प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 3

भगवानदास सोनी के पड़ोस में ही ईश्वरनाथ गोस्वामी परिवार के साथ रहते थे. उन्हीं का बेटा था सुमेरनाथ गोस्वामी. ईश्वरनाथ गोस्वामी के एक भाई पुलिस की नौकरी से रिटायर हो कर जयपुर में रहते थे. उन के बच्चे नहीं थे, इसलिए सुमेरनाथ को उन्होंने गोद ले रखा था. पढ़ाई पूरी कर के सुमेरनाथ एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा था.

सुमेरनाथ नौकरी करने लगा तो घर वालों ने अपनी जाति की लड़की से उस की शादी कर दी थी. चली आ रही परंपरा के अनुसार सुमेरनाथ शादी के पहले पत्नी को देख नहीं सका था. इसलिए शादी के पहले वह उस के बारे में कुछ भी नहीं जान सका. शादी के बाद पत्नी घर आई तो दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. सुमेरनाथ जितना सीधा और सरल था, उस की पत्नी उतनी ही गरममिजाज थी. परिणामस्वरूप दोनों में निभ नहीं पाई.

सुमेरनाथ ने पत्नी को ले कर जो सपने देखे थे, कुछ ही दिनों में सब बिखर गए. पत्नी की वजह से घर में हर समय क्लेश बना रहता था. उस ने पत्नी को बहुत समझाया, लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा. वह किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं थी. पत्नी की वजह से सुमेर परेशान रहने लगा था.

पत्नी के दुर्व्यवहार से तंग सुमेरनाथ का झुकाव पड़ोस में रहने वाली सुनीता सोनी की ओर हो गया था. पड़ोस में रहने की वजह से वह सुनीता को बचपन से देखता आया था. लेकिन उस ने कभी उस से प्यार या शादी के बारे में नहीं सोचा था.

सुनीता सुंदर तो थी ही, इसलिए वह उसे अच्छी भी लगती थी. लेकिन एक तो दोनों की जाति अलग थी, दूसरे मोहल्ले की बात थी, इसलिए सुमेरनाथ ने उस के बारे में कभी इस तरह की बात नहीं सोची थी.

सुनीता को कभी पढ़ाई में कोई परेशानी होती तो वह मदद के लिए सुमेरनाथ के पास आ जाती थी. ऐसे में कभी सुमेरनाथ पत्नी की वजह से परेशान रहता तो वह सहानुभूति जता कर उस की परेशानी को कम करने की कोशिश करती. कभीकभी उसे सुमेरनाथ पर दया भी आती.

परेशानी में सुनीता का सहानुभूति जताना सुमेरनाथ को धीरेधीरे अच्छा लगने लगा था. इसलिए उस की सहानुभूति पाने के लिए वह अकसर उस के सामने पत्नी की व्यथा ले कर बैठ जाता. सुनीता जवान भी हो चुकी थी और खूबसूरत भी थी. बात और व्यवहार से वह समझदार लगती थी, इसलिए सुमेरनाथ उस की ओर आकर्षित होने लगा. उसे लगता, सुनीता जैसी पत्नी मिली होती तो जीवन सुधर गया होता.

मन में आकर्षण पैदा हुआ तो सुनीता के प्रति सुमेरनाथ की नजरें बदलने लगीं. नजरें बदलीं तो बातें भी बदल गईं और उन के कहने का तरीका भी. इस बदलाव को सुनीता ने भांप भी लिया. सुनीता को भी सुमेरनाथ भला आदमी लगता था. सीधासरल भी था और पढ़ालिखा भी. फिर उस के लिए उस के मन में दया और सहानुभूति भी थी.

उसी दौरान जहां सुमेरनाथ का पत्नी की सहमति से तलाक हो गया, वहीं सुनीता की शादी उस के पिता और ताऊ ने एक ऐसे लड़के से तय कर दी, जो अंगूठाछाप था. इस विरोधाभास से सुनीता के मन में घर वालों के प्रति जो विद्रोह उपजा, उस ने सुमेरनाथ के लिए उस के मन में जो सहानुभूति और दया थी, उसे चाहत में बदल दिया. जब दोनों ओर दिलों में चाहत पैदा हुई तो इजहार होने में देर नहीं लगी.

इजहार हो गया तो कभी पढ़ाई के बहाने सुनीता सुमेरनाथ से मिलने उस के घर आ जाती तो कभी किसी बहाने से कहीं बाहर मिलने चली जाती. इन मुलाकातों ने जहां प्यार को बढ़ाया, वहीं व्याकुल मन को शांत करने के लिए मुलाकातें भी बढ़ने लगीं. इन्हीं मुलाकातों ने जब लोगों के मन में संदेह पैदा किया तो लोग उन पर नजरें रखने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि लोगों को उन के प्यार की जानकारी हो गई. बात एक ही मोहल्ले और अलगअलग जाति के लड़केलड़की की थी, इसलिए दोनों को ले कर खुसुरफुसुर होने लगी.

बात दोनों के घर वालों तक पहुंची तो रोकटोक शुरू हुई. लेकिन आज मोबाइल के जमाने में रोकटोक का कोई फायदा नहीं रह गया. दूसरे सुनीता और सुमेरनाथ प्यार की राह पर अब तक इतना आगे निकल चुके थे कि घर वालों की रोकटोक या बंदिशें उस पर जरा भी असर नहीं डाल सकती थीं. क्योंकि अब उन का प्यार मंजिल पाने यानी शादी के मंसूबे तक पहुंच चुका था.

इस की वजह यह थी कि दोनों बालिग थे और अपनाअपना भलाबुरा समझते थे. इसलिए अगर वे अपनी मरजी से भी शादी कर लेते थे तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता था.  सुनीता किसी अनपढ़ से शादी कर के अपनी जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहती. इसलिए वह मांबाप की इज्जत को दांव पर लगा कर सुमेरनाथ से शादी के लिए तैयार थी.

एक औरत के दुर्व्यवहार से दुखी सुमेरनाथ भी सुनीता के व्यवहार का कायल था. इसलिए बाकी की जिंदगी वह सुनीता की जुल्फों तले खुशी से गुजारना चाहता था. उन्हें पता था कि समाज ही नहीं, घर वाले भी उन की शादी कभी नहीं होने देंगे, इसलिए उन्होंने किसी अन्य शहर में जा कर शादी करने का निर्णय लिया.

सुनीता और सुमेरनाथ ने शादी के लिए जरूरी कागजात यानी स्कूल के प्रमाणपत्र आदि सहेज कर रखने के साथ रुपएपैसों की व्यवस्था कर ली. उन्हें पता था कि वे अलगअलग जाति के हैं, इसलिए उन्हें आर्यसमाज मंदिर में शादी करनी होगी. उस के बाद अदालत से विवाह की मान्यता मिल जाएगी. पूरी तैयारी कर के उन्होंने भागने की तारीख भी 2 जुलाई तय कर ली.

योजना के अनुसार, 2 जुलाई, 2014 की रात 3 बजे अपने कपड़े लत्ते ले कर सुनीता तय जगह पर पहुंच गई. सुमेरनाथ वहां पहले ही पप्पूराम की गाड़ी ले कर पहुंच गया था. सुनीता के आते ही उस ने उसे गाड़ी में बिठाया और अपनी मंजिल पर निकल पड़ा.

अपने बयान में सुनीता ने कहा था कि वह बालिग है और उस ने खूब सोचसमझ कर सुमेरनाथ गोस्वामी से शादी की है. अब वह उसी के साथ रहना चाहती है, इसलिए पुलिस सुरक्षा में उसे सुमेरनाथ के साथ सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने की कृपा की जाए.

इस के बाद मजिस्ट्रेट ने सुनीता को सुमेरनाथ के साथ भेजने का आदेश दे दिया. सुनीता अदालत से बाहर निकलने लगी तो उस की एक झलक पाने के लिए भीड़ टूट पड़ी. पुलिस ने हलका बल प्रयोग कर के भीड़ को हटाया और अपनी सुरक्षा में इस प्रेमी युगल को जयपुर पहुंचा दिया. कथा लिखे जाने तक यह दंपति जयपुर में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 2

जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी, पुलिस टीम भागती रही. पुलिस टीम तो सुमेरनाथ और सुनीता के बारे में कुछ भी पता नहीं कर सकी, लेकिन मुखबिरों ने जरूर कामयाबी हासिल कर ली. मुखबिरों ने पुलिस को बताया कि सुमेरनाथ सुनीता को जिस गाड़ी से ले गया है, वह जैसलमेर के थाना सदर के गांव रिदवा के रहने वाले पप्पूराम ओड़ की थी. उस के बाप का नाम पोकराम ओड़ है और गाड़ी का नंबर है आरजे-15टीए-1058.

पुलिस टीम को पप्पूराम का मोबाइल नंबर भी मिल गया था. पुलिस ने तुरंत पप्पूराम को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है तो उस ने बताया कि वह जोधपुर के रातानाडा में है. जैसलमेर पुलिस ने तुरंत थाना रातानाडा पुलिस से संपर्क किया और पप्पूराम ओड़ की गाड़ी का नंबर दे कर उसे पकड़ने के लिए कहा. पकड़े जाने पर तुरंत सूचना देने के लिए भी कह दिया था.

रातानाडा पुलिस पप्पूराम ओड़ को गाड़ी  सहित पकड़ कर थाने ले आई. इस के बाद सूचना पा कर जैसलमेर पुलिस थाना रातानाडा पहुंच गई. सुमेरनाथ और सुनीता के फोटो दिखा कर जब पप्पूराम ओड़ से उन के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उन दोनों को उस ने 2 जुलाई की शाम को जयपुर हाईकोर्ट के पास छोड़ा था. उन्होंने उस की गाड़ी किराए पर ली थी.

पुलिस टीम पप्पूराम को साथ ले कर जयपुर पहुंची. उस ने सुमेरनाथ और सुनीता को जहां छोड़ा था, पुलिस ने वहां दोनों के फोटो दिखा कर आसपास की दुकानों, होटलों और धर्मशालाओं में काफी खोजबीन की, लेकिन वहां उन का कुछ पता नहीं चला. निराश हो कर पुलिस वापस लौट आई. इस के बाद मुखबिरों से पुलिस को सूचना मिली कि सुमेरनाथ सुनीता को ले कर दिल्ली गया है, जहां वे तीसहजारी कोर्ट में शादी करने की कोशिश कर रहे हैं.

पुलिस टीम दिल्ली के तीसहजारी कोर्ट पहुंची. दिल्ली में तीस हजारी कोर्ट के आसपास ठहरने के जितने अड्डे थे, सभी जगह सुनीता और सुमेरनाथ की तलाश की गई. लेकिन कुछ पता नहीं चला. पुलिस टीम दोनों को दिल्ली में तलाश रही थी, तभी सूचना मिली कि दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली है और दिल्ली से सटे गुड़गांव में कहीं रह रहे हैं. पुलिस टीम ने पहले तो आर्यसमाज मंदिर जा कर उन के विवाह से संबंधित सारे दस्तावेज प्राप्त किए, उस के बाद गुड़गांव जा कर उन की तलाश शुरू की.

गुड़गांव कोई छोटी सी जगह तो है नहीं कि लोग सुमेरनाथ और सुनीता का फोटो देख कर पुलिस को बता देते. पुलिस ने अपने हिसाब से गुड़गांव में दोनों की काफी खोजबीन की. जब पुलिस टीम ने देखा कि उन की मेहनत का कोई फल नहीं निकल रहा है तो वह जयपुर लौट गई.

सुमेरनाथ के एक चाचा जयपुर में रहते थे. पुलिस को संदेह था कि वह अपने चाचा के यहां भी जा सकता है, इसलिए पुलिस उन के घर पर भी बराबर नजर रख रही थी. अब तक जैसलमेर पुलिस ने सुमेरनाथ को गिरफ्तार कर सुनीता को बरामद करने की हरसंभव कोशिश की थी, लेकिन सुमेरनाथ ने अपनी चालाकी से पुलिस की हर कोशिश को नाकाम कर दिया था.

पुलिस और सुमेरनाथ के बीच चूहाबिल्ली का खेल चल ही रहा था कि 8 जुलाई, 2014 को जैसलमेर के पुलिस अधीक्षक विजय शर्मा को सुनीता सोनी का भेजा एक पत्र मिला. उस पत्र में उस ने लिखा था, ‘‘मैं जैसलमेर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित कंसारपाड़ा के वार्ड नंबर 16 में रहने वाले भगवानदास सोनी की बेटी सुनीता सोनी आप को अपनी व्यथा से अवगत कराना चाहती हूं. मैं बालिग हूं, जिस के प्रमाण में मैं प्रमाणपत्रों की प्रतिलिपियां संलग्न कर रही हूं. मैं अपना अच्छाबुरा समझने लायक हूं. मेरे पिताजी और बड़े पिताजी (ताऊजी) ने जहां मेरी शादी तय की थी, वहां कोई ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था.

‘‘जिस लड़के से मेरी शादी की जा रही थी, वह भी अनपढ़ है. जबकि मैं इस समय बीए अंतिम वर्ष में पढ़ रही हूं. ऐसे लड़के के साथ मेरा गुजारा नहीं हो सकता था, इसलिए मैं ने अपनी पसंद के लड़के के साथ शादी कर ली है. जल्दी ही मैं आप को अपनी शादी के मूल प्रमाणपत्र उपलब्ध करवा दूंगी. मेरा आप से निवेदन है कि मेरे अधिकारों की रक्षा करने में मेरी मदद करें और मुझे पुलिस सुरक्षा प्रदान करें, जिस से मैं एक सभ्य नागरिक की तरह रह सकूं. मेरी आप से विनती है कि आप उचित काररवाई करते हुए प्रशासन का अमूल्य समय बरबाद करने से बचाएं.’’

सुनीता ने इस पत्र की प्रतियां माननीय मुख्यमंत्री कार्यालय जयपुर, महिला आयोग, उच्च न्यायालय जोधपुर, जिला कलेक्टर जैसलमेर एवं जैसलमेर के जिला जज को भी भेजी थीं. सुनीता के इस निवेदन का पुलिस पर कोई फर्क नहीं पड़ा और वह सुमेरनाथ को पकड़ कर उसे बरामद करने की कोशिश में लगी रही. इस की वजह यह थी कि सोनी समाज का पुलिस पर काफी दबाव था. पुलिस की इतनी कोशिश के बावजूद सोनी समाज पुलिस पर आरोप लगा रहा था कि पुलिस सुमेरनाथ से मिली हुई है. आरोप ही नहीं लगा रहा था, बल्कि इसी बात को ले कर कलेक्ट्रेट के सामने धरनाप्रदर्शन भी शुरू कर दिया था.

16 जुलाई, 2014 को पुलिस पर अभियुक्त से मिलीभगत और लापरवाही का आरोप लगाते हुए सोनी समाज ने मौन जुलूस निकाला. यह जुलूस कलेक्ट्रेट की ओर बढ़ने लगा तो पुलिस ने इसे रोकने की कोशिश की. जुलूस में शामिल लोग पुलिस से धक्कामुक्की करने लगे तो महिलाएं ‘पुलिस प्रशासन हायहाय’ और ‘कलेक्टर हायहाय’ के नारे लगाने लगीं. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने उन्हें समझाबुझा कर आश्वासन दिया कि जल्दी ही सुमेरनाथ को पकड़ कर सुनीता को बरामद किया जाएगा, तब कहीं जा कर लोग शांत हुए.

इस के बाद कुछ लोगों ने कलेक्टर औफिस जा कर ज्ञापन भी दिया. उसी दिन यानी 16 जुलाई को ही जैसलमेर के विधायक छोटू सिंह भाटी ने विधानसभा में सुनीता सोनी को भगाने वाले अभियुक्त सुमेरनाथ की गिरफ्तारी न होने की बात कहते हुए पुलिसप्रशासन की लापरवाही का मुद्दा उठाया. इस के बाद जब जैसलमेर पुलिस पर दबाव पड़ा तो अगले ही दिन यानी 17 जुलाई, 2014 को पुलिस ने सुमेरनाथ गोस्वामी को सुनीता के साथ गिरफ्तार कर लिया और जैसलमेर ले आई.

18 जुलाई, 2014 को जब जैसलमेर में लोगों को पता चला कि सुमेरनाथ गोस्वामी और सुनीता सोनी को पुलिस ने पकड़ लिया है और आज दोपहर को दोनों को अदालत में पेश किया जाएगा तो सोनी समाज के सैकड़ों स्त्री, पुरुष और बच्चे अदालत के बाहर इकट्ठा हो गए. इस तरह तमाशा देखने वालों की वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ देख कर किसी अनहोनी से बचने के लिए पुलिस को भारी पुलिस बल की व्यवस्था करनी पड़ी.

सख्त सुरक्षा व्यवस्था के बीच सबइंसपेक्टर भवानी सिंह सुनीता सोनी और सुमेरनाथ गोस्वामी को ले कर सीजेएम की अदालत पहुंचे. सुमेरनाथ को तो बाहर ही रोक लिया गया, जबकि सुनीता को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. अदालत में ही सुनीता को उस के मातापिता और वकील से मिलवाया गया. भगवानदास और उन की पत्नी रोरो कर कह रहे थे कि उस की वजह से समाज में उन की नाक कट गई है. लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. वह घर लौट चले. कुछ दिनों में लोग इसे भूल जाएंगे.

वकील ने भी सुनीता को भलाबुरा समझाया. प्रेम विवाह के दुष्परिणाम भी बताए. इस के बावजूद सुनीता अपने फैसले पर अडिग रही. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सुमेर से शादी कर ली है. मैं ने उस से जीवन भर साथ निभाने का वादा किया है. उसे तोड़ूंगी नहीं. वह मुझे बहुत प्यार करता है. मुझे लगता है, मैं उस के साथ खुश रहूंगी. अब हम दोनों साथ जीना और मरना चाहते हैं, इसलिए आप लोग मेरी चिंता छोड़ दीजिए.’’

सुनीता जब किसी भी सूरत में घर जाने को तैयार नहीं हुई तो मांबाप पीछे हट गए. इस के बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष उस का बयान दर्ज कराया गया. मजिस्ट्रेट को दिए गए बयान के आधार पर सुनीता सोनी और सुमेरनाथ गोस्वामी की जो प्रेम कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर शहर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित मोहल्ला कंसारपाड़ा में ज्यादातर घर सोनियों (सुनारों) के हैं. इन का काम सोनीचांदी के गहने बनाना है. कुछ लोगों ने अपने घरों में ही दुकानें खोल रखी हैं तो कुछ लोगों की दुकानें बाहर बाजारों में हैं. ठीकठाक आमदनी होने की वजह से यहां रहने वाले ज्यादातर सोनी साधनसंपन्न हैं. इसी मोहल्ले में भगवानदास सोनी भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी सुनीता इन दिनों बीए अंतिम वर्ष में पढ़ रही थी.

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 1

राजस्थान की स्वर्णनगरी जैसलमेर शहर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित मोहल्ला कंसारापाड़ा के रहने वाले भगवानदास सोनी की पत्नी  सुबह सो कर उठीं तो उन्हें बेटी की चारपाई खाली दिखी. उन्हें लगा, सुनीता वौशरूम गई होगी. लेकिन जब वह वौशरूम की तरफ गईं तो उस का दरवाजा खुला था. सुनीता वैसे भी उतनी सुबह उठने वालों में नहीं थी. वौशरूम खाली देख कर उन्हें हैरानी होने के साथसाथ बेटी को ले कर उन्होंने जो अफवाहें सुन रखी थीं, संदेह भी हुआ.

वह भाग कर कमरे में पहुंची तो अलमारी खुली पड़ी थी और उस में से सुनीता के कपड़े गायब थे. अलमारी में रखा एक बैग भी गायब था. अब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सुनीता कहां है? वह सिर थाम कर वहीं बैठ गईं और जोरजोर से रोने लगीं.

उन के रोने की आवाज पति भगवानदास और बेटे ने सुनी तो वे भाग कर उन के पास आ गए और पूछने लगे कि सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि वह इस तरह रो रही हैं. वह इतने गहरे सदमे में थीं कि उन के मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. भगवानदास ने जब झकझोर कर पूछा, ‘‘अरे बताओगी भी कि क्या हुआ?’’

तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या बताऊं, गजब हो गया. जिस बात का डर था, आखिर वही हुआ. सुनीता कहीं दिखाई नहीं दे रही है. अलमारी से उस के कपड़े और बैग भी गायब है.’’

भगवानदास सोनी को भी समझते देर नहीं लगी कि सुनीता प्रेमी के साथ भाग गई है. वह भी सिर थाम कर बैठ गए. पलभर में यह खबर पूरे घर में फैल गई. पूरा परिवार इकट्ठा हो गया. इस के बाद सुनीता के प्रेमी सुमेरनाथ गोस्वामी के बारे में पता किया गया. वह भी घर से गायब था.

संदेह यकीन में बदल गया. धीरेधीरे बात पूरे मोहल्ले में फैलने लगी. लोग भगवानदास सोनी के घर इकट्ठा होने लगे. बात इज्जत की थी, समाज बिरादरी में हंसी फजीहत की थी, इसलिए सलाहमशविरा होने लगा कि अब आगे क्या किया जाए.

दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है, इसी के साथ तमाम बदलाव भी आए हैं. इस के बावजूद आज भी देश में ऐसे तमाम इलाके हैं, जहां आधुनिक होते हुए भी लोग अपनी परंपराओं में जरा भी बदलाव नहीं ला पाए हैं. वैसे ही इलाकों में एक है पश्चिमी राजस्थान का जैसलमेर. यहां हर जाति की अपनी अलगअलग परंपराएं हैं.

दुनिया भले ही 21वीं सदी में पहुंच गई है, कंप्यूटर ने पूरी दुनिया को एक जगह समेट दिया है, पर जैसलमेर के लोग अपनी परंपराओं को बिलकुल नहीं बदल पाए हैं. जबकि यह भारत का एक ऐसा पर्यटनस्थल है, जहां पूरी दुनिया से लोग आते रहते हैं. कह सकते हैं कि एक तरह से यह नगर पूरी दुनिया की सभ्यता का केंद्र है.

विदेशों से आने वाले पर्यटक लड़कियों का हाथ पकड़ कर घूमते हैं. यह सब देख कर भी यहां के लोग प्रेम या प्रेम विवाह के नाम से घबराते हैं. यहां के लोग अपने ही समाज और जाति बिरादरी में शादी करते हैं. अगर किसी की लड़की या लड़के ने गैरजाति में शादी कर ली तो उसे जाति से बाहर कर दिया जाता है. कोई भी न उस के घर जाता है और न उसे अपने घर आने देता है. ऐसे में घर के अन्य बच्चों की शादियों में रुकावट आ जाती है. इसीलिए यहां के लोग प्रेम विवाह करने से बचते हैं.

नई पीढ़ी इस परंपरा से परेशान तो है, लेकिन इसे तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है. इस परंपरा में सब से बड़ी परेशानी यह है कि घर वाले शादी अपनी मरजी से करते हैं. कुछ जातियों में तो आज भी शादी के पहले लड़का न लड़की को देख सकता है और न लड़की लड़के को. ऐसे में घर वाले कभी पढ़ेलिखे लड़के की शादी अनपढ़ लड़की से कर देते हैं तो कभी पढ़ीलिखी लड़की अनपढ़ लड़के से ब्याह दी जाती है.

इस का दुष्परिणाम भी सामने आ रहा है. तमाम पतिपत्नी में विलगाव हो रहा है. लेकिन ज्यादातर लड़केलड़कियां ऐसे हैं, जो न चाहते हुए भी जिंदगी निर्वाह करते हैं. बालविवाह पर रोक तो लग गई है, लेकिन रिवाज के अनुसार यहां आज भी सगाई किशोरावस्था तक पहुंचतेपहुंचते कर दी जाती है. बाद में शादी उसी से होती है, जिस के साथ सगाई हुई होती है. सगाई भी इस तरह होती है कि जान कर हैरानी होती है.

एक कोठरी में बड़ेबुजुर्ग बैठ कर लड़का लड़की के नाम खोलते हैं. जिस लड़की का जिस लड़के के साथ नाम खुल जाता है, अफीम और गुड़ बांट कर उस के साथ उस की सगाई पक्की कर दी जाती है. इस के बाद अगर कोई सगाई तोड़ता है तो उसे भारी जुर्माना देना पड़ता है. इसलिए सगाई हो गई तो शादी पक्की मानी जाती. ये परंपराएं तब बनी थीं, जब लोग अनपढ़ थे. आज लोग पढ़लिख गए हैं, लेकिन परंपराओं और प्रथाओं में कोई बदलाव नहीं आया है.

परंपराओं और प्रथाओं में बंधे होने की वजह से बेटी के इस तरह भाग जाने से  भगवानदास सोनी और उन के घर वालों को भी जाति से बाहर किए जाने और अन्य बच्चों की शादियों की चिंता सताने लगी थी. उन के लिए परेशानी और चिंता की बात यह थी कि वे बात को आगे बढ़ाते थे तो उन्हीं की बदनामी होती थी. इस के बावजूद वे शांत हो कर बैठ भी नहीं सकते थे.

बात बिरादरी की इज्जत की थी, इसलिए सभी ने सलाहमशविरा कर के तय किया कि जो हुआ, वह ठीक नहीं हुआ. आगे फिर कभी ऐसा न हो, इसलिए सुनीता को भगा कर ले जाने वाले सुमेरनाथ को सबक सिखाने के लिए उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना जरूरी है. इस के बाद भगवानदास सोनी अपने कुछ शुभचिंतकों के साथ महिला थाने पहुंचे और सुमेरनाथ गोस्वामी के खिलाफ सुनीता को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जो तहरीर दी,

उस में लिखा, ‘मेरी बेटी को दिनांक 2 जुलाई, 2014 को 3 बजे सुबह के आसपास मेरे घर से सुमेरनाथ गोस्वामी पुत्र ईश्वरनाथ गोस्वामी बहलाफुसला कर शादी करने की नीयत से भगा ले गया है.’

महिला थाने में सुमेरनाथ गोस्वामी के खिलाफ सुनीता सोनी को भगा ले जाने की रिपोर्ट भगवानदास सोनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर दर्ज कर ली गई. इस के बाद इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक विजय शर्मा और उपपुलिस अधीक्षक अशोक कुमार को दे दी गई. पुलिस अधिकारियों ने महिला थाना की थानाप्रभारी को जल्दी से जल्दी अभियुक्त सुमेरनाथ को गिरफ्तार कर लड़की बरामद करने के निर्देश दिए.

अधिकारियों के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी ने सबइंसपेक्टर भवानी सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर अभियुक्त सुमेरनाथ की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौंप दी. भवानी सिंह का मुखबिर तंत्र बहुत मजबूत था. उन्होंने अपने मुखबिरों को सुमेरनाथ के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया.

इसी के साथ सुमेरनाथ और सुनीता की खोज रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों पर की जाने लगी. लेकिन इन जगहों से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इसी क्रम में पुलिस टीम पोकरण, फलोदी, बालोतरा, पाली, अजमेर, अलवर और बीकानेर तक ढूंढ़ने गई, लेकिन इन जगहों पर भी उन के बारे में कुछ पता नहीं चला.