दिलजलों का खूनी प्रतिशोध – भाग 1

दो पहर का खाना खा कर आराम कर रही मोना की नजर दीवार घड़ी पर पड़ी तो वह झटके से उठी और अलमारी खोल कर अपनी पसंद के कपड़े निकालने लगी. उन कपड़ों को पहन कर वह आईने के सामने खड़ी हुई तो  अपने आप पर मुग्ध हो कर रह गई. सफेद टौप और काली स्किन टाइट जींस में वह सचमुच बहुत खूबसूरत लग रही थी. अपनी उस खूबसूरती पर उस के होंठ स्वयं ही खिल उठे.

मोना तैयार हो कर घर से निकली तो खुद ब खुद उस के कदम उस ओर बढ़ गए, जहां वह रोज अपने ब्वायफ्रेंड विश्वजीत से मिलती थी. जब वह उस जगह पहुंची तो विश्वजीत उसे बैठा मिला. वह उस का इंतजार कर रहा था. वह दबे विश्वजीत के पीछे पहुंची और उस की आंखों को अपनी दोनों हथेलियों से बंद कर लिया. अचानक घटी इस घटना से विश्वजीत हड़बड़ाया जरूर, लेकिन तुरंत ही जान गया कि मोना आ गई. उस ने मोना के हाथों को आंखों से हटा कर उस की ओर देखा तो देखता ही रह गया.

मोना ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘इस तरह क्या देख रहे हो, पहले कभी नहीं देखा क्या?’’

‘‘क्या बात है भई, आज तो तुम बिजली गिरा रही हो?’’

‘‘लगता है, आज सुबह से तुम्हें बेवकूफ बनाने के लिए कोई और नहीं मिला.’’

‘‘मोना, मैं तुम्हें बेवकूफ नहीं बना रहा हूं. सचमुच आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो. हीरे को अपनी चमक का अहसास थोड़े ही होता है, उसे तो जौहरी ही पहचानता है.’’

‘‘अच्छा जौहरी साहब, अब आप ने हीरे की पहचान कर ली है तो अब जरा यह भी बता दीजिए कि हीरा असली है या नकली.’’

‘‘हीरा नकली होता तो मैं उसे हाथ ही न लगाता. हां,  हीरा भले ही असली था, लेकिन अभी तक तराशा नहीं था, इसलिए पत्थर जैसा था. अब मैं ने इसे तराश दिया है तो इस की खूबसूरती और चमक दोगुनी हो गई है.’’ विश्वजीत ने मोना की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

मोना को उस की बात की गहराई समझते देर नहीं लगी. इसलिए लजा कर उस ने नजरें झुका कर कहा, ‘‘यह हीरा तुम्हारे गले में सजना चाहता है.’’

विश्वजीत ने मोना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े विश्वास के साथ कहा, ‘‘मोना, हम दोनों की यह चाहत जरूर पूरी होगी. हम अपने बीच किसी को नहीं आने देंगे. अगर किसी ने आने की कोशिश की तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा.’’

मोना विश्वजीत के प्यार के जुनून को देख कर जहां खुश हुई, वहीं उन दोनों को छिप कर देख रही 2 आंखों में खून उतर आया. इस के बाद उस ने जो निश्चय किया, वह विश्वजीत के लिए ठीक नहीं था. आगे क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इस कहानी के पात्रों के बारे में जान लेते हैं.

मोना दिल्ली के कड़कड़डूमा की रहने वाली थी. उस के पिता वकालत करते थे. वह हिंदू थे, जबकि उन की पत्नी यानी मोना की मां मुस्लिम थीं. वकील साहब की यह दूसरी शादी थी. मोना उन की एकलौती संतान थी, जिसे वे बड़े लाडप्यार से पाल रहे थे. मांबाप के लाडप्यार और विचारों का मोना पर पूरा असर था. लड़कों से दोस्ती करना उन के साथ घूमना उस के लिए आम बात थी.

पहले तो मोना का मन पढ़ाई में खूब लगता था. लेकिन जैसे ही उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा और लड़कों ने उसे खूबसूरत होने का अहसास कराया, उस का मन पढ़ाई से उचटने लगा. वह सतरंगी सपनों की दुनिया में खोई रहने लगी. महानगर में पलबढ़ रही मोना के मन में भी अन्य लड़कियों की तरह अच्छे रहनसहन की ललक थी.

यही वजह थी कि वह अपनी सहेलियों को कईकई लड़कों के साथ घूमतेफिरते देखती तो उन की किस्मत से जल उठती. जबकि उस की वे सहेलियां उस की खूबसूरती के आगे कुछ भी नहीं थीं. इतनी खूबसूरत होने के बावजूद भी मोना का कोई ब्वायफ्रेंड नहीं था. जबकि उस की उन सहेलियों के ब्वायफे्रंड की लिस्ट काफी लंबी थी.

मोना की मां की कोई दूर की रिश्तेदारी उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार के शहबाजनगर निवासी बाबू खां के यहां थी. उन का बेटा नूरी उर्फ नूर मियां नई दिल्ली के जीबी रोड स्थित एक बार में वेटर का काम करता था. दिन में वह नौकरी करता था और रात में अजमेरी गेट के पास के एक रैनबसेरा में गुजारता था. रिश्तेदारी होने की वजह से नूरी का मोना के यहां आनाजाना था.

इसी आनेजाने में नूरी मोना को पसंद करने लगा. वह जब भी मोना के यहां आता, उस के आसपास ही मंडराता रहता. नूरी को पता ही था कि मांबाप के काम पर जाने के बाद मोना घर में अकेली रहती है, इसलिए वह ऐसे ही समय उस के पास आनेजाने लगा, जब वह घर में अकेली होती. ऐसे में वह उस से खूब बातें करता और घुमाने भी ले जाता, जहां उसे अच्छीअच्छी चीजें खिलाता. इस से मोना को उस का साथ अच्छा लगने लगा. मोना इतनी भोली नहीं थी कि यह न समझ पाती कि नूरी उस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है? सब कुछ जानते हुए  वह उस की ओर आकर्षित होने लगी.

मिसकाल बनी काल

नादानी का नतीजा

प्यार ने बना दिया नागिन

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 4

प्रेमिका की याद में घुट रहा था नवीन

नंदिनी भले ही अपने दिल से नवीन की यादें मिटा दी थीं, लेकिन नवीन उसे अभी भी भुला नहीं पाया था. उस के दिल में अब भी नंदिनी के साथ बिताए सुनहरे पल की यादें जवां थी. उस की एकएक सांस पर प्रेमिका का नाम लिखा हुआ था. जब उस की याद आती थी, उस की पलकें भीग जाती थीं. घुटता था वह दिल ही दिल में. आज भी वह इस बात को सोच कर परेशान हो जाता था कि नंदिनी ने किस कुसूर के लिए उसे अपने दिल से निकाल दिया.

तभी तो 2 साल बाद हिम्मत जुटा कर एक दिन नवीन ने नंदिनी को मैसेज किया. सालों बाद आए मैसेज को पढ़ कर वह हैरान रह गई थी. उस ने नवीन के भेजे गए मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस ने यह बात हरिहर कृष्णा को बता दी.

हरिहर कृष्णा ने जैसे ही सुना कि नवीन ने प्रेमिका को मैसेज किया है, वह सतर्क हो गया और डर भी गया कि सालों से पड़ा परदा नंदिनी के सामने कहीं उठ न जाए. वरना बना बनाया खेल बिगड़ सकता है, उस की सच्चाई जान कर नंदिनी उस से दूर चली जाएगी. वह ऐसा होने नहीं देना चाहता था.

उस ने प्रेमिका को समझाया कि वह उस के किसी भी मैसेज का जवाब नहीं दे. इस के बाद भी अगर वह मैसेज करता है तो कोई और रास्ता निकालना होगा.

उस दिन के बाद से नवीन नंदिनी को मैसेज बराबर भेजने लगा था. उस के बारबार मैसेज आने से वह बुरी तरह परेशान हो गई थी और हरिहर कृष्णा से एकएक बात बताती थी. नवीन के प्यार भरे मैसेज भेजने से वह जलभुन उठता था. उसे इस बात का डर सताने लगा था कि कहीं नंदिनी उस के हाथ से निकल न जाए.

नंदिनी ने नवीन से पीछा छुड़ाने की कोई कारगर युक्ति निकालने की बात कही तो उस ने उसे यकीन दिलाया कि जल्द ही नवीन नाम के कांटे से छुटकारा दिला देगा, इस की वह चिंता न करे.

हरिहर कृष्णा भी यही चाहता था कि नवीन जो उस के प्रेम की राह में कांटा बना हुआ है, उस कांटे को सदा के लिए रास्ते से उखाड़ फेंके. फिर प्रेमिका ने तो फरमान ही जारी कर दिया था तो भला उस के फरमान को वह कैसे पूरा न करता.

शातिर दिमाग वाला हरिहर कृष्णा ने फैसला कर लिया था उसे क्या करना है. उस ने मन ही मन खतरनाक योजना भी बना ली थी. योजना थी नवीन की हत्या. अब इसे यह तय करना था कि नवीन को नेलगोंडा से हैदराबाद कैसे बुलाया जाए. क्योंकि इस ने नवीन की हत्या की पटकथा इसी शहर में लिखी थी यानी उसे यहीं मारने का प्लान बनाया था.

अपनी योजना में उस ने नंदिनी को भी शामिल कर लिया था. उसे इस की हर गतिविधियों की पलपल की जानकारी दी.

दोस्त ने ही नवीन को लगा दिया ठिकाने

सूत्रों के अनुसार, 17 फरवरी 2023 की सुबह हरिहर कृष्णा ने नवीन को फोन किया और धोखे से उसे पुराने दोस्तों के साथ गेट टुगेदर पार्टी के लिए हैदराबाद बुलाया. इस पर नवीन ने अपनी तरफ से हां कह दिया और दोस्त (रूम पार्टनर) प्रदीप से हैदराबाद जाने और हरिहर कृष्णा के साथ पार्टी करने की बात कह कर हैदराबाद के लिए रवाना हो गया.

हरिहर कृष्णा ने जैसे ही सुना कि नवीन आ रहा है, उस ने छोटे आकार के पिट्ठू बैग में एक जोड़ा दस्ताना, नायलौन की रस्सी और फलदार चाकू रख लिया था ताकि मौका मिलते ही उसे रास्ते से हटा देगा.

सुबह 10 बजे के करीब नवीन हैदराबाद बस स्टैंड पहुंचा. वहां बाइक लिए हरिहर कृष्णा पहले से ही उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. बस से नीचे उतरते हुए दोस्त को देख कर हरिहर कृष्णा बुरी तरह जलभुन उठा, लेकिन चेहर ेपर जहरीली मुसकान थिरक रही थी.

दोस्त नवीन को बाइक पर बैठा कर हरिहर कृष्णा रेस्टोरेंट ले गया. वहां दोनों ने छक कर शराब पी. थोड़ी देर बाद शराब ने जब अपना रंग नवीन पर दिखाना शुरू कर दिया तो दिल में भरा गुब्बार फूट गया. उस ने अपनी प्रेमिका के छीनने का आरोप जब हरिहर कृष्णा पर मढ़ दिया तो हरिहर कृष्णा आगबबूला हो उठा और दोनों आपस में भिड़ गए.

एक पल को हरिहर कृष्णा उसे वहीं खत्म कर देने का मन बना लिया, लेकिन वहां भीड़ काफी थी, उसे अपने पकड़े जाने का भय सताने लगा था, इसलिए उस ने चुप रहने में ही भलाई समझी और बड़ी चालाकी से माहौल को दूसरी ओर घुमा दिया था.

फिर हरिहर कृष्णा नवीन को बाइक पर बैठा कर इधरउधर घुमाता रहा ताकि अंधेरा हो जाए. शाम 6 बजे के करीब बाइक ले कर वह अब्दुल्लापुरमेट थानाक्षेत्र के पेड्डा अंबरपेट की घनी झाडिय़ों के पास पहुंचा, जहां चारों ओर सन्नाटा और दूरदूर तक अंधेरा फैला था.

झाडिय़ों के पास उस ने बाइक रोक दी और दोनों पास स्थित रमादेवी पब्लिक स्कूल की ओर बढ़े, जहां पार्टी चलने की बात हरिहर कृष्ण ने बताई. आगेआगे लडख़ड़ाता हुआ नवीन चल रहा था, जबकि हरिहर कृष्णा उस के पीछेपीछे. यही सही मौका था. उस ने धीरे बैग से नायलौन की रस्सी निकाली और नवीन का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. उस के बाद उस ने नफरत से एक लंबी हुंकार भरी.

हरिहर ने दिखा दी नफरत की इंतहा

फिर पिट्ठू बैग से दस्ताना निकाल कर हाथों में पहना और चाकू से उस का गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया और मोबाइल की टार्च की रोशनी में मोबाइल कैमरे से फोटो खींचा और नंदिनी के वाट्सऐप पर भेज दिया. पुराने प्रेमी का कटा सिर देख कर नंदिनी बहुत खुश हुई.

हरिहर कृष्णा की नफरत की इंतहा यहीं खत्म नहीं हुई थी, उस ने उसी चाकू से नवीन का पेट फाड़ कर दिल बाहर दिया और नफरत व गुस्से से कहा, “ये दिल मेरी नंदिनी के लिए धडक़ता था न?” चाकू से दिल के कई टुकड़े कर डाले.

फिर उस ने कहा, “इन्हीं अंगुलियों से तू मेरी नंदिनी को मैसेज भेजता था न?” फिर उस ने दोनों हाथों की दसों अंगुलियों को काट कर अलग कर दिया.

फिर उस ने कहा, “तू मेरी नंदिनी के साथ शादी कर बच्चे पैदा करना चाहता था न?” उस के बाद उस ने उस के प्राइवेट पार्ट को भी काट कर अलग कर दिया और सबूत के तौर फोटो मोबाइल में उतार कर प्रेमिका के वाट्सऐप पर भेज दिया.

फिर उस की लाश को जला दिया ताकि कोई सबूत न मिले और रूमाल से अपने हाथों आदि पर खून पोंछ कर, चाकू, ग्लव्स वहीं फेंक दिया. उस के बाद वह अपने दोस्त हसन के कमरे पर पहुंचा. तब तक काफी रात हो चुकी थी, उस ने उसे सारी बात बता दी थी.

हरिहर कृष्णा की बात सुन कर वह सन्न रह गया था. फिर वह उस के वाशरूम में नहाया और उस के कपड़े पहने. उसी रात वह शहर छोड़ कर भाग जाना चाहता था तो उस ने नंदिनी से पैसे मांगे तो उस ने अपने मोबाइल से 1500 रुपए उस के अकांउट में ट्रांसफर किए और वह दूसरे शहर को फरार हो गया.

नवीन ने एक चालाकी की थी. हौस्टल से हैदराबाद के लिए निकलते समय उस ने बता दिया था कि अपने दोस्त हरिहर कृष्णा के पास पार्टी में जा रहा है. शाम तक वापस लौट आएगा. जब वह रात तक हौस्टल नहीं लौटा तो रूम पार्टनर प्रदीप ने पूरी बात उस के पिता शंकराय को बता दी थी. इसी वजह से पुलिस को यह केस खोलने में आसानी हुई.

पुलिस ने हरिहर कृष्णा से पूछताछ करने के बाद उस की प्रेमिका नंदिनी और दोस्त हसन को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने पुलिस कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नंदिनी परिवर्तित नाम है.

अनुराधा रेड्डी हत्याकांड : सीसीटीवी फुटेज से खुली मर्डर मिस्ट्री

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 3

नंदिनी ने बना ली नवीन से दूरी

हरिहर कृष्णा ने अपना दांव चल दिया था. कान की कच्ची नंदिनी उस की बातों में आ गई थी. वैसे भी नारी यह कब बरदाश्त कर सकती है कि एक म्यान में 2 तलवार रह सके.

हरिहर कृष्णा ने जब से नवीन के खिलाफ उस के कान भरे थे, तब से नंदिनी ने उस से दूरी बना ली. वह न तो उस से बात करती थी और न ही उस की काल रिसीव कर रही थी. अचानक प्रेमिका में आए बदलाव को देख कर नवीन परेशान हो गया था. वह उस से यह जानने की कोशिश करता था कि आखिर उस से ऐसी कौन सी गलती हुई है कि उस ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी.

यहां तक कि काल रिसीव करना भी छोड़ दिया था वरना एक घंटी बनते ही झट से उस की काल रिसीव कर लेती थी. नवीन को क्या पता था कि उस की प्रेमिका को अपनी प्रेमिका बनाने के लिए उसी के अजीज यार ने गद्दारी की थी. उसी ने भोलीभाली नंदिनी को उस के खिलाफ भडक़ाया था. बिना सोचेसमझे नंदिनी भी शक के दरिया में रफ्तार से बढ़ गई थी.

इस घटना के महीने भर बाद शाम की छुट्ïटी के बाद एक दिन रास्ते में नवीन ने नंदिनी को रोक लिया, “एक मिनट के लिए नंदिनी, प्लीज मेरी बात सुन लो.” नवीन उस के सामने गिड़गिड़ाया.

“मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनने वाली. और फिर तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई जो तुम ने मेरा रास्ता रोका?” गुस्से से नंदिनी तमतमा उठी थी.

“प्लीज नंदिनी, गुस्सा मत होओ,” एक बार फिर उस के सामने नवीन गिड़गिड़ाया, “सिर्फ इतना बता दो कि आखिर मुझ से ऐसी क्या गलती हुई है, जो तुम ने मुंह मोड़ लिया. प्लीज नंदिनी, प्लीज एक बार बता दो.”

“मैं ने कहा न, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है तो नहीं करनी है. प्लीज मेरा रास्ता छोड़ दो. प्लीज.. प्लीज.. प्लीज… मुझे घर पहुंचना है, मम्मी मेरी राह देख रही होगी.”

इस के बाद नवीन ने प्रेमिका के सामने दोनों हाथ जोड़ कर अपने प्यार की दुहाई दी कि उसे उस की गलती तो एक बार बता दो ताकि जीवन में दोबारा वैसी कोई गलती न हो. वह उस के बिना नहीं जी सकता, उस की जुदाई का गम बरदाश्त नहीं कर सकता. लेकिन नंदिनी ने उस से कुछ नहीं कहा तो नहीं कहा. हार कर नवीन ने उसे छोड़ दिया और वहीं खड़ाखड़ा एकटक उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई.

हारे हुए जुआरी की तरह नवीन घर पहुंचा. दिल उस का नंदिनी के लिए सिसकियां भर रहा था, गंगा यमुना की धारा उस की आंखों से छलक रहा था. नंदिनी के वियोग में वह विरह की अग्नि में जल रहा था. आंखों के सामने बारबार नंदिनी का मुसकराता हुआ चेहरा थिरक उठता था.

बस, वह इसी उलझन में जकड़ा रहा कि आखिर उस से कौन सी गलती हुई थी, जो उस ने उसे इतनी बड़ी सजा दी. बहरहाल, क्या हुआ जो उस ने सच नहीं बताया, लेकिन वह भी चुप बैठने वालों में नहीं था. इस बात की सच्चाई पता लगा कर ही रहेगा. इस के बाद दोनों के बीच ब्रेकअप हो गया.

नवीन को छोड़ दोस्त की हो गई नंदिनी

आखिरकार, नवीन ने सच का पता लगा ही लिया था. गद्दार दोस्त हरिहर कृष्णा की सच्चाई जब खुल कर उस के सामने आई तो नवीन आगबबूला हो गया. दुख तो इस बात का था कि उस की प्रेमिका नंदिनी न तो उस की कोई बात सुनने के लिए तैयार थी और न ही उस से मिलना ही चाहती थी.

नवीन सही समय आने के इंतजार में बैठ गया कि एक न एक दिन वह समय आएगा, जब वह हरिहर कृष्णा की कलई उस के सामने खोल कर रख देगा.

शातिर हरिहर कृष्णा अपनी चाल की कामयाबी पर बेहद खुशी महसूस कर रहा था, उस ने अपनी दोगली चाल और दांवपेंच से 2 प्रेमियों को अलग कर दिया था. वह मन ही मन खुश था कि अब नंदिनी को अपना बनाने से कोई रोक नहीं सकता.

नंदिनी के दिल में हरिहर कृष्णा ने नवीन के खिलाफ इतना जहर भर दिया था कि वह उस के नाम से गुस्से की आग में जल उठती थी, ऐसा लगता था नवीन अगर उस के सामने आ जाए तो उस का खून पी जाएगी. हरिहर कृष्णा यही चाहता भी था कि नंदिनी के दिल और दिमाग से उस का पहला प्यार पूरी तरह खाली हो जाए ताकि उस के दिल के कैनवास पर अपने प्यार का मनचाहा रंग भर सके.

भले ही नंदिनी ने अपने दिल और दिमाग से नवीन को निकाल फेंका था, लेकिन जब वह अकेली होती थी तो उस की यादों के बादल और उस के साथ बिताए पल आंखों के सामने उमड़ पड़ते थे. वह उदास हो जाती थी, हरिहर इसी पल का इंतजार करता था ताकि उसे संभालने के बहाने उस के दिल के करीब पहुंच सके और अपने प्यार का मरहम लगा सके.

चतुर खिलाड़ी हरिहर कृष्णा धीरेधीरे नंदिनी के दिल के करीब पहुंचने में कामयाब हो गया. दिल के हरे जख्म को भरने के लिए उस ने सहानुभूति का जो मरहम लगाया था, नंदिनी उस की मुरीद हो गई थी. नंदिनी के दिल पर उस के प्यार का रंग चढऩे लगा था. वह उस के प्यार के रंग में रंगने लगी थी.

नंदिनी और हरिहर कृष्णा दोनों एकदूसरे से टूट कर प्यार करने लगे थे. उस ने नंदिनी के दिल पर अपने प्यार की ऐसी हुकूमत बैठा दी कि उस का दिल हरिहर कृष्णा के अलावा किसी और के बारे में धडक़ने की गुस्ताखी नहीं करता था.

धीरेधीरे 2 साल का समय बीत चुका था नंदिनी को हरिहर कृष्णा का हुए और पहले प्रेमी नवीन से दूरियां बनाए हुए. दोनों ही अपने प्यार की दुनिया में बहुत खुश थे. हरिहर कृष्णा ने जो चाहा था सो पा चुका था.

इधर नवीन ने नंदिनी से ब्रेकअप करने के बाद अपना सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया. इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने नेलगोंडा जिले के महात्मा गांधी इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला ले लिया था, जबकि हरिहर कृष्णा जडीगुड़ा के इंजीनियरिंग कालेज से बी.टेक कर रहा था और नंदिनी हैदराबाद में ही रह कर बीएससी की पढ़ाई कर रही थी.

दोस्त के प्यार पर डाका – भाग 2

22 वर्षीय हरिहर कृष्णा मूलरूप से वेरांगल जिले का रहने वाला था. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ा था. उस के पिता एक बिजनैसमैन थे. बेटे की पढ़ाई पर वह खूब पैसे खर्च कर रहे थे. उन का सपना था कि बेटा पढ़लिख कर इंजीनियर बने तो उन का जीवन सार्थक हो जाए. भले ही उस की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च आए, इस की कोई चिंता नहीं. उन का सोचना था कि जब हरिहर का जीवन संवर जाएगा तो बाकी दोनों बच्चों का भी भविष्य बन जाएगा.

नवीन और हरिहर कृष्णा एक ही कालेज और एक ही कक्षा में पढ़ते थे. इन दोनों के साथ ही हैदराबाद के हस्तिनापुरम की रहने वाली नंदिनी भी पढ़ती थी.

नंदिनी इकहरी बदन की दुबलीपतली और छरहरी लडक़ी थी. उस में कोई खास आकर्षण भी नहीं था, लेकिन न जाने क्यों नवीन उस की ओर चुंबक की तरह खिंचता चला जा रहा था. शायद नवीन को उस से प्यार हो गया था. तभी तो उस ने अपने दिल का दरवाजा नंदिनी के लिए खोल दिया था.

उस के दीदार के लिए हर घड़ी पलकें बिछाए रहता था. ऐसा नहीं था यह एकतरफा प्यार हो, नंदिनी भी नवीन को बेहद चाहती थी. अपने कोरे दिल पर अपने सपनों के राजकुमार के रूप में नवीन का नाम लिख दिया था. यह बात घटना से करीब 3 साल पहले 2020 की थी.

नंदिनी नवीन का पहला प्यार थी और नवीन भी उस का पहला प्यार. इन दोनों का प्यार ठीक उसी तरह था जैसे बाती बिन दीया नहीं, चांदनी बिन चांद नहीं और तपिश बिन सूरज नहीं. बेपनाह प्यार था दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए.

नंदिनी और नवीन ने एकदूजे को ले कर अपने भविष्य की कुछ सपने देखे थे. साथसाथ रहने की, साथसाथ जीवन के सुनहरे पल बिताने की. पते की बात तो ये थी कि नवीन अपने प्यार की पलपल की स्टोरी अपने अजीज दोस्त हरिहर कृष्णा को बताए बिना नहीं रहता था. इस से एकएक बात शेयर करता था.

हरिहर ने डाला दोस्त के प्यार पर डाका

हरिहर कृष्णा चटखारे ले कर मजे से दोनों की प्रेम कहानी सुनता था. दोनों की प्रेम कहानी सुनतेसुनते भी उस के दिल में दोस्त की प्रेमिका के लिए खास जगह बनने लगी थी. धीरेधीरे वह उस के प्रति आकर्षित होता चला गया था. जबकि हरिहर कृष्णा जानता था कि नंदिनी से उस का दोस्त प्यार करता था. किसी के प्यार को छीनना गलत है, लेकिन उस ने इस बात की परवाह किए बिना ही प्रेम और जंग में सब कुछ जायज है वाली नीति अपनाते हुए उसी ओर अपना कदम बढ़ा दिया था.

सीधासादा नवीन दोस्त हरिहर कृष्णा के मन में क्या चल रहा है, जान ही नहीं सका. वह समझ ही नहीं सका कि वह उस के प्यार पर डाका डालने के लिए कुंडली मार कर बैठा है. उसे अगर तनिक भी अंदेशा होता तो शायद अपने प्यार को दोस्त से कभी भी न तो शेयर करता और न ही उसे कुछ बताता. लेकिन हरिहर कृष्णा के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

नंदिनी को पाने के लिए हरिहर कृष्णा के मन में हसरतें जिंदा हो चुकी थीं. उसे किसी भी तरह हासिल करने की उस ने सौगंध ले ली थी. लेकिन उसे हासिल करे तो करे कैसे, इस जुगत में दिनरात परेशान रहा करता था. आखिरकार दोनों को अलग करने की उस ने तरकीब निकाल ही ली.

शातिर दिमाग वाले हरिहर कृष्णा ने दोनों को अलग करने के लिए उन में इस तरीके से फूट डाल दी थी कि बरसों का प्यार पल भर में रेत के मकान की तरह ढह गया था. एक दिन मौका देख कर हरिहर कृष्णा ने नंदिनी को भडक़ाया, “जानती हो नंदिनी, तुम जितनी भोली हो, नवीन उतना ही कमीना है.”

“तुम्हें शर्म नहीं आती अपने अजीज दोस्त के खिलाफ ऐसी बातें करते हुए.” प्रेमी की बुराई सुन कर नंदिनी गुस्सा हो गई थी.

“तभी तो कहता हूं नंदिनी तुम बहुत भोली हो. दोस्त के दोहरे चेहरे को तुम देख नहीं सकती.” हरिहर कृष्णा ने भडक़ाया.

“क्या मतलब है तुम्हारा, मैं अंधी हूं मुझे कुछ दिखता नहीं है?”

“नाराज क्यों होती हो यार, तुम्हें अपना समझ कर दोस्त की सच्चाई बता रहा हूं. तुम हो कि मेरी बात सुनने के बजाय मुझ पर ही नाराज हो रही हो. पता नहीं क्यों मुझ से तुम्हारे साथ हो रहा धोखा देखा नहीं जा रहा है.” इस बार हरिहर कृष्णा ने तीर निशाने पर लगाया था.

“कौन धोखा दे रहा है मुझे?” नंदिनी ने सवाल किया.

“तुम्हारा प्यार, नवीन. वही तुम्हें धोखा दे रहा है.”

“इसे मैं कतई मानने के लिए तैयार नहीं हूं कि नवीन मुझे कभी धोखा दे सकता है. वो मुझ से बहुत प्यार करता है, अंधा प्यार.”

“इसी बात का तो रोना है. उस ने तुम से अंधे प्यार वाली बात कर दी और तुम भी उसी तरह अंधी हो गई. पर इस में कोई सच्चाई नहीं है कि वो तुम से अंधा प्यार करता है.”

“तो फिर?”

“कई लड़कियों से उस के नाजायज संबंध हैं.”

“क्या?” नंदिनी उस की बात सुन कर बुरी तरह उछली.

“क्या कहते हो तुम? नवीन और कई लड़कियां? मैं और मेरा दिल इसे कभी मानने के लिए तैयार नहीं होगा कि मुझे छोड़ कर वह किसी और लडक़ी से प्यार करता है. नो…नेवर.”

“इसी बात का तो रोना है, तुम मेरी किसी बात को सीरियसली लेती नहीं हो. यह सब तुम्हें बता कर मुझे क्या बेनिफिट होने वाला, जरा सोचो.” इतना कह कर हरिहर कृष्णा ने नंदिनी के चेहरे पर अपनी शातिर नजरें गड़ा दी थीं और उस के हावभाव को पढऩे की कोशिश करने लगा था, जिस से उसे पता चल सके कि अब वह क्या सोच रही है.

कुछ पल के लिए वह गंभीर हुई, फिर कुछ सोच कर उस ने कहा, “पता नहीं क्यों मेरा दिल इसे मानने को तैयार नहीं हो रहा है कि नवीन के और लड़कियों से संबंध होंगे? लेकिन तुम कहते हो तो…”

“मेरा काम तुम्हें एलर्ट करना था, सो मैं ने कर दिया नंदिनी. बाकी मानना, न  मानना तुम्हारा काम. अच्छा चलता हूं. एक सच्चा दोस्त होने का फर्ज निभाया है मैं ने. बाकी सब ऊपर वाले के हाथ में…” कहते हुए वह आगे बढ़ गया.

परदेसी पति की बेवफा पत्नी

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंपियरगंज के थानाप्रभारी चौथीराम यादव रात की गश्त से लौट कर लेटे ही थे कि उन के फोन की घंटी बजी. बेमन से उन्होंने फोन उठा कर कहा, ‘‘हैलो, कौन?’’

‘‘सर मैं टैक्सी ड्राइवर किशोर बोल रहा हूं.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘जो भी कहना है, सुबह थाने में आ कर कहना. अभी मैं सोने जा रहा हूं.’’

‘‘सर, जरूरी बात है… मोहम्मदपुर नवापार सीवान के पास सड़क के किनारे एक औरत की लाश पड़ी है. उस के सीने से एक छोटा बच्चा चिपका है. अभी बच्चा जीवित है.’’ किशोर ने कहा.

लाश की बात सुन कर थानाप्रभारी की नींद गायब हो गई. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है, मैं पहुंच रहा हूं. मेरे आने तक तुम वहीं रहना. बच्चे का खयाल रखना.’’

‘‘ठीक है सर, आप आइए. आप के आने तक मैं यहीं रहूंगा.’’

कह कर किशोर ने फोन काट दिया.

सूचना गंभीर थी, इसलिए थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने तुरंत इस घटना की सूचना अधिकारियों को दी और खुद जल्दीजल्दी तैयार हो कर सबइंसपेक्टर विनोद कुमार सिंह, कांस्टेबल रामउजागर राय, अवधेश यादव और जगरनाथ यादव के साथ घटनास्थल की ओर चल पड़े. अब तक उजाला फैल चुका था. घटनास्थल पर काफी लोग जमा हो चुके थे. घटनास्थल पर पहुंचते ही थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने सब से पहले उस बच्चे को उठाया, जो मरी हुई मां के सीने से चिपका सो रहा था.

स्थिति यही बता रही थी कि वह मृतका का बेटा था. उठाते ही बच्चा जाग गया. वह बिलखबिलख कर रोने लगा. चौथीराम ने उसे एक सिपाही को पकड़ाया तो वह उसे चुप कराने की कोशिश करने लगा.

पहनावे से मृतका मध्यमवर्गीय परिवार की लग रही थी. उस की उम्र यही कोई 25 साल के आसपास थी. उस के मुंह और सीने में एकदम करीब से गोलियां मारी गई थीं. मुंह में गोली मारी जाने की वजह से चेहरा खून से सना था. घावों से निकल कर बहा खून सूख चुका था. मृतका की कदकाठी ठीकठाक थी. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे कम से कम 2 तो रहे ही होंगे.

पुलिस ने घटनास्थल से 315 बोर के 2 खोखे बरामद किए थे. खोखे वही रहे होंगे, जो 2 गोलियां मृतका को मारी गई थीं. घटनास्थल पर मौजूद लोग लाश की शिनाख्त नहीं कर सके थे. इस का मतलब मृतका वहां की रहने वाली नहीं थी.

पुलिस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की काररवाई कर रही थी कि अचानक वहां एक युवक आया और लाश देख कर जोरजोर से रोने लगा. उस के रोने का मतलब था, वह मृतका का कोई अपना रहा होगा.

पुलिस ने उसे चुप करा कर पूछताछ की तो पता चला कि वह मृतका का भाई दीपचंद था. मृतका का नाम शीला था. कल सुबह वह ससुराल से अपने बेटे को ले कर मायके जाने के लिए निकली थी. शाम तक वह घर नहीं पहुंची तो उसे चिंता हुई. सुबह वह उसी की तलाश में निकला था. यहां भीड़ देख कर वह रुक गया. पूछने पर पता चला कि यहां एक महिला की लाश पड़ी है. वह लाश देखने आया तो पता चला वह लाश उस की बहन की है. उस के साथ उस का बेटा कृष्णा भी था.

पुलिस ने कृष्णा को उसे सौंप दिया. दीपचंद ने फोन द्वारा घटना की सूचना पिता वृजवंशी को दी तो घर में कोहराम मच गया. गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर वृजवंशी भी वहां पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी. बेटी की लाश और मासूम नाती कृष्णा को रोते देख वृजवंशी भी बिलखबिलख कर रोने लगा. उस से रहा नहीं गया और उस ने नाती को दीपचंद से ले कर सीने से चिपका लिया.

घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस दीपचंद के साथ थाने आ गई. थाने में उस की ओर से शीला की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 23 जनवरी, 2014 की बात है.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी चौथीराम यादव ने जांच शुरू की. हत्यारों ने सिर्फ शीला की हत्या की थी, उस के बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया था. इस का मतलब उस का जो कुछ था, वह शीला से ही था. उसे सिर्फ उसी से परेशानी थी. ऐसे में उस का कोई प्रेमी भी हो सकता था, जो उस से पीछा छुड़ाना चाहता रहा हो.

शीला की ससुराल गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा सरहरी में थी. थानाप्रभारी चौथीराम दीपचंद को ले कर शीला की ससुराल जा पहुंचे. बनरहा पहुंचने में उन्हें करीब 2 घंटे का समय लगा. शीला की ससुराल में उस की सास और ससुर थे. पूछताछ में उन्होंने बताया कि 22 जनवरी, 2014 को शीला अपने मुंहबोले भाई पप्पू और उस के दोस्त के साथ मोटरसाइकिल से मायके के लिए निकली थी. कृष्णा को भी वह अपने साथ ले गई थी.

इस के अलावा वे और कुछ नहीं बता सके थे. पूछताछ में सासससुर ने यह भी बताया था कि पप्पू अकसर उन के यहां आता रहता था. चौथीराम यादव ने दीपचंद से पप्पू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि पप्पू उसी के गांव का रहने वाला था. वह आवारा किस्म का लड़का था.

थानाप्रभारी बनरहा से सीधे दीपचंद के गांव अहिरौली जा पहुंचे. पप्पू के बारे में पता किया गया तो घर वालों ने बताया कि वह 22 जनवरी, 2014 को नौतनवा जाने की बात कह कर घर से निकला था. तब से लौट कर नहीं आया है.

दीपचंद की मदद से पप्पू और शीला का मोबाइल नंबर मिल गया था. पुलिस ने दोनों नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि 22 जनवरी की सुबह शीला ने पप्पू को फोन किया था. उस के बाद पप्पू का मोबाइल फोन बंद हो गया था. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि दोनों में रोजाना घंटों बातें होती थीं. इस से साफ हो गया कि दोनों में संबंध थे. पप्पू ने ही किसी बात से नाराज हो कर दोस्त की मदद से शीला की हत्या की थी.

जांच कहां तक पहुंची है, थानाप्रभारी चौथीराम इस की जानकारी क्षेत्राधिकारी अजय कुमार पांडेय और पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) डा. यस चेन्नपा को भी दे रहे थे. पप्पू के बारे में जब घर वालों से कोई जानकारी नहीं मिली तो थानाप्रभारी ने उस के बारे में पता करने के लिए उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगवा दिया.

आखिर 2 फरवरी, 2014 को घटना के 10 दिनों बाद पुलिस ने मुखबिर के जरिए पप्पू और उस के दोस्त को मोटरसाइकिल सहित लोरपुरवा के पास से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों नेपाल की ओर जा रहे थे.

पुलिस पप्पू और उस के दोस्त अवधेश को थाने ले आई. तलाशी में पुलिस को अवधेश के पास से 315 बोर का देशी तमंचा और कारतूस भी मिले. पुलिस ने दोनों चीजों को अपने कब्जे में ले लिया. जबकि पप्पू उर्फ दुर्गेश के पास से सिर्फ 2 सिम वाला मोबाइल फोन मिला था.

पुलिस दोनों से अलगअलग पूछताछ करने लगी. दोनों ने पहले तो शीला की हत्या से इनकार किया, लेकिन पुलिस के पास उन के खिलाफ इतने सुबूत थे कि ज्यादा देर तक वे अपनी बात पर टिके नहीं रह सके और सच्चाई कुबूल कर के शीला की हत्या की पूरी कहानी उगल दी. इस पूछताछ में पप्पू और अवधेश ने शीला की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

जिला महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव अहिरौली में रहता था वृजवंशी. उस के परिवार में पत्नी फूलवासी के अलावा कुल 7 बच्चे थे. शीला उन में पांचवें नंबर पर थी. वृजवंशी के पास इतनी खेती थी कि उसी से उन के इतने बड़े परिवार का गुजरबसर हो रहा था. लेकिन बेटे बड़े हुए, उन्होंने काफी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले ली थीं. बेटों की शादियां हो गईं तो बेटों की मदद से वृजवंशी बेटियों की शादियां करने लगा.

शीला जवान हुई तो वृजवंशी को उस की शादी की चिंता हुई. बाप और भाई उस के लिए लड़का ढूंढ पाते उस के पहले ही वह गांव में ही बचपन के साथी दुर्गेश उर्फ पप्पू से आंखें लड़ा बैठी. दोनों साथसाथ खेलेकूदे ही नहीं थे, बल्कि एक ही स्कूल में पढ़े भी थे.

दुर्गेश उर्फ पप्पू के पिता दूधनाथ भी खेती किसानी करते थे. उस के परिवार में पत्नी के अलावा एकलौता बेटा पप्पू और 3 बेटियां थीं. एकलौता होने की वजह से पप्पू को घर से कुछ ज्यादा ही लाडप्यार मिला, जिस की वजह से वह बिगड़ गया. जैसेतैसे उस ने इंटरमीडिएट कर के पढ़ाई छोड़ दी. इस के बाद गांव में घूमघूम कर आवारागर्दी करने लगा.

शीला और पप्पू के संबंधों की जानकारी गांव वालों को हुई तो इस से वृजवंशी की बदनामी होने लगी. तब उसे चिंता हुई कि बात ज्यादा फैल गई  तो बेटी की शादी होना मुश्किल हो जाएगा. अब इस से बचने का एक ही उपाय था, शीला की शादी. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगा. क्योंकि अब देर करना ठीक नहीं था.

उस ने कोशिश की तो गोरखपुर के थाना गुलरिहा के गांव बनरहा का रहने वाला दिनेश उसे पसंद आ गया. उस ने जल्दी से शीला की शादी उस के साथ कर दी. शीला विदा हो कर ससुराल आ गई. दिनेश मुंबई में रहता था. कुछ दिन पत्नी के साथ रह कर वह मुंबई चला गया. शीला को उस ने बूढ़े मांबाप के पास उन की सेवा के लिए छोड़ दिया, ताकि किसी को कुछ कहने का मौका न मिले. क्योंकि उन्हें तो पूरी जिंदगी साथ रहना है.

शीला भले ही 2 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन पति के परदेस में रहने की वजह से वह अपने पहले प्यार दुर्गेश उर्फ पप्पू को कभी नहीं भूल पाई. शादी के बाद भी वह प्रेमी से मिलती रही. शीला का मुंहबोला भाई बन कर वह उस की ससुराल भी आता रहा. उस के सासससुर पप्पू को उस का भाई समझते थे, इसलिए उस के आनेजाने पर कभी रोक नहीं लगाई. जबकि भाईबहन के रिश्ते की आड़ में दोनों कुछ और ही गुल खिला रहे थे.

पप्पू ने बातचीत के लिए शीला को मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. सासससुर रात में सो जाते तो शीला मिस्डकाल कर देती. इस के बाद पप्पू फोन करता तो दोनों के बीच घंटों बातें होतीं. शीला को कई बार पप्पू से गर्भ भी ठहरा, लेकिन पप्पू ने हर बार उस का गर्भपात करा दिया. बारबार गर्भपात कराने से तंग आ कर शीला उस के साथ रहने की जिद करने लगी.

जबकि पप्पू को शीला से नहीं, सिर्फ उस की देह से प्रेम था. शीला जब भी उस से साथ रखने के लिए कहती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. शीला जब उस पर जोर डालने लगी तो वह दूर भागने लगा. उस का कहना था कि घर वाले उसे रहने नहीं देंगे. अपना अलग घर है नहीं. तब शीला ने पप्पू को 1 लाख रुपए जमीन खरीद कर घर बनाने के लिए दिए. इस की जानकारी न तो शीला के पति को थी, न सासससुर को.

पप्पू ने पैसे तो लिए, लेकिन उस ने जमीन नहीं खरीदी. जब भी शीला जमीन और घर के बारे में पूछती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. जब शीला को लगने लगा कि पप्पू उसे बेवकूफ बना रहा है तो वह बेचैन हो उठी.

वह समझ गई कि उस से बहुत बड़ी भूल हो गई है. जिस के लिए उस ने घरपरिवार के साथ विश्वासघात किया, वह उस के साथ विश्वासघात कर रहा है. उस ने ठान लिया कि वह ऐसे आदमी को किसी कीमत पर नहीं बख्शेगी. वह पप्पू से अपने रुपए मांगने लगी.

शीला ने जब पैसे के लिए पप्पू पर दबाव बनाया तो वह विचलित हो उठा. उस की समझ में आ गया कि शीला उस की नीयत जान गई है. अब उस की दाल गलने वाली नहीं है. शीला के पैसे उस ने खर्च कर दिए थे.  लाख रुपए की व्यवस्था वह कर नहीं सकता था. इसलिए शीला से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना डाली. शीला की हत्या करना उस के अकेले के वश का नहीं था, इसलिए उस ने एक पेशेवर बदमाश अवधेश से बात की.

अवधेश महाराजगंज के थाना पनियरा के गांव खजुही का रहने वाला था. पप्पू से उस की दोस्ती भी थी. पनियरा थाने में उस के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, लूट और राहजनी के कई मुकदमे दर्ज थे.

योजना के मुताबिक, अवधेश ने 315 बोर के देशी कट्टे का इंतजाम किया. इस के बाद दोनों को मौके की तलाश थी. 22 जनवरी, 2014 की सुबह 7 बजे शीला ने पप्पू को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है, तो उस ने कहा कि इस समय वह शहर में है. कुछ देर में उस के पास पहुंच जाएगा.

इस के बाद शीला ने फोन काट दिया. जबकि सही बात यह थी कि पप्पू उस समय नौतनवा में मौजूद था. उस ने शीला से झूठ बोला था. शीला से बात करने के बाद उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

दुर्गेश उर्फ पप्पू को वह मौका मिल गया, जिस की तलाश में वह था. उस ने अवधेश को तैयार किया और मोटरसाइकिल से शीला की ससुराल बनरहा 11 बजे के आसपास पहुंच गया. शीला उसी का इंतजार कर रही थी. चायनाश्ता करा कर शीला मायके जाने की बात कह कर उन के साथ निकल पड़ी. उस ने सास से कहा था कि 2-1 दिन में वह लौट आएगी.

दिन में कुछ हो नहीं सकता था. इसलिए पप्पू को किसी तरह रात करनी थी. इस के लिए वह कुसुम्ही के जंगल स्थित बुढि़या माई के मंदिर दर्शन करने गया. वहां से निकल कर वह सब के साथ शहर में घूमता रहा. अचानक रात साढ़े 8 बजे पप्पू को कुछ याद आया तो उस ने मोबाइल औन कर के फोन किया. उस समय वह चिलुयाताल के मोहरीपुर में था. इस के बाद वे कैंपियरगंज पहुंचे.

रात साढ़े 10 बजे के करीब पप्पू सब के साथ मोहम्मदपुर नवापार पहुंचा तो ठंड का मौसम होने की वजह से चारों ओर सुनसान हो चुका था. पप्पू ने अचानक मोटरसाइकिल सड़क के किनारे रोक दी. शीला ने रुकने की वजह पूछी तो पप्पू ने कहा कि पेशाब करना है. पेशाब करने के बहाने वह थोड़ा आगे बढ़ गया तो अवधेश शीला के पास पहुंचा और कमर में खोंसा तमंचा निकाला और उस के सीने से सटा कर ट्रिगर दबा दिया.

गोली लगते ही शीला के मुंह से एक भयानक चीख निकली. तभी उस ने कट्टे की नाल उस के मुंह में घुसेड़ कर दूसरी गोली चला दी. इसी के साथ बच्चे को गोद में लिए हुए शीला जमीन पर गिरी और मौत के आगोश में समा गई. उस का मासूम बेटा सीने से चिपका सोता ही रहा.

अपना काम कर के पप्पू और अवधेश चले गए. टैक्सी ड्राइवर किशोर सुबह उधर से गुजरा तो उस ने सड़क किनारे पड़ी शीला की लाश देख कर थानाप्रभारी चौथीराम यादव को सूचना दी.

पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, 315 बोर का तमंचा और मोबाइल फोन बरामद कर लिया था. थाने की सारी काररवाई निबटा कर थानाप्रभारी चौथीराम ने पप्पू और अवधेश को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

पत्नी का प्रेमी : क्यों मारा गया किशोर? – भाग 3

पूछताछ में बालकराम ने पुलिस को बताया था कि घर से निकलते समय किशोर ने अपने किसी घनश्याम नाम के दोस्त से मिलने की बात कही थी. पुलिस ने तुरंत घनश्याम के बारे में पता किया. पता चला वह घर में नहीं है. पुलिस ने घरवालों से उस का मोबाइल नंबर ले लिया. जब उस के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई गई तो पता चला कि उस के फोन की भी लोकेशन उस स्थान की थी, जहां किशोर की हत्या हुई थी.

इस के अलावा जहांजहां की नाई के फोन की लोकेशन थी, वहांवहां घनश्याम उर्फ साहेब के फोन की भी लोकेशन थी. अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी. साफ हो गया था कि घनश्याम ही किशोर का हत्यारा है. किशोर की कुछ ही दिनों पहले उस से दोस्ती हुई थी.

अभी जल्दी ही किशोर की शादी बाराबंकी में हुई थी. घनश्याम बाराबंकी का था, इस से पुलिस को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किशोर की पत्नी घनश्याम को जानती हो. उस का घनश्याम से प्रेमप्रसंग रहा हो, जिस की वजह से किशोर मारा गया हो.

इंसपेक्टर विजयमल यादव ने किशोर की नवब्याहता रिशा से पूछताछ की तो उस ने घनश्याम से अपने प्रेमप्रसंग की बात स्वीकार कर ली. उस ने यह भी बताया कि घनश्याम ने उस से कहा भी था कि वह किशोर को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ेगा.

इस के बाद 21 मार्च को इंसपेक्टर विजयमल यादव ने टीम के साथ बाराबंकी जा कर घनश्याम उर्फ साहेब को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस की निशानदेही पर उस के घर से पुलिस ने किशोर का मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया था.

कोतवाली ला कर घनश्याम से पूछताछ की गई तो उस ने किशोर की हत्या का अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

रिशा की शादी हो जाने से घनश्याम उर्फ साहेब काफी बौखलाया हुआ था. क्योंकि वह रिशा से दूरी किसी भी हाल में बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. जब साहेब को पता चला कि रिशा मायके आई है तो वह उस से मिलने को बेताब हो उठा. उसे रिशा से अपने सवालों के जवाब लेने के साथ अपना फैसला भी सुनाना था.

रिशा को पता चला तो वह साहेब से मिली. तब साहेब ने उस की आंखों में आंखें डाल कर बेचैनी से पूछा, ‘‘रिशा, जब तुम प्यार मुझ से करती थी तो शादी दूसरे से क्यों कर ली?’’

‘‘मैं एक लड़की हूं, इसलिए घर वालों का विरोध नहीं कर सकी. अगर शादी से मना करती तो पापा मुझे जिंदा नहीं छोड़ते. तब मैं तुम से बहुत दूर चली जाती. हमारे मिलन का सपना अधूरा ही रह जाता.’’

‘‘वैसे भी हमारा मिलन कहां हो रहा है?’’ निराश साहेब ने कहा.

‘‘होगा, जरूर होगा. शादी होने के बावजूद मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूंगी. हम दोनों के संबंध पहले की ही तरह चलते रहेंगे.’’ रिशा ने समझाया.

‘‘नहीं रिशा, तुम मेरी हो और सिर्फ मेरी ही रहोगी. मैं तुम्हें किसी और की बांहों में नहीं देख सकता. इसलिए मैं उसे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘नहीं साहेब, उस के साथ कुछ मत करना. उस का इस में क्या दोष है?’’ रिशा ने कहा.

लेकिन साहेब ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया. क्योंकि उस ने तो ठान लिया था कि वह अपने और रिशा के बीच किसी को नहीं आने देगा. यही वजह थी कि उस ने किशोर की हत्या की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत उस ने किशोर से दोस्ती गांठ ली. दोस्ती होने के बाद दोनों की शराब की महफिलें जमने लगीं.किशोर को घनश्याम के बारे में कुछ पता तो था नहीं, इसलिए वह उस पर एक दोस्त की तरह ही विश्वास करने लगा था.

14 मार्च को साहेब नाई की दुकान पर बाल कटवाने गया तो काउंटर पर रखे नाई के मोबाइल को देख कर उस की नीयत खराब हो गई. उसे इस तरह के एक मोबाइल की जरूरत भी थी, जिस से फोन कर के वह किशोर को कहीं एकांत में बुला सकें.

क्योंकि वह जानता था कि अगर उस ने अपने मोबाइल से फोन किया तो पकड़ा जाएगा. उस ने नाई को कुछ खरीदने के बहाने बाहर भेज दिया और उस के जाते ही उस का मोबाइल ले कर निकल आया. यह मोबाइल किशोर की हत्या की योजना का एक अहम हिस्सा था.

18 मार्च की दोपहर एक बजे साहेब ने चोरी के मोबाइल से किशोर को फोन कर के पौलिटेक्निक चौराहे पर बुलाया. उस से मिलने के लिए घर से निकलते समय किशोर ने मां को बता दिया था कि वह अपने दोस्त घनश्याम से मिलने जा रहा है. वह पौलिटेक्निक चौराहे पर पहुंचा तो घनश्याम वहां उस का इंतजार करता मिला. घनश्याम उसे साथ ले कर सिटी बस से चिनहट आ गया.

घनश्याम ने शराब की एक दुकान से किशोर के लिए शराब और अपने लिए बीयर खरीदी. घनश्याम उसे छोटा भरवारा मल्हौर रेलवे क्रासिंग के पास ले गया और वहां एक खाली पड़े प्लौट में बैठ गया. घनश्याम ने किशोर को शराब पिलाई, जबकि खुद बीयर पी. शराब पिलाने के बाद उस ने किशोर को साथ लाई भांग भी खिला दी. इस के बाद नशे की अधिकता की वजह से किशोर की आंखें मुंदने लगीं.

घनश्याम ने कहा, ‘‘लगता है, नशा ज्यादा हो गया है. ऐसा करो, लेट कर कुछ देर सो लो. नशा कम हो जाए तो घर चले जाना.’’

किशोर वहीं घास पर लेट गया और कुछ ही देर में बेसुध हो गया. इस के बाद घनश्याम ने वहीं पडे़ भारी पत्थर को उठाया और किशोर के चेहरे पर पटक दिया. इस के बाद उस ने कई बार ऐसा किया. ऐसा करने से किशोर की मौत हो गई. इस तरह किशोर की हत्या कर वह वहां से चला गया.

बाराबंकी जाते हुए घनश्याम ने रास्ते से किशोर के पिता बालकराम को फोन कर के किशोर की लाश के बारे में बता कर उसे वहां से लाने के लिए कह दिया था. इस के बाद उस ने चोरी किए गए मोबाइल से सिम निकाल कर तोड़ दिया और उस के साथ मोबाइल को फेंक दिया.

घनश्याम ने किशोर की हत्या में होशियारी तो बहुत दिखाई, लेकिन उस ने जो होशियारी दिखाई थी, उसी की वजह से पकड़ा गया. उस ने चोरी के मोबाइल के साथ अपना निजी मोबाइल भी साथ रखा था, जिस का उस ने स्विच औफ नहीं किया था. यही गलती उसे भारी पड़ गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने घनश्याम उर्फ साहेब को सीजेएम आनंद कुमार की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित