एक जवान औरत की नौटंकी – भाग 1

कानपुर के थाना नजीराबाद के लाजपत नगर का रहने वाला राजा यादव अपने इलाके का माना हुआ बदमाश था. उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे और थाने में उस की हिस्ट्रीशीट खुली हुई थी. इस वजह से वह या तो अकसर घर से फरार रहता था या फिर जेल में. ऐसे बदमाश जमाने के सामने खुद को भले ही दबंग समझते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि जब वे जेल से बाहर होते हैं तो उन के घर वालों का अमन चैन गायब रहता है. आए दिन उन्हें पुलिस से अपमानित होना पड़ता है.

राजा यादव के परिवार में पत्नी नीरू यादव और 3 वर्षीय बेटे कशिश के अलावा मां मीरा यादव थीं. उस के पिता केदारनाथ की कुछ दिनों पहले मौत हो चुकी थी. पति के अकसर जेल में बंद होने की वजह से उस की पत्नी नीरू को आर्थिक परेशानी उठानी पड़ रही थी. वह चूंकि पढ़ीलिखी थी, इसलिए एक जीवन बीमा कंपनी में एजेंट बन गई. इस काम में वह जीजान से मेहनत करने लगी तो उसे ठीकठाक आमदनी होने लगी.

नीरू जो काम करती थी वह ऐसा था, जिस की वजह से उसे दिन में अकसर बाहर रहना पड़ता था. उस की सास मीरा यादव को यह पसंद नहीं था कि बहू घर से बाहर घूमे. लेकिन वह यह भी समझती थी कि बहू के कमाने से ही घर का खर्च चल रहा है, इसलिए वह चाहते हुए भी नीरू को घर से बाहर घूमने से मना नहीं कर पाती थी.

मीरा यादव की 2 बेटियां थीं, जिन में से एक नवाबगंज, कानपुर में ब्याही थी, जबकि छोटी रीता यादव की शादी देहरादून में हुई थी. लेकिन पति से विवाद के चलते वह पिछले एक साल से मायके में रह रही थी. किसी पर बोझ न बने, इसलिए वह एक प्राइवेट नर्सिंगहोम में नौकरी करती थी.

कानपुर के ही थाना फजलगंज के अंतर्गत दर्शनपुरवा के रहने वाले राजेश कपूर के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे गौरव उर्फ गगन कपूर और प्रतीक कपूर थे. प्रतीक 8वीं में पढ़ता था जबकि गौरव बीए सेकेंड ईयर में. गौरव पढ़ाई के साथसाथ अपने चाचा के काम में हाथ बंटाता था. उस के चाचा केबिल औपरेटर थे. पूरे इलाके में उन के ही केबिल की सर्विस थी. गौरव कंप्लेंट डील करता था. कंज्यूमर की शिकायत आने पर वही शिकायत करने वाले के घर जा कर केबिल वगैरह चेक कर के शिकायत का निपटारा करता था.

पिछले साल जनवरी की बात है. नीरू के टीवी पर कोई भी चैनल नहीं आ रहा था. उस ने गौरव कपूर को फोन कर के शिकायत की कि उस के यहां केबिल नहीं आ रहा है. कंप्लेंट मिलने पर गौरव नीरू यादव के घर गया. उस समय नीरू की सास मीरा यादव कहीं गई हुई थीं और बेटा कशिश स्कूल में था. घर पर नीरू अकेली थी. 34 साल की नीरू भले ही एक बच्चे की मां थी, लेकिन अभी भी वह जवान थी. पति के अकसर घर से बाहर रहने की वजह से उस की शारीरिक भूख पूरी नहीं हो पाती थी.

गौरव कपूर गोराचिट्टा औसत कदकाठी का बलिष्ठ युवक था. वह पढ़ालिखा भी था. उसे देख कर उस की कामना जागी तो उस ने गौरव को अपने मन में बसा लिया. गौरव ने जब केबिल ठीक कर दिया तो नीरू ने उस की खूब खातिर की और प्यार भरी बातें भी. चायपानी के बाद गौरव जब वहां से जाने लगा तो नीरू बोली, ‘‘अब कब आओगे?’’

‘‘जब भी आप के यहां केबिल न आने की शिकायत मिलेगी, चला आऊंगा. हम तो आप के नौकर हैं.’’

‘‘मैं तुम्हें नौकर नहीं समझती, यह तो तुम्हारा काम है. तुम मुझे यह बताओ कि क्या केबिल ठीक करने ही आ सकते हो या ऐसे भी? अरे, मैं भी पंजाबन कुड़ी हूं. राजा से लवमैरिज की तो यादव बन गई. कम से कम अपना समझ कर ही आ जाया करो.’’ नीरू ने कहा तो गौरव बोला, ‘‘ठीक है, आप जब भी बुलाएंगी, मैं चला आऊंगा.’’

नीरू गौरव से जिस तरह अपनेपन से बातें कर रही थी, उस से उस ने यही अनुमान लगाया कि शायद वह उस का बीमा करना चाहती है. 2 दिनों बाद ही नीरू ने गौरव को अपने यहां बुलाया और बीमा की बातों के बजाय और बहुत सारी बातें कीं. इस के बाद नीरू जब भी अकेली होती, उसे बुला कर प्यार भरी बातें करती. इस से गौरव समझ गया कि नीरू का इरादा कुछ और ही है. फिर क्या था, गौरव ने भी खुद को नीरू के रंग में रंगना शुरू कर दिया. यानी उस का झुकाव भी नीरू की तरफ हो गया.

इस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. नीरू गौरव को कभी रेस्टोरेंट में ले जाती तो कभी उसे अपने घर बुला कर उस के साथ घंटों तक बातें करती. मीरा यादव को बहू की यह आदत अच्छी नहीं लगती थी. उस ने नीरू को कई बार समझाया भी, लेकिन उस ने गौरव से मिलना नहीं छोड़ा. इस पर मीरा यादव बहू पर बदचलनी का लांछन लगाने लगी. लेकिन नीरू ने सास की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, वह गौरव से लगातार मिलती रही.

धीरेधीरे दोनों बेहद करीब आ गए. इस बीच मीरा ने बहू की बातें जेल में बंद अपने बेटे राजा यादव तक पहुंचा दी थीं. पत्नी की बदचलनी की बात सुन कर राजा को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन जेल में बंद होने की वजह से वह कड़वा घूंट पी कर रह गया.

कुछ दिनों बाद जब राजा जेल से जमानत पर बाहर आया तो सब से पहले उस ने पत्नी की खबर ली. फिर वह गौरव की तलाश में लग गया. अक्तूबर, 2013 में एक दिन लाजपत नगर में उसे गौरव दिख गया तो राजा ने उसे जम कर पीटा और गोली मार दी. गोली लगने से गौरव बुरी तरह घायल हो गया. उसे उस के घर वालों ने अस्पताल में भरती कराया. गौरव के बयान के आधार पर थाना नजीराबाद में राजा यादव के खिलाफ जान से मारने की कोशिश की रिपोर्ट दर्ज हुई. पुलिस ने राजा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. अस्पताल में कुछ दिनों इलाज कराने के बाद गौरव कपूर ठीक हो कर घर आ गया.

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 2

21 अप्रैल की शाम कल्लू की पत्नी प्रियंका अपने देवर और सास के साथ सिलवानी थाने पहुंची, जहां से उन्हें सिविल अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल की मोर्चरी में रखे शव और कपड़ों के आधार पर तीनों ने बताया कि यह लाश कल्लू चढ़ार की ही है.

जब टीआई भारत सिंह ने दीनदयाल और उस की मां से कहा कि घर पर खबर कर दो कि परिवार के लोग अंतिम संस्कार की तैयारी कर लें तो दीनदयाल बोला, “साहब, हमारे पिताजी को यह खबर सुन कर हार्टअटैक आ सकता है. हम तो घर जा कर ही सब बताएंगे.”

पुलिस को तीनों के हावभाव देख कर यह नहीं लग रहा था कि कल्लू की मौत से किसी को सदमा पहुंचा हो. दूसरी बात मरने वाले की उम्र 25 साल के करीब थी, जबकि जेब में मिले आधार कार्ड में उम्र 34 साल थी.

पुलिस को पूरा मामला संदिग्ध लग रहा था, इसी वजह से सिलवानी थाने के टीआई भारत सिंह ने एसडीओपी राजेश तिवारी, एडीशनल एसपी अमृत मीणा और एसपी विवेक कुमार साहबाल को मामले की जानकारी देते हुए डैडबौडी के साथ उन के गांव थाना क्षेत्र त्योंदा के गांव बागरोद जाने का निर्णय लिया था.

पुलिस ने चिता से उठाया शव

गांव वालों की तस्दीक के बाद टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे को जब पूरी तरह यकीन हो गया कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है तो उन्होंने श्मशान में मौजूद लोगों से कहा, “जिस कल्लू चढ़ार का क्रियाकर्म करने आप लोग आए हैं, यह डैडबौडी उस की नहीं है. डैडबौडी को चिता से हटाइए, अब इस का अंतिम संस्कार नहीं होगा.”

पुलिस की इस काररवाई से वहां मौजूद कल्लू के परिवार के लोग भौंचक रह गए. चिता पर लेटे युवक को मुखाग्नि देने की तैयारी चल ही रही थी कि पुलिस ने शव को चिता से बाहर निकाला. पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लिया और इस की सूचना एसपी विवेक कुमार साहबाल को दे दी. इस के बाद कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, भाई दीनदयाल और मां कलाबाई को ले कर थाने आ गई.

तब तक लाश की हालत काफी खराब हो चुकी थी, इस वजह से आवश्यक काररवाई कर रात में ही पुलिस ने वार्ड नं 3 इंदिरा आवास कालोनी के मुक्तिधाम में जेसीबी मशीन से गड्ढा खुदवा कर लाश को दफना दिया, क्योंकि मृतक मुसलिम लग रहा था.

पूछताछ में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

दूसरे दिन 22 अप्रैल को पुलिस ने तीनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि यह डैड बौडी कल्लू की नहीं है. तीनों ने बताया कि यह लाश भोपाल में रहने वाले सलमान खान की है.

इस के बाद पुलिस ने सलमान भोपाल के पास करोंद का रहने वाला था. सलमान खान के पिता साबिर खान को घटना की सूचना दी गई और तहसीलदार की उपस्थिति में 22 अप्रैल को लाश को गड्ढे से बाहर निकाला गया.

सलमान के घर वालों की शिनाख्त के आधार पर डैडबौडी उन के सुपुर्द कर दी गई. पुलिस पूछताछ में तीनों ने पुलिस को यह भी बताया कि कल्लू जिंदा है और कल्लू ने ही अपने दोस्त मोहम्मद सलमान खान का कत्ल किया है.

एसपी विवेक कुमार साहबाल के निर्देश पर हत्यारोपी की तलाश हेतु सिलवानी एसडीओपी राजेश तिवारी के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया, टीम में टीआई भारत सिंह, एसआई आरती धुर्वे, संतोष कुमार दांगी, एएसआई संतोष रघुवंशी, साइबर सेल से एएसआई सुरेंद्र, हैडकांस्टेबल योगेंद्र सिंह राजपूत, कांस्टेबल नीतू चंदेल, नवीन पांडे, मुकेश यादव को शामिल किया गया.

पुलिस ने कल्लू की पत्नी प्रियंका से कल्लू का मोबाइल नंबर और फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी. साइबर सेल की मदद से कल्लू की लोकेशन भोपाल के पास भानपुर की मिल रही थी. पुलिस टीम ने दिनरात मेहनत कर के सलमान खान के हत्यारे कल्लू चढ़ार को खोज निकाला.

पुलिस की एक टीम कल्लू की तलाश में जब तक भोपाल पहुंची, उस समय कल्लू भोपाल के बस स्टैंड पर सागर जाने वाली बस में बैठा हुआ था. पुलिस ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर कल्लू को धर दबोचा. पुलिस टीम जब कल्लू को भोपाल से सिलवानी ले कर आ रही थी तो कल्लू ने चलती गाड़ी में गेट खोल कर भागने की कोशिश की, परंतु पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

चलती गाड़ी से कूदने पर घायल हुए कल्लू का पहले पुलिस ने सिलवानी अस्पताल में इलाज करवाया. इस के बाद सिलवानी थाने आ कर जब पुलिस ने उस से सख्ती के साथ पूछताछ की तो कल्लू ने जो कहानी सुनाई, वह काफी सनसनीखेज निकली.

ऐशोआराम के लिए ले रखा था कर्ज

विदिशा जिले के बागरोद गांव में रहने वाले भगवान दास चढ़ार के 2 बेटों और 2 बेटियों में कल्लू सब से बड़ा था. उस का रंग काला होने के कारण लोग बचपन में उसे कल्लू कह कर बुलाते थे और बाद में यही उस का असली नाम हो गया. जवान होतेहोते कल्लू गलत संगत में पड़ गया.

जब वह 19 साल का था, तब गांव के एक पंडित से विवाद होने पर उसे चाकू मार कर फरार हो गया था. बाद में पुलिस के सामने सरेंडर कर वह जेल भेज दिया. फिर जमानत मिलने के बाद वह भोपाल चला गया था. कल्लू 20 साल की उम्र में गांव छोड़ कर भोपाल चला गया और कैटरिंग का काम करने लगा था.

कैटरिंग का काम करने के दौरान उस का संपर्क एक तलाकशुदा महिला से हुआ, उस महिला का एक बेटा भी था. बाद में उस महिला के साथ वह लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा. कुछ साल बाद घर वालों ने कल्लू की शादी प्रियंका से कर दी और प्रियंका भी 2 बच्चों की मां बन गई.

भोपाल के करोंद इलाके में खुद का मकान बना कर रह रहे कल्लू का रहनसहन और शौक किसी रईस से कम नहीं थे. अपने ऐशोआराम के लिए उस ने बैंक और साहूकारों से कर्ज ले रखा था. कल्लू ने प्राइवेट बैंक से लोन ले कर कार खरीद ली थी. कल्लू अपनी दोनों बीवी और बच्चों का खर्च उठा रहा था.

शराब और अय्याशी के शौक के चलते उस का हाल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया की तरह था. अपने शौक पूरा करने के लिए उस ने कुछ लोगों से लाखों रुपए का कर्ज ब्याज पर ले रखा था. कर्ज देने वाले जब उस से रुपए मांगते तो वह किसी दूसरे से रुपए ले कर उस का कर्ज चुका देता.

कल्लू के शौक और खर्च कम नहीं हो रहे थे और आमदनी घटती जा रही थी. कल्लू भोपाल और आसपास के इलाकों में शादीविवाह के फंक्शन में हलवाई का काम करता था. उस ने मकान खरीदने के लिए 13 लाख रुपए, 9 लाख की गाड़ी और किराना की दुकान खोलने के लिए 5 लाख रुपए का कर्ज बैंकों से ले रखा था. कुछ साहूकारों से लिए गए 6-7 लाख के कर्ज को मिला कर करीब 30 से 35 लाख रुपए का कर्ज कल्लू पर था. आए दिन कर्ज देने वाले घर पर आ कर उसे उलाहना देने लगे. कल्लू की पत्नी भी इस से परेशान रहने लगी.

कर्ज से छुटकारा पाने के लिए कल्लू ने क्या योजना बनाई? पढ़िए कहानी के अगले अंक में.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ – भाग 3

दूसरी ओर शीलेश भी कम परेशान नहीं था. गांव के कुछ लोगों ने भी उस से कहा था कि जवान बीवी को इस तरह घर में छोड़ना ठीक नहीं है. उन लोगों के कहने का मतलब कुछ और था, जबकि शीलेश ने इस का मतलब वही लगाया, जो ममता ने उस के दिमाग में भरा था.

रुकुमपाल उस से बहुत कुछ कहना चाहता था, जबकि वह उस की कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं था. तनाव हद से ज्यादा हो गया तो शीलेश ने ठेके पर जा कर जम कर शराब पी. गिरतेपड़ते किसी तरह घर पहुंचा तो रुकुमपाल ने उसे संभालने की कोशिश की. तब वह बाप को धक्का दे कर गालियां देने लगा.

ममता ने सुना तो बहुत खुश हुई. वह यही तो चाहती थी. वह बापबेटे के बीच दीवार खड़ी करने में कामयाब हो गई थी. शीलेश चारपाई पर लुढ़का तो सुबह ही उठा. उठते ही उस ने कहा, ‘‘ममता, तुम अपना सारा सामान समेटो. हम दिल्ली चलेंगे.’’

ममता घबरा गई. उस का फेंका पासा उलटा पड़ रहा था. क्योंकि इस हालत में अगर वह दिल्ली चली गई तो फिर लौट नहीं सकती थी. हरीश दिल्ली जा नहीं सकता. तब वह उस से कैसे मिल सकती थी. अब वह इस सोच में डूब गई कि ऐसा क्या करे कि उसे दिल्ली भी न जाना पड़े और बुड्ढे से भी पिंड छूट जाए.

काफी सोचविचार कर उस ने तय किया कि वह दिल्ली जाने के बजाय इस कांटे को ही जड़ से निकलवा फेंकेगी. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें पता नहीं, मैं पेट से हूं. इस हालत में मैं दिल्ली नहीं जा सकती. अब तुम्हें सोचना है कि इस हालात में तुम मुझे अपने बाप से कैसे बचा सकते हो? कोई दूसरा होता तो वह ऐसे आदमी को खत्म कर देता, जो उस की पत्नी पर बुरी नजर रखता हो.’’

ममता ने यह चाल बहुत सोचसमझ कर चली थी. उस का सोचना था कि शीलेश अगर अपने बाप को मार देता है तो बाप की हत्या के आरोप में पति जेल चला जाएगा. उस के बाद वह पूरी तरह से आजाद हो जाएगी. फिर वह आराम से हरीश से मिल सकेगी.

इस के बाद अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए ममता ने त्रियाचरित्र फैला कर शीलेश के मन में बाप के प्रति ऐसा जहर भरा कि वह बाप का ऐसा दुश्मन बना कि उस की जान लेने को तैयार हो गया. उसे लगा कि ऐसे बाप को जीने का बिलकुल हक नहीं है, जो अपने बेटे की ही पत्नी पर गंदी नीयत रखता हो.

रुकुमपाल यह तो जान गया था कि पत्नी के कहने में आ कर बेटा उस के खिलाफ हो गया है. लेकिन उसे यह विश्वास नहीं था कि बेटा उस की जान भी ले सकता है. उस का सोचना था कि जब शीलेश को सच्चाई का पता चल जाएगा तो अपने आप सब ठीक हो जाएगा.

19 मार्च की शाम को शीलेश ने रुकुमपाल से खेतों से भूसा लाने को कहा. रुकुमपाल भूसा लाने के लिए खेतों की ओर चला तो शीलेश भी फावड़ा ले कर उस के पीछेपीछे वहां जा पहुंचा. उस के साथ ममता भी थी.

रुकुमपाल झुक कर भूसा निकालने लगा तो शीलेश ने पीछे से उस पर फावड़े से वार कर दिया. रुकुमपाल चीख कर गिर पड़ा. उस की चीख सुन कर आसपास के खेतों में काम कर रहे लोग उस की ओर दौड़े. वे रुकुमपाल के पास तक पहुंच पाते इस से पहले शीलेश ने बाप पर फावड़े से कई वार किए और भाग निकला. लेकिन गांव वालों ने उसे ही नहीं, ममता को भी उस के साथ भागते हुए देख लिया था.

गांव वालों ने घटना की सूचना कोतवाली देहात पुलिस को दी. सूचना पा कर कोतवाली प्रभारी पदम सिंह पुलिस बल के साथ गांव नगला समल पहुंच में रुकुमपाल के खेत पर गए. पहुंचते ही उन्होंने लाश को कब्जे में ले लिया. गांव वालों ने पूछताछ में बताया कि जब वे रुकुमपाल की चीख सुन कर उस की ओर दौड़े थे तो उन्हें मृतक का बेटा शीलेश और बहू ममता भागते ही दिखाई दिए थे.

पुलिस को लगा कि उन्हीं लोगों ने यह काम किया है, तभी भाग रहे थे अन्यथा बाप की चीख सुन कर वह बचाने दौड़ेगा, भागेगा नहीं. कोतवाली प्रभारी ने 2 सिपाहियों को घटनास्थल पर छोड़ा और खुद बाकी सिपाहियों को ले कर रुकुमपाल के घर जा पहुंचे.

शीलेश भागने की तैयारी कर रहा था. ममता भी उस के साथ थी. पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया. पुलिस ने मृतक की बेटी आशा को घटना की सूचना दी तो वह दादी रामरखी को साथ ले कर आ गई. रुकुमपाल की लाश देख कर रामरखी बेहोश हो गई तो आशा भी फूटफूट कर रोने लगी.

रामरखी को होश में लाया गया तो वह रोते हुए कहने लगी, ‘‘ममता ने ही अपने यार से मिलने के लिए मेरे बेटे को मरवाया है, क्योंकि मेरा बेटा उसे उस से मिलने से रोकता था.’’

जब आशा को पता चला कि शीलेश ने ही उस के पिता की हत्या की है तो उस का दुख और बढ़ गया. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद शीलेश और ममता को ले कर थाने आ गई.

थाने में शीलेश और ममता ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. इस के बाद ममता ने ससुर की हत्या करवाने के पीछे की अपने अवैध संबंधों की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर शीलेश ने अपना सिर पीट लिया.

लेकिन अब क्या हो सकता था. पत्नी के कहने में आ कर उस ने अपने बच्चों को तो अनाथ किया ही, उस बाप के खून से हाथ रंग लिए, जिस ने उसे बाप का ही नहीं, मां का भी प्यार दिया था. उस ने दादी के बुढ़ापे का सहारा छीनने के साथ भरापूरा परिवार बरबाद कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने शीलेश और ममता को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. रुकुमपाल का भी कैसा दुर्भाग्य था कि जिस बेटे से उस ने उम्मीद लगा रखी थी कि मरने पर उस का अंतिम संस्कार करेगा. उसी ने उसे मौत के घाट उतार दिया.

दूसरा पहलू : अपनों ने बिछाया जाल – भाग 4

एक सप्ताह बीत गया. सुकृति और मां की हालत खराब होने लगी. कोई निर्णय नहीं कर पा रहा था कि पुलिस को सूचना दी जाए या नहीं. धीरेधीरे 10 दिन बीत गए. कहीं से कोई सूचना नहीं मिली. सुकृति से पता चला कि मनु अपना क्रेडिट कार्ड साथ ले कर नहीं गया. भैया ने बैंक से पता किया तो पता चला कि जाने से एक दिन पहले मनु ने अपने एकाउंट से 20 लाख रुपए निकाले थे. इस बात ने सभी को और परेशान कर दिया.

15 दिन बीत गए. मनु का कुछ पता नहीं चल रहा था. अंत में भैया सुकृति को ले कर पुलिस स्टेशन गए. पुलिस ने गुमशुदगी लिखने से मना कर दिया. पुलिस वालों का तर्क था कि बालिग और स्वस्थ लड़का अगर अपनी इच्छा से घर से चला जाता है तो कोई अपराध नहीं होता.

मनु को गए पूरे 17 दिन हो गए थे. 17वें दिन अचानक सुबह बड़े भैया सुरेंद्र के मोबाइल पर अंजान नंबर से फोन आया. फोन करने वाले ने उसे एक नंबर दे कर कहा कि वह फौरन उस नंबर पर बात करे. भैया का माथा ठनका. किसी अनिष्ट की आशंका से शरीर सिहर उठा. उस ने वह नंबर मिलाया तो दूसरी ओर से किसी महिला का स्वर उभरा, ‘‘हैलो मि. सुरेंद्र, आप घर वालों से थोड़ा अलग हट कर बात करें.’’

घबराया सुरेंद्र कोठी के बाहर लौन में आ गया. महिला ने सिसकते हुए पूछा, ‘‘आप का छोटा भाई मनु कहां है?’’

सुरेंद्र को काटो तो खून नहीं. उस ने कहा, ‘‘बिजनैस के सिलसिले में बाहर गया है.’’

महिला ने फौरन कहा, ‘‘आप को कुछ पता भी है, मेरी बेटी घर से गायब है. आप का भाई मेरी बेटी को ले कर भाग गया है.’’

सुरेंद्र को गहरा आघात लगा. उस ने पूछा, ‘‘आप को मेरा नंबर कैसे मिला?’’

तब फोन पर बात करने वाली महिला ने कहा, ‘‘मैं सुकृति की आंटी रश्मि अहमदाबाद से बोल रही हूं.’’

सुरेंद्र को अब सारा माजरा समझ में आ गया. बात इतनी आसान नहीं थी, जितनी दिख रही थी. सुकृति की आंटी की बातों से उस ने इतना तो भांप ही लिया था कि यह सब पूर्व नियोजित था. शतरंज की गहरी चाल, जिस में न चाहते हुए भी वे सब फंस चुके थे. सुरेंद्र ने तुरंत यह बात मां को बताई. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इस घटना की जानकारी सुकृति को कैसे दी जाए.

अचानक इस अनहोनी से पूरा घर परेशान था. सुकृति की तो दुनिया ही बदल गई थी. उस के ऊपर विपत्ति के बादल फट पड़े थे. सब को लगा, समझदारी इसी में है कि सुकृति से कुछ न छिपाया जाए. उसे फौरन सब बता देना ही ठीक है. सच्चाई जान कर सुकृति सन्न रह गई. उस के अपनों ने ही उस की बसीबसाई गृहस्थी उजाड़ दी थी. पता नहीं कौन से जन्म का बदला लिया था उस के खून के दिरश्तेदारों ने.

सुकृति को याद आया कि शायद इस घटना के पीछे उस का पारिवारिक विवाद है. गांव में उस के चाचाताऊ में खेती की जमीन को ले कर काफी पुराना विवाद चल रहा था. उस के चाचा और आंटी पैतृक जमीन में से 4 बीघा जमीन पर अधिकार जता रहे थे. जबकि उन का उस  पर कोई हक नहीं था.

सुकृति ने तुरंत अपने पिता को फोन किया. उस के पिता ने अहमदाबाद में रह रहे अपने चचेरे भाई को फोन कर के असलियत जाननी चाही. लेकिन उन के अनुसार वहां ऐसा कुछ नहीं हुआ था. हद तो तब हो गई, जब सुरेंद्र से अपनी बेटी की गुमशुदगी की बात बताने वाली रश्मि ने उसी समय जेठ यानी सुकृति के पापा से मिंटू की बात करा कर कहा था कि वैसा कुछ नहीं है, जैसा वे कह रहे हैं. अब झूठा कौन था?

सुरेंद्र और उस की मां की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. सुरेंद्र ने रश्मि को फोन किया तो वह फिर अपनी बेटी को भगा ले जाने का राग अलापने लगी. सुरेंद्र समझ गया कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. बातोंबातों में रश्मि ने इशारा कर दिया था कि अभी वह इस बात को सब से छिपाए हुए है. अपने रिश्तेदारों से भी उस ने कुछ नहीं बताया है. अगर अभी भी मनु और मिंटू लौट आते हैं तो वह इस बात को यहीं खत्म कर देगी. दोनों घरों की इज्जत घर में ही रह जाएगी.

मनु के मोबाइल का स्विच औफ था. सुरेंद्र को लगा, मिंटू अपना मोबाइल ले कर गई होगी, जो चालू होगा. उसे लग रहा था कि मिंटू अपने मांबाप के संपर्क में है. क्योंकि उन की बातों से उसे कभी ऐसा नहीं लगा था कि उन्हें अपनी बेटी के भाग जाने का जरा भी अफसोस है. वे एकदम सामान्य लगते थे. उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं दर्ज कराई थी.

सुरेंद्र ने तय किया कि वह उस औरत के निर्देशों पर नहीं चलेगा. उस ने वकीलों से बात की तो वकीलों ने बताया कि यह भी संभव है कि बरामदगी के बाद अगर लड़की ने अपने बयान में मनु के साथ उस का भी नाम ले लिया तो वह भी फंस सकता है. सुरेंद्र घबरा गया. बैठेबिठाए अपने नासमझ भाई की मूर्खता की वजह से सब बेकार के बखेड़े में फंस कर पिस रहा था. उस ने तय कर लिया कि अब वह किसी भी कीमत पर उस महिला से संपर्क नहीं करेगा.

लेकिन रश्मि इतनी आसानी से कहां छोड़ने वाली थी. उस ने कई बार उस से मिलने को कहा. उसे अहमदाबाद बुलाया. लेकिन उस की छठी इंद्री उसे अहसास करा रही थी कि यह ठीक नहीं है. हो सकता है कि उस की कोई चाल हो. उसे भी जाल में फंसाने की प्लानिंग हो, सो वह कन्नी काटता रहा. जबकि रश्मि बारबार उसे अपने यहां आ कर खास बातचीत करने की बात कर रही थी.

सुरेंद्र उस के झांसों में नहीं आ रहा था. उस ने मनु के मोबाइल पर मैसेज किए, ताकि अगर कभी वह अपना मोबाइल औन करे तो उसे उस का संदेश मिल जाए और वह सारी हकीकत बता दे कि आखिर यह कैसी साजिश है.

इसी तरह 5 दिन और बीत गए. इस बीच रश्मि ने उसे कई फोन किए, लेकिन सुरेंद्र ने उस से बात नहीं की. उस ने सुकृति से स्पष्ट कह दिया था कि वही इस घर की बहू है, इसलिए किसी भी कीमत पर इस घर में उस के अलावा कोई और लड़की नहीं आ सकती. मां भी भला इस तरह का अन्याय कैसे सहती.

दुनिया में रिश्ते भी कितने अजीबअजीब हैं. अक्सर जिन्हें हम अपना समझते हैं, वही कभीकभी ऐसा परायों जैसा व्यवहार कर बैठते हैं कि लोग मुसीबत में पड़ जाते हैं. सुरेंद्र ने रश्मि से मिंटू का नंबर पूछा तो उस ने बताने से साफ मना कर दिया. पुलिस रश्मि का काल डिटेल्स निकलवाने को तैयार नहीं थी.

खुद ही लिख डाली मौत की स्क्रिप्ट – भाग 1

सुबह खेतखलिहान के काम से अपने घरों से निकले लोगों को गांव में एंबुलेंस गाड़ी के सायरन की आवाज सुनाई दी तो लोग किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो गए. घरों से बाहर निकले लोगों ने देखा कि एंबुलेंस के पीछे पुलिस की गाड़ी चल रही थी. यह देख कर लोगों की आपस में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोग स्थिति को भांपने के लिए पुलिस की गाड़ी के पीछेपीछे चलने लगे.

एंबुलेंस और पुलिस की गाड़ी गांव के बाहर बने भगवान दास चढ़ार के घर के ठीक सामने खड़ी हो गईं. जैसे ही एंबुलेंस का गेट खुला तो सब से पहले गाड़ी से गांव के कल्लू चढ़ार की पत्नी प्रियंका, उस का भाई दीनदयाल और मां कलाबाई उतरे और उन्होंने रोनापीटना शुरू कर दिया.

लोगों की नजरें कुछ भांपने की कोशिश कर ही रही थीं कि पुलिस गाड़ी से उतरते ही थाना सिलवानी के टीआई भारत सिंह ने आसपास जमा लोगों को बताया कि कल्लू चढ़ार की किसी ने हत्या कर दी है. पोस्टमार्टम के बाद अब उस की डैडबौडी लाए हैं. घर के आसपास के लोगों ने एंबुलेंस से शव को बाहर निकाला और कल्लू के घर के आंगन में लिटा दिया. यह बात 21 अप्रैल, 2023 की है.

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गांव बांगरोद के रहने वाले कल्लू चढ़ार की मौत की खबर आग की तरह पूरे गांव में फैल गई और छोटे से गांव में मातम छा गया. कल्लू की मौत को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.

कल्लू के घर में उस के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी. गांव की महिलाओं के साथ पुरुषों की काफी भीड़ कल्लू के घर पर जमा हो गई थी. जैसे ही अर्थी उठने की तैयारी हो रही थी गांव की एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “कल्लू की बहू प्रियंका को अर्थी के पास ले आओ और उस की चूडिय़ां तोड़ दो.”

घर के भीतर से कुछ महिलाएं प्रियंका को पकड़ कर बाहर अर्थी के पास ले आईं. प्रियंका काफी देर तक अर्थी के पास सिर रख कर रोती रही, मगर प्रियंका ने अपनी चूडिय़ां नहीं तोड़ीं. महिलाएं बारबार चूड़ी तोडऩे के लिए प्रियंका का हाथ पकड़ रही थीं, तभी कल्लू की मां कलाबाई ने यह कह कर सब को चुप करा दिया, “अब बहू का सुहाग उजड़ ही गया है तो चूडिय़ां तोडऩे से क्या होगा, अब तो जल्दी से अर्थी उठाओ और बहू को और मत रुलाओ.”

इस के बाद परिवार के लोगों ने बिना देर किए अर्थी को कंधा दिया और शवयात्रा ले कर शमशान घाट के लिए निकल पड़ी.

चिता पर ही करने लगे कल्लू की शिनाख्त

पुलिस की टीम भी शवयात्रा के साथ चल रही थी. जैसे ही शवयात्रा श्मशान घाट पहुंची, वहां पहले से ही लकडिय़ों की चिता सजी हुई थी. रीतिरिवाज के अनुसार जैसे ही क्रियाकर्म की रस्म अदायगी कर कल्लू के शव को चिता पर लिटाया गया तो वहां पर मौजूद टीआई भारत सिंह ने गांव वालों से कहा, “आप सभी लोग कल्लू की बौडी को अच्छी तरह से देख लें, क्योंकि हमें शक है कि यह डैडबौडी कल्लू की नहीं है.”

टीआई के इतना कहते ही लोग चौकन्ने हो गए. अंतिम संस्कार के लिए आए कुछ लोगों ने कल्लू के शरीर से कपड़े भी हटा दिए और शव को बारीकी से देखने लगे.

गांव में रहने वाला कल्लू का एक हमउम्र युवक बोला, “साहब, कल्लू के एक पैर की 2 अंगुलियां जुड़ी हुई थीं, लेकिन इस डैडबौडी के किसी भी पैर की अंगुलियां जुड़ी हुई नहीं हैं.”

गांव का एक व्यक्ति बोला, “कल्लू का रंग तो काला है और वह शरीर से भी मोटा है, जबकि चिता पर जो लाश रखी है, उस का रंग गोरा है और वह दुबलापतला है.”

गांव के एक बुजुर्ग ने शव के हाथों को देख कर कहा, “कल्लू कैटरिंग का काम करता था और उस के एक हाथ पर जले का निशान था, मगर जिसे चिता पर लिटाया गया है उस के दोनों हाथों में इस तरह का कोई निशान नहीं है.”

गांव में रहने वाले एक मुसलिम युवक ने कहा, “यह डैडबौडी तो किसी मुसलिम युवक की लग रही है, क्योंकि इस का खतना हुआ है.”

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के सिलवानी थाने की पुलिस टीम जिस आशंका के चलते कल्लू के गांव बांगरोद आई थीं, वह निराधार नहीं थी. दरअसल, 20 अप्रैल, 2023 को पुलिस को यह सूचना मिली थी कि गैरतगंज गाडरवारा स्टेट हाइवे 44 पर सिलवानी से 10 किलोमीटर दूर पठा गांव के मोड़ के पास देवेंद्र रघुवंशी के खेत में एक व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी हुई है. यह सूचना गांव के ललित रघुवंशी ने दी थी.

सूचना पा कर थाने के टीआई भारत सिंह ने मौके पर जा कर देखा तो करीब 24-25 साल के नवयुवक का शव मूंग के खेत में पड़ा हुआ था. शव का सिर बुरी तरह से कुचला गया था. मृतक के गले में निशान मिले थे. शव के पास ही एक खून से सना हुआ पत्थर पड़ा हुआ था. मृतक के पास उस के जूते और एक रुमाल भी मिला था.

शव की हालत देख कर लग रहा था कि पहले गला घोंट कर हत्या की गई और फिर पहचान छिपाने के लिए मृतक का चेहरा कुचल दिया गया था. शव को घटनास्थल से ला कर सिलवानी अस्पताल की मोर्चरी में रखवाते वक्त पुलिस ने मृतक युवक के पैंट की जेबों की तलाशी ली तो पीछे के जेब में एक डायरी और आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवक का नाम कल्लू चढ़ार, उम्र 34 साल, पता करोंद भोपाल का लिखा हुआ था.

पुलिस ने डायरी खोल कर देखी, जिस में एक मोबाइल नंबर मिला. डायरी में मिले मोबाइल नंबर पर जब एसआई आरती धुर्वे सिंह ने बात की तो फोन एक महिला ने उठाया.

“आप कौन बोल रही हैं. कल्लू चढ़ार कौन है, जानती हैं?” एसआई ने पूछा.

“मैं बांगरोद गांव से किरण बोल रही हूं. वो मेरे पति हैं.”

“मैं सिलवानी थाने से बोल रही हूं. कल्लू कहां है, कुछ पता है आप को?”

“वो 2 दिन पहले घर से बोरास घाट नर्मदा स्नान के लिए गए हुए हैं.”

“आप के घर में कोई पुरुष सदस्य हो तो उन से बात कराइए.”

“हां मेरे देवर हैं, उन से बात कराती हूं.” किरण ने अपने देवर दीनदयाल को फोन देते हुए कहा.

“हां मेम, मैं कल्लू का छोटा भाई दीनदयाल बोल रहा हूं.”

“तुम्हारे भाई कल्लू का सिलवानी के पास मर्डर हो गया है, सिलवानी थाने आ जाइए और शव की पहचान कर लीजिए.” एसआई ने फोन रखते हुए कहा.

वो लाश कल्लू की नहीं थी तो किस की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

फूल खिलने से पहले ही उजड़ गया गुलिस्तां – भाग 4

अंत में अमितपाल ने फैसला लिया कि हरप्रीत कौर नाम की जिस लड़की से हरप्रीत की शादी हो रही है, उस लड़की की सुंदरता को नष्ट कर दिया जाए तो यह शादी अपने आप ही रुक जाएगी. पलविंदर ने भी उस की इस योजना का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘अगर हरप्रीत कौर के चेहरे पर तेजाब डाल कर जला दिया जाए तो हमारी योजना सफल हो जाएगी.’’

अमितपाल ने पलविंदर को यह काम करने के लिए 10 लाख रुपए की सुपारी दे दी और सवा लाख रुपए एडवांस भी दे दिए.

पलविंदर उसी दिन से इस योजना पर काम करने लगा. उस ने अपने साथ अपने चचेरे भाई सनप्रीत उर्फ सन्नी को शामिल कर लिया. दोनों कुरियर मैन बन कर बरनाला में जसवंत के घर पहुंच गए, लेकिन हरप्रीत से मुलाकात न होने पर उन की योजना सफल न हो सकी. उन्होंने 2-3 बार कोशिश की, लेकिन सफल न हो सके.

जैसेजैसे शादी के दिन निकट आते जा रहे थे, अमितपाल को इस बात की चिंता होने लगी थी कि कहीं उस के द्वारा दी गई धमकी झूठी न पड़ जाए. इसलिए उस ने पलविंदर पर दबाव डालना शुरू कर दिया. पलविंदर के कहने पर सन्नी ने राकेश कुमार प्रेमी, जसप्रीत और गुरुसेवक को अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद उन्होंने हरप्रीत की रेकी करनी शुरू कर दी. इस काम के लिए वह कई बार बरनाला और लुधियाना भी गए.

उधर अमितपाल पैसों का लालच दे कर रंजीत सिंह के यहां काम करने वाले एक नौकर से फोन पर उन के यहां होने वाली हरेक गतिविधि की जानकारी लेती रही. कभीकभी वह अपने बच्चों से भी बात कर लेती थी. इस प्रकार घर बैठे वह पूरा नेटवर्क चलाती रही. रंजीत सिंह के यहां की हर खबर वह पलविंदर को बताती.

5 दिसंबर, 2013 को जब जसवंत सिंह का परिवार बरनाला से लुधियाना आ गया तो पलविंदर पूरी तैयारी के साथ लुधियाना चल पड़ा. उस ने अपने फूफा से यह कह कर उन की मारुति जेन कार संख्या पीबी03-5824 मांग ली कि वह अपने किसी दोस्त की शादी में जा रहा है. पलविंदर ने कार की नंबर प्लेट उतार कर उस पर पीबी11जेड9090 की फरजी नंबर प्लेट लगा दी. सभी लोग उसी कार से लुधियाना आ गए. एक दिन सभी लुधियाना रह कर हरप्रीत कौर की शादी की तैयारियों का जायजा लेते रहे.

6 दिसंबर को अमितपाल को रंजीत सिंह के नौकर और अपने बेटों द्वारा यह पता चला कि शादी वाले दिन यानी 7 दिसंबर को हरप्रीत कौर सुबह 7 बजे सराभानगर की किप्स मार्केट में स्थित लैक्मे सैलून ब्यूटीपार्लर में तैयार होने जाएगी. यह जानकारी उस ने पलविंदर को दे दी. जिस के बाद पलविंदर साथियों सहित किप्स बाजार पहुंच गया.

ठीक साढ़े 7 बजे हरप्रीत कार द्वारा पार्लर पहुंच गई. लेकिन उस समय उस के साथ उस के मातापिता और सहेलियां थीं, इसलिए वे काम को अंजाम न दे सके. मांबाप उसे ब्यूटीपार्लर में छोड़ कर कहीं चले गए. तब पलविंदर और उस के साथी बाहर खड़े हो कर हरप्रीत के तैयार हो कर लौटने का इंतजार करने लगे.

पलविंदर फोन द्वारा अमितपाल के संपर्क में था. जब 9 बजे तक हरप्रीत तैयार हो कर ब्यूटीपार्लर से बाहर नहीं निकली, तब वह पार्लर में चला गया और घटना को अंजाम दे डाला.

अमितपाल कौर से पूछताछ के बाद पुलिस ने पलविंदर सिंह उर्फ पवन उर्फ विक्की, मनप्रीत सिंह उर्फ सन्नी, जसप्रीत सिंह, गुरुसेवक बराड़ और राकेश कुमार को अलगअलग जगहों से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें 9 दिसंबर, 2013 को न्यायालय में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर 3 दिनों के रिमांड पर ले कर अहम सुबूत इकट्ठे किए. फिर सभी अभियुक्तों को 12 दिसंबर को पुन: न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

उधर डीएमसी अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही हरप्रीत कौर की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी. उसे बचाने के लिए डाक्टरों की टीम लगी हुई थी. इसी दौरान घटना के 2 दिन बाद हरप्रीत को 2 बार होश आया. तब उस ने मां दविंदर से पूछा, ‘‘मां अब मेरी शादी होगी, क्या हनी (हरप्रीत) मुझ से शादी करेगा? क्या मैं ठीक हो जाऊंगी?’’

दविंदर कौर ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘हां बेटा, तू ठीक हो जाएगी.’’

पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो व थानाप्रभारी हरपाल सिंह को जब पता चला कि हरप्रीत को होश आ गया है तो वे उस से मिलने अस्पताल पहुंचे. पुलिस अधिकारियों से वह केवल इतना ही कह पाई, ‘‘सर, अपराधियों को सजा जरूर देना, उन्हें फांसी पर चढ़ा देना.’’ इस के बाद उस की हालत बिगड़ने लगी. उस की जुबान बंद हो गई.

उस के इलाज में जुटे डीएमसी अस्पताल के डाक्टरों ने जब देखा कि हरप्रीत की हालत सीरियस होती जा रही है तो उन्होंने उसे मुंबई के नेशनल बर्न सेंटर ले जाने की सलाह दी. तब पुलिस आयुक्त ने हरप्रीत कौर को मुंबई ले जाने के लिए एक विशेष विमान की व्यवस्था कराई और 13 दिसंबर, 2013 को विशेष विमान से उसे मुंबई भेजा. मुंबई के नेशनल बर्न सेंटर के डा. सुनील केसवानी के नेतृत्व में हरप्रीत कौर का इलाज शुरू हुआ.

वहां 20 दिनों तक इलाज होने के बाद हरप्रीत कौर की हालत में कोई सुधार न हुआ और 27 दिसंबर, 2013 को सुबह 5 बजे उस ने दम तोड़ दिया.

पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो ने हरप्रीत का शव लेने के लिए एक पुलिस पार्टी विमान द्वारा मुंबई भेजी. टीम ने मुंबई में ही हरप्रीत की लाश का पोस्टमार्टम कराया और विमान द्वारा डेड बाडी ले कर दिल्ली लौट आई. फिर सड़क मार्ग द्वारा बरनाला पहुंच कर उस के मातापिता को डेडबौडी सुपुर्द कर दी. हरप्रीत की मौत पर लोगों में आक्रोश बढ़ गया.

नारेबाजी करते हुए लोग सड़कों पर उतर आए तो प्रदेश सरकार के वित्तमंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा मौके पहुंचे. उन्होंने मृतका के परिजनों को 5 लाख रुपए और परिवार के एक सदस्य को डीसी दफ्तर में नौकरी देने का वादा किया. इस के बाद ही हरप्रीत का अंतिम संस्कार किया गया.

यहां यह बताना आवश्यक है कि हरप्रीत पर तेजाब डाले जाने के बाद उस के ससुरालियों ने कोई सहायता नहीं की थी. सारा खर्च लुधियाना पुलिस आयुक्त निर्मल सिंह ढिल्लो और स्वयं सेवी संस्थाओं ने उठाया.

पुलिस ने अमितपाल और अन्य अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के भले ही जेल भेज दिया, लेकिन अमितपाल की सनक का खामियाजा हरप्रीत कौर ने दर्दनाक मौत के रूप में सहा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त – भाग 3

उसी दौरान उन्होंने सरिता को देर रात प्रमोद से मोबाइल फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो उसे लगा कि अब वह बेटी को प्रमोद से अलग नहीं कर पाएगा, क्योंकि वह सरिता के साथ मारपीट, डांटफटकार कर के हार चुका था. सरिता प्रमोद को छोड़ने को तैयार नहीं थी. हद तो तब हो गई, जब सरिता ने मां से साफ कह दिया, ‘‘मां, आखिर प्रमोद में बुराई ही क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. आप लोगों को मेरी शादी कहीं न कहीं तो करनी ही है, उसी से कर दीजिए.’’

बेटी की बात सुन कर मां हैरान रह गई थी. बेटी के इसी इरादे से जीवनराम चिंतित था. उस ने देखा कि अब वह खुद कुछ नहीं कर सकता तो उस ने पंचायत बुलाई. पंचायत ने सलाह दी कि इस झंझट से बचने का एक ही तरीका है कि दोनों ही अपनेअपने बच्चों की शादी जल्द से जल्द कर दें. पंचायत ने प्रमोद से साफसाफ कह दिया था कि अगर उस ने कोई उल्टीसीधी हरकत की तो उसे गांव से निकाल दिया जाएगए.

प्रमोद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. सरिता का स्कूल जाना बंद करा दिया गया था. उसे घर से बिलकुल नहीं निकलने दिया जा रहा था. उन्हीं दिनों डालचंद अपनी बेटी अर्चना की शादी के लिए प्रमोद के घर पहुंचे तो प्रमोद के बाप छदामीलाल ने तुरंत यह रिश्ता स्वीकार कर लिया. इस के बाद 14 जून, 2013 को अर्चना और प्रमोद की शादी हो गई.

अर्चना ससुराल आई तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. इस से अर्चना बहुत खुश हुई. लेकिन पहली रात को प्रमोद ने उस के साथ जो व्यवहार किया, वह उसे कुछ अजीब सा लगा था. एक पति पहली रात जिस तरह पत्नी से प्यार करता है, वैसा प्रमोद के प्यार में नजर नहीं आया था.

अर्चना सप्ताह भर ससुराल में रही. इस बीच प्रमोद के बातव्यवहार से अर्चना ने अंदाजा लगा लिया कि पति उसे पसंद नहीं करता. लेकिन मायके आने पर यह बात उस ने किसी से नहीं कही क्योंकि अगर वह यह बात मायके में किसी से बताती तो वे काफी परेशान होते.

कुछ दिनों बाद अर्चना फिर ससुराल आ गई. पति का व्यवहार संतोषजनक नहीं था, इसलिए अर्चना परेशान रहने लगी थी. उस ने यह भी देखा कि प्रमोद दिनभर मटरगश्ती करता रहता है. घर का एक काम नहीं करता. पति की बेजा हरकतों से उस से रहा नहीं गया तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘तुम दिनभर इधरउधर घूमा करते हो, पापा के साथ खेतों पर काम क्यों नहीं करते?’’

‘‘मुझ से खेती के काम नहीं होते.’’ प्रमोद ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर कोई दूसरा काम करो. इस तरह आवारा की तरह घूमना ठीक नहीं है.’’ अर्चना ने कहा.

पत्नी की इस सलाह पर प्रमोद को गुस्सा आ गया. उस ने उसे डांट कर कहा, ‘‘तू अपने काम से काम रख. मैं क्या करूं, यह मुझे तू बताएगी?’’

‘‘तुम्हारी स्थिति से तो यही लगता है कि तुम कोई कामधंधा करने वाले नहीं. पापा से तो तुम्हारे घर वालों ने बताया था कि तुम दिल्ली में नौकरी करते हो. शादी के बाद तुम मुझे दिल्ली ले जाओगे. लेकिन मैं देख रही हूं कि आवारागर्दी करने के अलावा तुम्हारे पास कोई काम नहीं है.’’ अर्चना ने गुस्से में बोली.

प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने अपनी शक्ल देखी है. तुम जैसी गंवार लड़की दिल्ली में रहेगी तो यहां गांव में चूल्हाचौका कौन करेगा?’’

‘‘अगर मैं गंवार थी तो मुझ से शादी ही क्यों की.’’ अर्चना ने कहा.

‘‘बहुत हो गया, अब चुप रह. मैं फालतू की बकवास सुनना नहीं चाहता.’’

अर्चना को लगा कि कुछ ऐसा है जिस की जानकारी उसे नहीं है. लेकिन जल्दी ही उसे उस की भी जानकारी हो गई. उस ने प्रमोद के पर्स में सरिता के साथ उस की फोटो देख ली. उस ने तुरंत वह फोटो प्रमोद के सामने रख कर पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ यह किस की फोटो है?’’

जवाब देने के बजाय प्रमोद उस के गाल पर जोरदार तमाचा मार कर बोला, ‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा पर्स छूने की?’’

अर्चना तड़प कर बोली, ‘‘आज तो मार दिया, लेकिन फिर कभी ऐसी गलती मत करना, वरना जिंदगीभर पछताओगे. सब के सामने मैं विवाह कर के आई हूं. इसलिए तुम पर मेरा पूरा हक है. मेरे रहते यह सब नहीं चलेगा.’’

प्रमोद चुपचाप घर से निकल गया. अर्चना जान गई कि उस के पति के जीवन में उस के अलावा भी कोई है. यह उस के लिए चिंता की बात थी. अभी उस के हाथ की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उसे पता चल गया कि उसे बचाखुचा प्यार मिल रहा है.

अगर यह संबंध इसी तरह चलते रहे तो अर्चना का जीवन नरक हो जाता, इसलिए रात में प्रमोद आया तो उस ने साफसाफ कह दिया, ‘‘शादी से पहले तुम्हारी जिंदगी में जो भी रही हो, मुझ से कोई मतलब नहीं है. लेकिन शादी के बाद यह सब नहीं चलेगा. मैं तुम्हारे प्रति समर्पित हूं तो तुम्हें भी मेरे प्रति समर्पित होना पड़ेगा.’’

‘‘अगर मैं समर्पित न हो सका तो…?’’

…तो इस का भी इलाज है, मुझे कानून का सहारा लेना होगा.’’ अर्चना ने कहा.

प्रमोद सन्न रह गया. जिसे वह सीधीसादी गंवार समझता था, वह तो उस से भी तेज निकली. अर्चना ने उसी समय अपने बाप को फोन कर के कह दिया कि वह मायके आना चाहती है.

प्रमोद को लगा कि अर्चना से उस की शादी गले की हड्डी बन रही है. उस ने घर वालों के दबाव में यह शादी की थी. उस ने सोचा था कि पत्नी को जैसे चाहेगा, रखेगा, लेकिन यह तो उस के लिए मुसीबत बन रही है. अब वह इस मुसीबत से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने दोस्त मुकेश से मिला और उस से पूरी बात बता कर कहा, ‘‘यार! मैं किसी भी तरह इस अर्चना नाम की मुसीबत से छुटकारा चाहता हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘मतलब यह कि जीतेजी तो उस से छुटकारा मिल नहीं सकता. ठिकाने लगाने के बाद ही शुकून मिल सकता है. और इस काम में तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ प्रमोद ने कहा.

इस के बाद दोनों कई दिनों तक योजनाएं बनाते रहे. आखिर में जब योजना फाइनल हो गई तो दोनों मौके की तलाश करने लगे.

अर्चना को घर में तो मारा नहीं जा सकता था, क्योंकि घर में प्रमोद उसे मारता तो सीधे आरोप उसी पर लगता. यानी उस का फंसना तय था. इसलिए वह उसे घर के बाहर ही मारना चहाता था. उस ने ससुर को फोन किया कि पत्नी को विदा कराने आ रहा है.

अर्चना इस बार पिता के साथ मायके पहुंची थी तो उस ने मां से प्रमोद के गांव की किसी लड़की से संबंध होने की बात बता दी थी. बेटी की बात सुन कर शारदा स्तब्ध रह गई थी. कुछ महीने पहले ही तो उस ने बेटी की शादी की थी. अभी तो बेटी की पूरी जिंदगी पड़ी थी. उस ने बेटी को समझाया कि वह पति को संभाले. अब वह इस बात का जिक्र किसी और से न करे, क्योंकि अगर उस के पिता को इस बारे में पता चल गया तो मामला काफी संगीन हो जाएगा.

प्रमोद ससुराल पहुंचा तो अर्चना को उस के साथ जाना ही था. उसी दिन प्रमोद ने दोपहर के बाद विदाई के लिए कहा तो डालचंद ने कहा, ‘‘यह समय विदाई करने का नहीं है. लालपुर पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. इसलिए तुम कल चले जाना.’’

‘‘नहीं पापा, जाना बहुत जरूरी है. साधन से ही तो जाना है. आराम से पहुंच जाएंगे.’’

डालचंद को क्या पता था कि उस के मन में क्या है. उन्होंने अर्चना को विदा कर दिया. प्रमोद खुश था कि सब कुछ उस के मन मुताबिक हो रहा है. अर्चना भी पति के मन की बात से बेखबर थी. वह प्रमोद के साथ गजरौला कलां पहुंची तो वहां मुकेश मिल गया. दोनों अर्चना को ले कर लालपुर की ओर चल पड़े.

अंधेरा हो जाने की वजह से लालपुर जाने वाली सड़क सुनसान हो गई थी. रास्ते में खेतों के बीच प्रमोद ने अर्चना को दबोच लिया तो वह चीखी, ‘‘यह क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.’’

लेकिन प्रमोद ने उसे छोड़ने के लिए थोड़े ही पकड़ा था. उस ने उसे जमीन पर गिरा दिया तो मुकेश ने फुरती से उस के दोनों हाथ पकड़ लिए. इस के बाद प्रमोद ने उस का गला दबा कर उसे मार डाला. इस तरह अर्चना का खेल खत्म कर के प्रमोद ने रास्ते का कांटा निकाल दिया था. इस के बाद प्रमोद ने जल्दीजल्दी अर्चना के गहने उतारे और फिर लाश को उठा कर गन्ने के खेत में फेंक दिया.

फिर योजना के मुताबिक प्रमोद थाना गजरौला कलां पहुंचा, जहां उस ने अपनी पत्नी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन उस के हावभाव से ही थानाप्रभारी भुवनेश गौतम ने ताड़ लिया कि यह झूठ बोल रहा है. इस के बाद तो उन्होंने उसे थाने ला कर सच्चाई उगलवा ही ली.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने प्रमोद और मुकेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. बाद में डालचंद ने कहा कि उन की बेटी की हत्या की साजिश में प्रमोद का बाप छदामीलाल भी शामिल था तो पुलिस ने उसे भी इस मामले में अभियुक्त बना कर जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी ने सीओ दिनेश शर्मा की देखभाल में इस मामले की चार्जशीट तैयार कर के अदालत में पेश कर दी गई है. अब देखना यह है कि इस मामले में दोषियों को सजा क्या होती है.  द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पिंड दान : प्रेमी के प्यार में पति का कत्ल

बचपन का मजा, जवानी में बना सजा – भाग 3

दिल्ली आते समय उस ने रुखसाना पर नजर रखने की जिम्मेदारी भाई दिलशाद को सौंपी थी. भाई के कहने पर दिलशाद उस पर रातदिन नजर रखने लगा. रुखसाना की आदत बिगड़ चुकी थी. अब वह सुधरने वाली नहीं थी. वह बिना मर्द के बिलकुल नहीं रह सकती थी. लेकिन देवर की वजह से वह किसी मर्द तक पहुंच नहीं पा रही थी.

पिछले साल मई महीने में अचानक दिलशाद की करंट लगने से मौत हो गई. गांव वालों का कहना था कि यह सब रुखसाना ने अपने पुराने प्रेमी असरुद्दीन से करवाया था. इस की वजह यह थी कि असरुद्दीन उन दिनों गांव में ही था. जबकि वह सूरत में रहता था. वह रुखसाना का बचपन का प्रेमी था. बहरहाल सच्चाई कुछ भी रही हो, सुबूत न होने की वजह से पुलिस केस नहीं बना.

पुलिस केस भले ही नहीं बना, लेकिन गांव वाले इस बात को ले कर काफी गुस्से में थे. इसलिए घर वालों ने असरुद्दीन को सूरत भेज दिया. वह सूरत तो चला गया, लेकिन वह वहां भी नहीं बच सका. दिलशाद के भतीजे ताहिर ने चाचा की मौत का बदला लेने के लिए सूरत में ही उस की हत्या कर दी.

गांव वाले रुखसाना के कारनामों से परेशान हो गए तो उन्होंने जाबिर को फोन कर के उसे अपने साथ दिल्ली ले जाने को कहा. उन का कहना था कि वे इस गंदगी को गांव में नहीं रहने देंगे. क्योंकि इस की वजह से खूनखराबा भी होने लगा है. गांव वालों के कहने पर जाबिर रुखसाना को दिल्ली ले आया. रुखसाना ने पति से वादा किया था कि अब वह ऐसा कोई काम नहीं करेगी, जिस से उस के मानसम्मान को ठेस पहुंचे. लेकिन रुखसाना मानी नहीं. उस ने  ठान लिया था कि अब वह जाबिर के साथ नहीं रहेगी. फिर उस ने पति से छुटकारा पाने के लिए जो योजना बनाई, वह बहुत ही खतरनाक थी.

पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चल गया था कि हत्या में रुखसाना का हाथ है. फिर भी पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया था. दरअसल उसी के माध्यम से पुलिस असली हत्यारों तक पहुंचना चाहती थी. अगर पुलिस उसे पकड़ लेती तो असली हत्यारे छिप जाते.

इंसपेक्टर अत्तर सिंह यादव ने मुखबिरों की मदद से नंदनगरी के गगन सिनेमा के पास से जानेआलम उर्फ टिंकू, आमिर हुसैन और हनीफ उर्फ काला को पकड़ा. थाने ला कर तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि रुखसाना ने ही 4 लाख रुपए की सुपारी दे कर जाबिर की हत्या कराई थी. हत्यारों के पकड़े जाने के बाद पुलिस रुखसाना के घर पहुंची तो पता चला कि वह घर से गायब हो चुकी है. शायद उसे हत्यारों के पकड़े जाने की भनक लग चुकी थी.

पुलिस रुखसाना की तलाश कर रही थी कि तभी अलाउद्दीन उर्फ आले पुलिस के हाथ लग गया. इस के बाद 4 नवंबर, 2013 को पुलिस ने रुखसाना को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह अपने घर जरूरी सामान लेने आई थी. इस के बाद पुलिस को नौकर जाबिर अली, कमर और शानू की तलाश थी.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ में रुखसाना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद उस ने जाबिर की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह इस प्रकार थी.

गांव में रहने के दौरान जब उस के संबंध नौकर जाबिर अली से बने थे तो इस का खुलासा होने पर उस का शौहर जाबिर उस के साथ बुरी तरह मारपीट करने लगा था. तब रुखसाना ने तय कर लिया था कि अब वह उसे ठिकाने लगवा कर ही रहेगी. नौकर जाबिर से उस की फोन पर बात होती रहती थी. उस ने उस से बात की तो उस ने रुखसाना की मुलाकात अलाउद्दीन उर्फ आले से कराई. उस ने आले को 4 लाख रुपए देने की बात की तो वह जाबिर की हत्या करने के लिए तैयार हो गया.

अलाउद्दीन नौकर जाबिर का दोस्त था और रमजानपुर का ही रहने वाला था. आले अपराधी प्रवृत्ति का था. उस ने गांव के ही अब्बन की हत्या तलवार से काट कर की थी. चूंकि आले को गांव वालों से जान का खतरा था, इसलिए वह जेल से छूटने के बाद पत्नी मुनीजा के साथ गांव बीकमपुर में रहने लगा था. आले कामकाज के नाम पर दिल्ली की फैक्ट्रियों से कौपर डस्ट की चोरी कर के कबाडि़यों को बेचता था.

दिल्ली में रहते हुए ही उस की जानपहचान 26 वर्षीय हनीफ उर्फ काला से हुई. वह भी रमजानपुर का ही रहने वाला था. काफी समय से वह गाजियाबाद के भोपुरा में रहता था. वह चोरी का माल तो खरीदता ही था, खुद भी चोरी करता था.

आले ने जाबिर की हत्या करने पर 4 लाख रुपए मिलने की बात बता कर उसे भी योजना में शामिल कर लिया था. हनीफ को लगा कि वह आले के साथ मिल कर इस योजना को अंजाम नहीं दे पाएगा, इसलिए उस ने अपने दोस्तों कमर, आमिर हुसैन, शानू और जानेआलम उर्फ टिंकू को भी अपने साथ मिला लिया.

पूरी योजना तैयार कर के सभी 15 जून, 2013 को रुखसाना के घर पहुंचे. रुखसाना ने सभी को घर में ही अलगअलग जगहों पर छिपा दिया. रात में क्या होना है, रुखसाना को पता ही था, इसलिए उस ने जाबिर के रात के खाने में बेहोशी की दवा मिला दी, जिसे खा कर जाबिर सो गया. लेकिन थोड़ी देर बाद उसे टौयलेट आई तो रुखसाना ने उसे ऊपर वाले टौयलेट में जाने को कहा. क्योंकि नीचे वाले टौयलेट में कमर छिप कर बैठा था. जबकि टिंकू कमरे में ही चाकू लिए छिपा था.

जाबिर सीढि़यां चढ़ने लगा, तभी कमर ने उसे पीछे से पकड़ लिया तो टिंकू ने उस पर चाकू से लगातार कई वार कर दिए. जाबिर का मुंह दबा था, इसलिए वह चीख भी नहीं सका और छटपटा कर मर गया. खून बहुत ज्यादा बह रहा था, इसलिए उसे रोकने के लिए लाश को चादर में लपेट कर बालकनी में डाल दिया. इस के बाद वे सभी चले गए. उन के जाने के बाद रुखसाना ने इधरउधर फैले खून को साफ किया और असलम के घर जा कर जाबिर के ऊपर जा कर वापस न आने की बात बताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने रुखसाना को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 4 लोगों को पुलिस पहले ही जेल भेज चुकी थी. पुलिस को अभी नौकर जाबिर, कमर और शानू की तलाश है. कथा लिखे जाने तक इन में से एक भी अभियुक्त पुलिस के हाथ नहीं लगा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित