने का अहसास कटार की तरह चुभने लगा. उन्हें लगता था कि ठीक समय पर कोई बच्चा गोद न ले कर उन्होंने बहुत बड़ी गलती की.

लेकिन इसे गलती भी नहीं कहा जा सकता था. अपनी औलाद अपनी ही होती है, इस सोच के साथ वंदना और सुरेश आखिर तक उम्मीद का दामन थामे रहे. लेकिन उन की उम्मीद पूरी नहीं हुई. कई रिश्तेदार अपना बच्चा गोद देने को तैयार भी थे, लेकिन उन्होंने ही मना कर दिया था. उम्मीद के सहारे एकएक कर के 22 साल बीत गए.

अब घर काटने को दौड़ता था. भविष्य की चिंता भी सताने लगी थी. इस मामले में सुरेश अपनी पत्नी से अधिक परेशान था. आसपड़ौस के किसी भी घर से आने वाली बच्चे की किलकारी से वह बेचैन हो उठता था. बच्चे के रोने से उसे गले लगाने की ललक जाग उठती थी. सुबह सुरेश और वंदना अपनीअपनी नौकरी के लिए निकल जाते थे. दिन तो काम में बीत जाता था. लेकिन घर आते ही सूनापन घेर लेता था. सुरेश को पता था कि वंदना जितना जाहिर करती है, उस से कहीं ज्यादा महसूस करती है.

कभीकभी वंदना के दिल का दर्द उस की जुबान पर आ भी जाता. उस वक्त वह अतीत के फैसलों की गलती मानने से परहेज भी नहीं करती थी. वह कहती, ‘‘क्या तुम्हें नहीं लगता कि अतीत में किए गए हमारे कुछ फैसले सचमुच गलत थे. सभी लोग बच्चा गोद लेने को कहते थे, हम ने ऐसा उन की बात मान कर गलती नहीं की?’’

‘‘फैसले गलत नहीं थे वंदना, समय ने उन्हें गलत बना दिया.’’ कह कर सुरेश चुप हो जाता.

ऐसे में वंदना की आंखों में एक घनी उदासी उतर आती. वह कहीं दूर की सोचते हुए सुरेश के सीने पर सिर रख कर कहती, ‘‘आज तो हम दोनों साथसाथ हैं, एकदूसरे को सहारा भी दे सकते हैं और हौसला भी. मैं तो उस दिन के खयाल से डर जाती हूं, जब हम दोनों में से कोई एक नहीं होगा?’’

‘‘तब भी कुछ नहीं होगा. किसी न किसी तरह दिन बीत जाएंगे. इसलिए ज्यादा मत सोचा करो.’’ सुरेश पत्नी को समझाता, लेकिन उस की बातों में छिपी सच्चाई को जान कर खुद भी बेचैन हो उठता.

भविष्य तो फिलहाल दीवार पर लिखी इबारत की तरह एकदम साफ था. सुरेश को लगता था कि वंदना भले ही जुबान से कुछ न कहे, लेकिन वह किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है. घर के सूनेपन और भविष्य की चिंता ने सुरेश के मन को भी भटका दिया था. उसे भी लगता था कि घर की उदासी और सूनेपन में वंदना कहीं डिप्रैशन की शिकार न हो जाए.

लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी था कि उम्र के इस पड़ाव पर किसी बच्चे को गोद लेना क्या समझदारी भरा कदम होगा? सुरेश 50 की उम्र पार कर चुका था, जबकि वंदना भी अगले साल उम्र के 50वें साल में कदम रखने जा रही थी. ऐसे में क्या वे बच्चे का पालनपोषण ठीक से कर पाएंगे?

काफी सोचविचार और जद्दोजहद के बाद सुरेश ने महसूस किया कि अब ऐसी बातें सोचने का समय नहीं, निर्णय लेने का समय है. बच्चा अब उस की और वंदना की बहुत बड़ी जरूरत है. वही उन के जीवन की नीरसता, उदासी और सूनेपन को मिटा सकता है.

सुरेश ने इस बारे में वंदना से बात की तो उस की बुझी हुई आंखों में एक चमक सी आ गई. उस ने पूछा, ‘‘क्या अब भी ऐसा हो सकता है?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता, हम इतने बूढ़े भी नहीं हो गए हैं कि एक बच्चे को न संभाल सकें.’’ सुरेश ने कहा.

बच्चे को गोद लेने की उम्मीद में वंदना उत्साह से भर उठी. लेकिन सवाल यह था कि बच्चा कहां से गोद लिया जाए. किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेना असान नहीं था. क्योंकि गोद लेने की शर्तें और नियम काफी सख्त थे. रिश्तेदारों से भी अब कोई उम्मीद नहीं रह गई थी. किसी अस्पताल में नाम लिखवाने से भी महीनों या वर्षों लग सकते थे.

ऐसे में पैसा खर्च कर के ही बच्चा जल्दी मिल सकता था. मगर बच्चे की चाहत में वे कोई गलत और गैरकानूनी काम नहीं करना चाहते थे. जब से दोनों ने बच्चे को गोद लेने का मन बनाया था, तब से वंदना इस मामले में कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही थी. शायद उस के नारी मन में सोई ममता शिद्दत से जाग उठी थी.

एक दिन शाम को सुरेश घर लौटा तो पत्नी को कुछ ज्यादा ही जोश और उत्साह में पाया. वह जोश और उत्साह इस बात का अहसास दिला रहा था कि बच्चा गोद लेने के मामले में कोई बात बन गई है. उस के पूछने की नौबत नहीं आई, क्योंकि वंदना ने खुद ही सबकुछ बता दिया.

वंदना के अनुसार, वह जिस स्कूल में पढ़ाती थी, उस स्कूल के एक रिक्शाचालक जगन की बीवी को 2 महीने पहले दूसरी संतान पैदा हुई थी. उस के 2 बेटे हैं. जगन अपनी इस दूसरी संतान को रखना नहीं चाहता था. वह उसे किसी को गोद देना चाहता था.

‘‘उस के ऐसा करने की वजह?’’ सुरेश ने पूछा, तो वंदना खुश हो कर बोली, ‘‘वजह आर्थिक हो सकती है. मुझे पता चला है, जगन पक्का शराबी है. जो कमाता है, उस का ज्यादातर हिस्सा पीनेपिलाने में ही उड़ा देता है. शराब की लत की वजह से उस का परिवार गरीबी झेल रहा है. मैं ने तो यह भी सुना है कि शराब की ही वजह से जगन ने ऊंचे ब्याज पर कर्ज भी ले रखा है. कर्ज न लौटा पाने की वजह से लेनदार उसे परेशान कर रहे हैं.

सुनने में आया है कि एक दिन उस का रिक्शा भी उठा ले गए थे. उन्होंने बड़ी मिन्नतों के बाद उस का रिक्शा वापस किया था. मुझे लगता है, जगन अपना यह दूसरा बच्चा किसी को गोद दे कर जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहता है. इसी बहाने वह अपने सिर पर चढ़ा कर्ज भी उतार देगा.’’

‘‘इस का मतलब वह अपनी मुसीबतों से निजात पाने के लिए अपने बच्चे का सौदा करना चाहता है?’’ सुरेश ने व्यंग्य किया.

‘‘कोई भी आदमी बिना किसी स्वार्थ या मजबूरी के अपना बच्चा किसी दूसरे को क्यों देगा?’’ वंदना ने कहा तो सुरेश ने पूछा, ‘‘जगन की बीवी भी बच्चा देने के लिए तैयार है?’’

‘‘तैयार ही होगी. बिना उस के तैयार हुए जगन यह सब कैसे कर सकता है?’’

वंदना की बातें सुन कर सुरेश सोच में डूब गया. उसे सोच में डूबा देख कर वंदना बोली, ‘‘अगर तुम्हें  ऐतराज न हो तो मैं जगन से बच्चे के लिए बात करूं?’’

‘‘बच्चा गोद लेने का फैसला हम दोनों का है. ऐसे में मुझे ऐतराज क्यों होगा?’’ सुरेश बोला.

‘‘मैं जानती हूं, फिर भी मैं ने एक बार तुम से पूछना जरूरी समझा.’’

2 दिनों बाद वंदना ने सुरेश से कहा, ‘‘मैं ने स्कूल के चपरासी माधोराम के जरिए जगन से बात कर ली है. वह हमें अपना बच्चा पूरी लिखापढ़ी के साथ देने को राजी है. लेकिन इस के बदले 15 हजार रुपए मांग रहा है. मेरे खयाल से यह रकम ज्यादा नहीं है?’’

‘‘नहीं, बच्चे न तो बिकाऊ होते हैं और न उन की कोई कीमत होती है.’’

‘‘मैं जगन से उस का पता ले लूंगी. हम दोनों कल एकसाथ चल कर बच्चा देख लेंगे. तुम कल बैंक से कुछ पैसे निकलवा लेना. मेरे खयाल से इस मौके को हमें हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.’’ वंदना ने बेसब्री से कहा.

उस की बात पर सुरेश ने खामोशी से गर्दन हिला दी.

अगले दिन सुरेश शाम को वापस आया तो वंदना तैयार बैठी थी. सुरेश के आते ही उस ने कहा, ‘‘मैं चाय बनाती हूं. चाय पी कर जगन के यहां चलते हैं.’’

कुछ देर में वंदना 2 प्याले चाय ला कर एक प्याला सुरेश को देते हुए बोली, ‘‘वैसे तो अभी पैसों की जरूरत नहीं लगती. फिर भी तुम ने बैंक से पैसे निकलवा लिए हैं या नहीं?’’

‘‘हां.’’ सुरेश ने चाय की चुस्की लेते हुए उत्साह में कहा.

चाय पी कर दोनों घर से निकल पड़े. आटोरिक्शा से दोनों जगन के घर जा पहुंचे. जगन का घर क्या 1 गंदी सी कोठरी थी, जो काफी गंदी बस्ती में थी. उस के घर की हालत बस्ती की हालत से भी बुरी थी. छोटे से कमरे में एक टूटीफूटी चारपाई, ईंटों के बने कच्ची फर्श पर एक स्टोव और कुछ बर्तन पड़े थे. कुल मिला कर वहां की हर चीज खामेश जुबान से गरीबी बयां कर रही थी.

जगन का 5 साल का बेटा छोटे भाई के साथ कमरे के कच्चे फर्श पर बैठा प्लास्टिक के एक खिलौने से खेल रहा था, जबकि उस की कुपोषण की शिकार पत्नी तीसरे बच्चे को छाती से चिपकाए दूध पिला रही थी. इसी तीसरे बच्चे को जगन सुरेश और वंदना को देना चाहता था. जगन ने पत्नी से बच्चा दिखाने के लिए मांगा.

पत्नी ने खामोश नजरों से पहले जगन को, उस के बाद सुरेश और वंदना को देखा, फिर कांपते हाथों से बच्चे को जगन को थमा दिया. उसी समय सुरेश के मन में शूल सा चुभा. उसे लगा, वह और वंदना बच्चे के मोह में जो करने जा रहे हैं, वह गलत और अन्याय है.

जगन ने बच्चा वंदना को दे दिया. बच्चा, जो एक लड़की थी सचमुच बड़ी प्यारी थी. नाकनक्श तीखे और खिला हुआ साफ रंग था. वंदना के चेहरे के भावों से लगता था कि बच्ची की सूरत ने उस की प्यासी ममता को छू लिया था.

बच्ची को छाती से चिपका कर वंदना ने एक बार उसे चूमा और फिर जगन को देते हुए बोली, ‘‘अब से यह बच्ची हमारी हुई जगन. लेकिन हम इसे लिखापढ़ी के बाद ही अपने घर ले जाएंगे. कल रविवार है. परसों कचहरी खुलने पर किसी वकील के जरिए सारी लिखापढ़ी कर लेंगे. एक बात और कह दूं, बच्चे के मामले में तुम्हारी बीवी की रजामंदी बेहद जरूरी है. लिखापढ़ी के कागजात पर तुम्हारे साथसाथ उस के भी दस्तखत होंगे.’’

‘‘हम सबकुछ करने को तैयार हैं.’’ जगन ने कहा.

‘‘ठीक है, हम अभी तुम्हें कुछ पैसे दे रहे हैं, बाकी के सारे पैसे तुम्हें लिखापढ़ी के बाद बच्चा लेते समय दे दूंगी.’’

जगन ने सहमति में गर्दन हिला दी. इस के बाद वंदना ने सुरेश से जगन को 3 हजार रुपए देने के लिए कहा. वंदना के कहने पर उस ने पर्स से 3 हजार रुपए निकाल कर जगन को दे दिए.

जगन को रुपए देते हुए सुरेश कनखियों से उस की पत्नी को देख रहा था. वह बच्चे को सीने से कस कर चिपकाए जगन और सुरेश को देख रही थी. सुरेश को जगन की पत्नी की आंखों में नमी और याचना दिखी, जिस से सुरेश का मन बेचैन हो उठा.

जगन के घर से आते समय सुरेश पूरे रास्ते खामोश रहा. बच्चे को सीने से चिपकाए जगन की पत्नी की आंखें सुरेश के जेहन से निकल नहीं पा रही थीं, सारी रात सुरेश ठीक से सो नहीं सका. जगन की पत्नी की आंखें उस के खयालों के इर्दगिर्द चक्कर काटती रहीं और वह उलझन में फंसा रहा.

अगले दिन रविवार था. दोनों की ही छुट्टी थी. वंदना चाहती थी कि बच्चे को गोद लेने के बारे में किसी वकील से पहले ही बात कर ली जाए. इस बारे में वह सुरेश से विस्तार से बात करना चाहती थी. लेकिन नाश्ते के समय उस ने उसे उखड़ा हुआ सा महसूस किया.

उस से रहा नहीं गया तो उस ने पूछा, ‘‘मैं देख रही हूं कि जगन के यहां से आने के बाद से ही तुम खामोश हो. तुम्हारे मन में जरूर कोई ऐसी बात है, जो तुम मुझ से छिपा रहे हो?’’

सुरेश ने हलके से मुसकरा कर चाय के प्याले को होंठों से लगा लिया. कहा कुछ नहीं. तब वंदना ही आगे बोली. ‘‘हम एक बहुत बड़ा फैसला लेने जा रहे हैं. इस फैसले को ले कर हम दोनों में से किसी के मन में किसी भी तरह की दुविधा या बात नहीं होनी चाहिए. मैं चाहती हूं कि अगर तुम्हारे मन में कोई बात है तो मुझ से कह दो.’’

चाय का प्याला टेबल पर रख कर सुरेश ने एक बार पत्नी को गहरी नजरों से देखा. उस के बाद आहिस्ता से बोला, ‘‘जगन के यहां हम दोनों एक साथ, एक ही मकसद से गए थे वंदना. लेकिन तुम बच्चे को देख रही थी और मैं उसे जन्म देने उस की मां को. इसलिए मेरी आंखों ने जो देखा, वह तुम नहीं देख सकीं. वरना तुम भी अपने सीने में वैसा ही दर्द महसूस करती, जैसा कि मैं कर रहा हूं.’’

वंदना की आंखों में उलझन और हैरानी उभर गई. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या कहना चाहते हो, मैं समझी नहीं?’’

सुरेश के होठों पर एक फीकी मुसकराहट फैल गई. वह बोला, ‘‘जगन के यहां से आने के बाद मैं लगातार अपने आप से ही लड़ रहा हूं वंदना. बारबार मुझे लग रहा है कि जगन से उस का बच्चा ले कर हम एक बहुत बड़ा गुनाह करने जा रहे हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में औलाद के न होने का दर्द देखा है. मगर मुझे जगन की बीवी की आंखों में जो दर्द दिखा, वह शायद तुम्हारे इस दर्द से भी कहीं बड़ा था. इन दोनों दर्दों का एक ही रंग है, वजह भले ही अलगअलग हो.’’

बहुत दिनों से खिले हुए वंदना के चेहरे पर एकाएक निराशा की बदली छा गई. उस ने उदासी से कहा, ‘‘लगता है, तुम ने बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है?’’

‘‘मैं ने बच्चा गोद लेने का नहीं, जगन के बच्चे को गोद लेने का इरादा बदल दिया है.’’

‘‘क्यों?’’ वंदना ने झल्ला कर पूछा.

‘‘जगन एक तरह से अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. वंदना यह फैसला उस का अकेले का है. इस में उस की पत्नी की रजामंदी बिलकुल नहीं है. जब वह बच्चे को अपने सीने से अलग कर के तुम्हें दे रही थी. तब मैं ने उस की उदास आंखों में जो तड़प और दर्द देखा था, वह मेरी आत्मा को आरी की तरह काट रहा है. हमें औलाद का दर्द है. अपने इस दर्द को दूर करने के लिए हमें किसी को भी दर्द देने का हक नहीं है.’’

सुरेश की इस बात पर वंदना सोचते हुए बोली, ‘‘हम बच्चा लेने से मना भी कर दें तो क्या होगा? जगन किसी दूसरे से पैसे ले कर उसे बच्चा दे देगा. हम जैसे तमाम लोग बच्चे के लिए परेशान हैं.’’

‘‘अगर हम बच्चा नहीं लेते तो किसी दूसरे को भी जगन को बच्चा नहीं देने देंगे.’’

‘‘वह कैसे?’’ वंदना ने पूछा.

‘‘जगन अपना कर्ज उतारने के लिए बच्चा बेच रहा है. अगर हम उस का कर्ज उतार दें तो वह बच्चा क्यों बेचेगा? पैसे देने से पहले हम उस से लिखवा लेंगे कि वह अपना बच्चा किसी दूसरे को अब नहीं देगा. इस के बाद अगर वह शर्त तोड़ेगा तो हम पुलिस की मदद लेंगे. साथ ही हम बच्चा गोद लेने की कोशिश भी करते रहेंगे. मैं कोई ऐसा बच्चा गोद नहीं लेना चाहता, जिस के पीछे देने वाले की मजबूरी और जन्म देने वाली मां का दर्द और आंसू हो.’’

सुरेश ने जब अपनी बात खत्म की, तो वंदना उसे टुकरटुकर ताक रही थी.

‘‘ऐसे क्या देख रही हो?’’ सुरेश ने पूछा तो वह मुसकरा कर बोली, ‘‘देख रही हूं कि तुम कितने महान हो, मुझे तुम्हारी पत्नी होने पर गर्व है.’’

सुरेश ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर हलके से दबा दिया. उसे लगा कि उस की आत्मा से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है.

आशिकी में भाई को किया दफन – भाग 1

नाबालिग गीता पर राहुल ने ऐसा जादू कर दिया था कि वह उस की प्रेम दीवानी हो गई थी, जबकि वह विवाहित और 2 बच्चों का बाप था. उन की आशिकी चरम पर थी. गीता रात को अपने परिवार वालों को दूध में नींद की गोलियां मिला कर दे देती थी फिर दोनों एकांत में मिल लेते थे.

एक बार राहुल प्रेमिका को बाहों में भरता हुआ बोला, “गीता, आखिर हम इस तरह छिप कर कब तक मिलते रहेंगे. कुलवीर हम पर हमेशा नजरें गड़ाए रहता है.’’

“हां, सही कहते हो, घर में केवल वही हमारे प्यार का दुश्मन बना बैठा है. मुझे लग रहा है कि कुछ करना ही होगा.’’ गीता तल्ख आवाज में बोली.

“क्या मतलब है तुम्हारा.’’ राहुल बोला.

“यही कि कोई तरीका निकालो इस समस्या के समाधान का,’’ गीता बोली.

“ठीक है, मैं कुछ सोचता हूं.’’ राहुल बोला और फटाफट अपने कपड़े पहन कर अपने घर चला गया.

इसी दौरान कुलवीर रहस्यमय तरीके से गायब हो गया. हरिद्वार जिले के एसएसपी अजय सिंह को करीब एक माह से लापता कुलवीर के बारे में एक सुराग मिल ही गया था. उस की पुष्टि के लिए उन्होंने तुरंत लक्सर थाने के कोतवाल अमरजीत सिंह को उस दिशा में काम करने का आदेश दे दिया.

आदेश पाते ही 12 मार्च, 2023 को अमरजीत सिंह ने भी फौरी काररवाई करते हुए ढाढेकी ढाणा के राहुल कुमार को थाने बुलवाया. उसे सीओ मनोज ठाकुर के सामने हाजिर किया गया. वह डरासहमा पुलिस के सामने खड़ा था. उस ने बताया कि उस की 9 साल पहले मोनिका से शादी हुई थी. उस से 2 बच्चे भी हैं. अपनी पत्नी मोनिका से बहुत खुश है.

उसी दौरान वह पड़ोसियों के नाम और उन के साथ अच्छे संबंध होने के बारे में बताने लगा, तभी जांच अधिकारी ने बीच में ही टोक दिया, “…अच्छा तो तुम कुलवीर के पड़ोसी हो?’’

“जी सर,’’ राहुल बोला.

“वह महीने भर से लापता है. उस के बारे में तुम क्या जानते हो?

“नहीं मालूम.’’ राहुल बोला.

“कुछ तो पता होगा. पिछली बार तुम उस से कब मिले थे?’’

“याद नहीं, लेकिन एक महीने से ज्यादा हो गया. कहां गया है…नहीं मालूम. उस से मेरे अच्छे संबंध थे.’’ राहुल बोला.

“अच्छे संबंध थे? क्या मतलब है तुम्हारा? अब नहीं है क्या?’’ जांच अधिकारी ने बीच में ही सवाल कर दिया.

यह सुनते ही राहुल थोड़ा असहज हो गया. हड़बड़ाता हुआ बोला, “मेरा मतलब है उस से मेरी पुरानी जानपहचान है. कुछ हफ्तों से वह नहीं दिखाई दिया है. कहीं गया होगा अपने कामधंधे को ले कर!’’

“गीता के बारे में तुम क्या जानते हो?’’ पुलिस ने बात बदल कर दूसरा सवाल किया.

“गीता? वह तो कुलवीर की बहन है. अच्छी लड़की है.’’ राहुल झट से बोल पड़ा.

“हां हां वही गीता, सुबह आई थी यहां. अपने लापता भाई की तहकीकात करने. तुम्हारी तो बहुत शिकायत कर रही थी. बोल गई है कि तुम ने ही उसे उस के खिलाफ भड़का दिया है, जिस से वह घर वालों से नाराज हो कर कहीं चला गया है. इसीलिए तुम्हें यहां बुलवाया गया है.’’ जांच अधिकारी बोले.

“मैं ने उसे भड़काया है? उसे! भला मैं क्यों ऐसा करूंगा, सर?’’ राहुल बोला.

“अपने मतलब के लिए.’’

“मेरा उस से क्या लेनादेना, क्या मतलब उस से…वह अपनी मरजी का मालिक और मैं…’’

“…और तुम अपनी मनमानी के मालिक… यही बात है न!’’ राहुल अपनी सफाई दे रहा था कि बीच में ही जांच अधिकारी बोल पड़े.

“जी…जी सर, मैं ने कोई मनमानी नहीं की उस के साथ.’’ राहुल अचानक घबरा गया.

“तो क्या कुछ किया उस के साथ, जो महीने भर से घर नहीं लौटा है? तुम्हीं बताओ न.’’ पुलिस के इस तर्क पर राहुल की जुबान से एक भी शब्द नहीं निकल पाया. जांच अधिकारी ने उस की चुप्पी और चेहरे पर उड़ती हवाइयों पर तीखी निगाह टिका दी. कुछ सेकेंड कमरे में सन्नाटा छाया रहा.

“कुलवीर के बारे कुछ बताया इस ने?’’ कोतवाल अमरजीत सिंह ने कमरे के दरवाजे से पूछा.

“अभी तक तो नहीं सर!’’ जांच अधिकारी बोले.

“कोई बात नहीं गीता ने सब कुछ बता दिया है. इसे मेरे कमरे में ले कर आओ, अब इस की खबर मैं लूंगा. यह इतनी आसानी से सच नहीं उगलने वाला है. इसे पुलिस सेवा की जरूरत है.’’ अमरजीत बोले.

“पुलिस सेवा!’’ अचानक रहुल बोला.

जांच अधिकारी बोले, “नहीं जानते पुलिस सेवा के बारे में? कोई बात नहीं, अब जान जाओगे. यह ऐसी सेवा होती है, जिसे कभी भी भूल नहीं पाओगे.’’

“सर जी, मैं ने कुछ भी नहीं किया कुलवीर के साथ…जो कुछ हुआ वह गीता के कहने पर ही कृष्णा ने किया…’’

“कृष्णा ने किया? कौन है कृष्णा? क्या किया उस के साथ? गीता ने उस के बारे में कुछ भी नहीं बताया…वह तो सिर्फ तुम्हारा ही नाम ले रही थी.’’ अमरजीत बोले.

“कृष्णा मेरी जानपहचान का है, दूसरे गांव में रहता है.’’ राहुल बोला.

“मुझे तो यह भी पता चला है कि तुम्हारा और गीता का चक्कर चल रहा है.’’ अमरजीत ने कहा.

“गलत बात है सर,’’ राहुल बोला.

“गलत नहीं है, तुम्हारे और गीता का राज कुलवीर को मालूम हो गया था. इसलिए तुम्हारी उस के साथ लड़ाई हो गई थी. अब वह कहां है किसी को नहीं मालूम. परिवार वालों ने उस के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई है. तुम उस के बारे में पूरी बात बताओगे तभी उसे तलाशने में मदद मिलेगी…वरना?’’ जांच अधिकारी ने कहा.

प्रेमी ने खोल दिया राज

पुलिस घुड़की और हमदर्दी से राहुल के चेहरे पर पसीना आ गया था. उस के चेहरे का भाव भांपते हुए अमरजीत समझ चुके थे कि उन्हें कुलवीर के बारे में नया सुराग मिल सकता है. उन्होंने उसे पानी पिलाया और उस के लिए चाय भी मंगवाई, फिर उसे ठंडे दिमाग से गीता, कुलवीर, कृष्णा और उस से जुड़ी सारी बातें बताने को कहा. उस के बाद जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार है—

उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के लक्सर थानांतर्गत गांव ढाढेकी ढाणा में सेठपाल अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 3 बेटे और एक बेटी थी. वह एक साधारण किसान था. बड़ा बेटा कुलवीर पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटाता था.

पड़ोस में ही राहुल का भी घर था. वह भी अपने मातापिता, पत्नी और बच्चों के साथ खुशी से जीवनयापन करता रहा था. सेठपाल रिश्ते में उस का चाचा लगता है. राहुल का उन के घर में आनाजाना लगा रहता था. बीते एक साल से वह गीता की सुंदरता पर मर मिटा था. जब भी वह अकेले में मिलती, वह उस की तारीफ करता था. उन के बीच बढ़ती नजदीकियों की भनक परिवार में गीता के भाइयों को भी लग गई थी, लेकिन इसे उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया.

पाक प्यार में नापाक इरादे

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट का सब से व्यवस्ततम है इलाका अग्रसेन चौराहा. फर्नीचर व्यवसायियों की सब से बड़ी मार्केट  होने की वजह से यहां पूरे दिन भीड़ लगी रहती है. इस मार्केट की दुकान ‘गीता फर्नीचर’ काफी बड़ी और प्रतिष्ठित मानी जाती है. फर्नीचर व्यवसायी अभिषेक रंजन अग्रवाल की यह दुकान उन की पत्नी गीता के नाम पर है. दुकान के पीछे ही उन का मकान भी है.

  18 जून, 2013 की रात साढ़े 8 बजे अभिषेक अग्रवाल ने दुकान के कर्मचारियों सनी प्रजापति और राजेंद्र साहनी से दुकान बढ़ाने को कह कर खुद दुकान से बाहर आ कर अपने परिचित रवि अग्रवाल के साथ खड़े हो कर बातें करने लगे. इसी बीच बैंक रोड की ओर से एक मोटरसाइकिल उन के करीब आ कर रुक गई.

  उस पर 2 युवक सवार थे. वे कौन हैं, यह देखने के लिए जैसे ही अभिषेक पलटे, पीछे बैठे युवक ने रिवाल्वर निकाल कर उन पर 2 गोलियां दाग दीं. दोनों ही गोलियां उन के सिर में लगीं. गोलियां लगते ही अभिषेक जहां जमीन पर गिर गए, वहीं मोटरसाइकिल युवक भाग निकले. उन के हाथों में रिवाल्वर थे, इसलिए कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका.

  अप्रत्याशित घटी इस घटना से जहां सभी हैरान थे, वहीं पूरी बाजार में हड़कंप सा मच गया था. दोनों नौकर पहले तो भाग कर घायल हो कर गिरे अभिषेक के पास आए. उन्हें तड़पता देख कर सनी जहां रवि अग्रवाल की मदद से उन्हें संभालने लगा, वहीं रवींद्र घर के अंदर की ओर घटना की सूचना देने के लिए भागा.

  घर के सदस्य सूचना पा कर बाहर आते, उस के पहले ही पड़ोस के दुकानदारों ने अभिषेक को एक रिक्शे पर बैठाया और पास के विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंगहोम के लिए रवाना हो गए. पीछेपीछे अभिषेक के घर वाले भी अस्पताल की ओर भागे. लेकिन अभिषेक को अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि अस्पताल पहुंचने के पहले ही उस की मौत हो चुकी थी. डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था. मौत की जानकारी होते ही घरवाले बिलखबिलख कर रोने लगे.

 सूचना पा कर अभिषेक के तमाम परिचित भी अस्पताल पहुंच चुके थे. किसी ने घटना की सूचना फोन द्वारा  पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी, जहां से सूचना पा कर थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहीं से उन्होंने इस घटना की सूचना अधिकारियों को दे कर खुद अस्पताल जा पहुंचे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, क्षेत्राधिकारी (कैंट) वी.के. पांडेय, कोतवाली के इंसपेक्टर बृजेंद्र कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए.

  पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दी. पुलिस ने घटनास्थल से 9 एमएम के 2 खोखे बरामद किए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अभिषेक के बहनोई विवेक कुमार लाट, उस के मंझले भाई विनय कुमार लाट तथा 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 513/2013 पर भादंवि की धारा 302/120 बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

  मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट पुलिस ने उसी दिन विनय कुमार लाट को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं, इसलिए पुलिस ने जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उसे टूटते देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुपारी दे कर किराए के हत्यारों से अभिषेक की हत्या कराई थी. विनय द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने और हत्यारों के नाम बता देने के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

  इस मामले में नामजद दूसरा अभियुक्त विनय का भाई विवेक पहले से ही जेल में बंद था. पुलिस अन्य अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. इस मामले में सोचने वाली बात यह थी कि आखिर बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या क्यों कराई? अभिषेक का बहनोई जेल में क्यों बंद था? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा.

  गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले 72 वर्षीय अर्जुन कुमार अग्रवाल ढुनमुनदास बालमुकुंद दास इंटर कालेज से 30 जून, 2003 को रिटायर होने के बाद अपने एकलौते बेटे अभिषेक रंजन के साथ उस के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चों में 3 बेटियां रश्मि, शालिनी, दिवीता और एकलौता बेटा अभिषेक रंजन था. उन का यह बेटा तीसरे नंबर पर था.

  अध्यापक होने की वजह से अर्जुन कुमार खुद तो संस्कारी थे ही, उन के चारों बच्चे भी उन्हीं की तरह संस्कारी थे. अर्जुन की बड़ी बेटी रश्मि सीधीसादी, बेहद सुशील थी. उस ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए करने के बाद नेट परीक्षा भी पास कर ली थी. अर्जुन कुमार अग्रवाल के सभी बच्चे इसी तरह पढ़ेलिखे थे. बायोलौजी से प्रथम श्रेणी में बीएससी करने के बाद अभिषेक रंजन अग्रवाल ने पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ाया था. अपने घर के आगे पड़ी जमीन में दुकान बनवा कर उस ने फर्नीचर और हार्डवेयर का काम शुरू कर दिया था. जल्दी ही उस का यह व्यवसाय चल निकला.

  घर में हर तरह से खुशहाली थी. रश्मि शादी लायक हुई तो अर्जुन कुमार उस के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे. एक दिन अर्जुन कुमार अग्रवाल की नजर स्थानीय अखबार के शहनाई कालम में ‘वधु चाहिए’ में छपे एक विज्ञापन पर पड़ी तो उन्हें लगा कि यहां बात बन सकती है. यह विज्ञापन रामस्वरूप लाट ने अपने बेटे के विवाह के लिए छपवाया था. उस  में फोन नंबर भी दिया था, इसलिए अर्जुन कुमार अग्रवाल ने तुरंत फोन कर के बात कर ली.

  आखिर वहां बात बन गई. जल्दी गोदभराई कर के कुल 15 दिनों में अर्जुन कुमार ने अपनी बड़ी बेटी रश्मि का विवाह रामस्वरूप लाट के बेटे विवेक कुमार से कर दिया था. पहली और बड़ी बेटी का विवाह था, इसलिए अर्जुन कुमार ने अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा इस शादी में खर्च किया था.

रामस्वरूप लाट ने यह विवाह इतनी जल्दी में कराया था कि अर्जुन कुमार को मौका ही नहीं मिला था कि वह लड़के या उस के घर वालों के बारे में ठीक से पता कर पाते. बाद में जो पता चला, उस के अनुसार गोरखपुर की कोतवाली के आर्यनगर के दक्षिणी हुमायूंपुर मोहल्ले के राज नर्सिंग होम के पास रहने वाले रामस्वरूप लाट ठेकेदारी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे, कमलेश कुमार लाट, विनय कुमार लाट, विवेक कुमार लाट, विकास कुमार लाट तथा 3 बेटियां, कमला, वंदना और एप्पुल थीं.