झोपड़ी में रह कर महलों के ख्वाब – भाग 1

पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के थाना गोपालनगर के गांव पावन के रहने वाले प्रभात विश्वास गांव में रह कर खेती करते थे. पत्नी, 2 बेटों  और एक बेटी के उन के परिवार का गुजरबसर इसी खेती की कमाई से होता था. उसी की कमाई से वह बच्चों को पढ़ालिखा भी रहे थे और सयानी होने पर बेटी की शादी भी कर दी थी.

प्रभात ने बेटी प्रीति की शादी अपने ही जिले के गांव चलमंडल के रहने वाले श्रवण विश्वास के साथ की थी. श्रवण विश्वास झोला छाप डाक्टर था, जो चांदसी दवाखाना के नाम से उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के थाना वाह के कस्बा जरार में अपनी क्लिनिक चलाता था.

श्रवण की क्लिनिक बढि़या चल रही थी, इसलिए उस से प्रेरणा ले कर प्रभात विश्वास का बड़ा बेटा प्रवीण भी बहनोई की तरह झोला छाप डाक्टर बनने के लिए पढ़ाई के साथसाथ किसी डाक्टर के यहां कंपाउंडरी करने लगा था. ग्रेजुएशन करतेकरते वह डाक्टरी के काफी गुण सीख गया तो बहनोई की तरह अपनी क्लिनिक खोलने के बारे में सोचने लगा.

क्लिनिक खोलने की पूरी तैयारी कर के प्रवीण आगरा के कस्बा जरार में क्लिनिक चला रहे अपने बहनोई श्रवण के पास आ गया. कुछ दिनों तक बहनोई के साथ काम करने के बाद जब उसे लगा कि अब वह खुद क्लिनिक चला सकता है तो वह अपनी क्लिनिक खोलने के लिए स्थान खोजने लगा.

प्रवीण के एक परिचित पी.के. राय आगरा के ही कस्बा रुनकता में क्लिनिक चलाते थे. उन्हीं की मदद से उस ने रुनकता में एक दुकान ले कर बंगाली दवाखाना के नाम से क्लिनिक खोल ली. रहने के लिए हाजी मुस्तकीम के मकान में 8 सौ रुपए महीने किराए पर एक कमरा ले लिया. मुस्तकीम का अपना परिवार सामने वाले मकान में रहता था. उस मकान में केवल किराएदार ही रहते थे. डा. प्रवीण का कमरा अन्य किराएदारों से एकदम अलग था.

प्रवीण विश्वास दिन भर अपनी क्लिनिक पर रहता था और रात को कमरे पर आ जाता. अकेला होने की वजह से उसे अपने सारे काम खुद ही करने पड़ते थे. वह जिस हिसाब से मेहनत कर रहा था, उस हिसाब से उस की कमाई नहीं हो रही थी. इसलिए अपने हालात से वह खुश नहीं था. लेकिन उस का व्यवहार ऐसा था कि उस से हर कोई खुश रहता था.

इस के बावजूद प्रवीण की किसी से दोस्ती नहीं हो पाई थी. इस की वजह शायद यह भी थी कि वह एक ऐसे प्रांत का रहने वाला था, जहां का खानपान, रहनसहन और बात व्यवहार सब कुछ वहां के रहने वालों से अलग था.

इस स्थिति में प्रवीण थोड़ा परेशान सा रहता था. एक दिन वह किसी सोच में डूबा था कि उस के फोन की घंटी बजी. उस का फोन डुअल सिम वाला था. एक सिम उस ने आगरा के नंबर का डाल रखा तो दूसरा सिम 24 परगना के नंबर का था. वैसे यहां 24 परगना वाले नंबर की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन उस ने अपना पुराना नंबर इसलिए बंद नहीं किया था कि घर जाने पर शायद इस की जरूरत पड़े.

घंटी बजी तो प्रवीण की नजर मोबाइल के स्क्रीन पर गई. फोन 24 परगना वाले सिम के नंबर पर आया था. स्क्रीन पर जो नंबर उभरा था, वह भी 24 परगना का ही लग रहा था. प्रवीण ने जल्दी से फोन रिसीव कर लिया, ‘‘हैलो, कौन…?’’

उस के हैलो कहते ही दूसरी ओर से किसी लड़की ने मधुर आवाज में कहा, ‘‘सौरी, गलती से आप का नंबर लग गया.’’

प्रवीण कुछ कहता, उस के पहले ही फोन कट गया. लड़की की आवाज ऐसी थी, जैसे किसी ने कान में शहद घोल दिया है. प्रवीण का मन एक बार फिर उस की आवाज सुनने के लिए होने लगा. आवाज पलट कर फोन कर के ही सुनी जा सकती थी. लेकिन यह ठीक नहीं था. इसलिए वह सोचने लगा कि फोन करने पर लड़की बुरा मान सकती है. लेकिन मन नहीं माना तो डरतेडरते उस ने पलट कर फोन कर ही दिया.

दूसरी ओर से फोन रिसीव कर के लड़की ने कहा, ‘‘अपनी गलती के लिए मैं ने सौरी तो कह दिया. अब कितनी बार माफी मांगूं?’’

‘‘आप गलत सोच रही हैं. मैं ने आप को फोन इसलिए नहीं किया कि आप दोबारा माफी मांगें. आप की आवाज मुझे बहुत प्यारी लगी, उसे सुनने के लिए मैं ने फोन किया है. मैं आप की आवाज सुनना चाहता हूं. इसलिए आप कुछ अपनी कहें और कुछ मेरी सुनें.’’

प्रवीण का इतना कहना था कि उस के कानों में खिलखिला कर हंसने की आवाज पड़ी. प्रवीण खुश हो गया कि लड़की ने उस की इस हरकत का बुरा नहीं माना. हंसी रोक कर उस ने कहा, ‘‘तो यह क्यों नहीं कहते कि आप मुझ से दोस्ती करना चाहते हैं.’’

‘‘यही समझ लीजिए,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘आप को मेरा प्रस्ताव मंजूर है?’’

‘‘क्यों नहीं, बातचीत से तो आप अच्छेखासे पढे़लिखे लगते हैं?’’

‘‘जी, मैं डाक्टर हूं.’’

‘‘कहां नौकरी करते हैं?’’ लड़की ने पूछा.

‘‘नौकरी नहीं करता, मेरी अपनी क्लिनिक है.’’

‘‘तब तो मैं आप को अपना दोस्त बनाने को तैयार हूं.’’

इस तरह दोनों में दोस्ती हो गई तो बातचीत का सिलसिला चल पड़ा. प्रवीण 24 परगना का रहने वाला था तो वह लड़की भी वहीं की रहने वाली थी. लड़की ने अपना नाम मल्लिका बताया था. लेकिन सब उसे मोनिका कह कर बुलाते थे. प्रवीण ने भी उसे अपना नाम बता दिया था.

दोनों की ही भाषा बंगाली थी, इसलिए दोनों अपनी भाषा में बात करते थे. प्रवीण ने मल्लिका को यह भी बता दिया था कि वह रहने वाला तो 24 परगना का है, लेकिन उस की क्लिनिक उत्तर प्रदेश के आगरा के एक कस्बे में है.

धीरेधीरे दोनों में लंबीलंबी बातें होने लगीं. इसी तरह 6 महीने बीत गए. प्रवीण ने मल्लिका को अपने बारे में काफी कुछ बता दिया था, लेकिन मल्लिका ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया था. वह प्रवीण के लिए रहस्य बनी रही.

प्रवीण ने जब उस पर दबाव डाला तो एक दिन उस ने कहा, ‘‘यही क्या कम है कि मैं तुम से प्यार करती हूं. बस तुम मुझे अपनी प्रेमिका के रूप में जानो.’’

मल्लिका ने जब कहा कि वह उस से प्यार करती है तो प्रवीण ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं भी तुम से मिलना चाहती हूं. तुम्हारी जब इच्छा हो, आ जाओ. समझ लो मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ मल्लिका ने कहा.

मल्लिका का इस तरह आमंत्रण पा कर प्रवीण फूला नहीं समाया. वह इस बात पर विचार करने लगा कि मल्लिका को अपनी जिंदगी में आने के लिए तैयार कैसे करे. अब वह सपनों में जीने लगा था. इस तरह के सपनों की दुनिया बहुत ही रंगीन और हसीन होती है. उस ने अपने प्यार को कल्पनाओं का रंग दे कर एक खूबसूरत चेहरे का अक्स बना लिया था. हर वक्त वह उसी में खोया रहता था. वह 24 परगना जा कर मल्लिका से मिलना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था.

ऐसी भी एक सीता

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या

एक अधूरी प्रेम कहानी

जवानी बनी जान की दुश्मन

ऐसी भी एक सीता – भाग 4

पत्नी की बदचलनी की कहानी सुन कर रामानंद का खून खौल उठा था. उस ने वहीं से फोन पर सीतांजलि को सुधर जाने की नसीहत दी और न सुधरने पर इस का बुरा अंजाम भुगतने को भी डराया, लेकिन वह कहां पति से डरने वाली थी. पति जितना उसे गालियां देता था, डराताधमकाता था, वह उतनी ही प्रेमी बृजमोहन के करीब बढ़ती जाती थी.

रामानंद ने फरवरी 2023 में पत्नी को फोन कर के बता दिया था कि 5 अप्रैल, 2023 को दुबई से फ्लाइट से रवाना होगा और 6 अप्रैल को शाम तक घर पहुंच आएगा. उस के बाद जो निर्णय लेना होगा, वहीं औन द स्पौट लेगा.

सीतांजति ने जब से पति के वापसी की बात सुनी थी, उस की आंखों की नींद और दिल का चैन उड़ गया था. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन को बताया, ”अब कोई उपाय करो, वह विदेश से वापस लौट रहा है. तुम से बिछड़ कर मैं जिंदा नहीं रह सकती. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊंगी. बड़े मर्द बनते हो न, मुझे यहां से उड़ा ले चलो, नहीं तो हमारे प्यार के रास्ते के कांटे को हमेशा के लिए उखाड़ फेंको.’‘

उस दिन के बाद से दोनों मिल कर रामानंद की हत्या की योजना बनाते रहे. इस योजना में बृजमोहन ने अपने बचपन के दोस्त अभिषेक चौहान को शामिल कर लिया था. वह उसी के गांव का रहने वाला था और मध्य प्रदेश में जौब करता था.

बृजमोहन और अभिषेक के बीच में गहरी दोस्ती थी और दोनों ही हमप्याला हमनिवाला थे. दोनों एक साथ बचपन की गलियों में खेले और बड़े हुए. साथसाथ पढ़े और शरारतें भी साथसाथ कीं.

इसलिए जब बृजमोहन ने अपने प्यार का वास्ता दे कर प्रेमिका के पति को रास्ते से हटाने की बात कही थी तो वह मना नहीं कर सका और उस की खतरनाक योजना में शामिल हो कर सच्ची दोस्ती निभाने का वायदा किया.

6 अप्रैल, 2023 की सुबह रामानंद फ्लाइट से लखनऊ पहुंचा और पत्नी को बता दिया कि वह लखनऊ पहुंच गया है और वहां से प्राइवेट बस से गोरखपुर पहुंच जाएगा. सीतांजलि ने यह बात बृजमोहन को बता दी कि पति फलां नंबर की बस में सवार है और लखनऊ से घर आ रहा है.

बृजमोहन अपने साथी अभिषेक चौहान के साथ लखनऊ में ही रुका था. इस की योजना थी रामानंद को लखनऊ में ही मौत के घाट उतार दे, ताकि किसी को उस पर शक न हो.

पते की बात तो यह थी कुछ दिनों की छुट्टी ले कर बृजमोहन दिल्ली से गोरखपुर घर आया था. घर आना तो सिर्फ एक बहाना था, असल बात प्रेम की राह के कांटा बने रामानंद को हटाना था.

5 अप्रैल, 2023 को घर वालों से बृजमोहन तथा अभिषेक यह कह कर घर से निकले कि वह अपने नौकरी पर वापस लौट रहे हैं, दिल्ली नौकरी पर जाने की बजाय दोनों लखनऊ रुक गए और रामानंद के आने का इंतजार करने लगे थे.

खैर, जिस प्राइवेट बस में रामानंद सवार था, उसी बस में सामने वाली सीट पर बृजमोहन और अभिषेक हुलिया बदल कर बैठ गए थे, ताकि रामानंद उसे पहचान न सके. दोनों ने बस में ही उसे मारने की कई बार कोशिश की, लेकिन वे अपने इरादों में कामयाब नहीं हो पाए और लखनऊ से गोरखपुर पहुंच गए.

इधर सीतांजलि पति की मौत की खबर सुनने के लिए उतावली हुई जा रही थी कि कब उस का प्रेमी फोन कर के उसे ये अच्छी खबर सुनाए.

दोपहर एक बजे के करीब जैसे ही बृजमोहन का फोन आया, सीतांजलि बड़ी उत्सुकता से फोन झपट कर कान से सटा कर बोली, ”क्या हुआ? फोन करने में इतनी देर क्यों लगा दी?’‘

”क्या करूं, बात ही कुछ ऐसी है.’‘ रोआंसी आवाज में बृजमोहन ने कहा.

” मुझे पहेलियां मत बुझाओ. क्या हुआ, साफसाफ बताओ टारगेट पूरा हुआ कि नहीं.’‘

”नहीं, टारगेट पूरा नहीं हुआ. बस में इतनी सवारियां थीं कि कहीं मौका ही नहीं मिला टारगेट पूरा करने के लिए.’‘ बृजमोहन सफाई देते हुए बोला.

”कोई बात नहीं. बाजी अभी भी हमारे हाथ में है, शिकार तो जरूर बनेगा वो हमारा.’‘ कह कर उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सीतांजलि खुद के हाथों खुद का सुहाग मिटाने की जिद पर अड़ी थी. उस ने तय कर लिया था कि पति को मौत देनी है तो देनी है. विधवा बनना है तो बनना है. इस के लिए उस ने पहले कई तैयारियां कर रखी थीं. इधर बृजमोहन और अभिषेक बस से गोरखपुर उतर गए और टैंपो से सहजनवां जा पहुंचे, जो प्रेमिका के घर से 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था.

इधर रामानंद सहीसलामत घर पहुंच गया था. खाने में सीताजंलि ने रात में मटन पकाया था. उस ने अपने हिस्से का खाना निकाल कर बाकी पूरे खाने में नींद की 6 गोलियां बारीक पाउडर बना कर मिला दीं. और वही खाना पति, सास, ससुर और देवर को खिला दिया. खाना खाने के कुछ ही देर बाद सब के सब नींद की आगोश में समा गए थे. रामानंद भी अपने कमरे में जा कर खर्राटे भरने लगा था.

सीतांजलि ने पति को हिलाडुला कर देखा, वह बेसुध बिस्तर पर पड़ा हुआ था. उसे जब पूरा यकीन हो गया कि वह गहरी नींद में है तो उस ने प्रेमी बृजमोहन को घर आने के लिए फोन किया. प्रेमिका का फोन आते ही बृजमोहन दोस्त को साथ ले कर पैदल ही चल दिया और घर के पीछे से साड़ी के सहारे दोनों छत पर होते हुए दबे पांव कमरे में पहुंचे. उस समय रात के यही कोई 11 बज रहे थे.

फिर क्या था? सीतांजलि ने अपना दुपट्टा प्रेमी बृजमोहन की ओर बढ़ाया. दुपट्टा संभालते हुए बृजमोहन ने नफरत से रामानंद को देखा. उस का नथुना गुस्से से फूलपिचक रहा था. सीतांजलि ने दोनों हाथों से पति के दोनों पैर काबू किए तो अभिषेक ने उस के सीने पर सवार हो कर अपने मजबूत हाथों से उस के दोनों हाथ जकड़ लिए तभी बृजमोहन उस के गले में दुपट्टा डाल कर कस दिया. थोड़ी देर में उस के प्राणपखेरू उड़ नहीं गए.

तीनों मिल कर उसे मौत के घाट उतार चुके थे. अब लाश ठिकाने लगाने की बारी थी. इस बीच पत्नी सीतांजलि ने पति का मोबाइल फोन पटक कर तोड़ दिया था. फिर तीनों मिल कर लाश ऊपर छत पर ले गए और साड़ी के सहारे लाश नीचे उतार कर एकएक कर छत से नीचे उतरे. सीतांजलि घर में ही रह गई.

बृजमोहन और अभिषेक कपड़े में लाश को लपेट कर गांव के बाहर तालाब तक पहुंचे और कपड़े से लाश निकाल कर उसे पानी में फेंक कर बस पकड़ कर लखनऊ निकल गए. फिर जब सुबह हुई और रामानंद घर पर नहीं मिला और उस की खोजबीन शुरू हुई तो उस की लाश गांव के बाहर पानी में मिली.

पुलिस ने तीनों आरोपियों सीतांजलि, बृजमोहन विश्वकर्मा और अभिषेक चौहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 201, 120बी और 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर के 2 आरोपियों सीताजंलि और बृजमोहन को जेल भेज दिया, जबकि तीसरा आरोपी अभिषेक चौहान कथा लिखने तक फरार था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ऐसी भी एक सीता – भाग 3

इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र ने केस के खुलने की जानकारी एसएसपी गौरव ग्रोवर और एसपी (नार्थ) मनोज अवस्थी को बताई तो दोनों अधिकारियों ने फरार दोनों आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस की 2 टीमें गठित कीं. एक टीम को लखनऊ तो दूसरी टीम को मध्य प्रदेश रवाना कर दिया.

लखनऊ के गोमती नगर से पुलिस ने बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर ट्रांजिट रिमांड पर ले कर 11 अप्रैल को गोरखपुर ले आई. उसी दिन शाम 4 बजे पुलिस लाइन के मनोरंजन कक्ष में एसएसपी गौरव ग्रोवर ने एक पत्रकार वार्ता आयोजित कर पत्रकारों को इस केस के खुलासे की जानकारी दी.

पुलिस पूछताछ में रामानंद विश्वकर्मा की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

30 वर्षीय रामानंद विश्वकर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना गीडा के मल्हीपुर गांव का रहने वाला था. पिता रामप्रीत विश्वकर्मा के 3 बच्चों में 2 बेटे और एक बेटी थी. रामानंद दूसरे नंबर का था. बेटी रंजना सब से बड़ी थी और मंझले रामानंद से छोटा एक बेटा और था. यही रामप्रीत का खुशहाल परिवार था.

रामप्रीत किसान थे. खेतीबाड़ी कर के अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खैर, बेटी सयानी हो चुकी थी. उन्होंने बेटी के लिए योग्य वर तलाशना शुरू कर दिया था. उस की शादी खजनी थाना क्षेत्र के गांव रामपुर पांडेय में कर दी थी.

उस के बाद साल 2020 के सितंबर में गोरखपुर के चिलुआताल की रहने वाली सीतांजलि के साथ मंझले बेटे रामानंद की शादी कर एक और बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए. अब बचा था एक छोटा बेटा तो वह अभी पढ़ रहा था, इसलिए उस की तरफ उन का कोई खास ध्यान नहीं था.

सीतांजलि बहुत सुंदर थी, शारीरिक रूप से भी. उसे पत्नी के रूप में पा कर रामानंद बहुत खुश था, क्योंकि उस ने जैसे जीवनसाथी का सपना देखा था, सीतांजलि उस के सपनों पर खरी उतरी थी. ऐसा नहीं था कि सपने सिर्फ रामानंद ने ही देखे, बल्कि सीतांजलि ने अपने मन में जिस राजकुमार की छवि उकेरी थी, वह रामानंद ही था.

यानी पतिपत्नी ने एकदूसरे को ले कर जो सपने देखे थे, उन के वह सपने पूरे हो चुके थे. दोनों एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में पा कर फूले नहीं समाए थे. वह पत्नी को सीता कह कर पुकारता था.

जिन दिनों रामानंद की शादी हुई थी, उन दिनों रामानंद कोई नौकरीचाकरी नहीं करता था. ऐसा नहीं था कि निकम्मा अथवा आलसी था बल्कि उस का सपना विदेश में रह कर नौकरी करना था और परिवार को अपने साथ रखना था. इस के लिए उस ने अपना पासपोर्ट बनवा रखा था और वीजा के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी थी.

फरवरी 2021 में रामानंद विश्वकर्मा दुबई नौकरी करने चला गया. वह नईनवेली पत्नी को छोड़ कर विदेश चला तो गया, लेकिन उस का मन पत्नी सीताजंलि के पास ही रह गया. उस की याद में वह दिनरात तड़पता था. उधर सीतांजलि जब भी बिस्तर पर लेटती थी, पति का खालीपन उसे काटने को दौड़ता था.

अभी तो उस ने पति को भरपूर निगाहों से देखा भी नहीं था. उस की मेहंदी का रंग हथेली से उतरा भी नहीं था कि पति उसे विरह की अग्नि में जलता हुआ छोड़ चला गया था.

रामानंद की जब शादी हुई थी, तब उस की शादी में उस के बहनोई का छोटा भाई बृजमोहन विश्वकर्मा भी आया था. जयमाल के दौरान सीतांजलि सजसंवर कर दुलहन के रूप में जब स्टेज पर आई थी, उस की मोहिनी सूरत देख कर बृजमोहन मुग्ध हो गया था. बहुत देरतक वह उसे एकटक निहारता ही रहा.

वह जन्नत की किसी हूर से कम नहीं लग रही थी, लेकिन वह तो किसी और की अमानत थी. वह हाथ मलता रह गया था. फिर यह सोच कर निश्ंिचत हो गया था कि वह आएगी तो साले के घर ही न, फिर आगे क्या करना होगा, सोचा जाएगा.

उस दिन से बृजमोहन सलहज सीतांजलि का दीवाना हो गया था. फिलहाल उस ने अपनी चाहत को अपने सीने में दबाए रखा और वक्त का इंतजार करने लगा था.

चूंकि बृजमोहन का भाई के साले रामानंद की पत्नी के साथ मजाक का रिश्ता था ही और इसी के चक्कर में उस का साले के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. भाई की ससुराल जब भी वह आता था तो सीतांजलि के पास ज्यादा वक्त बिताता था. यह बात रामानंद को अच्छी नहीं लगती थी, लेकिन संकोची स्वभाव का रामानंद मना भी नहीं कर पा रहा था. अलबत्ता पत्नी को ही डांटता था. पति के इस व्यवहार से सीतांजलि दुखी रहती थी. जबकि उस के दिल में न खोट थी और न ही मन में मैल.

बृजमोहन जब भी साले रामानंद के घर आता था, तब पतिपत्नी के बीच तीखी नोंकझोंक हो जाती थी. उसे शक था कि पत्नी के साथ बृजमोहन का टांका भिड़ा हुआ है, जबकि उस की ओर से ऐसी कोई बात थी ही नहीं.

कीचड़ में खिले कमल के समान वह पवित्र थी. उस के मन मंदिर में पति की ही मूरत बसी थी, लेकिन जब पति ने उस पर ज्यादा ही शक करना शुरू किया तो उसे पति से जैसे चिढ़ हो गई. वह उस के मन से उतर गया और उस का आकर्षण बृजमोहन की ओर बढ़ गया था.

किस ने और किस तरह की रामानंद की हत्या

इसी बीच रामानंद दुबई कमाने चला गया था. पति के घर से जाते ही बृजमोहन का रास्ता खुल गया था. कहने को तो वह दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर की नौकरी करता था, लेकिन उस का अधिकांश समय सीतांजलि की बांहों में बीतता था.

जैसे इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता, वैसे ही सीतांजलि और बृजमोहन का रिश्ता भी नहीं छिप सका. भले ही पति बाहर चला गया था तो क्या हुआ? घर पर उस के सासससुर रहते थे. उन की आंखों पर गांधारी वाली पट्टी बंधी थी.

उन्हें सब दिखता था और वे सब समझते थे. उन्होंने बहू को समझाया भी था कि पतन के जिस रास्ते पर वह चल पड़ी है, वहां बदनामी के सिवाय कुछ नहीं मिलता है. घरपरिवार की इज्जत की खातिर घिनौना खेल खेलना बंद कर दे. लेकिन ससुर की बात सुन कर बहू के कान पर जूं तक रेंगी थी.

बृजमोहन और सीतांजलि की मोहब्बत शबाब पर थी. प्यार में दोनों इस कदर अंधे हो चुके थे कि उन्हें सिवाय मोहब्बत के कुछ भी नहीं दिखता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं और यह भी फैसला कर लिया था कि उन की मोहब्बत के बीच में जो भी रोड़ा आएगा, उसे हमेशाहमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाएगा, चाहे पति ही क्यों न हो.

इधर बहू सीतांजलि की घिनौनी करतूतों की वजह से गांवसमाज में रामप्रीत की थूथू हो रही थी. उन के समझाने का बहू पर कोई असर नहीं हो रहा था. अब पानी सिर के ऊपर बहने लगा था तो पूरी बात उन्होंने बेटे रामानंद को बता दी.

ऐसी भी एक सीता – भाग 2

पलभर में रामानंद की मौत की खबर घर पहुंच गई थी. जैसे ही ये खबर घर पहुंची, वैसे ही घर में रोना शुरू हो गया और मातम छा गया. फौरन घर के और लोग भी भागते हुए मौके पर पहुंचे, जहां जमीन पर रामप्रीत बिलखबिलख कर रो रहे थे. इस बीच भीड़ में से ही किसी ने इस की सूचना गीडा थाने को दे दी थी. घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर मदनमोहन मिश्र एसआई शिव प्रकाश सिंह, चौकी इंचार्ज पिपरौली आलोक राय आदि को ले कर मौके पर पहुंचे, जोकि थाने से करीब 5 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित था.

पुलिस ने लाश तालाब से बाहर निकलवा कर उस का निरीक्षण किया और जरूरी काररवाई पूरी कर वह पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दी.

पुलिस ने मौके पर मौजूद मृतक रामानंद विश्वकर्मा के घर वालों से उस की मौत के बारे में पूछा तो घर वाले कोई उत्तर नहीं दे सके कि उस की मौत कैसे हुई. बस इतना ही बता सके थे कि 6 अप्रैल को बेटा विदेश से घर लौटा था और रात में खाना खा कर सोया, उस के बाद उस की लाश तालाब में तैरती मिली.

घर वालों का जवाब सुन कर इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. वह सोचने लगे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि घर में सोए व्यक्ति की करीब एक किलोमीटर दूर लाश मिले. उन्हें मामला गंभीर दिखा और उस में हत्या की बू आने लगी है. जबकि मौके पर मौजूद गांव वाले उस की मौत पानी में डूबने से हुई बता रहे थे.

रामानंद की मौत पूरी तरह रहस्य की काली चादर में लिपटी हुई थी. हत्या के शक के आधार पर इंसपेक्टर मदन मोहन ने मौके की जांचपड़ताल की, लेकिन वहां ऐसा कोई संघर्ष का निशान नहीं मिला, जिस से यह साबित हो सके कि मृतक ने हत्यारों का कोई विरोध किया हो. खैर, लाश देख कर पुलिस किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मौत के सही कारण के बारे में पता लग सकता था.

कागजी काररवाई करतेकरते दोपहर के 12 बज गए थे. कागजी काररवाई पूरी करने के बाद इंसपेक्टर मदन मोहन पुलिस टीम के साथ थाने वापस लौट गए थे. मृतक रामानंद के पिता रामप्रीत विश्वकर्मा को भी थाने बुला लिया था. वहां उन्होंने उस से लिखित तहरीर ले ली थी, ताकि जांच की काररवाई आगे बढ़ाई जा सके.

पुलिस को क्यों हुआ मृतक की पत्नी पर शक

अगले दिन यानी 8 अप्रैल, 2023 को रामानंद विश्वकर्मा की पोस्टमार्टम की रिपोर्ट थाने पहुंच गई. इंसपेक्टर मदन मोहन के टेबल पर पड़ी थी. रिपोर्ट पढ़ कर इंसपेक्टर मिश्र चौंके बिना नहीं रह सके थे, क्योंकि रिपोर्ट में मृतक की मौत गला दबाने से हुई बताई गई. मतलब बात शीशे की तरह साफ हो चुकी थी कि पानी में डूबने से रामानंद की मौत नहीं हुई थी, बल्कि रिपोर्ट में उस की गला दबा कर हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ जाने के बाद इंसपेक्टर मदन मोहन मिश्र पूरी तरह एक्टिव हो गए और उसी दिन दोपहर में अपनी टीम को ले कर वह उसी जगह पहुंच गए, जहां लाश पाई गई थी. वहां भी जांच में मौके से संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले.

मतलब आईने की तरह साफ था कि हत्या कहीं और कर के लाश को तालाब में फेंक दिया गया था. पुलिस मौके की जांच कर के मृतक रामानंद के घर पहुंची और उस कमरे की तलाशी में जुट गई थी, जहां घटना वाली रात वह सोया था.

पुलिस ने कमरे की गहनतापूर्वक जांच की. जांच के दौरान बेड के नीचे से टूटी हुई प्रेग्नेंसी किट, एक डायरी, एक फोटो और एक टूटा हुआ मोबाइल फोन बरामद हुआ. पुलिस ने इन सामानों को बतौर साक्ष्य अपने कब्जे में ले लिया था, पता चला कि वह मोबाइल मृतक का था.

घर वालों से पूछताछ करने पर पता चला कि टूटा हुआ मोबाइल मृतक रामानंद का है. इस से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि जो कुछ भी हुआ था, इसी कमरे में घटा था.

पुलिस के शक के घेरे में मृतक की पत्नी सीतांजलि आ गई थी, क्योंकि उस का बयान बारबार बदलता जा रहा था, लेकिन पुलिस ने फिलहाल जानबूझ कर उस की ओर से अपना ध्यान हटा लिया था, ताकि वह कोई ऐसी वैसी हरकत करे और पुलिस की शिकंजे में फंस जाए.

कमरे की तलाशी लेने के बाद पुलिस रामप्रीत से उन की बहू सीतांजलि और खुद रामप्रीत का सेलफोन नंबर ले कर वापस थाने लौट गई. फिर सीतांजलि के मोबाइल फोन नंबर की एक महीने की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मदन मोहन उछल पड़े.

मृतक रामानंद की पत्नी सीतांजलि के फोन पर अकसर एक ही नंबर से काल आता था और उसी नंबर पर इस की ओर से भी काल की जाती थी. दोनों के बीच में घंटोंघंटों तक बातें होती थीं. यही नहीं, जिस रोज रामानंद घर में सोया था और रहस्यमय तरीके से उस की लाश तालाब के किनारे मिली थी, उस रात भी उसी नंबर पर सीतांजलि ने करीब 8 बार बात की थी. इस बात ने पुलिस के शक को और पुख्ता कर दिया था कि पति की मौत में पत्नी का हाथ अवश्य है.

यही नहीं, जिस नंबर से अकसर सीतांजलि के फोन पर काल आती थी और काल जाती थी, पुलिस ने उस नंबर को भी खंगाल डाला. वह नंबर किसी बृजमोहन विश्वकर्मा के नाम पर आवंटित था, जो गोरखपुर जिले के ही खजनी थाना क्षेत्र के रामपुर पांडेय का रहने वाला था.

गुप्तरूप से पुलिस ने उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला वह शख्स मृतक के सगे बहनोई का छोटा भाई निकला. वह मुंबई में रह कर कमाता था. रिश्ते में सीतांजलि, बृजमोहन की सलहज लगती थी.

पुलिस छानबीन के दौरान मृतक के कमरे से डायरी और फोटोग्राफ बरामद हुआ था. उस डायरी में लिखी मजमून और फोटो ने रामानंद की हत्या होना और हत्या में पत्नी का शामिल होना दोनों साबित कर दिया था.

पुलिस के पास सीतांजलि और बृजमोहन विश्वकर्मा को गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य इकट्ठा हो गए थे. फिर देर किस बात की थी.

9 अप्रैल, 2023 को पुलिस ने सीतांजलि को हिरासत में ले उस से कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने पलभर में ही अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी बृजमोहन विश्वकर्मा और उस के दोस्त अभिषेक चौहान के साथ मिल कर की है. हत्या करने के बाद बृजमोहन लखनऊ तो अभिषेक मध्य प्रदेश फरार हो गया.

फरेबी के प्यार में फंसी बदनसीब कांता

बेवफा पत्नी और प्रेमी की हत्या – भाग 3

नाजायज रिश्तों का भांडा फूटा

नाजायज रिश्तों को कोई लाख छिपाने की कोशिश क्यों न करे, लेकिन वह छिप नहीं पाते. किसी तरह पड़ोसियों को रागिनी और रिंकू के अवैध संबंधों की भनक लग गई. शोभाराम के दोस्तों ने कई बार उसे उस की पत्नी और रिंकू के संबंधों की बात बताई, लेकिन उस ने उन की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. क्योंकि उसे पत्नी पर पूरा भरोसा था.

जबकि सच्चाई यह थी कि वह उस के साथ लगातार विश्वासघात कर रही थी. रागिनी कुंवारे रिंकू यादव की इतनी दीवानी हो गई थी कि वह पति को कुछ समझती ही नहीं थी.

नाजायज रिश्तों का भांडा तब फूटा जब एक रोज शोभाराम ने अपनी पत्नी रागिनी और रिंकू को अपने ही घर में आपत्तिजनक स्थिति में रंगेहाथों पकड़ लिया. रिंकू ने जब शोभाराम को देखा तो वह फुरती से भाग गया. उस ने भी उस से कुछ नहीं कहा. लेकिन उस ने रागिनी को खूब खरीखोटी सुनाई और दोबारा ऐसी हरकत न करने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक रिंकू का रागिनी के यहां आनाजाना लगभग बंद रहा. पर यह पाबंदी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. मौका मिलने पर दोनों फिर से शोभाराम की आंखों में धूल झोंकने लगे. पर अब वह काफी सावधानी बरत रहे थे.

पत्नी को समझाने का प्रयास किया

रागिनी की बेटी अब तक 8 साल की हो चुकी थी. वह अपनी उम्र से कुछ ज्यादा समझदार थी. रिंकू के घर आने पर वह ताकझांक में लगी रहती थी. बेटी उस के नापाक रिश्तों में बाधा न बने, इसलिए रागिनी ने उसे ननिहाल रहने को भेज दिया.

बेटी के ननिहाल में रहने पर रागिनी पूरी तरह आजाद हो गई. शोभाराम राजमिस्त्री था. वह सुबह घर से निकलता तो फिर शाम को ही घर आता था. दोपहर में रागिनी चालाकी के साथ रिंकू को बुला लेती फिर दोनों रंगरलियां मनाते. पति के आने से पहले रागिनी सतीसावित्री बन जाती थी.

cShobharam (Aropi)

लेकिन चालाकी के बावजूद शोभाराम ने एक रोज फिर से पत्नी को रिंकू के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया. उस रोज शोभाराम सुबह काम पर तो गया था, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से वह दोपहर में ही वापस घर आ गया था. इस बार उस ने रिंकू को खूब खरीखोटी सुनाई और पत्नी की जम कर पिटाई की. इस के बाद रिंकू का घर आनाजाना बंद हो गया.

जनवरी 2023 के पहले सप्ताह में रागिनी ने एक और बेटी को जन्म दिया. बेटी के जन्म से शोभाराम को खुशी नहीं हुई, क्योंकि उसे शक था कि यह बेटी जरूर रागिनी और रिंकू के नाजायज रिश्तों की निशानी है. लेकिन समाज के डर से उस ने जुबान बंद रखी.

बेटी के जन्म के बाद शोभाराम को लगा कि रागिनी ने रिंकू के साथ संबंध खत्म कर लिए हैं. यह उस की भूल थी. रागिनी अब भी मौका मिलने पर रिंकू से मिलने का प्रयास करती रहती थी. उसे झटका तब लगा, जब उस ने एक रोज रिंकू को शाम के धुंधलके में अपने घर से निकलते देख लिया.

शोभाराम की अब गांव में खूब बदनामी होने लगी थी. गांव के युवक उसे देख कर पत्नी के चरित्र को ले कर फब्तियां कसने लगे थे. उस ने पत्नी को बड़ी बेटी की दुहाई देते हुए समझाया, लेकिन रागिनी पर कोई असर नहीं पड़ा.

आखिर अपनी इज्जत का जनाजा उठते देख कर उस का धैर्य जवाब देने लगा. अब उस से पत्नी की बेवफाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. इसी सब का नतीजा था कि उस ने मन ही मन एक खतरनाक मंसूबा पाल लिया. वह मंसूबा था रिंकू और बेवफा पत्नी की हत्या का.

अपने मंसूबे को अमली जामा पहनाने के लिए वह दोनों पर नजर रखने लगा था. शोभाराम कभी काम पर जाता तो कभी नहीं भी जाता. कभी जाता तो घंटे-2 घंटे बाद ही लौट आता. रागिनी अच्छी तरह जान गई थी कि उस का पति उस पर नजर गड़ाए है. इसलिए वह स्वयं सतर्क थी और उस ने प्रेमी रिंकू को भी सतर्क कर दिया था कि वह उस के घर तभी आए, जब वह उसे फोन कर बुलाए.

कैसे हुआ प्रेमीप्रेमिका का मर्डर

14 जून, 2023 की सुबह 8 बजे शोभाराम काम पर चला गया. दिन भर काम करने के बाद वह शाम 6 बजे घर आया. उस समय रागिनी छत पर थी. वह कमरे में पड़े तख्त पर लेट गया और थकान दूर करने लगा. रात 8 बजे के लगभग शोभाराम ने खाना खाया फिर तख्त पर लेट गया. कुछ देर बाद ही वह गहरी नींद में सो गया.

इधर रागिनी ने घर का काम निपटाया, फिर बेटे को पति के साथ लिटा दिया और खुद छोटी बेटी के साथ कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उसे रहरह कर प्रेमी की याद आ रही थी. महीना भर से अधिक का समय बीत गया था, वह रिंकू से मिलन नहीं कर पाई थी. जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने फोन कर रिंकू यादव को घर बुला लिया. दोनों मकान की छत पर पहुंचे और मौजमस्ती में जुट गए.

इधर रात 12 बजे के बाद शोभाराम लघुशंका के लिए उठा तो उस की नजर कमरे में पड़ी चारपाई पर गई. चारपाई पर छोटी बेटी तो सो रही थी, लेकिन पत्नी गायब थी. उस ने चंद मिनट उस के वापस आने का इंतजार किया, फिर वह घर में उस की खोज करने लगा. उस ने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन रागिनी उसे कहीं नहीं दिखी. तभी उस के मन में विचार आया कि रागिनी कहीं छत पर तो नहीं.

यह विचार आते ही शोभाराम दबे पांव सीढ़ियां चढ़ता हुआ छत पर पहुंचा. छत का दृश्य देख कर शोभाराम का खून खौल उठा. उस की भुजाएं फड़कने लगीं और कुछ कर गुजरने को तत्पर हो उठीं. दरअसल, छत पर रागिनी और रिंकू यादव अर्धनग्न अवस्था में एकदूसरे से गुथे पड़े थे. पत्नी की सीत्कार उस के कानों में गरम सीसा घोल रही थी.

शोभाराम ने पास पड़ी ईंट उठाई और रागिनी पर छाए रिंकू के सिर पर भरपूर प्रहार किया. प्रहार से रिंकू का सिर फट गया और खून की धार बहने लगी. पति के रूप में रागिनी ने साक्षात मौत को देखा तो वह प्रेमी के ऊपर लेट गई और गिड़गिड़ाने लगी, ”मेरे राजा को मत मारो, उस के बिना मैं कैसे जीवित रहूंगी?’‘

यह सुनते ही शोभाराम का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने दूसरा वार पत्नी रागिनी के सिर पर किया तो उस का भी सिर फट गया और खून का फव्वारा छूट पड़ा. इस के बाद शोभाराम ने अनगिनत प्रहार रागिनी और रिंकू के सिर और चेहरे पर किए तथा दोनों को मौत के घाट उतार दिया.

इस के बाद वह छत पर ही बैठा बीड़ी पीता रहा. कुछ देर बाद उस ने मोबाइल फोन से डायल 112 पर पुलिस कंट्रोल रूम को डबल मर्डर की सूचना दी. सूचना पाते ही थाना पुलिस व अन्य अधिकारी घटनास्थल आ गए. पुलिस ने दोनों शवों को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो इन हत्याओं के पीछे अवैध संबंधों की बात सामने आई.

16 जून, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी शोभाराम दोहरे को औरैया की जिला अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. मृतका रागिनी के तीनों बच्चे अपने नानानानी के घर पल रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित