सावधान! ऐसे दोस्तों से : दोस्त की बेटी पर बुरी नजर

वो कैसे बना 40 बच्चों का रेपिस्ट व सीरियल किलर?

गलतफहमी ने बनाया दोस्त को दुश्मन

दोस्ती में आदमी एकदूसरे की आदतों, बातों और इरादों से अच्छी तरह परिचित हो जाता है. उस बीच दोनों एकदूसरे को काफी हद तक जान चुके होते हैं. दोस्ती की इसी पगडंडी पर चलते हुए शुरू किया गया प्यार का सफर लंबा चलता है. निश्चल ने भी राखी के साथ प्यार के खुशनुमा सफर की शुरुआत दोस्ती के बाद ही की थी.

उन का प्यार इतनी गहराई तक पहुंच गया था कि उन्होंने ख्वाबों का एक महल भी बना लिया था, लेकिन एक दिन निश्चल को अचानक अपने ख्वाब तब टूटते नजर आए, जब राखी की बातों में अचानक बेरुखी की हवाएं तैरने लगीं. पहले तो निश्चल ने प्रेमिका की बेरुखी को नजरंदाज करने की कोशिश की, लेकिन एक दिन तो हद हो गई.

उस दिन उस ने आदतन राखी के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने बड़ी बेरुखी से कहा, “कहो, किसलिए फोन किया है?”

राखी के इस व्यवहार पर निश्चल पहले तो हैरान हुआ, फिर भी उस की बेरुखी को नजरअंदाज करते हुए बड़े प्यार से बोला, “कैसी बात कर रही हो, अपने प्यार से बात करने की भी कोई वजह होती है क्या. दिल ने याद किया तो मैं ने तुम्हारा नंबर मिला दिया.”

“वह तो ठीक है निश्चल, पर मैं चाहती हूं कि अब हमारा इस तरह ज्यादा बातें करना ठीक नहीं है.” राखी ने उसी लहजे में जवाब दिया.

राखी की इन बातों और व्यवहार से निश्चल का दिमाग घूम गया. उस ने कहा, “राखी, तुम्हें क्या हो गया है. तुम ये कैसी अजीब बातें कर रही हो?”

“मैं जो कह रही हूं, ठीक ही कह रही हूं. अब पता नहीं तुम्हें यह सब अजीब क्यों लग रहा है.” राखी तुनक कर बोली.

“मैं एक बात कहूं राखी?” निश्चल ने कहा.

“हां, कहो.”

“मैं पिछले 2-3 दिनों से महसूस कर रहा हूं कि तुम काफी बदल सी गई हो. बताओ मुझ से ऐसी क्या गलती हो गई है?” निश्चल ने माहौल सामान्य करने की गरज से कहा.

“ऐसी तो कोई बात नहीं है निश्चल. फिर भी तुम्हें ऐसा लगता है तो मैं भला इस में क्या कर सकती हूं.” राखी ने निराश करने वाले अंदाज में कहा.

“क्या तुम मेरे प्यार का इम्तिहान ले रही हो?” निश्चल ने पूछा.

“मैं कौन होती हूं ऐसा करने वाली. वैसे भी मुझे अभी बहुत काम है. अब हम बाद में बात करेंगे. ओके बाय.” कहने के साथ ही राखी ने फोन काट दिया.

निश्चल यह सोचसोच कर परेशान था कि राखी को अचानक न जाने ऐसा क्या हो गया है, जो वह इस तरह का व्यवहार करने लगी है. उसी दौरान उस के दिमाग में आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि राखी को उस की वे बातें पता चल गई हों, जो राज बनी रहनी चाहिए थीं.

इस के बाद वह यह सोचने लगा कि राखी को ऐसी बातें भला कौन बताएगा? इस पर उस ने सोच के घोड़े दौड़ाए तो कुछ देर बाद गहरी सांस ले कर हलके से बुदबुदाया, ‘ओह, अब समझ में आया, सजल ने ही राखी को उस के बारे में बताया होगा.’

अपने इस खयाल की पुष्टि के लिए उस ने फिर से राखी का मोबाइल मिलाया तो राखी ने पूछा, “अब क्या हुआ, मैं ने कहा तो था कि बाद में बात करेंगे.”

“राखी, मुझे एक बात पूछनी थी.” निश्चल बोला.

“बताओ क्या पूछना है?”

“मैं यह जानना चाहता हूं कि क्या तुम्हारी सजल से कोई बात हुई थी?” निश्चल ने पूछा.

“हां, हुई तो थी, लेकिन इस में बुरा क्या है. वह तुम्हारा अच्छा दोस्त है.” राखी ने कहा.

“मुझे लगता है कि उसी ने मेरे बारे में तुम से कुछ उलटीसीधी बातें की हैं, तभी तुम बदल गई हो.” निश्चल ने अपने मन की बात कही.

“सौरी निश्चल, मैं इस बारे में कोई कमेंट नहीं करना चाहती.”

राखी बात को खींचना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने बात को यहीं विराम देना चाहा.

लेकिन निश्चल राखी से सच्चाई जानना चाहता था, इसलिए उस ने पूछा, “तो फिर इस बेरुखी की वजह क्या है, यह तो बता दो?”

“मैं कुछ नहीं बताना चाहती, बाय.” पीछा छुड़ाते हुए राखी ने अपनी बात खत्म कर दी. निश्चल उस के इस रूखे और उपेक्षित व्यवहार से ठगा सा रह गया.

निश्चल अरोड़ा उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के कस्बा बेहट की संजय कालोनी निवासी रमेश अरोड़ा का बेटा था. राखी भी उसी कालोनी में रहती थी. कुछ महीने पहले ही दोनों के बीच दोस्ती के बाद प्यार हो गया था. दोनों अकसर मोबाइल पर लंबीलंबी बातें और चैटिंग किया करते थे. राखी के प्यार से निश्चल की जिंदगी में जैसे बहार आ गई थी. लेकिन राखी का अचानक बदला रुख उसे परेशान करने लगा था. उस का ही एक दोस्त था सजल चुघ.

25 वर्षीय सजल की कस्बे में ही छोटे चौक पर पुश्तैनी किराने की दुकान थी. वह एक प्रतिष्ठित परिवार से था. उस के पिता राजेंद्र चुघ दुकान संभालते थे, जबकि चाचा मुकेश चुघ व्यापारी नेता थे. सजल व निश्चल न सिर्फ गहरे दोस्त थे, बल्कि वे एकदूसरे के हमराज भी थे. इसी दोस्ती के नाते निश्चल ने उस का परिचय अपनी प्रेमिका राखी से करा दिया था.

सजल निश्चल की गैरमौजूदगी में भी कभीकभी राखी से बातें कर लिया करता था. इसीलिए राखी के बदले रवैए के पीछे निश्चल यह मान बैठा था कि सजल ने ही उस के बारे में राखी से कोई ऐसी बात कह दी होगी, जिस से राखी उस से दूरियां बना रही है.

जिंदगी के बहुत मौकों पर इंसान गलतफहमियों का शिकार हो जाता है. गहरे दोस्त होने के नाते निश्चल को यूं तो अपने मन में पल रही गलतफहमियों को बातचीत के जरिए दूर कर लेना चाहिए था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह दोस्ती में ऐसी बातें कर के खुद को छोटा साबित नहीं करना चाहता था. अलबत्ता वह मन ही मन सजल से नाराज रहने लगा था. इतना ही नहीं, उस ने उस के खिलाफ एक खतरनाक योजना तक बना डाली थी.

12 नवंबर की रात को सजल दुकान बंद कर के घर आया और करीब सवा 8 बजे अपने दादा बाबूराम चुघ से घूमने जाने की बात कह कर घर से निकल गया. वह अकसर इसी तरह जाता था. लेकिन वह आधे घंटे बाद घर वापस आ जाता था, जब उस दिन 2 घंटे बाद भी वह वापस नहीं आया तो घर वालों ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस का फोन स्विच्ड औफ मिला.

सजल के पास एक और मोबाइल फोन था. घर वालों ने उस फोन का नंबर मिलाया. उस पर घंटी तो जा रही थी, लेकिन वह फोन रिसीव नहीं कर रहा था. घर वालों ने 2-3 बार उस नंबर पर फोन किया. हर बार घंटी बजती रही, लेकिन फोन नहीं उठा. इस के बाद घर के सभी लोग सजल को ढूंढऩे निकल पड़े. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. रात में कई बार उसे फोन किया गया, लेकिन उस ने एक भी फोन का जवाब नहीं दिया. उस की चिंता में घर वाले रात भर जागते रहे.

अगली सुबह उस का दूसरा मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हो गया. उस के इस तरह अचानक लापता होने का कारण किसी की समझ में नहीं आ रहा था. सजल के करीबी दोस्त निश्चल अरोड़ा और अनुज सक्सेना भी परेशान थे. सभी लोगों को यही लग रहा था कि किसी ने फिरौती के लिए उस का अपहरण कर लिया है. जब कहीं से सजल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता राजेंद्र चुघ अपने रिश्तेदारों के साथ थाना कोतवाली पहुंचे और थानाप्रभारी नरेश चौहान से मिल कर सजल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

मामला एक प्रतिष्ठित व्यापारी के बेटे के लापता होने का था, इसलिए पुलिस भी इस मामले को ले कर चिंतित थी. उसी दिन पुलिस को सूचना मिली कि बेलका गांव के पास बेहट शाकुंभरी मार्ग पर ऋषिपाल के आम के बाग में एक युवक की लाश पड़ी है. खबर मिलते ही नरेश चौहान पुलिस टीम के साथ उस बाग में पहुंच गए. वह लाश एक 24-25 साल के लडक़े की थी.

शव खून से लथपथ था. देख कर ही लगता था कि उस के सिर पर गोली चलाई गई थी. शव के नजदीक ही 2 मोबाइल पड़े थे. एक मोबाइल की बैटरी निकली हुई थी, जबकि दूसरा स्विच्ड औफ था. उसी दिन व्यापारी राजेंद्र चुघ ने अपने बेटे सजल की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. उन्होंने उस का जो हुलिया बताया था, वह उस मृत युवक से मेल खा रहा था.

यह लाश कहीं सजल की तो नहीं है, जानने के लिए थानाप्रभारी ने फोन कर के राजेंद्र चुघ को बाग में ही बुला लिया. राजेंद्र चुघ अपनी पत्नी के साथ वहां पहुंचे तो लाश देखते ही रो पड़े. उन की पत्नी को तो इतना सदमा पहुंचा कि वह बेहोश हो गईं. राजेंद्र चुघ ने उस लाश की पहचान अपने बेटे सजल के रूप में की. उन्होंने बताया कि दोनों मोबाइल सजल के ही हैं. शव के पास लाल रंग की एक हवाई चप्पल पड़ी थी, जो मृतक की नहीं थी. पुलिस ने सोचा कि शायद यह हत्यारे की है.

मामला हत्या का था, इसलिए सूचना पा कर एसपी चरण सिंह यादव, एसपी (देहात) जगदीश शर्मा भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी मौकामुआयना किया. शव के आसपास किसी वाहन के टायरों के निशान भी थे.

सजल की हत्या से कस्बे में सनसनी फैल गई थी. हत्या के विरोध में कस्बे के बाजार बंद हो गए. सैकड़ों व्यापारी घटनास्थल पर जमा हो गए. सभी व्यापारी हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. पुलिस ने व्यापारियों को समझाबुझा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाया. एसएसपी राजेंद्र प्रसाद यादव ने नरेश चौहान को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने को कहा. इस के अलावा उन्होंने क्राइम ब्रांच के तेजतर्रार इंसपेक्टर संजय पांडेय को भी इस केस की जांच में लगा दिया.

पुलिस टीम हत्या की वजह तलाशने में जुट गई. पुलिस ने मृतक के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से कोई रंजिश होने से इंकार कर दिया. एक बात साफ थी कि हत्यारे सजल के करीबी थे. क्योंकि इतनी दूर उन के साथ वह अपनी मरजी से ही गया था. जवान बेटे की मौत से चुघ परिवार में कोहराम मचा था. पुलिस अच्छी तरह जानती थी कि अगर केस का खुलासा नहीं हुआ तो बड़ा बखेड़ा खड़ा होगा, इसलिए पुलिस हत्यारों की तलाश में लग गई.

अगले दिन पुलिस को कुछ लोगों से पता चला कि 12 नवंबर की रात को उन्होंने सजल के साथ निश्चल और अनुज को जाते देखा था. इस खबर की पुष्टि के लिए पुलिस ने सजल के मोबाइल की लोकेशन के साथ निश्चल और अनुज के मोबाइल की लोकेशन निकलवाई.

तीनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन साथसाथ पाई गई. शक पुख्ता होने पर नरेश चौहान ने निश्चल और अनुज को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने सजल की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इंकार कर दिया. लेकिन जब मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर उन से पूछताछ की तो वे ज्यादा देर तक पुलिस को गुमराह नहीं कर सके. उन्हें सच बोलने पर मजबूर होना पड़ा.

इस के बाद उन्होंने सजल की हत्या का चौंकाने वाला राज उगला. पता चला कि महज गलतफहमी में एक दोस्त दूसरे की जान का दुश्मन बन गया था.

दरअसल, निश्चल अपनी प्रेमिका राखी के व्यवहार में आए बदलाव की वजह नहीं समझ पाया था. इस बात को ले कर वह परेशान रहने लगा था. एक दिन उस ने राखी से जिद कर के पूछने की कोशिश करते हुए कहा, “राखी, तुम इतनी बदल क्यों गई हो?”

“निश्चल, ऐसा तुम्हें लगता है तो बताओ भला मैं क्या कर सकती हूं.” राखी ने टालने वाले अंदाज में कहा.

“नहीं, कोई तो वजह है. वह वजह क्या है, आज तुम्हें बतानी ही होगी.” निश्चल ने दबाव डालते हुए पूछा.

“कोई वजह नहीं है निश्चल. मैं तुम से और ज्यादा बात करना नहीं चाहती. इसलिए आगे से तुम इस बात का ध्यान रखना.” राखी ने दो टूक जवाब दिया.

राखी की यही बेरुखी उस पर बिजली बन कर गिरी थी. रहरह कर उस के दिमाग में यह बात आती रहती थी कि इस के पीछे सजल ही जिम्मेदार है. वही राखी को उस के खिलाफ भडक़ाने का काम कर रहा है. बस, वह मन ही मन सजल से रंजिश रखने लगा. उसे यह गलतफहमी हो गई कि सजल राखी को भडक़ा कर उस की खुशियों को छीनने का काम कर रहा है.

सजल को सबक सिखाने के लिए निश्चल ने एक खतरनाक योजना बना डाली. अपने दोस्त अनुज सक्सेना को भी उस ने अपनी इस योजना में शामिल कर लिया. यह योजना थी सजल की हत्या की. उस की हत्या के लिए उस ने एक तमंचे और कुल्हाड़ी का भी इंतजाम कर लिया.

वह सजल से लगातार मिलता रहा और अपने इरादों को बिलकुल भी जाहिर नहीं होने दिया. वैसे भी जब कोई अजीज दोस्त हो तो उस के इरादों को भांपना मुश्किल हो जाता है. सजल भी दोस्ती के विश्वास में निश्चल के इरादों से पूरी तरह अंजान था.

12 नवंबर की रात सजल घर से घूमने के लिए निकला तो उसे रास्ते में निश्चल व अनुज मिल गए. निश्चल चूंकि जानता था कि सजल रात में घूमने के लिए घर से रोजाना निकलता है, इसलिए पहले से ही वह अपनी आल्टो कार संख्या यूपी 16 एक्स-1015 लिए रास्ते में खड़ा था.

निश्चल और अनुज के इस तरह मिलने पर सजल को हैरानी नहीं हुई. कुछ देर में घूम कर आने की बात कह कर उन्होंने सजल को अपनी कार में बैठा लिया. सजल को अपने दोस्तों पर जरा भी शक नहीं हुआ. वे कार से ऋषिपाल के आम के बाग में पहुंच गए. उस वक्त वहां बिलकुल सुनसान था.

अनुज ने सजल को बातों में लगा लिया तो उसे बीच निश्चल ने तमंचा निकाल कर उस के सिर को टारगेट कर के गोली चला दी. गोली लगते ही सजल नीचे गिर गया और उस की मौत हो गई. अनुज ने भी तमंचा ले कर एक गोली और उस पर चलाई. सजल की हत्या करने के बाद उन्होंने सजल के दोनों मोबाइल फोन उस की जेब से निकाल कर वहीं फेंक दिए.

फेंकते समय ही एक मोबाइल की बैटरी निकल गई थी. सजल की हत्या कर के वे जल्दी से वहां से भागे, जिस से निश्चल की एक चप्पल वहीं छूट गई थी. घटनास्थल से कुछ दूर जा कर उन्होंने एक खेत में तमंचा व कुल्हाड़ी छिपा दी और अपनेअपने घर चले गए.

अगली सुबह तक सजल के लापता होने की खबर फैल चुकी थी. चूंकि वे उस के गहरे दोस्त थे, इसलिए सजल को ढुंढवाने का उन्होंने भी बराबर नाटक किया. सजल का शव मिलने पर वे भी घटनास्थल पर पहुंचे. दोनों ने सोचा था कि उन्हें सजल के साथ जाते हुए किसी ने नहीं देखा. लेकिन गांव के ही किसी व्यक्ति ने उन्हें सजल के साथ जाते देख लिया था. उसी के आधार पर वे पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

एसपी देहात जगदीश शर्मा और सीओ चरण सिंह भी थाने आ गए थे. पुलिस ने तमाम लोगों की मौजूदगी में हत्याकांड का खुलासा किया. जब कस्बे के लोगों को पता चला कि सजल की हत्या किसी और ने नहीं, उस के खास दोस्तों ने की थी तो सब हैरान रह गए.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर खेत से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा, खाली कारतूस और एक कुल्हाड़ी बरामद कर ली थी. हत्या में प्रयुक्त की गई कार भी पुलिस ने बरामद कर ली थी.

विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने दोनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हो सकी थी.

निश्चल ने गलतफहमी को दिल से नहीं लगाया होता और सजल दोस्त के इरादों को भांप गया होता तो शायद ऐसी नौबत नहीं आती. न सजल दुनिया से जाता और न उस के दोस्त जेल जाते.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, राखी बदला हुआ नाम है.

संतान के लिए मासूम की बलि

उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालय अलीगढ़ से लगभग 30 किलो. मीटर दूर इगलास कोतवाली का एक कस्बा है बेसवां. इसी कस्बे के वार्ड नंबर 3 में श्रीकिशन अपनी पत्नी राखी के साथ रहता था. शादी के कई सालों बाद भी उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. उन्होंने तमाम डाक्टरों और हकीमों से इलाज कराया, लेकिन उन्हें संतान सुख नहीं मिल पाया. औलाद न होने से दोनों बहुत चिंतित रहते थे. राखी को तो और ज्यादा चिंता थी.

गांवदेहात में आज भी बांझ औरत को इज्जत की नजरों से नहीं देखा जाता. और तो और किसी शुभकार्य में बांझ औरत को बुलाया तक नहीं जाता. इस बात को राखी महसूस भी कर रही थी. इस से वह खुद को अपमानित तो समझती ही थी, मन ही मन घुटती भी रहती थी. उस की एक ही मंशा थी कि किसी भी तरह वह मां बन जाए. उस की गोद भर जाए, जिस से उस के ऊपर से बांझ का कलंक मिट जाए.

इस के लिए वह फकीरों और तांत्रिकों के पास भी चक्कर लगाती रहती थी. पर नतीजा कुछ नहीं निकल रहा था. श्रीकिशन का एक बड़ा भाई था धर्म सिंह, जो उस के साथ ही रहता था और अविवाहित था. वह कस्बे के ही श्मशान में जा कर तांत्रिक क्रियाएं करता रहता था.

एक दिन राखी गुमसुम बैठी थी. श्रीकिशन ने जब उस से वजह पूछी तो उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. पति ने उसे ढांढस बंधाया तो वह बोली, “पता नहीं हमारी मुराद कब पूरी होगी, कब तक हम यह दंश सहते रहेंगे?”

“राखी, हम ने अपना इलाज भी कराया और इधरउधर भी दिखाया. इस के बावजूद भी तुम मां नहीं बन सकीं तो इस में तुम्हारा क्या दोष है? हम लोग कोशिश तो कर ही रहे हैं.” श्रीकिशन ने समझाया.

“देखोजी, हम भले ही कोशिश कर चुके हैं. लेकिन एक बार क्यों न तुम्हारे भाई (जेठ) से कोई उपाय करने को कहें. श्मशान में न जाने कितने लोग अपनी समस्याएं ले कर उन के पास आते हैं, लेकिन हम ने उन्हें कुछ समझा ही नहीं. शायद उन्हीं की तंत्र विद्या से हमारा कुछ भला हो जाए.” राखी ने कहा.

“ठीक है, अब तुम सो जाओ, सुबह मैं उन से बात करूंगा.” श्रीकिशन ने कहा.

सुबह उठ कर श्रीकिशन ने बड़े भाई धर्म सिंह से राखी के मन की पीड़ा बताई. चाय बना रही राखी भी उस की बातें सुन रही थी. श्रीकिशन की बात पर धर्म सिंह ने कहा, “आज तू ने कहा है तो मैं जरूर कुछ करूंगा. ऐसा कर तू आज काम पर मत जा. पतिपत्नी गद्दी पर बैठो, तभी मैं कुछ उपाय बता सकूंगा.”

दोपहर के बाद धर्म सिंह मरघट से घर लौटा. जिस कमरे में वह रहता था, वहां भी उस ने तंत्र क्रियाएं करने के लिए गद्दी बना रखी थी. श्रीकिशन और राखी को सामने बैठा कर वह तंत्र क्रियाएं करने लगा. तंत्र क्रियाएं करतेकरते धर्म सिंह जैसे किसी अदृश्य शक्ति से बात करने लगा. इसी बातचीत में उस ने ऐसी बात कही, जिसे सुन कर श्रीकिशन और राखी के रोंगटे खड़े हो गए. राखी तो कांपने लगी. धर्म सिंह किसी की बलि देने की बात कर रहा था.

बातें खत्म हुईं तो श्रीकिशन ने अपने भाई से पूछा, “भैया बलि का काम तो बड़ा मुश्किल है, फिर आप ने बलि देने का वादा क्यों कर लिया?”

“तू चुप रह. तू नादान है, जिस बच्चे की बलि देनी है, ऊपर वाले ने उस बच्चे पर बलि का नाम लिख कर इस दुनिया में भेजा है.” धर्म सिंह ने उसे समझाते हुए कहा.

“बलि देने वाला वह बच्चा कौन है, यह कैसे पता चले?” श्रीकिशन ने शंका व्यक्त की.

“इस की चिंता तू मत कर. जब तेरी पत्नी पूजा के समय बैठी होगी, वह खुदबखुद हमें बताएगी.” धर्म सिंह ने धूर्त हंसी हंसते हुए कहा.

“किस की बलि देनी है, भला यह मुझे कौन बताएगा?” राखी ने पूछा.

“तुझे वही बताएगा, जो अभी मुझ से बातें कर रहा था. वह तुझे नाम भी बताएगा और पता भी.” धर्म सिंह ने कहा.

“फिर यहां तक उस बच्चे को ले कर कौन आएगा?” श्रीकिशन ने पूछा.

“वह खुद इस की गोद में आ जाएगा.” कह कर धर्म सिंह ने दोनों को वहां से हटा दिया.

2-3 दिन बाद राखी ने अपने जेठ से पूछा, “भाई साहब, पूजा वगैरह करने में अभी कितने दिन लगेंगे?”

“राखी, एक बात है, जो मैं तुम से नहीं कह पा रहा हूं. आखिर किस मुंह से कहूं?” धर्म सिंह ने कहा.

“कोई खास बात है, जो तुम इतना हिचक रहे हो?” राखी ने पूछा.

“हां, खास ही है.” उस ने कहा.

“तो बता दो, मैं भला कोई बाहरी थोड़े ही हूं, जो बुरा मान जाऊंगी. बता दो, क्या बात है?” राखी ने पूछा.

“दरअसल, बात यह है कि बलि से पूर्व कुछ तंत्र क्रियाएं करनी पड़ेंगी. उस वक्त तुझे गद्दी पर निर्वस्त्र हो कर बैठना होगा.” धर्म सिंह ने कहा.

“तो क्या हुआ. अपनी गोद भरने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं. देर मत करो, जल्द पूजा की तैयारी करो.”

राखी अपने जेठ का स्वभाव पहले से ही जानती थी. वह निहायत ही शरीफ इंसान था. शुरू से ही औरत जाति से परहेज रखता था.

श्रीकिशन की गैरहाजिरी में एक दिन धर्म सिंह ने अनुष्ठान शुरू किया. उस ने तंत्र क्रियाएं शुरू कीं. सामने बैठी राखी ने एकएक कर के सारे कपड़े उतार दिए. निर्वस्त्र बैठी राखी धर्म सिंह के कहे अनुसार हवन में आहुतियां देने लगी. उसी बीच धर्म सिंह ने जैसे ही शराब की शीशी खोल कर हवन कुंड में जल रही अग्नि पर डाली, राखी बैठेबैठे ही झूमने लगी.

तंत्र क्रिया करने वाले धर्म सिंह ने पूछा, “अब बता क्या नजर आ रहा है?”

इसी के साथ शराब की कुछ बूदें आग में डालीं. तभी राखी ने कहा, “यह तो मोहिनी है, विनोद की बेटी.”

“कहां है?” धर्म सिंह ने पूछा.

“यह आ गई मेरी गोद में.” राखी के दोनों हाथ ऐसे उठे, जैसे उस की गोद में कोई बच्चा आ गया हो. उस ने आगे कहा, “लो, दे दो इस की बलि.”

“ठीक है. तेरी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी.” कह कर धर्म सिंह ने पानी के छींटे राखी पर फेंके. छींटे पड़ते ही राखी होश में ऐसे आ गई, जैसे नींद से जागी हो. वह उठी और सारे कपड़े समेट कर तेजी से दूसरे कमरे में भाग गई.

श्रीकिशन के घर के पास ही विनोद रहता था. उस के परिवार में 3 बेटे और एक बेटी मोहिनी थी.

23 अक्तूबर को 2 साल की मोहिनी घर के बाहर खेल रही थी. थोड़ी देर बाद उस की तो सीमा को उस का खयाल आया तो वह उसे लेने बाहर आई. लेकिन मोहिनी कहीं दिखाई नहीं दी. उस ने बच्चों से मोहिनी के बारे में पूछा. बच्चों ने कहा कि वह अभी तो यहीं खेल रही थी. सीमा ने उसे आसपास देखा. लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दी.

ऐसा भी नहीं था कि 2 साल की बच्ची खेलतेखेलते कहीं दूर चली जाए. फिर भी उस ने तमाम लोगों से बेटी के बारे में पूछा, पर कहीं से उस के बारे में पता नहीं चला. इस के बाद घर के सभी लोग मोहिनी को ढूंढने लगे. अंधेरा हो गया. गांव वाले भी मोहिनी को ढूंढने में मदद कर रहे थे. पर मोहिनी नहीं मिली.

पता नहीं क्यों सीमा एक ही रट लगाए रही कि मेरी बेटी कहीं नहीं गई, वह श्रीकिशन के घर में ही होगी. सीमा की इस रट पर दूसरे दिन सुबह मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह से कहा कि जब सीमा कह रही है तो वह उस अपने घर में ढूंढऩे दे.

श्रीकिशन और धर्म सिंह ने साफ कहा कि उस के घर में कोई भी नहीं घुस सकता. गांव वालों की समझ में नहीं आ रहा था कि इन दोनों भाइयों को अपने घर की तलाशी देने में क्यों ऐतराज है? घर की चौखट पर खड़ी राखी की घबराहट देख कर कुछ लोगों को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उसी दौरान किसी ने इगलास पुलिस को इस की सूचना दे दी थी.

उस दिन मोहर्रम था. थाना पुलिस मोहर्रम का जुलूस निकलवाने की तैयारी कर थी. इंसपेक्टर संजीव चौहान को बच्ची के गायब होने की जानकारी मिली तो वह पुलिस बल के साथ बेसवां जा पहुंचे. धर्म सिंह के घर के बाहर खड़े मोहल्ले के लोगों ने विनोद की बच्ची के कल से गायब होने की बात उन्हें बताने के साथ उन से यह भी कहा कि श्रीकिशन घर की तलाशी नहीं लेने दे रहा है.

संजीव चौहान कुछ लोगों के साथ श्रीकिशन के घर में घुस गए. तलाशी ली गई तो जीने के नीचे कबाड़ में मासूम मोहिनी की लाश मिल गई. संजीव चौहान लाश उठा कर बाहर ले आए.

मोहिनी के शरीर से निकला खून सूख चुका था. उस की जीभ पर चीरा लगा हुआ था. इस के अलावा उस के पूरे शरीर पर राख मली हुई थी. इस सब से साफ लग रहा था कि उस की बलि दी गई थी. लोगों का शक सही निकला. इस के बाद नाराज मोहल्ले वालों ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी की पिटाई शुरू कर दी.

पुलिस ने किसी तरह तीनों को भीड़ के चंगुल से छुड़ा कर अपने कब्जे में लिया. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के मोहिनी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने धर्म सिंह, श्रीकिशन और राखी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के पूछताछ की तो पता चला कि बलि देने के लिए राखी ने ही  मोहिनी का घर के बाहर से अपहरण किया था. अपहरण कर के उस ने उसे जेठ धर्म सिंह को सौंप दिया था.

उस के बाद तंत्र क्रियाएं करते समय धर्म सिंह ने ही उस मासूम बच्ची की गरदन व जीभ काट कर खून तंत्र क्रिया में चढ़ाया था. बच्ची के मरने के बाद उन्होंने लाश जीने के नीचे रखे कबाड़ में छिपा दी थी. जब मोहिनी को उस के घर वाले और कस्बे वाले ढूंढऩे लगे तो धर्म सिंह व श्रीकिशन घबरा गए. वह उस की लाश को कहीं ठिकाने लगाने का मौका ढूंढ़ रहे थे. अगली रात में शायद वह ऐसा करते, लेकिन उस के पहले ही पुलिस उन के यहां पहुंच गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस घटना से यही लगता है कि इतनी तरक्की के बावजूद गांवों में आज भी शिक्षा का इतना प्रचारप्रसार नहीं हुआ है, जिस से लोगों की रूढि़वादी सोच में बदलाव आ सके. राखी और उस के घर वालों ने संतान की चाह में जो अपराध किया है, उस से वे तीनों जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. अगर वे किसी अच्छे डाक्टर से सलाह ले कर अपना इलाज कराते तो शायद उन्हें संतान सुख अवश्य मिल जाता और उन के जेल जाने की नौबत भी न आती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

एक और युग का अंत

एक रात में टूटी दोस्ती की इमारत

ईमानदारी के वजूद पर वार

चंद्रलोक कालोनी चौराहा इंदौर का पौश इलाका है. यहां की 4 लेन पर स्थित एक बहुमंजिला बिल्डिंग रवि अपार्टमेंट के भूतल पर इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड का औफिस है. इस औफिस में इंटेक्स के  मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के प्रभारी ताहिर हुसैन डार बैठते थे. 24 जून, 2014 को करीब साढ़े 12 बजे भी ताहिर हुसैन रोजाना की तरह अपने औफिस में बैठे थे.

उसी समय इंटेक्स का एक पुराना एजेंट गोविंद वर्मा कंपनी के औफिस आया और अपने परिचित कर्मचारियों को हाय हैलो करता हुआ ताहिर हुसैन के केबिन में चला गया. गोविंद चूंकि वहां अकसर आता रहता था, इसलिए कंपनी के सभी 18 कर्मचारी उसे अच्छी तरह जानते थे.

गोविंद जब ताहिर हुसैन के केबिन में पहुंचा तो वहां एक आदमी पहले ही बैठा हुआ था. अतिरिक्त कुरसी एक ही थी जिस पर पहले आया व्यक्ति बैठा था. गोविंद को आया देख ताहिर हुसैन ने घंटी बजा कर औफिस बौय संजू को बुलाया और उस से कुरसी लाने को कहा. संजू कुरसी लेने चला गया.

उसी वक्त केबिन में तेज धमाके की आवाज के साथ चीख की आवाज उभरी. इस से बाहर बैठे कर्मचारियों ने समझा कि ताहिर साहब के केबिन में कंप्यूटर का सीपीयू फट गया होगा. इसी बीच कुरसी ले कर आए संजू ने केबिन का दरवाजा अंदर की ओर धकेला तो गोविंद हाथ में तमंचा लिए बाहर निकला. उस के साथ एक आदमी और भी था.

बाहर निकलते ही गोविंद ने तमंचा लहराते हुए कहा, ‘‘अगर कोई बीच में आया तो बेमौत मारा जाएगा.’’ इस के साथ ही उस ने एक फायर भी कर दिया. उस के तमंचे से निकली गोली शीशे के मुख्य द्वार को भेद कर बाहर निकल गई.

गोविंद का यह रूप देख सभी कर्मचारी बुरी तरह डर गए. डर के मारे कई कर्मचारी तो अपनी मेजों के नीचे छिप गए थे. ताहिर हुसैन के पास जो आदमी पहले से बैठा था, वह गोविंद का ही साथी था और उस के साथ ही बाहर आ गया था. उस के हाथ में भी तमंचा था. गोविंद और उस का साथी कांच का मुख्य द्वार खोल कर बाहर निकल गए.

गोविंद और उस के साथी के बाहर जाते ही कंपनी के कर्मचारी केबिन की ओर दौड़े. केबिन में खून से लथपथ ताहिर हुसैन फर्श पर पड़े कराह रहे थे. उन्हें कंधे में गोली लगी थी जो पार निकल गई थी. कंपनी के कर्मचारी उन्हें निजी वाहन से पास के सीएचएल अस्पताल में ले गए. जहां तुरंत उन का इलाज शुरू कर दिया गया. इस बीच इस मामले की सूचना थाना पलासिया को दे दी गई थी.

खबर मिलते ही पलासिया के थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह सबइंसपेक्टर के.एन. सिंह व 2 हवलदारों के साथ मौका ए वारदात पर पहुंच गए. उन्होंने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी.

चूंकि वारदात कंपनी के एक बड़े अधिकारी के साथ हुई थी इसलिए थोड़ी देर में वहां पुलिस वालों की अच्छी भली भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने फोरेंसिक अधिकारी डा. सुधीर शर्मा को भी मौके पर बुला लिया था.  पुलिस की एक टीम ने घटनास्थल का मुआयना किया और दूसरी टीम सीएचएल अस्पताल पहुंच गई ताकि ताहिर हुसैन का बयान लिया जा सके. लेकिन वह बयान देने की स्थिति में नहीं थे.

ताहिर हुसैन डार मूलत: कश्मीर के जिला श्रीनगर के गांव सोनवार के रहने वाले थे. उन के बड़े भाई शब्बीर और पिता गुलाम मोहम्मद डार सोनवार में अपना प्रोवीजनल स्टोर चलाते थे. ताहिर ने इंदौर स्थित इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड में 3 साल पहले बतौर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ प्रभारी के रूप में पद संभाला था. यहां वह अपनी पत्नी नाजनीन और डेढ़ वर्षीय बेटे अयान के साथ निपानिया टाउनशिप स्थित नरीमन प्वाइंट बिल्डिंग के फ्लैट नंबर 428 में रहते थे. उन के मातापिता कश्मीर स्थित अपने गांव में ही रह रहे थे.

खुशमिजाज और मिलनसार स्वभाव के ताहिर हुसैन की पत्नी नाजनीन भी कश्मीर की ही रहने वाली थीं. उन के पिता जबलपुर के बिजली विभाग में औडीटर थे, जिस की वजह से उन का पूरा परिवार ग्वालियर शिफ्ट हो गया था.  नाजनीन ने दिल्ली में पढ़ाई की थी, उस के बाद वह सीए की पढ़ाई के लिए भोपाल आ गई थीं. उस समय ताहिर हुसैन भोपाल में अपनी बुआ के बेटे डा. रईस खान के कोहेफिजा स्थित घर पर रह कर एमबीए की पढ़ाई कर रहे थे.

भोपाल में ही नाजनीन और ताहिर हुसैन की मुलाकात हुई. दोनों हमवतन भी थे और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक भी. पहले दोनों में जानपहचान हुई, फिर दोस्ती. वक्त के साथ दोस्ती प्यार में बदली और बात शादी तक जा पहुचीं. इस शादी में दोनों के ही परिवारों को कोई ऐतराज नहीं था.

भोपाल से एमबीए करने के बाद ताहिर हुसैन को चंडीगढ़ की एक टायर कंपनी में जौब मिल गया तो वह चंडीगढ़ चले गए. लेकिन वहां उन्हें ज्यादा दिन नहीं रहना पड़ा. इसी बीच उन्हें मोबाइल कंपनी इंटेक्स की इंदौर स्थित ब्रांच इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड में नौकरी मिल गई थी. इस ब्रांच में उन्हें मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया. यह 3 साल पहले की बात है.

इंदौर में नौकरी करते हुए ही ताहिर हुसैन ने नाजनीन से शादी की. शादी के लिए दोनों के परिवार इंदौर में ही एकत्र हुए. शादी के बाद ताहिर हुसैन ने निपानिया टाउनशिप की नरीमन प्वाइंट बिल्डिंग में फ्लैट ले लिया था और पत्नी के साथ वहीं रहने लगे थे. शादी के करीब डेढ़ साल बाद नाजनीन अयान की मां बनी. बेटे के जन्म के बाद नाजनीन और ताहिर हुसैन खूब खुश थे.

ताहिर हुसैन का काम था, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलगअलग शहरों में लोगों को इंटेक्स मोबाइल की फेंचाइजी देना. इस के लिए वसूली जाने वाली रकम और एजेंट का कमीशन वही तय करते थे. कंपनी के काम के अधिकार प्राप्त लोग जितना अधिक काम देते थे, उन्हें उसी हिसाब से कमीशन दिया जाता था. ये सारे अधिकार ताहिर हुसैन के पास थे.

गोविंद वर्मा ने इंदौर के यशवंत प्लाजा, स्टेशन रोड के भूतल पर साईंनाथ मोबाइल सेंटर के नाम से सर्विस सेंटर खोल रखा था. यह सेंटर गोविंद की बहन नीतू के नाम पर था. गोविंद के पास यूं तो कई मोबाइल कंपनियों की फेंचाइजी थी, लेकिन उसे सब से ज्यादा लाभ इंटेक्स से होता था1

ताहिर हुसैन को कुछ महीने पहले जब  गोविंद वर्मा द्वारा इंटेक्स के नाम पर हेराफेरी किए जाने की बात पता चली तो उन्होंने उसे दी गई फे्रंचाइजी वापस ले ली. यह बात गोविंद को अच्छी नहीं लगी. उस ने कई बार इंटेक्स टैक्नोलौजी इंडिया लिमिटेड के औफिस जा कर इस बारे में ताहिर हुसैन से बात की. फे्रंचाइजी वापस लिए जाने के बावजूद ताहिर हुसैन उस से पूर्ववत ही बात करते थे. उन के औफिस के कर्मचारी भी गोविंद से पहले की तरह ही पेश आते थे.

अलबत्ता ताहिर हुसैन ने उसे पुन: फ्रेंचाइजी देने से साफ इनकार कर दिया था. इस से गोविंद काफी बौखलाया हुआ था.   उस की बौखलाहट की वजह यह भी थी कि ताहिर हुसैन ने उस की फे्रंचाइजी समाप्त करने की वजह और उस की हेराफेरी की रिपोर्ट अपने दिल्ली स्थित हेड औफिस को भेज दी थी और कंपनी ने उसे हमेशा के लिए ब्लैकलिस्टेड कर दिया था. हालांकि गोविंद की हर कोशिश बेकार गई थी, इस के बावजूद वह ताहिर हुसैन से मिलने उन के औफिस आता रहता था.

जब गोविंद को लगा कि अब कुछ नहीं होने वाला है तो उस ने ताहिर हुसैन से बदला लेने की एक खतरनाक योजना बनाई. इस के लिए उस ने न केवल 2 तमंचों की व्यवस्था की बल्कि अपने एक दोस्त राजेंद्र वर्मा को भी लालच दे कर अपनी येजना में शामिल कर लिया. 24 जून को राजेंद्र और गोविंद दोनों ही ताहिर हुसैन के औफिस आए थे और उन्होंने ही इस घटना को अंजाम दिया था. ये बातें पुलिस की प्राथमिक जांच में सामने आई.

पुलिस ने गोविंद और उस के दोस्त के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर के दोनों की तलाश शुरू कर दी थी. बाद में जब उसी शाम ताहिर हुसैन की मृत्यु हो गई तो इस मामले को हत्या की धारा में तबदील कर दिया गया.

उधर पति की हत्या की बात सुन कर नाजनीन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. उस की तो दुनिया ही उजड़ गई थी. इंदौर में उस का अपना भी कोई नहीं था जो उसे संभालता. खबर मिलने पर उसी रात भोपाल से ताहिर के फुफेरे भाई डा. रईस खान और उन की पत्नी नाहिदा इंदौर पहुंचे और उन्होंने नाजनीन को संभाला. उसी रात नाजनीन के मातापिता भी जबलपुर से इंदौर पहुंच गए थे.

श्रीनगर से ताहिर हुसैन के बुजुर्ग मातापिता का आना संभव नहीं था. विचारविमर्श के बाद डा. रईस खान और नाजनीन के पिता ने तय किया कि ताहिर के शव को श्रीनगर ही ले जाएं. उन के आग्रह पर अस्पताल के डाक्टरों ने ऐसी व्यवस्था कर दी कि अगले 2 दिनों तक शव खराब न हो. अंतत: 26 जून को ताहिर हुसैन के शव को वायु मार्ग से श्रीनगर ले जाया गया, वहां से सड़क मार्ग से उन के गांव सोनवार. उसी दिन उन्हें सुपुर्द ए खाक भी कर दिया गया.

उधर पुलिस गोविंद को खोज रही थी जबकि उस का कोई पता नहीं चल रहा था. वह अपने विजय नगर स्थित घर से फरार था. उस पर दबाव बनाने के लिए पुलिस उस के पिता और बहन नीतू को थाने उठा लाई. इस का नतीजा यह हुआ कि 29 जून की रात 10 बजे गोविंद अपने एक दोस्त मयूर के साथ थाना पलासिया पहुंचा और दोनों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस वक्त दोनों नशे में चूर थे. थानाप्रभारी शिवपाल सिंह कुशवाह उस वक्त थाने में नहीं थे.

उन्हें सूचना दी गई तो वह तत्काल थाने पहुंच गए. शिवपाल सिंह ने दोनों को हवालात से निकलवा कर पूछताछ की तो मयूर ने बताया कि घटना वाले दिन वह गोविंद के साथ नहीं था. उसे तो गोविंद चाकू की नोक पर धमका कर थाने लाया है. उस का कहना था कि हत्या के समय गोविंद के साथ वह नहीं बल्कि भूरा था.

पूछताछ में गोविंद ने ताहिर हुसैन की हत्या की वजह बताते हुए कहा कि उस ने इंटेक्स की फे्रंचाइजी के बूते पर ही यशवंत प्लाजा के ग्राउंड फ्लोर पर 20 हजार रुपए किराए पर दुकान ली थी. साथ ही 3 लाख रुपए कर्ज ले कर पूरा सेटअप भी तैयार किया था. लेकिन जब फ्रेंचाइजी वापस ले ली गई तो उस का पूरा धंधा चौपट हो गया. इस के लिए वह 3 महीने तक ताहिर हुसैन के पास चक्कर लगाता रहा, लेकिन वह नहीं माने. इस से उसे बहुत गुस्सा आया और उस ने उन्हें ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

गोविंद ने हत्या की बात जरूर कुबूल ली थी, लेकिन वह अभी भी झूठ बोल रहा था.  उस ने जहां तमंचा छिपाने की बात बताई थी वहां तमंचा भी नहीं मिला था. अलबत्ता पुलिस ने यह जरूर पता कर लिया था कि घटना के समय उस के साथ राजेंद्र वर्मा था. गोविंद से वह तमंचा बरामद करना जरूरी था जिस से उस ने ताहिर हुसैन की हत्या की थी. इसलिए 30 जून को पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के उस का 6 दिन का पुलिस कस्टडी रिमांड ले लिया.

अगले दिन शिवपाल कुशवाह को एक मुखबिर से सूचना मिली कि गोविंद का साथी राजेंद्र वर्मा ग्वालियर की अशोक कालोनी में रहने वाले अपने भाई के यहां छिपा हुआ है. शिवपाल सिंह ग्वालियर में तैनात रह चुके थे. उन्होंने उसी समय ग्वालियर के उस क्षेत्र के थानाप्रभारी को फोन कर के कहा कि वह ग्वालियर पहुंच रहे हैं. तब तक राजेंद्र वर्मा के भाई के घर पर ध्यान रखें.

शिवपाल सिंह की टीम ने उसी दिन ग्वालियर जा कर राजेंद्र वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. राजेंद्र को इंदौर ला कर पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार किया कि वह गोविंद के साथ न केवल इंटेक्स के औफिस गया था बल्कि ताहिर हुसैन पर गोली भी उसी ने चलाई थी. यह बात चौंकाने वाली इसलिए थी क्योंकि गोविंद के अनुसार ताहिर हुसैन पर गोली उस ने चलाई थी.

जब यह बात राजेंद्र से पूछी गई तो वह बोला, ‘‘गोविंद मुझे बचाने के लिए मेरा जुर्म स्वीकार रहा है.’’ वह ऐसा क्यों कर रहा है, यह पूछने पर राजेंद्र ने बताया कि गोविंद ने जब उसे इस योजना में शामिल किया था तो वादा किया था कि कहीं भी उस का नाम नहीं आने देगा. अगर नाम आ भी गया तो वह उस का जुर्म अपने सिर ले लेगा.

गोविंद, राजेंद्र और मयूर से पूछताछ में यह बात साबित हो गई कि मयूर इस मामले में कहीं शामिल नहीं था. गोविंद उसे पैसे दे कर और शराब पिला कर थाने लाया था ताकि वह ताहिर हुसैन की हत्या का जुर्म अपने सिर ले ले. इस सिलसिले में एक बेकुसूर को फंसाने की साजिश के लिए गोविंद के खिलाफ एक केस और दर्ज किया गया. मयूर को पुलिस ने छोड़ दिया.

गोविंद और राजेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने 5 जुलाई को उन के घर के पास बहने वाले गंदे नाले के किनारे वाली झाडि़यों से वे दोनों तमंचे भी बरामद कर लिए जिन्हें वारदात में इस्तेमाल किया गया था. साथ ही उन की वे दोनों मोटरसाइकिल भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लीं जिस पर बैठ कर वे इंटेक्स के औफिस गए थे.

गोविंद और राजेंद्र से पूछताछ में इस बात का भी खुलासा हुआ कि इन लोगों ने ताहिर हुसैन की हत्या की योजना परदेसीपुरा स्थित बमचक बाबा के आश्रम में बैठ कर बनाई थी इस योजना में गोविंद और राजेंद्र के अलावा नंदनगर का शिवम उर्फ भैय्यू तथा नंदनगर का ही उमाशंकर उर्फ भूरा भी शामिल थे.

भैय्यू और भूरा अपराधी प्रवृत्ति के थे. इन दोनों ने ही गोविंद को खरगौन के एक व्यक्ति से 2 तमंचे खरीदवाए थे. घटना वाले दिन गोविंद और राजेंद्र के साथ ये दोनों भी इंटेक्स के औफिस गए थे. लेकिन भैय्यू और भूरा अंदर न जा कर मोटरसाइकिल लिए बाहर ही खड़े रहे थे. हत्या के बाद ये चारों जने मोटर साइकिलों पर बैठ कर फरार हो गए थे. गोविंद ने भैय्यू और भूरा को 50-50 हजार रुपए दिए थे. साथ ही यह आश्वासन भी कि उन का नाम कहीं नहीं आएगा.

यह भी पता चला कि घटना वाले दिन भी ये चारों बमचक बाबा के आश्रम में एकत्र हुए थे और फूलप्रूफ योजना बनाने के बाद वहीं से इंटेक्स के औफिस गए थे. वहां गोविंद और राजेंद्र अंदर गए और ताहिर हुसैन की हत्या कर के बाहर आ गए. इस के बाद चारों वहां से फरार हो गए थे. हकीकत पता चलने पर पुलिस ने शिवम उर्फ भैय्यू को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उमाशंकर उर्फ भूरा पुलिस के हाथ नहीं आया.

पुलिस ने 10 जुलाई, 2014 को गोविंद, राजेंद्र और शिवम उर्फ भैय्यू को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मुखबिर की सूचना पर उमाशंकर उर्फ भूरा को भी 18 जुलाई, 2014 को गिरफ्तार कर पूछताछ के बाद जेल भेज दिया.

अगर इस पूरे मामले को देखा जाए तो गोविंद की बददिमागी ही उभर कर सामने आती है. उन की भूल थी तो सिर्फ यह कि फे्रंचाइजी खत्म होने के बाद भी उन्होंने गोविंद को अपने केबिन में आने से कभी नहीं रोका. बदमजगी होने के बाद भी वह उसे सम्मान से अपने सामने बैठाते और चाय पिलाते रहे.

बहरहाल, ताहिर हुसैन नहीं रहे. उन के न रहने से जहां उन की पत्नी नाजनीन की दुनिया उजड़ गई, वहीं उन के बूढ़े मांबाप का सहारा भी छिन गया. देखना यह है कि कानून गोविंद और उस के साथियों को क्या सजा देता है.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गोवा की खौफनाक मुलाकात – भाग 7

अनुज वहीं खड़ा रहा और महेंद्र बाहर चला गया. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथों में बीयर की 2 बोतलें थीं. वह एक बोतल अनुज को देते हुए बोला, ‘‘नशा उतरने लगा है. एकएक बीयर और पीते हैं. उस के बाद थोड़ी देर यहां रुक कर वापस चलेंगे.’’

अनुज पर थोड़ाबहुत नशा हावी था. उसी की झोंक में महेंद्र के कहने से वह बीयर पी गया. उसे क्या पता था कि उस बीयर में उस की मौत का सामान है. बीयर पीने के बाद जैसे ही अनुज को नशा चढ़ना शुरू हुआ, महेंद्र उसे डिस्कोथेक के बाहर ले आया और कार में बिठा दिया. वहां से वह अनुज को अंजुना तट की जगह कोलबा बीच पर ले गया.

कोलबा बीच 9 बजे के बाद सुनसान हो जाता है. अनुज नशे में भी था और जहर भी अपना असर दिखाने लगा था. महेंद्र उस से बोला, ‘‘कैसे मर्द हो यार, जरा सी बीयर पी कर झूमने लगे. इतने नशे में सोनम और कामिनी के सामने जाना ठीक नहीं है. यह कोलबा बीच है. यहां रोशनी में समुद्र की लहरों में नहाने का मजा ही कुछ और है. चलो, थोड़ी देर नहाते हैं. नहाने से नशा उतर जाएगा. इस के बाद वापस चलेंगे.’’

अनुज नशे में तो था ही. उसे महेंद्र की बात सही लगी. उस के कहने पर उस ने उस का दिया हुआ स्विमिंग सूट पहन लिया और उस के साथ झूमती हुई समुद्र की लहरों में उतर गया. महेंद्र सागर अपनी योजना के अनुरूप स्विमिंग सूट पहले ही साथ लाया था.

महेंद्र अपनी योजना के अनुसार अनुज को कोलबा बीच पर समुद्र की उछलती लहरों में ले गया और उस के नशे का लाभ उठा कर उसे डुबो कर मार डाला. इस तरह अनुज को ठिकाने लगा कर महेंद्र जब अंजुना बीच पर कामिनी और सोनम के पास लौटा तो रात के सवा 11 बज चुके थे. सोनम काफी परेशान थी. कामिनी ने नाटकीय अंदाज में महेंद्र को डांटते हुए पूछा, ‘‘कहां गए थे तुम लोग? और अनुज कहां है?…सोनम कब से परेशान हो रही है.’’

‘‘परेशान मत हो.’’ महेंद्र मुसकराते हुए बोला, ‘‘सुनोगी तो तुम भी खुश हो जाओगी और सोनम भी. मैं इन लोगों के ठहरने का इंतजाम कर के आ रहा हूं. अब ये हमारे साथ रहेंगे, 2 दिन. कल का जाना कैंसल. इन्हें मुंबई से शिरडी और महाबलेश्वर जाना था. वहां का प्रोग्राम गोवा में एडजस्ट हो गया. अनुज ने मुंबई और दिल्ली फोन कर के बता दिया है.’’

‘‘वाव…’’ कामिनी खुश होते हुए बोली, ‘‘अनुज कहां है?’’

‘‘अनुज मेरे साथ था. वह हमारा इंतजार कर रहा है. हम लोग जरा डिस्कोथेक में रुक गए थे. मैं ने कहा भी, पर वह बोला थोड़ी देर और ठहरो. देर हो रही थी, सो मैं उसे छोड़ कर इधर आ गया. वह थोड़ी देर में यहीं आ जाएगा. चलो, तब तक होटल से इन लोगों का सामान ले आते हैं. अनुज ने कहा है, होटल का बिल चुका कर बता देना कि हम जा रहे हैं.’’

सोनम को अजीब भी लगा और गोवा में 2 दिन रुकने की बात सुन कर कुछकुछ अच्छा भी. लेकिन यह अनुज का फैसला था और वह वहां था नहीं, इसलिए वह कह भी क्या सकती थी.

कामिनी और महेंद्र सोनम को साथ ले कर होटल पहुंचे और होटल का बिल चुकाने के बाद अनुज और सोनम का सारा सामान आल्टो में रख कर लौट आए. सोनम ने होटल कर्मचारियों को बता दिया कि उन्हें दिल्ली के कुछ दोस्त मिल गए हैं, अब वे उन्हीं के साथ रहेंगे.

महेंद्र और कामिनी सोनम को साथ ले कर काफी देर इधरउधर घुमाते रहे. इसी बीच कामिनी ने एक जगह कार से उतर कर आइसक्रीम खरीदी और सोनम वाली आइसक्रीम में जहर मिला दिया. आइसक्रीम खाने के बाद सोनम पर जहर का असर होने लगा.

सोनम को आइसक्रीम खिलाने के बाद कामिनी और महेंद्र अंजुना तट पर एक जगह एकांत में पहुंचे. तब तक सोनम पर जहर पूरी तरह असर कर चुका था. सुनसान जगह कार रोक कर कामिनी ने सोनम के कपड़े उतारे और उसे स्विमिंग सूट पहना दिया. इस के बाद उन्होंने अर्द्धबेहोशी की हालत में उसे उठा कर समुद्र में फेंक दिया.

इस तरह अनुज और सोनम को ठिकाने लगाने के बाद महेंद्र और कामिनी उन का सामान ले कर अपने घर चले गए. बाद में समुद्र की लहरों में लुढ़कती हुई सोनम और अनुज की लाशें किनारे आ लगी थीं. अगले दिन दोनों लाशें अलगअलग थानों की पुलिस को मिल गई थीं.

उधर महेंद्र और कामिनी ने सोनम और अनुज के सामान से मिले रुपए और अन्य सामान अपने पास रख लिया और उन के लाखों के गहने बेच दिए.

बाद में जब गोवा पुलिस को पता चला कि मृतक अनुज और सोनम के साथ अंतिम दिन महेंद्र सागर और कामिनी को देखा गया था तो उस ने उन की तलाश शुरू की. इस पर महेंद्र और कामिनी गोवा छोड़ कर दिल्ली आ गए. काफी समय वे लोग दिल्ली में रहे और फिर मेरठ चले गए थे.

महेंद्र और कामिनी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद मेरठ पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना गोवा पुलिस को दे दी. गोवा पुलिस मेरठ आ कर उन दोनों को ट्रांजिट वारंट पर गोवा ले गई.

—कथा एक सत्य घटना पर आधारित