रसीली नहीं थी रसाल कंवर

डूंगरदान पत्नी को सुखी और खुश रखने के लिए गांव से शहर ले आया था. वह जितना कमाता था, उतने में गृहस्थी आराम से चल जाती थी, लेकिन दिन भर घर में अकेली रहने वाली पत्नी रसाल कंवर ने अपना सुख खोजा पति के दोस्त मोहन सिंह राव में. इस के चलते कुछ न कुछ तो गलत होना ही था. आखिर…

रविवार 14 जुलाई, 2019 का दिन था. दोपहर का समय था. जालौर के एसपी हिम्मत अभिलाष टाक को फोन पर सूचना मिली कि बोरटा-लेदरमेर ग्रेवल सड़क के पास वन विभाग की जमीन पर एक व्यक्ति का नग्न अवस्था में शव पड़ा है.

एसपी टाक ने तत्काल भीनमाल के डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई को घटना से अवगत कराया और घटनास्थल पर जा कर काररवाई करने के निर्देश दिए. एसपी के निर्देश पर डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए, साथ ही उन्होंने थाना रामसीन में भी सूचना दे दी. उस दिन थाना रामसीन के थानाप्रभारी छतरसिंह देवड़ा अवकाश पर थे. इसलिए सूचना मिलते ही मौजूदा थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर आसपास के गांव वालों की भीड़ जमा थी. वहां वन विभाग की खाई में एक आदमी का नग्न शव पड़ा था. आधा शव रेत में दफन था. उस का चेहरा कुचला हुआ था. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि उस की हत्या शायद कई दिन पहले की गई है.

वहां पड़ा शव सब से पहले एक चरवाहे ने देखा था. वह वहां सड़क किनारे बकरियां चरा रहा था. उसी चरवाहे ने यह खबर आसपास के लोगों को दी थी. कुछ लोग घटनास्थल पर पहुंचे और पुलिस को खबर कर दी.

मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को खाई से बाहर निकाल कर शिनाख्त कराने की कोशिश की, मगर जमा भीड़ में से कोई भी मृतक की शिनाख्त नहीं कर सका. शव से करीब 20 मीटर की दूरी पर किसी चारपहिया वाहन के टायरों के निशान मिले. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि हत्यारे शव को किसी गाड़ी में ले कर आए और यहां डाल कर चले गए.

पुलिस ने घटनास्थल से साक्ष्य एकत्र किए. शव के पास ही खून से सनी सीमेंट की टूटी हुई ईंट भी मिली. लग रहा था कि उसी ईंट से उस के चेहरे को कुचला गया था. कुचलते समय वह ईंट भी टूट गई थी.

मौके की सारी काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया. डाक्टरों की टीम ने उस का पोस्टमार्टम किया.

जब तक शव की शिनाख्त नहीं हो जाती, तब तक जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी. शव की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मृतक के फोटो वाट्सऐप पर शेयर कर दिए. साथ ही लाश के फोटो भीनमाल, जालौर और बोरटा में तमाम लोगों को दिखाए. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

सोशल मीडिया पर मृतक का फोटो वायरल हो चुका था. जालौर के थाना सिटी कोतवाली में 2 दिन पहले कालेटी गांव के शैतानदान चारण नाम के एक शख्स ने अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराई थी.

कोतवाली प्रभारी को जब थाना रामसीन क्षेत्र में एक अज्ञात लाश मिलने की जानकारी मिली तो उन्होंने लाश से संबंधित बातों पर गौर किया. उस लाश का हुलिया लापता डूंगरदान चारण के हुलिए से मिलताजुलता था. कोतवाली प्रभारी बाघ सिंह ने डीएसपी भीनमाल हुकमाराम को सारी बातें बताईं.

मारा गया व्यक्ति डूंगरदान चारण था

इस के बाद एसपी जालौर ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया, इन में एक टीम भीनमाल थाना इंचार्ज साबिर मोहम्मद के नेतृत्व में गठित की गई, जिस में एएसआई रघुनाथ राम, हैडकांस्टेबल शहजाद खान, तेजाराम, संग्राम सिंह, कांस्टेबल विक्रम नैण, मदनलाल, ओमप्रकाश, रामलाल, भागीरथ राम, महिला कांस्टेबल ब्रह्मा शामिल थी.

दूसरी पुलिस टीम में रामसीन थाने के एएसआई विरधाराम, हैडकांस्टेबल प्रेम सिंह, नरेंद्र, कांस्टेबल पारसाराम, राकेश कुमार, गिरधारी लाल, कुंपाराम, मायंगाराम, गोविंद राम और महिला कांस्टेबल धोली, ममता आदि को शामिल किया गया.

डीएसपी हुकमाराम बिश्नोई दोनों पुलिस टीमों का निर्देशन कर रहे थे. जालौर के कोतवाली निरीक्षक बाघ सिंह ने उच्चाधिकारियों के आदेश पर डूंगरदान चारण की गुमशुदगी दर्ज कराने वाले उस के रिश्तेदार शैतानदान को राजदीप चिकित्सालय की मोर्चरी में रखी लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने रिश्तेदार डूंगरदान चारण के रूप में कर दी.

मृतक की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने उस के परिजनों से संपर्क किया तो इस मामले में अहम जानकारी मिली. मृतक की पत्नी रसाल कंवर ने पुलिस को बताया कि उस के पति डूंगरदान 12 जुलाई, 2019 को जालौर के सरकारी अस्पताल में दवा लेने गए थे.

वहां से घर लौटने के बाद पता नहीं वे कहां लापता हो गए, जिस की थाने में सूचना भी दर्ज करा दी थी. रसाल कंवर ने पुलिस को अस्पताल की परची भी दिखाई. पुलिस टीम ने अस्पताल की परची के आधार पर जांच की.

पुलिस ने राजकीय चिकित्सालय जालौर के 12 जुलाई, 2019 के सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो पता चला कि डूंगरदान को काले रंग की बोलेरो आरजे14यू बी7612 में अस्पताल तक लाया गया था.

उस समय डूंगरदान के साथ उस की पत्नी रसाल कंवर के अलावा 2 व्यक्ति भी फुटेज में दिखे. उन दोनों की पहचान मोहन सिंह और मांगीलाल निवासी भीनमाल के रूप में हुई. पुलिस जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज जांच के बाद गांव के विभिन्न लोगों से पूछताछ की तो सामने आया कि मृतक डूंगरदान चारण की पत्नी रसाल कंवर से मोहन सिंह राव के अवैध संबंध थे. इस जानकारी के बाद पुलिस ने रसाल कंवर और मोहन सिंह को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

मांगीलाल फरार हो गया था. रसाल कंवर और मोहन सिंह राव ने आसानी से डूंगरदान की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

केस का खुलासा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी भी थाने पहुंच गए. उच्चाधिकारियों के सामने आरोपियों से पूछताछ कर डूंगरदान हत्याकांड से परदा उठ गया.

पुलिस ने 16 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों मृतक की पत्नी रसाल कंवर एवं उस के प्रेमी मोहन सिंह राव को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान उन से विस्तार से पूछताछ की गई तो डूंगरदान चारण की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

मृतक डूंगरदान चारण मूलरूप से राजस्थान के जालौर जिले के बागौड़ा थानान्तर्गत गांव कालेटी का निवासी था. उस के पास खेती की थोड़ी सी जमीन थी. वह उस जमीन पर खेती के अलावा दूसरी जगह मेहनतमजदूरी करता था. उस की शादी करीब एक दशक पहले जालौर की ही रसाल कंवर से हुई थी.

करीब एक साल बाद रसाल कंवर एक बेटे की मां बनी तो परिवार में खुशियां बढ़ गईं. बाद में वह एक और बेटी की मां बन गई. जब डूंगरदान के बच्चे बड़े होने लगे तो वह उन के भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगा.

गांव में अच्छी पढ़ाई की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा डूंगरदान अपने बीवीबच्चों के साथ गांव कालेटी छोड़ कर भीनमाल चला गया और वहां लक्ष्मीमाता मंदिर के पास किराए का कमरा ले कर रहने लगा. भीनमाल कस्बा है. वहां डूंगरदान को मजदूरी भी मिल जाती थी. जबकि गांव में हफ्तेहफ्ते तक उसे मजदूरी नहीं मिलती थी.

आशिकी के लिए दोस्ती डूंगरदान के पड़ोस में ही मोहन सिंह राव का आनाजाना था. मोहन सिंह राव पुराना भीनमाल के नरता रोड पर रहता था. वह अपराधी प्रवृत्ति का रसिकमिजाज व्यक्ति था. उस की नजर रसाल कंवर पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. मोहन सिंह ने इस के लिए ही डूंगरदान से दोस्ती की थी. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा.

मोहन सिंह रसाल कंवर से भी बड़ी चिकनीचुपड़ी बातें करता था. जब डूंगरदान मजदूरी करने चला जाता और उस के बच्चे स्कूल तो घर में रसाल कंवर अकेली रह जाती. ऐसे मौके पर मोहन सिंह उस के यहां आने लगा. मीठीमीठी बातों में रसाल को भी रस आने लगा. मोहन सिंह अच्छीखासी कदकाठी का युवक था.रसाल और मोहन के बीच धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ने लगीं.

थोड़े दिनों के बाद दोनों के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. इस के बाद रसाल कंवर उस की दीवानी हो गई. डूंगरदान हर रोज सुबह मजदूरी पर निकल जाता तो फिर शाम होने पर ही घर लौटता था.

रसाल और मोहन पूरे दिन रासलीला में लगे रहते. डूंगरदान की पीठ पीछे उस की ब्याहता कुलटा बन गई थी. दिन भर का साथ उन्हें कम लगने लगा था. मोहन चाहता था कि रसाल कंवर रात में भी उसी के साथ रहे, मगर यह संभव नहीं था. क्योंकि रात में पति घर पर होता था.

ऐसे में एक दिन मोहन सिंह ने रसाल कंवर से कहा, ‘‘रसाल, जीवन भर तुम्हारा साथ तो निभाऊंगा ही, साथ ही एक प्लौट भी तुम्हें ले कर दूंगा. लेकिन मैं चाहता हूं कि तुम्हारे बदन को अब मेरे सिवा और कोई न छुए. तुम्हारे तनमन पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है.’’

‘‘मैं हर पल तुम्हारा साथ निभाऊंगी.’’ रसाल कंवर ने प्रेमी की हां में हां मिलाते हुए कहा.

रसाल के दिलोदिमाग में यह बात गहराई तक उतर गई थी कि मोहन उसे बहुत चाहता है. वह उस पर जान छिड़कता है. रसाल भी पति को दरकिनार कर पूरी तरह से मोहन के रंग में रंग गई. इसलिए दोनों ने डूंगरदान को रास्ते से हटाने का मन बना लिया. लेकिन इस से पहले ही डूंगरदान को पता चल गया कि उस की गैरमौजूदगी में मोहन सिंह दिन भर उस के घर में पत्नी के पास बैठा रहता है.

यह सुनते ही उस का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. गुस्से से भरा डूंगरदान घर आ कर चिल्ला कर पत्नी से बोला, ‘‘मेरी गैरमौजूदगी में मोहन यहां क्यों आता है, घंटों तक यहां क्या करता है? बताओ, तुम से उस का क्या संबंध है?’’ कहते हुए उस ने पत्नी का गला पकड़ लिया.

रसाल मिमियाते हुए बोली, ‘‘वह तुम्हारा दोस्त है और तुम्हें ही पूछने आता है. मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. जरूर किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं. हमारी गृहस्थी में कोई आग लगाना चाहता है. तुम्हारी कसम खा कर कहती हूं कि मोहन सिंह से मैं कह दूंगी कि वह अब घर कभी न आए.’’

पत्नी की यह बात सुन कर डूंगरदान को लगा कि शायद रसाल सच कह रही है. कोई जानबूझ कर उन की गृहस्थी तोड़ना चाहता है. डूंगरदान शरीफ व्यक्ति था. वह बीवी पर विश्वास कर बैठा. रसाल कंवर ने अपने प्रेमी मोहन को भी सचेत कर दिया कि किसी ने उस के पति को उस के बारे में बता दिया है. इसलिए अब सावधान रहना जरूरी है.

उधर डूंगरदान के मन में पत्नी को ले कर शक उत्पन्न तो हो ही गया था. इसलिए वह वक्तबेवक्त घर आने लगा. एक रोज डूंगरदान मजदूरी पर गया और 2 घंटे बाद घर लौट आया. घर का दरवाजा बंद था. खटखटाने पर थोड़ी देर बाद उस की पत्नी रसाल कंवर ने दरवाजा खोला. पति को अचानक सामने देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

डूंगरदान की नजर कमरे में अंदर बैठे मोहन सिंह पर पड़ी तो वह आगबबूला हो गया. उस ने मोहन सिंह पर गालियों की बौछार कर दी. मोहन सिंह गालियां सुन कर वहां से चला गया. इस के बाद डूंगरदान ने पत्नी की लातघूंसों से खूब पिटाई की. रसाल लाख कहती रही कि मोहन सिंह 5 मिनट पहले ही आया था. मगर पति ने उस की एक न सुनी.

पत्नी के पैर बहक चुके थे. डूंगरदान सोचता था कि गलत रास्ते से पत्नी को वापस कैसे लौटाया जाए. वह इसी चिंता में रहने लगा. उस का किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था. वह चिड़चिड़ा भी हो गया था. बातबात पर उस का पत्नी से झगड़ा हो जाता था.

आखिर, रसाल कंवर पति से तंग आ गई. यह दुख उस ने अपने प्रेमी के सामने जाहिर कर दिया. तब दोनों ने तय कर लिया कि डूंगरदान को जितनी जल्दी हो सके, निपटा दिया जाए.

रसाल कंवर पति के खून से अपने हाथ रंगने को तैयार हो गई. मोहन सिंह ने योजना में अपने दोस्त मांगीलाल को भी शामिल कर लिया. मांगीलाल भीनमाल में ही रहता था.

साजिश के तहत रसाल और मोहन सिंह 12 जुलाई, 2019 को डूंगरदान को उपचार के बहाने बोलेरो गाड़ी में जालौर के राजकीय चिकित्सालय ले गए. मांगीलाल भी साथ था. वहां उस के नाम की परची कटाई. डाक्टर से चैकअप करवाया और वापस भीनमाल रवाना हो गए. रास्ते में मौका देख कर रसाल कंवर और मोहन सिंह ने डूंगरदान को मारपीट कर अधमरा कर दिया. फिर उस का गला दबा कर उसे मार डाला.

इस के बाद डूंगरदान की लाश को ठिकाने लगाने के लिए बोलेरो में डाल कर बोरटा से लेदरमेर जाने वाले सुनसान कच्चे रास्ते पर ले गए, जिस के बाद डूंगरदान के शरीर पर पहने हुए कपड़े पैंटशर्ट उतार कर नग्न लाश वन विभाग की खाली पड़ी जमीन पर डाल कर रेत से दबा दी. उस के बाद वे भीनमाल लौट गए.

भीनमाल में रसाल कंवर ने आसपास के लोगों से कह दिया कि उस का पति जालौर अस्पताल चैकअप कराने गया था. मगर अब उस का कोई पता नहीं चल रहा. तब डूंगरदान की गुमशुदगी उस के रिश्तेदार शैतानदान चारण ने जालौर सिटी कोतवाली में दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपी मोहन सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का है. उस ने अपने साले की बीवी की हत्या की थी. इन दिनों वह जमानत पर था. मोहन सिंह शादीशुदा था, मगर बीवी मायके में ही रहती थी. भीनमाल निवासी मांगीलाल उस का मित्र था. वारदात के बाद मांगीलाल फरार हो गया था.

थाना रामसीन के इंचार्ज छतरसिंह देवड़ा अवकाश से ड्यूटी लौट आए थे. उन्होंने भी रिमांड पर चल रहे रसाल कंवर और मोहन सिंह राव से पूछताछ की.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने 19 जुलाई, 2019 को दोनों आरोपियों रसाल कंवर और मोहन सिंह को फिर से कोर्ट में पेश कर दोबारा 2 दिन के रिमांड पर लिया और उन से पूछताछ कर कई सबूत जुटाए. उन की निशानदेही पर मृतक के कपड़े, वारदात में प्रयुक्त बोलेरो गाड़ी नंबर आरजे14यू बी7612 बरामद की गई. मृतक डूंगरदान के कपडे़ व चप्पलें रामसीन रोड बीएड कालेज के पास रेल पटरी के पास से बरामद कर ली गईं.

पूछताछ पूरी होने पर दोनों आरोपियों को 21 जुलाई, 2019 को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. पुलिस तीसरे आरोपी मांगीलाल माली को तलाश कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

मौज मस्ती के खेल में हत्या: रास न आया अवैध रिश्ता

मुंबई से सटे कल्याण तहसील के गांव राया के पुलिस चौकीदार किरण जाधव को किसी ने बताया कि गांव के बाहर नाले के किनारे बोरी में किसी की लाश पड़ी है. चूंकि किरण जाधव गांव में पुलिस की तरफ से चौकीदार था, इसलिए वह इस खबर को सुनते ही मौके पर पहुंच गया.

उसे जो सूचना दी गई थी, वह बिलकुल सही थी. इसलिए चौकीदार ने फोन कर के यह खबर टिटवाला थाने में दे दी. यह बात 23 जून, 2019 की है. थानाप्रभारी इंसपेक्टर बालाजी पांढरे को पता चला तो वह एसआई कमलाकर मुंडे और अन्य स्टाफ के साथ मौके पर पहुंच गए.

थानाप्रभारी जब मौके पर पहुंचे तो उन्हें वहां एक युवती की अधजली लाश मिली, जो एक बोरी में थी. बोरी और लाश दोनों ही अधजली हालत में थीं. मृतका की उम्र यही कोई 25-30 साल थी. लाश झुलसी हुई थी. उस की कमर पर काले धागे में पीले रंग का ताबीज बंधा था. जिस बोरी में वह लाश थी, उस में मुर्गियों के कुछ पंख चिपके मिले.

थानाप्रभारी ने यह खबर अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम के साथ एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ और क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

तब तक वहां तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. फोरैंसिक टीम का जांच का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

इस ब्लाइंड मर्डर केस को सुलझाने के लिए ठाणे (देहात) के एसपी डा. शिवाजी राठौड़ ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम का गठन एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ के नेतृत्व में किया. इस टीम में थानाप्रभारी बालाजी पांढरे, एसआई कमलाकर मुंडे, जितेंद्र अहिरराव, हवलदार अनिल सातपुते, दर्शन साल्वे, सचिन गायकवाड़ और तुषार पाटील आदि को शामिल किया गया.

दूसरी टीम क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले के नेतृत्व में बनाई गई. इस टीम में एपीआई प्रमोद गढ़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, बजरंग राजपूत, हेडकांस्टेबल अविनाश गर्जे, सचिन सावंत आदि थे. दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील कर रहे थे.

मृतका के गले में जो ताबीज था, पुलिस ने उस की जांच की तो उस पर बांग्ला भाषा में कुछ लिखा नजर आया. उस से यह अंदाजा लगाया गया कि युवती शायद पश्चिम बंगाल की रही होगी. जिस बोरी में शव मिला था, उस बोरी में मुर्गियों के पंख थे, जिस का मतलब यह था कि बोरी किसी चिकन की दुकान से लाई गई होगी.

पुलिस टीमों ने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच शुरू की. पुलिस ने टिटवाला में चिकन की दुकान चलाने वालों को अज्ञात युवती की लाश के फोटो दिखाए तो पुलिस को सफलता मिल गई. एक दुकानदार ने फोटो पहचानते हुए बताया कि वह टिटवाला के खड़वली इलाके में रहने वाली मोनी है, जो अकसर बनेली के चिकन विक्रेता आलम शेख उर्फ जाने आलम के यहां आतीजाती थी.

पुलिस टीम आलम शेख की चिकन की दुकान पर पहुंच गई. लेकिन आलम दुकान पर नहीं था. पुलिस ने उस के नौकर से पूछा तो उस ने बताया कि आलम शेख पश्चिम बंगाल स्थित अपने घर गया है. पुलिस ने आलम की दुकान की जांच की. इस के बाद पुलिस खड़वली इलाके में उस जगह पहुंची, जहां मोनी रहती थी. वहां के लोगों से बात कर के पुलिस को जानकारी मिली कि मोनी और आलम शेख के बीच नाजायज संबंध थे.

अवैध संबंधों और आलम शेख के दुकान से फरार होने से पुलिस समझ गई कि मोनी की हत्या में आलम शेख का ही हाथ होगा. पुलिस ने किसी तरह से आलम शेख का पश्चिम बंगाल का पता हासिल कर लिया. वह पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला था.

एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील ने एक पुलिस टीम बंगाल के सदईपुर भेज दी. वहां जा कर टिटवाला पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से आलम शेख को हिरासत में ले लिया.

आलम शेख को स्थानीय न्यायालय में पेश कर पुलिस ने उस का ट्रांजिट रिमांड ले लिया और थाना टिटवाला लौट आई. पुलिस ने आलम शेख से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मोनी के कत्ल की बात स्वीकार कर ली. उस से पूछताछ के बाद मोनी की हत्या की  कहानी इस प्रकार निकली—

मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला 33 वर्षीय आलम शेख उर्फ जाने आलम टिटवाला क्षेत्र में चिकन की दुकान चलाता था. करीब 4-5 महीने पहले उस की मुलाकात खड़वली क्षेत्र की रहने वाली मोनी से हुई.

मोनी आलम की दुकान पर चिकन लेने गई थी. पहली मुलाकात में ही आलम उस का दीवाना हो गया. उसी दिन बातचीत के दौरान आलम ने मोनी से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

इस के बाद मोनी अकसर उस की दुकान से चिकन लेने जाने लगी. नजदीकियां बढ़ाने के लिए आलम ने उस से चिकन के पैसे लेने भी बंद कर दिए. धीरेधीरे दोनों के संबंध गहराते गए और फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

कुछ दिनों बाद आलम शेख ने मोनी को खड़वली क्षेत्र में ही किराए का एक मकान भी ले कर दे दिया, जिस में मोनी अकेली रहने लगी. उस के अकेली रहने की वजह से आलम की तो जैसे मौज ही आ गई. जब उस का मन होता, मोनी के पास चला जाता और मौजमस्ती कर दुकान पर लौट आता.

उन के संबंधों की खबर मोहल्ले के तमाम लोगों को हो चुकी थी. आलम मोनी को आर्थिक रूप से भी सहयोग करता था. धीरेधीरे मोनी की आलम से पैसे मांगने की आदत बढ़ती गई. वह उस से ढाई लाख रुपए ऐंठ चुकी थी.

इतने पैसे ऐंठने के बाद भी वह उसे ब्लैकमेल करने लगी. वह आलम को धमकी देने लगी कि अगर उस ने बात नहीं मानी तो वह उस के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा देगी. मोनी की धमकी से आलम परेशान रहने लगा.

अंत में आलम शेख ने मोनी को रास्ते से हटाने की ठान ली. एक दिन आलम ने अपनी इस पीड़ा के बारे में अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को बताया और साथ ही मोनी की हत्या करने में उस से मदद मांगी. मनोरुद्दीन ने आलम को हर तरह का सहयोग देने की हामी भर दी. इस के बाद दोनों ने मोनी का काम तमाम करने की योजना बनाई.

योजना के अनुसार 22 जून, 2019 की रात को आलम शेख गले में अंगौछा बांध कर दुकान पर पहुंचा और वहां से एक खाली बोरी ले कर मोनी के घर पहुंच गया. उस वक्त मोनी सोई हुई थी. आलम ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. इस के बाद दोनों बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे. उसे अपनी बातों में उलझा कर आलम मौका देख रहा था. फिर मौका मिलते ही उस ने अंगौछा मोनी के गले में डाल कर पूरी ताकत से खींचना शुरू करदिया.

मोनी ज्यादा विरोध नहीं कर सकी. कुछ देर बाद जब उस की सांसें बंद हो गईं तब आलम ने मोनी के गले का अंगौछा ढीला किया. इस के बाद आलम ने अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी वहां बुला लिया.

दोनों ने साथ में लाई बोरी में शव डाला. फिर आलम शेख और मनोरुद्दीन उस बोरी को मोटरसाइकिल से ले कर निकल पड़े. रास्ते में उन्होंने एक पैट्रोलपंप से एक डिब्बे में पैट्रोल भी लिया. फिर उन्होंने शव को राया गांव के पास एक नाले के किनारे डाल दिया और पैट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की. पर शव झुलस कर रह गया. लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों वहां से चंपत हो गए.

आलम शेख उर्फ जानेआलम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक दोनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. मामले की जांच इंसपेक्टर बालाजी पांढरे कर रहे थे.

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

बातूनी औरत की फितरत

शिक्षा ने भी यही किया था, इसलिए उस का प्रेमी रोजी सिंह…

पहली अगस्त, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के लगभग 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की प्रसिद्ध दरगाह पीरान कलियर के थानाप्रभारी अजय सिंह उस वक्त थाने में ही थे. तभी उन के पास एक व्यक्ति आया.

उस व्यक्ति ने अपना नाम भरत सिंह, निवासी हबीबपुर नवादा बताते हुए कहा कि उस का छोटा भाई रोजी सिंह कल से लापता है. उसे सभी जगहों पर ढूंढ लिया है लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल रही. उस का मोबाइल फोन भी कल से बंद आ रहा है.

‘‘उस की उम्र कितनी है और कैसे गायब हुआ?’’ थानाप्रभारी अजय सिंह ने पूछा.

‘‘सर, उस की उम्र यही कोई 20-22 साल है. वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है. कल दोपहर बाद 3 बजे वह अपनी मोटरसाइकिल ले कर ड्यूटी पर जाने के लिए निकला था. उस ने जाते समय घर पर बताया था कि रात 11 बजे तक घर लौट आएगा. जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं लौटा तो हम ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला.’’

‘‘तुम्हारा भाई शादीशुदा था? उस की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, रोजी अविवाहित था. अभी कुछ दिन पहले ही इमलीखेड़ा की एक लड़की के साथ उस की मंगनी हुई थी और रही बात दुश्मनी की तो सर, उस की ही नहीं बल्कि हमारे परिवार में किसी की भी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ भरत सिंह ने बताया.

‘‘आप अपने भाई का फोटो दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दीजिए, हम अपने स्तर से उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

भाई की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद भरत सिंह घर लौट आया. चूंकि मामला जवान युवक की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर को दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले की जांच के निर्देश दिए. लेकिन 2 दिन बाद भी थानाप्रभारी लापता रोजी सिंह के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटा पाए तो एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर ने सीओ चंदन सिंह बिष्ट के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी अजय सिंह, महिला थानेदार शिवानी नेगी व भवानीशंकर पंत, एएसआई अहसान अली सैफ आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले रोजी सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच में पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बरला कस्बे में थी. इस के अलावा उस के मोबाइल से जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, वह मोबाइल नंबर शिक्षा नाम की युवती का था, जो गांव हबीबपुर नवादा की ही रहने वाली थी.

शिक्षा से पूछताछ करनी जरूरी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शिक्षा को थाने बुलवा लिया. उस से एसआई शिवानी नेगी ने पूछताछ की तो वह कहती रही कि रोजी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है और न ही उस का रोजी से कोई ताल्लुक है.

‘‘तुम झूठ बोल रही हो, रोजी से तुम्हारी कल भी बात हुई थी. इतना ही नहीं, तुम्हारी इस से पहले भी काफी देरदेर तक बातें होती थीं. अब तुम इतना और बता दो कि 30 जुलाई को रोजी के गायब होने के बाद तुम मुजफ्फरनगर जिले के बरला कस्बे में क्या करने गई थीं?’’

शिवानी नेगी के मुंह से बरला कस्बे का नाम सुनते ही शिक्षा सहम गई और अपना सिर नीचे कर के रोने लगी. एसआई शिवानी नेगी ने उसे सांत्वना दे कर चुप कराया. तभी शिक्षा सुबकते हुए बोली, ‘‘मैडम, रोजी इस दुनिया में नहीं है. उस की हत्या कर दी गई है. हत्या में उस के भाई रोहित, आदेश और उन का दोस्त रजत भी शामिल थे.’’

हत्या की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंक गए. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रोजी की लाश कहां है?’’

‘‘उस की हत्या बरला के गन्ने के एक खेत में ले जा कर की गई थी. लाश भी वहीं पड़ी होगी.’’ शिक्षा ने बताया.

पुलिस ने शिक्षा की निशानदेही पर उस के भाइयों आदेश, रोहित और इन के साथी रजत को गिरफ्तार कर लिया.

सीओ चंदन सिंह ने यह जानकारी एसपी (देहात) नवनीत सिंह को दी तो उन्होंने लाश बरामद करने के लिए एक पुलिस टीम घटनास्थल के लिए रवाना कर दी.

इस के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम चारों अभियुक्तों को ले कर बरला पहुंच गई. उन्होंने वहां की पुलिस से संपर्क किया, फिर थानाप्रभारी आरोपियों को साथ ले कर बरला पैट्रोल पंप के पीछे गन्ने के खेत में पहुंचे.

चारों आरोपियों ने पुलिस को वह जगह दिखा दी, जहां पर उन्होंने रोजी सिंह को घेर कर उस की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों की निशानदेही पर गन्ने के खेत से रोजी का शव बरामद कर लिया.

रोजी के सिर का कुछ हिस्सा किसी जानवर ने खा लिया था, दूसरे गरमी की वजह से उस का शव काफी गल गया था. प्राथमिक काररवाई में बरला पुलिस द्वारा रोजी के शव का पंचनामा भरा गया.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने रोजी सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया.

अगले दिन हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर चारों आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया और रोजी की हत्या का खुलासा कर दिया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद रोजी सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

शिक्षा रुड़की क्षेत्र के गांव नगला इमरती की रहने वाली थी. करीब 7 साल पहले उस की शादी हबीबपुर नवादा निवासी जोगेंद्र से हुई थी. 3 बच्चे होने के बाद भी उस का रूपयौवन बरकरार था. करीब 2 साल पहले पड़ोस के रहने वाले रोजी सिंह से उस का चक्कर चल गया था. रोजी सिंह अविवाहित था, जिस पर शिक्षा पूरी तरह से फिदा थी. दोनों अकसर खेतों में जा कर रंगरलियां मनाते थे.

जब उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी शिक्षा के पति जोगेंद्र को हुई तो उस ने पत्नी को परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस के ऊपर तो रोजी सिंह के इश्क का जबरदस्त भूत सवार था. वह उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थी.

अंत में जोगेंद्र ने समाज में हो रही बदनामी के कारण शिक्षा को 25 मई, 2019 को घर से निकाल दिया. इस के बाद जोगेंद्र ने इस मामले की सूचना स्थानीय इमलीखेड़ा पुलिस चौकी को भी दे दी थी, मगर पुलिस ने मामले को पतिपत्नी विवाद बता कर जोगेंद्र को महिला हेल्पलाइन केंद्र रुड़की जाने की सलाह दी.

पति द्वारा घर से निकाल देने के बाद शिक्षा अपने मायके में जा कर रहने लगी. लेकिन उस का अपने प्रेमी रोजी सिंह से संपर्क बराबर बना रहा. फोन पर दोनों बात करते रहते थे और समय निकाल कर मिल भी लेते थे.

रोजी के कारण शिक्षा को पति से तो अलग होना ही पड़ा, साथ ही मायके में भी उसे काफी अपमान झेलना पड़ रहा था. मगर रोजी के प्रेम के कारण वह सब सहन कर रही थी. कुछ दिनों पहले शिक्षा को पता चला कि रोजी की मंगनी तय हो गई है. इस बारे में शिक्षा ने रोजी से बात की तो उस ने बताया कि घर वालों के दबाव में उसे शादी करनी पड़ रही है.

प्रेमी का यह जवाब सुन कर वह तिलमिला गई. उस के मन में रोजी के प्रति नफरत पैदा हो गई. क्योंकि जिस रोजी के कारण वह ससुराल से निकाली गई थी, वही रोजी उसे छोड़ कर किसी और लड़की का होने जा रहा था.

रोजी से नफरत होने के कारण शिक्षा ने एक भयानक निर्णय ले लिया. वह निर्णय था रोजी की हत्या का. इस योजना में उस ने अपने 2 भाइयों रोहित व आदेश और उन के दोस्त रजत को भी शामिल कर लिया.

फिर शिक्षा ने एक योजना के तहत 30 जुलाई, 2019 को रोजी को शाम के समय रुड़की में दिल्ली रोड पर स्थित सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंचने को कहा. शिक्षा ने कहा कि हमें बरला कस्बे में एक तांत्रिक के पास चलना है. रोजी निर्धारित समय पर मोटरसाइकिल से सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंच गया. वहीं पर शिक्षा उस का इंतजार कर रही थी. वह रोजी के पीछे बाइक पर बैठ कर बरला की ओर चल दी.

योजना के अनुसार, उस के दोनों भाई रोहित व आदेश और उन का दोस्त रजत दूसरी बाइक से रोजी का पीछा करते हुए चलने लगे. शिक्षा प्रेमी के साथ बरला के पैट्रोल पंप के पास पहुंच गई.

तब तक अंधेरा घिर चुका था. वहां पहुंचने पर शिक्षा ने रोजी से कहा कि हमें जिस तांत्रिक के पास जाना है, वह पैट्रोल पंप के पीछे जंगल में मिलेगा. रोजी ने अपनी बाइक जंगल की तरफ मोड़ दी. तभी पीछा करते हुए रोहित, आदेश व रजत भी वहां पहुंच गए. उन्हें देख कर रोजी समझ गया कि मामला गड़बड़ है. वह घबरा कर वहां से भागने की कोशिश करने लगा. मगर रोहित व आदेश ने रोजी को दबोच लिया. उन्होंने उस पर डंडे से हमला कर दिया.

रोजी के सिर पर डंडा लगने से वह लहूलुहान हो गया. इस के बाद रोहित व आदेश ने तुरंत रोजी के गले में गमछा डाल कर खींच दिया, जिस से रोजी की मौके पर ही मौत हो गई.

रोजी की मौत के बाद शिक्षा के दोनों भाइयों ने रोजी के शव को खींच कर पास के गन्ने के खेत में डाल दिया. इस के बाद वे लोग रोजी की बाइक, मोबाइल व गमछे को दिल्ली रोड स्थित मंगलौर के निकट फेंक कर घर आ गए.

पुलिस ने शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 201, 34 के तहत केस दर्ज कर लिया. आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से 3 अगस्त, 2019 को उन्हें जेल भेज दिया गया.

रोजी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पुलिस को मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रोजी का शरीर ज्यादा गल जाने के कारण मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया. इस मामले में डाक्टरों ने उस का विसरा व डीएनए सुरक्षित रख लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपी शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत जेल में थे. केस की आगे की जांच थानाप्रभारी अजय सिंह कर रहे थे.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

 

हत्यारा आशिक : धोकेबाज प्रेमी ने दी सजा

राजकुमार गौतम अपनी खूबसूरत पत्नी और ढाई वर्षीय बेटी नान्या के साथ 4 महीने पहले ही थाणे जिले के भादवड़ गांव में किराए पर रहने के लिए आया था. इस के पहले वह भिवंडी के अवधा गांव में रहता था. उस समय उस की पत्नी सपना लगभग 7 महीने की गर्भवती थी. दोनों का व्यवहार सरल और मधुर था. यही कारण था कि आसपड़ोस के लोगों में पतिपत्नी जल्दी ही घुलमिल गए थे.

वैसे बड़े महानगरों में रहने वाले लोग अपनी दोहरी जिंदगी जीते हैं. वे जल्दी किसी से घुलतेमिलते नहीं हैं. सभी अपने काम से मतलब रखते हैं. कौन क्या करता है, कैसे रहता है, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं रहता. लेकिन राजकुमार और सपना अपने पड़ोसियों से घुलमिल कर रहते थे.

पतिपत्नी का दांपत्य जीवन अच्छी तरह से चल रहा था. करीब 2 महीने बाद सपना ने दूसरी बच्ची को जन्म दिया. बच्ची स्वस्थ और सुंदर थी, जिसे देख दोनों खुश थे.

2 बेटियों के जन्म के बाद दोनों कुछ दिनों तक कोई बच्चा नहीं चाहते थे. लिहाजा सपना ने डिलिवरी के बाद कौपर टी लगवा ली थी. लेकिन कौपर टी लगने के बाद सपना के पेट में अकसर दर्द रहने लगा था. यह दर्द कभीकभी असहनीय हो जाता था, जिस की वजह से वह बेहोश तक हो जाती थी. यह बात उस के पड़ोसियों को भी मालूम थी.

घटना 4 फरवरी, 2019 की है. उस समय दोपहर के लगभग 3 बजे का समय था, जब पड़ोसियों ने राजकुमार की ढाई वर्षीय बेटी नान्या के रोने की आवाज सुनी. रोने की आवाज पिछले 15-20 मिनट से लगातार आ रही थी. पड़ोसी राम गणेश से नहीं रहा गया तो वह राजकुमार के घर पहुंच गए.

उन्होंने घर का जो दृश्य देखा उसे देख कर उन के होश उड़ गए. वह चीखते हुए भाग कर बाहर आ गए और चीखचीख कर आसपड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर लिया. लोगों ने चीखने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि राजकुमार की पत्नी का किसी ने गला काट दिया है.

यह सुन कर जब लोग राजकुमार के घर में गए तो उस की पत्नी फर्श पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले के आसपास खून फैला हुआ था. उस की बेटी नान्या उस के पास बैठी अपने नन्हेनन्हे हाथों से मां को उठाने की कोशिश कर रही थी और दूसरी छोटी नवजात बच्ची बिस्तर पर पड़ी हाथपैर मार रही थी.

इस मार्मिक दृश्य को जिस ने भी देखा था, उस का कलेजा मुंह को आ गया. पड़ोसी दोनों बच्चियों को उठा कर घर से बाहर लाए. उन्होंने फोन कर के इस की जानकारी राजकुमार गौतम को दे दी और बेहोशी की हालत में पड़ी घायल सपना को उठा कर स्थानीय इंदिरा गांधी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने सपना को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल ने इस मामले की जानकारी पुलिस को दे दी.

वह इलाका शांतिनगर थाने के अंतर्गत आता था. यह सूचना पीआई किशोर जाधव को मिली तो वह एसआई संदीपन सोनवणे के साथ इंदिरा गांधी अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल जा कर उन्होंने डाक्टरों से बात की. इस के अलावा वह उन लोगों से मिले, जो सपना को उपचार के लिए अस्पताल लाए थे.

मृतका के पति राजकुमार ने बताया कि उस की पत्नी की जान कौपर टी के कारण गई है. कौपर टी की वजह से उस की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, जिस का इलाज चल रहा था. लेकिन कभीकभी दर्द जब असह्य हो जाता था, तब उस की सहनशक्ति जवाब दे देती थी. ऐसे में वह अपनी जान लेने पर आमादा हो जाती थी.

राजकुमार ने पत्नी की मौत की जो थ्यौरी बताई, वह टीआई के गले नहीं उतरी. उन्होंने यह तो माना कि तकलीफ में कभीकभी इंसान आपा खो बैठता है, लेकिन उस समय सपना की स्थिति ऐसी नहीं थी. डाक्टरों के बयानों से स्पष्ट हो चुका था कि आत्महत्या के लिए कोई अपना गला नहीं काट सकता.

मौत की सही वजह तो पोस्टमार्टम के बाद ही सामने आनी थी. लिहाजा टीआई किशोर जाधव ने सपना की संदिग्ध हालत में हुई मौत की जानकारी डीसीपी और एसीपी को देने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए उसी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दी.

अस्पताल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई किशोर जाधव सीधे घटनास्थल पर पहुंचे और वहां का बारीकी से निरीक्षण किया. घटनास्थल पर खून लगा एक स्टील का चाकू मिला, जिसे जाब्ते की काररवाई में शामिल कर के उन्होंने जांच के लिए रख लिया.

पीआई ने राजकुमार गौतम के बयानों के आधार पर सपना गौतम की मौत को आत्महत्या के रूप में दर्ज तो कर लिया था, लेकिन मामले की जांच बंद नहीं की थी. उन्हें सपना गौतम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. किशोर जाधव को लग रहा था कि दाल में कुछ काला है.

पोस्टमार्टम और फोरैंसिक रिपोर्ट आई तो पीआई चौंके. चाकू पर फिंगरप्रिंट मृतका के बजाए किसी और के पाए गए. इस का मतलब था कि सपना की हत्या की गई थी.

मामले की आगे की जांच के लिए पीआई किशोर जाधव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सहायक इंसपेक्टर (क्राइम), कांस्टेबल रविंद्र चौधरी, गुरुनाथ विशे, अनिल बलबी, किरण पाटिल, विजय कुमार, श्रीकांत पाटिल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने जांच शुरू कर दी. अपराध घर के अंदर हुआ था, इस का मतलब था कि अपराधी सपना का नजदीकी ही रहा होगा. इसलिए इंसपेक्टर राजेंद्र मायने ने संदेह के आधार पर सपना के पति राजकुमार गौतम से गहराई से पूछताछ की.

उन्होंने उस की कुंडली भी खंगाली. उस की अंगुलियों के निशान ले कर जांच के लिए भेज दिए गए. लेकिन उस के हाथों के निशानों ने चाकू पर मिले निशानों से मेल नहीं खाया. इस से पुलिस को राजकुमार बेकसूर लगा.

तब पुलिस ने उस के दोस्तों की जांच की. जांच में पता चला कि राजकुमार का एक दोस्त विकास चौरसिया उस की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. विकास पान की एक दुकान पर काम करता था और राजकुमार के गांव का ही रहने वाला था. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी. पुलिस ने विकास का फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया और उस की तलाश शुरू कर दी.

वह अपने घर से गायब था. उस की तलाश के लिए पुलिस ने मुखबिर भी लगा दिए. एक मुखबिर की सूचना पर विकास को भिवंडी के सोनाले गांव से हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने विकास से सपना की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह खुद को बेकसूर बताता रहा. लेकिन सख्ती करने पर उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

25 वर्षीय राजकुमार गौतम उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गांव कारमियां शुक्ला का रहने वाला था. उस के पिता गौतमराम गांव के एक साधारण किसान थे. गांव में उन की थोड़ी सी काश्तकारी थी, जिस में उन की गृहस्थी की गाड़ी चलती थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण राजकुमार गौतम की कोई खास शिक्षादीक्षा नहीं हो पाई थी. जब वह थोड़ा समझदार हुआ तो उस ने रोजीरोटी के लिए मुंबई की राह पकड़ ली. उस के गांव के कई लोग रहते थे. मुंबई से करीब सौ किलोमीटर दूर तहसील भिवंडी के अवधा गांव में उन्हीं के साथ रह कर वह छोटामोटा काम करने लगा.

भिवंडी का अवधा गांव पावरलूम कपड़ों और कारखानों का गढ़ माना जाता है. राजकुमार गौतम ने भी पावरलूम कारखाने में काम कर कपड़ों की बुनाई का काम सीखा और मेहनत से काम करने लगा. जब वह कमाने लगा तो परिवार वालों ने उस की शादी पड़ोस के ही गांव की लड़की सपना से कर दी. यह सन 2016 की बात है.

राजकुमार गौतम खूबसूरत सपना से शादी कर के बहुत खुश था. वह शादी के कुछ दिनों बाद ही सपना को अपने साथ मुंबई ले गया. किराए का कमरा ले कर वह पत्नी के साथ रहने लगा. शादी के करीब डेढ़ साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम नान्या रखा गया.

इसी दौरान राजकुमार की विकास चौरसिया से मुलाकात हो गई. विकास चौरसिया पान की एक दुकान पर काम करता था. दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई.

20 वर्षीय विकास एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह जो भी कमाता था, अपने खानपान और शौक पर खर्च करता था. राजकुमार गौतम ने जिगरी दोस्त होने की वजह से विकास की मुलाकात अपनी पत्नी से भी करवा दी थी. राजकुमार ने पत्नी के सामने विकास की काफी तारीफ की थी.

पहली मुलाकात में ही विकास सपना का दीवाना हो गया था. उस ने अपनी बेटी नान्या का जन्मदिन मनाया तो विकास चौरसिया को खासतौर पर अपने घर बुलाया. तब राजकुमार और सपना ने विकास की काफी आवभगत की थी. इस आवभगत में राजकुमार गौतम की सजीधजी बीवी सपना विकास के दिल में उतर गई.

वह जब तक राजकुमार के घर में रहा, उस की निगाहें सपना पर ही घूमती रहीं. जन्मदिन की पार्टी खत्म होने के बाद विकास चौरसिया सब से बाद में अपने घर गया था. उस समय उस ने नान्या को एक महंगा गिफ्ट दिया था. यह सब उस ने सपना को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया था.

सपना की छवि विकास की नसनस और आंखों में कुछ इस तरह से समा गई थी कि उस का सारा सुखचैन छिन गया. उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. सोतेजागते उसे बस सपना ही दिख रही थी. वह उस का स्पर्श पाने के लिए तड़पने लगा था.

राजकुमार को अपनी दोस्ती पर पूरा विश्वास था. लेकिन विकास दोस्ती में दगा करने की फिराक में था. वह तो बस उस की पत्नी सपना का दीवाना था. वह सपना का सामीप्य पाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा था.

इसीलिए मौका देख कर वह राजकुमार के साथ चाय पीने के बहाने अकसर उस के घर जाने लगा था. वह सपना के हाथों की बनी चाय की जम कर तारीफ करता था. औरत को और क्या चाहिए. विकास चौरसिया को यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि औरत अपनी तारीफ और प्यार की भूखी होती है. जो विकास ने सोचा था, वैसा ही कुछ हुआ भी. इस तरह दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. विकास बातचीत के बीच कभीकभी सपना से भद्दा मजाक भी कर लेता था, जिसे सुन कर सपना का चेहरा लाल हो जाता था और वह उस से नजरें चुरा लेती थी.

कुछ दिनों तक तो विकास राजकुमार के साथ ही उस के घर जाता था, लेकिन बाद में वह राजकुमार के घर पर अकेला भी आनेजाने लगा. वह चोरीछिपे सपना के लिए कीमती उपहार भी ले कर जाता था. उपहारों और अपनी लच्छेदार बातों में उस ने सपना को कुछ इस तरह उलझाया कि वह अपने आप को रोक नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह उस की गोदी में आ गिरी. सपना को अपनी बांहों में पा कर विकास चौरसिया के मन की मुराद पूरी हो गई.

एक बार जब मर्यादा की कडि़यां बिखरीं तो बिखरती ही चली गईं. अब स्थिति ऐसी हो गई थी कि बिना एकदूसरे को देखे दोनों को चैन नहीं मिलता था. उन्हें जब भी मौका मिलता, दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते. सपना और विकास चौरसिया का यह खेल बड़े आराम से लगभग एक साल तक चला. इस बीच सपना फिर से गर्भवती हो गई.

पहली बार सपना जब गर्भवती हुई थी तो वह अपनी डिलिवरी के लिए अपने गांव चली गई थी. इस बार सपना ने गांव न जा कर अपनी डिलिवरी शहर में ही करवाने का फैसला कर लिया था.

जब सपना की डिलिवरी के 3 महीने शेष रह गए तो राजकुमार अवधा गांव का कमरा खाली कर भादवड़ गांव पहुंच गया और भिवंडी के इंदिरा गांधी अस्पताल में सपना की डिलिवरी करवाई. डिलिवरी के बाद सपना ने पति की सहमति से कौपर टी लगवा ली. यह कौपर टी सपना को रास नहीं आई. इसे लगवाने के बाद सपना को दूसरे तरह की समस्याएं आने लगीं.

सपना की डिलिवरी के 25 दिनों बाद एक दिन दोपहर 2 बजे विकास चौरसिया मौका देख कर राजकुमार गौतम के घर पहुंच गया. उस समय सपना की बेटी नान्या घर के दरवाजे पर खेल रही थी. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा बंद कर लिया. उस समय सपना अपने बिस्तर पर लेटी अपनी छोटी बेटी को दूध पिला रही थी. विकास के अचानक आ जाने से सपना उठ कर बैठ गई.

इस से पहले कि सपना कुछ कह पाती विकास ने उस के बगल में बैठ कर बच्ची का माथा चूमा और सपना को बांहों में लेते हुए उस से शारीरिक संबंध बनाने के लिए जिद करने लगा, जिस के लिए सपना तैयार नहीं थी.

सपना ने विकास को काफी समझाने की कोशिश की और कहा, ‘‘देखो, अभी मैं उस स्थिति में नहीं हुई हूं कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी कर सकूं. आज तक मैं ने कभी तुम्हारी बातों से कभी इनकार नहीं किया है. आज मैं बीमार हूं, ऊपर से कौपर टीम लगवाई है. अभी तुम जाओ, जब मैं ठीक हो जाऊंगी तो आना.’’

लेकिन वासना के भूखे विकास पर सपना की बातों का कोई असर न हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने पर उतारू हो गया और उस पर भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. इस के पहले कि वह अपने मकसद में कामयाब होता, सपना नाराज हो गई और उस ने अपने ऊपर से विकास को नीचे फर्श पर धक्का दे दिया. फिर उठ कर वह उसे अपने घर से बाहर जाने के लिए कहने लगी.

सपना के इस व्यवहार और वासना के उन्माद में वह अपना होश खो बैठा. वह सीधे सपना की किचन में गया और वहां से स्टील का चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने सपना का गला काट दिया. सपना के गले से खून निकलने लगा और वह फर्श पर गिर पड़ी.

सपना के गले से बहते खून को देख कर विकास चौरसिया की वासना का उन्माद काफूर हो गया. वह डर कर वहां से चुपचाप निकल गया. उस के जाने के बाद दरवाजे पर खेल रही नान्या घर के अंदर आई और मां को उठाने लगी थी. सपना के न उठने पर वह उस से लिपट कर रोने लगी.

विकास चौरसिया से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

राजकुमार गौतम को जब यह मालूम पड़ा कि उस की पत्नी का आशिक और हत्यारा और कोई नहीं, बल्कि उस का अपना जिगरी दोस्त था तो उसे इस बात का अफसोस हुआ कि विकास जैसे आस्तीन के सांप को घर बुला कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी.

कथा लिखे जाने तक अभियुक्त विकास चौरसिया थाणे की तलौजा जेल में था. मामले की जांच इंसपेक्टर राजेंद्र मायने कर रहे थे.

कहानी सौजन्यसत्यकथा, मई 2019

चाहत जब नफरत में बदली

जून, 2017 को अपने नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग कर के सोनी सिन्हा वाराणसी से उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना सरायलखंसी के मोहल्ला रस्तीपुर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन पुष्पा के घर पहुंची तो रात के 9 बज रहे थे. उसे एक अन्य कार्यक्रम में जाना था, इसलिए वह जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. उस के तैयार होतेहोते पुष्पा ने उस के लिए नाश्ता ला कर रख दिया. सोनी ने नाश्ता करने से मना किया तो उन्होंने उसे डांटने वाले अंदाज में प्यार से कहा, ‘‘जो लाई हूं, चुपचाप खा ले. तू हमेशा घोड़े पर सवार रहती है.’’

नाश्ते की प्लेट उठाते हुए सोनी ने कहा, ‘‘दीदी, आप मेरी कितनी फिक्र करती हैं. सचमुच मैं बड़ी भाग्यशाली हूं, जो मुझे आप जैसी बड़ी बहन मिली. पर मैं क्या करूं, काम के लिए तो जाना ही पड़ेगा. काम की ही वजह से कभी हमें बैठ कर बातें करने का भी मौका नहीं मिलता.’’

बातें करतेकरते ही सोनी ने नाश्ता किया और घर से बाहर आ गई. बिजली न होने की वजह से उस समय गली में अंधेरा था. सोनी घर से थोड़ी दूर ही गई थी कि वह जोर से चीखी. उस की चीख सुन कर लोग टार्च ले कर बाहर आ गए. सोनी जमीन पर पड़ी कराह रही थी.

टार्च ले कर आए लोगों ने उस पर टार्च की रौशनी डाली तो देखा, उस के कपड़े खून से तर थे. एक लड़का हाथ में खून से सना चाकू लिए तेजी से भाग रहा था. पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि इसी लड़के ने सोनी पर चाकू से हमला किया है. उन्होंने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया.

शोर सुन कर पुष्पा और उस के पति मीरचंद भी वहां आ गए थे. पड़ोसियों ने हमला करने वाले लड़के की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी थी. लेकिन कसरती बदन वाला वह युवक मार खाते हुए उन के चंगुल से छूट कर अंधेरे का लाभ उठाते हुए भाग निकला था.

सोनी की गर्दन और शरीर पर कई जगह गहरे घाव हो गए थे. वहां से खून तेजी से बह रहा था. उस की हालत देख कर पुष्पा और मीरचंद घबरा गए. सोनी को जल्दी से जिला अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उस का प्राथमिक इलाज कर के उसे बीएचयू के ट्रामा सेंटर ले जाने को कहा.

मीरचंद सोनी को ले कर बीएचयू के ट्रामा सेंटर पहुंचे, जहां उसे भर्ती कर लिया गया. 2 सिपाही मऊ से उस के साथ आए थे, इसलिए सोनी का इलाज शुरू होने में कोई परेशानी नहीं हुई. दरअसल, सोनी को अस्पताल ले जाने से पहले मीरचंद ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

पुलिस कंट्रोल रूम से थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी को घटना की सूचना मिली तो वह मऊ के जिला चिकित्सालय पहुंच गए थे. सोनी की बिगड़ती हालत की वजह से वह उस का बयान तो नहीं ले सके, लेकिन एसपी अभिषेक यादव के आदेश पर वाराणसी जाते समय उस की सुरक्षा के लिए 2 सिपाहियों को उस के साथ जरूर भेज दिया था.

किस ने किया था सोनी पर हमला सोनी के जाने के बाद थानाप्रभारी सुनील तिवारी ने सोनी की बड़ी बहन पुष्पा से हमलावर के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सोनी पर हमला राहुल गुप्ता ने किया था. वह सोनी का दोस्त था और उस से एकतरफा प्यार करता था.

इस के बाद पुष्पा से तहरीर ले कर राहुल गुप्ता के खिलाफ हत्या की कोशिश एवं एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना सरायलखंसी पुलिस ने राहुल गुप्ता की तलाश में कई जगहों पर छापे मारे, लेकिन वह मिला नहीं. सोनी कोई मामूली लड़की नहीं थी, इसलिए अगले दिन उस पर हुए हमले की खबर अखबारों में प्रमुखता से छपी.

दरअसल, सोनी भोजपुरी गीतों की लोकप्रिय गायिका थी. उस ने कई भोजपुरी फिल्मों में काम भी किया था. इसलिए पुलिस उस पर हमला करने वाले राहुल गुप्ता के पीछे हाथ धो कर पड़ गई थी. लेकिन पूरा सप्ताह बीत जाने के बाद भी राहुल गुप्ता पुलिस की पकड़ में नहीं आया था. इस बीच पुलिस के लिए सुकून देने वाली बात यह रही कि सही इलाज मिल जाने से सोनी बच गई थी.

सोनी बयान देने लायक हो गई है, यह पता चलने पर सुनील तिवारी उस का बयान लेने बीएचयू पहुंच गए. गले में गहरा जख्म था, इसलिए सोनी को बाचतीत करने में परेशानी हो रही थी. खुशी की बात यह थी कि उस की आवाज जातेजाते बच गई थी, जबकि राहुल ने गले पर इसीलिए चाकू से वार किए थे कि वह कभी बोल न सके.

पुलिस को दिए अपने बयान में सोनी ने बताया था कि राहुल गुप्ता ने ही उस पर जानलेवा हमला किया था. वह पिछले कई दिनों से फोन कर के उसे परेशान कर रहा था. वह उस से प्यार करता था और उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. जबकि वह न तो उस से प्यार करती थी और न ही उस से शादी करना चाहती थी. इसी बात से नाराज हो कर उस ने उसे जान से मारने की कोशिश की थी.

सोनी के इस बयान से साफ हो गया था कि यह मामला एकतरफा प्यार का था. राहुल सोनी से एकतरफा प्यार करता था. प्यार में असफल होने के बाद राहुल को सोनी से नफरत हो गई थी और उस ने उस की जान लेने की कोशिश की थी.

पुलिस से बचने के लिए राहुल अपने बहनोई के घर जा कर छिप गया था. अखबारों के माध्यम से जब राहुल के बहनोई को उस की करतूत का पता चला तो घबरा कर उन्होंने उस से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा. आखिर बहनोई के कहने पर थानाप्रभारी 3 जुलाई, 2017 को शाम को राहुल गुप्ता ने थाना सरायलखंसी के थानाप्रभारी सुनील तिवारी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था.

पुलिस ने राहुल गुप्ता से पूछताछ शुरू की  तो बिना किसी हीलाहवाली के उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. यही नहीं, उसने वह चाकू और अपने खून सने कपड़े भी बरामद करा दिए. उस ने चाकू और कपड़े घर में ही छिपा कर रखे थे. इस के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. पूछताछ में राहुल ने सोनी पर हमला करने की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थीं—

21 साल की सोनी सिन्हा उत्तर प्रदेश के जिला मऊ के थाना घोसी के गांव सेमरा जमालपुर की रहने वाली थी. कैलाश प्रसाद की 5 संतानों में वह सब से छोटी थी. छोटी होने के नाते वह घर में सब की दुलारी थी. मांबाप से ले कर भाईबहन तक उसे हाथोंहाथ लिए रहते थे. वह 6 साल की थी, तभी भजन गा कर उस ने सब को चौंका दिया था.

जैसेजैसे सोनी बड़ी होती गई, उस की इस प्रतिभा में निखार आता गया. उस के गले से निकलने वाली स्वर लहरियां बुलंदियों को छूती गईं. उस की प्रतिभा को निखारने में घर वालों ने उस का पूरा साथ दिया.

गांव में रह कर उसे सही मंजिल नहीं मिल सकती थी, इसलिए घर वालों ने उसे उस की बड़ी बहन पुष्पा की ससुराल रस्तीपुर भेज दिया. यहीं रह कर सोनी ने गायन सीखा और जहांतहां गाने जाने लगी.

सन 2013 में सोनी को महुआ चैनल के रियालिटी शो में गाने का मौका मिला. अपनी सुरीली आवाज से उस ने जजों का दिल जीत लिया. 4 प्रतिभागियों को कड़ी टक्कर दे कर सोनी ने बाजी मार ली.

इस के बाद मऊ में एक कार्यक्रम हुआ, इस में भी उस ने बाजी मार ली. इस के बाद भोजपुरी गायकी में उस का नाम चर्चा में आ गया. उस ने ‘पूरा मऊ बाजार’, ‘माई हो फूकब पाकिस्तान के’, ‘अंगरेजी पिचकारी’, ‘चढ़ल फगुनवा’, ‘धंधा वाली’, ‘जवानी चाकलेट भइल’ और ‘कांवर भजन’ एलबम बनाए, जिन्होंने धूम मचा दिए. सोनी सिन्हा का सितारा बुलंदियों पर पहुंच गया. वह स्टेज शोे के अलावा शादीविवाहों में भी गाने जाती थी.

भाई की शादी में पहली बार मिला था राहुल सोनी से बात 2017 के अप्रैल महीने की है. बलिया जिले के थाना भीमपुरा के गांव बेलौझा के रहने वाले राहुल के भाई की शादी थी. रंगीनमिजाज उस के पिता चाहते थे कि बेटे की शादी में कोई नामीगिरामी गाने वाली आए, जिस से पार्टी में चार चांद लग जाए. अब तक पूर्वांचल में सोनी का बड़ा नाम हो चुका था. राहुल के पिता ने बारातियों के मनोरंजन के लिए सोनी को बुलवाया. सोनी समय पर अपना प्रोग्राम देने पहुंच गई.

खूबसूरत सोनी को राहुल ने पहली बार भाई की शादी में देखा था. तभी उस ने उसे दिल में उतार लिया था. राहुल भी छोटामोटा गायक था. वह आर्केस्ट्रा पार्टियों में गाता था. इसलिए सोनी से उस का परिचय हो गया. सोनी से उस की बातचीत भी होने लगी. धीरधीरे बातचीत का सिलसिला बढ़ता गया.

एक समय ऐसा भी आ गया, जब सोनी से बात किए बिना राहुल को चैन नहीं मिलता था. उसे सोनी से प्यार हो गया था. इसलिए वह उसी के ख्यालों में खोया रहने लगा था. राहुल गुप्ता गायक तो था ही, एक प्रतिष्ठित अस्पताल में कंपाउंडर भी था. यह बात सोनी को पता थी. उसी बीच सोनी के पिता कैलाश प्रसाद की तबीयत खराब हुई तो उस ने सोचा कि क्यों न राहुल की मदद से वह पिता को किसी अच्छे डाक्टर को दिखा दे.

जिस अस्पताल में राहुल काम करता था, सोनी ने राहुल की मदद से उसी अस्पताल में पिता को भरती करा दिया. राहुल की वजह से अस्पताल में कैलाश प्रसाद का बढि़या इलाज हुआ. वह जल्दी ही स्वस्थ हो गए. राहुल की इस सेवा से सोनी ही नहीं, उस के घर के सभी लोग काफी प्रभावित हुए. उस दिन के बाद राहुल जब भी उन के घर आता, घर वाले उसे काफी सम्मान देते. इस बीच सोनी से भी उस की गहरी दोस्ती हो गई थी.

राहुल अकसर सोनी के साथ उस के कार्यक्रमों में जाने लगा. दोस्ती की वजह से घर वालों ने किसी तरह की रोकटोक भी नहीं की. साथ आनेजाने और उठनेबैठने से दोनों के बीच काफी नजदीकी हो गई. सोनी भी राहुल से खूब घुलमिल गई. बातें भी उस से खुल कर हंसहंस कर करने लगी. राहुल ने इस का गलत मतलब निकाल लिया.

राहुल तो सोनी को चाहने ही लगा था, सोनी के बातव्यवहार से उसे लगा कि वह भी उसे चाहती है. जबकि सोनी उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. वह उसे सिर्फ अपना सच्चा दोस्त मानती थी. इस तरह देखा जाए तो राहुल के दिल में उस के प्रति एकतरफा प्यार था.

जून, 2017 की बात है. राहुल सेमरा जमालपुर स्थित सोनी के घर पहुंचा और सीधे सोनी के घर वालों से कहा कि वह सोनी से शादी करना चाहता है. उस की इस बात से सभी हैरान रह गए, क्योंकि उन लोगों ने सोचा भी नहीं था कि कभी इस तरह की भी बात हो सकती है. राहुल का यह व्यवहार और बात किसी को पसंद नहीं आई. लेकिन उन लोगों ने कुछ कहा नहीं, बाद में बताएंगे कह कर बात को टाल दिया.

कैलाश प्रसाद ने जब इस बारे में सोनी से बात की तो पिता की बात सुन कर सोनी भी दंग रह गई. उस ने कहा, ‘‘पापा, वह सिर्फ मेरा दोस्त है. मैं उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. अगर वह कुछ इस तरह की बात सोचता है तो यह उस का भ्रम है. खैर, मैं उस से पूछूंगी कि उस के मन में ऐसा ख्याल आया कैसे?’’

राहुल मिला तो सोनी ने उस से साफसाफ कह दिया कि वह उसे सिर्फ दोस्त मानती है, उसे बिलकुल प्यार नहीं करती. उस के लिए कभी उस के मन में ऐसी भावना आई भी नहीं. इसलिए उस के मन में जो गलतफहमी है, उसे वह निकाल दे. सम्मान देना या हंसहंस कर बातें करने का मतलब यह नहीं होता कि वह उस से प्यार करने लगी है.

सोनी ने राहुल से साफ कह दिया कि वह न उस से प्यार करती है और न उस से शादी करने का इरादा है. उस के मांबाप जहां कहेंगे, वह वहीं शादी करेगी. इसलिए अब वह कभी न उस से और न ही उस के घर वालों से इस तरह की बात करेगा.

प्यार करने वाले राहुल को कैसे हुई सोनी से नफरत सोनी का निर्णय सुन कर राहुल सन्न रह गया. उसे पैरों तले से जमीन खिसकती लग रही थी. पल भर तो उस की समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे. उसे गहरा सदमा लगा था, क्योंकि सोनी ने जो कहा था, वह दिल तोड़ने वाली बात थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सोनी उस के प्यार को इस तरह ठुकरा देगी. उस का सपना रेत के घरौंदे की तरह बिखर गया.

उस समय तो राहुल कुछ नहीं बोला, लेकिन उस ने हार नहीं मानी. क्योंकि उस का मानना था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. 2 दिनों बाद उस ने सोनी को फोन किया, लेकिन राहुल का नंबर देख कर सोनी ने फोन रिसीव नहीं किया. उसी दिन ही नहीं, इस के बाद जब भी राहुल ने फोन किया, सोनी ने उस से बात नहीं की.

यह बात राहुल के लिए कष्ट देने वाली थी. इस की वजह यह थी कि वह सोनी के लिए तड़प रहा था. किसी तरह वह उस से बात कर के अपने दिल की बात कहना चाहता था. सोनी थी कि उस का फोन ही रिसीव नहीं कर रही थी. लेकिन राहुल ने सोनी को फोन करना बंद नहीं किया. परेशान हो कर सोनी ने एक दिन राहुल का फोन रिसीव कर लिया तो उस ने फोन रिसीव न करने की वजह पूछी. लेकिन सोनी ने बताने से मना कर दिया. इस पर राहुल, अपने किए की माफी मांग कर कहा, ‘‘सोनी, आजकल मैं काफी मुसीबत में हूं. मुझे कुछ पैसों की जरूरत है. अगर मेरी मदद कर दो तो बड़ी कृपा होगी. पैसे मिलते ही मैं तुम्हारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

बिना कोई जवाब दिए सोनी ने फोन काट दिया. इस के बाद राहुल ने सोनी को न जाने कितने फोन किए, सोनी ने उस का फोन रिसीव नहीं किया. सोनी से एकतरफा प्यार करने वाला राहुल घायल सा हो गया.

जुनून की हद तक एकतरफा प्यार करने वाला राहुल दिनरात सोनी के ही ख्यालों में खोया रहता था. उसे लगता था कि वह उस के बिना जी नहीं पाएगा. किसी न किसी बहाने से वह सोनी के करीब जाना चाहता था, जबकि सोनी उस से दूर भाग रही थी. न जाने किसकिस से उस ने सोनी से बात कराने को कहा, लेकिन सोनी ने उस से बात नहीं की. इस तरह उस का प्यार नफरत में बदल गया. अब उस ने उसे सबक सिखाने का निश्चय कर लिया.

राहुल ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सोनी का ऐसा हश्र करेगा कि वह जिंदा रहते हुए भी लाश जैसी जिंदगी जिएगी. उसे अपनी जिस सुरीली आवाज पर नाज है, वह उसे हमेशाहमेशा के लिए खत्म कर देगा. इस के बाद वह उस पर नजर रखने लगा. साथ रहतेरहते उसे सोनी की ज्यादातर गतिविधियों का पता था. वह कब उठती थी, कहां जाती थी, किस से मिलती थी, उसे सब पता था.

नफरत करने वाले राहुल ने कैसे सिखाया सबक उन दिनों सोनी वाराणसी में अपने एक भोजपुरी गाने के नए एलबम ‘सावन’ की शूटिंग में व्यस्त थी. राहुल को यह पता था. 27 जून, 2017 को वह रस्तीपुर स्थित बहन के घर आएगी, उसे यह भी पता था. इस के बाद उसे एक कार्यक्रम में जाना है, उसे यह भी पता था. इन्हीं जानकारियों के आधार पर वह सोनी के घर से थोड़ी दूरी पर गली में एक चाकू ले कर छिप कर बैठ गया.

संयोग से उसी बीच बिजली चली गई. इस से राहुल का काम और आसान हो गया. करीब साढ़े 9 बजे सोनी घर से निकल कर गली के मोड़ तक पहुंची थी कि घात लगाए बैठे राहुल ने सोनी पर हमला कर दिया. घायल होने पर सोनी चीखी, लेकिन राहुल बिना डरे अपना काम करता रहा.

सोनी की चीख सुन कर पड़ोसी बाहर आ गए. इस बीच राहुल सोनी के गले पर वार कर चुका था. मोहल्ले वालों ने टार्च की रोशनी में देखा कि एक लड़का सोनी पर चाकू से वार कर रहा है तो सब उस की ओर दौड़े. लोगों को आता देख कर राहुल भागा. लेकिन लोगों ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया. मारपीट के दौरान वह उन के चंगुल से निकल भागा. अंधेरा था फिर भी सोनी ने उसे पहचान लिया था.

पूछताछ और सबूत जुटा कर पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. ताज्जुब की बात यह है कि उसे अपने किए पर जरा भी मलाल नहीं है. सोनी को अब राहुल से खतरा है, इसलिए वह होशियार रहती है. अस्पताल से छुट्टी पा कर वह घर आ चुकी है.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

6 महीने भी न चल सका 7 जन्मों का रिश्ता

अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. क्योंकि अब मेरा तुम्हारे बिना रहना संभव नहीं है. अगर तुम ने शादी में देर कर दी तो कहीं मेरे घर वाले किसी दूसरे से मेरी शादी न कर दें.’’

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निशातगंज की रहने वाली स्मिता विशाल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. जबकि विशाल और स्मिता की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था. विशाल देखने में स्लिम था, इसलिए उस की उम्र का पता नहीं चलता था.

विशाल को स्मिता से शादी करने में कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन वह चाहता था कि स्मिता अपनी पढ़ाई पूरी कर ले और उस की उम्र शादी लायक हो जाए. क्योंकि दोनों की जातियां अलगअलग थीं. इसलिए दोनों के ही घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं थे. उन्हें कोर्ट में शादी करनी पड़ती, जिस के लिए स्मिता का बालिग होना जरूरी था.

स्मिता के घर वालों को जैसे ही विशाल और उस के प्यार के बारे में पता चला था, उन्होंने स्मिता के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी थी. वे उस की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. इसी से स्मिता चिंतित थी और विशाल पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी.

विशाल उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ स्थित बताशे वाली गली के रहने वाले आशुतोष सोनी का बेटा था. आशुतोष सोनी की वहां ज्वैलरी की दुकान थी. विशाल का छोटा भाई विकास पिता के साथ दुकान संभालता था, जबकि बड़ा भाई गौरव लखनऊ में रहता था. वह वहां किसी स्कूल में अध्यापक था.

विशाल और स्मिता की दोस्ती, जो प्यार में बदल गई विशाल खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, इस के लिए उस ने गहने बनाने का काम सीखा और लखनऊ की एक ज्वैलरी शौप में नौकरी कर ली. निशातगंज की जिस दुकान में विशाल काम करता था, स्मिता वहां आतीजाती थी. इसी आनेजाने में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो जल्दी ही उन में दोस्ती हुई और फिर यही दोस्ती प्यार में बदल गई.

स्मिता जब विशाल पर शादी के लिए कुछ ज्यादा ही दबाव डालने लगी तो उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘स्मिता हमें आज नहीं तो कल शादी करनी ही है. जबकि हमें पता है कि हमारी शादी का हमारे घर वाले विरोध कर रहे हैं. मैं अपने घर वालों की उतनी चिंता नहीं करता, जितनी तुम्हारे घर वालों की करता हूं. अगर हम ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी कर ली तो मुझे तुम्हारे सहयोग की जरूरत पडे़गी. क्योंकि शादी के बाद तुम्हारे घर वाले पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. तब तुम बदल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘तुम्हारे घर वाले भले ही इस शादी का विरोध न करें, पर मेरे घर वाले इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं हैं. रही बात बदल जाने की तो कान खोल कर सुन लो, मैं इस जन्म की ही बात नहीं कर रही, 7 जन्मों तक तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगी.’’ इतना कह कर स्मिता ने विशाल को गले लगा लिया.

स्मिता बालिग हो गई तो कुछ दिनों तक तैयारी कर के स्मिता और विशाल ने अप्रैल, 2017 में लवमैरिज कर ली. विशाल के घर वाले तो केवल उस से नाराज ही हुए, स्मिता के घर वालों ने तो उस से रिश्ता ही खत्म कर लिया, वे विशाल को धमकियां भी देने लगे. विशाल और स्मिता के एकजुट होने से धीरेधीरे उन का विरोध तो खत्म हो गया, पर उन दोनों का ही अपनेअपने घर वालों से कोई संबंध नहीं रह गया.

स्मिता और विशाल का प्यार जब कलह में बदल गया शादी के बाद विशाल और स्मिता अकेले पड़ गए थे. घर वालों से पूरी तरह से संबंध खत्म होने की वजह से गृहस्थी के खर्च का सारा बोझ विशाल के कंधों पर आ गया था. घर के किराए से ले कर खानेपहनने की पूरी व्यवस्था विशाल को अकेले करनी पड़ रही थी, जिस की वजह से उसे दुकान पर ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ रहा था.

विशाल मेहनती और व्यवहारकुशल तो था ही, गंभीर भी था. जबकि स्मिता उस के उलट चंचल स्वभाव की थी. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, इसलिए विशाल को उस की पढ़ाई का भी खर्च उठाना पड़ रहा था. जबकि स्मिता ने कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही थी. वह खाना भी बाहर से ही मंगाती थी. शादी के बाद उस के शौक भी बढ़ गए थे.

नहीं बैठ सका विशाल और स्मिता में सामंजस्य विशाल को घर खर्च के अलावा स्मिता की पढ़ाई, उस के शौक और अन्य दूसरे खर्चे भी उठाने पड़ रहे थे. स्मिता को घर के कामकाज भी नहीं आते थे, जिस से विशाल को काफी परेशानी होती थी. परेशान हो कर एक दिन विशाल ने कहा, ‘‘स्मिता रोजरोज बाजार का खाना ठीक नहीं है. तुम कुछ भी बना लिया करो. मुझे दुकान पर जाना होता है. घर में खाना न बनने से बाजार से पूड़ीसब्जी मंगाता हूं. बाहर से खाना मंगाता हूं तो दोस्त कहते हैं कि घर में बीवी है, फिर भी बाजार का खाना खाते हो.’’

लेकिन स्मिता पर विशाल की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह सुबह देर तक सोती रहती थी. अकसर वह विशाल के दुकान पर जाने के बाद ही सो कर उठती थी. रात में 9 बजे वह घर आता तो स्मिता उस से बाहर चल कर खाने को कहती.

उस के इस व्यवहार से विशाल को गुस्सा तो बहुत आता था, पर वह कुछ कह नहीं पाता था. कभी कुछ कहता तो स्मिता सीधे कहती, ‘‘शादी से पहले तो तुम रोज बाहर खाने के लिए कहते थे. अब मैं बाहर खाने के लिए कहती हूं तो नाराज हो जाते हो.’’

‘‘स्मिता, शादी से पहले हम कुछ देर साथ रहने के लिए खाना खाने के लिए बाहर जाते थे. अब हम साथसाथ रहते हैं तो हमें घर पर ही खाना बनाना चाहिए. घर में बना कर खाने से पैसे भी कम खर्च होेते हैं और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.’’

‘‘विशाल, तुम तो जानते हो कि मुझे खाना बनाना नहीं आता. दाल खराब बन गई तो मैं खुद ही खाना नहीं खा पाऊंगी. इसलिए बाहर खा लेना ही ठीक रहेगा.’’ स्मिता कहती.

न चाहते हुए विशाल को स्मिता की बात माननी पड़ती. शादी से पहले स्मिता का जो व्यवहार विशाल को अच्छा लगता था, अब वही खराब लगने लगा था. वह स्मिता की बातों से तनाव में आ जाता, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा होने लगता.

शादी के बाद धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच जहां सामंजस्य बैठता है, वहीं विशाल और स्मिता के बीच तनाव और टकराव रहने लगा था. खर्च बढ़ने की वजह से विशाल को साथियों से कर्ज लेना पड़ा. वह परेशान रहता था कि अगर खर्च इसी तरह होता रहा तो वह कहां से पूरा करेगा.

खर्च को ले कर ही विशाल और स्मिता के बीच झगड़ा बढ़ता गया. खर्च पूरा होता न देख, स्मिता विशाल से वह नौकरी छोड़ कर कहीं ज्यादा वेतन वाली नौकरी करने को कहने लगी. एक दिन तो स्मिता ने विशाल के मालिक को फोन कर के कह भी दिया कि अब विशाल उन के यहां नौकरी नहीं करेगा.

विशाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. इस से वह काफी परेशान हो उठा. स्मिता की हरकतों से तंग आ कर उस ने अपने साथियों को अपने घर वालों के मोबाइल नंबर नोट करा दिए कि अगर कभी उसे कुछ हो जाता है तो वे उस के घर वालों को खबर कर देंगे.

इस तरह सब खत्म हो गया   26 सितंबर, 2017 की सुबह की बात है. विशाल दुकान पर जाने को तैयार हो रहा था, तभी स्मिता उस से लड़ने लगी. गुस्से में उस ने विशाल का फोन छीन कर उस की दुकान के मालिक को फोन कर दिया कि आज से विशाल उन की दुकान पर काम नहीं करेगा.

मालिक ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘तुम विशाल से मेरी बात कराएं, क्योंकि तुम्हारी बात पर मुझ से यकीन नहीं है.’’

विशाल फोन मांगता रहा, पर स्मिता ने उसे फोन नहीं दिया. विशाल को यह बात काफी बुरी लगी. नाराज हो कर वह बाजार गया और वहां से नैप्थलीन की गोलियां खरीद लाया. उस ने स्मिता के सामने ही कई गोलियां निगल लीं. इस से स्मिता घबरा गई. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे?

गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया. विशाल के मुंह से झाग निकलने लगा. घबराई स्मिता ने विशाल की दुकान के मालिक को फोन कर के बता दिया कि विशाल ने जहर खा लिया है.

इतना कह कर स्मिता ने तुरंत फोन काट दिया. इस के बाद दुकान के मालिक ने फोन किया तो उस ने फोन रिसीव नहीं किया, जिस से दुकान का मालिक भी घबरा गया. उस ने तुरंत दुकान पर काम करने वाले 2 लड़कों को स्मिता की मदद के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि विशाल रहता कहां है. जब तक पूछतेपूछते वे विशाल के घर पहुंचे, उस की हालत खराब हो चुकी थी.

स्मिता को कुछ समझ में नहीं आया तो डर कर उस ने भी बची हुई गोलियां खा लीं. विशाल के साथ काम करने वाले प्रदीप और नसीम जब उस के घर पहुंचे तो मकान मालिक को विशाल के जहर खाने वाली बात बताई. मकान मालिक दोनों को साथ ले कर पहली मंजिल पर स्थित विशाल के कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

किसी तरह उन्होंने दरवाजा खोला तो विशाल और स्मिता फर्श पर बेहोश पड़े मिले. स्मिता की चूडि़यां कमरे की फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. दोनों के मोबाइल फोन और चप्पलें पड़ी थीं. एक मोबाइल फोन टूटा पड़ा था. नैप्थलीन की कुछ गोलियां फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. प्रदीप और नसीम ने यह बात दुकान के मालिक अनुराज अग्रवाल को बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया.

पूरा न हुआ 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा घटना की सूचना पा कर थाना गाजीपुर के एसएसआई ओ.पी. तिवारी, एसआई कमलेश राय अपनी टीम के साथ विशाल के कमरे पर पहुंचे तो दोनों को मरा समझ कर ले जाने लगे. लेकिन तभी उन्हें लगा कि विशाल की सांसे चल रही हैं. इस के बाद उन्हें रामनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी को दी गई तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

शादी के 6 महीने के अंदर ही युवा दंपत्ति द्वारा इस तरह जान देने की बात पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था. पुलिस ने जांच शुरू की तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उन की मौत नेप्थलीन की गोलियां खाने से हुई थी. इस के बाद पुलिस ने मान लिया कि दोनों ने आत्महत्या ही की है. पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

विशाल के भाई का कहना था कि विशाल ने अपनी परेशानी कभी किसी से नहीं बताई. शादी के बाद वह तनाव में रहता था, यह बात उन्हें विशाल के दोस्तों से पता चली थी. जिस स्मिता के लिए विशाल ने अपना घरपरिवार छोड़ कर 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वह उस के साथ 6 महीने भी नहीं बिता सका.

कई बार प्यार में अंधे हो कर लोग ऐसे बंधन मे बंध जाते हैं कि उस को निभाना मुश्किल हो जाता है. प्यार करने वाले अगर शादी करते हैं तो उन्हें स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

प्यार में एकदूसरे का साथ देने की कसमें खाना तो आसान है, लेकिन शादी के बाद जिम्मेदारियां पड़ती हैं तो पता चलता है कि प्यार के बाद शादी क्या चीज होती है. इसलिए काफी सोचसमझ कर ही प्यार के बाद शादी करनी चाहिए.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

शूलों की शैय्या पर लेटा प्यार : खुशियों के लिए किया अपनों का क़त्ल

31जुलाई, 2019 का दिन था. सुबह के  करीब 10 बज रहे थे. कानपुर जिले की एसपी (साउथ) रवीना त्यागी अपने कार्यालय में मौजूद थीं, तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उन के पास आया. वह बेहद मायूस नजर आ रहा था. उस के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थीं.

वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा है. मैं नौबस्ता थाने के राजीव विहार मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बेटी सुमन ने करीब 8 साल पहले राजेश वर्मा के बेटे अमित वर्मा के साथ प्रेम विवाह किया था. चूंकि बेटी ने यह काम हम लोगों की मरजी के खिलाफ किया था, इसलिए हम ने उस से नाता तोड़ लिया था.

बच्चों के लिए मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. 2 साल पहले जब वह घर लौटी तो हमें अच्छा ही लगा. तब से बेटी ने हमारे घर आनाजाना शुरू कर दिया था. उस के साथ उस का बेटा निश्चय भी आता था. उस ने हमें बताया था कि वह रवींद्रनगर, नौबस्ता में अमित वर्मा के साथ रह रही है. पर दिसंबर, 2018 से वह हमारे घर नहीं आई.

हम ने उस के मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उस का मोबाइल भी बंद मिला. हम ने बेटी सुमन व नाती निश्चय के संबंध में दामाद अमित वर्मा से फोन पर बात की तो वह पहले तो खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘ससुरजी, अपनी बेटी और नाती को भूल जाओ.’’

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा ने बताया कि अमित वर्मा की बात सुन कर मेरा माथा ठनका. हम ने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह से सुमन अपने बेटे के साथ घर से लापता हैं. यह भी जानकारी मिली कि 3 माह पहले अमित ने खुशी नाम की युवती से दूसरा विवाह रचा लिया है. वह हंसपुरम में उसी के साथ रह रहा है.

मकसूद ने एसपी के सामने आशंका जताई कि अमित वर्मा ने सुमन व नाती निश्चय की हत्या कर लाश कहीं ठिकाने लगा दी है. उस ने मांग की कि अमित के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर उचित काररवाई करें.

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की बातों से एसपी रवीना त्यागी को मामला गंभीर लगा. उन्होंने उसी समय थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह यादव को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि इस मामले की तुरंत जांच करें और अगर कोई दोषी है तो उसे तुरंत गिरफ्तार करें. एसपी साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी मकसूद प्रसाद को साथ ले कर थाने लौट गए और उन्होंने मकसूद से इस संबंध में विस्तार से बात की.

इस के बाद उन्होंने उसी शाम आरोपी अमित वर्मा को थाने बुलवा लिया. थाने में उन्होंने उस से उस की पत्नी सुमन और बेटे निश्चय के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 24 दिसंबर, 2018 की रात सुमन अपने बेटे को ले कर बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी.

अमित वर्मा के अनुसार, उस ने उन दोनों को हर संभावित जगह पर खोजा, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब उस ने 28 दिसंबर को नौबस्ता थाने में पत्नी और बेटे के गुम होने की सूचना दर्ज करा दी थी.

यही नहीं, शक होने पर उस ने पड़ोस में रहने वाली मनोरमा नाम की महिला पर कोर्ट के माध्यम से पत्नी व बेटे को गायब कराने को ले कर उस के खिलाफ धारा 156 (3) के तहत कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज कराया था लेकिन पुलिस ने जांच के बाद उसे क्लीन चिट दे दी थी.

थानाप्रभारी ने अमित वर्मा की बात की पुष्टि के लिए थाने का रिकौर्ड खंगाला तो उस की बात सही निकली. थाने में उस ने पत्नी और बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई थी और पड़ोसी महिला मनोरमा पर कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था. चूंकि मनोरमा पर आरोप लगा था, अत: थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने मनोरमा को थाने बुलवाया.

उन्होंने उस से सुमन और उस के बेटे निश्चय के गुम होने के संबंध में सख्ती से पूछताछ की. तब मनोरमा ने उन्हें बताया कि अमित वर्मा बेहद शातिरदिमाग है. वह पुलिस को बारबार गुमराह कर के उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है. जबकि वह बेकसूर है.

मनोरमा ने थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह को यह भी बताया कि 23 दिसंबर, 2018 को उस की सुमन से बात हुई थी. उस ने बताया था कि वह अपने पति के साथ कुंभ स्नान करने प्रयागराज जा रही है. दूसरे रोज वह अमित के साथ चली गई थी. लेकिन वह उस के साथ वापस नहीं आई. शक है कि अमित ने पत्नी व बेटे की हत्या कर उन की लाशें कहीं ठिकाने लगा दी हैं. मनोरमा से पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया गया.

अमित वर्मा की ओर शक की सुई घूमी तो थानाप्रभारी ने सच का पता लगाने के लिए अपने मुखबिर लगा दिए. साथ ही खुद भी हकीकत का पता लगाने में जुट गए.

मुखबिरों ने राजीव विहार, गल्लामंडी तथा रवींद्र नगर में दरजनों लोगों से अमित के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा मुखबिरों ने अमित पर भी नजर रखी. मसलन वह कहां जाता है, किस से मिलता है और उस के मददगार कौन हैं.

11 अगस्त, 2019 की सुबह 10 बजे 2 मुखबिरों ने थानाप्रभारी को एक चौंकाने वाली जानकारी दी. मुखबिरों ने बताया कि सुमन और उस के बेटे निश्चय की हत्या अमित वर्मा ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर की है. दरअसल, अमित वर्मा के नाजायज संबंध देवकीनगर की खुशी नाम की युवती से बन गए थे. इन रिश्तों का सुमन विरोध करती थी. खुशी से शादी रचाने के लिए सुमन बाधक बनी हुई थी.

यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने अमित वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और पत्नी सुमन तथा बेटे निश्चय की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया कि पत्नी और 6 साल के बेटे की हत्या उस ने देवकीनगर निवासी संजय शर्मा तथा कबीरनगर निवासी मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री की मदद से की थी. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ने पुलिस टीम के साथ संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब दोनों का सामना अमित वर्मा से हुआ तो उन्होंने भी हत्या का जुर्म कबूल लिया.

पूछताछ करने पर अमित वर्मा ने बताया कि उस ने सुमन व उस के बेटे की हत्या कौशांबी जिले में लाडपुर के पास एक सुनसान जगह पर की थी और वहीं सड़क किनारे लाशें फेंक दी थीं.

दोनों की हत्या किए 7 महीने से ज्यादा बीत गए थे, इसलिए मौके पर लाशें नहीं मिल सकती थीं. उम्मीद थी कि लाशें संबंधित थाने की पुलिस ने बरामद की होंगी.

यह सोच कर थानाप्रभारी तीनों आरोपियों और शिकायतकर्ता मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा को साथ ले कर कौशांबी के लिए निकल पड़े. सब से पहले वह लाडपुर गांव की उस पुलिया के पास पहुंचे, जहां आरोपियों ने सुमन को तेजाब से झुलसाने के बाद गला दबा कर उन की हत्याएं कीं और लाशें फेंक दी थीं.

पुलिस ने सड़क किनारे झाडि़यों में सुमन की लाश ढूंढी लेकिन वहां लाश मिलनी तो दूर, उस का कोई सबूत भी नहीं मिला. तीनों आरोपियों ने बताया कि 6 वर्षीय निश्चय की हत्या उन्होंने लोडर के डाले से सिर टकरा कर की थी. इस के बाद उसे निर्वस्त्र कर लाश पुलिया से करीब एक किलोमीटर दूर चमरूपुर गांव के पास सड़क किनारे फेंकी थी.

पुलिस उन्हें ले कर चमरूपुर गांव के पास उस जगह पहुंची, जहां उन्होंने बच्चे की लाश फेंकने की बात बताई थी. पुलिस ने वहां भी झाडि़यों वगैरह में लाश ढूंढी, लेकिन लाश नहीं मिल सकी. जिन जगहों पर दोनों लाशें फेंकी गई थीं, वह क्षेत्र थाना कोखराज के अंतर्गत आता था. अत: पुलिस थाना कोखराज पहुंच गई.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने कोखराज थाना पुलिस को सुमन व उस के बेटे की हत्या की बात बताई. कोखराज पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो पता चला 25 दिसंबर, 2018 की सुबह क्षेत्र के 2 अलगअलग स्थानों से 2 लाशें मिली थीं. एक लाश महिला की थी, जिस की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस का चेहरा तेजाब डाल कर जलाया गया था.

दूसरी लाश निर्वस्त्र हालत में एक बालक की थी, जिस की उम्र करीब 6 वर्ष थी. इन दोनों लाशों की सूचना कोखराज गांव के प्रधान गुलेश बाबू ने दी थी. दोनों लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाने पर अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

थाना कोखराज पुलिस के पास दोनों लाशों के फोटोग्राफ्स मौजूद थे. फोटोग्राफ्स मकसूद प्रसाद को दिखाए तो वह फोटो देखते ही फफक कर रो पड़ा. उस ने बताया कि फोटो उस की बेटी सुमन तथा नाती निश्चय के हैं. सिंह ने उसे धैर्य बंधाया और थाने का रिकौर्ड तथा फोटो आदि हासिल कर थाना नौबस्ता लौट आए.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने सारी जानकारी एसपी रवीना त्यागी को दे दी और मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की तरफ से अमित वर्मा, संजय शर्मा और मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 326 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता आयोजित कर मीडिया के सामने इस घटना का खुलासा किया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी—

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कस्बा नौबस्ता में एक मोहल्ला है राजीव विहार. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा एक बेटी सुमन और 2 बेटे थे. मेहनतमजदूरी कर के वह जैसेतैसे अपने परिवार को पाल रहा था.

मकसूद प्रसाद की बेटी सुमन खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. एक रोज सुमन छत पर खड़ी अपने गीले बालों को सुखा रही थी. तभी उस के कानों में फेरी लगा कर ज्वैलरी की सफाई करने वाले की आवाज आई.

उस की आवाज सुनते ही सुमन छत से नीचे उतर आई. उस की चांदी की पायल गंदी दिख रही थी, वह उन की सफाई कराना चाहती थी, इसलिए फटाफट बक्से में रखी अपनी पायल निकाल कर साफ कराने के लिए ले गई.

ज्वैलरी की सफाई करने वाला नौजवान युवक था. खूबसूरत सुमन को देख कर वह प्रभावित हो गया. उस ने सुमन की पायल कैमिकल घोल में डाल कर साफ कर दीं. पायल एकदम नई जैसी चमकने लगीं. पायल देख कर सुमन बहुत खुश हुई. पायल ले कर वह घर जाने लगी तो कारीगर बोला, ‘‘बेबी, पायल पहन कर देख लो, मैं भी तो देखूं तुम्हारे दूधिया पैरों में ये कैसी लगेंगी.’’

अपने पैरों की तारीफ सुन कर सुमन की निगाहें अनायास ही कारीगर के चेहरे पर जा टिकीं. उस समय उस की आंखों में प्यार का समंदर उमड़ रहा था. कारीगर की बात मानते हुए सुमन ने उस के सामने बैठ कर पायल पहनीं तो वह बोला, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत पैरों में पायल खूब फब रही हैं. वैसे बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो, क्या जानना चाहते हो?’’ वह बोली.

‘‘तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘मेरा नाम सुमन है.’’ कुछ पल रुकने के बाद सुमन बोली, ‘‘तुम ने मेरा नाम तो पूछ लिया, पर अपना नहीं बताया.’’

‘‘मेरा नाम अमित वर्मा है. मैं राजीव विहार में ही रहता हूं. राजीव विहार में मेरा अपना मकान है. मेरे पिता भी यही काम करते हैं. फेरी लगा कर जेवरों की सफाई करना मेरा पुश्तैनी धंधा है.’’

पहली ही नजर में सुमन और अमित एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. फिर सुमन घर चली गई. अमित भी हांक लगाता हुआ आगे बढ़ गया. उस रोज रात में न तो सुमन को नींद आई और न ही अमित को. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचते रहे.

दोनों के दिलों में चाहत बढ़ी तो उन की मुलाकातें भी होने लगीं. मोबाइल फोन पर बात कर के मिलने का समय व स्थान तय हो जाता था. इस तरह उन की मुलाकातें कभी संजय वन में तो कभी किदवई पार्क में होने लगीं. एक रोज अमित ने उस से कहा, ‘‘सुमन, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

सुमन कुछ पल मौन रही. फिर बोली, ‘‘अमित, मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं.’’

सुमन और अमित का प्यार परवान चढ़ ही रह था कि एक रोज उन के प्यार का भांडा फूट गया. सुमन के भाई दीपू ने दोनों को किदवई पार्क में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी. कुछ देर बाद सुमन वापस घर आई तो मां कमला ने उसे आड़े हाथों लेते हुए खूब डांटाफटकारा. इस के बाद घर वालों ने सुमन के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया.

लेकिन सुमन को प्रतिबंध मंजूर नहीं था. वह अमित के प्यार में इतनी गहराई तक डूब गई थी, जहां से बाहर निकलना संभव नहीं था. आखिर एक रोज सुमन अपने मांबाप की इज्जत को धता बता कर घर से निकल गई. फिर बाराह देवी मंदिर जा कर अमित से शादी कर ली. अमित ने सुमन की मांग में सिंदूर भर कर उसे पत्नी के रूप में अपना लिया.

सुमन से शादी करने के बाद अमित, सुमन को साथ ले कर अपने राजीव विहार स्थित घर पहुंचा तो उस के मातापिता ने सुमन को बहू के रूप में स्वीकारने से मना कर दिया. क्योंकि वह उन की बिरादरी की नहीं थी. हां, उन्होंने दोनों को घर में पनाह जरूर दे दी.

सुमन ने अपनी सेवा से सासससुर का मन जीतने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुई. अमित के पिता राजेश वर्मा को सदैव इस बात का भय बना रहता था कि सुमन को ले कर उस के घर वाले कोई बवाल न खड़ा कर दें. अत: उन्होंने राजीव विहार वाला अपना मकान बेच दिया और नौबस्ता गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

चूंकि पिता का मकान बिक चुका था, इसलिए अमित भी नौबस्ता के रवींद्र नगर में किराए पर मकान ले कर सुमन के साथ रहने लगा. इधर सुमन के मातापिता भी गायब हुई बेटी को अपने स्तर से ढूंढ रहे थे. उन्होंने बदनामी की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं की थी.

कुछ समय बाद उन्हें जानकारी हुई कि सुमन ने अमित के साथ ब्याह रचा लिया है. इस का उन्हें बहुत दुख हुआ. इतना ही नहीं, उन्होंने सुमन से नाता तक तोड़ लिया. उन्होंने यह सोच कर कलेजे पर पत्थर रख लिया कि सुमन उन के लिए मर गई है.

अमित सुमन को बहुत प्यार करता था. वह हर काम सुमन की इच्छानुसार करता था. सुमन भी पति का भरपूर खयाल रखती थी. इस तरह हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इन 3 सालों में सुमन ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम निश्चय रखा गया.

बेटे के जन्म के बाद सुमन के घरआंगन में किलकारियां गूंजने लगीं. निश्चय जब 3 साल का हुआ तो सुमन ने उस का दाखिला विवेकानंद विद्यालय में करा दिया. सुमन ही निश्चय को स्कूल भेजने व छुट्टी होने पर घर लाने का काम करती थी.

कुछ समय बीतने के बाद स्थितियों ने करवट बदली. धीरेधीरे सुमन की मुसकान गायब हो गई. पति न केवल उस से दूर भागने लगा बल्कि बातबात पर उसे डांटनेफटकारने भी लगा. वह देर रात घर लौटता था. कभीकभी तो पूरी रात गायब रहता. यह सब सुमन की चिंता का कारण बन गया.

वह हमेशा उदास रहने लगी. वह सब कुछ सहती रही. आखिरकार जब स्थिति सहन सीमा से बाहर हो गई, तब उस ने पति के स्वभाव में इस परिवर्तन का पता लगाने का निश्चय किया.

सुमन को यह जान कर गहरा सदमा लगा कि उस का पति खुशी नाम की युवती के प्रेम जाल में फंस गया है. उसे खुशी के बारे में यह भी पता चला कि वह जितनी सुंदर है, उतनी ही चंचल और मुंहफट भी है.

वह देवकीनगर में किराए के मकान में रहती है. उस के मांबाप नहीं हैं. एक भाई है, जो शराबी तथा आवारा है. बहन पर उस का कोई नियंत्रण नहीं है.

फेरी लगाने के दौरान जिस तरह अमित ने सुमन को फांसा था, उसी तरह उस ने खुशी को भी फांस लिया था. वह उस का इतना दीवाना हो गया था कि अपनी पत्नी और बच्चे को भी भूल गया. हर रोज घर में देर से आना और पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देना, उस की दिनचर्या बन गई थी.

सुमन पहले तो अमित की बातों पर विश्वास कर लेती थी किंतु जब असलियत का पता चला तो उस का नारी मन विद्रोह पर उतर आया. भला उसे यह कैसे गवारा हो सकता था कि उस के रहते उस का पति किसी दूसरी औरत की ओर आंख उठा कर देखे.

वह इस का विरोध करने लगी. लेकिन अमित अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उलटे वह सुमन को ही प्रताडि़त करने लगा. खुशी से नाजायज रिश्तों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. पतिपत्नी आए दिन एकदूसरे से झगड़ने लगे. इस तनावपूर्ण वातावरण में एक बुराई और घर में घुस आई. अमित को शराब की लत पड़ गई.

शराब पीने के बाद वह सुमन को बेतहाशा पीटता पर सुमन थी कि सब कुछ सह लेती थी. उस के सामने समस्या यह भी थी कि वह किसी से अपना दुखदर्द बांट भी नहीं सकती थी. मांबाप से उस के संबंध पहले ही खराब हो चुके थे.

एक दिन तो अमित ने हद ही कर दी. वह खुशी को अपने घर ले आया. उस समय सुमन घर पर ही थी. खुशी को देख कर सुमन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पति को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उस ने खुशी की बेइज्जती करते हुए उसे भी खूब लताड़ा.

बेइज्जती हुई तो खुशी उसी समय वहां से चली गई. उस के यूं चले जाने पर अमित सुमन पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. सुमन रोतीतड़पती रही.

सुमन की एक पड़ोसन थी मनोरमा. अमित जब घर पर नहीं होता तब वह मनोरमा के घर चली जाया करती थी. सुमन उस से बातें कर अपना गम हलका कर लेती थी.

एक रोज मनोरमा ने सुमन से कहा कि बुरे वक्त में अपने ही काम आते हैं. ऐसे में तुम्हें अपने मायके आनाजाना शुरू कर देना चाहिए. मांबाप बड़े दयालु होते हैं, हो सकता है कि वे तुम्हारी गलती को माफ कर दें.

पड़ोसन की यह बात सुमन को अच्छी लगी. वह हिम्मत जुटा कर एक रोज मायके जा पहुंची. सुमन के मातापिता ने पहले तो उस के गलत कदम की शिकायत की फिर उन्होंने उसे माफ कर दिया. इस के बाद सुमन मायके आनेजाने लगी. सुमन ने मायके में कभी यह शिकायत नहीं की कि उस का पति उसे मारतापीटता है और उस का किसी महिला से चक्कर चल रहा है.

इधर ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों खुशी अमित के दिलोदिमाग पर छाती जा रही थी. वह खुशी से शादी रचा कर उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था, लेकिन इस रास्ते में सुमन बाधा बनी हुई थी. खुशी ने अपना इरादा जता दिया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. यानी जब तक सुमन उस के साथ है, तब तक वह उस की जीवनसंगिनी नहीं बन सकती.

खुशी का यह फैसला सुनने के बाद अमित परेशान रहने लगा कि वह किस तरह इस समस्या का समाधान करे. अमित वर्मा का एक दोस्त था संजय शर्मा. वह देवकीनगर में रहता था और केबल औपरेटर था. वह भी अमित की तरह अपनी पत्नी से पीडि़त था. उस की पत्नी संजय को छोड़ कर मायके में रह रही थी.

उस ने संजय के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा भी दर्ज करा रखा था. अमित ने अपनी परेशानी संजय शर्मा को बताई तो संजय ने सलाह दी कि वह अपनी पत्नी सुमन व उस के बच्चे को खत्म कर दे. तभी उस की समस्या का निदान हो सकता है.

खुशी से विवाह रचाने के लिए अमित पत्नीबेटे की हत्या करने को राजी हो गया. उस ने इस बारे में संजय से चर्चा की तो उस ने अमित की मुलाकात मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री से कराई. अख्तर नौबस्ता क्षेत्र के कबीरनगर में रहता था. वह लोडर चलाता था.

साथ ही लोडर मिस्त्री भी था. मोहम्मद अख्तर मूलरूप से कौशांबी जिले के कोखराज थाना क्षेत्र के गांव मारूकपुरवा का रहने वाला था. उस की पत्नी मेहरुन्निसा गांव में ही रहती थी.

अमित, संजय व मोहम्मद अख्तर ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई. संजय ने गुड्डू मिस्त्री से सलाह मशविरा कर अमित से 35 हजार रुपए में हत्या का सौदा कर लिया. अमित ने संजय को 10 हजार रुपए एडवांस दे दिए.

चूंकि अब योजना को अंजाम देना था, इसलिए अमित ने सुमन के साथ अच्छा बर्ताव करना शुरू कर दिया. वह उस से प्यार भरा व्यवहार करने लगा. उस ने सुमन से वादा किया कि अब वह खुशी के संपर्क में नहीं रहेगा. पति के इस व्यवहार से सुमन गदगद हो उठी. उस ने सहज ही पति की बातों पर भरोसा कर लिया. यही उस की सब से बड़ी भूल थी.

योजना के तहत 23 दिसंबर, 2018 को अमित वर्मा और संजय मूलगंज बाजार पहुंचे. वहां से अमित ने एक बोतल तेजाब खरीदा. शाम को अमित ने सुमन से कहा कि कल हम लोग कुंभ स्नान को प्रयागराज जाएंगे. सुमन राजी हो गई. उस ने रात में ही प्रयागराज जाने की सारी तैयारी कर ली.

योजना के मुताबिक 24 दिसंबर, 2018 की शाम 7 बजे अमित, पत्नी सुमन व बेटे निश्चय को साथ ले कर रामादेवी चौराहा पहुंचा. पीछे से मोहम्मद अख्तर भी लोडर ले कर रामादेवी चौराहा पहुंच गया. उस के साथ संजय शर्मा भी था. लोडर अमित के पास रोक कर अख्तर ने उस से पूछा कि कहां जा रहे हो तुम लोग॒. तब अमित ने कहा, ‘‘हम कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जा रहे हैं.’’

‘‘मैं भी लोडर ले कर प्रयागराज जा रहा हूं, उधर से वापसी के समय लोडर में पत्थर लाऊंगा. अगर तुम लोग चाहो तो मेरे साथ चल सकते हो.’’ मोहम्मद अख्तर बोला.

अमित ने सुमन से कहा कि लोडर चालक उस का दोस्त है. वह प्रयागराज जा रहा है. ऐतराज न हो तो लोडर से ही निकल चलें. किराया भी बच जाएगा.

सुमन को क्या पता थी कि यह अमित की चाल है और इस में उस का पति भी शामिल है. वह तो पति पर विश्वास कर के राजी हो गई. उस के बाद अमित वर्मा, पत्नी व बेटे के साथ लोडर में पीछे बैठ गया, जबकि संजय आगे बैठा. उस के बाद मोहम्मद अख्तर लोडर स्टार्ट कर चल पड़ा.

मोहम्मद अख्तर ने जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर लोडर रोक दिया. वहां अमित, संजय व गुड्डू ने खाना खाया तथा शराब पी. अधिक सर्दी होने का बहाना बना कर अमित ने सुमन को भी शराब पिला दी. इस के बाद ये लोग चल दिए. कौशांबी जिले के लाडपुर गांव के पास पहुंच कर मोहम्मद अख्तर ने एक पुलिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

संजय और मोहम्मद अख्तर उतर कर पीछे आ गए. इस के बाद संजय व मोहम्मद अख्तर ने सुमन को दबोच लिया और अमित ने सुमन कोतेजाब से  नहला दिया. सुमन जलन से चीखी तो अमित ने उसे गला दबा कर मार डाला.

मां की चीख सुन कर 6 साल का बेटा निश्चय जाग गया. संजय ने बच्चे का सिर लोडर के डाले से पटकपटक कर उसे मार डाला. इन लोगों ने सुमन की लाश लाडपुर पुलिया के पास सड़क किनारे फेंक दी तथा वहां से लगभग एक किलोमीटर आगे जा कर निश्चय की निर्वस्त्र लाश भी फेंक दी. इस के बाद तीनों प्रयागराज गए. वहां से दूसरे रोज लोडर पर पत्थर लाद कर वापस कानपुर आ गए.

25 दिसंबर, 2018 की सुबह कोखराज के ग्रामप्रधान गुलेश बाबू सुबह की सैर पर निकले तो उन्होंने लाडपुर पुलिया के पास महिला की लाश तथा कुछ दूरी पर एक मासूम बच्चे की लाश देखी. उन्होंने यह सूचना कोखराज थाना पुलिस को दी.

पुलिस ने दोनों लाशें बरामद कर उन की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं पहचान सका. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. गुलेश बाबू को वादी बना कर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इधर शातिरदिमाग अमित वर्मा ने दोस्त संजय की सलाह पर 28 दिसंबर को थाना नौबस्ता में तहरीर दी कि उस की पत्नी सुमन 24 दिसंबर की रात अपने बेटे निश्चय के साथ बिना कुछ बताए घर से चली गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है. इस तहरीर पर पुलिस ने साधारण पूछताछ की, फिर शांत हो कर बैठ गई.

इस के बाद अमित ने पड़ोसी महिला मनोरमा को फंसाने के लिए 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा कायम करा दिया. उस ने मनोरमा पर आरोप लगाया कि उस की पत्नी व बच्चे को गायब करने से उस का ही हाथ है. पर जांच में आरोप सही नहीं पाया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मनोरमा को छोड़ दिया. अप्रैल, 2019 को अमित ने खुशी से शादी कर ली और हंसपुरम में उस के साथ रहने लगा.

सुमन, महीने में एक या 2 बार मायके आ जाती थी. पर पिछले 7 महीने से वह मायके नहीं आई थी, जिस से सुमन के पिता मकसूद प्रसाद को चिंता हुई. उस ने दामाद अमित से बात की तो उस ने बेटी नाती को भूल जाने की बात कही. शक होने पर मकसूद ने 31 जुलाई, 2019 को एसपी रवीना त्यागी को जानकारी दी. इस के बाद ही केस का खुलासा हो सका.

12 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अमित वर्मा, संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर को कानपुर कोर्ट के रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.         —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

टूटा जाल शिकारी का : असफल योजना बनी कारावास की सजा

28अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकील, पुलिस और तीनों आरोपी चंद्रमोहन शर्मा, प्रीति नागर, विदेश अदालत में मौजूद थे. उस दिन फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश निरंजन कुमार एक ऐसे केस में सजा सुनाने वाले थे, जिस में शातिराना ढंग से खुद को मृत साबित करने के लिए चंद्रमोहन शर्मा ने एक पागल व्यक्ति को अपनी कार में बैठा कर जिंदा जला दिया था.

दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी थी. पिछली तारीख पर अदालत चंद्रमोहन को भादंवि की धारा 302 के तहत दोषी भी ठहरा चुकी थी. उस दिन सिर्फ फैसला सुनाया जाना था. प्राथमिक काररवाई निपटाने के बाद न्यायाधीश निरंजन कुमार ने फैसला सुनाते हुए चंद्रमोहन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

दरअसल 28 अक्तूबर, 2019 को ग्रेटर नोएडा की फास्ट ट्रैक कोर्ट-2 के न्यायाधीश निरंजन कुमार ने जो फैसला सुनाया, उस की शुरुआत 7 जून, 2014 की शाम को तब हुई थी, जब शाम करीब 7 बजे अचानक एक लड़की का अपहरण हो गया.

दिल्ली से सटे गौतमबुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में अल्फा- 2, सेक्टर के मकान नंबर आई-33 में रहने वाले संतराम नागर की बेटी प्रीति नागर (22) अपने घर के बाहर से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

प्रीति नागर शाम के अंधेरे में घर के बाहर बिछी चारपाई उठाने आई थी और गायब हो गई. चूंकि उस वक्त इलाके में बिजली नहीं थी इसलिए किसी ने भी प्रीति को कहीं आतेजाते नहीं देखा था. प्रीति को इधरउधर तलाश करने के बाद उस के पिता संतराम ने पुलिस कंट्रोल रूम को 100 नंबर पर फोन कर के इत्तिला दे दी.

सूचना मिलने के बाद कासना थाने की पुलिस मौके पर पहुंच गई. संतराम नागर ने पुलिस को वे सारी बातें बता दीं, जो प्रीति के गायब होने से जुड़ी थीं. पुलिस ने संतराम नागर व आसपड़ोस के लोगों के बयान दर्ज किए. फिर अगली सुबह संतराम की शिकायत पर थाना कासना में धारा 364 के तहत प्रीति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

8 जून को प्रीति के अपहरण की जांच का केस एसआई विनय शर्मा के सुपुर्द कर दिया गया. जांच का काम संभालते ही जांच अधिकारी शर्मा अपनी टीम के साथ संतराम के घर पहुंचे और विवेचना शुरू कर दी.

तमाम बिंदुओं पर पूछताछ और जांच करने के बाद विनय शर्मा किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए. प्रीति का कहीं भी कोई सुराग नहीं मिला. अचानक 2 महीने बाद 9 अगस्त, 2014 को प्रीति के पिता संतराम के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से काल आई. काल करने वाले ने अपना नाम बताए बिना कहा कि वह तिरुपति बालाजी से बोल रहा है और उन की बेटी प्रीति उस के पास है.

फोन करने वाले ने बताया कि प्रीति कुछ गलत लोगों के चंगुल में फंस गई थी, लेकिन किसी तरह वह बच गई और अब उस के पास है. फोनकर्ता ने संतराम से आगे कहा कि वह तिरुपति बालाजी पहुंच जाएं, वह उन से बालाजी में मिलेगा और उन की बेटी उन के सुपुर्द कर देगा. काफी अनुरोध करने पर भी उस ने अपना नामपता नहीं बताया.

संतराम ने कासना थाने जा कर इस फोन के बारे में जांच अधिकारी विनय शर्मा को बताया.

शर्मा ने तुंरत उस फोन के बारे में साइबर सेल से जानकारी हासिल की तो पता चला कि जिस नंबर से संतराम को काल आई थी, उस की लोकेशन बंगलुरु के एक पीसीओ की थी.

विनय शर्मा ने थानाप्रभारी समरपाल सिंह और एसएसपी को इस जानकारी से अवगत कराया तो उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को विनय शर्मा को कांस्टेबल धामा के साथ बंगलुरु रवाना कर दिया. उन के साथ संतराम भी अपने साले के साथ बंगलुरु पहुंच गए.

बंगलुरु पहुंच कर विनय शर्मा सब से पहले उस पीसीओ पर पहुंचे, जहां से संतराम के मोबाइल पर फोन किया था. लेकिन उस पीसीओ के संचालक से फोन करने वाले की पहचान के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल सकी. संयोग से उसी दिन संतराम के मोबाइल पर लोकल नंबर से एक और काल आई.

फोन उसी व्यक्ति का था, जिस ने पहले फोन किया था. लेकिन इस बार फोन करने वाला काफी गुस्से में था उस ने पुलिस को साथ ले कर आने के लिए संतराम को खूब खरीखोटी सुनाई. संतराम ने उसे समझाने की कोशिश की कि उस का इरादा गलत नहीं था, लेकिन फोन करने वाला इतने गुस्से में था कि उस ने प्रीति का बुरा अंजाम करने की धमकी दे कर फोन काट दिया.

संतराम ने जब उसी नंबर पर काल बैक की तो फोन स्विच्ड औफ हो चुका था. जांच अधिकारी विनय शर्मा संतराम के साथ ही थे. वे समझ गए कि फोन करने वाला उन पर नजर रख रहा है. जिस नंबर से संतराम को फोन आया था, विनय शर्मा ने वह नंबर नोएडा में बैठी अपनी साइबर टीम को भेज दिया तो पता चला कि वह नंबर बंगलुरु के ही एक पीसीओ का है.

विनय शर्मा ने तत्काल पता नोट किया और बताए गए पते पर पहुंच गए. पीसीओ के मालिक से जब फोन करने वाले की बाबत जानकारी मांगी, तो वह उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. क्योंकि पीसीओ पर तमाम लोग आते हैं और सब के बारे में जानकारी रखना पीसीओ वाले के लिए संभव नहीं होता.

निराश हो कर 1-2 दिन बाद संतराम बंगलुरु से नोएडा लौट आए. अब जांच के सारे दरवाजे बंद हो चुके थे. लेकिन उच्चाधिकारियों  के आदेश के कारण विनय शर्मा अपने कांस्टेबल धामा के साथ वहीं रुके रहे और अपनी जांचपड़ताल करते रहे.

इस बीच संतराम जब नोएडा पहुंच गए तो 15 अगस्त को उसी अज्ञात फोन करने वाले ने फिर फोन किया. उस ने संतराम से कहा कि उन की लड़की के गिड़गिड़ाने की वजह से वह उसे छोड़ देगा, लेकिन शर्त यह है कि वह इस बार अकेला आए और अगली सुबह तिरुपति बालाजी मंदिर के बाहर उस का इंतजार करे.

संतराम ने तुरंत फ्लाइट पकड़ी और तिरुपति बालाजी मंदिर पहुंच गए. इस दौरान उन्होंने फोन कर के विनय शर्मा को भी ये बात बता दी थी. फलस्वरूप 16 अगस्त की सुबह विनय शर्मा संतराम व उन के साले के साथ फोन करने वाले का इंतजार करने लगे.

लेकिन अज्ञात फोनकर्ता ने इस बार भी धोखा दे दिया . देर शाम तक इंतजार करने के बाद वे फिर निराश हो गए, क्योंकि न तो फोन करने वाला आया और न ही उस की कोई काल आई. हालांकि इस बार जांच अधिकारी ने सावधानी बरतते हुए खुद को संतराम के से दूर रखा था. निराश हो कर संतराम नोएडा लौट आए.

वह यह मान बैठे थे कि उन्हें कोई परेशान करने के लिए ऐसा कर रहा है. लेकिन विनय शर्मा इस बार भी वापस नहीं लौटे. और प्रीति के फोटो के आधार पर थानेथाने जा कर वह उस की तलाश करते रहे.

जिस वक्त पुलिस टीम प्रीति को बंगलुरु में तलाश कर रही थी, 22 अगस्त, 2014 को संतराम ने विनय शर्मा को फोन कर के बताया कि उन के पास फोन करने वाले का एक और धमकी भरा फोन आया है. इस बार उस ने प्रीति को जान से मारने की धमकी दी है.

संतराम ने बताया कि इस बार फोनकर्ता ने एक अन्य नंबर का इस्तेमाल किया था. विनय शर्मा के मांगने पर संतराम ने उन्हें वह नंबर नोट करा दिया.

एसआई विनय शर्मा ने वह नंबर साइबर टीम को भेज कर पता करा लिया कि वह नंबर बंगलुरु में हांसे कोटे इलाके के एक पीसीओ का है.

पता मिलते ही विनय शर्मा पीसीओ मालिक के पास पहुंच गए. यहां भी पीसीओ संचालक से उन्होंने फोनकर्ता की जानकारी जुटाने की कोशिश की, मगर कोई खास सफलता नहीं मिली. फिर भी इस बार उन्हें एक क्लू जरूर मिल गया.

विनय शर्मा की नजर पीसीओ के सामने स्थित एक ज्वैलरी शौप पर पड़ी. ज्वैलरी शौप के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था. सीसीटीवी कैमरा देखते ही विनय शर्मा का चेहरा खिल उठा. उन्होंने पीसीओ के संचालक के साथ जा कर ज्वैलरी शौप संचालक को अपना परिचय दिया और सीसीटीवी फुटेज दिखाने का अनुरोध किया.

ज्वैलरी शौप के मालिक ने विनय शर्मा को सहयोग करते हुए उक्त समय की वीडियो फुटेज दिखा दी.

संयोग की बात थी कि पीसीओ ज्वैलरी शौप के सीसीटीवी कैमरे की रेंज में था. विनय शर्मा के साथ सीसीटीवी देख रहे पीसीओ संचालक ने सफेद पैंट, काली जैकेट और काले जूते पहने एक गंजे व्यक्ति को देख कर बताया कि उस के पीसीओ पर वही शख्स आया था. काल करने के बाद वह वापस चला गया था. वापस लौटते हुए उस शख्स का चेहरा पूरी तरह कैमरे की जद में आ गया था.

उस आदमी की वेशभूषा देख कर ज्वैलरी शौप के मालिक ने बताया कि यह व्यक्ति जो ड्रेस पहने है, वह कोलार में दुपहिया वाहन बनाने वाली होंडा फैक्ट्री के कर्मचारियों की ड्रेस है. यह सुराग डूबते को तिनके का सहारा मिलने जैसा था.

आगे की छानबीन के लिए विनय शर्मा ने ज्वैलरी शौप के संचालक से उस फुटेज की कौपी ले कर अपनी टीम के साथ कोलार के नस्सापुर स्थित टू व्हीलर बनाने वाली होंडा कंपनी के औफिस में पहुंच गए. जांच अधिकारी ने मैनेजर को पूरा मामला बताया. उस से पूछा गया कि क्या पिछले कुछ महीनों में उन के यहां किसी उत्तर भारतीय कर्मचारी ने नौकरी जौइन की है. इस के जवाब में मैनेजर ने उन्हें पिछले 3 महीनों में नौकरी जौइन करने वाले 3 कर्मचारियों का फोटो समेत बायोडाटा मिल गया.

तीनों बायोडाटा देखने के बाद विनय शर्मा की नजर एक शख्स पर अटक गई, क्योंकि वह उन का जानापहचाना था.

वह शख्स चंद्रमोहन शर्मा था, लेकिन बायोडाटा में उस का नाम नितिन लिखा था, जिस ने 6 मई, 2014 को फिटर कर्मचारी के रूप में उन के यहां नौकरी जौइन की थी. उस ने अपना मूल पता हरियाणा, हिसार लिखवाया था.

चंद्रमोहन को विनय अच्छी तरह जानते थे. क्योंकि वह नोएडा का एक आरटीआई एक्टिविस्ट था और वह उस से कई बार मिले भी थे. लेकिन उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि चंद्रमोहन यहां क्या कर रहा है और उस ने अपना नाम नितिन क्यों लिखवाया है. साथ ही प्रीति की तलाश करतेकरते उन्हें चंद्रमोहन की बंगलुरु में उपस्थिति समझ नहीं आ रही थी.

विनय शर्मा ने अपने मोबाइल से बायोडाटा में लगी फोटो ले कर अपने एसएचओ समरजीत सिंह को भेजी और उन्हें पूरी बात बताई.

कुछ देर में इंसपेक्टर समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को जो कुछ बताया, उस से उन के दिमाग की नसें हिल गईं. समरजीत सिंह ने बताया कि नितिन नाम का शख्स चंद्रमोहन शर्मा ही है और वह उस के मर्डर केस की जांच कर रहे हैं. समरजीत सिंह ने विनय शर्मा को बिना वक्त गंवाए नितिन को पकड़ने की हिदायत दी.

मामले की तसवीर अब काफी हद तक साफ हो चुकी थी. विनय शर्मा के कहने पर नितिन शर्मा उर्फ चंद्रमोहन को एचआर मैनेजर ने फैक्ट्री से बुलवा लिया. पुलिस को सादे लिबास में देख कर कथित नितिन शर्मा घबरा गया. विनय शर्मा को वह पहले से ही जानता था. विनय शर्मा ने उसे यह नहीं बताया कि उन्हें उस की मौत के ड्रामे के बारे में कोई जानकारी है.

उन्होंने उस से सब से पहले प्रीति के बारे पूछताछ शुरू की. चंद्रमोहन को पता नहीं था कि विनय शर्मा को उस के बारे में सब पता चल चुका है. उस ने बताया कि प्रीति से उस ने शादी कर ली है. वह अपनी इच्छा से अपना घर छोड़ कर उस के साथ आई है.

चंद्रमोहन विनय कुमार को काउंटी कट्टा इलाके में अपने किराए के घर पर भी ले गया, जहां वह प्रीति के साथ रहता था. विनय शर्मा ने घर में घुसते ही प्रीति को पहचान लिया, क्योंकि नोएडा से इतनी दूर वह उसी तलाश में आए थे.

विनय शर्मा ने 27 अगस्त, 2014 को स्थानीय पुलिस के सहयोग से प्रीति व चंद्रमोहन को हिरासत में ले लिया. दोनों को स्थानीय अदालत में पेश कर के उन्होंने उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर लिया और उन्हें ग्रेटर नोएडा के कासना थाने ले आए.

विनय शर्मा ग्रेटर नोएडा से बंगलुरु जिस प्रीति की तलाश में गए थे, वह मकसद पूरा हो चुका था. लेकिन इसी के साथ खुद को मुर्दा साबित कर के प्रीति के साथ मौज कर रहा वह चंद्रमोहन नाम का कथित मृतक भी उन के हाथ लग गया था.

29 अगस्त को पुलिस ने प्रीति नागर और चंद्रमोहन को अदालत में पेश कर के 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड की अवधि में चंद्रमोहन व प्रीति से अलगअलग पूछताछ की गई, तो उन की प्रेम कहानी तथा चंद्रमोहन द्वारा रची गई गहरी साजिश का भी परदाफाश हो गया.

चंद्रमोहन शर्मा आरटीआई कार्यकर्ता और आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य था. वह ग्रेटर नोएडा के अल्फा-2 में आई ब्लौक के मकान नंबर 480 में रहता था. चंद्रमोहन के परिवार में पत्नी सविता तथा 2 बच्चे थे, 12 वर्ष का बेटा तथा 7 वर्ष की बेटी.

हुआ यूं था कि 17 मई, 2014 को चंद्रमोहन की पत्नी सविता ने थाना कासना में आ कर एक लिखित तहरीर दी थी. तहरीर में सविता ने लिखा था कि उस का पति चंद्रमोहन 30 अप्रैल, 2014 से लापता था. 2 मई को उस की जली हुई लाश उसी की कार में मिली थी. तहरीर में सविता ने आरोप लगाया था कि उस के पति की मौत दुर्घटना में नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई है.

सविता की तहरीर के मुताबिक कासना क्षेत्र के बृजेश, शानी, राजकुमार उर्फ राजू, बबलू उर्फ आनंद और प्रवीण ने गांव कासना के मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा था. उस का पति गांव की तरफ से मंदिर की जमीन के मुकदमे में पैरवी कर रहा था, इसलिए उपरोक्त सभी लोग चंद्रमोहन से दुश्मनी रखते थे.

इन सभी लोगों से चंद्रमोहन ने अपनी जान का खतरा भी बताया था, जिस के संबंध में 30 अप्रैल, 2014 को ही थाना कासना में तत्कालीन थानाप्रभारी वीरपाल सिंह को शिकायत दे कर प्राथमिकी भी दर्ज कराई थी, जिस में चंद्रमोहन ने आरोप लगाया था कि 28 अप्रैल को ड्यूटी पर जाते समय उस से रंजिश मानने वाले बृजेश ने अपने साथियों के साथ परी चौक के पास उसे जान से मारने की धमकी दी थी.

सविता ने अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि उक्त सभी व्यक्तियों ने साजिश कर के उस के पति चंद्रमोहन की हत्या कर लाश को कार समेत जला दिया है, ताकि घटना को दुर्घटना का रूप दिया जा सके.

सविता की तहरीर के आधार पर कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर के नामजद आरोपियों से पूछताछ करने का प्रयास किया तो पता चला कि वे फरार हैं.

चंद्रमोहन शर्मा की मौत का प्रकरण कुछ इस तरह सामने आया था. 1/ 2 मई, 2014 की रात करीब 12 बजे ग्रेटर नोएडा के अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने जेपी ग्रीन के पास एक जली हुई कार मिली थी. कार की ड्राइविंग सीट पर जो शख्स बैठा था, वह भी बुरी तरह जल कर कोयला हो चुका था.

जली कार में लाश की सूचना पा कर कासना थाना पुलिस मौके पर पहुंची. प्रथमदृष्टया पुलिस ने अनुमान लगाया कि यह हादसा रहा होगा. गैस रिसने से कार आग का गोला बन गई होगी. कार ड्राइव करने वाले को इतनी भी मोहलत नहीं मिली कि दरवाजा खोल कर वह बाहर निकल पाता.

वह सीट पर बैठेबैठे ही जल कर मर गया. कार का रजिस्ट्रेशन नंबर और चेसिस नंबर सहीसलामत था. उसी के माध्यम से पुलिस ने अगले दिन आरटीओ से मालूमात की तो पता चला वह कार चंद्रमोहन की थी. पुलिस उस पते पर पहुंची, जिस पते पर कार पंजीकृत थी.

वहां पता चला कि वह घर चंद्रमोहन का है. चंद्रमोहन तो नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी जरूर पुलिस को मिल गई. पुलिस ने चंद्रमोहन की पत्नी सविता को बुला कर कार में लाश की शिनाख्त कराई. सविता ने लाश के साथ कार की भी शिनाख्त कर दी.

चंद्रमोहन के परिजनों ने उस की लाश की शिनाख्त 2 मई को ही कर दी थी. पहली नजर में पुलिस को ये मामला दुर्घटनावश आग लगने से हुई मौत का लग रहा था. लेकिन कुछ रोज बाद सविता ने इस मामले में हत्या की आशंका जताते हुए 5 लोगों को नामजद करा दिया.

जिस के बाद कासना पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 302 के तहत वाद पंजीकृत कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी. लेकिन सभी आरोपी फरार हो गए. इस केस के जांच अधिकारी कासना थाने के एसएचओ समरजीत सिंह थे.

होंडा टू व्हीलर कंपनी में मैकेनिक की हैसियत से काम करने वाला चंद्रमोहन सामाजिक कार्यों तथा राजनीति में गहरी रुचि रखता था. इसी कारण वह आरटीआई कार्यकर्ता होने के साथ अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का सक्रिय सदस्य बन गया था.

चंद्रमोहन का जीवन सुख में बीत रहा था. 15 वर्ष पहले उस ने सविता से प्रेम विवाह किया था. उन के 2 बच्चे भी थे. निजी उपयोग के लिए चंद्रमोहन ने एक शेवरले कार भी खरीद ली थी.

चंद्रमोहन के सुखी जीवन में उथलपुथल तब हुई, जब प्रीति से उस की आंखें लड़ीं. आसपास रहने के कारण प्रीति और सविता की दोस्ती हो गई थी. सविता से मिलने के लिए प्रीति अकसर उस के घर पर आती थी. इसी दौरान चंद्रमोहन पत्नी की सहेली के आकर्षण में बंध गया. चंद्रमोहन उम्र में प्रीति से कई साल बड़ा था, वह विवाहित तथा 2 बच्चों का पिता भी, इस के बावजूद 22 साल की प्रीति उसे अपना बनाने का सपना देखने लगी.

पहले आंखोंआंखों में उन की रसीली बातें हुई, फिर कभी रूबरू तो कभी फोन पर बातें होने लगीं. चंद्रमोहन ने प्रेम निवेदन किया, तो प्रीति ने उसे सशर्त स्वीकार कर लिया. शर्त यह थी कि चंद्रमोहन उसे मौजमजे की चीज नहीं समझेगा. उस से विवाह कर के जीवन भर साथ निभाएगा.

15 साल पहले जब चंद्रमोहन ने सविता से प्रेम विवाह किया था, तब वह बेहद हसीन थी. लेकिन वक्त की धूप ने सविता के रंगरूप को झुलसाया, तो घरपरिवार की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह निचुड़ सी गई. बनावसिंगार से भी वह दूर रहने लगी थी. इसी वजह से चंद्रमोहन को वह बासी और रूखीफीकी महसूस होने लगी थी.  वह खुद भी सविता से ऊबा हुआ था. यही कारण था कि उस ने प्रीति की विवाह वाली शर्त मंजूर कर ली.

बस इस के बाद दोनों की बेमेल प्रेम कहानी शुरू हो गई. प्रेम की पगडंडियां तय करतेकरते कुछ महीने बीत गए, तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर विवाह के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया.

एक बीवी के होते चंद्रमोहन दूसरा विवाह नहीं कर सकता था. उसे मालूम था कि यह कानूनन जुर्म है. सविता को तलाक वह दे नहीं सकता था, क्योंकि करीबी रिश्तेदारों पर सविता की अच्छीखासी पकड़ थी. तलाक देता, तो सभी एकजुट हो कर चंद्रमोहन का गला दबाने आ जाते.

चंद्रमोहन समझ नहीं पा रहा था, किस तरह सविता से पीछा छुड़ाए. एक तो चंद्रमोहन को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, दूसरी ओर प्रीति विवाह के लिए दबाव बनाए हुए थी. विवाह में अनावश्यक विलंब होता देख प्रीति उसे जेल भिजवाने और पत्नी से दोनों का रिश्ता बताने की धमकी भी देने लगी.

चंद्रमोहन ऐसा कुछ नहीं चाहता था, जिस से उस का जीना हराम हो जाए. जब उसे कोई राह नहीं सूझी, तब उस ने प्रीति से गुप्तरूप से विवाह करने का निश्चय कर लिया.

28 नवंबर, 2013 को चंद्रमोहन प्रीति को दादरी स्थित आर्यसमाज मंदिर में ले गया और वहां उस से प्रेम विवाह कर लिया.

प्रीति खुश थी. उस ने मान लिया कि आज चंद्रमोहन ने मांग में सिंदूर भरा है, तो कल घर भी ले जाएगा. चंद्रमोहन इसलिए खुश था कि वक्ती तौर पर ही सही, कुछ समय के लिए मुसीबत से निजात तो मिल गई.

चंद्रमोहन व प्रीति अलगअलग रहते रहे. प्रीति ने अपने परिवार में रहते हुए किसी को अपनी शादी की भनक नहीं लगने दी. दूसरी तरफ चंद्रमोहन भी अपने परिवार से प्रीति के साथ की गई दूसरी शादी का राज छिपाता रहा.

जब शादी को कुछ सप्ताह बीत गए और कोई सकारात्मक रास्ता निकलता नहीं दिखा तो प्रीति ने चंद्रमोहन पर फिर दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह जल्द से जल्द अपने घर से सविता की छुट्टी करे और उसे घर ले जाए.

पहले प्रीति से प्रेम और फिर विवाह कर के चंद्रमोहन बुरी तरह फंस गया था. न वह सविता को घर से निकाल सकता था, न ही प्रीति के बगैर रह सकता था. प्रीति भी अब अपने मायके में रहने को राजी नहीं थी. प्रीति ने जब चंद्रमोहन पर लगातार दबाव बनाना शुरू किया तो बहुत सोचनेसमझने के बाद चंद्रमोहन ने एक खौफनाक योजना बना डाली.

चंद्रमोहन ने जो योजना बनाई थी, उसे अकेले अंजाम दे पाना संभव नहीं था. अत: योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने अपने साले विदेश शर्मा को नकद रुपए देने का लालच दिया. साथ ही उस ने सविता को उस के बदले होंडा कंपनी में नौकरी मिलने का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.

दरअसल, अंसल प्लाजा के आसपास एक विक्षिप्त युवक घूमा करता था. उस की और चंद्रमोहन की कदकाठी में काफी समानता थी. उस विक्षिप्त युवक को देख कर चंद्रमोहन के दिमाग में एक आइडिया आया था कि क्यों न वह उस पागल को मार कर स्वयं को मुर्दा साबित कर दें.

परिजन व पुलिस उसे मुर्दा मान लेंगे, तो कोई उस की तलाश नहीं करेगा. प्रीति को ले कर वह कहीं दूर चला जाएगा और आगे का उस के संग जीवन गुजारेगा.

प्रीति भी चंद्रमोहन की इस योजना से सहमत हो गई. आपसी विचारविमर्श के बाद 30 अप्रैल, 2014 को योजना को अंतिम रूप दे दिया गया और अगले दिन यानी 1 मई की रात को उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया. योजना को अंजाम देने के लिए चंद्रमोहन ने तुगलपुर स्थित पैट्रोल पंप से एक डिब्बे में 3 लीटर पैट्रोल भरवा कर कार में रख लिया.

1 मई की रात को 11 बजे सविता का भाई विदेश अंसल प्लाजा के आसपास घूमने वाले पागल युवक को बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल पर बैठा लाया. चंद्रमोहन अपनी कार में बैठा पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

चंद्रमोहन ने एक सुनसान जगह पर कार रोकी और विक्षिप्त युवक को पिछली सीट पर बैठा कर अपनी बेल्ट से उस का गला घोंट कर मार डाला.

इस के बाद चंद्रमोहन ने अपने कपडे़ उतार कर विदेश को दिए, जिन्हें विदेश ने पागल के पहने कपड़े उतार कर उसे चंद्रमोहन के कपड़े पहना दिए. अपना फोन व पर्स भी चंद्रमोहन ने उस की जेब में रख दिया.

चंद्रमोहन ने पहले से ही अपने लिए एक जोड़ी कपड़े गाड़ी में रख रखे थे, जो उस ने खुद पहन लिए. इस के बाद चंद्रमोहन और विदेश ने मृत पड़े विक्षिप्त युवक का शरीर उठा कर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और कार को ड्राइव करते हुए अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने वाली जेपी ग्रीन वाली रोड पर ले गए.

पागल युवक के मृत शरीर को उन्होंने पिछली सीट से हटा कर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया और फिर सीट बेल्ट से उसे कस दिया, ताकि वह जीवित भी हो तो कार से उतर कर भाग ना सके. तब तक आधी रात का वक्त हो चला था. चंद्रमोहन और विदेश ने प्लास्टिक की कैन में भरा पैट्रोल कार पर चारों तरफ और भीतर की सीटों के साथ विक्षिप्त युवक पर अच्छी तरह से छिड़का. इस के बाद उन्होंने कार में आग लगा दी.

चंद पलों में ही कार धूधू कर के जलने लगी. कार को धूधू जलता देख दोनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. आधी रात का वक्त था. वहां से गुजरती कुछ गाडि़यों ने जब कार जलती देखी तो रुक गए. लेकिन तब तक कार इतनी बुरी तरह जल चुकी थी कि उसे बुझाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. किसी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया.

सूचना मिलने के 15-20 मिनट बाद दमकल की गाड़ी भी मौके पर पहुंच गई. कुछ देर में आग पर काबू तो पा लिया गया. लेकिन तब तक कार जल कर कोयला हो चुकी थी. दमकलकर्मियों ने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे एक व्यक्ति की भी जलने से मौत हो गई थी.

मौके से फरार होने के बाद विदेश तो अपने घर चला गया, जबकि चंद्रमोहन ने ट्रेन से बंगलुरु की राह पकड़ ली. बंगलुरु पहुंच कर चंद्रमोहन ने सब से पहले अपने सिर के बाल और मूंछ मुंडवाई. फिर अपने शातिरदिमाग का इस्तेमाल कर जोड़तोड़ से उस ने नितिन शर्मा के नाम की एक आईडी बनवा ली.

नई आईडी बनवाते समय उस ने अपना पता नलवा, हिसार, हरियाणा दर्ज कराया. उस के बाद चंद्रमोहन ने अपनी पहचान से जुड़े दूसरे नकली दस्तावेज भी तैयार करवा लिए. इतना सब होने के बाद चंद्रमोहन ने अगले 4 दिनों में इन तमाम दस्तावेजों के बल पर होंडा टू व्हीलर कंपनी में नौकरी भी पा ली.

बंगलुरु में अज्ञातवास के दौरान चंद्रमोहन सेलफोन के माध्यम से प्रीति के साथ निरंतर संपर्क में रहा. आईडी बन जाने के बाद 7 जून को चंद्रमोहन प्रीति को ले जाने के लिए दिल्ली आया.

फोन के माध्यम से योजना पहले ही बन चुकी थी. योजना के तहत 7 जून की रात 8 बजे प्रीति अपने घर से इस तरह का नाटक कर के लापता हुई ताकि सब को लगे उस का अपहरण हो गया है.

प्रीति अपने लापता होने की घटना को अपहरण का रंग देना चाहती थी, इसलिए घर से बाहर निकलते ही उस ने हलक से हल्की सी चीख भी निकाली. किस्मत ने भी उस वक्त उस का साथ दिया और बिजली गुल हो गई.

घर से कुछ दूर पर ही प्रीति को एक आटोरिक्शा मिल गया, जिसे पकड़ कर वह दिल्ली पहुंच गई, जहां तय स्थान पर वह चंद्रमोहन से मिली. चंद्रमोहन ने पहले ही नई दिल्ली से बंगलुरु जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में 2 बर्थ आरक्षित करा रखी थीं.

दोनों सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा कर ट्रेन में सवार हो गए और अगले दिन बंगलुरु पहुंच गए. बंगलुरु पहुंचने के बाद चंद्रमोहन ने नकली आईडी से 2 सिम कार्ड खरीदे. वे जिन नंबरों को इस्तेमाल करते थे, वे नंबर दोनों ने किसी को नहीं दिए थे.

रिमांड अवधि में जब पुलिस ने चंद्रमोहन से संतराम को फोन करने का कारण पूछा, तो चंद्रमोहन ने बताया कि वह पुलिस को गुमराह करना चाहता था, इसीलिए उस ने पीसीओ पर जा कर संतराम को फोन कर के कहा था कि उन की बेटी उस के पास है.

लेकिन उस वक्त चंद्रमोहन ने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उस की यही गलती उस की गिरफ्तारी का आधार बन जाएगी. क्योंकि इसी एक फोन काल का पीछा करतेकरते पुलिस प्रीति की तलाश में बंगलुरु पहुंच गई बंगलुरु में पुलिस जब प्रीति तक पहुंची तो पुलिस के हाथ चंद्रमोहन की गरदन तक पहुंच गए.

पुलिस रिमांड में हुई पूछताछ के दौरान इस मामले के जांच अधिकारी कासना थानाप्रभारी समरजीत सिंह ने 31 अगस्त, 2014 को चंद्रमोहन की निशानदेही पर जेपी ग्रीन की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर फेंकी गई वह प्लास्टिक की कैन भी बरामद कर ली, जिस में पैट्रोल ला कर चंद्रमोहन ने पागल व्यक्ति के ऊपर डाल कर आग लगाई थी.

पुलिस ने अदालत में बतौर गवाह पैट्रोल पंप के उस सेल्समैन को भी पेश किया, जिस से चंद्रमोहन ने कैन में पैट्रोल खरीद कर भरवाया था.

पुलिस ने इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश को भी हत्या में सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों आरोपियों को आवश्यक पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

जांच अधिकारी समरजीत सिंह ने 23 नवंबर, 2014 को एक विक्षिप्त युवक को कार में जला कर हत्या करने के आरोप में और खुद की पहचान छिपा कर दूसरे राज्य में छिपने के मुकदमे में हत्या की धारा 302 के साथ भादंसं की धारा 201, 202, 120बी, 420, 467, 468 व 471 की धारा भी जोड़ दी और आरोपपत्र अदालत में पेश कर दिया.

आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ही बचावपक्ष की दलीलों के आधार पर अभियुक्ता प्रीति और विदेश के खिलाफ लगाए गए कुछ आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में मार्च, 2016 में यह वाद सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में भेज दिया गया.

इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने अदालत में चंद्रमोहन द्वारा कालोर की होंडा कंपनी में नौकरी पाने के लिए दी गई नकली आईडी व दूसरे दस्तावेज साक्ष्य के तौर पर पेश किए, जिस से उस के खिलाफ अपनी पहचान छिपाने के लिए जालसाजी करने और नकली दस्तावेज तैयार करने के आरोप सही पाए गए.

सरकारी वकील जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता हरीश सिसोदिया ने अभियोजन की तरफ से ठोस सबूत दिए, लेकिन अभियोजन पक्ष इस बात को साबित नहीं कर पाया कि इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश की कोई भूमिका थी. इसलिए अदालत ने उसे दोषी न पा कर बरी कर दिया.

अभियोजन की तरफ से चंद्रमोहन और प्रीति की दादरी के आर्यसमाज मंदिर में हुई शादी के प्रमाण भी अदालत में पेश किए गए. इतना ही नहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से ऐसे कई ठोस साक्ष्य और गवाह अदालत में पेश गए, जिस से ये साबित हो गया कि चंद्रमोहन ने एक साजिश के तहत अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए अपनी मृत्यु का झूठा नाटक रचा.

खुद को मरा साबित करने के लिए चंद्रमोहन ने एक विक्षिप्त व्यक्ति की हत्या कर उस के शव को अपनी कार में डाल कर कार समेत जला दिया. चूंकि प्रीति को चंद्रमोहन के अपराध की जानकारी थी और उस ने ये जानकारी छिपाई, इसलिए उसे 6 माह के कारावास की सजा मिली.

प्रीति जेल से जमानत मिलने के पूर्व पहले ही न्यायालय की तरफ से मिली सजा काट चुकी थी, इसलिए उसे जेल नहीं जाना पड़ा. जबकि विदेश को इस मामले में अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.

—कथा पुलिस की जांच व न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तथ्यों पर आधारित है

 

प्यार, प्रॉपटी और पत्रकार

कमलेश जैन वरिष्ठ पत्रकार थे, जो पिछले 24 सालों से इस काम में लगे थे. इसलिए पिपलिया मंडी क्षेत्र में ही नहीं, मंदसौर जिले में भी उन की अच्छी पहचान थी.

दैनिक अखबारों के पत्रकार दिन भर समाचार जुटा कर शाम को समाचार तैयार कर के अपने अखबार के लिए भेजते हैं. कमलेश और उन के सहयोगी अवतार भी जुटाए समाचारों को अंतिम रूप देने में लगे थे.

उसी समय एक मोटरसाइकिल उन के औफिस के ठीक सामने आ कर रुकी, जिस पर 2 युवक सवार थे. उन में से एक तो मोटरसाइकिल पर ही बैठा रहा, पीछे बैठा युवक उतर कर कमलेश के औफिस में घुस गया. अवतार को लगा कि किसी समाचार के सिलसिले में आया होगा, क्योंकि औफिस में अकसर लोग समाचारों के सिलसिले में आते रहते हैं. इसलिए अवतार ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह अपने काम में लगे रहे.

लेकिन जब एक के बाद एक, 2 गोलियों के चलने की आवाज कमलेश जैन के चैंबर से आई तो वह सन्न रह गए. वह कमलेश के चैंबर में पहुंचते, उस के पहले ही वह युवक तेजी से बाहर निकला और बाहर खड़ी मोटरसाइकिल पर बैठ कर अपने साथी के साथ भाग गया. इस के बाद कमलेश की हालत देख कर उन्होंने शोर मचा दिया, जिस से आसपास के लोग इकट्ठा हो गए.

किसी ने फोन कर के यह जानकारी पुलिस को दे दी तो थाना पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह तत्काल दलबल के साथ मौके पर पर पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने कमलेश को इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल पहुंचाया.

उन की हालत गंभीर थी, इसलिए उन्हें मंदसौर के जिला अस्पताल भेज दिया गया. लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने रास्ते में दम तोड़ दिया. उन की मौत की खबर सुन कर तमाम पत्रकार और उन के शुभचिंतक अस्पताल पहुंच गए. सभी हैरान थे कि एक पत्रकार की हत्या क्यों कर दी गई?

नेताओं और पत्रकारों ने किया प्रदर्शन कमलेश के घर वालों ने उन की हत्या के मामले में 7 लोगों कमल सिंह, जसवंत सिंह, जितेंद्र उर्फ बरी उर्फ जीतू, इंदर सिंह उर्फ बापू उर्फ विक्रम सिंह और शकील के खिलाफ नामजद रिपोर्ट लिखाई. कमलेश जैन की हत्या से कस्बे और पुलिस महकमे में हलचल मची हुई थी. अगले दिन पत्रकार कमलेश की शवयात्रा के समय जिले भर के पत्रकार, राजनीतिक दलों के नेताओं ने हत्याकांड की निंदा करते हुए हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

मामला एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या का था. पत्रकारों, राजनीतिज्ञों के अलावा तमाम सामाजिक संगठनों का भी पुलिस पर दबाव पड़ रहा था. लिहाजा पुलिस नामजद अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. पुलिस को अभियुक्तों के राजस्थान के एक गांव में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम राजथान रवाना हो गई. इस टीम ने वहां एक गांव से 5 अभियुक्तों को हिरासत में ले लिया.

हत्या से कुछ दिनों पहले इन लोगों से कमलेश का विवाद हुआ था, इसलिए पुलिस को उम्मीद थी कि इन की गिरफ्तारी से मामले का खुलासा हो जाएगा. लेकिन पुलिस पूछताछ में जब साफ हो गया कि घटना वाले दिन वे पिपलिया मंडी में नहीं थे, तो पुलिस थोड़ा निराश हुई.

पुलिस ने तरीके से नामजद लोगों के बारे में जानकारी निकलवाई, इस में साफ हो गया कि इन लोगों का कमलेश से विवाद जरूर था, लेकिन हत्या में इन का हाथ नहीं है, इसलिए पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया.

इस के बाद पुलिस ने नए सिरे से मामले की जांच शुरू की. 35 दिन बाद भी कमलेश जैन के हत्यारों का पता न लगने से लोगों में पुलिस के प्रति आक्रोश बढ़ रहा था. पत्रकार और सामाजिक संगठन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. इस बीच मंदसौर के पुलिस अधीक्षक ओ.पी. त्रिपाठी दंगा कांड में निलंबित हो चुके थे. उसी मामले में पिपलिया मंडी के टीआई अनिल सिंह को भी पुलिस मुख्यालय भेज दिया गया था.

दरअसल, मध्य प्रदेश के किसानों ने प्याज का मूल्य बढ़ाने को ले कर पूरे सूबे में जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन किया था. मंदसौर में प्रदर्शन के समय पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज कर दिया था, जिस के बाद किसान उग्र हो गए थे और वहां दंगा भड़क उठा था. इस के बाद प्रशासन को मंदसौर में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. इसी मामले में एसपी ओ.पी. त्रिपाठी को निलंबित कर दिया गया था.

ओ.पी. त्रिपाठी के निलंबित होने के बाद मनोज कुमार सिंह को मंदसौर का नया एसपी बनाया गया तो कमलेश सिंघार को थाना पिपलिया मंडी का थानाप्रभारी बना दिया गया. नए एसपी ने कमलेश जैन की हत्या वाले मामले को एक चुनौती के रूप में ले कर सीएसपी राकेश शुक्ला तथा थानाप्रभारी कमलेश सिंघार के साथ मीटिंग कर कमलेश जैन के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने का निर्देश दिया.

तमाम जांच के बाद भी पुलिस को नहीं मिला क्लू

सीएसपी राकेश मोहन शुक्ल, टीआई कमलेश सिंघार सुलझे हुए पुलिस अधिकारी हैं, इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत मृतक कमलेश जैन के व्यवसाय से की. जांच में उन्हें पता चला कि लगभग 2 दशक से पत्रकारिता से जुड़े कमलेश जैन का इलाके में कई लोगों से विवाद चल रहा था. कमलेश के औफिस के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई तो पता चला कि हत्यारे कुछ ही सैकेंड में कमलेश की हत्या कर मोटरसाइकिल से खत्याखेड़ी की ओर भाग गए थे.

पहले पुलिस का ध्यान सीसीटीवी फुटेज की तरफ नहीं गया था. इस फुटेज से पता चला था कि हत्यारों की मोटरसाइकिल शाम 7 बज कर 54 मिनट और 47 सैकेंड पर कमलेश के औफिस के सामने आ कर रुकी थी. उस के बाद उन में से एक आदमी उतर कर कमलेश के औफिस में गया और कुछ ही समय में उन्हें गोलियां मार कर बाहर आया और मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया. इस काम में उसे केवल 12 सैकेंड लगे थे.

इस से पुलिस को लगा कि हत्यारा काफी शातिर था. पुलिस यह भी अंदाजा लगा रही थी कि हत्यार सुपारी किलर भी हो सकते हैं. कमलेश अपराधियों के खिलाफ भी लिखते थे. कहीं उन्हें अपने किसी समाचार या लेख की वजह से तो जान से हाथ नहीं धोना पड़ा.

इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस ने पिछले 6 महीने में कमलेश की अखबारों में छपी खबरों का अध्ययन किया. इस के अलावा कमलेश से रंजिश रखने वालों के बारे में पता किया, पर सफलता नहीं मिली.

कई महिलाओं से थे कमलेश के संबंध जब किसी भी तरह अपराधियों के बारे में कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो टीआई कमलेश सिंघार ने अपनी टीम को कमलेश के निजी जीवन के बारे में पता करने में लगा दिया. क्योंकि कमलेश 47 साल के होने के बावजूद अविवाहित थे. पुलिस को पता चला कि जिस दिन उन की हत्या हुई थी, उस के 2 दिन बाद यानी 2 जून, 2017 को वह शहर के एक प्रतिष्ठित परिवार की विधवा बहू संध्या से शादी करने वाले थे.

पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स का अध्ययन किया तो पता चला कि उन के कई महिलाओं से संबंध थे. संध्या सहित करीब 10 महिलाओं से उन की देर रात तक मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. थानाप्रभारी ने इन महिलाओं के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि जिन महिलाओं से उन की बातचीत होती थी, उन का संबंध मीडिया से बिलकुल नहीं था.

यह भी पता चला कि इन महिलाओं से कमलेश के काफी करीबी संबंध थे. जिन में से प्रीति और कमलेश के संबंधों की जानकारी आसपास के लोगों के अलावा उस के पति को भी थी. लेकिन कमलेश की पहुंच के आगे वह चुप था.

थानाप्रभारी ने कमलेश की अन्य प्रेमिकाओं से पूछताछ की तो पता चला कि कमलेश और संध्या शादी करना चाहते थे. इस बात को ले कर संध्या की ससुराल वाले खुश नहीं थे. संध्या की ससुराल वालों को यह बात प्रीति ने ही बताई थी, क्योंकि प्रीति को शक था कि कमलेश की संध्या से नजदीकी की वजह से वह उस से दूर हो रहा था.

कमलेश सिंघार ने संध्या और उस की ससुराल वालों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर जांच की तो पता चला कि कमलेश की हत्या से पहले और बाद में संध्या के जेठ सुधीर की अपने दोस्त धीरज अग्रवाल से कई बार बात हुई थी. सुधीर के बारे में पुलिस को पहले से ही पता था कि पिपलिया मंडी के कई नामी अवैध धंधेबाजों तथा अफीम तस्करों से उस के संबंध हैं.

कमलेश सिंघार ने सुधीर जैन के बाद धीरज अग्रवाल के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई, जिस में पता चला कि जबजब सुधीर और धीरज के बीच बात होती थी, उस के बाद धीरज अग्रवाल प्रतापगढ़, राजस्थान जेल में बंद पिपलिया मंडी के कुख्यात बदमाश आजम लाला से बात करता था.

घटना वाले दिन भी उस ने आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक से बात की थी. संदेह वाली बात यह थी कि घटना वाले दिन कमलेश की हत्या के समय रज्जाक की लोकेशन पिपलिया मंडी की थी.

आजम लाला का बेटा रज्जाक वैसे तो नाबालिग था, पर इस उम्र में ही उस के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे. इस से कमलेश सिंघार को लगा कि कमलेश की हत्या के मामले में सुधीर जैन, धीरज अग्रवाल, आजम लाला और उस का बेटा एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हो सकते हैं. लेकिन नामीगिरामी करोड़पति व्यापारी पर हाथ डालना उन के लिए आसान नहीं था.

आजम लाला के नाबालिग बेटे रज्जाक को पुलिस ने किया गिरफ्तार कमलेश सिंघार एसपी मंदसौर मनोज सिंह के निर्देश पर आजम लाला के बेटे रज्जाक को पूछताछ के लिए थाने ले आए. उस से की गई पूछताछ में सारी घटना सामने आ गई. पता चला कि कमलेश और संध्या के संबंधों से नाराज संध्या के जेठ सुधीर जैन ने अपने दोस्त धीरज अग्रवाल के माध्यम से आजम लाला और मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी को कमलेश की हत्या की 50 लाख की सुपारी दी थी.

पूरा सच सामने आ गया तो छापा मार कर संध्या के जेठ सुधीर जैन और उस के दोस्त धीरज अग्रवाल तथा हत्या का षडयंत्र रचने वाले धर्मेंद्र मारू को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि हत्या वाले दिन रज्जाक के साथ कमलेश की हत्या के लिए मोटरसाइकिल पर आया रज्जाक का चचेरा भाई सुलेमान लाला पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया.

इस के बाद हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और मोटरसाइकिल बरामद कर ली गई. पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इश्क की नदी में तैरने वाले कमलेश जैन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

कमलेश जैन कस्बा पिपलिया मंडी में पत्रकारिता के क्षेत्र में अच्छीखासी पकड़ रखते थे. गैरकानूनी काम करने वालों से अकसर कमलेश जैन का विवाद होता रहता था. लेकिन उन की एक कमजोरी हुस्न थी. जिस के कारण कई महिलाओं से उन के संबंध बन गए थे. कमलेश की सब से चर्चित प्रेमिका प्रीति थी. प्रीति के ऊपर वह दिल खोल कर पैसे खर्च करते थे.

प्रीति के पति को भी पता था कि उस की पत्नी के संबंध कमलेश से हैं, लेकिन कमलेश के रुतबे की वजह से वह चुप था. प्रीति भी कमलेश की दीवानी थी. वह कमलेश पर अपना अधिकार समझने लगी थी. लेकिन कुछ महीनों से संध्या प्रीति के इस अधिकार के बीच दीवार बन कर खड़ी हो गई थी.

मंदसौर निवासी संध्या की शादी पिपलिया मंडी के रईस व्यवसायी के छोटे भाई नवीन के साथ हुई थी. सुधीर जैन करीब 1 अरब की संपत्ति के मालिक थे. इन संपत्तियों में उन के 3 भाइयों का हिस्सा था. सुधीर जैन ने यह संपत्ति गोपाल संन्यासी तथा आजम लाला की मेहरबानी से बनाई थी.

चर्चा है कि सुधीर जैन और उस के भाई नवीन द्वारा इलाके की विवादित जमीन औनेपौने दामों पर खरीद कर आजम लाला, गोपाल संन्यासी जैसे बदमाशों की मदद से कब्जा कर के बाजार के दामों पर बेच कर मोटी कमाई की थी.

सुधीर के छोटे भाई नवीन की अचानक मौत हो गई तो संध्या विधवा हो गई. देखा जाए तो एक तिहाई संपत्ति संध्या की थी, लेकिन भाई की मौत के बाद सुधीर के मन में लालच आ गया था. उस ने संध्या को थोड़ीबहुत संपत्ति दे कर अलग कर दिया. काफी कहने के बाद भी जब संध्या को प्रौपर्टी से हिस्सा नहीं मिला तो वह अपने मायके में जा कर रहने लगी.

वह जानती थी कि उस के जेठ सुधीर जैन ने उस के साथ धोखा किया है. वह अपने हिस्से की जायदाद लेना चाहती थी. ससुराल में रहते हुए उस ने सुना था कि कमलेश जैन एक ईमानदार पत्रकार है और वह सच्चाई का साथ देता है, इसलिए वह अपनी संपत्ति के मामले में मदद के लिए पत्रकार कमलेश जैन के पास पहुंची.

कमलेश ने लालच में बनाए संध्या से संबंध

काफी खूबसूरत और जवान संध्या जैन कमलेश की जातिबिरादरी की भी थी. उसे पता चला कि कमलेश की अभी शादी नहीं हुई है तो उस का दिन उस पर आ गया. संध्या की खूबसूरती पर कमलेश भी मर मिटा था. कमलेश ने सोचा कि अगर संध्या से उस की शादी हो जाती है तो उस के हिस्से की करोड़ों की संपत्ति का वह मालिक बन जाएगा. इसलिए वह संध्या की मदद करने लगा.

लगातार मिलने मिलाने से संध्या और कमलेश के बीच प्रेमसंबंध बन गए. उन के संबंध इस मुकाम पर पहुंच गए कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया.

जीवन में संध्या के आने के बाद कमलेश ने पुरानी प्रेमिका प्रीति से नाता तोड़ लिया था. जबकि प्रीति कमलेश को छोड़ना नहीं चाहती थी, क्योंकि प्रीति का ज्यादातर खर्चा कमलेश ही उठाता था. यही वजह थी कि प्रीति संध्या से चिढ़ रही थी.

जब प्रीति को पता चला कि कमलेश जैन संध्या से 3 जून, 2017 को शादी करने जा रहे हैं तो प्रीति ने कमलेश और संध्या के संबंधों की शिकायत संध्या के जेठ सुधीर जैन से कर दी.

इस से प्रीति को लगा कि संध्या पर अंकुश लग जाएगा. सुधीर को जब संध्या और कमलेश के संबंधों का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. उसे लगा कि अगर संध्या ने कमलेश से शादी कर ली तो कमलेश का सहारा पा कर वह अपने हिस्से की सारी जायदाद ले कर मानेगी.

कमलेश जैन के रहते सुधीर संध्या पर दबाव नहीं बना सकता था, जिस से सुधीर जैन को करोड़ों की जायदाद हाथ से जाती दिखाई देने लगी. सुधीर की यह परेशानी उस के दोस्त धीरज अग्रवाल से छिपी नहीं थी, इसलिए उस ने उसे सलाह दी कि इस तरह चुप बैठने से काम नहीं चलेगा, हमें कोई ठोस काररवाई करनी होगी.

सुधीर जैन की तरह धीरज अग्रवाल भी गैरकानूनी तरीके से पैसा कमा रहा था. सुधीर की ही तरह उस के भी कई कुख्यात बदमाशों से संबंध थे. धीरज की बात सुधीर की समझ में आ गई. उस ने कमलेश को रास्ते से हटाने के लिए धीरज से मदद मांगी. धीरज इस के लिए तैयार हो गया.

प्रतापगढ़ जेल में बंद आजम लाला तथा मंदसौर जेल में बंद गोपाल संन्यासी से धीरज के अच्छे संबंध थे. धीरज दोनों से जेल जा कर मिला. उन्होंने कमलेश की हत्या के लिए 50 लाख रुपए मांगे. बात तय हो गई. इस के बाद सुधीर जैन से 5 लाख रुपए ले जा कर अखपेरपुर में आजम लाला के बेटे रज्जाक को दे दिए. बाकी के रुपए कमलेश की हत्या के बाद दिए जाने थे.

50 लाख की सुपारी मिलते ही बदमाश हो गए सक्रिय  5 लाख रुपए हाथ में आते ही आजम लाला ने प्यादे तलाशने शुरू कर दिए. परंतु मंदसौर जिले में अधिकांश अपराधियों पर पुलिस का शिकंजा कसा था. कई तो जेल में बंद थे तथा कई भूमिगत हो चुके थे, इसलिए आजम को शूटर मिलने में परेशानी हो रही थी. दूसरी ओर प्रीति ने सुधीर को बता दिया था कि संध्या और कमलेश 3 जून को शादी करने वाले हैं, इसलिए सुधीर हर हाल में 3 जून से पहले कमलेश की हत्या करवा देना चाहता था.

धीरज अग्रवाल ने यह बात आजम को बताई तो आजम ने कमलेश की हत्या का काम अपने नाबालिग बेटे रज्जाक को सौंप दिया. रज्जाक नाबालिग उम्र में ही अपने बाप के कदमों पर चल पड़ा था. वह तमाम आपराधिक वारदातों को अंजाम दे चुका था, इसलिए वह हिस्ट्रीशीटर बन गया था.

पिता का आदेश मिलते ही उस ने कमलेश की हत्या की साजिश रचनी शुरू कर दी. इस के लिए उस ने चौपाटी बस्ती निवासी धर्मेंद्र धारू को फरजी सिम दे कर कमलेश पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंप दी. धर्मेंद्र ने रज्जाक को कमलेश के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कमलेश सुबह से शाम तक समाचार के लिए इधरउधर भटकने के बाद शाम 7 बजे तक लवली चौराहे पर स्थित अपने औफिस आ जाता है.

रज्जाक ने अपने काम के लिए यही समय तय किया. कमलेश की हत्या की योजना बना कर रज्जाक अपने चचेरे भाई सुलेमान उर्फ सत्तू लाला के साथ मोटरसाइकिल से पिपलिया मंडी पहुंच गया. घटना के समय सुलेमान मोटरसाइकिल ले कर सड़क पर खड़ा था, जबकि नाबालिग रज्जाक ने कमलेश के चैंबर में जा कर उसे गोली मार दी थी. अपने काम को अंजाम दे कर वह सुलेमान के साथ वहां से भाग गया था.

इस तरह प्यार और प्रौपर्टी के चक्कर में पत्रकार कमलेश जैन मारा गया. इस ब्लाइंड मर्डर का पर्दाफाश करने वाली पुलिस टीम की एसपी मनोज सिंह ने काफी सराहना की है.   ?

 

डोर से कटी पतंग : ख़ुशी को क्यों करनी पड़ी आत्महत्या

18 अक्तूबर, 2019 को करवाचौथ था. खुशी उर्फ मोहसिना बानो ने भी पहली बार व्रत रखा था. मोहसिना बानो मुसलिम थी. उस ने अपनी मरजी से महेंद्र को पति के रूप में चुना था. चूंकि उस ने महेंद्र से शादी कर ली थी, इसलिए अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. महेंद्र से शादी के बाद वह लखनऊ के थाना सरोजनी नगर क्षेत्र के गांव दादूपुर की नई कालोनी में रहने लगी थी.

पति की दीर्घायु के लिए उस ने पूरे दिन निर्जला व्रत रखा था. पड़ोसी महिलाओं से पूछ कर उस ने दिन में पूजा वगैरह भी की थी.

लाल रंग के जोड़े में सजनेसंवरने के बाद उस ने अपने पैरों में महावर लगाई, मांग में गहरे लाल रंग का सिंदूर भरा. साजशृंगार के बाद वह काफी खूबसूरत लग रही थी.

शाम के 7 बज चुके थे लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा था. भूखे पेट रह कर उस ने महेंद्र का मनपसंद खाना भी बना लिया था. उसे महेंद्र के लौटने का इंतजार था ताकि चंद्रमा निकलने पर वह अर्ध्य दे सके. खुशी मन ही मन काफी उल्लासित थी.

उस ने कई बार महेंद्र को फोन किया, लेकिन बात नहीं हो पाई. शाम को 5 बजे भी उस ने काल रिसीव नहीं की. पति के फोन न उठाने पर खुशी को बहुत गुस्सा आया. काफी देर बाद महेंद्र ने उस की काल रिसीव की तो खुशी ने इतना ही कहा कि तुम घर जल्दी आ जाओ. मैं इंतजार कर रही हूं. इतना कह कर खुशी ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

चंद्रमा निकल आया, लेकिन महेंद्र घर नहीं लौटा. पड़ोस की सभी महिलाएं अपनेअपने पति को देख कर चंद्रमा को अर्घ्य दे रही थीं. लेकिन खुशी पति के न आने से परेशान थी. वह खुशी की काल भी रिसीव नहीं कर रहा था. खुशी सोचसोच कर परेशान थी कि कम से कम आज पूजा के समय तो उन्हें घर पर होना चािहए था.

चंद्रमा निकलने के 2 घंटे बाद भी महेंद्र घर नहीं लौटा तो खुशी ने उसे गुस्से में वाट्सऐप मैसेज भेजे, उन का भी उस ने कोई जवाब नहीं दिया. रात करीब 12 बजे महेंद्र घर लौटा तो वह इस स्थिति में नहीं था कि पत्नी खुशी से कुछ कह सके.

अगले दिन लखनऊ के ही थाना बंथरा के निकटवर्ती जंगल में पुराहीखेड़ा से नरेरा गांव की तरफ जाने वाले रास्ते पर लोगों ने सुबहसुबह एक युवती का शव पड़ा देखा. शव खेत की सिंचाई के लिए बनाई गई नाली में अर्द्ध नग्नावस्था में था. किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

सूचना पा कर थाना बंथरा के थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत अपने साथ इंसपेक्टर (क्राइम) प्रहलाद सिंह, एसएसआई शिव प्रताप सिंह, एसआई अरुण प्रताप सरोज, सिपाही जी.एल. सोनकर, हैडकांस्टेबल अरविंद कुमार और अविनाश चौरसिया को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने घटना स्थल का निरीक्षण किया तो देखा,युवती के हाथपैरों में महावर और मेहंदी लगी थी. उस का चेहरा थोड़ा सा झुलसा हुआ था. मेहंदी रची हथेली पर ‘एम’ लिखा हुआ था. माथे पर बिंदी और मांग में सिंदूर था. घटनास्थल पर शव के पास नीले रंग की पालीथिन में एसिड की 3 खाली शीशियां मिली थीं, जिन में से एक शीशी में बचा हुआ थोड़ा सा एसिड था.

लाश के पास ही नीले रंग का एक पर्स भी पड़ा मिला. पर्स की तलाशी ली गई तो उस में एक मोबाइल फोन मिला. पुलिस ने मौके पर मिला फोन और शीशियां अपने कब्जे में ले लीं.

निरीक्षण में पुलिस को युवती के गले पर किसी चीज के कसने के गहरे निशान दिखे. नाक से खून रिस कर सूख चुका था. उस के पैरों में न तो पायल थीं न ही बिछिया. नाक में सोने का एक फूल जरूर नजर आ रहा था. पुलिस ने वहां जमा भीड़ से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि युवती शायद कहीं बाहर की रहने वाली रही होगी. उस की हत्या कहीं और कर, शव यहां ला कर फेंक दिया है.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने महिला की बरामद की गई लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेजने के अलावा वाट्सऐप पर डाल दिए ताकि उस की शिनाख्त हो सके. इस के अलावा अज्ञात महिला की लाश बरामद करने की सूचना समाचारपत्रों में भी प्रकाशित करा दी.

22 अक्तूबर, 2019 को 2 व्यक्ति थाना बंथरा पहुंचे. थानाप्रभारी रमेश कुमार रावत ने उन से पूछा तो उन में एक व्यक्ति ने अपना नाम मुश्ताक अहमद बताया. वह गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर, जिला अमेठी का रहने वाला था. उस ने अखबार में छपी युवती की तसवीर दिखाते हुए बताया कि ये जो फोटो छपी है, मेरी बेटी मोहसिना बानो (27) की है.

मुश्ताक अहमद ने आगे बताया कि करीब 8 साल पहले उस ने मोहसिना बानो का निकाह अपने गांव के ही मोहम्मद नसीम के साथ किया था. निकाह के बाद वह अपने शौहर के साथ मुंबई में रहने लगी थी. अब से करीब 4 महीने पहले मोहसिना मुंबई से कहीं गायब हो गई थी.

हम सब ने उसे काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. जब उस की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो दामाद मोहम्मद नसीम ने 29 जून, 2019 को पवई (मुंबई) थाने में मोहसिना के गुम होने की सूचना लिखाई थी.

मुश्ताक ने आगे बताया कि साथ आए मेरे भतीजे अरमान ने अखबार में छपी तसवीर पहचानी तो हम लोग यहां आए. मुझे विश्वास है कि मोहसिना मुंबई से जिस व्यक्ति के साथ भागी थी, उसी ने उस की हत्या कर लाश खेतों में डाली होगी.

थानाप्रभारी ने मुश्ताक अहमद को मोर्चरी ले जा कर लाश दिखाई तो उस ने लाश की शिनाख्त अपनी बेटी मोहसिना के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने मुश्ताक की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज हो गया तो थानाप्रभारी ने खुद ही इस केस की जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि उस की ज्यादा बातें महेंद्र से होती थीं. महेंद्र भेलपुर कालोनी (जगदीशपुर) का रहने वाला था. पुलिस ने महेंद्र के बारे में पूछताछ की तो पता चला वह मोहसिना का पति था.

उसी के साथ मोहसिना मुंबई से भाग कर आई थी और अपना नाम खुशी रख कर उसी के साथ रह रही थी. महेंद्र भी शादीशुदा था. उस की पहली पत्नी गांव में रहती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने महेंद्र की काल डिटेल्स देखी तो पता चला कि संदीप नाम के युवक से महेंद्र की अकसर बातें होती थीं. जांच करने पर पता चला कि संदीप अमेठी जिले के गांव नियावा का रहने वाला था, जो महेंद्र की बोलेरो चलाता था.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद ही जांच आगे बढ़ सकती थी. लिहाजा पुलिस ने इन दोनों की तलाश शुरू कर दी. दोनों में से कोई भी घर पर नहीं मिला तो उन की खोजखबर के लिए मुखबिर लगा दिए गए. मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 24 अक्तूबर, 2019 को रात करीब 12 बजे दोनों को दादूपुर गांव के शराब ठेके के पास से हिरासत में ले लिया.

महेंद्र और संदीप से मोहसिना के बारे में पूछताछ की गई तो महेंद्र ने बताया कि उस ने मोहसिना की हत्या नहीं की थी. करवाचौथ वाली रात को जब वह घर पहुंचा तो वह मृत अवस्था में थी. उस ने तो उस की लाश केवल ठिकाने लगाई थी. दोनों से विस्तार से पूछताछ के बाद मोहसिना की मौत की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी.

मोेहसिना बानो जनपद अमेठी के गांव हामी का पुरवा, जगदीशपुरके रहने वाले मुश्ताक अहमद की बेटी थी. मोहसिना अपने परिवार में सब से बड़ी थी.

उस के अलावा उस की 2 बहनें व एक भाई और था. मोहसिना आधुनिक विचारों की महत्त्वाकांक्षी युवती थी. वह बहुत चतुर दिमाग की थी. घर के रोजमर्रा के काम निपटाने के बाद वह वाट्सऐप व फेसबुक पर लगी रहती थी.

फेसबुक पर नएनए लोगों से दोस्ती कर के उन से घंटों बातें करना उस का शगल बन गया था. कभीकभी तो वह किसी से फोन पर घंटों बातें किया करती थी. एक दिन उस की अम्मी नूरजहां ने उस की फोन पर हो रही रोमांस भरी बातें सुन लीं.

तब उन्होंने झल्लाते हुए मोहसिना को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘तुझे दीनमजहब की बातों का बिलकुल डर नहीं है. पता नहीं किसकिस से बतियाती रहती है. तेरी यह बातें ठीक नहीं हैं, इन बातों से बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलता.’’

एक दिन यह बात नूरजहां ने अपने पति मुश्ताक अहमद को बताई और कहा कि मोहसिना के लिए अब कोई लड़का देख लो. कहीं ऐसा न हो कि हम हाथ मलते ही रह जाएं.

पत्नी की बात सुन कर मुश्ताक अहमद की चिंता बढ़ गई. वह मोहसिना के लिए लड़का देखने लगे. इसी दौरान मुश्ताक के भतीजे अरमान ने अपने खानदानी भाई नसीम के बारे में चर्चा की. नसीम मुंबई में रहता था.

इस के बाद मुश्ताक ने नसीम के पिता सुलेमान से बात की. बात परिवार की थी, इसलिए सुलेमान मोहसिना के साथ बेटे का विवाह करने के लिए तैयार हो गए. सामाजिक रीतिरिवाज से सन 2011 में मोहसिना का निकाह नसीम से कर दिया गया.

शादी के कुछ दिनों बाद नसीम मोहसिना को अपने साथ मुंबई ले गया. वह मुंबई के पवई इलाके में रहता था. मोहसिना मुंबई क्या पहुंची, जैसे उसे खुशियों का जहां मिल गया.

उस ने शौहर नसीम के साथ अपनी जिंदगी के 8 साल हंसीखुशी से बिता दिए. इस दौरान वह 3 बेटों की मां बन गई. मुंबई में रह कर वह पूरी तरह आजाद हो गई. नसीम के काम पर चले जाने के बाद वह सैरसपाटा करने निकल जाती और शाम को वापस लौटती.

साल 2018 दिसंबर की बात है. परिवार में किसी की शादी का कार्यक्रम था. मोहसिना अपने शौहर के साथ मुंबई से अपने गांव हामी का पुरवा जगदीशपुर आई हुई थी.

शादी के बाद नसीम उसे एकदो महीने के लिए उस के मायके में छोड़ गया. मोहसिना की ससुराल भी गांव में थी, इसलिए कुछ दिन वह ससुराल में भी रह लेती थी. अब वाट्सऐप पर बातें करना उस की रोजाना की आदतों में शुमार था.

शादी के दौरान ही मोहसिना की मुलाकात महेंद्र नाम के युवक से हुई थी. वह अपनी बोलेरो गाड़ी से वहां कोई सामान ले कर आया था. महेंद्र रसिक स्वभाव का था. पहली ही नजर में

वह मोहसिना की तरफ आकर्षित हो गया था. सामान उतारने के दौरान जब वह घर में बैठ कर चाय पी रहा था तो उस ने मोहसिना से उस के बारे में पूछ लिया. मोहसिना ने बताया कि वह मुंबई में अपने शौहर के साथ रहती है.

बातोंबातों में महेंद्र ने मोहसिना से उस का मोबाइल नंबर और मुंबई का पता भी पूछ लिया था.

मोहसिना के पूछने पर महेंद्र ने बताया कि वह अमेठी जिले के गांव कठौरा कमरोली का रहने वाला है, लेकिन इस समय भेल कालोनी जगदीशपुर, अमेठी में रह रहा है. उस की बोलेरो गाड़ी बुकिंग पर अलगअलग शहरों में जाती रहती है.

मोहसिना ने पूछा क्या आप को मुंबई की बुकिंग भी मिलती है. महेंद्र ने बताया कि महीने में 1-2 बुकिंग उसे मुंबई की मिल जाती हैं. तब वह अपने ड्राइवर संदीप के साथ वहां जाता है. इसी बहाने उस का मुंबई में घूमनाफिरना भी हो जाता है.

मोहसिना ने कहा कि अब की बार जब मुंबई आना हो तो उस के पास पवई जरूर आए. महेंद्र ने उस से इस बात का वादा कर दिया.

उस दिन की मुलाकात के बाद मोहसिना और महेंद्र की मोबाइल और वाट्सऐप पर अकसर बातचीत होने लगी. अपनी बातों के प्रभाव से महेंद्र ने मोहसिना को अपने जाल में फांस लिया. मोहसिना अपने दिल की बात उस से कह लेती थी. दोनों के बीच होने वाली बातों का दायरा बढ़ने लगा. यह दायरा उन्हें प्यार के मुकाम तक ले गया.

इस बीच उन्होंने 2-3 बार चोरीछिपे मुलाकात भी कर ली. फिर एक दिन मोहसिना अपने मायके से पति के साथ मुंबई चली गई. जाने से पहले उस ने महेंद्र से कह दिया कि वह मुंबई का चक्कर जल्द लगा ले ताकि मुंबई में वह साथसाथ घूमफिर सके.

मोहसिना के मुंबई पहुंचने के बाद भी उस की महेंद्र से पहले की तरह वाट्सऐप पर रोजाना बातचीत चलती रही. वह शाम को पति के सामने भी वाट्सऐप और फेसबुक पर व्यस्त रहती थी. नसीम ने उसे काफी समझाया लेकिन वह नहीं मानी.

एक दिन महेंद्र को मुंबई की बुकिंग मिल गई. यह जानकारी उस ने मोहसिना को दी तो वह काफी खुश हुई. उसे लगा जैसे उस की मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. बुकिंग ले कर महेंद्र जब मुंबई पहुंचा तो वह मोहसिना से बांद्रा रेलवे स्टेशन के बाहर मिला.

महेंद्र से मिल कर वह बहुत खुश थी. इस के बाद महेंद्र ने उसे अपनी गाड़ी से घुमाया. दोनों ने काफी देर तक जुहू चौपाटी पर मस्ती की. इस के बाद महेंद्र उसे एक होटल में ले गया, जहां दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद महेंद्र ने उसे उस के बच्चों के स्कूल के पास छोड़ दिया. स्कूल से बच्चों को साथ ले कर मोहसिना वापस घर लौट आई.

महेंद्र मुंबई में 2 दिन रुका. दोनों दिन उस ने मोहसिना के साथ खूब मौजमस्ती की. नसीम मोहसिना की इस बात से बिलकुल अंजान था. महेंद्र व मोहसिना की यह मुलाकात ऐसे प्यार में बदली कि दोनों ने जीवनभर साथ रहने का इरादा कर लिया. मुंबई में मोहसिना की महेंद्र से हुई मुलाकात यादगार बन कर रह गई. वह दिनरात सपने बुनने लगी.

वह पंख लगा उड़ कर महेंद्र के पास पहुंच जाना चाहती थी. महेंद्र ने भी मुंबई में मुलाकात के दौरान मोहसिना से वादा किया कि जब वह उस के साथ लखनऊ आ कर रहने लगेगी तो वह दरोगाखेड़ा में एक मकान खरीद कर उस के अलग रहने का बंदोबस्त कर देगा.

बातों के दौरान ही मोहसिना को यह जानकारी मिल ही गई थी कि महेंद्र पहले से ही विवाहित है और उस की पत्नी अपने बच्चों के साथ उस के पुश्तैनी घर कठौरा कमरोली, जनपद अमेठी में रहती है. महेंद्र अब हर महीने मोहसिना से मिलने मुंबई जाने लगा. वहां कुछ समय बिताने के बाद वह जगदीशपुर लौट आता था. एक दिन महेंद्र ने मोहसिना को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि वह अपने पति का साथ छोड़ कर रहने के लिए लखनऊ आ जाए.

मोहसिना महेंद्र की इतनी दीवानी हो चुकी थी कि उस की खातिर वह अपने पति और बच्चों को छोड़ कर जून 2019 के महीने में अकेले ही मुंबई से भाग कर लखनऊ आ गई और महेंद्र के पास आ कर रहने लगी. मोहसिना के घर से गायब होने के बाद पति नसीम ने उसे काफी तलाश किया.

वह कई दिनों तक अपनी रिश्तेदारियों में और अन्य जगहों पर उसे तलाश करता रहा. जब उस का कोई पता नहीं चला तो 29 जून, 2019 को उस ने मुंबई के पवई थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मोहसिना जब महेंद्र के पास पहुंची तो वह कुछ दिनों तक मोहसिना के साथ सरोजनी नगर थाने के दरोगाखेड़ा में किराए के मकान में रहा.

इस के बाद उस ने दादूपुर गांव के पास नई कालोनी में 9 लाख रुपए का मकान खरीद लिया. यह मकान उस ने अपने दोस्त संदीप के नाम से खरीदा था. मोहसिना उसी मकान में रहने लगी. वह जब भी लखनऊ आता तो रात को मोहसिना के पास रहता. दादूपुर के मकान की बागडोर महेंद्र ने मोहसिना को सौंप दी थी.

इस के बाद महेंद्र ने एक मंदिर में उस से शादी भी कर ली. शादी के बाद उस ने अपना नाम खुशी उर्फ परी रख लिया था. वह हिंदू महिला की तरह ही रहती थी.

पड़ोस में रहने वाली महिलाओं को पता नहीं था कि खुशी मुसलिम है और उस ने अपने पति व बच्चों को छोड़ कर महेंद्र के साथ दूसरी शादी की है. चूंकि खुशी उर्फ मोहसिना बातूनी थी इसलिए वह जल्दी ही मोहल्ले के लोगों से घुलमिल गई.

समाज, घरपरिवार, शौहर और अपने 3 बेटों की परवाह न कर के मोहसिना पता नहीं किस नशे में मदमस्त हो कर प्रेमी महेंद्र के साथ लखनऊ में रह कर जिंदगी को ढो रही थी.

धीरेधीरे मोहसिना की परीक्षा की वो घड़ी आ गई, जहां महिलाओं को धर्म और संयम की मर्यादाओं से गुजरना पड़ता है. यानी करवाचौथ का त्यौहार आ गया. खुशी ने भी पड़ोसिनों के साथ करवाचौथ का निर्जला व्रत रखा.

उस दिन महेंद्र घर पर अपनी ब्याहता और बच्चों से मिलने कठौरा कमरोली चला गया. उधर खुशी उस का इंतजार कर रही थी. उस का यह पहला व्रत था इसलिए उस के मन में ज्यादा उत्सुकता थी. लेकिन फोन करने के बावजूद महेंद्र उस के पास नहीं पहुंचा.

रात को जब चंद्रमा दिखाई दिया तो पूजा के समय भी महेंद्र खुशी के पास मौजूद नहीं था. इस से खुशी को गुस्सा आ गया. उस ने वाट्सऐप पर महेंद्र को एक भावुक मैसेज भेजा, जिस में उस ने कहा कि तुम बेवफा निकले. मैं ने तुम्हारे प्यार की खातिर अपने बच्चे, पति और समाज को छोड़ा लेकिन तुम ने मेरी भावनाओं की कद्र नहीं की.

मैं सारे दिन (करवाचौथ वाले दिन) प्रतीक्षा करती रही, न तुम आए और न ही तुम ने फोन पर बताया कि कहां हो, इसे मैं क्या समझूं. जहां तक मैं समझती हूं, शायद तुम्हें मेरे प्यार की जरूरत नहीं रह गई है, तुम्हारी नजर में औरत सिर्फ एक खिलौना है, तुम्हें मेरे प्यार की नहीं जिस्म की ज्यादा जरूरत थी, इस से ज्यादा मैं क्या जानू.

महेंद्र ने पुलिस को बताया कि 18-19 अक्तूबर, 2019 की रात को 12 बजे जब वह दादूपुर दरोगाखेड़ा के मकान पर आया तो उस ने देखा खुशी उर्फ मोहसिना गले में फंदा डाले पंखे से लटकी हुई थी.

उस ने आत्महत्या कर ली थी. पत्नी को इस हालत में देख वह घबरा गया और उस ने नायलोन की डोरी का फंदा काट कर खुशी के शव को नीचे उतारा.

साथ ही उस ने अपने दोस्त संदीप को बोलेरो गाड़ी ले कर आने को कहा. संदीप रात 2 बजे करीब बोलेरो ले कर बंथरा पहुंचा. फिर दोनों ने खुशी उर्फ मोहसिना के शव को ठिकाने लगाने और सबूत नष्ट करने के उद्देश्य से बोलेरो में डाला. फिर उसे 5 किलोमीटर दूर पुराई खेड़ा, थाना बंथरा इलाके के एक खेत में डाल आए.

मोहसिना का शव ले जाते समय महेंद्र टौयलैट क्लीन करने वाला ऐसिड साथ ले गया था. वह एसिड उस ने खुशी उर्फ मोहसिना के चेहरे पर डाल दिया, जिस से चेहरा थोड़ा झुलस गया था. घबराहट की वजह से वे दोनों खुशी उर्फ मोहसिना का पर्स, मोबाइल फोन और एसिड की खाली शीशियां वहीं छोड़ कर भाग निकले.

अगले दिन पुलिस को खुशी उर्फ मोहसिना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई, जिस में मौत की वजह गले में फंदा डाल कर दम घुटना बताया गया. पुलिस ने हत्या की जगह आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का मामला दर्ज कर दिया. आरोपी महेंद्र और संदीप की निशानदेही पर पुलिस ने लाश ठिकाने लगाने में प्रयुक्त हुई महेंद्र की बोलेरो नंबर यूपी 36 टी 2331 भी बरामद कर ली.

पुलिस ने दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.