विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 2

सन 1991 में सोफिया शेख का निकाह चैंबूर के शिवाजीनगर के रहने वाले इमरान हाजीवर शेख के बड़े भाई के साथ हुआ तो मानो उसे दुनिया की सारी खुशियां मिल गई थीं. इस की वजह यह थी कि उस का पति उसे जान से ज्यादा प्यार करता था. उस का दांपत्यजीवन बड़ी हंसीखुशी से बीत रहा था. दोनों अपनी गृहस्थी जमाने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक उन की इस गृहस्थी पर किसी की काली नजर पड़ गई.

अभी सोफिया के हाथों की मेहंदी भी ठीक से नहीं छूटी थी कि जिस पति ने उस का हाथ थाम कर जीवन भर साथ निभाने का वादा किया था, वह हाथ ही नहीं, बल्कि हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चला गया. हैवानियत की एक ऐसी आंधी आई, जिस में उस का सुहाग पलभर में उड़ गया. सन 1992 में मुंबई में जो सांप्रदायिक दंगे हुए थे, उस में उस का पति मारा गया था.

पति की आकस्मिक मौत ने सोफिया को तोड़ कर रख दिया. उसे दुनिया से ही नहीं, अपनी जिंदगी से भी नफरत हो गई. वह जीना नहीं चाहती थी, लेकिन आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी. वह हमेशा सोच में डूबी रहने लगी. मुसकराने की तो छोड़ो, वह बातचीत भी करना लगभग भूल सी गई थी. उस की हालत देख कर मातापिता परेशान रहने लगे थे. उस ने जिंदगी शुरू की थी कि उस के साथ इतना बड़ा हादसा हो गया था. अभी उस की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस की जिंदगी को संवारने के लिए उस के मातापिता उस के दूसरे निकाह के बारे में सोचने लगे.

सोफिया के मातापिता उस का दूसरा निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख से करना चाहते थे. सोफिया की ससुराल वालों से बातचीत कर के जब उस के मातापिता ने इमरान से निकाह का प्रस्ताव सोफिया के सामने रखा तो उस ने मना कर दिया. लेकिन उन्होंने उसे ऊंचनीच का हवाला दे कर खूब समझायाबुझाया तो वह देवर इमरान हाजीवर शेख के साथ निकाह करने को तैयार हो गई.

इस के बाद दोनों परिवारों की उपस्थिति में बड़ी सादगी से सोफिया का निकाह उस के पति के छोटे भाई इमरान हाजीवर शेख के साथ हो गया. यह 1996 की बात थी. इमरान औटो चलाता था.

निकाह के बाद सोफिया अपने दूसरे पति से भी वैसा ही प्यार चाहती थी, जैसा उसे पहले पति से मिला था. यही वजह थी कि वह उसे भी उसी तरह प्यार कर रही थी. निकाह के कुछ दिनों बाद तक तो इमरान ने उसे उसी तरह प्यार किया, जिस तरह उस के पहले पति ने किया था. तब वह अपनी सारी कमाई ला कर सोफिया के हाथों में रख देता था. उस बीच उस ने उस के हर दुखसुख का खयाल भी रखा.

उसी बीच सोफिया उस के 2 बच्चों की मां बनी. पहला बच्चा बेटा था तो दूसरा बेटी. बच्चों के बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं. जिम्मेदारियां बढ़ीं तो खर्च बढ़ा, जिस के लिए इमरान को कमाई बढ़ाने के लिए ज्यादा समय देना पड़ता था. अब वह पहले की तरह न सोफिया को प्यार कर पाता था, न समय दे पाता था. इस से सोफिया का मन बेचैन रहने लगा, जिस से छोटीछोटी बातों को ले कर बड़ेबड़े झगड़े होने लगे. धीरेधीरे ये झगड़े इतने बढ़ गए कि दोनों ने अलग रहने का निर्णय ले लिया. इस तरह दोनों के संबंध खत्म हो गए.

पति से अलग होने के बाद सोफिया दोनों बच्चों को ले कर मानखुर्द में मुंबई म्हाण द्वारा मिले मकान में आ कर रहने लगी. बच्चों के साथ यहां आ कर सोफिया खुश तो थी, लेकिन एक बात यह भी है कि पति से अलग होने के बाद हर औरत बहुत दिनों तक अपने दिलोदिमाग पर काबू नहीं रख पाती. अगर वह जवान हो तो यह समस्या और बढ़ जाती है. क्योंकि इस उम्र में जो जोश होता, उसे संभालना हर किसी के वश की बात नहीं होती. उस औरत के लिए यह और मुश्किल हो जाता है, जो उस का स्वाद चख चुकी होती है. ऐसे में वह उस सुख के लिए मर्यादा तक भूल जाती है.

ऐसा ही सोफिया के साथ भी हुआ. पति इमरान हाजीवर से अलग होने के बाद वह अपने तनमन पर काबू नहीं रख पाई और स्वयं को समीर शेख की बांहों में झोंक दिया.

25 वर्षीय समीर शेख अपने भाई के साथ गोवड़ी शिवाजीनगर के उसी इलाके में रहता था, जहां सोफिया अपने पति इमरान हाजीवर शेख के साथ रहती थी. समीर शेख देखने में जितना सुंदर और स्वस्थ था, उतना ही दिलफेंक भी था. इसी वजह से लड़कियां उस की कमजोरी बन चुकी थीं. समीर के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. वह दुबई की किसी कंपनी में नौकरी करता था. अच्छी कमाई थी, इसलिए खर्च करने में भी उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह हमेशा हीरो की तरह सजधज कर रहता था. उस की शादी भी नहीं हुई थी, इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं थी.

अपने दिलफेंक स्वभाव की ही वजह से जब उस ने सोफिया को अपने एक रिश्तेदार के यहां देखा तो पहली ही नजर में उसे अपने दिल में बैठा लिया. कुंवारा समीर अपनी उम्र से बड़ी और 2 बच्चों की मां सोफिया पर मर मिटा. सोफिया जब तक अपने उस रिश्तेदार के घर रही, तब तक महिलाओं को पटाने में माहिर समीर की नजरें सोफिया के इर्दगिर्द ही घूमती रहीं.

सोफिया को भी एक ऐसे पुरुष की जरूरत थी, जो उस के भटकते तनमन को काबू में ला सके. इसलिए समीर से नजरें मिलते ही उस ने उस के दिल की बात जान ली. सोफिया ने समीर को तब देखा था, जब वह लड़का था. आज वही समीर जवान हो कर उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था.

समीर का भरापूरा चेहरा, चौड़ी छाती और मजबूत बांहें देख कर सालों से शारीरिक सुख से वंचित सोफिया का मन विचलित हो उठा. वह उसे चाहत भरी नजरों से ताक ही रहा था, इसलिए सोफिया ने भी उस पर अपनी नजरें इनायत कर दीं तो बातचीत में होशियार समीर को उस पर अपना प्रभाव जमाने में देर नहीं लगी. उसी दौरान दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर भी ले लिए. इस के बाद मोबाइल पर शुरू हुई बातचीत जल्दी ही मेलमुलाकात में ही नहीं, प्यार और शारीरिक संबंधों में बदल गई.

2 बच्चों की मां होने के बावजूद सोफिया की सुंदरता में जरा भी कमी नहीं आई थी. उस के रूपसौंदर्य और शालीन स्वभाव में समीर डूब सा गया. औरतों का रसिया समीर शेख जब तक दुबई में रहता, फोन से बातें कर के सोफिया को अपने प्यार में इस कदर उलझाए रहता कि उसे उस की दूरी का अहसास नहीं हो पाता.

दुबई से आने पर समीर सोफिया के लिए ढेर सारे उपहार तो लाता ही, उसे इस कदर प्यार करता कि बीच का खालीपन भर जाता. जब तक वह यहां रहता, सोफिया को इतना प्यार देता कि वह पूरी दुनिया भूली रहती. समीर के प्यार को पा कर सोफिया एक सुंदर भविष्य के सपनों में खो गई. उस के मन में उम्मीद जाग उठी कि समीर उस का पूरे जीवन साथ देगा. समीर ने वादा भी किया था, इसलिए सोफिया उस से निकाह के लिए कहने लगी. जबकि समीर टालता रहा.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 2

प्रियंका उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने आज खुद को विशेष रूप से सजायासंवारा था.

करन ने पहुंचते ही उसे बांहों में समेट लिया, “चाची, आज तो तुम हुस्न की परी लग रही हो, नजरें हटाने को जी नहीं चाहता.”

“थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.” प्रियंका ने मुसकरा कर कहा, “कम से कम दरवाजा तो भीतर से बंद कर लो, किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.”

करन ने फौरन घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बाहें फैलाईं, प्रियंका आ कर उन में समा गई. करन के तपते होंठ प्रियंका के नरम अधरों पर जम गए. इस के बाद वासना का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा, सात फेरों के वक्त पति को दिए वचन, सब बह गए.

अवैध रिश्तों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एक दूसरे की बाहों में सिमट कर हवस की आग बुझा लेते. चूंकि दोनों का रिश्ता चाचीभतीजे का था, इसलिए किसी को शक नहीं होता था. लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपतीं नहीं. धीरेधीरे पूरे गांव में करन और प्रियंका के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.

कुछ दिनों बाद सुरेंद्र सूरत से गांव आया तो उस के कानों में पत्नी और करन के नाजायज रिश्तों की भनक पड़ी. सुन कर जैसे उस पर पहाड़ टूट पड़ा. प्रियंका को मालूम नहीं था कि उस के पति को उस के और करन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका है.

वह खनकती आवाज में बोली, “क्या बात है, आज तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”

“सच जानना चाहती हो तो सुनो, तुम जो कर रही हो, उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन सरक गई है. तुम्हारे और करन के बारे में लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना छिपाए सारा सच बता दो.” सुरेंद्र ने मन की बात कह दी.

प्रियंका पति की बातें सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेंद्र को सब कुछ पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह घबराए स्वर में बोली, “सब झूठ है, लोग हम से जलते हैं, इसलिए उन्होंने तुम्हारे कान भर दिए हैं.”

प्रियंका ने समझ लिया था कि त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, “मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हंू. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर, मेरी ओर देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकता. तुम मुझ पर यकीन करो, तुम ने जो कुछ भी सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. वैसे भी जिन के पति परदेश में कमाते हैं, उन की औरतों को लोग शक की निगाहों से देखते और बदनाम करते हैं.”

आखिरकार प्रियंका की बातों से सुरेंद्र को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने पत्नी पर यकीन कर लिया. कुछ रातें पत्नी के साथ बिता कर सुरेंद्र सूरत चला गया. उस के जाते ही करन और प्रियंका की रातें फिर रंगीन होने लगीं. अब दिन में करन ने प्रियंका के घर आनाजाना बंद कर दिया, ताकि लोगों को उस पर शक न हो.

प्रियंका मोबाइल फोन से पति से मीठीमीठी बातें करती रहती थी. वह उसे भरोसा दिलाती रहती थी कि वह सिर्फ उसी की है. उस ने अपनी चरित्रहीनता छिपाने के लिए अक्टूबर  के दूसरे सप्ताह में पति को फोन पर बताया कि 30 अक्टूबर को करवाचौथ है, इसलिए वह करवाचौथ के पहले ही छुट्टी ले कर आ जाए. उस ने यह भी कहा कि इस बार वह कम से कम एक महीने की छुट्टी ले कर आए, क्योंकि करवाचौथ के बाद दीपावली का त्यौहार है.

सुरेंद्र ने प्रियंका को आश्वासन दिया कि वह करवाचौथ से 2-4 दिन पहले ही आ जाएगा. चाहे छुट्टी मिले या न मिले. इस के बाद सुरेंद्र घर आने की तैयारी करने लगा. उसे जैसे ही फैक्ट्री से पेमेंट मिला, उस ने पत्नी के लिए अच्छी सी साड़ी व अन्य सामान खरीदा, साथ ही बच्चों के लिए कपड़े भी. फिर वह ट्रेन से गांव के लिए चल पड़ा.

सुरेंद्र ने जैसा कहा था, वैसा ही किया. वह 25 अक्तूबर को अपने गांव कृपालपुर पहुंच गया. जबकि करवाचौथ 30 अक्तूबर को था. सुरेंद्र के आ जाने से करन और प्रियंका को मिलने में दिक्कत होने लगी.

इस दिक्कत को दूर करने के लिए करन मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीद लाया. उस ने गोलियां प्रियंका को दे कर कहा कि वह रात में पति को दूध में मिला कर दे दिया करे, ताकि उस के बेसुध हो कर सो जाने के बाद वे दोनों आसानी से मिल सकें. प्रियंका ने नींद की गोलियां तो संभाल कर रख लीं, लेकिन करवाचौथ के पहले वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

करवाचौथ वाले दिन प्रियंका ने अन्य सुहागिनों की तरह दिन भर व्रत रखा. शाम को खूब शृंगार किया और चांद देख कर व्रत पूरा किया. रात को वह पूरी तरह पति को समर्पित रही. सुरेंद्र को लगा कि उस की पत्नी उसी की है. गांव वाले बेकार में उस पर लांछन लगाते हैं.

अगले दिन करन से प्रियंका का सामना हुआ तो उस ने उलाहना दिया “तुम तो अपने पति के साथ करवाचौथ मनाती रहीं और मैं तुम्हारी याद में सारी रात करवट बदलता रहा. मुझे भी तुम्हारे साथ करवाचौथ मनाना है. मैं भी तो तुम्हारे पति से कम नहीं हूं.”

प्रियंका मुसकरा कर बोली, “तुम्हें मौका जरूर मिलेगा. तुम्हारी मर्दानगी की मैं दीवानी हूं. आज रात को जब मैं मिसकाल करूं तो चुपके से आ जाना. दरवाजा खुला रहेगा.”

सुरेंद्र गांव में घूमफिर कर रात 9 बजे घर लौटा. उस ने खाना खाया और चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद प्रियंका नींद की गोलियां मिला दूध ले कर आई और सुरेंद्र को थमा दिया. सुरेंद्र ने दूध पी लिया और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा. सुरेंद्र गहरी नींद में सो गया तो प्रियंका ने करन को मिसकाल दी. थोड़ी देर बाद करन आ गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. सुरेंद्र के आने के बाद जो क्रम टूट गया था, वह फिर शुरू हो गया.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 2

उन्होंने उस लडक़े को प्रेमलता से मिलने की इजाजत तो दे दी, लेकिन महिला सिपाही रेनू सारस्वत को उस के पीछे लगा दिया कि वह किसी भी तरह उन की बातें सुनने की कोशिश करे. रेनू उधर से गुजरी तो लडक़ा कह रहा था, “तुम ने ताजमहल वाले फोटो जला दिए हैं न?”

“हां, जला दिए हैं. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है?”

यह सुन कर रेनू चौंकी. वह तुरंत मुंशी मंसूर अहमद के पास पहुंची और उन से बता दिया कि प्रेमलता से जो लडक़ा मिलने आया है, वही बबलू है. मंसूर अहमद तेजी से बाहर आए. बबलू को शायद शक हो गया था, इसलिए वह तेजी से बाहर की ओर चला जा रहा था. मंसूर अहमद ने संतरी को आवाज देते हुए तेजी से उस की ओर दौड़े. आखिर उन्होंने उसे दबोच ही लिया.

इस के बाद उसे अंदर ला कर पूछताछ की गई तो एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई, जिस में प्रेम की राह में रोड़ा बनने वाले गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या कर दी गई थी. यह पूरी कहानी इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी का एक गांव है भरथरा, जहां महेशचंद फौजी परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटे और 4 बेटियां थीं. प्रेमलता उन में सब से बड़ी थी. उस ने बीए करने के बाद बीएड किया और नौकरी की तलाश में लग गई. इसी के साथ महेशचंद उस की शादी के लिए लडक़ा ढूंढऩे लगे.

महेशचंद की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी, बेटी भी पढ़ीलिखी थी. इसलिए वह उस के लिए खातेपीते परिवार का पढ़ा लिखा लडक़ा तलाश रहे थे. इसी तलाश में उन्हें किसी से जिला एटा के थाना बागवाला के गांव लोहाखार के रहने वाले रामसेवक के बेटे गवेंद्र के बारे में पता चला तो वह उस के घर जा पहुंचे.

रामसेवक का खातापीता परिवार था. उस के पास ठीकठाक जमीन थी. गांव में पक्का मकान था, एक मकान मैनपुरी के नगला कीरतपुर में भी था. गवेंद्र ने पौलिटैक्निक करने के साथ बीए भी कर रखा था. वह नौकरी की तलाश में था.  महेशचंद को गवेंद्र प्रेमलता के लिए पसंद आ गया. उसे लगा कि गवेंद्र को जल्दी ही कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. उस के बाद उन की बेटी की जिंदगी संवर जाएगी.  उस ने गवेंद्र को प्रेमलता के लिए पसंद कर लिया और उस के साथ प्रेमलता की शादी कर दी.

प्रेमलता ससुराल आ गई. रामसेवक का छोटा सा परिवार था. पतिपत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी नीरज थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. इसलिए घर में सिर्फ 4 ही लोग बचे थे. प्रेमलता को पूरा विश्वास था कि उस के पति को जल्दी ही कहीं न कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. वैसे घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, लेकिन पति की कमाई की बात अलग ही होती है.

गवेंद्र नौकरी की कोशिश में लगा था, लेकिन नौकरी मिल नहीं रही थी. इस बीच वह 2 बच्चों उमंग और तमन्ना का पिता बन गया. प्रेमलता खुद भी बीए, बीएड थी. लेकिन बच्चे छोटे थे, दूसरे गवेंद्र नहीं चाहता था कि वह नौकरी करे, इसलिए प्रेमलता ने अपने लिए कोशिश नहीं की.

सन 2012 में गवेंद्र को मैनपुरी के कीरतपुर स्थित सेवाराम जूनियर हाईस्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मिल गई. नौकरी भले ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की थी, लेकिन सरकारी थी, इसलिए उस ने इसे जौइन कर लिया. लेकिन प्रेमलता को यह नौकरी पसंद नहीं थी, वह शायद किसी अधिकारी की बीवी बनना चाहती थी. चपरासी की बीवी कहलवाना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं था. इसलिए उस ने सोचा कि अब उसे ही कुछ करना होगा. वह अपने कैरियर के बारे में सोचने लगी. उस के बच्चे भी बड़े हो गए थे, इसलिए वह खुद कुछ कर के समाज में नाम और पैसा कमाना चाहती थी.

उसी बीच ससुराल जाते समय बस में उस की मुलाकात बबलू से हुई. बबलू भी उसी सीट पर बैठा था. रास्ते में बबलू उस के बच्चों से बातें करतेकरते उस से भी बातें करने लगा. उस ने बताया कि वह आगरा के आईआईएमटी कालेज से जीएनएम (जनरल नॄसग मिडवाइफरी) का कोर्स कर के आगरा के पुष्पांजलि अस्पताल में नौकरी करता है.

जब प्रेमलता ने कहा कि उस ने भी बीए, बीएड किया है, लेकिन लगता नहीं कि उसे नौकरी मिलेगी तो उस ने कहा, “अगर तुम जीएनएम का कोर्स कर लो तो जल्दी ही तुम्हें कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी. रही बात दाखिले की तो वह तुम मुझ पर छोड़ दो.”

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. 2-4 दिन ससुराल में रह कर प्रेमलता पति के पास आई तो उस ने गवेंद्र से कहा, “भई अब इस तरह काम नहीं चलेगा. बच्चों के भविष्य के लिए मुझे भी कुछ करना होगा. बीए, बीएड से तो नौकरी मिल नहीं सकती, इसलिए मैं जीएनएम का कोर्स करना चाहती हूं. इस से किसी न किसी अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी.”

गवेंद्र को लगा कि अब बच्चे समझदार हो गए हैं. ऐसे में प्रेमलता कुछ करना चाहती है तो इस में बुराई क्या है. वह प्रेमलता को जीएनएम का कोर्स कराने के लिए राजी हो गया. गवेंद्र के पिता रामसेवक रिटायर हो चुके थे. इसलिए अब वह भी उसी के साथ रहने लगे थे.

प्रेमलता ने बबलू की मदद से आईआईएमटी में अपना दाखिला करा लिया. बबलू उसे सुनहरे भविष्य का सपना दिखाने लगा. प्रेमलता की पढ़ाई शुरू हो गई. बबलू लायर्स कालोनी में कमरा किराए पर ले कर रहता था. प्रेमलता को भी उस ने उसी कालोनी में कमरा दिला दिया. अब दोनों की रोज मुलाकात होने लगी. बबलू प्रेमलता के कमरे पर भी आनेजाने लगा.

लगातार मिलने और कमरे पर आनेजाने से प्रेमलता और बबलू में प्यार ही नहीं हो गया, प्रेमलता ने उस से शारीरिक संबंध बना कर उस ने रिश्तों की मर्यादा भंग कर दी. सपनों को ख्वाहिश बनाया तो तन और मन से पति से ही नहीं, बच्चों से भी दूर हो गई.

बबलू को जब लगा कि प्रेमलता पूरी तरह से उस की हो गई है तो उस ने उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. तब प्रेमलता ने कहा, “बबलू यह सब इतना आसान नहीं है. क्योंकि गवेंद्र मुझे आसानी से छोडऩे वाला नहीं है.”

“तो ठीक है, मैं उसे रास्ते से हटाए देता हूं.” बबलू ने कहा तो प्रेमलता गंभीर हो कर बोली, “यह तो और भी आसान नहीं है.”

प्रेमलता भी अब गवेंद्र से छुटकारा पा कर बाकी की जिंदगी बबलू के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन वह उसे छोड़ कर बबलू से शादी नहीं कर सकती थी. क्योंकि ऐसा करने पर मायके वाले उस का साथ न देते. इसलिए वह बड़ी उलझन में फंसी थी. वह इस बारे में कुछ करती, उस के पहले ही उस की पोल खुल गई.

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 1

बात उतनी बड़ी नहीं थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि हलके में लिया जाता. उस के पीछे का मकसद और साजिश इतनी खतरनाक थी कि पूरी घटना जानने के बाद मैं दंग रह गया था. इस बात ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि आजकल के बच्चे छोटीछोटी बातों को ले कर इतने बड़ेबड़े मंसूबे कैसे बना लेते हैं?

उस दिन मैं थोड़ी देर से थाने पहुंचा था. इस की वजह यह थी कि मेरे बेटे के स्कूल में सालाना समारोह था, इसलिए मुझे वहां जाना पड़ा था.  थाने पहुंच कर मैं ने ड्यूटी अफसर परमजीत सिंह को बुला कर पूछा, “कोई खास बात तो नहीं है?”

“जी कोई खास बात नहीं, बस एक…”

परमजीत बात पूरी कर पाता, मुख्य मुंशी गुरजीत सिंह कुछ फाइलें ले कर हस्ताक्षर कराने आ गया. मैं ने फाइलों पर दस्तखत करते हुए परमजीत सिंह को हाथ से बैठने का इशारा किया. वह मेरे सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए. सभी फाइलोंपर दस्तखत कर के मैं ने मुंशी से 2 चाय भिजवाने को कहा.

मुंशी चला गया तो मैं परमजीत से मुखातिब हुआ, “हां, तो तुम क्या कह रहे थे?”

“सर, लगभग 12 बजे टोल नाके पर तैनात हमारे थाने के पुलिसकर्मियों के पास एक लड़की भागती हांफती आई. उस की हालत बता रही थी कि किसी बात को ले कर वह काफी परेशान थी. पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़ कर उस की उस हालत की वजह पूछी तो उस ने हांफते हुए कहा कि वह सतलुज नदी में कोई पूजा सामग्री फेंकने आई थी. सामग्री फेंक कर जैसे ही वह लौटी 2 लडक़ों ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती खींच कर खेतों में ले गए, जहां उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की. लडक़ों ने उस का मुंह दबा रखा था, जिस से वह चीख भी नहीं सकी.”

परमजीत इतनी बात कर चुप हुआ तो पूरी बात जानने के लिए मैं ने कहा, “आगे क्या हुआ?”

“लड़की ने अपना नाम जीतो बताया था. उस की बात सुन कर हवलदार चरण सिंह और इंद्र सिंह ने फोन द्वारा मुझे घटना की सूचना दे कर खुद जीतो द्वारा बताए गए खेत की ओर चल पड़े. उन के खेतों में पहुंचने तक मैं भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया.”

जीतो का कहना था कि वे लड़के अभी यहीं कहीं छिपे होंगे, इसलिए हम सभी लडक़ों की तलाश करने लगे. थोड़ी तलाश की तो 2 लड़के सतलुज किनारे एक झाड़ी के पास बैठे मिल गए. जीतो ने उन की शिनाख्त करते हुए कहा कि इन दोनों ने उस के साथ दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म करने वाला कोई और लडक़ा था.

“तो क्या 3 लड़के थे?” मैं ने पूछा तो परमजीत ने कहा, “जी सर, दुष्कर्म करने वाला तीसरा लडक़ा भाग गया था. सर, मैं जीतो और उन दोनों लडक़ों को थाने ले आया हूं. अब आप बताइए कि आगे क्या किया जाए?”

“अरे भई करोगे क्या, लड़की का मैडिकल कराओ, बयान लो और उस फरार लड़के के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे पकड़ो और क्या करोगे. वैसे ये सब रहने वाले कहां के है. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है, उस का क्या नाम है, वह कहां रहता है?” मैं ने पूछा.

मेरी इस बात पर परमजीत कुछ परेशान सा हो गया. मैं ने आंखों से आगे बताने का इशारा किया तो उस ने कहा, “सर, इन दोनों लडक़ों के नाम तो नरेश और कुलदीप हैं. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है. उस का नाम राज है और वह आप के दोस्त पत्रकार अमन सिंह का बेटा है.”

“क्या… अमन का बेटा राज?” मैं चौंका. पत्रकार अमन सिंह सचमुच मेरा अच्छा दोस्त था. वह निहायत ही शरीफ और शांतिप्रिय आदमी था. झूठ से उसे सख्त नफरत थी. उस ने कभी झूठी खबरें नहीं लिखी थीं. अपने काम से काम रखने वाला अमन अपनी नेकनीयती की वजह से हमेशा आर्थिक तंगी से जूझता रहता था. उस के सिखाए दर्जनों लड़के दुनियादारी के मजे कर रहे थे, लेकिन वह वैसा नहीं बन पाया था.

मैं ने दिमाग पर जोर डाला तो मुझे याद आया कि अमन के बेटे का नाम राज ही है, क्योंकि 2-3 महीने पहले अमन किसी मामले में मुझ से सलाह लेने आया था, तब उस ने बेटे का नाम ले कर कोई चर्चा की थी. तब मुझे पता चला था कि उस के बेटे का नाम राज है.

मैं हैरान था कि अमन जैसे शरीफ आदमी का बेटा इस तरह का काम कैसे कर सकता है? लेकिन आज के समय में किसी के बारे में कोई राय रखना उचित नहीं है. जरूरी नहीं कि बाप शरीफ हो तो बेटा भी शरीफ ही हो.

बहरहाल, अमन को उस दिन मेरे पास आना था, क्योंकि उसे कुछ रुपयों की जरूरत थी. 2 दिन पहले उस ने फोन कर के मुझ से कहा था तो मैं ने उसे उस दिन आ कर रुपए ले जाने के लिए कहा था. वह किसी भी समय आ सकता था. मैं सोचने लगा कि अमन जब अपने बेटे की इस करतूत के बारे में सुनेगा तो उस पर क्या गुजरेगी?

“उन दोनों लडक़ों को ले आओ.” मैं ने कहा.

मेरे कहने पर परमजीत सिंह ने नरेश और कुलदीप को ला कर मेरे सामने खड़ा कर दिया. दोनों देखने में ही आवारा लग रहे थे. उन्हें देख कर मैं सोच भी नहीं सकता था कि ऐसे घटिया लडक़ों से राज की दोस्ती हो सकती है. फिर भी मैं ने पूछा,

“सचसच बताओ, क्या बात है?”

नरेश थोड़ा तेज दिखाई दे रहा था. उसी ने कहा, “सर, हम ने उसे मना किया था. कहा कि छेड़छाड़ की बात और है, लेकिन वह नहीं माना. लड़की को पकड़ खेत में ले गया और लडक़ी की इज्जत खराब कर दी.”

“वह सब तो ठीक है, लेकिन उस लड़के का नाम क्या है, कौन है वह?”

“सर, उस का नाम राज है. उस के पापा पत्रकार हैं. उन का नाम अमन सिंह है. राज एक फाइनैंस कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर है.”

इस के बाद उस ने वही सब मुझे भी बताया, जो उस ने परमजीत को बताया था. नरेश के साथी कुलदीप ने भी वही सब बताया था, जो नरेश ने बताया था. मैं उन से पूछताछ कर ही रहा था कि अमन आ पहुंचा. मुझ से हाथ मिला कर वह मेरे सामने कुरसी पर बैठ गया तो मैं ने शिकायती लहजे में कहा, “तुम्हारे बेटे ने जो किया है, मुझे उस से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. तुम ने यही सब सिखाया है उसे?”

“मेरा बेटा… आप मेरे किस बेटे की बात कर रहे हैं?”

“राज की और किस की..?”

“क्यों, क्या किया राज ने?” अमन ने हैरानी से पूछा.

“एक लडक़ी के साथ जबरदस्ती की है.”

“जबरदस्ती… क्या मतलब?”

“भई एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया है राज ने.” मैं ने आवाज पर जोर दे कर कहा.

“यह आप क्या कह रहे हैं? कहां किस के साथ दुष्कर्म किया है? राज ऐसा कतई नहीं कर सकता.” अमन ने जिद सी करते हुए कहा.

“ऐसा नहीं कर सकता तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. पूछो राज के इन साथियों से.” मैं ने नरेश और कुलदीप की ओर इशारा कर के कहा, “अपने इन्हीं साथियों के साथ उस ने घटना को अंजाम दिया है. दोनों उसी के दोस्त हैं.”

“आप यह क्या कह रहे हैं. ये आवारा लड़के राज के दोस्त कतई नहीं हो सकते. राज के सिर्फ 3 दोस्त हैं, जिन्हें मैं अच्छी तरह से जानता हूं. तुम इन सडक़छाप लडक़ों को राज का दोस्त कह दोगे तो क्या मैं मान लूंगा.”

दुष्कर्म के मामले में राज का नाम आने से अमन काफी नाराज था. उस ने खीझते हुए कहा, “अच्छा, अब बात समझ में आई, मैं ने आप से कुछ रुपए मांगे थे, नहीं देने का मन था तो मना कर देते. मेरे बेटे पर इस तरह का झूठा आरोप लगाने की क्या जरूरत थी? सच ही कहा गया है, पुलिस वाले की न दोस्ती अच्छी होती है और न दुश्मनी.”

“अमन ये तुम क्या बेकार की बातें कर रहे हो? मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूं. जो कुछ भी कह रहे हैं, वह ये लड़के और वह लड़की कह रही है, जिस के साथ राज ने दुष्कर्म किया है. रही बात पैसों की तो उस के लिए मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था. तुम्हें रुपए देने के लिए ही तो मैं ने बुलाया था.”

“मुझे अब आप की कोई मदद नहीं चाहिए. आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए.”

मैं खामोश हो गया. अमन सिर झुकाए किसी सोच में डूबा बैठा रहा. कुछ देर बाद मैं ने अमन को प्यार से समझाया. लड़की को बुला कर पूरी बात उस के सामने कहलवाई. नरेश और कुलदीप से भी बात कराई. तब जा कर बात उस की समझ में आई.

वह कुछ देर शांत बैठा रहा. उस के बाद अचानक जेब से मोबाइल फोन निकाला और किसी से बात करने लगा. उस की बातचीत से समझ में आया कि उस ने राज को फोन किया था और अपने 2-4 दोस्तों के साथ आने को कहा था.

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अमन करना क्या चाहता है. मैं ने अमन के लिए चाय मंगाई. चाय पी कर हम सभी चुपचाप बैठे रहे. वहां की खामोशी बता रही थी कि कोई किसी से बात नहीं करना चाहता.

लगभग आधे घंटे बाद अमन के फोन की घंटी बजी. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, “आ जाओ.”

इस के बाद अमन उस से मुखातिब हुआ, “इन तीनों से कहो कि अभी जो लडक़े आएंगे, उन में पहचान कर बताएं कि राज कौन है, जिस ने इस लड़की के साथ जबरदस्ती की है.”

अमन के इतना कहतेकहते 6 लडक़े मेरे औफिस में आ कर खड़े हो गए. सभी लड़के नरेश और कुलदीप से एकदम अलग पढ़ेलिखे और अच्छे घरों के लग रहे थे. मैं ने सब से पहले जीतो से कहा, “बताओ, इन लडक़ों में से कौन राज है, जिस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?”

मेरी बात सुन कर वह बगलें झांकने लगी. मैं ने डांटा तो हड़बड़ा कर उस ने एक लड़के की ओर इशारा कर दिया. मेरे कहने पर परमीत सिंह ने उस लडक़े को खड़ा कर दिया. इस के बाद मैं ने नरेश और कुलदीप से कहा कि वे बताएं कि उन में इन का दोस्त राज कौन है?”

जीतो की तरह वे भी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. मैं ने डांटते हुए कहा, “अब पहचान कर बताओ न तुम्हारा दोस्त राज कौन है?”

दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे, “साहब, हम नहीं जानते कि इन में से राज कौन है? हमें तो राज का नाम लेने के लिए रुपए दिए गए थे.”

“जी साहब,” नरेश और कुलदीप के सच उगलते ही जीतो ने भी बीच में सच उगल दिया, “ये सच कह रहे हैं साहब. राज को दुष्कर्म के मामले में फंसाने के लिए हम सभी को रुपए दिए गए थे. मैं न तो राज को जानती हूं और न मैं ने कभी उसे देखा है.”

इस के बाद उन तीनों ने जो बताया, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आज की युवा पीढ़ी को यह क्या हो गया है, जो छोटीछोटी बातों पर इतने खतरनाक मंसूबे बना लेती हैं. इस के बाद जीतो, नरेश और कुलदीप से की गई पूछताछ में इस फरजी दुष्कर्म की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

राज जिस फाइनैंस कंपनी में काम करता था, उसी में उस के साथ ही किशोरीलाल भी काम करता था. उस का काम लोन पास करवाना था. वह सीधासादा पारिवारिक आदमी था. इसलिए राज उस की बहुत इज्जत करता था. इस के अलावा एक वजह यह भी थी कि वह उस के पिता की उम्र का था.

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 1

दीपावली के ठीक अगले दिन यानी 24 अक्टूबर, 2014 को सवेरा होते ही उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के लोग अपनी दिनचर्या  में लीन होना शुरू हो गए थे. आर्थिक रूप से काफी संपन्न सरदार जय सिंह के घर भी सवेरा होते ही चहलपहल शुरू हो जाती थी, लेकिन उस दिन उन के यहां इस तरह खामोशी छाई थी, जैसे वहां कोई रहता ही न हो.

व्यवहारकुशल जय सिंह का खुशहाल परिवार थाना कैंट के चकराता रोड स्थित पौश इलाके आदर्शनगर में रहता था. उन की विज्ञापन एजेंसी तो थी ही, होर्डिंग्स का भी काफी बड़ा कारोबार था. उन के घर काम करने वाली नौकरानी राजो सुबह ही काम करने के लिए आ जाती थी. उस दिन भी 7 बजे के करीब वह काम करने के लिए आ गई थी.

घर का मुख्य दरवाजा देख कर उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि रोजाना उसे दरवाजा खुला मिलता था. लेकिन उस दिन बंद था. घर के अंदर से किसी तरह की आवाज भी नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था, जैसे घर खाली पड़ा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर के लोग इतनी देर तक सोए क्यों पड़े हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था.

जय सिंह सुबह ही मार्निंग वौक के लिए निकल जाते थे, लेकिन राजो के आने से पहले ही वह आ जाते थे. दरवाजे पर बाहर ताला नहीं लगा था, इसलिए राजो ने दरवाजे पर दस्तक दी. कोई बाहर नहीं आया तो उस ने कौलबेल बजाई. कौलबेल बजाने के थोड़ी देर बाद जय सिंह का 21 वर्षीय युवा बेटा हरमीत दरवाजे पर आया.

‘‘सब ठीक तो है बाबूजी, आज दरवाजा क्यों बंद है?’’ राजो ने पूछा.

उस की बात का जवाब देने के बजाय हरमीत ने कहा, ‘‘आज यहां तुम्हारा कोई काम नहीं है.’’

उस का यह जवाब राजो को अटपटा सा लगा, क्योंकि घर की साफसफाई का काम वही करती थी. जब से उस ने वहां काम शुरू किया था, एक भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब उस ने काम न किया हो. इसलिए उस ने दबी जबान से सवाल किया, ‘‘क्यों?’’

‘‘आज पानी ही नहीं आ रहा है तो तुम साफसफाई कैसे करोगी, इसलिए लौट जाओ.’’ हरमीत ने बेरुखी से कहा.

राजो को हरमीत का व्यवहार कुछ बदलाबदला सा लग रहा था. उस ने ध्यान से देखा तो हरमीत के बाएं हाथ पर रूमाल बंधा था, जिस में खून लगा था. चूंकि वह नौकरानी थी, इसलिए उस की ज्यादा सवालजवाब करने की हिम्मत नहीं हुई. लिहाजा वह लौट गई.

राजो लौट तो पड़ी, लेकिन उसे लगा कि हरमीत के इस तरह कह देने से लौटना ठीक नहीं है. बाद में वह बाबूजी और माताजी को क्या जवाब देगी. यह बात मन में आते ही वह पड़ोस में रहने वाले जय सिंह के भतीजे अजीत सिंह के घर जा पहुंची. अजीत सिंह बाहर ही मिल गए तो बोली, ‘‘साहब, मैं बाबूजी के घर काम करने गई थी, लेकिन हरमीत ने मना कर दिया. वह काम नहीं करने दे रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं, उस ने घर का दरवाजा बंद कर रखा था, इसलिए कोई दिखाई भी नहीं दिया.’’

‘‘ठीक है, तुम रुको. मैं बात करता हूं.’’ कहने के साथ ही अजीत ने जय सिंह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन हरमीत ने ही रिसीव किया. अजीत ने पूछा, ‘‘चाचाजी कहां हैं हरमीत?’’

‘‘वह घर में नहीं हैं, कहीं गए हैं.’’

‘‘ठीक है, आ जाएं तो मेरी बात कराना. और सुनो, राजो को घर का काम करने दो.’’

अजीत सिंह के कहने पर राजो दोबारा गई तो हरमीत ने दरवाजा खोल दिया और खुद जा कर बरामदे में बैठ गया. राजो ड्राईंगरूम में पहुंची तो वहां की हालत देख कर उस के होश उड़ गए. ड्राईंगरूम में खून ही खून फैला था.

खून देख कर राजो चीखते हुए बाहर भागी. राजो इतने जोर से चीखी थी कि उस की वह चीख आसपास रहने वालों ने सुन ली थी. पलभर में सब भाग कर आ गए. अजीत सिंह भी आ गए थे. राजो के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं. आते ही उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ राजो?’’

‘‘अंदर खून ही खून फैला है और मेमसाहब की लाश पड़ी है.’’

खून और लाश पड़ी होने की बात से सभी के रोंगटे खड़े हो गए. हरमीत बेहाल हालत में सिर थामे बरामदे में बैठा था. कुछ लोगों ने पूछा, ‘‘क्या हुआ हरमीत?’’

‘‘सब बरबाद हो गया भाईजी.’’ हरमीत ने बस इतना ही कहा.

लोग कुछ और पूछते, तभी घर के अंदर से 5-6 साल का एक बच्चा रोता हुआ बाहर आया. वह बहुत घबराया हुआ था और उस की पीठ में चोट के निशान थे. वह जय सिंह का नाती कंवलजीत था. कंवलजीत की हालत देख कर कुछ लोग उस की ओर दौड़े, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

डर के मारे कंवलजीत की घिग्घी बंधी हुई थी. कोई जवाब देने के बजाय उस ने अंगुली से अंदर की ओर इशारा कर दिया.

किसी ने कहा, ‘‘चलो अंदर चल कर देखते हैं, क्या बात है?’’

इस के बाद कुछ लोग हिम्मत कर के अदंर गए तो पता चला, सचमुच सब बरबाद हो चुका था. घर के अंदर एक नहीं, बल्कि 4 लाशें पड़ीं थीं और पूरे घर में खून ही खून फैला था. खून और लाशें देख कर सब गम में डूब गए. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अंदर इस तरह का दिल दहला देने वाला नजारा देखने को मिलेगा.

किसी ने घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. यह ऐसी सूचना थी, जिस से पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया. तुरंत यह सूचना संबंधित थाना कैंट पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी वी.के. जेठा पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंच गए. घर के अंदर की स्थिति दिल दहला देने वाली थी. सरदार जय सिंह, उन की पत्नी कुलवंत कौर, बेटी हरजीत कौर और नातिन सुखमणि की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.

बेटे हरमीत के हाथ में चोट लगी थी और नाती कंलवजीत भी घायल था. हरजीत कौर गर्भवती थी, जिस का समय पूरा हो चुका था. पुलिस ने तुरंत हरजीत को इस उम्मीद में दून अस्पताल पहुंचाया कि शायद गर्भ में पल रहा बच्चा बच जाए. लेकिन जांच के बाद पता चला कि बच्चा मर चुका है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए थानाप्रभारी ने घटना की सूचना एसएसपी अजय रौतेला समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी थी. त्योहार के अगले दिन की सुबह इतनी भयानक होगी, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. 4-4 हत्याओं की खबर से समूचे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था.

सूचना मिलते ही एसएसपी अजय रौतेला, एसपी सिटी अजय सिंह और एसपी देहात मणिकांत मिश्रा के अलावा अन्य थानों की पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. मामला 4 हत्याओं का था, इसलिए इस की सूचना आला अधिकारियों को भी दे दी गई थी. इसी सूचना के आधार पर डीजीपी बी.एस. सिद्धू, एडीजी राम सिंह मीना, डीआईजी संजय गुंज्याल भी आ गए थे. इस घटना से पुलिस अधिकारी हैरानपरेशान थे.

बाहर के कमरे में दरवाजे के पास खून से लथपथ 60 वर्षीय जय सिंह की लाश पड़ी थी. ड्राइंगरूम में उन की पत्नी 55 वर्षीया कुलवंत कौर, 27 वर्षीया हरजीत कौर, जिसे अस्पताल भेजा गया था और 3 वर्षीया सुखमणि की लाशें पड़ी थीं. सभी कत्ल बेहद क्रूरता से किए गए थे.

पुलिस ने लाशों का निरीक्षण किया तो सभी के पेट, छाती, गर्दन, चेहरे और हाथों पर चाकू के घाव थे. सभी लाशों से खून निकल कर फर्श पर फैला हुआ था. इस तरह क्रूरता से की गई हत्याएं देख कर पुलिस अधिकारी भी सकते में थे. फ्रिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम बुलवा ली गई थी.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार – भाग 1

देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से सटा हरियाणा का एक जिला है गुरुग्राम. इसी गुरुग्राम जिले के बादशाहपुर के बड़ा बाजार में सिटी हेल्थ सेंटर के पास रहता था मधुसूदन सिंगला. मधुसूदन की उम्र करीब 52 वर्ष थी. मधुसूदन घर में ही टेलरिंग शौप चलाता था. 22 वर्ष पहले मधुसूदन का विवाह सविता से हुआ था. सविता बादशाहपुर के ज्ञान भारती स्कूल में टीचर थी.

उन के 3 बच्चे हुए, जिन में 2 बेटियां और एक बेटा है. इस समय बड़ी बेटी 21 साल की, दूसरी बेटी 19 साल की और बेटा 18 साल का है. तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. रोज तीनों बच्चे कालेज चले जाते थे. सविता भी स्कूल बच्चों को पढ़ाने के लिए चली जाती थी. घर दुकान में अकेला रह जाता था मधुसूदन.

26 जून 2023 को भी मधुसूदन रोज की तरह घर में अकेला था. दोपहर ढाई बजे के करीब मधुसूदन की बड़ी बेटी रवीना कालेज से वापस घर आई तो घर का मेन गेट खुला हुआ था. गेट से जब वह अंदर पहुंची तो कमरे में सामने ही अपने पिता को खून से लथपथ पड़ा देखा. अपने पिता को उस हाल में देख कर उसकी चीख निकल गई. वह फौरन वहां से तेजी से बाहर निकली और थोड़ी दूर पर रहने वाले अपने चाचा सोनू के पास पहुंच गई.

उस ने रोतेबिलखते चाचा को पिता के खून से लथपथ कमरे में पड़े होने की बात बता दी. यह सुनते ही सोनू और घर के अन्य लोग तेज कदमों से मधुसूदन के घर पहुंच गए. सोनू और घर वालों ने जब मधुसूदन को देखा तो पता चला कि मधुसूदन की मौत हो चुकी है. चीखपुकार सुन कर आसपास के लोग भी वहां एकत्र हो गए. उन में से ही किसी व्यक्ति ने स्थानीय बादशाहपुर थाने को घटना की सूचना दे दी.

खून से लथपथ मिली लाश

बादशाहपुर पुलिस और पुलिस के आला अधिकारीगण घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक मधुसूदन के सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, यह बात उस के सिर के घाव देखने के बाद पता चली. इस के अलावा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से काटा गया था.

कमरे का सारा सामान बिखरा पड़ा था, अलमारियां खुली पड़ी थीं. शुरुआती जांच में मामला लूट के बाद हत्या का लग रहा था. अनुमान लगाया जा रहा था कि मधुसूदन घर में अकेले थे, इसलिए कोई बदमाश लूट के इरादे से घर में घुसा, मधुसूदन ने विरोध किया तो बदमाश ने उन की हत्या कर दी होगी.

बदमाश घर से कोई सामान ले जाने में सफल हुआ कि नहीं, ये पता नहीं चला. पति की हत्या की खबर मिलने पर सविता भी घर आ गई थी. पुलिस ने उस से पूछताछ की तो उस ने किसी पर शक नहीं जताया. घर से क्या कुछ गायब हुआ है तो सविता भी कुछ न बता सकी.

पुलिस ने आसपास के लोगों से जानकारी जुटाई तो पता चला कि मृतक के घर की जमीन के लेनदेन को ले कर कुछ समझौता हुआ था, जिस के एवज में कई लाख रुपए मिले थे, जिस की सूचना उन के परिचित व कुछ निजी लोगों को थी. हो सकता है, उन पैसों के कारण यह घटना तो अंजाम नहीं दी गई. यह बात भी पता चली कि घटना से पहले मधुसूदन के पास बिना मूंछों वाला एक व्यक्ति बैठा देखा गया था.

क्राइम ब्रांच ने की जांच शुरू

फिलहाल पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. फिर थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस हत्याकांड की जांच क्राइम ब्रांच सेक्टर 39 की यूनिट को सौंप दी गई. इस यूनिट के प्रभारी थे पंकज कुमार.

थाना पुलिस के सहयोग से क्राइम ब्रांच यूनिट ने केस की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी कैमरे खंगाले. उन कैमरों की फुटेज में कोई भी संदिग्ध व्यक्ति नहीं दिखा, लेकिन घटना से पहले मधुसूदन की पत्नी जरूर घर आतीजाती एक युवक के साथ दिखी. उस युवक के हाथ में एक छाता था.

घटना से पहले और बाद में भी उन का साथ जाना पुलिस वालों के जेहन में शक पैदा कर गया. आनेजाने के बीच का समय काफी ज्यादा था. घटना भी दोपहर एक बजे से दो बजे के बीच अंजाम दी गयी थी. घटना का समय और उन दोनों के आने जाने का समय इस बात का यकीन दिला रहा था कि मधुसूदन की हत्या इन दोनों द्वारा ही की गई है.

सविता के साथ वाले युवक के बारे में पता किया गया तो पता चला कि सविता के साथ दिखने वाला युवक आशीष वर्मा उर्फ टीनू है. वह सविता के स्कूल में ही टीचर है. जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने दोनों के खिलाफ और सुबूत जुटाने शुरू किए.

पुलिस ने सविता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में सविता द्वारा एक नंबर पर हर रोज ज्यादा बात किए जाने की बात पता चली. घटना वाले दिन भी उस फाने पर बातें हुई थीं. घटना के समय दोनों के नंबरों की लोकेशन भी घटनास्थल पर पाई गई. जांच करने पर वह नंबर किसी और का नहीं, बल्कि आशीष वर्मा का ही निकला. आशीष बादशाहपुर में ही रहता था.

इस के बाद अगले ही दिन 27 जून, 2023 को पुलिस ने सविता और आशीष वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. बादशाहपुर थाने ला कर जब सविता और आशीष से पूछताछ की गई तो दोनों पुलिस को बरगलाने लगे, लेकिन जब पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज, काल डिटेल्स और लोकेशन रिपोर्ट दोनों के सामने सुबूत के तौर पर रखी तो दोनों समझ गए कि इन का भांडा फूट गया है. तब दोनों ने इस मर्डर केस का जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या के पीछे की पूरी कहानी बयान कर दी.

स्कूल के टीचर से हो गया प्यार

मधुसूदन सिंगला के साथ सविता 22 साल से किसी तरह निभा रही थी. मधुसूदन शराब का शौकीन था. ये शौक उस की आदत में इस कदर शुमार था, कि वह हर रोज शराब पीता था. यहां तक तो चलो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन इस के बाद जो होता था, वह बरदाश्त के बाहर वाला मामला था. शराब पीने के बाद मधुसूदन हैवान बन जाता था, वह रोज किसी न किसी बात को ले कर सविता से झगड़ पड़ता था और उस की जम कर पिटाई कर देता था.

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जालौन जिले का एक ऐतिहासिक कस्बा है- कालपी. इसी कालपी कस्बे के स्टेशन रोड पर नरेश कुमार तिवारी सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी उमा के अलावा 2 बेटियां राधा व सुधा थीं. नरेश कुमार प्राइवेट नौकरी करते थे. उन की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार की दोजून की रोटी जुटा पाते थे.

गरीबी में पलीबढ़ी राधा जब जवान हुई तो उस के रंगरूप में निखार आ गया. हर मांबाप बेटी के लिए अच्छा घर तथा सीधा शरीफ वर ढूंढते हैं, वे यह नहीं देखते कि बेटी ने अपने जीवनसाथी को ले कर क्या सपने संजोए हुए हैं. राधा के मातापिता ने भी बेटी का मन नहीं टटोला. उन्होंने अश्वनी दुबे से उस का विवाह रचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री भर कर दी.

अश्वनी के पिता ओमप्रकाश दुबे जालौन जिले के माधौगढ़ थाना अंतर्गत सिरसा दोगड़ी गांव के निवासी थे. अश्वनी दुबे उन का इकलौता बेटा था. ओमप्रकाश किसान थे. किसानी में बेटा अश्वनी भी उन का हाथ बंटाता था. खेती के अलावा वह दुधारू जानवर भी पाले हुए थे. दूध के कारोबार से उन की अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

अश्वनी दुबे जैसा मेहनती और सीधासादा दामाद पा कर नरेश कुमार निश्ंचत हो गया था कि बेटी का जीवन संवर गया. राधा के मन के दर्पण में क्याक्या दरका, यह कोई नहीं जानता था. राधा एक महत्त्वाकांक्षी युवती थी. उस ने अपने मन में सपना संजोया हुआ था कि शादी के बाद उस के पास बड़ा सा घर, खूब सारा पैसा और स्मार्ट पति होगा. लेकिन मिला क्या? मामूली सा घर और रोटी के लिए जूझता हुआ मामूली सा पति.

अश्वनी के पास थोड़ी सी जमीन थी, जिस के सहारे वह गृहस्थी की नैया को खे रहा था. ससुर और पति के खेत पर चले जाने के बाद राधा अपने टूटे हुए सपनों को जोडऩे की उधेड़बुन में लगी यही सोचती कि अब कभी उस की चाहतें पूरी नहीं होंगी.

बहरहाल, शादी हुई थी तो निभाना ही था और बच्चे भी होने ही थे. राधा ने पहले बेटी साहनी को जन्म दिया, उस के बाद बेटे को. लेकिन 2 बच्चों के बाद भी राधा दिल से अश्वनी के साथ जुड़ नहीं पाई. उसे हमेशा यह एहसास सालता रहता था कि उसे मनपसंद पति नहीं मिला.

राधा के पड़ोस में रहता था नेत्रपाल सिंह. वह कुंवारा था. पड़ोसी होने के नाते उस का राधा के घर आनाजाना था. राधा को वह भाभी कहता था. देवरभाभी के नाते कभीकभार राधा उस से हंसबोल लिया करती थी.

एक दिन राधा गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार में गई तो वहां उसे नेत्रपाल सिंह मिल गया. नेत्रपाल सिंह ने उस से कहा, “भाभी, चलो आज आप को चाट खिलाऊं. वो देखो, उस ठेले पर कनपुरिया चाट मिलती है.”

चाट का नाम सुन कर राधा के मुंह में पानी आ गया. फिर वह सकुचाते हुए बोली, “लेकिन मेरे पास तो अब पैसे बचे ही नहीं है.”

“अरे भाभी, पैसों की बात मत करो, मैं हूं न, मैं खिलाउंगा तुम्हें.”

राधा उस की बात टाल नहीं सकी. चाट वाले के पास पहुंच कर नेत्रपाल सिंह बोला, “यार रामू, जरा बढिय़ा सी चाट खिलाना हमारी भाभी को.”

नेत्रपाल डालने लगा राधा पर डोरे

कुछ ही देर में चाट का पत्ता राधा के हाथ में था. राधा ने चाट खाई, फिर पानी पूरी भी खाई. चूंकि रामू नेत्रपाल सिंह का दोस्त था, अत: उस ने राधा को भरपूर आदर के साथ हर चीज पेश की. चाट खाने के बाद नेत्रपाल सिंह ने रामू को पैसे देने चाहे तो उस ने नाराजगी से कहा, “कैसी बात करता है यार, तेरी भाभी मेरी भाभी नहीं है क्या?”

बाजार से लौटते वक्त नेत्रपाल ने राधा का थैला उठाया और उसे घर के बाहर तक छोड़ गया. रास्ते में दोनों के बीच खूब बातें हुईं. नेत्रपाल का बातबात में खिलखिलाना और राधा के चेहरे को निहारना, उसे अच्छा लगा था. पहली बार उस ने नेत्रपाल को गौर से देखा था. वह स्मार्ट भी था और स्वस्थ भी. राधा की कद्र भी खूब कर रहा था.

जाते वक्त उस ने नेत्रपाल का शुक्रिया अदा किया तो वह हंसते हुए बोला, “मेरी सारी मेहनत को इस एक शब्द में बहा दिया न भाभी आप ने. अपनों को भी शुक्रिया कहा जाता है क्या?”

उस की यह अदा भी राधा को बहुत अच्छी लगी थी. उस सारी रात राधा की आंखों में नेत्रपाल सिंह का चेहरा ही घूमता रहा. उस का अपनापन, उस का अंदाज उस के उदास मन की तनहाइयों को सहलाता रहा.

तीसरे दिन की बात थी. राधा को सुबह खाना बनाने में देर हो गई थी. अश्वनी ने कहा, “राधा हमारा खाना तुम खेत पर ही दे जाना.”

खाना बना कर राधा ने टिफिन में डाला. बेटी को पड़ोस के घर छोड़ा और मासूम बेटे को गोद में ले कर वह खेत की ओर बढ़ चली. टिफिन पति को थमा कर वह खेत से घर की ओर आ ही रही थी कि रास्ते में नेत्रपाल सिंह टकरा गया. देखते ही बोला, “अरे भाभी, तुम यहां?”

“हां, तुम्हारे भैया का खाना देने खेत पर गई थी.” राधा ने मुसकरा कर जवाब दिया.

“लाओ बेटे को हमें दे दो. हम ले कर चलते हैं,” कहते हुए नेत्रपाल सिंह ने राधा की गोद से बच्चा ले लिया.

बच्चा पकड़तेे वक्त उस की अंगुलियां राधा के उरोजों के साथसाथ उस के हाथों को छू गईं. पता नहीं उस स्पर्श में ऐसा क्या था कि राधा की देह में एक सनसनी सी भर गई. पति के स्पर्श से उस ने कभी ऐसा रोमांच महसूस नहीं किया था.

घर पहुंच कर नेत्रपाल ने अनुज को गोद से उतार कर राधा की गोद में दे दिया तो एक बार फिर दोनों की अंगुलियां टकरा गईं. वही सनसनी फिर राधा की देह से गुजर गई. नेत्रपाल ने मुसकरा कर कहा, “अब चलता हूं भाभी.”

“अरे ऐसे कैसे जाओगे? तुम ने मेरी इतनी मदद की है, बदले में मेरा भी तो फर्ज बनता है. अंदर चलो, चाय पी कर जाना.” कहते हुए राधा ने घर का ताला खोला और नेत्रपाल का हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.

भीतर आ कर उस ने बेटे को गोद से उतार कर बिस्तर पर लिटा दिया. इस के बाद उस ने साड़ी का पल्लू सिर से उतारा ही था कि झटके से उस का जूड़ा खुल गया. लंबे बाल कंधों पर लहराने लगे. नेत्रपाल को राधा की यह दिलकश अदा भा गई.

विवाहिता के प्यार में फंसा समीर – भाग 1

आग भड़की तो धुआं खिड़कियों और दरवाजों की दराजों से बाहर निकलने लगा. पड़ोसियों ने तुरंत इस बात की जानकारी फायर और पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने तत्काल इस बात की सूचना मुंबई के उपनगर चैंबूर के थाना पुलिस को दी. सूचना के अनुसार लल्लूभाई कंपाउंड की इमारत की पांचवीं मंजिल के किसी फ्लैट में आग लगी थी.

उस में से निकलने वाले धुएं से मानव शरीर के जलने की गंध आ रही थी. उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर माली थे. सूचना गंभीर थी, इसलिए घटना की सूचना अपने सीनियर पुलिस इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को दे कर वह तुरंत कुछ सिपाहियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

सबइंसपेक्टर माली के पहुंचने तक वहां काफी भीड़ जमा हो चुकी थी. आग बुझाने वाली गाडि़यां भी आ चुकी थीं और उन्होंने आग पर काबू भी पा लिया था. सबइंसपेक्टर माली साथियों के साथ फ्लैट के अंदर पहुंचे तो वहां की स्थिति देख कर स्तब्ध रह गए.

कमरे में एक औरत बेहोशी की हालत में रुई के गद्दे में लिपटी थी. गद्दे के साथ उस के सारे कपड़े ही नहीं, सीना, पेट, हाथ, कमर और दोनों पैर भी बुरी तरह जल गए थे. गौर से देखने पर पता चला कि उस के सिर के ऊपरी हिस्से में गहरा घाव था, जिस से अभी भी खून रिस रहा था. वहां तेज धार वाला एक बड़ा सा खून से सना चाकू पड़ा था. साफ था, पहले हत्यारों ने महिला पर चाकू से वार किया था. उस के बाद सुबूत मिटाने के लिए उसे गद्दे में लपेट कर आग लगा दी थी.

सबइंसपेक्टर माली ने देखा कि महिला की सांस चल रही है तो उन्होंने उसे तुरंत एंबुलैंस में डाल कर उपचार के लिए घाटकोपर राजा वाड़ी असपताल भिजवा दिया. इस के बाद वह सुबूतों की तलाश में फ्लैट का कोनाकोना छानने में लग गए.

पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि महिला का नाम सोफिया शेख था. वह अपनी बेटी के साथ वहां रहती थी. श्री माली अपने सहायकों के साथ सोफिया के बारे में जानकारी जुटा रहे थे कि घटना की सूचना पा कर ज्वाइंट सीपी कैसर खालिद, एडिशनल सीपी लखमी गौतम, एसीपी विजय मेरु, सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत, इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े, प्रमोद कदम घटनास्थल पर आ पहुंचे थे.

अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण कर के सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने सहायकों की मदद से चाकू, खून का नमूना, सोफिया का मोबाइल फोन कब्जे में लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर थाने आ गए.

थाने आ कर सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत हत्यारों तक पहुंचने का रास्ता तलाश करने लगे. घटनास्थल की स्थिति से साफ था कि यह लूटपाट का मामला नहीं था, क्योंकि फ्लैट का सारा समान यथास्थिति पाया गया था. ऐसे में सावाल यह था कि तब सोफिया की हत्या की कोशिश क्यों की गई थी.

सोफिया इस स्थिति में नहीं थी कि वह इस सवाल का जवाब देती. वह उस समय जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. वैसे भी उस के बचने की संभावना कम थी. आखिर वही हुआ, जिस का सभी को अंदाजा था. लाख कोशिश के बाद भी डाक्टर सोफिया को बचा नहीं सके. उसी दिन शाम लगभग 6 बजे सोफिया ने दम तोड़ दिया था.

सोफिया की मौत के बाद हत्यारों के बारे में पता चलने की पुलिस की उम्मीद खत्म हो गई थी. अब उन्हें अपने तरीके से कातिलों तक पहुंचना था. सोफिया की हत्या किस ने और क्यों की, वे कहां के रहने वाले थे? अब पुलिस के लिए यह एक रहस्य बन गया था.

सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत ने इस मामले की जांच इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े को सौंप दी थी. सीनियर इंसपेक्टर शंकर सिंह राजपूत के मार्गदर्शन में इंसपेक्टर चंद्रशेखर नलावड़े ने इंसपेक्टर प्रमोद कदम, असिस्टेंट इंसपेक्टर पोपट सालुके, सबइंसपेक्टर संदेश मांजरेकर, सिपाही भरत ताझे, राजेश सोनावणे की एक टीम बना कर मामले की तफ्तीश तेजी से शुरू कर दी.

चंद्रशेखर की इस टीम ने सोफिया की बेटी, इमारत में रहने वालों और उस के नातेरिश्तेदारों से लंबी पूछताछ की. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी. लेकिन काफी मेहनत के बाद भी उस के कातिलों तक पहुंचने का पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला.

जब इस पूछताछ से पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला तो पुलिस ने सोफिया के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. पुलिस की नजरें काल डिटेल्स के उस नंबर पर जम गईं, जो उस दिन सोफिया पर हमला होने से पहले आया था.

वही अंतिम फोन भी था. वह फोन 12 बज कर 03 मिनट पर आया था. सोफिया ने उसे रिसीव भी किया था. इस का मतलब उस समय तक वह जीवित थी. इस के बाद ही उस फ्लैट में आग लगने की सूचना पुलिस और फायरब्रिगेड को दी गई थी. इस का मतलब फोन करने के बाद 15 मिनट के अंदर हत्यारे अपना काम कर के चले गए थे.

इंसपेक्टर चंद्रशेखर की टीम ने एक बार फिर इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. उस समय की तस्वीरों को गौर से देखा गया. लेकिन कोई स्पष्ट तस्वीर पुलिस को दिखाई नहीं दी. इस के बाद पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई. तब पुलिस ने यह पता किया कि वह नंबर किस के नाम है और वह कहां रहता है?

पुलिस को इस संबंध में तुरंत जानकारी मिल गई. वह किसी जावेद के नाम था. पुलिस को उस का पता भी मिल गया था. पुलिस उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर जावेद की बहन और भाभी मिलीं तो पुलिस ने पूछा कि उस का फोन बंद क्यों है? तब दोनों ने बताया कि उस का फोन इन दिनों उस के जिगरी दोस्त पप्पू के पास है. पप्पू का पता भी दोनों ने बता दिया था. इसलिए पुलिस टीम वहां से सीधे पप्पू के घर जा पहुंची.

पप्पू भी घर से गायब था. पुलिस टीम ने उस फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया, जिस का उपयोग पप्पू कर रहा था. इस के बाद सर्विलांस की मदद से 12 दिसंबर, 2013 की दोपहर 2 बजे पुलिस टीम ने पप्पू को शिवडी के झकरिया बंदर रोड से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर जब पप्पू से सोफिया की हत्या के बारे में पूछताछ की जाने लगी तो पहले उस ने स्वयं को निर्दोष बताया. लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ ढेर सारे सुबूत थे, इसलिए उसे घेर कर सच्चाई उगलवा ली. आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि मुन्ना उर्फ परवेज शेख के साथ उसी ने दुबई में रहने वाले समीर के कहने पर सोफिया की हत्या की थी.

इस के बाद पुलिस ने पप्पू की निशानदेही पर घाटकोपर के तिलकनगर के सावलेनगर के रहने वाले मुन्ना को उस के घर छापा मार कर गिरफ्तार कर लिया. पप्पू के पकड़े जाने से पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दोनों को मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर के 7 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में दोनों ने जो बताया, उस के अनुसार सोफिया की हत्या की यह कहानी कुछ इस तरह थी.

40 वर्षीया सोफिया शेख अपने 2 बच्चों के साथ चैंबूर मानखुर्द के लल्लूभाई कंपाउंड की बिल्डिंग नंबर 60 की बी-विंग के फ्लैट नंबर 5/3 में रहती थी. उस का 13 वर्षीय बेटा रत्नागिरि के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था और वहीं बोर्डिंग के हौस्टल में रहता था. जबकि 10 वर्षीया बेटी सोफिया के साथ ही रहती थी. घटना के समय वह स्कूल गई हुई थी.

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 1

कानपुर देहात जनपद के थाना मूसानगर का एक गांव है कृपालपुर, जिस में रामसुमेर यादव अपने 2 बेटों रघुराज व सुरेंद्र के साथ रहता था. रामसुमेर की खेतीबाड़ी की कुछ जमीन थी, जिस से परिवार का भरणपोषण होता था. वह भले ही संपन्न किसान नहीं था, लेकिन गांव में उस की अच्छीभली इज्जत थी.

रामसुमेर का बड़ा बेटा रघुराज तो पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगा था, लेकिन सुरेंद्र का मन खेतीबाड़ी में नहीं लगता था. समय के साथ रामसुमेर ने रघुराज का घर बसा दिया, लेकिन सुरेंद्र के साथ परेशानी यह थी कि उस की संगत ठीक नहीं थी. वह नशा करने का आदी हो गया था. नशे में वह लड़ाईझगड़ा और मारपीट करता तो उस की शिकायत रामसुमेर तक पहुंचती.

ऐसे में लोगों ने सलाह दी कि सुरेंद्र का विवाह कर दिया जाए. इस के पांव में गृहस्थी की बेडिय़ां पड़ेंगी तो यह अपनेआप सुधर जाएगा. लोगों की सलाह मान कर रामसुमेर सुरेंद्र के लिए लडक़ी की तलाश में जुट गया. नतीजा सार्थक रहा. कुछ ही दिनों बाद सुरेंद्र का विवाह घाटमपुर तहसील के सजेती गांव निवासी सूरज सिंह यादव की बेटी प्रियंका से हो गया.

प्रियंका काफी खूबसूरत थी. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी खूबसूरत बीवी मिलेगी. उस के रूपसौंदर्य ने उस पर जादू सा कर दिया. प्रथम मिलन की रात प्रियंका जिस तरह उसे समर्पित हुई, उस से सुरेंद्र उस का दीवाना हो गया. सुंदर और समझदार प्रियंका ने सुरेंद्र के आवारा कदमों में ऐसी बेडिय़ां डालीं कि वह घरगृहस्थी के कामों में रम गया.

विवाह के बाद परिवार का खर्च बढ़ा तो खेती की पैदावार से दोनों भाइयों का गुजारा होना मुश्किल हो गया. तंगी की वजह से परिवार में कलह शुरू हो गई. यह देख कर रामसुमेर ने दोनों बेटों का बंटवारा कर दिया. बंटवारे के बाद सुरेंद्र प्रियंका के साथ अलग रहने लगा. उस का मन खेती में कम लगता था, इसलिए वह किसी दूसरे काम की तलाश में जुट गया.

गांव के कुछ लडक़े गुजरात के सूरत शहर की कपड़ा मिलों में काम करते थे. वे काफी खुशहाल थे. सुरेंद्र ने पत्नी से सूरत जाने की बात की तो उस ने इजाजत दे दी. इस के बाद वह अपने एक दोस्त के साथ सूरत चला गया. वहां वह उसी दोस्त के साथ रहा. उसी के सहयोग से उसे एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, बाद में वह किराए का कमरा ले कर अलग रहने लगा.

सुरेंद्र सूरत में था और प्रियंका गांव में. नईनवेली दुलहन को पति के साथ रहने के बजाय तनहाई में रहना पड़ रहा था. उस की उमंगें दम तोड़ रही थीं. पति से सिर्फ उस की मोबाइल के जरिए बात हो पाती थी. प्रियंका अपने मन की बात पति से कहती तो वह हफ्ते भर की छुट्टी ले कर घर आ जाता.

तब वह उस से कहती, “तुम सूरत में रहते हो और मैं यहां गांव में अकेली पड़ी रहती हूं, क्यों नहीं मुझे भी अपने साथ ले चलते?”

सुरेंद्र हर बार प्रियंका से वादा करता कि अगली बार जब आएगा तो वह उसे साथ ले जाएगा. लेकिन वह दिन कभी नहीं आया. इस तरह 4 साल से अधिक बीत गए. इस दौरान प्रियंका 2 बच्चों आलोक और अंशिका की मां बन गई.

प्रियंका की सभी जरूरतें तो पति के हिस्से की जमीन तथा उस के भेजे पैसे से पूरी हो जाती थीं, लेकिन देह की जरूरतें वह कैसे पूरी करती? तनहा रातों में बिस्तर उसे काटने दौड़ता था. आखिर उस ने एक ऐसे मर्द की तलाश शुरू कर दी, जो उस के तनमन का सच्चा साथी बन सके.

प्रियंका के घर से चंद कदमों के फासले पर करन सिंह रहता था. वह शरीर से हृष्टपुष्ट और भरपूर जवान था. वह नौकरी कर के अच्छा कमाता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. वह सिगरेट और शराब का शौकीन था. सुरेंद्र और करन रिश्ते में चाचाभतीजा थे.

सुरेंद्र परिवार से अलग रहता था. चूंकि वह सूरत में नौकरी करता था और उस की पत्नी बच्चों के साथ गांव में अकेली रहती थी, इसलिए करन ने उस के घर आनाजाना शुरू कर दिया. सुरेंद्र जब छुट्टी पर घर आता, दोनों की सुरेंद्र के घर पर ही महफिल जमती.

करन प्रियंका को चाची कहता था. प्रियंका के मन में पाप समाया तो वह करन से हंसीमजाक करने लगी. कभीकभी मजाक में वह कोई ऐसी बात कह देती कि करन झेंप जाता. करन कोई दूधपीता बच्चा तो था नहीं, इसलिए जल्द ही समझ गया कि चाची उस से क्या चाहती है. परिणामस्वरूप वह भी उस के रूपसौंदर्य की तारीफें करते हुए उस के आगेपीछे मंडराने लगा.

दो बच्चों की मां बनने के बावजूद प्रियंका के रूपलावण्य में कोई कमी नहीं आई थी. उस की चाल में ऐसी मस्ती थी कि देखने वालों के मुंह से आह निकलती थी. गांव के कई युवक उस का दीदार करने को तरसते थे. एक करन ही ऐसा था, जिसे प्रियंका के पास घंटों बैठने और बतियाने का मौका मिलता था. प्रियंका उस से खूब हंसीमजाक करती थी.

चूंकि करन सुरेंद्र का भतीजा था, इसलिए उस ने कभी चाचीभतीजे के रिश्ते से अलग हट कर नहीं देखा. लेकिन सुरेंद्र को क्या मालूम था कि उस का भतीजा ही उस की पीठ में छुरा घोंपेगा. घर आतेजाते करन अक्सर प्रियंका की तारीफें करता तो वह गदगद हो जाती.

एक दिन करन जब उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा तो वह बोली, “ऐसी खूबसूरती किस काम की, जिस की पति ही कद्र न करे. मैं ने कितनी बार कहा कि साथ ले चलो, लेकिन वह हर बार टाल जाते हैं.”

करन को प्रियंका की किसी ऐसी ही कमजोर नस की तलाश थी. जब उस ने अपने पति की बेरुखी बयां की तो करन उस का हाथ थाम कर बोला, “तुम क्यों चिंता करती हो चाची, आज से तुम्हारे सारे दुख मेरे और मेरी सारी खुशियां तुम्हारी.”

“सच करन?” प्रियंका ने मुसकरा कर पूछा.

“हां चाची, सोलह आने सच.”

“तो कल दोपहर में आना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.”

करन ने वह रात करवटें बदलते हुए काटी. सारी रात वह प्रियंका के खयालों में डूबा रहा. अगले दिन दोपहर होते ही वह प्रियंका के घर जा पहुंचा.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 1

अभी सुबह का उजाला भी ठीक से फैला नहीं था कि मैनपुरी कोतवाली के गेट से एक महिला अंदर घुसी. वह काफी अस्तव्यस्त और घबराई हुई लग रही थी, इसलिए ड्यूटी पर तैनात संतरी ने आगे बढ़ कर पूछा, “कहो, कैसे आई?”

“साहब से मिलना है.”

“क्यों, क्या परेशानी है?” संतरी ने पूछा.

संतरी का इतना कहना था कि महिला रोने लगी. संतरी ने उसे चुप कराते हुए कहा, “साहब तो अभी आए नहीं हैं. तुम अपनी परेशानी बताओ. अगर कोई ज्यादा परेशानी वाली बात होगी तो मैं साहब से जा कर बता दूंगा.”

“मेरे पति ने रात में आत्महत्या कर ली है. उन की लाश घर में पड़ी है.” महिला ने सिसकते हुए कहा.

इस के बाद संतरी महिला को ड्यूटी पर तैनात मुंशी के पास ले गया और उसे पूरी बात बताई. मामला गंभीर था, इसलिए मुंशी ने संतरी से कोतवाली प्रभारी को सूचना देने के लिए कहा.

सूचना पा कर कुछ ही देर में कोतवाली प्रभारी मनोहर सिंह यादव आ गए. उन्होंने महिला को अपने कक्ष में बुला कर पूछा,

“क्या नाम है तुम्हारा?”

“जी प्रेमलता, घर में सब पिंकी कहते हैं.”

“कहां से आई हो?”

“नगला कीरत से. वहीं अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी.”

“पति का क्या नाम था?”

“गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू.”

“बच्चे कितने हैं?”

“2, बेटा 8 साल का और बेटी 5 साल की है.”

प्रेमलता जिस तरह टकर टकर मनोहर सिंह के सवालों का जवाब दे रही थी, उस से उन्हें उस पर संदेह हुआ. जिस औरत का पति मरा हो, वह इस तरह कतई बातें नहीं कर सकती. उन्होंने पूछा, “यह सब हुआ कैसे?”

“साहब, हम क्या बताएं. रात को हम सब खाना खा कर सोए और सवेरे उठे तो उन की लाश मिली. आप चलिए और लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम करा दीजिए. हम उन का जल्दी से अंतिम संस्कार करना चाहते हैं.”

आगे कुछ पूछने के बजाय कोतवाली प्रभारी कुछ सिपाहियों और प्रेमलता को साथ ले कर कीरतपुर नगला जा पहुंचे. प्रेमलता के घर के सामने भीड़ लगी थी. भीड़ को हटा कर मनोहर सिंह अंदर पहुंचे तो कमरे में पड़ी चारपाई अस्तव्यस्त हालत में पड़ी थी.

मनोहर सिंह ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर चोट का कहीं कोई निशान नहीं था. गले पर जरूर कुछ इस तरह का निशान था, जो गला दबाने पर पड़ जाते हैं. उन्हें जो आशंका थी, लाश देख कर वह सच नजर आ रही थी. घर में एक ही दरवाजा था, उसी से अंदर आया या बाहर जाया जा सकता था. प्रेमलता का कहना था कि रात में उस ने खुद कुंडी लगाई थी.

मनोहर सिंह ने औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद उन्होंने एक बार फिर प्रेमलता से पूछताछ की. उस का कहना था कि वह रहते भले तनाव में थे, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़े. शाम को सब ठीकठाक था. बात भी अच्छी तरह कर रहे थे. कहीं से नहीं लगता था कि वह रात में आत्महत्या कर लेंगे.

पूछताछ में पता चला कि मृतक गवेंद्र सिंह की सरकारी नौकरी थी. वह सरकारी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. वह बहुत खुशदिल था. हर किसी से हमेशा हंस कर मिलता था. मनोहर सिंह को गवेंद्र सिंह की आत्महत्या का यह मामला पूरी तरह से संदिग्ध लग रहा था, लेकिन जब तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं आ जाती, वह कुछ नहीं कर सकते थे.

प्रेमलता ने 6 बजे ही अपने ससुर रामसेवक को फोन कर के गवेंद्र की मौत की सूचना दे दी थी. उसी सूचना पर रामसेवक 9 बजे घर वालों के साथ नगला कीरतपुर पहुंचे तो पुलिस वहां मौजूद थी. बेटे की लाश देख कर रामसेवक ने रोते हुए कहा,

“साहब, मेरे बेटे ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. आखिर वह आत्महत्या क्यों करेगा, उसे किसी चीज की कमी थोड़े ही थी.”

“कोई बात नहीं, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से सब पता चल जाएगा. उस के पहले हम कुछ नहीं कह सकते.” मनोहर सिंह ने उसे आश्वासन दिया.

मनोहर सिंह ने मृतक के पिता रामसेवक की ओर से अपराध संख्या 1341/2015 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया था. मनोहर सिंह ने मुखबिरों से प्रेमलता के बारे में पता लगाने को कहा, क्योंकि उन्हें उस का चरित्र संदिग्ध लग रहा था.

आखिर जब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक की मौत दम घुटने से हुई थी. उस की गला दबा कर हत्या की गई थी. ऐसे में संदेह प्रेमलता पर ही था, क्योंकि घर में मृतक के साथ वही थी और थाने आ कर उस ने झूठ भी बोला था.

मनोहर सिंह ने पूरे परिवार को इकट्ठा किया तो उन की नजरें मृतक के बच्चों पर जम गईं. हत्या वाली रात वे भी साथ थे. बच्चे डरे हुए लग रहे थे. बेटी तो छोटी थी, लेकिन बेटा उमंग 8 साल का था. वह कुछ बता सकता है, यह सोच कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और प्यार से पुचकार कर पूछा तो उस ने कहा, “मम्मी ने बबलू अंकल और 2 लोगों के साथ मिल कर पापा को मारा है.”

अब क्या था, पुलिस ने तुरंत प्रेमलता उर्फ पिंकी को हिरासत में ले लिया. लेकिन जब उस से हत्या में शामिल बबलू तथा 2 अन्य लोगों के बारे में पूछा गया तो उस ने कहा कि न वह बबलू को जानती है और न 2 अन्य लोगों को. उमंग ने बबलू का नाम तो बता दिया था, लेकिन वह कौन था, कहां का रहने वाला था, यह सब वह नहीं बता सका था.

पुलिस बबलू के बारे में पता करने लगी. उसी बीच उसे पता चला कि प्रेमलता इन दिनों आगरा की लायर्स कालोनी स्थित आईआईएमटी से नॄसग की पढ़ाई कर रही थी और वहीं कमरा ले कर रहती थी. इस से पुलिस को लगा कि कहीं बबलू आगरा का ही रहने वाला तो नहीं है.

पुलिस वहां जा कर बबलू के बारे में पता लगाने की सोच ही रही थी कि प्रेमलता से मिलने एक लडक़ा आया. उस ने थानाप्रभारी से प्रेमलता को अपनी बहन बता कर मिलने की गुजारिश की तो मनोहर सिंह ने उसे प्रेमलता से मिलने की इजाजत दे दी.