थाई मसाज की आड़ में : जिस्मफरोशी का काला धंधा – भाग 2

दिनेश ने उस युवती के साथ चलते हुए एकदो कमरों में झांक कर देखा तो वहां की भव्यता देख कर दंग रह गए. युवती उन्हें एक कमरे में ले गई, जहां बैठी एक लड़की मोबाइल पर गेम खेल रही थी. लड़की की ओर इशारा कर के युवती ने कहा, ‘‘यह बेबी मिजोरम की है.’’

दिनेश की ओर दिलकश अदा से देखते हुए मिजोरम वाली लड़की ने कहा, ‘‘हाय हैंडसम.’’

दिनेश ने उस लड़की की ओर उपेक्षा से देखते हुए साथ आई युवती से कहा, ‘‘आप तो फौरनर ब्यूटी की बात कह रही थीं?’’

युवती ने अर्थपूर्ण मुसकराहट के साथ पूछा, ‘‘यह आइटम आप को पसंद नहीं आया?’’

दिनेश ने कुछ नहीं कहा तो युवती उन्हें दूसरे कमरे में ले गई, जहां 3 लड़कियां बैठी आपस में बातें कर रही थीं. युवती ने उन की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘जनाब, ये थाइलैंड की गर्ल्स हैं. आप इन में से पसंद कर लीजिए. आप कौन सी बेबी से मसाज कराना चाहेंगे? यह भी बता दीजिए कि आप फुल बौडी मसाज कराएंगे या केवल सिर की और कितनी देर की?’’

दिनेश ने उन में से एक लड़की को पसंद कर के अपने पास बुलाया. थाईलैंड की उस लड़की ने इशारों में सैक्स करने की बात कही तो नीचे से आई लड़की ने सैक्स के लिए 10 हजार रुपए मांगे. दिनेश ने रकम ज्यादा बताई तो सौदा 5 हजार रुपए में तय हो गया.

सौदा तय होने के बाद साथ आई युवती ने दिनेश से थाइलैंड की लड़की को एक कमरे में ले जाने को कहा. दिनेश चलने को हुए तभी जैसे उन्हें कुछ याद आया हो. उन्होंने कहा, ‘‘ओह सौरी, मैं नीचे सोफे पर अपना मोबाइल भूल आया हूं. पहले उसे ले आता हूं.’’

वह युवती कुछ कहती, उस के पहले ही दिनेश तेजी से सीढि़यां उतर कर ग्राउंड फ्लोर पर आ गए. सिगरेट पीने के बहाने वह बाहर आए और गोपालस्वरूप मेवाड़ा को मोबाइल फोन से अलर्ट कर दिया. एडीशनल एसपी साहब को उन्हीं के फोन का इंतजार था.

उन्होंने पहले से गठित टीम में शामिल सीओ सिटी राजेंद्र त्यागी, कोतवाली प्रभारी बिरदीचंद गुर्जर, थाना सदर के थानाप्रभारी यशदीप भल्ला, थाना सुभाषनगर के थानाप्रभारी प्रमोद शर्मा, थाना हमीरगढ़ के थानाप्रभारी गजराज चौधरी और एसआई पुष्पा कासोटिया आदि को स्पा पैलेस पर छापा मारने के लिए भेज दिया.

कुछ ही देर में पुलिस की कई गाडि़यों से आए पुलिस वालों ने स्पा पैलेस को घेर लिया. मसाज पार्लर की तलाशी में थाइलैंड की 3 और मिजोरम की एक लड़की को गिरफ्तार कर लिया गया. इन के साथ स्पा पैलेस के मैनेजर नवीन शर्मा और उस की एक सहयोगी महिला को भी गिरफ्तार किया गया.

मैनेजर नवीन शर्मा मूलत: उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले का रहने वाला था. वह भीलवाड़ा में शास्त्रीनगर में रहता था. पुलिस सभी को थाने ले आई. पुलिस को हैरानी हो रही थी कि 10 दिन पहले ही कोटा में थाइलैंड की लड़कियां मसाज पार्लर की आड़ में अनैतिक कार्य करते हुए पकड़ी गई थीं, इस के बावजूद भीलवाड़ा में मसाज पार्लर चलाने वाले थाइलैंड की लड़कियों से अनैतिक धंधा करा रहे थे.

जांच में पता चला कि स्पा पैलेस नाम से मसाज का लाइसैंस मध्य प्रदेश के रतलाम शहर के रहने वाले व्यवसाई सुनील गोवानी के नाम था. सुनील के मध्य प्रदेश के शहर रतलाम, उज्जैन, इंदौर, नागदा, नीमच सहित राजस्थान के कई शहरों में मसाज पार्लर चल रहे थे. उसी ने थाइलैंड की इन लड़कियों को भीलवाड़ा पहुंचाया था. उस ने मिजोरम की लड़की के माध्यम से थाइलैंड की लड़कियों से संपर्क किया था. उस के बाद उन का वीजा तैयार करवाया था.

थाइलैंड से 2 लड़कियां इसी 8 जून को मुंबई उतरी थीं, जबकि एक लड़की 23 जून को हैदराबाद उतरी थी. इन सब को मुंबई और हैदराबाद से भीलवाड़ा लाया गया था. थाइलैंड की ये लड़कियां 3 महीने के टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थीं. पुलिस को इन के पासपोर्ट मिले हैं. थाइलैंड की लड़कियों से पूछताछ में पुलिस को भाषा की परेशानी आई, क्योंकि ये हिंदी नहीं समझती थीं, लेकिन अंगरेजी फर्राटे से बोल रही थीं.

पूछताछ में पता चला कि थाइलैंड की ये तीनों लड़कियां पहली बार भारत आई थीं. वे मोटी कमाई के लालच में देहव्यापार में धकेल दी गई थीं. जबकि वहीं मिजोरम वाली लड़की इस के पहले इंदौर स्थित सुनील के स्पा में काम कर चुकी थी. भीलवाड़ा के इस पार्लर पर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता से भी लड़कियां आ चुकी हैं.

सुनील गोवानी के इस काम में भीलवाड़ा के शास्त्रीनगर का रहने वाला मनोज लालवानी भी जुड़ा था. उस की शास्त्रीनगर में इलैक्ट्रिक के सामानों की दुकान है. वह रोजाना शाम को स्पा पैलेस आ कर मैनेजर नवीन शर्मा से उस दिन की कमाई ले जाता था, जिसे वह और गोवानी आपस में बांट लेते थे.

स्पा पैलेस पर काम करने वाली लड़कियां भीलवाड़ा के शास्त्रीनगर में किराए के मकान में रहती थीं. मकान का किराया ही नहीं, उन के खानेपीने के खर्च के साथ स्पा पैलेस तक आनेजाने के लिए जो वैन लगी थी, उस का खर्चा मनोज ही देता था.

इस स्पा पैलेस का उद्घाटन करीब सवा साल पहले फिल्म अभिनेत्री मोनिका बेदी ने किया था. पार्लर में औनलाइन बुकिंग भी होती थी. इस के लिए वेबसाइट भी बनी थी. पार्लर में थाइलैंड एवं मिजोरम से बुलाई गई लड़कियों को 25-25 हजार रुपए वेतन के साथ इंसेंटिव भी दिया जाता था.

पार्लर में रोजाना 10 से 30 ग्राहक आते थे. पार्लर में मसाज का जो ब्रोशर ग्राहक को दिखाया जाता था, उस में 30 मिनट, 60 मिनट, 90 मिनट एवं 120 मिनट के मसाज के अलगअलग रेट निर्धारित थे.

पार्लर में काम करने वाली लड़कियों को सवा से डेढ़ महीने में बदल दिया जाता था. उन के स्थान पर दूसरे पार्लर से लड़कियां बुला ली जाती थीं, ताकि ग्राहकों को नईनई लड़कियां मिलती रहें, जिस से पार्लर से ग्राहक जुड़े रहें. स्पा पैलेस में सदस्य बना कर भी ग्राहकों को जोड़ा जाता था.

इस के लिए 11 हजार रुपए सदस्यता ली जाती थी. ये सदस्यता 3 महीने के लिए होती थी. इस अवधि में मसाज की संख्या तय कर दी जाती थी. इस बीच उस से कोई पैसा नहीं लिया जाता था. पुलिस को पार्लर की तलाशी में एक फाइल मिली है, जिस में सदस्यों के फोटो के साथ पूरा ब्यौरा दिया था.

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 2

सालों पहले मंजू खुद भी देहधंधा करती थी, वह थी भी काफी आकर्षक. लेकिन उस के चहेतों में निर्भया के दीवानों जैसी दीवानगी नहीं थी. विचारों के भंवर में फंसी मंजू अपने 30-35 साल पुराने अतीत में खो गई थी.

तहसील टिब्बी के एक गांव में जन्मी मंजू के युवा होते ही घर वालों ने सूरतगढ़ निवासी इंद्रचंद अग्रवाल से उस की शादी कर दी थी. स्वच्छंद और आजाद खयालों वाली मंजू को ससुराल की परदा प्रथा और रोकटोक कतई पसंद नहीं आई. 7 सालों में मंजू ने 3 बेटों को जन्म दिया.

बच्चे पैदा होने के बाद मंजू की सुंदरता कम होने के बजाए और बढ़ गई थी. आखिर एक दिन ससुराल की बंदिशों से ऊब कर मंजू ने अपने दांपत्य को अलविदा कह दिया. तीनों बेटे कभी मां के पास तो कभी दादादादी के पास रह कर दिन काट रहे थे. मंजू की ज्यादातर रातें अपने आशिकों के साथ गुजर रही थीं.

मंजू का एक आशिक था बबलू. उस की दबंगई से प्रभावित हो कर मंजू उस के साथ लिवइन रिलेशन में हनुमानगढ़ के हाऊसिंग बोर्ड में रहने लगी थी. बबलू मारपीट, कब्जे करना, देहव्यापार कराना, लूटपाट और हत्या के प्रयास जैसे अपराध कर के डौन बन गया था.

मंजू भी हाऊसिंग बोर्ड इलाके में मजबूर युवतियों  से धंधा करवाने लगी तो पड़ोसियों ने उस का पुरजोर विरोध किया. इस के बाद मंजू सुरेशिया में शिफ्ट हो गई.

कहा जाता है कि सन 2006 में नारी सुख का एक तलबगार मंजू के घर पहुंचा. मंजू और उस के गुंडों ने उस दिन उस ग्राहक के लगभग 30 हजार रुपए छीन लिए थे. उस आदमी ने अपने खास दोस्त को आपबीती बताई तो वह एक नामी बदमाश को ले कर मंजू के घर  पहुंच गया.

बदमाश ने 2 दिनों में पूरी रकम लौटाने को कहा और न लौटाने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी. अगले दिन मंजू अपनी बहू को ले कर हनुमानगढ़ के तत्कालीन एसपी के पास पहुंची और सोनू की ओर से उस आदमी और उस के साथी बदमाश के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराने का आदेश करा दिया.

लेकिन दोनों लड़के इलाके के विशिष्ट लोगों को साथ जा कर सारी सच्चाई एसपी को बताई तो मंजू का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ.

मंजू के 2 बेटे युवा होने से पहले ही चल बसे थे. बड़े बेटे सुरेश की शादी सोनू से हुई थी. मंजू ने अपनी बहू सोनू को भी धंधे में उतार दिया था. सन 2001 में बबलू डौन पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. उस के बाद मंजू ने उस की जगह ले ली. जल्दी ही वह लेडीडौन के रूप में कुख्यात हो गई.

कारण कोई भी रहा हो, मंजू ने पुलिस वालों, छुटभैये राजनेताओं से संबंध बना लिए थे. उस बीच मंजू के खिलाफ पीटा एक्ट, ब्लैकमेलिंग, देहव्यापार, कब्जा करने आदि के मुकदमे दर्ज हुए. पर उसे सजा एक में भी नहीं हुई.

उन दिनों मंजू के सैक्स रैकेट की तूती बोलती थी. उस के यहां राजस्थान की ही नहीं, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार आदि से दलालों के माध्यम से देहव्यापार के लिए लड़कियां मंगाई जाती थीं.

‘‘मैडम, कमरे में कोई ग्राहक आप का इंतजार कर रहा है.’’ गुड्डी के कहने पर मंजू की तंद्रा टूटी. मंजू कमरे में बैठे ग्राहक के पास पहुंची. चायपानी के बाद ग्राहक ने कहा, ‘‘मैडम, आप के यहां दिल्ली से कोई माल आया है, उस के बड़े चर्चे सुने हैं. मैं उस के साथ कुछ समय बिताना चाहता हूं.’’

‘‘हां, हां क्यों नहीं, उस का रेट 10 हजार रुपए हैं.’’ मंजू ने कहा.

‘‘मैं उस के साथ पूरी रात बिताऊं तो…?’’ ग्राहक ने कहा.

‘‘जरूर बिताइए, पर रात के डबल पैसे 20 हजार रुपए लगेंगे.’’ मंजू ने कहा.

ग्राहक ने 15 हजार रुपए मंजू की हथेली पर रख दिए और निर्भया के साथ विशिष्ट कमरे में घुस गया. निर्भया के लिए वह रात बहुत ही पीड़ादायक साबित हुई. उस ग्राहक ने एक ही रात में निर्भया को जैसे रौंद डाला. हवस में पागल उस आदमी ने निर्भया को जगहजगह काट खाया था. उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की हैवानियत से निर्भया के संवेदनशील अंगों में रक्तस्राव शुरू हो गया था.

वह गिड़गिड़ाती रही, पर शराब के नशे में मस्त ग्राहक को उस पर दया नहीं आई. निर्भया अस्तव्यस्त हालत में बैड पर पसरी पड़ी रही. उस की पीड़ा से मंजू को कोई सरोकार नहीं था. अगली रात को उस का सौदा एक ग्राहक से पुन: कर दिया गया. वह ग्राहक भी शराब पी कर निर्भया के कमरे में पहुंचा तो उस से कपड़े उतारने को कहा.

निर्भया ने कपड़े उतारे तो उस की हालत देख कर वह पीछे हट गया. बाहर आ कर उस ने मंजू से कहा, ‘‘तू ने मेरे साथ धोखा किया है. मेरे पैसे लौटा दे अन्यथा काट कर फेंक दूंगा.’’

हकीकत जान कर मंजू के बेटे मुकेश ने कहा, ‘‘मम्मी, इन के पैसे लौटा दो.’’

‘‘अरे भई इतना गुस्सा क्यों कर रहे हो? अगर वह पसंद नहीं है तो सोनू के साथ टाइम पास कर लो.’’ मंजू ने बहू की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘और अगर पैसा ही चाहिए तो सुबह आ कर ले लेना.’’

शराबी ग्राहक बड़बड़ाता हुआ चला गया. यह 27 मार्च, 2017 की बात है.

अगले दिन रात वाला ग्राहक किसी भी समय पैसे लेने आ सकता था. मंजू नहीं चाहती थी कि घर में बखेड़ा हो. इसलिए उसे लगा कि निर्भया को कहीं दूसरी जगह पहुंचा देना चाहिए. उस के पड़ोस में सरदारी बुआ (बदला हुआ नाम) रहती थीं. उसे उन का घर सुरक्षित लगा, इसलिए वह निर्भया को साथ ले कर उन के घर जा पहुंची.

सरदारी बुआ से उस ने कहा, ‘‘बुआ, यह मेरी भांजी है. मेरी कोलकाता वाली बहन की बेटी. आज इस की मम्मी आ रही है. मैं उन्हें लेने रेलवे स्टेशन जा रही हूं. घर में अकेली बोर हो जाएगी, इसलिए आप मेरे लौटने तक इसे अपने यहां रख लो.’’

इतना कह कर मंजू चली गई. उस के जाने के बाद निर्भया लड़खड़ाते हुए सरदारी बुआ के पास पहुंची तो उसे इस तरह से चलते देख सरदारी बुआ ने उस के सिर पर हाथ रख कर पूछा, ‘‘क्या बात है बिटिया, तेरी तबीयत ठीक नहीं क्या? तेरे पैरों में चोट लगी है क्या?’’

ममत्व भरे स्पर्श से निर्भया बिलख पड़ी. सरदारी बुआ के सीने पर सिर रख कर उस ने कहा, ‘‘आंटी, जख्म पैरों में ही नहीं, पूरे बदन पर हैं. हृदय घावों से छलनी हो चुका है. मंजू मेरी मौसी नहीं, इस ने मुझे खरीदा है. आंटी मुझे बचा लो.’’

सरदारी बुआ ने दुनिया देखी थी. निर्भया ने जितना कहा था, उतने में ही वह पूरा माजरा समझ गई. उस बच्ची की पीड़ा को उन्होंने गंभीरता से लिया. उन का मन निर्भया को बचाने के लिए तड़प उठा. उन्होंने तुरंत बाल संरक्षण कमेटी के जिलाध्यक्ष एडवोकेट जोट्टा सिंह को फोन कर के अपने घर बुला लिया. नाबालिग बच्ची से जुड़ा मामला था, इसलिए वह अकेले नहीं आए थे, उन के साथ उन के साथी भी आए थे.

 

इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 1

फोन की घंटी बजी तो अख्तर खान ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर जानापहचाना था, इसलिए उस ने तुरंत फोन रिसीव किया. तब दूसरी ओर से पूछा गया कि कौन, अख्तर खान बोल रहे हैं तो अख्तर खान ने कहा, ‘‘हां…हां गुड्डी, मैं अख्तर खान ही बोल रहा हूं. कहो, क्या आदेश है?’’

‘‘अरे खान साहब, आदेश कोई नहीं है. एक अच्छी सी बात है. एक बड़ा ही प्यारा सा माल आया है. आप शौकीन आदमी हैं, इसलिए उसे सब से पहले आप के सामने ही पेश करना चाहती हूं. आप पहले आदमी होंगे, जिस के साथ वह हमबिस्तर होगी.’’ गुड्डी ने मनुहार सा करते हुए कहा.

‘‘अरे गुड्डी, पहले माल तो दिखाओ. माल देखने के बाद ही आने, न आने के बारे में सोचूंगा.’’ अख्तर खान ने कहा.

गुड्डी ने तुरंत वाट्सऐप पर एक लड़की का फोटो भेज दिया. फोटो देख कर अख्तर खान की आंखें चमक उठीं. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मैडम, इस का रेट क्या होगा?’’

‘‘पूरे 10 हजार लगेंगे.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी, 10 हजार में तो किसी बिकाऊ हीरोइन को खरीदा जा सकता है. यह मुंबई से लाई गई कोई हीरोइन थोड़े ही है?’’ अख्तर खान ने कहा.

‘‘अख्तर साहब, यह हीरोइन भले नहीं है, पर हीरोइन से कम भी नहीं है. इसे दिल्ली से लाया गया है. एक बार चखोगे, तो गुलाम बन जाओगे. उस के बाद इस लड़की को ही नहीं, गुड्डी को भी नहीं भूल पाओगे. खान साहब, रेट की बात छोड़ो, अगर लड़की पसंद है तो आ जाओ. फाइनल डील तो मैडम मंजू ही करेंगी.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी मैं इस समय रावतसर ही हूं. तुम कह रही हो तो आधे घंटे में पहुंच रहा हूं. सीधे मैडम मंजू के घर ही पहुंचूंगा.’’

आधे घंटे बाद अख्तर खान हनुमानगढ़ जंक्शन के मोहल्ला सुरेशिया स्थित मंजू मैडम के घर पर था. चायनाश्ते के बाद अख्तर खान को बैडरूम में सजीधजी बैठी लड़की दिखाई गई तो उस की आंखें चमक उठीं. उस ने कुरते की जेब में हाथ डाला और 7 हजार रुपए निकाल कर मंजू के हाथों पर रख दिए. बिना किसी हीलहुज्जत के रुपए मुट्ठी में दबा कर मंजू बैडरूम से बाहर निकल गई. यह मार्च, 2017 के पहले सप्ताह की बात है.

तहसील रावतसर के गांव कल्लासर के रहने वाले सुमेरदीन का बेटा अख्तर खान रंगीनमिजाज युवक था. देहव्यापार का कारोबार करने वाली मंजू अग्रवाल और उस की सहायिका गुड्डी मेघवाल से उस की कई सालों पुरानी जानपहचान थी. अख्तर खान की खेती की जमीन में ‘जिप्सम’ के रूप में प्रचुर मात्रा में खनिज पाया गया है, जिस की वजह से इलाके में उस की गिनती धनी लोगों में होती है.

मंजू के बैडरूम में उस कमसिन लड़की के साथ घंटे, डेढ़ घंटे गुजार कर अख्तर खान संतुष्ट हो कर अपने घर लौट गया. जातेजाते उस ने मंजू और गुड्डी के प्रति आभार भी व्यक्त किया था. इस के बाद मंजू और गुड्डी द्वारा बुलाए गए कई ग्राहकों को उस लड़की ने संतुष्ट किया था.

रात हो गई थी. थक कर चूर हो चुकी उस लड़की ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘आंटी, अब और नहीं सह पाऊंगी शरीर का पोरपोर दर्द कर रहा है.’’

‘‘बस बेटा, आखिरी ग्राहक बचा है. वह एक बड़ा अफसर है. उस के लिए तुझे एक होटल में जाना होगा. जगतार तुझे वहां ले जाएगा. बस आधे घंटे की बात है.’’ मंजू ने सख्त लहजे में प्यार से कहा.

लड़की में मना करने की हिम्मत नहीं थी. इसलिए आधे घंटे में फ्रेश हो कर वह तैयार हो गई. जगतार उसे मोटरसाइकिल से संगम होटल ले गया. लड़की को बताए गए कमरे में पहुंचा कर वह स्वागत कक्ष में आ कर बैठ गया. आधे घंटे बाद लड़की रिशेप्शन पर आई तो जगतार उसे ले कर मंजू के घर आ गया.

2 दिन पहले ही मंजू के घर जबरदस्ती लाई गई यह लड़की बीते एक सप्ताह के हर लम्हे को याद कर के आंसुओं के सागर में गोते लगा रही थी. वहीं उस से देहव्यापार कराने वाली मंजू अग्रवाल पहले ही दिन की कमाई से निहाल हो उठी थी. एक ही दिन में उस की 22 हजार रुपए की कमाई हो चुकी थी.

लड़की, जिसे निर्भया कह सकते हैं, उसे दिल्ली से ला कर मंजू के हाथों बेचा गया था. वह मंजू के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हुई थी. 2 दिन पहले ही मंजू ने उसे दिल्ली के दलाल सुनील बागड़ी के माध्यम से गोलू और निशा से एक लाख रुपए में खरीदा था.

लेकिन मंजू ने अभी उन्हें 30 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी के 70 हजार 15 दिनों बाद देने थे, अब तक की कमाई को देख कर मंजू को यही लगा कि उस ने जो पैसे इस लड़की पर लगाए हैं, वे 5-7 दिनों में ही निकल आएंगे. उस के बाद तो उस के घर रुपयों की बरसात होगी.

घर में निर्भया के कदम पड़ते ही मंजू के दिन फिर गए थे. उस के घर ग्राहकों की लाइन लग गई थी. एक बार जो निर्भया के साथ मौज कर लेता था, उस का दीवाना बन जाता था. उसे बाहर ले जाने के लिए मंजू ग्राहकों से मुंह मांगी रकम लेती थी. निर्भया कहीं मुंह ना खोल दे या भाग न जाए, इस के लिए 2-3 लड़के हमेशा उस पर नजर रखते थे. अगर वह ग्राहक के पास जाने से मना करती तो उसे डरायाधमकाया जाता.

मासूम और नाबालिग निर्भया शरीर के साथसाथ मानसिक रूप से भी मंजू ही नहीं, उस के गुर्गों की दासी बन चुकी थी. उस की शारीरिक कसावट और रूपलावण्य में गजब का आकर्षण था. उसे होटल में ले जाने वाला आदमी ग्राहक से पहले खुद उस के साथ मौज करता था. कमाई के चक्कर में मंजू ने उसे मशीन बना दिया था.

मंजू ने तमाम लड़कियों को अपने घर में रख कर धंधा करवाया था, लेकिन बरकत तो निर्भया के आने पर ही हुई थी. सुरेशिया इलाके में मंजू के 2 मकान थे. गुड्डी उस के पड़ोस में ही रहती थी. पहले वह मंजू के यहां देहधंधा करती थी. उम्र ज्यादा हो गई तो वह मंजू के लिए दलाली करने लगी थी. मंजू अपने ग्राहकों की हर सुखसुविधा का खयाल रखती थी.

उस ने अपने मकान के एक कमरे को फाइव स्टार होटल के कमरे की तरह सजा रखा था. वह ग्राहकों के लिए शबाब के साथसाथ शराब भी उपलब्ध कराती थी. बीते एक महीने में मंजू ने निर्भया से अपनी रकम तो वसूल कर ही ली थी, अच्छाखासा फायदा भी कमा लिया था.

निर्भया के चहेतों ने उस से शादी करने के लिए मंजू के सामने मुंहमांगी रकम देने की भी बात कही थी. मंजू तैयार भी थी, पर निर्भया का आईडी प्रूफ नहीं था, इसलिए वह शादी नहीं करवा पा रही थी. मंजू यह भी जानती थी कि एक तो निर्भया नाबालिग है, इस के अलावा वह दलित समुदाय से भी है. लेकिन अंधाधुंध कमाई के चक्कर में उस की आंखों पर परदा पड़ा हुआ था.

थाई मसाज की आड़ में : जिस्मफरोशी का काला धंधा – भाग 1

पहली अगस्त, 2017 को भीलवाड़ा के एडीशनल एसपी गोपालस्वरूप मेवाड़ा अपने औफिस में बैठे थानाप्रभारी से किसी आपराधिक मामले पर चर्चा कर रहे थे, तभी अंजान नंबर से उन के मोबाइल पर फोन आया. उस समय वह गंभीर मसले पर विचार कर रहे थे, इसके बावजूद उन्होंने फोन रिसीव कर के जैसे ही मोबाइल कान से लगाया, दूसरी ओर से फोन करने वाले ने कहा, ‘‘सर, आजकल आप शहर में रोजाना कोई न कोई बड़ा धमाका कर रहे हैं, इसलिए अपराधियों में दहशत छाई हुई है.’’

‘‘भई वह तो ठीक है, यह मेरी ड्यूटी भी है,’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने जवाब में कहा, ‘‘पर यह बताइए कि आप ने फोन क्यों किया है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘सर, आप यही समझ लीजिए कि हम आप के शुभचिंतक हैं.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘चलो, यह भी ठीक है, पर मैं यह जानना चाहता हूं कि आप ने फोन क्यों किया है? आप को कोई शिकायत हो तो बताइए, अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूं.’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने फोन करने वाले की चिकनीचुपड़ी बातें सुन कर पीछा छुड़ाने के लिए कहा.

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‘‘सर, मेरी कोई शिकायत नहीं है. मैंने तो आप को यह बताने के लिए फोन किया था कि शहर में आजकल तितलियों की बहार आई हुई है.’’ फोन करने वाले ने कहा.

तितलियों की बात सुन कर एसपी साहब ने कहा, ‘‘तितलियों की बहार का क्या मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो? जो भी कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सर, शहर में देशी ही नहीं, विदेशी तितलियां भी आने लगी हैं. ये तितलियां मसाज पार्लरों में आ रही हैं.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘क्या मसाज पार्लरों में गलत काम भी हो रहे हैं?’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने फोन करने वाले से पूछा.

‘‘सर, यह पता करना पुलिस का काम है. इस बारे में आप पता करवा लीजिए.’’ उस आदमी ने इतना कह कर फोन काट दिया.

फोन कटने के बाद गोपालस्वरूप मेवाड़ा उस आदमी की बातों पर विचार करने लगे. उन्हें मामला गंभीर लगा तो थानाप्रभारी से उस फाइल पर बाद में चर्चा करने की बात कह कर उसे भेज दिया. इस के बाद अपने खास मुखबिरों को फोन कर के यह पता लगवाया कि शहर में कहांकहां मसाज पार्लर और स्पा सैंटर चल रहे हैं, साथ ही यह भी पता करवाया कि इन मसाज पार्लरों में किस तरह की गतिविधियां चल रही हैं?

2-3 घंटे में ही उन्हें मुखबिरों से जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. उन्होंने तुरंत अपने सूचना तंत्र से उन जानकारियों की पुष्टि करवाई. वे जानकारियां सही निकलीं तो गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने पुलिस अधिकारियों की एक टीम बनाई. टीम में शामिल प्रशिक्षु डीएसपी दिनेश परिहार को कुछ बातें समझा कर प्राइवेट कार से सामान्य कपड़ों में शहर के महावीर पार्क के पास स्थित स्पा पैलेस भेज दिया.

कोतवाली से करीब 3 सौ मीटर दूर स्थित इस स्पा पैलेस पर दिनेश परिहार एक पढ़ेलिखे व्यापारी की तरह कार से उतरे. उन्होंने एक नजर स्पा पैलेस की बिल्डिंग पर डाली. बाहर से वह किसी मध्यम शहर के मसाज पार्लर जैसा नजर आ रहा था. लेकिन वह स्पा पैलेस का शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुए तो वहां की चमकदमक देख कर दंग रह गए. अंदर दाखिल होते ही रिसैप्शन पर चुस्त पोशाक पहने बैठी युवती ने मुसकरा कर उन का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘वेलकम सर, मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं?’’

‘‘यार, मैं तो यहां घूमने आया था. आप के स्पा का नाम सुना तो आप से मिलने चला आया,’’ दिनेश परिहार ने एक शौकीनमिजाज नौजवान की तरह अपनी पैंट की जेब से महंगी सिगरेट का पैकेट निकालते हुए कहा, ‘‘क्या मैं यहां सिगरेट पी सकता हूं?’’

‘‘सौरी सर, यहां स्मोकिंग अलाऊ नहीं है. इसकी वजह यह है कि हमारे यहां विदेशी लड़कियां भी काम करती हैं. उन्हें स्मोकिंग से एलर्जी है. इस के अलावा हमारे कस्टमर भी ऐतराज करते हैं.’’ रिसैप्शनिस्ट ने मोहक मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘ओके, आप कह रही हैं तो हम सिगरेट नहीं पीते हैं.’’ दिनेश ने रिसैप्शन के पास दीवारों पर लगी मसाज के अलगअलग तरीकों वाली तसवीरों पर नजर डालते हुए कहा.

‘‘सर, पहले आप हमारे स्पा पर कभी नहीं आए?’’ रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

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‘‘यू आर राइट, मैं जयपुर का रहने वाला बिजनैसमैन हूं. आप के स्पा पैलेस का नाम सुना तो मसाज कराने का मूड बन गया और आप के यहां चला आया.’’ दिनेश ने रिसैप्शनिस्ट के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा.

‘‘यस सर, योर मोस्ट वेलकम.’’ युवती ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सर, हमारे यहां 900 रुपए एंट्री फीस लगती है. पहले आप उसे जमा करा दीजिए, उस के बाद जैसा और जिस लड़की से मसाज करवाना चाहेंगे, आप को उस का अलग से पैसा देना होगा.’’

‘‘डोंट वरी,’’ दिनेश ने पैंट की जेब से नोटों से भरा पर्स निकाल कर उस में से 5-5 सौ रुपए के 2 नोट रिसैप्शनिस्ट को देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए, एंट्री फीस.’’

युवती ने एक हजार रुपए कैश काउंटर में रख कर सौ रुपए का नोट लौटाते हुए कहा, ‘‘सर, योर गुडनेम प्लीज.’’

‘‘व्हाय…’’ दिनेश ने सौ रुपए का नोट युवती को देते हुए कहा, ‘‘ये आप के लिए टिप है.’’

‘‘थैंक्स सर,’’ युवती ने कहा, ‘‘हम रजिस्टर मेंटेन करते हैं, इसलिए आप का नाम जानना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, आप को फार्मैलिटी करनी है तो लिख लीजिए दिनेश फ्राम जयपुर.’’ दिनेश ने जानबूझ कर सरनेम छिपाते हुए कहा.

‘‘सर, आप मोबाइल नंबर भी बता दीजिए तो हम आप को भविष्य में हमारी नई सेवाओं की समयसमय पर जानकारी देते रहेंगे.’’ युवती ने कहा.

‘‘ओह नो, आप अभी मोबाइल नंबर छोडि़ए,’’ दिनेश ने कहा, ‘‘मुझे आप की सर्विसेज पसंद आईं तो मैं खुद ही मौका मिलने पर यहां हाजिर हो जाऊंगा.’’

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‘‘ओके सर, प्लीज सिट औन सोफा,’’ युवती ने कहा, ‘‘हमारी मसाज गर्ल आप को ब्रोशर दिखाएगी. आप उन में से पसंद कर लीजिए कि कौन सी मसाज कराएंगे.’’

दिनेश सामने रखे सोफे पर बैठ गए. रिसैप्शनिस्ट ने इंटरकौम से एक युवती को बुला कर कहा, ‘‘यह सर मसाज कराना चाहते हैं, इन से बात कर लीजिए.’’

चुस्त कपड़े पहने वह युवती ब्रोशर ले कर दिनेश के बगल में बैठ गई और अपने उभारों को दिखाते हुए बोली, ‘‘सर, आप कैसी गर्ल्स से मसाज कराना चाहेंगे, इंडियन बेबी से या फौरनर बेबी से?’’

‘‘वाव, आप के यहां फौरनर गर्ल्स भी हैं?’’ दिनेश ने चौंकते हुए कहा, ‘‘तब तो आज मजा आ जाएगा. लेकिन पहले आप उस ब्यूटी के दीदार तो कराइए.’’

‘‘सर, आप मेरे साथ आइए.’’ युवती ने उठते हुए कहा.

वह युवती दिनेश को पहली मंजिल पर ले गई, जहां गलियारे के दोनों तरफ 8-10 कमरे बने हुए थे. पांच सितारा होटलों की तरह सजे गलियारे और उन कमरों में तमाम सुविधाएं थीं. कमरों में मद्धिम रोशनी के बीच एसी के अलावा बैड, मसाज टेबल और शौवर आदि लगे हुए थे.

पटरियों पर बलात्कार : समाज में होता अपराध – भाग 1

31 अक्तूबर, 2017 की शाम भोपाल में खासी चहलपहल थी. ट्रैफिक भी रोजाना से कहीं ज्यादा था. क्योंकि अगले दिन मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस समारोह लाल परेड ग्राउंड में मनाया जाना था. सरकारी वाहन लाल परेड ग्राउंड की तरफ दौड़े जा रहे थे.

सुरक्षा व्यवस्था के चलते यातायात मार्गों में भी बदलाव किया गया था, जिस की वजह से एमपी नगर से ले कर नागपुर जाने वाले रास्ते होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था. इसी रोड पर स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर तो बारबार जाम लगने जैसे हालात बन रहे थे.

एमपी नगर में कोचिंग सेंटर और हौस्टल्स बहुतायत से हैं, जहां तकरीबन 85 हजार छात्रछात्राएं कोचिंग कर रहे हैं. इन में लड़कियों की संख्या आधी से भी अधिक है. आसपास के जिलों के अलावा देश भर के विभिन्न राज्यों के छात्र यहां नजर आ जाते हैं.

शाम होते ही एमपी नगर इलाका छात्रों की आवाजाही से गुलजार हो उठता है. कालेज और कोचिंग आतेजाते छात्र दीनदुनिया की बातों के अलावा धीगड़मस्ती करते भी नजर आते हैं. अनामिका भी यहीं के एक कोचिंग सेंटर से पीएससी की कोचिंग कर रही थी. अनामिका ने 12वीं पास कर एक कालेज में बीएससी में दाखिला ले लिया था.

उस का मकसद एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना था, इसलिए उस ने कालेज की पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. सर्दियां शुरू होते ही अंधेरा जल्दी होने लगा था. इसलिए 7 बजे जब कोचिंग क्लास छूटी तो अनामिका ने जल्द हबीबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए रेलवे की पटरियों वाला रास्ता चुना.

रेलवे लाइनें पार कर शार्टकट रास्ते से जाती थी स्टेशन

अनामिका विदिशा से रोजाना ट्रेन द्वारा अपडाउन करती थी. उस के पिता भोपाल में ही रेलवे फोर्स में एएसआई हैं और उन्हें हबीबगंज में ही स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ है पर वह वहां जरूरत पड़ने पर ही रुकती थी. उस की मां भी पुलिस में हवलदार हैं.

कोचिंग से छूट कर अनामिका हबीबगंज स्टेशन पहुंच कर विदिशा जाने वाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाती थी. फिर घंटे सवा घंटे में ही वह घर पहुंच जाती थी, जहां उस की मां और दोनों बड़ी बहनें उस का इंतजार कर रही होती थीं.

रोजाना की तरह 31 अक्तूबर को भी वह शार्टकट के रास्ते से हबीबगंज स्टेशन की तरफ जा रही थी. एमपी नगर से ले कर हबीबगंज तक रेल पटरी वाला रास्ता आमतौर पर सुनसान रहता है. केवल पैदल चल कर पटरी पार करने वाले लोग ही वहां नजर आते हैं. बीते कुछ सालों से रेलवे पटरियों के इर्दगिर्द कुछ झुग्गीबस्तियां भी बस गई हैं, जिन मेें मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं. यह शार्टकट अनामिका को सुविधाजनक लगता था, क्योंकि वह उधर से 10-12 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी.

अनामिका एक बहादुर लड़की थी. मम्मीपापा दोनों के पुलिस में होने के कारण तो वह और भी बेखौफ रहती थी. शाम के वक्त झुग्गीझोपडि़यों और झाडि़यों वाले रास्ते से किसी लड़की का यूं अकेले जाना हालांकि खतरे वाली बात थी, लेकिन अनामिका को गुंडेबदमाशों से डर नहीं लगता था.

उस वक्त उस के जेहन में यही बात चल रही थी कि विदिशा जाने के लिए कौनकौन सी ट्रेनें मिल सकती हैं. वैसे शाम 6 बजे के बाद विदिशा जाने के लिए 6 ट्रेनें हबीबगंज से मिल जाती हैं, इसलिए नियमित यात्रियों को आसानी हो जाती है. नियमित यात्रियों की भी हर मुमकिन कोशिश यही रहती है कि जल्दी प्लेटफार्म तक पहुंच जाएं. शायद देरी से चल रही कोई ट्रेन खड़ी मिल जाए और ऐसा अकसर होता भी था कि प्लेटफार्म तक पहुंचतेपहुंचते किसी ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट सुनाई दे जाता था.

एमपी नगर से कोई एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही रेलवे के केबिन और दूसरी इमारतें नजर आने लगती हैं तो आनेजाने वालों को उन्हें देख कर बड़ी राहत मिलती है कि लो अब तो पहुंचने ही वाले हैं.

बदमाश ने फिल्मी स्टाइल में रोका रास्ता

यही उस दिन अनामिका के साथ हुआ. पटरियों के बीच चलते स्टेशन की लाइटें दिखने लगीं तो उसे लगा कि वक्त पर प्लेटफार्म पहुंच ही जाएगी. जब दूर से आरपीएफ थाना दिखने लगा तो अनामिका के पांव और तेजी से उठने लगे.

लेकिन एकाएक ही वह अचकचा गई. उस ने देखा कि गुंडे से दिखने वाले एक आदमी ने फिल्मी स्टाइल में उस का रास्ता रोक लिया है. अनामिका यही सोच रही थी कि क्या करे, तभी उस बदमाश ने उस का हाथ पकड़ लिया. आसपास कोई नहीं था और थीं भी तो सिर्फ झाडि़यां, जो उस की कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अनामिका के दिमाग में खतरे की घंटी बजी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.

प्रकृति ने स्त्री जाति को ही यह खूबी दी है कि वह पुरुष के स्पर्श मात्र से उस की मंशा भांप जाती है. अनामिका ने खतरा भांपते हुए उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश तेज कर दी. अनामिका ने उस पर लात चलाई, तभी झाडि़यों से दूसरा गुंडा बाहर निकल आया. तुरंत ही अनामिका को समझ आ गया कि यह इसी का ही साथी है.

मदद के लिए चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ

अभी तक तीनों रेल की पटरियों के नजदीक थे, जहां कभी भी कोई ट्रेन आ सकती थी. बाहर आए दूसरे गुंडे ने भी अनामिका को पकड़ लिया और दोनों उसे घसीट कर नजदीक बनी पुलिया की तरफ ले जाने लगे. अनामिका ने पूरी ताकत और हिम्मत लगा कर उन से छूटने की कोशिश की पर 2 हट्टेकट्टे मर्दों के चंगुल से छूट पाना अब नाममुकिन सा था. अनामिका का विरोध उन्हें बजाए डराने के उकसा रहा था, इसलिए वे घसीटते हुए उसे पुलिया के नीचे ले गए.

उन्होंने अनामिका को लगभग 100 फुट तक घसीटा लेकिन इस दौरान भी अनामिका हाथपैर चलाती रही और मदद के लिए चिल्लाई भी लेकिन न तो उस का विरोध काम आया और न ही उस की आवाज किसी ने सुनी.

आखिरकार अनामिका हार गई. दोनों गुंडों ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बीच वह इन दोनों के सामने रोईगिड़गिड़ाई भी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी हाथ घड़ी, मोबाइल फोन और कान के बुंदे तक उन के हवाले कर दिए पर इन गुंडों का दिल नहीं पसीजा. ज्यादती के पहले ही खींचातानी में अनामिका के कपड़े तक फट चुके थे.

उन दोनों की बातचीत से उसे इतना जरूर पता चल गया कि इन बदमाशों में से एक का नाम अमर और दूसरे का गोलू है. जब इन दोनों ने अपनी कुत्सित मंशाएं पूरी कर लीं तो अनामिका को लगा कि वे उसे छोड़ देंगे. इस बाबत उस ने उन दरिंदों से गुहार भी लगाई थी.

ए सीक्रेट नाइट इन होटल – भाग 3

वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.

लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.

पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.

भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.

भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.

ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

ए सीक्रेट नाइट इन होटल – भाग 2

ट्रेन के ग्वालियर स्टेशन पहुंचतेपहुंचते अंधेरा छा गया था, पर इस प्रेमीयुगल के दिलोदिमाग में एक अछूते अंजाने अहसास को जी लेने का सुरूर छाता जा रहा था. स्टेशन पर उतर कर विवेक ने औटोरिक्शा किया. नई सवारियों को देख कर ही औटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते हैं कि ये किसी लौज में जाएंगे. कुछ देर औटोरिक्शा इधरउधर घूमता रहा. दोनों ने कई होटल देखे, फिर रुकना तय किया होटल उत्तम पैलेस में.

ग्वालियर रेलवे स्टेशन के प्लेटफौर्म नंबर एक के बाहर की सड़क पर रुकने के लिए होटलों की भरमार है. चूंकि आमतौर पर रेलवे स्टेशनों के बाहर की होटलें जोड़ों को रुकने के लिए मुफीद नहीं लगतीं, इसलिए विवेक और रश्मि को उत्तम होटल पसंद आया. जो रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर दूर रेसकोर्स रोड पर सैनिक पैट्रोल पंप के पास स्थित है. दोनों को यह होटल सुरक्षित लगा.

औटो वाले को पैसे दे कर दोनों काउंटर पर पहुंचे तो वहां एक बुजुर्ग मैनेजर बैठा था, जिस की अनुभवी निगाहें समझ गईं कि यह नया जोड़ा है. मैनेजर पूरे कारोबारी शिष्टाचार से पेश आया और एंट्री रजिस्टर उन के आगे कर दिया. आजकल होटलों में रुकने के लिए फोटो आईडी अनिवार्य है, जो मांगने पर विवेक और रश्मि ने दिए तो मैनेजर ने तुरंत उन की फोटोकौफी कर के अपने पास रख ली.

खानापूर्ति कर दोनों अपने कमरे में आ गए. 6 घंटों से दिलोदिमाग में उमड़घुमड़ रहा प्यार का जज्बा अब आकार लेने लगा. दरवाजा बंद करते ही विवेक ने रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया और ताबड़तोड़ उस पर चुंबनों की बौछार कर दी. एक पुरानी कहावत है, आग और घी को पास रखा जाए तो घी पिघलेगा, जिस से आग और भड़केगी.

यही इस कमरे में हो रहा था. मंगेतर की बांहों में समाते ही रश्मि का संयम जवाब दे गया. जल्द ही दोनों बिस्तर पर आ कर एकदूसरे के आगोश में खो गए. तकरीबन एक घंटे कमरे में गर्म सांसों का तूफान उफनता रहा. तृप्त हो जाने के बाद दोनों फ्रेश हुए तो शरीर की भूख मिटने के बाद अब पेट की भूख सिर उठाने लगी.

रश्मि का मन बाहर जा कर खाना खाने का नहीं था, इसलिए विवेक ने कमरे में ही खाना मंगवा लिया. खाना खा कर टीवी देखते हुए दोनों दुनियाजहान की बातें करते आने वाले कल का तानाबाना बुनते रहे कि शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे और क्याक्या करेंगे?

एक बार के संसर्ग से दोनों का मन नहीं भरा था, इसलिए फिर सैक्स की मांग सिर उठाने लगी, जिस में उस एकांत का पूरा योगदान था, जिस की जरूरत एक अच्छे मूड के लिए होती है. इस बार दोनों ने वे सारे प्रयोग कर डाले, जो वात्स्यायन के कामसूत्र सोशल मीडिया और इधरउधर से उन्होंने सीखे थे.

2-3 घंटे बाद दोनों थक कर चूर हो गए तो कब एकदूसरे की बांहों में सो गए, दोनों को पता ही नहीं चला. और जब चला तब तक सुबह हो चुकी थी. रश्मि और विवेक, दोनों के लिए ही यह एक नया अनुभव था, जिसे उन्होंने जी भर जिया था. दोनों के बीच कोई परदा नहीं रह गया था, पर इस बात की कोई ग्लानि उन्हें नहीं थी, क्योंकि दोनों शादी के बंधन में बंधने जा रहे थे.

सुबह अपना सामान समेट कर दोनों काउंटर पर पहुंचे और होटल का बिल अदा कर रिश्तेदार के यहां पहुंच गए. रश्मि ने चहकते हुए सभी रिश्तेदारों से विवेक का परिचय कराया, लेकिन दोनों यह बात छिपा गए कि वे रात को ही ग्वालियर आ गए थे और रात उन्होंने एक होटल में गुजारी थी. जाहिर है, यह बात बताने की थी भी नहीं.

उसी दिन शाम को दोनों वापस नोएडा के लिए रवाना हो गए. साथ में था एक रोमांटिक रात का दस्तावेज, जिसे याद कर दोनों सिहर उठते थे और एकदूसरे की तरफ देख हौले से मुसकरा देते थे. बात आई गई हो गई, पर दोनों के बीच व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैटिंग में वह रात और उस की बातें और यादें ताजा होती रहीं. अब न केवल दोनों, बल्कि उन के घर वाले भी शादी की तैयारियां और खरीदारी में लग गए थे.

इन यादों से उबरते रश्मि की नजर फिर से टैग की हुई इस लाइन पर पड़ी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल’ तो वह चौंक उठी कि अजीब इत्तफाक है. फैं्रड रिक्वैस्ट भेजने वाले ने जैसे उस की यादों को जिंदा कर दिया था. रश्मि की जिज्ञासा अब शबाब पर थी कि आखिर इस लाइन का मतलब क्या है? लिहाजा उस ने कुछ सोच कर उस अंजान व्यक्ति की फ्रैंड रिक्वै

स्ट स्वीकार कर ली.

जैसे ही उस ने इस नए फेसबुक फ्रैंड का एकाउंट खोला, वह भौचक रह गई. भेजने वाले ने एक पैराग्राफ का यह मैसेज लिख रखा था.

‘रश्मिजी, आप का कमसिन फिगर लाखों में एक है. जब से मैं ने आप को देखा है, मेरी रातों की नींद उड़ गई है. वीडियो में आप एक लड़के को प्यार कर रही हैं. सच कहूं तो मुझे उस लड़के की किस्मत से जलन हो रही है. काश! उस युवक की जगह मैं होता तो आप मुझे उसी तरह टूट कर प्यार करतीं. आप को यकीन नहीं हो रहा हो तो अब वीडियो देखिए.’

अव्वल तो मैसेज पढ़ कर ही रश्मि के दिमाग के फ्यूज उड़ गए थे. रहीसही कसर वह वीडियो देखने पर पूरी हो गई, जिस में उत्तम होटल के कमरे में उस के और विवेक के बीच बने सैक्स संबंधों की तमाम रिकौर्डिंग कंप्यूटर स्क्रीन पर दिख रही थी.

 

ए सीक्रेट नाइट इन होटल – भाग 1

अप्रैल के तीसरे सप्ताह में नोएडा की रहने वाली रश्मि (बदला नाम) जब भी अपना फेसबुक एकाउंट खोलती, उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट में एक अंजान शख्स की रिक्वैस्ट जरूर दिखाई दे जाती. वह जानती थी कि आवारा, शरारती और दिलफेंक किस्म के मनचले युवक लड़कियों की कवर फोटो और प्रोफाइल देख कर ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा करते हैं. अगर इन की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली जाए तो जल्द ही ये रोमांस और सैक्स की बातें करते हुए नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगते हैं.

आमतौर पर ऐसी फैंरड रिक्वैस्ट पर समझदारी दिखाते हुए रश्मि ध्यान नहीं देती थी. इसलिए इस पर भी उस ने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वह बैठेबिठाए आफत मोल नहीं लेना चाहती थी. लेकिन 20 अप्रैल को उस ने इस अंजान फ्रैंड रिक्वैस्ट के साथ एक टैगलाइन लगी देखी तो वह बेसाख्ता चौंक उठी. वह लाइन थी ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

इस टैगलाइन ने उसे भीतर तक न केवल हिला कर रख दिया, बल्कि गुदगुदा भी दिया. उसे पढ़ कर अनायास ही वह 20 दिन पहले की दुनिया में ठीक वैसे ही पहुंच गई, जैसे फिल्मों के फ्लैशबैक में नायिकाएं पहुंचने से खुद को रोक नहीं पातीं.

की बोर्ड पर चलती उस की अंगुलियां थम गईं और दिलोदिमाग पर ग्वालियर छा गया. वह वाकई सीक्रेट और हसीन रात थी, जब उस ने पूरा वक्त पहले अभिसार में अपने मंगेतर विवेक (बदला नाम) के साथ गुजारा था. जिंदगी के पहले सहवास को शायद ही कोई युवती कभी भुला पाती है. वह वाकई अद्भुत होता है, जिसे याद कर अरसे तक जिस्म में कंपकंपी और झुरझुरी छूटा करती है.

रश्मि को याद आ गया, जब वह और विवेक दिल्ली से ग्वालियर जाने वाली ट्रेन में सवार हुए थे तो उन्हें कतई गर्मी का अहसास नहीं हो रहा था. उस के कहने पर ही विवेक ने रिजर्वेशन एसी कोच के बजाय स्लीपर क्लास में करवाया था. दिल्ली से ग्वालियर लगभग 5 घंटे का रास्ता था. कैसे बातोंबातों में कट गया, इस का अंदाजा भी रश्मि को नहीं हो पाया.

आगरा निकलतेनिकलते रश्मि के चेहरे पर पसीना चुहचुहाने लगा तो विवेक प्यार से यह कहते हुए झल्ला भी उठा, ‘‘तुम से कहा था कि एसी कोच में रिजर्वेशन करवा लें, पर तुम्हें तो बचत करने की पड़ी थी. अब पोंछती रहो बारबार रूमाल से पसीना.’’

विवेक और रश्मि की शादी उन के घर वालों ने तय कर दी थी, जिस का मुहूर्त जून के महीने का निकला था. चूंकि सगाई हो चुकी थी, इसलिए दोनों के साथ ग्वालियर जाने पर घर वालों को कोई ऐतराज नहीं था. यह आजकल का चलन हो गया है कि एगेंजमेंट के बाद लड़कालड़की साथ घूमेफिरें तो उन के घर वाले पुराने जमाने की तरह ऊंचनीच की बातें करते टांग नहीं अड़ाते.

रश्मि को अपनी रिश्तेदारी के एक समारोह में जाना था, जिस के बाबत घर वालों ने ही कहा था कि विवेक को भी ले जाओ तो उस की रिश्तेदारों से जानपहचान हो जाएगी. बारबार पसीना पोंछती रश्मि की हालत देख कर विवेक खीझ रहा था कि इस से तो अच्छा था कि एसी में चलते. उसे परेशानी तो न होती.

प्यार की बात का जवाब भी प्यार से देते रश्मि उसे समझा रही थी कि उस का साथ है तो क्या गर्मी और क्या सर्दी, वह सब कुछ बरदाश्त कर लेगी. बातों ही बातों में रश्मि ने अपना सिर विवेक के कंधे पर टिका दिया तो सहयात्री प्रेमीयुगल के इस अंदाज पर मुसकरा उठे. लेकिन उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. टे्रनों में ऐसे दृश्य अब बेहद आम हो चले हैं.

आगरा निकलते ही विवेक ने उस से वह बात कह डाली, जिसे वह दिल्ली से बैठने के बाद से दिलोदिमाग में जब्त किए बैठा था कि क्यों न हम रिश्तेदार के यहां कल सुबह चलें. वैसे भी फंक्शन कल ही है, आज की रात किसी होटल में गुजार लें. यह बात शायद रश्मि भी अपने मंगेतर के मुंह से सुनना चाहती थी.

क्योंकि स्वाभाविक तौर पर शरम के चलते वह एदकम से कह नहीं पा रही थी. दिखाने के लिए पहले तो उस ने बहाना बनाया कि घर वालों को पता चल गया तो वे क्या सोचेंगे? इस पर विवेक का रेडीमेड जवाब था, ‘‘उन्हीं के कहने पर तो हम साथ जा रहे हैं और फिर बस 2 महीने बाद ही तो हमारी शादी होने वाली है. उस के बाद तो हमें हर रात साथ ही बितानी है.’’

इस पर रश्मि बोली, ‘‘…तो फिर उस रात का इंतजार करो, अभी से क्यों उतावले हुए जा रहे हो?’’

रश्मि का मूड बनते देख विवेक ऊंचनीच के अंदाज में बोला, ‘‘अरे यार, क्या तुम्हें भरोसा नहीं मुझ पर?’’

यह एक ऐसा शाश्वत डायलौग है, जिस का कोई जवाब किसी प्रेमिका या मंगेतर के पास नहीं होता. और जो होता है, वह सहमति में हिलता सिर वह जवाब होता है.

‘‘तुम पर भरोसा है, तभी तो सब कुछ तुम्हें सौंप दिया है.’’ रश्मि ने कहा.

यही जवाब विवेक सुनना चाहता था. जब यह तय हो गया कि दोनों रात एक साथ किसी होटल के कमरे में गुजारेंगे तो बहने वाली पसीने की तादाद तो बढ़ गई, पर बरसती गर्मी का अहसास कम हो गया. दोनों आने वाले पलों की सोचसोच कर रोमांचित हुए जा रहे थे. अलबत्ता रश्मि के दिल में जरूर शंका थी कि धोखे से अगर किसी जानपहचान वाले ने देख लिया तो वह क्या सोचेगा?

अपनी शंका का समाधान करते हुए वह विवेक की आवाज में खुद को समझाती रही कि सोचने दो जिसे जो सोचना है, आखिर हम जल्द ही पतिपत्नी होने जा रहे हैं. आजकल तो सब कुछ चलता है. और कौन हम होटल के कमरे में वही सब करेंगे, जो सब सोचते हैं. हमें तो रोमांस और प्यार भरी बातें करने के लिए एकांत चाहिए, जो मिल रहा है तो मौका क्यों हाथ से जाने दें?

सुपरकॉप स्पेशल : जांबाज आशुतोष पांडेय

आशुतोष पांडेय साल 2012 में जब लखनऊ के डीआईजी, एसएसपी बने थे तब उन्होंने पुलिसकर्मियों को मुखबिर तंत्र इस्तेमाल करने का सब से अच्छा तरीका सिखाया था. मोबाइल नंबर पर शिकायत दर्ज कराने का हाइटेक सिस्टम भी उन्होंने ही लौंच किया था.

आशुतोष सादी वर्दी में घूमते थे और शहर में खोखा लगा कर पानबीड़ी बेचने वाले पनवाड़ी से ले कर रेहड़ी पटरी लगाने वालों, फल व चाय वालों से मिल कर इस निर्देश के साथ उन्हें अपना मोबाइल नंबर लिखा विजिटिंग कार्ड थमा देते थे कि कहीं कोई गड़बड़ दिखे तो उन्हें सीधे फोन करें.

बस कुछ ही दिनों में आशुतोष पांडेय के ऐसे हजारों मुखबिरों का नेटवर्क तैयार हो गया. परिणाम यह हुआ कि थानेदार की लोकेशन पता करने के लिए वह संबंधित थाना क्षेत्र के किसी भी पानवाले को फोन कर लेते थे. इस से कई सचझूठ सामने आ जाते थे.

2016 में जब आशुतोष पांडेय कानपुर जोन के आईजी थे तो उन्होंने कानपुर पुलिस की छवि सुधारने के लिए भी सोशल मीडिया को माध्यम बना कर जनता के लिए एक फोन नंबर जारी किया, जिसे एक नंबर भरोसे का नाम दिया गया. यह नंबर खूब चर्चित हुआ और लोग आईजी आशुतोष पांडेय से सीधे जुड़ने लगे.

कानपुर आईजी के पद पर रहते हुए पांडेय ने हर वारदात को हर पहलू से समझने के लिए कानपुर के एक थाने में तैनात एसओ सहित वहां के सभी दरोगाओं की कार्यशैली देखने के लिए उन की बैठक ली. वहां पीडि़तों को भी बुलाया गया था. थानेदारों और पीडि़तों से आमनेसामने बात की गई तो पता चला कई थानेदारों ने जांच के नाम पर लीपापोती की थी. कई ने तो पीडि़तों को भटकाने की कोशिश की थी. कई ऐसे भी थे जिन की जांच सही दिशा में जा रही थी.

यह सब देख कर उन्होंने एफआईआर दर्ज करने से ले कर विवेचना तक में दरोगा और थानेदारों के खेल पर शिकंजा कसने के आदेश दिए. दरअसल पुलिस विभाग में किसी अधिकारी की संवेदनशीलता उस की कार्यशैली को दर्शाती है. फिलहाल आशुतोष पांडेय उत्तर प्रदेश पुलिस के अपर महानिदेशक अभियोजन महानिदेशालय हैं.

हर कार्य दिवस की सुबह ठीक 10 बजे से अपने कक्ष में लगे कंप्यूटर के एक खास आइसीजेएस पोर्टल पर विभाग के प्रौसीक्यूटर्स की निगरानी में जुट जाते हैं. इस से गुमनामी में रहने वाला यूपी पुलिस का अभियोजन विभाग यूपी को देश में ई प्रौसीक्यूशन पोर्टल का उपयोग करने के लिए पहले नंबर पर आ खड़ा हुआ है.

बिहार के भोजपुर जिले में आरा के रहने वाले शिवानंद पांडेय के बड़े बेटे आशुतोष को बतौर सुपर कौप के रूप में पहचान दिलाई मुजफ्फरनगर जिले ने, जहां वे ढाई साल तक एसएसपी के पद पर तैनात रहे.

1998 में आशुतोष पांडेय की मुजफ्फरनगर जिले में एसएसपी के रूप में पहली नियुक्ति हुई. इस से पहले यहां केवल एसपी का पद था. दरअसल, प्रदेश सरकार ने आशुतोष पांडेय की मेहनत, लगन, ईमानदारी और कुछ नया करने की ललक को देखते हुए उन्हें एक खास मकसद से मुजफ्फरनगर में एसएसपी का पद सृजित कर भेजा था. साथ ही अपराधग्रस्त मुजफ्फरनगर से अपराध खत्म करने के लिए कुछ विशेष अधिकार भी दिए थे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला मुजफ्फरनगर किसान बहुल और जाट बहुल है. यहां की शहरी और ग्रामीण जितनी आबादी जाटों की है, कमोबेश उतनी ही आबादी मुसलिमों की भी है.

1990 से 2000 के दशक की बात करें तो मुजफ्फरनगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में अपराध में अव्वल था. अपहरण, फिरौती और हत्याओं में सब से आगे. ज्यादातर पुलिस वाले बड़े अपराधियों और रसूखदार लोगों की जीहुजूरी करते थे. कोई भी पुलिस कप्तान जिले में 6 महीने से ज्यादा नहीं टिक पाता था.

12 दिसंबर, 1998 को जब आशुतोष ने बतौर एसएसपी मुजफ्फरनगर में जौइंन किया उसी दिन बदमाशों ने पैट्रोल पंप की एक बड़ी लूट, एक राहजनी और एक व्यक्ति का अपहरण किया.

अभी 2-3 दिन ही बीते थे कि मुजफ्फरनगर के थाना गंगोह के रहने वाले कुख्यात बदमाश बलकार सिंह ने सहारनपुर के एक बड़े उद्योगपति के 8 वर्षीय बेटे का अपहरण कर लिया और उस की धरपकड़ और बच्चे की बरामदगी की जिम्मेदारी आशुतोष पांडेय पर आई.

आशुतोष खुद अपराधी बलकार सिंह के गांव पहुंचे. उन्होंने उस के करीबी लोगों को पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन किसी ने मुंह नहीं खोला.

इसी दौरान अपहृत बच्चे के परिजनों ने बिचौलियों के माध्यम से अपहर्त्ताओं से बातचीत की और फिरौती की रकम ले कर एक व्यक्ति को बच्चे को छुड़ाने के लिए बलकार गिरोह के पास भेज दिया.

बलकार गिरोह ने फिरौती की रकम भी ले ली और बच्चे को भी नहीं छोड़ा. साथ ही फिरौती ले कर गए बच्चे के रिश्तेदार को भी बंधक बना लिया. अब उन्होंने बच्चे के साथ रिश्तेदार को छोड़ने के लिए भी फिरौती की रकम मांगनी शुरू कर दी.

इस वारदात के बाद मुजफ्फरनगर और सहारनपुर की पुलिस ने गन्ने के खेतों, जंगलों, गांवों की खूब कौंबिंग की, लेकिन सब बेनतीजा. अपहृत के परिजनों ने इस बार ठोस माध्यम तलाश कर बच्चे और अपने रिश्तेदार को फिरौती की रकम दे कर छुड़ा लिया. इस से पूरे प्रदेश में दोनों जिलों की पुलिस की बहुत किरकिरी हुई.

काफी माथापच्ची के बाद आशुतोष पांडेय की समझ में आया कि गन्ना इस इलाके में सिर्फ किसानों की ही नहीं, अपराध और अपराधियों के लिए भी रीढ़ का काम करता है.

मुजफ्फरनगर में 90 फीसदी से ज्यादा जमीन पर गन्ने की खेती होती है. इसी खेती से यहां का किसान, आढ़ती और व्यापारी सब समृद्ध हैं. हर गांव में 100-50 ट्रैक्टर और ट्यूबवैल हैं.

समृद्धि हमेशा अपराध को जन्म देती है. मुजफ्फरनगर इलाके में अपराधी पैदा होते हैं मूछों की लड़ाई और इलाके में अपनी हनक पैदा करने के कारण. लेकिन बाद में अपराध के जरिए पैसा कमा कर खुद को जिंदा रखना उन की मजबूरी बन जाता है.

इसी के चलते मुजफ्फरनगर में हर अपराधी और उस के गैंग ने बड़े किसानों, आढ़तियों और उद्योगपतियों को निशाना बना कर उन का अपहरण करने और बदले में फिरौती वसूलने का धंधा शुरू किया.

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अपहर्त्ता कईकई दिन तक अपने शिकार को गन्ने के खेतों में छिपा कर रखते और इन खेतों व ट्यूबवैलों के मालिक किसान परिवार उन्हें खाने से ले कर दूसरी तरह का प्रश्रय देते.

उन दिनों मोबाइल फोन न के बराबर प्रचलन में थे. दूसरे इलेक्ट्रौनिक माध्यम भी नहीं थे, जिन के जरिए अपराधी अपहृत के परिजनों से संपर्क करते.

अपराधियों का एकमात्र माध्यम या तो लैंडलाइन फोन थे या फिर हाथ से लिखे पत्र, जिन्हें अपने शिकार के परिजनों तक पहुंचा कर वह फिरौती की मांग करते थे.

मुजफ्फरनगर के सामाजिक तानेबाने का अध्ययन करने के बाद आशुतोष पांडेय की समझ में यह बात भी आ गई कि इस इलाके में पंचायत व्यवस्था काफी मजबूत है. पंचायतों का असर इतना गहरा है कि जो मामले अदालतों तक जाने चाहिए, उन्हें पंचायत की मोहर लगा कर सुलझा दिया जाता था.

आशुतोष पांडेय ने ठान लिया कि वे मुजफ्फरनगर से असफल कप्तान का ठप्पा लगवा कर नहीं जाएंगे, बल्कि पंचायत और प्रभावशाली लोगों में पैठ बना कर बैठे अपराधियों का नेटवर्क तोड़ कर जाएंगे.

अपराध और अपराधियों की मनोवृत्ति तथा सामाजिक तानेबाने का विश्लेषण कर के आशुतोष पांडेय ने नए सिरे से जिला पुलिस के पुनर्गठन की शुरुआत की.

उन्होंने ऐसे पुलिसकर्मियों का पता लगाया, जिन का आचरण संदिग्ध था, मूलरूप से इसी इलाके के रहने वाले थे और जिन की अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से घनिष्ठता थी. जो गोपनीय सूचनाओं को लीक करते थे.

उन्होंने सब से पहले सिपाही से ले कर दरोगा स्तर के ऐसे ही पुलिस वालों की सूची तैयार की. इस के बाद उन्होंने ऐसे पुलिस वालों को या तो जिले से बाहर ट्रांसफर कर दिया या फिर उन की नियुक्ति गैरजरूरी पदों पर कर दी.

फिर आशुतोष पांडेय ने ऐसे पुलिसकर्मियों को चिह्नित करना शुरू किया जो न सिर्फ ड्यूटी के प्रति समर्पित थे बल्कि उन में बहादुरी का जज्बा और कुछ कर गुजरने की ललक थी.

सभी थाना स्तरों पर ऐसे पुलिसकर्मियों का एक स्पैशल स्क्वायड तैयार कराया. सभी थाना प्रभारियों से कहा गया कि वे इस स्क्वायड के पुलिसकर्मियों से नियमित काम न करवा कर उन्हें अपराधियों की सुरागरसी और स्पैशल टास्क पर लगाएं.  आशुतोष पांडेय ने राज्य सरकार से संपर्क कर उन्हें जिला पुलिस की जरूरतों से अवगत कराया.

राज्य सरकार ने जिला पुलिस को 26 मोटरसाइकिल, मोटोरोला के शक्तिशाली वायरलैस सैट और कुछ मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिए. संसाधन मिलने के बाद आशुतोष ने अलगअलग कई और दस्तों का गठन किया. इन दस्तों को लेपर्ड दस्तों का नाम दिया गया.

अपराध के खिलाफ अपनी व्यूह रचना को अंजाम देने से पहले आशुतोष पांडेय मुजफ्फरनगर की जनता, कारोबारियों और उस तबके को विश्वास में लेना चाहते थे, जिन का मकसद शहर में अमनचैन कायम रखना था. उन्होंने समाज के इन सभी तबकों के जिम्मेदार लोगों से मिलनाजुलना शुरू किया.

उन्होंने इन सब लोगों को भरोसा दिलाया कि वह मुजफ्फरनगर में कानूनव्यवस्था कायम करने आए हैं. लेकिन यह काम उन के सहयोग के बिना नहीं हो सकता. उन्होंने तमाम लोगों को अपना मोबाइल फोन नंबर दे कर कहा कि कोई आपराधिक सूचना हो या कोई भी निजी परेशानी हो तो वे 24 घंटे में कभी भी निस्संकोच उन्हें फोन कर सकते हैं. वह सूचना मिलते ही काररवाई करेंगे.

अचानक पुलिस कप्तान के इस वादे पर भरोसा करना लोगों के लिए मुश्किल तो था. लेकिन आशुतोष पांडेय ने हार नहीं मानी, वह लगातार प्रयास करते रहे. आखिरकार उन के प्रयास रंग लाने लगे.

समाज और कानून व्यवस्था से सरोकार रखने वाले लोग आशुतोष पांडेय को फोन करने लगे. अपराधियों के बारे में सूचना देने लगे. यह जो नया सूचना तंत्र विकसित हो रहा था, उस में शहर के अमन पसंद लोग जिम्मेदारी उठा रहे थे.

आशुतोष पांडेय ने अपने सिटिजन सूचना तंत्र से मिली जानकारी लेपर्ड दस्तों को दे कर उन्हें दौड़ानाभगाना शुरू किया तो जल्द ही नतीजे भी सामने आने लगे. रंगदारी, अपहरण, लूट और डकैती करने वाले गिरोह पुलिस के चंगुल में फंसने शुरू हो गए.

मुजफ्फरनगर में जनवरी, 1999 से शुरू हुए पुलिस के औपरेशन क्लीन की सब से बड़ी खूबी यह थी कि आशुतोष पांडेय के हर मिशन की व्यूह रचना भी उन्हीं की होती थी और संचार तंत्र भी उन्हीं का होता था. पांडेय ने जो लेपर्ड दस्ते तैयार किए थे, बस उस सूचना के आधार पर उन का काम अपराधियों को दबोचने भर का होता था.

शक्तिशाली वायरलैस सैट और मोबाइल फोन से लैस 26 मोटरसाइकिलों पर सवार इन हथियारबंद लेपर्ड दस्तों ने मुजफ्फरनगर के चप्पेचप्पे तक अपनी पहुंच बना ली थी.

इन दस्तों में ज्यादातर लोग सादी वर्दी में होते थे, जो खामोशी के साथ किसी नुक्कड़ पर व्यस्त बाजार में, बस अड्डे पर, स्टेशन पर या चाय पान की दुकान पर साधारण वेशभूषा में आम आदमी की तरह मौजूद रहते थे.

साल 1999 की शुरुआत होतेहोते आशुतोष पांडेय का सूचना तंत्र इतना विकसित हो गया कि अचानक कोई वारदात होती, तत्काल उस की सूचना कप्तान आशुतोष के पास आ जाती. वह इलाके के लेपर्ड दस्ते और स्थानीय पुलिस को सूचना दे कर औपरेशन क्लीन के लिए भेजते. इस के बाद या तो मुठभेड़ होती, जिस में बदमाश मारे जाते या फिर बदमाश पुलिस की गिरफ्त में आ जाते.

पांडेय ने जिस मिशन की शुरुआत की थी, उस की सफलताओं का आगाज हो चुका था. एक के बाद एक गैंगस्टर और गैंग पकड़े जाने लगे. लगातार मुठभेड़ होने लगीं, जिन में कुख्यात अपराधी मारे जाने लगे.

अपराध और अपराधियों से त्रस्त आ चुकी मुजफ्फरनगर की जनता का पुलिस पर भरोसा कायम होने लगा सूचना का जो तंत्र विकसित हुआ था, वह और तेजी से काम करने लगा.नतीजा यह निकला कि 16 फरवरी, 1999 को जब आशुतोष पांडेय का मुजफ्फरनगर प्रभार संभाले हुए 66वां दिन था तो अचानक उन्हें भौंरा कला के एक किसान ने फोन पर सूचना दी कि कुख्यात अंतरराजीय अपराधी रविंदर उर्फ चीता भौंरा कलां में अमरपाल किसान के ट्यूबवैल में छिपा है.

आशुतोष पांडेय ने पीएसी और स्थानीय पुलिस के साथ मिल कर खुद उस इलाके की घेराबंदी की. दोनों तरफ से मुठभेड़ शुरू हो गई. मुठभेड़ करीब 5 घंटे तक चली. आसपास के हजारों लोगों ने दिनदहाड़े हुई वह मुठभेड़ देखी और आखिरकार जिले का टौप 10 बदमाश रविंदर मारा गया.

बैंक डकैती से ले कर अपहरण की वारदातों में वांछित इस बदमाश के मारे जाते ही इलाके में आशुतोष पांडेय जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे.

आशुतोष पांडेय ऐसे नहीं थे, जिन पर अपनी जयकार का नशा चढ़ता. मुजफ्फरनगर जिले को अपराधमुक्त करना चाहते थे. रविंदर उर्फ चीता को ठिकाने लगाते ही वह इलाके से निकल लिए, क्योंकि एक और खबर उन का इंतजार कर रही थी.

पांडेय को उन के सिटिजन सूचना तंत्र से जानकारी मिली थी कि बाबू नाम का एक बदमाश जिस पर करीब 1 लाख  का ईनाम है, सिविल लाइन में किसी व्यापारी से रंगदारी वसूलने के लिए आने वाला है.

आशुतोष पांडेय सीधे सिविल लाइन पहुंचे, यहां नई टीम को बुलाया गया. फिर पुलिस टीम को एकत्र कर के बताया कि सूचना क्या है और उस पर क्या ऐक्शन लेना है.

सूचना सही थी. बताए गए समय और जगह पर कुख्यात अपराधी बाबू पहुंचा. पुलिस ने उसे चारों तरफ से घेर लिया और आत्मसमर्पण की चेतावनी दी. लिहाजा क्रौस फायरिंग शुरू हो गई. करीब 1 घंटे तक गोलीबारी हुई. घेरा तोड़ कर भागे बाबू को भी आखिरकार पुलिस ने धराशाई कर दिया.

मुजफ्फरनगर के इतिहास में शायद यह पहला दिन था जब एक ही दिन में पुलिस ने एक साथ 2 बड़े अपराधियों का एनकाउंटर कर उन्हें धराशाई कर दिया था.

इस एनकाउंटर के बाद मुजफ्फरनगर की जनता का पुलिस पर भरोसा वापस लौट आया. लोगों को लगने लगा कि आशुतोष पांडेय के रहते या तो बदमाश दिखाई नहीं देंगे. अगर दिखे तो उन के सिर्फ दो अंजाम होंगे या तो वे श्मशान में होंगे या सलाखों के पीछे.

आशुतोष पांडेय पर जिम्मेदारियां बहुत बड़ी थीं. क्योंकि यह सिर्फ शुरुआत थी इसे अंजाम तक पहुंचाना बेहद मुश्किल काम था. पांडेय सुबह 10 बजे तक अपने दफ्तर पहुंच जाते थे, जहां जनता से मुलाकात करते, शिकायतें सुनते.

उस के बाद कोई सूचना मिलने पर उन का काफिला अनजान मंजिल की तरफ निकल पड़ता. वे किसी गांव में किसानों के बीच बैठक लगाते या व्यापारियों के बीच भरोसा पैदा करने के लिए बैठक करते.

आशुतोष पांडेय कईकई दिन तक अपनी पत्नी और दोनों बच्चों से नहीं मिल पाते थे. घर जाने की फुरसत नहीं होती थी इसलिए गाड़ी में ही हर वक्त 1-2 जोड़ी कपड़े रखते थे.

गाड़ी में हमेशा पानी की बोतलें, भुने हुए चने और गुड़ मौजूद रहता था. जरूरत पड़ने पर गुड़ और चने खा कर ऊपर से पानी पी लेते थे. थकान हो जाती थी तो गाड़ी में बैठ कर ही कुछ देर झपकी मार लेते थे.

आशुतोष पांडेय अकेले ऐसा नहीं करते थे. जिले के हर पुलिस कर्मचारी के लिए उन्होंने शहर के अपराधमुक्त होने तक ऐसी ही दिनचर्या अपनाने का वादा ले रखा था.

रविंदर उर्फ चीता और बाबू के एनकाउंटर के बाद आशुतोष पांडेय ही नहीं, पूरे जिले की पुलिस के हौसले बुलंदी पर थे. आईजी जोन से ले कर लखनऊ में उच्चस्तरीय अधिकारियों में भी आशुतोष पांडेय के काम की सराहना हो रही थी.

लेकिन आशुतोष इतने भर से संतुष्ट नहीं थे. इस के बाद उन्होंने अगस्त, 1999 में मंसूरपुर इलाके में ईनामी बदमाश नरेंद्र औफ गंजा को मुठभेड़ में मार गिराया. चंद रोज बाद ही बड़ी रकम के इनामी बदमाश इतवारी को सिविल लाइन इलाके में ढेर कर दिया गया. 8 नवंबर, 1999 को उन्होंने खतौली के कुख्यात अपराधी सुरेंद्र को मुठभेड़ में धराशाई कर दिया.

मुजफ्फरनगर में जिस तरह से एक के बाद एक ताबड़तोड़ एनकाउंटर हो रहे थे, सक्रिय अपराधियों को सलाखों के पीछे भेजा जा रहा था. उस ने अपराधियों के बीच आशुतोष पांडेय के नाम का खौफ भर दिया था. उन्हें बड़ी कामयाबी तब मिली जब 27 अगस्त, 2000 को एक सूचना के आधार पर उन्होंने शामली के जंगलों में खड़े एक ट्रक को अपने कब्जे में लिया.

इस ट्रक में सवार 2 लोगों ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की तरफ से भी फायरिंग शुरू हो गई. फलस्वरूप दोनों बदमाश मारे गए. बाद में जिन की पहचान पंजाब के सुखबीर शेरी ओर दिल्ली के नरेंद्र नांगल के रूप में हुई.

पता चला कि ये दोनों आतंकवादी थे और दिल्ली में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान विस्फोट करना चाहते थे. ये दोनों 5 लोगों की हत्या में वांछित थे. जिस ट्रक में दोनों बैठे थे उसे उन्होंने सहारनपुर से लूटा था और ट्रक में 50 लाख  रुपए की सिगरेट भरी थी. पुलिस को उन के कब्जे से हथियार व गोलाबारूद भी मिला.

आशुतोष पांडेय द्वारा छेड़े गए मिशन के तहत बदमाश पकड़े भी जा रहे थे और मारे भी जा रहे थे. लेकिन पांडेय जानते थे कि मुजफ्फरनगर इलाके में अपराध की मूल जड़ गन्ना है. क्योंकि गन्ना बढ़ने के साथ उस की बिक्री से किसानों व क्रेशर मालिकों के पास पैसा आने लगता है.

बदमाश उसी पैसे को लूटने या फिरौती में लेने के लिए अपहरण की वारदातों को अंजाम देते हैं. कुल मिला कर इलाके के अपराधियों के लिए गन्ने की फसल मुनाफे का धंधा बन गई थी. आशुतोष पांडेय चाहते थे कि किसी भी तरह मुनाफे के इस धंधे को घाटे में बदल दिया जाए.

आशुतोष ने अब अपना सारा ध्यान अपहरण करने वाले गिरोह और बदमाशों पर केंद्रित कर दिया. उन्होंने पिछले 2-3 सालों में हुए अपहरणों की पुरानी वारदातों की 1-1 पुरानी फाइल को देखना शुरू किया.

अपहरण के इन मामलों में जो भी लोग संदिग्ध थे, जिन लोगों ने अपहर्त्ताओं को पनाह दी थी अथवा बिचौलिए का काम किया था, उन्होंने ऐसे तमाम लोगों की धरपकड़ शुरू करवा दी. रोज ऐसे 30-40 लोग पकड़े जाने लगे.

इस से अपराधियों के शरणदाता अचानक बदमाशों से कन्नी काटने लगे. जिस का नतीजा यह निकला कि मुजफ्फरनगर में अचानक साल 2000 में फिरौती के लिए अपहरण की वारदातों में भारी कमी आ गई.

लेकिन इस के बावजूद कुछ मुसलिम गैंग अभी तक अपहरण की वारदात छोड़ने को तैयार नहीं थे.

दिसंबर 2000 में चरथावल कस्बे के दुधाली गांव में बदमाशों ने भट्ठा मालिक जितेंद्र सिंह का अपहरण कर लिया और परिवार से मोटी फिरौती मांगी. शिकायत कप्तान आशुतोष पांडेय तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत मुखबिरों के नेटवर्क को सक्रिय किया. पता चला कि जितेंद्र सिंह का अपहरण शकील, अकरम और दिलशाद नाम के अपराधियों ने किया है. यह भी पता चल गया कि बदमाशों ने जितेंद्र सिंह को दुधाहेड़ी के जंगलों में रखा हुआ है.

उन्होंने खुद इस मामले की कमान संभाली और पूरे जंगल की घेराबंदी कर दी. दिनभर पुलिस और बदमाशों की मुठभेड़ चलती रही, जिस के फलस्वरूप शाम होतेहोते तीनों बदमाश मुठभेड़ में धराशाई हो गए और जितेंद्र सिंह को सकुशल मुक्त करा लिया गया.

1999 से ले कर साल 2000 तक मुजफ्फरनगर जिले में कई ऐसे अपहरण हुए, जिस में आशुतोष पांडेय की अगुवाई में पुलिस ने न सिर्फ अपहृत व्यक्ति को सकुशल मुक्त कराया. बल्कि अपहर्त्ताओं को या तो गिरफ्तार किया या फिर मुठभेड़ में धराशाई कर दिया. पांडेय ने ऐसे सभी मामलों में अपहर्त्ताओं को अपने खेतों, ट्यूबवैल और घरों में शरण देने वाले किसानों और उन के परिवार की महिलाओं तक को आरोपी बना कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

परिणाम यह निकला कि लोग अपराधियों को शरण देने से बचने लगे. कल तक अपहरण को मुनाफे का धंधा मानने वाले अपराधियों को अब वही धंधा घाटे का लगने लगा. यही वजह रही कि साल 2001 में मुजफ्फरनगर जिले में फिरौती के लिए अपहरण की एक भी वारदात नहीं हुई.

इस बीच जिले के सभी 28 थानों पर पांडेय की इतनी मजबूत पकड़ कायम हो चुकी थी कि अगर वहां कोई मामूली सी भी गड़बड़ या घटना होती तो इस की सूचना उन तक पहुंच जाती थी.

लोगों से मिली सूचनाओं के बूते पर उन्होंने जिले के करीब 525 ऐसे लोगों की सूची बनाई थी, जो या तो सफेदपोश थे या फिर किसी पंचायत अथवा राजनीतिक दल से जुड़े थे. इन सभी लोगों पर आशुतोष पांडेय ने अपनी टीम के लोगों को नजर रखने के लिए छोड़ा हुआ था.

ऐसे लोगों की अपराध में जरा सी भी भूमिका सामने आने पर आशुतोष पांडेय मीडिया के माध्यम से जनता के बीच उन के चरित्र का खुलासा करके उन्हें जेल भेजते थे. इसलिए तमाम सफेदपोश लोग भी आशुतोष पांडेय के खौफ से डरने लगे थे.

सफेदपोश अपराधियों के खिलाफ की गई काररवाई में सब से चर्चित और उल्लेखनीय मामला समाजवादी पार्टी से विधान परिषद सदस्य कादिर राणा के भतीजे शाहनवाज राणा की गिरफ्तारी का था.

शाहनवाज राणा की शहर में तूती बोलती थी. किसी के साथ भी मारपीट कर देना किसी की गाड़ी को अपनी गाड़ी से टक्कर मार देना शाहनवाज राणा का शगल था. पुलिस और स्थानीय प्रशासन पर प्रभाव रखने और धमक दिखाने के लिए शाहनवाज राणा ने एक अखबार भी निकाल रखा था. शाहनवाज राणा पर कोई हाथ नहीं डाल पाता था. शाहनवाज राणा पहले हत्या के एक मामले में गिरफ्तार हो चुका था लेकिन सबूत न होने की वजह से बाद में अदालत से रिहा हो गया था. इस से मुजफ्फरनगर में शाहनवाज की गुंडागर्दी और भी बढ़ गई थी. लेकिन आशुतोष पांडेय ने शाहनवाज को भी नहीं छोड़ा.

दरअसल, मुजफ्फरनगर के रमन स्टील के मालिक रमन कुमार ने आशुतोष पांडेय को फोन कर के बताया कि शाहनवाज राणा और उस के साथी उस की फैक्ट्री से लोहे के कबाड़ का ट्रक लूट रहे हैं.

सूचना मिलते ही आशुतोष पांडेय अपने स्पैशल दस्ते के साथ मौके पर पहुंचे और शाहनवाज राणा व उस के साथियों को पकड़ कर थाने ले आए.

शाहनवाज राजनीतिक पकड़ वाला व्यक्ति था. चाचा कादिर राणा प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी का एमएलसी था. थाने पर एक खास समुदाय के समर्थकों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई.

आशुतोष पांडेय पर शाहनवाज को छोड़ने के लिए उच्चाधिकारियों से ले कर विपक्षी पार्टी के नेताओं का दबाव बढ़ने लगा.

लेकिन आशुतोष पांडेय उसूलों के पक्के थे. उन्होंने शाहनवाज को खुद मौके पर जा कर पकड़ा था. लिहाजा छोड़ने का सवाल ही नहीं था.

अगर दबाव में आ कर वह शाहनवाज को छोड़ देते तो न सिर्फ ढाई साल में की गई उन की मेहनत पर पानी फिर जाता बल्कि शाहनवाज राणा के हौसले और ज्यादा बुलंद हो जाते.

आशुतोष पांडेय ने तबादले और दंड की परवाह किए बिना शाहनवाज राणा के खिलाफ मामला दर्ज करवाया और उसे साथियों के साथ जेल भिजवा दिया.

मुजफ्फरनगर जिले में यह मामला एक आईपीएस अफसर के ईमानदार फैसले की नजीर बन गया और लोगों ने आशुतोष पांडेय की हिम्मत का लोहा मान लिया.

यही कारण रहा कि मुजफ्फरनगर में अपनी तैनाती के दौरान इकहरे शरीर के मालिक आशुतोष पांडेय हमेशा लौह पुलिस अफसर बन कर खड़े रहे.

मुजफ्फरनगर में ढाई साल के लंबे कार्यकाल के बाद आशुतोष पांडेय की नियुक्ति अलगअलग जगहों पर रही. हर जगह उन्होंने जो काम किए, वह सब से हट कर थे. पांडेय 2005 में वाराणसी और साल 2012 में लखनऊ के एसएसपी डीआईजी रहे.

सभी जगह आशुतोष पांडेय का नाम सुनते ही गैरकानूनी काम करने वाले लोग डरते थे. 2008 में आशुतोष पांडेय को प्रोन्नत कर उन्हें डीआईजी का पद सौंपा गया. इस के बाद उन्हें 18 मई, 2012 में प्रमोशन देते हुए आईजी बना दिया गया.

कानुपर के अलावा उन की नियुक्ति आगरा जोन में भी रही और 1 जनवरी, 2017 को वह यूपी के एडीजी बना दिए गए. अपहरण मामलों को सुलझाने के विशेषज्ञ, मुजफ्फरनगर में 100 से ज्यादा अपराधियों के एनकाउंटर में 30 एनकांउटर में खुद मोर्चा संभालने और कानपुर में बहुचर्चित ज्योति हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में अहम रोल निभाने वाले आशुतोष पांडेय को राष्ट्रपति मैडल मिल चुका है.

IPS नवनीत सिकेरा : जानें ‘भौकाल’ वेब सीरीज के असली हीरो के बारे में

इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे.

मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

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वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे.

आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी.

शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे.

उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था.

हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे.

उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था.

रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी.

उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे.

तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था.

इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे.

सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है.

प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी.

सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया.

राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची.

उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था.

नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

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नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए.

उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे.

सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था.

कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए.

इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था.

उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है.

इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की.

इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी.

वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा.

शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी.

खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे.

बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया.

जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.

शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया.

उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली.

कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी.

सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली.

आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया.

उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया.

एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया.

ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे.