इंसाफ की राह : किस की थी वो दुआ? – भाग 1

आंख खुलते ही इफ्तिखार अहमद को किचन से आने वाली बच्चों की आवाजें सुनाई दीं. वे आवाजें खुशी से चहकने की थीं. बच्चे इस तरह चहक रहे थे, जैसे परिंदे रात खत्म होने पर सुबह का उजाला देख कर चहकते हैं. उन आवाजों में सब से प्यारी आवाज दुआ की थी.

दुआ इफ्तिखार अहमद की छोटी बेटी थी. बहुत ही प्यारी, एकदम बार्बी डौल जैसी. इफ्तिखार अहमद हाईकोर्ट के मशहूर और कामयाब वकील थे. उन के मुकदमा हाथ में लेते ही सामने वाला समझ लेता था कि वह मुकदमा हार चुका है. अदालत में उन के खड़े होते ही जज भी होशियार हो जाता. क्योंकि उन की दलीलें कानून की बेहतरीन मिसालें होती थीं और दुनिया भर के माने हुए कानूनी उदाहरण उन की बहस का हिस्सा होते थे.

आम लोग ही नहीं, उन के साथी वकील और जज भी उन्हें कानून का जिन्न कहते थे. लेकिन उन लोगों को पता नहीं था कि इस जिन्न की जान अपनी नन्ही सी बेटी दुआ में बसती है. वह दुनिया में अगर सब से ज्यादा किसी से मोहब्बत करते थे तो वह उन की बेटी दुआ थी. किसी से हार न मानने वाले इफ्तिखार अहमद नन्ही सी दुआ के सामने छोटी से छोटी बात पर घुटने टेक देते थे.

इफ्तिखार अहमद के 4 बच्चे थे, 3 बेटे और बेटी दुआ. बच्चों में वही सब से छोटी थी. 6 साल की दुआ का स्कूल में एक साल पहले ही दाखिला कराया गया था. इफ्तिखार अहमद अभी उस का दाखिला नहीं कराना चाहते थे, लेकिन उन की बीवी मदीहा, जो एक स्कूल में पढ़ाती थी, की जिद के आगे उन की एक न चली और नजदीक के एक स्कूल में उस का दाखिला करा दिया गया था.

लेकिन दुआ का दाखिला कराने से पहले इफ्तिखार अहमद ने खुद स्कूल जा कर प्रिंसिपल और वहां पढ़ाने वाली अध्यापिकाओं से मिल कर तसल्ली की थी. जब वहां की प्रिंसिपल और अध्यापिकाओं ने उन्हें तसल्ली कराई थी कि वे दुआ को संभाल लेंगी, इस के बाद ही उन्होंने वहां उस का नाम लिखाया था.

इफ्तिखार आंखें बंद किए उन आवाजों का मजा ले रहे थे. तभी उन्हें याद आया कि आज का दिन उन के लिए बहुत खास है. आज अली भाई के मुकदमे की तारीख थी और उस की जमानत पर सुनवाई होनी थी. अली भाई एक फार्मास्युटिकल कंपनी का मालिक था. कुछ महीने पहले उस की कंपनी की बनी एक दवा के इस्तेमाल से बीमारी और मौत का सिलसिला सा चल पड़ा था.

जांच और परीक्षण के बाद पता चला था कि उस दवा में एक कैमिकल की मात्रा जरूरत से कई गुना ज्यादा थी. वही मौत का कारण बन गया था. अली भाई पैसे वाला आदमी था. सरकार में बैठे लोगों तक उस की पहुंच थी. लोगों को दिखाने के लिए पुलिस ने काररवाई की और कंपनी के कुछ छोटेमोटे कर्मचारियों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

लेकिन मीडिया इस से संतुष्ट नहीं हुआ और उस ने असलियत का पता लगा लिया. कंपनी के कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग कर के पता कर लिया था कि इस मामले में गलती किस की थी. स्टिंग में कैमिकल इंजीनियर कह रहा था कि इस मामले में पूरी की पूरी गलती कंपनी के मालिक अली भाई की थी. उस ने उन से कहा था कि इस केमिकल की वजह से दवा फायदा पहुंचाने के बजाय खाने वाले को नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए इस का उपयोग करना ठीक नहीं होगा.

लेकिन कैमिकल और दवा इतनी ज्यादा बन चुकी थी कि अगर उसे बेकार किया जाता तो कंपनी को करोड़ों का नुकसान होता. इसलिए अली भाई ने कहा था कि दवा बना कर बाजार में भेजो, बाद में जो होगा, देखा जाएगा. दवा के इस्तेमाल से जब दर्जनों लोग मर गए तो मीडिया के शोर मचाने पर हाईकोर्ट ने उन्हीं खबरों के आधार पर खुद ही इस मामले को संज्ञान में लिया था.

इसीलिए इस मामले की पुलिस ने उल्टीसीधी जांच कर के छोटेमोटे कर्मचारियों को जेल भेज कर जो रिपोर्ट पेश की थी, उस पर कोर्ट को विश्वास नहीं हुआ था. पुलिस ने तो कंपनी के मालिक अली भाई को साफ बचा लिया था, लेकिन जब कैमिकल इंजीनियर का स्टिंग दिखाया गया तो कोर्ट ने उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और दूसरे एक ईमानदार पुलिस अधिकारी से मामले की जांच कराई.

इस जांच अधिकारी ने मेहनत लगन और ईमानदारी से मामले की नए सिरे से जांच शुरू की. लेकिन उस पर दबाव डाल कर जांच रुकवा दी गई. मीडिया ने होहल्ला मचाया तो जांच फिर से शुरू हुई. इस तरह रिपोर्ट आने में काफी समय लग गया.

इस दूसरी जांच की रिपोर्ट के अनुसार, जिस दवा से इतनी मौतें हुई थीं, उसे बनवाने और बाजार में भेजने की जिम्मेदारी अली भाई पर आ गई थी. उस के असर को जानते हुए भी उन्होंने दवा बना कर बाजार में भेजने का आदेश दिया था. सच्चाई सामने आने के बाद अदालत ने उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया था. अदालत के आदेश के बाद भी उन की गिरफ्तारी आसानी से नहीं हो सकी थी.

अली भाई के पास पैसों की कमी तो थी नहीं. उन्होंने अच्छे से अच्छे वकील किए. एक तरह से उन्होंने वकीलों की पूरी पैनल ही खड़ी कर दी थी. इन वकीलों ने सरकार को उस के पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था. जेल में उसे हर सुविधाओं वाला सेल मिला था. उन के लिए खाना भी घर से आता था. मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा भी मिली थी.

दबाव की वजह से सरकारी वकील अली भाई वाले मुकदमे की पैरवी मन से नहीं कर रहा था. उस के रुख को देखते हुए यही लग रहा था कि वह अली भाई को सजा से बचाना चाहता है. उस के रवैए से यही लग रहा था कि जल्दी ही अली भाई को जमानत मिल जाएगी. कहा जा रहा था कि जमानत मिलते ही वह विदेश भाग जाएगा.

अली भाई को पूरा विश्वास था कि जो हालात चल रहे हैं, उसे जल्दी ही जमानत मिल जाएगी. लेकिन अचानक इस में एक बाधा खड़ी हो गई. जिन लोगों के घर वाले अली भाई की कंपनी की दवा खा कर मरे थे, उन्होंने सरकारी वकील पर अविश्वास जताते हुए अपने वकील के रूप में इफ्तिखार अहमद को अदालत में खड़ा कर दिया. सरकारी वकील के रवैए से अदालत भी संतुष्ट नहीं था. इसलिए इफ्तिखार अहमद को मुकदमे की पैरवी की इजाजत मिल गई.

साजिश का तोहफा – भाग 1

महाराष्ट्र सरकार के अटार्नी जनरल नण्वीन करमाकर की पत्नी अवंतिका ने रात का खाना तैयार कर के खाने को कहा तो उन्होंने टीवी पर से नजरें हटा कर कहा, ‘‘खाना हम थोड़ा देर से खाएंगे. अभी कुछ लोग आने वाले हैं.’’

‘‘कौन?’’ अवंतिका ने पूछा.

‘‘वही स्वाति और मनोज, जिन की इसी दिवाली पर तुम ने शादी कराई थी.’’

‘‘मैं किसी की शादी कराने वाली कौन होती हूं.’’ अवंतिका ने कहा, ‘‘मैं ने तो सिर्फ उन का परिचय कराया था, बाकी के सारे काम तो उन्होंने खुद किए थे. कुछ भी हो, दोनों हैं बहुत अच्छे.’’

‘‘अगर तुम कह रही हो तो अच्छे ही होंगे.’’ नवीन करमाकर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यह सुन कर दुख होगा कि मनोज जैसे ही हनीमून से लौटा, उसे नौकरी से निकाल दिया गया. सोचो, उस के साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ. शायद इसी बारे में वह हम से मिलने आ रहा है?’’

‘‘शायद वे लोग आ भी गए.’’ अवंतिका ने कहा.

इतना कह कर अवंतिका बाहर आई और कुछ पल बाद लौटी तो उस के साथ मनोज और स्वाति थे. स्वाति छरहरे बदन की काफी सुंदर युवती थी तो मनोज भी उसी की तरह लंबे कद का मजबूत कदकाठी वाला युवक था. उस की काली आंखों से ईमानदारी साफ झलक रही थी. यह एक ऐसा जोड़ा था, जिसे देख कर कोई भी आकर्षित हो सकता था. लेकिन उस समय दोनों के चेहरों पर परेशानी साफ झलक रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद मनोज ने कहा, ‘‘आप तो अटार्नी जनरल हैं. मैं आप के पास इसलिए आया हूं कि आप मुझे पुलिस के हाथों पकड़वा दें.’’

मेहमान की इस इच्छा पर नवीन करमाकर ने हैरानी से कहा, ‘‘इस की भी कोई वजह होगी. बेहतर होगा कि पहले आप वजह बताएं. उस के बाद जो उचित होगा, वह किया जाएगा.’’

‘‘मेरा पूरा नाम मनोज सोलकर है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘कोलाबा में जो सोलकर इंस्टीटयूट है, उसे तो आप जानते ही हैं, क्योंकि आप ने वहां पढ़ाई की थी.’’

मनोज के इतना कहते ही नवीन करमाकर को सोलकर इंस्टीटियूट याद आ गया. कोलाबा के उस वैभवशाली शिक्षा संस्थान और रिसर्च इंस्टीटयूट को सोमनाथ सोलकर ने सन 1970 में बनवाया था. वह खुद भी एक आविष्कारक थे. उन्हें नए नए आविष्कार करने में काफी दिलचस्पी रहती थी. उन्होंने काफी आविष्कार किए भी थे. इस संस्था की स्थापना उन्होंने विज्ञान और उद्योग के विकास के काम के लिए की थी.

‘‘मैं सोमनाथ सोलकर का पोता हूं.’’ मनोज सोलकर ने कहा तो नवीन करमाकर चौंके. वह कुछ कहते, उस के पहले ही मनोज ने कहा ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से वह मेरे बारे में कुछ नहीं जानते. क्योंकि काफी समय पहले मेरे मातापिता से उन का झगड़ा हो गया था तो उन्होंने संबंध खत्म कर लिए थे.

मैं 4 साल का था, तभी प्लेन क्रैश में मेरे पिता की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद मेरे दादाजी का व्यवहार मेरे और मेरी मां के प्रति और ज्यादा कठोर हो गया था. उन्होंने हम दोनों से कभी कोई संबंध नहीं रखा. मेरी मां ने नौकरी कर के मुझे पढ़ाया लिखाया. मां के प्रयास से ही किसी तरह मैं ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया तो था कि तुम्हारी मां को शहरी जीवन से घबराहट होने लगी थी, इसलिए कई सालों पहले वह देहाती इलाके में रहने चली गई थीं.’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘जी हां, उन्होंने लोनावाला में अपने लिए एक मकान खरीद लिया था क्योंकि वह उन का पैतृक गांव था.’’ मनोज ने कहा, ‘‘तब तक मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. उस के बाद मैं ने एक स्कूल में नौकरी कर ली थी. मुझे पढ़ने का शौक था. फिर बच्चों को पढ़ाने के लिए भी पढ़ना पड़ता था, इसलिए मैं किताबें लेने के लिए सोलकर इंस्टीटयूट की लाइब्रेरी जाता रहता था. पिछले साल दिसंबर में मैं लाइब्रेरी से लौट रहा था तो मेरी मुलाकात इंस्टीटयूट के डायरेक्टर रमेश गायकवाड़ से हो गई.’’

‘‘एक तरह से रमेश गायकवाड़ ही इंस्टीटयूट के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. इंस्टीटयूट का सारा काम वही देखते हैं. उन्होंने कई बार मुझे आते जाते देखा था. उन्हें मेरे बारे में काफी कुछ पता था. वह मेरा नाम भी जानते थे. उस दिन मिलने पर उन्होंने मुझ से पूछा, ‘मुझे पता चला है कि तुम इस इंस्टीट्यूट के संस्थापक सोमनाथ सोलकर के पोते हो?’

‘‘जी मैं उन का पोता हूं.’’

‘‘तब तो आप को हमारे साथ काम करना चाहिए. सोलकर परिवार का सदस्य होने के नाते तुम्हारी जगह यहां है.’’

‘‘उस दिन हम दोनों के बीच काफी लंबी बातचीत हुई. मैं ने हामी भर दी कि स्कूल का कौंट्रैक्ट खत्म होने के बाद मैं यहां आ जाऊंगा. मैं बहुत खुश था, क्योंकि स्कूल में पढ़ाने का मुझे बहुत ज्यादा शौक नहीं था. इंस्टीटयूट के स्टाफ में शामिल के लिए मैं लालायित रहता था.’’

‘‘तो तुम्हें स्टाफ में शामिल कर लिया गया था?’’ नवीन करमाकर ने पूछा.

‘‘नहीं, रमेश गायकवाड़ ने मुझे अस्थाई नौकरी पर रखा था. उसी बीच मैं ने और स्वाति ने शादी का निर्णय लिया. मैं ने गायकवाड़ को बताया कि मैं शादी कर रहा हूं तो उस ने खुशी प्रकट करते हुए मुझे मुबारकबाद दी और हनीमून के लिए एक सप्ताह की छुट्टी भी दे दी. लेकिन हनीमून से लौट कर जब मैं इंस्टीट्यूट पहुंचा तो मुझे चोर कह कर नौकरी से निकाल दिया गया.’’

इतना कह कर मनोज ने एक लंबी सांस ली. इस के बाद कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘हुआ यह कि जब मैं उसे अपनी शादी के बारे में बताने गया था तो उस ने अपने औफिस में मौजूद तिजोरी खोल कर उस में से 10 हजार रुपए निकाल कर बड़ी शान से कहा था, ‘हमारे यहां हर कर्मचारी को शादी के समय कुछ रकम तोहफे में देने की परंपरा है.’

‘‘रकम थमाते समय जैसे उसे कुछ याद आया हो इस तरह घड़ी देखते हुए उस ने कहा, ‘मुझे जरा कस्टोडियन से बात करनी है. मैं बात कर के अभी आया.

‘‘अब कह रहा है कि जो रकम जो उस ने मुझे उपहार में दी थी, वह मैं ने चोरी की थी. उस का कहना है कि जब वह कस्टोडियन से मिलने चला गया था तो मैं ने तिजोरी से वह रकम चुरा ली थी, क्योंकि भूल से वह तिजोरी खुली छोड़ गया था.’

‘‘आज उस ने मुझ से कहा कि मैं सोलकर परिवार का सदस्य हूं, इसलिए वह मेरे खिलाफ कानूनी काररवाई नहीं करना चाहता, लेकिन बदले में मुझे यह शहर छोड़ कर जाना होगा. क्योंकि अगर कभी बात खुल गई तो इस से मेरी बड़ी बदनामी होगी.’’

साजिश का तोहफा – भाग 2

कहते कहते गुस्से की वजह से मनोज की आवाज थोड़ी ऊंची हो गई थी. उस ने आगे कहा, ‘‘लेकिन मैं अपना भविष्य बरबाद नहीं करना चाहता. चोरी का आरोप लगने के बाद मुझे कोई बढि़या नौकरी मिल नहीं पाएगी. फिर मैं खुद भी अपनी नजरों में गिरा रहूंगा. इस के अलावा वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता है. इसलिए मैं यह साबित करना चाहता हूं कि मुझ पर चोरी का यह जो आरोप लगा है, वह झूठा है.’’

इतना कह कर जैसे ही मनोज चुप हुआ, स्वाति बोली, ‘‘मनोज ने अभी तक इस घटना के बारे में अपनी मां को भी कुछ नहीं बताया है. फिर इतनी शर्मनाक बात बताई भी कैसे जा सकती है.’’

‘‘तुम बता सकते हो कि रमेश ने तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मैं ने उस से पूछा तो था कि वह ऐसा क्यों हर रहा है? मैं चिल्लाया भी था कि अगर मैं चोर हूं तो वह पुलिस को बुलाए और रिपोर्ट लिखा कर मुझे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने जवाब देने के बजाय मुझे औफिस से निकाल दिया. वहां से आने के बाद मैं ने अपने एकाउंट से 10 हजार रुपए निकलवाए और एक आदमी के हाथों उस के पास भिजवा दिए. मैं इस मामले को किसी किनारे लगते देखना चाहता हूं, इसीलिए आप से कह रहा हूं कि आप मुझे गिरफ्तार करवा दीजिए. क्योंकि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे क्या करना चाहिए.’’

‘‘अभी तो अवंतिका के हाथ की बनी मिठाई खा कर कौफी पियो. कल रमेश गायकवाड़ से मिलते हैं. उस के बाद सोचते हैं कि इस मामले में हमें क्या करना चाहिए.’’ नवीन करमाकर ने कहा.

अगले दिन नवीन मनोज के साथ रमेश से मिलने सोलकर इंस्टीटयूट पहुंचे. नवीन ने अपने तौर पर फोन कर के रमेश से मुलाकात का समय ले लिया था. लेकिन जब दोनों रमेश के औफिस में दाखिल होने लगे तो गेटकीपर ने मनोज को रोक लिया, ‘‘डायरेक्टर साहब ने तुम्हें अंदर न जाने देने का आदेश दिया है. इसलिए तुम अंदर नहीं जा सकते.’’

अपने इस अपमान से मनोज का चेहरा गुस्से से सुर्ख पड़ गया, लेकिन वह कुछ बोला नहीं. वह वहीं बाहर ही बैठ गया. नवीन अंदर चले गए. रमेश ने बड़े ठंडे अंदाज से नवीन का स्वागत किया. उस की बगल में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पक्की उम्र का आदमी बैठा था. रमेश ने नवीन से उस का परिचय कराया.

उस आदमी का नाम शशांक ठाकरे था और वह इंस्टीटयूट का कानूनी सलाहकार था. परिचय करने के बाद रमेश ने कहा, ‘‘शायद आप उस नौजवान चोर के बारे में बात करना चाहते हैं, जिसे मैं ने अंदर आने से रोकवा दिया है. कृपया संक्षेप में बात करिएगा, मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘समय मेरे पास भी ज्यादा नहीं है.’’ नवीन ने कड़वे लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत ही संक्षेप में एकदम सीधी बात करूंगा. आप ने मनोज का इंस्टीट्यूट में आना तो बंद ही करा दिया है, अब उसे इस शहर से बाहर भेजना चाहते हैं, इस की कोई विशेष वजह?’’

रमेश के कोई जवाब देने से पहले ही संस्था के कानूनी सलाहकार शशांक ठाकरे ने कहा, ‘‘लगता है, आप उस के बचाव में आए हैं?’’

‘‘वही समझ लो. मैं चाहता हूं कि आप लोग उस के खिलाफ बाकायदा चोरी का मुकदमा दर्ज करवाएं और अपना आरोप सिद्ध करें. वरना मैं उस नौजवान को सलाह दूंगा कि वह आप के खिलाफ मानहानि का दावा करे.’’ नवीन ने कहा.

‘‘अगर ऐसी कोई कोशिश की जाती है तो मैं यही समझूंगा कि आप यह सब पैसे के लिए कर रहे हैं. हम इस बात को लोगों के सामने लाने की कोशिश् करेंगे. बहरहाल अब आप जा सकते हैं.’’ शशांक ठाकरे ने कहा.

बाहर आने के बाद नवीन ने कहा, ‘‘अंदर हुई बातचीत से मुझे यही लग रहा है कि किसी वजह से तुम्हारा इंस्टीट्यूट में आना जाना रमेश को परेशान कर रहा था. इसी वजह से उस ने ऐसा किया है. लेकिन वह चाहता तो तुम्हें किसी दूसरे तरीके से भी रोक सकता था.’’

‘‘लेकिन मुझे यहां आने से रोकने के लिए नौकरी देने और यह सब करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘एक नौकर पर आरोप लगाना आसान ही नहीं होता, बल्कि थोड़ी कोशिश के बाद उसे सिद्ध भी किया जा सकता है.’’ नवीन ने कहा.

‘‘रमेश की कोशिश का संबंध तुम्हारे इस संस्था के संस्थापक के पोते होने से भी हो सकता है.’’

‘‘मुझे भी यही लगता है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मेरे दादाजी कभी न कभी इस संस्था का दौरा करने तो आते ही होंगे. शायद रमेश नहीं चाहता कि उन से मेरी मुलाकात हो. आखिर वह मुझे उन से मिलने से रोकना क्यों चाहता था, उसे क्या डर था?’’

‘‘यह सब छोड़ो. मैं तुम्हारी ओर से मानहानि और तुम्हारे खिलाफ साजिश रचने का मुकदमा दायर करता हूं.’’ नवीन ने कहा.

मनोज ने सहमति जताई तो पूरी तैयारी कर के नवीन करमाकर ने उस की ओर से मानहानि की याचिका दायर कर दी. लेकिन उस याचिका पर जिस दिन सुनवाई होनी थी, उस दिन मनोज ने खुद आने के बजाय एक पत्र और उस के साथ चैक भेज दिया था.

फिर सुनवाई के समय नवीन ने वह पत्र और चैक अदालत को दिखाते हुए कहा, ‘‘योर औनर, मनोज सोलकर की ओर से मानहानि और उस के खिलाफ साजिश रचने की मैं ने जो याचिका दायर की थी, उस के संबंध में आज सुबह मुझे यह पत्र और चैक मिला. पत्र में उस ने लिखा है कि वह यह याचिका वापस लेना चाहता है, क्योंक वह यह शहर छोड़ कर जा रहा है. उस ने मुझे कष्ट देने के लिए क्षमा मांगते हुए मेरी फीस के तौर पर कुछ रकम का यह चैक भेजा है. पत्र पाने के बाद मैं अपने मुवक्किल के फ्लैट पर पहुंचा तो वह पत्नी के साथ सचमुच जा चुका था.’’

‘‘इस का मतलब इस याचिका को खारिज कर दिया जाए?’’ जज ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ नवीन ने कहा, ‘‘मुझे लगता है, यह पत्र दूसरे पक्ष ने उस पर कोई दबाव डाल कर लिखवाया है.’’

नवीन का इतना कहना था कि दूसरे पक्ष के वकील शशांक ठाकरे ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘योर औनर यह आरोप सरासर गलत है. अगर याचिका दायर करने वाला याचिका वापस ले रहा है तो उस पर कार्यवाही कर के याचिका को खारिज कर देना चाहिए. जब याचिका दायर करने वाला ही नहीं है तो उस पर कार्यवाही क्या होगी?’’

‘‘वकील साहब, शायद आप भूल गए हैं कि दीवानी के दावे में दोनों पक्षों की मौजूदगी जरूरी नहीं है.’’ नवीन ने कहा.

नवीन की बात काटते हुए शशांक ने कहा, ‘‘बात दरअसल यह है कि मनोज के वकील ने ही उस पर दबाव डाल कर यह दावा कराया है. शायद इस तरह वह कुछ रकम कमाना चाहते थे. लेकिन जब मनोज को लगा कि इस मामले में कुछ नहीं होने वाला तो उस ने पीछे हट जाना ही मुनासिब समझा. इस मामले में मैं मनोज सोलकर के वकील से पूरी जिरह करना चाहता हूं.’’

शक्की शौहर की भयानक करतूत : पत्नी और मासूम बच्चों की बेरहमी से हत्या

मौसी के हुस्न का शिकारी

नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों  की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.

इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.

हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’

‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.

‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.

‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.

‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’

‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.

‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.

पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.

जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.

विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’

‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.

‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.

चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’

‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’

मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’

कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.

विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.

इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.

दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.

इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.

एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.

टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.

पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.

पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.

पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.

जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.

इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.

विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.

एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.

तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.

विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.

इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.

इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.

क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.

विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजबूत डोर के कमजोर रिश्ते : भाई क्यों बना कसाई?

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 3

एटीएम से आरोपी तक पहुंची पुलिस

जबकि राहुल जिंदा है और फोन बंद कर के फरार है. अब तक जो पुलिस को शक था, राहुल के इस तरह फोन बंद कर के लापता होने से विश्वास में बदलने लगा था. इसलिए पुलिस ने अपना पूरा ध्यान उसी पर केंद्रित कर दिया. पर उस का पता कैसे चले, क्योंकि उस ने अपना फोन तो बंद कर रखा था.

इस बीच पुलिस ने पता किया कि राहुल का खर्च कैसे चलता था. घर वाले पैसे देते थे तो कैश देते थे या बैंक के माध्यम से भेजते थे. पूछने पर घर वालों ने बताया था कि वह अपना खर्च चलाने के लिए प्राइवेट नौकरी करता था. उस का बैंक में अकाउंट है, कंपनी का वेतन उसी में आता था.

राहुल

पुलिस का सोचना था कि राहुल अगर जिंदा है तो उसे खर्च के लिए पैसों की जरूरत तो पड़ती ही होगी. खर्च के लिए वह एटीएम से पैसे जरूर निकालता होगा. पुलिस ने जब इस बारे में बैंक से पता किया तो पता चला कि राहुल ने अपने बैंक अकाउंट से एटीएम द्वारा दिल्ली से पैसे निकाले थे.

राहुल को दिल्ली में कैसे पकड़ा जाए, पुणे पुलिस इस बात पर विचार कर ही रही थी कि उस का फोन कुछ देर के लिए चालू हुआ. लेकिन थोड़ी हो देर में फिर स्विच औफ हो गया. पुलिस ने जब उस की लोकेशन पता की तो वह कोलकाता की थी. पता चला कि उस ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के बात की थी.

उस रिश्तेदार से राहुल ने क्या बात की थी, जब पुलिस ने रिश्तेदार से पूछा तो उस ने बताया कि राहुल कह रहा था कि अब वह पुणे कभी लौट कर नहीं आएगा. क्योंकि उस का उस के एक दोस्त से झगड़ा हो गया है. इसलिए उस ने पुणे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया है.

राहुल की लोकेशन कोलकाता की मिली थी. इस से पहले कि पुलिस कोलकाता जाती या वहां की पुलिस से संपर्क करती, राहुल की लोकेशन मुंबई की मिली. फिर तो पुणे पुलिस ने राहुल को फोन की लोकेशन के आधार पर मुंबई के अंधेरी स्टेशन से 27 जून, 2023 की रात को गिरफ्तार कर लिया.

क्या इसी को कहते हैं प्यार

राहुल को पुणे ला कर अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 जुलाई तक के लिए रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में राहुल ने दर्शना की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने अपनी बाइक और वह कटर भी बरामद करा दिया था, जिस का उपयोग उस ने दर्शना की हत्या में किया था.

पुलिस कस्टडी में आरोपी राहुल

राहुल ने हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो एसपी (ग्रामीण) अमित गोयल की मौजूदगी में राहुल को पत्रकारों के सामने पेश किया गया, जहां उस ने दर्शना की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

साथसाथ पढ़ाई करते और उठतेबैठते राहुल हंडोरे को दर्शना से प्यार हो गया था. पर उस ने कभी अपने प्यार का इजहार दर्शना से किया नहीं था. क्योंकि उसे लगता था कि जब उचित समय आएगा, तब वह दर्शना से दिल की बात कह देगा. उस के लिए उचित समय तब आता, जब उस की कहीं नौकरी लग जाती.

दर्शना उस के मन की बात जानती थी. उसे भी राहुल पसंद था. पर उस के मन में यही था कि जब दोनों की नौकरी लग जाएगी, तब दोनों शादी कर लेंगे. दोस्ती दोनों में थी ही, वे एकदूसरे से हर बात उसी तरह शेयर करते थे, जैसे कोई अपने बौयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड से करता है.

जब दर्शना की नौकरी लग गई और राहुल की नहीं लगी तो दर्शना राहुल से दूर होने लगी. घर वालों ने उस के लिए लड़का भी देखना शुरू कर दिया. जब इस बात की जानकारी राहुल को हुई तो उस ने दर्शना के सामने ही उस के मम्मीपापा से विवाह के लिए बात की.

दर्शना के मम्मीपापा ने उस के साथ दर्शना का विवाह करने से साफ मना कर दिया. इस के बाद उस ने दर्शना की ओर देखा तो दर्शना की नजरों में उसे पैरेंट्स की बात में सहमति नजर आई. इस तरह राहुल ने दर्शना के साथ विवाह का जो सपना सालों से संजोया था, वह टूट गया. इस से राहुल को बेइज्जती सी महसूस हुई.

वह वहां से तो चुपचाप चला आया, पर उस ने मन ही मन दर्शना से बदला लेने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि दर्शना उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. अब वह मौके की तलाश में था.

11 जून को पुणे में दर्शना को कोचिंग सेंटर वालों ने सम्मानित करने के लिए बुलाया तो राहुल भी वहां उस से मिलने गया. अगले दिन उस ने दर्शना के साथ वेल्हा तहसील स्थित रायगढ़ और सिंहगढ़ किला घूमने का आयोजन किया तो दर्शना उस के साथ जाने के लिए खुशीखुशी तैयार हो गई. क्योंकि अच्छा दोस्त होने की वजह से वह उस पर आंख मूंद कर विश्वास करती थी. यह बात दर्शना ने अपने दोस्तों और घर वालों को बता भी दी थी.

अगले दिन यानी 12 जून को दोनों सुबह राजगढ़ और सिंहगढ़ के किलों की ट्रैकिंग के लिए निकल गए. राजगढ़ के किले के अंदर एकांत पा कर राहुल ने एक बार फिर दर्शना से विवाह की बात छेड़ दी. तब दर्शना ने साफ कह दिया कि वह वहीं विवाह करेगी, जहां उस के घर वाले चाहेंगे.

राहुल तो ठान कर ही आया था कि उसे अपने अपमान का बदला लेना है, इसीलिए तो वह दर्शना की हत्या करने के लिए हथियार के रूप में कटर ले कर आया था. दर्शना के मना करते ही राहुल ने उस पर कटर से हमला बोल दिया और उस की हत्या कर दी.

दर्शना की हत्या करने के बाद राहुल ने उस की लाश उठा कर पहाड़ी के नीचे तलहटी में फेंक दी. उसी के साथ उस के फोन, चश्मा, जूते आदि भी फेंक दिए और फिर वहां से अपने फोन को स्विच्ड औफ कर के अकेला ही लौट आया. कमरे पर बाइक खड़ी कर के वह फरार हो गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 3 जुलाई, 2023 को राहुल को फिर अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वैलेंटाइन डे पर मिली अनोखी सौगात

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 2

11 जून को कोचिंग सेंटर वालों ने दर्शना को सम्मानित किया. सम्मानित करने के बाद कोचिंग के प्रबंधक ने उस से अपने बारे में कुछ कहने के लिए कहा तो दर्शना ने जो बातें कही और जिस तरह कही, वे कोचिंग में पढऩे वाले बच्चों के लिए प्रेरणादायक तो थी ही, उस की इन बातों से वे सभी भी बहुत प्रभावित हुए जो निम्नमध्यम वर्ग के लोगों को कुछ नहीं समझते.

उस की बातों से उन लोगों की समझ में आ गया कि ज्ञान सचमुच बलवान बनाता है. इस से दर्शना को और तमाम लोग भी जान गए. दर्शना द्वारा कही गई बातों का लोगों ने वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर भी वायरल किया, जिस से दर्शना का तो मान बढ़ा ही, उस संस्थान की भी प्रतिष्ठा बढ़ गई, जहां पढ़ कर दर्शना ने यह कामयाबी हासिल की थी. इस के बाद दर्शना पुणे में ही अपनी सहेली के यहां रुक कर दोस्तों से मिलती रही.

12 जून को उस ने अपनी सहेली से कहा कि आज वह अपने दोस्त राहुल हंडोरे के साथ राजगढ़ और सिंहगढ़ का किला देखने जा रही है. उस ने यह बात फोन कर के अपने पैरेंट्स को भी बता दी थी. दर्शना को किला देखने जाने से किसी ने मना नहीं किया, क्योंकि सभी जानते थे कि दर्शना ने खूब मेहनत की है, तभी उसे यह सफलता मिली है. इसलिए थोड़ा घूमेगी फिरेगी तो उस का मन भी बहल जाएगा और पढ़ाई की थकान भी उतर जाएगी.

दर्शना जिस राहुल हंडोरे के साथ जा रही थी, वह वही राहुल है, जिस के साथ वह अहमदनगर में पढ़ी थी और पुणे में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए आई थी. उस के साथ कहीं जाने में घर वालों को भी कोई ऐतराज नहीं था, क्योंकि दोनों पुराने और घनिष्ठ मित्र थे. फिर अब दर्शना खुद हर तरह सक्षम और समझदार हो गई थी. वह खुद अपना अच्छाबुरा सोच सकती थी.

दर्शना को तो नौकरी मिल गई थी, पर राहुल का अभी कुछ नहीं हुआ था. वह अभी तैयारी ही कर रहा था, साथ ही अपना खर्च चलाने के लिए पुणे में प्राइवेट नौकरी भी कर रहा था.

Rajgarh kila

राजगढ़ का किला

12 जून की सुबह दोनों राजगढ़ का किला देखने के लिए बाइक से निकल गए. दर्शना और राहुल के दोस्तों और घर वालों को पता था कि दोनों किला देखने गए हैं. पर जब शाम को इन के घर वालों ने हालचाल जानने के लिए फोन किया तो दोनों के ही फोन स्विच्ड औफ बता रहे थे.

फिर तो दोनों के ही घर वाले घबरा गए. उन के दोस्तों से पता किया गया तो उन्होंने बताया कि अभी तक दोनों लौट कर ही नहीं आए हैं. इस के बाद तो दोनों के ही घर वाले बेचैन हो उठे. क्योंकि दर्शना की जहां अच्छी बढिय़ा नौकरी लग चुकी थी, वहीं राहुल भी पढऩे में ठीकठाक था और मेहनत से तैयारी कर रहा था. इसलिए उस के घर वालों को भी उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल उसे भी कोई न कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी.

दर्शना और राहुल के बारे में जब कुछ पता नहीं चला और न उन के फोन चालू हुए तो अगले दिन उन के घर वाले उन्हें खोजने के लिए पुणे आ गए. अपने हिसाब से उन्होंने दोनों को पुणे में खोजा, किले में भी गए, पर उन का कुछ पता नहीं चला. अब दोनों के ही घर वालों की बेचैनी और बढ़ गई थी. क्योंकि उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर दोनों कहां चले गए.

जब दोनों ही परिवार उन्हें ढूंढ ढूंढ कर थक गए तो 14 जून, 2023 को दर्शना के घर वालों ने जहां थाना सिंहगढ़ में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी, तो राहुल के घर वालों ने थाना मालवाड़ी में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

पहाड़ी की तलहटी में मिली दर्शना की लाश

दर्शना अपनी कामयाबी से उस इलाके में चर्चा का विषय बन चुकी थी. उसे लगभग हर कोई जानने लगा था. गांव वाले भले न जानते रहे हों, पर शहर और कस्बे का तो लगभग हर कोई उसे जानता था.

इसलिए जब एक तरह से पूरे इलाके में सेलिब्रिटी हो चुकी दर्शना की गुमशुदगी की दर्ज कराई गई तो पुलिस भी सन्न रह गई. चूंकि मामला गंभीर और रहस्यमयी था, इसलिए थाना पुलिस के साथसाथ क्राइम ब्रांच पुलिस भी इस मामले की जांच में लग गई.

क्राइम ब्रांच ने दर्शना और राहुल की खोज के लिए 5-5 पुलिस वालों की 5 टीमें बनाईं और सभी टीमों को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दीं.

ग्रामीण पुलिस इस मामले में जीजान से लगी थी. पर उसे कोई कामयाबी नहीं मिल रही थी. 19 जून को किसी अजनबी ने पुलिस को सूचना दी कि किले के पास पहाड़ी के नीचे तलहटी में एक महिला की लाश पड़ी है.

सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. दर्शना और राहुल की गुमशुदगी दर्ज थी. वे दोनों किले से ही गायब हुए थे. इस से पुलिस को लगा कि कहीं यह लाश दर्शना की तो नहीं है. तुरंत दर्शना के घर वालों को बुलाया गया. लाश देखते ही दर्शना के घर वालों पर तो जैसे दुख का पहाड़ टूट पड़ा. क्योंकि वह लाश दर्शना की ही थी. परिवार की सारी खुशियां पलभर में दुख में बदल गईं. सभी का रोतेरोते बुरा हाल हो गया.

ग्रामीण पुलिस मामले की जांच कर ही रही थी. लाश देख कर पुलिस यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी कि यह मामला हत्या का है या दर्शना के साथ कोई अनहोनी हुई है. क्योंकि लाश की स्थिति बहुत खराब थी. अब तक वह काफी हद तक सडग़ल चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

सीसीटीवी फुटेज

इसी बीच पुलिस को किले के पास एक होटल पर लगे सीसीटीवी कैमरे से एक फुटेज मिली, जिस में सुबह करीब साढ़े 8 बजे दर्शना राहुल के साथ बाइक से किले की ओर जाती दिखाई दी. पर दिन के करीब 10 बजे राहुल किले की ओर से लौटा तो बाइक पर अकेला ही था यानी लौटते समय दर्शना उस के साथ नहीं थी. इस से साफ हो गया कि दर्शना के साथ जो कुछ भी हुआ, वह किले के अंदर या उस के आसपास ही हुआ था.

फारेस्ट औफीसर का कातिल प्रेमी – भाग 1

लाश पहाड़ी की तलहटी में पड़ी थी, जो काफी हद तक सड़गल गई थी. लाश देख कर ही लग रहा था कि इस की मौत कई दिनों पहले हुई है. पुलिस ने जब बारीकी से लाश का निरीक्षण किया तो उस के शरीर और सिर पर चोट के निशान थे. इस से पुलिस को लगा कि शायद इस की हत्या की गई है. पुलिस को लाश से थोड़ी दूर पर एक मोबाइल फोन, जूता और चश्मा पड़ा मिला. पुलिस ने अंदाजा लगया यह सामान मरने वाली लड़की का ही होगा.

Lash ke paas mila darshna ka samaan

लाश के पास मिला दर्शना का सामान

रेंज फारेस्ट औफीसर (Range Forest Officer) दर्शना पवार (Darshana Pawar) की लाश तो मिल गई थी, पर उस के दोस्त राहुल का अभी भी कुछ पता नहीं था. इसलिए अब पुलिस की जांच 2 दिशाओं में बंट गई. एक ओर पुलिस राहुल को खोज रही थी तो दूसरी ओर पुलिस अब यह पता कर रही थी कि दर्शना की मौत कैसे हुई? अगर यह दुर्घटना है तो दुर्घटना कैसे हुई? अगर हत्या हुई है तो किस ने और क्यों दर्शना की हत्या की? राहुल का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उस के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था.

दर्शना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने पर साफ हो गया कि उस की मौत दुर्घटना से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. क्योंकि उस के शरीर पर चोट के जो निशान मिले थे, वे दुर्घटना के नहीं थे, बल्कि किसी नुकीली चीज द्वारा चोट पहुंचाए जाने के थे.

पुलिस को तो पहले ही हत्या की आशंका थी, लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से साफ हो गया कि दर्शना की हत्या की गई थी. अगर दुर्घटना हुई होती तो राहुल उस के साथ ही था, चोट उसे भी लगती. वह किसी अस्पताल में होता या फिर दर्शना के घायल होने या पहाड़ी में नीचे गिरने की सूचना देता. पर वह तो गायब था, इसलिए पुलिस को अब उस पर ही शक होने लगा.

महाराष्ट्र (Maharashtra) के जिला अहमदनगर (Ahmednagar) का एक कस्बा है कोपरगांव. दर्शना अपने मम्मीपापा के साथ यहीं रहती थी. उस का एक निम्नमध्यमवर्गीय परिवार था. उस के पापा अहमदनगर की एक शुगर मिल में ड्राइवर थे और मां घर संभालती थीं.

दर्शना पढऩे में ठीकठाक थी. इसलिए मम्मीपापा उस की पढ़ाई पर विशेष ध्यान दे रहे थे. वे सोचते थे कि बिटिया पढ़लिख कर कुछ बन जाएगी तो उस की जिंदगी सुधर जाएगी. उन्होंने जिस तरह अभावों भरा जीवन जिया है, कम से कम वैसा जीवन उसे नहीं जीना पड़ेगा. इसीलिए वे तमाम परेशानियों को झेल कर उसे पढ़ा रहे थे.

अहमदनगर से पढ़ाई पूरी करने के बाद दर्शना सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहती थी. अहमदनगर से यह संभव नहीं था. इस के लिए उसे पुणे जाना पड़ता. क्योंकि सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने वाली अच्छी कोचिंग वहीं थी. मम्मीपापा उसे पुणे भेजने में थोड़ा झिझक रहे थे, क्योंकि एक तो उन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, दूसरे वह बेटी को अकेली इतने बड़े शहर में भेजने से घबरा रहे थे. तब इस के लिए मदद की दर्शना के एक दोस्त राहुल हंडोरे ने.

वैसे तो राहुल हंडोरे (Rahul Handore)  मूलरूप से नासिक की सिन्नार तहसील के शाह गांव का रहने वाला था, लेकिन उस ने बचपन से ही अहमदनगर में रह कर दर्शना के साथ ही पढ़ाई की थी. बचपन से ही दोनों साथ पढ़े थे, इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थी.

राहुल दर्शना के घर भी आताजाता था, इसीलिए जब दर्शना के घर वाले उसे पुणे भेजने में हिचके तो राहुल ने कहा, ”चिंता की कोई बात नहीं है. मैं भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए पुणे जा रहा हूं. इसलिए आप लोग दर्शना को निङ्क्षश्चत हो कर भेज दीजिए. मेरे रहते दर्शना को वहां कोई परेशानी नहीं होने पाएगी.’’

राहुल घर के सदस्य जैसा हो गया था, इसलिए दर्शना के मम्मीपापा उसे पुणे भेजने के लिए राजी हो गए. उन्होंने दर्शना से कहा, ”देखो बेटा, जैसे तैसे हम अपना काम चला लेंगे, पर तुम्हारे करिअर में किसी तरह की अड़चन नहीं आने देंगे.’’

इस तरह दर्शना अपने अरमान पूरे करने पुणे आ गई. महाराष्ट्र का पुणे शहर शिक्षा के मामले में बहुत आगे है. जिस तरह दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षाओं की तैयारी कराने के लिए तमाम कोचिंग सेंटर खुले हैं, वैसा ही कुछ पुणे में भी है. इसी वजह से लोग इसे स्टूडेंट्स का शहर कहते हैं. क्योंकि तमाम कोचिंग सेंटर होने की वजह से उस इलाके के ज्यादातर लड़के लड़कियां तैयारी के लिए यहां आ कर रहते हैं. दर्शना भी राहुल के साथ पुणे आ कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने लगी.

तैयारी में किसी तरह की कमी न रह जाए, इस के लिए दर्शना जीजान से जुट गई. अपने मकसद में सफल होने के लिए उस से जितनी मेहनत हो सकती थी, वह उतनी मेहनत करने लगी. अपना करिअर बनाने के लिए उस ने एक तरह से अपनी पूरी ताकत झोंक दी. आखिर इस का परिणाम भी अच्छा ही आया.

बेटी की कामयाबी पर गदगद हुआ परिवार

दर्शना की लगन और मेहनत का ही नतीजा था कि इस साल के महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन (एमपीएससी) का रिजल्ट आया तो दर्शना का तीसरा स्थान था. इस तरह उस का चयन रेंज फारेस्ट औफीसर के रूप में हो गया था.

मृतका दर्शना

दर्शना के पापा एक मामूली कर्मचारी थे. उन की बेटी ने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की तो अब लोग बेटी के नाम से उन्हें भी जानने लगे. उन की खुशी की तो कोई सीमा ही नहीं थी. एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने जो तपस्या की थी, बेटी की इस कामयाबी से उन्हें उस का फल मिल गया था. लोग बेटी की तारीफ तो कर ही रहे थे, साथ ही यह भी कह रहे थे कि आप भाग्यशाली हैं, जो आप को ऐसी बेटी मिली है.

दर्शना के इस तरह नौकरी पाने से उस के घर सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था. चारों ओर उस की इस कामयाबी की चर्चा हो रही थी. इस की वजह यह थी कि वह नीचे स्तर से इस ऊंचाई पर पहुंची थी. यही वजह थी कि उस की इस कामयाबी के लिए उसे जगह जगह सम्मानित किया जा रहा था, जिस से उस के साथसाथ घर वालों का मान भी बढ़ रहा था.

इसी क्रम में दर्शना को सम्मानित करने के लिए सदाशिव पेठ स्थित उस कोचिंग वालों ने भी बुलाया, जिस कोचिंग में पढ़ कर दर्शना को यह कामयाबी मिली थी.

चयनित होने के बाद दर्शना कोपरगांव स्थित अपने घर चली गई थी. कोचिंग द्वारा बुलाए जाने पर दर्शना 9 जून, 2023 को एक बार फिर पुणे आई और इस बार वह अपनी एक सहेली के यहां ठहरी. क्योंकि चयन होने के बाद उस ने अपना कमरा छोड़ दिया था.