मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 4

चादर में लिपटी मिली साहनी की लाश

चूंकि मामला मासूम बच्ची की गुमशुदगी का था. उस के साथ दरिंदगी जैसी घटना घटित न हो जाए, इसलिए कोतवाल विमलेश कुमार बिना देरी के आवश्यक पुलिस बल के साथ सिरसा दोगड़ी गांव पहुंच गए और बच्ची की खोज शुरू कर दी. परिवार व गांव के युवक भी पुलिस के साथ हो लिए.

पुलिस ने गांव के बाहर खेतखलिहान, बागबगीचा, कुआंतालाब तथा नदीनहर किनारे झाडिय़ों में बच्ची की खोज की. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. पुलिस ने गांव के कुछ संदिग्ध घरों की तलाशी भी ली. कई नवयुवकों से सख्ती से पूछताछ भी की. परंतु साहनी का पता नहीं चला.

रात 12 बजे के बाद कोतवाल विमलेश कुमार पुलिसकर्मियों व अश्वनी के घर वालों के साथ साहनी की खोज करते गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास पहुंचे. वहां उन्हें केले की झाडिय़ों के बीच सफेद चादर में लिपटी कोई वस्तु दिखाई दी. सहयोगी पुलिसकर्मियों ने जब चादर हटाई तो सभी की आंखें फटी रह गईं. चादर में लिपटी एक बच्ची की लाश थी.

इस लाश को जब अश्वनी ने देखा तो वह फफक पड़ा और कोतवाल साहब को बताया कि लाश उस की बेटी साहनी की है. कोतवाल ने साहनी मर्डर केस की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो सवेरा होतेहोते एसपी डा. ईरज राजा, एएसपी असीम चौधरी तथा डीएसपी रवींद्र गौतम भी घटनास्थल आ गए. अब तक गांव में भी सनसनी फैल गई थी, अत: सैकड़ों लोग वहां जुट गए थे.

राधा को बेटी की हत्या की खबर लगी तो वह बदहवास हालत में घटनास्थल पर पहुंची और बेटी के शव के पास विलाप करने लगी. ओमप्रकाश भी नातिन का शव देख कर रो पड़े. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों को समझा कर किसी तरह शव से अलग किया फिर जांच में जुट गए.

मृतक बच्ची की उम्र 5 वर्ष के आसपास थी. उस के शरीर पर किसी तरह के चोट के निशान नहीं थे. देखने से लग रहा था कि उस की हत्या नाक-मुंह दबा कर की गई थी. क्योंकि नाक से खून निकला था. ऐसा भी लग रहा था कि बच्ची की हत्या कहीं और की गई और फिर शव को चादर में लपेट कर वहां फेंका गया. चादर पर खून लगा था. जांच से यह भी अनुमान लगाया गया कि उस के साथ दरिंदगी नहीं की गई थी. जांच के बाद पुलिस अधिकारियों ने बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल, उरई भिजवा दिया.

दादा ने जताया बहू पर शक

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर मौजूद मृतका के पिता अश्वनी दुबे तथा दादा ओमप्रकाश से पूछताछ की. ओमप्रकाश ने बताया कि नातिन की हत्या का भेद उस की बहू राधा के पेट में छिपा है. यदि राधा से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी.

“भला एक मां अपनी मासूम बच्ची की हत्या क्यों करेगी?” पुलिस अधिकारियों ने पूछा.

“साहब, पड़ोसी युवक नेत्रपाल सिंह का हमारे घर आनाजाना था. वह बच्चों को टौफी, बिस्कुट खिलाता था. मना करने के बावजूद नहीं मानता था. उस ने बहू को भी अपने जाल में फंसा लिया था. मुझे शक है कि इन दोनों ने ही कोई खेला किया है.”

यह जानकारी पाते ही डीएसपी रविंद्र गौतम ने पुलिस टीम के साथ नेत्रपाल सिंह व राधा को उन के घर से हिरासत में ले लिया और थाना माधौगढ़ ले आए. थाने में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने मासूम साहनी हत्याकांड का जुर्म कुबूल कर लिया.

नेत्रपाल सिंह ने बताया कि पड़ोसी अश्वनी के घर उस का आनाजाना था. घर आतेजाते अश्वनी की पत्नी राधा और उस के बीच नाजायज संबंध बन गए. 4 अप्रैल, 2023 की दोपहर उस ने शराब पी, फिर नशे की हालत में वह राधा के घर पहुंच गया.

राधा उस समय घर में अकेली थी. राधा का पति खेत पर था और बच्चे दादा की झोपड़ी में थे. राधा को अकेली पा कर उस की कामाग्नि भडक़ उठी. उस ने राधा को बांहों में भरा और चारपाई पर लिटा दिया. मस्ती के आलम में उन्होंने दरवाजा भी बंद नहीं किया.

भेद खुलने के डर से की हत्या

राधा के बिस्तर पर वह वासना की आग बुझा ही रहा था कि तभी राधा की बेटी साहनी आ गई. उस ने दोनों को उस हालत में देखा तो वह चीखने लगी. राधा को लगा उस की बेटी उस का भांडा फोड़ देगी. अत: उस ने उसे पकड़ लिया और उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

नेत्रपाल सिंह नशे में था. उसे भी लगा कि भेद खुल जाएगा. वह भी उस के पास पहुंचा और फिर मुंह नाक दबा कर साहनी को मार डाला. इस के बाद यह अपराध छिपाने के लिए उन दोनों ने साहनी की लाश को सफेद चादर में लपेटा और गांव के बाहर निर्माणाधीन अस्पताल के पास फेंक दिया.

चूंकि दोनों ने साहनी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: कोतवाल ने मृतका के दादा ओमप्रकाश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत नेत्रपाल सिंह व उस की प्रेमिका राधा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया तथा उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

7 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने आरोपी नेत्रपाल सिंह व राधा को उरई कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 3

इस के बाद अर्चना अपनेआप ही ससुराल आ गई. आने पर जब उसे पता चला कि उस के जाने के बाद से सुमिक्षा संध्या के यहां रह रही है तो उस ने बुद्धिविलास से कहा कि अपनी बेटी को दूसरे के घर भेजने की क्या जरूरत थी. वह उसे तुरंत घर ले आए.

बुद्धिविलास सुमिक्षा को लेने संध्या के घर गया तो वह अपने घर आने को तैयार नहीं थी. संध्या पिता की मरजी के बगैर बच्ची को कैसे रोक सकती थीं, इसलिए उन्होंने सुमिक्षा को समझाबुझा कर उस के साथ भेज दिया.

उसी बीच बुद्धिविलास ने सुमिक्षा के नाम 50 हजार की एक एफडी कराई तो अर्चना को लगा कि बुद्धिविलास अपना सब कुछ सुमिक्षा को ही दे देगा. अगर ऐसा हुआ तो उस के बेटे का क्या होगा.

इस के बाद अर्चना ने बुद्धिविलास से कहसुन कर अपने छोटे भाई शिवपूजन को पढ़ने के लिए अपने पास बुला लिया. अर्चना ने उस का दाखिला आगरा में गौतम ऋषि इंटर कालेज में छठीं कक्षा में करवा दिया. शिवपूजन के आने से सुमिक्षा की परेशानी और बढ़ गई. अब भाईबहन, दोनों सुमिक्षा को परेशान करने लगे. भाई के आने से अर्चना के इरादे को और मजबूती मिली. मन ही मन वह सुमिक्षा से छुटकारा पाने की योजना बनाने लगी.

जब उस की योजना बन गई तो वह बुद्धिविलास के बाहर जाने का इंतजार करने लगी. योजनानुसार उस ने सुमिक्षा के प्रति अपना व्यवहार पूरी तरह बदल लिया था. वह सुमिक्षा से इस तरह प्यार का नाटक करने लगी, जैसे एक मां करती है. बुद्धिविलास को इस से हैरानी तो हुई, लेकिन सोचा शायद मायके वालों ने समझाया हो, इसलिए उसे सद्बुद्धि आ गई है.

एक दिन सुमिक्षा ने कोई शरारत की तो अर्चना ने कहा, ‘‘अब तुम बहुत शरारती हो गई हो. अगर तुम्हारा यही हाल रहा तो मैं तुम्हें गांव भेज दूंगी.’’

ऐसा अर्चना ने योजनानुसार कहा था. लेकिन सुमिक्षा डर गई. क्योंकि वह गांव नहीं जाना चाहती थी. अर्चना भी उसे गांव नहीं भेजना चाहती थी. यह तो उस की योजना का एक हिस्सा था. वह चाहती थी कि सुमिक्षा सब से बताए कि मम्मी उसे गांव भेज रही हैं. अपनी इस साजिश में अर्चना सफल भी रही. सुमिक्षा ने यह बात सांध्या कौशिक को बताई. उन्हें लगा कि अर्चना ने उसे डराने के लिए ऐसा कहा होगा. इसलिए उन्होंने उसे आश्वस्त किया कि वह डरे न, उसे कोई गांव नहीं भेजेगा.

एक दिन बुद्धिविलास ने कहा कि उन्हें मूर्तियों के लिए मुकुट खरीदने मथुरा जाना है तो अर्चना की आंखों में चमक आ गई. वह अपनी योजना को अंजाम देने की तैयारी करने लगी. पहला काम तो उस ने यह किया कि अपने आवास के पास खाली पड़ी जमीन में कई गड्ढे खोद डाले. दोपहर में बुद्धिविलास खाना खाने आया तो उन गड्ढों को देख कर पूछा, ‘‘अरे इतने गड्ढे क्यों खोद डाले हैं?’’

‘‘पेड़ लगाने हैं, इसीलिए खोदे हैं.’’ अर्चना ने कहा.

अर्चना की इस बात पर बुद्धिविलास को हैरानी हुई कि अचानक इस के मन में पेड़ लगाने की बात कहां से आ गई. यही सोच कर उस ने कहा, ‘‘तुम्हारे मन में अचानक पेड़ लगाने की बात कहां से आ गई?’’

‘‘टीवी में देखा था. उसी में देख कर सोचा कि मैं भी अपने घर के आसपास पेड़ लगा दूं तो हराभरा रहेगा.’’

21 सितंबर को बुद्धिविलास को मथुरा जाना था. उस से एक दिन पहले यानी 20 सितंबर को अर्चना ने सुमिक्षा से कहा कि वह संध्या से कह देगी कि अगले दिन वह उन के घर नहीं आ पाएगी. जब यह बात सुमिक्षा ने संध्या से कही तो उस ने पूछ लिया कि क्यों नहीं आएगी तो सुमिक्षा ने कहा कि उसे नहीं मालूम, मम्मी ने ऐसा कहने को कहा है.

अगले दिन 21 सितंबर को बुद्धिविलास 10 बजे के आसपास मथुरा के लिए निकल गया. पति के जाते ही अर्चना ने मंदिर परिसर का बाहरी गेट बंद कर के अंदर से ताला लगा दिया. इस के बाद रसोई में जा कर मैगी बनाई और सुमिक्षा को खाने के लिए दे कर खुद गड्ढा खोदने लगी.

भाई ने पूछा कि वह गड्ढा क्यों खोद रही है तो उस ने कहा, ‘‘तू अंदर जा कर सो जा, मैं क्या कर रही हूं, इस बात पर ध्यान न दे.’’

शिवपूजन जा कर सो गया. अर्चना ने साढ़े 3 फुट गहरा गड्ढा खोद डाला. गड्ढा खोद कर अर्चना अंदर पहुंची तो देखा सुमिक्षा बेहोश पड़ी थी. दरअसल उस ने मैगी में नशीली दवा मिला दी थी, इसलिए मैगी खा कर सुमिक्षा बेहोश हो गई थी.

अर्चना ने बेहोश पड़ी सुमिक्षा के दोनों हाथ पीछे बांध कर मुंह और नाक में कपड़ा ठूंस दिया. इस के बाद ऊपर से पौलीथिन लपेट कर उसे उठाया और गड्ढे में लेटा कर ऊपर से 2 थैली नमक डाल कर गड्ढे को ढक दिया. नमक उस ने इसलिए डाला था, ताकि लाश जल्दी गल जाए.

किसी को संदेह न हो, अर्चना ने गड्ढे के ऊपर पत्थर रख कर हवन कुंड बना दिया और उस के पास तुलसी का एक पेड़ लगा दिया. बुद्धिविलास के आने से पहले उस ने वहां दिया जला कर तमाम अगरबत्तियां भी सुलगा दीं.

शाम 7 बजे के आसपास बुद्धिविलास ने आते ही सुमिक्षा को आवाज दी. सुमिक्षा कहां से बोलती. उसे तो अर्चना ने ऐसी जगह भेज दिया था, जहां से कोई लौट कर नहीं आता. अर्चना ने कहा, ‘‘वह तो सुबह से ही गायब है.’’

‘‘क्या… सुबह से गायब है? तुम ने उसे ढूंढ़ा भी नहीं?’’ बुद्धिविलास थोड़ा गुस्से में बोला.

‘‘मुझे पता था, तुम यही कहोगे. तुम ने कैसे सोच लिया कि मैं ने उसे ढूंढ़ा नहीं. मैं ने सब जगह जा कर उसे ढूंढ़ा है, लेकिन किसी से पूछा नहीं. क्योंकि सब यही कहते कि सौतेली मां हूं, इसलिए मैं ने ही गायब कर दिया है. जब तुम इस तरह कह रहे हो तो दूसरे क्यों नहीं कहेंगे?’’ अर्चना ने रोते हुए कहा.

बुद्धिविलास उठा और पैर पटकते हुए घर से निकल गया. सीधे वह संध्या कौशिक के घर पहुंचा. जब उस ने उन से सुमिक्षा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ‘‘सुमिक्षा तो मुझ से कह गई थी कि आज वह मेरे घर नहीं आ पाएगी.’’

सुमिक्षा और कहीं नहीं जा सकती थी. साफ हो गया कि वह गायब हो गई है. थोड़ी ही देर में यह बात पूरी कालोनी में फैल गई. सभी एकदूसरे से पूछने लगे. इस से यह बात साबित हो गई कि सभी को सुमिक्षा से सहानुभूति थी. सभी उस की तलाश में लग गए. बुद्धिविलास पागलों की तरह अपना सिर पीट रहा था.

सौतेले बेटे की क्रूरता : छीन लीं पांच जिंदगियां – भाग 3

अब गुंजाइश की कोई बात ही नहीं रह गई थी. लेकिन पुलिस पूछताछ में वह अपने नकाबपोशों द्वारा हत्या किए जाने वाले बयान पर अड़ा था और अजीब अजीब हरकतें कर रहा था. कभी वह रोने लगता तो कभी हंसने लगता. खीझ कर थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘सचसच बताओ तुम ने हत्याएं क्यों कीं.’’

इस पर हरमीत ने राजदाराना अंदाज में कहा, ‘‘सरजी, मैं ने कुछ नहीं किया, कराने वाला तो कोई और है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘2 भूत, जो खिड़की के रास्ते आए और मेरे अंदर प्रवेश कर गए. उन में एक औरत थी और एक आदमी. दोनों मुझ से कहते गए और मैं हत्याएं करता गया.’’

पुलिस समझ गई कि हरमीत नाटक कर रहा है. इस के बाद उस के साथ थोड़ी सख्ती की गई तो उस पर सवार भूत को उतरते देर नहीं लगी. चारों हत्याओं का राज भी खुल गया. उस परिवार का कातिल कोई और नहीं, हरमीत ही था. हरमीत से की गई पूछताछ में जो कुछ पुलिस के सामने आया, उसे सुन कर पुलिस वालोें के भी रोंगटे खड़े हो गए. कोई बेटा इतना भी कू्रर हो सकता है, ऐसा किसी ने नहीं सोचा था.

मूलत: पंजाब के रहने वाले जय सिंह मिलनसार स्वभाव के मेहनती आदमी थे. वर्षों पहले उन का विवाह कुलवंत कौर के साथ हुआ था. जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. सब कुछ ठीक था, लेकिन कुलवंत कौर को कोई संतान नहीं हुई. तमाम इलाज के बाद भी जब कोई समाधान नहीं हुआ तो 25 साल पहले उन्होंने अपने भतीजे अजीत सिंह की बेटी हरजीत कौर उर्फ हन्नी को गोद ले लिया था.

हरजीत को गोद लेने के बाद घर में खुशियां आ गईं. हरजीत को पा कर दोनों ही खुश थे. वे उसे खूब प्यार भी करते थे. जय सिंह के परिवार में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. वह आर्थिक रूप से काफी संपन्न थे. कारोबार के लिए उन्होंने पल्टन बाजार में अपना औफिस बना रखा था. सब कुछ ठीक चल रहा था.

भविष्य की चिंता किए बिना जय सिंह ने एक गलती कर डाली. कभीकभी आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ और है. जिंदगी की हर राह वैसी नहीं होती, जैसी वह अपने हिसाब से सोचता है.

जय सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. किसी समारोह में उन की मुलाकात अनीता से हुई. अनीता उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही थी. पहली ही मुलाकात में दोनों का झुकाव एकदूसरे की तरफ हो गया. अनीता खूबसूरत थी, जबकि जय सिंह दौलत वाले. जल्दी ही दोनों नजदीक आ गए.

हालांकि अनीता शादीशुदा थी, लेकिन उस के पति की मौत हो चुकी थी. पहले पति से उसे एक बेटा लक्की था. कुछ महीनों की मुलाकातों के बाद जय सिंह और अनीता ने एक होने का फैसला कर लिया. जय सिंह जानते थे कि सार्वजनिक रूप से यह संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने चोरी से अनीता से विवाह कर लिया और किराए पर मकान ले कर उस के रहने की व्यवस्था कर दी. घर में बहाना कर के वह अनीता के यहां पहुंच जाते. अनीता का सारा खर्चा वही उठाते थे.

विवाह के बाद अनीता ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी. जय सिंह खुद इतने संपन्न थे कि अनीता को नौकरी करने की जरूरत ही नहीं थी. जय सिंह से अनीता को 2 बेटे, हरमीत सिंह और पारस पैदा हुए, इंसान लाख कोशिशें करें, परंतु ऐसे रिश्ते छिप नहीं पाते. कई साल बीत गए थे. बच्चे भी बड़े हो गए थे, लेकिन बात खुली तो जय सिंह की पहली पत्नी कुलवंत विरोध करने लगी, जिस से घर में कलह रहने लगी.

समय अपनी गति से चलता रहा. उसी दौरान जय सिंह का दूसरी पत्नी अनीता से भी मनमुटाव रहने लगा. बात हद पार कर गई तो अनीता और जय सिंह ने हमेशा हमेशा के लिए अलग होने का निर्णय कर लिया. यह 9 साल पहले की बात थी. उसी दौरान जय सिंह ने हरजीत कौर का विवाह हरियाणा के यमुनानगर निवासी अरविंदर सिंह के साथ धूमधाम से कर दिया. हरजीत को कभी इस बात का अहसास नहीं हुआ था कि उसे गोद लिया गया था. उस की हर ख्वाहिश जय सिंह ने पूरी की थी.

दूसरी ओर अनीता को ले कर जय सिंह की परेशानी बढ़ गई थी. दोनों ने अलग होने का निर्णय तो ले लिया था, लेकिन हक लेनेदेने की बात पर आपसी सहमति नहीं बन पा रही थी. मामला थाने से होता हुआ अदालत तक पहुंचा, जहां हुए समझौते के अनुसार जय सिंह ने अनीता को 25 लाख रुपए दिए. समझौते के अनुसार बड़े बेटे हरमीत को जय सिंह के साथ रहना था और छोटे पारस को अनीता के साथ.

हरमीत को अपने पास रख कर जय सिंह अपना वंश चलाना चाहते थे. अनीता अलग हो कर सहारनपुर में रहने लगी. जय सिंह का वहां भी 55 गज का एक मकान था, जिसे उन्होंने अनीता को दे दिया था. हरमीत बचपन से ही बिगड़ैल प्रवृत्ति का था. सातवीं तक पढ़ाई करने के बाद पढ़ाई से उस का मन उचट गया. वह पिता के पास आया तो उन्होंने उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने साफ मना कर दिया.

जय सिंह और कुलवंत कौर गोद ली हुई हरजीत को बहुत चाहते थे. वे उस का हर तरह से खयाल रखते थे. हरमीत को यह बात अंदर ही अंदर बहुत खलती थी. अब वह चाहता था कि हर तरह का हक सिर्फ उस का हो. यह बात अलग थी कि वह विरोध करने लायक नहीं था. पिता के पास रहते हुए उस का अपनी मां से संपर्क बना रहा था. कभीकभी वह उस के पास चला भी जाता था.

एक तो वह आवारा था, दूसरे इन बातों ने उस के दिमाग पर खासा प्रभाव छोड़ा था. हरमीत युवा हो चला था. पिता ने उसे अपने साथ काम पर लगा लिया. क्योंकि जय सिंह नहीं चाहते थे कि उन के बेटे के मन में सौतेला होने जैसी कोई बात आए. इसलिए वह उस की हर मांग पूरी करते थे.

कहते हैं, प्रवृत्ति एक बार बिगड़ जाए तो बहुत मुश्किल से काबू में आती है. हरमीत के साथ भी यही हुआ. वह लगातार गलत संगत में पड़ता चला गया, जिस की वजह से कभीकभी शराब भी पीने लगा. इस से जय सिंह परेशान रहने लगे. उन्होंने डांटफटकार कर हरमीत को समझाया. लेकिन हरमीत का ध्यान काम पर कम, आवारागर्दी पर ज्यादा होता था. तब जय सिंह ने हरमीत को बैठा कर प्यार से समझाया, ‘‘बेटा कुछ करोगे, तभी यह जीवन चल पाएगा. बाप की कमाई पर कब तक ऐश करोगे.’’

‘‘मैं अलग काम करना चाहता हूं. मैं आप के साथ काम नहीं कर सकता.’’

‘‘लापरवाही से कुछ भी करोगे, सफल नहीं हो पाओगे.’’

‘‘मुझे जिम्मेदारी उठाने का मौका तो दो पापा.’’ हरमीत ने आत्मविश्वास से कहा तो जय सिंह को लगा कि शायद उसे गलतियों का अहसास हो गया है और यह वाकई कुछ करना चाहता है. देर आए दुरुस्त आए वाली कहावत उन्होंने सुनी थी, लिहाजा उन्होंने हरमीत को गारमेंट्स की दुकान खुलवा दी.

अगर आदमी का आचरण अच्छा न हो तो उसे कोई भी काम करने को दे दिया जाए, उस का परिणाम अच्छा नहीं निकलता. यही वजह थी कि हरमीत ने दुकान को घाटे में पहुंचा दिया. 2 साल बाद जय सिंह ने मजबूरन दुकान बंद करा दी.

मां के प्रेम का जब खुला राज – भाग 3

एक दिन ओमप्रकाश दोपहर में ही खेत से वापस आ गया. घर के बाहर बनी झोपड़ी में राधा की बेटी मौजूद थी. उस के हाथ में नमकीन का पैकेट था. वह मजे से खा रही थी. ओमप्रकाश ने नातिन से पूछा, “बिटिया, नमकीन किस ने दी?”

“नेत्रपाल चाचा ने. वह घर के अंदर मम्मी से बतिया रहे हैं,” नातिन ने बताया.

नातिन की बात सुन कर ओमप्रकाश के मन में शक के बादल उमडऩे-घुमडऩे लगे. सच्चाई जानने के लिए उस के कदम ज्यों ही घर के दरवाजे की ओर बढ़े, त्यों ही नेत्रपाल घर के अंदर से निकला. ओमप्रकाश ने उसे टोका भी. लेकिन नेत्रपाल बिना जवाब दिए ही चला गया. लेकिन राधा कहां जाती? ओमप्रकाश ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई.

पति को राधा ने दिखा दिया त्रियाचरित्र

शाम को अश्वनी जब खेत से घर वापस आया तो ओमप्रकाश ने बेटे को सारी बात बताई और इज्जत को ले कर चिंता जताई. बाप की बात सुन कर अश्वनी का माथा ठनका. उस ने इस बाबत राधा से पूछा तो वह पति पर हावी हो गई.

“पिताजी सठिया गए हैं. उन की अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं. वह लोगों की कानाफूसी को सही मान लेते हैं. ये वो लोग हैं, जो हम से जलते हैं और हमारी गृहस्थी को आग लगाना चाहते हैं.”

राधा यहीं नहीं रुकी और बोली, “वैसे भी नेत्रपाल हमारा पड़ोसी है. घर में आनाजाना है. रिश्ते में देवर है. इस नाते वह केवल हंसबोल लेता है. हंसीमजाक कर लेता है. इस में बुराई क्या है. तुम्हारा भी तो वह दोस्त है. तुम भी तो उस के साथ खातेपीते हो. मैं मानती हूं कि नेत्रपाल आज दोपहर घर आया था, लेकिन फावड़ा मांगने आया था. पिताजी ने उसे घर से निकलते देख लिया तो शक कर बैठे. फिर न जाने कितने इल्जाम मुझ पर लगा दिए. समझा देना उन्हें. आज तो मैं ने उन्हें जवाब नहीं दिया, लेकिन कल चुप नहीं बैठूंगी.”

राधा ने त्रियाचरित्र का ऐसा नाटक किया कि अश्वनी की बोलती बंद हो गई. वह सोचने लगा कि पिताजी को जरूर कोई गलतफहमी हो गई. राधा तो पाकसाफ है. नेत्रपाल के साथ उस का कोई लफड़ा नहीं है. उस ने किसी तरह राधा का गुस्सा दूर कर उसे मना लिया. राधा अपनी जीत पर जैसे शेरनी बन गई.

अश्वनी ने पत्नी को क्लीन चिट तो दे दी थी, लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. वह राधा पर चोरीछिपे निगाह भी रखने लगा था. यही नहीं, नेत्रपाल सिंह पर भी उस का विश्वास उठ गया था. उस ने उस के साथ शराब पीनी भी बंद कर दी थी. उस ने नेत्रपाल से भी साफ कह दिया था कि वह उस के घर तभी आए, जब वह घर पर मौजूद हो.

अश्वनी की बेटी अब तक 5 साल की हो चुकी थी. वह दिखने में गोरीचिट्टी तथा बातूनी थी. गांव के प्राइमरी स्कूल में वह पढ़ रही थी. अश्वनी ने बेटी से भी कह दिया था कि कोई बाहरी व्यक्ति घर में आए तो शाम को उसे जरूर बताए.

अचानक साहनी हुई लापता

अश्वनी के पिता ओमप्रकाश की माली हालत तो अच्छी नहीं थी, लेकिन गांव में उन की अच्छी इज्जत थी. अपने घर की इज्जत पर खतरा भांप कर वह चिंतित रहने लगे थे. उन्होंने खेत पर जाना कम कर दिया था और बहू राधा की निगरानी करने लगे थे. पड़ोसी युवक नेत्रपाल को तो वह घर के आसपास भी फटकने नहीं देते थे.

कड़ी निगरानी से राधा और नेत्रपाल सिंह का मिलन बंद हो गया. अब वे दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए छटपटाने लगे. राधा जब तक मोबाइल फोन से अपने आशिक से बतिया नहीं लेती थी, उस के दिल को तसल्ली नहीं मिलती थी. लेकिन एक दिन उस की यह चोरी भी पकड़ी गई. फोन को ले कर राधा और अश्वनी के बीच खूब तूतू मैंमैं हुई. गुस्से में अश्वनी ने सिम ही तोड़ दिया.

4 अप्रैल, 2023 की शाम 5 बजे अश्वनी दुबे खेत से घर वापस आया तो उसे बच्चे नहीं दिखे. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई फिर पत्नी से पूछा, “राधा, दोनों बच्चे नहीं दिख रहे. कहां है वे दोनों?”

“दोनों ससुरजी के पास होंगे. साहनी तो यही कह कर घर से निकली थी कि वह दादा के पास जा रही है. वे दोनों वहीं होंगे.” राधा ने जवाब दिया.

अश्वनी तब पिता की झोपड़ी में पहुंचा. वहां ढाई वर्षीय बेटा तो सो रहा था, लेकिन बेटी साहनी नहीं थी. अश्वनी ने पिता से साहनी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि लगभग 12 बजे साहनी छोटे भाई के साथ आई थी. कुछ देर दोनों उन के पास रहे. उस के बाद साहनी घर चली गई थी.

लेकिन पिताजी साहनी घर पर नहीं है. इस के बाद बाप बेटे साहनी की खोज करने लगे. उन्होंने मोहल्ले का हर घर छान मारा, लेकिन साहनी का पता न चला. सूर्यास्त होतेहोते पूरे गांव में यह खबर फैल गई कि अश्वनी दुबे की बेटी साहनी कहीं गुम हो गई है. इस के बाद गांव के दरजनों लोग 5 वर्षीय साहनी की खोज में जुट गए. उस की तलाश बागबगीचों, खेतखलिहान व कुआंतालाब में शुुरू हो गई. लेकिन साहनी का कुछ भी पता नहीं चला.

साहनी के न मिलने से राधा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था. अड़ोसपड़ोस की महिलाएं राधा को हिम्मत बंधाती कि उस की बेटी का पता जल्दी ही चल जाएगा, लेकिन राधा पर महिलाओं के समझाने का कोई असर नहीं हो रहा था.

रात 8 बजे तक जब साहनी का कुछ भी पता नहीं चला तो अश्वनी कुमार दुबे जालौन जिले की ही कोतवाली माधौगढ़ पहुंचा और बोझिल कदमों से चलता हुआ कोतवाल विमलेश कुमार के सामने जा खड़ा हुआ. कोतवाल विमलेश कुमार ने उसे एक बार सिर से पांव तक घूरा. उस के चेहरे पर दुख व परेशानी के भाव साफ नजर आ रहे थे. आंखें भी नम थीं.

“बैठिए,” विमलेश कुमार ने कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, “कहिए, मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?”

“साहब, मेरा नाम अश्वनी दुबे है. सिरसा दोगड़ी गांव का रहने वाला हूं. दोपहर बाद से मेरी 5 साल की बेटी साहनी अचानक लापता हो गई. मैं ने गांव के हर घर में उस की खोज की. जब कहीं नहीं मिली तो मैं आप की शरण में आया हूं,” अपनी बात पूरी कर अश्वनी रो पड़ा.

“देखो अश्वनी, रोने से काम नहीं चलेगा, हिम्मत रखो. मैं यकीन दिलाता हूं कि पुलिस आप की बेटी को तलाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी.” विमलेश कुमार ने कहा तो उस ने आंसू पोंछे. पूछताछ के बाद कोतवाल विमलेश कुमार ने साहनी की गुमशुदगी दर्ज कर ली और जिले के सभी थानों को वायरलैस से इस की सूचना दे दी. साथ ही पुलिस अधिकारियों को भी इस मामले से अवगत करा दिया.

अधेड़ उम्र का खूनी प्यार – भाग 3

सविता के दर्द का कारण जान कर आशीष हैरत में पड़ गया कि इतने सालों से सविता अपने पति के जुल्म को सहती आई, उस ने उफ्फ तक नहीं की. अब भी वह दर्द छिपाए अंदर ही अंदर घुट रही थी. वह तो खुद सविता को चाहने लगा था, प्यार करने लगा था.

ऐसे में उस का प्यार अपने आप को रोक नहीं सका और आशीष की जुबान से बाहर आ ही गया, “सविता, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं और तुम्हारे साथ पूरी जिंदगी बिताना चाहता हूं. मैं इस दुनिया की सारी खुशियां तुम्हारे कदमों में डालना चाहता हूं. लेकिन यह तभी हो पाएगा, जब तुम मेरा साथ देने को तैयार होगी. मैं तो तैयार हूं साथ देने के लिए, अब तुम बोलो, तैयार हो…”

“आशीष, मैं भी तुम्हें बेइंतहा चाहती हूं, मुझे तुम्हारा साथ, तुम्हारा प्यार सब मंजूर है लेकिन हम एक नहीं हो पाएंगे, जहां तुम मुझ से बहुत छोटे हो, वहीं मैं वैवाहिक बंधन में बंधी हूं और 3 जवान बच्चों की मां हूं. ऐसे में हमारा प्यार ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाएगा. ये समाज भी हम को ताने देगा और दुत्कारेगा. समाज हमारे प्यार और परिस्थितियों को नहीं समझेगा.”

“उम्र केवल एक बस संख्या भर है, प्यार तो किसी बंधन को नहीं मानता, न उम्र, न जातपात और न समाज के कायदेकानूनों को. हम अपनी मरजी से एक साथ जिंदगी गुजारना चाहते हैं, ये हमारा आपसी फैसला है, दुनिया और समाज का इस से कोई लेनादेना नहीं. तुम बस हां करो, तुम्हारे लिए मैं किसी से भी लड़ जाऊंगा. तुम्हारा साथ कभी न छोड़ूंगा.” आशीष ने भरोसा दिलाया.

सविता आशीष की बात सुन कर भावविभोर हो गई और उस के सीने से लग गई. सविता को ऐसा करते देख कर आशीष भी हौले से मुसकरा गया और उसे भी अपनी बांहों के घेरे में ले लिया. कुछ देर दोनों और रेस्टोरेंट में रुके, फिर वहां से निकल आए.

प्रेमी से कराना चाहती थी बेटी की शादी

इस के बाद दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. आशीष अब सविता के घर भी आनेजाने लगा. चूंकि आशीष सविता के स्कूल में टीचर था, इसलिए मधुसूदन को उस के आनेजाने पर कोई ऐतराज नहीं था. मधुसूदन यह समझता था कि स्कूल में बच्चों को पढ़ाने से संबंधित बातें करने के लिए आशीष सविता से मिलने घर आता है. आशीष की उम्र भी कम थी, इसलिए उन दोनों के रिश्ते पर मधुसूदन को शक नहीं हुआ.

ऐसे कब तक मिलतेजुलते दोनों? ज्यादा समय साथ बिताने के लिए सविता ने आशीष को रिश्ते में बांधने का फैसला किया. खुद तो आशीष के साथ सामाजिक तौर पर एक हो नहीं सकती थी, इसलिए उस ने अपनी 21 वर्षीय बेटी रवीना की शादी अपने प्रेमी आशीष के साथ करने की सोची. इस से दोनों आसानी से मिल सकते थे और सास दामाद का रिश्ता बनने के कारण कोई उन पर शक भी नहीं करता.

सविता अपने प्यार को पाने के लिए अपनी ही सगी बेटी को बलि का बकरा बनाने की सोच रही थी. आशीष भी उस की बेटी से शादी करने को तैयार था. तैयार होता भी क्यों नहीं, इस फैसले से उस के दोनों हाथों में लड्डू ही लड्डू होते. एक तरफ वह अपनी प्रेमिका से मजे लेता, वहीं दूसरी तरफ उस की बेटी के साथ भी मजे लेता. सविता ने बेटी की शादी की बात अपने पति और बेटी के सामने चलाई तो दोनों ने शादी करने से साफसाफ मना कर दिया.

प्लान ‘ए’फेल होने पर बनाया प्लान ‘बी’

इस से सविता और आशीष के सारे मंसूबे फेल हो गए. इस के बाद भी दोनों एकदूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा साथ रहने की तरकीबें तलाशते रहें लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस पर सविता ने आशीष से कहा कि अब एक ही रास्ता है कि पति मधुसूदन को ही अपने रास्ते से हटा दिया जाए.

सविता तो हमेशा से यही चाहती थी. सविता ने कहा तो आशीष भी तैयार हो गया. घटना से 20 दिन पहले दोनों ने मधुसूदन की हत्या की योजना बनाई. इस के लिए आशीष ने बाजार से एक छाता और लोहे की छोटी वजनदार रौड खरीदी, साथ ही 400 रुपए का शेविंग करने वाला उस्तरा भी खरीदा.

26 जून, 2023 की दोपहर आशीष और सविता दोनों स्कूल में थे. एक से 2 बजे के बीच का समय ऐसा था, जब मधुसूदन घर पर अकेला होता था. एक बजे के बाद सविता प्रेमी आशीष के साथ स्कूल से घर जाने के लिए निकली. आशीष के हाथ में छाता था जो कि बंद था और दाएं हाथ में उस ने छाते को पकड़ रखा था. उसी बंद छाते में लोहे की रौड और उस्तरा रख रखा था.

घर पहुंचने पर आशीष ने मधुसूदन के पीछे खड़े हो कर छाते से लोहे की रौड निकाली और मधुसूदन के सिर पर कई ताबड़तोड़ तेज प्रहार कर दिए, जिस से मधुसूदन चीख भी न सका और जमीन पर गिर गया. मधुसूदन मरणासन्न हालत में था. तभी आशीष ने छाते से उस्तरा निकाला और उस से मधुसूदन का गला रेत दिया.

प्रेमी संग पति की हत्या करने के बाद सविता ने घर का सारा सामान बिखेर दिया और अलमारियां खोल दीं, जिस से मामला लूट के बाद हत्या का लगे. इस के बाद सविता और आशीष दोनों घर से निकल गए और वापस स्कूल पहुंच गए. लेकिन इस से पहले उन्होंने हत्या में प्रयुक्त रौड, उस्तरा और छाता कहीं ठिकाने लगा दिया था. लेकिन तमाम चालाकियों के बाद भी दोनों पकड़े गए.

पूछताछ के बाद कानूनी औपचारिकताएं पूरी की गईं, फिर दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक आला कत्ल बरामद करने का पुलिस प्रयास कर रही थी.

—कथा में रवीना परिवर्तित नाम है

नाजायज रिश्ते में पति की बलि – भाग 3

7 नवंबर को भी प्रियंका ने सुरेंद्र को नींद की गोलियों वाला दूध पीने को दिया. लेकिन उस रात सुरेंद्र कुछ नशे में था, इसलिए उस ने दूध पीने के बजाय चारपाई के नीचे रख दिया. सुरेंद्र खर्राटे भरने लगा तो प्रियंका ने समझा कि नींद की गोलियों का असर है. फलस्वरूप उस ने अपने प्रेमी करन को बुला लिया और उस के साथ दूसरे कमरे में चली गई.

आधी रात में लघुशंका के लिए सुरेंद्र की नींद खुली तो प्रियंका बैड पर नहीं थी. वह कमरे से बाहर आया तो पास वाले कमरे का दरवाजा बंद था और भीतर से चूडिय़ों के खनकने और मस्ती की दबीदबी आवाजें गूंज रही थी. कमरे में हलकी रोशनी वाला बल्ब जल रहा था. दरवाजे में झिर्री थी.

सुरेंद्र ने झिर्री से आंख लगा कर देखा तो प्रियंका और करन एकदूसरे में समाए थे. सुरेंद्र का खून खौल उठा. उस ने दरवाजे को जोर से धकेला तो वह खुल गया. सुरेंद्र को अचानक अंदर आया देख प्रियंका और करन हक्केबक्के रह गए. दोनों कपड़े ठीक कर पाते, उस के पहले ही सुरेंद्र प्रियंका को जानवरों की तरह पीटने लगा.

करन से न रहा गया तो उस ने पिटाई का विरोध किया. इस पर सुरेंद्र और करन में गालीगलौज व मारपीट होने लगी. उसी समय प्रियंका ने प्रेमी करन को उकसाया, “आज इस बाधा को खत्म कर दो. न रहेगा बांस, न बजेबी बांसुरी.”

प्रियंका के उकसाने पर करन ने सुरेंद्र को जमीन पर पटक दिया और दोनों ने मिल कर सुरेंद्र का गला घोंट दिया. इस के बाद उन्होंने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. सुरेंद्र के दाहिने हाथ में उस का नाम लिखा था. उसे मिटाने के लिए करन ने कुल्हाड़ी से उस का दाहिना हाथ काट डाला. इस के बाद वह हाथ और खून सनी कुल्हाड़ी गांव के किनारे से बहने वाली सेंगुर नदी में फेंक आया. लौट कर उस ने प्रियंका के साथ मिल कर लाश को चादर में लपेटा और कमरे में ही बंद कर दिया.

सुबह प्रियंका ने पड़ोसियों और अपने जेठ रघुराज को बताया कि कल सुरेंद्र मूसानगर कस्बा कुछ सामान लेने गया था, लेकिन वापस नहीं आया. रघुराज ने उस की खोज शुरू की. लेकिन कहीं उस का कुछ पता नहीं चला. उस का मोबाइल भी बंद था.  प्रियंका भी पति के लिए बेचैन थी. वह बारबार घर वालों पर दबाव डाल रही थी कि जैसे भी हो, वे लोग उन की खोज करें. जबकि सुरेंद्र की लाश घर के अंदर ही कमरे में पड़ी थी. प्रियंका और करन को उसे ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला था.

2 दिनों तक सुरेंद्र की लाश घर में पड़ी रही, जिस के कारण दुर्गंध फैलने लगी. यह देख कर दोनों ने गड्ढा खोद कर उसे दफनाने का फैसला किया. 9 नवंबर की रात 11 बजे जब गांव के लोग सो गए तो करन और प्रियंका ने सुरेंद्र की लाश को घर से बाहर निकाला और साइकिल पर रख कर खेतों की ओर चल दिए.

उन के गांव के बाहर पहुंचते ही कुत्ते तेज आवाज में भौंकने लगे. इस से दोनों घबरा गए. लोग जाग जाते तो उन के पकड़े जाने का डर था. इसलिए वे लाश को खेत की मेड़ पर फेंक कर घर लौट आए. 10 नवंबर की सुबह गांव के लोग दिशामैदान गए तो उन्होंने खेत की मेड़ पर हाथ कटी लाश देखी. इस से गांव भर में हडक़ंप मच गया.

रघुराज भी लाश देखने गया. लाश देखते ही वह रो पड़ा, क्योंकि लाश उस के छोटे भाई सुरेंद्र की थी. खबर पा कर प्रियंका भी पहुंची और त्रियाचरित्र दिखाते हुए बिलखबिलख कर रोने लगी.

रघुराज ने थाना मूसानगर पुलिस को सूचना दे दी. खबर मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह और सीओ नरेशचंद्र वर्मा पुलिस बल के साथ आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्या 2 दिन पूर्व कहीं दूसरी जगह की गई थी और शिनाख्त मिटाने के लिए हाथ काट कर कहीं और फेंका गया था. यह अनुमान इसलिए लगाया गया, क्योंकि रघुराज के अनुसार, सुरेंद्र के हाथ पर नाम लिखा था.

चूंकि लाश की शिनाख्त हो गई थी, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र की लाश को पोस्टमार्टम के लिए माती भेज दिया. सीओ नरेशचंद्र वर्मा ने मृतक के भाई रघुराज और पत्नी प्रियंका से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि मृतक सुरेंद्र सूरत में नौकरी करता था और करवाचौथ पर घर आया था. वह घर का सामान लेने मूसानगर गया था. लेकिन लौट कर नहीं आया. उन्होंने यह भी बताया कि मृतक की गांव में न तो किसी से रंजिश थी और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा. पता नहीं उसे किस ने मार डाला.

नरेशचंद्र वर्मा ने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कर के हत्यारों को गिरफ्तार करें. तेजतर्रार इंसपेक्टर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपनी जांच की शुरुआत प्रियंका से शुरू की. लेकिन काम की कोई जानकारी नहीं मिली.

उन्होंने कई अपराधियों को भी पकड़ कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा न हो सका. धीरेधीरे डेढ़ महीने बीत गए, लेकिन हत्यारे के बारे में कुछ भी पता न चल सका. निराश हो कर जितेंद्र कुमार सिंह ने अपने खास मुखबिर लगा दिए.

29 दिसंबर  को एक मुखबिर थाना मूसानगर पहुंचा और उस ने जितेंद्र कुमार सिंह को बताया कि वह यकीन के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन सुरेंद्र की हत्या का राज उस के घर में ही छिपा है. अगर उस की पत्नी प्रियंका और उस के भतीजे करन से पूछताछ की जाए तो हत्या का रहस्य खुल सकता है. क्योंकि करन और प्रियंका के बीच नाजायज रिश्ता है.

मुखबिर की बात पर विश्वास कर के जितेंद्र कुमार सिंह ने प्रियंका और करन को हिरासत में ले लिया. थाना पहुंचते ही प्रियंका का चेहरा पीला पड़ गया. थोड़ी सी सख्ती में प्रियंका टूट गई और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. प्रियंका के टूटते ही करन ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

करन की निशानदेही पर पुलिस ने सेंगुर नदी से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी बरामद कर ली. लेकिन काफी कोशिशों के बाद भी सुरेंद्र का कटा हाथ बरामद नहीं हो सका. प्रियंका ने बताया कि उस के पति सुरेंद्र ने उसे करन के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था, इसलिए दोनों ने मिल कर उसे मौत के घाट उतार दिया था.

चूंकि प्रियंका व करन ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मृतक के भाई रघुराज को वादी बना कर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर प्रियंका व करन को विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

30 दिसंबर को दोनों को माती की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. आलोक अपने नाना के घर रह रहा है, जबकि मासूम अंशिका मां के साथ जेल में है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

दूसरी शादी का दुखद अंत – भाग 3

शैफी मोहम्मद उर्फ शैफिया अपने 2 भाइयों अकबर, छोटा और 2 बहनों अकबरी तथा अन्ना के साथ रहता था. उस के बहन भाई सयाने हुए तो एकएक कर के उस ने सभी की शादियां कर दीं. पिता का इंतकाल हो चुका था, इसलिए यह जिम्मेदारी उसे ही निभानी पड़ी थी. उस की पत्नी रेशमा 3 बच्चों को जन्म दे कर चल बसी थी. बच्चे छोटे थे, इसलिए घर वालों के कहने पर उस ने दूसरी शादी कर ली.

दूसरी शादी उस ने एटा के थाना जलेसर के गांव ताज खेरिया के रहने वाले इमरान हुसैन की बड़ी बेटी जरीना से की थी. वह कुंवारी थी, इसलिए वह अपने ही जैसे किसी लड़के से शादी करना चाहती थी. लेकिन पिता की हैसियत उस के इस सपने का रोड़ा बन गई. शैफी का परिवार आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा संपन्न था, इसीलिए इमरान हुसैन ने उम्र में बड़े और 3 बच्चों के बाद शैफी से उस का निकाह कर दिया था.

शैफी अधेड़ था, जबकि जरीना लड़की. जरीना के जवान होतेहोते शैफी बूढ़ा हो गया. एक बूढ़ा आदमी किसी जवान की इच्छा कैसे पूरी कर सकता है. ऐसा ही कुछ जरीना के साथ भी था. शैफी कभी भी जरीना की इच्छा पूरी नहीं कर सका. अधूरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए ही जरीना वकील के साथ भाग निकली थी.

दिन, महीने और साल गुजर गए. धीरेधीरे ढाई साल बीत गए. शैफी के घर वाले जरीना को भूलने लगे थे कि तभी उन्हें उस का सुराग मिल गया था.

इसलामनगर की ही रहने वाली सबीना की शादी हाथरस में हुई थी. एक दिन हाथरस की साप्ताहिक हाट में खरीदारी करती हुई जरीना पर उस की नजर पड़ गई थी. उस समय वकील भी उस के साथ था. जरीना को देख कर सबीना चौंकी. क्योंकि इसलामनगर वालों को लगने लगा था कि जरीना शायद मर गई है. वह छिपछिप कर जरीना का पीछा करते हुए उस के कमरे तक जा पहुंची.

सबीना ने यह बात इसलामनगर में रहने वाले अपने भाइयों को बताई तो उन्होंने जरीना के हाथरस में होने की बात शैफी तक पहुंचा दी. शैफी मोहम्मद को जब पता चला कि जरीना वकील के साथ हाथरस में है तो वह सीधे थाना एत्माद्दौला जा पहुंचा. इस के बाद पुलिस को ले कर वकील के कमरे पर गया. शैफी ने वकील की जम कर पिटाई की और जरीना से अपने साथ चलने को कहा.

लेकिन जरीना ने शैफी के साथ आगरा जाने से मना कर दिया तो सभी को हैरानी हुई. पुलिस ने जबरदस्ती करनी चाही तो जरीना ने अपने और वकील के कोर्टमैरिज का प्रमाणपत्र दिखा दिया. थाना पुलिस चुपचाप लौट आई. शैफी बौखला उठा. शैफी ने जरीना को धमकी दी कि वह ऐसे हालात कर देगा कि वह वकील की भी नहीं रहेगी.

हाथरस से लौट कर शैफी ने भाई फुर्रा और पहली पत्नी के बेटे शमशेर के साथ मिल कर जरीना को सबक सिखाने की योजना बना डाली. फुर्रा और शैफी इस बात से बेहद क्षुब्ध थे कि एक अदना सा लौंडा उन के जैसे प्रभावशाली आदमी के घर की औरत को भगा ले गया. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

इस के बाद योजना पर काम शुरू हो गया. सब से पहले शैफी ने अपनी बड़ी बेटी हसीना को फोन कर के जरीना के बारे में बता कर उस के पास आने जाने को कहा. इस के बाद हसीना शौहर के साथ जरीना के पास आने जाने ही नहीं लगी, बल्कि उस के यहां कईकई दिनों तक रुकने भी लगी.

हसीना ही नहीं, शमशेर और जरीना के अपने बच्चे भी उस के पास हाथरस आनेजाने लगे. इसी आनेजाने में वकील और शमशेर की अच्छी पटने लगी. इधर वकील की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी. इसलिए उस ने शमशेर से कहीं अच्छी जगह काम दिलाने को कहा. वकील अच्छा मोटर मैकेनिक था, लेकिन जहां वह काम करता था, वहां ज्यादा काम नहीं आता था, इसलिए उस की ढंग की कमाई नहीं हो पाती थी.

शमशेर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. वकील तो पुरानी बातें भूल चुका था, लेकिन शैफी, शमशेर और फुर्रा को उस समय का इंतजार था, जब वह वकील को ठिकाने लगा कर बदनामी का बदला ले सकें.

जुलाई में हसीना के बच्चे की मौत होने की वजह से जरीना उस के यहां चली गई तो घर में वकील अकेला ही रह गया. 25 जुलाई की सुबह शमशेर ने वकील को फोन किया कि अगर वह शाम को कोटला रोड आ जाए तो वह उस की मुलाकात एक वर्कशौप के मैनेजर से करा दे.

वकील को ठीकठाक काम की तलाश थी, इसलिए वह रात 8 बजे के आसपास कोटला रोड पहुंच गया. वकील से बातचीत होने के बाद शमशेर, पिता और चाचा को साथ ले कर हाथरस के लिए रवाना हो गया. 7 बजे के आसपास सभी कोटला रोड पहुंच कर वकील का इंतजार करने लगे. जै

से ही वकील वहां पहुंचा, शमशेर ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं शराब की बोतल ले कर आया हूं. आओ पहले मूड बना लेते हैं, उस के बाद मैनेजर से मिलने चलते हैं.’’

शराब की बोतल देख कर वकील से भी नहीं रहा गया और वह शमशेर के पीछेपीछे चल पड़ा. नजदीक ही घना जंगल था. जंगल में अंदर जाने के बजाय वहीं पत्थर पर दोनों बैठ गए. अंधेरा हो ही चुका था. शमशेर ने 2 पैग बनाए. वकील ने गिलास उठा कर जैसे ही मुंह से लगाया, शैफी ने पीछे से आ कर उस के सिर पर भारी पत्थर पटक दिया. पत्थर इतना भारी था कि उसी एक वार में वकील की मौत हो गई.

वकील की मौत के बाद उस की जेब का सारा सामान निकाल कर उसे वहीं बंबे के पास फेंक दिया. उस की शिनाख्त न हो सके, इसलिए उस के चेहरे को उसी पत्थर से कुचल दिया. नफरत की आग में जल रहे शैफी ने उस के पुरुषांग पर जूते से कई ठोकरें मारीं, जिस से वह क्षतिग्रस्त हो गया.

अब तक रात के 9 बज गए थे. तीनों वकील के शव को घसीट कर बंबे के पानी में फेंक देना चाहते थे, लेकिन तभी उन्हें किसी वाहन के आने की आवाज सुनाई दी तो वे लाश को वहीं छोड़ कर भाग निकले. शैफी ने वकील का मोबाइल और रुपए वहीं बंबे में फेंक दिया था.

काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जरीना इस मामले में शामिल नहीं थी. क्योंकि उस के मोबाइल की लोकेशन मथुरा के मांट की ही थी. जरीना की लगभग एक सप्ताह से शमशेर, फुर्रा और शैफी से बात भी नहीं हुई थी. इस से पुलिस ने उसे छोड़ दिया. बाकी अभियुक्तों को पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक सभी अभियुक्त जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका के लिए पत्नी का कत्ल – भाग 3

25 वर्षीया शानू हुस्न की साक्षात मूर्ति थी. दिलफेंक स्वभाव का जसवीर उस दिन के बाद किसी न किसी बहाने उस के घर जाने लगा. शानू को समझते देर नहीं लगी कि जसवीर उस की खूबसूरती का दीवाना हो चुका है और वह उस से नजदीकियां बढ़ाने को बेताब है.

बातों ही बातों में शानू जान गई कि जसवीर मोटा असामी है. उसे लगा कि अगर किसी तरह वह उस की बातों में आ गया तो वह उस के पैसों पर न केवल पूरी जिंदगी ऐश करेगी, बल्कि उस की जायदाद की मालकिन भी बन सकती है. यह सोच कर उस ने जसवीर की उम्र की परवाह न कर के उस से प्रेम में डूबी मीठीमीठी बातें करने लगी.

शानू ने निकटता बढ़ाने के लिए अपना मोबाइल नंबर जसवीर को दे दिया. फिर जसवीर शानू से फोन पर लंबीलंबी बातें करने लगा. कुछ ही दिनों में दोनों इतने नजदीक आ गए कि उन के बीच अंतरंग संबंध बन गए.

जसवीर ने सूखा छावनी में हरिओम के घर में एक कमरा किराए पर ले रखा था. वहां उस का एक दोस्त पिंकू रहता था. पिंकू के साथ वह प्रौपर्टी डीङ्क्षलग का धंधा करता था. शानू से मिलने के लिए यह जगह एकदम सुरक्षित थी. जसवीर जब भी बरेली आता, शानू को फोन कर के वहीं बुला लेता.

जब शानू को विश्वास हो गया कि जसवीर पूरी तरह उस के प्यार की गिरफ्त में आ चुका है और अब वह उस से हर जायजनाजायज मांगे पूरी करवा सकती है तो एक दिन प्यार के हसीन पलों के बीच उस ने जसवीर के आगे शादी का प्रस्ताव रख दिया. जसवीर को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई. उस ने शानू को आगोश में लेते हुए शादी के लिए हां कर दी. लेकिन उस ने यह भी कहा कि शादी के पहले उसे अपनी पत्नी गुरप्रीत को रास्ते से हटाना होगा.

शानू जसवीर के मुंह से पत्नी की हत्या के बाद शादी की बात सुन कर खुश हो गई. इस के बाद वह जब भी जसवीर से मिलती, उस के ऊपर शादी के लिए दबाव जरूर डालती.

सितंबर में किसी तरह गुरप्रीत को पता चल गया कि जसवीर का संबंध बरेली की किसी लडक़ी से है तो वह उस पर उस लडक़ी से संबंध तोडऩे के लिए दबाव डालने लगी. लेकिन जसवीर तो उसे ही रास्ते से हटाना चाहता था. इसलिए उस ने गुरप्रीत की हत्या की तैयारी कर ली. वह पिंकू उर्फ महेंद्र के साथ शानू से मिलने जौहरपुर गया. पिंकू जसवीर की हर बात का राजदार था.

शानू को ले कर वे सीबीगंज के परसाखेड़ा इंडस्ट्रियल एरिया पहुंचे, जहां तीनों ने गुरप्रीत को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. वहां से घर लौट कर जसवीर मौके की तलाश में लग गया. गुरप्रीत को विश्वास में लेने के लिए अब वह उस से प्यार से पेश आने लगा. जसवीर का बदला व्यवहार देख कर मासूम गुरप्रीत को लगा कि शायद जसवीर की अक्ल ठिकाने आ गई है. वह उस की बातों पर विश्वास करने लगी.

21 नवंबर को जसवीर ने गुरप्रीत से बच्चों से मिलने के लिए शहर चलने को कहा तो बच्चों से मिलने के लिए लालायित गुरप्रीत उस के साथ चलने को तैयार हो गई. इस के बाद जसवीर ने पिंकू को फोन कर के बता दिया कि वह कल गुरप्रीत को ले कर शहर आएगा, इसलिए वह उस की हत्या की पूरी तैयारी कर ले.

22 नवंबर को भी जसवीर ने सुबह पिंकू को फोन किया. इस के बाद अपनी योजना के अनुसार, वह सुबह 10 बजे गुरप्रीत को ले कर घर से निकला और फतेहगंज पश्चिमी होता हुआ मिलक पहुंचा. वहां जसवीर की मामी रहती थीं. कुछ देर वहां रुक कर वह फतेहगंज और सीबीगंज होता हुआ अपने बच्चों के पास छावनी हार्डमैन पहुंचा.

गुरप्रीत को बच्चों के पास छोड़ कर वह सूखा छावनी में पिंकू से मिला और उस से कहा कि वह शाम 6 बजे गुरप्रीत को अपनी मोटरसाइकिल से ले कर सोहरा होता हुआ घर की ओर जाएगा, वह नत्थू मुखिया के खेतों के पास उस से मिले. उसी सुनसान जगह पर गुरप्रीत की हत्या करनी है.

पिंकू को गुरप्रीत की हत्या की योजना समझा कर जसवीर बच्चों के पास लौट आया. शाम 6 बजे वह गुरप्रीत के साथ वापस घर जाने के लिए निकला तो रास्ते में फतेहगंज पश्चिमी चौराहे पर रुका. वहां उस ने कृष्णा से गन्ने के रुपए लिए. उसी बीच पिंकू पहले से तय योजना के अनुसार, अगरास जाने वाले रास्ते से कैथोला बेनीराम गांव के बाहर नत्थू मुखिया के खेतों के पास पहुंच गया और जसवीर के आने का इंतजार करने लगा.

जसवीर वहां पहुंचा तो पिंकू ने उसे हाथ दे कर रोक लिया. जसवीर ने गुरप्रीत को मोटरसाइकिल से उतरने के लिए कहा. अपनी हत्या से अनजान गुरप्रीत मोटरसाइकिल से उतर कर खड़ी हो गई. इस के बाद जसवीर ने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी की और कमर में खोंसा तमंचा निकाल कर उस की कनपटी से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही गुरप्रीत गिर कर तड़पने लगी. इस के बाद पिंकू ने तमंचा निकाला और गुरप्रीत के सीने में गोली मार दी.

इस के बाद पहले से तय योजना के अनुसार, पिंकू ने अपने तमंचे में दोबारा गोली भरी और जसवीर के कान के पास लगा कर गोली चला दी, ताकि पुलिस के सामने वह खुद को निर्दोष बता कर गुरप्रीत की हत्या का आरोप अपने पुराने दुश्मन नबी बख्श पर लगा सके. इस के लिए उस ने अपनी जान की भी परवाह नहीं की. जब पुलिस ने नबी बख्श को नहीं पकड़ा तो उस ने पेट के पास तमंचा सटा कर गोली मारी और थाने पहुंच गया. लेकिन पुलिस के सामने उस की यह चालाकी भी काम नहीं आई और वह पकड़ा गया.

अनिल कुमार सिरोही ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त उस का तमंचा नत्थू मुखिया के खेत के पास से बरामद कर लिया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मुकदमे में पिंकू और शानू का नाम भी जोड़ दिया है. शानू को धारा 120बी का अभियुक्त बनाया गया है.

कथा लिखे जाने तक पुलिस पिंकू और शानू को गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. इस बीच अनिल कुमार सिरोही का तबादला हो गया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम में डूबी जब प्रेमलता – भाग 3

स्कूल में छुट्टी होने की वजह से गवेंद्र पत्नी से मिलने आगरा पहुंच गया. उस का वहां आना प्रेमलता को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह उसे भगा भी नहीं सकती थी. रात का खाना खा कर वह सो गया.

अचानक उस की आंख खुली तो उस ने प्रेमलता को मोबाइल पर किसी से हंसहंस कर बात करते पाया. उस की बातचीत सुन कर पता चला कि वह किसी बबलू से बातें कर रही थी. उस ने फोन काटा तो गवेंद्र ने पूछा, “यह बबलू कौन है, जिस से तुम इतनी रात को बातें कर रही थी?”

“यहीं पड़ोस में रहता है. उस से किसी काम के लिए कहा था, उसी के बारे में बात कर रही थी.”

“उस के बारे में तुम सुबह भी तो पूछ सकती थी.”

“अभी पूछ लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा.” प्रेमलता ने तमक कर कहा.

इस के बाद गवेंद्र को नींद नहीं आई. सुबह दोनों में बबलू को ले कर खूब झगड़ा हुआ. बबलू को पता नहीं था कि गवेंद्र अभी गया नहीं है, इसलिए जब दोनों में झगड़ा हो रहा था तो वह प्रेमलता के कमरे पर आ पहुंचा. उसे देख कर गवेंद्र ने पूछा, “तो तुम्हीं बबलू हो?”

गवेंद्र के इस सवाल पर बबलू सिटपिटा गया. घबराहट में बोला, “जी, हम ही बबलू हैं. पिंकी दीदी से कुछ काम था, इसलिए आ गया. जरूरत पडऩे पर कुछ मदद कर देता हूं.”

“कोई अपनी दीदी से देर रात को बातें नहीं करता. बबलू यह सब ठीक नहीं है. मेरे खयाल से तुम्हारा यहां आनाजाना ठीक नहीं है. इन की मदद के लिए मैं हूं न.”

गवेंद्र ने बबलू को दरवाजे से वापस कर दिया. प्रेमलता को यह बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. इसलिए उस ने तय कर लिया कि अब उसे किसी भी तरह गवेंद्र से छुटकारा पाना है. दूसरी ओर गवेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह प्रेमलता के बारे में पिता को बताए या न बताए. उसे लगा कि यह पतिपत्नी के बीच मामला है, इस में पिता को बता कर परेशान करना ठीक नहीं है.

इस तरह रामसेवक को कुछ पता नहीं चला. बच्चों की छुट्टियां पड़ गईं तो गवेंद्र ने बच्चों को आगरा पहुंचा दिया. इस बीच बबलू के साथसाथ उस के दोस्तों विनयकांत और सर्वेंद्र का भी प्रेमलता के यहां आनाजाना हो गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उसी कालेज से बीएमएस कर रहे थे. वहां रहते हुए उमंग और तमन्ना भी बबलू से हिलमिल गए थे.

एक दिन सभी ताजमहल देखने गए, जहां बबलू ने प्रेमलता के साथ फोटो खिंचवाए. इस तरह उन के प्यार का एक प्रमाण भी हो गया. इस के बाद तय हुआ कि गवेंद्र को रास्ते से हटा कर दोनों शादी कर लेंगे. यही नहीं, उस ने पूरी तैयारी भी कर ली. अब उसे मौके की तलाश थी.

30 नवंबर को प्रेमलता ने गवेंद्र को फोन किया तो पता चला कि रामसेवक वोट डालने गांव गए हैं. खेतों की बुवाई भी करानी है, इसलिए वह खेतों की बुवाई कराने तक गांव में ही रहेंगे. प्रेमलता ने बबलू से कहा कि गवेंद्र को निबटाने का यह अच्छा मौका है. बबलू ने अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत को दोस्ती के नाम पर साथ देने के लिए राजी कर लिया. इस तरह गवेंद्र की हत्या की पूरी तैयारी हो गई.

31 दिसंबर, 2015 को प्रेमलता बच्चों के साथ कीरतपुर आ गई. उसे देख कर गवेंद्र ने कहा, “फोन कर देती तो मैं बच्चों को लेने आ जाता.”

“मैं ने फोन इसलिए नहीं किया कि यहां आ कर घर भी देख लूंगी और तुम से भी मिल लूंगी.” प्रेमलता ने कहा.

योजना के अनुसार, 4 दिसंबर, 2015 को बबलू अपने दोनों दोस्तों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ मैनपुरी आ गया. कीरतपुर में ही उस का एक दोस्त रहता था, वे उसी के घर ठहर गए. उन का खाना प्रेमलता ने ही उमंग के हाथों भिजवाया था.

5 दिसंबर को गवेंद्र अपनी स्कूल की ड्यूटी कर के घर आया तो प्रेमलता उसे काफी बेचैन लगी. गवेंद्र ने पूछा तो प्रेमलता ने कहा, “मैं आगरा में रहती हूं तो तुम्हारी और बच्चों की चिंता लगी रहती है.”

गवेंद्र ने कहा, “कुछ दिनों की ही तो बात है. पढ़ाई पूरी होने पर मैनपुरी के आसपास नौकरी की कोशिश की जाएगी.”

प्रेमलता की इन बातों से गवेंद्र का मन साफ हो गया. उसे क्या पता था कि अब उस की जिंदगी कुछ ही घंटों की बची है. रात का खाना बना कर प्रेमलता ने सब को खिलाया. गवेंद्र को खाना खातेखाते ही नींद आने लगी. वह बिस्तर पर जा कर सो गया. प्रेमलता ने बच्चों को भी सुला दिया. जब मोहल्ले में सन्नाटा पसर गया तो उस ने बबलू को फोन कर के आने को कहा.

बबलू तो तैयार ही बैठा था. वह अपने दोनों साथियों, सर्वेंद्र और विनयकांत के साथ आ पहुंचा. प्रेमलता उन्हें उस कमरे में ले गई, जहां गवेंद्र सो रहा था. प्रेमलता ने गवेंद्र को खाने में नींद की गोलियां दे कर सुला दिया था, इसलिए सभी उस की ओर से निङ्क्षश्चत थे.

बबलू गवेंद्र का गला दबाने लगा तो वह जाग गया. उस के विरोध में हुए शोर से दूसरे कमरे में सो रहे उमंग की नींद टूट गई. शोर क्यों हो रहा है, यह जानने के लिए वह उस कमरे में आया तो देखा 4 लोग उस के पापा को दबोचे हुए थे. लेकिन तब तक गवेंद्र मर चुका था.

उमंग को देख कर सभी के होश उड़ गए. जो जहां था, वहीं खड़ा रह गया. अबब की नजरें उमंग पर टिकी थीं. बबलू एकदम से बोला, “यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई, इस ने जो देखा है, किसी से भी बता सकता है. अब इसे भी खत्म करना होगा.”

“नहीं, इसे कोई हाथ नहीं लगा सकता. तुम लोग लाश को इसी तरह पड़ी रहने दो. मैं इसे भी संभाल लूंगी और लाश को भी संभाल लूंगी. आगे क्या करना है, यह तुम मुझ पर छोड़ दो.” प्रेमलता ने कहा.

इस के बाद बबलू, सर्वेंद्र और विनयकांत चले गए. उन के जाने के बाद प्रेमलता बेटे को डराती रही कि वह किसी से कुछ नहीं बताएगा. अगर उस ने किसी को कुछ बताया तो वह उसे भी मार देगी. सवेरा होने पर प्रेमलता ने रोरो कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर के बताया कि गवेंद्र ने आत्महत्या कर ली है. इस के बाद खुद ही थाने जा कर पति की आत्महत्या की सूचना दे दी.

बबलू को उमंग से तो खतरा था ही, ताजमहल में उस ने प्रेमलता के साथ जो फोटो ङ्क्षखचवाए थे, उन से भी वह पकड़ा जा सकता था. इसीलिए वह उन के बारे में पता करने थाने आ गया और पकड़ा गया. सर्वेंद्र और विनयकांत भी उमंग से डर रहे थे, इसलिए उन्होंने उस का अपहरण करना चाहा, लेकिन रामसेवक को इस की भनक लग गई तो उन्होंने इस बात की जानकारी थाना विछवां के थानाप्रभारी जी.पी. गौतम को दे दी. जी.पी. गौतम ने उसे पुलिस सुरक्षा मुहैया करा दी.

पूछताछ के बाद बबलू और प्रेमलता को जेल भेज दिया गया है. फरार सर्वेंद्र और विनयकांत की पुलिस तलाश कर रही है.

मनोहर सिंह यादव ने इस मामले का खुलासा मात्र 9 दिनों में कर दिया. इस से खुश हो कर एसएसपी ने उन्हें 5 हजार रुपए ईनाम दिया है. रेनू और मंसूर अहमद ने जिस तरह सूझबूझ से पकड़वाया, इस के लिए उन्हें भी ढाईढाई हजार रुपए ईनाम दिया गया है.

एक क्रूर औरत की काली करतूत – भाग 2

अर्चना भले ही नहीं चाहती थी कि सुमिक्षा वहां रहे, लेकिन अब तो उसे वहीं रहना था. आखिर वही हुआ, जैसा ऊषा ने कहा था. अर्चना पूरी तरह वैसी सौतेली मां निकली, जैसा सौतेली मांओं के बारे में कहा जाता है. मां के व्यवहार से परेशान मासूम सुमिक्षा अकसर मंदिर के बरामदे में उदास बैठी रहती.

एक तो कालोनी की महिलाओं को पता चल गया था कि सुमिक्षा मंदिर के पुजारी बुद्धिविलास की पहली पत्नी की बेटी है, दूसरे उस में ऐसा न जाने क्या आकर्षण था कि हर महिला उस की ओर आकर्षित हो जाती थी.

सुमिक्षा के आने के बाद अर्चना को बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने सुचित रखा. भाई के पैदा होने से सुमिक्षा का ध्यान मां की ओर से हट कर भाई पर जम गया. वह भाई के साथ अपना दिल बहलाने लगी. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद अर्चना और क्रूर हो गई.

मंदिर के पास ही बनी मातृछाया बिल्डिंग में रहने वाले दवा व्यापारी अजय कौशिक की पत्नी संध्या कौशिक भी पूजापाठ के लिए मंदिर आती रहती थीं. एक दिन संध्या पूजापाठ कर के मंदिर के सीढि़यां उतर रही थीं तो सीढि़यों पर उन्हें रोती हुई सुमिक्षा मिल गई. उन्होंने रोने की वजह पूछी तो सुमिक्षा ने बताया कि मम्मी ने मारा है.

संध्या को पता था कि सुमिक्षा की मां अर्चना सौतेली है, जो उसे परेशान करती है. इसलिए उन्हें सुमिक्षा पर दया आ गई और वह बुद्धिविलास से पूछ कर उसे अपने घर ले गईं. उस दिन सुमिक्षा ने अपनी प्यारीप्यारी बातों से संध्या का मन मोह लिया. इस के बाद पता नहीं क्यों उन के मन में आया कि अगर वह सुमिक्षा को अपना लें तो उन के बेटों को एक प्यारी सी बहन मिल जाएगी.

शाम को बुद्धिविलास सुमिक्षा को अपने घर ले गया, पर संध्या की ममता सुमिक्षा के साथ जुड़ चुकी थी. उस दिन के बाद संध्या को सुमिक्षा अपनी बेटी सी लगने लगी. मन की बात जब उन्होंने अपने पति अजय कौशिक से कही तो वह सोच में पड़ गए. पराई बेटी के प्रति पत्नी के मोह ने उन्हें चिंता में डाल दिया था. वह जानते थे कि संध्या को एक बेटी की कमी खलती है, लेकिन दूसरे की बेटी के प्रति इतना प्यार उन की समझ में नहीं आ रहा था.

उस दिन के बाद संध्या अक्सर सुमिक्षा को अपने घर ले आने लगी. इस बीच उन्होंने महसूस किया कि सुमिक्षा काफी बुद्धिमान है. अगर इसे कायदे से पढ़ायालिखाया जाए तो आगे चल कर यह कुछ कर सकती है.

लगातार आते रहने से मासूम सुमिक्षा ने अजय कौशिक के दिल में भी अपने लिए जगह बना ली. अब वह उन के घर को अपना घर समझने लगी और कौशिक दंपति को मम्मीपापा कहने लगी. संध्या ने उस का नया नाम बिट्टू रख दिया. कालोनी वालों को भी पता चल गया कि संध्या सुमिक्षा को बेटी की तरह मानती हैं.

संध्या ने बुद्धिविलास से कहा कि वह सुमिक्षा को पढ़ाना चाहती हैं. अगर वह बुरा न माने तो वह उस का दाखिला करा दें. बुद्धिविलास को भला क्यों बुरा लगता. बेटी पढ़लिख कर कुछ बन जाए, इस से अच्छा और क्या हो सकता था. उस ने हामी भर दी तो भागदौड़ कर के अजय कौशिक ने सुमिक्षा का दाखिला आगरा के जानेमाने कान्वेंट स्कूल सेंट फ्रांसिस स्कूल में करा दिया.

सुमिक्षा स्कूल जाने लगी. स्कूल में सभी को यही लगता था कि वह अजय कौशिक की बेटी है. सुमिक्षा को पढ़ाई में दिलचस्पी थी, उस की राइटिंग भी बहुत अच्छी थी. अजय कौशिक ने सुमिक्षा का ट्यूशन भी कालोनी की टीचर विजय कुलश्रेष्ठ के यहां लगवा दिया था. सुमिक्षा अक्सर संध्या से सौतेली मां के अत्याचारों के बारे में बताती रहती थी.

सुमिक्षा का एक अच्छे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ना अर्चना को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था. सौतेली बेटी के प्रति लोगों का स्नेह उस के मन में ईर्ष्या पैदा कर रहा था. उस ने यह भी महसूस किया था कि बुद्धिविलास अभी भी अपनी पहली पत्नी को भुला नहीं पाया है. उसे लगता था कि जब तक सुमिक्षा उस के साथ रहेगी, तब तक वह पहली पत्नी को भुला भी नहीं पाएगा. इसलिए वह किसी भी तरह सुमिक्षा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी.

इस के बाद अर्चना सुमिक्षा को पहले से ज्यादा परेशान करने लगी. डर की वजह से सुमिक्षा पिता से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाती थी. लेकिन कालोनी की अन्य औरतों को जब पता चला कि अर्चना इधर सुमिक्षा को कुछ ज्यादा ही परेशान करने लगी है तो उन्होंने इस बात की शिकायत बुद्धिविलास से कर दी.

जब बुद्धिविलास को पता चला कि अर्चना सुमिक्षा को परेशान करती है तो वह बेचैन हो उठा. वह बेटी के लिए ही उसे ब्याह कर लाया था. गुस्से में उस ने अर्चना की पिटाई कर दी.

पति की इस हरकत से अर्चना को बहुत गुस्सा आया. सुमिक्षा से वह वैसे ही नफरत करती थी, इस घटना से उस की नफरत और बढ़ गई. उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह सुमिक्षा से छुटकारा पा कर ही चैन की सांस लेगी. इस के बाद वह पति से नाराज हो कर मायके चली गई.

अर्चना के जाने के बाद संध्या सुमिक्षा को अपने घर ले गई. जब सुमिक्षा संध्या के घर महीने भर से ज्यादा रह गई तो संध्या का मन हुआ कि वह सुमिक्षा को कानूनी तौर पर गोद ले लें. इस के लिए उन्होंने बुद्धिविलास से बात की, लेकिन वह तैयार नहीं हुआ.

दूसरी ओर अर्चना मायके पहुंची तो घर वालों की लगा कि वह घूमने आई होगी. लेकिन जब अर्चना ने कहा कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी तो रमेश मिश्रा ने कहा, ‘‘बेटी की शादी कर के मांबाप यह सोच लेते हैं कि वे उस से मुक्त हो गए. मैं भी तुम से मुक्त हो चुका हूं. इसलिए अब तुम्हारे लिए इस घर में कोई जगह नहीं है.’’

मायके में अर्चना को कोई कामधाम तो करना नहीं होता था, इसलिए अपना समय वह टीवी पर आने वाले धारावाहिक देख कर बिताती थी. उन में कुछ आपराधिक कहानियों वाले धारावाहिक भी थे. उन्हीं में से कोई धारावाहिक देख कर उस ने सौतेली बेटी सुमिक्षा से छुटकारा पाने का उपाय खोज लिया.