बीबी का दलाल : क्या थी शबनम की मजबूरी – भाग 1

नाम से ही जाहिर है कि उस के नाम के आगे बंगाली विशेषण महज इसलिए लग गया था कि वह मूलरूप से बंगाल का रहने वाला है. पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के गांव चंडीपुरा से अपनी जिंदगी का सफर और दौड़ शुरू करने वाले महज 27 वर्षीय साजिद बंगाली को ढेर सा पैसा कमाने के लिए अपनी मंजिल भोपाल आ कर मिली थी.

भोपाल की गिनती बेहद शांत और खूबसूरत शहरों मेें बेवजह नहीं होती. दुनिया भर की सर्वे रिपोर्ट्स मानती हैं कि बसने के लिहाज से भोपाल एक बेहतरीन शहर है. लेकिन इन दिनों भोपाल एक और जिस खूबी के चलते बदनाम हो रहा है वह धड़ल्ले से पसरता देहव्यापार है. अब तो इस में विदेशी लड़कियों ने भी पैठ बना ली है.

साजिद भोपाल आया तो था कामकाज की तलाश में, लेकिन काफी मेहनत और मशक्कत के बाद भी मनमाफिक काम और दाम नहीं मिले तो उस का माथा भन्ना गया. 2 साल पहले तक वह मुंबई में कपड़े काटने का काम करता था. मुंबई खर्चीला और महंगा शहर है, लिहाजा अच्छी आमदनी वाले भी बस पेट भर खापी पाते हैं, मौजमस्ती और ऐशोआराम की जिंदगी तो हाड़तोड़ मेहनत करने वालों को भी नसीब नहीं होती.

2 साल पहले अपने एक दोस्त की सलाह पर साजिद भोपाल आया तो उस के साथ उस की पत्नी शबनम (बदला नाम) भी थी. साजिद को उम्मीद थी कि अगर भोपाल में भी मुंबई के बराबर आमदनी हो तो उस की माली हालत सुधर जाएगी, भोपाल में रहने और खाने पीने पर खर्च भी कम होगा. कुछ दिन उस का दोस्त उस के साथ भोपाल में रहा लेकिन मुनासिब काम न मिलने पर नाउम्मीद हो कर वापस मुंबई चला गया.

साजिद भी शायद वापस चला जाता लेकिन पुराने भोपाल में रहते उस ने पैसा कमाने का एक जो शार्टकट देखा तो उस की आंखें चमक उठीं. उसे यह तो समझ आ ही गया था कि मुंबई हो या भोपाल, कपड़े काटने के काम में उसे हर जगह उतने ही पैसे मिलेंगे, जिन से गुजारा महीने में एक हफ्ता रोजे रख कर ही होगा.

कम उम्र में ही अभावों के थपेड़े खा चुके साजिद ने जब पड़ोस में रहने वाली एक अधेड़ महिला को देखा तो उसे लगा कि यह धंधा क्या बुरा है, जिस में पैसा बूंदबूंद कर नहीं आता बल्कि तेज बारिश सा बरसता है और मजे की बात यह कि इस में मेहनत भी कुछ खास नहीं करनी पड़ती.

वह महिला जिसे साजिद और उस की पत्नी शबनम आंटी कहने लगे थे, अपनी 2 जवान बेटियों के साथ रहती थी. बहुत जल्द साजिद को समझ आ गया था कि आंटी अपनी दोनों बेटियों से देहव्यापार करवाती है. वह दौर बीत चुका है जब जिस्मफरोशी सिर्फ रात का धंधा हुआ करता था. आंटी के यहां तो सूरज सिर पर चढ़ते ही ग्राहकों की भीड़ लगने लगती थी, लेकिन रात की बात वाकई और होती थी.

तकरीबन बेरोजगारी काट रहे साजिद को यह देख हैरानी भी होती थी और कोफ्त भी कि आंटी के यहां ऐशोआराम की तमाम चीजें हैं. उन का पूरा घर खूब शौपिंग करता है, ठाठ से रहता है और पैसों की कमी क्या होती है, यह शायद ही वे तीनों जानती हों.

गरीबी और अभाव आदमी को क्या कुछ करने को मजबूर नहीं कर देते, यह साजिद की इस वक्त की मानसिकता को देख सहज समझा जा सकता था. एक दिन उस ने ऐसा फैसला ले लिया जो कहने को तो नैतिकता के खिलाफ था, लेकिन इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद हैं कि आखिर जिस्मफरोशी के धंधे में बुराई क्या है, सिवाय इस के कि यह कानूनन जुर्म है. सभ्य समाज की देह पर यह एक ऐसा कोढ़ है जिस के बगैर समाज भी पूरी तरह सभ्य नहीं कहा जा सकता.

साजिद का यह फैसला अपनी जवान बीवी शबनम सेदेहव्यापार करवाने का था. एक दिन कुछ झिझकते हुए उस ने शबनम से यह पेशकश की तो शबनम बिना किसी नानुकुर के तैयार हो गई. तय है शबनम साजिद से कहीं ज्यादा अपनी मजबूरियां समझ रही थी. वह सोचती थी कि यह भी कोई जिंदगी है कि शाम को चूल्हा जलेगा या नहीं, इस बात की गारंटी भी हर सुबह नहीं रहती. दूसरे पति की बेबसी भी उसे समझ आ रही थी, जो 24 परगना से शुरू होते  वाया मुंबई भोपाल आने तक ज्यों की त्यों थी.

शबनम के हां कहने पर साजिद कितना खुश हुआ होगा और उसे उस के जमीर ने कितना कचोटा होगा, इस का सटीक विश्लेषण तो शायद मशहूर कहानीकार प्रेमचंदजी भी होते तो न कर पाते. लेकिन इतना जरूर तय है कि इस दंपति के फैसले को एक झटके में अनैतिक करार दे देना उन के साथ ज्यादती ही होगी.

नैतिकताअनैतिकता, गलतसही और कानूनीगैरकानूनी की दार्शनिक बहस और पचड़े से परे साजिद दूसरे दिन सीधा आंटी के पास जा पहुंचा. पड़ोस में रहते उस ने यह बात शिद्दत से महसूस की थी कि उन की पत्नी शबनम आंटी की बेटियों से कहीं ज्यादा खूबसूरत, गदराई और जवान है, इसलिए ग्राहक उसे ज्यादा पसंद करेंगे और जल्द ही वे दोनों अपने आलीशान मकान में होंगे जहां कार, एसी, फ्रिज, नौकरचाकर जैसी तमाम सहूलियतें उन के पास होंगी. जैसी कि उम्मीद थी साजिद की पेशकश को आंटी ने एक झटके में कबूल कर लिया.

इस की वजह यह थी कि उस के पास ग्राहकों की खासी तादाद थी जो खूबसूरत जवान लड़कियों पर पैसा लुटाने को बेताब रहते थे. ऐसे में शबनम उन्हें हीरे की खदान लगी, क्योंकि कई ऐसे नियमित ग्राहक भी थे जो उन की बेटियों से ऊबने लगे थे और नए माल की फरमाइश करते रहते थे.

वासना की कब्र पर : पत्नी ने क्यों की बेवफाई – भाग 1

कानपुर नगर के थाना नर्वल के थाना प्रभारी रामऔतार को कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि नरौरा गांव के राजेश कुरील ने अपनी पत्नी तथा उस के आशिक की हत्या कर दी है. दोनों की लाशें उसी के घर में पड़ी हैं. सुबहसुबह डबल मर्डर की सूचना पा कर थाना प्रभारी विचलित हो उठे.

हालांकि कंट्रोल रूप से यह सूचना जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी मिल गई थी, फिर भी थाना प्रभारी ने घटना स्थल पर रवाना होने से पहले यह जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. यह बात 11 अक्तूबर, 2019 की है.

थाना नर्वल से नरौरा गांव 7 किलोमीटर दूर था पुलिस आधे घंटे में घटनास्थल पर पहुंच गई. थानाप्रभारी जब राजेश के घर पहुंचे तो वहां सन्नाटा पसरा था. लग ही नहीं रहा था कि गांव में डबल मर्डर हुआ है. पासपड़ोस के लोग पुलिस देख कर सकते में थे और अपने घरों से बाहर झांक रहे थे. हेडकांस्टेबल रामसिंह ने राजेश के घर का दरवाजा थपथपाया तो उस ने ही दरवाजा खोला. वह पुलिस को देख बोला, ‘‘साहब, मैं ने ही आप को फोन किया था.’’

थानाप्रभारी जब पुलिस टीम के साथ घर के अंदर गए तो घर के आंगन में खून से लथपथ 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश युवक की थी जबकि दूसरी युवती की थी. दोनों को चाकू से गोदा गया था और गरदन रेती गई थी. कमरे से ले कर आंगन तक खून ही खून फैला था. देखने से ऐसा लग रहा था कि युवक को कमरे से घसीट कर आंगन तक लाया गया था.

युवक की उम्र 24-25 साल थी जबकि युवती की उम्र लगभग 35 वर्ष थी. दोनें की लाशें अर्धनग्नावस्था में थीं. युवक कच्छा बनियान पहने था, जबकि युवती पेटीकोट ब्लाउज में थी. ब्लाउज के हुक खुले थे. दोनों लाशों के बीच खून से सना चाकू भी पड़ा था. पुलिस ने चाकू अपने कब्जे में ले लिया.

थाना प्रभारी रामऔतार ने इस बारे में राजेश से पूछा तो उस ने बताया कि मृतका उस की पत्नी सुनीता है और मृतक मनीष है, जो औंग थाने के गलाथा गांव का रहने वाला है. रिश्ते में वह उस का फुफेरा भाई है. राजेश अपना जुर्म स्वीकार कर रहा था. थाना प्रभारी ने राजेश को हिरसत में ले लिया और मनीष के घर वालों को उस की मौत की सूचना भेज दी. सुनीता के मायके वालों को राजेश ने ही अपने मोबाइल से खबर दे दी थी.

राजेश का पिता मौजीलाल कुरील पास के ही मकान में रहता था. उसे इस मामले की जानकारी पुलिस के आने के बाद ही मिली थी. बेटे के इस कृत्य से वह बदहवास था. वह कभी राजेश को तो कभी उस के बच्चों को निहार रहा था.

राजेश के 2 बेटे मुकेश, सनी तथा एक बेटी कंचन थी. जब मातापिता ने बच्चों का खयाल रखना छोड़ दिया था तब बच्चों की देखभाल मौजीलाल करने लगा था. घटना के वक्त बच्चे उसी के घर में थे. तीनों बच्चे मां की मौत पर फूटफूट कर रो रहे थे.

अब तक दोहरे हत्याकांड की खबर नरौरा गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी फैल गई थी. अत: थोड़ी देर में घटना स्थल पर देखने वालों की भीड़ जुट गई. मनीष के घरवाले भी आ गए थे और वह उस की लाश के पास फूटफूट कर रो रहे थे. लेकिन सुनीता के मायके से कोई नहीं आया था. उस के भाई अरविंद ने आने से साफ मना कर दिया था.

उसी दौरान एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा प्रद्युम्न सिंह आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उन्होंने मृतक मनीष के पिता कल्लू से पूछताछ की. कल्लू ने बताया कि मनीष के चचेरे भाई राजे का तिलक था. मनीष वैन से अपने मामा मौजीलाल व गोरे लाल को लेने नरौरा आया था. राजेश ने मनीष की हत्या क्यों की, इस का उसे कुछ पता नहीं.

पुलिस अधिकारियों ने कमरे का निरीक्षण किया तो जमीन पर बिछे बिस्तर पर खून के दाग थे. कमरे से ले कर आंगन तक खून फैला था. कमरे की खूंटी पर पैंटकमीज टंगी थी. पूछने पर कल्लू ने बताया कि वह पैंटकमीज मनीष की है.

पुलिस ने पैंटकमीज की जेबें खंगाली तो कमीज की जेब से ड्राइविंग लाइसेंस तथा पैंट की जेब से मृतक का पर्स तथा वैन की चाबी मिली. यह सामान पुलिस अधिकारियों ने कल्लू को सौंप दिया. कमरे से 2 मोबाइल फोन भी मिले जिस में एक सुनीता का था और दूसरा मनीष का. दोनों मोबाइल फोन पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिए.

फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद पुलिस ने दोनों शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिए.

आरोपी राजेश कुरील को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट गई. एसएसपी अनंतदेव तिवारी की मौजूदगी में थानाप्रभारी रामऔतार ने डबल मर्डर के संबंध में राजेश से पूछताछ की तो वह फफक पड़ा, ‘‘साहब, मेरी पत्नी सुनिता और मनीष के अवैध संबंधों की चर्चा घरपरिवार में ही नहीं बल्कि पूरे गांव में आम हो चुकी थी. मैं कई दिनों से घुटघुट कर जी रहा था. पत्नी से विरोध करता तो वह मारपीट और झगड़े पर उतारू हो जाती थी.

‘‘कई बार मन में आत्महत्या का विचार भी आया, लेकिन बच्चों की वजह से ऐसा नहीं किया. मना करने के बावजूद मनीष घर आया और रात में रुक गया. देर रात दोनों को रंगरलियां मनाते देख मेरे सिर पर खून सवार हो गया. विरोध करने पर दोनों मेरे ऊपर ही टूट पड़े. इस के बाद मैं ने झल्लाहट में और खुद को बचाने के लिए दोनों को चाकू मार दिए, फिर दोनों की गरदन रेत कर हत्या कर दी.’’

‘‘वे 2 थे और तुम अकेले. फिर दोनों की हत्या कैसे की, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा साथ किसी और ने दिया हो?’’ एसएसपी साहब ने सवाल किया.

‘‘नहीं साहब, मेरे साथ दूसरा कोई नहीं था. दरअसल मनीष ज्यादा नशे में था. इसलिए जब मैं ने उसे कमर पर लात जमाई तो वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिर पड़ा. उस के बाद मैं ने उस पर चाकू से वार किया और उसे कमरे से घसीट कर आंगन में लाया. फिर उस की गरदन रेत दी. सुनीता उसे बचाने आई तो मैं ने उस पर भी वार कर दिया और चाकू से गरदन रेत दी.’’ राजेश ने पूरी बात एसएसपी को बता दी.

साली की चाल में जीजा हलाल – भाग 1

4जून, 2019 की सुबह 8 बजे रेखा कानपुर के थाना बर्रा पहुंची तो उस के पति प्रेमप्रकाश की मोटरसाइकिल थाना परिसर में खड़ी थी. मोटरसाइकिल देख कर उस का माथा ठनका. वह मन ही मन बुदबुदाने लगी, ‘लगता है, प्रेम ने रात में शराब पी कर किसी से झगड़ा किया होगा और पुलिस ने उसे हवालात में डाल दिया होगा.’

लेकिन प्रेम न तो हवालात में था और न ही रिपोर्टिंग रूम में. पता लगाने के लिए वह सीधे थानाप्रभारी के कक्ष में पहुंच गई. सुबहसुबह एक औरत को बदहवास हालत में देख कर थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रेखा है. मैं बर्रा के नरपत नगर जरौली फेस-1 में रहती हूं. मेरा पति प्रेमप्रकाश मीट कारोबारी है. कल सुबह वह दुकान पर गया था, उस के बाद घर वापस नहीं आया. थाने में उस की मोटरसाइकिल तो खड़ी है, पर प्रेम का कुछ पता नहीं चल पा रहा.’’

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव रेखा पर एक नजर डाल कर बोले, ‘‘यह मोटरसाइकिल बीती रात गश्त के दौरान जे ब्लौक तिराहे से बरामद हुई है. नशे की हालत में तुम्हारे पति ने मोटरसाइकिल खड़ी कर दी होगी और किसी दोस्त के घर पड़ा होगा. घबराओ नहीं, वह आ जाएगा.’’

रेखा इस तसल्ली के साथ घर लौट आई कि उस के पति ने किसी से झगड़ा नहीं किया और थाने में बंद नहीं है.

इधर 5 जून को मौर्निंग वाक पर जाने वाले कुछ लोगों ने पिरौली पुल के पास सड़क किनारे गड्ढे में जूट का एक बोरा पड़ा देखा. बोरे का मुंह खुला था और दुर्गंध आ रही थी. बोरे के आसपास कुत्ते घूम रहे थे. बोरे में लाश की आशंका के मद्देनजर सुबोध तिवारी नाम के एक व्यक्ति ने अपने मोबाइल फोन से थाना बर्रा पुलिस को सूचना दे दी.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव ने तिवारी की सूचना के बारे में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ पिरौली पुल पहुंच गए. वहां सड़क किनारे भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर वह उस जगह पहुंचे जहां बोरा पड़ा था. पुलिसकर्मियों की मदद से उन्होंने बोरे से शव बाहर निकाला.

शव एक जवान आदमी का था, जिस के गरदन और पैर साइकिल ट्यूब से बंधे थे. सिर पर चोट का निशान था. मृतक की उम्र करीब 40 साल थी. शरीर से वह हृष्टपुष्ट था. शव को पहले प्लास्टिक की बोरी में लपेटा गया था, फिर उसे जूट के बोरे में भर दिया गया था. जामातलाशी में उस के पास से ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो सके.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर आ गए. एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. पुलिस अधिकारियों ने शव का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां से साक्ष्य जुटाए.

सड़क किनारे भीड़ जमा थी. लोग शव को देखते और नाक पर रूमाल रख कर हट जाते. कोई भी शव की शिनाख्त नहीं कर पा रहा था. उसी समय थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव को रेखा नाम की उस महिला की याद आई, जिस का पति रात को घर नहीं आया था, जिस की मोटरसाइकिल थाना परिसर में खड़ी थी.

उन्होंने उस का नामपता नोट कर लिया था. अतुल ने उस महिला के संबंध में पुलिस अधिकारियों को अवगत कराया और उस के घर जा पहुंचे.

रेखा उस समय घर पर ही थी. पासपड़ोस की कुछ महिलाएं तथा घर वाले भी मौजूद थे. पुलिस जीप देख कर रेखा को लगा कि शायद उस के पति का पता लग गया है.

थानाप्रभारी अतुल श्रीवास्तव जीप से उतर कर रेखा के पास पहुंचे. उन्होंने कहा, ‘‘रेखा, पिरौली पुल के पास सड़क किनारे बोरे में बंद हमें एक लाश मिली है. अभी तक उस की शिनाख्त नहीं हुई है. मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ चल कर उसे देख लो.’’

अनहोनी की आशंका से रेखा घबरा गई. फिर 2-3 महिलाओं के साथ वह जीप में बैठ गई. उस के घर वाले भी पिरौली पुल की ओर रवाना हो गए. 10 मिनट में पुलिस जीप पिरौली पुल के पास पहुंच गई.

रेखा जीप से उतर कर लाश के पास पहुंची. उस ने लाश देखी तो चीख पड़ी. लाश उस के पति प्रेमप्रकाश की ही थी. इस के बाद तो कोहराम मच गया. बेहाल रेखा को साथ आई महिलाएं संभालने में लग गईं. एसपी रवीना त्यागी ने भी रेखा को सांत्वना दी, साथ ही आश्वासन भी दिया कि उस के पति के कातिल जल्दी ही पकड़ लिए जाएंगे. इस के बाद उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

रेखा बेहाल थी. उस की आंखों में आंसू थम नहीं रहे थे. इस हालत में पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ करना उचित नहीं समझा. शाम को जब वह कुछ सामान्य हुई तब एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने उसे थाना बर्रा बुलवा लिया. उन्होंने बड़े भावुक अंदाज में उस से पूछताछ शुरू की. उन्होंने पूछा, ‘‘रेखा, तुम्हारे पति की हत्या किस ने और क्यों की, इस बारे में कुछ बता सकती हो?’’

‘‘मैडमजी, मेरे पति की हत्या संजू, विपुल और उस के साथी अजय ने की है. संजू मीट का कारोबारी है और विपुल उस का नौकर है, जबकि अजय उस का दोस्त है. व्यापारिक प्रतिद्वंदिता में इन लोगों ने शराब पिला कर प्रेम को मार डाला और शव को बोरे में भर कर फेंक आए.’’

रेखा के बयान के आधार पर एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने संजू, अजय और विपुल को थाना बर्रा बुलवा लिया. थाने में उन्होंने तीनों से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने हत्या की बात से इनकार किया.

संजू ने साथ खानेपीने, नशे में लड़नेझगड़ने तथा व्यापारिक प्रतिद्वंदिता की बात तो स्वीकार की, लेकिन हत्या करने से साफ इनकार कर दिया. सख्ती से पूछताछ करने के बाद भी जब उन्होंने जुर्म नहीं कबूला तो रवीना त्यागी को लगा कि ये लोग कातिल नहीं हैं. उन्होंने उन तीनों को थाने से घर भेज दिया.

मृतक की पत्नी रेखा के अनुसार मृतक के पास मोबाइल था, जो अभी तक बरामद नहीं हुआ था. थानाप्रभारी ने प्रेमप्रकाश के कातिलों को पकड़ने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर टावर डाटा डंप कराया तो प्रेमप्रकाश की आखिरी लोकेशन 3 जून की सुबह 11 बज कर 5 मिनट पर बर्रा 8 हाईटेंशन लाइन के पास मिली. उस के बाद उस का फोन बंद हो गया था.

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 1

26 वर्षीय रवि कुमार दिल्ली के सदर बाजार स्थित कोटक महिंद्रा बैंक में कैशियर थे. रोज की तरह 7 जनवरी, 2017 को ड्यूटी खत्म कर के वह घर जाने के लिए निकले. वह उत्तरी दिल्ली के शास्त्रीनगर में रहते थे. वह बैंक से निकले थे तो उन के साथ साथ काम करने वाले शतरुद्र भी थे. सदर दिल्ली का थोक बाजार है, जिस से वहां दिन भर भीड़ लगी रहती है. माल लाने और ले जाने वाले रिक्शों की वजह से सड़कों पर जाम सा लगा रहता है. इसी वजह से रवि कुमार शतरुद्र के साथ पैदल ही जा रहे थे.

दोनों बैंक से कुछ दूर स्थित वेस्ट एंड सिनेमा के नजदीक पहुंचे, तभी उन के बीच एक ठेले वाला आ गया, जिस से दोनों अलगअलग हो गए. उसी बीच रवि कुमार की गरदन में किसी ने सुई जैसी कोई चीज चुभो दी. गरदन में जिस जगह सुई सी चुभी थी, रवि कुमार का हाथ तुरंत उस जगह पर तो गया ही, उन्होंने पलट कर भी देखा. एक युवक उन्हें भागता दिखाई दिया तो उन्हें लगा कि उसी ने उन की गरदन में कुछ चुभाया है.

रवि कुमार ने गरदन से हाथ हटा कर देखा तो उस में खून लगा था. उन्होंने उस युवक की ओर इशारा कर के शोर मचाया कि ‘पकड़ो पकड़ो’ तो उन के साथी शतरुद्र उस युवक के पीछे भागे. सदर और खारी बावली बाजार में अकसर छिनैती की घटनाएं होती रहती हैं, इसलिए लोगों ने यही समझा कि युवक पैसे वगैरह छीन कर भागा है. कुछ अन्य लोग भी उसे पकड़ने के लिए उस के पीछे दौड़ पड़े.

बाराटूटी के पास भाग रहे उस युवक का पैर फिसल गया तो पीछे दौड़ रहे लोगों ने उसे पकड़ लिया और उस की पिटाई करने लगे. तभी किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के उस के पकड़े जाने की सूचना दे दी. रवि अभी अपनी जगह पर ही खडे़ थे. उन का हाथ गरदन पर उसी जगह था, जहां कोई चीज चुभी थी. अब तक उन्हें चक्कर से आने लगे थे. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर गरदन पर क्या चीज चुभाई गई है. लेकिन यह साफ हो गया था कि उसी नुकीली चीज के चुभन से उन की तबीयत बिगड़ रही है. इस का मतलब वह कोई जहरीली चीज थी.

बाजार के तमाम लोग रवि को जानते थे. हमदर्दी में वे उन के पास आ कर खडे़ हो गए थे. उन्हीं लोगों में अजय साहू का बेटा इंद्रजीत भी था. अजय साहू सदर बाजार में ही कोटक महिंद्रा बैंक के पास गत्ते के डिब्बे बेचते हैं. इस में उन का बेटा इंद्रजीत हाथ बंटाता था. उस का कोटक महिंद्रा बैंक में एकाउंट था, जिस की वजह से कैशियर रवि कुमार से उस की दोस्ती थी.

रवि की बिगड़ती हालत देख कर लोग ऐंबुलैंस बुलाने की बात कर रहे थे. उस भीड़भाड़ वाली जगह में ऐंबुलैंस का जल्दी पहुंचना आसान नहीं था. इसलिए इंद्रजीत उन्हें मोटरसाइकिल से सेंट स्टीफंस अस्पताल ले गया. जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि जिस ने इन्हें जो भी चीज चुभोई है, उसी की वजह से इन की हालत बिगड़ रही है.

रवि की हालत देख कर साफ लग रहा था कि उन पर जहरीली दवा का असर हो रहा है. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए डाक्टरों ने थाना सदर पुलिस को फोन द्वारा सूचना दे कर उन का इलाज शुरू कर दिया. शाम साढ़े 7 बजे के करीब पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली थी कि सदर बाजार में बाराटूटी के पास कुछ लोगों ने एक चोर को पकड़ रखा है.

इस सूचना को थाना सदर के ड्यूटी अफसर ने एएसआई निक्काराम के नाम कर इस की जानकारी थानाप्रभारी रमेश दहिया को दे दी थी. इसी के कुछ देर बाद थाना सदर पुलिस को सेंट स्टीफंस अस्पताल से भी सूचना मिली कि कोटक महिंद्रा बैंक के कैशियर रवि कुमार को किसी ने जहरीला इंजेक्शन लगा दिया है, उन का इलाज वहां चल रहा है.

बाराटूटी थाने से लगभग 5-6 सौ मीटर ही दूर है, इसलिए एएसआई निक्काराम हैडकांस्टेबल विजय को ले कर तुरंत वहां पहुंच गए. कुछ लोग 24-25 साल के एक युवक को पकड़े थे. पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले कर पूछा तो उस ने अपना नाम डा. प्रेम सिंह बताया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह चोर नहीं है.

‘‘तू चोर नहीं है तो लोगों ने तुझे क्यों पकड़ा?’’ थानाप्रभारी रमेश दहिया ने पूछा.

‘‘सर, मैं चोरी कर के नहीं, कोटक महिंद्रा बैंक के कैशियर रवि कुमार की गरदन पर जहर का इंजेक्शन लगा कर भाग रहा था, तभी लोगों ने मुझे पकड़ लिया था.’’ प्रेम सिंह ने कहा.

चाकू, गोली मार कर किसी की जान लेने की वारदातें तो अकसर होती रहती हैं, लेकिन राह चलते किसी को जहर का इंजेक्शन लगा कर जान लेने की कोशिश करने का यह अपनी तरह का अलग ही मामला था. इसलिए मामले की सूचना एसीपी आर.पी. गौतम और डीसीपी जतिन नरवाल को देने के बाद रमेश दहिया अतिरिक्त थानाप्रभारी इंसपेक्टर मनमोहन कुमार को साथ ले कर सेंट स्टीफंस अस्पताल पहुंच गए.

रवि कुमार के उपचार में जुटे डाक्टरों को रमेश दहिया ने बता दिया कि इन्हें जहर का इंजेक्शन लगाया गया है. डाक्टर चाहते थे कि यह पता लग जाता कि इंजेक्शन में कौन सा जहर इस्तेमाल किया गया था, जिस से उपचार में उन्हें आसानी हो जाती.

बहरहाल, डाक्टर रवि कुमार के शरीर में फैले जहर का असर कम करने की कोशिश कर रहे थे. अब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी आ गए थे. डीसीपी और एसीपी के सामने प्रेम सिंह से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि रवि कुमार को जो इंजेक्शन लगाया गया था, उस में कोबरा सांप के जहर के अलावा मिडाजोलम और फोर्टविन नाम के कैमिकल भी मिले थे.

पुलिस ने प्रेम कुमार के खिलाफ धारा 328 (जहर देने) का मामला दर्ज कर के जहर के बारे में मिली जानकारी रवि कुमार के इलाज में जुटे डाक्टरों को दे दी. चूंकि अब तक जहर पूरे शरीर में फैल चुका  था, इसलिए रवि कुमार की हालत चिंताजनक होती जा रही थी.

पूछताछ में पता चला कि प्रेम कुमार से यह वारदात रवि कुमार के साले बौबी ने कराई थी. रवि कुमार अपनी पत्नी सविता के साथ मारपीट कर के उसे परेशान करते थे. उन की इस हरकत से बौबी बहुत परेशान रहता था, इसीलिए उस ने अपने बहनोई की हत्या की जिम्मेदारी उसे सौंपी थी.

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 1

कभीकभी अचानक ऐसा कुछ हो जाता है कि हम समझ तक नहीं पाते कि यह सब कैसे और क्यों हुआ. सच यह है कि यह वक्त की ताकत होती है, जो इंसान के कर्म के हिसाब से अपनी मौजूदगी का अहसास कराती है. भरत दिवाकर ने नमिता को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उस ने बनाते हुए सोचा भी नहीं होगा कि इस का उलटा भी हो सकता है. आखिर यह सब… —15जनवरी, 2020. उत्तर प्रदेश का जिला चित्रकूट. थाना भरतकूप के थानाप्रभारी संजय

उपाध्याय अपने औफिस में बैठे थे. तभी भरतकूप के ही रहने वाले यशवंत सिंह उन के पास आए.

यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर थे. यशवंत सिंह ने थानाप्रभारी को अपना परिचय दिया तो उन्होंने उन को सम्मान से कुरसी पर बैठाया. इस के बाद उन्होंने उन से आने का कारण पूछा तो यशवंत सिंह ने कहा, ‘‘सर, एक बहुत बड़ी प्रौब्लम आ गई है.’’

‘‘बताएं, क्या बात है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘कल से मेरी बेटी नमिता का कहीं पता नहीं चल रहा है. मुझे आशंका है कि उस के पति पूर्व ब्लौक प्रमुख भरत दिवाकर ने उस की हत्या कर के लाश कहीं गायब कर दी है.’’

‘‘क्या?’’ यह सुनते ही एसओ संजय उपाध्याय चौंके, ‘‘आप की बेटी की हत्या कर के लाश गायब कर दी?’’

‘‘हां सर, भरत भी कल से ही लापता है. उस का भी कहीं पता नहीं है.’’ यशवंत सिंह ने बताया.

‘‘ठीक है, आप एक तहरीर लिख कर दे दें. मैं मुकदमा दर्ज कर आवश्यक काररवाई करता हूं. इस बारे में जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलती है, आप को इत्तला कर दूंगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

यशवंत सिंह ने अपने 35 वर्षीय दामाद भरत दिवाकर को नामजद करते हुए लिखित तहरीर दे दी. उस तहरीर के आधार पर पुलिस ने नमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो मामला सही पाया गया.

पड़ताल के दौरान एसओ उपाध्याय को पता चला कि 14 जनवरी, 2020 की रात करीब 10 बजे भरत दिवाकर को पत्नी नमिता के साथ गाड़ी में एक मिठाई की दुकान पर देखा गया था. उस के बाद से ही दोनों लापता थे.

मामला गंभीर था. एसओ संजय उपाध्याय ने इसे बहुत संजीदगी से लिया. उन्होंने इस की सूचना एसपी अंकित मित्तल, एएसपी बलवंत चौधरी और सीओ (सिटी) रजनीश यादव को दे दी.

मामला समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख व उस की पत्नी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ा था. वैसे भी भरत दिवाकर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह खुद तो पूर्व ब्लौक प्रमुख था ही, उस की दादी दशोदिया देवी भी पूर्व ब्लौक प्रमुख थीं. दशोदिया देवी शहर की जानीमानी हस्ती थीं. इस परिवार का रुतबा था, शान थी, ऐसे में पुलिस का परेशान होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. भरत दिवाकर और उस की पत्नी नमिता का पता लगना जरूरी था.

उसी दिन सुबह 11 बजे के करीब भरत दिवाकर की बहन सुमन के मोबाइल पर एक काल आई थी. काल भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद ने की थी. उस ने सुमन को बताया कि भरत भैया रात करीब 2-3 बजे बरुआ सागर बांध पर आए थे. उन की गाड़ी में बोरे में कोई वजनी चीज थी. उन के साथ मैं भी था.

हम दोनों बोरे में भरी चीज को ले कर बांध के किनारे पहुंचे. वहां पहले से एक नाव खड़ी थी. हम दोनों बोरे को ले कर नाव पर सवार हुए और आगे बढ़ गए. बोरा बांध में पलटते वक्त अचानक नाव पानी में पलट गई. अपनी जान बचा कर मैं तो किसी तरह तैर कर पानी से बाहर निकल आया, लेकिन भैया पानी में डूब गए.

रामसेवक निषाद की बाद सुन कर सुमन हतप्रभ रह गई. उस ने यह बात अपनी मां चुनबुद्दी देवी से बताई तो मां के भी होश फाख्ता हो गए. बीती रात से मांबेटी भरत के घर लौटने का इंतजार कर रही थीं. लेकिन वह घर नहीं लौटा. उस का फोन भी नहीं लग रहा था.

भरत दिन में भले ही कहीं भी रहता हो, शाम होते ही घर लौट आता था. जब वह रात भर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को चिंता हुई. वे लोग उस की तलाश में जुट गए. उस के सारे यारदोस्तों से फोन कर के पूछ लिया गया, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

जब सुबह 11 बजे रामसेवक ने फोन से सुमन को सूचना दी तो घर वाले समझे कि भरत के साथ अनहोनी हो चुकी है. फिर क्या था, घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. ऐसे में सुमन ने थोड़े संयम से काम लिया.

उस ने भाई के साथ हुई अनहोनी की जानकारी समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार को दे कर मदद की गुहार लगाई. क्योंकि उस समय सुमन को यही ठीक लगा. भरत के बांध में डूबने की जानकारी होते ही वह भी सकते में आ गया.

जिस बरुआ सागर बांध में घटना घटी थी, वह भरतकूप थाना क्षेत्र में पड़ता था. अनूप ने इस की जानकारी भरतकूप थाने के एसओ संजय उपाध्याय को दे दी. एसओ संजय ने शिवराम चौकीप्रभारी अजीत सिंह को सूचित किया और मौके पर पहुंचने के आदेश दिए. अजीत सिंह के मौके पर पहुंचने के कुछ देर बाद एसओ संजय सिंह पुलिस टीम के साथ बरुआ सागर बांध पहुंच गए.

बांध के किनारे भरत दिवाकर की सफेद रंग की कार यूपी26डी 3893 लावारिस खड़ी मिली. कार की तलाशी ली गई तो उस में एक पैर की लेडीज चप्पल मिली. सुमन ने चप्पल पहचान ली. वह चप्पल उस की भाभी की थी. पुलिस ने बरामद चप्पल साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले ली.

नमिता और भरत दिवाकर के गायब होने की खबर जिले भर में फैल गई. धीरेधीरे बांध पर लोगों की भीड़ जमा होने लगी. थोड़ी देर में  एएसपी बलवंत चौधरी, सीओ रजनीश यादव, कोतवाल अनिल सिंह, सपा के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार और भरत दिवाकर के घर वाले भी पहुंच गए.

एएसपी बलवंत चौधरी ने एक नाव की व्यवस्था कराई. नाव के साथ ही एक गोताखोर और एक बड़े जाल का इंतजाम भी करवाया गया. पूरा इंतजाम हो जाने के बाद उन्होंने भरत का पता लगाने के लिए नाव में सवार हो कर बांध में उतरने का फैसला किया.

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 1

चित्रकूट जिले के गांव लोहदा का रहने वाला फूलचंद विश्वकर्मा कानपुर की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक ड्राइवर की नौकरी करता था. उस की मां और बड़े भाई का परिवार गांव में रहते थे. ट्रक ड्राइवर का पेशा ऐसा है, जिस में कई बार आदमी को लौटने में महीनोंमहीनों लग जाते हैं. इसी वजह से फूलचंद पिछले एक साल से गांव में रह रही बूढ़ी मां और भाई के परिवार से नहीं मिल सका था. समय मिला तो उस ने 5 जुलाई, 2018 को गांव जाने का फैसला किया.

फूलचंद तहसील राजापुर स्थित अपने गांव लोहदा पहुंचा तो उस की वृद्धा मां तो पुश्तैनी घर में मिल गई, लेकिन अलग रह रहा बड़ा भाई शिवलोचन और उस का परिवार घर में नहीं था. वह मां से मिला तो उस की आंखें भर आईं और वह उस के गले लग कर रो पड़ी. फूलचंद को लगा कि मां से एक साल बाद मिला है, इसलिए वह भावुक हो गई है. उस ने जैसेतैसे सांत्वना दे कर मां को चुप कराया और बड़े भाई शिवलोचन और उस के परिवार के बारे में पूछा.

उस की मां चुनकी देवी ने रोते हुए बताया कि पिछले 8 महीने से शिवलोचन का कोई पता नहीं है. बहू माया भी 7-8 महीने पहले दोनों बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी. तब से वापस नहीं लौटी.

मां की बात सुन कर फूलचंद परेशान हो गया. उस ने इस बारे में मां से विस्तार से पूछा तो उस ने बताया कि 8 महीने पहले जब कई दिनों तक शिवलोचनदिखाई नहीं दिया तो उस ने और गांव वालों ने बहू माया से उस के बारे में पूछा.

माया ने बताया कि शिवलोचन अपनी नौकरी पर कर्वी चला गया है. इस के कुछ दिन बाद माया भी यह कह कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई कि घर में राशन खत्म हो गया है. जब शिवलोचन लौट आएं तो खबर भिजवा देना, मैं आ जाऊंगी.

फूलचंद को मालूम था कि उस का भाई शिवलोचन कर्वी के एक जमींदार तेजपाल सिंह के खेतों में टै्रक्टर चलाने का काम करता था. जमींदार की गाडि़यां भी वही ड्राइव करता था. मां ने बताया कि उस ने शिवलोचन को कई बार फोन भी कराया था, लेकिन उस का फोन बंद था. मां ने आशंका व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि शिवलोचन इतने महीनों तक कभी भी कर्वी में नहीं रहा, बीचबीच में वह आता रहता था.

फूलचंद इस बात को समझता था कि आदमी भले ही कितना भी व्यस्त क्यों न रहे, ऐसा नहीं हो सकता कि अपने परिवार की सुध ही न ले. संदेह की एक वजह यह भी थी कि भाई का हालचाल जानने के लिए फूलचंद ने खुद भी भाई के मोबाइल पर फोन किए थे, लेकिन उस का फोन हर बार बंद मिला था. उस वक्त उस ने यही सोचा था कि संभव है, भाई किसी ऐसी जगह पर हो, जहां नेटवर्क न मिलता हो.

संदेह पैदा हुआ तो फूलचंद उसी दिन गांव के 2 आदमियों को साथ ले कर कर्वी के जमींदार तेजपाल सिंह के पास गया. वहां उसे जो जानकारी मिली, उस ने फूलचंद की चिंता और बढ़ा दी. तेजपाल सिंह ने बताया कि शिवलोचन नवंबर 2017 में दीपावली के बाद से काम पर नहीं आया है.

उस के कई दिनों तक काम पर न आने की वजह से उन्होंने उस के मोबाइल पर फोन किया तो उस की बीवी माया ने फोन उठाया. उस ने कहा कि शिवलोचन ने उन की नौकरी छोड़ दी है, उसे कहीं दूसरी जगह ज्यादा पगार की नौकरी मिल गई है.

तेजपाल सिंह ने आगे बताया कि उन्होंने इस के बाद यह सोच कर फोन नहीं किया कि जब वह अपना बकाया वेतन लेने के लिए आएगा तो पूछेंगे कि अचानक नौकरी क्यों छोड़ दी.

तेजपाल सिंह के यहां से मिली जानकारी के बाद चिंता में डूबा फूलचंद उदास चेहरा लिए अपने गांव लौट आया. फूलचंद ने घर लौट कर भाई के बारे में गहराई से सोचा तो यह बात उस की समझ में नहीं आई कि भाई ने जब दूसरी जगह नौकरी कर ली थी तो माया भाभी ने गांव वालों और मां से यह क्यों कहा था कि वह कर्वी में अपने काम पर गया है.

फूलचंद ने शिवलोचन के साथसाथ अपनी भाभी माया को भी कई बार फोन किया था, लेकिन शिवलोचन की तरह माया का भी फोन बंद मिला था. फूलचंद की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शिवलोचन कहां चला गया और 8 महीने से घर क्यों नहीं लौटा. ऊपर से उस का फोन भी बंद था.

आश्चर्य की बात यह थी कि उस की भाभी माया जब से अपने मायके गई थी, वापस नहीं लौटी थी. न ही उस ने किसी को फोन कर के कभी कुशलक्षेम पूछी थी. ऊपर से उस का फोन नहीं लग रहा था.

फूलचंद को अपने भाई शिवलोचन की चिंता सताने लगी तो वह भाई की खोजबीनमें जुट गया. फूलचंद की एक बड़ी बहन थी, सावित्री. उस की शादी चित्रकूट की मऊ तहसील में हुई थी. उस के पास शिवलोचन की ससुराल वालों का नंबर था.

फूलचंद ने फोन कर के बहन को बताया कि शिवलोचन पिछले कई महीनों से लापता है और माया अपने मायके गई है. दोनों में से किसी का फोन भी नहीं लग रहा. शिवलोचन के बारे में पता लगाने की सोच कर फूलचंद ने सावित्री से माया के पिता का नंबर ले लिया.

उस ने वह नंबर लगा कर जब माया के पिता से बात की तो उस ने बताया कि माया अपने दोनों बच्चों को ले कर 8 महीने पहले दीपावली के बाद उन के पास आई थी. लेकिन वह 2 महीना पहले दोनों बच्चों को उन के घर छोड़ कर यह कह कर गई थी कि शिवलोचन के बारे में जानकारी लेने लोहदा जा रही है, 2-4 दिन में आ जाएगी. लेकिन उस के बाद ना तो वह घर लौटी, न ही उस ने फोन कर के बच्चों की कुशलक्षेम पूछी.

माया के पिता ने जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. क्योंकि अभी तक तो फूलचंद इस भ्रम में था कि उस की भाभी माया अपने मायके में है, लेकिन जब पता चला कि माया अपने मायके से 2 महीना पहले ही कहीं चली गई है तो फूलचंद के माथे पर परेशानी की लकीरें और गहरा गईं.

कातिल हसीना : लांघी रिश्तों की सीमा – भाग 1

उस दिन फरवरी 2020 की 7 तारीख थी. सुबह के 8 बजे थे. घना कोहरा छाया हुआ था, जिस से सूरज अपनी चमक नहीं बिखेर पा रहा था. उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के तेंदुआ बरांव गांव का रहने वाला सुंदर सिंह अपने खेतों की ओर जा रहा था.

जब वह प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर अपने खेतों के पास पहुंचा तो वहां एक युवक की लाश देख कर वह ठिठक गया. फिर वह उल्टे पैर गांव की ओर दौड़ पड़ा. गांव पहुंच कर उस ने लाश पड़ी होने की जानकारी गांव वालों को दी. उस के बाद तो गांव में कोहराम मच गया. कुछ ही देर में लाश के पास ग्रामीणों की भीड़ जुट गई.

लाश पड़ी होने की खबर जब इसी गांव के रहने वाले वकील सिंह को लगी तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का भाई कंधई सिंह बीती रात से घर से गायब था. पूरा परिवार रात भर उस की तलाश में जुटा रहा, परंतु उस का कुछ पता नहीं चल पाया था. अत: वह बदहवास हालत में घटना स्थल पर पहुंचा.

शव औंधे मुंह पड़ा था. उस ने जैसे ही शव को पलटा वैसे ही उस की चीख निकल पड़ी. क्योंकि वह शव उस के भाई कंधई सिंह का ही था. किसी ने बड़ी बेहरमी से की थी. इस के बाद बड़ी उस के परिवार में कोहराम मच गया. मृतक की मां कमला देवी और पत्नी राधा भी मौके पर आ गईं और शव से लिपट कर दोनों रोने लगीं.

इसी दौरान किसी ने फोन कर के शव मिलने की सूचना थाना मल्हीपुर में दे दी. हत्या की खबर पाते ही थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय पुलिस टीम के साथ ले तेंदुआ बरांव गांव की तरफ चल दिए. इस बीच उन्होंने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तब तक वहां ग्रामीणों की भीड़ जुट गई थी. थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने में जुट गए. कंधई सिंह के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. चेहरे पर भी प्रहार कर उस की पहचान मिलाने की कोशिश की गई थी.

सिर व चेहरे पर गहरी चोट के निशान थे. कपड़े, खून से तरबतर थे. जमीन पर भी खून फैला था, जिसे मिट्टी ने सोख लिया था. हत्यारे ने मृतक के गुप्तांग को भी कुचला था. उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि हत्या अवैध रिश्तों के चलते की गई है. मृतक की उम्र यही कोई 30 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अनूप कुमार सिंह, एएसपी वी.सी. दूबे तथा सीओ हौसला प्रसाद घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी वहां से साक्ष्य जुटाए. घटनास्थल पर एक टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा मिला था जिसे थानाप्रभारी ने जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतक की पत्नी राधा को सांत्वना देने के बाद उस से पूछताछ की. राधा ने बताया कि बीती रात 8 बजे उस ने पति के साथ खाना खाया. उस के बाद वह बरतन साफ करने लगी, तभी पति के मोबाइल फोन पर किसी का फोन आया. नंबर देख कर वह घर के बाहर निकले और बात करने के बाद वापस आए. फिर बोले कि जरूरी काम से जा रहे हैं, कुछ देर में आ जाएंगे, पर वह वापस नहीं आए.

खोजने पर नहीं मिला

तब रात 11 बजे राधा ने अपनी सास कमला को जगा कर यह जानकारी दी. कमला ने भी कंधई का फोन मिलाया, लेकिन उस का मोबाइल बंद था. उस के बाद घर वाले उसे रात भर खोजते रहे, पर उस का पता नहीं चला. सुबह मालूम हुआ कि किसी ने उसे मार डाला है.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एएसपी वी.सी. दूबे ने मृतक की मां कमला देवी से पूछा.

‘‘नहीं, साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. हमारा न किसी से लेनदेन का झगड़ा है और न ही जमीन जायदाद का. मैं तो खुद हैरान हूं कि मेरे बेटे को किस ने और क्यों मार डाला?’’ कमला ने बताया.

परिवारजनों से पूछताछ के बाद एसपी अनूप कुमार सिंह ने हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में मल्हीपुर थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय, सीओ (जमुनिहा) हौसला प्रसाद, सीओ (भिनगा), जंग बहादुर सिंह, एसआई किसलय मिश्र, ए.के. सिंह (क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. टीम की कमान एएसपी वी.सी. दूबे को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर तेंदुआ बरांव गांव के विभिन्न वर्गों के लोगों से घटना के संबंध में पूछताछ की. इस पूछताछ से पता चला कि मृतक कंधई सिंह रंगीनमिजाज था. घर में खूबसूरत पत्नी होने के बावजूद वह बाहर ताकझांक करता था. इसी बात को ले कर कई साल पहले उस की कहासुनी गांव के ही भीखू से हुई थी. कंधई सिंह भीखू की बेटी मुनकी से छेड़छाड़ करता था. भीखू ने बेटी की शादी कर दी, इस के बाद भी कंधई सिंह ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और उस की ससुराल आनेजाने लगा था.

पुलिस टीम को लाश के पास से जो टूटा हुआ मोबाइल मिला था, उस का सिम सहीसलामत था, पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि वह फोन मृतक का ही था. काल डिटेल्स से जानकारी मिली कि 7 फरवरी की रात 8.58 बजे कंधई सिंह के मोबाइल पर आखिरी काल जिस मोबाइल नंबर से आई थी वह नंबर राजेश पुत्र धनीराम निवासी बालकरामपुरवा, मजरा रामपुर, थाना मल्हीपुर जिला श्रावस्ती का था. राजेश भीखू का दामाद था, उस समय उस की कंधई से एक मिनट बात हुई थी.

अब पुलिस को राजेश से बात करना जरूरी हो गया. लिहाजा पुलिस टीम राजेश के घर पहुंची, लेकिन उस के घर पर ताला लगा था. राजेश और उस के घर वालों के फरार होने से पुलिस का शक और पुख्ता हो गया. इस के बाद पुलिस ने राजेश के ससुर भीखू सिंह के घर पर छापा मारा. भीखू भी परिवार सहित फरार था.

उन दोनों की तलाश में पुलिस टीम ने कई संभावित ठिकानों पर छापे मारे लेकिन उन का पता नहीं चला. आखिर में पुलिस टीम ने राजेश व अन्य की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

तीनों हुए गिरफ्तार

पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर नासिर गंज चौराहे से भीखू, राजेश और उस की पत्नी मुनका देवी को हिरासत में ले लिया. थाने में पुलिस जब राजेश, भीखू तथा मुनकी देवी से कंधई सिंह की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वे तीनों एक सुर हो कर मुकर गए, लेकिन जब उन पर सख्ती बरती गई तो वह तीनों टूट गए और कंधई सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद कर ली, जो राजेश ने अपने घर में छिपा दी थी.

पुलिस टीम ने कंधई सिंह की हत्या का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अनूप कुमार सिंह को दी. जानकारी पाते ही वह थाना मल्हीपुर आ गए. उन्होंने अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ की. फिर खुलासा करने वाली पुलिस टीम की पीठ थपथपाई और 15 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की.

इस के बाद उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैस वार्ता की और हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि उन तीनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय ने मृतक के भाई वकील सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत भीखू, राजेश तथा मुनकी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन लोगों से विस्तार से पूछताछ की गई तो एक हसीना की कातिल चाल का सनसनीखेज खुलासा हुआ.

उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती जिले के मल्हीपुर थाने के अंतर्गत एक गांव है तेंदुआ बरांव. भीखू अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं, जानकी और मुनकी. भीखू मेहनतमजदूरी कर अपने परिवार का पालनपोषण करता था. बड़ी बेटी जानकी जवान हुई तो उस ने उस का विवाह कर दिया. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

रिश्तों का कत्ल : बेटा बना हत्यारा

आजकल के बच्चे यह नहीं समझते कि पिता केवल बच्चों का जन्मदाता ही नहीं होता, बल्कि उन का पालनहार होता है. ऐसे में अगर बेटा पिता का बेरहमी से कत्ल करने के साथ ही साथ उस के गुप्तांगों को भी कुचल दे तो बेरहमी की सीमा का पता लगता है.

यह एक बाप का नहीं, बापबेटे के रिश्ते और भरोेसे का भी कत्ल होता है. ऐसी घटनाएं आजकल तेजी से बढ़ने लगी हैं. लखनऊ जिले के निगोहां थाना क्षेत्र के रंजीत खेड़ा गांव में ऐसी ही घटना ने दिल को झकझोर कर रख दिया है.

‘‘यह खेती और जमीन मेरी है. इस का मैं मालिक हूं. मैं जिसे चाहूंगा, उसे दूंगा. तुम्हारे कहने से मैं इस को तुम्हें हरगिज नहीं दूंगा.’’ 70 साल के महादेव ने अपने बेटे जगदेव के साथ रोजरोज की लड़ाई से तंग आ कर यह इसलिए कहा कि ऐसी धमकी से बेटे जगदेव के मन में डर बैठेगा. वह पिता की बात मानेगा.

‘‘हमें पता है, तुम ने जमीन बेचने का बयाना ले लिया है. लेकिन इतना सुन लो कि उस में से मेरा हिस्सा मुझे भी चाहिए.’’ महादेव के बडे़ बेटे जगदेव ने पिता को अपना फैसला सुनाते हुए कहा.

बयाना वह पैसा होता है, जो जमीन बेचने के लिए अग्रिम धनराशि होती है. इस के बाद जब जमीन खरीदने वाला पूरा पैसा चुका देता है तो जमीन की लिखतपढ़त की जाती है.

जगदेव को यह लग रहा था कि जब बयाने में ही उस का हिस्सा नहीं मिलेगा तो जमीन बिकने पर मिलने वाली रकम में भी उसे हिस्सा नहीं मिलेगा. ऐसे में वह बयाने की रकम से ही हिस्सा लेने की जिद करने लगा. जबकि महादेव जगदेव को हिस्सा नहीं देना चाहता था.

जगदेव का अपने पिता के साथ मतभेद रहता था. उसे बारबार यह लगता था कि उस के पिता उस के बजाए छोटे भाईबहनों को अधिक चाहते हैं.

इस के अलावा उसे इस बात की नाराजगी रहती थी कि उस के पिता के संबंध उन्नाव में रहने वाली गायत्री नाम की महिला के साथ थे. जबकि गायत्री और महादेव के ऐेसे कोई संबंध नहीं थे. हमउम्र होेने के कारण दोनों एकदूसरे के साथ खुल कर बातें कर लेते थे. एकदूसरे का सुखदुख बांट लेते थे.

बेटा जगदेव यह नहीं समझ पा रहा था कि 70 साल की उम्र में उस के पिता से क्या संबंध हो सकते हैं. उसे इस उम्र में भी पिता का किसी औरत से बात करना खराब ही लगता था. उसे सब चरित्रहीन ही दिखते थे.

महादेव सारे पैसे अपने पास रखना चाहते थे. कारण यह था कि उन्हें लगता था कि अगर उन के पास पैसे नहीं होंगे तो कोई भी बुढ़ापे में सहारा नहीं देगा.

वैसे महादेव ने अपनी जमीन का ज्यादातर हिस्सा अपने बेटों को दे दिया था. कुछ जमीन ही उस ने अपने पास रखी थी. इस के अलावा थोड़ी सी जमीन वह बेचने की सोच रहा था.

इसी जमीन के टुकड़े के बिकने पर मिले पैसों के कारण विवाद बढ़ गया था. गांव में रहने वाले बूढे़ लोगों के पास जमीन का ही सहारा होता है.

आमतौर पर बूढ़े होते मांबाप की जमीन पर बेटों का कब्जा हो जाता है और बूढे़ बिना किसी आश्रय के जीवन गुजारने को मजबूर हो जाते हैं. जब तक मातापिता जीवित रहते हैं तब तक तो थोड़ाबहुत काम चल भी जाता है, पर दोनों में से कोई एक बचता है तो उस का जीवन कठिन हो जाता है.

घर में बेटे के साथ रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर महादेव ने सोचा कि अब वह अपने ही बनाए घर में नहीं रहेगा. महादेव ने अपने खेत में एक कमरा बना रखा था, जहां ट्यूबवैल था.

बेटे से रोज के झगडे़ को खत्म करने के लिए वह खेत में बने कमरे में रहने लगा. यह गांव से बाहर सुनसान जगह पर था. उसे यहां मच्छर और जंगली जानवरों का डर रहता था. पर घर में बेटे की गाली और मार खाने से यहां जंगल में अकेले रहने में उसे सुकून महसूस होता था.

महादेव का दूसरा बेटा गया प्रसाद गांव में कम ही रहता था. वह मजदूरी करने शहर ही जाता था. ऐसे में उस का घर के मामलों में दखल कम रहता था.

महादेव की दोनों बेटियां श्वेता और बिटाना अपने मांबाप के करीब रहती थीं. उन की भी भाइयों से कम ही बनती थी. ऐसे में परिवार में आपस में कोई सामंजस्य नहीं था.

महादेव लखनऊ जिले के निगोहां थानाक्षेत्र के रंजीत खेड़ा गांव में रहता था. उस की उम्र 70 साल के करीब थी.

महादेव के 2 बेटे जगदेव  प्रसाद और गया प्रसाद और 2 बेटियां श्वेता और बिटाना थीं. सभी बच्चों की शादी हो चुकी थी.

महादेव का उन्नाव आनाजाना था. वहां रहने वाली गायत्री (बदला हुआ नाम) से उस के नजदीकी रिश्ते थे. यह बात बेटे जगदेव को नागवार लगती थी. वह इस बात को ले कर अकसर अपने पिता को ताना मारता रहता था.

इस बात से नाखुश पिता महादेव घर की जगह खेत पर बने कमरे में पत्नी शांति देवी के साथ रहता था. 26 अगस्त, 2021 की रात शांति देवी और महादेव अगलबगल सो रहे थे. शांति देवी को ठीक से नींद नहीं आती थी तो डाक्टर की सलाह पर वह नींद की गोली खा कर सोती थी. ऐसे में उसे अपने आसपास का पता नहीं होता था.

27 अगस्त की सुबह जब वह उठी तो देखा कि उस के बगल में सो रहे महादेव की किसी ने हत्या कर दी है.

खून से लथपथ पति का शव देख कर शांति देवी चीख पड़ी. उस के चिल्लाने की आवाज सुन कर गांव के लोग वहां पहुंच गए.

घटना की सूचना गांव के लोगों ने निगोहां थाने की पुलिस को दी. पुलिस ने महादेव के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद महादेव के बेटे जगदेव की लिखित तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

मामले की सूचना मिलने के बाद एसपी (ग्रामीण) हृदेश कुमार और सीओ निगोहां नईमुल हसन ने हत्या की गुत्थी को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह व एसआई राम समुझ यादव के साथ एक पुलिस टीम का गठन किया.

थानाप्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह हत्या के कुछ दिन पहले ही निगोहां थाने में नई पोस्टिंग पर आए थे. ऐसे में आते ही हत्या की गुत्थी सुलझाने का दायित्व संभालना पड़ा. महादेव की दोनों बेटियों श्वेता और बिटाना का शक भाई के साथ रहने वाली महिला पर था. क्योंकि पिता को बिना शादी के उस का साथ रहना पसंद नहीं था.

पुलिस की टीम ने जब गांव के लोगों और महादेव के घर वालों से अलगअलग बातचीत की तो मामले का हैरतअंगेज खुलासा हुआ. घरपरिवार की शंका से अलग आरोपी सामने आया. पुलिस ने जब गहरी छानबीन की तो पता चला कि महादेव की हत्या उस के बेटे जगदेव ने की है.

पुलिस की पूछताछ में जगदेव ने बताया कि जब पिता ने उसे जमीन में हिस्सा देने से मना किया और जमीन बेचने के लिए जो बयाना लिया था, उस में भी हिस्सा नहीं दिया था.

उसे लगता था कि ऐसा वह किसी के बहकावे में आ कर कर रहे थे. जिस से वह तनाव में रहने लगा. 32 साल के जगदेव ने सोचा कि क्यों न वह अपने पिता का कत्ल कर दे, जिस से रोजरोज का झंझट ही खत्म हो जाए.

जगदेव यह जानता था कि उस की मां नींद की दवा खा कर सो जाती है. उसे अपने आसपास का कुछ पता नहीं रहता था.

26 अगस्त, 2021 की रात करीब ढाई बजे जगदेव अपने पिता के कमरे तक पहुंच गया. वहां मां सो रही थी. पास में ही अलग चारपाई पर पिता महादेव भी सो रहे थे. जगदेव ने सब से पहले पिता के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह आवाज न कर सकें. इस के बाद पत्थर से प्रहार कर के सिर को फोड़ दिया.

पिता जीवित न रह जाएं, इस कारण उस ने पिता के निजी अंगों पर भी प्रहार कर के उन की हत्या कर दी. इस के बाद वह चुपचाप वहां से भाग गया.

सुबह जब उस की मां ने शोर मचाया और गांव के लोग जमा हो गए तो जगदेव भी वहां पंहुचा और उस ने पुलिस को अपने पिता की हत्या की तहरीर दी. उस समय किसी को भी यह शंका नहीं थी कि उस ने ही पिता के साथ ऐसा किया होगा.

जगदेव को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

प्यार का खौफनाक जुनून : रूपिंदर बनी अपनों की कातिल

उस दिन शाम को सुखविंदर सिंह कुलवंत सिंह के घर पहुंचा तो अजीब नजारा देखने को मिला. मकान का दरवाजा खुला था लेकिन अंदर किसी प्रकार की रोशनी नहीं थी. सुखविंदर हैरत में पड़ गया कि आखिर ऐसा क्यों है. वह दरवाजे से अंदर घुसा तो अंधेरे में  उसे रूपिंदर कौर चहलकदमी करती दिखाई दी, वह काफी बेचैन दिख रही थी. रूपिंदर कुलवंत सिंह की पत्नी थी.

रूपिंदर ने दरवाजे पर खड़े सुखविंदर को देख भी लिया था. इस के बावजूद उस ने चहलकदमी करनी बंद नहीं की. न जाने वह किस उधेड़बुन में लगी थी, जिस कारण टहलती रही.

सुखविंदर बराबर कुलवंत के घर आताजाता रहता था. कौन सी चीज कहां है, वह बखूबी जानता था. उस ने दरवाजे के पास लगे स्विच बोर्ड से स्विच औन कर दिया. तुरंत ही कमरा रोशनी से जगमगा उठा.

सुखविंदर रूपिंदर कौर के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला, ‘‘भाभी, बडे़बुजुर्ग कहते हैं कि जब दिनरात मिल रहे हों, तब घर में अंधेरा नहीं रखना चाहिए, अपशकुन होता है.’’

रूपिंदर के मुंह से आह निकली, ‘‘जिस के जीवन में अंधेरा हो, उस के घर में अंधेरा क्या और शकुनअपशकुन क्या.’’

‘‘आज बड़ी दिलजली बातें कर रही हो. पूरा मोहल्ला जगमगा रहा है और तुम अंधेरा किए टहल रही हो. बात क्या है भाभी?’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं बस यूं ही.’’ रूपिंदर कौर ने जवाब दिया.

‘‘टालो मत,’’ सुखविंदर ने रूपिंदर का हाथ पकड़ लिया, ‘‘बताओ न भाभी, क्या बात है?’’

प्रेम व अपनत्व से बोले गए शब्द बहुत गहरा असर करते हैं. रूपिंदर कौर पर भी असर हुआ. उस की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. सुखविंदर विवाहित था, इसलिए उसे औरतों का मन पढ़ना और समझना आता था.

वह जानता था कि कोई भी औरत पराए मर्द के सामने तभी आंसू बहाती है, जब वह अंदर से बहुत भरी होती है. उस की भड़ास का प्रमुख कारण पति सुख से वंचित होना भी होता है.

सुखविंदर ने हाथ में लिया हुआ रूपिंदर का हाथ आहिस्ता से दबाया, ‘‘बताओ न भाभी, तुम्हें कौन सा दुख है. संभव हुआ तो मैं तुम्हारे जीवन में खुशियां भरने की कोशिश करूंगा.’’

सुखविंदर के हाथों से हाथ छुड़ा कर रूपिंदर कौर ने दुपट्टे के पल्लू से अपने आंसू पोंछे, फिर धीरे से बोली, ‘‘मेरे नसीब में पति का प्यार नहीं है. यही एक दुख है, जो मुझे जलाता रहता है.’’

सुखविंदर चौंका, ‘‘यह क्या कह रही हो भाभी?’’

‘‘हां, सही कह रही हूं सुखविंदर.’’

‘‘अगर कुलवंत सिंह तुम को प्यार नहीं करता तो 2 बेटे कैसे हो गए.’’

‘‘वह तो मिलन का नतीजा है और एक बात बताऊं कि बच्चे तो जानवर भी पैदा करते हैं. औरत सिर्फ प्यार की भूखी होती है. उसे पति से प्यार न मिले तो उसे अपनी जिंदगी खराब लगने लगती है.’’

सुखविंदर आश्चर्य से रूपिंदर कौर का मुंह ताकता रह गया. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि रूपिंदर मन की बात इस तरह खुल्लमखुल्ला कह सकती है.

सुखविंदर के मनोभावों से बेखबर रूपिंदर अपनी धुन में बोलती रही, ‘‘सैक्स और प्यार में अंतर होता है. खाना, कपड़ा देने और सैक्स करने से औरत के तकाजे पूरे नहीं होते. कोई दिल से चाहता है, खयाल रखता है, तब औरत पूरी तरह से खुश रहती है.’’

सुखविंदर सोचने लगा कि रूपिंदर की बात में दम है. मात्र खाना, कपड़ा, सुहाग की निशानियां और सैक्स ही औरत के लिए सब कुछ नहीं होता. दिल और रूह को छू लेने वाला प्यार भी उसे चाहिए होता है. दिल ठंडा होता है और रूह सुकून पाती है, तब कहीं औरत के प्यार की प्यास बुझती है.

सुखविंदर समझ नहीं पा रहा था कि वह इस सिलसिले में क्या कहे. रूपिंदर का मामला सुखविंदर के अधिकार क्षेत्र से बाहर था. इसलिए उस ने इस मामले में चुप रहना उचित समझा. लेकिन रूपिंदर चुप रहने वाली नहीं थी. जिस मुद्दे को उठा कर उस ने बात शुरू की थी, वह उसे अंजाम तक पहुंचाना चाहती थी.

कुछ देर तक रूपिंदर सुखविंदर का हैरानपरेशान चेहरा ताकती रही. फिर उसी अंदाज में उस का हाथ पकड़ लिया, जिस तरह सुखविंदर ने उस का हाथ पकड़ा था, ‘‘तुम मेरी परेशानियां दूर कर के जिंदगी खुशियों से भरने की बात कह रहे थे, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है.’’

सुखविंदर ने रूपिंदर कौर के हाथों से अपना हाथ खींच लिया, ‘‘भाभी, वो तो मैं ने ऐसे ही बोल दिया था.’’

‘‘ऐसे ही नहीं बोले थे,’’ रूपिंदर ने फिर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मैं जानती हूं तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार है. उसी प्यार के नाते तुम ने मेरे जीवन को खुशियों से भरने की बात कही. जो कहा है उसे पूरा करो.’’

‘‘भाभी, जो तुम चाहती हो, मुझ से नहीं होगा.’’ वह बोला.

‘‘तुम्हारा यह सोचना गलत है कि मैं तुम से सैक्स संबंध चाहती हूं.’’ रूपिंदर सुखविंदर की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘पति मुझे यह सब तो देता है, लेकिन मुझे प्यार नहीं करता.’’

सुखविंदर उलझने लगा, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘क्या तुम मुझे प्यार भी नहीं दे सकते,’’ रूपिंदर उस की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ‘‘शब्दों से मेरे मर्म को स्पर्श करो. आमनेसामने बात करने में शर्म आए तो फोन पर बात कर लिया करो. अपनी भाभी से बातें करने में तुम्हें किसी किस्म का ऐतराज नहीं होना चाहिए.’’

सुखविंदर से कुछ कहते नहीं बना. रूपिंदर कौर के सामने खड़ा रहना उस ने मुनासिब नहीं समझा. उस से बिना कुछ बोले वह बाहर  निकला, बाहर खड़ी बाइक पर सवार हुआ और वहां से चला गया.

दरवाजे पर आ खड़ी रूपिंदर कौर के चेहरे पर कुटिल मुसकान थी. मर्द पर औरत का वार कभी खाली नहीं जाता. प्यार का जाल फेंकना रूपिंदर कौर का काम था, वह उस ने कर दिया. अब आगे का काम सुखविंदर को करना था.

पंजाब के गुरदासपुर जिले के काहनूवान थाना क्षेत्र के बलवंडा गांव में रहते थे कुलवंत सिंह. वह सेना में थे. सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने पुणे की एक निजी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली थी.

उन के परिवार में पत्नी रूपिंदर कौर और 2 बेटे रणदीप उर्फ बौबी (26) और करणदीप (24) थे. रणदीप की शादी हो चुकी थी. उस की पत्नी कनाडा में रहती थी. रणदीप पास के ही एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. करणदीप सेना में नौकरी करता था.

45 वर्ष की उम्र हो गई थी रूपिंदर की, 2-2 जवान बेटे थे. लेकिन उस के शरीर की आग इस उम्र में भी भभक रही थी. रूपिंदर स्वभाव की अच्छी नहीं थी. वह काफी स्वार्थी और महत्त्वाकांक्षी औरत थी. उसे सिर्फ अपना सुख प्यारा था, न उसे अपने पति की चिंता होती थी और न ही अपने बेटों की.

कुलवंत जब तक सेना में था तो वहीं रहता था, कभीकभी घर आता था. जब रिटायर हो कर घर आया तो उस का घर में रहना मुश्किल होने लगा. दिन भर रूपिंदर के तरहतरह के ताने, लड़ाईझगड़ा तक उसे झेलना पड़ता.

सैक्स की भूखी रूपिंदर को हर रोज ही बिस्तर पर पति का सुख चाहिए होता था. इस सब से आजिज आ कर ही कुलवंत पुणे चला गया था और वहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.

घर पर अकेली ही रहती थी रूपिंदर कौर. बेटा रणदीप रात में ही घर आता था. ऐसे में रूपिंदर का समय काटे नहीं कटता था. पति के अपने से दूर चले जाने के बाद रूपिंदर कौर पति सुख से भी वंचित थी. ऐसे में रूपिंदर ने भी वही करने की ठान ली जो उस जैसी औरतें ऐसे हालात में करती हैं यानी अपने सुख के साथी की तलाश.

रूपिंदर की जानपहचान चक्कशरीफ में रहने वाले सुखविंदर सिंह उर्फ सुक्खा से थी. वह उस के पति का दोस्त था. सुखविंदर उस से मिलने उस के घर आयाजाया करता था.

एक दिन रूपिंदर कौर अपने सुख के साथी के बारे में सोच रही थी कि कौन हो कैसा हो तो अचानक ही उस के जेहन में सुखविंदर का चेहरा कौंध गया. बस, उस के बाद रूपिंदर कौर सुखविंदर को नजदीक जाने की योजना बनाने लगी.

उस शाम वह कमरे में चहलकदमी करते हुए सुखविंदर को अपने जाल में फांसने की सोच रही थी. यही सोचतेसोचते कब अंधेरा हो गया, उसे पता ही नहीं चला. संयोग से तभी सुखविंदर भी आ गया.

उसे देखते ही जिस आइडिया के लिए रूपिंदर कौर कई दिन से परेशान थी, वह एकदम से उस के दिमाग में आ गया. उस के बाद रूपिंदर कौर ने ऐसा प्रपंच रचा कि सुखविंदर उस में फंस गया.

सुखविंदर आपराधिक प्रवृत्ति का था. पठानकोट में उस के खिलाफ लूट के कई मामले दर्ज थे. एक मामले में वह कुछ दिन पहले ही जेल से छूट कर आया था. रूपिंदर कौर क्या चाहती है, क्यों उसे अपने जाल में फांस रही है, यह बात वह बखूबी जान रहा था.

शिकारी रूपिंदर को लग रहा था कि सुखविंदर को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उसे अपना शिकार बना लेगी. मगर सुखविंदर खुद ही बड़ा शिकारी था.

उसे तो खुद रूपिंदर का शिकार होने में मजा आ रहा था. वह अपनी मरजी से रूपिंदर का शिकार बन रहा था. उस की बातों व हरकतों का मजा ले रहा था. आखिर इस में फायदा तो उसी का था. रूपिंदर को इस बात का आभास तक नहीं था.

सुखविंदर रूपिंदर की बातों को सोचसोच कर बारबार मुसकराता. उस की आंखों के सामने रूपिंदर कौर का रूप चलचित्र की भांति घूमने लगता. ऐसे में सुखविंदर भी रूपिंदर के रूप का प्यासा बन बैठा.

अब जब भी रूपिंदर के घर जाता तो उसे प्यासी नजरों से निहारता रहता. दिखाने के लिए रूपिंदर की चाहत का मान रखते हुए उस से प्रेम भरी बातें करता. उन प्रेम भरी बातों में पड़ कर रूपिंदर उस से सट कर बैठ जाती.

वह कभी उस के कंधे पर सिर रख कर उस से बातें करती तो कभी उस के सीने पर अपना सिर रख देती और कान से उस के दिल की धड़कनों को सुनती रहती. तेज धड़कनों का एहसास होते ही वह मंदमंद मुसकराने लगती.

एक दिन ऐसे ही सुखविंदर के सीने से अपना सिर लगा कर रूपिंदर बैठी थी. उस की चाहतें उसे कमजोर बनाने लगीं. काफी समय से वह अपनी चाहत को पूरा करने का इंतजार कर रही थी.

अब जब एक पल का इंतजार भी बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने सुखविंदर के होंठों को चूम लिया. सुखविंदर भी इसी मौके की तलाश में था. उस ने भी रूपिंदर को अपनी बांहों में भर लिया.

उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. रूपिंदर ने अपनी चाहत को अंजाम तक पहुंचाया. इस के बाद उन के बीच यह रोज का सिलसिला बन गया.

23 मई, 2021 को गांव झंडा लुबाना के डे्रन के पास एक अधजली लाश पड़ी थी. वहीं पास में ही झंडा लुबाना गांव निवासी गुरुद्वारा साहिब कमेटी के प्रधान त्रिलोचन सिंह का खेत था. वह खेत में पानी लगाने के लिए आए, वहां उन्होंने एक युवक की अधजली लाश पड़ी देखी. उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को इस की सूचना दे दी.

घटनास्थल काहनूवान थाना क्षेत्र में आता था, इसलिए घटना की सूचना काहनूवान थाने को दे दी गई.

सूचना मिलने पर थानाप्रभारी सुरिंदर पाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. एसएसपी डा. नानक सिंह व अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

लाश पूरी तरह नहीं जली थी. देखने में वह किसी 25 से 28 साल के युवक की लाश लग रही थी. जिस जगह लाश पड़ी थी, उसे देखने पर अनुमान लगाया गया कि हत्यारों ने लाश को वहीं जलाया था. उस जगह पर जलाए जाने के निशान मौजूद थे.

आसपास के लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन शिनाख्त न हो सकी. शिनाख्त न होने पर लाश के कई कोणों से फोटो खिंचवाने और जरूरी काररवाई करने के बाद थानाप्रभारी सुरिंदर पाल ने लाश सिविल अस्पताल में रखवा दी. उस के बाद थाने वापस आ गए.

इस बीच उन्हें पता चला कि बलवंडा गांव का युवक रणदीप सिंह लापता है. इस पर थानाप्रभारी रणदीप सिंह के घर गए. वहां उस की मां रूपिंदर कौर मिली.

उन्होंने रूपिंदर कौर को बताया कि डे्रन के पास एक अधजली लाश मिली है. उस की शिनाख्त होनी है, हो सकता है वह उन के बेटे की हो.

रूपिंदर कौर ने उन के साथ अस्पताल जा कर लाश को देखा. देखने के बाद रूपिंदर कौर ने लाश अपने बेटे की होने से साफ इनकार कर दिया.

फिलहाल लाश का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि मृतक के एक पैर में रौड पड़ी हुई है. थानाप्रभारी सुरिंदर पाल ने पता किया तो पता चला कि रणदीप के पैर में भी रौड पड़ी हुई थी. इस का मतलब यह था कि लाश रणदीप की ही है.

रणदीप की लाश को उस की मां रूपिंदर कौर ने पहचानने से क्यों इनकार कर दिया. इस का जवाब रूपिंदर ही दे सकती थी. वैसे भी इस स्थिति में थानाप्रभारी सुरिंदर पाल का शक रूपिंदर कौर पर बढ़ गया कि हो न हो इस घटना में रूपिंदर कौर का ही हाथ हो सकता है.

इस के बाद रूपिंदर कौर को हिरासत में ले लिया गया. पहले तो वह पुलिस को गुमराह करती रही, पर जब सख्ती की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

घटना में उस का प्रेमी सुखविंदर उर्फ सुक्खा और सुक्खा का दोस्त गुरजीत सिंह उर्फ महिकी भी शामिल था. तत्काल उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

जांच में पता चला कि रूपिंदर कौर और सुखविंदर सिंह के अवैध संबंधों के बारे में रणदीप को पता लग गया था. इसे ले कर रोज घर में कलह होने लगी. इस के बाद रूपिंदर को अपना ही बेटा दुश्मन लगने लगा. वह बेटे रणदीप से नफरत करने लगी.

रणदीप के बैंक खाते में 5 लाख रुपए थे. रणदीप अपनी पत्नी के पास कनाडा जाना चाहता था, उसी के लिए उस ने पैसे जमा कर रखे थे. शातिर रूपिंदर ने उसे बहलाफुसला कर वे रुपए अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए.

रणदीप का विरोध बढ़ता गया. इतना ही नहीं, रूपिंदर का सुखविंदर से मिलना मुश्किल होने लगा तो उस ने रणदीप को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

रूपिंदर ने सुखविंदर से बेटे रणदीप की हत्या करने की बात कही. सुखविंदर तो वैसे ही अपराधों में लिप्त रहने वाला इंसान था, इसलिए वह तुरंत तैयार हो गया. रणदीप की हत्या करने के लिए उस ने अपने ही गांव चक्क शरीफ निवासी गुरजीत सिंह उर्फ महिकी को भी शामिल कर लिया. इस के बाद तीनों ने रणदीप की हत्या की योजना बनाई.

22 मई, 2021 की रात रूपिंदर कौर ने रणदीप के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. खाना खाने के बाद रणदीप सो गया. गोलियों के कारण नशे की हालत में वह बेसुध था. सुखविंदर तय समय के हिसाब से दोस्त गुरजीत के साथ रूपिंदर के घर पहुंच गया.

तीनों ने मिल कर चाकू और हथौड़ी से वार कर के रणदीप को मौत के घाट उतार दिया. फिर आधी रात को रणदीप की लाश गांव झंडा लुबाना के डे्रन के पास ले जा कर डाल दी और पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. फिर वहां से वापस अपने घरों को लौट गए. लेकिन लाश पूरी तरह जल नहीं पाई.

तीनों का गुनाह छिप न सका और पकड़े गए. पुलिस ने उन के खिलाफ हत्या और सबूत मिटाने का मुकदमा दर्ज कर दिया. तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

खून में डूबी दूध की धार : माँ हुई मौत का शिकार

20 दिसंबर, 2020 को सुबह के 7 बजे का वक्त रहा होगा. ममता सो कर उठी तो सब से पहले उसे अपनी मम्मी की याद आई. क्योंकि ममता हर रात अपनी मां के लिए 5-6 बादाम पानी में भिगो कर रखती थी. जिन्हें सुबह होते ही छील कर मां को खाने के लिए देती थी.

उस ने बादाम छीले और मां हीरा देवी को आवाज लगाई. लेकिन मां ने जब कोई जबाव नहीं दिया तो वह उन के कमरे में गई. उस वक्त उस की मां लिहाफ ओढ़े सोई हुई थी.

मां को सोता देख कर उसे हैरानी हुई कि वह अभी तक सोई हुई हैं. जबकि हर रोज वह सब से पहले उठ जाती थीं.

मम्मी के पास जा कर उस ने उन के मुंह से लिहाफ हटाया तो उन के चेहरे को रक्तरंजित देख ममता के होश उड़ गए.

मां की हालत देख उस की चीख निकल गई. सुबहसुबह ममता के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर उस की छोटी बहन अंजलि और भाई रवींद्र भी कमरे में आ गए. कमरे में सोती मां हीरा देवी की किसी ने रात में गरदन काट कर हत्या कर दी थी.

सुबहसुबह हीरा देवी की हत्या की बात सुनते ही वहां कुछ ही देर में काफी लोग इकट्ठा हो गए. हीरा देवी की हत्या किस ने और क्यों की, यह कोई नहीं समझ पा रहा था. उस रात उस घर में 5 सदस्य थे, स्वयं हीरा देवी, उन की 2 बेटियां ममता, अंजलि और बेटे रवींद्र शाही व राहुल. हीरा देवी के पति राजेंद्र सिंह शाही किसी काम से घर से बाहर गए हुए थे.

हालांकि राजेंद्र शाही का घर अलग था, लेकिन घर के मुख्य दरवाजे पर लोहे का जाल वाला शटर लगा था. जिस के होते बाहर वाले इंसान का घर में घुसना नामुमकिन था. फिर ऐसे में बाहर का व्यक्ति घर में घुस कर हीरा देवी की हत्या कर के कैसे भाग सकता था. यह बात समझ के बाहर थी.

इस घटना की जानकारी हल्द्वानी की टीपी नगर पुलिस चौकी को दी गई. चौकी इंचार्ज ने यह सूचना आला अधिकारियों को दे दी. एक 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला की हत्या की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) अमित श्रीवास्तव, सीओ शांतनु पाराशर, कोतवाल संजय कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे.

पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए मृतका हीरा देवी के परिवार वालों से विस्तार से जानकारी हासिल की.

पुलिस पूछताछ में ममता शाही ने बताया कि हर रोज की तरह सभी घर वाले खाना खा कर सो गए थे. वह सुबह उठी तो मम्मी को बादाम देने गई. तब उसे पता चला कि किसी ने मम्मी का गला काट कर हत्या कर दी. उन की हत्या किस ने किस समय की, किसी को कुछ नहीं मालूम. उस ने बताया कि मम्मी अलग कमरे में सोती थीं और घर के बाकी सदस्य अलग कमरों में सोते थे.

मृतका के पति राजेंद्र शाही उस रात भोटिया पड़ाव क्षेत्र अंबिका विहार में रहने वाली अपनी चाची के घर गए हुए थे. इस घटना की जानकारी उन को छोटी बेटी अंजलि ने फोन कर के दी. तब राजेंद्र शाही घर लौट आए.

घटना की जांचपड़ताल हेतु फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलाया गया था. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल कर के जरूरी नमूने ले कर पैक कर लिए. इस केस के खुलासे के लिए एसपी (सिटी) अमित श्रीवास्तव ने कोतवाल संजय कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.

घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने के बाद पुलिस ने हीरा देवी की लाश पोस्टमार्टम हेतु भिजवा दी. 20 दिसंबर, 2020 को ही मृतका की बेटी मंजू शाही की तरफ से कोतवाली हल्द्वानी में अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया गया.

केस दर्ज होते ही पुलिस टीम ने अपनी काररवाई में फिर से फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. पुलिस ने मृतका के पति राजेंद्र शाही और उन के परिवार वालों से पूछताछ की तो पता चला कि इस परिवार में काफी समय से संपत्ति को ले कर विवाद चल रहा था.

इस मामले में राजेंद्र शाही का सब से छोटा बेटा राहुल उर्फ राजा हमेशा तनाव में रहता था, जिस के कारण आए दिन मांबेटे में किसी न किसी बात को ले कर तकरार होती रहती थी.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने राहुल को पूछताछ के लिए अपनी कस्टडी में ले लिया. पुलिस ने राहुल को एकांत में ले जा कर उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने साफ शब्दों में कहा कि वह अपनी मां को क्यों मारेगा क्योंकि मां ही उस का सहारा थी.

उसी दौरान राहुल की बहन ममता ने पुलिस को बताया कि राहुल रात में कभी भी घर का शटर खोल कर बाहर घूमने लगता था. घटना वाली रात भी उस ने उसे रात के एक बजे घर के बाहर घूमते देखा था. इस बात की जानकारी मिलते ही पुलिस का उस के प्रति शक गहरा गया.

पुलिस ने उस की जांचपड़ताल करते हुए उस के कपड़े देखे. उस ने उस वक्त लोअर के ऊपर पैंट पहन रखी थी. पुलिस ने उस की पैंट उतरवाई तो सारा मामला सामने आ गया. उस की लोअर खून से सनी हुई थी.

पुलिस पूछताछ में वह लोअर पर लगे खून का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. उस के जिस मां ने बेटे को 9 महीने कोख में पाला, उस के लालनपालन में अपनी नींद चैन की भी परवाह नहीं की, वही कपूत बन गया था. राहुल और उस के परिवार वालों की जानकारी से इस हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह हृदयविदारक थी.

उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी की ट्रांसपोर्ट नगर चौकी के अंतर्गत एक गांव है करायल जौलासाल. राजेंद्र शाही का परिवारइसी गांव में रहता था. राजेंद्र शाही फौज में थे. फौज में होने के कारण वह साल में एकाध बार ही अपने घर आ पाते थे. राजेंद्र शाही के परिवार में उन की पत्नी हीरा देवी सहित समेत 8 सदस्य थे. 4 बेटियों और 2 बेटों में राहुल उर्फ राजा सब से छोटा था.

राजेंद्र सिंह के फौज में होने के कारण सभी बच्चों का लालनपालन हीरा देवी की देखरेख में ही हुआ था. हीरा देवी के सभी बच्चे समझदार थे. सभी ने मन लगा कर पढ़ाई की, जिस की वजह से सभी कामयाब हो गए थे.

राजेंद्र शाही ने बहुत पहले बच्चों की सहूलियत के हिसाब से गांव के छोर पर काफी बड़ा मकान बनवाया था. उन के पास पैसों की कमी नहीं थी. उसी दौरान उन्होंने अपने घर के सामने एक प्लौट और खरीद लिया था. जिसे उन्होंने अपनी बड़ी बेटी ममता के नाम करा दिया था.

ममता अपनी मां के साथ रहती थी. दूसरे नंबर की बेटी मंजू की शादी हो चुकी थी. तीसरे नंबर पर रवींद्र सिंह था, जो फौज में चला गया था.

रवींद्र की शादी पिथौरागढ़ की युवती से हुई थी. उस की पत्नी अधिकांशत: पिथौरागढ़ में ही रहती थी. राजेंद्र शाही की चौथे नंबर की बेटी सपना सरकारी टीचर बनकर मनीला में रहने लगी थी. जबकि पांचवें नंबर की बेटी अंजलि भीमताल में टीचर बन गई थी. राहुल इन सब में सब से छोटा था. जो इंटरमीडिएट पास करने के बाद नौकरी की तलाश में लगा था.

इस परिवार में सभी पढ़ेलिखे होने के बावजूद एकदूसरे से तालमेल नहीं बिठा पाते थे. हीरा देवी का शुरू से ही लड़कियों की तरफ झुकाव था. यही कारण था कि उन्होंने जब घर के सामने प्लौट खरीदा था, वह किसी लड़के के नाम न करा कर अपनी सब से बड़ी बेटी ममता के नाम कराया था. वही प्लौट बाद में पारिवारिक विवाद का कारण बना.

हीरा देवी की अन्य बेटियां भी उस प्लौट पर अपना अधिकार जमाना चाहती थीं, जबकि ममता उस पर केवल अपना ही अधिकार मानती थी. इसी विवाद के चलते अब से लगभग 16 साल पहले पतिपत्नी में मनमुटाव हो गया था. मनमुटाव के चलते पतिपत्नी के रिश्तों में ऐसी दरार आई कि राजेंद्र सिंह अपने परिवार से अलग रहने लगे.

सन 1990 में राजेंद्र सिंह फौज से रिटायर हो चुके थे. उन के रिटायरमेंट के वक्त भी पतिपत्नी में पैसों को ले कर तकरार बढ़ी थी. जिस के बाद राजेंद्र सिंह ने पत्नी को घर खर्च देना बंद कर दिया था. इस पर हीरा देवी ने अदालत में पति के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा दायर किया था, जिस के चलते हीरा देवी को पति की तरफ से हर माह 3 हजार रुपए भरणपोषण के रूप में मिलते थे, जिस के सहारे ही हीरा देवी अपने खर्च चलाती थीं.

सन 2005 से राजेंद्र सिंह का अपने घर आनाजाना बंद हो गया था. अपना घर होने के बावजूद राजेंद्र सिंह को किराए के मकान में रहने पर मजबूर होना पड़ा. फौज से रिटायर होने के बाद उन्होंने रामनगर में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की. उस वक्त बेटा राहुल भी उन के साथ रहता था. राहुल शुरू से ही गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव का था.

राहुल ने इंटरमीडिएट करने के बाद आईटीआई की थी. इस के बावजूद उसे कहीं कोई काम नहीं मिल पाया था. राहुल जब कभी घर जाता तो उस की मां हीरा देवी उसे नौकरी न लगने का ताना मारती थी. जिस से उस की दिमागी हालत और भी खराब होती गई थी.

उस की दिमागी हालत के चलते एक बार राहुल ने खुद को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की थी. उस की मां अपनी बेटियों को ज्यादा ही महत्त्व देती थी, जिस के कारण राहुल की मां से नहीं पटती थी. पत्नी की तरफ से राजेंद्र सिंह का मन टूटा तो उन्होंने रामनगर से नौकरी छोड़ गुजरात जा कर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की.

गुजरात में नौकरी करने के दौरान भी राहुल उन्हीं के साथ रहा. बापबेटे के बाहर रहने के बावजूद राजेंद्र शाही की बेटियों में आपस में तकरार बनी रही.

गुजरात में नौकरी करने के दौरान राहुल किसी बीमारी का शिकार हो गया. उस की परेशानी को देखते हुए राजेंद्र शाही उसे ले कर दिल्ली आ गए. उस के बाद राजेंद्र शाही और राहुल दोनों ने दिल्ली में ही सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली.

दिल्ली में नौकरी करने के दौरान उन्होंने राहुल का एम्स में इलाज कराया. उस दौरान राहुल बीचबीच में घर आताजाता था. लेकिन अपने प्रति मां का बदला व्यवहार देख कर वह फिर अपने पिता के पास चला जाता था. उस के अधिकांश दोस्त पढ़ाई करने के बाद नौकरियों में लग गए थे. लेकिन राहुल ही एक ऐसा बचा था, जिसे बाहर दोस्तों के उलाहने सुनने पड़ते थे और घर में मां की सुनती पड़ती थी.

राहुल की मानसिक हालत और भी खराब हो गई थी. जिस कारण परिवार वालों के प्रति उस का व्यवहार काफी बदल गया था. कभीकभी वह अपने पिता की जिंदगी के बारे में सोचता तो परेशान हो उठता था. उस की नजरों में इस सब का कारण उस की मां हीरा देवी थी, जिस के प्रति उसे नफरत पैदा हो गई थी.

अगस्त, 2020 को दोनों बापबेटे दिल्ली से काम छोड़ कर घर आ गए थे. राजेंद्र शाही किराए के मकान के बजाए अपने ही मकान में रहने लगे थे. दिल्ली से आने के बाद से ही राहुल नौकरी की तलाश में लगा था. लेकिन उस की मां उसे हर वक्त बेरोजगारी का ताना मारती रहती थी. जिस से उस का मानसिक संतुलन और भी खराब हो गया था. ऊपर से पारिवारिक विवाद ने घर की शांति छीन रखी थी.

चारों बहनों में जमीनजायदाद को ले कर मनमुटाव होता रहता था. उस वक्त तक राहुल का बड़ा भाई रवींद्र भी मानसिक परेशानी होने के कारण नौकरी छोड़ कर घर आ गया था.

घर के विवाद को देख कर रवींद्र सिंह ने सभी को समझाने की कोशिश की,लेकिन घर में उस की एक न चली. रवींद्र की पत्नी पहले से ही पिथौरागढ़ में रहती थी. जबकि रवींद्र सिंह परिवार के साथ ही रहता था. एक घर में रहते हुए भी परिवार में अलगअलग खाना बनता था. कुल मिला कर राजेंद्र शाही के पास जमीनजायदाद सब कुछ होने के बावजूद परिवार में खुशियां बिलकुल नही थीं.

20 दिसंबर, 2020 को राहुल कुछ ज्यादा ही परेशान था. थोड़ी देर पहले ही वह शहर से आया था. तभी उस की मां ने फिर से वही ताना मारा, ‘‘आ गया आवारागर्दी कर के, तू नौकरी करेगा भी क्यों? तुझे तो मुफ्त की रोटी खाने की आदत पड़ गई है.’’

हीरा देवी न जाने क्याक्या बड़बड़ाए जा रही थी. इस के बावजूद राहुल चुपचाप घर के अंदर चला गया. उस ने कपड़े चेंज किए, फिर मोबाइल खोल कर उसी में लग गया. लेकिन दिमाग में मां के कहे शब्द बारबार गूंज रहे थे.

शाम तक उस का दिमाग यूं ही घूमता रहा. शाम को पता चला कि उस के पिता आज कहीं गए हुए हैं. वह रात में नहीं आएंगे. राहुल अपने पिता के कमरे में सोता था. उस रात उस ने खाना खाया और फिर अपने ही कमरे में कैद हो गया. रात के 10 बजे ममता ने अपनी मां और भाई रवींद्र को खाना खिलाया और मां हीरा देवी को दवा देने के बाद कमरे में सुला दिया. हीरा देवी बीमार चल रही थी. फिर ममता भी अपने कमरे में जा कर सो गई. लेकिन उस रात राहुल अपनी मां के शब्दों से इतना आहत था कि उसे चाह कर भी नींद नहीं आ रही थी.

तभी उस के दिमाग में तरहतरह की शैतानी खुराफातें पैदा होने लगीं. उस के मन में बैठा शैतान जागा तो उस ने अपनी मां को ही मौत की नींद सुलाने की योजना बना डाली. वह देर रात उठा, फिर अपनी मां के कमरे में जा कर देखा. वह गहरी नींद में सोई पड़ी थीं.

घर के अन्य सदस्य भी अपनेअपने कमरों में सोए हुए थे. अपने कमरे से निकल कर राहुल सीधा किचन में गया. उस ने वहां से चाकू उठाया और उसे हाथ में थामे मां के कमरे की ओर बढ़ गया. हीरा देवी हर रात दवा खा कर सोती थी. उन पर दवाओं का नशा हावी रहता था.

मां को गहरी नींद में सोते देख राहुल शैतान बन गया. उस ने एक हाथ से अपनी मां का मुंह बंद किया और फिर दूसरे हाथ में थामे चाकू से मां के गले पर एक जोरदार वार कर डाला. इस से पहले कि हीरा देवी कुछ समझ पाती, चाकू के एक ही वार से उन के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मौत की नींद सुलाने के बाद राहुल ने अपनी खून में सनी शर्ट चेंज कर ली. लेकिन खून सने लोअर के ऊपर उस ने पैंट पहन ली थी. उस के बाद उस ने बाहर के शटर का लगा ताला खोला, फिर वह निडर बेखौफ बाहर घूमता रहा.

उसी दौरान बाहर उस की आहट सुन कर ममता की आंखें खुलीं तो उस ने उसे बाहर घूमते हुए देखा. लेकिन वह उस की आदत को पहले से ही जानती थी. जिस के कारण उस ने उसे नहीं टोका.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मौके का मुआयना कर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कमरे से राहुल के खून से सने कपड़े तथा वारदात के बाद खून से सने हाथ धोने में प्रयुक्त साबुन भी बरामद कर लिया था. पुलिस ने राहुल को अपनी ही मां की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

जमीनजायदाद के मोह ने एक हंसतेखेलते परिवार को बिखरने पर मजबूर कर दिया था, जिस की परिणति परिवार के सभी लोग रिश्तेनातों को दरकिनार कर कोर्टकचहरी के चक्कर लगा रहे थे.

वहीं घर की अशांति और बेरोजगारी से परेशान राहुल के दिल में परिवार वालों के प्रति इतनी नफरत पैदा हो गई थी कि उस ने अपनी मां को मौत की नींद सुला दिया. हत्या भी ऐसी अकल्पनीय जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं.