क्राइम खुद का क़त्ल खुद ही कातिल

भारत भूषण श्रीवास्तव 

बीती 15 जून को हत्या के आरोप में सजा काट रहे राजेश को अदालत ने 15 दिन के पैरोल पर छोड़ा था.

हरिनगर भोपाल के तेजी से विकसित होते रातीबड़ और नीलबड़ इलाकों का एक मोहल्ला है जिस में कच्चेपक्के मकानों की भरमार है.

ऐसे ही एक मकान में राजेश अपनी बूढ़ी मां के साथ रहता था. पैरोल पर छूटे राजेश ने सबसे पहले अपने पसंदीदा काम किए जिन में पहला था शराब पीना और दूसरा था अपनी प्रेमिका अंजू (बदला नाम) के साथ घंटों बिस्तर में पड़े रह कर शारीरिक सुख भोगना.

ये दोनों ही चीजें चूंकि जेल में नहीं मिलती थीं इसलिए वह 15 दिन तक जी भर कर मौजमस्ती कर जिंदगी जी लेना चाहता था क्योंकि पैरोल खत्म होते ही उसे वापस जेल जाना पड़ता जहां की नर्क सी बदतर जिंदगी किसी मुजरिम को रास नहीं आती और आजादी उन के लिए एक ख्वाब भर बन कर रह जाती है.

अंजू हालांकि तनमनधन से उस के लिए समर्पित थी लेकिन वह यह भी समझ रही थी कि इस के बाद शायद ही कभी राजेश को पैरोल मिले क्योंकि इस सहूलियत का फायदा वह 3 बार ले चुका था. पहली बार तब जब उसे 13 सितंबर, 2017 को सजा होने के बाद अंतरिम जमानत मिली थी. दूसरी दफा तब जब 17 मई, 2018 को उस के पिता की मौत हुई थी और तीसरी बार अब जो 29 जून को खत्म होने वाली थी.

आदतन अपराधी राजेश परमार ने 29 जुलाई, 2014 को सरेआम अंकित जवादे नाम के युवक की हत्या की थी. एक तरह से यह 2 छोटे स्तर के गिरोहों की गैंगवार थी जिसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था. कमला नगर इलाके में रहने वाला अंकित भी राजेश की तरह गुंडा था और अपराध किया करता था. इन दोनों में किसी बात को ले कर दुश्मनी हुई तो दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए.

हत्या वाले दिन राजेश ने अपने 3 साथियों भरत मेवाड़ा, राहुल श्रीवास्तव और दिलीप विश्वकर्मा उर्फ कुटरू के साथ मिल कर शिवाजी नगर इलाके में अंकित की हत्या एक पार्क के पास की थी. पहले इन चारों ने अंकित को देसी कट्टे से गोली मारी थी फिर लोहे की रौड से उस पर प्रहार किए. अंकित की मौत की तसल्ली होने के बाद चारों फरार हो गए थे लेकिन बाद में एकएक कर पकड़े भी गए थे.

राजेश ने 10 महीने फरारी काटी और जब उसे लगने लगा कि अब वह पकड़ा नहीं जाएगा तो बेफिक्री से भोपाल में घूमनेफिरने लगा लेकिन पुलिस के एक मुखबिर ने उस के शिवाजी नगर में दिखने की खबर दी तो एमपी नगर थाने के तत्कालीन टीआई ब्रजेश भार्गव ने उसे 29 मई, 2015 को गिरफ्तार कर लिया.

मुकदमा चला तो अदालत ने राजेश को मुख्य आरोपी मानते  उम्रकैद और राहुल और भरत को सह अभियुक्त मानते हुए 10-10 साल की सजा सुनाई. दिलीप उर्फ कुटरू को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था. इस तरह 13 सितंबर, 2017 को राजेश आजीवन कारावास की सजा काटने भोपाल की सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

3 बार पैरोल मिलने के बाद उसे बाहर की हवा रास आने लगी थी, लेकिन मजबूरी यह थी कि वह भाग नहीं सकता था क्योंकि पैरोल के अपने सख्त नियम होते हैं और दूसरे इस बात का अहसास उसे हो चुका था कि कहीं भी भाग जाए, आज नहीं तो कल पकड़ा जरूर जाएगा. अंकित की हत्या के बाद भी आखिरकार वह ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रह पाया था.

बहरहाल उस ने 25 जून तक का वक्त तो जैसेतैसे काट लिया लेकिन इस के बाद 29 जून का खौफ उस के सर चढ़ कर बोलने लगा था. मंजू भी इशारों में उसे समझा चुकी थी कि आखिर वह कब तक उस का इंतजार करेगी क्योंकि घर वाले शादी के लिए दबाव बना रहे हैं.

काफी सोचनेसमझने के बाद उस ने अपने आप को मना लिया कि अब जेल की जिंदगी ही उस की नियति है. इसलिए 15 दिन की मौजमस्ती ही काफी है हालांकि इस दौरान उस ने इस तरफ भी खूब सोचाविचारा कि कोई तो ऐसा रास्ता होगा जो हमेशा के लिए कैद से आजाद करा सके.

फिर जल्द ही उसे वह रास्ता मिल भी गया. एक दिन वह मंजू की बगल में पड़ेपड़े एक चैनल पर क्राइम सीरियल देख रहा था, तभी अचानक वह खुशी से भर उठा. सीरियल में दिखाया जा रहा था कि एक अपराधी ने अपनी ही कद काठी के एक आदमी की हत्या कर वारदात को आत्महत्या की शक्ल दे दी और बाहर आजाद घूमता रहा.

मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता, यह बात राजेश ने सोची तो उसे अपनी ख्वाहिशें पूरी करने और जेल की सजा से भी बचने का रास्ता दिखाई देने लगा, जो मुश्किल जरूर था लेकिन असंभव नहीं. लेकिन इस बाबत उस के पास एक दिन का ही वक्त था. मन ही मन उसने कुछ तय किया और मंजू को बाहों में समटेते हुए बोला, ‘‘अब मैं कभी जेल नहीं जाऊंगा.’’

फिर 29 जून की शाम रातीबड़ थाने में एक 34 वर्षीय शख्स द्वारा आत्महत्या करने की खबर पहुंची तो थानाप्रभारी सुनील भदौरिया घटनास्थल की तरफ दौड़ पड़े. पूछताछ में उन्हें पता चला कि उस मकान में राजेश परमार नाम का युवक रहता है जो हत्या के आरोप में सजा काट रहा था और हालफिलहाल पैरोल पर था.

राजेश की लाश फर्श पर पड़ी थी और पूरी तरह जली हुई थी. पुलिस वालों ने घर की तलाशी ली तो जल्द ही उन्हें एक सुसाइड नोट भी मिला, जिस में राजेश ने जिंदगी से परेशान हो कर खुदकुशी करने की बात लिखी थी.

पहली नजर में ही यह बात स्पष्ट हो गई थी कि राजेश परमार नाम का सजायाफ्ता मुजरिम जेल की जिंदगी से आजिज आ गया था और घबरा कर आत्महत्या कर बैठा. शुरुआती पड़ताल और पूछताछ के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. दूसरे दिन ही राजेश का अंतिम संस्कार भी हो गया.

एकबारगी ऐसा लगा कि राजेश परमार नाम के हत्यारे की कहानी खत्म हो गई लेकिन जिसे लोग और पुलिस वाले अंत मान कर चल रहे थे वह दरअसल में एक नई कहानी की शुरुआत और एक ऐसे कत्ल की दास्तां थी जिस में किसी आदमी ने खुद का ही कत्ल कर डाला हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुआ शक चौथे दिन जब पुलिस वालों को राजेश के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली तो वे भौचक्क रह गए क्योंकि रिपोर्ट में उस की मौत जलने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई बताई गई थी. यह बात किसी भी एंगल से पुलिस वालों को हजम नहीं हो रही थी क्योंकि लाश राजेश की ही थी और सुसाइड नोट उस की आत्महत्या की पुष्टि कर रहा था लेकिन शक तो बना हुआ था क्योंकि लाश की पहचान उस की कद काठी की बिना पर हुई थी उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था.

अगर यह सच है तो कैसे मुमकिन है इस पुलिस सच की तलाश में निकली तो हर कदम पर एक हैरानी उन का पीछा करती नजर आई. एक टेढ़ा सवाल तो शुरु से ही मुंह बाए खड़ा था कि शुरुआत कहां से की जाए. सीएसपी उमेश तिवारी और एएसपी अखिल पटेल ने राजेश  के मोबाइल को टटोला तो पता चला कि 27 और 28 जून के दरम्यान उस ने अंजू के अलावा एक और नंबर पर बारबार बात की थी.

अंजू तो पुलिस की जांच और निगाह में आ ही गई थी, लेकिन जब दूसरे नंबर की पड़ताल की गई तो पता चला कि वह नंबर किसी निहाल खान का है जो बिहार के चंपारण जिले का रहने वाला है. भोपाल में जब उस के घर पुलिस गई तो वह नदारद मिला. इस से सारी दाल काली नजर आने लगी. राजेश की आत्महत्या का राज अब कोई खोल सकता था तो वह निहाल था, बशर्ते वह जिंदा हो. पुलिस को एक आशंका यह थी कि कहीं मृतक निहाल ही न हो.

इसी दौरान एक महत्त्वपूर्ण सुराग पुलिस के हाथ यह लगा कि राजेश जिंदा है और अपने नजदीकी दोस्तों को फोन कर पैसे उधार मांग रहा है. इस से मामले में सस्पेंस और बढ़ने लगा. राजेश के एक साथी नामी बदमाश ने पुलिस को बताया था कि राजेश ने उस से फोन पर 60 हजार रुपए मांगे थे. इस से यह बात तो साफ हुई कि लाश उस राजेश परमार की नहीं थी जिस ने खुदकुशी की थी या फिर जिस की हत्या हुई थी.

काररवाई आगे बढ़ाते हुए पुलिस ने निहाल के मोबाइल की पड़ताल की तो उस की लोकेशन गुजरात के अहमदाबाद की मिली. निहाल को दबोचने के लिए इतना काफी था. पुलिस ने गुजरात जा कर उसे पकड़ा तो उसने कोई हीलाहवाली न कर हकीकत बता दी. जिसे सुन पुलिस वाले हैरान रह गए कि राजेश कितना शातिर दिमाग अपराधी है.

क्राइम सीरियल देख बनाई योजना कहानी अब शीशे की तरह साफ थी कि राजेश ने क्राइम सीरियल देख कर योजना बना ली थी कि वह भी अपनी कदकाठी के किसी आदमी को ढूंढ कर उस की हत्या को आत्महत्या का रूप दे देगा.  इस बाबत उसने निहाल से बात की तो पहले तो निहाल साथ देने से मुकर गया लेकिन जैसे ही राजेश ने उसे एक लाख रुपए देने का लालच दिया तो वह तैयार हो गया.

ऐसा आदमी कहां मिल सकता है जिस की कद काठी राजेश जैसी हो और जिसे जल्द से जल्द आसानी से मारा जा सके. इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए इन दोनों को जहमत नहीं उठानी पड़ी. उन्होंने कहा कि ऐसा आदमी सिर्फ एक ही जगह मिल सकता है और वह है शराब का ठेका.

लिहाजा दोनों 28 जून को भोपाल के शराब ठेकों की खाक छानने निकल पड़े. कुछ ठेके घूमने के बाद आखिरकार उन्हें शिकार मिल ही गया. गोविंदपुरा के प्रभात पेट्रोल पंप की कलारी पर उन्हें ठीक वैसा ही आदमी शराब पीते दिख गया जैसा उन्हें चाहिए था.

शराब के अड्डे की एक खूबी यह होती है कि वहां किसी से जानपहचान करने के लिए किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं पड़ती. बस पास बैठ कर गला तर करना भर काफी होता है. राजेश और निहाल दोनों उस शख्स के पास जा कर शराब पीने लगे और देखते ही देखते शख्स से उन की गहरी दोस्ती हो गई, जिसे कुछ देर पहले तक वे जानते भी नहीं थे. तीनों ऐसे मिले जैसे फिल्मों में कुंभ के मेले में बिछड़े भाई मिलते हैं.

बातों ही बातों में पता चला कि उस शख्स का नाम राजू रैकवार है. बातों ही बातों में राजेश ने उसे क्रेशर पर नौकरी लगवाने का झांसा दिया तो वह झट तैयार हो गया जिस की वजह नशे में होने के साथ तगड़ी पगार का लालच भी था. शिकार ने दाना चुग लिया तो इन दोनों ने फौरन उसे हलाल करने का प्लान बना डाला. राजू उन के साथ नौकरी की बात करने साथ चल पड़ा.

राजेश और निहाल राजू को किसी कीमती सामान की तरह संभाल कर रातीबड़ स्थित घर ले आए. रास्ते में उन्होंने बाइक में एक हजार रुपए का पेट्रोल डलवाया और शराब भी और खरीद ली, जिस से राजू ज्यादा हाथ पांव न मार पाए.

सब कुछ योजना के मुताबिक हो रहा था. राजू की मौत में राजेश को अपनी जिंदगी और निहाल को एक लाख रुपए के रंगबिरंगे नोट दिख रहे थे. अपने अंजाम से बेखबर राजू को भी अच्छी पगार वाली नौकरी दिख रही थी.

दोनों ने घर पर राजू को छक कर शराब पिलाई. राजू भी अपनी मौत से बेपरवाह मुफ्त की दारू के लालच में आ गया. जब वह पी कर लुढ़क गया तो दोनों ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

हत्या के बाद राजेश ने सुसाइड नोट लिखा और फिल्मी स्टाइल में राजू को जला दिया. जलाने के लिए 10 लीटर से ज्यादा पैट्रोल का इस्तेमाल किया गया था. राजू को वे दोनों बेहोशी की हालत में पैट्रोल स्नान करवा चुके थे.

इस तरह राजू रैकवार, राजेश परमार बन कर मर गया. वारदात को अंजाम देने के बाद दोनों अपनेअपने रास्ते हो लिए. राजेश ने अपना मोबाइल फोन घर पर ही छोड़ दिया था जिस से पुलिस शक न करे. बातचीत करने के लिए निहाल ने उसे अपनी एक पुरानी सिम दे दी थी, खुद निहाल भी बतौर अहतियात अहमदाबाद चला गया.

धरी रह गई सारी होशियारी अब पुलिस के पास करने को यही रह गया था कि वह राजेश को गिरफ्तार कर ले. पूछताछ में निहाल ने बताया कि वह इटारसी होते हुए दक्षिण भारत भागा है. राजेश को पकड़ने के लिए पुलिस ने निहाल को ही मोहरा बनाया. निहाल ने राजेश को फोन किया तो पता चला कि वह इधर से उधर भाग रहा है.

इस पर पुलिस के निर्देश पर निहाल ने उस से कहा कि वह चेन्नई रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां उस का एक दोस्त रिसीव कर लेगा. राजेश की चालाकी धरी रह गई. उसे इल्म तक नहीं हुआ था कि निहाल पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है और अब उस की बारी है. अब तक वह नागपुर, बंगलुरु, चैलपट्टनम और वेल्लौर सहित चैन्नई तक भागता रहा था.

7 जुलाई को सुनील भदौरिया और एएसपी कर्मवीर सिंह चैन्नई पहुंच गए. कहीं राजेश उन्हें पहचान न ले इसलिए उन्होंने साउथ इंडियन गेटअप धारण कर लिया था. जब राजेश चैन्नई रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो कर्मवीर सिंह उस से निहाल का दोस्त बन कर मिले. जैसे ही वह उन की कार में बैठा चैन्नई क्राइम ब्रांच के कर्मचारियों की सहायता से राजेश को गिरफ्तार कर लिया गया.

इस तरह राजेश की कहानी बड़े दिलचस्प से तरीके से खत्म हुई जिस से उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ना क्योंकि आजीवन सजा तो वह अंकित की हत्या के आरोप में भुगत रहा था अब उस पर एक कत्ल का इलजाम और लग गया था. निहाल भी उस के साथ जेल में है और तय है दोनों अपनी साजिशी स्कीम की चूक पर झींक रहे होंगे जो जल्दबाजी में उन्होंने की थी.

राजू रैकवार के बारे में भी तुरंत पता चल गया कि उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट उस की पत्नी ने गोविंदपुरा थाने में लिखाई थी. राजू 26 जून, 2019 को अपनी पत्नी से मंदिर जाने की बात कह कर निकला था लेकिन सीधे मौत के मुंह में पहुंच गया था. गोविंदपुरा के जनता क्वार्टर्स में रहने वाले राजू के घर अब मातम पसरा है उस के पिता भैयालाल रैकवार को बेटे द्वारा हत्या किए जाने की बात पर यकीन नहीं हो पा रहा है.

राजू के घरवालों ने उन चप्पलों की पहचान की जो वह घटना वाले दिन पहन कर घर से निकला था. ये चप्पलें राजेश के घर के बाहर मिलीं लेकिन राजेश ने दूसरी बड़ी गलती राजू को गला दबा कर मारने की की थी, जिस के चलते उस पर शक गहराया और फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद यकीन में बदल गया.

अगर वह राजू को सीधे जला कर मारता और राजू की चप्पलें भी गायब कर देता तो शायद यह मौत राजेश परमार की ही मानी जाती, जो अंजू को दूर कहीं ले जा कर शादी कर लेता और सच का किसी को पता भी नहीं चलता. लेकिन यह बात बेवजह नहीं कही जाती कि अपराधी कितना भी शातिर और चालाक क्यों न हो, अपने पीछे कोई सुराग या सबूत छोड़ ही जाता है.     द्य

खून में डूबे कस्मे वादे : प्रेमी बना जान का दुश्मन

दोपहर के करीब 3 बजे थे. महाराष्ट्र के शहर अंबानगरी, जिसे लोग अब अमरावती के नाम से जानते हैं, की

सड़कों पर काफी भीड़ थी. सड़क किनारे गोपाल प्रभा मंगल कार्यालय है, उस के सामने जानामाना शाह कोचिंग सेंटर है, जिस की क्लास छूटी थी.

सेंटर से बाहर निकलने वाले छात्रछात्राओं की वजह से भीड़ और बढ़ गई थी. सड़क की चहलपहल से अलग साइड में खड़ा एक युवक बड़ी बेसब्री से क्लास से निकलते छात्रछात्राओं को देख रहा था.

ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी का इंतजार कर रहा हो. थोड़ी देर बाद उस का इंतजार खत्म हो गया. सारे छात्र और छात्राओं के निकलने के कुछ देर बाद 2 छात्राएं बाहर निकलीं और आपस में बातें करते हुए बस स्टौप की ओर जाने लगीं. साइड में खड़ा युवक उन के पीछे लग गया.

इस के पहले कि दोनों छात्राएं बस स्टौप तक पहुंच पातीं, युवक ने आगे आ कर उन का रास्ता रोक लिया. उस ने जिन छात्राओं का रास्ता रोका था, वह उन में से एक छात्रा से बात करना चाहता था. उन में एक छात्रा का नाम अर्पिता था और दूसरी का अपर्णा. दोनों लड़कियां फ्रैंड थीं.

अचानक इस तरह सामने आए युवक को देख कर अर्पिता के दिल की धड़कन बढ़ गई. डरीसहमी अर्पिता ने एक बार अपनी फ्रैंड अपर्णा की तरफ देखा. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर युवक की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘तुषार, तुम यहां?’’

‘‘गनीमत है, तुम ने मुझे पहचाना तो. मैं तो समझा था कि तुम मुझे भूल गई होगी. मैं यहां क्यों आया हूं, यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’ तुषार के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई.

‘‘बेकार की बातें छोड़ो और हट जाओ हमारे रास्ते से. हमारी बस निकल जाएगी.’’ अर्पिता ने रोष में कहा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहेंगी. यह बताओ कि तुम मेरे पास कब आओगी? मेरी इस बात का जवाब दिए बिना तुम यहां से नहीं जाओगी. तुम मुझ से कटीकटी क्यों रहती हो? तुम्हारे घर वाले मुझे तुम से नहीं मिलने देते. आखिर मेरी गलती क्या है, हम दोनों ने एकदूसरे से प्यार किया है, शादी की है.’’ तुषार ने अर्पिता को विनम्रता से समझाने की कोशिश की.

‘‘वह सब हमारी नादानी और बचपना था. अब उन बातों का कोई मतलब नहीं है. मैं सब भूल चुकी हूं, तुम भी भूल जाओ.’’ कह कर अर्पिता उस के बगल से हो कर निकलने लगी. लेकिन तुषार ने उसे निकलने नहीं दिया. वह उस के सामने अड़ कर खड़ा हो गया.

‘‘ऐसे कैसे भूल जाऊं, मैं तुम्हें प्यार करता हूं. तुम्हें अपनी पत्नी मानता हूं. भले ही हमारी शादी घर वालों की मरजी से न हुई हो लेकिन मंदिर में ही सही, हुई तो है. तुम मेरी पत्नी हो और पत्नी ही रहोगी.’’ तुषार ने अर्पिता से कड़े शब्दों में कहा.

‘‘देखो तुषार, तुम मेरी बातों को समझने की कोशिश करो. मैं अपना कैरियर देख रही हूं. तुम अपना कैरियर देखो, उसी में हमारी भलाई है. तुम मुझे अपने दिल से निकाल कर हकीकत की दुनिया में आ जाओ, यही दोनों के लिए अच्छा है.’’

अर्पिता की सहेली अपर्णा ने भी तुषार को समझाने की कोशिश की कि वह उसे भूल जाए. अर्पिता और अपर्णा की बातों से परेशान हो कर तुषार का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा.

‘‘तो क्या यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ तुषार ने अर्पिता की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘हां, यही मेरा आखिरी फैसला है. मैं अपने परिवार और समाज के खिलाफ नहीं जा सकती. मेरा परिवार जो कह रहा है, मुझे वही करना होगा.’’ अर्पिता ने कहा.

उस का स्पष्ट जवाब सुन कर तुषार आपा खो बैठा और उस ने कपड़ों के अंदर छिपा कर लाया चाकू बाहर निकाल लिया. उस के हाथों में चाकू देख कर अर्पिता और अपर्णा दोनों बुरी तरह घबरा गईं.

इस के पहले कि वे दोनों कुछ बोल पातीं, तुषार ने अर्पिता के पेट, सीने और गले पर लगभग 18 वार कर दिए. अपर्णा ने जब अपनी फ्रैंड अर्पिता की मदद करने की कोशिश की तो तुषार ने उसे भी बुरी तरह जख्मी कर दिया. तुषार के इस हमले से दोनों जमीन पर गिर पड़ीं और मदद के लिए चीखनेचिल्लाने लगीं.

अर्पिता और अपर्णा की चीखपुकार से आनेजाने वाले लोगों के कदम रुक गए. कुछ मिनटों तक तो किसी की समझ में नहीं आया कि माजरा क्या है. लोग मूक बने खून में डूबी लड़कियों को देखते रहे. जब समझ में आया तो लोग अर्पिता और अपर्णा की मदद के लिए आगे बढ़े. लोगों को अर्पिता और अपर्णा की मदद करते देख तुषार समझ गया कि अब उस का वहां रुकना ठीक नहीं है.

वह चाकू घटनास्थल पर फेंक कर भागने की कोशिश करने लगा. लेकिन उस के कारनामों से क्रोधित कुछ लोग उस के पीछे पड़ गए. वहां मौजूद कुछ लोगों ने आटो रोक कर अर्पिता और अपर्णा को स्थानीय अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने अर्पिता को मृत घोषित कर दिया और घायल अपर्णा के उपचार में जुट गए.

दूसरी तरफ तुषार का पीछा कर रहे लोगों ने उसे ईंटपत्थरों से घायल कर के दबोच लिया. उन्होंने उस की जम कर पिटाई की. गुस्साए लोग उसे छोड़ने को तैयार नहीं थे.

इस घटना की खबर थोड़ी दूरी पर स्थित राजापेठ पुलिस थाने की पुलिस को लगी तो वह तुरंत हरकत में आ गई. थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने सब से पहले लोगों की गिरफ्त में फंसे तुषार को अपनी कस्टडी में लिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी.

थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी ने अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल का निरीक्षण किया. घटनास्थल पर पड़े रक्तरंजित चाकू और रक्त सनी मिट्टी का नमूना ले कर उसे सील कर दिया गया. इस के बाद पुलिस ने वहां मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों के बयान लिए. वहां से वह सीधे अस्पताल चले गए.

यह घटना 9 जुलाई, 2019 की थी. कुछ ही मिनटों में दिल दहलाने वाली इस वारदात की खबर पूरे शहर में फैल गई. मामले की जानकारी पा कर अमरावती के सीपी संजय वाबीस्कर, डीसीपी जोन-2 शशिकांत सातव और एसीपी (राजापेठ) बलिराम डाखरे भी पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए.

अस्पताल पहुंच कर उन्होंने वहां के डाक्टरों से मिल कर बात की और मृत अर्पिता और घायल अपर्णा का सरसरी निगाह से निरीक्षण किया. फिर थानाप्रभारी किशोर सूर्यवंशी को जरूरी निर्देश दे कर लौट गए.

थानाप्रभारी ने अपनी टीम के साथ मृतका अर्पिता की फ्रैंड अपर्णा का विस्तृत बयान लिया. इस के बाद हत्या का केस नामजद दर्ज कर के अर्पिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया. पुलिस ने थाने लौट कर इस घटना की जानकारी अर्पिता और अपर्णा के घर वालों को दी. साथ ही केस की जांच की जिम्मेदारी इंसपेक्टर संभाजी पाटिल व दत्ता नखड़े को सौंप दी.

इस घटना की खबर मिलते ही अर्पिता के परिवार वाले रोतेपीटते राजापेठ पुलिस थाने पहुंचे. जांच अधिकारियों ने उन्हें सांत्वना दे कर उन से पूछताछ की. अर्पिता के घर वालों ने बताया कि तुषार उन की बेटी अर्पिता से एकतरफा प्यार करता था और उस पर शादी के लिए दबाव बनाता रहता था. वह सालों से उन की बेटी के पीछे पड़ा था.

उन्होंने बताया कि तुषार अर्पिता को अकसर छेड़ता और परेशान करता था. साथ ही धमकियां भी देता था. उस ने अर्पिता से शादी का एक फरजी वीडियो भी तैयार कर रखा था, जिसे वह सोशल मीडिया पर डालने की धमकी देता था.

दोनों के परिवारों की अपनीअपनी कहानी  उन लोगों ने इस की शिकायत वडनेरा पुलिस थाने में भी की थी. लेकिन पुलिस ने उस पर कोई काररवाई नहीं की. पुलिस ने उस से वह वीडियो डिलीट करवाया और माफीनामा ले कर छोड़ दिया था.

तुषार के परिवार वालों ने भी अर्पिता पर कुछ इसी तरह का आरोप लगाया था. उन के अनुसार अर्पिता ने तुषार से प्यार किया था, उसे सपना दिखाया था. यहां तक कि दोनों ने मंदिर में जा कर शादी भी कर ली थी. तुषार का कोई कसूर नहीं था. अर्पिता ने उसे अपने प्रेमजाल में फंसा कर धोखा दिया था, जिस से हताश हो कर उस ने इस तरह का कदम उठाया.

दोनों के घर वालों के बयानों में कितनी सच्चाई थी, इस का पता लगाने के लिए जांच अधिकारियों ने जब गहराई से जांच की तो असफल प्रेम कहानी सामने आई.

22 वर्षीय तुषार अमरावती जिले के तालुका भातकुली गांव मलकापुर का रहने वाला था. उस के पिता का नाम किरण मसकरे था. वह गांव के एक गरीब किसान थे. उन का और उन के परिवार का गुजारा गांव के संपन्न किसानों के खेतों में मेहनतमजदूरी कर के होता था.  परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण तुषार ने इंटरमीडिएट के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन थी.

सुंदर और महत्त्वाकांक्षी अर्पिता तुषार के पड़ोसी गांव कठवा वहान की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम दत्ता साहेब ठाकरे था. ठाकरे गांव के प्रतिष्ठित और संपन्न किसान थे. उन के परिवार में अर्पिता के अलावा उस की मां और एक बड़ा भाई था. अर्पिता पढ़ाई लिखाई में तो तेज थी ही, व्यवहारकुशल भी थी. तुषार मसकरे उस की खूबसूरती और व्यवहार का कायल था.

गांव में उच्चशिक्षा की व्यवस्था नहीं थी. अर्पिता दत्ता ठाकरे की लाडली बेटी थी. वह उसे उच्चशिक्षा दिलाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अर्पिता को पूरी आजादी दे रखी थी. लेकिन यह जरूरी नहीं कि आदमी जो सोचे वह हो ही जाए. दत्ता ठाकरे की भी यह चाहत पूरी नहीं हो सकी.

18 वर्षीय अर्पिता और तुषार की लव स्टोरी सन 2017 में तब शुरू हुई थी, जब दोनों ने गांव के हाईस्कूल से निकल कर तालुका के भातकुली केशरभाई लाहोटी इंटर कालेज में दाखिला लिया. दोनों एक ही क्लास में थे, दोनों के गांव भी आसपास थे. जल्दी ही दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं.

कालेज में कई युवकयुवतियों ने अर्पिता से दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाए, लेकिन अर्पिता ने उन्हें महत्त्व नहीं दिया. वह मन ही मन तुषार से प्रभावित थी. अर्पिता को जितना भी समय मिलता, तुषार के साथ बिताती थी. तुषार भी अर्पिता जैसी दोस्त पा कर खुश था.

कालेज आनेजाने के लिए अर्पिता के पास स्कूटी थी. तुषार का घर अर्पिता के रास्ते में पड़ता था, इसलिए वह तुषार को अकसर अपनी स्कूटी पर उस के घर तक छोड़ देती थी. इस के चलते दोनों कब एकदूसरे के करीब आ गए, उन्हें पता ही नहीं चला. पहले दोनों में दोस्ती हुई, फिर प्यार हो गया. इस बात का दोनों को तब पता चला जब उन के दिलों की बेचैनी बढ़ने लगी.

इंटरमीडिएट करतेकरते उन की चाहत इतनी बढ़ गई कि दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर लिया. इस के साथ ही दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. इतना ही नहीं, दोनों ने सालवर्डी जा कर एक मंदिर में विवाह भी कर लिया. इस विवाह का वीडियो भी बनाया गया था.

जब तक दोनों एक ही कालेज में पढ़ते रहे, उन के प्यार और शादी की किसी को भनक तक नहीं लगी. लेकिन जब अर्पिता ग्रैजुएशन के लिए दूसरे कालेज में गई और तुषार ने पढ़ाई छोड़ दी तो उन के बीच दूरी आ गई.

इसी बीच उन के प्यार और प्रेम विवाह की खबर उन के घर वालों के कानों तक भी पहुंच गई. अर्पिता के पिता ने बेटी के अच्छे भविष्य के लिए उस का दाखिला अमरावती के मधोल पेठ स्थित महात्मा फूले विश्वविद्यालय में करा दिया था. उस ने बीकौम फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया था.

दोनों के परिवार रह गए सन्न तुषार की पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह आगे की पढ़ाई कर पाता. आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वह गांव वालों के खेतों में किराए का ट्रैक्टर चला कर अपने परिवार की आर्थिक मदद करने लगा.

अर्पिता से दूरियां बढ़ जाने के कारण तुषार का एकएक दिन बेचैनी में गुजरता था. जल्दी ही उस का धैर्य जवाब देने लगा. जब उसे लगने लगा कि अब वह अर्पिता के बिना नहीं रह सकता तो वह फोन पर बात कर के या गांव आतेजाते अर्पिता पर दबाव बनाने लगा कि वह अपनी पढ़ाई छोड़ कर उस के पास आ जाए.

इस बात की खबर जब दोनों परिवारों तक पहुंची तो उन के होश उड़ गए. इस हकीकत जान कर तुषार के परिवार वाले सन्न रह गए तो अर्पिता के घर वालों के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बेटी के भविष्य के लिए वह उसे उच्चशिक्षा दिलाना चाहते हैं, वह ऐसा कर बैठेगी.

मामला काफी नाजुक था. फिर भी उन्होंने अर्पिता को आड़े हाथों लिया. उसे उस के भविष्य, मानसम्मान और समाज के बारे में काफी समझायाबुझाया. साथ ही तुषार से दूर रहने की सलाह भी दी.

अर्पिता ने जब अपने परिवार की बातों पर गहराई से सोचविचार किया तो उसे अपनी भूल पर पछतावा हुआ. तुषार के साथ वह उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नहीं कर सकती थी, न ही तुषार उस के काबिल था. सोचविचार कर अर्पिता ने तुषार से दूरी बना ली.

अर्पिता की दूरियां तुषार से बरदाश्त नहीं हुई. एक दिन वह बिना किसी डर के अर्पिता का हाथ मांगने उस के घर चला गया. उस ने उस के परिवार को धमकी देते हुए कहा कि अगर आप लोग अर्पिता का हाथ मेरे हाथ में नहीं देंगे तो वह उसे जबरन ले जाएगा. क्योंकि वह अर्पिता के साथ मंदिर में शादी कर चुका है. उस के पास शादी का वीडियो भी है. तुषार ने यह भी कहा कि अगर उस की बात नहीं मानी गई तो वह वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा.

बात मानसम्मान की थी. उस की इस धमकी से अर्पिता का परिवार काफी डर गया. बात उन की इज्जत की थी. उन्होंने इस की शिकायत पुलिस में कर दी. पुलिस की काररवाई से तुषार को बहुत गुस्सा आया. वह अर्पिता और उस के परिवार के प्रति रंजिश रखने लगा. उस ने अर्पिता को कई बार फोन किया लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया.

फलस्वरूप उसे अर्पिता से सख्त नफरत हो गई. अंतत: प्रेमाग्नि में जलते तुषार ने एक खतरनाक योजना बना ली. उस ने फैसला कर लिया कि अगर अर्पिता ने उस के मनमुताबिक उत्तर नहीं दिया तो वह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. अर्पिता उस की पत्नी है और उस की ही रहेगी.

अपनी योजना को फलीभूत करने के लिए तुषार अपने एक दोस्त से मिला और उस से एक तेजधार वाले लंबे फल के चाकू की मांग की. उस का कहना था कि गांव के आसपास उस के बहुत सारे दुश्मन हो गए हैं, जिन से वह डरता है. दोस्त ने उस की बातों पर विश्वास कर के उस के लिए चाइना मेड एक चाकू का बंदोबस्त कर दिया.

चाकू का इंतजाम हो जाने के बाद तुषार घटना के दिन सुबहसुबह मधोल पेठ पहुंच कर अर्पिता का इंतजार करने लगा. बाद में जब उसे मौका मिला तो उस ने अर्पिता और उस की फ्रेंड पर हमला बोल दिया. इस हमले में अर्पिता की जान चली गई और उस की फ्रैंड अपर्णा बुरी तरह घायल हुई. इस के पहले कि वह भाग पाता, लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.

इस घटना के कुछ घंटों बाद इस वारदात को ले कर पूरा अमरावती शहर एक हो गया. राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संगठन एकजुट हो कर पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.

वे अभियुक्त तुषार मसकरे को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग कर रहे थे. बहरहाल, तुषार मसकरे ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया था. पूछताछ के बाद उसे अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया. द्य

साजिश का शिकार प्रीती : क्या था हत्या का राज

न्यूआजाद नगर स्थित ग्रामसमाज की जमीन पर एक सफेद प्लास्टिक की बोरी पड़ी थी. कुत्तों का झुंड बोरी को नोचने में लगा था. तभी कुछ मजदूरों की नजर कुत्तों के झुंड पर पड़ी. ये मजदूर डूडा कालोनी के पास प्रधानमंत्री आवास योजना निर्माण के काम में लगे थे.

चूंकि हवा के झोंकों के साथ दुर्गंध भी आ रही थी, इसलिए उत्सुकतावश 2-3 मजदूर वहां पहुंचे. उन्होंने कुत्तों को भगा कर बोरी पर नजर डाली तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि बोरी के अंदर लाश है. मजदूरों ने बोरी में लाश होने की जानकारी अपने ठेकेदार को दी. उस ने यह जानकारी तुरंत धाना विधनू को दे दी.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह को लाश की सूचना मिली तो वह विचलित हो उठे. उन्होंने यह सूचना अपने अधिकारियों को दी और पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उस समय वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी.

अनुराग सिंह ने बोरी से लाश निकलवाई तो तेज झोंका आया. उन्होंने नाक पर रूमाल रख कर शव का निरीक्षण किया. शव किसी युवती का था, जिस के गले में काले रंग के दुपट्टे का फंदा था. संभवत: उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

मृतका क्रीम कलर की छींटदार कुरती और काली जींस पहने थी. उस के बाएं हाथ की कलाई में कलावा तथा दाएं हाथ पर टैटू बना था. एक हाथ में स्टील का कड़ा और दूसरे हाथ में काले रंग का कंगन था. उस की उम्र 30 साल के आसपास थी, रंग गोरा था.

शव से बदबू आने से ऐसा लग रहा था कि उस की हत्या 2 दिन पहले की गई थी. साथ ही यह भी कि हत्या कहीं और की गई थी और शव को बोरी में बंद कर यहां सुनसान जगह पर फेंका गया था.

अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह भी आ गए. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

साथ ही वहां मौजूद लोगों से शव के संबंध में पूछताछ की, लेकिन कोई भी शव की पहचान नहीं कर पाया. पुलिस ने शव के विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. यह 2 अगस्त, 2019 की बात है.

दूसरे दिन युवती के हुलिए सहित उस की लाश पाए जाने की खबर स्थानीय समाचार पत्रों में छपी तो श्यामनगर निवासी रिटायर्ड मेजर विद्याशंकर शर्मा का माथा ठनका. उन्होंने पूरी खबर विस्तार से पढ़ी, फिर पत्नी और बेटे मनीष को जानकारी दी.

पुलिस ने दर्ज नहीं की थी रिपोर्ट दरअसल, विद्याशंकर शर्मा की 30 वर्षीय विवाहित बेटी प्रीति शर्मा पिछले 2 दिन से घर वापस नहीं आई थी. उन्होंने श्यामनगर पुलिस चौकी जा कर गुमशुदगी दर्ज कराने का प्रयास किया था, लेकिन पुलिस ने उन्हें टरका दिया था. खबर पढ़ कर शर्माजी घबरा गए.

विद्याशंकर शर्मा ने अपने बेटे मनीष और अन्य घरवालों को साथ लिया और पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए. वहां जा कर उन्होंने विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह से बातचीत कर के अज्ञात युवती का शव दिखाने का अनुरोध किया.

अनुराग सिंह ने युवती का शव दिखाया तो विद्याशंकर शर्मा फफक पड़े, ‘‘सर, यह लाश मेरी बेटी प्रीति की है. मैं ने इसे हाथ में बंधे कलावा, कड़ा और टैटू से पहचाना है.’’

लाश की पहचान होते ही विद्याशंकर के घर में कोहराम मच गया. मनीष बहन की लाश देख कर रो पड़ा. उस की पत्नी कंचन भी सिसकने लगी. सब से ज्यादा बुरा हाल मनीष की मां मधु शर्मा का था. वह दहाड़ मार कर रो रही थीं. उन की बहू कंचन तथा परिवार की अन्य औरतें उन्हें धैर्य बंधा रही थीं.

लाश की शिनाख्त होने के बाद थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के पिता विद्याशंकर शर्मा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि 2 दिन पहले प्रीति को उस की सहेली वैदिका तथा उस का पति सत्येंद्र अपने घर ले गए थे. उस के बाद प्रीति वापस नहीं लौटी.

पुलिस ने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से पूछा तो दोनों बहाना बनाने लगे. पुलिस को संदेह हुआ कि कहीं प्रीति का सामान लूटने के लिए उस की हत्या वैदिका और उस के पति सत्येंद्र ने मिल कर तो नहीं की है. इस संदेह की वजह यह थी कि प्रीति जब घर से निकली थी, तब वह कई आभूषण पहने थी. पर्स, मोबाइल व एटीएम कार्ड उस के पास थे, जो लाश के पास नहीं मिले. पहने हुए आभूषण भी गायब थे.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के भाई मनीष शर्मा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि प्रीति की हत्या में उस की सहेली वैदिका और उस का पति सत्येंद्र ही शामिल हैं. इस के अलावा प्रशांत द्विवेदी नाम का युवक भी शामिल है. इन तीनों ने ही हत्या की योजना बनाई और प्रीति को मौत की नींद सुला दिया.

‘‘प्रशांत द्विवेदी कौन हैं?’’ सिंह ने पूछा.  ‘‘सर, प्रशांत द्विवेदी मेरी बहन का प्रेमी है. उस ने प्रीति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया था और शादी का झांसा दे कर उस का शारीरिक शोषण करता था. जब प्रीति ने शादी का दबाव बनाया तो उस ने प्रीति की सहेली वैदिका के साथ मिल कर उसे मार डाला.’’

‘‘तुम्हारी बहन प्रीति तो ब्याहता थी? वह प्रशांत के जाल में कैसे फंस गई?’’ अनुराग सिंह ने सवाल किया.  ‘‘सर, प्रीति का अपने पति से मनमुटाव था. कोर्ट में दोनों के तलाक का मुकदमा चल रहा है. पति से मनमुटाव के बाद वह मायके आ कर रहने लगी थी. पति की उपेक्षा से ऊबी प्रीति को प्रशांत का साथ मिला तो वह उस की ओर आकर्षित हो गई और उस के साथ शादी के सपने संजोने लगी. पर प्रशांत छलिया निकला, वह उस से शादी नहीं करना  चाहता था.’’

‘‘कहीं प्रीति की हत्या मुकदमे से छुटकारा पाने के लिए उस के पति ने ही तो नहीं कर दी?’’ सिंह ने शंका जाहिर की.

‘‘नहीं सर, प्रीति के ससुराल वाले हत्या जैसा जोखिम नहीं उठा सकते. प्रीति का पति पीयूष शर्मा एयरफोर्स में है और अंबाला में तैनात है. ससुर भुजराम शर्मा रोडवेज से रिटायर हैं. उन पर हमें भरोसा है.’’

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह को लगा कि प्रीति की हत्या या तो अवैध रिश्तों के चलते हुई या फिर प्रीति की सहेली वैदिका ने उस के साथ विश्वासघात किया है. उन्होंने वैदिका, उस के पति सत्येंद्र तथा प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर तीनों से अलगअलग पूछताछ की गई.

वैदिका ने बताया कि प्रीति उस की घनिष्ठ सहेली थी. स्वर्णजयंत विहार में उस का ब्यूटी पार्लर है, जहां प्रीति मेकअप कराने आती थी. जब पति से उस का मनमुटाव हुआ तो उस ने भी ब्यूटी पार्लर चलाने की इच्छा जाहिर की. तब मैं ने उस की मदद की. प्रीति का मेरे घर आनाजाना था.

वैदिका का संदिग्ध बयान  30 जुलाई को फोन कर उस ने मुझे अपने घर बुलाया था. उसे कुछ सामान खरीदना था सो वह मेरे साथ गई थी. सामान खरीदने के बाद वह वापस घर चली गई थी. उस के बाद क्या हुआ, उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे पता नहीं है.

वैदिका के पति सत्येंद्र ने बताया कि वह प्राइवेट नौकरी करता था. उस की नौकरी छूट गई है और वह बेरोजगार है. प्रीति, उस की पत्नी की सहेली थी. उस का घर में आनाजाना था. सो उस से अच्छा परिचय था. उस की हत्या किस ने और क्यों की, उसे नहीं पता. इसी बीच किसी का फोन आया तो अनुराग फोन पर बतियाने लगे.

थानाप्रभारी का ध्यान फोन पर केंद्रित हुआ तो वैदिका अपने पति से खुसरफुसर करने लगी. उस ने पति को जुबान बंद रखने का भी इशारा किया. अनुराग सिंह समझ गए कि वैदिका कुछ छिपा रही है और पति को भी ऐसा करने को मजबूर कर रही है. फिर भी उन्होंने वैदिका से कुछ नहीं कहा.

पूछताछ के बाद अनुराग सिंह ने दोनों को इस हिदायत के साथ घर जाने दिया कि जब भी उन्हें बुलाया जाए, थाने आ जाएं. शहर छोड़ कर भी कहीं न जाएं.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका प्रीति शर्मा के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह हैलट अस्पताल का कर्मचारी है. प्रीति से उस की मुलाकात 6 महीने पहले तब हुई थी, जब वह अपने भाई मनीष की 10 वर्षीय बेटी परी का इलाज कराने आई थी.

अस्पताल में दोनों की दोस्ती हुई और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई. वे दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन प्रीति का तलाक नहीं हुआ था. इसलिए उस ने प्रीति से कहा था कि तलाक होने के बाद शादी कर लेंगे. प्रशांत ने यह भी कहा कि उसे प्रीति का उस की सहेली वैदिका के घर जाना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि वैदिका और उस का पति सत्येंद्र प्रीति से किसी न किसी बहाने पैसे वसूलते रहते थे.

कभी वे तंगहाली का रोना रोते तो कभी मकान का किराया देने का. उसे शक है कि प्रीति की सहेली वैदिका ने ही उस के साथ घात किया है. उस के गहने और नकदी लूट कर उस की हत्या कर दी और शव सुनसान जगह पर फेंक दिया.

प्रशांत द्विवेदी के बयान से थानाप्रभारी अनुराग का शक वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर और भी गहरा गया. उन्हें लगा कि प्रीति शर्मा की हत्या का राज उन दोनों के ही पेट में छिपा है. उन्होंने प्रशांत को तो थाने से जाने दिया, लेकिन वैदिका पर नजरें गड़ा दीं. अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा तथा उस की सहेली वैदिका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

पता चला कि प्रीति और वैदिका की लगभग हर रोज बातें होती थीं. प्रीति की एक अन्य नंबर पर भी ज्यादा बातें होती थीं. उस नंबर को ट्रेस किया गया तो पता चला कि वह प्रीति के प्रेमी प्रशांत द्विवेदी का है.

30 जुलाई, 2019 को भी प्रीति शर्मा की फोन पर वैदिका से कई बार बात हुई थी. रात 8 बजे के बाद उस का फोन बंद हो गया था. इस का मतलब यह था कि हत्या के बाद उस के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अब तक की जांच से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत कराया. साथ ही प्रीति की सहेली वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र पर हत्या का शक भी जताया. मामला हत्या का था, इसलिए रवीना त्यागी ने दोनों को गिरफ्तार कर के पूछताछ करने का आदेश दिया.

आदेश मिलते ही अनुराग सिंह ने 5 अगस्त की सुबह स्वर्ण जयंती विहार स्थित वैदिका के किराए वाले मकान पर छापा मार कर वैदिका और उस के पति को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाना विधनू लाया गया. थाने आते समय दोनों के मुंह लटक गए थे. उन के चेहरों पर घबराहट और डर की परछाई साफ नजर आ रही थी.

अनुराग सिंह ने वैदिका और सत्येंद्र को अपने कक्ष में आमनेसामने बैठाया और कुछ देर उन के चेहरों के हावभाव पढ़ने की कोशिश करते रहे. उस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘सचसच बताओ, तुम दोनों ने प्रीति की हत्या क्यों और कैसे की?’’

‘‘सर, हम ने प्रीति की हत्या नहीं की. हम दोनों को फंसाया जा रहा है.’’

‘‘फिर झूठ, नरम व्यवहार का मतलब यह नहीं है कि तुम झूठ पर झूठ बोलते जाओ. हमें सच उगलवाना भी आता है.’’

कहते हुए उन्होंने महिला सिपाही ऊषा यादव तथा कांस्टेबल बलराम को बुला कर कहा, ‘‘इन दोनों को डार्क रूम में ले चलो. हम भी देखते हैं कि ये कब तक सच नहीं बोलते.’’

खुल गया हत्या का राज थानाप्रभारी अनुराग सिंह के तेवर देख कर वैदिका और सत्येंद्र डर गए. उन्हें लगा कि सच बोलने में ही भलाई है. अत: वे दोनों हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘सर, हमें माफ कर दो. हम से गलती हो गई. पैसों की तंगी के कारण प्रीति की हत्या हम दोनों ने ही की थी. हम अपना जुर्म कबूल करते हैं.’’

जुर्म कबूल करने के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति का मोबाइल, पर्स, ज्वैलरी आदि सामान बरामद करा दिया. पुलिस ने हत्या के बाद लाश फेंकने में इस्तेमाल की गई सत्येंद्र की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

अनुराग सिंह ने प्रीति शर्मा की हत्या का राज खोलने और उस का सामान बरामद करने की जानकारी एसपी (साउथ) रवीना त्यागी तथा सीओ शैलेंद्र सिंह को दे दी. पुलिस अधिकारी थाना विधनू आ गए. उन्होंने वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र से प्रीति की हत्या के संबंध में विस्तृत जानकारी हासिल की. फिर प्रैसवार्ता कर हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

कातिलों ने हत्या का जुर्म कबूल कर के सामान भी बरामद करा दिया था. थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने मृतका के पिता विद्याशंकर शर्मा को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत वैदिका तथा उस के पति सत्येंद्र के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में सहेली द्वारा सहेली के साथ विश्वासघात करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

कानपुर महानगर के थाना चकेरी क्षेत्र में एक मोहल्ला है श्यामनगर. इसी मोहल्ले के ई ब्लौक में विद्याशंकर शर्मा अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मधु शर्मा के अलावा एक बेटा मनीष तथा बेटी प्रीति थी. विद्याशंकर शर्मा सेना के मेजर पद से रिटायर हुए थे. विद्याशंकर का परिवार संपन्न था और वह इज्जतदार व्यक्ति थे.

विद्याशंकर शर्मा खुद पढ़ेलिखे व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे मनीष और बेटी प्रीति को भी खूब पढ़ायालिखाया था. मनीष पढ़लिख कर जब काम पर लग गया तो उन्होंने उस का विवाह कंचन नाम की खूबसूरत युवती के साथ कर दिया.

कंचन पढ़ीलिखी तथा मृदुभाषी थी. ससुराल में आते ही उस ने सभी का दिल जीत लिया था. शादी के एक साल बाद कंचन ने बेटी परी को जन्म दिया.

प्रीति मनीष से छोटी थी. वह दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ाई में भी उतनी ही तेज थी. खालसा गर्ल्स कालेज से उस ने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बीए की डिग्री बृहस्पति महाविद्यालय, किदवईनगर से हासिल की थी. यही नहीं, स्वरोजगार के लिए उस ने ब्यूटीशियन का पूरा कोर्स भी कर रखा था. प्रीति को बनसंवर कर रहना तथा स्वच्छंद घूमना पसंद था.

प्रीति जवान हुई तो विद्याशंकर शर्मा को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. वह प्रीति का विवाह धूमधाम से किसी ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो पढ़ालिखा हो और सरकारी नौकरी में हो.

हालांकि प्रीति का हाथ मांगने के लिए कई रिश्तेदारों ने कोशिश की, लेकिन विद्याशंकर ने उन्हें मना कर दिया था. कारण यह कि उन के लड़के या तो व्यापारी थे या फिर प्राइवेट कंपनी में काम करते थे. काफी दौड़धूप के बाद विद्याशंकर शर्मा को एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था पीयूष.

पीयूष के पिता भुजराम शर्मा चकेरी थाना क्षेत्र में आने वाले मोहल्ला कोयलानगर में रहते थे. वह रोडवेज से रिटायर हुए थे. कोयलानगर में उन का अपना आलीशान मकान था, जिस में वह परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पत्नी सुधा शर्मा के अलावा एक ही बेटा था पीयूष. पीयूष पढ़ालिखा युवक था. उस का चयन वायुसेना में हो गया था. ट्रेनिंग के बाद वह अंबाला में कार्यरत था.

विद्याशंकर शर्मा ने पीयूष को देखा तो वह उन्हें अपनी बेटी प्रीति के योग्य लगा. लेनदेन की बात तय होने के बाद दोनों परिवारों में सहमति बनी कि शादी तब तय मानी जाएगी, जब प्रीति और पीयूष एकदूसरे को पसंद कर शादी को राजी हो जाएंगे. नियत तिथि पर पीयूष और प्रीति ने एकदूसरे को देखा, आपस में बातचीत की. अंतत: दोनों शादी को राजी हो गए. उस के बाद 20 फरवरी, 2015 को प्रीति का विवाह पीयूष शर्मा के साथ धूमधाम से हो गया.

विद्याशंकर शर्मा ने शादी में काफी खर्च किया था. उन्होंने बेटी को आभूषणों के अलावा उस के ससुराल पक्ष को वह हर सामान दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी. शर्माजी ने हंसीखुशी से लाल जोड़े में लिपटी अपनी लाडली बेटी को विदा किया.

सास की वजह से मतभेद बढ़े पतिपत्नी में प्रीति शर्मा खूबसूरत थी. ससुराल में उसे जिस ने भी देखा, उसी ने उस के रूपसौंदर्य की तारीफ की. पीयूष भी पढ़ीलिखी और खूबसूरत पत्नी पा कर खुश था. मुंहदिखाई रस्म के दौरान जब परिवार की महिलाएं प्रीति का घूंघट उठा कर देखतीं और उस के रूपसौंदर्य की तारीफ करतीं तो सास सुधा शर्मा का सीना गर्व से तन जाता. प्रीति भी ससुराल वालों के व्यवहार से खुश थी. उसे खुशी इस बात की भी थी कि उस का पति स्मार्ट और सभ्य है.

जब गौने के बाद प्रीति ससुराल आई तो उसे सास का व्यवहार थोड़ा तल्ख लगा. सुधा शर्मा ने घर का सारा काम प्रीति को सौंप दिया. काम करने के बावजूद उसे सास की डांट सहनी पड़ती थी. कभी वह दाल में कम नमक को ले कर डांटती तो कभी साफसफाई को ले कर. कभीकभी दहेज कम देने को ले कर भी ताना मारतीं.

सास के तानों से प्रीति का दिल छलनी होने लगा. वह मानसिक प्रताड़ना से परेशान रहने लगी. पति उस से कोसों दूर था, वह अपनी पीड़ा कहती भी तो किस से. एक रोज उस की मां का फोन आया तो प्रीति के सब्र का बांध टूट गया. उस ने फोन पर ही सारी पीड़ा मां को बताई और फूटफूट कर रोने लगी. मां ने उसे धैर्य बंधाया और उस की सास को समझाने का भरोसा दिया.

मधु शर्मा ने प्रीति की प्रताड़ना को ले कर उस की सास से शिकायत की तो वह गुस्से में बोली, ‘‘तुम्हारी बेटी इतनी नाजुक और कोमल है तो घर के काम के लिए नौकरचाकर लगवा दो या फिर इसे अपने घर बुला लो. मुझे कामचोर बहू की जरूरत नहीं है.’’

शिकायत के बाद सास का जुल्म और बढ़ गया. अब वह प्रीति के खानेपीने, उठनेबैठने और सजनेसंवरने पर भी सवाल खड़े करने लगी.

लगभग 3 महीने बाद पीयूष जब छुट्टी पर घर आया तो मां ने प्रीति के खिलाफ उस के कान भरे. इस पर पीयूष का व्यवहार भी प्रीति के प्रति कठोर हो गया. उस ने प्रीति से साफ कह दिया कि उसे घर का काम करना पड़ेगा. मां जो कहेगी, उसे बरदाश्त करना होगा. साथ ही मर्यादा में रहना पड़ेगा. मां से बगावत वह बरदाश्त नहीं करेगा.

पति की बात सुन कर प्रीति अवाक रह गई. वह जान गई कि पीयूष मातृभक्त है. उसे पत्नी की कोई चिंता नहीं है. घर में तनाव को ले कर पीयूष और प्रीति के बीच दरार पड़ गई. पीयूष को जहां अपनी सरकारी नौकरी का घमंड था, वहीं प्रीति को भी अपनी खूबसूरती का अहंकार था. इस अहंकार और घमंड ने प्रीति और पीयूष के जीवन को गर्त में धकेल दिया.

इधर पीयूष का साथ मिला तो सास सुधा प्रीति पर और जुल्म करने लगी. अब वह सीधे तौर पर दहेज के रूप में रुपयों की मांग करती. प्रीति रुपया लाने को राजी नहीं होती तो वह उसे प्रताडि़त करती.

प्रीति आखिर कब तक जुल्म सहती, एक साल बीततेबीतते वह ससुराल में इतनी ज्यादा परेशान हो गई कि उस ने ससुराल छोड़ दी और मायके में आ कर रहने लगी. कुछ महीने बाद पीयूष उसे लेने आया तो प्रीति ने उस के साथ जाने से साफ मना कर दिया.

मायके में प्रीति कुछ समय तक असामान्य और गुमसुम रही. लेकिन जब मांबाप ने उसे समझाया और दहेज उत्पीड़न जैसी बुराई से लड़ने की हौसलाअफजाई की तो उस ने भी लड़ने की ठान ली. उस ने पिता और भाई के सहयोग से पति पीयूष, ससुर भुजराम शर्मा तथा सास सुधा शर्मा के विरुद्ध थाना चकेरी में दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही तलाक का मुकदमा भी कायम करा दिया.

मुकदमा करने के बाद प्रीति ने थाना चकेरी पुलिस पर दबाव बनाया कि वह आरोपियों को जल्द बंदी बनाए.

उधर पीयूष और उस के मातापिता को प्रीति द्वारा दहेज उत्पीड़न का मुकदमा कायम कराने की जानकारी हुई, तो वे घबरा गए. गिरफ्तारी से बचने के लिए भुजराम शर्मा मकान में ताला लगा कर अंडरग्राउंड हो गए. पीयूष वायुसेना में था, गिरफ्तार होने पर उस की नौकरी खतरे में पड़ सकती थी.

दौड़धूप कर के पीयूष ने गिरफ्तारी के विरुद्ध हाइकोर्ट से स्टे ले लिया. स्टे मिलने के बाद पीयूष ने ससुराल वालों से समझौते की पहल की. प्रीति शर्मा पहले तो तैयार नहीं हुई, लेकिन मांबाप के समझाने पर तैयार हो गई. उस ने समझौते के लिए 10 लाख रुपए की मांग रखी, जो उस के मांबाप ने शादी में खर्च किए थे.

पीयूष दहेज उत्पीड़न का मुकदमा खत्म करने तथा तलाक मिलने पर 10 लाख रुपए देने को राजी हो गया. उस ने 5 लाख रुपए प्रीति को कोर्ट के माध्यम से दे दिए और बाकी रुपए तलाक मिलने के बाद देने का वादा किया.

प्रीति ने खोला ब्यूटी पार्लर प्रीति की एक घनिष्ठ सहेली थी वैदिका. वह अपने पति सत्येंद्र के साथ स्वर्ण जयंती विहार में रहती थी. यह क्षेत्र थाना विधनू के अंतर्गत आता है. वैदिका किराए पर सुलभ पांडेय के मकान में रहती थी. मकान के बाहरी भाग में उस ने ब्यूटी पार्लर खोल रखा था. प्रीति सजनेसंवरने उस के पार्लर में जाती थी.

आतेजाते दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. वैदिका का पति सत्येंद्र मूलरूप से बिल्हौर थाने के कल्वामऊ गांव का रहने वाला था. बेहतर जिंदगी की उम्मीद से वह कानपुर शहर आया था. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था, जबकि वैदिका ब्यूटी पार्लर चलाने लगी थी.

प्रीति ने भी ब्यूटीशियन का कोर्स कर रखा था, अत: सहेली के घर आतेजाते उस ने वैदिका से ब्यूटी पार्लर खोलने की इच्छा जाहिर की. वैदिका ने भरपूर मदद का आश्वासन दिया तो प्रीति ने श्याम नगर में अपने घर से कुछ दूरी पर एक दुकान किराए पर ले ली. फिर वैदिका की मदद से दुकान को सजा कर ब्यूटी पार्लर चलाने लगी.

चूंकि प्रीति व्यवहारकुशल, हंसमुख और सुंदर थी, इसलिए कुछ ही माह बाद उस का ब्यूटी पार्लर अच्छी तरह चलने लगा. उस के यहां महिलाओं, लड़कियों की भीड़ उमड़ने लगी. उसे अच्छी आमदनी होने लगी थी. प्रीति सहेली वैदिका की भी आर्थिक मदद करने लगी.

प्रीति की अपनी भाभी कंचन से खूब पटती थी. कंचन की बेटी का नाम परी था. परी अपनी बुआ प्रीति से खूब हिलीमिली थी. प्रीति भी परी को खूब प्यार करती थी. जनवरी 2019 में परी एक दिन अकस्मात बीमार पड़ गई. मनीष ने उसे हैलट अस्पताल के न्यूरो साइंस वार्ड में इलाज हेतु भरती कराया. चूंकि परी प्रीति से बहुत प्यार करती थी, इसलिए उस ने परी की देखभाल के लिए हैलट अस्पताल में डेरा जमा लिया.

हैलट अस्पताल में ही प्रीति की मुलाकात प्रशांत द्विवेदी से हुई. प्रशांत द्विवेदी न्यूरो साइंस डिपार्टमेंट का कर्मचारी था. परी की देखभाल के लिए उस का आनाजाना लगा रहता था.

प्रशांत के पिता पुलिस विभाग में हैडकांस्टेबल थे और औरेया जिले के फफूंद थाने में तैनात थे. प्रशांत ने खूबसूरत प्रीति को देखा तो वह उस के दिल में रचबस गई. परी की देखभाल के बहाने प्रशांत प्रीति से नजदीकियां बढ़ाने लगा. वह शरीर से हृष्टपुष्ट व दिखने में स्मार्ट था. प्रीति को भी उस की नजदीकी और लच्छेदार बातें अच्छी लगने लगीं. उस के दिल में प्रशांत के प्रति प्यार उमड़ने लगा.

एक दिन प्रशांत ने मौका देख कर प्रीति का हाथ थाम लिया और बोला, ‘‘प्रीति मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. यदि मुझे तुम्हारा साथ मिल जाए तो मेरा जीवन सुधर जाएगा. तुम्हारे बिना अब मैं खुद को अधूरा समझने लगा हूं. बोलो दोगी मेरा साथ?’’

प्रीति अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, प्यार तो मैं भी तुम्हें करने लगी हूं. लेकिन तुम्हें पता नहीं है कि मैं शादीशुदा हूं. कोर्ट में पति से मेरा तलाक का मामला चल रहा है.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बीते कल से कोई मतलब नहीं. रही बात तलाक की तो आज नहीं तो कल निपट ही जाएगा. मैं बस तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे डर लग रहा है प्रशांत, कहीं तुम ने धोखा दे दिया तो?’’ प्रीति ने आशंका जताई.

‘‘कैसी बातें कर रही हो प्रीति, मैं तुम्हारा साथ जीवन भर निभाऊंगा.’’ प्रशांत ने वादा किया.

इस के बाद प्रीति और प्रशांत का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों साथ घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने लगे. उन के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. देह संबंध भी बन गए. प्रीति ने अपने और प्रशांत के बारे में अपनी सहेली को भी बता दिया था. प्रशांत और प्रीति, वैदिका के घर मिलने लगे थे.

जब कभी उन का मिलन नहीं हो पाता था, तब दोनों मोबाइल फोन पर बतिया कर अपने दिल की बात एकदूसरे को बता देते थे. प्रीति के भाई को दोनों के प्रेमिल संबंधों का पता चल गया था, लेकिन वह कभी इस का विरोध नहीं करता था.

एक दिन प्रीति ने प्रशांत के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने टाल दिया. शादी को ले कर दोनों में विवाद भी हुआ. लेकिन प्रशांत ने यह कह कर प्रीति को शांत कर दिया कि हम तलाक के बाद तुरंत शादी कर लेंगे. क्योंकि तलाक के पहले शादी करने से तुम मुसीबत में फंस सकती हो. प्रीति को यह बात समझ में आ गई और उस ने शादी की रट छोड़ दी.

इधर प्रीति प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर रही थी, जबकि उस की सहेली वैदिका की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी. दरअसल, वैदिका के पति सत्येंद्र की नौकरी छूट गई थी और उस का पार्लर भी बंद हो गया था.

उस के ऊपर कई महीने का मकान का किराया बकाया था. अन्य लोगों से लिया कर्ज भी बढ़ गया था. ऊपर से प्रीति ने भी मदद देनी बंद कर दी थी. ऐसे में उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह कर्ज कैसे चुकाए या फिर मकान का किराया कैसे भरे.

एक दिन प्रीति वैदिका के घर आई तो उस की नजर प्रीति के शरीर के आभूषणों पर पड़ी, जो लगभग 2 लाख के थे. आभूषण देख कर वैदिका ने पति सत्येंद्र के साथ मिल कर सहेली प्रीति से घात करने की योजना बनाई. इस के बाद वह समय का इंतजार करने लगी.

30 जुलाई, 2019 को वैदिका अपने पति सत्येंद्र के साथ प्रीति के घर पहुंची. उस ने बताया कि वह ब्यूटी पार्लर का सामान बेच रही है, चल कर देख लो और जो तुम्हारे मतलब का हो उसे खरीद लो.

प्रीति सहेली की चाल समझ नहीं पाई और उस के साथ उस के घर पर आ गई. घर पर वैदिका ने उस का खूब आदरसत्कार किया. प्रीति जाने लगी तो उस ने यह कह कर रोक लिया कि खाना खा कर जाना. वैदिका ने शाम को खाना बनाया फिर रात 8 बजे तीनों ने बैठ कर खाना खाया.

खाना खाने के बाद प्रीति पलंग पर लेट गई. तभी वैदिका और सत्येंद्र ने प्रीति को दबोच लिया. वह चिल्लाने लगी तो सत्येंद्र ने उस के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया और वैदिका ने प्रीति के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

प्रीति की हत्या के बाद वैदिका और सत्येंद्र ने मिल कर प्रीति के गले की सोने की चैन, 2 अंगूठी, सोने का कड़ा, कान की बाली और नाक की लौंग उतार ली. इतना ही नहीं, वैदिका ने प्रीति के पर्स से नकद रुपया, मोबाइल तथा एटीएम कार्ड भी निकाल लिया.

इस के बाद दोनों ने मिल कर प्रीति के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और मोटरसाइकिल पर रख कर न्यू आजाद नगर की ग्रामसमाज की खाली पड़ी जमीन पर फेंक आए. आभूषणों और नकदी को सुरक्षित कर के उन्होंने मोबाइल व पर्स को घर में छिपा दिया.

इधर जब प्रीति देर रात तक नहीं लौटी तो विद्याशंकर शर्मा को चिंता हुई. उन्होंने वैदिका से पूछा तो उस ने बता दिया कि प्रीति सामान ले कर वापस घर चली गई थी. जब 2 दिन तक प्रीति का कुछ पता नहीं चला तो विद्याशंकर गुमशुदगी दर्ज कराने श्यामनगर चौकी गए पर पुलिस ने उन्हें टरका दिया.

उधर 2 अगस्त, 2019 को कुछ मजदूरों ने एक प्लास्टिक बोरी में लाश देखी, जिसे कुत्ते नोच रहे थे. मजदूरों ने ठेकेदार को बताया. तब ठेकेदार ने लाश की सूचना थाना विधनू की पुलिस को दी. विधनू थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने केस की जांच की तो सारे भेद खुल गए.

6 अगस्त, 2019 को थाना विधनू पुलिस ने अभियुक्त सत्येंद्र तथा वैदिका को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. मामले की विवेचना थानाप्रभारी कर रहे हैं.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहलवान का वार : अनजान लड़की बनी मौत का कारण

11अगस्त, 2019 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बसंतपुर तिगेला

गांव के लोग खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्हें गांव के कच्चे रोड पर किसी व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी दिखी. किसी ने इस की सूचना फोन द्वारा चंदला थाने को दे दी.

सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना मिलते ही टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो कच्ची सड़क पर एक आदमी का खून से लथपथ शव पड़ा था. इस की सूचना टीआई ने एसपी (छतरपुर) तिलक सिंह को दे दी. टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह ने लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर गोलियों के घाव दिखे. मृतक की उम्र 40-45 साल के बीच रही होगी.

चूंकि वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका, इसलिए लगा कि उसे कहीं दूसरी जगह से ला कर यहां मारा गया था. पहनावे से वह मुसलमान लग रहा था. पुलिस ने इस की पुष्टि के लिए उस के कपड़े हटा कर देखे तो साफ हो गया कि मृतक मुसलिम ही है.

तलाशी लेने पर मृतक की जेब में एक मोबाइल फोन मिला. उस मोबाइल की काल हिस्ट्री देखी गई तो पता चला कि 10 अगस्त को उस ने एक नंबर पर आखिरी बार बात की थी. जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, टीआई वीरेंद्र सिंह ने उस नंबर पर बात की.

वह नंबर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के बसेला गांव में रहने वाले ताहिर खान का निकला. ताहिर खान ने टीआई को बताया कि यह नंबर उस के पिता आशिक अली का है, जो इन दिनोें पन्ना जिले के धरमपुर में रहते हैं.

यह जानने के बाद टीआई सिंह ने बरामद शव का फोटो खींच कर ताहिर के वाट्सऐप पर भेजा. फोटो देखते ही ताहिर ने शव की पहचान अपने पिता आशिक अली के रूप में कर दी. टीआई ने ताहिर को चंदला थाने पहुंचने को कहा और जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

अगले दिन ताहिर अपने रिश्तेदारों के साथ मध्य प्रदेश के चंदला थाने पहुंच गया. पुलिस ने मोर्चरी में रखी लाश ताहिर और उस के घर वालों को दिखाई तो वे सभी लाश देखते ही रोने लगे. उन्होंने उस की शिनाख्त आशिक अली के रूप में की.

इस के बाद टीआई ने ताहिर खान से उस के पिता और परिवार के बारे में विस्तार से बात की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं.

पता चला कि मरने वाला आशिक अली दूध का धुला नहीं था. वह हमीरपुर का तड़ीपार बदमाश था, जो जिलाबदर होने के बाद पन्ना जिले के धरमपुर कस्बे में आ कर रहने लगा था. कहावत है कि चोर चोरी करना भले ही छोड़ दे लेकिन हेराफेरी से बाज नहीं आता.

साफ था कि आशिक अली ने धरमपुर आ कर अपने पुराने कामों से पूरी तरह संन्यास नहीं लिया होगा, धरमपुर में भी उस की कुछ तो आपराधिक गतिविधियां जरूर रही होंगी. इसलिए एसपी छतरपुर को मृतक के संबंध में पूरी जानकारी देने के बाद उन के निर्देश पर टीआई वीरेंद्र सिंह मामले की जांच करने के लिए पुलिस टीम ले कर धरमपुर पहुंच गए.

धरमपुर पन्ना जिले का छोटा सा मुसलिम बाहुल्य कस्बा है. कुछ समय पहले वीरेंद्र सिंह इस जिले में तैनात रह चुके थे, इसलिए उन्हें उस क्षेत्र की अच्छी जानकारी थी. धरमपुर पहुंच कर उन्होंने अपने तरीके से आशिक अली के बारे में जानकारी जुटाई तो जल्दी ही उस की पूरी जन्मकुंडली उन के सामने आ गई.

हमीरपुर से जिलाबदर कर दिए जाने के बाद अपने समाज के लोगों की बहुतायत देख कर आशिक अली धरमपुर आ कर बस गया था, जहां उसी के समाज के कुछ लोगों ने उस की मदद की.

दोनों बदमाशों की मिली कुंडली वहां पैर जमने के बाद आशिक अली ठेके और बंटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करने लगा. उस ने कुछ घोड़े भी पाल लिए थे, जिन का उपयोग वह शादीविवाह में करता था. फिर वह घोड़ों की खरीदबिक्री का काम भी करने लगा था. यहां आ कर वह सीधे तौर पर तो किसी अपराध से नहीं जुड़ा था, लेकिन पुराना अपराधी होने की ठसक उस के अंदर से पूरी तरह से गई नहीं थी. जिले के अलावा आसपास के दूसरे कई बदमाशों से उस की दोस्ती हो गई थी.

लोगों ने बताया कि लगभग 3-4 महीने से आशिक अली ने अपने घर पर छतरपुर जिले के लवकुश नगर निवासी बफाती पहलवान को पनाह दी हुई थी. दोनों की कुंडली मिलने का बड़ा कारण यह था कि बफाती भी आशिक अली की तरह छतरपुर का जिलाबदर बदमाश था. इसलिए बफाती के आ जाने के बाद दोनों मिल कर बदमाशी के क्षेत्र में उठापटक करने लगे थे.

बफाती अपने साथ लगभग 14 साल की निहायत ही खूबसूरत लड़की सलमा खातून को ले कर आया था. पहले तो लोगों का अनुमान यही था कि सलमा खातून बफाती की बेटी होगी, लेकिन ऐसा नहीं था. सलमा बफाती की बेटी की उम्र की थी. वह सलमा को भगा कर लाया था. यह बात वहां के लोगों को अच्छी नहीं लगी, पर बफाती का विरोध करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. अलबत्ता कुछ लोगों ने आशिक अली से जरूर इस बारे में समाज की नापसंद जाहिर कर दी.

इतनी जानकारी टीआई वीरेंद्र सिंह को यह समझने के लिए काफी थी कि आशिक की हत्या की कहानी इसी प्रेम कहानी में कहीं छिपी हो सकती है. लेकिन इस के लिए यह जानना जरूरी था कि बफाती के साथ आई किशोर उम्र की सलमा खातून आखिर कौन थी और वह बफाती के हाथ कैसे लगी. इस बारे में जानकारी जुटाने पर पता चला कि आशिक, बफाती और सलमा खातून के गांव से एक साथ गायब होने से कुछ दिन पहले महोबा थाने का एक सिपाही सलमा खातून के बारे में पूछताछ करता हुआ धरमपुर आया था.

इस पर टीआई वीरेंद्र सिंह ने महोबा पुलिस से संपर्क किया, जिस में पता चला कि छतरपुर से जिलाबदर होने के बाद बफाती महोबा की कांशीराम कालोनी में बिच्छू पहाड़ी के पास किराए के मकान में रह रहा था.

सलमा खातून उस के पड़ोसी परिवार की बेटी थी. बफाती ने सलमा खातून को अपने जाल में फांस लिया था, जिस के बाद जून महीने में वह उसे महोबा से ले कर लापता होने के बाद धरमपुर में आशिक अली के साथ रह रहा था.

टीआई सिंह ने सलमा खातून की मां मुबीन और पिता मकबूल हुसैन से भी पूछताछ की, जिस में उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले एक अज्ञात आदमी ने उन्हें फोन कर हमारी बेटी के धरमपुर में होने की खबर दी थी. यह जानकारी हम ने महोबा पुलिस को दे दी थी.

कहीं वह अज्ञात व्यक्ति आशिक अली ही तो नहीं था, जिस ने सलमा के मातापिता को खबर दी थी? क्योंकि बफाती और सलमा को ले कर गांव के लोग आशिक अली से अपना विरोध जता चुके थे.

अब पुलिस को बफाती पर शक होने लगा. गांव के कुछ लोगों ने बताया कि घटना वाले दिन 11 अगस्त को सुबह 4-5 बजे बफाती, आशिक और सलमा एक ही बाइक से कहीं जाते हुए देखे गए थे. इस से बफाती पर शक और गहरा गया. टीआई वीरेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ बफाती की तलाश में जुट गए.

इस के लिए उन्होंने बफाती के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि आशिक अली की लाश मिलने के बाद बफाती ने अपने नंबर से सलमा खातून की मां और उस के बाप को फोन किया था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था. टीआई ने इन दोनों से पूछताछ की, जिस में उन्होंने चौंका देने वाली बात बताई.

सलमा खातून की मां मुबीन और बाप मकबूल हुसैन ने बताया कि उन्हें बफाती ने फोन पर बताया था कि आशिक अली ने हमारी मुखबिरी कर के अपनी मौत को बुलावा दिया है. इसलिए मैं ने उस का कत्ल कर दिया है. अब तुम भी अपनी बेटी सलमा को भूल जाओ वरना तुम्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा.

बफाती छंटा हुआ पुराना बदमाश था. पुलिस से बचने के लिए उस ने अपना मोबाइल बंद कर रखा था, इसलिए टीआई उस तक पहुंचने के दूसरे रास्तों की निगरानी करने लगे. जिस के चलते पुलिस को जल्द ही बफाती द्वारा एटीएम से पैसे निकालने की जानकारी मिली. यह छोटा सा सुराग बड़ी सफलता का साधन बन सकता था.

पुलिस को पता कि बफाती ने जिस एटीएम से पैसे निकाले हैं, वह पन्ना जिले में छानी गांव के पास है. टीम छानी पहुंच गई. वहां के लोगों को पुलिस ने बफाती का फोटो दिखा कर पूछताछ की तो वहां के एक दुकानदार ने बताया कि यह आदमी कुछ दिन पहले उस की दुकान पर आया था. लोगों से उस की मोटरसाइकिल का नंबर भी मिल गया. आरटीओ से जानकारी ली गई तो पता चल गया कि मोटरसाइकिल बफाती खान के नाम से रजिस्टर्ड है.

पुलिस को देख कर डरा नहीं बफाती बफाती छानी में था, इसलिए टीआई वीरेंद्र सिंह भी वहां पहुंच गए. जिस के बाद एकएक कदम बढ़ाते हुए वह गांव के बाहर खेत में बने अल्ताफ के टपरे तक जा पहुंचे, जहां एक कोने में बफाती बेसुध सो रहा था. आहट होने पर उस की आंखें खुल गईं.

अपने सामने पुलिस देख वह चौंका तो लेकिन डरा नहीं. उस ने पास में छिपा कर रखा हथियार निकालने की कोशिश की तो टीआई ने उसे कब्जे में ले लिया. सलमा भी यहीं थी. पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. बफाती की तलाशी ली गई तो उस के पास 315 बोर का देशी कट्टा और 6 जिंदा कारतूस बरामद हुए. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने ले आई.

थाने ला कर टीआई वीरेंद्र सिंह ने बफाती से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने आशिक की हत्या करने की बात कबूल कर ली. बफाती ने यह भी बताया कि आशिक अली ने सलमा के मामले में उस की मुखबिरी सलमा के मातापिता से की थी. इसी वजह से उस ने उस का कत्ल कर दिया. बफाती के एक नामी पहलवान से कातिल बनने की कहानी इस प्रकार सामने आई.

बफाती मूलरूप से छतरपुर जिले के लवकुश नगर कस्बे का रहने वाला था. मजबूत कदकाठी का होने के कारण उसे छोटी सी उम्र में ही पहलवानी का शौक लग गया था. कहते हैं कि 16 साल की उम्र में आतेआते वह पहलवानी में इतना माहिर हो गया कि अपने से डेढ़ गुना बड़ी उम्र के पहलवान को पलक झपकते धूल चटा देता था. इस से जल्द ही पूरे जिले में उस के नाम की तूती बोलने लगी. लंगोट कस कर बफाती अखाड़े में उतरता तो लोग तालियों और शोरशराबे से उस का स्वागत करते थे.

लेकिन वह पहलवानी के दांवपेंच में जितना पक्का था, लंगोट का उतना ही कच्चा. उस के संबंध कई कमसिन उम्र की लड़कियों से थे. गांव में एक तो ऐसे मामले खुल कर सामने नहीं आ पाते, दूसरे किसी को भनक लगती तो वह उस की पहलवानी की ताकत के डर से मुंह नहीं खोलता था. इस से कुछ समय बाद बफाती को अपनी ताकत पर घमंड हो गया.

धीरेधीरे बफाती का डंका पूरे इलाके में बजने लगा तो कुछ राजनीतिक लोग बाहुबल के लिए बफाती का इस्तेमाल करने लगे. जिस का फायदा उठा कर वह गैरकानूनी कामों से पैसा बनाने लगा. फिर जल्द ही वह इलाके में अवैध शराब के कारोबार का सरगना बन गया. ऐसे में दूसरे बदमाशों से उस का टकराव हुआ भी तो बफाती ने अपने बाहुबल पर सब को किनारे लगा दिया.

किसी के साथ भी मारपीट करना उस के लिए आम बात हो गई थी, जिस के चलते धीरेधीरे बफाती के खिलाफ लवकुश नगर थाने में दर्ज मामलों की गिनती बढ़ने लगी. साथ ही उस के अपराध भी गंभीर होते गए.

बफाती के आपराधिक रिकौर्ड के कारण मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले उसे छतरपुर से जिलाबदर कर दिया गया. इस के बाद वह पास ही उत्तर प्रदेश के मुसलिम बाहुल्य महोबा शहर में जा कर वहां की कांशीराम कालोनी में किराए पर रहने लगा.

नाबालिग लड़कियों का शौकीन था बफाती महोबा के बफाती के घर के ठीक सामने 14 वर्षीय सलमा खातून अपने मातापिता के साथ रहती थी. बफाती कमसिन उम्र की लड़कियों को अपने जाल में फांसने में एक्सपर्ट था. खूबसूरत सलमा को देख कर वह उस का दीवाना हो गया. सलमा के मातापिता गरीब थे और बफाती के पास अवैध कमाई की दौलत थी. उस ने सलमा के पिता मकबूल हुसैन को दूल्हाभाई कहते हुए सलमा का मामू बन कर उस के घर में पैठ बना ली.

इस दौरान वह सलमा खातून के घर पर काफी पैसा लुटाते हुए उस पर डोरे डालता रहा, जिस से सलमा जल्द ही उस के जाल में फंस गई. इस के बाद वह जबतब उस के घर जाने लगा. मौका मिलने पर वह सलमा को अपने कमरे पर भी बुला लेता. फिर एक दिन वह उसे ले कर महोबा से फरार हो गया.

सलमा के लापता हो जाने से मोहल्ले में हल्ला मच गया. रिपोर्ट हुई तो पुलिस ने मोहल्ले के कई लड़कों को शक के आधार पर कई दिनों तक थाने में बैठाए रखा. सलमा खातून को बफाती ले कर भागा है, यह बात काफी दिनों बाद लोगों की समझ में आई.

इधर सलमा खातून को ले कर बफाती सीधे पन्ना के धरमपुर में रहने वाले आशिक अली के पास पहुंचा. आशिक खुद भी जिलाबदर होने के कारण धरमपुर में रह रहा था. बफाती से उस की पुरानी दोस्ती थी, इसलिए उस ने उसे अपने घर में शरण दे दी.

धरमपुर मुसलिम बाहुल्य कस्बा है, जिस से वहां के लोगों ने जिस तरह कभी आशिक को हाथोंहाथ लिया था, वैसे ही बफाती की भी मदद की. दरअसल वे सलमा खातून को बफाती की बेटी समझे थे. लेकिन जब उन्होंने सलमा के साथ उस की हरकतें देखीं तो उन्हें बफाती संदिग्ध लगा.

गांव में सलमा खातून की उम्र की कई लड़कियां थीं, जिन से उस की दोस्ती भी हो गई थी. गांव वालों को लगा कि अपने बाप की उम्र के मर्द के साथ रखैल के रूप में रहने वाली सलमा की संगत का असर उन के बच्चों पर भी हो सकता है, इसलिए उन्होंने अपनी बेटियों के उस से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

चूंकि आशिक ने बफाती को शरण दी थी, इसलिए गांव वाले इस स्थिति के लिए आशिक को दोषी मानने लगे. उन्होंने इस की शिकायत आशिक से की. उन्होंने कहा कि वह अपने इस दोस्त को यहां से रवाना करे.

दोस्त बना दुश्मन आशिक खुद भी बफाती की इस हरकत से परेशान था. क्योंकि वह कभी भी कहीं भी सलमा के साथ अय्याशी करने लगता था. इस के लिए वह किसी की शर्मलिहाज नहीं करता था. हालांकि बफाती के आने से आशिक को कई फायदे हुए थे. उस के मजबूत कसरती बदन के कारण लोग आशिक अली से भी डरने लगे थे.

फिर भी आशिक अली को उस का सलमा के साथ रहना अखरने लगा था. उस ने इस बात का बफाती से सीधे विरोध करने के बजाय दूसरा रास्ता निकाला. सलमा खातून आशिक को मामू कहती थी, इस बात का फायदा उठा कर उस ने धीरेधीरे सलमा से उस के घर का पता पूछ लिया. साथ ही उस ने बफाती के कुछ पुराने कर्मों की जानकारी भी सलमा को दी ताकि वह बफाती से नफरत करने लगे.

यह जानने के बाद आशिक ने अपने महोबा  के एक दोस्त द्वारा सलमा खातून के धरमपुर में होने की जानकारी उस के मातापिता को भिजवा दी. खबर पा कर कुछ रोज पहले महोबा पुलिस का एक सिपाही धरमपुर आ कर सलमा खातून से पूछताछ करने लगा.

इस बात की जानकारी मिलने पर बफाती चौंका. क्योंकि सलमा कहां की रहने वाली है, यह बात उस ने आशिक को भी नहीं बताई थी. इसलिए उस ने खुद सलमा से गुप्त तरीके से जानकारी ली, जिस में उस ने बता दिया कि आशिक मामू ने उस से पूछा था इसलिए उस ने बता दिया कि वह महोबा के कांशीराम कालोनी की रहने वाली है.

यहीं से बफाती को शक हो गया कि आशिक ने ही उस की मुखबिरी की है. संयोग से इसी बीच सलमा ने बफाती से पहले उस की प्रेमिका रही एक दूसरी नाबालिग लड़की के बारे में पूछा तो बफाती को पूरा भरोसा हो गया कि आशिक उसे डबलक्रौस कर रहा है.

बफाती ने दुश्मन को माफ करना सीखा ही नहीं था. इसलिए सलमा को अपनी रखैल बनाए रखने के लिए उस ने धरमपुर छोड़ने के साथसाथ आशिक को भी ठिकाने लगाने की ठान ली.

इस काम को अंजाम देने के लिए बफाती ने आशिक को जरा भी शक नहीं होने दिया कि उस ने उसे सबक सिखाने के लिए क्या योजना बना रखी है. 11 अगस्त, 2019 को उस ने आशिक से कहा कि महोबा पुलिस को मेरी जानकारी लग चुकी है, इसलिए अब इस गांव में रहना ठीक नहीं है. उस ने गांव छोड़ने की बात कहते हुए दोस्ती के नाते आशिक को भी साथ चलने को कहा.

बफाती के गांव से जाने की बात सुन कर आशिक खुश हो गया. लेकिन बफाती अपना इरादा न बदल दे, इसलिए उस के साथ गांव छोड़ने को राजी भी हो गया. उस का विचार था कि बफाती कहीं और जम जाएगा तो वह खुद धरपुर वापस आ जाएगा, लेकिन बफाती ने कुछ और ही सोच रखा था. 11 अगस्त को सुबह लगभग 4-5 बजे बफाती अपनी बाइक पर सलमा और आशिक को ले कर गांव से निकल पड़ा.

लगभग एक घंटे के बाद बसंतपुर तिगेला आ कर बफाती ने गुटखा खाने के बहाने बाइक रोक दी, जिस के बाद बाइक से नीचे उतरते ही कमर में खोंस कर रखे देशी कट्टे से आशिक के ऊपर एक के बाद एक 3 गोलियां दागीं, जिस से उस की मौत हो गई. उस की लाश को वहीं पड़ा छोड़ कर वह सलमा के साथ पन्ना के छानी गांव में रहने वाले अपने दोस्त अल्ताफ के पास चला गया.

पुलिस ने बफाती की मदद करने के आरोप में अल्ताफ के खिलाफ भी भादंवि की धारा 212 एवं 216 के तहत काररवाई की. पुलिस ने बफाती से पूछताछ के बाद उसे व उस के दोस्त अल्ताफ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक महोबा पुलिस भी बलात्कार, अपहरण एवं पोक्सो एक्ट के तहत बफाती को अदालत से रिमांड पर ले कर महोबा ले जाने की काररवाई कर रही थी.द्य

—कथा में सलमा खातून परिवर्तित नाम है

सेक्स स्केंडल : ब्लैकमेलिंग से हुए कई शिकार

यह देह व्यापार और ब्लैकमेलिंग का वैसा और कोई छोटामोटा मामला नहीं है, जिस में लोगों को पता चल जाए कि पकड़े गए लोगों के नाम, वल्दियत और मुकाम क्या हैं, बल्कि इस हाईप्रोफाइल मामले की हैरतअंगेज बात यह है कि इस में उन औरतों के नाम और पहचान उजागर हो जाना है, जो अपने हुस्न के जाल में मध्य प्रदेश के कई नेताओं और आईएएस अफसरों को फंसा कर करोड़ों रुपए कमा चुकी हैं.

खूबसूरत, स्टायलिश, सैक्सी और जवान औरत किसी भी मर्द की कमजोरी हो सकती है, लेकिन जब वे मर्द अहम ओहदों पर बैठे हों तो चिंता की बात हो जाती है. क्योंकि इन की न केवल समाज में इज्जत और रसूख होता है, बल्कि ये वे लोग हैं जो सरकार की नीतियांरीतियां बनाते हैं.

इन के कहने पर करोड़ों का लेनदेन होता है. सूटबूट में चमकते दिखने वाले इन खास लोगों में बस एक बात आम लोगों जैसी होती है, वह है जवान औरत का चिकना शरीर देखते ही उस पर बिना सोचेसमझे फिसल जाना.

फिसल तो गए, लेकिन अब इन का गला सूख रहा है. नींद उड़ी हुई है और हलक के नीचे निवाला भी नहीं उतर रहा. वजह यह डर है कि खुदा न खास्ता अगर नाम और रंगरलियां मनाते वीडियो उजागर और वायरल हो गए तो कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएंगे.

जांच एजेंसियां यह भी पूछेंगी कि इन बालाओं पर लुटाने के लिए ढेर सारी रकम आई कहां से थी और ब्लैकमेलिंग से बचने के लिए इन्हें कैसे उपकृत किया गया. यानी ब्लैकमेलिंग की रकम का बड़ा हिस्सा एक तरह से सरकार दे रही थी.

यह है मामला इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर हरभजन सिंह ने 17 सितंबर, 2019 को पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि 2 औरतें उसे ब्लैकमेल कर रही हैं. पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. इंजीनियर हरभजन से भोपाल की आरती दयाल की दोस्ती थी. आरती एक एनजीओ चलाती है. इस ने कृषि, ग्रामीण व पंचायत विभाग से एनजीओ के नाम पर मोटी फंडिंग ली थी.

बल्लभ भवन के ग्राउंड फ्लोर पर बैठने वाले एक आईएएस, भोपाल-इंदौर में कलेक्टर रहे एक आईएएस के अलावा और कई अफसर और नेताओं से उस के नजदीकी संबंध थे. सबंध भी इतने गहरे कि भोपाल व इंदौर में कलेक्टर रह चुके एक आईएएस अफसर ने तो उसे मीनाल रेजिडेंसी जैसे पौश इलाके में एक महंगा फ्लैट दिला दिया था. यह आईएएस अफसर भोपाल और इंदौर के कलेक्टर भी रह चुके हैं.

आरती इस अफसर को ब्लैकमेल कर रही थी, जिस से पीछा छुड़ाने के लिए इस अफसर ने उसे होशंगाबाद रोड पर एक प्लौट भी दिलाया था. आरती ने इस के बाद भी उस का पीछा छोड़ा या नहीं, यह तो वही जाने लेकिन आरती ने दूसरा शिकार हरभजन सिंह को बनाया.

उस ने हरभजन की दोस्ती नरसिंहगढ़ की 18 साल की छात्रा मोनिका यादव से करा दी. कम उम्र में ही दुनियादारी में माहिर हो गई मोनिका ने हरभजन को अपना दीवाना बना लिया, जिस के चलते हरभजन उस का भजन करने लगा और आरती उतारने के लिए एक दिन उसे एक होटल के कमरे में ले गया.

मोनिका और उस की गुरुमाता आरती ने प्यार के इस पूजापाठ को कैमरे में कैद कर लिया ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए. उधर मोनिका के गुदाज बदन और नईनई जवानी का रस चूस रहे हरभजन को पता ही नहीं चला कि सैक्स करते वक्त वह कैसा लगता है और कैसीकैसी हरकतें करता है.

यह सब मोनिका और आरती ने उसे चलचित्र के जरिए दिखा कर अपनी दक्षिणा, जिसे ब्लैकमेलिंग कहते हैं, मांगी तो वह सकपका उठा.  बेचारा साबित हो गया हरभजन 8 महीने ईमानदारी से पैसे देता रहा. लेकिन हद तब हो गई जब इन दोनों ने एक बार में ही 3 करोड़ रुपए की मांग कर डाली. इस भारीभरकम मांग से उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने इंदौर के पलासिया थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस को मामला इतना दिलचस्प लगा कि उस ने बिना हेलमेट वालों के चालान वगैरह बनाने जैसा अपना पसंदीदा काम एक तरफ रखते हुए तुरंत काररवाई शुरू कर दी.

ऐसे मौकों पर पुलिस जाने क्यों समझदार हो जाती है. उस ने प्लान बनाया और मोनिका व आरती को रकम की पहली किस्त 50 लाख रुपए लेने इंदौर बुलाया. ये दोनों इंदौर पहुंचीं तो विजय नगर इलाके में इन्हें यू आर अंडर अरेस्ट वाला फिल्मी डायलौग मारते हुए गिरफ्तार कर लिया.

2-2 श्वेताएं जिसे पुलिस कहानी का खत्म होना मान रही थी, दरअसल वह कहानियों की शुरुआत थी. पूछताछ में आरती ने बताया कि ब्लैकमेलिंग के इस खेल में और भी महिलाएं शामिल हैं, जिन में से 2 के एक ही नाम हैं यानी श्वेता जैन. पहली श्वेता जैन 39 साल की है. वह भाजपा में सक्रिय है. इस ने अपने हुस्नजाल में एक पूर्व सीएम को फंसाया, जिस ने उसे भोपाल के मीनाल रेजिडेंसी में एक फ्लैट दिलवाया था.

यह बुंदेलखंड, मालवा-निमाड़ के एक पूर्वमंत्री की भी करीबी है. इन्हीं संबंधों का फायदा उठा कर इस ने एक एनजीओ को फंडिंग भी कराई थी. इसे सागर के एक कलेक्टर के संग उन की पत्नी ने पकड़ा था. उस के पति का नाम विजय जैन है. जबकि दूसरी श्वेता जैन के पति का नाम स्वप्निल जैन है.

48 साल की यह श्वेता भोपाल की सब से महंगी टाउनशिप रिवेरा में रहती है. तलाकशुदा आरती ने बड़ी शराफत और पूरी ईमानदारी से बताया कि वह छतरपुर की रहने वाली है और वहां भी 10 लोगों को ब्लैकमेल कर चुकी है. यानी यह उस का फुलटाइम जौब है.

भोपाल पुलिस ने भी सड़क चलते वाहन चालकों को बख्शते हुए इन श्वेताओं को गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों भी बड़ी शानोशौकत वाली निकलीं. सागर की रहने वाली श्वेता जैन के यहां से पुलिस ने 14 लाख 17 हजार रुपए बरामद किए.

यह श्वेता एक इलैक्ट्रिक कंपनी की भी मालकिन निकली. इस के पास से 2 महंगी कारें मर्सिडीज और औडी भी मिलीं. इस श्वेता ने सन 2013 में सागर विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा से टिकट भी मांगा था. लेकिन भाजपा के ही एक बड़े नेता ने उस का टिकट कटवा दिया था. इस के बावजूद भी उस के भाजपा नेताओं से अच्छे और गहरे संबंध थे.

दूसरी श्वेता (स्वप्निल वाली) के पास से भी एक औडी कार मिली. यह भी पता चला कि वह मूलत: जयपुर की रहने वाली है और उस का पति पेशे से थेरैपिस्ट है, जिसे अकसर पब पार्टियों में देखा जाता है.

इस श्वेता ने एक पूर्व सांसद की सीडी बनवा कर 2 करोड़ रुपए वसूले थे. भाजपा के एक कद्दावर नेता ने तो ब्लैकमेलिंग पर चुनाव के पहले इसे दुबई भेज दिया था, जहां से वह 10 महीने बाद लौटी थी. फिलहाल 3 कलेक्टरों के तबादलों में इस की अहम भूमिका रही थी.

इन दोनों को भाजपा विधायक बृजेंद्र सिंह ने मकान किराए पर दिया था. इस के पहले ये एक दूसरे भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार के मकान में किराए पर रहते थे. इस मकान में इन दिनों भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा भारती रह रही हैं.

पूरी छानबीन का सार यह रहा कि दोनों खूबसूरत श्वेताओं के पास बेशुमार दौलत और जायदाद है. साथ ही ऐशोआराम के तमाम सुखसाधन भी मौजूद हैं.

2-2 मास्टरमाइंड इतना होने के बाद और भी महिलाओं के नाम सामने आए, इन में से असली मास्टरमाइंड कौन है, यह तय होना अभी बाकी है. कुछ लोग सागर वाली श्वेता को ही मास्टरमाइंड  मान रहे हैं तो कुछ की नजर में असली सरगना बरखा भटनागर है.

बरखा अपने पहले पति को तलाक दे चुकी है और उस ने दूसरी शादी अमित सोनी से की है. अमित सोनी कभी कांगे्रस के आईटी सेल से जुड़ा था और सन 2015 में बरखा भी कांग्रेस में आ गई थी.

ये दोनों भी एक एनजीओ चलाते हैं जो एग्रीकल्चर से जुड़े प्रोजेक्ट लेता है. सन 2014 में बरखा का नाम देह व्यापार के एक मामले में आया था. तब से वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गई थी. इसी दौरान उस की मुलाकात श्वेता जैन से हुई थी.

बरखा वक्तवक्त पर कई कांग्रेसी दिग्गजों के साथ अपने फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी. वर्तमान में 2 मंत्रियों और एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष से इस के अच्छे संबंध हैं. अपनी पहुंच के चलते इस ने एनजीओ के लिए काफी डोनेशन भी लिया था. सागर वाली श्वेता को एक बार सागर में एक कलेक्टर साहब की पत्नी ने रंगेहाथों पकड़ा था.

नरसिंहगढ़ निवासी बीएससी में पढ़ रही मोनिका यादव को आरती ने गिरोह में शामिल किया था, जो जवान थी और जल्द ही अफसरों और नेताओं को अपने हुस्न जाल में फंसाने में माहिर हो गई थी. कई नेताओं के यहां भी उस का आनाजाना था. आरती ने ही इसे अपने साथ जोड़ा था.

इन पर नकाब क्यों जब राज खुलने शुरू हुए तो यह भी पता चला कि इन पांचों की तूती प्रशासनिक गलियारों में भी बोलती थी. इन के कहने पर तबादले होते थे, नियुक्तियां भी होती थीं और ठेके भी मिलते थे. ये 3 पूर्व मंत्रियों सहित 7 आईएएस अफसरों को ब्लैकमेल कर रही थीं, वह भी पूरी दिलेरी से.

हाल तो यह भी था कि इन के पकड़े जाने के बाद कई अफसर पुलिस हेड क्वार्टर फोन कर पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि उन का नाम सामने न आए. इन के मोबाइलों में कइयों की ब्लू फिल्में हैं.

लेकिन पुलिस उन के नाम उजागर नहीं कर रही है. आमतौर पर जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ऐसे मामलों में पुलिस महिलाओं के नाम छिपाती है और पुरुषों के उजागर कर देती है. पर यह मामला ऐसा है जिस में महिलाओं के नाम और फोटो उजागर किए गए लेकिन उन महापुरुषों के नहीं, जिन की वजह से रायता फैला.

पुलिस इन सफेदपोशों के चेहरों पर क्यों नकाब ढके हुए है, यह बात भी उजागर है कि कथित आरोपी महिलाओं को उस ने गुनहगार मान कर उन की जन्म कुंडलियां मीडिया के जरिए बांच दीं, लेकिन अय्याश और रंगीनमिजाज नेताओं और अफसरों को वह बचा रही है.

जबकि जनता को पूरा हक है कि वह इन के बारे में जानें. ऐसा होगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि सरकार नहीं चाहती कि इन सफेदपोशों की बदनामी हो.

महज हरभजन द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर पर सारी काररवाई होना पुलिस की नीयत और मंशा को शक के कटघरे में खड़ी कर रही है. जिनजिन रसूखदारों के साथ इन के आपत्तिजनक फोटो व वीडियो मिले हैं, उन के नाम उजागर हों तो समझ आए कि वाकई ये ब्लैकमेलर हैं.      द्य

 

पति की गर्दन पर प्रेमी का वार

रविवार 14 जुलाई, 2019 का दिन था. दोपहर का समय था. जालौर के एसपी हिम्मत अभिलाष टाक को फोन पर सूचना मिली कि बोरटा-लेदरमेर ग्रेवल सड़क के पास वन विभाग की जमीन पर एक व्यक्ति का नग्न अवस्था में शव पड़ा है.

एसपी टाक ने तत्काल भीनमाल के डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई को घटना से अवगत कराया और घटनास्थल पर जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए. एसपी के निर्देश पर डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए, साथ ही उन्होंने थाना रामसीन में भी सूचना दे दी. उस दिन थाना रामसीन के थानाप्रभारी छतरसिंह देवड़ा अवकाश पर थे. इसलिए सूचना मिलते ही मौजूदा थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर आसपास के गांव वालों की भीड़ जमा थी. वहां वन विभाग की खाई में एक आदमी का नग्न शव पड़ा था. आधा शव रेत में दफन था. उस का चेहरा कुचला हुआ था. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या शायद कई दिन पहले की गई है.

वहां पड़ा शव सब से पहले एक चरवाहे ने देखा था. वह वहां सड़क किनारे बकरियां चरा रहा था. उसी चरवाहे ने यह खबर आसपास के लोगों को दी थी. कुछ लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को खबर कर दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को खाई से बाहर निकाल कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, मगर जमा भीड़ में से कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर सका. शव से करीब 20 मीटर की दूरी पर किसी चारपहिया वाहन के टायरों के निशान मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे शव को किसी गाड़ी में ले कर आए और यहां डाल कर चले गए.

पुलिस ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. शव के पास ही खून से सनी सीमेंट की टूटी हुई ईंट भी मिली. लग रहा था कि उसी ईंट से उस के चेहरे को कुचला गया था. कुचलते समय वह ईंट भी टूट गई थी.

मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने उस का पोस्टमार्टम किया.

जब तक शव की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मृतक के फोटो वाट्सऐप पर शेयर कर दिए. साथ ही लाश के फोटो भीनमाल, जालौर और बोरटा में तमाम लोगों को दिखाए. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

सोशल मीडिया पर मृतक का फोटो वायरल हो चुका था. जालौर के थाना सिटी कोतवाली में 2 दिन पहले कालेटी गांव के शैतानदान चारण नाम के एक शख्स ने अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

कोतवाली प्रभारी को जब थाना रामसीन क्षेत्र में एक अज्ञात लाश मिलने की जानकारी मिली तो उन्होंने लाश से संबंधित बातों पर गौर किया. उस लाश का हुलिया लापता डूंगरदान चारण के हुलिए से मिलताजुलता था. कोतवाली प्रभारी बाघ सिंह ने डीएसपी भीनमाल हुकमाराम को सारी बातें बताईं.

मारा गया व्यक्ति डूंगरदान चारण था इस के बाद एसपी जालौर ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया, इन में एक टीम भीनमाल थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद के नेतृत्व में गठित की गई, जिस में एएसआई रघुनाथ राम, हैडकांस्टेबल शहजाद खान, तेजाराम, संग्राम सिंह, कांस्टेबल विक्रम नैण, मदनलाल, ओमप्रकाश, रामलाल, भागीरथ राम, महिला कांस्टेबल ब्रह्मा शामिल थी.

दूसरी पुलिस टीम में रामसीन थाने के एएसआई विरधाराम, हैडकांस्टेबल प्रेम सिंह, नरेंद्र, कांस्टेबल पारसाराम, राकेश कुमार, गिरधारी लाल, कुंपाराम, मायंगाराम, गोविंद राम और महिला कांस्टेबल धोली, ममता आदि को शामिल किया गया.

डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई दोनों पुलिस टीमों का निर्देशन कर रहे थे. जालौर के कोतवाली निरीक्षक बाघ सिंह ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराने वाले उस के रिश्तेदार शैतानदान को राजदीप चिकित्सालय की मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण के रूप में कर दी.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उस के परिजनों से संपर्क किया तो इस मामले में अहम जानकारी मिली. मृतक की पत्नी रसाल कंवर ने पुलिस को बताया कि उस के पति डूंगरदान 12 जुलाई, 2019 को जालौर के सरकारी अस्पताल में दवा लेने गए थे.

वहां से घर लौटने के बाद पता नहीं वे कहां लापता हो गए, जिस की थाने में सूचना भी दर्ज करा दी थी. रसाल कंवर ने पुलिस को अस्पताल की परची भी दिखाई. पुलिस टीम ने अस्पताल की परची के आधार पर जांच की.

पुलिस ने राजकीय चिकित्सालय जालौर के 12 जुलाई, 2019 के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो पता चला कि डूंगरदान को काले रंग की बोलेरो आरजे14यू बी7612 में अस्पताल तक लाया गया था.

उस समय डूंगरदान के साथ उस की पत्नी रसाल कंवर के अलावा 2 व्यक्ति भी फुटेज में दिखे. उन दोनों की पहचान मोहन सिंह और मांगीलाल निवासी भीनमाल के रूप में हुई. पुलिस जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज जांच के बाद गांव के विभिन्न लोगों से पूछताछ की तो सामने आया कि मृतक डूंगरदान चारण की पत्नी रसाल कंवर से मोहन सिंह राव के अवैध संबंध थे. इस जानकारी के बाद पुलिस ने रसाल कंवर और मोहन सिंह को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

मांगीलाल फरार हो गया था. रसाल कंवर और मोहन सिंह राव ने आसानी से डूंगरदान की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

केस का खुलासा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी थाने पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के सामने आरोपियों से पूछताछ कर डूंगरदान हत्याकांड से परदा उठ गया.

पुलिस ने 16 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों मृतक की पत्नी रसाल कंवर एवं उस के प्रेमी मोहन सिंह राव को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो डूंगरदान चारण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

मृतक डूंगरदान चारण मूलरूप से राजस्थान के जालौर जिले के बागौड़ा थानान्तर्गत गांव कालेटी का निवासी था. उस के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. वह उस जमीन पर खेती के अलावा दूसरी जगह मेहनतमजदूरी करता था. उस की शादी करीब एक दशक पहले जालौर की ही रसाल कंवर से हुई थी.

करीब एक साल बाद रसाल कंवर एक बेटे की मां बनी तो परिवार में खुशियां बढ़ गईं. बाद में वह एक और बेटी की मां बन गई. जब डूंगरदान के बच्चे बड़े होने लगे तो वह उन के भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगा.

गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा डूंगरदान अपने बीवीबच्चों के साथ गांव कालेटी छोड़ कर भीनमाल चला गया और वहां लक्ष्मीमाता मंदिर के पास किराए का कमरा ले कर रहने लगा. भीनमाल कस्बा है. वहां डूंगरदान को मजदूरी भी मिल जाती थी. जबकि गांव में हफ्तेहफ्ते तक उसे मजदूरी नहीं मिलती थी.

आशिकी के लिए दोस्ती डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

मोहन सिंह रसाल कंवर से भी बड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करता था. जब डूंगरदान मजदूरी करने चला जाता और उस के बच्चे स्कूल तो घर में रसाल कंवर अकेली रह जाती. ऐसे मौके पर मोहन सिंह उस के यहां आने लगा. मीठीमीठी बातों में रसाल को भी रस आने लगा. मोहन सिंह अच्छीखासी कदकाठी का युवक था.रसाल और मोहन के बीच धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं.

थोड़े दिनों के बाद दोनों के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. इस के बाद रसाल कंवर उस की दीवानी हो गई. डूंगरदान हर रोज सुबह मजदूरी पर निकल जाता तो फिर शाम होने पर ही घर लौटता था.

रसाल और मोहन पूरे दिन रासलीला में लगे रहते. डूंगरदान की पीठ पीछे उस की ब्याहता कुलटा बन गई थी. दिन भर का साथ उन्हें कम लगने लगा था. मोहन चाहता था कि रसाल कंवर रात में भी उसी के साथ रहे, मगर यह संभव नहीं था. क्योंकि रात में पति घर पर होता था.

ऐसे में एक दिन मोहन सिंह ने रसाल कंवर से कहा, ‘‘रसाल, जीवन भर तुम्हारा साथ तो निभाऊंगा ही, साथ ही एक प्लौट भी तुम्हें ले कर दूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारे बदन को अब मेरे सिवा और कोई न छुए. तुम्हारे तनमन पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है.’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगी.’’ रसाल कंवर ने प्रेमी की हां में हां मिलाते हुए कहा.

रसाल के दिलोदिमाग में यह बात गहराई तक उतर गई थी कि मोहन उसे बहुत चाहता है. वह उस पर जान छिड़कता है. रसाल भी पति को दरकिनार कर पूरी तरह से मोहन के रंग में रंग गई. इसलिए दोनों ने डूंगरदान को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. लेकिन इस से पहले ही डूंगरदान को पता चल गया कि उस की गैरमौजूदगी में मोहन सिंह दिन भर उस के घर में पत्नी के पास बैठा रहता है.

यह सुनते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. गुस्से से भरा डूंगरदान घर आ कर चिल्ला कर पत्नी से बोला, ‘‘मेरी गैरमौजूदगी में मोहन यहां क्यों आता है, घंटों तक यहां क्या करता है? बताओ, तुम से उस का क्या संबंध है?’’ कहते हुए उस ने पत्नी का गला पकड़ लिया.

रसाल मिमियाते हुए बोली, ‘‘वह तुम्हारा दोस्त है और तुम्हें ही पूछने आता है. मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. जरूर किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं. हमारी गृहस्थी में कोई आग लगाना चाहता है. तुम्हारी कसम खा कर कहती हूं कि मोहन सिंह से मैं कह दूंगी कि वह अब घर कभी न आए.’’

पत्नी की यह बात सुन कर डूंगरदान को लगा कि शायद रसाल सच कह रही है. कोई जानबूझ कर उन की गृहस्थी तोड़ना चाहता है. डूंगरदान शरीफ व्यक्ति था. वह बीवी पर विश्वास कर बैठा. रसाल कंवर ने अपने प्रेमी मोहन को भी सचेत कर दिया कि किसी ने उस के पति को उस के बारे में बता दिया है. इसलिए अब सावधान रहना जरूरी है.

उधर डूंगरदान के मन में पत्नी को ले कर शक उत्पन्न तो हो ही गया था. इसलिए वह वक्तबेवक्त घर आने लगा. एक रोज डूंगरदान मजदूरी पर गया और 2 घंटे बाद घर लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. खटखटाने पर थोड़ी देर बाद उस की पत्नी रसाल कंवर ने दरवाजा खोला. पति को अचानक सामने देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डूंगरदान की नजर कमरे में अंदर बैठे मोहन सिंह पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया. उस ने मोहन सिंह पर गालियों की बौछार कर दी. मोहन सिंह गालियां सुन कर वहां से चला गया. इस के बाद डूंगरदान ने पत्नी की लातघूंसों से खूब पिटाई की. रसाल लाख कहती रही कि मोहन सिंह 5 मिनट पहले ही आया था. मगर पति ने उस की एक न सुनी.

पत्नी के पैर बहक चुके थे. डूंगरदान सोचता था कि गलत रास्ते से पत्नी को वापस कैसे लौटाया जाए. वह इसी चिंता में रहने लगा. उस का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. वह चिड़चिड़ा भी हो गया था. बातबात पर उस का पत्नी से झगड़ा हो जाता था.

आखिर, रसाल कंवर पति से तंग आ गई. यह दुख उस ने अपने प्रेमी के सामने जाहिर कर दिया. तब दोनों ने तय कर लिया कि डूंगरदान को जितनी जल्दी हो सके, निपटा दिया जाए.

रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को तैयार हो गई. मोहन सिंह ने योजना में अपने दोस्त मांगीलाल को भी शामिल कर लिया. मांगीलाल भीनमाल में ही रहता था.

साजिश के तहत रसाल और मोहन सिंह 12 जुलाई, 2019 को डूंगरदान को उपचार के बहाने बोलेरो गाड़ी में जालौर के राजकीय चिकित्सालय ले गए. मांगीलाल भी साथ था. वहां उस के नाम की परची कटाई. डाक्टर से चैकअप करवाया और वापस भीनमाल रवाना हो गए. रास्ते में मौका देख कर रसाल कंवर और मोहन सिंह ने डूंगरदान को मारपीट कर अधमरा कर दिया. फिर उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

इस के बाद डूंगरदान की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बोलेरो में डाल कर बोरटा से लेदरमेर जाने वाले सुनसान कच्चे रास्ते पर ले गए, जिस के बाद डूंगरदान के शरीर पर पहने हुए कपड़े पैंटशर्ट उतार कर नग्न लाश वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर डाल कर रेत से दबा दी. उस के बाद वे भीनमाल लौट गए.

भीनमाल में रसाल कंवर ने आसपास के लोगों से कह दिया कि उस का पति जालौर अस्पताल चैकअप कराने गया था. मगर अब उस का कोई पता नहीं चल रहा. तब डूंगरदान की गुमशुदगी उस के रिश्तेदार शैतानदान चारण ने जालौर सिटी कोतवाली में दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपी मोहन सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस ने अपने साले की बीवी की हत्या की थी. इन दिनों वह जमानत पर था. मोहन सिंह शादीशुदा था, मगर बीवी मायके में ही रहती थी. भीनमाल निवासी मांगीलाल उस का मित्र था. वारदात के बाद मांगीलाल फरार हो गया था.

थाना रामसीन के इंचार्ज छतरसिंह देवड़ा अवकाश से ड्यूटी लौट आए थे. उन्होंने भी रिमांड पर चल रहे रसाल कंवर और मोहन सिंह राव से पूछताछ की.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने 19 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों रसाल कंवर और मोहन सिंह को फिर से कोर्ट में पेश कर दोबारा 2 दिन के रिमांड पर लिया और उन से पूछताछ कर कई सबूत जुटाए. उन की निशानदेही पर मृतक के कपड़े, वारदात में प्रयुक्त बोलेरो गाड़ी नंबर आरजे14यू बी7612 बरामद की गई. मृतक डूंगरदान के कपडे़ व चप्पलें रामसीन रोड बीएड कालेज के पास रेल पटरी के पास से बरामद कर ली गईं.

पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को 21 जुलाई, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस तीसरे आरोपी मांगीलाल माली को तलाश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रातों का खेल

घटना 10 जून, 2019 की है. इंदौर साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह ने साइबर सेल के अफसरों और कुछ

सहकर्मियों को अपने केबिन में बुला कर इंदौर के किसी क्षेत्र में छापा डालने के बारे में बताया. छापेमारी में कोई चूक न हो इस के लिए हर पुलिसकर्मी की शंका और उस के समाधान के बारे में 4 घंटे तक मीटिंग चली. इस के बाद एसपी जितेंद्र सिंह के निर्देश पर रात लगभग साढ़े 12 बजे 2 टीमें बनाई गईं.

इन टीमों में एसआई राशिद खान, आमोद राठौर, संजय चौधरी, विनोद राठौर, रीना चौहान, पूजा मुबेल, अंबाराम प्रधान व सिपाही आनंद, दिनेश, रमेश, विजय विकास, राकेश और राहुल को शामिल किया गया. इन टीमों को सी-21 मौल के पीछे स्थित टारगेट पर धावा बोलना था. समय तय कर दिया गया था.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए टीमों के रवाना होने के बाद एसपी जितेंद्र सिंह बैकअप देने के लिए औफिस में ही बैठे रहे. उन्हें भेजी गई टीमों से मिलने वाली सूचनाओं का इंतजार करना था. साइबर सेल के एसपी जितेंद्र सिंह को 25 दिन पहले सी-21 मौल के पीछे स्थित प्लाजा प्लैटिनम के 2 तलों पर संदिग्ध गतिविधियां संचालित होने की जानकारी मिली थी.

एसआई राशिद खान ने जो सूचना जुटाई थी, उस के अनुसार प्लैटिनम में 2 औफिस रात को 11 बजे खुलते थे और सुबह होते ही बंद हो जाते थे. लगभग सौ सवा सौ युवकयुवतियां रात 11 बजे औफिस में जाते थे. इस के बाद सुबह तक के लिए शटर बंद हो जाता था. वहां क्या होता है, इस का किसी को पता नहीं था. हां, इतना आभास जरूर था कि वहां जो भी होता है, वह कानून के दायरे के बाहर थी.

एसपी जितेंद्र सिंह ने इस संबंध में जो जानकारी जुटाई, उस में पता चला कि संदिग्ध औफिस के मालिक पिनकेल डिम व श्रीराम एनक्लेव में रहने वाले जावेद मेनन और राहिल अब्बासी हैं, जो रईसी की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोग क्या काम करते हैं, इस की जानकारी किसी को नहीं थी.

एसपी जितेंद्र सिंह को सब से बड़ी बात यह पता चली कि इन औफिसों में काम करने वाले युवकयुवतियों में 80 प्रतिशत से अधिक भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से हैं.

जावेद ने इन लोगों को आसपास के इलाकों में किराए पर फ्लैट ले क र दे रखे थे. पूर्वोत्तर के नागरिक आसानी से इंदौर के लोगों में घुलमिल नहीं सकते थे, इसलिए साफ था कि ऐसे कर्मचारियों का चुनाव आमतौर पर तभी किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति अपने कार्यकलाप को गुप्त रखने की मंशा रखता हो.

एसपी जितेंद्र सिंह इस बात को अच्छी तरह समझते थे, इसलिए दबिश देने पर आपराधिक गतिविधियों का खुलासा हो सकता था. एसपी साहब ने इस मामले की सूचना पुलिस महानिदेशक पुरुषोत्तम शर्मा, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजेश गुप्ता व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक अवस्थी को पहले दे दी थी. अब उन्हें परिणाम का इंतजार था.

उस समय रात का 1 बजा था, जब एसआई राशिद खान की टीम ने सी-21 मौल के पीछे स्थित टारगेट के दरवाजे पर दस्तक दी. कुछ देर के इंतजार के बाद शटर उठाया गया तो एसआई राशिद खान पूरी टीम के साथ धड़धड़ाते हुए अंदर दाखिल हो गए. औफिस में अंदर रखी करीब 20-22 टेबलों पर 60-70 कंप्यूटरों की स्क्रीन चमक रही थीं.

110-112 के आसपास युवकयुवतियां एक ही स्थान पर मौजूद थे. उस दिन किसी महिला कर्मचारी का जन्मदिन था, इसलिए औफिस का मालिक जावेद मेनन भी वहां मौजूद था. उस ने युवती का जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए खुद ही केक मंगवाया था.

पुलिस को आया देख वहां मौजूद सभी कर्मचारी घबरा गए. राशिद खान की टीम ने उन्हें केक काटने का समय दिया. इस के बाद वहां चल रहे कंप्यूटरों की जानकारी खंगाली गई तो टीम की आंखें फटी रह गईं. वास्तव में वहां की 2 मंजिलों पर 2 ऐसे कालसेंटर चल रहे थे, जो इंदौर में बैठ कर हाइटेक तरीके से अमेरिकी नागरिकों को ठगने का काम करते थे.

कालसेंटर के मालिक जावेद मेनन ने पहले तो पुलिस को अपने द्वारा किए जा रहे काम को लीगल ठहराने की कोशिश करते हुए वहां से खिसकने की सोची, लेकिन साइबर सेल की सतर्कता से उसे ऐसा मौका नहीं मिला.

इस दौरान हुए खुलासे की जानकारी मिलने पर एसपी जितेंद्र सिंह खुद भी मौके पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के बाद देर रात शुरू हुई काररवाई अगले दिन सुबह तक चली. इस काररवाई में जावेद मेनन और उस के राइट हैंड शाहरुख के साथ 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन में पूर्वोत्तर राज्यों की रहने वाली लड़कियां भी शामिल थीं.

पुलिस टीम ने कालसेंटर से 60 कंप्यूटर, 70 मोबाइल फोन, सर्वर और अन्य गैजेट्स तथा लगभग 10 लाख अमेरिकी नागरिकों का डाटा बरामद किया.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में स्थिति साफ होने पर उन के खिलाफ 468, 467, 471, 420, 120बी, आईपीसी और 66 डी आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया.

गिरफ्तार किए गए सभी 78 युवकयुवतियों को 2 चार्टर्ड बसों में भर कर अदालत ले जाया गया और उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया, जहां से पुलिस ने पूछताछ के लिए जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन को रिमांड पर ले लिया, जबकि नगालैंड, मेघालय, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा सहित 10 राज्यों के रहने वाले 75 युवकयुवतियों को जेल भेज दिया गया.

जावेद मेनन, भाविल प्रजापति और शाहरुख मेनन से पूछताछ के बाद उन के औफिस दिव्या त्रिस्टल, प्लैटिनम प्लाजा, घर पिनेकल डीम और श्रीराम एनक्लेव में छापा मारा गया. करीब 5 घंटे की तलाशी के बाद पुलिस ने वहां से फरजीवाड़े से संबंधित ढेरों सामग्री जब्त की.

इस के बाद पूछताछ में तीनों आरोपियों ने जो बताया, उस के आधार पर पता चला कि जावेद मेनन और उस का दोस्त राहिल अब्बासी मूलरूप से अहमदाबाद के रहने वाले थे. दोनों 2018 में इंदौर आए थे. यहां उन्होंने बीपीओ कंपनी की आड़ में कालसेंटर शुरू किए.

इंदौर में दोनों ने जिस कंपनी के नाम से किराए पर इमारतें लीं, वे विपिन उपाध्याय के नाम से रजिस्टर्ड हैं. जबकि इस के वास्तविक मालिक जावेद और राहिल हैं. कंपनी विपिन के नाम थी, इसलिए इस कंपनी के नाम से ही किराए का एग्रीमेंट किया गया था.

विपिन को पूरी बात की जानकारी थी. इस के बदले वह जावेद और राहिल से अपना नाम इस्तेमाल करने का करीब 1 लाख रुपए महीना किराया लेता था.

जावेद और राहिल काफी शातिर दिमाग थे. दोनों जानते थे कि स्थानीय स्तर पर ठगी का कारोबार ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा, इसलिए फरजी कालसेंटर के जनक माने जाने वाले सागर ठक्कर उर्फ शग्गी से प्रेरणा ले कर दोनों ने द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्युरिटी एडमिनिस्ट्रेशन के नाम पर अमेरिकी नागरिकों को ठगने की योजना बनाई. उन्होंने पहले अहमदाबाद, फिर पुणे में कुछ समय तक ठगी का कारोबार करने के बाद इंदौर का रुख किया.

इंदौर में दोनों 2018 से इस तरह के 2 कालसेंटर चला रहे थे. इस काम के लिए उन्होंने काफी हाइटेक उपकरण जमा कर रखे थे. अमेरिकी नागरिकों को झांसा देने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों के युवकयुवतियों को नौकरी देने के नाम पर अपने साथ जोड़ लिया था.

इस के 2 कारण थे, पहला तो यह कि इन राज्यों के युवकों की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होती है. दूसरे उन का अंगरेजी बोलने का लहजा अमेरिकी लहजे से काफी मिलताजुलता होता है.

इंदौर में जावेद और राहिल के 2 कालसेंटरों से जो 75 से ज्यादा युवकयुवती पकड़े गए, उन्हें जावेद रहनेखाने के खर्च के अलावा 22 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन देता था. सभी के रहने के लिए इंदौर की महंगी कालोनियों में 30 हजार रुपए प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिए गए थे. युवकयुवतियों को एक साथ रहने की सुविधा दी गई थी.

शटर बंद कर के करते थे काम चूंकि ठगी अमेरिकी नागरिकों से की जाती थी, इसलिए जावेद का कालसेंटर रात 10 बजे खुलता था. वजह यह कि जब भारत में रात के 10 बजे होते हैं, तब अमेरिका में सुबह के लगभग 11 बजे का समय होता है. रात के 10 बजे शटर उठा कर सभी कर्मचारियों को अंदर कर शटर बंद कर दिया जाता था. जिस के बाद असली खेल शुरू होता था.

लीड जैक इंफोकाम और सर्वर के माध्यम से एक साथ 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को वायस मैसेज भेजा जाता था. मैसेज द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की तरफ से भेजा जाता था, जिस में कभी कर चोरी तो कभी उन की गाड़ी के आपराधिक मामले में इस्तेमाल किए जाने की रिपोर्ट से संबंधित वायस मैसेज होता था. इस के अलावा ऐसे ही कई दूसरे मामलों में उन के खिलाफ शिकायत मिलने की बात कह कर एक टोल फ्री नंबर पर कौंटैक्ट करने को कहा जाता था.

वायस मैसेज भेजने वाली नौर्थ ईस्ट की लड़कियां इस लहजे में मैसेज देती थीं कि कोई भी अमेरिकी नागरिक उन के अंगरेजी बोलने के लहजे से यह नहीं सोच सकता था कि वह किसी भारतीय लड़की की आवाज है.

इस के लिए मैजिक जैक डिवाइस का उपयोग किया जाता था. मैजिक जैक एक ऐसी डिवाइस है जिसे कंप्यूटर व लैंडलाइन फोन से कनेक्ट कर विदेशों में काल कर सकते हैं. इस से विदेश में बैठे व्यक्ति के फोन पर फेक नंबर डिसप्ले होता है. यह वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकाल (वीओआईपी) के प्लेटफार्म पर चलती है. इस से अमेरिका और कनाडा में काल कर सकते हैं और रिसीव भी कर सकते हैं.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार ठगी का कारोबार 3 स्तर पर पूरा होता था. ऊपर बताया गया काम डायलर का होता था. इस के बाद काम शुरू होता था ब्रौडकास्टर का. जिन 10 हजार अमेरिकी नागरिकों को फरजी तौर पर द यूनाइटेड स्टेट्स सोशल सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन अधिकारी की ओर से नियम तोड़ने या किसी अपराध से जुड़े होने की शिकायत मिलने का फरजी वायस मैसेज भेजा जाता था, उन में से कुछ ऐसे भी होते थे जिन्होंने कभी न कभी अपने देश का कोई कानून तोड़ा होता था.

इस से ऐसे लोग और कुछ दूसरे लोग डर जाने के कारण मैसेज में दिए गए नंबर पर फोन करते थे. इन काल को ब्रौडकास्टर रिसीव करता था, जो प्राय: नार्थ ईस्ट की कोई युवती होती थी.

आमतौर पर ऐसे लोगों द्वारा किए जाने वाले संभावित सवालों का अनुमान उन्हें पहले से ही होता था, इसलिए ब्रौडकास्टर युवती सामने वाले को कुछ इस तरह संतुष्ट कर देती थी कि अच्छाभला आदमी भी खुद को अपराधी समझने लगता था.

जब कोई अमेरिकी जाल में फंस जाता था, तो उस की काल तीसरे स्टेज पर बैठने वाले क्लोजर को ट्रांसफर कर दी जाती थी.

यह क्लोजर पहले तो विजिलेंस अधिकारी बन कर अमेरिकी लैंग्वेज में कठोर काररवाई के लिए धमकाता था, फिर उसे सेटलमेंट के मोड पर ला कर गिफ्ट कार्ड, वायर ट्रांसफर, बिटकौइन और एकाउंट टू एकाउंट ट्रांजैक्शन के औप्शन दे कर डौलर ट्रांसफर के लिए तैयार कर लेता था.

इस के बाद गिफ्ट कार्ड के जरिए अमेरिकी खातों में डौलर में रकम जमा करवा कर उसे हवाला के माध्यम से भारत मंगा कर जावेद और राहिल खुद रख लेते थे. हवाला से रकम भेजने वाला 40 प्रतिशत अपना हिस्सा काट कर शेष रकम जावेद को सौंप देता था.

एसपी जितेंद्र सिंह के अनुसार यह गिरोह रोज रात को कालसेंटर खुलते ही एक साथ नए 10 हजार अमेरिकी लोगों को फरजी वायस मैसेज भेजने के बाद फंसने वाले लोगों से लगभग 3 से 5 हजार डौलर यानी लगभग 3 लाख की ठगी कर सुबह औफिस बंद कर अपने घर चले जाते थे.

अनुमान है कि जावेद और राहिल के गिरोह ने अब तक लगभग 20 हजार से अधिक अमेरिकी नागरिकों से अरबों रुपए ठगे होंगे. उस के पास 10 लाख दूसरे अमेरिकी नागरिकों का डाटा भी मिला, जिन्हें ठगी के निशाने पर लिया जाना था.

गिरोह का दूसरा मास्टरमाइंड राहिल छापेमारी की रात अहमदाबाद गया हुआ था, इसलिए वह पुलिस की पकड़ से बच गया जिस की तलाश की जा रही है.

राहिल के अलावा संतोष, मिनेश, सिद्धार्थ, घनश्याम तथा अंकित उर्फ सन्नी चौहान को भी पुलिस तलाश रही है, जो इस फरजी कालसेंटर को 12 से 14 रुपए प्रति अमेरिकी नागरिक का डाटा उपलब्ध कराते थे.

पति का टिफिन, पत्नी का हथियार

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले धर्मवीर सिंह की नौकरी जब दिल्ली पुलिस में लगी तो वह दिल्ली  में ही रहने लगे थे. बाद में उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र की हरित विहार कालोनी में उन्होंने एक आलीशान मकान बना लिया. यहीं पर

रहते हुए वह 3 बच्चों  के पिता बने.  राजीव वर्मा उन के तीनों बच्चों  में सब से बड़ा बेटा था, उस से छोटा उपेंद्र और फिर इकलौती बेटी मीनाक्षी थी. तीनों बच्चों को पढ़ालिखा कर वह उन की शादी कर चुके थे.

धर्मवीर सिंह भी 5 साल पहले दिल्ली  पुलिस से सब इंसपेक्टर पद से सेवानिवृत्तहो चुके थे. रिटायर होने के बाद उन्होंने बुराड़ी क्षेत्र में ही प्रोपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया था. छोटा बेटा उपेंद्र दिल्ली की आजादपुर मंडी में आढ़त का कारोबार करता है. जबकि बड़ा बेटा राजीव वर्मा एनसीआर के जानेमाने ओएसिस बिल्डर के यहां मार्केटिंग मैनेजर की नौकरी करता था.

राजीव ने मार्केटिंग का कोई कोर्स तो नहीं किया था लेकिन ग्रैजुएशन करने के बाद उस ने गाजियाबाद के कई बिल्डरों के यहां प्रोडक्शन से ले कर मार्केटिंग तक का काम किया था.

कई कंपनियों में तजुर्बा लेने के बाद पिछले कई साल से ओएसिस बिल्डर कंपनी में काम कर रहा था. अपनी मेहनत और तजुर्बे के कारण राजीव मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट तक पहुंच गया था.

राजीव वर्मा (38) की जिंदगी बेहद खुशगवार गुजर रही थी. परिवार में खूबसूरत पत्नी थी जिस का नाम था शिखा (34) और उन का एक बेटा था आकाश जिस की उम्र 14 साल थी. आकाश बुराड़ी के ही एक स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

राजीव और शिखा ने करीब 16 साल पहले प्रेम विवाह किया था. ये उन दिनों की बात है जब राजीव गाजियाबाद में एक रियल एस्टेट कंपनी के औफिस में मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव की नौकरी करता था. उन्हीं दिनों उस की मुलाकात शिखा से हुई थी.

शिखा मूल रूप से मेरठ के रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार की लड़की थी. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. 2 भाइयों के बीच वह इकलौती बहन थी.  मेरठ में उस के परिवार का नामचीन मिष्ठान भंडार है, जिसे शिखा के भाई संभालते हैं.

शिखा अपने मामा के पास रह कर गाजियाबाद के एक कालेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रही थी. एक दिन किसी दोस्त के परिवार में शादी समारोह के लिए प्रगति मैदान के विवाह मंडप में गई थी. संयोग से वहीं पर उस की मुलाकात राजीव से हुई.

राजीव आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था जबकि छरहरे बदन और तीखे नयन नख्शके कारण शिखा भी उस वक्त यौवन के ऐसे उभार पर थी कि पहली नजर में कोई देख ले तो दीवाना हो जाए. पहली ही मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. फोन नंबर का लेनदेन हो गया और इस के बाद अकसर फोन पर बातें होने लगीं.

जल्दी ही बात मुलाकातों तक पहुंच गई. यही मुलाकातें बाद में प्यार में बदल गई और दोनों का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया कि राजीव और शिखा ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन एक परेशानी थी कि दोनों की जाति अलग थी. शिखा एक रूढि़वादी ब्राह्मण परिवार की लड़की थी. इसलिए दोनों ने परिवार वालों को बताए बिना पहले आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली उस के बाद उन्होंने परिवार वालों को शादी के बारे में बताया.

आमतौर पर अगर प्रेम विवाह में लड़का या लड़की किसी नीची जाति के न हों तो थोडे़बहुत विरोध के बाद परिवार वाले ऐसे शादी के बंधन को स्वीकार कर लेते हैं. परिजनों और शिखा की शादी को भी दोनों के परिवार ने थोडे़ विरोध के बाद मान्यता दे दी. राजीव अच्छा कमाता था, खूबसूरत था, इधर शिखा भी सुंदर थी और अच्छी संपन्न परिवार की लड़की थी, लिहाजा सब कुछ ठीक हो गया.

अचानक आ गई मुसीबत  शिखा राजीव जैसे हैंडसम पति को पा कर खुश थी. बेटा होने के बाद तो  उस की खुशियों में चारचांद लग गए. ऐसे ही हंसीखुशी से उन की जिंदगी बीत रही थी कि अचानक एक ऐसा हादसा हुआ कि इस परिवार की खुशियों को जैसे ग्रहण लग गया.

राजीव एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर था इसलिए अब उस की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं. उस की कंपनी का कार्पोरेट औफिस नोएडा के सेक्टर 2 में है लेकिन ग्रेटर नोएडा में 2 अलगअलग साइटों पर उस की कंपनी के प्रोजेक्ट का काम चल रहा था. दोनों साइटों पर ही मार्केटिंग का काम राजीव वर्मा ने संभाल रखा था.

वह कभी औद्योगिक क्षेत्र साइट-सी तिलपता के पास 130 मीटर रोड के किनारे बने ओएसिस वेनेसिया हाइट्स वाली साइट के दफ्तर जाता तो कभी एक्सप्रैस वे पर बन रहे प्रोजेक्ट वाली साइट पर.

23 जुलाई, 2019 की दोपहर करीब साढे़ 12  बजे का वक्त था. राजीव वर्मा अपनी सफेद रंग की क्रीटा कार में सवार हो कर कंपनी की साइट के लिए निकला दफ्तर के बाहर बनी पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर के दरवाजा खोल कर वह कार से बाहर निकला ही था कि तभी पार्किंग के समीप एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. बाइक पर 2 लोग थे. उन में से एक राजीव के नजदीक पहुंच गया और उस ने राजीव पर गोलियां बरसानी शुरू की दीं. जो युवक गोली चला रहा उस ने अपने मुंह पर रूमाल बांधा हुआ था, जबकि बाइक पर बैठा युवक हैलमेट लगाए हुए था.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ 5 गोलियां चलीं जिन में से 4 गोलियां राजीव को जबकि एक गोली कार पर जा कर लगी. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ था कि किसी को कुछ समझ नहीं आया.

साइट के गेट पर बने औफिस में दरवाजे के भीतर शुभम और योगपाल नाम के 2 कर्मचारी खडे़ थे उन्होंने गोलियां चलती देखीं तो बाहर निकले और 2 हमलावरों को हाथ में पिस्तौल लिए देख वे उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े तो हमलावारों ने पिस्तौल का रुख उन की ओर कर धमकी दी कि अगर कोई आगे बढ़ा तो वे उसे भी गोली मार देंगे.

लिहाजा दोनों कर्मचारी वहीं खड़े हो कर शोर मचाने लगे. तब तक गोलियां लगने के बाद राजीव खून से लथपथ लहरा कर जमीन पर गिर चुका था.

दोनों बदमाशों ने जब देखा कि राजीव खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर चुका है और जल्दी भीड़ एकत्र हो सकती है तो उन्होंने वहां से मोटरसाइकिल दौड़ा दी. चंद मिनटों में ही हमलावर वारदात को अंजाम दे कर आंखों से ओझल हो गए.

शुभम और योगपाल उन के हाथ में थमी पिस्तौल के कारण हाथ मलते रह गए. उन के फरार होते ही दोनों ने चीखपुकार मचा कर साइट पर काम करने वाले कुछ दूसरे कर्मचारियों को एकत्र किया.

कुछ लोगों ने खून से लथपथ पडे़ राजीव कुमार को उन्हीं की गाड़ी में डाला, 2-3 लोग गाड़ी में और सवार हुए और तत्काल उसे ग्रेटर नोएडा के ही कैलाश अस्पताल ले गए. लेकिन उस की स्थिति ऐसी नहीं थी वहां उपचार हो पाता इसलिए डाक्टर ने राजीव को नोएडा वाले कैलाश अस्पताल में रेफर कर दिया गया. इस दौरान योगपाल नाम के कर्मचारी ने 100 नंबर पर काल कर के इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

चूंकि जिस जगह वारदात हुई थी वह इलाका सूरजपुर कोतवाली के अंतर्गत आता है. पीसीआर की गाड़ी चंद मिनटों में ही घटनास्थल पर पहुंच गई. पीसीआर को सारी घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने आगे की काररवाई के लिए कोतवाली सूरजपूर को इस घटना की इत्तला दे दी.

सूचना मिलते ही सूरजपुर कोतवाली के एसएचओ मुनीष प्रताप सिंह एसएसआई दिलीप सिंह और एसआई विकास को ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद जब ये पता चला कि हमले में घायल राजीव कुमार को नोएडा के कैलाश अस्पताल ले जाया गया है तो पुलिस टीम भी कैलाश अस्पताल पहुंच गई.

पुलिस जुट गई जांच में  वारदात की सूचना मिलने के बाद क्षेत्राधिकारी तनु उपाध्याय, एसपी देहात रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

ओएसिस बिल्डर कंपनी की तरफ से इस वारदात की जानकारी राजीव कुमार के परिजनों को भी दे दी गई थी. खबर पा कर राजीव के पिता धर्मवीर सिंह, भाई उपेंद्र , पत्नी शिखा समेत अन्य परिजन भी अस्पताल पहुंच गए. चिकित्सकों ने बताया कि राजीव कुमार को 4 गोलियां लगी हैं. उन की जान तो बच जाएगी लेकिन खून ज्यादा बहने के कारण उन के शरीर में फंसी चारों गोलियों को निकालने में वक्त लगेगा.

इस वारदात को सब से पहले कंपनी के 2 कर्मचारियों योगपाल और शुभम ने देखा था. लिहाजा सब से पहले पुलिस ने उन से ही पूछताछ कर घटना की जानकारी ली. उन से पूछताछ के बाद राजीव के परिजनों से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. जिस के पास जो भी जानकारी थी सबने पुलिस को दे दी.

लेकिन न तो कंपनी का कोई कर्मचारी और न ही कोई परिजन ये बता सके कि राजीव पर ये हमला किसने किया अथवा जान लेने की कोशिश किसने की. परिजन ये भी नहीं बता सके कि राजीव की किसी से कोई रंजिश थी. पुलिस के आला अधिकारियों ने अस्पताल के बाद घटनास्थल का भी निरीक्षण किया.

बिल्डर और वहां काम करने वाले दूसरे कर्मचारियों से भी पूछताछ की लेकिन कोई भी घटना के पीछे के कारणों या फिर राजीव की किसी से रंजिश के बारे में जानकारी नहीं दे पाया. इंसपेक्टर मुनीष प्रताप सिंह को अब तक की छानबीन से इस बात का आभास जरूर हो गया था कि बदमाशों ने जिस तरीके से घटना को अंजाम दिया, उस से लगता था कि वे पेशेवर हैं.

उन्हें ये भी आशंका लग रही थी कि हो सकता है वारदात को अंजाम दिलाने के लिए भाडे़ के बदमाशों का इस्तेमाल किया गया हो. क्योंकि बदमाशों ने अपने चेहरे पूरी तरह ढक रखे थे और उन्हें राजीव के साइट पर पहुंचने की सटीक जानकारी थी, इसलिए वे शायद पहले ही बाइक से आ कर वहां खड़े हो गए होंगे.

ब्लाइंड मर्डर का नहीं मिला सुराग  मुनीष प्रताप ने बिल्डर की साइट के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि बदमाश शायद पहले से ही कुछ दूरी पर घात लगा कर राजीव के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी तो राजीव के कार से उतरते ही उस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं. राजीव जब गाड़ी से उतरा तो उस के एक हाथ में मोबाइल और दूसरे में लंच बौक्स का बैग था.

एसएचओ मुनीष प्रताप ने मृतक राजीव के भाई उपेंद्र की शिकायत पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंस की धारा हत्या के प्रयास की धारा 307 में मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की विवेचना की जिम्मेदारी एसएसआई दिलीप सिंह को सौंप दी गई.

चूंकि केस पूरी तरह ब्लाइंड था, न तो परिजनों ने और न ही राजीव के औफिस वालों ने किसी पर शक जाहिर किया था इसलिए मामले का खुलासा करने के लिए एसएचओ मुनीष प्रताप सिंह ने 3 टीमों का गठन कर दिया.

एक टीम की अगुवाई खुद वे कर रहे थे जिस में उन्होंने एसआई विकास और हैडकांस्टेबल विनय को शामिल किया. दूसरी टीम में जांच अधिकारी एसएसआई दिलीप सिंह के साथ हैडकांस्टेबल साहब सिंह और सतीश शर्मा को रखा था. जबकि महिला एसआई सरिता सिंह को सर्विलांस टीम के कांस्टेबल नीरज के साथ राजीव वर्मा के मोबाइल की सीडीआर निकालकर इसे खंगालने के काम पर लगाया गया.

इस दौरान चश्मदीदों से पूछताछ करने पर पता चला था कि हमले के दौरान राजीव कुमार ने गोली चलाने वाले बदमाश से जान बख्शने की गुहार लगाते हुए कहा था ‘अरे भाई मुझे क्यों मार रहे हो, लगता है तुम को कोई गलतफहमी हो गई है. जिसे आप मारना चाहते हो वह मैं नहीं हूं.’

लेकिन इस के बावजूद बदमाश नहीं रुके और उन पर 3 गोलियां और दागी थीं. ये पता चलने के बाद एसएचओ मुनीष प्रताप को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाशों का निशाना कोई और हो और गलती से उन्होंने राजीव को गोली मार दी हो. इस शक की एक खास वजह ये थी कि राजीव के पास सफेद रंग की क्रेटा कार थी और उन के बिल्डर मालिक के पास भी उसी रंग की क्रेटा कार थी.

इसीलिए इंसपेक्टर मुनीष को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने कारोबारी रंजिश, लेनदेन के विवाद अथवा किसी दूसरे कारण से बिल्डर को मारने के लिए बदमाश भेजे हों और कार एक जैसी होने के कारण बिल्डर की जगह हमलावरों ने राजीव को निशाना बना लिया हो.

अपनी शंका का निवारण करने के लिए इंसपेक्टर मुनीष प्रताप ने बिल्डर को बुला कर कई बार उस से कुरेदकुरेद कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें कहीं से भी ये जानकारी नहीं मिली कि ये मामला पहचान की गफलत में हुए हमले से जुड़ा है.

पुलिस को जांच में ये भी पता चला था कि बदमाशों ने जिस जगह वारदात को अंजाम दिया है, वहां सीसीटीवी कैमरा तो लगा था लेकिन वो कैमरा खराब था. अगर कैमरा काम कर रहा होता तो हमलावरों की पहचान करना आसान हो जाता.

इस जानकारी के बाद पुलिस को शंका हुई कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमले में कंपनी का ही कोई आदमी शामिल हो और उसी ने सीसीटीवी कैमरा घटना से कुछ समय पहले बंद कर दिया हो. जांच पड़ताल की गई तो साफ हो गया कि कैमरा काफी दिनों से बंद था.

लेकिन एक बात साफ लग रही थी कि बदमाशों को इस बात की पक्की जानकारी थी कि राजीव वर्मा किस समय साइट पर आते हैं. ऐसे में मुनीष कुमार को ये भी शक हुआ कि कहीं बदमाश दिल्ली से ही तो राजीव की कार का पीछा नहीं कर रहे थे. हो सकता है उन्हें रोड पर वारदात करने का मौका न मिला हो. जिस के चलते उन्होंने साइट पर पहुंच कर कार से उतरते समय घटना को अंजाम दिया हो.

लिहाजा मुनीष प्रताप ने उसी दिन दिल्ली  से बिल्डर साइट की तरफ आने वाले कई रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालवाई, लेकिन इस में कहीं से भी संदिग्ध  हमलावरों को पकड़ने का कोई सुराग नहीं लग सका.

कई दिन गुजर चुके थे. सीओ तनु उपाध्याय लगातार हमले की इस घटना की जांच पर नजर रख रही थीं. इस मामले में राजीव की किसी से रंजिश या लेनदेन के विवाद की कोई जानकारी सामने नहीं आई थी. इस के बाद पुलिस ने दूसरे बिंदुओं पर भी जांच शुरू कर दी.

पुलिस ने तफ्तीश की बदली थ्यौरी  आमतौर पर हत्या या हत्या के प्रयास की किसी वारदात में अगर पुरानी रंजिश या विवाद का कोई कारण सामने नहीं आता है तो पुलिस पुरानी पद्धति से तफ्तीश शुरू करती है. यानि जर, जोरू और जमीन की थ्यौरी को जांच का आधार बनाती है. मुनीष प्रताप ने भी इसी थ्यौरी से जांच को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.

इंसपेक्टर मुनीष  महिला एसआई सरिता मलिक व कुछ दूसरे स्टाफ को ले कर खुद ही पड़ताल करने के लिए राजीव वर्मा के बुराड़ी स्थित घर पहुंच गए.

इंसपेक्टर मुनीष ने राजीव के परिवार के प्रत्येक सदस्य के अलावा आसपड़ोस के लोगों से भी कुरेदकुरेद कर पूछताछ की. इस पूछताछ में कई महत्त्वपूर्ण जानकारी हाथ लग गई. दरअसल जिस दिन राजीव पर हमला हुआ, उस से अगले दिन उस के अपने इकलौते बेटे का बर्थडे मनाने के लिए पहले से ही एक बडे़ समारोह की योजना बनाई हुई थी.

होना तो ये चाहिए था कि राजीव के अस्पताल में होने के कारण इस समारोह को टाल देना चाहिए था. लेकिन राजीव की पत्नी  शिखा ने पति के अस्पताल में होने के बावजूद अगले दिन बड़े जोश के साथ धूमधाम से बेटे का जन्मदिन मनाया था. ये जानकारी काफी हैरान करने वाली थी.

इस के साथ ही ये भी पता चला कि एक डेढ़ साल से राजीव के अपनी पत्नी शिखा से संबध ठीक नहीं थे. दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. हालांकि राजीव के परिजनों ने ऐसी किसी जानकारी से इनकार किया लेकिन आसपड़ोस के लोगों ने बताया कि राजीव वर्मा शिखा से सीधे मुंह बात नहीं करता था और उसे अकसर डांटता रहता था.

इंसपेक्टर मुनीष प्रताप को लगा कि हो न हो इसी झगडे़ में हमले की वजह छिपी हो सकती है. पुलिस टीम ने तब तक राजीव के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस में उन तमाम लोगों से पूछताछ कर चुकी थी जो नंबर संदिग्ध लगे. लेकिन इस पूरी कवायद में कोई अहम जानकारी नहीं मिली.

लिहाजा इंसपेक्टर मुनीष प्रताप ने राजीव की पत्नी शिखा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उस की छानबीन शुरू करा दी क्योंकि उन्हें  लग रहा था कि पति से झगडे़ की वजह से भी शिखा ऐसी किसी साजिश को अंजाम दे सकती है.

शिखा के मोबाइल पर आनेजाने वाले नंबरों की जांचपड़ताल शुरू हुई तो घर परिवार वालों के अलावा केवल एक ही ऐसा अंजान नंबर था जिस पर अकसर बात होती थी और वाट्सएप मैसेज और किए जाते थे.

जब जानकारी ली गई तो पता चला कि यह नंबर बुराड़ी में ही चंदन विहार कालोनी के रहने वाले रोहित कश्यप का है. हालांकि काल डिटेल्स से कोई शक करने वाली बात सामने नहीं आई थी. ये नंबर राजीव वर्मा की काल डिटेल्स में भी सामने आया था तभी पता चला था कि राजीव वर्मा और उस की पत्नी शिखा रोहित कश्यप के जिम में वर्क आउट करने जाते थे. राजीव सुबह जाता था जबकि शिखा उस वक्त जाती थी. जब भी उसे वक्त मिलता था.

यानी एक तरह से रोहित कश्यप वो शख्स था जो पतिपत्नी की जिंदगी में कामन था. दोनों ही उस के जिम में वर्क आउट करने जाते थे. इसलिए स्वाभाविक था कि वे दोनों ही उस से किन्हीं कारणों से फोन पर बात करते होंगे. लेकिन शिखा उस से वाट्सएप चैट और काल करती थी. ये सवाल गौर करने लायक था.

शिखा को ले कर इंसपेक्टर मुनीष के मन में संदेह का कीड़ा तो पहले ही कुलबुला रहा था. इसलिए उन्होंने रोहित के बारे में विस्तार से जानने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर छानबीन शुरू कर दी. बस छानबीन होते ही महत्त्वपूर्ण क्लू पुलिस के हाथ लग गया.

दरअसल जिस दिन राजीव वर्मा पर हमला हुआ उस दिन और उस से एक दिन पहले रोहित कश्यप के मोबाइल की लोकेशन उसी जगह मिली थी जहां राजीव पर हमला हुआ. ये जानकारी महज संयोग नहीं हो सकती थी. दिलचस्प बात ये थी कि वारदात से पहले और बाद में शिखा के फोन से रोहित कश्यप के फोन पर वाट्सएप काल भी की गई थी. बस इंसपेक्टर मुनीष के लिए इतना सबूत काफी था.

प्रेमीप्रेमिका हुए गिरफ्तार  उन्होंने 11 अगस्त, 2019 को एक विशेष टीम का गठन किया. एसआई सरिता मलिक शिखा को उस के घर से और एसएसआई दिलीप सिंह ने अपनी टीम के साथ रोहित कश्यप को उस के जिम से हिरासत में ले लिया. दोनों को सूरजपुर थाने लाया गया. सीओ तनु उपाध्याय के सामने दोनों से सारे सबूत दिखा कर कड़ी पूछताछ की गई तो वे अपना गुनाह कबूल करने से बच नहीं सके.

शिखा ने बता दिया कि उसी ने अपने जिम ट्रेनर प्रेमी के प्यार में पड़ कर अपने पति की हत्या करने के लिए रोहित को 1 लाख 20 हजार रुपए की सुपारी दी थी.

पुलिस ने दोनों से विस्तृत पूछताछ के बाद अगली सुबह रोहित के दोस्त गोविंदपुरी (दिल्ली) निवासी रोहन उर्फ मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ में राजीव वर्मा शूटआउट केस का सनसनीखेज खुलासा हो गया.

शादी के बाद एक बेटा होने के बाद भी शिखा की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी लेकिन घर में कामकाज करने के कारण उस का फिगर बेडौल हो गया था. शरीर पर काफी चर्बी चढ़ने लगी थी, जिस कारण वह मोटी हो गई.

राजीव हालांकि पत्नी को बेहद प्यार करता था लेकिन शिखा के लगातार बढ़ रहे मोटापे के कारण पत्नी के प्रति उस का आकर्षण कम हो रहा था.

अब राजीव शिखा को अपने साथ दोस्तों के यहां अथवा किसी पार्टी में ले जाने से कतराने लगा था. राजीव अकसर शिखा पर उस का वजन बढ़ने के कारण कमेंट करता रहता था कि क्या वो खुद को शीशे में नहीं देखती, कितनी मोटी हो गई है.

इन कमेंट्स से तंग आ कर शिखा ने वजन कम करने का फैसला कर लिया था. राजीव की सलाह पर उसने भी नजदीक के चंदन विहार मोहल्ले में स्थित उसी जिम को जौइन कर लिया जहां राजीव जाता था.

शिखा अकसर दोपहर बाद या शाम को जिम में जाती थी. जिम का ट्रेनर रोहित उसे प्यार भरी नजरों से देखता था. एक तरफ जहां पति की नजरों में शिखा को तिरस्कार दिखता था तो रोहित की प्यार भरी नजरों के कारण वह जल्द ही उसके आकर्षण में बंध गई.

रोहित कश्यप वैसे तो 8वीं पास था लेकिन उस का शरीर बेहद आकर्षक था कोई लड़की अगर एक बार उस के चेहरे और सुडौल बदन को देख ले तो उस के मोहपाश में फंसे बिना नहीं रह सकती थी. हालांकि 9 साल पहले रोहित ने भी एक बाल्मिकी लड़की से प्रेम विवाह किया था, जो आईटीओ पर एक संस्था में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है.

खुद रोहित पहले भिवानी के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी करता था लेकिन 2 साल पहले उसने बुराड़ी में अपना जिम खोल लिया था. लेकिन अब अपनी पत्नी से उस का भी अकसर झगड़ा होता रहता था.

जब रोहित ने देखा कि शिखा धीरेधीरे उस के मोहपाश में बंध रही है तो उसने एक और कदम आगे बढ़ाया और वह वर्कआउट कराते वक्त न सिर्फ उस के नाजुक अंगों को सहला देता बल्कि अकसर उस के फिगर और उस की खूबसूरती की तारीफ भी कर देता. बस यही वो खूबी थी जिस के कारण धीरेधीरे शिखा रोहित के प्यार में डूबती चली गई.

जिम में वर्कआउट करतेकरते कब दोनों की नजदीकी प्यार में बदली और कब दोनों के बीच अवैधसंबध कायम हो गए पता ही नहीं चला. बहकी हुई औरत को जब किसी गैरमर्द के शरीर की गंध लग जाती है तो उस का विवेक भी गलत दिशा में चल पड़ता है. दोनों के नाजायज रिश्ते को एक साल से ज्यादा हो गया था.

वर्कआउट करने के बावजूद शिखा का मोटापा कम नहीं हो रहा था. पति राजीव के ताने अब और ज्यादा बढ़ गए थे. जिस कारण दोनों में अकसर झगड़ा भी हो जाता था. पति के ताने अब शिखा को शूल की तरह चुभने लगे थे. जब ताने बरदाश्त से बाहर हो गए तो 2 महीना पहले एक दिन शिखा ने मन की बात रोहित से कह दी. शिखा ने रोहित से कहा कि अगर वह उस से प्यार करता है तो किसी भी तरह राजीव को उस की जिदंगी से निकालना होगा.

शिखा के इरादे जानकर रोहित सहम गया.  राजीव से बदला लेने और अपने रास्ते से हटाने की ठान ली. इस के लिए उसने रोहित को 1 लाख 20 हजार रुपए दिए. रोहित ने अपने पहचान वाले आदमी से एक पिस्तौल खरीदी. उस ने अपने एक दोस्त रोहन को भी इस प्लान में शामिल किया.

शिखा ने बताया कि उसने ही राजीव को मारने की प्लानिंग की थी. उस ने कहा कि जिस दिन राजीव ग्रेटर नोएडा स्थित साइट पर जाता था, वहां दोस्तों के साथ खाना शेयर करने के चलते उस दिन अपनी मनपसंद का अधिक खाना पैक करा कर ले जाता था और नोएडा की साइट पर जाने पर खाना कम पैक कराता. लंच बौक्स से ही जानकारी मिल जाती थी कि वह किस दिन कौन सी साइट पर जा रहा है. 23 जुलाई को राजीव ने कम खाना पैक कराने पर शिखा समझ गई कि राजीव नोएडा जाएगा. इस पर लोकेशन की जानकारी उस ने अपने प्रेमी रोहित को दे दी. रोहित अपने दोस्त के साथ बाइक से पीछा कर ग्रेटर नोएडा आया और घटना को अंजाम दिया.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से घटना में इस्तेमाल की गई पल्सर मोटरसाइकिल व एक पिस्तौल और कारतूस बरामद कर लिए. रोहित और शिक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे आरोपी रोहन को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक राजीव का अस्पताल में इलाज चल रहा था. उस की हालत खतरे से बाहर थी.

 

 

 

आड़ी टेढ़ी राहों पर नहीं मिलता प्यार

आगरा के गांव खुशहालपुर के रहने वाले जगदीश यादव बरहन तहसील में वकालत करते थे. उन की 3 बेटियां नीलम, पूनम और नूतन के अलावा 2 बेटे हैं मानवेंद्र और राघवेंद्र. जगदीश यादव बेटे मानवेंद्र और 2 बेटियों पूनम व नीलम की शादी कर चुके थे. शादी के लिए अब बेटी नूतन और बेटा राघवेंद्र ही बचे थे.

दोनों पढ़ाई कर रहे थे. सभी कुछ ठीक चल रहा था कि परिवार में अचानक ऐसा जलजला आया कि सब कुछ खत्म हो गया. जगदीश यादव की होनहार बेटी नूतन ने टूंडला से इंटरमीडिएट पास करने के बाद आगरा के बैकुंठी देवी कालेज में दाखिला ले लिया.

अपने ख्वाबों को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने खुद को किताबों की दुनिया में खपा दिया था लेकिन इसी बीच एक दिन रिश्ते के चाचा धनपाल यादव से उस की मुलाकात हो गई. कहा जाता है कि धनपाल और जगदीश यादव के परिवार के बीच बरसों पुरानी रंजिश चली आ रही थी. जब नूतन और धनपाल की मुलाकात हुई तो नूतन को लगा कि यदि बातचीत शुरू की जाए तो दोनों परिवारों के रिश्तों में फिर से मिठास आ सकती है.

धनपाल शादीशुदा था. अपनी पत्नी और 2 बेटों के साथ वह खुशहालपुर में ही रहता था. नूतन उसे चाचा कहती थी और पढ़ाई के दौरान आने वाली परेशानियों को भी उस से शेयर करती थी. खूबसूरत नूतन स्वभाव से शालीन और कम बात करने वाली लड़की थी. चाचा धनपाल का सहानुभूति वाला व्यवहार उसे अच्छा लगता था और वह धीरेधीरे कथित चाचा के नजदीक आने लगी.धीरेधीरे जगदीश यादव के घर में भी सब को पता चल गया कि धनपाल नूतन के सहारे सालों से चली आ रही रंजिश को खत्म करना चाहता है. इसलिए नूतन के साथ उस के मेलजोल को नूतन के घर वालों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. नूतन 20 साल की थी और अपना अच्छाबुरा समझ सकती थी.

वहीं दूसरी ओर धनपाल की पत्नी सरोज को धनपाल और नूतन की नजदीकियां रास नहीं आ रही थीं. वह पति से मना करती थी कि वह नूतन से न मिला करे. इस के बजाय वह अपनी दूध की डेरी पर ध्यान दे लेकिन धनपाल ने पत्नी की बात पर ध्यान नहीं दिया. धीरेधीरे वह नूतन की आर्थिक मदद भी करने लगा था. हालांकि नजदीकियों की शुरुआत चाचाभतीजी के रिश्ते से ही हुई थी, पर बाद में यह रिश्ता कोई दूसरा ही रूप लेने लगा.

नूतन से बढ़ रही नजदीकियों को ले कर धनपाल को पत्नी की खरीखोटी सुननी पड़ती थी, जिस से उस का पत्नी के साथ न सिर्फ झगड़ा होता था बल्कि दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ रही थीं. उधर नूतन अपने भविष्य को संवारते हुए एमए की डिग्री लेने के बाद आगरा कालेज से कानून की पढ़ाई करने लगी.

नहीं मानी पत्नी की बात कथित भतीजी नूतन के ख्वाबों को पूरा करने की धुन में धनपाल उर्फ धन्नू अपने डेरी के व्यवसाय को भी बरबाद कर बैठा. वह हर कदम पर नूतन के साथ था. घर पर पत्नी की कलह से तंग आ कर उस ने अपना आशियाना खेत में बना लिया था. वह नूतन की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठा रहा था. नूतन के एलएलबी पास कर लेने पर वह बहुत खुश हुआ. इस के बाद उस ने एलएलएम किया.

एलएलएम करने के बाद नूतन ने कोचिंग करने के लिए दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला ले लिया. होस्टल में रह कर वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगी. नूतन के दिल्ली जाने के बाद धनपाल का मन नहीं लग रहा था.

उस के पास रिवौल्वर का लाइसैंस था. अपनी दूध डेयरी बंद कर वह दिल्ली में किसी नेता के यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने लगा. उस ने यह नौकरी सन 2015 से 2018 तक की. नौकरी के बहाने वह दिल्ली में रहा. दिल्ली में चाचाभतीजी की मुलाकातें जारी रहीं.

आशिकी का यह पागलपन धनपाल को किस ओर ले जा रहा था, यह बात वह समझ नहीं पाया. अपने से 10-12 साल छोटी कथित भतीजी के इश्क में वह एक तरह से अंधा हो चुका था. लेकिन दूसरी ओर इस सब के बावजूद नूतन का पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था. वह कुछ बनना चाहती थी, जो उसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाए.

धनपाल ने भी उस से कह दिया था कि चाहे जितना पैसा खर्च हो वह उस की पढ़ाई में हर तरह से मदद करेगा. आखिर नूतन की मेहनत रंग लाई और न्याय विभाग में उस का सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर सेलेक्शन हो गया, जिस की ट्रेनिंग के लिए उसे मुरादाबाद भेजा गया.

नूतन की ऊंचे पद पर नौकरी लगने पर धनपाल खुश था. उसे लगने लगा कि नूतन की पोस्टिंग के बाद वह पढ़ाई आदि से मुक्ति पा लेगी. तब दोनों अपने जीवन को सही दिशा देने के बारे में सोचेंगे. लेकिन यह उस के लिए केवल खयाली पुलाव बन कर रह गया.

नूतन की सोच कुछ अलग थी. अभी तो उसे केवल सहायक अभियोजन अधिकारी का पद मिला था. जबकि उसे बहुत आगे जाना था. खूब लिखपढ़ कर वह जज बनने का सपना देख रही थी. वह इस सच्चाई से अनभिज्ञ थी कि अधिकतर सपने टूटने के लिए ही होते हैं.

ट्रेनिंग के बाद नूतन की बतौर सहायक अभियोजन अधिकारी पहली पोस्टिंग एटा जिले की जलेसर कोर्ट में हुई. नौकरी मिल जाने पर नूतन और उस के परिवार के लोग बहुत खुश थे. कथित चाचा धनपाल भी बहुत खुश था. अब उस के दिल में एक कसक यह रह गई थी कि क्या नूतन समाज के सामने उस का हाथ थामेगी?

धनपाल आशानिराशा के बीच झूल रहा था. उसे लगता था कि वह नूतन के साथ अपनी दुनिया बसाएगा और उसे सरकारी अधिकारी पत्नी का पति होने का गौरव प्राप्त होगा. पर खुशियां कब किसी की सगी होती हैं, वह तो हवा की तरह उड़ने लगती हैं.

नूतन एटा आ गई. पुलिस लाइन परिसर में उस के नाम एक क्वार्टर अलाट हो गया. यह क्वार्टर महिला थाना और दमकल केंद्र से कुछ ही दूरी था. सरकारी क्वार्टर में आने के बाद भी धनपाल ने नूतन का पूरा ध्यान रखा. उस ने घर की जरूरत का सारा सामान उस के क्वार्टर पर पहुंचा दिया. वह भतीजी के साथ क्वार्टर में रह तो नहीं सकता था, लेकिन वहां उस का आनाजाना बना रहा.

नूतन अपनी जिंदगी व्यवस्थित करने के बाद अपने छोटे भाई राघवेंद्र की जिंदगी संवारना चाहती थी. लेकिन धनपाल को नूतन का यह निर्णय बिलकुल पसंद नहीं आया. लेकिन वह यह बात अच्छी तरह समझता था कि कच्चे कमजोर रिश्तों को संभालने में सतर्कता की जरूरत होती है.

कभीकभी धनपाल के सीने में एक अजीब सी कसक उठती थी कि क्या उस का और नूतन का रिश्ता सिरे चढ़ेगा. एक दिन उस ने अपनी यह शंका अपने दोस्त भारत सिंह से जाहिर की तो उस ने कहा कि ऐसा क्यों सोचते हो, जब तुम ने नूतन को इतना सहयोग किया है तो फिर वह क्यों तुम्हें छोड़ेगी?

दरअसल, धनपाल को नूतन का बढ़ता हुआ कद परेशान कर रहा था. वह उस के सामने खुद को बौना महसूस करने लगा था. इसीलिए उस के मन में इस तरह के विचार आ रहे थे. आखिर उस ने अपनी आशिकी की हिचकोले खाती नाव तूफान के हवाले कर दी और सही समय का इंतजार करने लगा.

बेचैनी थी धनपाल के मन में  नूतन की दिनचर्या व्यवस्थित हो गई थी. वह स्कूटी पर सुबह ड्यूटी पर जाती और शाम को क्वार्टर पर लौटती. अपने पासपड़ोस में रहने वालों से न तो उस की बातचीत थी और न ही उठनाबैठना.

इस बीच नूतन ने धनपाल से कहा कि उसे घर में एक काम वाली बाई की जरूरत है, क्योंकि खाना बनाने में उस का काफी समय खराब होता है. धनपाल ने तुरंत 2700 रुपए प्रतिमाह की सैलरी पर संगीता नाम की महिला का इंतजाम कर दिया. वह नूतन के यहां जा कर रसोई का काम संभालने लगी.

नूतन के अड़ोसपड़ोस में अधिकतर पुलिसकर्मियों के ही क्वार्टर थे. उन पड़ोसियों को बस इतना पता था कि नूतन के साथ उस का छोटा भाई रहता है और जबतब गांव से उस के चाचा आ जाते हैं.

नूतन की नौकरी लग चुकी थी. यहां तक पहुंचतेपहुंचते वह 35 साल की हो गई थी. घर वाले उस की शादी के लिए उपयुक्त लड़का देख रहे थे. घर में अकसर उस की शादी का जिक्र होता था. घर वाले चाहते थे कि उस की शादी किसी अच्छे सरकारी अधिकारी से हो जाए.

शादी की चर्चा सुन कर नूतन को झटका सा लगा, क्योंकि धनपाल के रहते उस ने कभी अपने अलग अस्तित्व के बारे में सोचा ही नहीं था. इसी बीच किसी मध्यस्थ के जरिए नूतन के लिए अलीगढ़ में पोस्टेड वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह (बदला हुआ नाम) का रिश्ता आया. नूतन के परिवार वाले खुश भी थे और इस रिश्ते के पक्ष में भी. लेकिन नूतन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

कुछ नहीं सूझा तो नूतन ने घर वालों से कहा कि वे लोग जिस लड़के से उस की शादी करना चाहते हैं, पहले वह उस के बारे में जानना चाहती है. तब घर वालों ने नूतन का फोन नंबर बिचौलिया के माध्यम से उस लड़के तक पहुंचवा दिया.

फिर एक दिन राम सिंह का फोन आया दोनों ने आपस में बात की, एकदूसरे के फोटो देखे. अचानक नूतन को लगा कि बरसों की कठिन मेहनत के बाद उस ने जो पद हासिल किया है, उस के चलते धनपाल के लिए उस की जिंदगी में अब कोई जगह होनी नहीं चाहिए. जीवनसाथी के रूप में बराबरी के दरजे वाले व्यक्ति का होना ही दांपत्य जीवन को सफल बना सकता है.

उस ने महसूस किया कि अब तक जो कुछ उस के जीवन में चल रहा था, वह केवल एक खेल था. लेकिन इस खेल के सहारे जीवन तो कट नहीं सकता. इस उम्र में उस के लिए यदि रिश्ता आया है तो उस का स्वागत करना चाहिए.

इस के बाद राम सिंह और नूतन के बीच फोन पर अकसर बातचीत होने लगी. वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह को भी नूतन जैसी जीवनसाथी की ही जरूरत थी, अत: नूतन ने एक दिन घर वालों के सामने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर ली.

एक दिन धनपाल जब नूतन के आवास पर उस से मिलने आया तो नूतन ने कहा, ‘‘बिना सोचेसमझे मुंह उठाए चले आते हो. जानते हो, अगर आसपास रहने वाले लोगों को शक हो गया तो मेरी कितनी बदनामी होगी?’’

धनपाल को नूतन की यह बात चुभ गई, वह बोला, ‘‘यह क्या कह रही हो, तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, फिर इस में दूसरों की फिक्र का क्या मतलब?’’

‘‘हूं, यह तो है,’’ नूतन ने टालने की गरज से कहा पर धनपाल को लगा कि नूतन के मन में कुछ है, जो वह जाहिर नहीं कर रही है.

दोनों के बीच बनने लगीं दूरियां  उस दिन के बाद नूतन ने धनपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का फोन भी उठाना बंद कर दिया. वह क्वार्टर पर आ कर शिकायत करता तो नूतन कह देती कि फोन साइलेंट पर था. बड़ेबड़े सपने देखने वाली नूतन को अब तनख्वाह मिलने लगी तो उसे धनपाल से आर्थिक मदद की भी जरूरत नहीं रही. वह अपनी बचकानी गलती को भूल जाना चाहती थी पर धनपाल के साथ ऐसा नहीं था.

इधर नूतन के मांबाप जल्दी ही उस की सगाई करना चाहते थे. लेकिन आने वाले वक्त को कब कोई देख पाया है. नूतन यादव ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उस ने बरसों मेहनत कर के सफलता पाई है. उस का क्या अंजाम होने वाला है. वह मौत की उस दस्तक को नहीं सुन पाई जो उस की खुशियों पर विराम लगाने वाली थी. 5 अगस्त, 2019 का दिन उस के जीवन में तूफान लाने वाला था, जिस से वह बेखबर थी.

6 अगस्त, 2019 को सुबह जब नौकरानी संगीता काम करने आई तो कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी नहीं खुला. तभी उस ने महसूस किया कि दरवाजा अंदर से बंद नहीं है. संगीता ने धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जा कर उस ने जो कुछ देखा, सन्न रह गई. लोहे के पलंग पर नूतन औंधे मुंह पड़ी हुई थी और बिस्तर खून से लाल था.

यह देखते ही नौकरानी भागती हुई बाहर आई और सीधे एटा कोतवाली का रुख किया. वहां पहुंच कर उस ने सारी बात कोतवाल अशोक कुमार सिंह को बता दी. कत्ल की बात सुन कर कोतवाल मय फोर्स के मौके पर पहुंचे. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही मौके पर एसएसपी स्वप्निल ममगई, एएसपी संजय कुमार, एसपी (क्राइम) राहुल कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम भी मौके पर पहुंच गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला कि एपीओ नूतन यादव को बड़ी बेरहमी से मारा गया था. मौके पर पुलिस को 5 खोखे मिले. मृतका का चेहरा और शरीर क्षतविक्षत था. पुलिस को मृतका का मोबाइल भी वहीं पड़ा मिल गया.

आसपास पूछताछ करने पर लोगों ने बताया कि संभवत: गोली चलने की आवाज कूलरों की आवाज में दब गई होगी. इसलिए किसी को भी घटना का पता नहीं चल पाया.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस को लगा कि हत्यारा नूतन को मारने के इरादे से ही आया था. क्योंकि क्वार्टर का सारा सामान ज्यों का त्यों था. ऐसा लग रहा था कि कोई परिचित रहा होगा, जिस ने बिना किसी विरोध के घर में पहुंचने के बाद नूतन की हत्या की और वहां से चला गया.

घटना की सूचना मिलने पर देर रात मृतका के परिजन भी वहां पहुंच गए. उन्होंने वहां पहुंचते ही चीखचीख कर धनपाल पर अपना शक जताते हुए बताया कि धनपाल इस बात से नाराज था कि नूतन शादी करने वाली थी.

परिजनों की बातचीत से स्पष्ट हो रहा था कि मृतका और धनपाल के बीच नजदीकी संबंध थे. इसीलिए धनपाल शादी का विरोध कर रहा होगा और न मानने पर उस ने नूतन की हत्या कर दी होगी. घर वालों ने धनपाल के अलावा उस के दोस्त भारत सिंह पर भी अपना शक जताया.

पुलिस भारत सिंह और धनपाल की तलाश में लग गई. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि हत्यारे ने नूतन की हत्या बड़े ही नृशंस तरीके से की थी. उस ने मृतका के मुंह में रिवौल्वर की नाल घुसेड़ कर 3 गोलियां चलाईं और 2 शरीर के अन्य हिस्सों में मारीं.

पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगा दिए. नूतन के फोन की भी काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि घटना वाली रात को भी एक फोन काल देर तक आती रही थी. जांच में पता चला कि नूतन उस नंबर पर घंटों बातें करती थी. जांच में वह नंबर अलीगढ़ के वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह का निकला.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उन के घर दबिश डाली लेकिन वे नहीं मिले तो पुलिस ने पूछताछ के लिए धनपाल की पत्नी सरोज और श्यामवीर व उस के साले के बेटे को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो उन से अभियुक्तों के बारे में जानकारी नहीं मिली. इस के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

पकड़ा गया धनपाल  10 अगस्त को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर माया पैलेस चौराहे से भारत सिंह को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ में धनपाल और नूतन के संबंधों की बात खुल कर सामने आई. भारत सिंह ने बताया कि नूतन के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. धनपाल की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के सभी ठिकानों पर छापे मारे. यहां तक कि दिल्ली तक में उस की तलाश की गई.

आखिर 12 अगस्त को पुलिस ने धनपाल को गांव बरौठा, थाना हरदुआगंज, अलीगढ़ में उस के रिश्तेदार के घर से दबोच लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई.

धनपाल के चेहरे पर अपनी प्रेयसी की हत्या का जरा सा भी दुख नहीं था. पुलिस के सामने उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और कहा कि नूतन की बेवफाई ही उस की मौत का कारण बनी. जिस नूतन के लिए उस ने अपना घर, बीवीबच्चे सब उस के कहने पर छोड़ दिए थे, उस की पढ़ाई पूरी करने के लिए उस ने अपनी दूध की डेयरी तक खपा दी. उस पर लाखों रुपए का कर्ज चढ़ गया, लेकिन नौकरी मिलते ही वह बदल गई.

धनपाल ने बताया कि जब वह बीए कर रही थी तभी एक दिन आगरा के एक होटल के कमरे में उस ने नूतन की मांग भर कर उसे  अपना बना लिया था. नूतन के कहने पर उस ने पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया. वह उसे बेइंतहा प्यार करता था. पर वह पिछले 4 महीने से अचानक बदलने लगी थी. उस का फोन तक रिसीव नहीं करती थी. जिसे दिलोजान से चाहा, उसी की उपेक्षा ने उसे हत्यारा बना दिया.

नूतन ने 15 साल की मोहब्बत को एक पल में अपने पैरों तले रौंद दिया था. वह तो उस के प्यार में अपनी दुनिया लुटा चुका था, पर अपनी आशिकी को भुलाना उस के लिए मुश्किल था.

उस ने कबूला कि घटना वाले दिन उस ने भारत सिंह के जरिए पता लगा लिया था कि नूतन उस रोज छुट्टी पर है और उस के साथ रहने वाला उस का भाई राघवेंद्र भी अपने गांव गया हुआ है. बस फिर क्या था, अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर में गोलियां भर कर वह नूतन के क्वार्टर पर पहुंच गया. उस ने तय कर लिया था कि वह आरपार की बात करेगा. या तो नूतन उस की होगी या फिर वह किसी की भी नहीं.

धनपाल ने बताया, ‘‘नूतन ने मेरे साथ हमेशा रहने का वादा किया था. लेकिन नौकरी मिलने पर उसे समझ आया कि मैं उस के स्तर का नहीं हूं. मेरे प्यार की उपेक्षा कर के वह जीने का अधिकार खो बैठी थी. मैं ने नूतन को मार डाला.

‘‘नूतन ने उस रात मुझ से कहा था कि उस से दूर ही रहूं तो अच्छा, वरना वह पुलिस से मुझे पिटवाएगी. उस ने मेरे इश्क का इतना अपमान किया, जिसे मैं बरदाश्त नहीं कर सका, इसलिए मैं ने उस की जबान ही बंद कर दी. उस के मर जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है.’’

धनपाल ने हत्या में इस्तेमाल की गई रिवौल्वर पुलिस को वहीं परिसर में खड़ी एक पुरानी गाड़ी में से बरामद करा दी. पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल से पूछताछ की. उन्हें भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस तरह कई साल तक चली एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ. कथा लिखने तक दोनों अभियुक्त जेल में थे. मामले की जांच कोतवाल अशोक कुमार सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अन्नपूर्णा : सिंदूर की जगह खून

कानपुर स्थित दलहन अनुसंधान केंद्र का सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह सुबह 8 बजे ड्यूटी पूरी कर अपने घर जा रहा था. जब वह बैरीबागपुर जाने वाली लिंक रोड पर पहुंचा तो उस ने रोड के किनारे एक युवती का शव पड़ा देखा. के.पी. सिंह ने यह सूचना जीटी रोड से गुजर रहे राहगीरों को दी तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. इसी बीच के.पी. सिंह ने फोन द्वारा सड़क किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 17 अप्रैल, 2019 की है.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. युवती की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस के सिर और चेहरे पर ईंटपत्थर या किसी अन्य वजनी चीज से वार किया गया था.

सिर से निकले खून से जमीन लाल हो गई थी. युवती के गले में दुपट्टा लिपटा था. ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने उस का गला भी घोंटा हो. उस के हाथों में चोट के निशान भी थे. थानाप्रभारी ने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी थी.

घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ थी, लेकिन कोई भी युवती को पहचान नहीं पाया. थानाप्रभारी अभी घटनास्थल की जांच कर ही रहे थे कि इसी बीच एक युवक वहां आया. उस ने पहले युवती की लाश को गौर से देखा, फिर फफक कर रो पड़ा. वह वहां मौजूद थानाप्रभारी से बोला, ‘‘साहब, यह मेरे भाई राकेश कुरील की बेटी अन्नपूर्णा है. इस की तो कल बारात आने वाली थी, पता नहीं किस ने इस की हत्या कर दी.’’

शादी से एक दिन पहले दुलहन की हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह स्तब्ध रह गए. उन्होंने लाश की शिनाख्त करने वाले युवक से पूछताछ की तो उसने अपना नाम राजेश कुरील बताया. विनोद कुमार ने उस से बात कर कुछ जरूरी जानकारी हासिल की. इसी बीच सूचना पा कर एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार सिंह भी आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

राजेश ने अपनी भतीजी अन्नपूर्णा की हत्या की खबर घर वालों को दी तो घर में कोहराम मच गया. घर में चल रही शादी की तैयारियां मातम में बदल गईं. राकेश की पत्नी शिवदेवी तथा बेटियां प्रियंका, प्रगति, नेहा तथा परिवार के अन्य सदस्य रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए. शिवदेवी व उस की बेटियां अन्नपूर्णा के शव को देख फूटफूट कर रोने लगीं.

मोहल्ले में किसी ने नहीं सोचा था कि जिस घर में बारात आने की तैयारी हो रही हो, वहां से अर्थी उठेगी. मृतका अन्नपूर्णा की होने वाली सास लक्ष्मी भी उस की मौत की खबर पा कर पति शिवबालक व बेटे पुनीत के साथ घटनास्थल पर आ गई थी. वह कह रही थी, हमें तो बारात ले कर बहू को लेने आना था, लेकिन अर्थी देखने को मिली. पुनीत भी होने वाली पत्नी के शव को टुकुरटुकुर देख रहा था.

घटनास्थल पर कोहराम मचा था. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह रोतेबिलखते घर वालों को धैर्य बंधाया. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पिता राकेश कुमार कुरील से कहा कि वह थाना बिठूर जा कर बेटी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराए.

लेकिन राकेश तथा उस के घर वाले हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करने लगे. इस पर पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि आखिर वे लोग रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराना चाहते. उन्हें लगा कि कहीं यह मामला औनर किलिंग का तो नहीं है.

शक हुआ तो एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने राकेश कुरील से पूछताछ की. राकेश ने बताया कि उस ने अन्नपूर्णा की शादी कुरसौली गांव निवासी पुनीत के साथ तय की थी. 14 अप्रैल, 2019 को उस की गोदभराई तथा तिलक का कार्यक्रम संपन्न हुआ था, 18 अप्रैल को बारात आनी थी.

16 अप्रैल की शाम वह पत्नी शिवदेवी के साथ खरीदारी करने मंधना बाजार चला गया था. रात 9 बजे जब वह घर लौटा तो पता चला अन्नपूर्णा घर में नहीं है. यह सोच कर कि वह पड़ोस में रहने वाली अपनी बुआ के घर पर रुक गई होगी, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. सुबह उस की मौत की खबर मिली.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसपी ने पूछा. ‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है, मेरी किसी से दुश्मनी भी नहीं है.’’ राकेश ने बताया.

राकेश खुद आया शक के घेरे में राकेश की बात सुन कर वहां खड़े सीओ अजय कुमार सिंह झल्ला पड़े, ‘‘राकेश, जब तुम्हें किसी पर शक नहीं है. कोई तुम्हारा दुश्मन भी नहीं है तो तुम्हारी बेटी की हत्या किस ने की? तुम्हीं लोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया होगा?’’

‘‘नहीं साहब, भला हम अपनी बेटी को क्यों और कैसे मारेेंगे?’’

‘‘इसलिए कि अन्नपूर्णा किसी दूसरे लड़के से प्यार करती होगी और उसी लड़के से शादी करने की जिद कर रही होगी, लेकिन तुम ने उस की बात न मान कर शादी दूसरी जगह तय कर दी होगी. जब उस ने तुम्हारा कहा नहीं माना तो तुम लोगों ने उसे मार डाला. इसीलिए तुम लोग उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी कर रहे हो.’’ सीओ अजय कुमार ने कहा.

खुद को फंसता देख राकेश घबरा कर बोला, ‘‘साहब, हम बेटी के कातिल नहीं हैं. हम रिपोर्ट दर्ज कराने को तैयार हैं, लेकिन नामजद नहीं करा सकते.’’ इस के बाद राकेश ने थाने पहुंच कर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही हत्या का शक हरिओम पर जाहिर किया.

पुलिस अधिकारियों ने राकेश से हरिओम के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि हरिओम गूवा गार्डन कल्याणपुर में रहता है और ट्रांसपोर्टर है. पहले उस के दफ्तर में उस की बेड़ी बेटी प्रियंका काम करती थी. प्रियंका की शादी हो जाने के बाद छोटी बेटी अन्नपूर्णा वहां काम करने लगी थी. हरिओम का उस के घर आनाजाना था. अन्नपूर्णा और हरिओम के बीच दोस्ती थी.

यह पता चलते ही पुलिस ने हरिओम को हिरासत में ले लिया. थाने में जब उस से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने बताया कि अन्नपूर्णा उस के औफिस में काम करती थी. दोनों के बीच दोस्ती भी थी. दोनों के बीच अकसर फोन पर बातें भी होती थीं.

हत्या से पहले भी अन्नपूर्णा ने उसे फोन किया था और बाजार से कपड़े खरीदने की बात कही थी. लेकिन अपने काम में व्यस्त होने की वजह से वह उस के साथ नहीं जा सका. हरिओम ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

पुलिस को लगा औनर किलिंग का मामला पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हरिओम सच बोल रहा है तो उन्होंने उसे थाने से यह कह कर भेज दिया कि जब भी उसे बुलाया जाएगा, उसे थाने आना पडे़गा. साथ ही उसे हिदायत भी दी गई कि वह बिना पुलिस को बताए कहीं बाहर न जाए.

अब तक की जांच से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या या तो अवैध संबंधों की वजह से हुई है या फिर यह औनर किलिंग का मामला है. उन्होंने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच आगे बढ़ाई. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अन्नपूर्णा के शरीर पर 15 चोटें पाई गई थीं. 12 चोटें सिर व चेहरे पर मिलीं जबकि 3 चोटें हाथ व कमर पर थीं. उस की मौत अधिक खून बहने व सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते 2 स्लाइडें भी बनाई गईं.

पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन न तो घटनास्थल से मिला था और न ही घर वालों ने उस की जानकारी दी थी. पुलिस ने इस बारे में मृतका की मां शिवदेवी तथा उस की बेटियों से पूछताछ की.

शिवदेवी ने कहा कि अन्नपूर्णा के पास मोबाइल नहीं था. लेकिन जब उस की बेटियों से अलग से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उस के पास मोबाइल था.

अगर उस के पास मोबाइल था, तो शिवदेवी ने क्यों मना किया, यह बात पुलिस की समझ से परे थी. लिहाजा पुलिस ने जब अपने तेवर सख्त किए तो घर वालों से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

पुलिस ने जब तीनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक फोन की डिटेल्स से पता चला कि अन्नपूर्णा हरिओम के अलावा कई अन्य युवकों से भी बात करती थी. काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने 3 युवकों को पूछताछ के लिए उठाया.

इन में एक सोनू था, जो मृतका का पड़ोसी था. जांचपड़ताल से पता चला कि सोनू और अन्नपूर्णा के बीच प्रेमसंबंध थे. सोनू का उस के घर भी आनाजाना था.

सोनू अन्नपूर्णा पर खूब खर्चा करता था, यह पता चलते ही पुलिस ने 2 युवकों को तो छोड़ दिया पर सोनू से सख्ती से पूछताछ की. सोनू ने अन्नपूर्णा के साथ अपने प्रेमसंबंधों को तो स्वीकर किया लेकिन हत्या से साफ इनकार कर दिया. पुलिस ने उसे हिदायत दे कर थाने से भेज दिया.

पुलिस अधिकारियों को औनर किलिंग का भी शक था. उन का शक यूं ही नहीं था. उस के कई कारण थे. पहला कारण तो यह था कि परिजनों द्वारा बेटी की खोजबीन करना तो दूर पुलिस को सूचना तक नहीं दी थी. दूसरा कारण हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करना था और तीसरा कारण मोबाइल के लिए झूठ बोलना था.

हत्या के रहस्य को उजागर करने के लिए पुलिस ने मृतका की मां शिवदेवी, बुआ सुमन तथा बहन प्रियंका, प्रगति व नेहा से अलगअलग पूछताछ की. इन सभी के बयानों में विरोधाभास तो था, लेकिन हत्या की गुत्थी फिर भी नहीं सुलझ पाई. पड़ोसियों से भी पूछताछ की गई, पर पुलिस ऐसा कोई सबूत हासिल नहीं कर सकी, जिस से हत्या की गुत्थी सुलझ पाती.

हत्याकांड का खुलासा करने के लिए पुलिस अधिकारियों ने जब बेंजीडीन टेस्ट कराने का निश्चय किया. बेंजीडीन टेस्ट से खून के उन धब्बों का पता चल जाता है, जो मिट गए हों या धोपोंछ कर मिटा दिए गए हों. इस टेस्ट में एक महीने बाद तक खून के निशान का पता चल जाता है. अन्नपूर्णा की हत्या हुए एक सप्ताह बीत गया था. अत: बेंजीडीन टेस्ट से खुलासा संभव था.

29 अप्रैल, 2019 को एसपी (पश्चिम) संजीव कुमार सुमन थाना बिठूर पहुंचे. थाने पर उन्होंने बेंजीडीन टेस्ट के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने मृतका के घर वालों को थाने बुलवा लिया. थाने में फोरैंसिक टीम ने मृतका के मातापिता, भाई व बड़ी बहन पर टेस्ट किया तो रिपोर्ट पौजिटिव आई.

हत्या का शक परिवार वालों पर गहराया तो पुलिस अधिकारियों ने राकेश, उस की पत्नी शिवदेवी, बेटी प्रियंका तथा बेटे अमित को एक ही कमरे में आमनेसामने बिठा कर कहा कि तुम लोगों के खिलाफ हत्या का सबूत मिल गया है. बेंजीडीन टेस्ट में तुम लोगों के हाथों में मृतका के खून के रक्तकण मिले हैं. इसलिए तुम लोग सच बता दो कि तुम ने अन्नपूर्णा की हत्या क्यों की?

बेटी की हत्या के आरोप में अपने परिवार को फंसता देख राकेश हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने अन्नपूर्णा की हत्या नहीं की. हम सब निर्दोष हैं. रही बात बेंजीडीन टेस्ट की तो अन्नपूर्णा की लाश उठाते समय हाथों में खून लग गया होगा. मेरी पत्नी व बेटी ने भी रोते समय अन्नपूर्णा के सिर पर हाथ रखा होगा, जिस से खून लग गया होगा.’’

चुनावों की वजह से लटक गई जांच पुलिस अधिकारियों को लगा कि राकेश जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. अत: उन्होंने उन सभी को गिरफ्तार करने के बजाए थाने से घर भेज दिया. पुलिस जांच को आगे बढ़ाती उस के पहले ही लोकसभा चुनाव का आगाज हो गया.

पुलिस चुनाव की वजह से व्यस्त हो गई. जिस से जांच एकदम ढीली पड़ गई. या यूं कहें कि अन्नपूर्णा हत्याकांड की जांच ठंडे बस्ते में चली गई. लगभग डेढ़ माह तक पुलिस चुनावी चक्कर में व्यस्त रही.

चुनाव निपट जाने के बाद पुलिस अधिकारियों को अन्नपूर्णा हत्याकांड की फिर से याद आई. पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर समूचे घटनाक्रम पर विचारविमर्श किया. साथ ही जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया गया. इस के बाद पुलिस इस निष्कर्ष  पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या औनर किलिंग का मामला नहीं है. उस की हत्या प्रेमसंबंधों में की गई थी.

अन्नपूर्णा के 2 युवकों से घनिष्ठ संबंध थे. एक ट्रांसपोर्टर हरिओम, जिस के दफ्तर में वह काम करती थी और दूसरा उस का पड़ोसी सोनू, जिस का उस के घर आनाजाना था. दोनों के प्यार के चर्चे भी आम थे. पुलिस अधिकारियों का मानना था कि हरिओम और सोनू में से कोई एक है जिस ने प्यार के प्रतिशोध में अन्नपूर्णा की हत्या की है.

पुलिस ने सब से पहले हरिओम को थाने बुलवाया और उस से करीब 4 घंटे तक सख्ती से पूछताछ की. लेकिन हरिओम ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. पुलिस को लगा कि हरिओम कातिल नहीं है तो उसे जाने दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सोनू को थाने बुलवाया और उस से भी कई राउंड में सख्ती से पूछताछ की गई. लेकिन सोनू टस से मस नहीं हुआ. सोनू को 3 दिन तक थाने में रखा गया और हर रोज सख्ती से पूछताछ की गई. पर सोनू ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. मजबूरन उसे भी थाने से घर भेज दिया गया.

लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिल रही थी. अंतत: पुलिस ने खुफिया तंत्र का सहारा लिया. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने नारामऊ, मंधना और बिठूर क्षेत्र में अपने खास मुखबिर लगा दिए और खुद भी खोजबीन में लग गए.

2 अगस्त, 2019 की सुबह करीब 10 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी को अन्नपूर्णा हत्याकांड के बारे में जो जानकारी दी उसे सुन कर उन के चेहरे पर मुसकान तैर आई. मुखबिर ने बताया कि अन्नपूर्णा के प्रेमी सोनू ने उस की हत्या अपने 2 अन्य साथियों के साथ मिल कर की थी. इन में उस का एक दोस्त नारामऊ गांव का विनीत है. जबकि दूसरे का नाम शिवम है. वह रामादेवीपुरम, पचौर रोड मंधना में रहता है.’’

मुखबिर की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने सोनू के दोस्त विनीत व शुभम को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या उस के प्रेमी सोनू ने ही की थी. उन्होंने तो दोस्ती में उस का साथ दिया था.

इस के बाद थानाप्रभारी ने सोनू के घर से उसे भी गिरफ्तार लिया. थाने में जब उस का सामना दोस्तों से हुआ तो वह सबकुछ समझ गया. उस ने बिना हीलाहवाली के अन्नपूर्णा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन को दी तो उन्होंने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता कर अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर से करीब 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. यह बिठूर थाने के अंतर्गत आता है. राकेश कुमार कुरील अपने परिवार के साथ इसी कस्बे के मोहल्ला नारामऊ में  रहता था.

उस के परिवार में पत्नी शिवदेवी के अलावा 4 बेटियां प्रियंका, अन्नपूर्णा, विनीता, नेहा तथा बेटा अमित था. राकेश कुमार एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. वहां से मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार का भरण पोषण करता था. वह बड़ी बेटी प्रियंका का विवाह कर चुका था.

प्रियंका से छोटी अन्नपूर्णा थी. तीखे नयननक्ख और गोरी रंगत वाली अन्नपूर्णा अपनी अन्य बहनों से अधिक सुंदर थी. समय के साथ जैसे-जैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, वैसेवैसे उस की सुंदरता में और निखार आता जा रहा था.

बहन की जगह नौकरी मिली अन्नपूर्णा को अन्नपूर्णा ने मंधना स्थित सरस्वती महिला इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. इस के बाद वह गूवा गार्डन निवासी ट्रांसपोर्टर हरिओम के औफिस में काम करने लगी थी. इस के पहले उस की बड़ी बहन प्रियंका हरिओम के औफिस में काम करती थी. प्रियंका की जब शादी हो गई तब उस ने छोटी बहन अन्नपूर्णा को औफिस के काम पर लगा दिया था.

खूबसूरत अन्नपूर्णा ने अपनी चंचल अदाओं से ट्रांसपोर्टर हरिओम के दिल में हलचल मचा दी थी. हरिओम उसे चाहने लगा था. इतना ही नहीं वह अन्नपूर्णा पर पैसे खर्च करने लगा था.

अन्नपूर्णा के माध्यम से हरिओम ने उस के घर में भी पैठ बना ली थी. घर वाले आनेजाने पर विरोध न करें, इस के लिए उस ने अन्नपूर्णा के पिता को कर्ज के तौर पर रुपए भी दे दिए थे. धीरेधीरे हरिओम और अन्नपूर्णा नजदीक आते गए और दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

अन्नापूर्णा औफिस के लिए घर से बनसंवर कर इतरातीइठलाती निकलती थी. एक रोज औफिस जाते समय अन्नपूर्णा पर सोनू की निगाह पड़ गई. वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई. सोनू अन्नपूर्णा के पड़ोस में ही रहता था. ऐसा नहीं था कि सोनू ने अन्नपूर्णा को पहली बार देखा था. लेकिन उस दिन वह उसे बहुत खूबसूरत लगी थी. उस दिन उस के मन में चाहत की लहर उठी थी.

सोनू, दबंग युवक था. अपने क्षेत्र में वह सट्टा और जुआ खिलवाता था. इस काले धंधे से उसे मोटी कमाई होती थी. उस के कई विश्वासपात्र दोस्त थे जिन्हें वह पैसे दे कर अपने साथ मिलाए रखता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. अन्नपूर्णा सोनू के मन को भायी तो वह उस का दीवाना हो गया. आतेजाते जब कभी नजरें टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे.

सोनू की आंखो में अपने प्रति चाहत देख कर अन्नपूर्णा का मन भी विचलित हो उठा. वह भी उसे चाहने लगी. चाहत जब दोनों ओर से बढ़ी तो एक रोज सोनू ने अपने प्यार का इजहार कर दिया.

सोनू की बात सुन कर अन्नापूर्णा के दिल में गुदगुदी होने लगी. शरमाते हुए वह बोली, ‘‘सोनू, जो हाल तुम्हारा है वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

उस दिन के बाद सोनू और अन्नपूर्णा का प्यार परवान चढ़ने लगा. अन्नपूर्णा औफिस से छुट्टी के बाद सोनू के साथ सैरसपाटे के लिए निकल जाती. सोनू अन्नपूर्णा पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. अन्नपूर्णा जिस चीज की डिमांड करती, सोनू उसे ला कर दे देता था.

सोनू के मार्फत अन्नपूर्णा ने ज्वैलरी भी बनवा ली थी और बैंक बैलेंस भी बना लिया था. दोनों के दिल का रिश्ता जुड़ा तो फिर देह का रिश्ता बनने में देर नहीं लगी.

हरिओम को जब पता चला कि अन्नपूर्णा सोनू के साथ घूमती है तो उस ने अन्नपूर्णा को लताड़ा. साथ ही उस की शिकायत उस के मातापिता से भी कर दी. हरिओम ने तो यहां तक कह दिया कि अन्नपूर्णा के पैर डगमगा गए हैं बेहतर होगा कि उस की शादी कर दी जाए. शादी में लाख डेढ़ लाख का जो भी खर्च आएगा, वह दे देगा.

राकेश को बेटी के डगमगाते कदमों की जानकारी हुई तो उस के होश उड़ गए. उसे लगा कि यदि अन्नपूर्णा सोनू के साथ भाग गई तो समाज में उस की नाक कट जाएगी. पूरे समाज में उस की बदनामी होगी. अत: उस ने उस के हाथ पीले करने का फैसला कर लिया.

उस ने इस बाबत पत्नी शिवदेवी से बात की. पत्नी ने भी उस की शादी करने पर सहमति जता दी. इस के बाद राकेश बेटी के लिए लड़का खोजने लगा. थोड़ी मशक्कत के बाद उसे पुनीत पसंद आ गया.

पुनीत के पिता शिवबालक कुरील बिठूर थाना क्षेत्र के गांव कुरसौली में रहते थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. उन के 3 बच्चों में पुनीत सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा स्मार्ट युवक था. साथ ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करता था. राकेश ने विनीत को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी अन्नपूर्णा के लिए पसंद कर लिया. इस के बाद पुनीत और अन्नपूर्णा ने एकदूसरे को देखा. फिर शादी के लिए दोनों राजी हो गए.

14 अप्रैल, 2019 को गोद भराई, तिलक तथा 18 अप्रैल को शादी की तारीख तय हुई. इस के बाद दोनों परिवार शादी की तैयारी में जुट गए.

सोनू नहीं चाहता था कि अन्नपूर्णा शादी करे उधर सोनू को जब अन्नपूर्णा का विवाह तय हो जाने की जानकारी हुई तो उस ने अन्नपूर्णा पर शादी तोड़ देने की दबाव बनाया. लेकिन अन्नपूर्णा ने पारिवारिक मामला बता कर शादी तोड़ने से इनकार कर दिया. सोनू उस पर दबाव बनाता रहा और अन्नपूर्णा इनकार करती रही.

अन्नपूर्णा ने मां के कहने पर नौकरी भी छोड़ दी थी और सोनू से मिलना भी बंद कर दिया था. उस के दोनों प्रेमी हरिओम और सोनू शादी में मदद देने के बहाने उस के घर आते रहते थे, लेकिन वह उन से मिलने को मना कर देती थी.

14 अप्रैल को मंधना स्थित गेस्ट हाउस में पहले गोद भराई की रस्म पूरी हुई फिर देर शाम धूमधाम से तिलक समारोह संपन्न हुआ. इस समारोह में हरिओम और सोनू भी शामिल हुए. समारोह के दौरान सोनू ने अन्नपूर्णा से मिलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह मिल न सकी.

राकेश के घर में शादी की चहलपहल शुरू हो गई थी. रिश्तेनातेदारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. घर में मंडप गड़ चुका था और मंडप के नीचे ढोलक की थाप पर मंगल गीत गाए जाने लगे थे.

इधर ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, त्योंत्यों सोनू की बेचैनी बढ़ रही थी. उसे अन्नपूर्णा की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था. आखिर जब उस की बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो उस ने अन्नपूर्णा से आखिरी बार आरपार की बात करने का निश्चय किया.

उस ने इस बाबत अपने दोस्त विनीत और शुभम से बात की तो दोनों उस का साथ देने को राजी हो गए. विनीत नारामऊ में रहता था और उस की मोबाइल शौप थी. जबकि शुभम पंचोर रोड पर रहता था. दोनों को जब भी पैसों की जरूरत पड़ती, सोनू उन की मदद कर देता था. जिस से वह उस के अहसान तले दबे थे.

16 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सोनू मोटरसाइकिल से अन्नपूर्णा के घर के पास पहुंचा. उस के साथ उस के दोस्त विनीत और शुभम भी थे. सोनू ने मोटरसाइकिल सड़क किनारे ठेली लगा कर अंडे बेचने वाले के पास खड़ी कर दी. फिर उस ने विनीत को समझाबुझा कर अन्नपूर्णा को बुलाने भेजा.

विनीत अन्नपूर्णा के घर पहुंचा तो संयोग से वह उसे घर के बाहर ही मिल गई. विनीत ने उसे सोनू का संदेश दे कर साथ चलने को कहा. लेकिन अन्नपूर्णा ने साथ जाने और सोनू से बात करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विनीत ने अपने फोन पर अन्नपूर्णा की बात सोनू से कराई.

अन्नपूर्णा ने सोनू से फोन पर बात की और मिलने से साफ इनकार कर दिया. इस पर सोनू ने उस से कहा कि वह आखिरी बार उस से मिलना चाहता है. साथ ही धमकी भी दी कि यदि वह उस से मिलने न आई तो वह शादी वाले दिन ही उस के घर पर आत्महत्या कर लेगा.

प्रेमी बन गया कातिल अन्नपूर्णा सोनू की धमकी से डर गई और उस से आखिरी बार मिलने को राजी हो गई. अन्नपूर्णा विनीत के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर सोनू के पास पहुंची. सोनू अन्नपूर्णा और अपने दोनों दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल से दलहन अनुसंधान केंद्र के पास लिंक रोड पर पहुंच गया. वहां उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तब तक रात के 9 बज चुके थे और लिंक रोड पर सन्नाटा पसरा था.

विनीत और शुभम तो मोटरसाइकिल से उतर कर किनारे खड़े हो गए. जबकि सोनू अन्नपूर्णा से बतियाने लगा. बातचीत के दौरान सोनू बोला, ‘‘अन्नपूर्णा तुम ने मेरे साथ बेवफाई क्यों की? प्यार मुझसे किया और शादी किसी और से कर रही हो, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने तुम पर लाखों रुपए खर्च किए हैं. उपहार में ज्वैलरी दी है. या तो तुम मेरे रुपए ज्वैलरी वापस कर दो या फिर मुझ से शादी करो.’’

सोनू की बात सुन कर अन्नपूर्णा गुस्से में बोली, ‘‘सोनू, रुपए ज्वैलरी दे कर तुम ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है. उस के बदले तुम ने मेरे शरीर का भी तो शोषण किया था. अब हिसाबकिताब बराबर. मेरा रास्ता अलग और तुम्हारा रास्ता अलग.’’

‘‘अन्नू, अभी हिसाबकिताब बरबार नहीं हुआ है. तुम मेरी दुलहन नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ इतना कह कर सोनू ने मोटरसाइकिल से लोहे की रौड निकाली जिसे वह साथ लाया था और अन्नपूर्णा के सिर पर भरपूर प्रहार कर दिया. अन्नपूर्णा जमीन पर बिछ गई. इस के बाद उस ने 2-3 प्रहार और किए.

इसी बीच उस की नजर ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से प्रहार कर उस का सिर मुंह, कुचल डाला. उस ने हाथ व कमर पर भी प्रहार किए. अन्नपूर्णा कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. सोनू का रौद्र रूप देख कर विनीत और शिवम डर गए. इस के बाद सोनू दोस्तों के साथ घटनास्थल से भाग गया.

इधर सुबह 8 बजे दलहन अनुसंधान केंद्र के सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह ने लिंक रोड के किनारे एक युवती की लाश पड़ी देखी तो यह सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह घटनास्थल पहुंचे और जांच शुरू कर दी.

लेकिन पुलिस जांच में उलझ गई. आखिर 3 महीने बाद अन्नपूर्णा की हत्या का खुलासा हुआ और कातिल पकड़े गए. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर लोहे की रौड, खूनसनी ईंट तथा सोनू की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

3 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त सोनू, विनीत व शुभम को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित