हर्षिनी कान्हेकर : कैसे भारत की पहली महिला फायर फाइटर बनीं

भारत की पहली फायर वूमन हर्षिनी कान्हेकर ने यह सिद्ध कर दिया है कि जैंडर के आधार पर कोई काम निर्धारित नहीं होता, क्योंकि आज महिलाएं हर क्षेत्र में ऊंचाइयां छू रही हैं. हां, 10-15 साल पहले बात अलग थी, जब महिलाओं को आगे बढ़ने से रोका जाता था.

हर्षिनी के इस सफल अभियान में उन के पिता ने बहुत सहयोग दिया. हर्षिनी के 69 वर्षीय पिता बापुराव गोपाल राव कान्हेकर महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर हैं. उन्हें पढ़ाई के बारे में बहुत जानकारी थी.

उन्होंने अपनी पत्नी को भी शादी के बाद पढ़ने के लिए प्रेरित किया. वे हमेशा किसी न किसी कोर्स के बारे में हर्षिनी को बताते रहते थे, उस सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि हर्षिनी की स्पीड लिखने में बढ़े.

उन्होंने हमेशा बच्चों को ग्राउंडेड रखा. वे कहते हैं, ‘‘मुझे पता था कि हर्षिनी इस फील्ड में अच्छा करेगी. उस का पैशन मुझे दिख गया था. मैं सुबह उठ कर उसे प्रैक्टिस के लिए रोज तैयार करता था ताकि उसे मेरे पैशन का भी पता लगे.’’

अपने पिता के सपने को साकार करते हुए आज हर्षिनी ओएनजीसी की फायर सर्विसेज की डिप्टी मैनेजर हैं. आइए जानते हैं उन की सफलता का राज:

यहां तक आने की शुरुआत कैसे हुई?

मेरे पिता हमेशा शिक्षा को ले कर बहुत जागरूक थे. किसी नए कालेज में जाने से पहले वे वहां की सारी सिचुएशन से हमें अवगत कराते थे. फायर कालेज में एडमिशन के दौरान वे मुझे वहां ले गए, तो पता चला कि वहां आज तक किसी लड़की ने दाखिला नहीं लिया है.

सब चौंक गए कि लड़की यहां कैसे आई. उन्होंने यहां तक कहा कि मैडम आप आर्मी या नेवी में कोशिश करें, यह तो लड़कों का कालेज है. यहां आप टिक नहीं पाएंगी. ये बातें मुझे पिंच कर गईं. मगर मेरे पिता ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं ने तभी ठान लिया कि मैं यहीं पढ़ूंगी. मेरी फ्रैंड ने भी मेरे साथ फार्म भरा.

यूपीएससी की इस परीक्षा में केवल 30 सीटें पूरे भारत में थीं. मैं ने प्रवेश परीक्षा दी और पास हो गई. मेरे लिए यह बड़ी बात थी.

पुरुषों के क्षेत्र में पढ़ने और काम करने में कितनी चुनौती थी?

परीक्षा पास करने के बाद भी लोगों ने तरहतरह की राय दीं. यह कोर्स क्या है यह समझने में मेरे मातापिता ने भी समय लिया. फिर मैं ने इस क्षेत्र के एक व्यक्ति से परामर्श लिया, तो पता चला कि कोर्स बहुत अच्छा है. फिर मेरे पिता ने भी मेरा पूरा साथ दिया और मैं ने ऐडमिशन ले लिया. जब मैं ने खाकी वरदी पहनी, तो मेरी मनोकामना तो पूरी हुई, पर दायित्व भी आ गया.

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जो लोग पहले हंस रहे थे वे अब चुप थे. मुझे प्रूव करना था. मैं वे सभी काम किया करती थी, जो लड़के करते थे. मैं ने अपनेआप को पूरी तरह से अनुशासन में ढाल लिया था ताकि कोई मेरे ऊपर उंगली न उठाए. कमजोरी मैं ने कभी कोई नहीं दिखाई, क्योंकि इस का असर बाकी लड़कियों पर पड़ता, क्योंकि मैं उन का प्रतिनिधित्व कर रही थी.

पिता की कौन सी बात को अपने जीवन में उतारती हैं?

लोग मुझे कहते हैं कि मैं बहुत साहसी हूं पर मेरे मातापिता मुझ से भी अधिक साहसी हैं. तभी तो उन्होंने मुझे लड़कों के कालेज में भेजने की हिम्मत दिखाई. जब मैं कोलकाता में 3 महीने जैंट्स होस्टल में अकेली रही. पिता मुझे अलग भी रख सकते थे, पर उन्होंने वहीं रह कर मुझे पढ़ने का निर्देश दिया. मुझे लगता है मेरे पिता ने समाज की उस सोच को बदलने में बड़ा कदम उठाया, जो लड़कालड़की में भेद करती है.

नेतागिरी की आड़ में : पैसों के लालच ने पहुंचाया जेल

अचानक हुए हजार व 5 सौ के नोटबंदी के फैसले के बाद पूरे देश में अफरातफरी का जो माहौल कायम हुआ, उस से उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर भी अछूता नहीं रहा. बैंकों में भीड़ उमड़ पड़ी थी. कोई पुराने नोटों को जमा करना चाहता था तो कोई अपनी जरूरत के हिसाब से नए नोट लेना चाहता था.

हर रोज बैंकों में लंबी कतारें लग रही थीं. होने वाली परेशानी से लोगों में गुस्सा भी पनप रहा था. कई दिन बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस थे. पुलिस को भी अतिरिक्त ड्यूटी करनी पड़ रही थी. कानूनव्यवस्था की स्थिति न बिगड़े, इस के लिए बैंकों में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था. ऐसे में ही एसएसपी जे.

रविंद्र गौड़ को सूचना मिली कि कुछ लोग नए नकली नोटों का धंधा कर रहे हैं. इस के लिए उन्होंने पूरा नेटवर्क भी तैयार कर लिया है. सूचना गंभीर थी, लिहाजा जे. रविंद्र गौड़ ने इस की जानकारी एसपी (क्राइम) अजय सहदेव को दे कर सर्विलांस टीम को अविलंब काररवाई करने के आदेश दिए. थाना पुलिस को भी निर्देश दिए गए कि चैकिंग अभियान चला कर संदिग्ध लोगों की तलाश की जाए. सर्विलांस टीम ने कुछ संदिग्ध लोगों के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया.

23 दिसंबर, 2016 की रात नेशनल हाइवे संख्या 58 दिल्लीदेहरादून मार्ग स्थित पल्लवपुरम थानाक्षेत्र के मोदी अस्पताल के सामने पुलिस चैकिंग अभियान चला रही थी. आनेजाने वाले संदिग्ध वाहनों की जांच सख्ती से की जा रही थी.

दरअसल पुलिस को सूचना मिली थी कि नकली नोटों का धंधा करने वाले कुछ लोग उधर से निकलने वाले हैं. सीओ वी.एस. वीरकुमार के नेतृत्व में थाना पल्लवपुरम पुलिस और सर्विलांस टीम इस चैकिंग अभियान में लगी थी.

पुलिस को एक काले रंग की इंडीवर लग्जरी कार आती दिखाई दी. कार पर किसी पार्टी का झंडा लगा था और उस के अगले शीशे पर बीचोबीच बड़े अक्षरों में वीआईपी लिखा स्टिकर लगा था.

पुलिस ने कार को रोका. उस में कुल 3 लोग सवार थे. एक चालक की सीट पर, दूसरा उस की बराबर वाली सीट पर और तीसरा पिछली सीट पर बैठा था. कार रुकवाने पर उस में सवार कुरतापायजामा और जवाहर जैकेट पहने नौजवान ने रौबदार लहजे में पूछा, ‘‘कहिए, क्या बात है, मेरी कार को क्यों रोका?’’

‘‘सर, रूटीन चैकिंग है.’’ एक पुलिस वाले ने कहा.

पुलिस वाले की यह बात उस नौजवान को नागवार गुजरी हो, इस तरह उस ने तंज कसते हुए कहा, ‘‘रूटीन चैकिंग है या आम लोगों को परेशान करने का हथकंडा. आप यह सब करते रहिए और हमें जाने दीजिए.’’

‘‘सौरी सर, हमें आप की कार की तलाशी लेनी होगी.’’ पुलिस वाले ने कहा.

पुलिस वाले का इतना कहना था कि युवक गुस्से में चीखा, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा, हम कोई चोरउचक्के हैं. तुम जानते नहीं मुझे. मैं लोकमत पार्टी का नेता हूं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है सर, लेकिन यह हमारी ड्यूटी है. वैसे भी कानून सब के लिए एक है.’’

‘‘पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना है न कि हम जैसे लोगों को परेशान करना. मेरी पहुंच बहुत ऊपर तक है. अगर मैं अपने पावर का इस्तेमाल करने पर आ गया तो एकएक की वरदी उतर जाएगी.’’ युवक ने धमकी दी.

वह युवक चैकिंग का जिस तरह विरोध कर रहा था, उस से पुलिस को उस पर शक हुआ. एक बात यह भी थी कि कई बार शातिर लोग इस तरह की कारों का इस्तेमाल गलत कामों के लिए करते हैं. पुलिस ने तीनों युवकों को जबरदस्ती नीचे उतारा और कार की तलाशी शुरू कर दी. पुलिस को कार में एक बैग मिला. पुलिस ने जब उस बैग को खोला तो उस में 2 हजार और 5 सौ के नए नोट बरामद हुए. उन के मिलते ही पुलिस को धमका रहे युवक के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. पुलिस ने बरामद रकम को गिना तो वह 4 लाख 27 हजार रुपए निकली. पुलिस ने उस के बारे में पूछा, ‘‘यह पैसा कहां से आया?’’

‘‘सर, ये हमारे हैं.’’ जवाब देते हुए युवक सकपकाया.

पुलिस ने नोटों पर गौर किया तो उन का कागज न सिर्फ हलका था, बल्कि रंग भी नए नोटों के मुकाबले थोड़ा फीका था. इस से पुलिस को नोटों के नकली होने का शक हुआ. दूसरी तरफ बरामद रकम के बारे में युवक कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. पुलिस ने कार की एक बार फिर तलाशी ली तो उस में से एक तमंचा और 2 चाकू बरामद हुए.

पुलिस ने तीनों को हिरासत में लिया और थाने ला कर उन से पूछताछ शुरू कर दी. पहले तो उन्होंने पुलिस को चकमा देने का प्रयास किया, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो उन्होंने जो सच कबूला, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. वे तीनों नकली नोट छाप कर उन्हें बाजार में चलाने का धंधा कर रहे थे.

पुलिस से बहस करने वाला युवक ही इस धंधे का मास्टरमाइंड था. वह एक पार्टी का पदाधिकारी था और नेतागिरी की आड़ में ही नकली नोटों के इस धंधे को अंजाम दे रहा था. वह नकली नोटों के बदले जमा होने वाली असली रकम के बल पर चुनाव लड़ना चाहता था. जिन युवकों को गिरफ्तार किया गया था,

उन के नाम मोहम्मद खुशी गांधी, ताहिर और आजाद थे. तीनों मेरठ के ही भावनपुर थानाक्षेत्र के गांव जेई के रहने वाले थे. पुलिस ने उन के गांव जा कर उन की निशानदेही पर खुशी के घर से प्रिंटर, स्कैनर, कटर और एक प्लास्टिक के कट्टे में भरी कागज की कतरनें बरामद कीं. बरामद सामान के साथ पुलिस उन्हें थाने ले आई. पुलिस ने तीनों युवकों से विस्तृत पूछताछ की तो एक युवा नेता के गोरखधंधे की ऐसी कहानी सामने आई, जो हैरान करने वाली थी. मुख्य आरोपी खुशी गांधी हनीफ खां का बेटा था.

हनीफ के पास काफी खेतीबाड़ी थी. सुखीसंपन्न होने की वजह से गांव में उन का रसूख था. खुशी अपने 5 भाइयों में चौथे नंबर पर था. उस के बड़े भाई खेती करते थे. लेकिन खुशी का मन खेती में नहीं लगा. गलत संगत में पड़ने की वजह से उस के कदम बहक गए थे.

बेटे का चालचलन देख कर हनीफ ने उसे समझाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन उस के मन में तो कुछ और ही था. खुशी महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह दिन में सपने देखता था और ऊंची उड़ान भरना चाहता था. वह इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहता था कि बिना मेहनत के सपनों की इमारत खड़ी नहीं होती.

वक्त के साथ खुशी के रिश्ते जरायमपेशा लोगों से भी हो गए. संगत अपना गुल जरूर खिलाती है. कुछ संगत तो कुछ शौर्टकट से अमीर बनने की चाहत उसे जुर्म की डगर पर ले गई. हर गलत काम दफन ही हो जाए, यह जरूरी नहीं है. आखिर एक मामले में वह पुलिस के शिकंजे में आ गया. दरअसल, 2 साल पहले मेरठ के ही टीपीनगर थानाक्षेत्र के एक तेल कारोबारी के यहां डकैती पड़ी. इस मामले में पुलिस ने खुशी को भी गिरफ्तार कर के जेल भेजा था.

कुछ महीने बाद उस की जमानत हो गई थी. अच्छा आदमी वही होता है, जो ठोकर लगने पर संभल जाए. लेकिन खुशी उन लोगों में नहीं था. अपने जैसे युवकों की उस की मंडली थी. वह छोटेमोटे अपराध करने लगा था. किसी का एक बार अपराध में नाम आ जाए और उस के बाद पुलिस उसे परेशान न करे, ऐसा नहीं होता. खुशी पुलिस के निशाने पर आए दिन आने लगा तो खाकी से बचने के लिए उस ने राजनीति को हथियार बना लिया.

इस के लिए उस ने अलगअलग पार्टी के नेताओं से रिश्ते बना लिए. वह रैलियों में भी जाता और लड़कों की टोली अपने साथ रखता. अपना रसूख दिखाने के लिए उस ने एक इंडीवर कार खरीद ली.

उस ने नेशनल लोकमत पार्टी का दामन थाम लिया. खुशी युवा था. पार्टी ने न सिर्फ उसे प्रदेश अध्यक्ष बना दिया, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वह पार्टी का प्रत्याशी भी बन गया. कार में सायरन व पार्टी का झंडा लगाने के साथ उस ने उस पर वीआईपी भी लिखवा दिया था.

8 नवंबर को प्रधानमंत्री की नोटबंदी की घोषणा के बाद पुरानी मुद्रा पर रोक लग गई और नई मुद्रा आनी शुरू हुई. खुशी को लगा कि अमीर बनने का यह अच्छा मौका है. उस ने सोचा कि अगर पैसा होगा तो वह चुनाव भी अच्छे से लड़ सकेगा. पैसों के लिए ही उस के मन में नकली नोट छापने का आइडिया आ गया.

उस ने अपने 2 साथियों ताहिर और आजाद से बात की. वह जानता था कि देहाती इलाकों में नई करेंसी में असली और नकली की पहचान करना आसान नहीं है. क्योंकि नए नोट अभी पूरी तरह प्रचलन में नहीं आए हैं. उस ने शहरी बाजारों में भी नकली नोट चलाने के बारे में सोच लिया. इस खुराफाती काम में उस ने जरा भी देरी नहीं की और बाजार से अच्छे किस्म का स्कैनर, प्रिंटर और कागज खरीद लाया. फिर क्या था, उस ने नए नोटों से नकली नोटों के प्रिंट निकालने शुरू कर दिए.

खुशी ने शहर जा कर खरीदारी में वे नोट चलाए तो आसानी से चल गए. इस के बाद उस के हौसले बढ़ गए और वह नकली नोट छापने और चलाने लगा. उन रुपयों से उस ने जम कर शौपिंग की.

देहात के भोलेभाले लोगों को भी उस ने अपना निशाना बनाया. खुशी ने नकली नोट चलाने के लिए कुछ एजेंट बना रखे थे, जिन्हें वह 40 हजार के पुराने नोटों के बदले एक लाख के नए नकली नोट देता था. वह कार का सायरन बजाते हुए पुलिस के सामने से निकल जाता और उस पर किसी को शक नहीं होता. वह खादी की आड़ में खाकी वरदी से बचे रहना चाहता था.

खुशी शातिर किस्म का युवक था. वह जानता था कि यह काम ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है, क्योंकि जल्दी ही लोग असलीनकली नोट में फर्क करना सीख जाएंगे, इसलिए वह जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा नोट खपाने की कोशिश कर रहा था. यही वजह थी कि वह पुलिस के निशाने पर आ गया.

पूछताछ के बाद एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता कर के युवा नेता के कारनामों का खुलासा किया. इस के बाद पुलिस ने खुशी और उस के साथियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोनिया नारंग : राजनीतिज्ञों को भी सिखाया सबक

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा ले कर जब कोई महिला ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपना वर्चस्व कायम करती है तो उस की एक अलग ही छवि निखर कर आती है, बेखौफ, दबंग और ईमानदार अफसर की छवि. जिस के लिए उस का कर्तव्य पहले होता है, बाकी सब बाद में.

जोश और जुनून से लबरेज सोनिया नारंग भी उन्हीं विशेष अफसरों में अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराती हैं जिन के लिए आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए कानून की एक ही परिभाषा है. फिर चाहे वो खास अफसरशाही पर हुकूमत चलाने वाले नेता ही क्यों न हों.

सोनिया नारंग का जन्म और परवरिश चंडीगढ़ में हुई. उन के पिता भी प्रशासनिक अधकारी थे. उन से प्रेरणा ले कर सोनिया ने बचपन से ही सिविल सर्विस जौइन करने को अपना लक्ष्य बना लिया था. इस लक्ष्य को पाने की तैयारी उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही शुरू कर दी थी. 1999 में पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में गोल्ड मेडल पाने वाली सोनिया नारंग की लगन और मेहनत रंग लाई. वह कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्ग में हुई. सोनिया ने जौइंन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में हो रहे एक प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता व उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंची. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया नारंग से ही उलझ कर अभद्रता पर उतर आए.

तब सोनिया नारंग ने एमएलए रेनुकाचार्य को कानून का सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया.

इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बुरी तरह से बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया निडरता से अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में यही भाजपा नेता रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने हौसले और मजबूत इरादों का परिचय तब भी दिया था जब कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल कर दिया था.

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मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सर्वजनिक किया. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खदान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम भी सामने आया है. सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर भी भारी इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तूफान सा मच गया. एक बेदाग छवि की आईपीएस अधिकारी का नाम किसी घोटाले में लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था. लेकिन सोनिया नारंग घोटाले से उठी आंधी के बीच भी अविचल रहीं.

उन्होंने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही अन्य अधिकारियों की तरह सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. इस सब की बजाय सोनिया नारंग ने सीएम के आरोप के खिलाफ मजबूती से मोर्चा खोल दिया और सीधे प्रेस के लिए स्टेटमेंट जारी किए.

सोनिया ने कहा, ‘मेरी अंतरात्मा साफ है. आप चाहें तो किसी भी तरह की जांच करा लें. मैं इस आरोप का न सिर्फ खंडन करती हूं, बल्कि इस का कानूनी तरीके से हर स्तर पर विरोध भी करूंगी.’ उन्होंने ऐसा ही किया भी. सोनिया नारंग ने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए बताया, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है, जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

कानून को सर्वोपरि मानने वाली सोनिया ने किसी भी अवैध खनन को बढ़ावा देने या खनन माफिया से सांठगांठ करने से स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए तत्कालिन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के आरोप का पुरजोर विरोध किया था. मुख्यमंत्री से सीधे टकराने का साहस सोनिया नारंग जैसी दबंग और ईमानदार आईपीएस ही कर सकती थीं. आखिरकार उन का विश्वास जीता और उन्हें इस मामले में क्लीन चिट भी मिली.

यही वजह है कि कर्नाटक के लोग सोनिया नारंग पर अटूट विश्वास करते हैं. यहां तक कि निष्पक्ष जांच के लिए उन्हें सीबीआई से ज्यादा भरोसा अपनी अफसर सोनिया पर है.

ऐसा ही एक मामला तब सामने आया था जब सोनिया नारंग कर्नाटक लोकायुक्त की एसपी थीं. लोकायुक्त जस्टिस वाई भास्कर राव के बेटे अश्विन राव और कुछ रिश्तेदारों पर राज्य के संदिग्ध भ्रष्ट अफसरों से फिरौती वसूली का रैकेट चलाने का आरोप लगा था.

पीडब्ल्यूडी के एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे गए थे. उक्त इंजीनियर को जांच से बचने के लिए 25 लाख रुपए तुरंत देने को कहा गया था. तब इंजीनियर ने इस बात की शिकायत लोकायुक्त पुलिस एसपी सोनिया नारंग से की.

उन्होंने मौखिक शिकायत के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की विधिवत जांच कर के अपनी रिपोर्ट लोकायुक्त के रजिस्ट्रार को सौंप दी. इस पर केस खुल कर सामने आया. परिणामस्वरूप  जस्टिस वाई भास्कर राव को इस्तीफा देना पड़ा और उन के बेटे सहित 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. इसी से पे्ररित हो कर उन के जीवन पर कन्नड़ भाषा में ‘अहिल्या’ नाम की फिल्म बनी है.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की

लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

आईपीएस शिवदीप लांडे : रियल हीरो

आप ने दबंग छवि वाले कई पुलिस अफसरों को बड़े परदे पर देख कर तालियां बजाई होंगी. लेकिन, सही मायने में हमारे असल हीरो वो अफसर हैं, जो समाज में फैली गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार तथा अराजकता को जड़ से खत्म करने का काम करते हैं. वर्दी पहनने का मौका तो बहुतों को मिलता है. लेकिन इस वर्दी का दम बहुत कम लोग ही दिखा पाते हैं.

शिवदीप वामनराव लांडे एक ऐसे आईपीएस हैं जो बस एक पुलिस अफसर ही नहीं, बल्कि अनगिनत कहानियों के पात्र हैं. वैसे अफसर जिन के बारे में लोग बस कल्पना करते हैं, हकीकत में ऐसा इंसान सामने देखना अजूबा लगता है.

शिवदीप वामनराव लांडे एक समय बिहार के गुंडेबदमाशों के लिए खौफ बन गए थे. इन से छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही रास्ता था और वो था इन का ट्रांसफर. इस बेखौफ आईपीएस अफसर ने फिल्मी स्टाइल में बिहार के ला ऐंड और्डर को कायम किया था. वैसे कहने को तो शिवदीप लांडे पुलिस अधिकारी हैं, लेकिन उन की भूमिका किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं रही. बात चाहे उन के आईपीएस बनने की हो, उन के काम करने के तरीके की हो, लोगों के दिलों में उन के प्रति प्यार और सम्मान की हो या फिर उन की प्रेम कहानी की. हर तरह से उन की कहानी किसी ब्लौकबस्टर फिल्म की कहानी जैसी लगती है.

शिवदीप वामनराव लांडे का जन्म 29  अगस्त, 1976 को महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. शिवदीप के पिता ने तीन बार 10वीं की परीक्षा दी. लेकिन पास न हो सके. वहीं उन की मां भी केवल 7वीं तक पढ़ पाईं थीं. ऐसे में शायद शिवदीप भी एक किसान बन कर रह जाते.

मगर ऐसा नहीं हुआ. क्योेंकि उन के सपने बडे़ थे. उन्होंने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और निष्ठा व लगन से वह सपना पूरा कर दिखाया, जिसे उन के पिता पूरा नहीं कर पाए थे. दरअसल, बचपन से ही उन में कुछ अलग हट कर करने का जुनून था. घरपरिवार में कई तरह के अभाव थे. घर की तमाम मजबूरियां और कमियों के बावजूद बाधाएं उन के पैरों की बेडि़यां नहीं बन सकीं.

2 बडे़ भाइयों से छोटे शिवदीप ने स्कौलरशिप प्राप्त कर इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर यूपीएससी की तैयारी की.

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शिवदीप लांडे की परवरिश एक सामान्य परिवार में हुई थी. चूंकि मातापिता अधिक पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए परिवार की तरफ से पढ़ाई के प्रति कोई दबाव या प्रेरणा नहीं मिलती थी.

भले ही उन का जन्म साधारण परिवार में हुआ था. लेकिन शिवदीप के सपने बहुत ऊंचे थे. बचपन से हिंदी फिल्में देखने का शौक रहा था. जिस में अक्सर फिल्म के नायक को पुलिस अफसर के किरदार में बदमाश खलनायक का अंत करते देख वे रोमांचित हो उठते थे. वह अकसर नायक में खुद की छवि देख कर कल्पना लोक में विचरण करने लगते.

बस इन्हीं कल्पनाओं के बीच मन में एक विचार जन्मा कि क्यों न बड़े हो कर ऐसा ही दंबग पुलिस अफसर बना जाए और गुंडों का खात्मा किया जाए. इसीलिए कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी ऊंची शिक्षा पूरी की.

महाराष्ट्र के श्री संत गजानन महाराज इंजीनियरिंग कालेज, शेगांव से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की.

अच्छी सर्विस छोड़ बने आईपीएस

हालांकि शिवदीप एक प्रतिष्ठित कालेज के प्रोफेसर तथा उस के बाद राजस्व विभाग में आईआरएस के पद पर भी कार्यरत रहे. लेकिन इसी बीच 2006 में उन का संघ लोक सेवा आयोग में चयन हो गया. उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ और उन्हें बिहार कैडर मिला. 2 साल प्रशिक्षण का काम पूरा किया.

शिवदीप लांडे की पहली नियुक्ति 2010 में मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित जमालपुर इलाके में हुई थी. अपनी पहली पोस्टिंग से ही वे मीडिया की सुर्खियों में रहे थे.

लेकिन पटना में तैनाती के दौरान अनोखी कार्यशैली के कारण उन का यह कार्यकाल आज तक अविस्मरणीय है, जिस के कारण शिवदीप पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए थे.

पुलिस महकमे में शिवदीप किसी बौलीवुड फिल्मों की कहानी के पात्र की तरह सामने आए थे. जब शिवदीप पटना आए थे, तब शहर गुंडों से त्रस्त था. तमंचे वाले तो थे ही. शरीफ गुंडे भी थे. दवाई वाले गुंडे जो बंदूक नहीं रखते थे, पर दवाओं का अकाल पैदा कर देते थे. शहर में ब्लैक मार्केटिंग कर के शराब की दुकानें जरूरत से ज्यादा खुल गई थीं, लेकिन बिना लाइसेंस के.

10 महीनों में शिवदीप ने शहर को रास्ते पर ला दिया और यह सब कुछ फिल्मी स्टाइल में होता था. यह नहीं कि पुलिस गई और गिरफ्तार कर के ले लाई. नए तरीके आजमाए जाते थे. कभी शिवदीप बहुरुपिया बन के जाते तो कभी लुंगीगमछा पहन के पहुंच जाते. कभी चलती मोटरसाइकिल से जंप मार देते तो कभी किसी की चलती मोटरसाइकिल के सामने खड़े हो जाते.

शिवदीप ने पटना को 9 महीने सेवा दी और इन 9 महीनों में उन्होंने यहां के लोगों, खासकर लड़कियों के दिल में एक खास तरह का प्रेम और सम्मान बना लिया.

दरअसल, ये वह दौर था जब पटना में आवारा लफंगों के कारण स्कूली लड़कियों व महिलाओं का सड़कों पर निकलना बेहद मुश्किल था. आवारा गुंडे लड़कियों को न सिर्फ छेड़ते और भद्दे कमेंट करते थे, बल्कि कई बार तो जहांतहां छू भी देते. ऐसे समय में हुई शिवदीप लांडे की एंट्री.

वह पटना के नए एसपी बन कर पहुंचे थे. लड़कियों की यह परेशानी जब उन तक पहुंची, तो वे खुद कालेज की लड़कियों से मिलने जाने लगे. लांडे ने सब को अपना नंबर दिया और एक ही बात कही कि जब कोई तंग करे तो उन्हें काल करें या एसएमएस करें. लड़कियों ने यही किया.

उन्होंने सड़कछाप रोमियो को सबक सिखाने के लिए पुरुष व महिला पुलिसकर्मियों के सादा लिबास दस्ते तैयार किए. इस के साथ ही शिवदीप भी कालेजों तथा सार्वजनिक स्थलों पर राउंड मारने लगे. वह शायद पहले आईपीएस थे जो मोटरसाइकिल पर गश्त लगाते थे.

एक फोन पर शिवदीप अपनी बाइक उठा कर अकेले ही निकल जाते और अगले ही पल वे लड़कियों की मदद के लिए वहां मौजूद होते. कितने मनचले धरे गए, कई मौके पर सीधे भी किए गए.

देखते ही देखते लड़कियों में हिम्मत आने लगी, उन का डर खत्म होने लगा. यही वजह थी लड़कियों के मन में शिवदीप के प्रति स्नेह और सम्मान की. लांडे ने यहां मनचलों को खूब सबक सिखाया.

कुछ ही महीनों में उन्होंने पटना शहर की सड़कों को मजनुओं की टोलियों से मुक्त करा दिया. लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी थीं. शहर की हर छात्रा के मोबाइल में उन का नंबर होता था, किसी को जरा भी परेशानी होती तो नंबर मिलाते ही शिवदीप लांडे अपनी टीम के साथ पीडि़त छात्रा के सामने हाजिर हो जाते.

पटना में शिवदीप लांडे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि राजनीतिक दबाव में सरकार ने पटना से जब उन का अररिया तबादला कर दिया तो लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. पटना के इतिहास में किसी पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा पहली बार हुआ था.

स्थानांतरण के बावजूद पटना के लोगों में उन के प्रति दीवानगी आज तक कायम है. उन्हें आज भी पटना की स्कूली छात्राओं के फोन और एसएमएस आते रहते हैं. लांडे के नएनए आइडियाज की वजह से उन के कार्यकाल में पटना का क्राइम रेट कम हो गया था.

जहां भी रहे, गलत कामों पर रही नजर

पटना की तरह ही रोहतास जिले में भी शिवदीप लांडे ने अपने कार्यकाल के दौरान खनन माफियाओं की नींद उड़ा दी थी.  दरअसल रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर में खनन और रोड माफिया का छत्ता बड़ा पुराना है. इस छत्ते में सभी दलों के लोग शामिल हैं. कभी राजद का हल्ला होता, तो कभी भाजपा का शोर मचता था.

संदीप लांडे जब रोहतास के एसपी बने, तो उन्होंने भी इस खेल को उजाड़ने में कसर नहीं छोड़ी. हांलाकि कुछ समय बाद रोहतास एसपी के पद से 2015 में लांडे की विदाई कैसे हुई, पुलिस महकमे में यह बात सब को पता है. क्योेंकि बिहार में राजनीतिक दबाव इतना हावी रहता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी स्वतंत्र तरीके से काम कर ही नहीं सकता.

बहरहाल, अपनी दबंगई के कारण शिवदीप को रोहतास में भी कई बार अपनी जान तक जोखिम में डालनी पड़ी. उन दिनों शिवदीप रोहतास के एसपी थे. इन्होंने खनन माफिया की नाक में दम कर रखा था.

उधर दुश्मन भी घात लगाए रहते थे. एक रोज शिवदीप अवैध खनन रोकने निकले. लेकिन वे इस बात से अनजान थे कि दुश्मन उन की जान लेने के लिए घात लगाए बैठे हैं. शिवदीप जैसे ही वहां पहुंचे, उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई.

30 से ज्यादा राउंड फायर हुए. पूरा फिल्मी सीन बन गया था. फर्क बस इतना था कि यहां कोई कट बोल कर फायरिंग रोकने वाला नहीं था. न ही बहने वाला खून नकली था. जो भी हो रहा था सब असली था. शिवदीप हटे नहीं, डटे रहे.

अंत में शिवदीप के आगे गुंडे पस्त हो गए. इस के बाद शिवदीप ने खुद जेसीबी मशीन चला कर अवैध खनन की सारी मशीनें उखाड़ फेंकी, साथ ही 500 लोगों को गिरफ्तार करवाया.

पश्चिम बिहार के रोहतास जिले के एसपी के तौर पर 6 महीने में ही लांडे ने अपने कारनामों से लोगों को अपना दीवाना बना लिया था. खनन माफिया से टकराव के बाद शिवदीप लावारिस छोड़ी गई नवजात बच्चियों के पालनहार के रूप में भी सुर्खियों में रहे.

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दरअसल, अपनी तैनाती के कुछ दिन बाद ही रोहतास के सासाराम स्थित जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर गोटपा गांव के पास रेलवे ट्रैक के निकट भैरव पासवान को एक बच्ची लावारिस हालत में शाल में लिपटी मिली थी. 45 साल के पासवान और उन की पत्नी कलावती के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वह इस नवजात को अपनाना चाहते थे.

लेकिन बच्ची की बीमारी के चलते उन्हें डर था कि वह इसे खो देंगे. जब भैरव और उन की पत्नी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें, कहां जाएं तो उन्होंने जिला पुलिस के मुखिया लांडे से संपर्क किया.

पासवान को मुसीबत में देख लांडे ने चंद मिनटों के अंदर मुफस्सिल पुलिस स्टेशन के इंचार्ज विवेक कुमार को पासवान के घर भेजा जो बीमार बच्ची को पुलिस की गाड़ी में ले कर तुरंत जिला अस्पताल पहुंचे.

इस के बाद लांडे खुद अपनी डाक्टर पत्नी के साथ अस्पताल पहुंचे. बच्ची को स्पैशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में भरती कराया गया. इस के बाद एसपी लांडे ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन को बुला कर बच्ची को दिए जाने वाले जरूरी इलाज पर बातचीत की.

लांडे की इस नेकदिली के कारण बच्ची पूरी तरह सुरक्षित रही. बच्ची को लाने वाला पासवान इस बात पर हैरान था कि वह एक गरीब आदमी है, अगर लांडे साहब और उन की पत्नी ने उस की मदद न की होती तो कोई उम्मीद नहीं थी कि बच्ची जीवित रह पाती.

बच्ची के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद शिवदीप लांडे के हस्तक्षेप से पासवान ने बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करवाई.

लावारिस नवजात बच्चियों के प्रति शिवदीप लांडे के भावनात्मक प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2012 में जब वह अररिया में एसपी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची की जान बचाई थी. जिसे उस की मां ने कड़कती ठंड में उन के सरकारी आवास के गेट के बाहर छोड़ दिया था.

मासूम का रोना सुन कर लांडे घर से बाहर आए और उसे अपने सीने से लगा कर अंदर ले गए. बच्ची को गरमी का एहसास कराने और उस की सांसें सामान्य होने के बाद उन्होंने उसे सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष रीता घोष के पास पहुंचा दिया, जहां उस का जरूरी उपचार हो सका.

इस के अलावा जब वह पटना के एसपी सिटी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची को उस समय बचाया था जब एक प्राइवेट अस्पताल द्वारा ढाई लाख रुपए का बिल बनाने के कारण उस का पिता उसे अस्पताल में ही छोड़ गया था.

एसपी सिटी रहते जब इस बात की जानकारी शिवदीप लांडे को हुई तो वह बच्ची की मां का पता लगाने के लिए इस हद तक गए कि पूर्वी बिहार के कटिहार जिले में उस के घर तक जा पहुंचे.

वहां पहुंचने पर पता चला कि अस्पताल के पैसे न चुकाने के कारण बच्ची के पिता ने अपनी पत्नी से बता रखा था कि जन्म के दौरान ही उस की मौत हो गई और वहीं उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लांडे ने बच्ची को ही उस के घर तक नहीं पहुंचाया बल्कि उस के इलाज का भी इंतजाम किया, जिस से वह जिंदा रह सकी.

खनन माफिया से टकराव के कारण भले ही लांडे का तबादला कर दिया गया. लेकिन वह जहां भी रहे, अपराध और अपराधियों से कभी समझौता नहीं किया.

अनोखी है शिवदीप की प्रेम कहानी

अब जब सब कुछ फिल्म जैसा था, तो भला शिवदीप की शादी आम कैसे होती. शिवदीप द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम तथा उन की छवि के कारण लड़कियां उन पर मरती थीं. उन के फोन का मैसेज बौक्स हमेशा भरा रहता था. लेकिन इसे शिवदीप ने स्नेह से बढ़ कर और कुछ नहीं माना. क्योंकि उन की प्रेम कहानी तो कहीं और ही लिखी जानी थी.

शिवदीप जो उस वक्त बिहार में कर रहे थे, उस की हवा उन के गृहराज्य महाराष्ट्र में भी बह रही थी. उन के कारनामों तथा लुक के कारण वहां भी शिवदीप की खूब चर्चा थी. शिवदीप मुंबई में रह कर पढ़े थे. इस कारण यहां उन का अच्छाखासा फ्रैंड सर्कल था. बिहार में होने के बावजूद वह दोस्तों से मिलने मुंबई जाया करते थे.

ऐसे ही शिवदीप एक दोस्त के किसी समारोह में उपस्थिति दर्ज कराने मुंबई गए थे. इसी पार्टी में उन की मुलाकात एक लड़की से हुई. लड़की का नाम था ममता शिवतारे. शिवदीप एसपी थे, तो ममता भी कम नहीं थी. ममता शिवतारे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और पुणे के पुरंदर से एमएलए विजय शिवतारे की बेटी थीं.

यहीं दोनों की मुलाकात हुई. इस एक मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा. जिस का नतीजा यह निकला कि दोनों प्यार में पड़ गए. यह प्यार आगे चल कर शादी में बदल गया. बस ममता और शिवदीप ने 2 फरवरी, 2014 को शादी कर ली और एकदूसरे को जन्मजन्मांतर के लिए अपना मान लिया.

दिल तो कई लड़कियों के टूटे मगर शिवदीप का घर बस गया. परिवार में पत्नी ममता और उस के बाद दोनों के प्यार की निशानी के रूप में जन्म लेने वाली बेटी अरहा अब उन के जीवन की प्रेरणा बन चुकी है.

शिवदीप लांडे जहां भी रहे,  जिस तरह अपराधियों की कमर तोड़ी, मीडिया ने उस से उन की ‘दबंग’ पुलिस अधिकारी की छवि बना दी. लेकिन वास्तव में वह अपनी ड्यूटी पर जितना सख्त नजर आते थे, निजी जीवन में उतने ही विनम्र.

यह न समझा जाए कि शिवदीप केवल गुंडे बदमाशों को सबक सिखाने भर के ही हीरो रहे हैं. इस दबंग अफसर के पीछे एक कोमल दिल वाला नायक छिपा बैठा है. एक तरफ जहां शिवदीप अपराधियों के लिए काल का रूप साबित हुए, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जरूरतमंदों की दिल खोल कर मदद की.

विवाह से पहले वे अपने वेतन का 60 प्रतिशत एनजीओ को दान कर देते थे. हालांकि शादी और एक बेटी के जन्म  के बाद दान में कमी जरूर आई है परंतु बंद नहीं हुआ है. वेतन का 25 से 30 प्रतिशत भाग वे आज भी दान में दे देते हैं. इस के अलावा कई सामाजिक कार्यों में भी वह सहयोग करते हैं. उन्होंने कई गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह भी करवाया.

छोटेमोटे चोरउचक्कों से ले कर बड़ेबड़े माफिया तक में शिवदीप का खौफ था. उन्होंने लैंड माफिया से ले कर मैडीसिन माफिया तक की कमर तोड़ी. हालांकि, इन सब की वजह से उन्हें बारबार ट्रांसफर की तकलीफ झेलनी पड़ी. लेकिन उन का जहां से भी ट्रांसफर हुआ, वहां की आम जनता ने उन के जाने का दुख मनाया.

अब तैनाती महाराष्ट्र में

वर्तमान में शिवदीप लांडे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र के पुलिस विभाग में मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच के एंटी नारकोटिक्स सेल में एडीशनल कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवारत हैं और मादक पदार्थ तस्करों की कमर तोड़ रहे हैं.

जब आप लीक से हट कर कुछ करते हैं तो आप का नाम सुर्खियों में आना स्वभाविक है. वैसे तो शिवदीप लांडे ने अपनी पुलिस की नौकरी के सारे फैसले लीक से हट कर ही लिए. लेकिन कई मौकों पर उन के नाम की खूब धूम मची. ऐसा एक मौका तब भी आया, जब शिवदीप ने एक लड़की को 3 शराबियों के गिरोह से मुक्त कराया था.

इसी तरह मुरादाबाद के एक इंस्पेक्टर को भेष बदल कर उन्होंने रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा था. यह जनवरी, 2015 की घटना है. शिवदीप को जानकारी मिली कि मुरादाबाद के इंस्पेक्टर सर्वचंद 2 व्यापारी भाइयों से उन का पुराना केस खत्म करने के बदले में पैसे की मांग कर रहे हैं. इस बात को साबित करने के लिए शिवदीप तुरंत सिर पर दुपट्टा लपेट कर पटना के डाक बंगला चौराहे पर पहुंच गए.

उन की जानकारी के अनुसार इंसपेक्टर पैसे लेने के लिए यहीं आने वाला था. इंसपेक्टर जैसे ही वह पैसे लेने वहां पहुंचा, वैसे ही भेष बदल कर वहां इंतजार कर रहे शिवदीप ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद मीडिया में शिवदीप का नाम खूब उछला था.

अच्छा काम करने के बावजूद बारबार तबादला किए जाने से परेशान शिवदीप लांडे ने बाद में बिहार छोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने केंद्रसरकार से अपने गृह राज्य महाराष्ट्र लौटने की इच्छा जताई. शिवदीप लांडे के ससुर और महाराष्ट्र सरकार में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय शिवतारे ने खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब उन की पैरवी की तो यह काम और भी आसान हो गया.

हालांकि अब शिवदीप भले ही बिहार से जा चुके हैं. लेकिन उन का एक्शन मूड अभी भी जारी है. शिवदीप इन दिनों मुंबई एंटी नारकोटिक्स सेल क्राइम ब्रांच में डीआईजी के पद पर हैं. डांस बार में छापेमारी के साथसाथ कई बार नशीले पदार्थों की धरपकड़ के कारण उन का नाम यहां भी सुर्खियों में बना रहता है.

इसी साल जनवरी में शिवदीप फिर से चर्चा में तब आए, जब उन्होंने हेरोइन तस्करों को पकड़ने के लिए आटो ड्राइवर का भेष बनाया था. इस छापेमारी में मुंबई पुलिस ने 12 करोड़ की हेरोइन बरामद की थी. एक तरह से शिवदीप ने साबित कर दिया है कि चाहे जगह जो भी हो, उन का लक्ष्य एक ही रहेगा, और वो है अपने दबंग स्टाइल में अपराध और अपराधियों का खात्मा करना.

इसे एक अधिकारी की लोकप्रियता ही कहेंगे कि जब मुंगेर से शिवदीप का तबादला हुआ तो 6 किलोमीटर तक फूलों की बारिश करते हुए लोगों ने उन्हें विदा किया था. भीषण ठंड में जब पटना से उन का तबादला हुआ तो लोगों ने कई दिनों तक भूख हड़ताल और प्रर्दशन किए.

अररिया जिले से तबादला हुआ तो लोगों ने 48 घंटों तक उन्हें जिले से बाहर ही नहीं जाने दिया. रोहतास में खनन माफियाओं के खिलाफ उन की मुहिम में हमेशा लोगों का साथ मिला.

लांडे की पुलिस विभाग में जहां भी नियुक्ति रही, वह लोगों की आंख का तारा बन कर रहे. लोगों ने उन्हें अपनाया. मीडिया ने उन्हें ‘दबंग’, ‘सिंघम’, ‘रौबिनहुड’ और न जाने कितने उपनाम दिए, लेकिन उन के अपने उन्हें  ‘शिवदीप’ नाम से बुलाते हैं.

दंबग फिल्म में सलमान खान ने चुलबुल पांडे नाम के जिस पुलिस अफसर का किरदार निभाया है, उन में से अधिकांश किस्से आईपीएस शिवदीप लांडे की रीयल जिंदगी से जुडे़ है. ऐसा कहा जाता है कि सलमान खान ने यह फिल्म आईपीएस अफसर लांडे को केंद्र में रख कर ही बनाई थी, बस इस में कुछ बदलाव कर दिए गए थे.

सुपर कौप सौम्या सांबशिवन : हिमाचल की शेरनी

जब भी जांबाज महिला आईपीएस अफसरों का नाम आता है तो शिमला में 1947 से 2017 तक 53वीं एसपी रह चुकीं सौम्या सांबशिवन को नहीं भूला जा सकता. वह स्वभाव से सौम्य हैं, लेकिन दिल से दबंग.

केरल की रहने वाली सौम्या बनना चाहती थीं लेखिका, लेकिन बन गईं एसपी. जाहिर है, ऐसे में मन गलत के प्रति विद्रोह तो करेगा ही, विद्रोह होगा तो दबंगई भी होगी. गनीमत यह है कि उन्हें पढ़ने का शौक है और यह शौक विद्रोह को रोकता है. फिर भी वह अपराधियों के लिए खौफनाक तो हैं ही.

इंजीनियर पिता की एकलौती बेटी सौम्या ने बायोस्ट्रीम से ग्रेजुएशन करने के बाद एमबीए में दाखिला लिया था. एमबीए हो गया तो उन्होंने 2 साल तक एक मल्टीनेशनल बैंक में नौकरी की. इस बीच वह यूपीएससी की तैयारी करती रहीं. 2010 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईपीएस बन कर 11 महीने की ट्रेनिंग में चली गईं. उन्हें हिमाचल कैडर मिला था. विभागीय ट्रेनिंग के लिए उन्हें शिमला भेजा गया, जहां वह डिप्टी एसपी की पोस्ट पर रहीं. फिर उन्हें एडिशनल एसपी बनाया गया.

एसपी के तौर पर उन की पहली पोस्टिंग सिरमौर में हुई. सिरमौर में ड्रग का बोलबाला था. ड्रग्स की तसकरी और बिक्री भी होती थी और लोग ड्रग्स लेते भी थे. झाडि़यों में ड्रग की खाली रेपर पुडि़या पड़ी मिलती थीं. सब से पहले सौम्या ने नशेडि़यों की धरपकड़ कर के ड्रग लेने वालों पर लगाम लगाई.

इस के लिए उन्होंने पकड़े गए नशेडि़यों की वीडियोग्राफी कराई और बताया इस की डौक्यूमेंट्री बना कर देश भर में दिखाई जाएगी. इस से होने वाली बदनामी से लोग डरे. उन्होंने नशेडि़यों के ठिकानों को भी जेसीबी से हटवा दिया और उस का भी वीडियो बनवाया.

नशेडि़यों के अड्डे बने खंडहर भवनों में कांचकली (खुजली वाला पाउडर) का छिड़काव करा दिया गया ताकि वे वहां जाएं तो खुजातेखुजाते पागल हो जाएं. सिरमौर में चला अपनी तरह का यह पहला अभियान था, जिसे जनता का भरपूर समर्थन मिला. उन्होंने देवीनगर में कृपालशिला और गुरुद्वारे के पास नशेडि़यों के छिप कर बैठने के अड्डों को भी नेस्तनाबूद करवा दिया.

सौम्या के अनुसार एक ब्लाइंड मर्डर की तफ्तीश के लिए वह झाडि़यों में गई थीं, जहां नशीली दवाइयों के रेपर, नशे के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री आदि मिली. तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि नशे के खिलाफ अभियान चलाएंगी. संदिग्ध नशेडि़यों पर नजर रखने के लिए उन्होंने पावटा में 75 सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए.

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इस के बाद उन्होंने नशा बेचने, सप्लाई करने वाले तसकरों को घेरा. अपने प्रयासों से सौम्या ने सिरमौर को ड्रग्स मुक्त तो किया ही. नशेडि़यों की लत छुड़वाने के लिए जिलेभर में नशा मुक्ति केंद्र भी बनवाए. इसी बीच उन्होंने कई ब्लाइंड केस सुलझाए. तिहाड़ जेल से फरार एक ऐसे पेशेवर हत्यारे को भी पकड़ा जो कत्ल कर के खुला घूम रहा था.

पढ़ने लिखने की शौकीन सौम्या को साहित्य, कविताओं और मुशायरों का खूब शौक है. एक बार तो वह सिरमौर से सैकड़ों किलोमीटर दूर देवबंद में होने वाले लेडीज मुशायरे में शामिल होने पहुंच गईं. उन का कहना था कि पुलिस के काम में दिमाग के साथ दिल की मजबूती भी बेहद जरूरी है और यह मजबूती, शक्ति साहित्य से ही मिल सकती है.

कविताएं सदियों से मनुष्य को प्रेरित करती रही हैं, ये मानव के अंदर छुपी संभावनाओं को सामने लाने का बढि़या माध्यम हैं. साहित्य आदमी को सरल भी बनाता है और मजबूत भी.

एक तरफ सौम्या का यह सरल रूप सामने आया तो दूसरी तरफ उन्होंने सिरमौर में, खास कर नहान में खनन माफियाओं की नाक में ऐसी नकेल डाली कि खनन कार्य ही बंद करवा दिए. एक ही दिन में सौम्या ने 21 वाहन व जेसीबी मशीनें जब्त कीं, 40 वाहनों के चालान काटे और 1,47000 रुपए का जुर्माना वसूला.

सौम्या सब से ज्यादा चर्चाओं में तब आईं जब एक प्रदर्शन के दौरान उन्होंने बदतमीजी करने पर एक विधायक को न केवल थप्पड़ जड़ा, बल्कि जेल भी भेजा. उन का कहना था, इतनी छूट किसी को नहीं दी जा सकती. चाहे वह कोई भी क्यों न हो.

सिरमौर की सीमाएं 2 अलगअलग राज्यों से लगती हैं, इस नजरिए से इस जिले को संवेदनशील माना जाता है. लेकिन सौम्या ने अपराधियों में पुलिस का इतना खौफ भर दिया कि उन्हें ड्रग, शराब और मानव तसकरी बंद करनी पड़ी.

लड़कियों की रोल मौडल

सौम्या के पास लड़कियों से छेड़छाड़ की बहुत शिकायतें आती थीं. ऐसे मामलों में छेड़छाड़ के कुछ मामलों को तो रोका जा सकता था, लेकिन हर जगह पुलिस मौजूद नहीं रह सकती थी. इस के लिए उन्होंने सोचना शुरू किया. दरअसल बचाव के लिए पेपर स्प्रे एक तो हर जगह मिलता नहीं है, दूसरे महंगा भी होता है. कई बार मौका नहीं मिलता तो लड़कियां इस का इस्तेमाल भी नहीं कर पातीं. तीसरे इस का असर भी ज्यादा देर नहीं रह पाता.

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सौम्या ने इस बारे में सोचना शुरू किया तो थोड़ी सी मेहनत से उन्हें रास्ता मिल गया. उन्होंने मिर्च, रिफाइंड और नेल पौलिश से एक अलग तरह का तरल पदार्थ बनाया. यह इतना कारगर था कि एक बार स्प्रे करने से मनचले आधे घंटे से पहले नहीं उठ सकते थे.

उन्होंने इस का एक वीडियो बनाया और कालेज और स्कूलों की लड़कियों को ट्रेनिंग देनी शुरू की. यह काम उन्होंने हाईस्कूल से डिगरी कालेजों में पढ़ने वाली लड़कियों के बीच किया. साथ ही उन्हें खास तरह की खाली बोतलें दीं ताकि लिक्वेड को उस में भर कर अपने साथ रख सकें.

सौम्या की इस पहल को उद्योग संगठनों और प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने सहयोग दिया और रीफिल की जाने वाली खाली स्प्रे बोतलें उपलब्ध कराईं. एसपी ने फैसला किया वह देश की बेटियों के लिए इस नए तरीके को यू ट्यूब के जरीए सार्वजनिक करेंगी, ताकि वे कम खर्च में अपनी सुरक्षा कर सकें. एसपी सौम्या की यह मुहिम काम आई और सिरमौर में छेड़छाड़ की घटनाएं बंद हो गईं.

शिमला ट्रांसफर

इसी बीच शिमला के कोटखाई में गुडि़या गैंग रेप और हत्या के मामले को ले कर शिमला में लौ एंड और्डर की स्थिति बिगड़ी तो सुपरकौप सौम्या का ट्रांसफर शिमला कर दिया गया.

दरअसल, शिमला से 58 किलोमीटर दूर कोटखाई में 4 जुलाई, 2017 को एक स्कूली छात्रा लापता हो गई थी. 2 दिन बाद जंगल में उस की लाश मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि छात्रा के साथ गैंग रेप के बाद उस की हत्या की गई थी, वह भी 2 दिन पहले.

सवाल उठा जंगली जानवरों के होते 2 दिन तक लाश सहीसलामत कैसे पड़ी रही. इसे ले कर हंगामा हुआ तो पुलिस ने एक स्थानीय युवक सहित 5 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन लोग इस से संतुष्ट नहीं थे. हंगामा बढ़ते देख पुलिस ने जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी.

उस समय हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी. लोग जांच से संतुष्ट नहीं हुए. इसी बीच 18 जुलाई को पकड़े गए एक युवक सूरज की हवालात में मौत हो गई. इस से हंगामा और बढ़ गया. लोग सड़कों पर उतर आए. आरोप था कि सूरज की मौत पुलिस टार्चर से हुई है.

लौ एंड और्डर को बिगड़ता देख मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शिमला के एसपी डब्ल्यू डी नेगी को हटा कर 19 जुलाई, 2017 को सिरमौर की तेजतर्रार और ईमानदार आईपीएस सौम्या सांबशिवन को शिमला का नया एसपी तैनात कर दिया. साथ ही मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति दे दी.

जांच शुरू हुई तो सीबीआई ने अन्य लोगों के साथ नई एसपी सौम्या सांबशिवन का भी बयान लिया. इस के बाद सीबीआई ने हवालात में सूरज की मौत (हत्या) के मामले में सूबे के आईजी जहूर एच जैदी, एसपी डब्ल्यू डी नेगी और डीएसपी मनोज जोशी सहित 5 पुलिस वालों को आरोपी बनाया.

सीबीआई जांच के दौरान यह बात सामने आई कि आईजी जहूर एच जैदी ने एसपी सौम्या पर बयान बदलने के लिए बारबार दबाव बनाया था.

सौम्या के लिए जब काम करना मुश्किल हो गया तो उन्होंने 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस हेडक्वार्टर धर्मशाला फोन कर के डीजीपी से शिकायत की तो जैदी के फोन आने बंद हुए. डीजीपी ने यह बात मुख्यमंत्री को बताई तो जैदी को निलंबित कर दिया गया.

सूरज की हत्या के आरोपी पुलिस वालों पर शिमला की सीबीआई अदालत में केस चलना शुरू हुआ, लेकिन वहां के वकीलों ने इन लोगों की पैरवी करने से इनकार कर दिया. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो सर्वोच्च अदालत ने इस केस को चंडीगढ़ ट्रांसफर करने का आदेश दिया.

शिमला की एसपी सौम्या सांबशिवन ने इस मामले में आईजी जहूर एच जैदी पर मानसिक रूप से प्रताडि़त करने का आरोप लगाते हुए अदालत में कहा कि आईजी इस केस में मेरा बयान बदलवाना चाहते हैं.

सौम्या के इस बयान से हिमाचल की सियायत में हलचल मच गई. तब नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ऐसे अधिकारियों पर बड़ी काररवाई करेगी जो केस के गवाहों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री ठाकुर का कहना था कि हम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. इस मामले में किसी ने सबूतों या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश तो यह बरदाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने बताया कि एसपी सौम्या सांबशिवन ने आईजी जैदी द्वारा दबाव बनाए जाने की बात डीजीपी से कही थी और डीजीपी ने मुझे बताया. उन्होंने जैदी को चेतावनी भी दी थी. इस के बाद जैदी ने उन्हें फोन करना बंद कर दिया था. लेकिन यह मामला फिर से उठ खड़ा हुआ. सूरज और गुडि़या मामले में उन्होंने सौम्या पर जो दबाव बनाया, उस के लिए जैदी को 3 बार सस्पैंड किया गया. लेकिन उन्हें नियमों के तहत ही फिर से नियुक्ति दी गई.

सरकारी खेल

इस बीच सौम्या सांबशिवन का ट्रांसफर कर के उन्हें पुलिस ट्रेनिंग कालेज भेज दिया गया. बाद में उन्हें वहां से भी ट्रांसफर कर के पंडोह में आईआरबी 3 का कमांडेंट बना दिया गया था. बाद में सौम्या ने फिर चंडीगढ़ कोर्ट में बयान दिया कि सुनवाई से पहले उन पर इतना दबाव डाला गया कि वह परेशान हो गईं और इस स्थिति में उन के लिए काम करना मुश्किल हो गया.

जैदी साहब सितंबर 2019 में उन के मोबाइल, शिमला औफिस के लैंडलाइन पर बात करने की लगातार कोशिश कर रहे थे. उन्होंने शिमला हेडक्वार्टर, वाट्सएप काल और सबौर्डिनेटर के फोन पर भी बात की.

सौम्या ने अपने मानसिक तनाव का जिक्र करते हुए आगे कहा कि दिनप्रतिदिन परिस्थितियां इतनी मुश्किल होती गईं कि उन के पीएसओ, स्टेनो ने फोन उठाना बंद कर दिया. ऐसी स्थिति में कोई कैसे काम कर सकता है.

अधिकारी कितना बड़ा और पावरफुल हो, लेकिन अपने सीनियर के सामने या उस के बारे में कुछ कहने से पहले 10 बार सोचता है, भविष्य की चिंता करता है. लेकिन सौम्या उन में से नहीं थीं जो डर जातीं. उन्होंने कोर्ट में कहा, ‘जैदी साहब ने मुझ से फोन पर कहा, ‘मैं वकीलों की एक टीम और 30 पेज की प्रश्नावली का सामना करने को तैयार हूं. उम्मीद है आप यह सूचना सीबीआई को नहीं देंगी.’

मजबूरी में उन्हें 10 दिसंबर, 2019 को धर्मशाला हेडक्वार्टर फोन कर के यह सूचना तत्काल डीजीपी को देनी पड़ी. इस के बाद उन का फोन आना तो बंद हो गया, लेकिन मेरे पीएसओ से मेरी लोकेशन जानने की कोशिश की गई. इस पर कोर्ट ने सीबीआई को सौम्या के कोर्ट आनेजाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था करने को कहा. सौम्या के बयान से यह बात साबित हो रही थी कि जैदी सहित कोटखाई मामले से जुड़े अन्य पुलिस अधिकारियों ने कहीं न कहीं लापरवाही बरती थी और अब खुद को बचाने के लिए गवाहों पर उन के पक्ष में बयान देने के लिए दबाव बना रहे थे. जैदी कौन सा बयान बदलवाना चाहते थे, यह बात क्लीयर नहीं हो पाई.

बहरहाल यह केस अभी भी चल रहा है. आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता. सौम्या सांबशिवन जहां भी रहीं अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, वह भी पूरी ईमानदारी से.

इसी बीच गतवर्ष अक्तूबर, 2020 में जब बिहार में 3 चरणों में चुनाव होने थे तो सौम्या को आदेश मिला कि बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन की होगी. इस के लिए उन्हें राज्य कमांडर का दर्जा दिया गया था. तब भी वह पंडोह में आईआरबी 3 की कमांडेंट थीं.

आदेश मिलते ही वह हिमाचल के 600 जवानों के साथ निश्चित तारीख पर बिहार के लिए रवाना हो गईं. इन जवानों में पंडोह, बनगढ़ (ऊना) व कोलर (सिरमौर) की आईआरबी की 6 कंपनियां थीं. ये लोग सहारनपुर से टे्रन पकड़ कर बिहार के लिए रवाना हुए.

बिहार में शांतिपूर्ण चुनाव कराना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन सौम्या ने यह चुनौती स्वीकार की और पूरी भी की. फिलहाल सौम्या हिमाचल के पंडोह में आईआरबी 3 (भारतीय आरक्षित वाहिनी) की कमांडेंट हैं. उन की ईमानदारी और बेखौफ दबंग अधिकारी की छवि कभी नहीं बदलेगी. क्योंकि वह इसीलिए पुलिस फोर्स में आई हैं कि कानूनव्यवस्था को बनाए रखें और देशहित में काम करें.

जज्बे को सलाम 

ईमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने वाले पुलिस अधिकारी हों या आम लोग जहां भी जाते हैं. कुछ अलग कर के अपनी छाप छोड़ ही देते हैं. सौम्या सांबशिवन भी उन ही में से हैं. शिमला में जब उन का पंगा अपने सिनियर औफिसर आईजी से हुआ था तो राजनीतिक दबाव के चलते उन का तबादला कांगड़ा जिले के दरोह पुलिस प्रशिक्षण कालेज में कर दिया गया था, जहां उन्हें प्रिंसिपल बनाया गया था. वहां जाते ही उन्होंने अपने सहयोगी अफसरों से कहा, ‘हम मानकों के साथ इस कालेज की प्रतिष्ठा को न केवल बनाए रखेंगे बल्कि बेहतर से बेहतर काम करेंगे.’

सौम्या ने केवल कहा ही नहीं बल्कि स्वयं को साबित कर के भी दिखाया. उन्होंने जून 2018 के चयनित कांस्टेबलों के बैच के लिए कंप्यूटर और सामान्य संचार साधनों का प्रबंध कराया ताकि उन्हें मौजूदा दौर की जरूरी शिक्षा दी जा सके. इस बैच में 682 कांस्टेबल और 3 पूर्व सैनिक थे. इस बैच के सभी प्रशिक्षार्थी बुनियादी कंप्यूटर और सामान्य संचार माध्यमों में प्रशिक्षित हो कर पासिंग आउट परेड के बाद नियुक्ति के लिए विभिन्न थानों को भेजे गए थे.

भारत सरकार की संस्था ब्यूरो फौर पुलिस एंड डेवलपमेंट द्वारा किए गए अध्ययन के बाद कांगड़ा जिले को पुलिस प्रशिक्षण कालेज दरोह को राष्ट्रीय स्तर का सर्वश्रेष्ठ केंद्र (कांस्टेबल श्रेणी) घोषित किया था. प्रशिक्षण केंद्र को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 20 लाख का नकद पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र दिया गया था.

कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जिंदगी की हर राह उपलब्धि बन जाती है. अपने सेवा काल के दौरान राह में आने वाली हर बाधा, रुकावट को अपनी उपलब्धि में बदलने वाली सौम्या सांबशिवन एक बेमिसाल अफसर तो हैं ही, साथ ही ईव टीजिंग का शिकार लड़कियों की स्नेहशील गार्जियन भी हैं.

अनीता प्रभा : हौसलों की उड़ान

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों… कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां प्रभात शर्मा पर सटीक बैठती हैं. इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए अनीता प्रभा ने अपने दृढ़ आत्मविश्वास, अटूट लगन और अथक परिश्रम से असंभव को भी संभव कर दिखाया.

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के एक छोटे से कस्बे के पारंपरिक परिवार में जन्मी अनीता प्रभा जिंदगी में कुछ खास करना चाहती थीं. लेकिन पारिवारिक बंदिशों के चलते 10वीं के बाद उन की पढ़ाई बंद हुई तो वह भाई के पास ग्वालियर चली गईं और वहां से 12वीं पास की. इस के बाद मात्र 17 साल की उम्र में उन की शादी 10 साल बड़े लड़के से कर दी गई.

ससुराल के हालात कुछ अच्छे नहीं थे. अनीता ने ससुराल में जिद कर के ग्रैजुएशन करना शुरू कर दिया. लेकिन वक्त यहां भी आड़े आ गया. फाइनल ईयर के एग्जाम से पहले उन के पति का एक्सीडेंट हो गया, जिस की वजह से अनीता एग्जाम नहीं दे पाईं. फाइनल ईयर के एग्जाम उन्होंने अगले साल क्लियर किए. 4 साल में ग्रैजुएशन करने का नुकसान यह हुआ कि अनीता प्रोबेशनरी बैंक आफिसर की पोस्ट के लिए रिजेक्ट कर दी गईं.

घर की आर्थिक हालत दयनीय देख अनीता प्रभा ने ब्यूटीशियन का कोर्स किया और ब्यूटीपार्लर में काम करना शुरू कर दिया. इस से आर्थिक मदद तो होने लगी परंतु जिंदगी का सफर इतना आसान कहां था. अनीता प्रभा और उन के पति की उम्र में ही नहीं, सोच में भी अंतर था. यही वजह थी कि दोनों में टकराव शुरू हो गया.

अनीता प्रभा ने घरेलू हालात से निपटते हुए 2013 में विवादों से घिरे व्यापमं की फौरेस्ट गार्ड की परीक्षा दी. यह परीक्षा उन्होंने 4 घंटे में 14 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर के दी थी. उन की मेहनत रंग लाई और दिसंबर 2013 में उन्हें बालाघाट में पोस्टिंग मिल गई.

लेकिन अनीता यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए व्यापमं के सबइंस्पेक्टर पोस्ट के लिए परीक्षा दी. लेकिन इस के फिजिकल टेस्ट में सफल नहीं हो सकीं. उन्होंने हिम्मत न हारते हुए दूसरी बार प्रयास किया और 2 महीने पहले ओवरी ट्यूमर का औपरेशन कराने के बावजूद फिजिकल टेस्ट पास कर के सबइंस्पेक्टर बन गईं.

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उन्होंने बतौर सूबेदार जिला रिजर्व पुलिस लाइन में जौइन किया. इस की ट्रेनिंग के लिए वह सागर चली गईं. इसी दौरान उन के तलाक का केस भी कोर्ट में चला गया था. दूसरी तरफ व्यापमं की तैयारी करते हुए अनीता प्रभा ने मध्य प्रदेश स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी. उस के रिजल्ट का इंतजार न कर के अनीता सागर के लिए रवाना हो गईं.

ट्रेनिंग के दौरान ही एमपीपीएससी के रिजल्ट आए. जिस में अनीता महिला वर्ग में 17वें नंबर पर थीं. यह एक महत्त्वाकांक्षी लड़की की अभूतपूर्व जीत थी. वह डीएसपी रैंक के लिए चयनित हो गई थीं. इस जीत का उत्सव मनाते हुए अनीता प्रभा ट्रेनिंग छोड़ कर वापस लौट आईं और अपने डीएसपी पद के जौइनिंग और्डर का इंतजार करने लगीं.

किसी फिल्म सरीखी लगने वाली यह कहानी एक ऐसी लड़की की है, जिस ने बाल विवाह का दंश झेला. समाज और परिवार की रुढि़वादी परंपराओं को सहा लेकिन अपने हौसले को पस्त नहीं होने दिया और न ही अपने सपने को मरने दिया. उस ने कांटों भरी डगर पर चल कर अपना लक्ष्य हासिल कर लिया.

लेकिन राह यहीं खत्म नहीं हुई. अनीता प्रभा का सपना और ऊंचा मुकाम हासिल करना था यानी डिप्टी कलेक्टर के पद तक पहुंचना, जिस के लिए वह प्रयासरत भी हैं. जो भी हो, इतना संघर्ष कर के मात्र 25 वर्ष की आयु में राजपत्रित पद पर पहुंचना एक अभूतपूर्व सफलता है, जो युवाओं के लिए प्रेरणास्पद भी है और अनुकरणीय भी.

महाराष्ट्र की पहली लेडी सुपरकौप मर्दानी आईपीएस

मामला 26 साल पुराना जरूर है. लेकिन आज भी इस घिनौने अपराध को जानसुन कर रूह कांप जाती है. जलगांव का सैक्स स्कैंडल उस दौर का सब से बड़ा सैक्स स्कैंडल था, जिस ने राजनीति में भूचाल ला दिया था. और महिला आईपीएस अधिकारी मीरा बोरवंकर के नाम का डंका बज गया था.

1994 के उस दौर में महाराष्ट्र स्टेट सीआईडी के हैड अरविंद ईनामदार थे. मीरा बोरवंकर सीआईडी में क्राइम ब्रांच की इंचार्ज थीं. उन दिनों क्राइम ब्रांच का काम  संगठित अपराध और गैंगस्टरों को खत्म करना था. मीरा बोरवंकर तब तक महाराष्ट्र के कई जिलों में चर्चित पुलिस अधीक्षक रह चुकी थीं. उन्होंने कई कुख्यात अपराधियों की नाक में नकेल डाली थी.

आकर्षक और सौम्य व्यक्तित्व की मीरा इसलिए भी चर्चाओं में थीं, क्योंकि वह महाराष्ट्र की पहली और उन दिनों की एकलौती महिला आईपीएस अफसर थीं. आमतौर पर तब महिलाओं की छवि घर परिवार का पालनपोषण करने और घर की रसोई संभालने वाली नारी के रूप में होती थी. लेकिन मीरा ने आईपीएस बनने के बाद अपराधियों की कमर तोड़ कर इस छवि को बदलने का काम किया था.

दरअसल, सीआईडी को लगातार शिकायत मिल रही थी कि जलगांव में प्रभावशाली लोगों का एक ऐसा गिरोह सक्रिय है जो स्कूली लड़कियों व कामकाजी महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का शारीरिक शोषण करता है.

इसी दौरान लड़कियों की वीडियो भी तैयार कर ली जाती है, जिस से लड़कियों को ब्लैकमेल कर के उन्हें बड़ेबड़े कारोबारियों, नौकरशाहों और राजनेताओं के बिस्तर की शोभा बनने को मजबूर किया जा सके.

लेकिन बदनामी के डर से कोई भी पीडि़त लड़की न तो पुलिस के सामने आ रही थी और न ही सीआईडी को किसी तरह का सबूत मिल रहा था.

अरविंद ईनामदार ने अपनी टीम के एसपी स्तर के 2 अफसरों दीपक जोग और मीरा बोरवंकर को इस सैक्स  स्कैंडल के आरोपियों को पकड़ने का जिम्मा सौंपा.

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दीपक जोग को इस मामले में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी. लेकिन मीरा ने महिला होने के नाते इस अपराध को बेहद गंभीरता से लिया और खुद इस केस की छानबीन में जुट गईं.

मीरा ने एक तेजतर्रार टीम का गठन किया और शहर में जिस्मफरोशी का धंधा करने वाले लोगों के बीच में टीम के लोगों की घुसपैठ करवा दी. अपराध ऐसा था जिस में न तो कोई शिकायत करने वाला था, न ही किसी अपराधी का चेहरा सामने था.

लेकिन मीरा ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपनी टीम के लोगों को उस वक्त तक इस प्रयास में लगे रहने के लिए कहा, जब तक असल अपराधियों के चेहरे सामने नहीं आ जाते.

इसी प्रयास के दौरान उन की टीम ने एक लड़की को पेश किया जो देह व्यापार की दलदल में फंस चुकी थी. जब लड़की को मीरा के सामने लाया गया तो उन्होंने बड़े प्यार और चतुराई से उन लोगों के नाम उगलवा लिए जिन के कारण वह देह व्यापार के धंधे में आई थी.

नाम, पते सब हासिल हो गए थे. लेकिन लड़की के बयान के अलावा कोई ऐसा सबूत नहीं था कि उन प्रभावशाली लोगों पर हाथ डाल कर उन्हें कानून के कटघरे में खड़ा किया जा सके. मीरा ने सीआईडी के मुखिया अरविंद ईनामदार से मशविरा किया तो उन्होंने सलाह दी कि पहले ठोस सबूत इकट्ठा करो फिर उन लोगों पर हाथ डालना.

इस के बाद मीरा ने छद्मवेश में महिला पुलिसकर्मियों को उस गिरोह के भीतर शामिल करा दिया. धीरेधीरे गिरोह के खिलाफ सबूत एकत्र होने लगे. जल्दी ही गिरोह के चंगुल में फंसी लड़कियों की लंबी फेहरिस्त तैयार हो गई. उन तमाम प्रभावशाली लोगों के चेहरे भी सामने आ गए जो सैक्स रैकेट के इस बड़े सिंडीकेट में शामिल थे.

फिर शुरू हुआ इन की धरपकड़ के बाद सफेदपोशों के चेहरों को बेनकाब करने का अभियान. मीरा बोरवंकर ने जैसे ही बड़ेबड़े कारोबारियों, सरकारी अफसरों, राजनीति से जुडे़ लोगों के साथ जरायम की दुनिया से जुड़े लोगों पर हाथ डालना शुरू किया तो पूरे देश में हड़कंप मच गया.

मीरा पर लोगों को छोड़ने की सिफारिशों का दबाव बढ़ने लगा. और तो और अपने खुद के विभाग के बड़े अफसरों ने भी मीरा पर धमकी भरा दबाव बना कर कहा कि इतने प्रभावशाली लोगों पर हाथ डाल कर वह अपने लिए दुश्मन पैदा कर रही हैं. वे सब तो अपने प्रभाव से छूट जाएंगे, लेकिन इस की कीमत उन्हें चुकानी पड़ सकती है.

लेकिन मीरा किरण बेदी को अपना आदर्श मान कर पुलिस महकमे में आई थीं, जिन्होंने देश की लौह महिला कही जाने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कारवां में शामिल गाड़ी तक का चालान कर दिया था.

मीरा ने कोई दबाव नहीं माना. क्योंकि जलगांव में यह धंधा कई दशकों से चला आ रहा था. खास बात यह कि गिरोह के लोग 10 से 12 साल तक की लड़कियों का यौनशोषण कर रहे थे. शिकार महिलाओं की संख्या भी 300 के लगभग थी.

ब्लैकमेलिंग के डर से लड़कियां उन की शिकायत भी नहीं करती थीं. इस गिरोह ने स्कूल और कालेज की लड़कियों को देह व्यापार के व्यवसाय में ढकेला था. जानेमाने राजनीतिज्ञ, बिजनैसमैन और अपराधियों द्वारा महिलाओं से बलात्कार किया जाता था. साथ ही ये लोग उन की फिल्म बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया करते थे.

मीरा ने अपने अधिकारियों को विश्वास में ले कर जलगांव में सैक्स रैकेट चलाने वाले करीब 2 दरजन से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें मीडिया के सामने बेनकाब किया. इन में कई बड़े व्यापारी, सरकारी अफसर, बड़े नेता और जुर्म की दुनिया से जुड़े बड़ेबड़े लोग शामिल थे.

इस गिरोह का खुलासा होने के बाद पूरे देश में हंगामा हो गया. मीरा बोरवंकर अचानक इस ताकतवर गिरोह का भंडाफोड़ करने के बाद मीडिया की सुर्खियों में छा गईं. देश के लोग खासतौर से महिलाओं के लिए वह ऐसी सुपरकौप बन गईं जिन्हें कोई भी मुश्किल नहीं डिगा पाई थी.

जलगांव सैक्स स्कैंडल को हुए 26 साल से अधिक का समय बीत चुका है. मीरा बोरवंकर भी अब पुलिस महकमे से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं, लेकिन आज भी वह देश में पुलिस विभाग की लेडी सुपरकौप के नाम से मशहूर हैं और रहेंगी.

सब से बड़ी बात यह थी कि जिस समय उन्होंने देश के इस बहुचर्चित केस का खुलासा किया था उस समय वह गर्भवती थीं. इस स्कैंडल का खुलासा करने में मीरा ने अहम रोल निभाया था. वह देश भर की मीडिया की सुर्खियों में छाई रहीं.

कई लोगों ने साल 2014 में आई रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म ‘मर्दानी’ देखी होगी. लोगों को शायद यह बात पता नहीं होगी यह फिल्म मीरा बोरवंकर के जीवन से ही प्रेरित थी.

देश की बागडोर असल मायने में उन ईमानदार अफसरों के हाथों में ही होती है जो पूरी निष्ठा के साथ अपना फर्ज निभाते हुए कानूनव्यवस्था चाकचौबंद रखते हैं. जिस तरह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी नौकरशाही से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है. ऐसे में मीरा जैसे कुछ अफसर ऐसा काम कर जाते हैं, जो लोगों के लिए मिसाल बन जाता है.

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महाराष्ट्र में ‘लेडी सुपरकौप’ के नाम से मशहूर आईपीएस अफसर मीरा बोरवंकर की कहानी पुलिस विभाग में कुछ ऐसी ही मिसाल पेश करती है.

पिता से मिली बहादुरी की सीख

मीरा बोरवंकर के पिता ओ.पी. चड्ढा बौर्डर सिक्योरिटी फोर्स में थे. उन का जन्म और पढ़ाई पंजाब के फाजिल्का जिले में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई डीसी मौडल स्कूल फाजिल्का में की थी. मीरा के पिता ओ.पी. चड्ढा की पोस्टिंग फाजिल्का में ही थी. इसी दरमियान मीरा ने मैट्रिक तक शिक्षा फाजिल्का में पाई.

इस के बाद 1971 में उन के पिता का तबादला हुआ तो उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई जालंधर से की. लायलपुर खालसा कालेज से उन्होंने अंगरेजी साहित्य में एमए किया. वह बहुमुखी प्रतिभा की छात्रा थीं. वह नीति विश्लेषण कानून प्रवर्तन में मिनेसोटा, अमेरिका के विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए गईं.

1971-72 के दौरान जब मीरा कालेज में थीं, तब किरण बेदी आईपीएस बन चुकी थीं और देश भर में उन के कारनामों का डंका बज रहा था.

मीरा पढ़ाई के साथ स्पोर्ट्स, म्यूजिक और दूसरी गतिविधियों में भी अव्वल थीं. यही कारण था कि एक दिन उन की एक शिक्षिका ने उन से कहा कि मीरा तुम किरण बेदी की इतनी बड़ी फैन हो, उन की तारीफ करती नहीं थकतीं. तुम्हारे भीतर भी आईपीएस बनने के सारे गुण हैं. तुम यूपीएससी की तैयारी क्यों नहीं करतीं.

बस मीरा के भीतर टीचर की यह बात घर कर गई. उन्होंने आईपीएस बनने की ठान ली और पुलिस की सेवा में जाने का मन बना लिया. मीरा ने यूपीएससी की तैयारियां शुरू कर दीं. पहली बार में ही मीरा ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली.

मीरा ने फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी और सफल रहीं, लेकिन इस बार उन्होंने आईपीएस को चुना. ट्रेनिंग के समय वह अकेली महिला थीं. यह उन के लिए कठिन था, क्योंकि उन्हें ट्रेनिंग में कोई रियायत नहीं मिलती थी.

उन की पोस्टिंग बहुत जगहों पर हुई परंतु पुरुषों को एक लेडी औफिसर के नीचे काम करना अच्छा नहीं लगता था. पुलिस सेवा में महिलाओं की उपस्थिति केवल एक या दो प्रतिशत होने के बावजूद मीरा अपने समकक्ष पुरुष अधिकारियों से कहीं ज्यादा सक्रिय और अलग तरह से काम करती थीं. उन के नेतृत्व में 300 औफिसर्स काम करते थे.

लेकिन मीरा ने कभी अपने मातहत पुरुष अधिकारियों के अहं को ठेस नहीं लगने दी, न ही उन्हें कभी छोटा होने का अहसास कराया. यही कारण रहा कि मीरा को अपने पूरे पुलिस कार्यकाल में पुरुष साथी अफसरों का भरपूर सहयोग मिला.

मीरा 1981 बैच में आईपीएस चुनी गई थीं. उन की शादी रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अभय बोरवंकर से हुई थी. अभय रिटायर होने के बाद फिलहाल अपना बिजनैस संभाल रहे हैं, जिस में मीरा भी उन का हाथ बंटाती हैं.

मीरा बोरवंकर महाराष्ट्र पुलिस के इतिहास में पहली महिला अधिकारी रही हैं, जो मुंबई क्राइम ब्रांच की कमिश्नर बनी थीं.

1987-1991 तक मीरा डिप्टी कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवा देती रहीं. वे औरंगाबाद में डिस्ट्रिक्ट सुपरिंटेंडेंट औफ पुलिस के स्वतंत्र प्रभार में रहीं और सतारा के चार्ज में 1996-1999 तक रहीं. 1993-1995 तक उन्होंने स्टेट क्राइम ब्रांच की भी बागडोर संभाली.

मीरा मुंबई में सीबीआई की आर्थिक अपराध शाखा और नई दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच में डीआईजी के रूप में भी तैनात रहीं. 2013 में वह पुणे की पुलिस कमिश्नर बनीं.

इस दौरान वह जहां भी रहीं, उन्होंने अंडरवर्ल्ड के खिलाफ जोरदार मुहिम चला कर उस की कमर तोड़ दी.  मुंबई में नियुक्तिके दौरान माफिया राज को खत्म करने में उन का अहम रोल रहा. उन्होंने दाऊद इब्राहिम कासकर और छोटा राजन गैंग के कई सदस्यों को सलाखों के पीछे भेजा. उन्होंने उन दिनों के बहुचर्चित तेलगी घोटाले में कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था.

जांबाज अफसर थीं मीरा

मीरा ने नौकरी के शुरुआती समय में ही अपने तेवरों से साफ कर दिया था कि वह हर हाल में गुंडा राज का खात्मा कर के रहेंगी. अपनी बेहतरीन सेवाओं और जांबाजी के लिए वह लेडी सुपरकौप के नाम से मशहूर हो गई थीं. ईमानदारी, बेहतरीन सेवा और कर्तव्यनिष्ठा के लिए उन्हें 1997 में राष्ट्रपति पुरस्कार तथा वर्ष 2001-02 में पुलिस कैरियर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

इस के अलावा उन्हें 2016 में पूर्ण विश्वविद्यालय का जीवन साधना गौरव पुरस्कार, 2014 में  फिक्की एफएलओ और गोल्डन महाराष्ट का वुमन अचीवर अवार्ड, 2008 में मिनेसोटा विश्वविद्यालय से यूएसए का अंतरराष्टीय नेतृत्व पुरस्कार, 2006 में बौंबे मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा मैनेजमेंट वुमन अचीवर अवार्ड से सम्मानित किया था.

2004 में उन्हें उत्कृष्ट पुलिस सेवा के लिए यशवंतराव चह्वाण मुक्त विश्वविद्यालय, नासिक से रुक्मणी पुरस्कार से नवाजा गया. 2002 में उन्हें लोकसत्ता दुर्गा जीवन पुरस्कार दिया गया था. आज वह देश की अनेक युवतियों के लिए प्रेरणा का एक स्रोत हैं.

मीरा ने सतारा में एक ऐसे डकैती केस को सुलझाया था, जिस की उन दिनों देशभर में चर्चा हुई थी. मीरा ने इस केस का इतनी चतुराई से खुलासा किया था कि पूरा पुलिस विभाग उन के दिमाग का लोहा मान गया था. पुलिस डिपार्टमेंट में उन की छवि एक ईमानदार और बहादुर अफसर की थी.

अक्तूबर, 2017 में मीरा बोरवंकर 36 साल की पुलिस सेवा के बाद महानिदेशक एनसीआरबी और ब्यूरो औफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के पद से रिटायर हुई थीं. लेकिन इस से पहले महाराष्ट्र के एडीजीपी जेल के पद पर रहते हुए उन्होंने मुंबई में हुए 26/11 हमलों के दोषी अजमल आमिर कसाब और 1993 मुंबई अटैक के दोषी याकूब मेमन को सफलतापूर्वक फांसी दिलवाई थी.

वह उन 5 अधिकारियों में शामिल थीं, जो मेमन की फांसी के समय जेल परिसर में मौजूद थे. मीरा की देखरेख में ही उसे फांसी दी गई थी. कसाब के मामले का जिक्र करते हुए मीरा ने बताया था कि तब इस बात का पूरा खयाल रखा गया था कि फांसी की जानकारी किसी तरह मीडिया तक न पहुंचने पाए. मीडिया की नजरों से बचने के लिए वह अपने गनर की बाइक पर बैठ कर मुंह और यूनिफार्म को छिपा कर यरवदा जेल पहुंची थीं.

भले ही मीरा पुलिस की वर्दी से दूर हो गई हों, लेकिन महाराष्ट्र के पुलिस महकमे में आज भी उन की बहादुरी और कारनामों के चर्चे जीवंत हैं.

मजबूत इरादों वाली श्रेष्ठा सिंह

यूपी के बुलंदशहर में आयरन लेडी के नाम से मशहूर श्रेष्ठा सिंह का लक्ष्य एकदम स्पष्ट था और उसे पाने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी. जिस की चमक उन के व्यक्तित्व में बखूबी झलकती थी. इसीलिए प्रशिक्षण के बाद जब उन की पहली पोस्टिग स्याना में बतौर सीओ हुई तो उन का कानून का पालन करने का लक्ष्य इरादों की मजबूती बन गया.

23 जून, 2017 को स्याना में चेकिंग के दौरान भाजपा, नेता प्रमोद लोधी को पुलिस ने बिना हेलमेट और बिना कागजात की बाइक चलाते हुए रोक लिया. जब चालान करने की बात आई तो नेता जी श्रेष्ठा सिंह से उलझ बैठे.

प्रमोद लोधी जिला पंचायत सदस्या प्रवेश के पति थे और स्वयं भी नेता थे. लेकिन श्रेष्ठा सिंह ने उन की किसी भी धमकी की परवाह नहीं की. उन्होंने सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई जिस के बाद प्रमोद लोधी को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन्हें कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया गया तो वहां बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक पहुंच कर नारेबाजी करने लगे. तब श्रेष्ठा सिंह ने हंगामा कर रहे नेताओं और समर्थकों से कहा कि वे लोग मुख्यमंत्री जी के पास जाएं और उन से लिखवा कर लाएं कि पुलिस को चेकिंग का कोई अधिकार नहीं है. वो गाडि़यों की चेकिंग न करें.

इस मामले के 8 दिन बाद ही श्रेष्ठा ठाकुर का तबादला स्याना से बहराइच (नेपाल बौर्डर से सटे) कर दिया गया था. जिस की जानकारी उन्होंने अपने एएस ठाकुर नाम के फेसबुक अकाउंट पर देते हुए लिखा,‘मैं खुश हूं. मैं इसे अपने अच्छे कामों के पुरस्कार के रूप से स्वीकार कर रही हूं.’

आगे की लाइन में उन्होंने अपना लक्ष्य भी स्पष्ट करते हुए लिखा, ‘जहां भी जाएगा, रोशनी लुटाएगा. किसी चराग का अपना मकां नहीं होता.’

कानपुर में पलीबढ़ी श्रेष्ठा ने कानून की अहमियत शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही समझ ली थी. जब उन के साथ 2 बार छेड़छाड़ की घटना हुई थी. पुलिस ने मदद के नाम पर औपचारिकता भर निभा दी थी.

तभी श्रेष्ठा ठाकुर ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था, एक पुलिस अधिकारी बनने का और अधिकारी बनने के बाद उन्होंने जता दिया कि कानून की धाराएं आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए एक जैसी हैं. जो उन में भेदभाव करता है, कानून का वह रक्षक अपनी वर्दी के साथ इंसाफ नहीं करता.

बलात्कार, हत्या और साजिश : नेता खुद को बादशाह से कम नहीं समझते

राजनीति में किसी तरह के षडयंत्र से लाभ लेने वाले लोगों की कभी कमी नहीं रही. नेता को अपना विरोध कभी पसंद नहीं आता. ऐसे में करीबी से करीबी लोग भी दुश्मन बन जाते हैं. राजनैतिक लोगों पर आरोप भी लगते रहते हैं. कभीकभी इन आरोपों में सच्चाई भी होती है. अपनी पावर के गुरूर में कुछ नेता ऐसे काम कर बैठते हैं, जो उन के गले की फांस बन जाता है.

बलात्कार जैसे मुद्दे बेहद संवेदनशील होते हैं. अगर ऐसी घटनाएं साजिशन होने लगें तो असल घटनाओं पर यकीन करना भी मुश्किल हो जाएगा. उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में लड़की के बलात्कार और उस के पिता की हत्या से राजनीति का क्रूर चेहरा बेनकाब होता है. जरूरत इस बात की है कि साजिश का परदाफाश हो और पीडि़त को न्याय मिले. सच्चाई साबित होने से षडयंत्र बेनकाब होगा और आगे ऐसे मामलों को रोकने में मदद मिलेगी.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से यही कोई 56 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के माखी गांव का मामला कुछ ऐसा ही है. कविता के पिता और दोनों चाचा 15 साल पहले विधायक कुलदीप सेंगर के बेहद करीबी हुआ करते थे. गांव में कुलदीप के घर से कुछ घर छोड़ कर उन का भी मकान है.

कविता की 3 बहनें और एक भाई है. एक ही जाति के होने के कारण आपसी तालमेल भी अच्छा था. दोनों परिवार एकदूसरे के सुखदुख में शामिल होते थे. आपस में घनिष्ठ संबंध थे. दोनों ही परिवार माखी गांव के सराय थोक के रहने वाले थे. कविता के ताऊ सब से दबंग थे.

कुलदीप सेंगर ने युवा कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की. चुनावी सफर में कांग्रेस का सिक्का कमजोर था तो वह सन 2002 में विधानसभा का पहला चुनाव बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े और उन्नाव की सदर विधानसभा सीट से विधायक बन गए.

कुलदीप के विधायक बनने के बाद कविता के घर वालों के साथ कुलदीप का व्यवहार बदलने लगा. अब वह उस परिवार से दूरी बनाने लगे थे. इस की अपनी वजहें भी थीं, जहां पूरा समाज कुलदीप को विधायकजी कहने लगा था, वहीं कविता के ताऊ कुलदीप को नाम से बुलाते थे.

कुलदीप ने अपनी छवि को बचाने के लिए इस परिवार से दूरी बनानी शुरू की. कविता के पिता और उन के दोनों भाइयों को लगा कि कुलदीप के भाव बढ़ गए हैं. उस में घमंड आ गया है. वह किसी न किसी तरह से उन को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहे.

इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच मनमुटाव बढ़ता गया. जब आपस में दुश्मनी बढ़ने लगी तो विरोधी भी इस दरार को चौड़ा करने में लग गए. एक तरफ जहां कविता का परिवार कुलदीप का विरोध कर रहा था, वहीं कुलदीप अपना राजनीतिक सफर आगे बढ़ाते गए. कुलदीप सिंह सेंगर का नाम उन्नाव जिले की राजनीति से उठ कर राजधानी लखनऊ तक पहुंचने लगा.

बारबार की जीत ने बढ़ाए विधायक कुलदीप सेंगर के हौसले

सत्ता के साथ संतुलन बनाए रखना कुलदीप भी सीख गए थे. अपने स्वभाव और ताकत से वह चुनाव जीतने का पर्याय बन चुके थे. ऐसे में वह दल बदल भी करने लगे. कुलदीप ने सन 2007 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र से जीता और 2012 में इसी पार्टी से भगवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए. कुलदीप की पत्नी संगीता सेंगर भी उन्नाव में जिला पंचायत की अध्यक्ष बन गईं.

उस समय उन्नाव जिले को महिला सशक्तिकरण की मिसाल कहा जाता था, क्योंकि वहां जिला पंचायत अध्यक्ष ही नहीं डीएम और एसपी की कुरसी को भी महिला अधिकारियों ने संभाल रखा था. 3 बार के विधायक कुलदीप सिंह को उम्मीद थी कि अखिलेश सरकार में उन्हें मंत्री पद मिलेगा, पर ऐसा नहीं हुआ.

इतना ही नहीं, कुलदीप सेंगर को जब लगा कि उन्हें पार्टी में दरकिनार किया जाने लगा है तो व्यथित हो कर उन्होंने सपा छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. 2017 का विधानसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर लड़ा और विधायक बने. बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बन जाने के बाद उन की भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तक अच्छी पहुंच हो गई. अब उन का कद भी बढ़ गया था.

उधर विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और कविता के परिवार की रंजिश गहरी होती गई. उन्नाव जिले की पहचान दबंगों वाली है. अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की वहां बहुतायत है. माखी गांव को आसपास क्षेत्र के गांवों से संपन्न समझा जाता है. यहां कारोबार भी दूसरों की अपेक्षा अच्छा चलता है. कविता के ताऊ पर करीब एक दरजन मुकदमे माखी और दूसरे थानों में कायम थे. करीब 10 साल पहले उन्नाव शहर में भीड़ ने ईंटपत्थरों से हमला कर के कविता के ताऊ को मार दिया था.

कविता के परिवार के लोगों ने इस घटना का जिम्मेदार विधायक कुलदीप को ही माना था. तब से दोनों परिवारों के बीच दूरी और बढ़ गई. कविता के ताऊ की मौत के बाद उस के चाचा उन्नाव छोड़ कर दिल्ली चले गए थे. वहां उन्होंने अपना इलैक्ट्रिक वायर का बिजनैस शुरू किया. उन पर करीब 10 मुकदमे थे. गांव में अब कविता के पिता अकेले रह गए. उन के ऊपर भी 2 दरजन मुकदमे कायम थे. नशा और मुकदमों का बोझ उन्हें बेहाल कर चुका था.

बलात्कार के आरोप के बावजूद पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की विधायक से कविता और विधायक कुलदीप सेंगर के परिवार में दुश्मनी का खतरनाक मोड़ जून, 2017 में तब आया, जब कविता और उस के परिवार ने विधायक कुलदीप सेंगर पर बलात्कार का आरोप लगाया. जानकारी के अनुसार जून, 2017 में राखी नामक महिला कविता को ले कर विधायक कुलदीप के पास गई. जहां विधायक ने उसे बंधक बना कर उस के साथ बलात्कार किया. बलात्कार का आरोप विधायक के भाई और साथियों पर भी लगा.

घटना के 8 दिन बाद कविता औरैया जिले के पास मिली. कविता और उस के पिता ने इस बात की शिकायत थाने में की. तब पुलिस ने 3 आरोपी युवकों को जेल भेज दिया. पुलिस ने घटना में विधायक का नाम शामिल नहीं किया. कविता और उस का परिवार विधायक का नाम भी मुकदमे में शामिल कराना चाहते थे.

एक साल तक कविता और उस का परिवार विधायक के खिलाफ गैंगरेप का मुकदमा लिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के गृह विभाग से ले कर उन्नाव के एसपी तक भटकता रहा. इस के बाद भी विधायक के खिलाफ एफआईआर नहीं हुई.

विधायक के खिलाफ मुकदमा न लिखे जाने के कारण कविता और उस के परिवार के लोगों ने सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत कोर्ट से मुकदमा लिखाए जाने की अपील की.

इस के बाद 3 अप्रैल, 2018 को विधायक के छोटे भाई ने कविता के पिता के साथ मारपीट की और मुकदमा वापस लिए जाने को कहा. कविता और उस के परिवारजनों ने पुलिस में मुकदमा लिखाया. इस के साथ विधायक के लोगों की तरफ से भी मुकदमा लिखाया गया.

पुलिस ने क्रौस एफआईआर लिखी पर एकतरफा काररवाई करते हुए केवल कविता के पिता को ही जेल भेज दिया. विधायक पक्ष के लोगों से पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की.

कविता का आरोप है कि जेल में विधायक के लोगों ने उस के पिता की खूब पिटाई की. 8 अप्रैल, 2018 को कविता अपने परिवार के लोगों के साथ राजधानी लखनऊ आई और सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास कालीदास मार्ग पहुंच गई. वहां उस ने आत्मदाह करने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया और गौतमपल्ली थाने ले गई.

डीजीपी ने इस पूरे मामले की जांच उन्नाव की एसपी पुष्पांजलि को करने के निर्देश दिए. इस बीच जेल में ही कविता के पिता की मौत हो गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर चोट के 14 निशान मिले.

उन्नाव के सीएमओ डा. एस.पी. चौधरी की अगुवाई में 3 डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया. मृतक के पैर, हाथ, कमर, पीठ और पिंडली में चोट मिली. पेट में डंडे या किसी चीज से ताबड़तोड़ प्रहार होने पर आंत में घाव हो गया था. इस से वह सेप्टिसेमिया का शिकार हो गए, जो उन की मौत का कारण बना.

एक ओर बलात्कार का दर्द, दूसरी ओर पिता की मौत का गम

किसी लड़की के लिए इस से दर्दनाक क्या हो सकता है कि जिस समय वह न्याय की मांग ले कर मुख्यमंत्री से मिले, उसी समय उस का पिता मौत के मुंह में चला जाए. कविता के पिता की मौत के बाद सरकार भी हरकत में आ गई. एसपी पुष्पांजलि ने एकतरफा काररवाई करते हुए कविता के पिता को जेल भेजने के दोषी माखी थाने के थानाप्रभारी अशोक सिंह भदौरिया सहित 6 पुलिस वालों को तुरंत सस्पेंड कर दिया. इतना ही नहीं, मामले की जांच एसआईटी और क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई.

सत्ता में रहने वाले विधायक की हनक अलग होती है. उस के खिलाफ पुलिस में मुकदमा कायम करना आसान नहीं होता. कुलदीप सिंह सेंगर के मामले को देखें तो पूरी बात साफ हो जाती है. अपना विरोध करने वालों के साथ सत्ता की हनक में विधायक कुलदीप सेंगर ने जो कुछ किया, अब वह योगी सरकार के गले की फांस बन गया.

उन्नाव से ले कर राजधानी लखनऊ तक केवल पुलिस ही नहीं, जेल और अस्पताल तक में जिस तरह से विधायक के विरोधी के साथ बर्ताव हुआ, वह किसी कबीले की घटना से कम नहीं है.

आप ने ऐसे दृश्य फिल्मों में देखे होंगे जिन में अपने विरोधी की पिटाई पानी डाल कर की जाती थी. फिर मरणासन्न अवस्था में पीडि़त के ही खिलाफ मुकदमा कायम करा कर पुलिस की मिलीभगत से जेल भेज दिया जाता था. घायल को ले कर पुलिस सरकारी अस्पताल जाती, जहां उस का इलाज करने के बजाए जेल भेज दिया जाता. घायल को जेल में सही इलाज नहीं मिलता, जिस से वह तड़पतड़प कर मर जाता है.

यहां हकीकत में भी ऐसा ही हुआ. पुलिस से ले कर जेल और अस्पताल तक के लोग विधायक कुलदीप सेंगर की धौंस के आगे नतमस्तक बने रहे.

जेल में जाने के दूसरे ही दिन घायल की मौत हो गई. मौत के बाद जागी सरकार के दबाव में पुलिस विभाग ने अपने कर्मचारियों को भले ही सस्पेंड कर दिया, पर जिला जेल और अस्पताल के लोगों को कोई सजा नहीं दी गई.

अपना दामन बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी बना दी है. विधायक के भाई अतुल सिंह सेंगर को मारपीट के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है.

मामला मीडिया द्वारा उछालने के बाद 12 अप्रैल, 2018 को विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और सहयोग देने वाली महिला राखी के खिलाफ भादंवि की धारा 363, 366, 376, 505 और पोक्सो एक्ट में मुकदमा लिखा गया. कविता के पिता की मौत के बाद पूरा मामला हाईवोल्टेज ड्रामा में बदल गया. हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया.

पूरे घटनाक्रम को देखें तो इस में विधायक की धौंस पता चलती है. रेप कांड की शिकार कविता ने जिस राखी नाम की महिला के साथ विधायक के घर जाने की बात कही थी, उस ने नया खुलासा करते हुए बताया कि यह कविता विधायक से पहले उस के बेटे पर भी रेप का आरोप लगा कर जेल भिजवा चुकी है. कविता के साथ रेप की सच्चाई जो भी हो, पर उस के पिता की पिटाई और मौत के मामले में विधायक और उन के करीबी लोगों के खिलाफ तमाम सबूत मिल रहे हैं.

कविता के पिता की जेल में मौत के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमा गई. विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी से ले कर कांग्रेस तक ने सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए. खुद विधायक कुलदीप सेंगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने आए. मुख्यमंत्री ने विधायक से मुलाकात नहीं कर के विधायक को यह संदेश दिया कि वह पुलिस जांच में सहयोग करें.

सरकार की सख्ती के बाद कविता के पिता से मारपीट के आरोपी विधायक के भाई अतुल सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. कविता ने इस के बाद भी अपनी लड़ाई जारी रखी है. कविता का कहना है कि पूरे मामले में विधायक भी दोषी है, उन की भी गिरफ्तारी होनी चाहिए.

सरकारी अधिकारी पूरे मामले में विधायक की भूमिका की भी जांच कर रहे हैं. सरकार ने एसआईटी गठित कर दी है. एसआईटी की जांच टीम के अधिकारी राजीव कृष्ण ने माखी गांव जा कर पूरा मामला समझा और अपनी जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दी. इस के आधार पर पुलिस के साथ ही जिला अस्पताल के डाक्टर के खिलाफ भी कड़ी काररवाई करने के संकेत दिए.

उत्तर प्रदेश सरकार ने सीबीआई को पूरे मामले की जांच सौंप दी है, जिस से उन्नाव कांड को ले कर हो रही राजनीति के प्रभाव को दबाया जा सके और सरकार की छवि भी बची रहे.

विधायक कुलदीप सेंगर ने खुद एसएसपी लखनऊ के सामने पेश हो कर अपनी सफाई दी. दूसरी तरफ विधायक की पत्नी संगीता सेंगर उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओ.पी. सिंह से मिलीं और उन्हें बताया कि पूरा मामला राजनीतिक षडयंत्र से प्रेरित है. ऐसे में कविता और उन के पति का नारको टेस्ट कराया जाए.

संगीता ने यह भी दावा किया कि उन के पति और कविता की कभी मुलाकात ही नहीं हुई. भारी दबाव के कारण आखिर सीबीआई को आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को गिरफ्तार करना पड़ा. सीबीआई ने 13 अप्रैल, 2018 रात 10 बजे विधायक को गिरफ्तार कर लिया. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट इस पूरे मामले की जांच की निगरानी करेगा.

चीफ जस्टिस डी.बी. भोसले की बेंच ने सीबीआई से 2 मई को जांच की स्टेटस रिपोर्ट मांगी है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि सीबीआई कानून के तहत सख्ती से जांच करे.

घटना के बाद से लड़की को ले कर तमाम तरह के औडियो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे, जिन से पता चलता है कि घटना के पीछे दुश्मनी की वजह को रख कर एक राजनीतिक रंग भी दिया जा रहा है. सत्ता में शामिल खुद भाजपा 2 खेमों में बंट गई है. इन वजहों से जांच का सही पक्ष सामने आना मुश्किल लग रहा है. ऐसे में अब कोर्ट के फैसले से ही सच का पता चल सकेगा. ?

बलात्कार कानून के मद्देनजर पीड़ित और उस के पक्ष की हर पहचान छिपाने के लिए नाम नहीं लिखा गया है और कविता व राखी परिवर्तित नाम हैं.

बढ़ती गई विषबेल : क्यों हुआ माधुरी का क़त्ल

26 जून, 2018 की बात है. दिन के करीब 11 बज रहे थे. जयसिंहपुर पुलिस थाने के असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ किसी मामले को ले कर बातचीत कर रहे थे, तभी 11 वर्षीय बच्चे के साथ सूर्यकांत शिंदे वहां पहुंचा. उसे देख कर निकम और शिंदे गायकवाड़ स्तब्ध रह गए. उस की घायलावस्था और कपड़ों पर लगा खून किसी बड़ी वारदात की तरफ इशारा कर रहा था.

दोनों पुलिस अधिकारी सूर्यकांत शिंदे को अच्छी तरह से जानते पहचानते थे. इस से पहले कि वे सूर्यकांत शिंदे से कुछ पूछते उस ने पुलिस अधिकारियों को जो बताया, उसे सुन कर वे चौंक गए.

मामला काफी गंभीर और सनसनीखेज था. असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ ने सूर्यकांत शिंदे को तुरंत अपनी हिरासत में ले कर उसे उपचार के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. फिर मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोलरूम को भी दे दी. इस के बाद वह बिना कोई देर किए पुलिस टीम ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

मामला एक प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था की महिला कार्यकर्ता की हत्या का था. इस से पहले कि घटनास्थल पर पुलिस टीम पहुंच पाती, हत्या की खबर जंगल की आग की तरह पूरे गांव और इलाके में फैल चुकी थी, जिस से घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र हो गई थी.

असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम ने पहले मौके पर जा कर घटनास्थल का मुआयना किया. अभी वह लोगों से पूछताछ कर ही रहे थे कि खबर पा कर कोल्हापुर के एसएसपी कृष्णांत पिंगले भी वहां पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी आई थी.

पुलिस अधिकारियों ने जब घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वहां दिल दहला देने वाला मंजर मिला. किचन में एक महिला का शव पड़ा हुआ था. शव के चारों तरफ खून ही खून फैला था. घटनास्थल का दृश्य दिल दहला देने वाला था. मृतका के शरीर और सिर पर कई घाव थे, जो काफी गहरे और चौड़े थे. खून से सनी कुल्हाड़ी भी वहीं पड़ी थी. लग रहा था कि मृतका पर उसी कुल्हाड़ी से हमला किया गया था.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म होने के बाद एसएसपी कृष्णांत पिंगले ने मामले की जांच असिस्टेंट इंसपेक्टर शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ को करने का निर्देश दिया. पुलिस ने खून सनी कुल्हाड़ी अपने कब्जे में ले ली और लाश पोस्टमार्टम के लिए स्थानीय अस्पताल भेज दी. पता चला मृतका का नाम माधुरी था. इस बीच सूचना पा कर उस के घर वाले भी आ गए थे.

यह घटना महाराष्ट्र के जिला कोल्हापुर के उदगांव में घटी थी. चूंकि आरोपी सूर्यकांत शिंदे ने घटना के बारे में पुलिस को पहले ही बता दिया था, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. सूर्यकांत शिंदे ने अपने ऊपर हुए हमले और पत्नी की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

सूर्यकांत और माधुरी का मिलन

42 वर्षीय सूर्यकांत शिंदे के पिता महादेव शिंदे गांव के एक साधारण किसान थे. वह सीधेसादे और नेकदिल इंसान थे. गांव वालों की मदद के लिए वह अकसर तैयार रहते थे, इसी वजह से गांव वालों के बीच उन के प्रति आदर और सम्मान था.

परिवार में उन की पत्नी आनंदी बाई के अलावा एकलौता बेटा सूर्यकांत था. वह हाईस्कूल तक ही पढ़ सका था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने की वजह से उसे ठीक सी नौकरी नहीं मिली तो वह सांगली के एक बिल्डर के यहां सुपरवाइजर का काम करने लगा.

माधुरी पाटिल और सूर्यकांत शिंदे की मुलाकात करीब 18 साल पहले सांगली की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर हुई थी. माधुरी अपने परिवार के साथ सांगली के बैरणबाजार में रहती थी. परिवार के मुखिया लक्ष्मण पाटिल का निधन हो चुका था. मां मंगला पाटिल पर 2 बेटियों की जिम्मेदारी थी. बड़ी बेटी सविता की शादी हो चुकी थी. माधुरी की जिम्मेदारी बाकी थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. पूरा परिवार खाने के टिफिन तैयार कर अपना गुजारा किया करता था. सूर्यकांत शिंदे जब कंस्ट्रक्शन साइट पर गया तो उस के खाने का बंदोबस्त माधुरी के टिफिन बौक्स से हो गया था.

माधुरी देखने में सुंदर और चंचल स्वभाव की आधुनिक विचारों वाली युवती थी. शिंदे की तरह वह भी ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी लेकिन जितनी भी पढ़ी थी, उस के लिए काफी था. वह इतनी होशियार थी कि किसी से भी बेझिझक बात करती थी. वह जिस से भी एक बार बातें कर लेती, वह उस की तरफ खिंचा चला आता था.

यही हाल सूर्यकांत शिंदे का भी हुआ. वह माधुरी की पहली झलक में ही उस का दीवाना हो गया था. वह जब भी माधुरी के घर पर खाना खाने जाता था, उस की नजर खाने पर कम माधुरी पर ज्यादा रहती थी. टिफिन की तारीफ तो वह करता ही था, साथसाथ उसे अच्छी टिप भी दिया करता था.
शुरू में तो 20 वर्षीय माधुरी को सूर्यकांत शिंदे के इरादों का आभास नहीं हुआ, लेकिन वह जल्द ही उस की आंखों की भाषा समझ गई. धीरेधीरे माधुरी भी उस की ओर आकर्षित होने लगी. उसे अपने सपने और अरमान सूर्यकांत शिंदे में ही पूरे होते दिख रहे थे.

माधुरी जल्दी ही मन ही मन सूर्यकांत शिंदे को जीवनसाथी के रूप में देखने लगी. विचार मिले तो दोनों ने शादी का फैसला कर लिया. यह बात जब दोनों के परिवार वालों को पता चली तो उन्होंने दोनों की शादी पर कोई ऐतराज नहीं किया. जल्दी ही साधारण तरीके से दोनों की शादी हो गई.

शादी के बाद सूर्यकांत शिंदे माधुरी के साथ अपने गांव में रहने लगा. इसी बीच सूर्यकांत के पिता की मृत्यु हो गई तो घर की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई. वह बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाने लगा. प्राइवेट नौकरी होने की वजह से सूर्यकांत सप्ताह में एक दिन ही आ पाता था. एक रात रुक कर वह अगले दिन वापस सांगली चला जाता था. घर में सिर्फ सूर्यकांत की बूढ़ी मां और भाई ही रह जाते थे.

बिखरने लगे माधुरी के अरमान

ऐसी स्थिति में माधुरी को अपने सारे सपने और अरमान बिखरते नजर आ रहे थे. ऊपर से पुराने खयालों की सूर्यकांत की बूढ़ी मां को माधुरी का आधुनिक विचारों वाला आचरण पसंद नहीं था. जिसे ले कर घर में कलह और सासबहू में अकसर लड़ाईझगड़े होने लगे.

पहले तो सूर्यकांत शिंदे ने माधुरी को समझाया. लेकिन जब उस ने साफ कह दिया कि वह सास के साथ हरगिज नहीं रहेगी तो सूर्यकांत माधुरी को ले कर शिरोल तालुका के चिपरी गांव में किराए के मकान में रहने लगा.

समय अपनी गति से चल रहा था. माधुरी एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. पतिपत्नी ने दोनों बच्चों को अच्छी परवरिश दी. बेटी 12वीं में पढ़ रही थी तो बेटा कक्षा 2 में था.

बच्चे बड़े हुए तो घर के खर्चे भी बढ़ गए, जबकि आमदनी सीमित थी. इस सब के चलते माधुरी को अपने खुद के खर्चों में कटौती करने की नौबत आ गई. उसे अपने सपने धूमिल होते नजर आने लगे. फलस्वरूप इसे ले कर उस की पति से नोंकझोंक शुरू हो गई, जो रोजाना के झगड़े में बदलती चली गई.

नतीजा यह हुआ कि दोनों के रिश्तों में दरार आ गई, जिस की वजह से सूर्यकांत शिंदे को मजबूरन कंस्ट्रक्शन साइट की नौकरी छोड़नी पड़ी. माधुरी को किनारे कर के वह गांव में अपनी बूढ़ी मां के साथ रहने लगा. माधुरी ने सास के साथ रहने से मना कर दिया था, इसलिए वह बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी.

घर तो चलाना ही था, लिहाजा सूर्यकांत ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली. अब वह पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता था, लिहाजा उस ने अदालत में पत्नी से तलाक लेने की अर्जी दाखिल कर दी, जिस का माधुरी ने विरोध किया.

उस के विरोध पर कोर्ट ने तलाक के मामले को कुछ दिनों के लिए पेंडिंग में रख कर सूर्यकांत शिंदे को आदेश दिया कि वह माधुरी को गुजारा और रहने के लिए आधा घर दे. अदालत के आदेश के बाद माधुरी दोनों बच्चों के साथ आ कर रहने लगी.

दोनों के बीच गहराती गईं दरारें

माधुरी और सूर्यकांत शिंदे के बीच आई दरारें तब और गहरी हो गईं, जब वह संतोष माने और प्रमोद पाटिल के संपर्क में आई और उन की सामाजिक संस्था भूमाता ब्रिगेड व शिवाजी छत्रपति से जुड़ गई. प्रमोद पाटिल इस संस्था का संस्थापक और संतोष माने सक्रिय कार्यकर्ता था. एक तरह से संतोष माने प्रमोद पाटिल का दायां हाथ था. इस संस्था की पूरे कोल्हापुर जिले में कई शाखाएं थीं, जिस में हजारों कार्यकर्ता थे.

यह संस्था गरीब, लाचार महिलाओं की सहायता करती थी. साथ ही तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन और प्रोत्साहन वाले काम भी करती थी. संतोष माने ने माधुरी को करीब लाने के लिए उस के दिल में समाजसेवा का बीज बो दिया था.

दरअसल, माधुरी सुंदर और स्मार्ट थी. संतोष माने ने जब उसे देखा तो वह उस का दीवाना हो गया था. 2 बच्चे होने के बाद भी उस के शरीर का कसाव वैसे का वैसा ही था. संतोष माने उस के गांव के पड़ोस में ही रहता था. वैसे उस का विवाह हो चुका था और उस के 2 बच्चे भी थे. फिर भी जब से उस ने माधुरी को देखा था, वह उसी के बारे में सोचता रहता था. बहाने से उस ने माधुरी के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया.

गांव का पड़ोसी और एक प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था का सदस्य होने के कारण माधुरी उस की इज्जत करती थी. माधुरी और संतोष माने के बीच की दूरियां कम हुईं तो वह माधुरी की रगों में सामाजिक कार्यक्रमों के रंग भरने लगा. पहले तो माधुरी ने इस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन संतोष के काफी जोर देने पर वह संस्था के सामाजिक कार्यों में शरीक होने के लिए तैयार हो गई.

संतोष माने ने माधुरी को संस्था के संस्थापक प्रमोद पाटिल से मिलवाया. प्रमोद पाटिल ने माधुरी की दिलचस्पी देख कर उसे संस्था का जिला उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया. संस्था के सामाजिक कार्यों का दायरा बड़ा होने के नाते अब उसे संस्था के हर छोटेबड़े कार्यक्रमों और मीटिंगों में जाना पड़ता था.
व्यस्तता की वजह से माधुरी का समय अपने बच्चों के साथ कम और बाहर अधिक बीतने लगा. यह बात सूर्यकांत शिंदे को अच्छी नहीं लगी. उस ने कई बार माधुरी को बच्चों के प्रति सचेत कर के समझाया. लेकिन उस ने पति की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वह संतोष माने के साथ अधिक रहने लगी, जिस का नतीजा यह हुआ कि माधुरी अपनी सीमा लांघ गई.

जब यह बात धीरेधीरे गांव और गलियों में होते हुए सूर्यकांत के कानों तक पहुंची तो उस का खून खौल उठा. उस ने भले ही माधुरी को तलाक का नोटिस दिया था, लेकिन अभी तक तलाक हुआ नहीं था. वह अभी भी कानूनी और सामाजिक तौर पर उस की पत्नी थी.

पत्नी की वजह से उस की और उस के परिवार की समाज में बुराई हो, वह सहन नहीं कर सकता था. जिस की वजह से माधुरी और सूर्यकांत शिंदे के बीच अकसर लड़ाईझगड़ा, मारपीट होने लगी.

बनने लगी अपराध की भूमिका

मामला पुलिस थाने तक जाता था लेकिन पुलिस इसे एक पारिवारिक झगड़ा समझ कर कोई काररवाई नहीं करती थी. माधुरी को परेशान देख कर संतोष माने से रहा नहीं गया तो उस ने प्रमोद पाटिल से मशविरा कर के सूर्यकांत शिंदे को आड़े हाथों लिया.

उस ने शिंदे को चेतावनी दी कि अगर वह माधुरी और उस के बीच दीवार बनने की कोशिश करेगा तो प्रमोद पाटिल और वह उसे हमेशाहमेशा के लिए माधुरी के रास्ते से हटा देंगे. लेकिन हुआ इस का उलटा.
26 जून, 2018 को सूर्यकांत शिंदे जब माधुरी के घर के अंदर गया तो उस का धैर्य जवाब दे गया. उस ने किचन के दरवाजे के सुराख से अंदर देखा तो माधुरी और संतोष माने आपत्तिजनक स्थिति में थे.
यह देख कर उस के होश उड़ गए. वह अपने आप को रोक नहीं सका और उन्हें भद्दीभद्दी गालियां देते हुए दरवाजा जोरजोर से पीटने लगा. आवाज सुन कर सूर्यकांत शिंदे की बूढ़ी मां और अन्य लोग भी वहां आ गए.

इस के पहले कि लोग कुछ समझ पाते, किचन का दरवाजा खुला और हाथ में कुल्हाड़ी लिए संतोष माने किचन से बाहर निकला. आते ही उस ने सूर्यकांत शिंदे पर हमला बोल दिया. सूर्यकांत ने कुल्हाड़ी का पहला वार अपने हाथों पर झेल लिया.

दूसरा वार करने से पहले ही सूर्यकांत संभल गया और उस ने संतोष माने को जोर से धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया. जिस से उस के हाथों से कुल्हाड़ी छूट गई और वह सूर्यकांत शिंदे ने उठा ली.
अपने ऊपर हुए हमले के कारण सूर्यकांत शिंदे भी अपना आपा खो बैठा था. उस ने संतोष माने पर कुल्हाड़ी का वार कर दिया. इस से पहले कि कुल्हाड़ी माने को लगती माधुरी बीच में आ गई और कुल्हाड़ी का सीधा वार माधुरी के सिर पर हुआ. तभी संतोष माने यह कहते हुए वहां से भाग निकला कि प्रमोद पाटिल उसे छोड़ेगा नहीं.

संतोष माने तो वहां से निकल गया लेकिन माधुरी पति के गुस्से का शिकार बन गई. शिंदे ने उस पर कई वार किए. कुछ ही देर में माधुरी की मौत हो गई. इस के बाद सूर्यकांत शिंदे अपने बेटे शिवराज को साथ ले कर जयसिंहपुर थाने पहुंच गया और उस ने पुलिस को पूरी बात बता दी. पुलिस ने उस का इलाज कराकर उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

सूर्यकांत शिंदे से पूछताछ करने के बाद जांच अधिकारी शाहाजी निकम और समीर गायकवाड़ ने भूमाता ब्रिगेड व छत्रपति शिवाजी सामाजिक संस्था के संस्थापक प्रमोद पाटिल और संतोष को सूर्यकांत शिंदे के ऊपर जानलेवा हमला करने और धमकी देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

प्रमोद पाटिल और संतोष माने की गिरफ्तारी पर भूमाता ब्रिगेड और शिवाजी छत्रपति सामाजिक संस्था के कार्यकर्ताओं के बीच में हड़कंप मच गया. शिरोल तालुका की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने कार्यकर्ताओं के साथ प्रमोद पाटिल और संतोष माने की गिरफ्तारी का विरोध किया, लेकिन कानून सब के लिए बराबर होता है, चाहे कोई समाज सेवक हो या खास आदमी.