दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड

खूनी बन गई झूठी मोहब्बत

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन र हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली.

मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब कम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्चों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे.

काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा. मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी.

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की.

उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहां…वो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी.

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पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया.

‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है न? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी आ जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई.

लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही.

आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत व राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी.

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रही.

बात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने आ कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले.

‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’

‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

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‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों न हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती न हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस के साथ किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में आ गया.

‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया.

जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं.

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया.

‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से है.

अब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था.

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

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कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहा.

इसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई.

अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई. इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने नीटू को परेशान कर डाला.

नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी.

नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझाते समझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी.

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया.

वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस आ कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर न केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 3

भगवानदास सोनी के पड़ोस में ही ईश्वरनाथ गोस्वामी परिवार के साथ रहते थे. उन्हीं का बेटा था सुमेरनाथ गोस्वामी. ईश्वरनाथ गोस्वामी के एक भाई पुलिस की नौकरी से रिटायर हो कर जयपुर में रहते थे. उन के बच्चे नहीं थे, इसलिए सुमेरनाथ को उन्होंने गोद ले रखा था. पढ़ाई पूरी कर के सुमेरनाथ एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगा था.

सुमेरनाथ नौकरी करने लगा तो घर वालों ने अपनी जाति की लड़की से उस की शादी कर दी थी. चली आ रही परंपरा के अनुसार सुमेरनाथ शादी के पहले पत्नी को देख नहीं सका था. इसलिए शादी के पहले वह उस के बारे में कुछ भी नहीं जान सका. शादी के बाद पत्नी घर आई तो दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. सुमेरनाथ जितना सीधा और सरल था, उस की पत्नी उतनी ही गरममिजाज थी. परिणामस्वरूप दोनों में निभ नहीं पाई.

सुमेरनाथ ने पत्नी को ले कर जो सपने देखे थे, कुछ ही दिनों में सब बिखर गए. पत्नी की वजह से घर में हर समय क्लेश बना रहता था. उस ने पत्नी को बहुत समझाया, लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा. वह किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं थी. पत्नी की वजह से सुमेर परेशान रहने लगा था.

पत्नी के दुर्व्यवहार से तंग सुमेरनाथ का झुकाव पड़ोस में रहने वाली सुनीता सोनी की ओर हो गया था. पड़ोस में रहने की वजह से वह सुनीता को बचपन से देखता आया था. लेकिन उस ने कभी उस से प्यार या शादी के बारे में नहीं सोचा था.

सुनीता सुंदर तो थी ही, इसलिए वह उसे अच्छी भी लगती थी. लेकिन एक तो दोनों की जाति अलग थी, दूसरे मोहल्ले की बात थी, इसलिए सुमेरनाथ ने उस के बारे में कभी इस तरह की बात नहीं सोची थी.

सुनीता को कभी पढ़ाई में कोई परेशानी होती तो वह मदद के लिए सुमेरनाथ के पास आ जाती थी. ऐसे में कभी सुमेरनाथ पत्नी की वजह से परेशान रहता तो वह सहानुभूति जता कर उस की परेशानी को कम करने की कोशिश करती. कभीकभी उसे सुमेरनाथ पर दया भी आती.

परेशानी में सुनीता का सहानुभूति जताना सुमेरनाथ को धीरेधीरे अच्छा लगने लगा था. इसलिए उस की सहानुभूति पाने के लिए वह अकसर उस के सामने पत्नी की व्यथा ले कर बैठ जाता. सुनीता जवान भी हो चुकी थी और खूबसूरत भी थी. बात और व्यवहार से वह समझदार लगती थी, इसलिए सुमेरनाथ उस की ओर आकर्षित होने लगा. उसे लगता, सुनीता जैसी पत्नी मिली होती तो जीवन सुधर गया होता.

मन में आकर्षण पैदा हुआ तो सुनीता के प्रति सुमेरनाथ की नजरें बदलने लगीं. नजरें बदलीं तो बातें भी बदल गईं और उन के कहने का तरीका भी. इस बदलाव को सुनीता ने भांप भी लिया. सुनीता को भी सुमेरनाथ भला आदमी लगता था. सीधासरल भी था और पढ़ालिखा भी. फिर उस के लिए उस के मन में दया और सहानुभूति भी थी.

उसी दौरान जहां सुमेरनाथ का पत्नी की सहमति से तलाक हो गया, वहीं सुनीता की शादी उस के पिता और ताऊ ने एक ऐसे लड़के से तय कर दी, जो अंगूठाछाप था. इस विरोधाभास से सुनीता के मन में घर वालों के प्रति जो विद्रोह उपजा, उस ने सुमेरनाथ के लिए उस के मन में जो सहानुभूति और दया थी, उसे चाहत में बदल दिया. जब दोनों ओर दिलों में चाहत पैदा हुई तो इजहार होने में देर नहीं लगी.

इजहार हो गया तो कभी पढ़ाई के बहाने सुनीता सुमेरनाथ से मिलने उस के घर आ जाती तो कभी किसी बहाने से कहीं बाहर मिलने चली जाती. इन मुलाकातों ने जहां प्यार को बढ़ाया, वहीं व्याकुल मन को शांत करने के लिए मुलाकातें भी बढ़ने लगीं. इन्हीं मुलाकातों ने जब लोगों के मन में संदेह पैदा किया तो लोग उन पर नजरें रखने लगे. इस का नतीजा यह निकला कि लोगों को उन के प्यार की जानकारी हो गई. बात एक ही मोहल्ले और अलगअलग जाति के लड़केलड़की की थी, इसलिए दोनों को ले कर खुसुरफुसुर होने लगी.

बात दोनों के घर वालों तक पहुंची तो रोकटोक शुरू हुई. लेकिन आज मोबाइल के जमाने में रोकटोक का कोई फायदा नहीं रह गया. दूसरे सुनीता और सुमेरनाथ प्यार की राह पर अब तक इतना आगे निकल चुके थे कि घर वालों की रोकटोक या बंदिशें उस पर जरा भी असर नहीं डाल सकती थीं. क्योंकि अब उन का प्यार मंजिल पाने यानी शादी के मंसूबे तक पहुंच चुका था.

इस की वजह यह थी कि दोनों बालिग थे और अपनाअपना भलाबुरा समझते थे. इसलिए अगर वे अपनी मरजी से भी शादी कर लेते थे तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता था.  सुनीता किसी अनपढ़ से शादी कर के अपनी जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहती. इसलिए वह मांबाप की इज्जत को दांव पर लगा कर सुमेरनाथ से शादी के लिए तैयार थी.

एक औरत के दुर्व्यवहार से दुखी सुमेरनाथ भी सुनीता के व्यवहार का कायल था. इसलिए बाकी की जिंदगी वह सुनीता की जुल्फों तले खुशी से गुजारना चाहता था. उन्हें पता था कि समाज ही नहीं, घर वाले भी उन की शादी कभी नहीं होने देंगे, इसलिए उन्होंने किसी अन्य शहर में जा कर शादी करने का निर्णय लिया.

सुनीता और सुमेरनाथ ने शादी के लिए जरूरी कागजात यानी स्कूल के प्रमाणपत्र आदि सहेज कर रखने के साथ रुपएपैसों की व्यवस्था कर ली. उन्हें पता था कि वे अलगअलग जाति के हैं, इसलिए उन्हें आर्यसमाज मंदिर में शादी करनी होगी. उस के बाद अदालत से विवाह की मान्यता मिल जाएगी. पूरी तैयारी कर के उन्होंने भागने की तारीख भी 2 जुलाई तय कर ली.

योजना के अनुसार, 2 जुलाई, 2014 की रात 3 बजे अपने कपड़े लत्ते ले कर सुनीता तय जगह पर पहुंच गई. सुमेरनाथ वहां पहले ही पप्पूराम की गाड़ी ले कर पहुंच गया था. सुनीता के आते ही उस ने उसे गाड़ी में बिठाया और अपनी मंजिल पर निकल पड़ा.

अपने बयान में सुनीता ने कहा था कि वह बालिग है और उस ने खूब सोचसमझ कर सुमेरनाथ गोस्वामी से शादी की है. अब वह उसी के साथ रहना चाहती है, इसलिए पुलिस सुरक्षा में उसे सुमेरनाथ के साथ सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने की कृपा की जाए.

इस के बाद मजिस्ट्रेट ने सुनीता को सुमेरनाथ के साथ भेजने का आदेश दे दिया. सुनीता अदालत से बाहर निकलने लगी तो उस की एक झलक पाने के लिए भीड़ टूट पड़ी. पुलिस ने हलका बल प्रयोग कर के भीड़ को हटाया और अपनी सुरक्षा में इस प्रेमी युगल को जयपुर पहुंचा दिया. कथा लिखे जाने तक यह दंपति जयपुर में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 2

जहांजहां उन के मिलने की संभावना थी, पुलिस टीम भागती रही. पुलिस टीम तो सुमेरनाथ और सुनीता के बारे में कुछ भी पता नहीं कर सकी, लेकिन मुखबिरों ने जरूर कामयाबी हासिल कर ली. मुखबिरों ने पुलिस को बताया कि सुमेरनाथ सुनीता को जिस गाड़ी से ले गया है, वह जैसलमेर के थाना सदर के गांव रिदवा के रहने वाले पप्पूराम ओड़ की थी. उस के बाप का नाम पोकराम ओड़ है और गाड़ी का नंबर है आरजे-15टीए-1058.

पुलिस टीम को पप्पूराम का मोबाइल नंबर भी मिल गया था. पुलिस ने तुरंत पप्पूराम को फोन कर के पूछा कि इस समय वह कहां है तो उस ने बताया कि वह जोधपुर के रातानाडा में है. जैसलमेर पुलिस ने तुरंत थाना रातानाडा पुलिस से संपर्क किया और पप्पूराम ओड़ की गाड़ी का नंबर दे कर उसे पकड़ने के लिए कहा. पकड़े जाने पर तुरंत सूचना देने के लिए भी कह दिया था.

रातानाडा पुलिस पप्पूराम ओड़ को गाड़ी  सहित पकड़ कर थाने ले आई. इस के बाद सूचना पा कर जैसलमेर पुलिस थाना रातानाडा पहुंच गई. सुमेरनाथ और सुनीता के फोटो दिखा कर जब पप्पूराम ओड़ से उन के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उन दोनों को उस ने 2 जुलाई की शाम को जयपुर हाईकोर्ट के पास छोड़ा था. उन्होंने उस की गाड़ी किराए पर ली थी.

पुलिस टीम पप्पूराम को साथ ले कर जयपुर पहुंची. उस ने सुमेरनाथ और सुनीता को जहां छोड़ा था, पुलिस ने वहां दोनों के फोटो दिखा कर आसपास की दुकानों, होटलों और धर्मशालाओं में काफी खोजबीन की, लेकिन वहां उन का कुछ पता नहीं चला. निराश हो कर पुलिस वापस लौट आई. इस के बाद मुखबिरों से पुलिस को सूचना मिली कि सुमेरनाथ सुनीता को ले कर दिल्ली गया है, जहां वे तीसहजारी कोर्ट में शादी करने की कोशिश कर रहे हैं.

पुलिस टीम दिल्ली के तीसहजारी कोर्ट पहुंची. दिल्ली में तीस हजारी कोर्ट के आसपास ठहरने के जितने अड्डे थे, सभी जगह सुनीता और सुमेरनाथ की तलाश की गई. लेकिन कुछ पता नहीं चला. पुलिस टीम दोनों को दिल्ली में तलाश रही थी, तभी सूचना मिली कि दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली है और दिल्ली से सटे गुड़गांव में कहीं रह रहे हैं. पुलिस टीम ने पहले तो आर्यसमाज मंदिर जा कर उन के विवाह से संबंधित सारे दस्तावेज प्राप्त किए, उस के बाद गुड़गांव जा कर उन की तलाश शुरू की.

गुड़गांव कोई छोटी सी जगह तो है नहीं कि लोग सुमेरनाथ और सुनीता का फोटो देख कर पुलिस को बता देते. पुलिस ने अपने हिसाब से गुड़गांव में दोनों की काफी खोजबीन की. जब पुलिस टीम ने देखा कि उन की मेहनत का कोई फल नहीं निकल रहा है तो वह जयपुर लौट गई.

सुमेरनाथ के एक चाचा जयपुर में रहते थे. पुलिस को संदेह था कि वह अपने चाचा के यहां भी जा सकता है, इसलिए पुलिस उन के घर पर भी बराबर नजर रख रही थी. अब तक जैसलमेर पुलिस ने सुमेरनाथ को गिरफ्तार कर सुनीता को बरामद करने की हरसंभव कोशिश की थी, लेकिन सुमेरनाथ ने अपनी चालाकी से पुलिस की हर कोशिश को नाकाम कर दिया था.

पुलिस और सुमेरनाथ के बीच चूहाबिल्ली का खेल चल ही रहा था कि 8 जुलाई, 2014 को जैसलमेर के पुलिस अधीक्षक विजय शर्मा को सुनीता सोनी का भेजा एक पत्र मिला. उस पत्र में उस ने लिखा था, ‘‘मैं जैसलमेर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित कंसारपाड़ा के वार्ड नंबर 16 में रहने वाले भगवानदास सोनी की बेटी सुनीता सोनी आप को अपनी व्यथा से अवगत कराना चाहती हूं. मैं बालिग हूं, जिस के प्रमाण में मैं प्रमाणपत्रों की प्रतिलिपियां संलग्न कर रही हूं. मैं अपना अच्छाबुरा समझने लायक हूं. मेरे पिताजी और बड़े पिताजी (ताऊजी) ने जहां मेरी शादी तय की थी, वहां कोई ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था.

‘‘जिस लड़के से मेरी शादी की जा रही थी, वह भी अनपढ़ है. जबकि मैं इस समय बीए अंतिम वर्ष में पढ़ रही हूं. ऐसे लड़के के साथ मेरा गुजारा नहीं हो सकता था, इसलिए मैं ने अपनी पसंद के लड़के के साथ शादी कर ली है. जल्दी ही मैं आप को अपनी शादी के मूल प्रमाणपत्र उपलब्ध करवा दूंगी. मेरा आप से निवेदन है कि मेरे अधिकारों की रक्षा करने में मेरी मदद करें और मुझे पुलिस सुरक्षा प्रदान करें, जिस से मैं एक सभ्य नागरिक की तरह रह सकूं. मेरी आप से विनती है कि आप उचित काररवाई करते हुए प्रशासन का अमूल्य समय बरबाद करने से बचाएं.’’

सुनीता ने इस पत्र की प्रतियां माननीय मुख्यमंत्री कार्यालय जयपुर, महिला आयोग, उच्च न्यायालय जोधपुर, जिला कलेक्टर जैसलमेर एवं जैसलमेर के जिला जज को भी भेजी थीं. सुनीता के इस निवेदन का पुलिस पर कोई फर्क नहीं पड़ा और वह सुमेरनाथ को पकड़ कर उसे बरामद करने की कोशिश में लगी रही. इस की वजह यह थी कि सोनी समाज का पुलिस पर काफी दबाव था. पुलिस की इतनी कोशिश के बावजूद सोनी समाज पुलिस पर आरोप लगा रहा था कि पुलिस सुमेरनाथ से मिली हुई है. आरोप ही नहीं लगा रहा था, बल्कि इसी बात को ले कर कलेक्ट्रेट के सामने धरनाप्रदर्शन भी शुरू कर दिया था.

16 जुलाई, 2014 को पुलिस पर अभियुक्त से मिलीभगत और लापरवाही का आरोप लगाते हुए सोनी समाज ने मौन जुलूस निकाला. यह जुलूस कलेक्ट्रेट की ओर बढ़ने लगा तो पुलिस ने इसे रोकने की कोशिश की. जुलूस में शामिल लोग पुलिस से धक्कामुक्की करने लगे तो महिलाएं ‘पुलिस प्रशासन हायहाय’ और ‘कलेक्टर हायहाय’ के नारे लगाने लगीं. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने उन्हें समझाबुझा कर आश्वासन दिया कि जल्दी ही सुमेरनाथ को पकड़ कर सुनीता को बरामद किया जाएगा, तब कहीं जा कर लोग शांत हुए.

इस के बाद कुछ लोगों ने कलेक्टर औफिस जा कर ज्ञापन भी दिया. उसी दिन यानी 16 जुलाई को ही जैसलमेर के विधायक छोटू सिंह भाटी ने विधानसभा में सुनीता सोनी को भगाने वाले अभियुक्त सुमेरनाथ की गिरफ्तारी न होने की बात कहते हुए पुलिसप्रशासन की लापरवाही का मुद्दा उठाया. इस के बाद जब जैसलमेर पुलिस पर दबाव पड़ा तो अगले ही दिन यानी 17 जुलाई, 2014 को पुलिस ने सुमेरनाथ गोस्वामी को सुनीता के साथ गिरफ्तार कर लिया और जैसलमेर ले आई.

18 जुलाई, 2014 को जब जैसलमेर में लोगों को पता चला कि सुमेरनाथ गोस्वामी और सुनीता सोनी को पुलिस ने पकड़ लिया है और आज दोपहर को दोनों को अदालत में पेश किया जाएगा तो सोनी समाज के सैकड़ों स्त्री, पुरुष और बच्चे अदालत के बाहर इकट्ठा हो गए. इस तरह तमाशा देखने वालों की वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. भीड़ देख कर किसी अनहोनी से बचने के लिए पुलिस को भारी पुलिस बल की व्यवस्था करनी पड़ी.

सख्त सुरक्षा व्यवस्था के बीच सबइंसपेक्टर भवानी सिंह सुनीता सोनी और सुमेरनाथ गोस्वामी को ले कर सीजेएम की अदालत पहुंचे. सुमेरनाथ को तो बाहर ही रोक लिया गया, जबकि सुनीता को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. अदालत में ही सुनीता को उस के मातापिता और वकील से मिलवाया गया. भगवानदास और उन की पत्नी रोरो कर कह रहे थे कि उस की वजह से समाज में उन की नाक कट गई है. लोग तरहतरह की बातें कर रहे हैं. वह घर लौट चले. कुछ दिनों में लोग इसे भूल जाएंगे.

वकील ने भी सुनीता को भलाबुरा समझाया. प्रेम विवाह के दुष्परिणाम भी बताए. इस के बावजूद सुनीता अपने फैसले पर अडिग रही. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सुमेर से शादी कर ली है. मैं ने उस से जीवन भर साथ निभाने का वादा किया है. उसे तोड़ूंगी नहीं. वह मुझे बहुत प्यार करता है. मुझे लगता है, मैं उस के साथ खुश रहूंगी. अब हम दोनों साथ जीना और मरना चाहते हैं, इसलिए आप लोग मेरी चिंता छोड़ दीजिए.’’

सुनीता जब किसी भी सूरत में घर जाने को तैयार नहीं हुई तो मांबाप पीछे हट गए. इस के बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष उस का बयान दर्ज कराया गया. मजिस्ट्रेट को दिए गए बयान के आधार पर सुनीता सोनी और सुमेरनाथ गोस्वामी की जो प्रेम कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर शहर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित मोहल्ला कंसारपाड़ा में ज्यादातर घर सोनियों (सुनारों) के हैं. इन का काम सोनीचांदी के गहने बनाना है. कुछ लोगों ने अपने घरों में ही दुकानें खोल रखी हैं तो कुछ लोगों की दुकानें बाहर बाजारों में हैं. ठीकठाक आमदनी होने की वजह से यहां रहने वाले ज्यादातर सोनी साधनसंपन्न हैं. इसी मोहल्ले में भगवानदास सोनी भी अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी और 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी सुनीता इन दिनों बीए अंतिम वर्ष में पढ़ रही थी.

सनक में कर बैठी प्रेमी के दोस्त की हत्या

प्यार की जीत : सुनीता और सुमेर की प्रेम कहानी – भाग 1

राजस्थान की स्वर्णनगरी जैसलमेर शहर के कल्लू की हट्टो के पास स्थित मोहल्ला कंसारापाड़ा के रहने वाले भगवानदास सोनी की पत्नी  सुबह सो कर उठीं तो उन्हें बेटी की चारपाई खाली दिखी. उन्हें लगा, सुनीता वौशरूम गई होगी. लेकिन जब वह वौशरूम की तरफ गईं तो उस का दरवाजा खुला था. सुनीता वैसे भी उतनी सुबह उठने वालों में नहीं थी. वौशरूम खाली देख कर उन्हें हैरानी होने के साथसाथ बेटी को ले कर उन्होंने जो अफवाहें सुन रखी थीं, संदेह भी हुआ.

वह भाग कर कमरे में पहुंची तो अलमारी खुली पड़ी थी और उस में से सुनीता के कपड़े गायब थे. अलमारी में रखा एक बैग भी गायब था. अब उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सुनीता कहां है? वह सिर थाम कर वहीं बैठ गईं और जोरजोर से रोने लगीं.

उन के रोने की आवाज पति भगवानदास और बेटे ने सुनी तो वे भाग कर उन के पास आ गए और पूछने लगे कि सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि वह इस तरह रो रही हैं. वह इतने गहरे सदमे में थीं कि उन के मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी. भगवानदास ने जब झकझोर कर पूछा, ‘‘अरे बताओगी भी कि क्या हुआ?’’

तो उन्होंने कहा, ‘‘क्या बताऊं, गजब हो गया. जिस बात का डर था, आखिर वही हुआ. सुनीता कहीं दिखाई नहीं दे रही है. अलमारी से उस के कपड़े और बैग भी गायब है.’’

भगवानदास सोनी को भी समझते देर नहीं लगी कि सुनीता प्रेमी के साथ भाग गई है. वह भी सिर थाम कर बैठ गए. पलभर में यह खबर पूरे घर में फैल गई. पूरा परिवार इकट्ठा हो गया. इस के बाद सुनीता के प्रेमी सुमेरनाथ गोस्वामी के बारे में पता किया गया. वह भी घर से गायब था.

संदेह यकीन में बदल गया. धीरेधीरे बात पूरे मोहल्ले में फैलने लगी. लोग भगवानदास सोनी के घर इकट्ठा होने लगे. बात इज्जत की थी, समाज बिरादरी में हंसी फजीहत की थी, इसलिए सलाहमशविरा होने लगा कि अब आगे क्या किया जाए.

दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है, इसी के साथ तमाम बदलाव भी आए हैं. इस के बावजूद आज भी देश में ऐसे तमाम इलाके हैं, जहां आधुनिक होते हुए भी लोग अपनी परंपराओं में जरा भी बदलाव नहीं ला पाए हैं. वैसे ही इलाकों में एक है पश्चिमी राजस्थान का जैसलमेर. यहां हर जाति की अपनी अलगअलग परंपराएं हैं.

दुनिया भले ही 21वीं सदी में पहुंच गई है, कंप्यूटर ने पूरी दुनिया को एक जगह समेट दिया है, पर जैसलमेर के लोग अपनी परंपराओं को बिलकुल नहीं बदल पाए हैं. जबकि यह भारत का एक ऐसा पर्यटनस्थल है, जहां पूरी दुनिया से लोग आते रहते हैं. कह सकते हैं कि एक तरह से यह नगर पूरी दुनिया की सभ्यता का केंद्र है.

विदेशों से आने वाले पर्यटक लड़कियों का हाथ पकड़ कर घूमते हैं. यह सब देख कर भी यहां के लोग प्रेम या प्रेम विवाह के नाम से घबराते हैं. यहां के लोग अपने ही समाज और जाति बिरादरी में शादी करते हैं. अगर किसी की लड़की या लड़के ने गैरजाति में शादी कर ली तो उसे जाति से बाहर कर दिया जाता है. कोई भी न उस के घर जाता है और न उसे अपने घर आने देता है. ऐसे में घर के अन्य बच्चों की शादियों में रुकावट आ जाती है. इसीलिए यहां के लोग प्रेम विवाह करने से बचते हैं.

नई पीढ़ी इस परंपरा से परेशान तो है, लेकिन इसे तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पा रही है. इस परंपरा में सब से बड़ी परेशानी यह है कि घर वाले शादी अपनी मरजी से करते हैं. कुछ जातियों में तो आज भी शादी के पहले लड़का न लड़की को देख सकता है और न लड़की लड़के को. ऐसे में घर वाले कभी पढ़ेलिखे लड़के की शादी अनपढ़ लड़की से कर देते हैं तो कभी पढ़ीलिखी लड़की अनपढ़ लड़के से ब्याह दी जाती है.

इस का दुष्परिणाम भी सामने आ रहा है. तमाम पतिपत्नी में विलगाव हो रहा है. लेकिन ज्यादातर लड़केलड़कियां ऐसे हैं, जो न चाहते हुए भी जिंदगी निर्वाह करते हैं. बालविवाह पर रोक तो लग गई है, लेकिन रिवाज के अनुसार यहां आज भी सगाई किशोरावस्था तक पहुंचतेपहुंचते कर दी जाती है. बाद में शादी उसी से होती है, जिस के साथ सगाई हुई होती है. सगाई भी इस तरह होती है कि जान कर हैरानी होती है.

एक कोठरी में बड़ेबुजुर्ग बैठ कर लड़का लड़की के नाम खोलते हैं. जिस लड़की का जिस लड़के के साथ नाम खुल जाता है, अफीम और गुड़ बांट कर उस के साथ उस की सगाई पक्की कर दी जाती है. इस के बाद अगर कोई सगाई तोड़ता है तो उसे भारी जुर्माना देना पड़ता है. इसलिए सगाई हो गई तो शादी पक्की मानी जाती. ये परंपराएं तब बनी थीं, जब लोग अनपढ़ थे. आज लोग पढ़लिख गए हैं, लेकिन परंपराओं और प्रथाओं में कोई बदलाव नहीं आया है.

परंपराओं और प्रथाओं में बंधे होने की वजह से बेटी के इस तरह भाग जाने से  भगवानदास सोनी और उन के घर वालों को भी जाति से बाहर किए जाने और अन्य बच्चों की शादियों की चिंता सताने लगी थी. उन के लिए परेशानी और चिंता की बात यह थी कि वे बात को आगे बढ़ाते थे तो उन्हीं की बदनामी होती थी. इस के बावजूद वे शांत हो कर बैठ भी नहीं सकते थे.

बात बिरादरी की इज्जत की थी, इसलिए सभी ने सलाहमशविरा कर के तय किया कि जो हुआ, वह ठीक नहीं हुआ. आगे फिर कभी ऐसा न हो, इसलिए सुनीता को भगा कर ले जाने वाले सुमेरनाथ को सबक सिखाने के लिए उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना जरूरी है. इस के बाद भगवानदास सोनी अपने कुछ शुभचिंतकों के साथ महिला थाने पहुंचे और सुमेरनाथ गोस्वामी के खिलाफ सुनीता को भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए जो तहरीर दी,

उस में लिखा, ‘मेरी बेटी को दिनांक 2 जुलाई, 2014 को 3 बजे सुबह के आसपास मेरे घर से सुमेरनाथ गोस्वामी पुत्र ईश्वरनाथ गोस्वामी बहलाफुसला कर शादी करने की नीयत से भगा ले गया है.’

महिला थाने में सुमेरनाथ गोस्वामी के खिलाफ सुनीता सोनी को भगा ले जाने की रिपोर्ट भगवानदास सोनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर दर्ज कर ली गई. इस के बाद इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक विजय शर्मा और उपपुलिस अधीक्षक अशोक कुमार को दे दी गई. पुलिस अधिकारियों ने महिला थाना की थानाप्रभारी को जल्दी से जल्दी अभियुक्त सुमेरनाथ को गिरफ्तार कर लड़की बरामद करने के निर्देश दिए.

अधिकारियों के निर्देश पर महिला थाने की थानाप्रभारी ने सबइंसपेक्टर भवानी सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर अभियुक्त सुमेरनाथ की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी सौंप दी. भवानी सिंह का मुखबिर तंत्र बहुत मजबूत था. उन्होंने अपने मुखबिरों को सुमेरनाथ के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया.

इसी के साथ सुमेरनाथ और सुनीता की खोज रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों पर की जाने लगी. लेकिन इन जगहों से उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इसी क्रम में पुलिस टीम पोकरण, फलोदी, बालोतरा, पाली, अजमेर, अलवर और बीकानेर तक ढूंढ़ने गई, लेकिन इन जगहों पर भी उन के बारे में कुछ पता नहीं चला.

पैसों की चकाचौंध में बह गई भावना

30 जून, 2023 को गुजरात के जिला भरूच के थाना जंबुसर पुलिस को सूचना मिली कि पगरनाला में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थाना पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. लाश किसी पुरुष की थी, जिस की उम्र 36 साल के आसपास थी.

मरने वाले के शरीर पर कपड़े के नाम पर सिर्फ पैंट थी. पुलिस ने पैंट की तलाशी ली कि शायद उस की जेब से ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की पहचान हो जाए. पर उस की जेब से कुछ भी नहीं मिला. आसपास भी ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की पहचान हो पाती. तब पुलिस ने घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस के बाद थाने आ कर यह पता करने की कोशिश की जाने लगी कि जिले में कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. पर जिले के किसी थाने में उस हुलिए के किसी व्यक्ति की कोई गुमशुदगी दर्ज नहीं थी. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने लाश को बड़ौदा की मोर्चरी में रखवा दी. इस के बाद पुलिस यह पता करने की कोशिश करती रही कि मरने वाला कौन है?

10 दिन बाद हुई लाश की शिनाख्त

लाश मिलने के 10 दिनों बाद थाना जंबुसर से करीब 400 किलोमीटर दूर जिला बनासकांठा के थाना थराद के एसएचओ इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी ने फोन कर के जंबुसर पुलिस से पूछा, “पता चला है कि आप के थानांतर्गत एक पुरुष की लाश मिली है. मरने वाले की उम्र 36 साल के आसपास है.”

“जी, आज से 10 दिन पहले नाले में एक लाश मिली थी. मरने वाले की यही उम्र होगी, जितनी आप बता रहे हैं. मैं उस के फोटो भेज रहा हूं. लाश अभी मोर्चरी में रखी है.” थाना जंबुसर पुलिस ने कहा.

जंबुसर पुलिस ने लाश के फोटो भेजे तो पता चला कि वह लाश गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील थराद के गांव चोटपा के रहने वाले मारवाड़ी चौधरी पटेल शंकरभाई की थी. वह गांव में रह कर खेती करने के साथसाथ मकान बनाने के ठेके लेता था. उस के परिवार में पत्नी भावना पटेल के अलावा 3 बच्चे और बूढ़े मांबाप थे. पिता को लकवा मार दिया था, इसलिए वह चलफिर नहीं सकते थे.

29 जून, 2023 को साइट से आने के बाद शाम का खाना खा कर शंकर यह कह कर घर से निकला था कि वह पड़ोस में रहने वाले ऊदाजी के पास जा रहा है. वह घर से गया तो फिर लौट कर नहीं आया. घर वालों ने थोड़ी देर इंतजार किया. पर जब समय ज्यादा होने लगा तो उस के बारे में पता करने लगे. फोन किया गया तो पता चला फोन बंद है.

अगले दिन यानी 30 जून को थाना थराद पुलिस को सूचना दी गई, लेकिन थाना थराद पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेने के बजाय एकदो दिन और इंतजार करने के लिए कह कर सूचना देने गई शंकर की मां मीरादेवी को वापस भेज दिया था.

गुमशुदगी दर्ज कर पुलिस ने की कार्यवाही

जब 2 जुलाई तक शंकर नहीं आया तो मीरादेवी दोबारा थाने जा पहुंची. इस बार इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी से उन की मुलाकात हो गई. उन्होंने तुरंत शंकर की गुमशुदगी दर्ज कराई और शंकर के बारे में पता कराने का आश्वासन दे कर मीरादेवी को घर भेज दिया.

इस के बाद एसएचओ ने शंकर की तलाश शुरू की. गांव वालों से पूछताछ में पता चला कि शंकर की पत्नी भावनाबेन का चरित्र ठीक नहीं है. इस के बाद उन्होंने भावना का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. इस से उन्हें पता चला कि भावना लगातार पड़ोसी गांव कलश के रहने वाले शिवा पटेल के संपर्क में है.

जब उन्होंने शिवा पटेल के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि वह 29 जून को अंकलेश्वर से गांव आया तो था, पर अपने घर नहीं गया था. इस के अलावा 29 जून को उस ने शंकर को फोन भी किया था. 29 जून की शंकर और शिवा के फोन की लोकेशन निकलवाई गई तो पता चला कि दोनों के फोन की लोकेशन एक साथ थी.

इस से पुलिस को उस पर शक हुआ तो पुलिस ने उस की लोकेशन निकलवाई. उस की लोकेशन अंकलेश्वर की मिली. इंसपेक्टर सी.पी. चौधरी की टीम अंकलेश्वर पहुंची और शिवा को गिरफ्तार कर के थाने ले आई.

थाने ला कर शिवा से पूछताछ शुरू हुई. शिवा पुलिस को गोलगोल घुमाता रहा. उस का कहना था कि वह 29 जून को गांव गया ही नहीं था. इधर शंकर से उस की मुलाकात ही नहीं हुई, लेकिन जब पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की लोकेशन उस के सामने रखी तो उस ने शंकर के मर्डर में अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि भावना के साथ रहने के लिए उस ने शंकर की हत्या की है. इस के बाद उस ने भावना से प्यार होने से ले कर शंकर की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

मेले में मिल गए दोनों के दिल

शंकरभाई पटेल और भावनाबेन का विवाह करीब 14 साल पहले हुआ था. शंकर अपने परिवार के साथ चोटपा गांव में खेतों के बीच मकान बना कर रहता था. उस की दोस्ती कलश गांव के शिवाभाई पटेल से थी. वह भी मारवाड़ी चौधरी पटेल था. वह भी खेतों के बीच घर बना कर रहता था, शायद इसीलिए दोनों में कुछ ज्यादा पटती थी.

शिवा शंकर के घर भी खूब आताजाता था. शिवा अंकलेश्वर में मेटल का धंधा करता था. वह जब भी अंकलेश्वर से गांव आता, शंकर को अपनी क्रेटा गाड़ी में बैठा कर घुमाता था.

एक बार वह राजस्थान के बौर्डर पर लगने वाले लवाड़ा के मेले में घूमने जा रहा था तो शंकर के साथ उस की पत्नी भावना भी मेला देखने गई थी. उसी मेले में शिवा और भावना ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर ले लिया था. बाद में दोनों के बीच फोन पर बातें होने लगीं. फोन पर बातें करतेकरते दोनों के बीच प्रेम संबंध बना तो फिर शारीरिक संबंध भी बन गए.

शिवा कुंवारा था, जवान था, अच्छा पैसा कमाता था, उसे एक महिला शरीर की जरूरत भी थी, जो भावना ने पूरी कर दी थी. शिवा के पास पैसों की कमी नहीं थी, वह दिल खोल कर भावना पर पैसे खर्च करता था तो भावना भी प्यार से उस की शारीरिक जरूरतें पूरी करती थी. यह अवैध संबंध इसी तरह चलते रहे.

यह लगाव जब गहराया तो भावना अकसर शिवा से शिकायत करने लगी, “मेरा पति शंकर मुझे बहुत परेशान करता है. जराजरा सी बात पर मुझे मारता है.”

शिवा के प्यार में डूब गई भावना

जब कभी भावना और शंकर में झगड़ा होता तो भावना शिवा को फोन कर के पति और अपना झगड़ा शिवा को सुनाती भी थी. शंकर भावना के साथ जो बरताव कर रहा था, वह शिवा को अच्छा नहीं लगता था. पर वह शंकर से कुछ कह भी नहीं सकता था.

शिवा भावना से बहुत प्यार करता था, इसलिए एक दिन उस ने कहा, “तुम शंकर को छोड़ कर मेरे साथ क्यों नहीं रहने आ जाती? मैं तुम्हें रानी की तरह रखूंगा.”

इस पर भावना ने कहा, “घर में बूढ़े मांबाप हैं, उन्हें छोड़ कर आऊंगी तो समाज मुझ पर थूकेगा. मेरी बहुत बदनामी होगी.”

“तब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं?” शिवा ने कहा.

“कुछ तो करना ही होगा, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रह सकती.” भावना बोली.

28 जून, 2023 को किसी बात पर शंकर और भावना में झगड़ा हुआ. तब भावना ने शिवा को फोन कर के कहा, “शिवा, तुम किसी भी तरह मुझे इस आदमी से छुड़ाओ. अब मैं इस आदमी के साथ बिलकुल नहीं रह सकती.”

शिवा भावना से प्यार तो करता ही था. पर उस के लिए परेशानी यह थी कि उस की बिरादरी में पति या पत्नी को छोडऩा आसान नहीं है. इसलिए जब उस ने भावना से एक बार फिर शंकर को छोड़ कर आने को कहा तो भावना बोली, “अगर मैं शंकर को छोड़ कर आती हूं तो समाज में मेरी बहुत बदनामी होगी. इसलिए शंकर से छुटकारा पाने के लिए उस का कुछ करना होगा.”

“वही तो मैं पूछ रहा हूं कि शंकर का किया जाए?” शिवा ने पूछा.

“ऐसा है, अगर तुम मेरे साथ रहना चाहते हो तो उसे खत्म कर दो. वह नहीं रहेगा तो हम दोनों आराम से रह सकेंगे.” भावना ने कहा.

“ठीक है, जैसा तुम कह रही हो, वैसा ही करते हैं. आराम से बैठ कर योजना बनाते हैं, उस के बाद शंकर को खत्म कर देते हैं.” शिवा ने कहा.

शंकर की हत्या की हुई प्लानिंग

28 जून को यह बात हुई थी. इस के पहले भी दोनों में शंकर नाम के कांटे को निकालने की कई बार बात हो चुकी थी, लेकिन इस के पहले फाइनल योजना नहीं बनी थी. पर इस बार दोनों ने फोन पर ही शंकर को खत्म करने की फाइनल योजना बना डाली.

योजना बनाने के बाद किसी को शक न हो, इसलिए भावना 28 जून को ही मायके चली गई. 29 जून को शिवा ने एक दूसरे नंबर से अपने दोस्त शंकर को फोन कर के अच्छीअच्छी बातें करने के बाद विश्वास में ले कर कहा, “यार शंकर, तुम से एक जरूरी काम है. मैं गाड़ी ले कर आ रहा हूं. तुम ऐसा करो, सडक़ पर आ कर मुझ से मिलो.”

इस बीच भावना से भी शिवा की बातचीत होती रही. 2 महीने पहले भावना और शिवा के बीच शंकर को मारने की बात हुई थी, तब भावना ने कहा था कि शंकर को नींद की गोली खिला कर खत्म कर दो. इसलिए 2 महीने पहले ही उस ने भरूच सिटी से नींद की गोलियां खरीद कर रख ली थीं, जो उस की गाड़ी में ही रखी थीं. 2 महीने पहले हुई बातचीत के अनुसार शिवा अपनी योजना में आगे बढ़ रहा था.

कार में गला घोंट कर की थी हत्या

29 जून, 2023 की दोपहर को अपनी क्रेटा कार नंबर जीजे16डी के1389 ले कर शिवा अंकलेश्वर से निकला. उस ने अपने निकलने की बात शंकर को बता दी थी. चलने के पहले उस ने नींद की गोलियां पीस कर पानी की बोतल में मिला दी थीं.

रात करीब 9 बजे वह गांव चोटपा पहुंचा. उस ने शंकर से बता ही दिया था कि एक जरूरी काम से उसे साथ चलना है, इसलिए वह खाना खा कर तैयार था. गांव पहुंचते ही शिवा ने फोन किया तो शंकर आ कर उस की कार में बैठ गया. शिवा इधरउधर गाड़ी घुमाने लगा.

शिवा समय गुजार रहा था कि शंकर उस से पानी पीने के लिए मांगे. इसलिए वह शंकर को चोटपा से खोडा चरकपोस्ट, साचोर, ननेवा से घानेरा ले गया. जब वह काफी दूर निकल गया तो शंकर ने पानी पीने के लिए मांगा. शिवा ने तुरंत पानी की वही बोतल पकड़ा दी, जिस में उस ने नींद की गोलियां पीस कर मिलाई थीं.

वह पानी पीने के थोड़ी देर बाद शंकर को नींद आ गई. इस के बाद शिवा घानेरा से सीधे डीसा रोड पर गया. सडक़ पर सुनसान जगह देख कर शिवा ने कार रोकी और शंकर के मोबाइल को स्विच्ड औफ कर दिया कि किसी को पता न चल सके.

इस के बाद वह गाड़ी ले कर चल पड़ा. काफी दूर जाने के बाद सुनसान जगह देख कर उस ने सडक़ के किनारे गाड़ी रोक दी. शंकर गहरी नींद में था. शिवा ने कार में रखी रस्सी निकाली और शंकर के गले में लपेट कर कस दी. गला घोंटने से शंकर की सांस हमेशा हमेशा के लिए रुक गई.

बच्चों के अनाथ होने पर समाज ने की मदद

अब उसे शंकर की लाश को ठिकाने लगाना था. वह लाश को ऐसी जगह फेंकना चाहता था, जहां कोई उस की पहचान न कर सके. उस ने शंकर को आगे की सीट पर इस तरह बैठा दिया, जिस से लगे कि वह बैठेबैठे सो रहा हो.

शंकर की लाश को ले कर वह डीसा, पालनपुर, मेहसाणा, अहमदाबाद, बड़ौदा होते हुए वह जंबुसर गया. जंबुसर चौराहे से थोड़ी दूर आगे से सिंगल रोड गई थी. उसे वह रोड सुनसान दिखाई दी तो उस ने कार उसी रोड पर उतार दी. लगभग एक किलोमीटर जा कर शिवा को एक पगरनाला दिखाई दिया तो उस ने शंकर की लाश उसी पगरनाले में फेंक दी. उस समय सुबह के 6 बज रहे थे.

लाश को ठिकाने लगाने के बाद शिवा ने फोन कर के यह बात भावना को बताई और वहां से सीधे अंकलेश्वर चला गया. 2 दिन बाद भावना भी ससुराल आ गई, जिस से किसी को उस पर शक न हो.

हत्याकांड का खुलासा हो जाने के बाद थाना थराद पुलिस ने भावना को भी गिरफ्तार कर लिया. शिवा को थाने में देख कर उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. इस के बाद थाना थराद पुलिस ने शिवा और भावना को बनासकांठा की अदालत में पेश किया, जहां से दोनों का 6 दिन का रिमांड लिया गया.

रिमांड के दौरान बनासकांठा के एसपी अक्षयराज मकवाना ने प्रैस कौन्फ्रैंस की. पत्रकारों के सामने भी प्रेमिका प्रेमी भावना और शिवा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने दोनों को दोबारा अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

शंकर, जिस की हत्या हुई है, उस के पिता लकवाग्रस्त हैं, मां बूढ़ी है. 3 बच्चे हैं, जिस में सब से बड़ी बेटी 7 साल, उस से छोटा बेटा 4 साल और सब से छोटा बेटा 2 साल का है. पिता की हत्या हो गई है. पिता की हत्या के आरोप में मां जेल में है. बच्चों की हालत पर दया खा कर आजणा चौधरी समाज के बुजुर्गों ने बच्चों की मदद के लिए 15 लाख रुपए इकट्ठा कर के दिए हैं.

प्यार की वो आखिरी रात

प्रेमिका को गोली मार की खुदकुशी

दांपत्य की लालसा – भाग 3

प्रभावती को ही नहीं, उस के घर वालों को भी पता चल गया था कि तेजभान शादीशुदा है. एक शादीशुदा आदमी के साथ जिंदगी नहीं पार हो सकती थी, इसलिए प्रभावती की बड़ी बहन सविता ने अपनी ससुराल लोहारपुर में उस के लिए एक लड़का देखा. वह उस के साथ प्रभावती की शादी कराना चाहती थी. लड़के को देखने और बातचीत करने के लिए उस ने प्रभावती को अपनी ससुराल बुला लिया.

जब इस बात की जानकारी तेजभान को हुई तो वह भी लोहारपुर पहुंच गया. जब उस ने देखा कि वहां एक लड़के के साथ प्रभावती बात कर रही है तो उसे गुस्सा आ गया. उस ने प्रभावती का हाथ पकड़ कर उस लड़के को 2-4 थप्पड़ लगाते हुए कहा, ‘‘तूने अपनी शकल देखी है जो इस से शादी करेगा.’’

प्रभावती के घर वाले उस की शादी जल्द से जल्द करना चाहते थे. लेकिन तेजभान टांग अड़ा रहा था. वह उस से खुद तो शादी कर नहीं सकता था लेकिन वह उस की शादी किसी ऐसे आदमी से कराना चाहता था, जो शादी के बाद भी उसे प्रभावती से मिलने से न रोके. क्योंकि वह प्रभावती को खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता था. इसीलिए तेजभान ने अपने एक रिश्तेदार प्रदीप को तैयार किया.

वह रिश्ते में उस का मामा लगता था. तेजभान को पूरा विश्वास था कि प्रदीप से शादी होने के बाद भी उसे प्रभावती से मिलनेजुलने में कोई परेशानी नहीं होगी. प्रदीप उम्र में तेजभान से काफी बड़ा था. प्रभावती का भरोसा जीतने के लिए उस ने उस की एक जीवनबीमा पौलिसी भी करा दी थी.

प्रदीप से बात कर के तेजभान ने प्रभावती से कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं तुम्हारी शादी प्रदीप से करा दूं. वह अच्छा आदमी है. खातेपीते घर का भी है.’’

प्रभावती ने तेजभान की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. 2 दिनों बाद तेजभान प्रदीप को साथ ले कर प्रभावती से मिला. तीनों ने साथ खायापिया. प्रदीप चला गया तो तेजभान ने कहा, ‘‘प्रभावती, प्रदीप तुम्हें कैसा लगा? मैं इसी से तुम्हारी कराना चाहता हूं.’’

एक तो प्रदीप शक्लसूरत से ठीक नहीं था, दूसरे उस की उम्र उस से दोगुनी थी. वह शराब भी पीता था, इसलिए प्रभावती ने कहा, ‘‘इस बूढ़े के साथ तुम मेरी शादी कराना चाहते हो?’’

‘‘यह बहुत अच्छा आदमी है. उस से शादी के बाद भी हमें मिलने में कोई परेशानी नहीं होगी. दूसरी जगह शादी करोगी तो हमारा मिलनाजुलना नहीं हो पाएगा.’’

‘‘उस दिन मारपीट कर के तुम ने मेरी शादी तुड़वा दी थी. मैं उस बूढ़े से हरगिज शादी नहीं कर सकती. अब मैं तुम्हीं से शादी करूंगी. तुम्हें ही मुझे अपने घर में रखना पड़ेगा.’’ प्रभावती ने गुस्से में कहा.

प्रभावती अब तेजभान के लिए मुसीबत बन गई. वह उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगा. तब प्रभावती उस से अपने वे पैसे मांगने लगी, जो उस ने उसे मोटरसाइकिल खरीदने के लिए दिए थे. दोनों के बीच टकराव होने लगा. तेजभान के साथ शादी कर के घर बसाने का प्रभावती का सपना तेजभान के लिए गले की हड्डी बन गया.

प्रभावती ने कह भी दिया कि जब तक वह शादी नहीं कर लेता, तब तक वह उसे अपने पास फटकने नहीं देगी. वह प्रभावती से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि वह पहले से ही शादीशुदा था. उस की पत्नी को प्रभावती और उस के संबंधों के बारे में पता भी चल चुका था.

तेजभान को प्रभावती से पीछा छुड़ाने की कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद 7 दिसंबर, 2013 की शाम प्रभावती को समझाबुझा कर वह पूरे मौकी मजरा जगदीशपुर चलने के लिए राजी कर लिया. प्रभावती तैयार हो गई तो वह उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर चल पड़ा. परशदेपुर गांव के पास वह नइया नाला पर रुक गया.

मोटरसाइकिल सड़क पर खड़ी कर के वह बहाने से प्रभावती को सड़क के नीचे पतावर के जंगल में ले गया. सुनसान जगह पर प्यार करने के बहाने उस ने प्रभावती को बांहों में समेटा और फिर उस का गला घोंट कर मार दिया. प्रभावती को मार कर उस की लाश उस ने नाले के किनारे पतावर में इस तरह छिपा दिया कि वह सड़गल जाए. इस के बाद उस का मोबाइल फोन और अन्य सामान ले कर वह अपने गांव डीह चला गया.

प्रभावती अपने घर नहीं पहुंची तो घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने तेजभान को फोन किया तो उस ने कहा कि वह प्रभावती से कई दिनों से नहीं मिला है. उसी दिन प्रभावती के घर जा कर उस ने उस के घर वालों को प्रभावती के बारे में पता करने का आश्वासन दिया. प्रभावती के घर वालों ने पुलिस को सूचना देने की बात कही तो ऐसा करने से उस ने उन्हें रोक दिया. उस का सोचना था कि कुछ दिन बीत जाने पर प्रभावती की लाश सड़गल जाएगी तो वैसे ही उस का पता नहीं चलेगा.

प्रभावती की तलाश करने के बहाने वह रोज उस के घर जाता रहा. 4-5 दिनों बाद जब उसे लगा कि अब प्रभावती की लाश नहीं मिलेगी तो वह अपने काम पर जाने लगा. उस ने अपने साथियों से भी कह दिया था कि अगर उन से कोई प्रभावती के बारे में पूछे तो वे कह देंगे कि उन्होंने 10-15 दिनों से उसे नहीं देखा है.

11 दिसंबर, 2013 की सुबह चौकीदार छिटई को गांव वालों से पता चला कि नइया नाला के पास पतावर के बीच एक लड़की की लाश पड़ी है, जिस की उम्र 23-24 साल होगी. चौकीदार ने यह सूचना थाना डीह पुलिस को दी. उस दिन थानाप्रभारी बी.के. यादव छुट्टी पर थे. इसलिए सबइंसपेक्टर आर.के. कटियार सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. शव की पहचान नहीं हो पाई.

घटना की सूचना पा कर पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय और क्षेत्राधिकारी महमूद आलम सिद्दीकी भी पहुंच गए थे. उस समय जोरदार ठंड पड़ रही थी. चारों ओर घना कोहरा छाया था. निरीक्षण के दौरान देखा गया कि लड़की के हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा है.

पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पुलिस अधीक्षक राजेश कुमार पांडेय ने थाना डीह पुलिस को हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ने का आदेश दिया था. वह इस की रोज रिपोर्ट भी लेने लगे थे. पुलिस ने लड़की के कपड़े और उस के पास से मिले सामान को थाने में रख लिया था. 13 दिसंबर को जब इस घटना के बारे में अखबारों में छपा तो खबर पढ़ कर प्रभावती के घर वाले थाना डीह पहुंचे. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह 6 दिनों पहले गायब हुई प्रभावती की ही लाश होगी.

थाने आ कर प्रभावती के भाई फूलचंद और पिता महादेव ने लाश से मिला सामान देखा तो उन्होंने बताया कि वह सारा सामान प्रभावती का है. अब तक थानाप्रभारी बी.के. यादव वापस आ चुके थे. शव की शिनाख्त होते ही उन्होंने जांच आगे बढ़ा दी.

प्रभावती के घर वालों से पूछताछ के बाद पुलिस की नजरें तेजभान पर टिक गईं. प्रभावती के गायब होने के कुछ दिनों बाद तक तो वह प्रभावती के घर जाता रहा था, लेकिन 2 दिनों से वह नहीं गया था. 15 दिसंबर को 2 बजे के आसपास तेजभान डीह के रेलवे मोड़ पर मिल गया तो थानाप्रभारी बी.के. यादव ने उसे पकड़ लिया.

शुरूशुरू में तो तेजभान प्रभावती के संबंध में कोई भी जानकारी देने से मना करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के और प्रभावती के संबंधों के बारे में बताना शुरू किया तो मजबूर हो कर उसे सारी सच्चाई उगलनी पड़ी.

प्रभावती की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, वह बहुत मतलबी और चालू औरत थी. मेरे अलावा भी उस के कई लोगों से संबंध थे. मैं ने उसे मना किया तो वह मुझ से शादी के लिए कहने लगी. उस ने मुझे जो पैसे दिए थे, उस से मैं ने उस का बीमा करा दिया था. फिर भी वह मुझ से अपने पैसे मांग रही थी. परेशान हो कर मैं ने उसे मार दिया.’’

पुलिस ने तेजभान के पास रखा प्रभावती का सामान भी बरामद कर लिया था. इस के तेजभान के खिलाफ प्रभावती की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में ही था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित