वासना की कब्र पर : पत्नी ने क्यों की बेवफाई – भाग 3

मनीष वैन ले कर नरौरा गांव आता. वैन को वह सड़क किनारे खड़ा कर सुनीता से मिलने पहुंच जाता. उस से मिल कर वह वापस लौट जाता. मनीष के आने की खबर घरवालों को कभी लगती तो कभी नहीं लगती थी. चूंकि मनीष, मौजीलाल का भांजा था. अत: उसे तथा उस की पत्नी चंद्रावती को उस के वहां आने पर कोई एतराज न था.

लेकिन एक रोज दोनों की चोरी पकड़ी गई. उस रोज मनीष आया और सुनीता से छेड़छाड़ करने लगा. तभी अचानक सुनीता की सास चंद्रावती आ गई. उस ने दोनों को अश्लील हरकत करते देख दिया. चंद्रावती ने बहू की शिकायत पति व बेटे से कर दी. मौजीलाल ने सुनीता को फटकार लगाई, ‘‘बहू, तुम्हें मर्यादा में रहना चाहिए. तुम इस घर की इज्जत हो. आइंदा इस बात का खयाल रखना.’’

सास की शिकायत और ससुर की नसीहत सुनीता को नागवार लगी. वह तुनक गई और घर में कलह करने लगी. वह कभी खाना बनाती तो कभी सिर दर्द का बहाना बना लेती. बच्चे भूख से बिलबिलाते तो वह उन की पिटाई करने लगती.

पति समझाने की कोशिश करता तो वह उस पर भी बरस पड़ती, ‘‘दिन भर साफसफाई करूं, खाना बनाऊं, बच्चों को पालूं और फिर ऊपर से बदचलनी का तमगा. कान खोल कर सुन लो, कि अब मैं सासससुर के साथ नहीं रह पाउंगी. तुम्हें मेरे साथ अलग रहना होगा.’’

राजेश में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह पिता से अलग रहने की बात कह सके. लेकिन जब मौजीलाल को बहू के त्रियाचरित्र और अलग रहने की बात पता चली तो उन्होंने देर नहीं की और वह पत्नी के साथ दूसरे मकान में रहने लगे.

सासससुर ने एक तरह से सुनीता से नाता ही तोड़ लिया. सुनीता के बच्चे दादीदादा से हिलेमिले थे, अत: उन का समय उन्हीं के घर बीतता था. रात को तीनों बच्चे दादीदादा के घर ही सो जाते थे. सासससुर के अलग हो जाने के बाद सुनीता पूरी तरह स्वच्छंद हो गई. अब उसे मनीष से मिलने पर रोकनेटोकने वाला कोई नहीं था. मनीष, ज्यादातर ऐसे समय में आता जब राजेश घर के बाहर होता या फिर खेत पर काम करता होता और बच्चे भी स्कूल में होते.

मनीष वैन चालक था. वह स्वयं तो शराब पीता ही था, उस ने राजेश को भी शराब की आदत डाल दी थी. शराब के बहाने अब मनीष वहां देर शाम आने लगा. आते ही राजेश के साथ महफिल जमती फिर खाना खा कर मनीष कभी चला जाता तो कभी रात में वहीं रुक जाता था. चूंकि राजेश को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, इसलिए वह मनीष के रुकने पर एतराज नहीं करता था.

एक शाम मनीष हाथ में शराब की बोतल थामे सुनीता के घर पहुंचा तो पता चला राजेश पहले से नशे में धुत है. वह कस्बा नर्वल गया था, वहीं से पी कर लौटा था. आते ही वह चारपाई पर पसर गया था. मनीष का मन खुशी से उछल पड़ा. सुनीता और मनीष ने खाना खाया फिर कुछ देर बाद हसरतें पूरी करने के लिए पीछे वाले कमरे में पहुंच गए.

इधर देर रात राजेश की नींद टूटी तो उस ने देखा सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं है. आधे घंटे तक सुनीता नहीं आई तो राजेश का माथा ठनका. वह पत्नी को ढूंढने निकला तो सुनीता पीछे वाले कमरे में मनीष के साथ थी. दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख कर राजेश का खून खौल गया.

राजेश को आया देख कर मनीष तो भाग गया, पर सुनीता कहां जाती. राजेश ने सुनीता को कमरे में ले जा कर उस का मुंह दबा कर राजेश ने उसे खूब पीटा. मुंह दबा होने के कारण सुनीता चीखचिल्ला भी नहीं सकी. जब वह अधमरी हो गई तब राजेश ने उसे छोड़ दिया. मौके की नजाकत समझ कर सुनीता ने भी राजेश से माफी मांग ली. बच्चों की खातिर राजेश ने उसे माफ कर दिया.

अब राजेश और मनीष के बीच दरार पड़ गई थी. दोनों ने साथ खानापीना छोड़ दिया था. राजेश ने मनीष के घर आने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. सुनीता को ले कर दोनों में झगड़ा बढ़ा तो रिश्ते भी सार्वजनिक हो गए.

गांव के लोग ही नहीं बल्कि नातेरिश्तेदार भी जान गए थे कि मनीष और सुनीता के बीच नाजायज रिश्ता है. राजेश की चारे तरफ बदनामी होने लगी थी. राजेश ने मनीष की शिकायत बुआफूफा से भी की लेकिन मनीष पर कोई असर न पड़ा.

मनीष और सुनीता एक दूसरे के इस कदर दीवाने थे कि मिलन को बेकरार रहते थे. मनीष ने सुनीता को एक मोबाइल फोन दे रखा था. इसी मोबाइल से सुनीता मनीष से बात करती और मौका मिलते ही मनीष को मिलने के लिए बुला लेती. मिलने के दौरान वे सतर्कता बरतते थे.

सतर्कता के बावजूद एक दोपहर राजेश ने सुनीता को मनीष की बाहों में मचलते देख लिया. उस ने सुनीता पर हाथ उठाया, तभी मनीष ने राजेश का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया और बोला, ‘‘खबरदार जो भाभी पर हाथ उठाया. तुम ने जो देखा उसे भूल जाओ. हम दोनों के बीच बाधा मत बनो. इसी में तुम्हारी भलाई है.’’

धमकी देने के बाद मनीष चला गया. उस के बाद राजेश फिर से पत्नी को पीटने के लिए लपका. तब सुनीता भी पति से भिड़ गई और बोली, ‘‘मारपीट कर तुम मुझे चोट तो पहुंचा सकते हो, लेकिन मनीष के मिलने से नहीं रोक पाओगे. अपनी सेहत दुरुस्त रखना चाहते हो तो हमारे रास्ते में न आओ.’’

मनीष और सुनीता की धमकी से राजेश को लगा कि उन दोनों के इरादे नेक नहीं हैं. वह दोनों उस की जान के दुश्मन बन सकते हैं. इसलिए वह कानपुर शहर गया और अपनी जान माल की हिफाजत के लिए एक तेजधार वाला चाकू खरीद लाया. इस के बाद वह सुनीता पर कड़ी निगरानी रखने लगा.

इस का परिणाम यह हुआ कि सुनीता सितंबर के प्रथम सप्ताह में अपने प्रेमी मनीष के साथ भाग गई. राजेश गुप्त रूप से पत्नी की खोज करता रहा. आखिर वह बुआफूफा की शरण में गया. फूफा कल्लू के प्रयास से 2 दिन बाद सुनीता वापस घर आ गई.

राजेश ने बच्चों की वजह से सुनीता से कुछ नहीं कहा और उसे घर में रख लिया. सुनीता को न पति की फिक्र थी और न ही बच्चों की. बच्चे भी मां से कन्नी काटने लगे थे. वह ज्यादा समय दादादादी के घर ही बिताते थे और रात को वहीं सो जाते थे. सुनीता खुद तो खापी लेती थी, लेकिन पति को तरसाती थी. ऐसे में राजेश ज्यादातर बाहर ही खातापीता था.

राजेश अब सुनीता की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा था. काम छोड़ कर वह बीचबीच में किसी बहाने घर आ जाता था. सुनीता सब समझ रही थी, धीरेधीरे एक महीना बीत गया. सुनीता और मनीष की मुलाकात नहीं हो सकी. उन की मोबाइल पर तो बात हो जाती थी लेकिन राजेश की दिन रात की कड़ी निगरानी से उन्हें मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर एक दिन उन्हें यह मौका मिल ही गया.

12 अक्तूबर, 2019 को मनीष के चचेरे भाई राजे का तिलक था. मनीष के पिता कल्लू ने उस से कहा कि वह नरौरा जा कर मामामामी को ले आए. पिता के अनुरोध पर मनीष वैन ले कर 11 अक्तूबर की रात 11 बजे नरौरा गांव पहुंचा. उस ने अपनी वैन सड़क किनारे खड़ी कर दी और फिर सुनीता से मोबाइल पर बात की. दरअसल मनीष वह रात सुनीता के साथ गुजारना चाहता था.

उस ने सोचा था कि सुबह मामामी को ले कर अपने गांव लौट जाएगा. फोन पर सुनीता ने मनीष को जानकारी दी कि राजेश घर पर है पर वह बाहर वाले कमरे में गहरी नींद में सो रहा है. इस जानकारी पर मनीष ने सुनीता से कहा कि वह दरवाज खोल कर रखे. चंद मिनट में वह दरवाजे पर पहुंच रहा है. रात के सन्नाटे में मनीष, सुनीता के दरवाजे पर पहुंचा.

सुनीता उस के आने का ही इंतजार कर रही थी. उस के पहुंचते ही सुनीता ने उसे घर के अंदर कर के दरवाजा बंद कर दिया. सुनीता, मनीष को ले कर पीछे वाले कमरे में पहुंची. मनीष ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और मोबाइल फोन स्टूल पर रख दिया. इस के बाद वह जमीन पर बिछे बिस्तर पर सुनीता के साथ लेट गया और जिस्म की प्यास बुझाने लगा.

इधर आधी रात के बाद राजेश लघुशंका के लिए कमरे से बाहर आया तो उसे पीछे वाले कमरे में खुसरफुसर सुनाई दी. वह दवे पांव कमरे के बाहर पहुंचा और खिड़की से झांक कर देखा. वहां का दृश्य देख उस की आंखों में खून उतर आया.

कमरे के अंदर सुनीता और मनीष आपत्तिजनक स्थिति में थे. वह वापस अपने कमरे में आया और चाकू ले कर पुन: उस कमरे में पहुंच गया जहां मनीष और सुनीता देह सुख भोग रहे थे.

उस ने मनीष और सुनीता को धिक्कारा तो दोनों उठ खड़े हुए. गुस्से में राजेश ने मनीष की कमर पर लात जमाई तो वह नशे में होने के कारण लड़खड़ा कर गिर पड़ा. उसी समय राजेश ने उस पर चाकू से हमला कर दिया.

प्रेमी की जान खतरे में देख कर सुनीता पति से भिड़ गई. तब उस ने सुनीता को परे ढकेल दिया. चाकू के हमले से घायल मनीष को राजेश उस के सिर के बाल पकड़ कर घसीटता हुआ आंगन में लाया और चाकू से मनीष की गरदन रेत दी.

प्रेमी की मौत से सुनीता घबरा गई. वह अपनी जान बचा कर दरवाजे की ओर भागी. लेकिन राजेश पर तो खून सवार था. उस ने लपक कर सुनीता को पकड़ लिया और बोला, ‘‘भागकर कहां जाएगी बदचलन.

आज मैं तुझे भी सबक सिखा कर ही दम लूंगा’’ कहते हुए राजेश ने सुनीता पर चाकू से हमला कर दिया. उस ने उस के शरीर पर कई वार किए, फिर चाकू से उस की गरदन रेत दी. खून से सना चाकू उस ने लाशों के बीच फेंक दिया, फिर वह लाशों को काफी देर कर टुकुरटुकुर देखता रहा.

सुबह 4 बजे राजेश वारदात की सूचना देने ग्राम प्रधान इस्लामुलहक के घर पहुंचा. उस ने दरवाजा पीटा, लेकिन जब किसी ने दरवाजा नहीं खोला तब उस ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी. कंट्रोल रूप की सूचना पर नर्वल थानाप्रभारी रामऔतार घटना स्थल पर पहुंचे.

13 अक्तूबर, 2019 को थाना नर्वल पुलिस ने अभियुक्त राजेश कुरील को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट जे.एन. पारासर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बीबी का दलाल : क्या थी शबनम की मजबूरी – भाग 3

रामकिशोर को चूंकि रिया पहली नजर में ही पसंद आ गई थी, इसलिए उन्होंने तुरंत हां कर दी. सौदा पट गया तो साजिद ने फोन पर उन से कहा कि आप वहीं इंतजार करें, एक स्कोडा कार आप को लेने आ रही है. इस कार का नंबर उस ने रामकिशोर को बता दिया.

इंतजार के 10 मिनट 10 साल सरीखे बीते, जिन में रामकिशोर रिया के संगमरमरी जिस्म के उतारचढ़ावों की कल्पना में डूबे रहे. जैसे ही कार उन के नजदीक आई तो वे फुरती से उस में बैठ गए. मानो देर हो गई तो गंगा डुबकी का मुहूर्त हाथ से निकल जाएगा.

मकान के भव्य कमरे में जैसे ही रिया रामकिशोर के सामने पड़ी, तो उन के रहेसहे होश भी उड़ गए. सचमुच रिया संगमरमर की शिला जैसी थी और फिगर भी वही था जो साजिद ने बताया था. खजुराहो और अजंता एलोरा की मैथुनरत मूर्तियां भी रामकिशोर को साकार होती लग रही थीं.

आम भारतीय ग्राहक की सहज होने की कमजोरियां ऐसे वक्त में ही उजागर होती हैं. रामकिशोर रिया से उस की राष्ट्रीयता वगैरह पूछने लगे. अच्छा तो यह रहा कि उन्होंने उस से उस की जाति और गोत्र वगैरह नहीं पूछे.

उधर रिया इस बेवजह और फिजूल की संगोष्ठी के मूड में कतई नहीं थी, फिर भी उस ने औपचारिक लेकिन पेशेवर अंदाज में जवाब दे दिया कि वह उजबेकिस्तान ताशकंद की रहने वाली है और इन बेकार की बातों में वक्त जाया करने से कोई फायदा नहीं, आप तो बस अपना काम करो और बढ़ लो.

रिया को मालूम था कि रामकिशोर ने उस की सिंगल यानी एक बार के लिए बुकिंग कराई है, जिस का चार्ज 10 हजार रुपए है और टाइम लिमिट 40 मिनिट. उसे रामकिशोर की बातों पर झल्लाहट आ रही थी कि आया है मौजमस्ती करने और देह सुख लेने, लेकिन बात 1966 में हुए ताशकंद समझौते की कर रहा है. इस ऐतराज पर रामकिशोर को गुस्सा आ गया और उन्होंने पूछा कि पूरी रात का क्या लोगी तो रिया ने झट जवाब दिया 25 हजार रुपए.

रामकिशोर की हालत बार में बैठे उस शराबी की तरह हुई जा रही थी, जो जाता तो एकदो पैग पीने की गरज से है लेकिन नशा न होते देख फुल बोतल गटक जाता है. लिहाजा वे 25 हजार देने को तैयार हो गए जो रिया ने तुरंत रखवा लिए. शर्त या प्रावधान यह भी था कि रामकिशोर जैसे चाहेंगे वैसे वह उन्हें मजा या सुख कुछ भी कह लें, देगी.

पैसे दे कर रामकिशोर ने अपनी यह ख्वाहिश रिया को बता दी कि वे औरल सैक्स चाहते हैं तो उस ने कोई नानुकुर नहीं की क्योंकि पैकेज में यह शामिल था लेकिन उस बाबत उस ने लाइट बंद की तो रामकिशोर बोले यह सब मैं रोशनी में चाहता हूं.

इस पर रिया ने उन से कहा कि रोशनी में करवाना है तो 2 हजार रुपए एक्स्ट्रा देने होंगे. इस पर भी वे तैयार हो गए तो रिया ने ये पैसे भी नकद ले लिए और जैसा वे चाहते थे, करना शुरू कर दिया.

यही वह वक्त था जब पुलिस के भेजे सिपाही ने साजिद से एक लड़की के बाबत सौदा तय कर अपने अधिकारियों को छापा मारने का सिगनल दे दिया था. फिल्मी स्टाइल में पुलिस ने छापा मारा और हमेशा की तरह एकएक कर 4 कालगर्ल्स और 4 ग्राहकों को आपत्तिजनक अवस्था में पकड़ा, जिन में से एक रामकिशोर मीणा भी थे.

हर छापे की तर्ज पर ही मकान से आपत्तिजनक सामग्री जिन में कंडोम, ब्लू फिल्मों की सीडी और कामोत्तेजक दवाएं वगैरह होती हैं, भी जब्त हुईं और पंचनामा भी बन गया. साजिद के साथ उस की पत्नी शबनम भी गिरफ्तार कर लिए गए. पकड़ी गई लड़कियों में से 2 नेपाली थीं और एक पश्चिम बंगाल की थी.

पुलिसिया खानापूर्तियों के बाद पता चला कि रिया टूरिस्ट वीजा पर भारत आई थी और वह दिल्ली के मालवीय नगर में रहती है. वह कोई 7 साल से यह धंधा कर रही थी और 17 साल की उम्र में ही इस धंधे में आ गई थी. साजिद ने एक दलाल अजय से उसे 15 दिन के लिए डेढ़ लाख रुपए में हायर किया था या ठेके पर लिया था एक ही बात है. पता यह भी चला कि इन कालगर्ल्स का सारा खर्च मेजबान दलाल उठाते हैं जो देश के विभिन्न हिस्सों में घूम कर धंधा करती हैं. भोपाल में रिया और दूसरी कालगर्ल्स का खर्च साजिद उठा रहा था. नेपाली लड़कियां रिया के मुकाबले सस्ती थीं.

देखा जाए तो साजिद घाटे का सौदा नहीं कर रहा था, क्योंकि रिया औसतन उसे 30 हजार रुपए रोज दिलवा रही थी यानी 15 दिन के साढ़े 4 लाख रुपए. अजय को डेढ़ लाख देने के बाद साजिद बचे 3 लाख रुपए में से अगर एक लाख खर्च भी कर रहा था तो 15 दिन में 2 लाख रुपए तो कमा ही रहा था. इतनी ही रकम वह पत्नी शबनम और दूसरी कालगर्ल्स से बना रहा था.

इस कहानी के लिखे जाने तक रिया के बारे में पुलिस और जानकारियां जुटाने में लगी थी और सभी की एचआईवी जांच भी करा रही थी क्योंकि कुछ महीने पहले ही एक छापे में कुछ अफ्रीकन लड़कियां पकड़ी गई थीं, जिन में से 2 की रिपोर्ट एचआईवी पाजिटिव आई थी.

एक साजिद का गिरोह पकड़े जाने से यह नहीं माना जा सकता कि देहव्यापार बंद हो गया. हां, इतना जरूर हर किसी को समझ आ गया कि अब देहव्यापार काफी हाईटेक हो चला है और भोपाल जैसे शहर में भी विदेशी कालगर्ल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है.

रामकिशोर मीणा जैसे पकड़े गए लोग अपनी इच्छाओं को नहीं, बल्कि किस्मत को कोसते नजर आते हैं कि उन्होंने छापे वाले दिन ही सौदा क्यों किया या छापा उसी दिन क्यों पड़ा जिस दिन उन्होंने सौदा किया था.

रही बात साजिद की तो उसे कोई खास नुकसान होगा, ऐसा लग नहीं रहा. जमानत पर छूट जाने के बाद वह कहीं और जा कर कारोबार जमा लेगा. लेकिन मुकदमा लंबा खींचने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेगा. जिस ने भी इस छापे की खबर पढ़ी उस ने साजिद को कोसा कि कैसा बेशर्म आदमी था जो बीवी को भी देहव्यापार की दलदल में घसीट लाया. शायद ही कोई इस बात का जवाब दे पाए कि गरीबी भुखमरी और अभावों की दलदल इस सब से बेहतर थी क्या?

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 5

माया उसी दिन से शिवलोचन ने नफरत करने लगी थी, जब उस ने पहली बार दोनों का फोटो देखने के बाद तमाशा किया था और उस की पिटाई भी कर दी थी. तभी से गांव भर की औरतें माया को बदचलन औरत की नजर से देखने लगी थी. उस दिन शिवलोचन की मार ने आग में घी का काम किया. उस ने शिवलोचन के शराब पी कर गहरी नींद में सोते ही टुल्लू को फोन कर के अपने घर बुला लिया.

उस ने टुल्लू से कहा कि अगर वह उसे सचमुच प्यार करता है तो आज रात ही शिवलोचन से उस के अपमान का बदला लेने के लिए उसे जान से मार दे. टुल्लू तो माया का दीवाना था. उस ने सोचा कि शिवलोचन मर जाएगा तो माया सदा के लिए उस की हो जाएगी. यही सोच कर उस ने घर में पड़ी लाठी से सोते हुए शिवलोचन के सिर पर एक के बाद एक कई प्रहार किए, जिस से वह चारपाई पर ही ढेर हो गया.

इस काम में माया ने भी उस का साथ दिया. इस के बावजूद माया इत्मीनान कर लेना चाहती थी कि शिवलोचन मरा है या नहीं. उस ने टुल्लू के साथ मिल कर कमरे में पड़ी जूट की रस्सी का फंदा बनाया और शिवलोचन के गले में डाल कर काफी देर तक खींचा. शिवलोचन के मरने के बाद समस्या थी लाश को ठिकाने लगाने की. क्योंकि लाश को घर से बाहर ले जाने से पकडे़ जाने का डर था.

माया ने सुझाव दिया कि शिवलोचन के शव को कमरे में ही जमीन खोद कर गाड़ दिया जाए. इस के बाद उन्होंने ऐसा ही किया. टुल्लू ने फावड़े से कमरे के एक हिस्से के कच्चे फर्श को 5 फुट गहरा खोदा और शिवलोचन के गले में बंधी रस्सी समेत लाश को गड्ढे में धकेल दिया. टुल्लू ने खून से सने कपड़े लाश के ऊपर ही डाल दिए. लाश को गड्ढे में डालने के बाद माया और टुल्लू ने उस पर मिट्टी डाल दी.

रात में ही माया ने उस जगह को अच्छी तरह से लीप दिया, ताकि किसी को गड्ढा खोदे जाने की बात का पता न चल सके. उस रात शिवलोचन की हत्या करने से पहले माया और टुल्लू ने कुछ खायापीया नहीं था. लिहाजा लाश को घर में ही दफनाने के बाद माया ने चूल्हा जला कर खाना बनाया. जिस लाठी से शिवलोचन की हत्या की गई थी, माया ने उसे चूल्हे में जला कर रोटियां सेंकी.

इस के बाद दोनों ने चारपाई उसी जगह बिछाई, जहां शिवलोचन के शव को दफनाया था. उस रात शिवलोचन ने जिस बोतल से शराब पी थी, उस में कुछ शराब बची थी. टुल्लू और माया ने बची हुई शराब बराबरबराबर पी, फिर दोनों ने साथसाथ खाना खाया.

खाना खाने के बाद दोनों लाश दफनाने वाली जगह पर बिछी चारपाई पर सो गए. सोने से पहले दोनों ने एकदूसरे के जिस्म की प्यास बुझा कर शिवलोचन के मरने का जश्न मनाया.

शिवलोचन की हत्या को अंजाम देने के बाद माया करीब 15 दिन तक उसी घर में रही. इस दौरान टुल्लू हर रात उस के पास आता. दोनों एक साथ खाना खाते और उसी चारपाई पर रंगरेलियां मनाते, जो उन्होंने शिवलोचन की लाश दफनाने के बाद फर्श की जमीन लीप कर उस के ऊपर डाली थी.

शिवलोचन की हत्या के बाद जब गांव के लोग या माया की सास चुनकी देवी माया से शिवलोचन के बारे में पूछते तो वह कहती कि कर्वी में काम चल रहा है, वहीं रहते हैं.

करीब 15 दिन बाद जब घर का सारा राशन खत्म हो गया तो माया के पास वहां रहने की कोई वजह नहीं बची. इस दौरान माया और टुल्लू ने आपस में तय कर लिया था कि उन्हें आगे की जिंदगी किस तरह बितानी है. इसलिए 15 दिन बाद माया अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके चली गई.

जाने से पहले उस ने अपनी सास से खूब लड़ाई की और ताना दिया कि उस का बेटा परिवार का ख्याल नहीं रखता. घर में राशन तक नहीं है इसलिए अपनी मां के घर जा रही हूं. जब शिवलोचन घर आए तो मुझे लेने आ जाएं.

उसी दिन माया ने घर की चाभी भी अपनी सास को दे दी थी. दरअसल, वह अच्छी तरह से जानती थी कि सास चुनकी देवी ढाबे वाले अपने पैतृक घर को छोड़ कर उस के घर में रहने के लिए नहीं जाएगी. वजह यह थी कि एक तो वह गांव में काफी पीछे और सुनसान जगह पर था, दूसरे वहां उस की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था.

माया जानती थी कि शिवलोचन तो अब किसी को मिलेगा नहीं, उस का शव भी गल जाएगा. समय के साथ शिवलोचन की मौत भी रहस्यमय गुमशुदगी बन कर रह जाएगी. माया के गांव से जाने के एक 2 दिन बाद टुल्लू भी मुंबई चला गया था और वहां बिल्डिंगों में टाइल्स लगाने का काम करने लगा था.

अपनी ससुराल लोहदा से जाने के बाद माया मई के महीने तक अपने मातापिता के पास रही. उस ने परिवार वालों को बताया कि बिना बताए शिवलोचन कहीं चला गया है. अपने गांव पहुंच कर माया ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया था. शिवलोचन के मोबाइल को उस ने उस की हत्या के बाद ही तोड़ कर फेंक दिया था. उस का नया नंबर सिर्फ टुल्लू के पास था, जिस पर दोनों की रोज बातें होती थीं.

टुल्लू अकसर अपने गांव में फोन कर के शिवलोचन को ले कर हो रही गतिविधियों की जानकारी लेता रहता था. जब कई महीने बीत गए और माया को लगा कि अब मामला ठंडा हो गया है तो उस ने मई महीने में अपने पिता से कहा कि वह पति के बारे में जानकारी करने के लिए चित्रकूट जा रही है, जल्दी ही लौट आएगी.

अपने बच्चों को छोड़ कर माया कर्वी आ गई, जहां पहले से ही टुल्लू उसे लेने के लिए आया हुआ था. वहां से वे दोनों मुंबई चले गए और पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. माया की योजना थी कि एक दो महीने का वक्त और गुजरने के बाद अपने दोनों बच्चों को भी ले आएगी. लेकिन उस से पहले ही माया व टुल्लू पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

पुलिस ने माया व टुल्लू से पूछताछ के बाद वह फावड़ा भी बरामद कर लिया, जिस से शिवलोचन की हत्या के बाद उस का शव दफनाने के लिए गड्ढा खोदा था. चूंकि महीनों गुजर जाने के बाद भी किसी को कोई शक नहीं हुआ था, इसलिए माया और टुल्लू को उम्मीद थी कि अब शिवलोचन की हत्या का भेद नहीं खुल पाएगा.

दरअसल शिवलोचन के घर वालों और गांव के लोगों से पूछताछ के बाद जब इंसपेक्टर अरुण पाठक को पता चला था कि माया और गांव के टुल्लू के बीच लंबे अर्से से न केवल अवैध संबंध थे बल्कि इन्हीं संबंधों के चलते शिवलोचन और टुल्लू में मारपीट भी हुई थी, तभी पाठक को शक हो गया था कि हो न हो शिवलोचन की हत्या में माया व टुल्लू का ही हाथ हो.

क्योंकि माया तो गांव से चली ही गई थी, कुछ दिन बाद टुल्लू भी गांव से गायब हो गया था. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने माया व टुल्लू से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इसी दौरान पुलिस को शिवलोचन की डीएनए रिपोर्ट भी मिल गई, जिस से स्पष्ट हो गया कि शिवलोचन के घर में मिला नरकंकाल उसी का था.

कथा अभियुक्तों से पूछताछ, परिजनों द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी पर आधारित

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 4

अनीश के घर के पास डा. प्रेम सिंह किसी के यहां फिजियोथैरेपी करने आता था. तभी उस की मुलाकात अनीश से हुई. अनीश भी जिम ट्रेनर था, इसलिए दोनों में दोस्ती हो गई. अपना काम कराने के लिए अनीश को प्रेम सिंह ही उचित लगा. एक दिन उस ने अपने प्रेम विरह की पीड़ा प्रेम सिंह से बता कर बीबीसी पत्रकार जर्जेई मर्कोव की तरह रवि कुमार की हत्या करने को कहा.

पढ़ाई और क्लीनिक खोलने के लिए प्रेम सिंह पर कुछ लोगों का कर्ज हो गया था. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी. हत्या करने का जो प्लान अनीश ने उसे बताया था, उस में उस के फंसने की संभावना काफी कम थी. इसी बात को ध्यान में रख कर उस ने कहा कि इस काम को वह खुद तो नहीं करेगा, पर किसी से करवा जरूर देगा. आखिर 3 लाख रुपए में बात तय हो गई. अनीश ने डेढ़ लाख रुपए उसे एडवांस दे भी दिए.

पैसे लेने के बाद प्रेम सिंह सितंबर, 2016 में अपने गांव गया. उस के गांव के बाहर सपेरों के डेरे थे. उस ने एक सपेरे से कोबरा सांप का जहर मांगा तो उस ने उसे 7 सौ रुपए में एक, सवा एमएल जहर उसे एक सिरिंज में निकाल कर दे दिया. प्रेम सिंह जानता था कि कभीकभी सांप के जहर से भी इंसान बच जाता है.

इसलिए सांप के जहर में वह दूसरे जहर मिलाना चाहता था. उस में क्या मिलाया जाए, इस के लिए वह गूगल पर सर्च करने लगा. सर्च कर के उसे मिडाजोलम और फोर्टविन नाम की 2 दवाओं की जानकारी मिली. इन की अधिक मात्रा आदमी के लिए जानलेवा साबित होती है. इन में से फोर्टविन तो केमिस्ट के पास मिल जाती है, पर मिडाजोलम बडे़ अस्पतालों में ही मिलती है.

अनीश से पैसे ले कर प्रेम सिंह गांव में ही रुका था. जबकि अनीश फोन कर के काम जल्द करने को कह रहा था. वह कह रहा था कि अगर उस से काम नहीं हो रहा तो वह उस के पैसे लौटा दे. दबाव बढ़ने पर वह दिल्ली आ गया.

प्रेम सिंह का एक रिश्तेदार एम्स में भरती था. वह उसे देखने एम्स गया तो वहां टेबल पर उसे मिडाजोलम की शीशी दिखाई दी. 5 एमएल दवा का इंजेक्शन मरीज को लगा दिया गया था. उस में एक एमएल दवा बाकी थी. प्रेम सिंह ने उस शीशी को जेब में रख लिया. फोर्टविन उस ने एक केमिस्ट से खरीद ली. इस के बाद उस ने एक सिरिंज में कोबरा सांप का जहर, फोर्टविन और मिडाजोलम को मिला कर रख दिया.

इस के बाद वह अनीश के साथ रवि कुमार की रैकी करने लगा. 25 अक्तूबर, 2016 को दोनों ने उस का पीछा किया. उस दिन वह बिंदापुर में अपने चचिया ससुर से मिल कर लौट रहा था. जैसे ही वह औटो में बैठा, प्रेम सिंह ने इंजेक्शन लगाने के लिए सुई उस के हाथ में घुसेड़ी. सुई चुभते ही उस ने अपना हाथ घुमाया तो सुई हाथ से निकल गई. इस तरह वह उसे इंजेक्शन नहीं लगा सका.

रवि कुमार ने शोर मचाया तो प्रेम सिंह भीड़ का फायदा उठा कर जहर की सिरिंज ले कर भाग खड़ा हुआ. इस के बाद प्रेम सिंह चौकन्ना हो गया. लेकिन वह समझ नहीं पाया था कि उसे सुई लगाने वाला आखिर कौन था? उस की उस ने पुलिस में शिकायत भी नहीं की थी.

वारदात को कैसे अंजाम दिया जाए, इस बारे में प्रेम सिंह और अनीश की बात होती रहती थी. दोनों ने तय किया कि रवि कुमार ड्यूटी खत्म करने के बाद बाहर निकले तो उसे ऐसी जगह इंजेक्शन लगाया जाए कि वह जीवित न बचे. दोनों मौके की तलाश में लगे रहे. उन्हें लगा कि यह काम सदर बाजार में करना आसान रहेगा, क्योंकि वह भीड़भाड़ इलाका है.

वारदात को अंजाम देने के मकसद से 7 जनवरी, 2017 को अनीश और प्रेम सिंह द्वारका से मैट्रो पकड़ कर आर.के. आश्रम स्टेशन पर पहुंचे. वहां से ई-रिक्शा द्वारा वे सदर बाजार में बाराटूटी चौक पर पहुंचे. अनीश ने वहीं पर प्रेम सिंह को एक बोतल बीयर पिलाई. इस के बाद वे कोटक महिंद्रा बैंक की उस शाखा के नजदीक पहुंच गए, जहां रवि कुमार नौकरी करता था.

शाम सवा 7 बजे के करीब रवि कुमार अपने सहकर्मी शतरुद्र के साथ बैंक से निकला तो प्रेम सिंह उस के पीछे लग गया. जबकि अनीश वहीं खड़ा रहा. प्रेम सिंह को वेस्ट एंड सिनेमा के नजदीक जैसे ही मौका मिला, उस ने रवि की गरदन में फुरती से जहर का इंजेक्शन लगा दिया. इस बार उस ने इंजेक्शन का सारा जहर रवि के शरीर में पहुंचा दिया था.

इस के पहले अप्रैल, 2016 में चैन्नै में एक बिजनैसमैन पकड़ा गया था, जिस ने सन 2015 में इसी अंदाज में 3 लोगों को इंजेक्शन लगा कर मारा था. पहले उस ने इंजेक्शन कुत्तों पर ट्राई किए थे. इंजेक्शन को वह छाते में छिपा कर रखता था. छाते को वह जांघ में छुआ देता था. मरने वाले उन 3 लोगों में एक उस का साला भी था.

अनीश ने इंटरनेट पर महीनों तक सर्च करने के बाद रवि कुमार को मारने का जो उपाय खोजा, आखिर उस से उसे क्या हासिल हुआ? अपने किए अपराध में वह जेल तो पहुंच ही गया, साथ ही उस ने सविता की हंसतीखेलती गृहस्थी भी उजाड़ दी. प्रेम सिंह ने डाक्टर होने के बावजूद अपने पेशे को बदनाम कर के जो कृत्य किया, वह निंदनीय है. पैसे के लालच में वह अपना फर्ज भी भूल गया.

बहरहाल, थाना सदर बाजार पुलिस ने डा. प्रेम सिंह और जिम ट्रेनर अनीश यादव को गिरफ्तार कर के तीसहजारी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी सचिन सांगवान की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. केस की तफ्तीश इंसपेक्टर मनमोहन कुमार कर रहे हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, सविता परिवर्तित नाम है.

पत्नी की विदाई : पति ही बना कातिल – भाग 3

इस की वजह यह थी कि नैंसी अकसर फोन पर व्यस्त रहती थी. देर रात तक वह किसी से फोन पर बातें करती थी. साहिल का कहना था कि दिन में वह किसी से भी बात करे, उसे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन उस के औफिस से लौटने के बाद उस के पास भी बैठ जाया करे.

साहिल जब नैंसी से पूछता कि वह किस से बात करती है तो वह कह देती कि दोस्तों से बात करती है. पत्नी की यह बात साहिल को गले इसलिए नहीं उतरती थी, क्योंकि शादी से पहले नैंसी ने उसे बताया था कि उस का कोई भी दोस्त नहीं है.

जब शादी से पहले उस का कोई दोस्त नहीं था तो शादी होते ही अब कौन ऐसे नए दोस्त बन गए जो घंटों तक उस से बतियाने लगे. यही बात साहिल के दिल में वहम पैदा कर रही थी. नैंसी की बातों और व्यवहार से साहिल को शक था कि उस की पत्नी का जरूर किसी से कोई चक्कर चल रहा है, जिसे वह उस से छिपा रही है.

पति या पत्नी दोनों के मन में संदेह पैदा हो जाए तो वह कम होने के बजाए बढ़ता जाता है और फिर कभी भी विस्फोट के रूप में सामने आता है. जिस नैंसी को साहिल दिलोजान से प्यार करता था, वही उस के साथ कलह करने लगी थी. कभीकभी तो दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ जाता था कि साहिल उस की पिटाई भी कर देता था.

साहिल का उग्र रूप देख कर नैंसी को महसूस होने लगा था कि साहिल को अपना जीवनसाथी चुनना उस की बड़ी भूल थी. उसे इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए था.

चूंकि उस ने अपनी पसंद से की शादी थी, इसलिए इस की शिकायत वह अपने पिता से भी नहीं कर सकती थी. हां, अपनी सहेलियों से बात कर के वह अपना दर्द बांट लिया करती थी.

साहिल पत्नी की

रोजरोज की कलह से तंग आ चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि रोजरोज की किचकिच से अच्छा है कि नैंसी का खेल ही खत्म कर दे. इस बारे में साहिल ने अपने औफिस में काम करने वाले शुभम (24) से बात की. शुभम साहिल का साथ देने को तैयार हो गया.

साहिल को शुभम ने बताया कि उस का एक ममेरा भाई है बादल, जो करनाल के पास स्थित घरोंडा गांव में रहता है. उसे भी साथ ले लिया जाए तो काम आसान हो जाएगा.

साहिल ने शुभम से कह दिया कि इस बारे में वह बादल से बात कर ले. शुभम ने बादल से बात की तो उस ने हामी भर ली. योजना को कैसे अंजाम देना है, इस बारे में साहिल ने बादल और शुभम के साथ प्लानिंग की. बादल ने सलाह दी कि नैंसी को किसी बहाने पानीपत ले जाया जाए और किसी सुनसान इलाके में ले जा कर उस का काम तमाम कर दिया जाए.

योजना को कहां अंजाम देना है, इस की रेकी के लिए तीनों लोग 10 नवंबर, 2019 को पानीपत गए. काफी देर घूमने के बाद उन्हें रिफाइनरी के पास की सुनसान जगह ठीक  लगी. रेकी करने के बाद तीनों दिल्ली लौट आए.

इसी बीच नैंसी और साहिल के बीच की कलह चरम पर पहुंच गई, तभी नैंसी ने अपनी सहेलियों प्रांजलि और सरानिया को फोन कर के बता दिया था कि आजकल साहिल उस के साथ मारपीट करने लगा है. उस ने उस के घर से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी है, उस के साथ कुछ भी हो सकता है.

नैंसी को शायद पति का व्यवहार देख कर अपनी मौत की आहट मिल गई थी, तभी तो उस ने सहेलियों से कह दिया था कि अगर 2 दिनों तक उस का फोन न मिले तो समझ लेना कि साहिल ने उस की हत्या कर दी है.

चूंकि साहिल को अपनी योजना को अंजाम देना था, इसलिए उस ने 11 नवंबर को सुबह से ही नैंसी के साथ प्यार भरा व्यवहार शुरू कर दिया. पति का बदला रुख देख कर नैंसी भी खुश हो गई. दोनों ने खुशी के साथ लंच किया.

लंच करने के दौरान ही साहिल ने नैंसी से कहा, ‘‘नैंसी, आज मुझे पानीपत में किसी से उधार की रकम लानी है. रकम ज्यादा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम भी पिस्टल ले कर मेरे साथ चलो.’’

नैंसी के पास एक पिस्टल थी, जो उसे उस के किसी दोस्त ने 2 साल पहले गिफ्ट में दी थी. नैंसी ने उस पिस्टल के साथ कई फोटो भी खिंचवा रखे थे. पति के कहने पर नैंसी उस के साथ पानीपत जाने को तैयार हो गई.

शाम करीब साढ़े 6 बजे साहिल पत्नी को ले कर घर से अपनी कार में निकला. शुभम और बादल को भी उस ने घर पर बुला रखा था. शुभम कार चला रहा था और बादल शुभम के बराबर वाली सीट पर बैठा था. जबकि साहिल और नैंसी कार की पिछली सीट पर थे. कार में ही साहिल ने पत्नी से पिस्टल ले कर उस में 2 गोलियां डाल ली थीं.

नैंसी को यह पता नहीं था कि उस का पति उस के सामने ही मौत का सामान तैयार कर रहा है. उन्हें पानीपत पहुंचतेपहुंचते रात हो गई. शुभम कार को रिफाइनरी के पास ददलाना गांव की एक सुनसान जगह पर ले गया. वहीं पर साहिल ने बाथरूम जाने के बहाने कार रुकवा ली. इस से पहले कि नैंसी कुछ समझ पाती, आगे की सीट पर बैठे शुभम और बादल ने उसे दबोच लिया.

तभी साहिल ने नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी, लेकिन गोली नहीं चली और हड़बड़ाहट में साहिल के हाथ से पिस्टल छूट कर नीचे गिर गई. नैंसी अब पूरा माजरा समझ गई थी कि पति उसे यहां मारने के लिए लाया है. वह साहिल के सामने अपनी जान बचाने की गुहार लगाने लगी, लेकिन पत्नी के गिड़गिड़ाने का उस पर असर नहीं हुआ.

साहिल ने फुरती से कार में गिरी पिस्टल और गोली उठाई. गोली उस ने दोबारा लोड की और नैंसी के सिर से सटा कर गोली चला दी. इस बार गोली उस के सिर के आरपार हो गई. तभी उस ने दूसरी गोली भी मार दी.

गोली लगते ही नैंसी के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा और वह सीट पर ही लुढ़क गई. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. फिर तीनों ने उस की लाश उठा कर झाडि़यों में फेंक दी. साहिल ने उस का मोबाइल अपने पास रख लिया. लाश ठिकाने लगा कर तीनों दिल्ली लौट आए. साहिल अपने घर जाने के बजाए दोनों साथियों के साथ जनकपुरी सी-1 ब्लौक और डाबड़ी के बीच स्थित एक लौज में रुका.

अपनी कार उस ने पास में ही स्थित सीतापुरी इलाके में ऐसी जगह खड़ी की, जहां स्थानीय लोग अपनी कारें खड़ी करते थे. यह इलाका चानन देवी अस्पताल के नजदीक है. नैंसी का मोबाइल साहिल ने सुभाषनगर मैट्रो स्टेशन के पास फेंक दिया था.

अगले दिन शुभम और बादल अपनेअपने घर चले गए. साहिल भी इधरउधर छिपता रहा.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस उन्हें ले कर पानीपत में उसी जगह पहुंची, जहां उन्होंने नैंसी की लाश ठिकाने लगाई थी. उन की निशानदेही पर पुलिस ने ददलाना गांव की झाडि़यों से नैंसी की सड़ीगली लाश बरामद कर ली. जरूरी काररवाई कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए नैंसी की लाश पानीपत के सरकारी अस्पताल में भेज दी.

इस के बाद पुलिस के तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश कर उन का 2 दिन का रिमांड लिया. रिमांड अवधि में आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने चानन देवी अस्पताल के नजदीक खड़ी साहिल की कार बरामद की. कार की मैट के नीचे छिपाई गई वह पिस्टल भी पुलिस ने बरामद कर ली, जिस से नैंसी की हत्या की गई थी. पुलिस नैंसी का मोबाइल बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी साहिल चोपड़ा, शुभम और बादल से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 4

लोहदा गांव में रहने वाला 27 वर्षीय टुल्लू लोध उर्फ रज्जन राजपूत मकानों में टाइल्स लगाने का काम करता था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई व दो बहनें थीं. बहनों की शादी हो चुकी थी. जबकि छोटा भाई लल्लन अभी कुंवारा था. कई साल पहले टुल्लू की दोस्ती गांव के ही शिवलोचन से हो गई थी.

दोनों ही शराब पीने के शौकीन थे. सो दोस्ती की शुरुआत भी शराब के ठेके से हुई. टुल्लू और शिवलोचन ने एक बार साथ बैठ कर शराब पी तो जल्द ही उन की दोस्ती पारिवारिक संबंधों में तब्दील हो गई. दोनों एकदूसरे के घर आनेजाने लगे. कई बार दोनों का खानापीना भी साथसाथ होता था.

दरअसल, टुल्लू की शिवलोचन से गहरी दोस्ती की असली वजह उस की खूबसूरत और जवान पत्नी माया थी, जिसे वह भाभी कह कर बुलाता था. माया अल्हड़ और चंचल स्वभाव की औरत थी. टुल्लू को माया पहली ही नजर में भा गई थी. उस ने माया की नजरों में दिखाई देने वाली प्यास को पढ़ लिया था.

टुल्लू का शिवलोचन के घर आनाजाना शुरू हुआ तो जल्दी ही यह सिलसिला शिवलोचन की अनुपस्थिति में भीचलने लगा.एक तरफ माया की जवानी उफान मार रही थी, जबकि दूसरी ओर उस का पति शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक घर से दूर रहता था. माया उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जब औरत को हर रात मर्द के साथ की जरूरत होती है.

टुल्लू ने पति से दूर रह रही और पुरुष संसर्ग के लिए तरसती माया के आंचल में अपने प्यार और हमदर्दी की बूंदें उडे़ली तो माया निहाल हो गई. जल्दी ही दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए. माया, टुल्लू के प्यार में ऐसी दीवानी हुई कि दोनों के बीच रोज शारीरिक संबंध बनने लगे. शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक घर के बाहर रहता था. रोकटोक करने वाला कोई नहीं था.

लेदे कर घर में एक सास थी जो अकसर माया के पास आ कर रहने लगती थी. लेकिन टुल्लू से संबंध बनने के बाद माया ने सास चुनकी देवी से भी लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था, फलस्वरूप सास उस के मकान पर न आ कर ज्यादातर अपने पैतृक घर में रहती थी. माया ने ऐसा इसलिए किया था ताकि टुल्लू रात में उस के पास बेरोकटोक आ जा सके.

मूलरूप से ग्राम देवरी पंधी, जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़ की रहने वाली माया की पहली शादी 13 साल पहले उस के मायके में ही एक युवक से हुई थी. लेकिन शादी के एक साल बाद ही पति ने गलत चालचलन का आरोप लगा कर उसे छोड़ दिया था. 2008 में शिवलोचन अपने एक परिचित के साथ किसी काम से माया के गांव देवरी पंधी गया था.

वहां बातोंबातों में किसी ने जब उस से पूछा कि उस ने शादी क्यों नहीं की तो शिवलोचन ने बता दिया कि अभी तक कोई अच्छी लड़की नहीं मिली. उस परिचित ने शिवलोचन से कहा कि अगर वह कुछ रुपए खर्च करे तो वह अपने गांव की एक तलाकशुदा लड़की से उस की शादी करा देगा.

शिवलोचन की उम्र बढ़ रही थी. उसे भी एक जीवनसाथी की जरूरत थी. वह पैसा खर्चने को तैयार हो गया तो उस परिचित ने शिवलोचन को माया के घर ले जा कर उस के परिवार व माया से मिलवा दिया. शिवलोचन को माया पसंद आ गई. माया के घर और परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी.

लिहाजा बिचौलिया बने परिचित ने माया के पिता को कुछ रकम दे कर जब शिवलोचन का माया से विवाह करने की बात चलाई तोवह तुरंत राजी हो गया. इस के बाद चट मंगनी पट विवाह की रस्म अदा कर के शिवलोचन माया को पत्नी बना कर अपने घर ले आया. वक्त हंसीखुशी गुजरने लगा. माया से उसे 2 बेटे हुए प्रमांशु (6) और 8 वर्षीय हिमांशु.

शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक परिवार से दूर रह कर इसलिए जी तोड़ मेहनत करता था ताकि पत्नी व बच्चों का भविष्य संवार सके. उसे क्या पता था कि उस की गैरहाजिरी में माया उसी के दोस्त के साथ रंगरेलियां मनाती है.

बात पिछले साल दीवाली के बाद तब बिगड़ी, जब नवंबर में शिवलोचन छुट्टी ले कर घर आया. घर में उस के हाथ एक ऐसा फोटो लगा, जिसे देख कर उस का माथा ठनक गया. दरअसल, फोटो माया और टुल्लू का था, जिस में दोनों एक साथ थे.

शिवलोचन ने उस फोटो को देखने के बाद पहली बार माया पर हाथ उठाया. उसी शाम जब टुल्लू उस के घर आया तो उस ने उस की भी पिटाई कर दी.बात इतनी बढ़ी कि मामला थाने तक जा पहुंचा. गांव के बड़े बुजुर्ग और समझदार लोग भी थाने पहुंचे.

दरअसल, काफी दिनों से लोग शिवलोचन से शिकायत कर रहे थे कि उस की गैरमौजूदगी में टुल्लू उस के घर आताजाता है और वह अकसर रात को भी उस के घर में ही रहता है. शिवलोचन ने जब यह बात माया से पूछी तो उस ने ऐसे आरोपों को गलत बताया.

लेकिन जब शिवलोचन ने दोनों की एक साथ फोटो देखी तो वह समझ गया कि गांव के लोग जो कहते हैं, वह गलत नहीं है. बहरहाल, उस समय पुलिस ने बड़े बुजुर्गों के बीच बचाव के बाद शिवलोचन और टुल्लू में समझौता करा दिया. साथ ही टुल्लू को माया से न मिलने और उस के घर न जाने की हिदायत भी दी. लेकिन इस के बावजूद टुल्लू और माया का मिलना बदस्तूर जारी रहा.

काम के सिलसिले में शिवलोचन को अकसर घर से बाहर रहना पड़ता था जबकि माया को टुल्लू के संग साथ की जो लत लग चुकी थी, उस ने दोनों को एकदूसरे से दूर नहीं होने दिया.

दूसरी ओर शिवलोचन ने माया और टुल्लू की निगरानी शुरू कर दी थी. उस ने गांव के अपने एक दो हम उम्र दोस्तों से कह दिया था कि वे माया और टुल्लू पर नजर रखें.

जब उसे पता चला कि दोनों के बीच मिलनाजुलना अब भी बदस्तूर जारी है तो उस ने माया से मिल कर इस समस्या को खत्म करने का फैसला किया. इस के लिए वह 4 नवंबर को अपने घर आया. उस ने माया और टुल्लू के मेलजोल की बात को ले कर पत्नी की पिटाई कर दी. शाम को वह घर में ही शराब पी कर सो गया.

कातिल हसीना : लांघी रिश्तों की सीमा – भाग 3

राजेश साधारण पढ़ालिखा युवक था. वह दिल्ली में किसी कंपनी में काम करता था. बात तय होने के बाद 8 जून, 2015 को मुनकी का ब्याह राजेश के साथ हो गया.

शादी के बाद मुनकी अपनी ससुराल में रहने लगी. मुनकी ने जैसे पति का सपना संजोया था, राजेश वैसा ही था. वह उसे खूब प्यार करता था और उस की हर ख्वाहिश पूरी करता था.

मुनकी को ससुराल में वैसे तो हर तरह का सुख था, लेकिन पति की कमी उसे खलती थी. क्योंकि राजेश दिल्ली में प्राइवेट कंपनी में काम करता था. उसे महीने 2 महीने  बाद ही छुट्टी मिल पाती थी. फिर कुछ दिन पत्नी के संग रह कर वह वापस चला जाता था. मुनकी ने पति के साथ रहने की इच्छा जताई तो राजेश ने यह कह उसे कर अपने साथ ले जाने से मना कर दिया कि मांबाप की सेवा कौन करेगा.

मुनकी की ससुराल और मायके में चंद खेतों की दूरी थी. अत: मुनकी का मायके आनाजाना लगा रहता था. वह सुबह मायके जाती तो शाम को ससुराल आ जाती थी. मुनकी की शादी हो जरूर गई थी, लेकिन कंधई सिंह उसे भूला नहीं था. वह अब भी एक तरफा प्यार में उस का दीवाना था. जब भी वह मायके आती थी तो कंधई उसे ललचाई नजरों से देखा करता था. कभीकभी वह उस से हंसीमजाक भी कर लेता था.

कंधई सिंह ने जब देखा कि मुनकी उस की किसी बात का बुरा नहीं मानती तो वह उस की ससुराल भी जाने लगा. उस ने मुनकी के सासाससुर से भी मेलजोल बढ़ा लिया था. वह कंधई को इसलिए घर आने से मना नहीं करते थे, क्योंकि वह उन की बहू का मौसेरा भाई था.

हर तरह का मुनकी को ससुराल में आना पसंद नहीं था लेकिन वह इस वजह से उसे मना नहीं कर पाती थी, क्योंकि उसे डर सता रहा था कि कहीं कंधई पुरानी बातों का जिक्र उस के पति और ससुराल वालों से न कर दे.

कंधई सिंह ने मुनकी देवी की ससुराल आना शुरू किया तो उस ने पुरानी हरकत फिर शुरू कर दी. कभी वह उस से प्यार का इजहार करता तो कभी शारीरिक छेड़छाड़. मुनकी उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करती थी. उस ने कई बार सोचा कि वह सासससुर से कहे कि वह कंधई को घर न आने दें, पर वह हिम्मत नहीं जुटा सकी. इस तरह समय बीतता रहा.

4 फरवरी, 2020 की शाम मुनकी घर में अकेली थी. उस की सास पड़ोस में हो रहे कीर्तन में गई थी और ससुर खेत पर सिंचाई करा रहे थे. तभी कंधई सिंह आ गया. उस ने सूना घर देखा तो उसे मुनकी की देह जीतने का यह सुनहरा मौका लगा. उस ने भीतर से दरवाजे की कुंडी बंद कर ली और अंदर के कमरे में जा कर मुनकी को दबोच लिया.

मुनकी भी अस्मत बचाने के लिए कंधई से भिड़ गई. स्वयं को मुक्त कराने के लिए वह कंधई को गालियां भी बक रही थी. और उस पर थप्पड़ भी बरसा रही थी. लेकिन कंधई उसे बेतहाशा चूमचाट रहा था. किसी तरह मुनकी उस के शैतानी चंगुल से छूट गई और कुंडी खोल कर बाहर आ गई.

इस के बाद कंधई भी नहीं रुका और वहां से चला गया. कुछ देर बाद उस की सास भी आ गई. लेकिन उस ने कंधई की हरकतों की जानकारी अपनी सास को नहीं दी.

देर रात मुनकी के सासससुर गहरी नींद में सो गए तब मुनकी ने अपने पति राजेश को फोन मिलाया और कहा, ‘‘आप तुरंत घर आ जाइए. मैं मुसीबत में हूं. न आए तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

‘‘पर ऐसी क्या बात हो गई, जो तुम जान देने की बात कर रही हो.’’ राजेश ने पत्नी से पूछा.

‘‘हर बात का जवाब फोन पर नहीं दिया जा सकता. कुछ गंभीर बातें होती हैं, जो आमनेसामने बैठ कर ही की जा सकती हैं. इसलिए तुम फौरन घर आ जाओ.’’ मुनकी ने पति को जवाब दिया.

राजेश, अपनी पत्नी को बेहद प्यार करता था. वह जान गया कि मुनकी किसी बात को लेकर बेहद परेशान है. अत: उस ने घर जाने का निश्चय किया और उसी दिन वह दिल्ली से ट्रेन में बैठ कर घर के लिए चल दिया.

पति को बताई व्यथा

18 घंटे के सफर के बाद राजेश घर पहुंचा तो मुनकी उसे देखते ही फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर बाद जब आंसुओं का सैलाब थमा तो उस ने अपनी व्यथा पति को बताई और बदतमीज मौसेरे भाई कंधई सिंह को सबक सिखाने को उकसाया.

पत्नी की आपबीती सुन कर राजेश का खून खौल उठा. उस ने कंधई को सबक सिखाने की ठान ली. राजेश ने अपने ससुर भीखू को घर बुलाया और सारी बात बता कर सहयोग मांगा. भीखू पहले से ही कंधई पर जलाभुना बैठा था. वह राजेश का साथ देने को राजी हो गया. इस के बाद राजेश, भीखू और मुनकी देवी ने सिर से सिर जोड़ कर कंधई सिंह की हत्या की योजना बताई.

इधर 2-3 दिन बीत गए और मुनकी ने कोई शिकवा शिकायत नहीं की तो कंधई सिंह को लगा कि मुनकी दिखावे का विरोध करती है. दिल से वह भी उस से मिलना चाहती है. अत: अब जब भी मौका मिलेगा वह अपनी इच्छा पूरी कर लेगा. भले ही मुनकी विरोध जताती रहे.

7 फरवरी, 2020 की रात 8 बजे एक बार फिर राजेश भीखू और मुनकी ने आपस में मंत्रणा की. फिर तीनों तेंदुआ बरांव गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय के पास पहुंच गए. राजेश अपने साथ लोहे की रौड ले आया था. राजेश और भीखू स्कूल के पूर्वी छोर पर खेत किनारे घात लगा कर बैठ गए.

योजना के अनुसार मुनकी ने रात लगभग 8 बजे कंधई सिंह से मोबाइल फोन पर बात की और देह मिलन के बहाने उसे प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर बुला लिया.

कंधई सिंह इस के लिए न जाने कब से तड़प रहा था. सो वह मुनकी के झांसे में आ गया. उस ने पत्नी राधा से कहा कि वह जरूरी काम से जा रहा है. कुछ देर में वापस आ जाएगा. फिर वह घर से निकला और प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर पहुंच गया. मुनकी उस का ही इंतजार कर रही थी. वह मुनकी से बात करने लगा. तभी घात लगाए बैठे राजेश और भीखू ने उस पर हमला कर दिया.

रौड के प्रहार से कंधई सिंह का सिर फट गया और वह रास्ते में ही गिर पड़ा. इस के बाद भीखू और मुनकी ने कई प्रहार कंधई सिंह के सिर व चेहरे पर किए जिस से उस की मौत हो गई. नफरत और घृणा से भरी मुनकी ने कंधई के गुप्तांग पर भी प्रहार कर उसे कुचल दिया. हत्या करने के बाद राजेश ने कंधई का मोबाइल फोन तोड़ कर वहीं फेंक दिया. फिर वह्य तीनों फरार हो गए.

12 फरवरी, 2020 को थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय ने अभियुक्त राजेश, भीखू तथा मुनकी से पूछताछ करने के बाद उन्हें श्रावस्ती की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित  

दिलफेंक हसीना : कातिल बना पति – भाग 3

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था.

भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ.

भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था.

कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था.

अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी.

ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा.

नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया.

मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया.

दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

साली की चाल में जीजा हलाल – भाग 3

जीजा की इस हरकत पर रामकली तुनक जाती. प्रेमप्रकाश तब उसे यह कह कर मना लेता कि साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. रामकली का मूड फिर भी ठीक न होता तो वह उसे हजार 5 सौ रुपए दे कर मना लेता.

प्रेमप्रकाश की पत्नी रेखा 4 बच्चों की मां बन चुकी थी. उस का रंगरूप भी सांवला था और स्वभाव से वह कर्कश थी. जबकि साली रामकली रसीली थी. उस का रंग गोरा और शरीर मांसल था. रामकली के आगे रेखा फीकी थी, इसलिए प्रेमप्रकाश उस पर लट्टू था और उसे हर हाल में अपना बनाना चाहता था.

दूसरी तरफ रामकली भी अपने पति रामप्रकाश से खुश नहीं थी. 4 बीवियों को भोगने वाले रामप्रकाश में अब वह पौरुष नहीं रहा था, जिस की रामकली कामना करती थी. इसलिए जब रिश्ते में जीजा प्रेमप्रकाश ने उस से छेड़छाड़ शुरू की तो उसे भी अच्छा लगने लगा और वह भी मन ही मन उसे चाहने लगी.

एक शाम प्रेमप्रकाश रामकली के घर पहुंचा तो वह बनसंवर कर सब्जी लेने सब्जी मंडी जाने वाली थी. प्रेमप्रकाश ने एक नजर इधरउधर डाल कर पूछा, ‘‘भाईसाहब नजर नहीं आ रहे. क्या वह कहीं बाहर गए हैं?’’

‘‘नहीं, बाहर तो नहीं गए हैं, लेकिन जाते समय कह गए थे कि देर रात तक आएंगे.’’

रामकली की बात सुन कर प्रेमप्रकाश की बांछें खिल उठीं. उस ने लपक कर घर का दरवाजा बंद किया, फिर साली को बांहों में भर कर बिस्तर पर जा पहुंचा. रामकली ने कुछ देर बनावटी विरोध किया, फिर खुद ही उस का सहयोग करने लगी.

जीजासाली का अवैध रिश्ता कायम हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. पहले प्रेमप्रकाश, रामप्रकाश की मौजूदगी में ही घर आता था, लेकिन अब वह वक्तबेवक्त और उस की गैरहाजिरी में भी आने लगा.

दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे की बांहों में समा जाते. जीजासाली के अवैध रिश्तों की भनक रामप्रकाश को भले ही न लगी, लेकिन पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. जीजासाली की रासलीला के चर्चे पासपड़ोस की महिलाएं करने लगीं.

रामप्रकाश किराए पर ई-रिक्शा चलाता था. 8-10 घंटे में वह जो भी कमाता था, उस से उस के परिवार का खर्च चलता था. कभीकभी कुछ पैसे पत्नी को भी दे देता था. रामप्रकाश पत्नी पर भरोसा करता था, जबकि रामकली उस के भरोसे को तोड़ रही थी. आखिर एक दिन सच सामने आ ही गया.

उस दिन सुबहसुबह रामकली और पड़ोसन के बीच गली में कूड़ा फेंकने को ले कर तूतू मैंमैं होने लगी. लड़तेझगड़ते दोनों एकदूसरे के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगीं.

रामकली ने पड़ोसन को बदचलन कहा तो उस का पारा चढ़ गया, ‘‘अरी जा, बड़ी सतीसावित्री बनती है. मेरा मुंह मत खुलवा, पति के काम पर जाते ही जीजा की बांहों में समा जाती है. खुद बदलचन है और मुझे कह रही है.’’

दोनों महिलाओं का वाकयुद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा था. संयोग से तभी रामप्रकाश आ गया. उस ने अपनी पत्नी रामकली और पड़ोसन को झगड़ते देखा तो रामकली को ही डांटा, ‘‘आपस में झगड़ते तुम्हें शर्म नहीं आती. चलो, घर के अंदर जाओ.’’

रामकली बड़बड़ाती, पैर पटकती घर के अंदर चली गई. इस के बाद रामप्रकाश पड़ोसन से मुखातिब हुआ, ‘‘रामकली तो अनपढ़, गंवार औरत है लेकिन तुम तो पढ़ीलिखी हो. गली में सरेआम ये तमाशा करना अच्छी बात है क्या?’’

पड़ोसन का गुस्सा काबू के बाहर था. वह हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘भाईसाहब, आप रामकली को सीधा समझते हैं, जबकि वह सीधेपन की आड़ में आप को बेवकूफ बना कर गुलछर्रे उड़ाती है.’’

रामप्रकाश की खोपड़ी सांयसांय करने लगी. उसे लगा कि पड़ोसन के सीने में जरूर कोई संगीन राज दफन है, जो गुस्से में बाहर आने को बेताब है. अत: उस ने पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं, साफसाफ कहिए.’’

‘‘भाईसाहब, मैं आप से कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन आप जब जानना ही चाहते हैं तो सुनिए. दरअसल आप की बीवी रामकली ने मोहल्ले में गंदगी फैला रखी है. आप की गैरमौजूदगी में प्रेमप्रकाश नाम का एक आदमी, जिसे रामकली अपना जीजा बताती है, आ जाता है. उस के आते ही दरवाजा अंदर से बंद हो जाता है. फिर आप के आने से कुछ देर पहले ही दरवाजा खुलता है और वह चला जाता है. बंद दरवाजे के पीछे क्या होता है, यह पूरी गली को मालूम है.’’

रामप्रकाश सन्नाटे में आ गया. उस की गैरमौजूदगी में रामकली ऐसा भी कुछ कर सकती है, वह सोच भी नहीं सकता था. अपमानबोध तथा शर्म से रामप्रकाश का सिर झुक गया. वह बुझी सी आवाज में बोला, ‘‘बहुत अच्छा किया आप ने जो सारी बातें मेरी जानकारी में ला दीं.’’

रामप्रकाश की जानकारी में ऐसा बहुत कम हुआ था, जब प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आया हो. प्रेमप्रकाश उसे फोन कर के पहले पूछ लेता था कि वह घर में है या नहीं.

उस के बाद ही वह आता था. जबकि उस महिला ने बताया कि प्रेमप्रकाश उस की गैरमौजूदगी में आता है. उस के आते ही रामकली दरवाजा बंद कर लेती है.

इस के बाद रामप्रकाश अपने घर में दाखिल हुआ और रामकली को सीधे सवालों के निशाने पर ले लिया, ‘‘सुना तुम ने, पड़ोसन तुम्हारे बारे में क्या कह रही थी?’’

‘‘हां, उस की भी बात सुनी और तुम्हारी भी सुन ली.’’ रामकली पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘बड़े शरम की बात है कि वो कलमुंही मुझ पर इलजाम लगाती रही और तुम चुपचाप सुनते रहे. तुम्हें तो उस समय उस का मुंह नोंच लेना चाहिए था.’’

रामप्रकाश के सब्र का पैमाना छलक गया. वह दांत किटकिटाते हुए बोला, ‘‘रामकली, यह बताओ तुम पहले से झूठी और बेशर्म थी या मेरे घर आ कर हो गई?’’

रामकली की घबराहट चेहरे पर तैरने लगी. वह बोली, ‘‘तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम सच पर परदा डालने की कोशिश मत करो. बताओ, तुम्हारा और प्रेमप्रकाश का चक्कर कब से चल रहा है?’’

रामकली पति के सवालों का जवाब देने के बजाए खुद को सही साबित करने के लिए इधरउधर की बातें करती रही.

पति का गुस्सा देख कर रामकली समझ गई कि अगर उस ने सच नहीं बताया तो रामप्रकाश पीटपीट कर उस की जान ले लेगा. अत: उस ने जमीन पर बैठ कर हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘अब बस करो, मैं सब बता देती हूं.’’

इस के बाद रामकली का मुंह खुला. उस ने सच्चाई तो बताई लेकिन अपनी चाल का पेंच फंसा दिया. उस ने प्रेमप्रकाश से नाजायज रिश्ता तो मान लिया लेकिन आरोप उसी पर मढ़ दिया कि वह उसे जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार बनाता है. उस ने इसलिए मुंह बंद रखा कि उन दोनों की दोस्ती न टूटे.

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 3

सविता अनीश की बीवी से मिली और उसे अपने और अनीश के प्रेमसंबंधों के बारे में बता दिया. यही नहीं, उस ने अनीश के साथ के अपने कुछ फोटो भी उसे दिखा दिए. फोटो देख कर अनीश की पत्नी को बहुत गुस्सा आया. शाम को उस ने अनीश से पूछा तो उस ने झूठ बोल दिया.

चूंकि वह सविता के साथ उस के फोटो देख चुकी थी, इसलिए वह उस पर भड़क उठी. दोनों के बीच जम कर नोकझोंक हुई. इस का नतीजा यह निकला कि अनीश की नवविवाहिता उसे छोड़ कर मायके चली गई. वह आज तक लौट कर ससुराल नहीं आई है.

अनीश की पत्नी के चली जाने से सविता बहुत खुश हुई, क्योंकि उस के और अनीश के बीच जो दीवार खड़ी हो गई थी, वह गिर चुकी थी. लिहाजा दोनों के बीच फिर पहले की तरह संबंध हो गए. पर ये संबंध ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सके. सविता के पिता की हालत दिनबदिन बिगड़ती जा रही थी. उन की इच्छा थी कि अपने जीतेजी वह सविता के हाथ पीले कर दें.

किसी रिश्तेदार से उन्हें रवि कुमार के बारे में पता चला. रवि कुमार उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के कुआंगई गांव के रहने वाले प्रमोद कुमार का बेटा था. प्रमोद कुमार सेना से रिटायर होने के बाद कानपुर की किसी कंपनी में नौकरी कर रहे थे. रवि कुमार दिल्ली के सदर बाजार स्थित कोटक महिंद्रा बैंक में कैशियर था.

लड़की लड़का पसंद आने के बाद सुरेशचंद्र और प्रमोद कुमार ने बातचीत कर के 13 जुलाई, 2016 को सामाजिक रीतिरिवाज से उन की शादी कर दी. हालांकि सविता अनीश से ही शादी करना चाहती थी, लेकिन रिश्ता तय होने के बाद पिता की भावनाओं को ठेस पहुंचाना उस ने उचित नहीं समझा. शादी के बाद वह मैनपुरी स्थित अपनी ससुराल चली गई.

शादी के बाद सविता ने अनीश से संबंध खत्म कर लिए और पूरी तरह से ससुराल में रम गई. उस की शादी हो जाने से अनीश जल बिन मछली की तरह तड़पने लगा. सविता की वजह से ही उस की बसीबसाई गृहस्थी उजड़ी थी और अब वही उसे धोखा दे कर चली गई थी. इस का उसे बड़ा दुख हुआ.

अनीश ने सविता से बात की तो उस ने उसे अपनी मजबूरी बता दी. उस ने पति के बारे में सब कुछ बता कर वाट्सएप से उस का फोटो भी भेज दिया. जबकि वह उस की एक भी बात सुनने को तैयार नहीं था. उस ने सविता पर पति से तलाक लेने का दबाव बनाया, लेकिन वह तैयार नहीं हुई. कुल मिला कर किसी भी तरह से वह पति को छोड़ने को तैयार नहीं थी.

अनीश तो सविता के प्यार में जैसे पागल था. उस के बिना हर चीज उसे बेकार लगती थी. उस ने सदर बाजार जा कर एक बार रवि कुमार से मुलाकात भी की. उस ने उसे अपने और सविता के प्यार के बारे में बता भी दिया. इस पर रवि ने उस से कहा कि सविता शादी से पहले क्या करती थी, इस से उसे कोई मतलब नहीं है. वह उस के अतीत को नहीं जानना चाहता, अब वह उस की पत्नी है और अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा रही है.

अनीश को रवि कुमार की बातों पर हैरानी हुई. वह सोचने लगा कि यह कैसा आदमी है, जो पत्नी की सच्चाई जान कर भी चुप है. बहरहाल निराश हो कर वह घर लौट आया. कहते हैं, जिम करने से ब्रेकअप का दर्द कम हो जाता है, पर अनीश तो खुद जिम टे्रनर था. इस के बावजूद वह सविता से बिछुड़ने की पीड़ा नहीं भुला पा रहा था. वह सविता को पाने के उपाय खोजने लगा.

ऐसे में ही उस के दिमाग में आइडिया आया कि अगर वह रवि की हत्या करा दे तो सविता उसे मिल सकती है. यही उसे उचित लगा. वह रवि को ठिकाने लगाने का ऐसा उपाय खोजने लगा, जिस से उस पर कोई आंच न आए. वह तरीका कौन सा हो सकता है, इस के लिए वह इंटरनेट पर सर्च करने लगा. उस ने तमाम तरीके देखे, पर हर तरीके में बाद में कातिल पकड़ा गया था.

वह ऐसे तरीके की तलाश में था, जिस में कातिल पकड़ा न गया हो. इंटरनेट पर महीनों की सर्च के बाद आखिर उसे वह तरीका मिल गया. लंदन और जर्मनी में 2 हत्याएं हुई थीं, जो पिन चुभो कर की गई थीं. पिन द्वारा जहर उन के शरीर में पहुंचाया गया था और वे मर गए थे. ठीक इसी तरह शीतयुद्ध के दौरान बुल्गारिया के रहने वाले बीबीसी के पत्रकार जर्जेई मर्कोव की हत्या की गई थी.

मर्कोव कम्युनिस्टों की निगाह में था. उन्होंने उसे मारने का फतवा भी जारी किया था. मर्कोव बस में जा रहा था, तभी एक हट्टेकट्टे आदमी ने एक छाता उस के ऊपर गिरा दिया था. इस के लिए उस आदमी ने मर्कोव से सौरी भी कहा था. मर्कोव ने भी सोचा कि छाता गलती से गिर गया होगा. लिहाजा उस ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया.

मर्कोव की जांघ में कुछ चुभा था, जहां उस ने हाथ से मसला भी था. 3 दिनों बाद उसे बहुत तेज बुखार आया और वह मर गया. यह बात सन 1978 की थी. जेम्स बौंड स्टाइल में उस छाते के पिन में रिसिन जहर लगाया गया था. रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी ने इसे ईजाद किया था.

इस मामले में कोई पकड़ा नहीं जा सका था. इटली के जासूस पिकोडिली पर आरोप लगा था, पर कुछ साबित नहीं हो पाया था. मर्कोव खुद भी एक कैमिकल इंजीनियर था. अनीश को यह तरीका सब से अच्छा लगा.

इस के बाद वह ऐसे व्यक्ति को खोजने लगा, जो उस का यह काम कर सके. वह जहर कहां से लाए, यह भी उस के लिए समस्या थी. इस के लिए वह किसी डाक्टर की तलाश करने लगा, क्योंकि पढ़ाई के दौरान डाक्टरों को जहर के बारे में भी पढ़ाया जाता है. कोई डाक्टर उस का यह काम करने को तैयार हो जाएगा, इस बात का शंशय उस के मन में था. अनीश का एक दोस्त था डा. प्रेम सिंह. वह फिजियोथैरेपिस्ट था. प्रेम सिंह जालौन का रहने वाला था. करीब 4 साल पहले वह दिल्ली आया था. गाजियाबाद के एक इंस्टीट्यूट से फिजियोथैरेपिस्ट का कोर्स करने के बाद द्वारका के पालम विहार में उस ने अपना क्लीनिक खोला था, पर उस का काम ज्यादा अच्छा नहीं चल रहा था.