आखिरी मोड़ पर पत्नी की भूमिका

बात 19 जून, 2019 की है. जबलपुर सिटी की रांझी थानाप्रभारी जे. मसराम को किसी व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि खमरिया के पास झाडि़यों में किसी युवक की लाश पड़ी है. मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना तुरंत एसपी अमित सिंह और एसपी (सिटी) धर्मेश दीक्षित को दे दी. साथ ही खुद पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह के लिए रवाना हो गईं.

पुलिस जब मौके पर पहुंची तो वहां काफी लोग जमा थे. वहीं पर 30-32 साल के एक युवक का शव पड़ा था. थानाप्रभारी ने शव का निरीक्षण किया तो उस पर चोट का कोई निशान नहीं मिला. लेकिन उस के गले पर काले रंग का निशान जरूर नजर आ रहा था.

उस निशान को देख कर पुलिस को यकीन हो गया कि युवक की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. इसी बीच एसपी अमित सिंह व एसपी (सिटी) धर्मेश दीक्षित भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से मृतक के बारे में पूछताछ की, लेकिन उन में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका.

आसपास सुराग तलाशने की कोशिश की गई, पर कोई भी ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस से शव की शिनाख्त होने में मदद मिल पाती. काफी कोशिशों के बाद भी शव की शिनाख्त नहीं होने पर थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए एसपी अमित सिंह ने जिले के सभी थानों में वायरलैस से अज्ञात युवक की लाश मिलने का मैसेज प्रसारित करा दिया. इस के अलावा सीमावर्ती जिलों के थानों को भी अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना दे दी गई.

इसी दौरान मौके पर मौजूद लोगों ने मोबाइल फोन से मृतक के फोटो खींच कर सोशल साइट पर वायरल कर दिए. शाम होतेहोते जब ये फोटो मध्य प्रदेश के राज्य पुलिस बल (एसएएफ) की छठीं बटालियन में तैनात आरक्षक नवीन के पास पहुंचा तो वह चौंक गया. क्योंकि उस फोटो में मृतक की दाईं कलाई पर दुर्गा और बांह पर ओम का टैटू गुदा हुआ था. उस की बाईं बांह पर आरडी और बीपीओ अक्षर का टैटू था.

यह देख कर उसे अपने साथ काम करने वाले आरक्षक राजेश बेन की याद आ गई. क्योंकि ऐसे ही टैटू व निशान राजेश बेन ने अपनी दोनों कलाइयों पर बनवा रखे थे. मृतक का चेहरा और हुलिया भी राजेश से मिल रहा था.

नवीन ने सोचा कि कहीं झाडि़यों में मिली लाश राजेश बेन की ही तो नहीं है. अपनी यह शंका उस ने बटालियन के दूसरे साथियों के सामने जाहिर की तो सब मिल कर शाम को राजेश की खोजखबर लेने रांझी स्थित उस के घर जा पहुंचे.

घर पर राजेश के दोनों बच्चों के साथ उस की पत्नी दीपिका मौजूद थी. नवीन और उस के साथियों ने दीपिका से राजेश के बारे में पूछा. दीपिका ने उन्हें बताया कि वह सुबह 9 बजे 15 हजार रुपए ले कर बेटे के स्कूल की फीस जमा करने गए थे, उस के बाद वापस नहीं लौटे.

उस समय राजेश का बेटा मोबाइल से खेल रहा था. इस का मतलब वह मोबाइल भी अपने साथ नहीं ले गया था. राजेश की पत्नी दीपिका ने बताया कि जब दोपहर तक वह नहीं लौटे तो हम ने सोचा कि शायद स्कूल में देर हो जाने के कारण वहां से सीधे ड्यूटी पर चले गए होंगे.

दीपिका की बात सुन कर साथियों का शक गहरा गया कि रांझी में मिली लाश कहीं राजेश बेन की तो नहीं है. क्योंकि उस रोज बटालियन में भी किसी ने राजेश को नहीं देखा था, इसलिए उन्होंने खबर रांझी पुलिस को दे दी. जिस पर थानाप्रभारी मसराम ने दीपिका को साथ ले जा कर अस्पताल में रखा शव दिखाया तो वह उसे दख्ेते ही जोरजोर से रोने लगी.

उस ने बताया कि शव उस के पति राजेश का ही है, जो आरक्षक के पद पर नौकरी करते थे. थानाप्रभारी ने दीपिका को सांत्वना दे कर चुप कराया और उस से उस के पति के बारे में पूछताछ की.

शक की सुई दीपिका पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में राजेश की मौत का कारण गला घोंटना बताया गया. रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. मामला पुलिस वाले की हत्या का था, इसलिए एसपी अमित सिंह ने इस केस को गंभीरता से लेते हुए जांच के लिए तुरंत एक टीम गठित कर दी, जिस से हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके.

एसपी साहब के आदेश पर पुलिस टीम जांच में जुट गई. 20 जून की रात 11 बजे रांझी थाने में तैनात महिला आरक्षक आरती सोनकर ने एएसपी को एक फोन की रिकौर्डिंग भेजी. वह रिकौर्डिंग ऐसी थी, जिस से पुलिस को केस खोलने में आसानी हो गई और हत्यारे भी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

उस रिकौर्डिंग में मृतक राजेश बेन की पत्नी दीपिका अपने भाई सोनू सोनकर को फोन कर उस से पति का शव ठिकाने लगाने के लिए मदद मांग रही थी.

रिकौर्डिंग सुनने के बाद एसपी अमित सिंह के आदेश पर रात में ही महिला पुलिस की एक टीम दीपिका के घर पहुंच गई. पुलिस ने उस के घर पर ही उस से सख्ती से पूछताछ की तो दीपिका ने स्वीकार कर लिया कि उस ने मजबूरी में पति की हत्या की थी. हत्या में उस की चचेरी बहन पायल, मां सुकरानी और पड़ोस में रहने वाली नाबालिग सहेली शामिल थीं. पुलिस टीम ने रात में ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ले जा कर आरोपियों से पूछताछ की गई तो आरक्षक राजेश बेन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के मंडला कस्बे की रहने वाली दीपिका की शादी 12 साल पहले रांझी के राजेश बेन से हुई थी. राजेश एसएएफ में आरक्षक के पद पर नौकरी करता था. राजेश के पिता भी मध्य प्रदेश पुलिस में थे. उन की मौत के बाद उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी.

शादी से पहले से ही राजेश को शराब पीने की लत थी. यहां तक कि सुहागरात के मौके पर भी वह न केवल शराब पी कर पत्नी के पास पहुंचा था बल्कि एक बोतल साथ में ले कर आया था.

यह देख पत्नी दीपिका चौंक गई. पहली रात को वह पति से ज्यादा कुछ नहीं कह सकी. बाद में उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन राजेश ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वह अपने यारदोस्तों के साथ शराब पीने में मस्त रहता. अपनी सारी कमाई वह शराबखोरी में उड़ा देता था.

इतना ही नहीं, जब उस के पास पैसे खत्म हो जाते तो वह उधार ले कर दोस्तों के साथ पार्टी करता था, जिस से उस पर लाखों रुपए का कर्ज भी हो गया था. घर में खर्च के लिए भी परेशानी होने लगी थी.

पत्नी जब खर्च के पैसे मांगती तो वह अपने हाथ खड़े कर देता था. राजेश चिड़चिड़ा भी हो गया था. पत्नी से छोटीछोटी बातों पर झगड़े करता और नशे में दीपिका के साथ मारपीट शुरू कर देता. मारपीट के लिए आदमी को एक बहाना चाहिए, इसलिए वह पत्नी को चरित्रहीन बता कर उस की बुरी तरह पिटाई करता था.

दीपिका परेशान थी मारपीट से दीपिका रोजरोज की मारपिटाई से तंग आ गई थी, इसलिए उस ने पति की हत्या की योजना बनाई. 18 जून, 2019 को उस ने अपनी चचेरी बहन पायल और पड़ोस में रहने वाली 16 वर्षीय सहेली को अपने घर बुला कर उन दोनों को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

रात लगभग 11 बजे राजेश शराब के नशे में घर पहुंचा तो वह पायल और उस की सहेली के सामने ही उस से कपड़े उतारने की जिद करने लगा. लेकिन दीपिका ने तो कुछ और ही सोच कर रखा था.

पति की कपड़े उतारने की जिद करने पर दीपिका को गुस्सा आ गया, उस ने एक झटके में उस के गले में अपनी चुन्नी लपेटी और फिर तीनों ने गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. राजेश की हत्या करने के बाद उन्होंने शव प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर घर के एक कोने में टिका दिया.

इस के बाद दीपिका ने अपनी मां सुकराना को फोन कर घटना की जानकारी दे कर शव को ठिकाने लगाने में मदद के लिए जबलपुर आने को कहा. मां ने भी बेटी की मदद करने की हामी भर दी. वह सुबह 5 बजे मंडला से जबलपुर पहुंच गई.

15 घंटे तक राजेश की लाश घर में ही पड़ी रही. दूसरे दिन लगभग 2 बजे पायल और दीपिका लाश को एक्टिवा पर रख कर रांझी इलाके की झाडि़यों में फेंक आईं. जिस बोरे में वे लाश ले कर गई थीं, उस पर कोई मार्का लगा था.

मार्का के जरिए पुलिस उन के पास तक न पहुंच सके, इसलिए उन्होंने राजेश की लाश बोरे से निकाल कर झाडि़यों में डाल दी. उस बोरे को वह घर ले आईं. इस दौरान एक्टिवा पायल चला रही थी.

शाम को जब राजेश के साथी उस के बारे में पूछताछ करने उस के घर आए तो दीपिका ने बताया कि राजेश सुबह 15 हजार रुपए ले कर बेटे की फीस भरने के लिए स्कूल गए थे. उस के बाद घर नहीं लौटे.

इसी बीच उस ने अपने भाई सोनू सोनकर को फोन कर लाश को ठिकाने लगाने में मदद मांगी जिस की रिकौर्डिंग किसी तरह पुलिस को मिल जाने से पूरा मामला उजागर हो गया.

दीपिका, उस की मां सुकराना और नाबालिग सहेली से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर एक्टिवा, गला घोंटने में इस्तेमाल हुई चुन्नी और वह बोरा भी बरामद कर लिया, जिस में लाश भर कर ठिकाने लगाई गई थी.

पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया, जबकि नाबालिग सहेली को बालिका सुधारगृह भेजा गया.

एक अलग मोड़ इस के दूसरे दिन ही इस कहानी में नया मोड़ आ गया. संजय कालोनी रांझी में रहने वाले मृतक राजेश बेन के घर वालों ने एसपी अमित सिंह को एक शिकायती पत्र सौंप कर उचित जांच की मांग की. उन्होंने बताया कि यह सच है कि राजेश के ऊपर काफी कर्ज था, लेकिन उस ने यह कर्ज शराब पीने के लिए नहीं, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के लिए लिया था. वह ब्याज के रूप में लाखों रुपए चुकता कर चुका था. लेकिन कर्ज देने वाले उस पर लगातार पैसे देने का दबाव बनाए जा रहे थे.

उन्होंने आरोप लगाया कि एक साहूकार युवक के साथ दीपिका के अवैध संबंध थे. वह साहूकार राजेश की गैरमौजूदगी में लगभग रोज दीपिका से मिलने उस के घर आता था. एक दिन राजेश ने दीपिका को उस के साथ रंगेहाथ पकड़ भी लिया था.

राजेश के परिजनों का आरोप था कि दीपिका के प्रेमी ने ही अपने प्रेमिका के साथ मिल कर राजेश की हत्या की थी. इन की योजना थी कि राजेश के मरने के बाद उस की पत्नी दीपिका को पुलिस में नौकरी मिल जाएगी.

साथ ही उस की मौत के बाद मिलने वाले पैसे से उस का कर्ज भी चुक जाएगा. एसपी अमित सिंह ने उस के घर वालों द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता से जांच करने के आदेश दे दिए.

हर्ष नहीं था हर्षिता के ससुराल में

उस दिन जुलाई 2019 की 6 तारीख थी. सुबह के 10 बज चुके थे. कानपुर शहर के जानेमाने कागज व्यापारी पदम

अग्रवाल अपनी 80 फुटा रोड स्थित दुकान पर कारोबार में व्यस्त थे. कागज खरीदने वालों और कर्मचारियों की चहलपहल शुरू हो गई थी. तभी 11 बज कर 21 मिनट पर पदम अग्रवाल के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने मोबाइल स्क्रीन पर नजर डाली तो काल उन की बेटी हर्षिता की थी. काल रिसीव कर पदम अग्रवाल ने पूछा, ‘‘कैसी हो बेटी? ससुराल में सब ठीक तो है?’’

हर्षिता रुंधे गले से बोली, ‘‘पापाजी, यहां कुछ भी ठीक नहीं है. सासू मां झगड़ा कर रही हैं और मुझे प्रताडि़त कर रही हैं. उन्होंने मेरे गाल पर कई थप्पड़ मारे और झाडू से भी पीटा. पापा, मुझे ऐसा लग रहा है कि ये लोग मुझे जान से मारना चाहते हैं. इस षड्यंत्र में मेरी ननद परिधि और उस का पति आशीष भी शामिल हैं. सासू मां ने मुझ से कार की चाबी छीन ली है और दरवाजा लाक कर दिया है. पापा, आप जल्दी से मेरी ससुराल आ जाइए.’’

बेटी हर्षिता की व्यथा सुन कर पदम अग्रवाल का मन व्यथित हो उठा, गुस्सा भी आया. उन्होंने तुरंत अपने दामाद उत्कर्ष को फोन मिलाया, लेकिन उस का फोन व्यस्त था, बात नहीं हो सकी. तब उन्होंने अपने समधी सुशील अग्रवाल को फोन कर के हर्षिता के साथ उस की सास रानू अग्रवाल द्वारा मारपीट की जानकारी दी और मध्यस्तता की बात कही.

दुकान पर चूंकि भीड़ थी. इसलिए पदम अग्रवाल को कुछ देर रुकना पड़ा. अभी वह हर्षिता की ससुराल एलेनगंज स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि 12 बज कर 42 मिनट पर उन के मोबाइल पर पुन: काल आई. इस बार काल उन के समधी सुशील अग्रवाल की थी.

उन्होंने काल रिसीव की तो सुशील कांपती आवाज में बोले, ‘‘पदम जी, आप जल्दी घर आ जाइए.’’ पदम उन से कुछ पूछते, उस के पहले ही उन्होंने फोन का स्विच औफ कर दिया.

समधी की बात सुन कर पदम अग्रवाल बेचैन हो गए. उन के मन में विभिन्न आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह कार से पहले घर  पहुंचे फिर वहां से पत्नी संतोष व बेटी गीतिका को साथ ले कर हर्षिता की ससुराल के लिए निकल पड़े. हर्षिता की ससुराल कानपुर शहर के कोहना थाने के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र एलेनगंज में थी. सुशील अग्रवाल का परिवार एलेनगंज के एल्डोराडो अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल के फ्लैट नं. 706 में रहता था.

क्षतविक्षत मिला हर्षिता का शव पदम अग्रवाल सर्वोदय नगर में रहते थे. सर्वोदय नगर से हर्षिता की ससुराल की दूरी 5 कि.मी. से भी कम थी. उन्हें कार से वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. वह कार से उतर कर आगे बढे़ तो वहां का दृश्य देख कर वह अवाक रह गए.

अपार्टमेंट के बाहर फर्श पर उन की बेटी हर्षिता का क्षतविक्षत शव पड़ा था और सामने गैलरी में हर्षिता का पति उत्कर्ष, सास रानू, ससुर सुशील तथा ननद परिधि मुंह झुकाए खडे़ थे. पदम के पूछने पर उन लोगों ने बताया कि हर्षिता ने सातवीं मंजिल की खिड़की से कूद कर जान दे दी.

उन लोगों की बात सुन कर पदम अग्रवाल गुस्से से बोले, ‘‘मेरी बेटी हर्षिता ने स्वयं कूद कर जान नहीं दी. तुम लोगों ने दहेज के लिए उसे सुनियोजित ढंग से मार डाला है. मैं तुम लोगों को किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगा.

इसी के साथ उन्होंने मोबाइल फोन द्वारा थाना कोहना पुलिस को घटना की सूचना दे दी. उन्होंने अपने परिवार तथा सगे संबंधियों को भी घटना के बारे में बता दिया. खबर मिलते ही पदम के भाई मदन लाल, मनीष अग्रवाल, भतीजा गोपाल और साला मनोज घटनास्थल पर आ गए.

हर्षिता का क्षतविक्षत शव देख कर मां संतोष दहाड़ मार कर रोने लगी थीं. रोतेरोते वह अर्धमूर्छित हो गईं. परिवार की महिलाओं ने उन्हें संभाला और मुंह पर पानी के छींटे मार कर होश में लाईं. गीतिका भी छोटी बहन की लाश देख कर फफक रही थी. रोतेरोते वह मां को भी संभाल रही थी. मां बेटी का करूण रुदन देख कर परिवार की अन्य महिलाओं की आंखों में भी अश्रुधारा बहने लगी.

इधर जैसे ही कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत को हर्षिता की मौत की सूचना मिली, वह पुलिस टीम के साथ एल्डोराडो अपार्टमेंट आ गए. आते ही उन्होंने घटनास्थल को कवर कर दिया, ताकि कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके. मामला चूूंकि 2 धनाढ्य परिवारों का था. इसलिए उन्होंने तत्काल घटना की खबर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

खबर पाते ही एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंत देव तिवारी, सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे और सीओ (स्वरूप नगर) अजीत सिंह चौहान घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. साथ ही उपद्रव की आशंका से थाना काकादेव, स्वरूप नगर तथा कर्नलगंज से पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी दहल उठे. हर्षिता  अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल की खिड़की से गिरी थी. अधिक ऊंचाई से गिरने के कारण उस के सिर की हड्डियां चकनाचूर हो गई थीं और चेहरा विकृत हो गया था. शरीर के अन्य हिस्सों की भी हड्डियां टूट गई थीं.

हर्षिता का रंग गोरा था और उस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. पुलिस अधिकारियों ने फ्लैट नं. 706 की किचन के बराबर वाली उस खिड़की का भी मुआयना किया जहां से हर्षिता कूदी थी या फिर उसे फेंका गया था.

फ्लैट से पुलिस को कोई ऐसी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली जिस से साबित होता कि हर्षिता की हत्या की गई थी. फोरैंसिक टीम ने भी एक घंटे तक जांच कर के साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने हर्षिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया.

घटनास्थल पर अन्य लोगों के अलावा हर्षिता का पति उत्कर्ष तथा उस के माता पिता मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने सब से पहले मृतका के पति उत्कर्ष से पूछताछ की. उसने बताया कि वह हर्षिता से बहुत प्यार करता था, लेकिन उस के जाने से सब कुछ खत्म हो गया है. शादी के बाद वह दोनों बेहद खुश थे. मम्मीपापा भी उसे काफी प्यार करते थे. उसे अपना फोटोग्राफी का व्यवसाय शुरू कराने वाले थे, आनेजाने के लिए उसे कार भी दे रखी थी. कहीं आनेजाने पर कोई रोकटोक नहीं थी.

28 मई से 16 जून 2019 तक वे दोनों अमेरिका में रहे, तब भी भविष्य को ले कर सपने बुने लेकिन क्या पता था कि सारे सपने टूट जाएंगे. आज मैं और पापा फैक्ट्री में थे तभी मम्मी का फोन आया. हम लोग तुरंत घर आए. हर्षिता खिड़की से नीचे कैसे गिरी उसे पता नहीं है.

हर्षिता के ससुर सुशील कुमार अग्रवाल ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि उन्हें अपनी फैक्ट्री मंधना से तांतियागंज में शिफ्ट करनी थी. माल ढुलाई के लिए वह आज सुबह 9 बजे ही फैक्ट्री पहुंच गए थे. उस समय घर में सबकुछ ठीकठाक था.

दोपहर 12.35 बजे पत्नी रानू ने फोन कर बताया कि बहू हर्षिता अपार्टमेंट की खिड़की से गिर गई है. यह पता चलते ही उन्होंने हर्षिता के पिता को फोन किया और फौरन घर आने को कहा. फिर बेटे उत्कर्ष को साथ ले कर घर के लिए चल दिए. घर पहुंचे तो वहां बहू हर्षिता की लाश नीचे पड़ी मिली.

मृतका हर्षिता की सास रानू अग्रवाल ने बताया कि सुबह 9 बजे के लगभग उत्कर्ष अपने पापा के साथ मंधना स्थित फैक्ट्री चला गया था. बरसात थमने के बाद नौकरानी आ गई. उस के आने के बाद वह एक जरूरी कुरियर करने जाने लगी. उस वक्त बहू हर्षिता सफाई कर रही थी. शायद वह खिड़की के पास कबूतरों द्वारा फैलाई गई गंदगी को साफ कर रही थी.

नौकरानी ने खोला भेद  वह कुरियर का पैकेट ले कर फ्लैट के दरवाजे के पास ही पहुंची थी कि नौकरानी के चिल्लाने की आवाज आई. वह वहां पहुंची तो देखा कि हर्षिता खिड़की से नीचे गिर गई है. नौकरानी ने उसे खींचने की कोशिश की लेकिन वह उसे बचा नहीं पाई. इस पर उस ने शेर मचाया और नीचे जा कर देखा. बहू की मौत हो चुकी थी. फिर उस ने जानकारी फोन पर पति को दी.

फ्लैट पर नौकरानी शकुंतला मौजूद थी. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की. उस ने मालकिन रानू अग्रवाल के झूठ का परदाफाश कर दिया और सारी सच्चाई बता दी. शकुंतला ने बताया कि वह सुबह साढे़ 9 बजे फ्लैट पर पहुंची थी.

उस समय भैया (उत्कर्ष) और उन के पापा (सुशील) फैक्ट्री जा चुके  थे. भाभी (हर्षिता) और मालकिन रानू ही फ्लैट में मौजूद थी. किसी बात पर उन में विवाद हो रहा था.

मालकिन भाभी से कह रही थीं कि नौकरानी को 8 हजार रुपए दिए जाते हैं और तुम कमरे में पड़ी रहती हो. घर का काम नहीं कर सकतीं. इस के बाद दोनों में नौकझोंक होने लगी. इसी नौकझोंक में मालकिन ने भाभी को 2-3 थप्पड़ जड ़दिए और फिर झाडू उठा कर मारने लगीं. तब भाभी कार की चाबी ले कर बाहर जाने लगीं. पर मालकिन गेट पर खड़ी हो गईं.

मेनगेट बंद कर ताला लगा लिया और चाबी अपने पास रख ली. गुस्से में भाभी ने सिर दीवार से टकराने की कोशिश की तो मैं ने मना किया. फिर वह खिड़की से नीचे कूदने लगीं तो मैं ने उन का हाथ पकड़ कर खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद वह बरतन धोने लगी. लगभग साढे़ 12 बजे मालकिन चिल्लाईं तो मैं वहां पहुंची. मैं ने देखा कि भाभी खिड़की से नीचे लटकी थीं. मैं ने उन के पैर का पंजा व कुरता पकड़ कर ऊपर खींचने की कोशिश की, लेकिन बचा नहीं पाई. इस दौरान मालकिन पीछे खड़ी रहीं. उन्होंने मदद नहीं की.

नौकरानी शकुंतला के बयानों के बाद थानाप्रभारी प्रभुकांत ने पुलिस अधिकारियों के आदेश पर रानू अग्रवाल को महिला पुलिस के सहयोग से हिरासत में ले लिया. उसे हिरासत में लेते ही मृतका के मायके वालों का गुस्सा फूट पड़ा. महिलाएं हत्यारिन सास कह कर रानू पर टूट पड़ीं.

पुलिस ने बड़ी मशक्कत से रानू अग्रवाल को हमलावर महिलाओं से बचाया और उसे पुलिस सुरक्षा में जीप में बिठा कर थाना कोहना भेज दिया. पुलिस को शक था कि कहीं मायके वाले उत्कर्ष व उस के पिता सुशील कुमार पर भी हमला न कर दें. इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें भी थाने भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका हर्षिता के पिता पदम अग्रवाल से घटना के संबंध में जानकारी ली तो वह फफक पडे़ और बोले, ‘‘मैं ने हर्षिता को बडे़ लाडप्यार से पालपोस कर बड़ा किया, पढ़ायालिखाया था. शादी भी बडे़ अरमानों के साथ की थी. उस की शादी में करीब 40 लाख रुपए खर्च किया था. इस के बावजूद ससुराल वालों का पेट नहीं भरा. शादी के कुछ दिन बाद ही वह रुपयों के लालच में बेटी को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगे थे.

‘‘मार्च 2019 में समधी सुशील कुमार की बेटी परिधि की शादी थी. शादी के लिए उन्होंने हर्षिता के मार्फत 25 लाख रुपए मांगे थे. लेकिन उस ने मना कर दिया था. तब पूरा परिवार बेटी को प्रताडि़त करने लगा. फैक्ट्री शिफ्ट करने के लिए भी कभी 30 लाख तो कभी 40 लाख की मांग की थी.

‘‘आज 11.20 बजे हर्षिता ने फोन कर के सास द्वारा प्रताडि़त करने की जानकारी दी थी. उस ने जानमाल का खतरा भी बताया था. आखिर दहेज लोभियों ने मेरी बेटी को मार ही डाला. आप से मेरा अनुरोध है कि इन दहेज लोभियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर के इन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने में मदद करें.’’

ससुराल वालों के खिलाफ हुआ केस दर्ज पदम अग्रवाल की तहरीर पर कोहना थानाप्रभारी प्रभुकांत ने भादंवि की धारा 498ए, 304बी, 506 तथा दहेज अधिनियम की  धारा 3/4 के अंतर्गत हर्षिता की सास रानू अग्रवाल, पति उत्कर्ष अग्रवाल, ससुर सुशील कुमार  अग्रवाल, ननद परिधि और ननदोई आशीष जालौन के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. मामले की जांच का कार्य सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे को सौंपा गया.

7 जुलाई, 2019 को हर्षिता का जन्म दिन था. बर्थ  डे पर ही उस की अरथी उठी. पदम अग्रवाल की लाडली बेटी का जन्म 7 जुलाई, 1991 को रविवार के दिन हुआ था. 28 साल बाद उसी तारीख और रविवार के दिन घर से बेटी की अरथी उठी.

उसी दिन उस के शव का पोस्टमार्टम हुआ. दोपहर बाद शव घर पहुंचा तो वहां कोहराम मच गया. लाल जोडे़ में सजी अरथी को देख कर मां संतोष बेहोश हो गई. महिलाओं ने उन्हें संभाला. हर्षिता को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा.

हर्षिता की मौत का समाचार 7 जुलाई को कानपुर से प्रकाशित प्रमुख समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपा तो शहर वासियों में गुस्सा छा गया. लोग एक सुर से हर्षिता को न्याय दिलाने की मांग करने लगे. सामाजिक संगठन, महिला मंच, मुसलिम महिला संगठन, जौहर एसोसिएशन आदि ने घटना की घोर निंदा की और एकजुट हो कर हर्षिता को न्याय दिलाने का आह्वान किया.

इधर विवेचक जनार्दन दुबे ने जांच प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए एक बार फिर घटनास्थल का निरीक्षण किया. फ्लैट को ख्ांगाला और घटना की अहम गवाह नौकरानी शकुंतला का बयान दर्ज किया. साथ ही फ्लैट के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखीं. आरोपियों के बयान भी दर्ज किए गए. साथ ही मृतका के मातापिता का बयान भी लिया गया.

जांच के बाद ससुरालियों द्वार हर्षिता को प्रताडि़त करने का आरोप सही पाया गया. इस में सब से बड़ी भूमिका हर्षिता की सास रानू की थी. यह बात भी सामने आई कि उत्कर्ष और सुशील कुमार अग्रवाल भी हर्षिता को प्रताडि़त करते थे. रानू अग्रवाल हर्षिता को सब से ज्यादा प्रताडि़त करती थी.

जांच के बाद 7 जुलाई, 2019 को थाना कोहना पुलिस ने अभियुक्त रानू अग्रवाल, उत्कर्ष अग्रवाल तथा सुशील अग्रवाल को विधि सम्मत गिरफ्तार कर लिया. रानू अग्रवाल को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दूसरे रोज 8 जुलाई को उत्कर्ष तथा सुशील को कोर्ट में पेश किया गया. जहां से उन दोनों को भी जेल भेज दिया गया.

हर्षिता की मौत के मामले में नामजद 5 आरोपियों में से 3 जेल चले गए थे, जबकि 2 आरोपी हर्षिता की ननद परिधि जालान तथा ननदोई आशीष जालान बाहर थे. सीओ जनार्दन दुबे की विवेचना में ये दोनों निर्दोष पाए गए. रिपोर्टकर्ता पदम अग्रवाल ने भी इन दोनों को क्लीन चिट दे दी थी. इसलिए विवेचक ने दोनों का नाम मुकदमे से हटा दिया.

हर्षिता की मौत के गुनहगारों को पुलिस ने हालांकि जेल भेज दिया था, लेकिन कानपुर वासियों का गुस्सा अब भी ठंडा नहीं पड़ा था. सामाजिक संगठन, महिला मंच आल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेंस एसोसिएशन, मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन महिला संगठन तथा स्कूली छात्राएं सड़कों पर प्रदर्शन कर रही थीं

10 जुलाई को भारी संख्या में महिलाएं छात्राएं तथा सामाजिक संगठनों के लोग मोतीझील स्थित राजीव वाटिका पर जुटे और हर्षिता की मौत के गुनहगारों को फांसी की सजा दिलाने के लिए शांति मार्च निकाला. इस दौरान हर किसी की आंखों में गम और चेहरे पर गुस्सा था.

हर्षिता की मौत को ले कर मुसलिम महिलाओं में भी आक्रोश था. इसी कड़ी में हर्षिता को न्याय दिलाने के लिए मौलाना मोहम्मद अली जौहर एसोसिएशन की महिला पदाधिकारियों ने हलीम मुसलिम कालेज चौराहे पर श्रद्धांजलि सभा की, फिर कैंडिल मार्च निकाला. कैंडिल मार्च का नेतृत्व जैनब कर रही थीं. मुसलिम महिलाएं हाथ में ‘जस्टिस फार हर्षिता’, ‘हत्यारों को फांसी दो’ लिखी तख्तियां लिए थीं.

पदम अग्रवाल ने विवेचक पर आरोप लगाया कि वह जांच को प्रभावित कर के आरोपियों को फायदा पहुंचा रहे हैं. इस की शिकायत उन्होंने डीएम विजय विश्वास पंत से की. साथ ही आईजी मोहित अग्रवाल व एसएसपी अनंतदेव को भी इस बात से अवगत कराया.

पदम अग्रवाल की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए आईजी मोहित अग्रवाल ने सीओ (कर्नलगंज) जनार्दन दुबे से जांच हटा कर सीओ (स्वरूपनगर) अजीत सिंह चौहान को सौंप दी. जांच की जिम्मेदारी मिलते ही अजीत सिंह चौहान ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा फ्लैट में जा कर बारीकी से जांच की. साथ ही पदम अग्रवाल, उन की पत्नी संतोष, बेटी गीतिका तथा हर्षिता के पड़ोसियों का बयान दर्ज किया. फोरैंसिक टीम को साथ ले कर उन्होंने क्राइम सीन को भी दोहराया.

कानपुर महानगर के काकादेव थाना क्षेत्र में पौश इलाका है सर्वोदय नगर. इसी सर्वोदय नगर क्षेत्र के मोती विहार में पदम अग्रवाल अपने परिवार के साथ रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी संतोष के अलावा 2 बेटियां गीतिका व हर्षिता थीं. पदम अग्रवाल कागज व्यापारी हैं. कागज का उन का बड़ा कारोबार है. 80 फुटा रोड पर उन का गोदाम तथा दुकान है. अग्रवाल समाज में उन की अच्छी प्रतिष्ठा है.

पदम अग्रवाल अपनी बड़ी बेटी गीतिका की शादी कर चुके थे. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी. गीतिका से छोटी हर्षिता थी, वह भी बड़ी बहन गीतिका की तरह खूबसूरत, हंसमुख तथा मृदुभाषी थी. उस ने छत्रपति शाहूजी महाराज (कानपुर) यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन कर लिया था.

हर्षिता को फोटोग्राफी का शौक था. वह फोटोग्राफी से अपना कैरियर बनाना चाहती थी. इस के लिए उस ने न्यूयार्क इंस्टीट्यूट औफ फोटोग्राफी से प्रोफेशनल फोटोग्राफी का कोर्स पूरा कर लिया था.

हर्षिता जहां फोटोग्राफी के व्यवसाय की ओर अग्रसर थी, वहीं पदम अग्रवाल अपनी इस बेटी के हाथ पीले कर उसे ससुराल भेज देना चाहते थे. वह ऐसे घरवर की तलाश में थे, जहां उसे मायके की तरह सभी सुखसुविधाएं मुहैया हों. काफी प्रयास के बाद एक विचौलिए के मार्फत उन्हें उत्कर्ष पसंद आ गया.

उत्कर्ष के पिता सुशील कुमार अग्रवाल अपने परिवार के साथ कानपुर के कोहना थाना क्षेत्र स्थित एल्डोराडो अपार्टमेंट की 7वीं मंजिल पर फ्लैट नंबर 706 में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रानू अग्रवाल के अलावा बेटा उत्कर्ष तथा बेटी परिधि थीं. दोनों ही बच्चे अविवाहित थे.

सुशील कुमार धागा व्यापारी थे. मंधना में उन की अनुशील फिलामेंट प्राइवेट लिमिटेड नाम से पौलिस्टर धागा बनाने की फैक्ट्री थी. उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ धागे की फैक्ट्री को चलाता था. वह पढ़ालिखा और स्मार्ट था. पदम अग्रवाल ने उसे अपनी बेटी हर्षिता के लिए पसंद कर लिया. हर्षिता और उत्कर्ष ने एकदूसरे को देखा, तो वे दोनों भी शादी के लिए राजी हो गए. इस के बाद रिश्ता तय हो गया.

हर्षिता की जिंदगी में आया उत्कर्ष रिश्ता तय होने के बाद 24 जनवरी, 2017 को उत्कर्ष के साथ हर्षिता की शादी संपन्न हो गई. शादी मध्य प्रदेश के ओरछा रिसोर्ट में हुई थी. इस शादी में कानपुर शहर के उद्योगपतियों के अलावा अनेक जानीमानी हस्तियां शामिल हुई थीं. पदम अग्रवाल ने इस शादी में लगभग 40 लाख रुपया खर्च किए. उन्होंने बेटी को ज्वैलरी के अलावा उस की ससुराल वालों को वह सब दिया था, जिस की उन्होंने डिमांड की थी.

शादी के बाद 6 माह तक हर्षिता के जीवन में बहार रही. सासससुर व पति का उसे भरपूर प्यार मिला. लेकिन उस के बाद सास व ननद के ताने शुरू हो गए. उस पर घरगृहस्थी का बोझ भी लाद दिया गया. घर की साफसफाई कपडे़ व रसोई का काम भी उसे ही करना पड़ता.

नौकरानी कभी रख ली जाती तो कभी उस की छुट्टी कर दी जाती. काम करने के बावजूद हर्षिता के हर काम में टोकाटाकी की जाती. सास ताने देती कि तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया, वह नहीं सिखाया.

धीरेधीरे हर्षिता की सास रानू अग्रवाल के जुल्म बढ़ने लगे. रानू हर्षिता के उठनेबैठने, सोने पर आपत्ति जताने लगी थी. खानेपीने व घर के बाहर जाने पर भी आपत्ति जताती और प्रताडि़त करती थी. हर्षिता जब कभी घर से ब्यूटीपार्लर जाती तो सजासंवरा देख कर ऐसे ताने मारती कि हर्षिता का दिल छलनी हो जाता.

वह उत्कर्ष से शिकायत करती तो उत्कर्ष मां का ही पक्ष लेता और उसे प्रताडि़त करता. ससुर सुशील अग्रवाल भी अपनी पत्नी रानू के उकसाने पर हर्षिता को दोषी ठहराते और प्रताडि़त करते.

हर्षिता मायके जाती, लेकिन ससुराल वालों की प्रताड़ना की बात नहीं बताती थी. वह सोचती थी कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. पर एक रोज मां ने प्यार से बेटी के सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो हर्षिता के मन का गुबार फट पडा.

वह बोली, ‘‘मां, आप लोगों से दामाद चुनने में भूल हो गई. उस के मातापिता का व्यवहार ठीक नहीं है. सभी मुझे प्रताडि़त करते हैं.’’

बेटी की व्यथा से व्यथित मां संतोष ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. इस पर उत्कर्ष ससुराल आया और हर्षिता तथा संतोष से माफी मांग कर हर्षिता को साथ ले गया

हर्षिता के ससुराल आते ही उसे फिर प्रताडि़त किया जाने लगा. उस पर अब 25 लाख रुपए दहेज के रूप में लाने का दबाव बनाया जाने लगा.

दरअसल हर्षिता की ननद परिधि की शादी तय हो गई थी. शादी के लिए ही पति, सासससुर हर्षिता पर रुपए लाने का दबाव बना रहे थे. रुपए न लाने पर उन का जुल्म बढ़ने लगा था.

23 नवंबर, 2018 को हर्षिता के चचेरे भाई की शादी थी. हर्षिता शादी में शामिल होने आई तो उस ने मां को 25 लाख रुपया मांगने तथा प्रताडि़त करने की बात बताई. इस पर पदम अग्रवाल ने हर्षिता को ससुराल नहीं भेजा. 2 हफ्ते बाद उत्कर्ष अपने पिता सुशील के साथ आया और दोनों ने हाथ जोड़ कर माफी मांगी. सुशील ने अपनी पत्नी रानू के गलत व्यवहार के लिए भी माफी मांगी, साथ ही हर्षिता को प्रताडि़त न करने का वचन दिया, तभी हर्षिता को ससुराल भेजा गया.

सुशील कुमार अग्रवाल ने फैक्ट्री में नई मशीनें लगाने के लिए लगभग 2.5 करोड़ रुपए बैंक से लोन लिया था. इस लोन की भरपाई हेतु सुशील ने कभी 30 लाख, तो कभी 40 लाख की डिमांड की. लेकिन पदम अग्रवाल ने रुपया देने से मना कर दिया था.

हर्षिता की सास रानू अग्रवाल व पति उत्कर्ष ने भी हर्षिता के मार्फत लाखों रुपए मायके से लाने की बात कही. रुपए लाने से मना करने पर हर्षिता को परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी.

मई, 2019 में पदम अग्रवाल ने अमेरिका घूमने का प्लान बनाया. उन के साथ बड़ी बेटी गीतिका व उस का पति भी जा रहा था. पदम अग्रवाल ने हर्षिता व उस के पति उत्कर्ष को भी साथ ले जाने का निश्चय किया.

हर्षिता की सास रानू नहीं चाहती थी कि हर्षिता घूमने जाए. अत: उस ने हर्षिता का टिकट बुक कराने से मना कर दिया. तब पदम अग्रवाल ने ही बेटीदामाद का टिकट बुक कराया. 25 मई को पदम अग्रवाल अपनी पत्नी तथा दोनों दामाद व बेटियों के साथ टूर पर चले गए.

सास ने की बहू हर्षिता की पिटाई  16 जून को वे सब अमेरिका से लौट आए. टूर से लौटने के बाद हर्षिता मायके में ही रुक गई. वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी. लेकिन उत्कर्ष माफी मांग कर तथा समझा कर हर्षिता को ले गया. ससुराल पहुंचते ही सास रानू अग्रवाल हर्षिता को बातबेबात मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगी. उस ने हर्षिता के ब्यूटीपार्लर जाने पर भी रोक लगा दी. हर्षिता घर से निकलती तो वह कार की चाबी छीन लेती और मारपीट पर उतारू हो जाती.

6 जुलाई, 2019 को जब उत्कर्ष तथा सुशील फैक्ट्री चले गए तो घरेलू काम करने को ले कर सासबहू में झगड़ा होने लगा. कुछ देर बाद नौकरानी शकुंतला आ गई. तब भी दोनों में झगड़ा हो रहा था. तकरार ज्यादा बढ़ी तो किसी बात का जवाब देने पर सास रानू ने हर्षिता के गाल पर 2-3 थप्पड़ जड़ दिए तथा झाड़ू से पीटने लगी.

गुस्से में हर्षिता ने पर्स और कार की चाबी ली और घर के बाहर जाने लगी. यह देख कर रानू दरवाजे पर जा खड़ी हुई और उस ने मुख्य दरवाजा लौक कर दिया. इस पर गुस्से में हर्षिता किचन की बराबर वाली खिड़की पर पहुंची और वहां से कूदने लगी. लेकिन शकुंतला ने उसे खींच लिया और कमरे में ले आई.

इस के बाद शकुंतला बरतन साफ करने लगी. लगभग साढ़े 12 बजे रानू चिल्लाई तो शकुंतला वहां पहुंची. लेकिन हर्षिता खिड़की से कूद चुकी थी. हर्षिता स्वयं कूदी या सास रानू ने उसे धक्का दिया, शकुंतला नहीं देख पाई. हर्षिता जीवित है या मर गई, यह देखने के लिए रानू अपार्टमेंट के नीचे आई. उस ने हर्षिता का पर्स व चाबी उठाई, फिर हर्षिता की कलाई पकड़ कर नब्ज टटोली. इस के बाद उस ने पति सुशील को फोन किया, ‘‘जल्दी घर आओ. हर्षिता खिड़की से कूद गई है.’’

जानकारी पाते ही सुशील ने समधी पदम अग्रवाल को घर आने को कहा और उत्कर्ष के साथ घर आ गए. कुछ देर बाद पदम अग्रवाल भी अपनी पत्नी संतोष व बेटी गीतिका के साथ आ गए और बेटी का शव देखकर रो पड़े. उन्होंने थाना कोहना में ससुराली जनों के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई.

रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने रानू, उत्कर्ष, तथा सुशील कुमार अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. बाद में उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया.

दहेज हत्या के आरोपी सुशील कुमार अग्रवाल की जमानत हेतु जिला न्यायाधीश अशोक कुमार सिंह की अदालत में बचाव पक्ष के वकील ने अरजी दाखिल की. जिस पर 9 अगस्त को सुनवाई हुई. बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी को आधार बना कर तथा दहेज न मांगने की बात कह कर अरजी दाखिल की थी.

बचावपक्ष के वकील ने हृदय की बीमारी के तर्क के जरिए कोर्ट में जमानत की गुहार लगाई. वहीं पीडि़त पक्ष के वकील ने न्यायालय में जमानत का विरोध करते हुए दलील दी कि हर्षिता की मृत्यु विवाह के ढाई वर्ष के अंदर ससुराल में असामान्य परिस्थितियों में हुई है. विवेचना में भी विवेचक को पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं. दहेज हत्या का अपराध गैरजमानती होने के साथसाथ गंभीर भी है.

दोनों वकीलों की दलील सुनने के बाद जज ने कहा कि दहेज हत्या जैसे मामले में उदारता नहीं बरती जा सकती. इस से पीडि़तों का न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होगा. जहां तक आवेदक के बीमार होने की बात है, उसे जेल में इलाज मुहैया कराया जा सकता है. इस पर जज ने सुशील की जमानत खारिज कर दी. कथा संकलन तक सभी आरोपी जेल में बंद थे.

इश्क की फरियाद : परिवार का अंत

25अप्रैल, 2019 को कोराना गांव के लोगों ने बाकनाला पुल के नीचे एक युवक का शव पड़ा देखा.

कोराना गांव लखनऊ के थाना मोहनलालगंज के अंतर्गत आता है, जो  लखनऊ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों ने जब नजदीक जा कर देखा तो उन्होंने मृतक को पहचान लिया.

वह 45 वर्षीय आशाराम रावत का शव था, जो डलोना गांव का रहने वाला था. वह मोहनलालगंज में राजकुमार का टैंपो किराए पर चलाता था. उसी समय किसी ने इस की सूचना थाना मोनहलालगंज पुलिस को दे दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी गऊदीन शुक्ल एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल राजकुमार व लाखन सिंह को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस दल जब घटनास्थल पर पहुंचा तो उन्होंने शव देखते ही पहचान लिया क्योंकि वह टैंपो चालक आशाराम रावत का था. उस के हाथपैर लाल रंग के अंगौछे से बंधे थे और गला कटा हुआ था. उस के रोजाना मोहनलालगंज क्षेत्र में सवारी टैंपो चलाने के कारण पुलिस वाले भी उस से परिचित थे.

वहां से एक किलोमीटर दूरी पर स्थित अवस्थी फार्महाउस के पास एक टैंपो लावारिस हालत में मिला. टैंपो की तलाशी लेने पर जो कागज बरामद हुए, उस से पता चला कि वह टैंपो इंद्रजीत खेड़ा के रहने वाले राजकुमार का है. लोगों ने बताया कि यह वही टैंपो है, जिसे आशाराम चलाता था.

यह हत्या का मामला था. यह भी लग रहा था कि आशाराम की हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के उस का शव यहां फेंका गया था. क्योंकि वहां पर खून भी नहीं था.

पुलिस ने मृतक के घर सूचना भिजवाई तो उस की पत्नी रामदुलारी उर्फ निरूपमा रोतीबिलखती मौके पर आ गई. उस ने उस की पहचान अपने पति आशाराम रावत के रूप में की. वह रोजाना की तरह कल सुबह करीब 8 बजे टैंपो ले कर घर से निकले थे.

देर रात तक जब वह घर न लौटे तो बड़े बेटे 16 वर्षीय सौरभ ने उन्हें फोन लगाया तो आशाराम ने कुछ देर बाद लौटने को कहा था. काफी देर बाद भी जब वह घर नहीं आया तो निरूपमा ने भी पति को फोन कर के जानना चाहा कि वह कहां हैं. किंतु फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी. तब रात में ही मोहनलालगंज और निकटतम पीजीआई थाने जा कर निरूपमा ने पति के बारे में मालूमात की लेकिन कुछ पता न चलने पर वह निराश हो कर घर लौट आई थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. निरूपमा की तरफ से पुलिस ने गांव के दबंग मोहित साहू, उस के भाई अंजनी साहू, दोस्त अतुल रैदास निवासी जिला कटनी, मध्य प्रदेश और अब्दुल हसन निवासी सीतापुर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 506 और 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मामला एससी/एसटी उत्पीड़न का था, इसलिए इस की जांच एसपी द्वारा सीओ राजकुमार शुक्ला को सौंपी गई. रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. तब पुलिस ने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

आरोपी लिए हिरासत में पुलिस ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो उस से उन सब के 24 अप्रैल की रात के एक साथ होने की पुष्टि मिली. इसी बीच 26 अप्रैल को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मोहित साहू और उस के भाई अंजनी साहू को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों भाइयों से आशाराम रावत की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग पर शहर की व्यस्ततम कालोनी के बाहर लखनऊ एवं उन्नाव की सीमा पर थाना पीजीआई है. इसी थाने के अंतर्गत गांव डलोना है. इसी गांव में आशाराम रावत का परिवार रहता है. आशाराम का विवाह करीब 9 साल पहले डलोना गांव के ही प्रीतमलाल की सब से बड़ी बेटी रामदुलारी उर्फ निरूपमा के साथ सामाजिक रीतिरिवाज के साथ हुआ था.

रामदुलारी का जीवन ससुराल में हंसीखुशी के साथ अपने पति के साथ बीत रहा था. धीरेधीरे वह 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. इस समय बड़े बेटे सौरभ की उम्र लगभग 16 साल है. हालांकि आशाराम मूलरूप से लखनऊ के थाना गोसाईगंज के गांव कमालपुर का रहने वाला था, किंतु कामधंधे की तलाश में वह डलोना आ कर रहने लगा. यहां वह टैंपो चलाने लगा.

निरूपमा गोरे रंग की स्लिम शरीर वाली युवती थी. उस के चेहरे पर आकर्षण था. आशाराम टैंपो चालक होने के कारण व्यस्त रहता था. इसलिए घर के सारे काम वह ही करती थी, जिस की वजह से उसे घर से बाहर आनाजाना पड़ता था. तब गांव के कुछ लड़कों की नजरें निरूपमा को चुभती हुई महसूस होती थीं. लेकिन वह उन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी.

निरूपमा के पीछे पड़ गया था मोहित उन्हीं लड़कों में से एक मोहित साहू तो जैसे उस के पीछे पड़ गया था. मोहित की दूध डेयरी थी. दूध देने के बहाने वह निरूपमा के पास जाया करता था. इस से पहले निरूपमा ने उस की डेयरी पर करीब डेढ़ साल तक काम भी किया था. उसी दौरान वह निरूपमा के प्रति आकर्षित हो गया था. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा था. फिर एक दिन उस ने अपने मन की बात निरूपमा से कह भी दी.

निरूपमा ने उसे झिड़कते हुए कहा कि तुम ने मुझे समझ क्या रखा है. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बुरा होगा. निरूपमा की इस बेरुखी पर वह काफी आहत हुआ. लेकिन इस के बावजूद मोहित ने उस का पीछा करना नहीं छोड़ा. उसे देख कर निरूपमा आगबबूला हो उठती थी.

अकसर मोहित के द्वारा फब्तियां कसने पर निरूपमा ने कई बार उस की पिटाई कर दी थी किंतु इश्क में अंधे मोहित पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

निरूपमा उस से तंग आ चुकी थी. एक दिन उस ने अपने पति आशाराम को मोहित की हरकतों से अवगत कराया तो आशाराम ने निरूपमा को ही चुप रहने की सलाह दी. उस ने कहा कि वह आतेजाते मोहित को समझा देगा कि गांवघर की बहूबेटियों की इज्जत पर इस तरह कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है.

एक दिन आशाराम ने मोहित से बात की और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए कहा कि आइंदा वह ऐसा न करे.

कुछ दिन तक तो मोहित शांत रहा किंतु वह अपनी आदतों से मजबूर था. उस का बस एक ही मकसद था कि किसी भी तरह निरूपमा को पाना. कामधंधा छोड़ कर वह दीवानगी में इधरउधर निरूपमा की तलाश में लगा रहता. अंतत: उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

22 अप्रैल, 2019 की रात को गांव में सन्नाटा पसरा हआ था. लोग गरमी से बेहाल थे. कुछ तो घर के आंगन में तो कुछ अपनी छतों पर सोने का प्रयास कर रहे थे. निरूपमा भी घर के आंगन में पड़ी चारपाई पर अपने छोटे बेटे के साथ लेटी थी.

मोहित ने फांदी दीवार गरमी की वजह से उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी और बेचैनी से वह इधरउधर करवटें बदल रही थी. तभी अचानक घर में किसी के कूदने की आहट सुनाई दी. धीरेधीरे वह काला साया उस की ओर बढ़ने लगा तो निरूपमा ने पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘कौन?’’

निरूपमा की आवाज सुन कर काला साया कुछ क्षणों के लिए ठिठक गया. उस की खामोशी देख कर निरूपमा का माथा ठनका. उस ने सोचा कि यह मोहित ही होगा. उस ने पास आ कर देखा तो वह मोहित ही निकला.

उस रात मोहित काफी देर तक निरूपमा से मिन्नतें करता रहा कि वह एक बार उस की बात मान ले. किंतु निरूपमा ने उसे बुरी तरह डपट दिया. शोरशराबे से उस का पति आशाराम भी जाग गया. आशाराम ने भी मोहित को डांट दिया. उस दिन मोहित को अत्यधिक विरोध सहना पड़ा, जिस से वह अपमानित हो कर तिलमिला कर रह गया.

मोहित अपनी बेइज्जती पर भलाबुरा कहता हुआ उलटे पैरों वापस लौट गया. लेकिन मोहित ने तय कर लिया था कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा.

अगले दिन शाम के समय उस ने अपने भाई अंजनी, दोस्त अतुल रैदास और अब्दुल हसन को सारी बात बताई और कहा कि वह आशाराम को रास्ते से हटाना चाहता है. भाई और दोनों दोस्तों ने घटना को अंजाम देने के लिए उस का साथ देने की हामी भर दी.

इश्क के जुनून में अंधे मोहित ने निरूपमा का प्यार पाने के लिए अब कुचक्र रचना शुरू कर दिया. 24 अप्रैल, 2019 को शाम के वक्त आशाराम घर डलोना जाने वाली सवारियों का इंतजार कर रहा था. उसी समय मोहित अपने भाई अंजनी के साथ उस के टैंपो में आ कर बैठ गया. तभी मोहित ने ड्राइविंग सीट पर बैठे आशाराम से पीछे वाली सीट पर आ कर बैठने को कहा.

आशाराम मोहित साहू के पास बैठ कर बोला, ‘‘जरा सवारी ढूंढ लूं. तब तक तुम लोग बैठो, मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं यार, आज गाड़ी में कोई और नहीं चलेगा, हम तीनों ही चलेंगे. लो, पहले यह जाम पियो.’’ मोहित ने उस की तरफ शराब से भरा डिस्पोजेबल ग्लास बढ़ाते हुए कहा.

‘‘नहीं, मैं दिन में शराब नहीं पीता हूं, सवारियों को ऐतराज होता है.’’ आशाराम टैंपो की पिछली सीट से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं, तुम्हें आज मेरे साथ बैठ कर तो पीनी ही पड़ेगी.’’ मोहित ने जोर देते हुए कहा.

साजिशन पिलाई शराब कोई बखेड़ा खड़ा न हो जाए, यही सोच कर वह फिर से पिछली सीट पर आ कर बैठ गया. पिछले दिनों हुई कहासुनी को नजरअंदाज करते हुए मोहित के हाथ से गिलास ले कर एक ही सांस में वह शराब पी गया.

इस के बाद मोहित ने उसे 2 पेग और पिलाए. मोहित आशाराम को देख कर भौचक्का रह गया. फिर उस ने अंजनी को पैसे देते हुए कहा, ‘‘ले भाई, अंगरेजी की एक बोतल और ले आओ. अब हम लोग अतुल रैदास के कमरे पर चलेंगे, फिर वहीं बैठ कर पीएंगे.’’

अंजनी थोड़ी देर में दारू की बोतल ले आया. तब मोहित ने आशाराम से कहा, ‘‘अब तुम हम लोगों को अतुल रैदास के यहां छोड़ आओ, फिर अपने घर को चले जाना.’’

आशाराम उन से विवाद मोल नहीं लेना चाहता था. यही सोच कर वह उन दोनों के साथ गांव की ओर रवाना हो गया.

उस समय शाम के लगभग 7 बज चुके थे. जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस के बडे़ बेटे सौरभ ने काल की. उस समय आशाराम ने उस से कहा था कि वह थोड़ी देर में घर आ जाएगा.

मोहित और उस के भाई अंजनी को अतुल रैदास के कमरे पर पहुंचाने के बाद जब आशाराम घर लौटने लगा तो मोहित ने आशाराम को रोक लिया और कहा कि अब यहां हम लोग जम कर पिएंगे. आशाराम मना नहीं कर सका. उन्होंने आशाराम को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तब मोहित, अंजनी और अतुल ने आशाराम के गमछे से हाथपैर बांधने के बाद उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उन्होंने चाकू से उस का गला रेत दिया. अब्दुल हसन भी वहां आ चुका था. अब्दुल हसन उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला था. वहां रह कर मजदूरी करता था.

इन लोगों ने मिल कर आशाराम के शव को उसी के टैंपो में लाद कर कोराना गांव के पास बाकनाला पुल के नीचे जा कर फेंक दिया. तब तक काफी रात हो चुकी थी, जिस से लाश ठिकाने लगाते समय उन्हें किसी ने नहीं देखा. उस का टैंपो उन्होंने अवस्थी फार्महाउस के पास खड़ा कर दिया था, जो बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था.

सुबह होने पर लोगों ने आशाराम की लाश देखी तो सूचना पुलिस को दी गई. उन की निशानदेही पर पुलिस ने अतुल रैदास के कमरे से वह चाकू भी बरामद कर लिया, जिस से आशाराम का गला काटा गया था. मोहित साहू और अंजनी साहू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई. इस के 3 दिन बाद ही अब्दुल हसन व अतुल रैदास को 30 अप्रैल, 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया. इन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इन दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें भी जेल भेज दिया. कथा लिखने तक सभी हत्यारोपी जेल में बंद थे.

दिल का तीसरा कोना: कैसे बदली प्यार को लेकर कुहू की सोच

3 बार घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो मोनिका चौंकी, ‘क्या बात है जो कुहू दरवाजा नहीं खोल रही. उसी ने तो फोन कर के कहा था. आज मैं फ्री हूं, उमंग कंपनी टूर पर गया है. कुछ देर बैठ कर गप्प मारेंगे, साथ में लंच करेंगे. बस तू आ जा.’ मोनिका ने एक लंबी सांस ली, कितनी बातें करती थी कुहू. मैं यहां असम में पति के औफिस में काम करने वाले सहकर्मियों की पत्नियों के अलावा किसी और को नहीं जानती थी और कुहू को देखो, उस के जानने वालों की कोई कमी नहीं थी. अपनी बातें कहने के लिए उस के पास दोस्त ही दोस्त थे.

मोनिका और कुहू ने बनारस में एक हौस्टल, एक कमरे में 3 साल साथ बिताए थे. इसलिए एकदूसरे पर पूरा विश्वास था. जो 3 साल एक कमरे में एक साथ रहेगा, वह बेस्ट फ्रैंड ही होगा. मोनिका और कुहू भी बेस्ट फ्रैंड थीं. शादी के बाद भी दोनों फोन और ईमेल से बराबर जुड़ी रहीं. बाद में जब मोनिका के पति की नियुक्ति भी असम के उसी नगर में हो गई, जहां कुहू उमंग के साथ रह रही थी. तो…

मोनिका इतना ही सोच पाई थी कि उस के विचारों पर विराम लगाते हुए कुहू ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर मुसकान खिली हुई थी. कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, ‘‘अरे कब आई तुम, लगता है कई बार बेल बजाना पड़ा. मैं बैडरूम में थी, इसलिए सुनाई नहीं दिया.’’

उस के चेहरे पर भले ही मुसकान खिली थी, पर उस की आवाज से मोनिका को समझते देर नहीं लगी कि वह खूब रोई थी. उस के चेहरे पर उदासी के भाव साफ दिख रहे थे. मोनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘एक बात तो उमंग बिलकुल सच कहता है कि रोने के बाद तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हो जाती हैं.’’

बातें करते हुए दोनों ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गईं. मोनिका के चेहरे पर कुहू से मिलने की खुशी और उसे देख कर अंदर उठ रहे सवालों के जवाब की चाह नजर आ रही थी.

बातों के दौरान कुहू के चेहरे पर हल्की मुसकान के साथ उस की आंखों के कोर भीगे दिखाई दिए. उस ने बात को बदलते हुए कहा, ‘‘चलो मोनिका खाना खाते हैं.’’

खाने के लिए कह कर कुहू उठने लगी तो मोनिका ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘‘क्या बात है कुहू?’’

‘‘अरे कुछ नहीं यार, आज मैं ने एक वायरस को निपटा दिया है, जो मेरी जिंदगी की विंडो को खा रहा था.’’ कुहू ने बात तो मजबूरी के साथ शुरू की थी, पर पूरी करतेकरते उस का गला भर आया था.

मोनिका ने धीरे से पूछा, ‘‘कहीं तुम आरव की बात तो नहीं कर रही हो?’’ उस ने धीरे से स्वीकृति में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हां.’’

आरव उस का कौन था या वह आरव की कौन थी. दोनों में से यह कोई नहीं जानता था. फिर भी दोनों एकदूसरे से सालों से जुड़े थे. और कुहू, उस की तो बात ही निराली थी. वह बहुत ज्यादा सुंदर तो नहीं थी, पर उस की कालीकाली बड़ीबड़ी आंखों में एक अनोखा आकर्षण था. कोई भी उसे एक बार देख लेता, वह उसी में खो जाता.

होंठों पर हमेशा मधुर मुसकान, कभी किसी से कोई लड़ाईगझगड़ा नहीं, वह एक अच्छी मददगार थी. उस के मन में दूसरों के लिए दया का विशाल सागर था.

वह कभी दूसरों के लिए गलत नहीं सोच सकती थी. वह चंचल और हमेशा खुश रहने वालों में थी, किसी को सताने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. वह हमेशा हंसती और दूसरों को हंसाती रहती थी.

और इसी तरह एक दिन उस का रौंग नंबर लग गया. दूसरी ओर से ऐसी आवाज आई, जो किसी के भी दिल को भा जाए. उस मनमोहक आवाज में मंत्रमुग्ध हो कर कुहू इस तरह बातें करने लगी जैसे वह उसे अच्छी तरह जानती हो. थोड़ी देर बातें करने के बाद उस ने खुश हो कर फोन डिसकनेक्ट करते हुए कहा, ‘‘तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा आरव, तुम से फिर बातें करूंगी.’’

फोन रख कर कुहू पलटी और मोनिका के गले में बांहें डाल कर कहने लगी, ‘‘आज तो बातें करने में मजा आ गया. आज पहली बार किसी ऐसे लड़के से बात की है, जिस से फिर बात करने का मन हो रहा है.’’

‘‘तुझे क्या पता, वह लड़का ही है, देखा है उसे?’’ मोनिका ने टोका.

‘‘उस ने बताया कि एलएलबी कर रहा है तो लड़का ही होगा न?’’

‘‘बस, छोड़ो मुझे जाने दो, मुझे पढ़ना है. मैं तुम्हारी तरह होशियार तो हूं नहीं.’’ मोनिका ने कहा और कमरे में आ गई.

उस के पीछेपीछे कुहू भी आ गई. वह इस तरह खुश थी मानो उस ने प्रशासनिक नौकरी की प्रीलिम पास कर ली हो. कुहू बहुत ज्यादा नहीं पढ़ती थी फिर भी उस के नंबर बहुत अच्छे आते थे. जबकि मोनिका खूब मेहनत करती थी, तब जा कर उस के अच्छे नंबर आ पाते थे.

उस दिन के बाद उस ने आरव से बातचीत शुरू कर दी थी. दिन में कभी एक बार तो कभी 2 बार उस से बात जरूर करती थी. उस दिन कुहू बहुत खुश थी, क्योंकि आरव उस से मिलने हौस्टल आ रहा था. खुश तो थी, पर मन ही मन घबरा भी रही थी.

क्योंकि इस के पहले वह किसी लड़के से इस तरह नहीं मिली थी और न आमनेसामने बात की थी. पर अब तो आरव को आना ही था. उस दिन वह काफी बेचैन दिखाई दे रही थी. 11 बजे के आसपास हौस्टल के गेट पर बैठने वाली सरला देवी ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू नेगी, आप से कोई मिलने आया है.’’

मोनिका भी कुहू के पीछेपीछे दौड़ी कि देखूं तो कुहू का बौयफ्रैंड कैसा है. क्योंकि वह अकसर मुंह टेढ़ा कर के उस के बारे में बताया करती थी.

आरव भी घबराया हुआ था. गोरा रंग, भूरी आंखें और तपे सोने जैसी आभा वाले बाल, वह काफी सुंदर नौजवान था. दोनों हौस्टल के पार्क में एकदूसरे के सामने बैठे थे. मोनिका ने देखा तो आरव शायद सोच रहा था कि वह क्या बात करे.

वैसे कुहू के बताए अनुसार वह कम बातूनी नहीं था, पर किसी लड़की से शायद उस की यह पहली मुलाकात थी,  वह भी गर्ल्स हौस्टल  में. शायद वह रिस्क ले कर वहां आया था.

बात करने के लिए कुहू भी उत्सुक थी. उस से रहा नहीं गया तो उस ने आरव के हाथ में एक काला निशान देख कर उस के बारे  में पूछा, ‘‘यह क्या है? स्कूटर की ग्रीस लग गई है या जल गया है? क्या हुआ यहां?’’

एक साथ कुहू ने कई सवाल कर डाले.

आरव मुसकराया, अब उसे भी कुछ कहने यानी बातचीत करने का बहाना मिल गया था. उस ने कहा, ‘‘यह मेरा बर्थ मार्क है.’’

थोड़ी देर दोनों ने यहांवहां की बातें कीं, इधरउधर की बातें कर के आरव चला गया. वह गीतसंगीत का बहुत शौकीन था. जबकि कुहू को गीतसंगीत पसंद नहीं था. उसे सोना अच्छा लगता था. एक दिन वह सो रही थी, तभी सरला देवी ने आवाज लगाई, ‘‘कुहू नेगी का फोन आया है.’’

थोड़ी देर बाद कुहू बातचीत कर के लौटी, तो जोरजोर से हंसने लगी. मोनिका उस का मुंह ताक रही थी. हंस लेने के बाद कुहू ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आज तो आरव ने गाना गाया. उस की आवाज बहुत अच्छी है.’’

‘‘कौन सा गाना गाया?’’ मोनिका ने पूछा.

तो कुहू ने कहा, ‘‘बड़े अच्छे लगते हैं, ये धरती, ये नदियां, ये रैना और तुम.’’

थोड़ा रुक कर आगे बोली, ‘‘यही नहीं, वह सिनेमा देखने को भी कह रहा था. मैं मना नहीं कर पाई यार वह कितना भोला है, थोड़ा बुद्धू भी है. यार मोनिका, तुम भी साथ चलना. मैं उस के साथ अकेली नहीं जाऊंगी, ठीक नहीं लगता.’’

कुहू एकदम से चल पड़ी तो उसे चुप कराने के लिए मोनिका ने कहा, ‘‘ठीक है बाबा, चलूंगी बस…’’

आरव कुहू को देवानंद की पिक्चर दिखाने सिनेमा ले गया. साथ में मोनिका भी थी. लौट कर मोनिका ने मजाक किया, ‘‘अंधेरे में उस ने तेरा हाथ तो नहीं पकड़ लिया?’’

कुहू एकदम से चौंक कर बोली, ‘‘क्यों? वह कोई डरावनी फिल्म तो नहीं थी जो अंधेरे में डर के मारे मेरा हाथ पकड़ लेता.’’

मोनिका को खूब हंसी आई, जबकि वह थोड़ाथोड़ा समझ गई थी. जब उस ने कहा, ‘‘यार मोनिका, आरव की वकालत नहीं चली तो वह अच्छा गायक बन जाएगा. आज उस ने मुझे फिर एक गाना सुनाया, आप की आंखों में कुछ महके हुए से राज हैं… आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं…’’

मोनिका ने हंसते हुए उसे हिला कर कहा, ‘‘कहीं, उसे तुम से प्यार तो नहीं हो गया?’’

कुहू थोड़ी ढीली पड़ गई. उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘देख मोनिका, ये प्यारव्यार कुछ नहीं होता, बस एक कैमिकल लोचा होता है. तू छोड़ उस को…चल खाना खाने चलते हैं.’’

इस के बाद हम पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी में लग गए, कुहू के पेपर पहले हो गए तो वह घर लौटने की तैयारी करने लगी. उस की सुबह 7 बजे की बस थी. मेरे साथ मेरी एक सहेली बिंदु भी उसे बस स्टौप पर छोड़ने आई थी. आरव भी उसे बस पर बिठाने आया था. जातेजाते उस का कुछ अलग ही अंदाज था. उस ने आरव से खुद तो हाथ मिलाया ही बिंदु का हाथ पकड़ कर उस से मिलवाया.

‘‘मोनिका, सही बात तो यह कि मैं वहां से जा नहीं सकी, अभी भी उस का हाथ पकड़े वहीं खड़ी हूं. जब मैं ने उस की ओर हाथ बढ़ाते हुए उस की आंखों में झांका तो उन में जो दिखाई दिया, उसे उस समय तो नहीं समझ सकी. उस की बातें, उस के सुनाए गीत कानों में गूंज रहे थे. उस ने मेरी सगाई की बात सुनी तो उस का चेहरा उतर गया था. मेरा शरीर कहीं भी रहा हो, आत्मा अभी भी वहीं है.’’ आंसू पोंछते हुए कुहू ने कहा और चाय बनाने के लिए किचन में चली गई.

उस के पीछेपीछे मोनिका भी गई. उस ने कहा, ‘‘उस के बाद तुम फेसबुक पर आरव के संपर्क में आई थीं क्या?’’

कुहू ने हां में सिर हिलाया और कहने लगी, ‘‘हौस्टल से घर आने के बाद कुछ ही दिनों में उमंग से मेरी शादी हो गई. उमंग बहुत ही अच्छा और नेक आदमी था. उस के जीवन का एक ही ध्येय था जियो और जीने दो. पार्टी के शौकीन उमंग को खूब घूमने और घुमाने का शौक था. वह जहां भी जाता, मुझे अपने साथ ले जाता. बेटे की पढ़ाई में नुकसान न हो, इस के लिए उसे हौस्टल में डाल दिया. पर मेरा साथ नहीं छोड़ा.’’

बात सच भी थी. कुहू जब भी मोनिका को फोन करती, यही कहती थी, ‘शादी के 15 साल बाद भी उमंग का हनीमून पूरा नहीं हुआ है.’

कभीकभी हंसती, मस्ती में डूबी कुहू की आंखों के सामने एक जोड़ी थोड़ी भूरी, थोड़ी काली आंखें आ जातीं तो वह खो जाती. ऐसे में ही एक रोज उमंग ने कहा, ‘‘चलो अपना फेसबुक पेज बनाते हैं और अपने पुराने मित्रों को खोजते हैं. अपने पुराने मित्र से मिलने का यह एक बढि़या रास्ता है.’’

इस के बाद दोनों ने अपनेअपने मोबाइल पर फेसबुक पेज बना लिए.

एक दिन कुहू अकेली थी और अपने मित्रों को खोज रही थी. अचानक उस के मन में आया हो सकता है आरव ने भी अपना फेसबुक पेज बनाया हो. वह आरव को खोजने लगी. पर वहां तो तमाम आरव थे उस का आरव कौन है, कैसे पता चले. तभी उस की नजर एक चेहरे पर पड़ी तो वह चौंकी. शायद यही है आरव.

उस के पास उस की कोई फोटो भी तो नहीं. बस, यादें ही थीं. उस ने उस की प्रोफाइल खोल कर देखी. उस की जन्मतिथि और शहर भी वही था. उस ने तुरंत उस के मैसेज बौक्स में अपना परिचय दे कर मैसेज भेज दिया. अंत में उस ने यह भी लिख दिया, ‘क्या अभी भी मैं तुम्हें याद हूं?’

बाद में उसे संकोच हुआ कि अगर कोई दूसरा हुआ तो वह उसे कितना गलत समझेगा. कुहू ने एक बार फिर उस की प्रोफाइल चैक की और उस के फोटो देखने लगी तो उस के फोटो देख कर कुहू की आंखें नम हो गईं. यह तो उसी का आरव है.

फोटो में उस के हाथ पर वह काला निशान यानी ‘बर्थ मार्क’ था. अगले ही दिन आरव का संदेश आया, ‘हां’. अब इस ‘हां’ का अर्थ 2 तरह से निकाला जा सकता था. एक ‘हां’ का मतलब मैं आरव ही हूं. दूसरा यह कि तुम मुझे अभी भी याद हो. पर कुहू को दोनों ही अर्थों में हां दिखाई दिया.

कुहू ने इस संदेश के जवाब में अपना फोन नंबर दे दिया. थोड़ी देर में आरव औनलाइन दिखाई दिया तो दोनों ही यह भूल गए कि उन की जिंदगी 15 साल आगे निकल चुकी है. कुहू एक बच्चे की मां तो आरव 2 बच्चों का बाप बन चुका था. इस के बाद दोनों में बात हुई तो कुहू ने कहा, ‘‘आरव, तुम ने अपने घर में मेरी बात की थी क्या?’’

आरव की मां को कुहू के बारे में पता था कि दोनों बातें करते हैं. जब उस ने अपनी मां से कुहू की सगाई के बारे में बताया था तो उस की मां ने राहत की सांस ली थी. कुहू को यह बात आरव ने ही बताई थी. आरव पर इस का क्या असर पड़ा, यह जाने बगैर ही कुहू खूब हंसी थी. और आरव सिर्फ उस का मुंह देखता रह गया था.

हां, तो जब कुहू ने आरव से  पूछा कि उस ने उस के बारे में अपने घर में बताया कि नहीं? इस पर आरव हंस पड़ा था. हंसी को काबू में करते हुए उस ने कहा, ‘‘न बताया है और न बताऊंगा. मां तो अब हैं नहीं, मेरी पत्नी मुझ पर शक करती है. इसलिए मैं उस से कुछ भी बताने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’

दोनों का चैटिंग और बातचीत का सिलसिला चलता रहा. आरव हमेशा शिकायत करता कि वह उसे छोड़ कर चली गई थी. इस पर कुहू को पछतावा होता. बारबार आरव के शिकायत करने पर एक दिन उस ने नाराज हो कर कहा, ‘‘क्यों न चली जाती. क्या तुम ने मुझे रोका था. किस के भरोसे रहती.’’

आरव ने कहा, ‘‘एक बात पूछूं, पर अब उस का कोई मतलब नहीं है और तुम जो जवाब दोगी, वह भी मुझे पता है. फिर भी तुम मुझे बताओ, अगर मैं तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाता तो तुम मना तो नहीं करती. पर आज बात कुछ अलग है.’’

और सचमुच इस सवाल का कुहू के पास कोई जवाब नहीं था. और कोई भी… एक दिन आरव ने हंस कर कहा, ‘‘कुहू कोई समय घटाने का यंत्र होता तो हम 15 साल पीछे चले जाते.’’

‘‘अरे मैं तो कब से वहीं हूं, पर तुम कहां हो.’’ कुहू ने कहा.

‘‘अरे तुम मेरे पीछे खड़ी हो,’’ आरव ने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने देखा ही नहीं. तुम बहुत झूठी हो.’’ इस के बाद उस ने एक गाना गाया, ‘बंदा परवर थाम लो जिगर…’

कुहू भी जोर से हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारी यह गाने की आदत गई नहीं. अब इस आदत का मतलब खूब समझ में आता है, पर अब इस का क्या फायदा?’’

दिल की सच्ची और ईमानदार कुहू को थोड़ी आत्मग्लानि हुई कि वह जो कर रही है गलत है. फिर उस ने सब कुछ उमंग से बताने का निर्णय कर लिया और रात में खाने के बाद उस ने सारी सच्चाई उसे बता दी. अंत में कहा, ‘‘इस में सारी मेरी ही गलती है. मैं ने ही आरव को ढूंढा और अब मुझ से झूठ नहीं बोला जाता. अब जो सोचना हो सोचिए.’’

पहले तो उमंग थोड़ा परेशान हुआ, उस के बाद बोला, ‘‘कुहू तुम झूठ बोल रही हो, मजाक कर रही हो. सच बोलो, मेरे दिल की धड़कनें थम रही हैं.’’

‘‘नहीं उमंग, यह सच है.’’ कुहू ने कहा. उस ने सारी बातें तो उमंग को बता ही दी थीं, पर गाने सुनाने और फिल्म देखने वाली बात नहीं बताई थी. शायद हिम्मत नहीं हुई.

उमंग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उस ने कहा, ‘‘जाने दो, कोई प्राब्लम नहीं, यह सब तो होता रहता है.’’

अगले दिन कुहू ने आरव को सारी बात बताई तो उसे आश्चर्य हुआ. उस ने हैरानी से कहा, ‘‘कुहू, तुम बहुत भाग्यशाली हो, जो तुम्हें ऐसा जीवनसाथी मिला है. जबकि सुरभि ने तो मुझे कैद कर रखा है.’’

‘‘इस में गलती तुम्हारी है, तुम अपने जीवनसाथी को विश्वास में नहीं ले सके.’’ कुहू ने कहा.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है, मैं ने बहुत कोशिश की. सुरभि भी वकील है. पर पता नहीं क्यों वह ऐसा करती है.’’ आरव ने कहा.

इस के बाद एक दिन आरव ने कुहू की बात सुरभि को बता दी. उस ने कुहू से तो खूब मीठीमीठी बातें कीं, पर इस के बाद आरव का जीना मुहाल कर दिया. उस ने आरव से स्पष्ट कहा, ‘‘तुम कुहू से संबंध तोड़ लो, वरना मैं मौत को गले लगा लूंगी.’’

अगले दिन आरव का संदेश था, ‘कुहू मैं तुम से कोई बात नहीं कर सकता. सुरभि ने सख्ती से मना कर दिया है.’

उस समय कुहू और उमंग खाना खा रहे थे. संदेश पढ़ कर कुहू रो पड़ी. उमंग ने पूछा तो उस ने बेटे की याद आने का बहाना बना दिया. कई दिनों तक वह संताप में रही. फोन की भी किया, पर आरव ने बात नहीं की. हार कर कुहू ने संदेश भेजा कि अंत में एक बार तो बात करनी ही पड़ेगी, जिस से मुझे पता चल सके कि क्या हुआ है.

इस के बाद आरव का फोन आया. उस ने कहा, ‘‘मेरे यहां कुछ ठीक नहीं है. 3 दिन हो गए हम सोए नहीं हैं. सुरभि को हमारी नि:स्वार्थ दोस्ती से सख्त ऐतराज है. अब मैं आपसे प्रार्थना कर रहा हूं कि मुझे माफ कर दो. मुझे पता है, इन बातों से तुम्हें कितनी तकलीफ हो रही होगी. यह सब कहते हुए मुझे भी. विधि का विधान यही है. हम इस से बंधे हुए हैं.’’

कुहू बड़ी मुश्किल से सिर्फ इतना ही बोल सकी, ‘‘कोई प्राब्लम नहीं, अब मैं तुम से मिलने के लिए 15 साल और इंतजार करूंगी.’’

‘‘ठीक है.’’ कह कर आरव ने फोन काट दिया.  कुहू ने भी उस का नंबर डिलीट कर दिया, अपनी फ्रैंड लिस्ट से उसे भी बाहर कर दिया.

कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘यार मोनिका मैं ने उस का नंबर तो डिलीट कर दिया, पर जो नंबर मैं पिछले 15 सालों से नहीं भूल सकी, उसे इस तरह कैसे भूल सकती हूं. वजह, मुझे पता नहीं, मुझे उस से प्यार नहीं था, फिर भी मैं उसे भूल नहीं सकी. उस के लिए मेरा दिल दुखी है और अब मुझे यह भी पता नहीं कि इस दिल को समझाने के लिए क्या करूं. मेरी समझ में नहीं आता उस ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? जब उसे पता था तो उस ने ऐसा क्यों किया? बस, जब तक उसे अच्छा लगता रहा, मुझ से बातें करता रहा और जब जान पर आ गई तो तुम कौन और मैं कौन वाली बात कह कर किनारा कर लिया.’’

कुहू इसी तरह की बातें कह कर रोती रही और मोनिका ने उसे रोने दिया. उसे रोका नहीं. यह समझ कर कि उस के दिल पर जितना बोझ है, वह आंसुओं के रास्ते बह जाए तो अच्छा है.

वैसे भी मोनिका उस से कहती भी क्या? जबकि वह जानती थी कि वह प्यार ही था, जिसे कुहू भुला नहीं सकी थी, एक बार उस ने आरव से कहा था, ‘‘हम औरतों के दिल में 3 कोने होते हैं. एक में उस का घर, दूसरे में उस का मायका होता है, और जो दिल का तीसरा कोना है, उस में उस की अपनी कितनी यादें संजोई होती हैं, जिन्हें वह फुरसत के क्षणों में निकाल कर धोपोंछ कर रख देती है.’’

मोनिका सोचने लगी, जो लड़की प्यार को कैमिकल रिएक्शन मानती थी और दिल को मात्र रक्त सप्लाई करने का साधन, उस ने दिल की व्याख्या कर दी थी और अब भी वह कह रही थी कि आरव से प्यार नहीं है.

मोनिका ने उसे यही समझाया और वह खुद भी समझतीजानती थी कि उसे जो भी मिला है, अच्छा ही मिला है. जिसे कोई भी विधि का विधान बदल नहीं सकता.

हिमानी का याराना : आशिक बना हथियार

24 वर्षीय सोनू अपनी पत्नी हिमानी के साथ बाहरी दिल्ली स्थित बादली गांव के सिसोदिया मोहल्ले में रहता था. वह और हिमानी घर की ऊपरी मंजिल पर रहते थे, जबकि उस के पिता माधव सिंह और बहन पिंकी ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था और एक टूरिस्ट कंपनी की कार चला कर पूरे परिवार की जीविका चलाता था. 7 सितंबर, 2019 की रात 11 बजे तक परिवार के सभी सदस्य खाना खा चुके थे. सोनू को नींद आ रही थी, इसलिए वह हिमानी और डेढ़ साल के बच्चे के साथ पहली मंजिल पर अपने बैडरूम की ओर बढ़ गया. बेटे और बहू के जाने के बाद घर के बाकी सदस्य भी सोने चले गए.

सुबह करीब 7 बजे भाभी हिमानी के चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पिंकी उस के कमरे में गई तो हिमानी ने रोते हुए बताया कि रात को किसी बदमाश ने इन की हत्या कर दी है. अभी थोड़ी देर पहले जब नींद खुली तो देखा तो ये मरे पड़े थे.

बैड पर भाई सोनू की लाश देख कर पिंकी ने बदहवास हो कर रोना शुरू कर दिया. बेटी और बहू के रोने की आवाज सुन कर सोनू के मातापिता भी भागते हुए वहां पहुंच गए. सोनू की लाश देख कर चीखपुकार मच गई.

तभी पिंकी ने अपने मोबाइल से 100 नंबर पर पुलिस को फोन कर अपने भाई की हत्या की सूचना दे दी. थोड़ी देर बाद बादली थाने से एसआई मनीष कुमार वहां पहुंच गए. लाश को दख्ेने के बाद उन्होंने पाया कि सोनू के गले पर एक स्याह निशान बना हुआ था. चूंकि मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने इस मामले की सूचना थानाप्रभारी अक्षय कुमार को दे दी.

थोड़ी देर में थानाप्रभारी अक्षय कुमार थाने में मौजूद पुलिस स्टाफ के साथ सिसोदिया मोहल्ला स्थित माधव सिंह के घर जा पहुंचे. घर की पहली मंजिल पर पहुंच कर उन्होंने लाश का मुआयना किया तो मृतक के गले पर गहरा स्याह निशान मिला.

ऐसा लग रहा था मानो किसी ने रस्सी या चुन्नी से उस का गला घोंटा हो. कमरे का बारीकी से निरीक्षण करने पर उन्होंने पाया कि सभी सामान अपनी जगह पर था. घर से कोई सामान गायब नहीं था. मतलब हत्यारा जो भी रहा हो, उस की मंशा सिर्फ सोनू की हत्या करने की रही थी.

थानाप्रभारी ने फोरैंसिक टीम को बुला लिया. मृतक के पिता माधव सिंह से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि रात के 12 बजे सोनू अपनी पत्नी हिमानी के साथ ग्राउंड फ्लोर से पहली मंजिल स्थित इस कमरे में आ गया था. इस के बाद सुबह 7 बजे हिमानी ने नीचे आ कर बताया कि सोनू की हत्या कर दी है.

यह सुन कर थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने मृतक की पत्नी हिमानी से पूछताछ की. पति की मौत से बुरी तरह आहत हिमानी की स्थिति बहुत खराब थी. वह छाती पीटपीट कर लगातार रोए जा रही थी. उस ने बस इतना बताया कि वह डेढ़ साल की बेटी के साथ पति की बगल में सो रही थी. गरमी ज्यादा होने के कारण ये कमरे का दरवाजा खुला छोड़ कर सोते थे. पता नहीं रात में वहां कौन आया और इन की हत्या करने के बाद फरार हो गया.

थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने उस वक्त हिमानी से ज्यादा पूछताछ करना उचित नहीं समझा. क्योंकि घर में सभी रोपीट रहे थे और माहौल गमगीन था. अलबत्ता उन्हें हिमानी पर शक हुआ.

फोरैंसिक एक्सपर्ट का काम निपट जाने के बाद उन्होंने एसआई मनीष कुमार तथा अन्य स्टाफ के साथ घर का मुआयना करना शुरू किया तो देखा बगल की छत उन की छत से मिली हुई थी. यह देख कर उन्होंने अनुमान लगाया कि हत्यारा संभवत: इसी रास्ते सोनू के कमरे तक पहुंचा होगा और वारदात को अंजाम देने के बाद चुपचाप इसी रास्ते फरार हो गया होगा. एसआई मनीष की भी यही सोच थी.

संदेह की हुई शुरुआत मौकामुआयना करने के बाद पुलिस टीम ने सोनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवन राम अस्पताल, जहांगीरपुरी भेज दी. वहां की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस टीम थाने लौट गई.  10 सितंबर को मृतक की बहन पिंकी की शिकायत पर थाने में सोनू की हत्या का मामला सागर उर्फ बलवा और राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया.

मामले की जांच खुद थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे. उन्होंने एसआई मनीष को कुछ निर्देश दे कर दोबारा मृतक के परिजनों को टटोलने के लिए उन के घर भेजा. वहां सभी ने सोनू की हत्या में पड़ोस में रहने वाले बदमाश सागर उर्फ बलवा पर शक जताया. एफआईआर में भी सागर को ही नामजद किया गया था.

पूछताछ के दौरान एसआई मनीष ने मृतक की पत्नी हिमानी को बुला कर उस से एक बार फिर पूछताछ की तो उन्हें ऐसा लगा जैसे वह जानबूझ कर इस केस का रुख दूसरी दिशा में मोड़ना चाह रही हो. यह देख कर उन्होंने उस का मोबाइल नंबर नोट कर लिया.

थाने लौट कर उन्होंने हिमानी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और उस का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. काल डिटेल्स की जांच के दौरान वह यह देख कर चौंके कि हिमानी लगातार एक मोबाइल नंबर के संपर्क में थी. वारदात वाली रात में भी हिमानी ने इस नंबर पर काफी देर बात की थी. मनीष कुमार ने यह बात थानाप्रभारी को बताई तो उन्होंने उस नंबर की काल डिटेल्स निकालने के आदेश दिए. मोबाइल नंबर की जांच की गई तो नंबर उसी सागर उर्फ बलवा का निकला, जिस पर मृतक के पिता एवं परिवार के अन्य लोगों ने सोनू की हत्या का आरोप लगाया था.

यह देख कर थानाप्रभारी और एसआई मनीष के चेहरों पर मुसकराहट दौड़ गई. उन्हें लगा कि हत्यारा अब उन की पकड़ से ज्यादा दूर नहीं है.  11 सितंबर की शाम को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने हिमानी को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. पूछताछ के दौरान हिमानी मासूम बन कर चालाकी से पुलिस की जांच की दिशा भटकाने की कोशिश करती रही लेकिन जब उस के सामने उस की काल डिटेल्स दिखा कर उस के और सागर के रिश्तों के बारे में पूछा गया तो उस का हलक सूख गया.

आखिरकार उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के और सागर उर्फ बलवा के बीच जिस्मानी रिश्ते हैं और उस ने सागर के साथ मिल कर 7-8 सितंबर के तड़के पति की हत्या की थी.

जुर्म स्वीकार कर लेने के बाद हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया. उसी शाम सागर के घर पर दबिश दे कर उसे भी दबोच लिया गया. पूछताछ के दौरान जब उसे बताया गया कि उस की माशूका हिमानी को गिरफ्तार कर लिया गया है, तो वह बुरी तरह चौंका. जब उसे उस की काल डिटेल्स दिखाई गई तो उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. बाद में दोनों की निशानदेही पर सोनू की हत्या में प्रयुक्त वह रस्सी भी बरामद कर ली, जिस से सोनू का गला घोंटा गया था. सोनू हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह है.

बाहरी दिल्ली जिले में एक गांव है बादली. माधव सिंह अपने परिवार के साथ यहीं रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी अंजू (काल्पनिक नाम), 24 साल का बेटा सोनू, बेटी पिंकी थे. माधव सिंह की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. वह एक होटल में काम करते थे. सोनू पेशे से ड्राइवर था, जबकि पिंकी एक बड़े अस्पताल में काम करती थी.

शादी के बाद खुश थे दोनों सोनू की शादी करीब 3 साल पहले हिमानी के साथ हुई थी. हिमानी गोरे रंग, आकर्षक नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की हिमानी को पत्नी के रूप में पा कर सोनू बहुत खुश था. हिमानी भी इस घर में आ कर खुश थी. पिंकी भाभी का पूरा खयाल रखती थी.

सोनू और हिमानी अपनी दुनिया में खुश रहते थे. सोनू का काम ऐसा था कि वह सुबह घर से निकलता था. इस के बाद उसे खुद भी पता नहीं रहता था कि वह घर कब लौटेगा.

हिमानी अपनी सास के साथ घर का कामकाज निबटाती और दिन का बाकी समय टीवी देखती या सो कर गुजारती थी. जब कभी उसे सोनू की याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर फोन कर के उस का हालचाल पूछ लिया करती थी. सोनू भी खाली वक्त में फोन करता था. बेटी के जन्म से घर में सभी खुश थे.

हिमानी का कमरा घर की पहली मंजिल पर था. जब कभी उसे बोरियत महसूस होती तो वह अपना मन बहलाने के लिए बालकनी में आ कर खड़ी हो जाती थी. इसी दौरान एक दिन उस की निगाहें पड़ोस में रहने वाले युवक सागर की निगाहों से टकराईं तो उस के तनबदन में सिहरन सी दौड़ गई.

पहले भी उस ने गौर किया था कि वह किसी न किसी बहाने उस के घर के सामने आ कर उसे एकटक निहारता है. उस दिन तो उसे सागर का यूं अपनी ओर बेशरमी से देखना अच्छा नहीं लगा, लेकिन बाद में उसे लगा कि पति के अलावा पड़ोस के लड़के भी उसे पसंद करते हैं तो उस के चेहरे पर मुसकराहट तैरने लगी.

हौलेहौले चाहत भरी नजरों के इस खेल में उसे भी मजा आने लगा. उस ने भी सागर की नजरों से नजरें मिलानी शुरू कर दीं. बात बढ़ती गई और मामला बातचीत से शुरू हो कर मोबाइल नंबर के आदानप्रदान तक पहुंच गया.

सागर में घुलमिल गई हिमानी सागर हिमानी को फोन कर के उस से मिलने की जिद करने लगा तो एक दिन जब वह घर में अकेली थी तो उस ने मौका देख कर सागर को अपने कमरे में बुला लिया. सागर बहुत बातूनी युवक था. उस ने हिमानी को अपनी मीठीमीठी बातों में ऐसा फंसाया कि वह उस की बांहों में अपनी सुधबुध खो बैठी.

हिमानी के बदन से खेलने के बाद सागर वहां से चला गया, लेकिन उस दिन के बाद जब कभी हिमानी को मौका मिलता, वह सागर को मिलने के लिए अपने घर में बुला लेती थी. कभीकभी वह खुद भी किसी काम के बहाने घर से निकल कर सागर की बताई हुई जगह पर पहुंच जाती थी.

शुरुआत में हिमानी और सागर के अवैध रिश्तों की जानकारी किसी को नहीं हुई, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. एक दिन सोनू को उस के किसी दोस्त ने उस की बीवी की बेवफाई की दास्तान बताई तो उसे उस की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. लेकिन जब लोगों ने सागर के साथ हिमानी का नाम जोड़ कर छेड़ना शुरू कर दिया तो उसे उन की बात पर विश्वास करना पड़ा.

सागर मोहल्ले का दबंग युवक था. लोग उस के सामने आने में कतराते थे. फिर भी सोनू ने उस से कहा कि वह हिमानी से मिलना छोड़ दे. सागर ने उस समय तो उस की बात मान ली लेकिन उस ने अपनी हरकतें जारी रखीं.

घटना के 4 दिन पहले सोनू और सागर के बीच बच्चों को ले कर जोरदार झगड़ा हुआ. इस दौरान सागर ने सोनू को 8 दिनों के अंदर जान से मारने की धमकी दी.

हिमानी का दिल अपने पति सोनू से भर चुका था. उसे सोनू से सागर ज्यादा प्यारा था, इसलिए जब सागर ने सोनू की हत्या करने की बात उसे बताई तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गई.

योजना के अनुसार 8 सितंबर की रात हिमानी ने सोनू के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. आधी रात को जब वह हिमानी के साथ अपने बैडरूम में पहुंचा तो लेटते ही नींद की आगोश में चला गया.

रात के करीब ढाईतीन बजे के बीच जब सारा मोहल्ला चैन की नींद सो रहा था, तभी हिमानी ने फोन कर सागर को अपने कमरे में आने के लिए कहा. सागर को पहले से ही हिमानी के फोन का इंतजार था. जैसे ही हिमानी ने बुलाया, वह दबे पांव छत के रास्ते हिमानी के कमरे में पहुंचा और एक रस्सी से सोनू का गला घोंट दिया.

रात भर हिमानी अपने पति की लाश के साथ सोई रही. सुबह 7 बजे उठ कर उस ने अपने ससुर माधव सिंह तथा सास अंजू को पति की हत्या होने की जानकारी दी.

12 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अक्षय कुमार ने सोनू हत्याकांड के दोनों आरोपियों हिमानी और सागर उर्फ बलवा को रोहिणी कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. इस हत्याकांड में दूसरे नामजद आरोपी राहुल का कोई हाथ न होने के कारण उस के खिलाफ काररवाई नहीं की गई. मामले की जांच थानाप्रभारी अक्षय कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुंवारा था कुंवारा ही रह गया

वीरू सैनी अपनी पत्नी शारदा और बच्चों के साथ मुरादाबाद के मोहल्ला झांझनपुर में रहते थे. उन के परिवार में 2 बेटों संजय कुमार और प्रदीप कुमार के अलावा 2 बेटियां थीं. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. वैसे वीरू सैनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के ही जिला संभल के शहर चंदौसी के रहने वाले थे, जो करीब 30 साल पहले काम की तलाश में मुरादाबाद आ गए थे.

वह एक अच्छे कुक थे, इसलिए मुरादाबाद दिल्ली रोड पर पीएसी के सामने स्थित त्यागी ढाबे पर उन की नौकरी लग गई थी. कुछ साल पहले उन के बड़े बेटे संजय की भी शहर की आशियाना कालोनी स्थित एक होटल में नौकरी लग गई थी.

घर में सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच उन की पत्नी शारदा की तबीयत खराब हो गई और फिर मौत हो गई. पत्नी की मृत्यु के बाद घर में खाना बनाने की परेशानी होने लगी. इसलिए वीरू ने संजय की शादी करने की सोची.

वैसे भी एकदो साल बाद उस की शादी करनी ही थी. बेटे की जल्द शादी कराने के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया. उन्होंने कह दिया कि लड़की चाहे गरीब परिवार से हो, लेकिन घर के कामकाज करने वाली होनी चाहिए.

एक दिन वीरू सैनी के दूर के रिश्ते का भांजा राजपाल उन के यहां आया. वह संभल के सरायतरीन मोहल्ले में रहता था. वीरू ने उस से संजय के लिए कोई लड़की बताने को कहा तो राजपाल ने बताया, ‘‘मामाजी, बरेली में एक ठेकेदार मेरे जानकार हैं. उन्होंने मुझ से एक लड़की की चर्चा की थी. लड़की अपनी ही जाति की है. उस के मांबाप नहीं हैं और अपनी मौसी के साथ रहती है. गरीब लोग हैं. चाहो तो उसे देख लो. बात बन गई तो आप को ही दोनों तरफ की शादी का खर्च उठाना होगा.’’

वीरू ने सोचा कि लड़की गरीब घर की है तो वह जिम्मेदारी के साथ घर को संभाल लेगी. लिहाजा उन्होंने लड़की देखने की हामी भर दी. उन्होंने यह भी पूछा कि लड़की की मौसी को शादी के लिए कितने पैसे देने होंगे. तब राजपाल ने कहा कि केवल 35 हजार दे देना. उसी में वह काम चला लेगी. क्योंकि शादी तो मंदिर में होनी है. इन पैसों से तो वह केवल लड़की के लिए कपड़े वगैरह खरीदेगी. और हां, लड़की पसंद आ जाए, पैसे तभी देना. वीरू इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद 27 जुलाई, 2019 को वीरू, उन के चारों बच्चे, दोनों दामाद और बहन लड़की देखने के लिए राजपाल के साथ बरेली पहुंच गए. तय हुआ कि पुराने किले के पास स्थित हनुमान मंदिर के नजदीक लड़की दिखा दी जाएगी. लिहाजा वे सभी हनुमान मंदिर के पास पहुंच गए. कुछ देर बाद एक महिला और एक आदमी लड़की के साथ वहां पहुंचे. राजपाल ने बताया कि लड़की का नाम पूजा है और साथ में उस की मौसी आशा है.

सब को लड़की आ गई पसंद वीरू और उन के बच्चों, दोनों दामादों ने लड़की को देखते ही पसंद कर लिया. चूंकि वीरू को राजपाल ने पहले ही बता दिया था कि लड़की पसंद आने पर शादी के लिए 35 हजार रुपए उन्हें ही देने होंगे, इसलिए वीरू ने 35 हजार रुपए उसी समय राजपाल को दे दिए. राजपाल ने वह रकम लड़की पूजा की मौसी आशा को दे दी.

इस के बाद राजपाल ने कहा कि इस की मौसी जल्द से जल्द पूजा की शादी करना चाहती हैं, इसलिए आप पंडित से बात कर के शादी की तारीख निकलवाओ. वीरू को तो शादी की वैसे भी जल्दी थी. वह चाह रहे थे कि पूजा जल्द ही बेटे की बहू बन कर घर आ जाए.

मुरादाबाद लौटने के बाद वीरू ने पंडितजी को बेटे संजय और पूजा की कुंडली दिखाई तो दोनों की कुंडली मिल गई. पंडित ने शादी के लिए 2 अगस्त, 2019 की तारीख बताई. यह खबर उन्होंने राजपाल के माध्यम से लड़की की मौसी आशा तक भिजवा दी. उन्होंने यह भी कह दिया कि शादी झांझनपुर, मुरादाबाद के बालाजी मंदिर के प्रांगण में होगी.

शादी की तारीख निश्चित हो जाने के बाद वीरू बेटे की शादी की तैयारी में जुट गए. धीरेधीरे वह तारीख भी आ गई, जिस का उन्हें इंतजार था. झांझनपुर स्थित बालाजी मंदिर के प्रांगण में वीरू ने पंडाल लगा कर शादी की सारी व्यवस्था कर ली थी. 2 अगस्त की सुबह ही बरेली से आशा पूजा को ले कर बालाजी मंदिर पहुंच गई थी.

मंदिर प्रांगण में हिंदू रीतिरिवाज से पूजा और संजय सैनी का विवाह हो गया. वहीं पर वीरू ने अपने मोहल्ले वाले व अन्य लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की थी. कन्यादान पूजा की मौसी आशा ने किया था.

शादी की सभी रस्में पूरी होने के बाद संजय सैनी पत्नी पूजा को विदा करा कर अपने घर ले आया. पूजा की मौसी भी बरेली वापस जाने के बजाए वीरू के यहां आ गई. उस ने कहा कि वह 2 दिन बाद चली जाएगी.

नईनवेली दुलहन के घर आने से खुशी का माहौल था. शादी का घर था, संजय के रिश्तेदार, बहन, भांजीभांजे भी घर पर थे. अगले दिन यानी 3 अगस्त को घर में शादी के बाद की रस्में शुरू हो गईं. अगली सुबह नईनवेली दुलहन पूजा ने घर पर रुके सभी रिश्तेदारों के लिए खाना बनाया. उस ने आलू बड़ी की सब्जी व कचौड़ी बनाई थी. उस के बनाए खाने की घर में रुके सभी रिश्तेदारों ने तारीफ की.

दिन में बहू की मुंहदिखाई की रस्म भी हुई. इस रस्म में पूजा के पास कई हजार रुपए इकट्ठे हो गए थे, जो उस ने अपने पास ही रखे. 3 अगस्त की शाम को पूजा ने खाना बनाया. शाम के खाने में उस ने कढ़ीचावल और रोटी बनाई. सभी ने हंसीखुशी खाना खाया.

पूजा की मौसी आशा ने कढ़ीचावल नहीं खाए. वह बोली कि मैं कढ़ी नहीं खाती. इसलिए उस ने सुबह की बची कचौड़ी व आलू बड़ी की सब्जी खाई.

वीरू सैनी जिस ढाबे पर काम करते थे, अपना खाना वह वहीं से पैक कर के ले आए थे. उन्होंने घर पर शराब के 2 पैग ले कर खाना खाया. खाना खा कर वह अपने कमरे में जा कर सो गए. खाना खा कर घर के अन्य सदस्य व मेहमान भी अलगअलग कमरों में जा कर सो गए.

उस रात संजय की सुहागरात थी, इसलिए वह मारे खुशी के फूले नहीं समा रहा था. वह भी अपने कमरे में पहुंच गया, जहां उस की पत्नी उस का पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रही थी.

पूरे घर में केवल एक ही बाथरूम था, जो ग्राउंड फ्लोर पर था. संजय के बहनोई विनोद कुमार पहली मंजिल पर स्थित कमरे में बच्चों के साथ सोए थे. उन्हें रात 3 बजे के करीब लघुशंका के लिए जब पहली मंजिल से नीचे आना पड़ा तो उन्होंने देखा कि घर का मुख्य दरवाजा खुला है.

उन्होंने बाहर आ कर देखा तो सब सुनसान था. उन्होंने नीचे कमरे में सो रहे अपने ससुर वीरू सैनी को जगाते हुए कहा कि मेनगेट खुला पड़ा है, क्या कोई बाहर गया हुआ है?

दुलहन पूजा ने खेला खेल वीरू सैनी ने संजय के कमरे में आवाज दी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. फिर उन्होंने संजय को जोरजोर आवाजें लगाईं तो संजय तो नहीं उठा लेकिन पिता की आवाज से ऊपर के कमरे में सोया उन का छोटा बेटा प्रदीप जरूर जाग गया.

वह नीचे उतर कर आया और संजय के कमरे में जा कर देखा, संजय बेसुध अवस्था में सोया हुआ था. उस ने उसे उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. वह बेहोशी की हालत में था.

घर से नईनवेली दुलहन पूजा व उस की मौसी आशा गायब थीं. दूसरे कमरे में संजय की बहनें व भांजेभांजियां भी बेहोशी की हालत में थे. इस के बाद तो पूरे घर में कोहराम मच गया. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग भी जाग गए थे.

उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई.

पुलिस वालों को मामला समझने में देर नहीं लगी और वे घर में बेहोशी की हालत में पड़े संजय, उस की बहनें मंजू व लक्ष्मी तथा उन के बच्चों चंचल व अंकित को अपनी गाड़ी से दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए.

अस्पताल में भरती सभी 5 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई थी. डाक्टर उन के इलाज में जुटे थे. सूचना पा कर थाना सिविल लाइंस के प्रभारी शक्ति सिंह व क्षेत्राधिकारी राजेश कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अगले दिन उन्हें होश आया तो थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की.

संजय सैनी ने उन्हें बताया कि उस की नईनवेली पत्नी पूजा ने उसे खाना खिलाया. खाना खाने के बाद उसे बेहोशी सी छाने लगी थी. इस के बाद उसे पता नहीं रहा. आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया. तब घर वालों ने बताया कि पूजा और उस की मौसी घर का कीमती सामान ले कर लापता हो चुकी हैं.

इस के बाद संजय के बहनोई और मोहल्ले के लोग पूजा और उस की मौसी को ढूंढने के लिए रेलवे स्टेशन, बसअड्डा आदि जगहों पर चले गए. लेकिन उन दोनों में से कोई भी नहीं मिला. निराश हो कर वे घर लौट आए.

पुलिस ने जब वीरू सैनी से गायब सामान के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि दुलहन पूजा और उस की मौसी घर से 16 हजार रुपए नकद, सोने की चेन, सोने के कुंडल, पेंडल समेत अन्य जेवर और कीमती कपड़े ले गई हैं.

वीरू सैनी की तहरीर पर पुलिस ने पूजा और उस की मौसी आशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आ गई.

 

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने लुटेरी दुलहन और उस के गैंग के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (सिटी) अंकित मित्तल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शक्ति सिंह, हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा आदि को शामिल किया गया.

राजपाल नाम के जिस बिचौलिए के मार्फत संजय की शादी कराई गई थी, पुलिस ने उस का फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. साथ ही पूजा की मौसी का फोन भी नहीं लग रहा था.

इसी बीच थानाप्रभारी शक्ति सिंह का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह इंसपेक्टर नवल मारवाह ने थाने का कार्यभार संभाला. वह इस केस की जांच में जुट गए. पुलिस ने आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. इस के अलावा मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

इस काररवाई के आधार पर पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला महादेवपुरा से अभियुक्त पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूजा के घर से पुलिस को एक अन्य युवती भी मिली. उस का नाम जयंती था.

जयंती से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जिला ऊधमसिंह नगर के कस्बा सितारगंज के शक्ति फार्म की निवासी है. वह एक बेटी की मां है. अपने पति को उस ने छोड़ रखा है. उस ने बताया कि वह भी पूजा की तरह शादी करने के बाद लोगों को लूटती है. यह काम वह मौसी आशा के इशारे पर करती है. पुलिस पूजा और जयंती को गिरफ्तार कर मुरादाबाद ले आई.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो जयंती ने बताया कि मौसी आशा ने जन्माष्टमी से 2 दिन पहले 22 अगस्त, 2019 को अरुण नामक युवक से मंदिर में उस की शादी करवाई थी. इस शादी के बदले आशा ने उसे 10 हजार रुपए देने का वादा किया था.

शादी के बाद घूमने के बहाने वह और उस का कथित पति अरुण व मौसी आशा के साथ ऊधमसिंह नगर के एक होटल में आ कर ठहरे थे. वहां पर आशा ने अरुण से और पैसों की मांग की. अरुण के पास उस समय पैसे नहीं थे. उस ने कहा कि वह पैसे कल दे देगा. जब अरुण सो गया तो आशा मौसी और वह उसे सोता छोड़ कर भाग गए थे.

जयंती भी शामिल थी इस गिरोह में   जयंती ने बताया कि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. उस की शादी एक जेल वार्डन के बेटे से हुई थी. समस्या यह थी कि ससुराल में नौनवेज कोई नहीं खाता था, जबकि जयंती मीट, मछली खाने की शौकीन थी. यह बात उसने अपने पति से बताई तो उस ने भी कह दिया कि यहां नौनवेज खाना तो दूर, पकाने तक पर भी प्रतिबंध है.

ऐसी हालत में जयंती का वहां रहना मुश्किल था, लिहाजा वह वहां से रिश्ता तोड़ कर चली आई और किसी के जरिए आशा मौसी के संपर्क में आई. फिर आशा ने उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया.

जयंती के पास से पुलिस को 2 जोड़ी पाजेब, नाक का एक फूल, सोने की एक अंगूठी मिली. अभियुक्त पूजा उर्फ कविता की शादी पीलीभीत में हुई थी. पूजा का 6 साल का एक बेटा भी है, जो पिता के पास ही रहता है. पुलिस छानबीन में पता चला कि उक्त गिरोह में 6 लोग शामिल हैं, जोकि लोगों को ठगी का शिकार बनाने के लिए अलगअलग शहरों में किराए का मकान ले कर ऐसे परिवारों के सदस्य का पता लगाते थे, जिस की शादी नहीं हो पा रही हो.

ये लोग ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसा कर पहले लड़की दिखाते हैं. लड़की पसंद आने के बाद इस गिरोह का मास्टरमाइंड बरेली का एक कथित ठेकेदार राम सिंह एडवांस में मोटी रकम ऐंठ लेता है. वही शादी की तारीख देता है. तय समय में शादी हो जाती थी.

जब बहू विदा हो कर ससुराल जाती थी तो इन की कथित मौसी आशा बहू के साथ रह जाती थी. वही कन्यादान भी करती थी. रात के खाने में नशीला पदार्थ मिला कर परिवार के लोगों को खिलाया जाता. फिर जब सब नशे में बेहोश हो जाते तो दोनों जेवर, रुपए व कीमती कपड़े ले कर फरार हो जातीं.

अभी तक पुलिस को इस गिरोह के 6 लोगों का पता चला है. पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को दोनों लुटेरी दुलहनों पूजा उर्फ कविता और जयंती को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

मामले की विवेचना मौजूदा थानाप्रभारी नवल मारवाह कर रहे हैं. कथा लिखने तक पुलिस अन्य आरोपियों की सरगरमी से तलाश रही थी.

मकड़जाल में फंसी जुलेखा

जुलेखा लखनऊ के आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. नाम की रियल एस्टेट कंपनी में नौकरी करती थी. वह रोजाना की तरह 3 अगस्त, 2019 को भी हंसखेड़ा स्थित अपने घर से ड्यूटी के लिए निकली, लेकिन शाम को निर्धारित समय पर घर नहीं पहुंची तो मां शरबती को चिंता हुई.

भाई नफीस ने जुलेखा के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब जुलेखा से फोन पर संपर्क नहीं हो सका तो उस ने मां शरबती को समझाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, हो सकता है कंपनी के काम में ज्यादा व्यस्त होने की वजह से जुलेखा ने अपना फोन बंद कर लिया हो. आप परेशान न हों, देर रात तक घर लौट आएगी.’’

कभीकभी औफिस में ज्यादा काम होने पर जुलेखा को घर लौटने में देर हो जाती थी. तब वह घर पर फोन कर के सूचना दे दिया करती थी. लेकिन उस दिन उस ने देर से लौटने की कोई सूचना घर वालों को नहीं दी थी, इसलिए सब को चिंता हो रही थी.

जुलेखा का एक दोस्त था श्रेयांश त्रिपाठी. नफीस ने सोचा कि कहीं वह उस के साथ तो नहीं है, इसलिए उस ने बहन के बारे में जानकारी लेने के लिए श्रेयांश को फोन किया. लेकिन उस का फोन भी बंद मिला.

देर रात तक नफीस, उस की मां शरबती और पिता शरीफ अहमद जुलेखा के लौटने का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटी. सुबह होने पर नफीस ने पिता से कहा कि हमें यह सूचना जल्द से जल्द पुलिस को दे देनी चाहिए.

लेकिन मां शरबती ने कहा, ‘‘इस मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है. थाने जाने से पहले उस के औफिस जा कर कंपनी के मालिक संजय यादव से पूछताछ कर ली जाए कि उन्होंने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर तो नहीं भेजा है.’’

नफीस के दिमाग में बात आ गई. उस ने बहन के औफिस जा कर कंपनी मालिक संजय यादव से संपर्क किया तो उस ने बताया कि जुलेखा कल वृंदावन कालोनी स्थित किसी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंटरव्यू देने गई थी. वह तेलीबाग के चौराहे तक उसे अपनी कार में ले गया था और वहां पास ही स्थित वृंदावन कालोनी के गेट पर कार से उतर गई थी. उस के बाद वह कहां गई, उसे पता नहीं है. वह वृंदावन सोसायटी में रहने वाली बड़ी बहन रूबी के पास जाने को भी कह रही थी.

‘‘वह रूबी के यहां नहीं पहुंची.’’ नफीस बोला.  ‘‘हो सकता है वह कहीं और चली गई हो. उस के आने का इंजजार करो. हो सकता है 2-4 दिन में लौट आए.’’

संजय से भरोसा मिलने के बाद नफीस घर लौट आया. लेकिन उस का मन कई प्रकार की आशंकाओं से भर उठा. नफीस और उस के मातापिता 3 दिन तक जुलेखा के घर आने का इंतजार करते रहे. जब वह नहीं आई तो 5 अगस्त, 2019 को नफीस थाना पारा पहुंचा और थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिल कर जुलेखा के बारे में उन्हें विस्तार से बताया.

थानाप्रभारी की टालमटोल अमित इंफ्रा हाइट्स कंपनी का नाम सुन कर थानाप्रभारी टालमटोल करते हुए बोले कि 2 दिन और देख लो. 2 दिन बाद भी वह न आए तो थाने आ जाना.

थानाप्रभारी के आश्वासन पर नफीस घर चला गया. 2 दिन बाद भी जुलेखा नहीं आई तो 7 अगस्त, 2019 को नफीस फिर से थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिला और रिपोर्ट दर्ज कर बहन को तलाश करने की मांग की. लेकिन उन्होंने उसे समझाबुझा कर अगले दिन आने को कह दिया. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

इस के बाद नफीस 9 अगस्त, 2019 को एसएसपी कलानिधि नैथानी से मिला और जुलेखा के गायब होने की बात बताते हुए कहा कि जुलेखा आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी में काम करने वाले संजय यादव, अवधेश यादव, गुड्डू यादव और अजय यादव के संपर्क में रहती थी.

इन दिनों पैसों के लेनदेन को ले कर जुलेखा का कंपनी मालिक संजय यादव से मनमुटाव चल रहा था. उसे शक है कि इन लोगों ने उस की बहन को कहीं गायब कर दिया है.

नफीस का दुखड़ा सुनने के बाद एसएसपी ने पारा के थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को आदेश दिया कि जुलेखा वाले मामले में जांच कर दोषियों के खिलाफ काररवाई करें. कप्तान साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी हरकत में आ गए. उन्होंने सब से पहले नफीस और उस के मातापिता से बात की. इस के बाद जुलेखा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

काल डिटेल्स से पता चला कि जुलेखा ने अंतिम बार श्रेयांश त्रिपाठी को फोन किया था. त्रिपाठी ने उसे कंपनी में काम करने के बारे में बुला कर बात की थी. चौकी हंसखेड़ा के प्रभारी सुभाष सिंह ने श्रेयांश त्रिपाठी को बुला कर जुलेखा के बारे में उस से पूछताछ की.

इस के बाद थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह एसआई रामकेश सिंह, सुभाष सिंह, धर्मेंद्र कुमार, सिपाही मयंक मलिक, आशीष मलिक और राजेश गुप्ता को साथ ले कर आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस पहुंचे. वहां कंपनी मालिक संजय यादव का साला गुड्डू यादव निवासी बिजनौर तथा आलमबाग आजादनगर के रहने वाले एक दरोगा का बेटा अजय यादव मिला.

पुलिस सभी को थाने ले आई. सीओ आलमबाग लालप्रताप सिंह की मौजूदगी में उन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जुलेखा की हत्या कर के उस की लाश हरचंद्रपुर में साई नदी के किनारे फेंक दी थी.

यह सुनने के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम आरोपियों को साथ ले कर हरचंद्रपुर में साई नदी के पास उस जगह पहुंच गई, जहां जुलेखा के शव को ठिकाने लगाया था.

पुलिस को नदी किनारे कीचड़ में एक शव मिला. शव एक युवती का था और पूरा गल गया था. हड्डियों के अलावा वहां लेडीज कपड़े मिले. जुलेखा के भाई नफीस और मां शरबती ने कपड़ों से उस की शिनाख्त जुलेखा के रूप में की. पिता शरीफ अहमद ने बताया कि जुलेखा के ये कपड़े उन्होंने ईद पर खरीद कर दिए थे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर जुलेखा के कंकाल को पोस्टमार्टम व डीएनए जांच के लिए भिजवा दिया. जुलेखा की हत्या और अपहरण में मुख्य आरोपी संजय यादव के साले गुड्डू यादव व अजय यादव से जुलेखा के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जुलेखा का अपहरण कर उस की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह बड़ी सनसनीखेज थी—

शरीफ अहमद अपने परिवार के साथ लखनऊ के थाना पारा के अंतर्गत आने वाली कांशीराम कालोनी नई बस्ती में रहता था. बुद्धेश्वर चौराहे पर उस की आटो पार्ट्स की दुकान थी. परिवार में उस की पत्नी शरबती के अलावा 2 बेटियां रूबी व जुलेखा और एक बेटा नफीस था. बड़ी बेटी रूबी का पास के ही वृंदावन में विवाह हो चुका था.

नफीस पिता के काम में हाथ बंटाता था. सन 2013 में उस ने छोटी बेटी जुलेखा की शादी मुंबई के रहने वाले एक युवक से कर दी थी. जुलेखा महत्त्वाकांक्षी थी. वह आत्मनिर्भर रह कर जीना चाहती थी. शादी के 2 साल बाद जुलेखा ने एक बेटे को जन्म दिया.

जुलेखा ने भरी उड़ान बेटे के जन्म के बाद जुलेखा अपने मन की कमजोरी को छिपा कर न रख सकी क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने की आदी थी, जबकि उस का शौहर उस की आदतों के खिलाफ था. अंतत: एक दिन पति से लड़झगड़ कर वह अपने मायके आ गई. सन 2019 में पति ने भी जुलेखा को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह एकदम आजाद हो गई थी.

जुलेखा चारदीवारी में बैठने के बजाए नौकरी कर के आत्मनिर्भर होना चाहती थी, जिस से अपने बेटे की ढंग से परवरिश कर सके. पढ़ीलिखी होने के साथसाथ उसे कंप्यूटर की जानकारी थी. लिहाजा उस ने प्राइवेट कंपनियों में नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 15 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर कंप्यूटर औपरेटर की नौकरी मिल गई.

यह कंपनी राजधानी के बारह विरवा में काकोरी निवासी संजय यादव की थी. कुछ दिनों तक वह कंपनी में डाटा एंट्री का काम करती रही. इस दौरान वह संजय यादव के साले सरोजनीनगर निवासी गुड्डू यादव और आलमबाग आजादनगर के रहने वाले दरोगा के बेटे अजय यादव और अवधेश यादव के संपर्क में आई.

उस का संपर्क रियल एस्टेट कंपनी में प्लौट की बुकिंग कराने वाले कमीशन एजेंटों से भी होता था. कंपनी में ज्यादा काम होने की वजह से जुलेखा को आए दिन देर रात तक रुकना पड़ता था, जो जुलेखा को पसंद नहीं था.

मनमाफिक माहौल न पा कर वहां से जुलेखा का मन ऊबने लगा. देर रात तक कंपनी के औफिस के काम को निपटाना और रोजाना देर से घर पहुंचना उस की आदत सी हो गई थी. इस दिनचर्या से वह तंग आ चुकी थी.

जुलेखा की परेशानी अवधेश यादव से छिपी न रह सकी. एक दिन अवधेश ने संजय यादव के साले गुड्डू से जुलेखा को एकांत में बुलवा कर समझाया, ‘‘जुलेखा, तुम यहां कंप्यूटर टाइपिंग का जो काम करती हो, इस से तुम्हारा कैरियर नहीं बन पाएगा. तुम्हें बंधीबंधाई जो सैलरी मिलती है, उस से तुम क्याक्या कर सकती हो. यह बात तो तुम जानती ही हो कि रियल एस्टेट के काम में अच्छा पैसा है. तुम यहां कंपनी के प्लौट बुक कराने शुरू कर दोगी तो अच्छा कमीशन मिलेगा. साथ ही देर रात तक चलने वाले कंप्यूटर के काम से निजात मिल जाएगी.’’

इस के बाद कंपनी के मालिक संजय यादव ने भी जुलेखा को प्लौट बुकिंग से मिलने वाले कमीशन के बारे में बताया. संजय यादव की बात जुलेखा की समझ में आ गई. उस ने कंपनी के कई प्लौट बुक कराए. जब एक महीने में पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई हुई तो जुलेखा और ज्यादा मेहनत करने लगी.

जुलेखा ने काफी मेहनत से काम किया. वह हर महीने 2-3 प्लौट बिकवा देती थी, जिस से उस का अच्छा कमीशन बन जाता था.

जुलेखा को संजय यादव की रियल एस्टेट कंपनी में काम करते हुए लगभग एक साल हो चुका था. इसी बीच अगस्त, 2019 में फेसबुक के माध्यम से उस की श्रेयांश त्रिपाठी से दोस्ती हुई. बाद में उन की दोस्ती बढ़ी तो मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. इस के बाद श्रेयांश भी जुलेखा के काम में हाथ बंटाने लगा.

वह भी प्लौट खरीदने वाले जरूरतमंदों को जुलेखा के पास लाता था. इस काम में संजय यादव उस की काफी मदद करता था. धीरेधीरे संजय यादव से जुलेखा के घनिष्ठ संबंध हो गए, जो अवैध संबंधों तक पहुंचे.

संजय यादव पर जुलेखा के करीब 25 लाख रुपए हो गए. यह रकम प्लौट की कमीशन की थी. जुलेखा जब भी उस से पैसे मांगती, वह टाल देता था. आशनाई की आड़ में वह जुलेखा की कमीशन की रकम हड़पना चाहता था.

संजय यादव के इरादे भांप कर जुलेखा अपने 25 लाख रुपए जल्द देने की जिद पर अड़ गई तो संजय परेशान हो गया. उस ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जबकि जुलेखा उस पर एक पाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी. इस बात को ले कर उस का संजय यादव से काफी विवाद हुआ.

पैसे का विवाद बना बड़ा कारण उसी समय अवधेश यादव वहां आ गया. उस के कहने पर संजय यादव ने 3 लाख रुपए का चैक बना कर जुलेखा को दे दिया. उस के 22 लाख रुपए बाकी रह गए थे. विरोध जताते हुए जुलेखा ने वह चैक लौटा दिया और उस से पूरी रकम देने को कहा.

झगड़ा बढ़ने पर संजय यादव ने उसे धमकी दी कि जो पैसे मिल रहे हैं, उन्हें रख लो नहीं तो मुझे केवल 3-4 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे. फिर तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा कि कहां गई.

संजय यादव से हुए इस विवाद के बाद जुलेखा ने दूसरी कंपनी जौइन करने का मन बना लिया. उस ने संजय को धमकी दी कि वह कोर्ट के माध्यम से अपने पैसे ले कर रहेगी.

जुलेखा की इस धमकी से संजय यादव परेशान हो गया. उस ने अवधेश यादव, अजय यादव और अपने साले गुड्डू यादव के साथ मिल कर इस समस्या पर विचारविमर्श किया. इन लोगों ने फैसला लिया कि जुलेखा को हमेशा के लिए ही निपटाना सही रहेगा, वरना यह आगे चल कर परेशानी खड़ी करती रहेगी.

योजना के अनुसार 3 अगस्त, 2019 को अवधेश यादव ने जुलेखा से कहा, ‘‘संजय पर तुम्हारे जो 25 लाख रुपए बकाया हैं, वह मैं तुम्हें दिलवा दूंगा. लेकिन तुम यहां से नौकरी छोड़ कर मत जाओ.’’

अवधेश यादव के बुलाने पर जुलेखा घर से कंपनी औफिस जाने को निकली. उस ने रास्ते में अपने दोस्त श्रेयांश त्रिपाठी को फोन कर के बाइक से बारह विरवा बुला लिया. उस की बाइक पर बैठ कर जुलेखा अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाने के लिए नहर से नीचे मुड़ी ही थी, तभी सामने से अजय यादव कार से आता दिखाई दिया. कार अजय यादव चला रहा था और पीछे की सीट पर अवधेश यादव बैठा था.

उसे देखते ही संजय ने कार रोक दी. अवधेश ने बाइक पर बैठी जुलेखा से कहा कि वह कार में बैठ जाए, जिस से वह संजय से उस का हिसाब करा सके.

लालच में जुलेखा कार में पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उस ने अपने दोस्त श्रेयांश से कह दिया कि इन लोगों से बात करने के बाद वह बड़ी बहन रूबी के पास चली जाएगी. कुछ दूर तक श्रेयांश बाइक से कार के पीछेपीछे गया, तभी कार में बैठी जुलेखा ने उसे जाने का इशारा किया तो श्रेयांश अपने घर लौट गया.

कार में बैठी जुलेखा अवधेश से बात कर रही थी. उसी समय रास्ते में अचानक बंगला बाजार पकरी के पास संजय यादव का साला गुड्डू यादव मिल गया. कार रुकते ही वह भी कार में बैठ गया. उसे देख कर वह भड़क गई. वह कार से उतर रही थी, तभी अवधेश ने उसे समझा कर रोक लिया. फिर गुड्डू भी जुलेखा के बगल में बैठ गया. वह अवधेश से अपने पैसों के बारे में बातें कर रही थी.

लाश लगा दी ठिकाने उन की बातों में गुड्डू भी कूद पड़ा. बातों के दौरान गुड्डू और जुलेखा का वाकयुद्ध शुरू हो गया. अजय ने कार रोक दी, फिर अजय और गुड्डू ने जुलेखा के बाल पकड़ कर सीट पर झुका दिया और जुलेखा के ही दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मृत्यु हो गई.

जुलेखा की लाश को ले कर वे तीनों रायबरेली के निकट हरचंद्रपुर में साई नदी के पास पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. गुड्डू यादव और अजय यादव ने अवधेश के सहयोग से जुलेखा की लाश नदी में फेंक दी. उस के बाद टोल प्लाजा होते हुए वह लखनऊ लौट आए.

जुलेखा की हत्या के बाद गुड्डू यादव, अवधेश यादव व अजय यादव पूरी तरह से निश्चिंत थे कि पुलिस उन तक नहीं पहुंचेगी. लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ ही गए. गुड्डू यादव का कहना था कि जुलेखा ने उस के बहनोई संजय यादव से अवैध संबंध बना लिए थे, जिस की वजह से उस की बहन का घरपरिवार उजड़ रहा था.

दिनरात घर में कलह होती थी. इसी वजह से वह उस के दिमाग में खटक रही थी. इस बात को ले कर वह जुलेखा से रंजिश रखने लगा था. 3 अगस्त, 2019 को कार में हुए विवाद में जुलेखा की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

अभियुक्त गुड्डू यादव और अजय यादव से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 147, 364, 302, 201, 376, 34 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को सिपाही कृष्ण बंसल एवं हलका एसआई सुभाष सिंह के द्वारा सूचना मिली कि मुख्य आरोपी संजय यादव न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए पहुंचा है, तो थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम ने 13 अगस्त, 2019 को संजय यादव को न्यायालय परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में संजय ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उसे भी पुलिस ने कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. अब एक अभियुक्त अवधेश यादव शेष बचा है. उस के ठिकानों पर भी पुलिस ने दबिश दी. जब वह 28 अगस्त को कोर्ट में आत्मसमर्पण करने जा रहा था, पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसे भी जेल भेज दिया गया.

फेसबुक से निकली मौत

22जून, 2019 की सुबह पुणे शहर के पौश इलाके में स्थित मुढ़वा की रहने वाली 40 वर्षीय राधा अग्रवाल घर से अपनी स्कूटी ले कर निकली थी. उस ने घर पर बताया था कि वह अपनी सहेलियों के साथ साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में घर लौट आएगी. घर से निकलते समय वह अपने सारे गहने पहने हुई थी. जब वह 25 जून तक नहीं लौटी तो पति किशोरचंद्र अग्रवाल ने उस का फोन मिलाया. लेकिन राधा का फोन स्विच्ड औफ मिला.

राधा के 16 वर्षीय बेटे मानव अग्रवाल ने इस बारे में अपनी मां की सहेलियों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह तो शिरडी गई ही नहीं थी, न ही उन्हें राधा के शिरडी जाने की कोई जानकारी है.

राधा की सहेलियों से यह जानकारी मिलने पर परिवार के लोग परेशान हो गए. चूंकि उस दिन राधा अग्रवाल गहने पहन कर गई थी, इसलिए उन की चिंता और भी बढ़ गई. 25 जून की शाम को ही मानव अग्रवाल अपने 3-4 सगेसंबंधियों के साथ थाना मुढ़वा पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद थानाप्रभारी संपतराव भोसले को अपनी मां के लापता होने की विस्तार से जानकारी दे दी.

राधा अग्रवाल शहर के करोड़पति रियल एस्टेट कारोबारी किशोरचंद्र अग्रवाल की पत्नी थी. मानव अग्रवाल की बात सुन कर थानाप्रभारी भी आश्चर्य में पड़ गए कि आशा अग्रवाल आखिर अपनी मरजी से कहां चली गई.

बहरहाल, उन्होंने राधा अग्रवाल की डिटेल्स लेने के बाद मानव को भरोसा दिया कि पुलिस उन्हें अपने स्तर से ढूंढने की कोशिश करेगी.

चूंकि मामला एक प्रतिष्ठित परिवार की महिला से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने राधा अग्रवाल की गुमशुदगी की काररवाई शुरू कर दी. उन्होंने फोटो सहित उस का हुलिया पुणे शहर के सभी पुलिस थानों को भिजवा दिया. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने मामले की जांच के लिए एसआई अमोल गवली, स्वप्निल पाटील, हैडकांस्टेबल कैलाश चह्वाण, निलेश जगताप, श्रीनाथ जाधव, अमोल चह्वाण और एस.ए. काकड़े को शामिल कर एक टीम बनाई. पुलिस टीम अपने स्तर से राधा अग्रवाल को तलाशने लगी.

जांच में पता चला कि राधा अग्रवाल शादी के पहले से ही खुले विचारों वाली थी. वह किसी प्रकार के बंधनों को नहीं मानती थी. शादी के बाद उसे परिवार भी वैसा ही मिला था. घर में उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. अभाव केवल एक यह था कि पति का ज्यादा संग नहीं मिल पाता था, क्योंकि पति किशोरचंद्र अग्रवाल अपने रियल एस्टेट कारोबार में ज्यादा व्यस्त रहते थे. एक बेटा था जो पढ़ाई कर रहा था.

सोशल मीडिया पर रहने का शौक  राधा के पास भले ही रुपएपैसों की कमी नहीं थी, लेकिन वह पति का साथ चाहती थी जो उसे नहीं मिल पाता था. वह कसे हुए बदन की सुंदर महिला थी. एक युवक की मां होने के बाद भी उस का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. यही वजह थी कि राधा ने अपना मन बहलाने के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो कुछ ही दिनों में उस के हजारों फालोअर्स और सैकड़ों दोस्त बन गए थे.

राधा ने घूमने के लिए एक स्कूटी ले रखी थी, जिस से वह अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने जाया करती थी. वह तरहतरह के पोज में खींचे गए अपने फोटो फेसबुक पर डाल दिया करती थी, जिस से उसे काफी प्रशंसा मिलती थी. सोशल मीडिया से जुड़ने के बाद राधा अग्रवाल के चेहरे पर अकसर चमक दिखाई देती थी. वह अपनी इस जिंदगी से काफी खुश रहने लगी थी.

यह जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी को इस बात का पूरा भरोसा हो गया कि राधा अग्रवाल की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है, जिस का परदा उठाना जरूरी है. पुलिस ने राधा अग्रवाल का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो अंतिम लोकेशन पुणे के ही भोसले नगर, रेंज हिल इलाके की मिली.

पुलिस वहां पहुंच गई और इधरउधर खोजबीन करने लगी. वहां पर एक स्कूटी मिली, जो राधा अग्रवाल की ही थी. पुलिस ने स्कूटी की डिक्की खोल कर देखी तो उस में राधा का मोबाइल फोन मिला. फोन डिस्चार्ज हो चुका था.

जब मोबाइल को चार्ज कर औन किया किया तो वाट्सऐप और फेसबुक पर महिला और युवक दोस्तों की लंबी फेहरिस्त देख पुलिस टीम हैरान रह गई. राधा अग्रवाल के फोन पर जिस नंबर से आखिरी बार बातचीत हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह नंबर आनंद निगम का निकला, जो कर्नाटक का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के घर पहुंच गई लेकिन वह घर से फरार मिला. परिवार वालों से पूछताछ कर के आखिरकार पुलिस उस के पास पहुंच ही गई. आनंद निगम को हिरासत में ले कर पुलिस पुणे लौट आई.

आनंद निगम से थाने में पूछताछ की जानी थी, इसलिए सूचना पा कर डीसीपी सुहास बाबचे और एसीपी सुनील देशमुख भी थाना मुढ़वा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के सामने थानाप्रभारी संपतराव भोसले ने आनंद निगम से राधा अग्रवाल के बारे में पूछताछ की तो पहले तो वह यही कहता रहा कि राधा अग्रवाल नाम की किसी महिला को नहीं जानता.

लेकिन पुलिस ने जब वाट्सऐप और फेसबुक पर उस की और राधा की चैटिंग दिखाई तो वह सहम गया. वह चाह कर भी अपना झूठ नहीं छिपा सका. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह राधा अग्रवाल की हत्या कर चुका है.

हत्या की बात सुनते ही पुलिस चौंक गई. आनंद से उस की लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि लाश ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में है. हत्या करने के बाद वह उस के सभी गहने और नकदी ले भागा था.

पुलिस को किसी भी तरह राधा अग्रवाल की बौडी बरामद करनी थी. उसे संशय था कि कहीं जंगली जानवरों ने शव को नष्ट न कर दिया हो. इसलिए पुलिस आनंद निगम को ले कर 12 जुलाई, 2019 को ताम्हिणी वर्षा घाट के जंगल में जा पहुंची.

लेकिन जंगल में राधा अग्रवाल के केवल अस्थिपंजर और कपड़े मिले. उस का मांस जंगली जानवर नोंचनोंच कर खा चुके थे. पुणे पुलिस ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से कंकाल बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस आनंद निगम को ले कर पुणे लौट आई.

पूछताछ करने पर आनंद निगम ने राधा अग्रवाल की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी.

आनंद की अपनी कहानी  31 वर्षीय आनंद निगम मूलरूप से कर्नाटक का रहने वाला था. उस के पिता का नाम शिवाजी निगम था. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक छोटी बहन थी. परिवार की माली स्थिति साधारण थी.

जब उस के पिता का निधन हो गया तो घर की जिम्मेदारी आनंद पर आ गई. वह रोजीरोटी की तलाश में परिवार के साथ पुणे आ गया और वहां की वृंदावन कालोनी के तापकीर नगर में रहने लगा. पुणे में रहते हुए उस की मां ने एक दूसरे आदमी का हाथ पकड़ लिया था. बहन जवान हुई तो उस ने भी लवमैरिज कर ली. इस के बाद आनंद ने भी अंतरजातीय विवाह कर अपना घर बसा लिया. समय गुजरता गया और वह 2 बच्चों का बाप बन गया.

अपनी रोजीरोटी के लिए उस ने एक पुरानी कार ले ली और लोगों को कार चलाना सिखाने लगा. उस के पास ड्राइविंग सीखने के लिए ज्यादातर महिलाएं आती थीं. व्यवहारकुशल होने के नाते अधिकतर महिलाएं उस के प्रभाव में आ जाती थीं, जो उस की दोस्त बन जाती थीं. वह उन से फेसबुक, वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग किया करता था, जिस का असर उस के व्यवसाय पर पड़ने लगा था.

यह बात जब उस की पत्नी को मालूम हुई तो उस ने उसे आड़ेहाथों लिया. विवाद इतना बढ़ा कि उसे अपना कार ड्राइविंग का धंधा बंद करना पड़ा. इस के बाद उसे परिवार चलाने के लिए कोई काम तो करना ही था. उस ने अपने जानपहचान वालों और दोस्तों से ब्याज पर पैसे ले कर भोसले नगर के रेंज हिल इलाके में एक टी-स्टाल शुरू कर दिया. स्टाल पर वह बीड़ीसिगरेट भी बेचता था.

इस काम में उस की मां भी मदद किया करती थी. पूरा दिन खपाने के बाद भी इस काम में कोई खास आमदनी नहीं हो पाती थी. घर का खर्च भी बमुश्किल चलता था. ऐसे में उसे कर्ज उतारना भी मुश्किल हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उस का कर्ज बढ़तेबढ़ते 2 लाख के करीब पहुंच गया. वह इसी चिंता में रहता कि कर्ज कैसे उतारे.

आनंद सोशल साइट्स पर एक्टिव रहता था. एक दिन उस ने फेसबुक पर राधा अग्रवाल का प्रोफाइल देखा तो उस पर मोहित हो गया. उस ने बिना देर किए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. राधा अग्रवाल ने भी आनंद निगम का फोटो देखते ही उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

हालांकि राधा अग्रवाल और आनंद निगम की उम्र में काफी अंतर था. राधा अग्रवाल आनंद निगम से करीब 10 साल बड़ी थी. लेकिन दोनों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों की चैटिंग के दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई और धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे.

राधा अग्रवाल के पास पैसों की कमी नहीं थी. खर्च करने के लिए उस के पास पैसा ही पैसा था. जबकि कहीं आनेजाने के लिए स्कूटी थी. वह आनंद निगम के संपर्क में आ कर कुछ इस प्रकार फिसली कि अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं को भी लांघ गई. जब भी मौका मिलता, दोनों पुणे शहर के किसी भी होटल में जा कर मौजमजे कर लेते थे.

समय अपनी गति से चल रहा था. राधा अग्रवाल अब पूरी तरह से आनंद निगम पर आंख मूंद कर भरोसा करने लगी थी. आनंद निगम उस से जो भी कहता, उसे वह तहेदिल से स्वीकार करती थी. आनंद निगम को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि राधा पूरी तरह उस की दीवानी है, तो उस ने अपने ऊपर चढ़े कर्जे को उतारने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. वैसे तो राधा अग्रवाल लाख दो लाख रुपए उसे ऐसे ही दे सकती थी. लेकिन आनंद अपने ऊपर किसी प्रकार का बोझ नहीं रखना चाहता था. इस से रिश्ता खराब होने पर राधा अग्रवाल भी उस से अपना पैसा मांग सकती थी. यही सब सोच कर वह सिर्फ अपनी योजना पर ध्यान देने लगा.

योजना को अंजाम देने के लिए एक दिन उस ने राधा से कहा, ‘‘राधा, तुम इतनी खूबसूरत हो कि अगर किसी मैगजीन में तुम्हारे फोटो भेजे जाएं तो वे कवर पेज पर छप सकते हैं.’’

यह सुन कर खुश होते हुए राधा बोली, ‘‘सच!’’  ‘‘हां, क्या तुम ने अपने फोटोजेनिक चेहरे को कभी गौर से नहीं देखा?’’ आनंद बोला,  ‘‘देखो, मैं चाहता हूं कि किसी नैचुरल जगह पर तुम्हारा फोटोशूट कर के फोटो मैगजीन वगैरह में भेजे जाएं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए तैयार हूं.’’ राधा बोली.  ‘‘तो ठीक है, तुम कल अपने सारे गहने पहन कर आ जाओ. हम पुणे से कहीं दूर चलेंगे.’’

राधा उस पर आंखें मूंद कर भरोसा करती ही थी. इसलिए 22 जून की सुबह अपने सारे गहने पहन कर घर से निकली. घर वालों से उस ने कह दिया कि वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूटी से साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में लौट आएगी.

इस के बाद वह स्कूटी ले कर आनंद द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गई. आनंद वहां पहले ही खड़ा था. वहां से आनंद ने राधा की स्कूटी संभाली और राधा उस के पीछे चिपक कर बैठ गई.

राधा छली गई ग्लैमर के चक्कर में दोनों आपस में हंसीमजाक करते हुए कब पुणे से 80 किलोमीटर दूर निकल गए, पता ही नहीं चला. और जब पता चला तो वह ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में पहुंच गए थे. आनंद निगम को अपनी योजना के अनुसार वह जगह उपयुक्त लगी. उस ने स्कूटी एक तरफ खड़ी कर दी. इस के बाद उस ने राधा से फोटो सेशन के लिए तैयार होने को कहा.

राधा अग्रवाल खुशीखुशी अपना फोटो सेशन कराने के लिए तैयार हो गई. सड़क से कुछ दूर जंगल में जा कर आनंद अलगअलग ऐंगल से उस के फोटो खींचने लगा. फिर आनंद ने राधा से एकदो हौरर फोटो खींचने के लिए अनुरोध किया. हौरर फोटो सेशन करने के लिए आनंद ने राधा की सहमति से पहले उस की आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथपैर बांध कर फोटो खिंचवाने को कहा.

राधा उस के कहने के अनुसार करती रही. हाथपैर बांधने के बाद आनंद ने उस के सारे गहने उतार कर अपने पास रख लिए. इस के बाद उस ने साथ छिपा कर लाए गए तेज धारदार चाकू से राधा अग्रवाल का गला रेत दिया. राधा अग्रवाल की एक मार्मिक चीख निकल कर निर्जन जंगल में खो गई.

राधा अग्रवाल की हत्या करने के बाद आनंद निगम ने उस का मोबाइल फोन स्कूटी की डिक्की में रख दिया. उस के हैंडबैग से नोटों से भरा पर्स निकाल लिया और स्कूटी ले कर पुणे की तरफ लौट पड़ा था. ताम्हिणी वर्षा घाट से कुछ दूर आनंद ने पर्स से सारे पैसे निकालने के बाद उसे भी फेंक दिया.

इस के बाद वह घोरपेड़ फाटक पर आ कर एक पान की दुकान पर रुका. वहां पर उस ने एक सिगरेट पी.

वहां से आनंद निगम अपने घर न जा कर सीधे अपने टी-स्टाल पर पहुंचा. उस समय रात का एक बजा था. चारों तरफ सन्नाटा था. उस ने राधा की स्कूटी अपने टी-स्टाल के पीछे खड़ी कर चाकू टी-स्टाल के अंदर छिपा दिया. फिर वह निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

2 दिन निकल जाने के बाद राधा अग्रवाल के लूटे गए गहनों में से 7 तोले सोने के गहनों को वह अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपा कर रख आया. बाकी बचे गहनों को ज्वैलर्स के यहां बेच कर अपना कर्ज उतार दिया. इतना करने के बाद वह पुणे शहर को छोड़ कर कर्नाटक में अपने गांव निकल गया.

आनंद निगम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू और राधा अग्रवाल के गहने बरामद कर लिए. उसे भादंवि की धारा 302, 201, 363, 364(ए) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे पुणे की यरवडा जेल भेज दिया गया.

—कथा में किशोरचंद्र और मानक नाम परिवर्तित हैं.

दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी

रघुनाथ सिंह लोधी

दौलत व शोहरत की दौड़ में दबंगता के साथ आगे बढ़ते रहे मिक्की बख्शी को अपने अतीत पर ज्यादा रंज नहीं था. यह जरूर था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जिस से उसे फिर से जेल जाना पड़े. अपराध के क्षेत्र के जानेमाने चेहरे अब भी उस के नाम से खौफ खाते थे.

वह रसूखदार लोगों की महफिलों में शिरकत करने लगा था. उस ने साफसुथरी जिंदगी का नया सफर शुरू करने का संकल्प ले लिया था. अब वह पढ़ीलिखी बीवी व एकलौते बेटे को कामयाबी के शिखर पर देखना चाहता था.

उस ने बीवी के नाम न केवल घर कारोबार कर दिया था, बल्कि नई चमचमाती कार की चाबी भी सौंप दी थी. जिस बीवी के लिए उस ने इतना सब कुछ किया, वही उस के जिगरी दोस्त ऋषि खोसला के साथ मिल कर उस के सीने में छुरा घोंपेगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

नागपुर ही नहीं मध्यभारत में कूलर कारोबार में खोसला कूलर्स एक बड़ा नाम है. जानेमाने कूलर ब्रांड के संचालक ऋषि खोसला का भी अपना अलग ठाठ रहा है. हैंडसम, स्टाइलिश पर्सनैलिटी के तौर पर वह यारदोस्तों की महफिलों की शान हुआ करता था. कई छोटीमोटी फिल्मों में भी वह दांव आजमा चुका था. इन दिनों जमीन कारोबार में मंदी का दौर सा चल रहा है, लेकिन ऋषि मंदी के दौर में भी जमीन कारोबार में अच्छा कमा रहा था. लोग उसे बातों का धनी भी कहते थे. वह अपना कारोबार बढ़ाने की कला अच्छी तरह जानता था.

47 वर्षीय ऋषि नागपुर के जिस बैरामजी टाऊन परिसर में रहता था, उसे करोड़पतियों की बस्ती भी कहा जाता है. उस बस्ती में लग्जीरियस लाइफ स्टाइल के शख्स रहते थे. ऋषि का छोटा सा परिवार था. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व एक बेटी थे. 18 वर्षीय बेटा विदेश में रह कर पढ़ाई कर रहा था, जो छुट्टी मनाने घर आया हुआ था.   20 अगस्त, 2019 की रात करीब 9 बजे की बात है. ऋषि का भाई मनीष और बेटा शिरडी में साईं बाबा के दर्शन कर घर लौट रहे थे. ऋषि अपने कारोबार के जरूरी काम निपटा कर समय से पहले ही घर पहुंच गया था. घर पर उस ने बेटे व भाई से मुलाकात की. भूख लगी थी सो पत्नी को खाना लगाने को कहा. इसी बीच ऋषि खोसला के पास मधु का फोन आया.

मधु उस की खास महिला मित्र थी. वह उस के अजीज दोस्त विक्की बख्शी की पत्नी थी. कारोबार में भी मधु ऋषि की मदद लिया करती थी. मधु ने उस से कहा कि कड़बी चौक के नजदीक उस की गाड़ी पंक्चर हो गई है. आप तुरंत आ जाइए.

‘‘तुम वहीं रहो, मैं 5 मिनट में पहुंचता हूं.’’ कह कर ऋषि बिना खाना खाए ही घर से निकल गया. मधु का घर कड़बी चौक के पास कश्मीरी गली में था. कश्मीरी गली को नागपुर की सब से प्रमुख पंजाबियों की बस्ती भी कहा जाता है. यहां बड़े कारोबारियों के बंगले हैं. कुछ देर में ऋषि मधु के पास पहुंच गया और मधु को घर पहुंचा आया. मधु को घर छोड़ने के बाद ऋषि अपनी कार नंबर पीबी08ए एक्स0909 से घर लौटने लगा.

ऋषि खोसला ने चुकाई भारी कीमत  रात के करीब 11 बजे होंगे. ऋषि किसी काम से कड़बी चौक पर खड़ा था, तभी वहां खड़ी उस की कार में एक आटोरिक्शा चालक ने टक्कर मार दी. ऋषि ने आटो चालक को फटकार लगाई तो आटो से उतर कर आए 3 युवक ऋषि से झगड़ा करने लगे. चौक पर वाहनों का आनाजाना चल रहा था. झगड़ा होता देख वहां लोग जमा होने लगे.

ऋषि की नजर आटोरिक्शा में बैठे एक शख्स पर गई. उसे देख कर ऋषि को यह समझने में देर नहीं लगी कि आटो में आए लोग संदिग्ध हैं और वे उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं.

कई दिनों से उसे हमला होने का अंदेशा था. ऋषि ने चतुराई से काम लिया. वह उन लोगों से झगड़ने के बजाए कार ले कर सीधे घर की ओर चल पड़ा. वह काफी घबराया हुआ था. बैरामजी टाउन में ऋषि के घर से कुछ देरी पर गोंडवाना चौक है. ऋषि ने अचानक कार रोकी. उसे लग रहा था कि आटो वाले लोग उसे खोजते हुए उस के घर भी पहुंच सकते हैं.

वह अपने बचाव के लिए कहीं भाग जाना चाहता था. ऋषि कार से उतरा. भागने की फिराक में उस ने मोबाइल निकाल कर अपनी दोस्त मधु को जानकारी देने के लिए फोन किया. उस ने मधु को बताया कि उस के घर से लौटते समय कड़बी चौक में उस पर हमला होने वाला था.

वह इस के आगे कुछ कहता, इस से पहले ही आटो और बाइक पर आए लोगों ने ऋषि पर हमला कर दिया. फरसे के पहले ही वार में ऋषि की चीख निकल गई. मोबाइल उस के हाथ से छूट कर 10 फीट दूर जा कर गिरा.

इस के बाद भी उन लोगों ने ऋषि पर कई वार किए. अपना काम कर के हमलावर आटोरिक्शा से फरार हो गए. एक हमलावर वहां से ऋषि की कार ले गया ताकि कोई कार से उसे इलाज के लिए अस्पताल न ले जा सके. उस ने ऋषि की कार सदर क्षेत्र के एलबी होटल के पास ले जा कर खड़ी कर दी. हथियार भी उन्होंने वहीं आसपास डाल दिए थे.

ऋषि की फोन पर मधु से बात चल रही थी लेकिन जब अचानक बातचीत बंद हो गई तो वह घबरा गई. वह उसी समय गोंडवाना चौक पहुंच गई. उस समय वहां काफी लोग जमा थे. वहां पड़ी ऋषि की लाश को देख कर वह चीख पड़ी. इसी बीच किसी ने फोन से पुलिस को सूचना दे दी थी.

सूचना पा कर सदर पुलिस थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू भी वहां पहुंच गईं. मधु ने पुलिस को बताया कि ऋषि उस का प्रेमी था और उस की हत्या उस के पति मिक्की बख्शी व भाई सुनील भाटिया ने की है.

ऋषि को मेयो अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इधर पुलिस लोगों से पूछताछ कर ही रही थी कि तभी मधु आत्महत्या के लिए निकल पड़ी.

वह फुटाला तालाब की ओर जा रही थी. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू समझ गईं कि वह कोई आत्मघाती कदम उठाने जा रही है, इसलिए उन्होंने उसे रोक कर समझाया. विनीता ने मधु को आश्वस्त किया कि मिक्की व सुनील को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

तब तक पुलिस आयुक्त डा. भूषण कुमार उपाध्याय भी वहां पहुंच गए थे. डीसीपी विनीता साहू ने उन्हें पूरी जानकारी से अवगत कराया. पुलिस कमिश्नर डा. उपाध्याय मिक्की की प्रवृत्ति से भलीभांति अवगत थे. क्योंकि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. उन्होंने उसी समय थाना सदर के प्रभारी को आदेश दिया कि मिक्की को इसी समय उठवा लो.

मिक्की बख्शी राजनगर में रहता था. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम मिक्की के घर भेज दी. घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद थाना सदर पुलिस मधु को ले कर थाने लौट आई. मधु से कुछ जरूरी पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया.

उधर पुलिस टीम मिक्की बख्शी के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. पुलिस ने मिक्की से ऋषि खोसला की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह कहता रहा कि ऋषि तो उस का दोस्त था, भला वह अपने दोस्त को क्यों मारेगा. उस की बात पर पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था.

पुलिस जानती थी कि वह ढीठ किस्म का अपराधी है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. उस ने स्वीकार किया कि ऋषि खोसला की हत्या उस ने अपने जानकार लोगों से कराई थी. उस की हत्या कराने की उस ने जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प थी—

मिक्की कैसे बना दबंग  रूपिंदर सिंह उर्फ मिक्की बख्शी नागपुर शहर का काफी चर्चित व्यक्ति था. करीब 2 दशक पहले शहर में प्रौपर्टी के कारोबार में उस का सिक्का चलता था. विवादित जमीनों से कब्जा खाली कराने के लिए उस के पास अच्छेबुरे हर किस्म के लोग आतेजाते थे.

शुरुआत में मिक्की ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में कांस्टेबल की नौकरी की थी. उस की तैनाती नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली के भामरागढ़ में थी. उसी दौरान निर्माण ठेकेदारों और सरकार के लोगों की फिक्सिंग का विरोध करते हुए उस ने नौकरी छोड़ दी थी. बाद में नागपुर में उस ने बीयरिंग बेचने का व्यवसाय किया.

मिक्की दबंग स्वभाव का तो था ही, जल्द ही उस के पास दबंग युवाओं की टीम तैयार हो गई. शहर ही नहीं, शहर के आसपास भी उस का नाम चर्चाओं में आ गया. वह कारोबारियों का मददगार होने का दावा करता था, लेकिन उस की पहचान वसूलीबाज अपराधी की भी बनने लगी थी.

बाद में मिक्की ने यूथ फोर्स नाम का संगठन तैयार किया. यूथ फोर्स के माध्यम से उस ने युवाओं की टीम का विस्तार किया गया. उस के संगठन में बाउंसर युवाओं की संख्या बढ़ने लगी. यही नहीं यूथ फोर्स के नाम पर मिक्की ने युवाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू कर दिया. बाद में उस ने यूथ फोर्स नाम की सिक्युरिटी एजेंसी खोल ली.

शहर में सब से महंगी व अच्छी सिक्युरिटी एजेंसी के तौर पर यूथ फोर्स की अलग पहचान बन गई. इस एजेंसी में अब भी करीब 3000 सिक्युरिटी गार्ड हैं. 2 दशक पहले शहर में ट्रक व्यवसाय को ले कर बड़ा विवाद हुआ था. कई ट्रक कारोबारी बातबात पर पुलिस व आरटीओ से उलझ पड़ते थे.  आरोप था कि ट्रक कारोबारियों को जानबूझ कर परेशान किया जा रहा है. उन से अंधाधुंध वसूली हो रही है. उस स्थिति में मिक्की ने उत्तर नागपुर के महेंद्रनगर में यूथ फोर्स संगठन का कार्यालय खोला. उस के कार्यालय में ट्रक कारोबारी फरियाद ले कर जाते थे. मिक्की ने अपने स्तर से कई मामले सुलझा दिए. दरअसल, पुलिस विभाग में मिक्की के कई दुश्मन थे तो कई दोस्त भी थे.

नाम चला तो पैसा भी आने लगा. मिक्की कारों के काफिले में घूमने लगा. 20-25 युवक उस की निजी सुरक्षा में रहते थे. सार्वजनिक जीवन में अपना नाम बढ़ाने का प्रयास करते हुए मिक्की ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया.

राजनीति के क्षेत्र में भी उस ने पैर जमाने की कोशिश की. लगभग सभी प्रमुख पार्टियों के बड़े नेताओं से उस के करीबी संबंध बन गए थे. उन पर वह खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. मिक्की ने भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के समर्थक के तौर पर पहचान बना रखी थी. वह गडकरी के जन्मदिन पर एक भंडारे का आयोजन करता था.

दोस्त ने ही जोड़ा था रिश्ता  सन 2002 की बात है. तब तक मिक्की की पहचान सेटलमेंट कराने के एवज में बड़ी वसूली करने वाले अपराधी के तौर पर हो गई थी. एक मामले में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एस.पी.एस. यादव ने मिक्की को गिरफ्तार करा कर सड़क पर घुमाया था. उस की आपराधिक छवि के कारण उस की शादी भी नहीं हो पा रही थी. शादी की उम्र निकलने लगी थी. उस के दोस्तों ने उस के लिए इधरउधर रिश्ते की बात छेड़ी. उस के दोस्तों में ऋषि खोसला व सुनील भाटिया प्रमुख थे.

तीनों ने शहर के हिस्लाप कालेज में साथसाथ पढ़ाई की थी. ऋषि खोसला मिक्की का दोस्त ही नहीं, बतौर कार्यकर्ता भी काम करता था. कई मामलों में वह मिक्की के लिए प्लानर की भूमिका निभाता था. हरदम साए की तरह उस के साथ लगा रहता था.

ऋषि को अभिनय का भी शौक था. उस ने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया. हिंदी फिल्म ‘आशा: द होप’ में उस ने मुख्य विलेन का किरदार निभाया था. उस फिल्म में अभिनेता शक्ति कपूर थे. शक्ति कपूर से ऋषि खोसला के पारिवारिक संबंध भी बन गए थे.

सुनील भाटिया मिक्की व ऋषि के साथ ज्यादा नहीं रहता था, लेकिन कम समय में उस ने सट्टा कारोबार में बड़ी पहचान बना ली थी. यह वही सुनील भाटिया था जो आईपीएल मैच स्पौट फिक्सिंग के मामले में दिल्ली में पकड़ा गया था. तब सुनील के गिरफ्तार होने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ क्रिकेटर भी जांच की चपेट में आए थे.

बताते हैं कि सुनील भाटिया ने क्रिकेट सट्टा की बदौलत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करोड़ों की दौलत एकत्र की थी. वह आए दिन विदेश में रहता था. पिछले कुछ समय से वह स्वयं को साईंबाबा के भक्त के तौर पर स्थापित कर रहा था. उस ने नागपुर में कड़बी चौक परिसर में  साईं मंदिर भी बनवाया था. वहां हर गुरुवार को वह बड़ा भंडारा कराता था.

शिरडी साईंबाबा के दर्शन के लिए उस ने नागपुर से वातानुकूलित बस की नि:शुल्क सेवा उपलब्ध करा रखी थी. क्रिकेट और राजनीति के अलावा भाटिया के आपराधिक क्षेत्र में भी देशदुनिया के कई बड़े लोगों से सीधे संबंध थे.  मिक्की के लिए रिश्ते की बात चल रही थी. लेकिन सामान्य संभ्रांत परिवार से कोई रिश्ता नहीं आ रहा था. अपराधी के हाथ में कोई अपनी बेटी का हाथ देने को तैयार नहीं था. ऐसे में ऋषि खोसला को न जाने क्या सूझी, एक दिन उस ने दोस्तों की पार्टी में कह दिया कि मिक्की भाई के लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है.

कहीं बात नहीं बन रही है तो हम कब काम आएंगे. शादी के लिए सुनील भाई की बहन मधु भी तो है. सुनील भाटिया की बहन मधु ने एमबीए कर रखा था. कहा गया कि वह मिक्की ही नहीं, उस के कारोबार को भी अच्छे से संभाल लेगी. बात व प्रस्ताव पर विचार हुआ.

उस समय सुनील भाटिया हत्या के एक मामले में जेल में था. मधु मिक्की से उम्र में 10 साल छोटी थी. इस के बावजूद वह मिक्की से शादी के लिए राजी हो गई. लिहाजा बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. कई जानीमानी हस्तियां शादी समारोह में शरीक हुई थीं. मधु का मिजाज भी दबंग किस्म का था. शादी के कुछ दिनों बाद ही उस ने मिक्की के संगठन यूथ फोर्स के कारोबार में दखल देना शुरू कर दिया. वह सुरक्षा प्रशिक्षण अकादमी की संचालक बन गई.

मिक्की कारोबार की जिम्मेदारी से मुक्त हो कर अपनी नई दुनिया को संवारने लगा. राजनीति में भी उस का दबदबा कायम होने लगा. सन 2007 व 2012 के महानगर पालिका के चुनाव में मिक्की ने यूथ फोर्स का पैनल लड़ाया. पैनल के उम्मीदवार तो नहीं जीते लेकिन मिक्की की पहचान उभरते नेता के तौर पर बनने लगी थी.

हत्याकांड ने बदल दी जिंदगी  इस बीच एक ऐसा कांड हुआ, जिस ने मिक्की की जिंदगी के सुनहरे रंगों को ही छीन लिया. सन 2012 की बात है. कोराड़ी रोड पर जमीन विवाद के एक मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता गणेश मते का अपहरण कर लिया गया. बाद में उन की हत्या कर लाश कलमना में रेलवे लाइन पर डाल दी गई. इस हत्या का सूत्रधार मिक्की ही था. मामला 2 करोड़ की वसूली का था. तब राज्य में कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार थी. गृहमंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस के ही थे.

सत्ताधारी पार्टी के नेता की हत्या के मामले को स्थानीय से ले कर प्रदेश स्तर के नेताओं ने चुनौती के तौर पर लिया. मिक्की बचाव का प्रयास करता रह गया. उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

वह करीब 3 साल तक जेल में रहा. जेल से छूटा तो मिक्की के लिए सारा नजारा बदल सा गया था. उस की पत्नी मधु ने यूथ फोर्स सिक्युरिटी एजेंसी का कारोबार न केवल संभाल लिया था बल्कि अधिकृत तौर पर उसे अपने नाम कर लिया था. मिक्की के साथ साए की तरह रहने वाले ऋषि खोसला के व्यवहार में भी बदलाव आ गया था. ऋषि उस के बजाए उस की पत्नी मधु से ज्यादा लगाव दिखाने लगा था.

जेल में रहते मिक्की की सेहत में भी काफी बदलाव आ गया था. वह सेहत सुधारने के लिए सुबहशाम सदर स्थित जिम में जाया करता था. मधु अकसर ऋषि के साथ घर से गायब रहती थी. कभी किसी पार्टी में तो कभी क्लबों में वह ऋषि के साथ दिखती.

पहले तो मिक्की को लग रहा था कि पारिवारिक संबंध होने के कारण मधु ऋषि से अधिक घुलीमिली है. वैसे भी दोनों की शादी से पहले की पहचान थी, लेकिन संदेह हुआ तो एक दिन मिक्की ने मधु पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया. मजाक में उस ने कह दिया कि ऋषि से ज्यादा चिपकना ठीक नहीं है. यहां कौन किस का सगा है, सब ने सब को ठगा है.

मिक्की की नसीहत का मधु पर कोई फर्क नहीं पड़ा. एक दिन जब मिक्की और मधु के बीच किसी बात को ले कर विवाद हुआ तो सब कुछ खुल कर सामने आ गया. मधु ने साफ कह दिया कि ऋषि से उस के प्रेम संबंध हैं. ऋषि से उसे वह सारी खुशी मिलती है, जिन की हर औरत को जरूरत होती है.

घूम गया मिक्की का दिमाग  यह सुनते ही मिक्की का दिमाग घूम गया. मधु ने यह भी बता दिया कि जब तुम जेल में थे, तब ऋषि कैसे काम आता था. कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने से ले कर कई मामलों में ऋषि ने अपने घरपरिवार की जिम्मेदारी की परवाह तक नहीं की. उस समय ऋषि ही उस का एकमात्र सहारा था. अब वह किसी भी हालत में ऋषि को खोना नहीं चाहती.

मिक्की ने पत्नी को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. तब मिक्की ने मधु के भाई सुनील भाटिया को सारी बात बता दी  सुनील की समाज में काफी इज्जत ही नहीं बल्कि रुतबा भी था, इसलिए उस ने भी बहन मधु को समझाने की कोशिश की पर मधु तो ऋषि खोसला की दीवानी हो चुकी थी, इसलिए उस ने अपने प्रेमी की खातिर पति और भाई की इज्जत को धूमिल करने में हिचक महसूस नहीं की. वह बराबर ऋषि से मिलती रही.

अपनी बहन मधु पर जब सुनील का कोई वश नहीं चला तो वह तैश में आ गया. उस ने न केवल ऋषि को धमकाया बल्कि उस की पत्नी को भी चेतावनी दी कि वह पति को समझा दे या फिर अपनी मांग का सिंदूर पोंछ ले. मधु और मिक्की के बीच विवाद बढ़ता गया तो मधु ने कश्मीरी गली वाला मिक्की का फ्लैट हड़प कर उस में रहना शुरू कर दिया. वह उसी फ्लैट में रह कर कारोबार संभालती रही.

समय का चक्र नया मोड़ ले आया. एक ऐसा मोड़ जहां शेर की तरह जीवन जीने वाले व्यक्ति को भी भीगी बिल्ली की तरह रहना पड़ रहा था. मिक्की बख्शी नाम के जिस शख्स का नाम सुन कर अच्छेअच्छे तुर्रम खां डर के मारे पानी मांगने लगते थे, वह खुद को एकदम लाचार, असहाय समझने लगा.

मिक्की ने बीवी को क्या कुछ नहीं दिया था. उस ने अपनी आधी से अधिक दौलत उस के नाम कर दी थी. अपने सैकड़ों समर्थकों व चेलों को उस के निर्देशों का गुलाम बना दिया था. वही बीवी अब निरंकुश हो गई थी.

मिक्की ने दोहरी पहचान के साथ इज्जत का महल खड़ा किया था. एक तरफ अपराध क्षेत्र के भाई लोग उस की चरण वंदना करते थे तो वहीं नामचीन व रुतबेदार लोगों के बीच भी उस का उठनाबैठना था.

बन गई योजना जब मधु ने ऋषि खोसला का साथ नहीं छोड़ा तो अंत में मिक्की और सुनील ने फैसला कर लिया कि ऋषि को ठिकाने लगाना ठीक रहेगा. मिक्की जब जेल में बंद था तो उस की जानपहचान गिरीश दासरवार नाम के 32 वर्षीय बदमाश से हो गई थी. मिक्की ने ऋषि खोसला को निपटाने के लिए गिरीश से बात की. इस के बदले में मिक्की ने उसे अपने एक धंधे में पार्टनर बनाने का औफर दिया. गिरीश इस के लिए तैयार हो गया.

सौदा पक्का हो जाने के बाद गिरीश ने ऋषि खोसला की हत्या करने के संबंध में अपने शागिर्दों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, निवासी जीजामातानगर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, निवासी बीड़गांव, आरिफ इनायत खान निवासी खरबी नंदनवन और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद निवासी हसनबाग से बात की.

ये सभी गिरीश का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद ये सभी ऋषि खोसला की रेकी करने लगे. 20 अगस्त, 2019 को उन्हें यह मौका मिल गया, तब उन्होंने गोंडवाना चौक पर उस की फरसे से प्रहार कर हत्या कर दी.

मिक्की बख्शी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरीश दासरवार को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. चूंकि इन दोनों से और पूछताछ करनी थी, इसलिए मिक्की व गिरीश को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी एस.डी. मेहता की अदालत में पेश कर 31 अगस्त तक पुलिस रिमांड मांगा. बचाव पक्ष के वकील प्रकाश नायडू ने पुलिस रिमांड का विरोध किया.

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत ने दोनों को 25 अगस्त तक का पुलिस रिमांड दे दिया. घटना के 3 दिन बाद अन्य आरोपियों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, आरिफ इनायत खान और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद को भी बाड़ी क्षेत्र के एक धार्मिक स्थल की इमारत की छत से गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों पर हत्या, डकैती, सेंधमारी, अपहरण व मारपीट सहित अन्य मामले दर्ज थे.

हत्याकांड को अंजाम देने वाले गिरीश दासरवार पर हत्या के 4 मामले दर्ज थे. सन 2011 में गिरीश दासरवार ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर दिनेश बुक्कावार नामक चर्चित प्रौपर्टी डीलर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद दिनेश के शव को उस ने अपने घर में ड्रम के अंदर छिपा कर रखा था.

आरोपियों में कुछ ओला कैब चलाते हैं. डीसीपी विनीता साहू के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में एसीपी, पीआई महेश बंसोडे, अमोल देशमुख के अलावा विनोद तिवारी, सुशांत सालुंखे, सुधीर मडावी, संदीप पांडे, बालवीर मानमोडे शामिल थे. पुलिस ने सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

डोसा किंग: तीसरी शादी पर बर्बादी

चेन्नई के वेल्लाचीरी के बहुचर्चित प्रिंस शांता कुमार हत्याकांड की गवाही पूरी हो चुकी थी. 29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया. सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. साथ ही आदेश दिया कि प्रिंस शांताकुमार के हत्यारे पी. राजगोपाल, डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 7 जुलाई, 2019 तक कोर्ट में सरेंडर करना होगा.दरअसल, 19 मार्च, 2009 को चेन्नई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने प्रिंस शांताकुमार की हत्या और हत्या की साजिश करार देते हुए इस केस के सभी दोषियों को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था. साथ ही हत्याकांड के मुख्य आरोपी और डोसा किंग के नाम से मशहूर पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया था, जिस में से 50 लाख रुपए मृतक की पत्नी जीवज्योति को दिए जाने थे. शेष रकम कोर्ट में जमा करानी थी.

हाईकोर्ट ने जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को उम्रकैद की सजा सुनाई तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस की याचिका सिरे से खारिज कर दी और हाईकोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए 7 जुलाई, 2019 तक हाईकोर्ट, चेन्नई में सरेंडर करने का आदेश दिया था.

पी. राजगोपाल ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उस ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए एक चाल चली. सरेंडर करने की आखिरी तारीख से 3 दिन पहले यानी 4 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल नाटकीय ढंग से तमिलनाडु के वाडापलानी स्थित विजया अस्पताल में जा कर भरती हो गया.

अस्पताल में उसे औक्सीजन मास्क लगा दी गई. समाचार पत्रों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया को इस बात का पता तब चला जब उस की औक्सीजन मास्क लगी फोटो सामने आई. खबर थी कि प्रिंस शांताकुमार का हत्यारा डोसा किंग पी. राजगोपाल गंभीर रूप से बीमार होने की वजह से विजया अस्पताल में भरती है.

पी. राजगोपाल ने ये चाल जेल जाने से बचने के लिए चली थी ताकि कोर्ट को उस पर दया आ जाए और उसे जेल जाने से बचा ले. अस्पताल में भरती होने के 4 दिन बाद यानी 9 जुलाई, 2019 को वह मास्क लगाए एंबुलेंस से चेन्नई हाईकोर्ट में सरेंडर करने जा पहुंचा.

कोर्ट ने उसे 7 जुलाई तक की मोहलत दे रखी थी, लेकिन दिमाग का शातिर राजगोपाल कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए जानबूझ कर 2 दिन बाद कोर्ट में सरेंडर करने पहुंचा था, जबकि उस के पांचों साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने पहले ही सरेंडर कर दिया था.

पी. राजगोपाल के वकील ने उसे बचाने के लिए कोर्ट के सामने उस के गंभीर रूप से बीमार होने के दस्तावेज पेश किए. लेकिन हाईकोर्ट ने उस की एक नहीं सुनी. न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान कोर्ट को उस के बीमार होने की कोई सूचना नहीं दी गई थी, इसलिए उसे जेल जाना होगा.

जेल से अस्पताल पहुंचा राजगोपाल  कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल को हिरासत में ले कर पुजहाल जेल भिजवा दिया. ऐसा करना कोर्ट की विवशता थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश था. जेल जाने के 10 दिनों बाद पी. राजगोपाल की तबीयत सचमुच बिगड़ गई.

18 जुलाई को उसे जेल से निकाल कर सरकारी अस्पताल स्टेनली मैडिकल कालेज, चेन्नई में भरती कराया गया. तबीयत में कोई सुधार न होता देख राजगोपाल के बेटे ने अधिकारियों से इजाजत ले कर उसे इलाज के लिए उसे एक निजी अस्पताल में भरती कराया. अगले दिन इलाज के दौरान सुबह करीब 10 बजे पी. राजगोपाल ने दम तोड़ दिया. राजगोपाल की मौत के साथ शांताकुमार के एक हत्यारे की कहानी का अंत हो गया.

प्रिंस शांताकुमार कौन था? पी. राजगोपाल ने उस की हत्या क्यों की या करवाई, वह हत्यारा कैसे बना? इन सवालों से साइड बाई साइड निकली कहानी रोचक और रोमांचक है. प्याज उगाने वाले एक मामूली किसान का बेटा पी. राजगोपाल पिता की कर्मस्थली से भाग कर कैसे फर्श से अर्श तक पहुंचा, इस कहानी को जानने के लिए हमें पी. राजगोपाल के शुरुआती जीवन के पन्नों को पलटना होगा.

राजगोपाल मूलरूप से तमिलनाडु के तूतीकोरिन के पुन्नाइयादी का रहने वाला था. वह अपने मांबाप की एकलौती संतान था. उस के पिता प्याज की खेती करते थे. इस कहानी की शुरुआत होती है 1973 से. पिता की ख्वाहिश थी कि राजगोपाल खेती में उन का हाथ बंटाए ताकि प्याज का पुश्तैनी कारोबार चलता रहे. प्याज की पैदावार ही उन के परिवार के भरणपोषण का एकमात्र साधन थी.

राजगोपाल मांबाप का एकलौता बेटा था. उसे पिता के साथ खेती करना मंजूर नहीं था. वह गांव छोड़ कर चेन्नई (तब मद्रास) चला आया. चेन्नई के के.के. नगर में उस ने किराने की एक छोटी सी दुकान खोल ली.

करीब 8 साल तक उस ने किराने की दुकान चलाई. इसी दौरान उस की दुकान पर एक ज्योतिषी आया. ज्योतिषी ने बताया कि अगर वह किराने की दुकान के बजाए रेस्टोरेंट खोले तो ज्यादा मुनाफा होगा.

राजगोपाल ने ज्योतिषी की बात मान ली. उस ने किराने की दुकान बंद कर के उसी जगह पर छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया. उस ने रेस्टोरेंट को नाम दिया— सर्वना भवन. अपने रेस्टोरेंट में उस ने डोसा, इडली, पूड़ी और वड़ा बेचना शुरू किया.

वह दौर ऐसा था, जब अधिकांश भारतीय बाहर खाने के बारे में सोचते तक नहीं थे, लेकिन राजगोपाल ने रिस्क लिया. उस ने डोसा, पूड़ी, वड़ा और इडली बनाने के लिए नारियल तेल का इस्तेमाल करना शुरू किया. साथ ही मसाले भी अच्छी क्वालिटी के लगाए.

कीमत रखी प्रति थाली सिर्फ 1 रुपया. नतीजा यह हुआ कि उसे एक महीने में 10 हजार रुपए का घाटा हो गया. लेकिन वह न तो कारोबार में हुए घाटे से पीछे हटा और न ही गुणवत्ता के मामले में कोई समझौता किया.

पी. राजगोपाल की मेहनत रंग लाई. बीतते वक्त के साथ कुछ ऐसा हुआ कि चेन्नई में अगर किसी का बाहर खाने का मन होता तो उस की पहली पसंद सर्वना भवन ही होती थी. उस के स्टाफ में जितने भी कर्मचारी थे, सब को अच्छी सैलरी देनी शुरू कर दी.

निचले स्तर के कर्मचारियों को उस ने मैडिकल की सुविधा भी देनी शुरू कर दी. नतीजा यह निकला कि उस का स्टाफ उसे अन्नाची (बड़ा भाई) कहने लगा. पी. राजगोपाल के अच्छे व्यवहार से उस के कर्मचारी उसे दिल से चाहते थे. अगर उसे छींक भी आ जाती तो वे तड़प उठते थे.

अरबपति बनने की राह पर  राजगोपाल की मेहनत और निष्ठा से उस का कारोबार चल निकला. नतीजा यह निकला कि राजगोपाल का ज्योतिषी पर भरोसा बढ़ गया. बहरहाल, जो भी हो वक्त के साथ कारोबार इतना बढ़ा कि राजगोपाल ने रेस्टोरेंट की चेन शुरू कर दी. धीरेधीरे लोग राजगोपाल का नाम भूल गए और उसे डोसा किंग के नाम से जानने लगे.

ज्योतिषी की सलाह पर राजगोपाल ने रंगीन कपड़े पहनने छोड़ दिए थे. वह झक सफेद पैंट और शर्ट पहनने लगा. साथ ही माथे पर चंदन का बड़ा टीका भी लगाता.

इतना ही नहीं, उस ने अपने रेस्टोरेंट में अपने ज्योतिषी की तसवीर भी लगवा दी. जीवन में आए इस बदलाव की वजह से उस ने ज्योतिषी को भगवान का दरजा दे दिया. ज्योतिषी जो कहता, राजगोपाल वही करता था.

20 साल के अंदर राजगोपाल का सर्वना भवन देश में ही नहीं, विदेशों में भी मशहूर हो गया. सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हौंगकौंग, सऊदी अरब, ओमान, कतर, बहरीन, कुवैत, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, बेल्जियम, स्वीडन, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इटली और रोम में भी राजगोपाल के आउटलेट्स खुल गए.

डोसा किंग पी. राजगोपाल की किस्मत आसमान में तारे की तरह चमक रही थी. कारोबार में नोट बरस रहे थे. डोसे की कमाई से उस के पास इतने पैसे आ गए कि वह नोटों के बिस्तर पर सोने लगा. उसी दौरान पी. राजगोपाल ने एक नहीं, 2-2 शादियां कीं. लेकिन दोनों पत्नियां उस के साथ नहीं टिकीं और हमेशाहमेशा के लिए उस का साथ छोड़ कर चली गईं.

यह वह समय था जब अर्श तक पहुंचे राजगोपाल की बरबादी की कहानी लिखी जानी शुरू हो गई थी. राजगोपाल के पास अकूत संपत्ति तो थी, लेकिन वह घरगृहस्थी के सुख के लिए तरस रहा था.

हर काम ज्योतिषी से पूछ कर करने वाले राजगोपाल ने उसी ज्योतिषी से सलाह ली.

ज्योतिषी ने उसे तीसरी शादी का सुझाव दिया. राजगोपाल ने उस का सुझाव मान लिया. अब सवाल यह था कि तीसरी शादी किस से की जाए, क्योंकि तब तक राजगोपाल की आयु 50-55 बरस हो चुकी थी. इस उम्र में कोई उसे अपनी बेटी क्यों देता.

राजगोपाल की तीसरी शादी की बात बरबादी के रूप में आई. शादी के चक्कर में उस का टकराव जीवज्योति से हुआ. बात सन 2000 के शुरुआत की है. जीवज्योति पी. राजगोपाल से कुछ पैसे उधार लेने के लिए आई. वह उन्हीं की कंपनी में काम करने वाले असिस्टेंट मैनेजर रामास्वामी की बेटी थी.

जीवज्योति का पति शांता कुमार ट्रैवल एजेंसी शुरू करना चाहता था, जिस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी. इसीलिए पति के कहने पर वह राजगोपाल के पास गई. उस के पिता रामास्वामी बेटी को अकेला छोड़ कर थाइलैंड चले गए थे. वह होते तो यह रकम वह अपने पिता से ले सकती थी.

राजगोपाल ने जब बला की खूबसूरत जीवज्योति को पहली बार देखा तो वह देखता ही रह गया. उस की खूबसूरती आंखों के रास्ते दिल में उतर जाने वाली थी. उस समय जीवज्योति की उम्र 27-28 साल रही होगी. वह राजगोपाल के दिल में उतर गई. उस ने जीवज्योति को तीसरी पत्नी बनाने की ठान ली.

लेकिन यहां राजगोपाल गलत था, क्योंकि वह प्रिंस शांताकुमार की पत्नी थी. जीवज्योति ने शांताकुमार से बहुत पहले ही लव मैरिज कर ली थी. यह बात राजगोपाल को पता भी चल गई थी. फिर भी वह जीवज्योति की खूबसूरती पर मर मिटा.

दरअसल शांताकुमार प्रोफेसर था. वह रामास्वामी की बेटी जीवज्योति को मैथ्स पढ़ाने के लिए उस के घर आता था. वह स्मार्ट और गबरू जवान था, चेन्नई के वेल्लाचीरी का रहने वाला. पढ़ातेपढ़ाते शांताकुमार का दिल जीवज्योति के लिए धड़कने लगा. जीवज्योति का भी हाल कुछ ऐसा ही था.

दोनों को इस बात का अहसास तब होता था, जब ट्यूशन के बाद दोनों अलग होते थे. जीवज्योति ने अपने गुरु की आंखों में अपने प्रति पलते प्यार को देख लिया था. जीवज्योति का दिल भी शांताकुमार के लिए बेकरार था. अंतत: दोनों ने अपने प्यार का इजहार कर दिया. फिर दोनों ने चुपचाप मंदिर में जा कर शादी भी कर ली.

यह बात सन 1999 की है. जीवज्योति ने भले ही अपने प्यार और शादी के राज को दबाए रखा, लेकिन उस का यह राज उस के पिता रामास्वामी के सामने आ ही गया. रामास्वामी को जब यह राज पता चला तो उन्हें धक्का लगा. उन्हें यह शादी मंजूर नहीं थी, क्योंकि शांताकुमार क्रिश्चियन था और जीवज्योति ब्राह्मण.

तमाम विरोधों के बावजूद जीवज्योति और शांताकुमार ने अपनी राह चुन ली थी घर वालों ने इस शादी का घोर विरोध किया. परिवार वालों के विरोध के चलते जीवज्योति अपने मांबाप का घर छोड़ कर प्रेमी से पति बने शांताकुमार के घर चली गई. बेटी के इस कदम से आहत हो कर रामास्वामी थाइलैंड चले गए और वहीं बस गए.

शादी के कुछ समय बाद शांताकुमार की नौकरी छूट गई और वह बेरोजगार हो गया. उस ने अपना व्यवसाय करने के बारे में सोचा. जीवज्योति पी. राजगोपाल को जानती थी, क्योंकि उस के पिता की वजह से राजगोपाल उसे बेटी कहता था और मानता भी खूब था.

पति शांताकुमार ने ही जीवज्योति को सुझाया था कि वह राजगोपाल के पास जा कर कुछ रकम उधार मांगे. जब बिजनैस से पैसा आएगा, तो उस की रकम लौटा देंगे. पति के सुझाव पर जीवज्योति राजगोपाल के पास पैसा मांगने गई. पी. राजगोपाल ने जीवज्योति को उतनी रकम दे दी, जितनी उसे जरूरत थी. इस रकम से शांता कुमार ने ट्रैवलिंग एजेंसी शुरू भी कर दी.

लेकिन दूसरी ओर जीवज्योति को देख कर राजगोपाल की नीयत खराब हो गई थी. उसे जीवज्योति इतनी पसंद आई कि वह उस से तीसरी शादी करने की योजना बनाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने जीवज्योति को महंगेमहंगे गिफ्ट भेजने भी शुरू कर दिए.

राजगोपाल की इस मेहरबानी को न तो जीवज्योति समझ पाई थी और न ही उस का पति शांताकुमार. लेकिन जल्द ही दोनों उस की नीयत को समझ गए कि उस के दिमाग में कितनी गंदगी भरी हुई है. तभी तो बेटी कहने वाला राजगोपाल उस पर नजर गड़ाए हुए था.

दरअसल, राजगोपाल ने एक दिन जीवज्योति को अपने औफिस बुलाया. औफिस में उस की खूब आवभगत की और उस के सामने अपने दिल की बात रख दी कि वह अपने पति शांताकुमार को छोड़ कर उस से शादी कर ले.

उस की बात सुन कर जीवज्योति बुरी तरह भड़क गई और उसे खूब खरीखोटी सुना कर घर लौट आई. इस के बाद राजगोपाल ने पतिपत्नी के बीच दूरी पैदा करने की कोशिश शुरू कर दी.

पी. राजगोपाल अपने बुरे इरादों में कामयाब नहीं हो पाया. फिर भी उस ने जीवज्योति को फोन करना और महंगे तोहफे भेजना बंद नहीं किया. जब से राजगोपाल ने जीवज्योति से शादी की बात की थी, तभी से वह राजगोपाल पर भड़की हुई थी. ऊपर से उस का रोज फोन आना और महंगे तोहफे भेजना, इस सब से वह परेशान हो गई थी. जब उस ने देखा कि पानी सिर से ऊपर बह रहा है तो वह उस के प्रति और सख्त हो गई.

पी. राजगोपाल के फोन करने और महंगे तोहफों से परेशान हो कर जीवज्योति ने उस की शिकायत पुलिस में करने की धमकी दी. लेकिन इस धमकी का उस पर कोई असर नहीं हुआ. इस के बावजूद वह जीवज्योति को रोज फोन करता और महंगे तोहफे भेजता.

जीवज्योति का पति शांताकुमार काफी समझदार था. वह जानता था कि पी. राजगोपाल रसूखदार इंसान है. उस की ऊपर तक पहुंच है. उस से पंगा लेना आसान नहीं होगा. काफी सोचविचार करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि इस शहर को ही छोड़ दिया जाए.

प्रिंस शांताराम और उस की पत्नी चेन्नई छोड़ पाते, उस से पहले ही 28 सितंबर, 2001 को पी. राजगोपाल अपने 5 साथियों के साथ उन के घर जा पहुंचा. उस ने जीवज्योति से धमकी भरे लहजे में कहा कि 2 दिन के अंदर वह अपने पति से रिश्ता तोड़ दे और उस से शादी कर ले नहीं तो इस का बहुत बुरा अंजाम होगा. जीवज्योति डरी नहीं, उस ने उस के मुंह पर ही कह दिया कि वह अपने पति से किसी भी तरह अलग नहीं हो सकती, चाहे वह जो भी कर ले.

जीवज्योति के मुंह से न सुनते ही पी. राजगोपाल आगबबूला हो उठा. वह न सुनने का आदी नहीं था. वह ऐसा शख्स था, जिस चीज पर उस का दिल आ जाता था, उसे साम, दाम, दंड, भेद चारों नीति अपना कर उसे हासिल कर लेता था, चाहे इस के लिए उसे भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

राजगोपाल को जीवज्योति पसंद आ गई थी. लेकिन उस ने उस के मुंह पर ही मना कर दिया था. उसे यह बात बहुत बुरी लगी, इसलिए उसे गुस्सा आ गया. वह उसे हासिल किए बिना इतनी आसानी से कैसे जाने देता.

जीवज्योति के मना करने के बाद राजगोपाल का इशारा पा कर उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन ने शांताकुमार को जबरन एक कार में बिठाया और राजगोपाल के के.के. नगर स्थित पुराने गोदाम में ले गए.

जीवज्योति की आंखों के सामने उस के पति का अपहरण हुआ था. वह इसे कैसे सहन कर सकती थी. उस ने के.के. नगर थाने में राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ शांताकुमार के अपहरण की नामजद तहरीर दी. लेकिन पुलिस ने उस का मुकदमा दर्ज नहीं किया.

जीवज्योति कई दिनों तक थाने के चक्कर काटती रही, लेकिन उस का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ. इस बीच वह अपने स्तर पर पति का पता लगाती रही लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला.

पति को ले कर जीवज्योति निराश हो गई थी. वह सोचती थी कि पता नहीं राजगोपाल के आदमियों ने शांताकुमार के साथ कैसा सुलूक किया होगा. उस ने पति के जीवित होने की आशा छोड़ दी थी. बस वह यही प्रार्थना करती थी कि वह जहां भी हो, सहीसलामत रहे.

अपहरण के 14वें दिन यानी 12 अक्तूबर, 2001 को शांताकुमार अपहर्ताओं के चंगुल से बच निकला और सीधे पुलिस कमिश्नर के औफिस पहुंच गया. उस ने अपनी आपबीती कमिश्नर को सुना दी.

पुलिस ने बात तो सुनी पर नहीं की ठोस काररवाई  शांताकुमार की पूरी बात सुन कर पुलिस कमिश्नर हतप्रभ रह गए. उन्होंने के.के. नगर थाने के थानेदार को जम कर फटकार लगाई और पीडि़त शांताकुमार का मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया. इस के बाद पुलिस को राजगोपाल के खिलाफ मुकदमा लिखना ही पड़ा.

पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने के बाद शांताकुमार और जीवज्योति को यकीन हो गया था कि पुलिस दोषियों के खिलाफ कड़ी काररवाई करेगी. इस के बाद वे दोनों अपनी तरफ से यह सोच कर थोड़ा लापरवाह हो गए थे कि मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद राजगोपाल की हेकड़ी कम हो जाएगी, वह दोबारा कोई ओछी हरकत नहीं करेगा.

लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद पी. राजगोपाल और भी आक्रामक हो गया था. एक अदना सी औरत उस से टकराने की जुर्रत कर रही थी, यह उसे यह बरदाश्त नहीं था. उस ने सोच लिया कि जीवज्योति को इस की सजा मिलनी चाहिए.

2-4 दिन तक जब राजगोपाल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो शांताकुमार और जीवज्योति को लगा कि अब मामला सुलझ जाएगा.

लेकिन यह उन का भ्रम था. 6 दिन बाद 18 अक्तूबर, 2001 को एक बार फिर से शांताकुमार का अपहरण हो गया. अपहरण राजगोपाल ने ही करवाया था.

शांताकुमार का अपहरण करवाने के बाद पी. राजगोपाल फिर से जीवज्योति पर शादी के लिए दबाव डालने लगा. उस ने फिर से फोन करना शुरू कर दिया. जीवज्योति ने भी साफ कह दिया कि वह मर जाएगी लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं होगी.

14 दिनों बाद 31 अक्तूबर, 2001 को कोडैकनाल के टाइगर चोला जंगल में शांताकुमार की डेडबौडी मिली. पति की लाश बरामद होने के बाद जीवज्योति ने थाने जाने के बजाय अदालत की शरण लेना बेहतर समझा. उस का पुलिस से भरोसा उठ चुका था, इसलिए उस ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट का फैसला जीवज्योति के पक्ष में आया और अदालत ने केस दर्ज करने का आदेश दे दिया.

कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने पी. राजगोपाल और उस के 5 साथियों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन के खिलाफ अपहरण, हत्या की साजिश और हत्या का केस दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस राजगोपाल की तलाश में जुट गई.

आखिर झुकना पड़ा कानून के सामन  अंतत 23 नवंबर, 2001 को राजगोपाल ने चेन्नई पुलिस के समने सरेंडर कर दिया. उस के सरेंडर करने से पहले पुलिस पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. करीब डेढ़ साल तक जेल में रहने के बाद 15 जुलाई, 2003 को पी. राजगोपाल को जमानत मिल गई.

पी. राजगोपाल के जमानत पर बाहर आते ही जीवज्योति फिर से कोर्ट पहुंच गई. उस समय शांताकुमार का केस बहुचर्चित केस था, सो मामला स्पैशल कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.

सन 2004 में सेशन कोर्ट का फैसला आ गया. कोर्ट ने अपहरण, हत्या की कोशिश और हत्या के मामले में पी. राजगोपाल और 5 दूसरे लोगों डेनियल, कार्मेगन, हुसैन, काशी विश्वनाथन और पट्टू रंगन को 10-10 साल कैद की सजा सुनाई.

जीवज्योति इस सजा से खुश नहीं थी. उस ने हाईकोर्ट में अपील कर दी. करीब 5 साल तक मामला हाईकोर्ट में चलता रहा और फिर मार्च, 2009 में हाईकोर्ट का फैसला भी आ गया.

19 मार्च, 2009 को हाईकोर्ट के जस्टिस बानुमति और जस्टिस पी.के. मिश्रा की बेंच ने इसे हत्या और हत्या की साजिश का मामला करार देते हुए सभी दोषियों को मिली 10-10 साल की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया. साथ ही पी. राजगोपाल पर 55 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया, जिस में से 50 लाख रुपए जीवज्योति को दिए जाने थे.

जब पी. राजगोपाल और उस के साथियों को हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी तो पी. राजगोपाल ने इस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.  29 मार्च, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि राजगोपाल को 7 जुलाई, 2019 तक सरेंडर करना होगा.

पी. राजगोपाल का पासा पलट गया था. अब उस का साथ न तो वक्त दे रहा था और न ही ज्योतिषी. सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद राजगोपाल की आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया. लेकिन वह इतनी आसानी से हार मानने वाला नहीं था.

उस ने नया पैंतरा चला. पी. राजगोपाल 4 जुलाई को अस्पताल में दाखिल हो गया. 7 जुलाई को सरेंडर करने की तारीख बीत गई तो उस ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में अपील की. उस ने कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है. उसे थोड़ी और मोहलत दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर उस की दलीलों का कोई असर नहीं हुआ.

जस्टिस एन.वी. रमन्ना की खंडपीठ ने कहा कि उसे हर हाल में कोर्ट में सरेंडर करना ही होगा. क्योंकि उस ने केस की सुनवाई के दौरान अपनी बीमारी का जिक्र नहीं किया था. इस के बाद 9 जुलाई, 2019 को वह मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. एक एंबुलेंस उसे कोर्ट ले कर गई थी. नाक में औक्सीजन मास्क लगा हुआ था. कोर्ट के आदेश पर पी. राजगोपाल को जेल भेज दिया गया. 10 दिन जेल में रह कर उस की हालत सचमुच बिगड़ गई. उसे सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां 19 जुलाई, 2019 को पी. राजगोपाल का निधन हो गया. राजगोपाल के निधन के बाद केस की काररवाई बंद कर दी गई. बाकी पांचों आरोपी जेल में सजा काट रहे हैं.    —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित