नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 2

प्रियंका उसी का इंतजार कर रही थी. उस ने आज खुद को विशेष रूप से सजायासंवारा था.

करन ने पहुंचते ही उसे बांहों में समेट लिया, “चाची, आज तो तुम हुस्न की परी लग रही हो, नजरें हटाने को जी नहीं चाहता.”

“थोड़ा सब्र से काम लो. इतनी बेसब्री ठीक नहीं होती.” प्रियंका ने मुसकरा कर कहा, “कम से कम दरवाजा तो भीतर से बंद कर लो, किसी की नजर पड़ गई तो हंगामा हो जाएगा.”

करन ने फौरन घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. जैसे ही उस ने अपनी बाहें फैलाईं, प्रियंका आ कर उन में समा गई. करन के तपते होंठ प्रियंका के नरम अधरों पर जम गए. इस के बाद वासना का ऐसा सैलाब उमड़ा कि एक शादीशुदा औरत की पवित्रता, पति से वफा का वादा, सात फेरों के वक्त पति को दिए वचन, सब बह गए.

अवैध रिश्तों का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. जब भी दोनों को मौका मिलता, एक दूसरे की बाहों में सिमट कर हवस की आग बुझा लेते. चूंकि दोनों का रिश्ता चाचीभतीजे का था, इसलिए किसी को शक नहीं होता था. लेकिन ऐसी बातें समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक छिपतीं नहीं. धीरेधीरे पूरे गांव में करन और प्रियंका के नाजायज रिश्ते की चर्चा होने लगी.

कुछ दिनों बाद सुरेंद्र सूरत से गांव आया तो उस के कानों में पत्नी और करन के नाजायज रिश्तों की भनक पड़ी. सुन कर जैसे उस पर पहाड़ टूट पड़ा. प्रियंका को मालूम नहीं था कि उस के पति को उस के और करन के रिश्ते के बारे में पता चल चुका है.

वह खनकती आवाज में बोली, “क्या बात है, आज तुम्हारा मूड क्यों खराब है?”

“सच जानना चाहती हो तो सुनो, तुम जो कर रही हो, उसे जान कर मेरे पैरों तले से जमीन सरक गई है. तुम्हारे और करन के बारे में लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि मुझ से बिना छिपाए सारा सच बता दो.” सुरेंद्र ने मन की बात कह दी.

प्रियंका पति की बातें सुन कर अवाक रह गई. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि सुरेंद्र को सब कुछ पता चल जाएगा. भय के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया. वह घबराए स्वर में बोली, “सब झूठ है, लोग हम से जलते हैं, इसलिए उन्होंने तुम्हारे कान भर दिए हैं.”

प्रियंका ने समझ लिया था कि त्रियाचरित्र दिखाने में ही उस की भलाई है. वह भावुक स्वर में बोली, “मैं कल भी तुम्हारी थी और आज भी तुम्हारी हंू. कोई दूसरा मेरा बदन छूना तो दूर, मेरी ओर देखने की भी हिम्मत नहीं कर सकता. तुम मुझ पर यकीन करो, तुम ने जो कुछ भी सुना है, वह सिर्फ अफवाह है. वैसे भी जिन के पति परदेश में कमाते हैं, उन की औरतों को लोग शक की निगाहों से देखते और बदनाम करते हैं.”

आखिरकार प्रियंका की बातों से सुरेंद्र को लगा कि वह सच कह रही है. उस ने पत्नी पर यकीन कर लिया. कुछ रातें पत्नी के साथ बिता कर सुरेंद्र सूरत चला गया. उस के जाते ही करन और प्रियंका की रातें फिर रंगीन होने लगीं. अब दिन में करन ने प्रियंका के घर आनाजाना बंद कर दिया, ताकि लोगों को उस पर शक न हो.

प्रियंका मोबाइल फोन से पति से मीठीमीठी बातें करती रहती थी. वह उसे भरोसा दिलाती रहती थी कि वह सिर्फ उसी की है. उस ने अपनी चरित्रहीनता छिपाने के लिए अक्टूबर  के दूसरे सप्ताह में पति को फोन पर बताया कि 30 अक्टूबर को करवाचौथ है, इसलिए वह करवाचौथ के पहले ही छुट्टी ले कर आ जाए. उस ने यह भी कहा कि इस बार वह कम से कम एक महीने की छुट्टी ले कर आए, क्योंकि करवाचौथ के बाद दीपावली का त्यौहार है.

सुरेंद्र ने प्रियंका को आश्वासन दिया कि वह करवाचौथ से 2-4 दिन पहले ही आ जाएगा. चाहे छुट्टी मिले या न मिले. इस के बाद सुरेंद्र घर आने की तैयारी करने लगा. उसे जैसे ही फैक्ट्री से पेमेंट मिला, उस ने पत्नी के लिए अच्छी सी साड़ी व अन्य सामान खरीदा, साथ ही बच्चों के लिए कपड़े भी. फिर वह ट्रेन से गांव के लिए चल पड़ा.

सुरेंद्र ने जैसा कहा था, वैसा ही किया. वह 25 अक्तूबर को अपने गांव कृपालपुर पहुंच गया. जबकि करवाचौथ 30 अक्तूबर को था. सुरेंद्र के आ जाने से करन और प्रियंका को मिलने में दिक्कत होने लगी.

इस दिक्कत को दूर करने के लिए करन मैडिकल स्टोर से नींद की गोलियां खरीद लाया. उस ने गोलियां प्रियंका को दे कर कहा कि वह रात में पति को दूध में मिला कर दे दिया करे, ताकि उस के बेसुध हो कर सो जाने के बाद वे दोनों आसानी से मिल सकें. प्रियंका ने नींद की गोलियां तो संभाल कर रख लीं, लेकिन करवाचौथ के पहले वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी.

करवाचौथ वाले दिन प्रियंका ने अन्य सुहागिनों की तरह दिन भर व्रत रखा. शाम को खूब शृंगार किया और चांद देख कर व्रत पूरा किया. रात को वह पूरी तरह पति को समर्पित रही. सुरेंद्र को लगा कि उस की पत्नी उसी की है. गांव वाले बेकार में उस पर लांछन लगाते हैं.

अगले दिन करन से प्रियंका का सामना हुआ तो उस ने उलाहना दिया “तुम तो अपने पति के साथ करवाचौथ मनाती रहीं और मैं तुम्हारी याद में सारी रात करवट बदलता रहा. मुझे भी तुम्हारे साथ करवाचौथ मनाना है. मैं भी तो तुम्हारे पति से कम नहीं हूं.”

प्रियंका मुसकरा कर बोली, “तुम्हें मौका जरूर मिलेगा. तुम्हारी मर्दानगी की मैं दीवानी हूं. आज रात को जब मैं मिसकाल करूं तो चुपके से आ जाना. दरवाजा खुला रहेगा.”

सुरेंद्र गांव में घूमफिर कर रात 9 बजे घर लौटा. उस ने खाना खाया और चारपाई पर लेट गया. कुछ देर बाद प्रियंका नींद की गोलियां मिला दूध ले कर आई और सुरेंद्र को थमा दिया. सुरेंद्र ने दूध पी लिया और कुछ ही देर बाद खर्राटे भरने लगा. सुरेंद्र गहरी नींद में सो गया तो प्रियंका ने करन को मिसकाल दी. थोड़ी देर बाद करन आ गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे की बाहों में समा गए. सुरेंद्र के आने के बाद जो क्रम टूट गया था, वह फिर शुरू हो गया.

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल – भाग 2

गुरप्रीत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, गोली उसे कनपटी से सटा कर मारी गई थी. जबकि जसवीर का कहना था कि बदमाशों ने मोटरसाइकिल रुकवा दूर से उस पर और गुरप्रीत पर गोली चलाई थी. जसवीर और नबी बख्श के बयानों की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने दोनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

उन्होंने दोनों की काल डिटेल्स की जांच की तो जसवीर की काल डिटेल्स में 2 मोबाइल नंबर ऐसे मिले, जिन पर बहुत ज्यादा फोन किए गए थे. उन्होंने उन नंबरों की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो उसे देख कर उन्हें लगा कि यह सारा खेल जसवीर का ही खेला है. उन्होंने सबइंसपेक्टर गौरव बिश्नोई के नेतृत्व में कुछ पुलिस वालों को जसवीर को गिरफ्तार करने भेज दिया. गौरव बिश्नोई जसवीर के घर पहुंचे तो वह घर में ही मिल गया. वह उसे पकड़ कर थाने ले आए.

अनिल कुमार सिरोही ने जसवीर से पूछताछ शुरू की तो एक बार फिर उस ने सारा आरोप नबी बख्श के ऊपर मढऩे की कोशिश की, लेकिन जब उसे उस के दोस्त पिंकू उर्फ महेंद्र और उस की काल डिटेल्स और मोबाइल फोन की लोकेशन दिखाई गई तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने जो बयान दिया, उस के अनुसार गुरप्रीत की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

बरेली के थाना भोजीपुरा के गांव कैथोला बेनीराम के रहने वाले लक्खा सिंह के बेटे जसवीर सिंह की गिनती इलाके के प्रतिष्ठित और संपन्न किसानों में होती थी. उस की सौ बीघा खेतों में लहलहाती फसल स्वयं उस की संपन्नता की कहानी बयां करती थी. हर साल गन्ने की खेती से उसे लाखों की रकम मिलती थी.

18 साल पहले उस की शादी बिलासपुर की रहने वाली गुरप्रीत कौर से हुई थी. गुरप्रीत बेहद खूबसूरत थी. उस की जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर जसवीर फूला नहीं समा रहा था. दूसरी ओर गुरप्रीत भी जसवीर जैसे बांके छैलछबीले नौजवान को जिंदगी के हमसफर के रूप में पा कर अपने मातापिता की पसंद पर गर्व कर रही थी कि जिन्होंने अपनी चांद जैसी गोरी और फूल जैसी खूबसूरत बेटी के लिए हजारों में नहीं, बल्कि लाखों में एक सुखीसंपन्न दामाद ढूंढ़ा था.

जसवीर से शादी के बाद गुरप्रीत को ऐसा लगा, जैसे उस की सारी मनोकामना पूरी हो गई है. जसवीर के घर किसी चीज की कमी नहीं थी. गुरप्रीत पति से जिस भी चीज की मांग करती, वह उस की हर मांग को पलक झपकते पूरा कर देता था. क्योंकि पत्नी की खुशी में ही वह अपनी खुशी समझता था. उन का दांपत्य हंसीखुशी से गुजर रहा था.

देखतेदेखते कई साल गुजर गए. इस बीच गुरप्रीत 3 बच्चों की मां बन गई. उस के तीनों बेटों के नाम गुरुशांत, रौकी और शैंकी थे. बच्चे जैसेजैसे बड़े हुए, जसवीर ने उन की पढ़ाई की व्यवस्था बरेली शहर के एक नामी स्कूल में कर दी. गुरप्रीत और जसवीर चाहते थे कि उन के तीनों बेटे पढ़लिख कर उन का नाम रौशन करें.

शादी के कुछ सालों बाद जसवीर के रंगढंग में बदलाव आने लगा तो गुरप्रीत को ङ्क्षचता हुई, क्योंकि जसवीर शराब पीने के साथसाथ दूसरी औरतों में रुचि लेने लगा था. उस ने पति को खानदान की इज्जत की दुहाई देते हुए समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर पत्नी की बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह हमेशा शराब और शबाब में डूबा रहने लगा.

गुरप्रीत ने पहले जसवीर को प्यार से समझाबुझा कर रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन जब उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ तो वह उस की बुराइयों का विरोध करते हुए उस से लडऩेझगडऩे लगी. जसवीर अब तक इस सब का आदी हो चुका था, इसलिए गुरप्रीत का रोकनाटोकना उसे अच्छा नहीं लगता था. उस का मानना था कि वह उस की सारी जरूरतें पूरी कर

देता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देता है तो वह बेवजह उस के रास्ते में टांग अड़ाती है. मर्दों के तो 10 तरह के शौक होते हैं, फिर उस के पास कमी ही किस चीज की है. जब उस के पास इतनी दौलत है तो उसे जिंदगी में सारे शौक पूरे कर लेने चाहिए.

शादी के इतने सालों बाद और 3 बच्चे होने से गुरप्रीत में अब पहले वाली खूबसूरती नहीं रह गई थी. जबकि जसवीर कमउम्र की खूबसूरत लड़कियों के साथ मौजमस्ती करना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था. गुरप्रीत को गांव के किसी न किसी से पति की हरकतों के बारे में पता चल ही जाता था. उस समय तो वह पति की करतूतें सुन कर खून का घूंट पी कर रह जाती, लेकिन जब जसवीर घर आता तो वह उस की जम कर खबर लेती.

ऐसा रोजरोज होने से जसवीर का मन गुरप्रीत की ओर से उचट गया, अब वह घर आने से भी कतराने लगा. जबकि गुरप्रीत पति से पहले जैसा प्यार चाहती थी. लेकिन घर से बाहर मौजमस्ती कर के लौटे जसवीर के शरीर में इतनी ताकत नहीं होती थी कि वह पत्नी को संतुष्ट कर सके. वैसे भी अब उस की उम्र 55 साल के करीब थी. इस उम्र में वह जोश कहां होता है, जो जवानी के शुरुआती दिनों में होता है. नतीजतन गुरप्रीत कौर की सारी रात करवटों में बीत जाती.

अगले दिन वह पति की उलटीसीधी हरकतों का विरोध करते हुए उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिश करती. लेकिन पत्नी के लाख विरोध के बावजूद जसवीर पर कोई असर नहीं पड़ रहा था. वह वही करता था, जो उस के मन में आता था.

दौलत के मद में चूर जसवीर अपनी अय्याशियों और शौक के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहता था. एक साल पहले उस की मुलाकात बरेली के थाना सीबीगंज के गांव जौहरपुर के रहने वाले ड्राइवर बालकराम से हुई. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ी तो एक दिन वह बालकराम के साथ उस के घर चला गया. वहां उस की सयानी बेटी शानू उस के सामने आई तो जसवीर की आंख फटी की फटी रह गई.

एक और युग का अंत – भाग 2

उन्होंने अपनी टीम के साथ डा. मुकेश चांडक के घर और डेंटल क्लिनिक से अपहर्त्ता की खोज शुरू की. उन्हें लग रहा था कि युग के अपहरण में निश्चित रूप से ऐसा कोई आदमी शामिल है, जो इस परिवार के बारे में सब कुछ अच्छी तरह से जानतापहचानता है.

इसी बात को ध्यान में रख कर इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक के घर और क्लिनिक में काम करने वाले सभी नौकरों के अलावा सोसायटी के सभी सिक्योरिटी गार्डों से भी लंबी पूछताछ की. इसी पूछताछ में उन्हें एक ऐसा सुराग मिला, जिस ने उन्हें युग के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा दिया.

सोसायटी के एक सिक्योरिटी गार्ड ने उन्हें बताया, ‘‘सर, पौने चार बजे के आसपास सोसायटी के अंदर एक लड़का आया था, जो युग के बारे में पूछ रहा था. वह डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक की शर्ट पहने था, इसीलिए उस पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सका था.’’ इंसपेक्टर सुधीर नंदनवार को इस तरह एक अहम सुराग मिल गया था.

उन्होंने तुरंत डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी लड़कों को बुला कर उस गार्ड के सामने खड़ा किया तो वह युवक उन में नहीं था. इस से साफ हो गया कि युग के अपहरण में उसी युवक का हाथ था, जो उन की क्लिनिक की शर्ट पहन कर आया था.

अब पुलिस को यह पता करना था कि उस युवक को डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक में काम करने वाले लड़के जो शर्ट पहनते हैं, वह उसे कहां से मिली. या तो वह पहले उन की क्लिनिक में काम कर चुका था या फिर क्लिनिक में काम करने वाले किसी लड़के ने उसे वह शर्ट दी थी?

थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक की क्लिनिक पर काम करने वाले सभी नौकरों से पूछताछ की. उन में से उन्हें कोई संदिग्ध नजर नहीं आया. इस का मतलब वह कोई बाहरी आदमी था. निश्चित ही उस की डाक्टर साहब से कोई दुश्मनी रही होगी. पुलिस चक्कर में पड़ गई कि डा. मुकेश चांडक का ऐसा कौन दुश्मन हो सकता है, जिस ने उन के बेटे का अपहरण किया है.

थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने डा. मुकेश चांडक से इस बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले उन्होंने राजेश दवरे नामक युवक को डांटफटकार कर नौकरी से निकाल दिया था. उस का पता डा. मुकेश चांडक के पास था ही, थानाप्रभारी सुधीर नंदनवार ने देर किए बगैर राजेश दवरे के घर पर छापा मार कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर राजेश दवरे से पूछताछ शुरू हुई तो काफी देर तक वह स्वयं को निर्दोष बताता रहा. उस का कहना था कि वह युग का अपहरण क्यों करेगा? लेकिन पुलिस को पूरा विश्वास था कि यह काम उसी ने किया है, इसलिए जब पुलिस ने उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उस ने युग के अपहरण और हत्या की सच्चाई उगल दी.

राजेश दवरे ने डा. मुकेश चांडक द्वारा किए गए अपमान का बदला लेने के लिए अपने दोस्त अरविंद सिंह की मदद से उन के बेटे युग का अपहरण कर के हत्या कर दी थी. हत्या के बाद उस ने डाक्टर से एक मोटी रकम वसूल करने की साजिश भी रची थी. इस के बाद पुलिस ने उस के साथी अरविंद सिंह को भी गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन फिरौती की रकम वसूलने के पहले ही पकड़ा गया था. पुलिस पूछताछ में राजेश दवरे ने युग के अपहरण और हत्या के पीछे जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

22 वर्षीय राजेश दवरे अपने भाईबहनों के साथ नागपुर वांजरी लेक आउट में रहता था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से वह 12वीं तक ही पढ़ सका था. पैसे के की वजह से वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका तो कंप्यूटर सीख लिया और गुजरबसर के लिए छोटीमोटी नौकरी ढूंढ़ने लगा.

राजेश को कहीं से पता चला कि दंत चिकित्सक डा. मुकेश चांडक की डेंटल क्लिनिक में कंप्यूटर औपरेटर की जरूरत है तो वह उन के यहां जा पहुंचा. बातचीत से वह तेजतर्रार और व्यवहारकुशल लगा तो डा. मुकेश चांडक ने उसे अपने यहां रख लिया. क्लिनिक में उस का काम मरीजों से फीस लेना और उन्हें टोकन देना था. डा. साहब के यहां से उसे इतना वेतन मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. अपनी इस नौकरी से वह खुश भी था.

कुछ दिनों तक तो राजेश दवरे ने अपना काम पूरी ईमानदारी के साथ किया. इस बीच उस ने डा. मुकेश चांडक के दिल में अपने लिए जगह भी बना ली. लेकिन जब उस ने देखा कि डाक्टर साहब उस पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करने लगे हैं तो वह पैसों की हेराफेरी करने लगा.

क्लिनिक में मरीजों की भीड़भाड़ और उन से बरसती दौलत देख कर राजेश के मन में बेईमानी करने की बात आने लगी. वह क्लिनिक में आने वाले मरीजों के बिलों में हेराफेरी कर के अधिक पैसे वसूल करने लगा. इस के अलावा वह कुछ लोगों से फीस के अलावा भी कुछ पैसे ले कर उन्हें बिना नंबर के ही एंट्री दे देता. यही नहीं, वह कुछ मरीजों से फीस तो ले लेता था, लेकिन उसे चढ़ाता नहीं था.

इस तरह हेराफेरी कर के राजेश रोजाना 3-4 सौ रुपए अलग से कमाने लगा था. इन पैसों को वह घर में देने के बजाय दोस्तों के साथ बीयर बारों में जा कर अय्याशी करता था. बार डांसरों पर उड़ाता, उन के साथ मौजमस्ती करता. इस ऊपर की कमाई से राजेश और उस के दोस्तों की बल्लेबल्ले थी.

लेकिन यह भी सच है कि बुराई कोई भी हो, वह अधिक दिनों तक छिपी नहीं रहती. यही राजेश दवरे के साथ हुआ. युग देखने में भले छोटा था, लेकिन दिमाग का काफी तेज था. कंप्यूटर पर उस का दिमाग कंप्यूटर की ही तरह चलता था. स्कूल से छुट्टी होने के बाद वह अकसर क्लिनिक आ जाता और कंप्यूटर पर गेम खेलता रहता. गेम खेलने के दौरान ही उस ने राजेश की हेराफेरी पकड़ ली थी और डा. मुकेश चांडक से पूरी बात बता दी थी.

जब राजेश दवरे की हेराफेरी की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने उसे पूरे स्टाफ के सामने काफी डांटा फटकारा. लेकिन नौकरी से नहीं निकाला, सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ दिया. डा. मुकेश चांडक तो इस बात को भूल गए. लेकिन राजेश नहीं भूला, क्योंकि एक तो उस की कमाई बंद हो गई थी, दूसरे पूरे स्टाफ के सामने उस की काफी बेइज्जती हुई थी. इसलिए वह इस बात को भुला नहीं पा रहा था. इस सब की वजह युग था, इसलिए उसे युग से नफरत हो गई थी.

धीरेधीरे नफरत की यह आग इतनी तेज होती गई कि वह युग को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. शायद इसी वजह से एक दिन उस ने किसी बात पर नाराज हो कर युग को एक तमाचा भी मार दिया. जब इस बात की जानकारी डा. मुकेश चांडक को हुई तो उन्होंने पहले तो राजेश को खूब खरीखोटी सुना कर अपमानित किया, उस के बाद नौकरी से निकाल दिया. यह इसी साल अगस्त महीने की बात थी.

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 2

उन्होंने उस लडक़े को प्रेमलता से मिलने की इजाजत तो दे दी, लेकिन महिला सिपाही रेनू सारस्वत को उस के पीछे लगा दिया कि वह किसी भी तरह उन की बातें सुनने की कोशिश करे. रेनू उधर से गुजरी तो लडक़ा कह रहा था, “तुम ने ताजमहल वाले फोटो जला दिए हैं न?”

“हां, जला दिए हैं. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है?”

यह सुन कर रेनू चौंकी. वह तुरंत मुंशी मंसूर अहमद के पास पहुंची और उन से बता दिया कि प्रेमलता से जो लडक़ा मिलने आया है, वही बबलू है. मंसूर अहमद तेजी से बाहर आए. बबलू को शायद शक हो गया था, इसलिए वह तेजी से बाहर की ओर चला जा रहा था. मंसूर अहमद ने संतरी को आवाज देते हुए तेजी से उस की ओर दौड़े. आखिर उन्होंने उसे दबोच ही लिया.

इस के बाद उसे अंदर ला कर पूछताछ की गई तो एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई, जिस में प्रेम की राह में रोड़ा बनने वाले गवेंद्र सिंह उर्फ नीलू की हत्या कर दी गई थी. यह पूरी कहानी इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी का एक गांव है भरथरा, जहां महेशचंद फौजी परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी, 2 बेटे और 4 बेटियां थीं. प्रेमलता उन में सब से बड़ी थी. उस ने बीए करने के बाद बीएड किया और नौकरी की तलाश में लग गई. इसी के साथ महेशचंद उस की शादी के लिए लडक़ा ढूंढऩे लगे.

महेशचंद की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी, बेटी भी पढ़ीलिखी थी. इसलिए वह उस के लिए खातेपीते परिवार का पढ़ा लिखा लडक़ा तलाश रहे थे. इसी तलाश में उन्हें किसी से जिला एटा के थाना बागवाला के गांव लोहाखार के रहने वाले रामसेवक के बेटे गवेंद्र के बारे में पता चला तो वह उस के घर जा पहुंचे.

रामसेवक का खातापीता परिवार था. उस के पास ठीकठाक जमीन थी. गांव में पक्का मकान था, एक मकान मैनपुरी के नगला कीरतपुर में भी था. गवेंद्र ने पौलिटैक्निक करने के साथ बीए भी कर रखा था. वह नौकरी की तलाश में था.  महेशचंद को गवेंद्र प्रेमलता के लिए पसंद आ गया. उसे लगा कि गवेंद्र को जल्दी ही कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. उस के बाद उन की बेटी की जिंदगी संवर जाएगी.  उस ने गवेंद्र को प्रेमलता के लिए पसंद कर लिया और उस के साथ प्रेमलता की शादी कर दी.

प्रेमलता ससुराल आ गई. रामसेवक का छोटा सा परिवार था. पतिपत्नी के अलावा एक बेटा और एक बेटी नीरज थी, जिस की वह शादी कर चुके थे. इसलिए घर में सिर्फ 4 ही लोग बचे थे. प्रेमलता को पूरा विश्वास था कि उस के पति को जल्दी ही कहीं न कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. वैसे घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी, लेकिन पति की कमाई की बात अलग ही होती है.

गवेंद्र नौकरी की कोशिश में लगा था, लेकिन नौकरी मिल नहीं रही थी. इस बीच वह 2 बच्चों उमंग और तमन्ना का पिता बन गया. प्रेमलता खुद भी बीए, बीएड थी. लेकिन बच्चे छोटे थे, दूसरे गवेंद्र नहीं चाहता था कि वह नौकरी करे, इसलिए प्रेमलता ने अपने लिए कोशिश नहीं की.

सन 2012 में गवेंद्र को मैनपुरी के कीरतपुर स्थित सेवाराम जूनियर हाईस्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी मिल गई. नौकरी भले ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की थी, लेकिन सरकारी थी, इसलिए उस ने इसे जौइन कर लिया. लेकिन प्रेमलता को यह नौकरी पसंद नहीं थी, वह शायद किसी अधिकारी की बीवी बनना चाहती थी. चपरासी की बीवी कहलवाना उसे बिलकुल भी पसंद नहीं था. इसलिए उस ने सोचा कि अब उसे ही कुछ करना होगा. वह अपने कैरियर के बारे में सोचने लगी. उस के बच्चे भी बड़े हो गए थे, इसलिए वह खुद कुछ कर के समाज में नाम और पैसा कमाना चाहती थी.

उसी बीच ससुराल जाते समय बस में उस की मुलाकात बबलू से हुई. बबलू भी उसी सीट पर बैठा था. रास्ते में बबलू उस के बच्चों से बातें करतेकरते उस से भी बातें करने लगा. उस ने बताया कि वह आगरा के आईआईएमटी कालेज से जीएनएम (जनरल नॄसग मिडवाइफरी) का कोर्स कर के आगरा के पुष्पांजलि अस्पताल में नौकरी करता है.

जब प्रेमलता ने कहा कि उस ने भी बीए, बीएड किया है, लेकिन लगता नहीं कि उसे नौकरी मिलेगी तो उस ने कहा, “अगर तुम जीएनएम का कोर्स कर लो तो जल्दी ही तुम्हें कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी. रही बात दाखिले की तो वह तुम मुझ पर छोड़ दो.”

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिए. 2-4 दिन ससुराल में रह कर प्रेमलता पति के पास आई तो उस ने गवेंद्र से कहा, “भई अब इस तरह काम नहीं चलेगा. बच्चों के भविष्य के लिए मुझे भी कुछ करना होगा. बीए, बीएड से तो नौकरी मिल नहीं सकती, इसलिए मैं जीएनएम का कोर्स करना चाहती हूं. इस से किसी न किसी अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी.”

गवेंद्र को लगा कि अब बच्चे समझदार हो गए हैं. ऐसे में प्रेमलता कुछ करना चाहती है तो इस में बुराई क्या है. वह प्रेमलता को जीएनएम का कोर्स कराने के लिए राजी हो गया. गवेंद्र के पिता रामसेवक रिटायर हो चुके थे. इसलिए अब वह भी उसी के साथ रहने लगे थे.

प्रेमलता ने बबलू की मदद से आईआईएमटी में अपना दाखिला करा लिया. बबलू उसे सुनहरे भविष्य का सपना दिखाने लगा. प्रेमलता की पढ़ाई शुरू हो गई. बबलू लायर्स कालोनी में कमरा किराए पर ले कर रहता था. प्रेमलता को भी उस ने उसी कालोनी में कमरा दिला दिया. अब दोनों की रोज मुलाकात होने लगी. बबलू प्रेमलता के कमरे पर भी आनेजाने लगा.

लगातार मिलने और कमरे पर आनेजाने से प्रेमलता और बबलू में प्यार ही नहीं हो गया, प्रेमलता ने उस से शारीरिक संबंध बना कर उस ने रिश्तों की मर्यादा भंग कर दी. सपनों को ख्वाहिश बनाया तो तन और मन से पति से ही नहीं, बच्चों से भी दूर हो गई.

बबलू को जब लगा कि प्रेमलता पूरी तरह से उस की हो गई है तो उस ने उस से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की. तब प्रेमलता ने कहा, “बबलू यह सब इतना आसान नहीं है. क्योंकि गवेंद्र मुझे आसानी से छोडऩे वाला नहीं है.”

“तो ठीक है, मैं उसे रास्ते से हटाए देता हूं.” बबलू ने कहा तो प्रेमलता गंभीर हो कर बोली, “यह तो और भी आसान नहीं है.”

प्रेमलता भी अब गवेंद्र से छुटकारा पा कर बाकी की जिंदगी बबलू के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन वह उसे छोड़ कर बबलू से शादी नहीं कर सकती थी. क्योंकि ऐसा करने पर मायके वाले उस का साथ न देते. इसलिए वह बड़ी उलझन में फंसी थी. वह इस बारे में कुछ करती, उस के पहले ही उस की पोल खुल गई.

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 2

लगभग 3 बजे अनुज ने आ कर ड्राइवर ने कहा, ‘‘हमें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. उन के पास गाड़ी भी है. हम लोग उन के साथ घूमेंगे, तुम जाओ.’’

‘‘कल कितने बजे आना है साहब?’’ ड्राइवर ने पूछा तो अनुज बोला, ‘‘अब आने की जरूरत नहीं है. कल सुबह हम मुंबई लौट जाएंगे.’’

ड्राइवर कार ले कर चला गया और उस ने यह बात विनोद अत्री को बता दी. अनुज ने कार ड्राइवर समेत वापस भेजी थी. अत: वे निश्चिंत हो गए.

अनुज और सोनम की होटल में 3 दिन की बुकिंग थी. तीसरे दिन उन्हें लौट कर मुंबई पहुंच जाना था. जब वे उस दिन देर रात तक वापस नहीं लौटे तो विजयकरण को चिंता हुई. उन्होंने अगले दिन अपने दोस्त विनोद अत्री को फोन किया. उन्होंने बताया कि अनुज ने अंजुना बीच से यह कह कर ड्राइवर को कार सहित वापस भेज दिया था कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं और वे उन्हीं के साथ घूमेंगे. उन के पास कार भी है.

अनुज और सोनम न तो वापस लौटे थे और न उन्होंने फोन किया था. विजयकरण को चिंता हुई. चिंता इसलिए स्वाभाविक थी क्योंकि अनुज फोन करने में कतई लापरवाह नहीं था. विजयकरण ने अपने दोस्त विनोद अत्री से कहा कि वे होटल में पता लगा कर बताएं.

विनोद अत्री ने होटल से पता किया तो वहां के कर्मचारियों ने बताया कि अनुज और सोनम सुबह साढ़े 10 बजे के आसपास होटल से साथसाथ निकले थे. शाम को देर रात तक वे वापस नहीं लौटे. रात को लगभग पौने 12 बजे मैडम एक मारुति कार में होटल आईं. तब साहब उन के साथ नहीं थे.

अलबत्ता स्मार्ट सा एक व्यक्ति और खूबसूरत सी एक महिला उन के साथ आए थे. मैडम ने बताया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं. वे लोग होटल छोड़ कर जा रहे हैं और दोस्तों के साथ ही रहेंगे. मैडम ने होटल का बिल चुकाया और अपना सामान ले कर उन्हीं के साथ चली गईं.

विनोद अत्री ने यह बात विजयकरण को बताई तो उन की चिंता और भी बढ़ गई. उन की समझ में नहीं आया कि जब सोनम होटल से सामान लेने आई तो अनुज उस के साथ क्यों नहीं था. दिल्ली के दोस्तों या परिचितों के मिलने की बात मान भी ली जाती तो होटल छोड़ने के लिए अनुज को उस के साथ आना चाहिए था.

2 दिन से अनुज का फोन न करना भी चिंता पैदा कर रहा था. दोनों के मोबाइल भी स्विच्ड औफ थे. अनुज और सोनम को 2 दिन बाद दिल्ली लौटना था. वापसी के लिए राजधानी एक्सप्रेस में उन का रिजर्वेशन था. क्या पता वे दोनों शाम तक लौट आएं, यह सोच कर विजयकरण ने उन का इंतजार किया. लेकिन जब उस दिन शाम तक न वे आए और न उन का फोन आया तो परेशान हो कर उन्होंने अनुज के पिता चंद्रप्रकाश को फोन कर के सारी बात बताई.

बेटे और पुत्रवधू के यूं गायब होने की बात सुन कर चंद्रप्रकाश आश्चर्यचकित रह गए. वह इस बात से पहले ही परेशान थे कि अनुज और सोनम ने 3 दिनों से फोन क्यों नहीं किया. उन के फोन भी बंद थे. नवविवाहित जवान बेटे और बहू का मामला था. उन के पास पैसे और लाखों के जेवर थे. चंद्रप्रकाश अपने कुछ रिश्तेदारों को साथ ले कर अगले दिन सुबह की फ्लाइट से मुंबई जा पहुंचे. वहां से वे विजयकरण के साथ गोवा गए.

गोवा में उन्होंने विनोद अत्री को भी साथ ले लिया. ये सब लोग सब से पहले उस होटल में पहुंचे, जहां अनुज और सोनम ठहरे थे. वहां पर उन्होंने होटल कर्मचारियों से उन दोनों के बारे में पूछताछ की तो कर्मचारियों ने वही बातें बताईं जो वे विनोद अत्री को पहले ही बता चुके थे.

उन के अनुसार, उस दिन सुबह को अनुज और सोनम गए तो साथसाथ थे लेकिन रात को जब पौने 12 बजे सोनम आई तो उस के साथ अनुज की जगह एक महिला और पुरुष थे, जो सफेद रंग की आल्टो कार से आए थे. होटल कर्मचारियों ने सोनम के साथ आने वालों का हुलिया भी बताया. उस हुलिए के किसी आदमी या औरत को चंद्रप्रकाश नहीं जानते थे.

मामला गंभीर लग रहा था. चंद्रप्रकाश और उन के दोस्त उत्तरी गोवा स्थित अंजुना थाने पहुंचे और थानाप्रभारी को पूरी बात बता कर अनुज व सोनम की हत्या करने की नीयत से अपहरण की आशंका व्यक्त करते हुए रिपोर्ट लिखा दी.

अंजुना थाने की पुलिस ने 1 दिन पहले अंजुना बीच की ओर जाने वाले रोड के किनारे एक अज्ञात युवती का शव बरामद किया था. युवती स्विमिंग सूट पहने थी. पुलिस को लगा था कि उस युवती की मृत्यु संभवत: नहाते वक्त डूबने से हुई होगी. इत्तफाक से युवती की लाश का पोस्टमार्टम उसी दिन हुआ था. लाश का अभी संस्कार नहीं किया गया था. पुलिस ने चंद्रप्रकाश और उन के साथियों को अस्पताल ले जा कर लाश दिखाई तो वे पहचान गए. वह लाश सोनम की ही थी.

अंजुना थाने की पुलिस ने अनुज का हुलिया बयान कर के उस की गुमशुदगी का संदेश गोवा के सभी थानों को भेज दिया था. उसी दिन दोपहर बाद सूचना मिली कि वाडा तोड़ और कोलबा बीच की सड़क के किनारे एक युवक का शव मिला था, जिस का हुलिया भेजे गए हुलिए से मिलता था.

अंजुना बीच और कोलबा बीच जहां युवक की लाश मिली, में 65 किलोमीटर की दूरी थी. इस युवक के शरीर पर भी स्विमिंग सूट था. युवक की लाश का पोस्टमार्टम भी उसी दिन हुआ था और लाश सुरक्षित थी. पुलिस के अनुमान के हिसाब से युवक की मृत्यु नहाते समय डूबने से हुई थी. चंद्रप्रकाश और उन के साथ गए लोगों को युवक की लाश दिखाई गई तो वे देखते ही बिलख पड़े. वह उन का बेटा अनुज ही था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी अनुज की मृत्यु का कारण डूबना बताया गया था और पुलिस भी यही मान कर चल रही थी. लेकिन चंद्रप्रकाश इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन का कहना था कि अनुज तैरना जानता था. उस के डूबने का प्रश्न ही नहीं था. यह बात सभी की समझ के बाहर थी कि अनुज और सोनम की लाशें एकदूसरे से 65 किलोमीटर दूर कैसे मिलीं. वे लोग सोनम की मौत को भी डूबने का मामला मानने को तैयार नहीं थे.

दोस्ती, प्यार और अपहरण

खतरनाक मंसूबे में शामिल लड़की – भाग 1

बात उतनी बड़ी नहीं थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि हलके में लिया जाता. उस के पीछे का मकसद और साजिश इतनी खतरनाक थी कि पूरी घटना जानने के बाद मैं दंग रह गया था. इस बात ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि आजकल के बच्चे छोटीछोटी बातों को ले कर इतने बड़ेबड़े मंसूबे कैसे बना लेते हैं?

उस दिन मैं थोड़ी देर से थाने पहुंचा था. इस की वजह यह थी कि मेरे बेटे के स्कूल में सालाना समारोह था, इसलिए मुझे वहां जाना पड़ा था.  थाने पहुंच कर मैं ने ड्यूटी अफसर परमजीत सिंह को बुला कर पूछा, “कोई खास बात तो नहीं है?”

“जी कोई खास बात नहीं, बस एक…”

परमजीत बात पूरी कर पाता, मुख्य मुंशी गुरजीत सिंह कुछ फाइलें ले कर हस्ताक्षर कराने आ गया. मैं ने फाइलों पर दस्तखत करते हुए परमजीत सिंह को हाथ से बैठने का इशारा किया. वह मेरे सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गए. सभी फाइलोंपर दस्तखत कर के मैं ने मुंशी से 2 चाय भिजवाने को कहा.

मुंशी चला गया तो मैं परमजीत से मुखातिब हुआ, “हां, तो तुम क्या कह रहे थे?”

“सर, लगभग 12 बजे टोल नाके पर तैनात हमारे थाने के पुलिसकर्मियों के पास एक लड़की भागती हांफती आई. उस की हालत बता रही थी कि किसी बात को ले कर वह काफी परेशान थी. पुलिसकर्मियों ने आगे बढ़ कर उस की उस हालत की वजह पूछी तो उस ने हांफते हुए कहा कि वह सतलुज नदी में कोई पूजा सामग्री फेंकने आई थी. सामग्री फेंक कर जैसे ही वह लौटी 2 लडक़ों ने उसे पकड़ लिया और जबरदस्ती खींच कर खेतों में ले गए, जहां उन्होंने उस के साथ जबरदस्ती की. लडक़ों ने उस का मुंह दबा रखा था, जिस से वह चीख भी नहीं सकी.”

परमजीत इतनी बात कर चुप हुआ तो पूरी बात जानने के लिए मैं ने कहा, “आगे क्या हुआ?”

“लड़की ने अपना नाम जीतो बताया था. उस की बात सुन कर हवलदार चरण सिंह और इंद्र सिंह ने फोन द्वारा मुझे घटना की सूचना दे कर खुद जीतो द्वारा बताए गए खेत की ओर चल पड़े. उन के खेतों में पहुंचने तक मैं भी मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया.”

जीतो का कहना था कि वे लड़के अभी यहीं कहीं छिपे होंगे, इसलिए हम सभी लडक़ों की तलाश करने लगे. थोड़ी तलाश की तो 2 लड़के सतलुज किनारे एक झाड़ी के पास बैठे मिल गए. जीतो ने उन की शिनाख्त करते हुए कहा कि इन दोनों ने उस के साथ दुष्कर्म नहीं किया, इन्होंने केवल छेड़छाड़ की थी. दुष्कर्म करने वाला कोई और लडक़ा था.

“तो क्या 3 लड़के थे?” मैं ने पूछा तो परमजीत ने कहा, “जी सर, दुष्कर्म करने वाला तीसरा लडक़ा भाग गया था. सर, मैं जीतो और उन दोनों लडक़ों को थाने ले आया हूं. अब आप बताइए कि आगे क्या किया जाए?”

“अरे भई करोगे क्या, लड़की का मैडिकल कराओ, बयान लो और उस फरार लड़के के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे पकड़ो और क्या करोगे. वैसे ये सब रहने वाले कहां के है. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है, उस का क्या नाम है, वह कहां रहता है?” मैं ने पूछा.

मेरी इस बात पर परमजीत कुछ परेशान सा हो गया. मैं ने आंखों से आगे बताने का इशारा किया तो उस ने कहा, “सर, इन दोनों लडक़ों के नाम तो नरेश और कुलदीप हैं. दुष्कर्म कर के जो लडक़ा भागा है. उस का नाम राज है और वह आप के दोस्त पत्रकार अमन सिंह का बेटा है.”

“क्या… अमन का बेटा राज?” मैं चौंका. पत्रकार अमन सिंह सचमुच मेरा अच्छा दोस्त था. वह निहायत ही शरीफ और शांतिप्रिय आदमी था. झूठ से उसे सख्त नफरत थी. उस ने कभी झूठी खबरें नहीं लिखी थीं. अपने काम से काम रखने वाला अमन अपनी नेकनीयती की वजह से हमेशा आर्थिक तंगी से जूझता रहता था. उस के सिखाए दर्जनों लड़के दुनियादारी के मजे कर रहे थे, लेकिन वह वैसा नहीं बन पाया था.

मैं ने दिमाग पर जोर डाला तो मुझे याद आया कि अमन के बेटे का नाम राज ही है, क्योंकि 2-3 महीने पहले अमन किसी मामले में मुझ से सलाह लेने आया था, तब उस ने बेटे का नाम ले कर कोई चर्चा की थी. तब मुझे पता चला था कि उस के बेटे का नाम राज है.

मैं हैरान था कि अमन जैसे शरीफ आदमी का बेटा इस तरह का काम कैसे कर सकता है? लेकिन आज के समय में किसी के बारे में कोई राय रखना उचित नहीं है. जरूरी नहीं कि बाप शरीफ हो तो बेटा भी शरीफ ही हो.

बहरहाल, अमन को उस दिन मेरे पास आना था, क्योंकि उसे कुछ रुपयों की जरूरत थी. 2 दिन पहले उस ने फोन कर के मुझ से कहा था तो मैं ने उसे उस दिन आ कर रुपए ले जाने के लिए कहा था. वह किसी भी समय आ सकता था. मैं सोचने लगा कि अमन जब अपने बेटे की इस करतूत के बारे में सुनेगा तो उस पर क्या गुजरेगी?

“उन दोनों लडक़ों को ले आओ.” मैं ने कहा.

मेरे कहने पर परमजीत सिंह ने नरेश और कुलदीप को ला कर मेरे सामने खड़ा कर दिया. दोनों देखने में ही आवारा लग रहे थे. उन्हें देख कर मैं सोच भी नहीं सकता था कि ऐसे घटिया लडक़ों से राज की दोस्ती हो सकती है. फिर भी मैं ने पूछा,

“सचसच बताओ, क्या बात है?”

नरेश थोड़ा तेज दिखाई दे रहा था. उसी ने कहा, “सर, हम ने उसे मना किया था. कहा कि छेड़छाड़ की बात और है, लेकिन वह नहीं माना. लड़की को पकड़ खेत में ले गया और लडक़ी की इज्जत खराब कर दी.”

“वह सब तो ठीक है, लेकिन उस लड़के का नाम क्या है, कौन है वह?”

“सर, उस का नाम राज है. उस के पापा पत्रकार हैं. उन का नाम अमन सिंह है. राज एक फाइनैंस कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर है.”

इस के बाद उस ने वही सब मुझे भी बताया, जो उस ने परमजीत को बताया था. नरेश के साथी कुलदीप ने भी वही सब बताया था, जो नरेश ने बताया था. मैं उन से पूछताछ कर ही रहा था कि अमन आ पहुंचा. मुझ से हाथ मिला कर वह मेरे सामने कुरसी पर बैठ गया तो मैं ने शिकायती लहजे में कहा, “तुम्हारे बेटे ने जो किया है, मुझे उस से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. तुम ने यही सब सिखाया है उसे?”

“मेरा बेटा… आप मेरे किस बेटे की बात कर रहे हैं?”

“राज की और किस की..?”

“क्यों, क्या किया राज ने?” अमन ने हैरानी से पूछा.

“एक लडक़ी के साथ जबरदस्ती की है.”

“जबरदस्ती… क्या मतलब?”

“भई एक लड़की के साथ दुष्कर्म किया है राज ने.” मैं ने आवाज पर जोर दे कर कहा.

“यह आप क्या कह रहे हैं? कहां किस के साथ दुष्कर्म किया है? राज ऐसा कतई नहीं कर सकता.” अमन ने जिद सी करते हुए कहा.

“ऐसा नहीं कर सकता तो क्या मैं झूठ बोल रहा हूं. पूछो राज के इन साथियों से.” मैं ने नरेश और कुलदीप की ओर इशारा कर के कहा, “अपने इन्हीं साथियों के साथ उस ने घटना को अंजाम दिया है. दोनों उसी के दोस्त हैं.”

“आप यह क्या कह रहे हैं. ये आवारा लड़के राज के दोस्त कतई नहीं हो सकते. राज के सिर्फ 3 दोस्त हैं, जिन्हें मैं अच्छी तरह से जानता हूं. तुम इन सडक़छाप लडक़ों को राज का दोस्त कह दोगे तो क्या मैं मान लूंगा.”

दुष्कर्म के मामले में राज का नाम आने से अमन काफी नाराज था. उस ने खीझते हुए कहा, “अच्छा, अब बात समझ में आई, मैं ने आप से कुछ रुपए मांगे थे, नहीं देने का मन था तो मना कर देते. मेरे बेटे पर इस तरह का झूठा आरोप लगाने की क्या जरूरत थी? सच ही कहा गया है, पुलिस वाले की न दोस्ती अच्छी होती है और न दुश्मनी.”

“अमन ये तुम क्या बेकार की बातें कर रहे हो? मैं कुछ भी नहीं कह रहा हूं. जो कुछ भी कह रहे हैं, वह ये लड़के और वह लड़की कह रही है, जिस के साथ राज ने दुष्कर्म किया है. रही बात पैसों की तो उस के लिए मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था. तुम्हें रुपए देने के लिए ही तो मैं ने बुलाया था.”

“मुझे अब आप की कोई मदद नहीं चाहिए. आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए.”

मैं खामोश हो गया. अमन सिर झुकाए किसी सोच में डूबा बैठा रहा. कुछ देर बाद मैं ने अमन को प्यार से समझाया. लड़की को बुला कर पूरी बात उस के सामने कहलवाई. नरेश और कुलदीप से भी बात कराई. तब जा कर बात उस की समझ में आई.

वह कुछ देर शांत बैठा रहा. उस के बाद अचानक जेब से मोबाइल फोन निकाला और किसी से बात करने लगा. उस की बातचीत से समझ में आया कि उस ने राज को फोन किया था और अपने 2-4 दोस्तों के साथ आने को कहा था.

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि अमन करना क्या चाहता है. मैं ने अमन के लिए चाय मंगाई. चाय पी कर हम सभी चुपचाप बैठे रहे. वहां की खामोशी बता रही थी कि कोई किसी से बात नहीं करना चाहता.

लगभग आधे घंटे बाद अमन के फोन की घंटी बजी. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, “आ जाओ.”

इस के बाद अमन उस से मुखातिब हुआ, “इन तीनों से कहो कि अभी जो लडक़े आएंगे, उन में पहचान कर बताएं कि राज कौन है, जिस ने इस लड़की के साथ जबरदस्ती की है.”

अमन के इतना कहतेकहते 6 लडक़े मेरे औफिस में आ कर खड़े हो गए. सभी लड़के नरेश और कुलदीप से एकदम अलग पढ़ेलिखे और अच्छे घरों के लग रहे थे. मैं ने सब से पहले जीतो से कहा, “बताओ, इन लडक़ों में से कौन राज है, जिस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की है?”

मेरी बात सुन कर वह बगलें झांकने लगी. मैं ने डांटा तो हड़बड़ा कर उस ने एक लड़के की ओर इशारा कर दिया. मेरे कहने पर परमीत सिंह ने उस लडक़े को खड़ा कर दिया. इस के बाद मैं ने नरेश और कुलदीप से कहा कि वे बताएं कि उन में इन का दोस्त राज कौन है?”

जीतो की तरह वे भी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. मैं ने डांटते हुए कहा, “अब पहचान कर बताओ न तुम्हारा दोस्त राज कौन है?”

दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे, “साहब, हम नहीं जानते कि इन में से राज कौन है? हमें तो राज का नाम लेने के लिए रुपए दिए गए थे.”

“जी साहब,” नरेश और कुलदीप के सच उगलते ही जीतो ने भी बीच में सच उगल दिया, “ये सच कह रहे हैं साहब. राज को दुष्कर्म के मामले में फंसाने के लिए हम सभी को रुपए दिए गए थे. मैं न तो राज को जानती हूं और न मैं ने कभी उसे देखा है.”

इस के बाद उन तीनों ने जो बताया, उसे सुन कर मैं हैरान रह गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आज की युवा पीढ़ी को यह क्या हो गया है, जो छोटीछोटी बातों पर इतने खतरनाक मंसूबे बना लेती हैं. इस के बाद जीतो, नरेश और कुलदीप से की गई पूछताछ में इस फरजी दुष्कर्म की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी.

राज जिस फाइनैंस कंपनी में काम करता था, उसी में उस के साथ ही किशोरीलाल भी काम करता था. उस का काम लोन पास करवाना था. वह सीधासादा पारिवारिक आदमी था. इसलिए राज उस की बहुत इज्जत करता था. इस के अलावा एक वजह यह भी थी कि वह उस के पिता की उम्र का था.

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर? – भाग 1

बाहरी दिल्ली के कराला गांव के नजदीक जैन नगर में काफी बड़ी झुग्गी बस्ती है. यह इलाका बेगमपुर थाने के अंतर्गत आता है. इसी बस्ती के रहने वाले संतोष कुमार की 6 वर्षीया बेटी निशा रोजाना की तरह 14 जुलाई को भी नित्य क्रिया के लिए सूखी नहर की तरफ गई थी. सुबह 6 बजे घर से निकली निशा जब आधापौने घंटे बाद भी घर नहीं लौटी तो मां पुष्पा देवी चिंतित हुई.

चिंता की बात इसलिए थी क्योंकि निशा को तैयार हो कर 7 बजे स्कूल के लिए निकलना था. वह नजदीक के ही सरकारी स्कूल में पढ़ती थी. कुछ देर और इंतजार करने के बाद भी वह नहीं आई तो पुष्पा बेटी को देखने के लिए सूखी नहर की तरफ चली गई.

पुष्पा ने सूखी नहर की तरफ जा कर बेटी को ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली. उधर आनेजाने वाली महिलाओं और बच्चों से भी उस ने बेटी के बारे में पता किया, पर कोई भी उस की बच्ची के बारे में नहीं बता सका. तब परेशान हो कर वह घर लौट आई.

उस ने यह बात पति संतोष को बताई तो वह भी परेशान हो गया. अब तक बेटी के स्कूल जाने का समय हो गया था. मियांबीवी एक बार फिर बेटी को ढूंढने निकल गए. उन के साथ पड़ोसी भी उन की मदद के लिए गए थे. एक, डेढ़ घंटे तक वह बेटी को इधरउधर ढूंढते रहे, लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

बस्ती के लोग इस बात से हैरान थे कि आखिर घर और सूखी नहर के बीच से बच्ची कहां गायब हो गई? संतोष की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह बच्ची को कहां ढूंढे? आखिर वह पड़ोसियों को ले कर थाना बेगमपुर पहुंचा. थानाप्रभारी रमेश सिंह उस दिन छुट्टी पर थे. थाने का चार्ज अतिरिक्त थानाप्रभारी जगमंदर दहिया संभाले हुए थे. संतोष कुमार ने उन्हें बेटी के गुम होने की बात बताई.

बच्ची की उम्र 6 साल थी, इसलिए पुलिस यह भी नहीं कह सकती थी कि वह अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई होगी. दूसरे बच्ची के पिता की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि किसी ने फिरौती के लिए उस का अपहरण कर लिया है. संतोष ने बताया था कि उस की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह नहीं थी. इन सब बातों को देखते हुए पुलिस को यही लग रहा था कि या तो बच्ची खेलतेखेलते कहीं चली गई है या फिर उसे बच्चा चुराने वाला कोई गैंग उठा ले गया है.

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में तमाम बच्चे रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे थे. इसी बात को ध्यान में रख कर उन्होंने उसी समय निशा के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी और इस की जांच हैडकांस्टेबल शमशेर सिंह को सौंप दी. बच्ची के अपहरण का मुकदमा दर्ज हो जाने के बाद दिल्ली के समस्त थानों में उस का हुलिया बता कर वायरलैस से सूचना दे दी गई.

इंसपेक्टर जगमंदर दहिया कुछ पुलिसकर्मियों के साथ उस जगह पर पहुंच गए, जहां से बच्ची लापता हुई थी. उन्होंने संतोष के घर से ले कर सूखी नहर तक का निरीक्षण किया. उसी दौरान उन्होंने कुछ लोगों से बात भी की, लेकिन उन्हें ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस के सहारे लापता बच्ची का पता लगाया जा सकता.

निर्वस्त्र हालत में मिली बच्ची की लाश

वह उधर की झाडिय़ों में भी यह सोच कर खोजबीन करने लगे कि कहीं किसी बहशी दरिंदे ने उसे अपना शिकार न बना लिया हो. क्योंकि आए दिन बच्चों के साथ कुकर्म करने जैसे मामले सामने आते रहते थे. झाडिय़ों में भी उन्हें कुछ नहीं मिला.

संतोष के घर से करीब 50 मीटर की दूरी पर एक निर्माणाधीन इमारत दिखाई दे रही थी. इंसपेक्टर जगमंदर दहिया ने अपने आसपास खड़े बस्ती वालों से उस इमारत के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि यह बिल्डिंग किसी जैन की है, लेकिन पिछले काफी दिनों से इस के निर्माण का काम रुका हुआ है.

जिज्ञासावश वह उस बिल्डिंग की तरफ चल दिए. जैन नगर की गली नंबर 6 में निर्माणाधीन उस 3 मंजिला बिल्डिंग में जब वह घुसे तो एक कमरे में उन्हें एक बच्ची निर्वस्त्र हालत में पड़ी मिली. वह मृत अवस्था में थी. उन के साथ मौजूद संतोष उस बच्ची को देख कर चीख पड़ा. वह उसी की बेटी निशा थी. बच्ची का निचला हिस्सा खून से सना हुआ था. उस के कपड़े पास पड़े हुए थे.

निशा की हालत देख कर इंसपेक्टर दहिया समझ गए कि यह किसी दरिंदे की शिकार बनी है. निशा की हत्या की खबर सुन कर बस्ती के सैकड़ों लोग थोड़ी देर में वहां जमा हो गए. इंसपेक्टर दहिया ने इस की सूचना अपने आला अधिकारियों के अलावा क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम व फोरैंसिक टीम को भी दे दी.

कुछ देर बाद बाहरी दिल्ली के डीसीपी विक्रमजीत, डीसीपी-2 श्वेता चौहान, एसीपी ऋषिदेव (कराला) भी जैन नगर पहुंच गए. डीसीपी ने मौके पर क्राइम ब्रांच को भी बुलवा लिया. क्राइम इन्वैस्टीगेशन और फोरैंसिक टीम भी मौके से सबूत जुटाने लगीं.

इन टीमों का काम निपटने के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. उसी बिल्डिंग में दूसरी मंजिल पर एक ड्राइविंग लाइसेंस और ट्रांसपोर्ट से संबंधित कुछ कागज मिले. पुलिस ने वह सब अपने कब्जे में ले लिए.

लाश का मुआयना करने पर यही लग रहा था कि किसी ने उस बच्ची के साथ गलत काम कर के उस का गला घोंट दिया है. निशा की हत्या पर बस्ती के लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था. इस से पहले कि वे कोई आक्रामक कदम उठाते, पुलिस ने उन्हें समझाबुझा कर शांत कर दिया. मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सुल्तानपुरी के संजय गांधी मैमोरियल अस्पताल भेज दिया.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 1

चित्रकूट के कर्बी के रहने वाले पंडित चंद्रलेख तिवारी के 3 बेटे और एक बेटी थी. बड़ा बेटा रामअवतार एलआईसी  का एजेंट था तो उस से छोटा शिवप्रसाद दूध का व्यवसाय करता था. सब से छोटा बुद्धिविलास शास्त्री की पढ़ाई कर के पिता की तरह पूजापाठ कराने लगा था. लेकिन वहां इस काम से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी, जितनी वह चाहता था. इसलिए वह कहीं बाहर जा कर यह काम करना चाहता था.

बुद्धिविलास थोड़ीबहुत कमाई करने लगा तो बड़े बेटों की तरह पंडित चंद्रलेख तिवारी ने उस की भी शादी चित्रकूट में पूजापाठ कराने वाले मंजूनाथ भारद्वाज की बेटी गौरा से कर दी. उन के 10 बच्चों में 7 बेटे और 3 बेटियां थीं. परिवार बड़ा होने की वजह से उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. इसलिए गौरा की शादी खातेपीते परिवार में हो जाने से मंजूनाथ काफी खुश थे.

गौरा खूबसूरत भी थी और सलीके वाली भी. इसलिए जहां उसे पा कर बुद्धिविलास खुश था, वहीं खातापीता परिवार और प्यार करने वाला पति पा कर गौरा भी खुश थी. दोनों का दांपत्य हंसीखुशी से बीतने लगा. उन के प्यार का परिणाम भी जल्दी ही आ गया. दोनों एक बच्ची के मांबाप बन गए, जिस का नाम उन्होंने सुमिक्षा रखा था.

सुमिक्षा पूरी तरह मां पर गई थी. लेकिन उसे मां की गोद का सुख नहीं मिल सका. वह 5 महीने की थी, तभी दिल का दौरा पड़ने से गौरा की मौत हो गई थी. पत्नी से ही घर होता है. पत्नी ही नहीं रही तो बुद्धिविलास का कैसा घर. उस का घर तो उजड़ा ही, एक परेशानी और खड़ी हो गई कि 5 महीने की बेटी को पालेपोसे कैसे.

पत्नी की मौत से परेशान और दुखी बुद्धिविलास बेटी को ले कर काफी परेशान था.  लेकिन उस की यह परेशानी दूर कर दी उस की बहन ऊषा ने. उस की शादी पास के ही गांव छीबो में गिरिजा पांडेय के साथ हुई थी. वह अध्यापक थे. उन की आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ थी. इसलिए बुद्धिविलास की बेटी सुमिक्षा को ऊषा अपने साथ ले गई.

सुमिक्षा की व्यवस्था हो गई तो बुद्धिविलास अपनी जिंदगी को ढर्रे पर लाने की कोशिश करने लगा. पत्नी की मौत की वजह से घर में उस का मन नहीं लग रहा था, इसलिए वह कहीं बाहर जा कर काम करना चाहता था. इस के लिए उस ने तमाम लोगों से कह भी रखा था. संयोग से उसी बीच उस के किसी परिचित ने बताया कि आगरा के थाना सिकंदरा के मोहल्ला पश्चिमपुरी में काली माता का एक मंदिर बन रहा है. उस मंदिर में एक पुजारी की जरूरत है.

बुद्धिविलास को काम की जरूरत थी ही, वह वहां पहुंच गया. वह पढ़ालिखा था ही, ट्रस्ट वालों ने उसे मंदिर की सेवादारी दे दी. मंदिर के आसपास रहने वाले संपन्न लोग थे, इसलिए मंदिर में चढ़ावा ठीकठाक चढ़ता था. इस के अलावा बुद्धिविलास पूजापाठ करा कर भी अच्छीखासी कमाई कर लेता था. पैसे आने लगे तो वह एक बार फिर गृहस्थी बसाने के बारे में सोचने लगा. रहने के लिए उसे मंदिर परिसर में ही 2 कमरों का मकान मिला था, इसलिए उसे रहने की भी कोई चिंता नहीं थी.

घर वाले तो उस के लिए पहले से ही चिंतित थे. इसलिए बुद्धिविलास के हामी भरते ही उस के लिए लड़की की तलाश शुरू हो गई. बुद्धिविलास के मंझले भाई शिवप्रसाद की पत्नी के एक रिश्तेदार रमेश मिश्रा अपनी बेटी अर्चना के लिए लड़का ढूंढ़ रहे थे. उन की संतानों में 7 बेटियां और एक बेटा था.

अर्चना उन में पांचवें नंबर पर थी. वह हाईस्कूल तक पढ़ी थी. बुद्धिविलास और अर्चना की उम्र में थोड़ा अंतर था, लेकिन रमेश मिश्रा की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वह अपनी बेटी की शादी बुद्धिविलास से करने को तैयार थे.

लेकिन जब अर्चना को पता चला कि जिस लड़के से उस की शादी हो रही है, उस की पहली पत्नी मर चुकी है और उसे एक बेटी है तो उस ने बुद्धिविलास से शादी करने से मना कर दिया. लेकिन जब रमेश मिश्रा ने अपनी मजबूरी जाहिर की तो वह किसी तरह शादी के लिए राजी हो गई. इस के बाद बुद्धिविलास की शादी अर्चना के साथ हो गई. यह सन 2012 की बात थी.

शादी के बाद बुद्धिविलास अर्चना को आगरा ले आया. पत्नी आ गई तो वह पहली पत्नी से पैदा बेटी सुमिक्षा को साथ रखने के बारे में सोचने लगा. वह चाहता था कि अब उस की बेटी उस के साथ रहे. सुमिक्षा अब तक 4 साल की हो चुकी थी. वह अपनी बहन के यहां गया और उस ने बहन से सुमिक्षा को साथ ले जाने के लिए कहा तो बहन ऊषा ने कहा, ‘‘जब यह 5 महीने की थी, तब से मैं इसे पाल रही हूं. अब यह मुझे अपनी बेटी की तरह लगती है. इसलिए अब इसे मेरे पास ही रहने दो. इस के चले जाने से मेरा भी मन नहीं लगेगा.’’

‘‘बहन तब इसे कोई पालने वाला नहीं था, इसलिए मैं ने इसे तुम्हें सौंप दिया था. अब इस की मां आ गई है. वह इसे अच्छी तरह पाल लेगी, इसलिए मैं इसे साथ ले जाना चाहता हूं.’’ बुद्धिविलास ने कहा.

‘‘भइया, मैं इस की बूआ हूं और यह मेरा खून है. सौतेली मां सौतेली ही होती है. वह इसे कभी वह प्यार नहीं दे पाएगी, जो मुझ से मिल रहा है. इसलिए इसे मेरे पास ही पड़ी रहने दो.’’

ऊषा ने तमाम तर्कवितर्क किए, पर बुद्धिविलास नहीं माना. वह कर भी क्या सकती थी. पराई बेटी को जबरदस्ती तो रख नहीं सकती थी, मन मार कर सुमिक्षा को उस के हवाले कर दिया.

बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले आया. चूंकि उस ने अर्चना को बताया नहीं था कि वह सुमिक्षा को लेने जा रहा है, इसलिए जब वह उसे ले कर घर पहुंचा तो अर्चना ने हैरानी से पूछा, ‘‘यह किसे ले आए?’’

‘‘किसे नहीं, यह हमारी बेटी सुमिक्षा है. अब यह हमारे साथ ही रहेगी.’’ बुद्धिविलास ने कहा.

‘‘क्यों, यह जहां रह रही थी, वहां कोई परेशानी थी क्या, जो इसे यहां ले आए?’’ अर्चना ने मुंह फुला कर पूछा.

‘‘यह वहां इसलिए रह रही थी, क्योंकि यहां इस की कोई देखभाल करने वाला नहीं था. अब तुम आ गई हो, इसलिए इसे यहां ले आया.’’

‘‘तो क्या तुम ने मुझ से शादी इस की देखभाल करने के लिए की थी?’’

‘‘भई, पत्नी बच्चों की देखभाल नहीं करेगी तो और कौन करेगा? तुम मेरी पत्नी हो तो तुम्हें ही मेरे बच्चों की देखभाल करनी होगी.’’ बुद्धिविलास ने कहा.

मांबाप में लड़ाई होते देख सुमिक्षा डर गई. उतनी दूर से सफर कर के आई सुमिक्षा को नाश्तापानी कराने के बजाय अर्चना नाराज हो कर दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत – भाग 1

जिला फर्रूखाबाद के थाना  मउ दरवाजा क्षेत्र में एक गांव है हथियापुर. इस के पास  कायमगंज रोड पर एक भट्ठा है, जिस का नाम है बजरंग भट्ठा. सुनसान जगह पर खेतों के बीच होने की वजह से भट्ठे के पास जरूरतमंद लोग ही आतेजाते हैं. भट्टे का मुनीम अरविंद कुमार सुबह को भट्ठे पर जाता है और कामकाज के बाद शाम को घर लौट आता है.

21 जुलाई 2014 को सुबह साढ़े 7 बजे जब अरविंद कुमार भट्ठे पर जा रहा था तो उस ने भट्ठे के पास के एक खेत में सिर कटी एक लाश पड़ी देखी. मृतक के शरीर पर केवल कच्छा बनियान था. अलबत्ता पास ही कुछ कपड़े जरूर पड़े थे. लाश देख कर अरविंद डर गया. उस ने उसी समय अपने मोबाइल से फोन कर के उस लाश से संबंधित सूचना थाना मउ दरवाजा को दे दी.

उस दिन सोमवार था, गंगा स्नान का दिन. थाना मउ दरवाजा के थानाप्रभारी राघवन सिंह पुलिस टीम के साथ घटियाघाट पर ड्यूटी के लिए गए हुए थे. थाने से उन के सीयूजी नंबर पर बजरंग भट्ठे के पास सिर कटी लाश पड़ी होने की सूचना दी गई.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी राघवन सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. सिर कटी लाश लगभग 30 वर्षीय व्यक्ति की थी. उस के शरीर पर केवल कच्छा बनियान था. जबकि लाश के पास ही कुछ कपड़े पड़े हुए थे. पुलिस ने उन कपड़ों को देखा, तो लगा उन में एक जोड़ी कपड़े मृतक के रहे होंगे. बाकी कपड़ों को देख कर लग रहा था जैसे उन्हें किसी बैग वगैरह से निकाल कर वहां डाले गए हों.

राघवन सिंह ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने वे कपड़े मृतक के बैग से निकाल कर वहां डाल दिए होंगे और मय बैग के उस में रखा कीमती सामान अपने साथ ले गए होंगे. पुलिस ने उन कपड़ों की तलाशी ली तो एक एटीएम कार्ड के अलावा कुछ नहीं मिला. एटीएम कार्ड आईसीआईसीआई बैंक का था और उस पर धारक का नाम गौहर अली लिखा था. पुलिस ने आसपास के खेतों में मृतक का कटा सिर खोजने की काफी कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला.

प्राथमिक जांच के बाद पुलिस ने एटीएम कार्ड और कपड़े कब्जे में ले लिए और लाश का पंचनामा कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए फर्रूखाबाद मोर्चरी भिजवा दिया.

एटीएम कार्ड से मृतक का पता चल सकता था, इसलिए थाने लौट कर राघवन सिंह ने सब से पहले एटीएम कार्ड की जांच कराई. पता चला कि वह कार्ड जयपुर के मोहल्ला बदनापुरा निवासी गौहर अली के नाम पर था. बदनापुरा जयपुर के थाना गलता गेट क्षेत्र में आता था. राघवन सिंह ने थाना गलता गेट की पुलिस  से रिक्वेस्ट कर के गौहर अली के परिवार से संपर्क करने को कहा.

स्थानीय पुलिस ने मोहल्ला बदनापुरा जा कर संपर्क किया तो गौहर अली के पिता शौकत अली घर पर ही मिल गए. उन्हें फर्रूखाबाद की घटना के बारे में बता दिया गया. उन का बेटा गौहर अली फर्रूखाबाद गया हुआ था. हत्या की बात सुन कर पूरा परिवार सन्न रह गया. शौकत अली दूसरे बेटे अनवर अली और कुछ लोगों के साथ अगले दिन यानी 22 जुलाई को फर्रूखाबाद पहुंच गए.

शौकत अली ने लाश के कपड़े और मृतक के शरीर पर तिल व अन्य निशानों को देख कर उस की शिनाख्त अपने बेटे गौहर अली के रूप में कर दी. पूरा माजरा समझने के बाद उन्होंने थाने में एक लिखित तहरीर दी, जिस में उन्होंने पैसों के लेनदेन के विवाद की वजह से बेटे की हत्या का आरोप उस के दोस्त जावेद पर लगाया. जावेद फर्रूखाबाद के ही मोहल्ला खटकपुरा इज्जत खां में रहता था.

तहरीर के मुताबिक जावेद ने ही गौहर को फोन कर के फर्रूखाबाद बुलाया था. वह 19 जुलाई की सुबह पहुंचा था. उस दिन रात को वह जावेद के घर रुका.

अगले दिन 20 जुलाई को वह जावेद के साथ थाना फर्रूखाबाद की असगर रोड पर रहने वाले अपने मामा आफाक उर्फ हद्दू के यहां भी गया. उस के बाद ही रात में किसी वक्त जावेद ने किन्हीं लोगों के साथ मिल कर गौहर की हत्या की होगी.

थाना प्रभारी राघवन सिंह ने शौकत अली की लिखित तहरीर के आधार पर जावेद के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 व 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.पोस्टमार्टम हो चुका था. लिखापढ़ी कर के पुलिस ने गौहर की लाश उस के पिता शौकत को सुपुर्द कर दी. शौकत अली बेटे की लाश ले कर अपने पैतृक गांव राजापुर जनपद कन्नौज चले गए.

जावेद को अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज होने की बात पता चली तो वह अपनी सफाई देने खुद मऊ दरवाजा थाने जा पहुंचा. थानाप्रभारी राघवन सिंह ने जावेद को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 20 जुलाई रविवार की रात 8 बजे वह गौहर को बाइक पर बस अड्डे ले गया था. उस के साथ उस के मोहल्ले का ही कासिम भी था. उन्होंने गौहर को आगरा जाने वाली बस में बैठा दिया था.

बस रवाना होने से पहले ही गौहर ने उन दोनों को वापस भेज दिया था. गौहर भट्ठे के पास कैसे पहुंचा और उस की हत्या कैसे हुई, उसे नहीं पता. उस ने यह भी बताया कि जो बाइक उस के पास है वह उस ने जयपुर में गौहर के नाम से ली थी, लेकिन उस की किस्तें वह खुद भर रहा है. पैसे के लेनदेन के बारे में उस ने बताया कि गौहर के उस पर 5 हजार रुपए बाकी हैं. जावेद के अनुसार गौहर का असगर रोड निवासी कल्लू से किसी बात को ले कर विवाद चल रहा था.

थानाप्रभारी ने कल्लू से पूछताछ की, लेकिन उस की घटना में संलिप्तता का कोई सुराग नहीं मिला. उस क्षेत्र के लोगों से पूछताछ की गई तो पता चला कि घटना वाले दिन गौहर को जावेद व कासिम के साथ देखा गया था. इस का मतलब यह था कि जावेद पुलिस को बरगलाने की कोशिश कर रहा था. यह पता चलने के बाद जावेद से कई चरणों में सख्ती के साथ पूछताछ की गई. अंतत: उस ने सारा सच उगल दिया.

जावेद से हुई पूछताछ के बाद जो कहानी पता चली वह कुछ इस तरह थी.

शौकत अली उत्तर प्रदेश की इत्र नगरी कन्नौज के थाना सौरिख क्षेत्र के गांव राजापुर के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी रफीका बेगम के अलावा 2 बेटे और 3 बेटियां थीं.उन के सब से बड़े बेटे अनवार का निकाह शहाना परवीन से हो चुका था. दोनों की कोई संतान नहीं थी. गौहर उर्फ रिंकू अभी अविवाहित था. बेटियों में शफीका, जरीना और निशात थीं. इन में केवल शफीका ही विवाहित थी. शफीका की शादी लखनऊ निवासी रिजवान से हुई थी. वह जयपुर में रह कर जरदोजी का काम करता था.

शौकत के पास खेती की जमीन तो थी, लेकिन उस में खेती करने से कोई फायदा नहीं होता था. यह देख कर शौकत ने कुछ और करने की ठानी. उन के दोनों बेटे भी जवान और अपने पैरों पर खड़े होने लायक थे.उन का दामाद रिजवान पहले से ही जयपुर में था और जरदोजी के काम में अच्छाभला कमा लेता था.

शौकत ने जयपुर जा कर जरदोजी के काम में अपनी किस्मत आजमाने की सोची. 10 साल पहले वह जयपुर चले गए और वहीं दामाद के साथ रह कर जरदोजी का काम करने लगे. उन्होंने दोनों बेटों को भी इस काम में लगा दिया. इस तरह पूरा परिवार जयपुर में रहने लगा. पहले यह परिवार किराए के मकान में रहता था, बाद में शौकत ने गाल्टा गेट थाना क्षेत्र के बदनापुरा मोहल्ले में अपना मकान बनवा लिया.